चाय उबलने ही वाली थी। निशा आज सुबह फिर घर के काम में लग गायी। आज फिर उसे कॉलेज के लिए लेट नहीं होना था। कल उसके प्रोफेसर ने उसे डाँटा था। माँ के गुज़र जाने के बाद 6 महीने हो चुके थे पर फिर भी वह अपना डेली रूटीन संभाल नहीं पाई थी।
पापा चाय के लिए वेट कर रहे थे। चाय पापा को देकर, आशा और सशा के लिए लंच भी तैयार करना था उसे। वह जानती थी अगर वह लंच नहीं बनायी, तो दोनों छोटी बहने भूखे रहेंगे और टीवी के सामने बैठी रहेंगी।
चाय कप में डाल कर वह ड्राइंग रूम में गयी।
पापा (जगदीश राय) सुबह का पेपर लेकर बेठे थे और रोबर्ट वाड्रा को बुरा-भला कह रहे थे।
निशा:पापा, ये लो चाय।
पापा: अरे, बना दिया। क्यों तकलीफ की। मैं बना देता। तू अपने कॉलेज जाने पे ज़ोर दे और पढाई ठीक से कर।
निशा( जाते हुए): पापा, अब आप हर सुबह की तरह फिर शुरू मत हो जाइए। चुप चाप चाय पिजिए और ऑफिस जाइए।
पापा: (थोडा मुस्कुराकर) ठीक है मेरी माँ। ला दे बैठ, थोड़ा चाय मेरे में से पी ले।
निशा: नही, मुझे लंच भी बनाना है। दो महारानियों के लिये।
पापा: अरे वह मैं बना दूंगा। तू फिकर मत कर। मुझे आज ऑफिस लेट जाना है।
निशा: नही। किचन का काम मेरा है। आप उसमे दखल न दे।
पापा: अरे तेरी माँ जब थी, तब भी मैं कभी कभी लंच बना लेता था। तो अब क्यों नही।
मॉम का ज़िक्र सुनकर निशा चुप हो गयी और सर झुका के बैठ गयी। जगदीश राय भी चुप हो गया और उसका आँख भर गई। निशा ये देख कर बहुत उदास हो गयी। वह उठकर किचन में चली गयी।
मॉम(सीमा राय) की मृत्यु कोई 6 महिने पहले हुई थी। निशा जानती थी की पापा अभी तक उनके माँ को मिस कर रहे है। वह जानती थी की घर की स्त्री अब वह है, उसे ही सबको सम्भालना है।
तभी सीडियों से भूकम्प की तरह शोर मचाते हुए आशा और सशा उतर पडी। सशा चिल्लाकर रोती हुई बोल रही थी।
सशा: देखो न दीदी, आशा मुझे अपनी ड्रेस पहनने नहीं दे रही है।
निशा: अरे तुम दोनों फिर शुरू हो गई। पापा, आप ही सम्भालिए इन्हे।
पापा: अरे भाई क्या हुआ।
सशा: देखो न पापा, आशा मुझे अपनी ड्रेस पहनने नहीं दे रही है।
आशा: अरे बुद्धू, वह तेरी साइज की नहीं है। अपना चेस्ट तो देख। दीदी, तुम ही समझाओ इस फूल को
सशा: फूल होगी तु। सिर्फ 2 इंच कम है मेरी तुम से। जब मैं तेरी ब्रा पहन सकती हु तो ड्रेस क्यों नही।
निशा: यह बात तो सही है। आशा, तो फिर क्या प्रोब्लम।
आशा: दीदि, ये हैगिंग ड्रेस है। ये पहनेगी तो अच्छी नहीं लगेगी। इसके मम्मे भी नहीं दिखेंगे।
सशा: सब दिखेंगे और तेरी से भी अच्छे।
निशा: (हँसती हुई) सशा हम तुम्हारे लिए शाम को ऐसा ही ड्रेस ला देंगे। क्यों पापा?
जगदीश राय के समझ में नहीं आ रहा था, क्या बोले। लड़किया बड़ी भी हो गयी थी और ओपन भी। इन्हे एक औरत ही संभाल सकती थी। हलाकी निशा उनमें से बड़ी थी , पर सिर्फ 3 साल। उसके रिश्तेदारों ने कहा की , दूसरी शादी की सोच ले। पर वह इस उम्र में दूसरी बीवी नहीं लाना चाहता था।
पापा: (बौखला के)। हाँ हाँ क्यों नही।
दोनो वहां से चली गयी। जगदीश राय ने देखा की अनजाने में उसमे एक अजीब सी लहर आ गयी थी। और ये देखकर चौक गया की उसका लंड खड़ा था। उसने जल्द से अपने पायजामा के ऊपर से लंड को ठीक कर दिया। उसे समझ में नहीं आया की ऐसा क्यों हुआ।
पापा को लंड के ऊपर से हाथ फेरकर ठीक करते हुये निशा ने देख लिया। उसने तुरंत अपना मुह दूसरी ओर घुमा दिया और किचन में चली गयी।
लंच तैयार करके निशा कॉलेज को रवाना हो गई। शाम के 5 बजे जगदीश राय घर आया तो देखा की खाने के सभी प्लेट्स हॉल में फैला हुआ है। वह जानता था की यह हरकत आशा और सशा की है। उसने चील्लाकर उन्हें बुलाया पर कोई जवाब नहीं आया। फिर वह ऊपर उनके रूम में, देखने चला गया की यह दोनों कर क्या रहे है।
रूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था। उसने धीरे से उसे खोला तो देखा की दोनों ��ो रही है। दोनों के गर्दन तक चद्दर चढा हुआ था सर हाथ भी अंदर थे।सशा हर वक्त की तरह अँगूठा मुह में ले कर सोयी थी।
जगदीश राय ने सोचा की उनको जगा देंना चाहिये और अंदर आ गया। पहले आशा के पास गया।
पापा: आशा उठ जा। होमवर्क नहीं करनी है। चल सशा बेटी तू भी उठ ज। मुह हाथ धो लो।
पापा की आवाज़ सुनकर सशा थोड़ी सी हिली और फिर करवट बदलकर चद्दर से लिपटकर सो गयी। अंगूठा नींद में चूसने लगी।
आशा: क्या पापा, सोने दो न।
जगदीश राय जानता था की तीनो बेटियां में सबसे झगड़ालू और बदतमीज़ आशा है।
पापा: उठती हो या पानी मारु।
आशा: ठीक है बाबा। उठती हूँ।
यह कहकर उसने अपना पैर चद्दर से बाहर निकाल लिया। पैर देखकर जगदिश राय चौक गया। पैर कमर से लेकर पूरा नंगा था।
पापा: यह क्या। तुम्हारा पायजामा कहाँ है।
आशा: अरे हा, उसमे दाल गिर गया तो मैंने उसे धोने को डाल दिया।
पापा: तो क्या कुछ भी नहीं पहनी।
आशा: पहनी हु न। पेंटी पहनी हूँ।
ये कहकर आशा ने अपने ऊपर से चद्दर हटा दिया। जगदीश राय देखता ही रह गया।
आशा ने ऊपर सिर्फ एक स्लीवलेस बनियान स्टाइल टॉप पहनी थी। उसमे से उसकी ब्रा की स्ट्राप दिख रहा थी, जो लाइट ब्लू कलर का था। टॉप सिर्फ नाभि के होल के ऊपर तक था। टॉप काफी टाइट था, उसमे से उसके चूचे उभर कर निकल रहे थे। जगदीश राय ने देखा चुच्ची बहुत बड़ी भी नहीं है, पर शेप में थी। चूचो का शेप देखकर कोई भी कह सकता था की बहुत मज़ेदार शेप है उनकी।
नाभी के छेद से लेकर कमर तक का पूरा बदन खुला था। आशा थोड़ी सांवली थी। जगदीश राय ने ये जाना की भले ही आशा बहुत गोरी नहीं थी पर उसका फिगर क़ातिलाना था।
कमर के निचे उसने एक लाल रंग की पेंटी पहनी थी। जगदीश राय ने ऐसी पेंटी पहले नहीं देखि थी। उसने देखा सिर्फ बीच के भाग पर कपडा लगा हुआ है, साइड पे सिर्फ रस्सी के शेप की डोर लगी है।
आशा खड़ी हो गयी और अपना हाथ ऊपर उठा कर बाल को बाँधने लगी। आशा को कोई शर्म नहीं आ रही थी अपने पापा के सामने ऐसा रहने से। जगदीश राय, एक छोटे बच्चे की तरह उसे देखे जा रहा था। उसका मुह सुख चूका था।
आशा: मेरी शॉर्ट्स कहाँ है। यहाँ पड़ी हुई थी। शायद निशा दीदी ने कप्बोर्ड में रखी होगी।
और ये कहकर आशा पलटी। जगदीश का मुह खुला रह गया। आशा की गांड पूरी नंगी थी। पेंटी की डोर गांड की दरार से चिरकर निकल रही थी, गाण्ड पर कोई कपडा नहीं था। और जहाँ वह डोर जाके मिल रहा था, वहां एक हार्ट शेप का प्लास्टिक लगा हुआ था, और उसमे लिखा था "लव यु"
जगदीश राय ने अपने आप को सम्भाला। वह जल्दी से मुड गया और जोर से कहा।
पापा: ठीक है। ज��्दी से निचे आओ और उस सशा को भी उठा देना।
आशा: जो आज्ञा जहाँपनाह।
और फिर जगदीश राय बाहर आ गया। बाहर आते ही उसने चैन की सास ली। दिल ज़ोर से धड़क रहा था। वह कंफ्यूज सा हो गया की क्यों वह इतना बेचैन हुआ है। ऐसा तो नहीं की उसने आशा को पहले कभी नहीं देखा कम कपडो में, पर तब वह छोटी थी। तो अब कौन सी बहुत बड़ी है। उसे लगा की शायद उसे उनके रूम में नहीं आना चाहीए था। लड़किया अब बड़ी नहीं पर छोटी भी नहीं है। ये सब सोचकर वह सीडियों से निचे उतर रहा था, तब बेल बजा। उसने जा के दरवाज़ा खोला।
निशा: अरे पापा आप कब आए। मैं अभी चाय बनाती हूँ।
पापा: नहीं बेटी, मैं ऑफिस से पीके आया हूँ। बस अब नहाने जा रहा हूँ।।
निशा फ्रेश होकर अपने कमरे में गयी। ऊपर के तीन कमरो में, उसका एक छोटा सा कमरा था, जो वह किसी के साथ शेयर नहीं करती थी। पापा का कमरा बीच में था।
उसने अलमारी से एक वाइट टैंक-टॉप टीशर्ट पहन लिया और स्कर्ट उठा लिया। टैंक टोप पुरानी थी इसलिए छोटी थी। स्कर्ट कोई घुटनो तक का था। वह शॉर्ट्स पहनना चाहती थी पर पापा के होते हुये वह शॉर्ट्स में कम्फर्टेबले फील नहीं करती थी। मुह हाथ धोकर वह नीचे आ गई तो देखा पापा सर पर तेल मल रहे है।
जगदीश राय एक वाइट टीशर्ट और ढिला पायजामा शॉर्ट्स पहना हुआ था। निशा की माँ थी तो वो पापा के सर और शरीर पर तेल लगा दिया करती थी, और अब पापा बेचारे खुद ही कर रहे है। निशा ने ठान लिया था की पापा को माँ की कमी कभी महसूस नहीं होने दूंग़ी।
निशा: पापा मैं लगा देती हूँ।
पापा: अरे नही, तुम कॉलेज से थकि आयी हो। जाओ कुछ खा लो।
निशा: नहीं मैं कैंटीन से खाके आयी हूँ।
जगदीश राय, आशा की वजह से गरम हुआ था। उसके दिमाग में वह दृश्य घूम रहा था।
तभी आशा उतरी और हॉल में आ गयी।
आशा: पापा दीदी मैं और सशा वैलेंटाइन कार्ड लेने जा रहे है।
निशा: अरे वो, तुम्हारा कौन सा बॉयफ्रेंड है।
आशा: कई है। सबको बताती फिरूंगी। और चिल्लाने लगी, सशा सशा जल्दी आ। मैं नहीं रूकुंगी तेरे लिये। उफ्फ,छोटी उम्र में इतना सवरना।
जगदीश राय निशा के तरफ देखने लगा, मानो की सवाल पूछ रहा हो। निशा समझ गयी। निशा ने नकारते हुये सर हिला दिया और जगदिश राय समझ गया की आशा सिर्फ मज़ाक़ कर रही है, उसका कोई बॉय फ्रेंड नहीं है।
तभी सशा हॉल में आ गयी। उसने एक छोटा स्कर्ट पहने हुआ था और बड़ी प्यारी लग रही थी। सीडियों से कुदते वक़्त उसके छोटे चुचे हिल रहे थे और स्कर्ट भी उछल रहा था। जगदीश राइ ने सोचा की सशा ठीक कह रही है, की उसके बूब्स छोटे नहीं है।
ये सोच आते ही, जगदीश राय अपने आप को कोसने लगा की उसे यह ख्याल आया कैसे।
सशा और आशा दोनों चले गये। निशा अपने पापा के पास आयी और कहा।
निशा: लाओ तेल की शीशी।
जगदीश राय नीचे बैठ गया और निशा सोफे पर बैठ गयी।
निशा: पापा, आप मेरे पैरो के बीच बैठ जाइये ताकि मैं आपके सर पर तेल लगा सकुं।
पापा: ठीक है बेटी
निशा: रुको, अपना शर्ट उतार लो।
पापा: क्यु
निशा: आपके शरीर पर तेल नहीं लगाना है क्या। और तेल से शर्ट ख़राब हो जाएगा। और मुझे फिर धोना पडेगा, आपका क्या।
निशा अब पूरा एक घर सँभालने वाली औरत की तरफ बोल रही थी। जगदीश राय भी मुस्कुरा दिया।
और उसने शर्ट उतार दिया। अब जगदीश राय सिर्फ एक ढीला पायजामा शॉर्ट्स पहने बेठा था।
पापा: शरीर पर मैं लगा दूंगा। तू बस सर पर लगा।
निशा कुछ नहीं बोली और तेल सर पर लगाना शुरू कर दिया। तभी उसने कहा।
निशा: ओह ओह। तेल स्कर्ट पर गिर रहा है। रुको।
और उसने अपना स्कर्ट बीच से पकड़ कर ऊपर उठा लिया और उसे अपने थाइस के बीच में घुसा दिया। इससे स्कर्ट एक शॉर्ट्स जैसे हो गया था। मानो, बहुत ही छोटा शॉर्टस।
निशा: हाँ अब ठिक़। पीछे आओ पापा। मेरे पैरो के बीच ठीक से बैठो।
जगदीश राय पीछे मुड़कर देखा तो नज़ारा बहुत प्यारा था। सोफे पर उसकी बेटी पूरी जाँघ दिखा कर बैठी थी। गोरी मुलायम जांघ। जांघ इतना सॉफ्ट दिख रहा था की हाथ लगाओ तो फिसल जाए।निशा ने स्कर्ट इतना अंदर घुसा दिया था और पैर इतना खुला रखा था, की जाँघ के अंदर का भाग भी दिख रहा था जो थोड़ा सांवला था।
जगदीश राय का दिल धड़क रहा था , और वह इस परिस्थिती से बचना चाहता था।
पापा: अरे बेटी, मैं एक काम करता हु , चेयर पर बैठता ह, तुम पीछे से खड़ी होकर लगा देना, ठीक है।
निशा: नही, खड़े रहकर सर पर तेल लगाना मुश्किल होता है। मुझे पता है।
जगदीश राय वैसे ही बड़े भोले और चुप किसम के इंसान थे। तो वह जानता था की इन लड़कियों से जीतना मुश्किल है।
मचलते और धडकते दिल लेकर जगदीश राय मुड गया और अपना नंगा शरीर निशा की जांघ से टेक कर बैठ गया।
यहाँ जगदीश राय का गरम और खुरदरा जांघ जैसे ही निशा की जांघ से टकराया , जगदीश राय के शरीर में एक अजीब सी ग़र्मी मच गयी। मानो एक साथ 2 व्हिस्की के गिलास पेट में गया हो।
वो अपने जांघो द्वारा निशा के गरम जांघ की गर्मी चूस रहा था। और चूसा हुआ गर्मी सीधे उसके लंड पर जाकर रुक रहा था। उसका लंड अपने पुरे आकार में खड़ा था।
दूसरी तरफ निशा का हाल बुरा हो चला था। पहले तो अनजाने में उसने अपने पापा को बु���ाकर बैठाया था पर अब अपने जांघ पापा के कंधे पर टीका होने से उसे अजीब सा महसूस हो रहा था। उसने सोचा की पापा को बोलू थोड़ा आगे होने के लिए पर वह पापा को कोई गलत सिग्नल नहीं देना चाहती थी। उसने सोचा की जल्दी से तेल लगा लूँगी और उठ जाऊंगी।
पर पापा का गरम हाथ और कंधा उसके जाँघ और जिस्म को गरम कर चला था। निशा की चूत अपने स्कर्ट और पेंटी में ढकी हुई थी पर पापा के गर्दन से कुछ 6 इंच की दूरी पर थी।
एक जवान कुवारी लड़की के लिए इतना मिलन उसको म��होश करने के लिए काफी था। खास कर निशा जैसे लड़की के लिए।
उसका कोई बॉयफ्रेंड नहीं था, हालाकी वो हर वक़्त अपने बाकि सहेलीयों की तरह एक बार शादी से पहले चुदना चाहती थी। पर वह ऐसा साथी चाहती थी जो उसका ख्याल करे और वह केवल चुदना नहीं बल्कि प्यार करता हो। उसके मन में अभी वो सभी ब्लू फिल्म के पिक्चर दौड रहे थे जो उसने छुप छुप के इंटरनेट में देखी थी।
वही जगदीश राय ऑंखें बंद करके उस पल को पूरी तरह एन्जॉय कर रहा था और उसका हाथ अपने लंड के ऊपर से उसको दबा रहा था।
निशा ने काँपते स्वर से कहा,
निशा: पापा आप।। अपना सर थोड़ा पीछे करो, तेल लगाना चालु करती हूँ।
पापा के सर पीछे करते ही निशा ने हाथो में तेल लिया और पापा के सर पर मल दिया।
और वह धीरे धीरे पापा के सर को मलने लगी। वह अनजाने में अपना उंगलिया और हाथ बहुत धीरे और गोल गोल घुमा रही थी। कभी वह पापा के बालों को पकड़ कर मरोड़ देती।
जगदीश राय ने ऐसी तेल मालिश कभी नहीं कारवाई थी और पूरी तरह एन्जॉय कर रहा था। वह अपने आप में नहीं था और नहीं कुछ सोचना चाहता था । वह बस इस पल को पूरी तरह एन्जॉय करना चाहता था।
मालिश करते करते निशा जगदिश राय के कानो तक पहुच गयी। उसने देखा कान बहुत लाल हो चुके है। उसने कानो को अपने हाथो में पकड़ा और धीरे सहलाना शुरू किया।
दोनो बाप बेटी कुछ नहीं बोल रहे थे। पुरी रूम में बस उनकी तेज़ साँसे और तेल मलने की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
जगदीश राय का दिमाग बहुत सारे खयालो से गुज़र रहा था। उसने सोचा की मालिश अभी बंद होने वाली है क्युकी उसने कहाँ की शरीर पर तेल वह लगा लेगा। और वह धीरे धीरे अपने शॉर्ट्स को सेट कर रहा था ताकि निशा उसका खड़ा लंड न देख सके।
पर निशा उनके कान को सहलाती जा रही थी। फिर निशा ने धीरे से अपना दोनों हाथ पापा के कंधो में ले गई और वहां मसाज करना शुरू कर दिया। कंधो का मसाज करने के लिए उसे अपने पैरो को खोलना पडा, और उसने पैरो को खोला। और ऐसा करते ही वह पापा के सर के क़रीब आ गई।
निशा मन में बोल रही थी: ये मेरे प्यारे पापा है, जो अब बहुत दुखी है। इनका ख्याल मुझे रखना है। मैं अब पीछे हट नहीं सकती।
और वह अपने पापा को दिखाना चाहती थी की वह उनकी प्यारी बेटी है।
निशा पुरे ताकत से अपने आप को झुका कर , पापा के कंधो से हाथ फेरते हुआ पूरा उनकी कलाई तक ले जा रही थी। और ऐसा करते वक़्त निशा के बूब्स पापा के सर पर टकरा रहे थे।
जगदीश राय, निशा की इन हरक़तों से पागल हो चला था। 6 महीने से उसने मुठ तक नहीं मारी थी और आज उसे लग रहा था की उसका कम वही निकल जाएगा। निशा ज़ोर ज़ोर से पापा के हाथो का मालिश करते जा रही थी और फिर जल्द उसने थोड़ा और तेल लिया और पापा के पीछे से झूक कर उनके छाती पर मलना शुरू किया।
पापा की छाती उसने आज पहली बार इतनी मदहोशी में छुआ था। और उसने पाया की उनकी छाती भट्टी की तरह गरम है। और वह उस पर तेल मलने लगी, ज़ोर ज़ोर से।
जगदीश राय से यह रहा नहीं गया, और उसने अपन��� सर पीछे मोड़ दिया। और तभी निशा झुकी और उसने अपना बूब्स पापा के मुह से सटा पाया। पापा के मुह की गरम साँस उसे चूचो पर लग रहा था। वह कसमसायी, पर अपने कर्त्तव्य से पीछे नहीं हटी।
जगदीश राय निशा की बूब्स अपने मुह के ऊपर पाकर ऐसा महसूस कर रहा था की मानो जन्नत प्राप्त हुआ हो। उसे पता था की निशा की बूब्स बड़ी है पर आज उसने जाना की कितनी भरी हुई है। उसके दोनों चूचो के बीच उसका पूरा मुह अंदर समां गया। और निशा अब तक 20 की भी नहीं थी।
उसने दो बार निशा के बूब्स से अपना मुह सहलाना के बाद , अपना सर आगे की तरफ सीधा कर दिया।
निशा अभी भी अपने आप को झुका कर , पापा के छाती पर तेल मली जा रही थी। वह अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी। पैर खुले होने के वजह से, उसका चूत पूरा खुला हुआ था। और चूत पूरी गिली हो गई थी। उसका मन लग रहा था की उसके पेंटी को फाडकर, अपना तेल से लथपथ हाथ लेकर चूत को मसले। पर वह पापा के सामने नहीं करना चाहती थी।
मालिश करने के जोश में उसने अपने स्कर्ट पर ध्यान नहीं रखा और स्कर्ट अब तक कमर तक पहुच चुकी थी। अब उसकी चूत पर सिर्फ एक पतली सी पेंटी थी जो उसकी पूरी चूत को छुपा तो रही थी, पर वह पूरी गिली हो चुकी थी। निशा की चूत ने लगतार पानी छोडा था।
न जगदीश राय जानता था की निशा का यह हाल और न निशा जानती थी अपने पापा का हाल। निशा अब पूरी लगन से , झुक झुक कर, चूचो को अपने पापा पे मसल कर तेल लगायी जा रही थी। वह पूरी गरम और मदहोश हो चुकी थी। उसे लगा उसका पानी अब कभी भी छूट सकता है, पर अपने आप को कण्ट्रोल कर रही थी।
तब जगदीश राय ने अपनी खुद की मदहोशी में अपना गर्दन पीछ को सरकाया। निशा उसी वक़्त आगे सरकी और निशा की गोरी मुलायम पेंटी में छिपी गीली चूत अपने पापा के नंगे गरम जाँघ से जा मिली। एक ४०० वाट करंट निशा की पूरी शरीर पर एक लहर की तरह फ़ैल उठी और वह ज़ोर से चिल्लायी और चिल्लाती गयी।
निशा : अहहहहहहह…। अह्हह्ह्ह्ह…।डहह्हह्हह…अह्ह्ह्।। आह।
जगदीश राय चौक पड़ा और वह तुरन्त पीछे मुडा। और वह नज़ारा देखकर वह बौखला गया।उसने देखा निशा सोफे पर लेटी, मुह खोले हाँफ़ रही है और उसकी ऑंखें बंद है। निशा का पूरा गोरा बदन पसीने से चमक रहा है।उसकी वाइट टी शर्ट पसीने से पूरी चिपकी हुई है, जिसमें से उसकी लाल ब्रा साफ़ दिखाई दे रही है। वह हाफ़ और कांप रही है और तेज़ सासो से उसकी बड़ी मुलायम चूचे ऊपर नीचे हो रही है। उसका स्कर्ट पूरा ऊपर पेट तक चढा हुआ है। दोनों पैर पूरी खुली हुई है। और पैर के बीच में उसकी वाइट पेंटी दिख रही है। पेंटी पूरी गीली है मानो किसी ने पानी मारा हो। और गीली पेंटी में छिपा हुआ चूत के बाल साफ़ दिख रहे है। निशा की जाँघ अभी भी कांप रही थी। जगदीश राय को देर नहीं लगी समझने में की उसकी बेटी को ओर्गास्म आया है और उसकी चूत अभी भी पानी छोडे जा रही है।
करीब 2 मिनट में निशा ने आँख खोला और पाया की पापा उसके नीचे बैठे उसकी तरफ देख रहे है। उसने देखा की पापा की ऑंखों में एक अजीब सा भाव था जो वह जान न सकी। तब ��सकी नज़र अपने आप पर पड़ी और वह शर्मा गयी। उसने तुरंत अपना स्कर्ट से अपने गीली चूत को छुपाया। निशा और पापा दोनों एक दूसरे को घुरे जा रहे थे और बिना कुछ बोले ही वह दोनों बहुत कुछ बोल चुके थे। निशा उठी और चुपचाप ऊपर अपने कमरे में गयी। जगदीश राय अपने बेटी की सीडी चढ़ते हुए मटकड़े गांड को एक नये नज़रिये से देखने लगा और अपना लंड तेल से मलने लगा।
निशा के पैर सीढी चढने के क़ाबिल नहीं थे, कांप रहे थे। थोडा तो ओर्गास्म का असर था और थोड़ा गुज़रे हुये पल का।
फिर भी वह अपने कमरे तक तेज़ी से चली गयी और अंदर जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया।
दरवज़ा बंद करते ही वह अपने बेड पर लेट गयी। ऑंखे मूंदकर अपने सासों को काबू में लाने का प्रयत्न करने लगी।
पर उसके ऑंखों के सामने अपना पापा का तेल से लथपथ शरीर और उनकी काम वासना की नज़र लगतार झलक रहा था। वह चाहते हुए भी उसे दूर नहीं कर पा रही थी।वह बेड से उठी और अपनी चिपचिपी पेंटी में हाथ डालकर उसे खीच कर बाहर निकाल फेका।पेंटी की हालत देखकर वह हैरान रह गयी।
निशा (मन ही मन म��ं): क्या इतना सारा पानी निकला मेरा। ओह गॉड़। पेंटी पूरी गिली हो गयी।
वह अपना हाथ चूत में ले गयी और अपने दाए हाथ की बड़ी ऊँगली चूत में घुसा दी।
निशा: आहहः।।।
मुह से एक ख़ुशी की आह निकली। फिर उसने धीरे से ऊँगली बहार खीच लिया। ऊँगली पूरी गिली थी और उसपर लगा हुआ पानी बल्ब की रौशनी में चमक रहा था।
निशा बहुत बार मुठ मार चुकी थी, पर इतना पानी और मज़ा उसे कभी नहीं मिला था।
वह उठी और बाथरूम जाकर पिशाब करने के बाद, वह थोड़ा बेहतर महसूस कर पायी। और झूक कर वॉशबेसिन में अपने चेहरे पर बहुत सारा पानी मारा।
अपना पानी लगा चेहरा , मिरर में देखने लगी। और सोचने लगी।।।।
निशा: यह क्या हो गया था मुझे। अपने पापा को कैसे मैं ऐसा देखने लगी। और पापा मुझे ऐसा क्यों घूर रहे थे। क्या उनका भी हाल मेरे जैसा हुआ होगा? नहीं , बिलकुल नही। पर उनका चेहरे का भाव में तो वासना भरी हुई थी। और वह मेरी चूत को क्यों घूर रहे थे?
यह सवाल वह अपने आप से कर रही थी। वह अपना मुह पोंछ कर एक दूसरी टीशर्ट पहन ली और शॉर्ट्स पहन ली। इस बार उसने एक मोटी पेंटी पहन लिया जो वह अपने पीरियड्स के वक़्त पहनती है।
उसे अब अपने चूत पर भरोसा नहीं रहा या यु कहिये अपने आप पर भरोसा नहीं था।
अब उसे बाहर जाकर खाना बनाना था। रात होने वाली थी, आशा सशा आती ही होंगी। पर वह पापा को फेस नहीं करना चाहती थी। दरवाज़ा के पास आकर वह सोचने लगी की क्या करे।
निशा मन में: शायद मैं पापा के नहाने जाने तक वेट करती हूँ, फिर चली जाऊंगी।
उसने धीरे से अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और बाथरूम के तरफ देखा। घर पर 2 बाथरूम था। एक उसके रूम में और एक कॉमन। कॉमन बाथरूम तो खुला था, उसने जाना की पापा अभी तक नहाने नहीं ��ए है।
उसने दाबे पाँव हॉल में झाँका। और जो उसने देखा उसकी आँखें खुली रह गयी।
पापा सोफे पर बैठे हुए थे। उनका शॉर्ट्स पैरों के बीच पड़ा हुआ था। वह पुरे नंगे थे , और उनका पूरा शरीर लाइट के नीचे तेल के कारण चमक रहा था।
और फिर निशा ने अपने पापा के हाथों में पापा का लंड देखा लंड देखते ही वह उसे घूरते रह गयी। इतना मोटा लंड उसने कभी नहीं देखा था। और पुरे लंड पर तेल लगा हुआ था। तेल से वह लंड और भी मुश्टण्डा लग रहा था, किसी गरम लोहे की तरह।
लंड का उपरी भाग पूरा लाल हो गया था और एप्पल की तरह फुला हुआ था। लंड की चमड़ी पूरी नीचे सरक गयी थी। लंड पर बहुत सारा तेल लगा हुआ था। और पापा लंड को धीरे धीरे मल रहे थे।
निशा ने बहुत बार ब्लू फिल्म देखी थी लेकिन उसके मुह में पापा के लंड को देखकर एक अजीब सा नशा चढ गया।
तेल लंड से निकलकर उनके टट्टो (बॉल्स) को भी नहला रही थी। निशा ने देखा की पापा के बॉल्स भी बहुत बड़े है। वह लटके हुये थे।
पापा कुछ बड़बड़ा रहे थे पर वह सुन नहीं पायी।
अचानक पापा का हाथ तेज़ चलना शुरू हुआ। हॉल से "पच पच फच" की आवाज़ आ रही थी। निशा समझी की लंड और तेल की रगड का नतीजा है।
और तभी पापा जोर जोर से लंड हिलाने लगे और कुछ गुर्राती रहे। और फिर उसके पापा जोर से चिल्लाये।
पापा: निशा आआआआआआ आएह… आह…
उसने पापा के लंड से सफ़ेद मलाई की छिंटें उडती देखि और फिर ढेर सारा सफ़ेद पानी, पापा के हाथों से लगकर सीधें फर्श पर गिर रहा था।
निशा दंग रह गयी। वह तुरंत भागकर अपने रूम में घुस गयी और रूम का दरवाज़ा ज़ोर से बंद कर दिया। दरवाज़े ने ज़ोर का आवाज़ बनाया।
निशा को अपनी गलती का अंदर आते ही एहसास हुआ।
वहाँ जगदीश राय अपने हाथों में लंड लेके वीर्य की आखरी बूंद निकालने का प्रयत्न कर रहा था।
अचानक हुई दरवाज़े की आवाज़ से वह चौक पडा। उसे लगा शायद आशा और सशा आ गई। वह झटके से उठ कर अपना पायजामा और शॉर्ट्स चढा लिया।
फिर उसने जाना की वह निशा का दरवाज़ा था।
जगदीश राय (मन ही मन): क्या निशा ने देख लिया मुझे। ओह गोड़, यह क्या हो गया। मुझे लगा की वह नहाने गयी होगी। वह क्या सोचेगी अब मेरे बारे में।
जगदीश राय वहां से जल्दी से सीडी चढ़कर कॉमन बाथरूम में घूस गया, शायद यह सोचकर कर की पानी से अपना सोच को साफ़ करे।
अपने कमरे में निशा , हॉल में देखे हुए सीन से बहुत गरम हो चुकी थी। उसने खुद को सम्भाला और बेड पर बेठकर ठन्डे दिमाग से सोचना शुरू किया।
निशा (मन में): "यह बात तो पक्का हुआ की पापा मुझे सोचकर मुठ मार रहे थे, नाम तो मेरा ही लिया था। पर क्यु। क्या मैं इतनी खूबसूरत हूँ।
या फिर पापा माँ को मिस कर रहे है। हा, शायद यही बात है। पापा माँ को मिस कर रहे है। एक आदमी कब तक औरत के बिना रह सकता है। और पापा ने हमारे लिए दूसरी शादी भी नहीं कि, ��म तीन लड़कियों के लिये।
मेरी पेंटी और गिली चूत देखकर शायद वह आज अपने आप को कण्ट्रोल नहीं कर पाये होंगे। बेचारे।
पापा है तो बड़े भोले। कभी दूसरी औरत के ऊपर मुह उठाकर भी नहीं देखते। और अगर वह किसी दूसरी औरत के पास गए तो कितनी बदनामी होगी हमारी।
मुझे आज के वाक्यात का बुरा नहीं मानना चहिये। एक तरह से जो हुआ ठीक हुआ, खास कर बेचारे पापा के लिये। वह कहते है न आल फॉर द बेस। "
निशा के चेहरे पर मुसकान थी। वह ऐसा समझ रही थी की उसने अपने पापा की हेल्प की है।
वह अपने कमरे से, सर उठा कर, मुसकान लेकर बाहर आ गयी। वह अपने पापा को फेस करने के लिए तैयार थी।
पर जगदीश राय तो बाथरूम में था। बाथरूम में आकर वह गहरी सोच में पड़ गया। शावर चालु था और पानी सर और शरीर पर पडते ही सुकून आ रहा था।
वह समझ नहीं पा रहा था की कैसे निशा से आँख मिलाये। और निशा को कैसे ओर्गास्म आया उसे छुकर, एक 50 साल उम्र के इंसान को।
और तब उसे अपने दूसरी गलती का एहसास हुआ। उसका वीर्य(कम) वही फर्श पर पड़ा हुआ है।
जगदीश राय (मन में): अगर निशा ने फर्श पर पड़ी वीर्य को देख लिया तो बवाल खड़ा कर देगी। शायद मुझसे बात ही न करे।
उसने जल्द अपना तौलिया(टॉवल) लिया और अपने आप को पोछ लिया और अपने कमरे में घूस गया।
कमरे में घूस कर उसने एक लूँगी उठाई और पहन लिया। अपने तौलिए को उसने कंधे पर डाल दिया। उसने प्लान बनाया था की हॉल में जाकर, टॉवल फर्श पर गिराकर सारा वीर्य साफ़ कर दूंगा।
अपने रूम से बाहर आकर देखा तो निशा का रूम खुला है और किचन से आवाज़े आ रही है।
जगदीश राय: शायद निशा किचन में है, ओह गॉड़। जल्दी कर जगदीश।।
वह हॉल में आ गया और सीधे सोफे की तरफ गया।
और टॉवल नीचे फर्श पर फेकने ही वाला था, की देख कर चौक गया। फ़र्श एक दम साफ़ था। सोफा भी ठीक से रखा हुआ था।
जगदीश राय: यह कैसे हो गया। मैंने तो साफ़ नहीं किया। तो क्या निशा!!। ओह नो…क्या उसने अपने हाथो से…मेरा वीर्य।
उसमे शर्म के साथ साथ एक अजीब सा कामुक उत्साह भी आ गया।
वहाँ निशा अपने आँख के कोने से अपने पापा को देख रही थी। उसे हँसी आ रही थी, अपने पापा पर। उसने कचरे के डब्बे पर पड़ा हुआ पेपर का टुकड़ा देखा, जिस पर सफ़ेद पानी लगा हुआ था और पेपर के अंदर से धीरे धीरे बह रहा था।
निशा (मन में): कितना सारा वीर्य था। उफ्फ्फ्, साफ़ करते हाथ दर्द हो रहे थे। इतना मोटा और लम्बा लंड से तो इतना वीर्य तो निकलता होगा शायद। ब्लू फिल्म्स में भी लोगों का इतना निकलता न हो। पापा को कोई ब्लू फ़िल्म में एक्टिंग करना चाहिये।
यह सोच कर वह हँस पडी। जगदीश राय अपनी बेटी की हंसी सुना, और शर्मा कर चुप चाप टीवी के सामने बैठ गया।उसे लगा निशा उस पर हँस रही है।
दोनो बाप बेटी एक दूसरे के बारे में सोच रहे थे।
जगदीश राय टीवी पर दौड रहे अनगिनत न्यूज़ चैनल से रिमोट दौड़ा रहा था।
��र उनका ध्यान वहां नहीं था, वह निशा के बारे में सोच रहा था। की कैसे उसकी लड़की ने बिना कुछ कहे उसका सारा वीर्य साफ़ कर दिया।और अब हँस भी रही है। क्या उसने इसके पहले किसी और के वीर्य को छुआ होगा? हो तो नहीं सकता, वह जानता था की निशा कितनी सुशील है। पर सुशील होती तो फर्श पर पड़े वीर्य देखकर साफ़ नहीं करती, पिता को मसाज देते उसे ओर्गास्म नहीं आती।
क्या यह सिर्फ , उसके चरित्र पर , उम्र का एक धब्बा तो नहीं?
तभी उसकी सोच को चीरते हुआ बेल बजी। निशा ने जाके दरवाज़ा खोला। सशा और आशा घर में घूसे।
निशा: आ गई राजकुमारीया। क्या लिया वैलेंटाइन के लिये।
सशा: जो लिया आशा ने लिये। मेरे स्कूल में क्या वलेन्टाइन।
आशा (दीदी से): तुम से मतलब। यह मेरे और मेरे फ्रेंड्स के बीच की बात है।
निशा(आशा के कान में): ज्यादा बकवास मत कर। मैं अच्छी तरह जानती हु तेरे कैसे फ्रेंड्स है। तू पापा को बेवकूफ बना सकती है। मुझे नही, समझी क्या।
आशा (थोड़ी डरी हुई): वह दीदी …। मैं तो ऐसे ही…ऐसा कुछ भी नहीं है।
निशा: चुप चाप पढाई में ध्यान दे, यह साल बारहवी का मेजर साल है। चल जा अब।
फिर सशा और आशा दोनों अपने कमरे में चलि गयी। जगदीश राय ने कुछ बेटियों के बीच ख़ुसर-पुसार सूनी पर कुछ समझ नहीं पाया।
करीब 8:30 बजे निशा ने आवाज़ लगाई" चलो सब आ जाओ, खाना लग गया है"
निशा (मुस्कुराते): पापा , आप भी आइए।
जगदीश राय बिना कुछ कहे डाइनिंग टेबल पर बैठ गया, सशा सामने थी, आशा और निशा दाए बाए। वह निशा के आँखों में देख नहीं पा रहा था। पर निशा को अपने पापा से कोई शर्म नहीं आ रही थी, बल्कि उसको पापा की शर्मन्दिगी पर प्यार और हँसी आ रही थी।
आशा : निशा दीदी, क्या हम एक रैबिट (खरगोश) ले सकती है।
निशा : क्यु।
आशा: मुझे रैब्बिटस बहुत पसंद है। लवीना के पास एक ख़रगोश है, उसकी टेल बहुत प्यारी है।
सशा: अगर तुझे उसकी टेल इतनी पसंद है, तो सिर्फ टेल काटकर ले आ। पुरी रैबिट की क्या ज़रुरत है।
आशा: तू चुप कर। दीदी, बोलो न।
निशा: शार्ट एंड स्ट्रैट आंसर देती हु , नही।
आशा: लेकिन, मुझे उसकी टेल बहुत प्यारी लगती है।
2
तभी जगदीश राय के हाथ से दाल की कटोरी फिसल गयी और थोड़ी सी दाल फर्श पर गिरी |
जगदीश राय: ओह न, सोर्री | मैं साफ कर दूंगा | तुम लोग खाओ |
निशा: पापा आप रुकिये | मैं साफ़ कर देती हूँ |
फिर निशा किचन से एक पोछा ले आई |
निशा: पापा, आज कल आप फर्श बहुत गन्दा कर रहे है | क्या बात है?
जगदीश राय यह सुनकर दंग रह गया | उसने निशा की तरफ देखा, उसके चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान थी |
जगदीश राय: मैं… |नही तो…क्यूं
निशा: कोई बात नही | मैं तो साफ़ कर ही लूंग़ी | अआप बस गिराते रहिये |
जगदीश राय कुछ नहीं बोला | वह चुप चाप प्लेट की तरफ देखकर खाने लगा | सशा और आशा कुछ समझ नहीं पा रही थी |
जगदीश राय जल्द से खाना ख़तम करके वहां से चला गया | और सीधे रूम पर जाके लेट गया |
वह पुरे दिन की घटनाओ को सोच रहा था और अपने सब सवालो पर सवाल कर रहा था | जवाबो की उससे कोई उम्मीद नहीं थी, बल्कि जवाबो से उसे थोड़ा डर लग रहा था |
निशा की चूत और आशा की गाण्ड उसके ऑंखों के सामने बार बार आ रहे थे | उसका लंड अब लोहे ही तरह तना हुआ था |
तभी, डोर पर एक नॉक सुनाई दी | इसके पहले वह कुछ बोले, दरवाज़ा खुल गया और निशा खड़ी थी | वह एक मैक्सी पहनी हुई थी और जगदीश राय ने जाना की वह उसकी स्वर्गवासी पत्नी की मैक्सी थी |
जगदीश राय : निशा बेटी तुम |
निशा: हाँ , मैं हु आपके लिए दूध लेके आयी हूँ |
जगदीश राय : लेकिन मैं तो दूध नहीं पिता रात को
निशा: लेकिन आज से आप पिएँगे, सोने से पहले | 10 |30 हो गयी है, लो पी लो | इसमें काजू और पिस्ता भी डाला हुआ है, आपके सेहत के लिये |
जगदीश राय : पर यह सब मेरे लिए…क्यों…
निशा: क्यों की आज से आपका ख्याल मैं रखूँगी | अब ज्यादा सवाल मत कीजिये |
जगदीश राय कापते हाथो से गिलास लेकर होटों पर लगा दिया | निशा की नज़र अपने पापा के शरीर पर गुज़र रही थी | और जाकर रुकि उनकी पायजामें पर | उसे अपने पापा का मोटा और खड़ा लंड साफ़ दिखाई दे रहा था | और बिना किसी शर्म के उसे घूरे जा रही थी |
जगदीश राय दूध पीकर गिलास निशा को दे दिया, जो उसके तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी |
निशा मुडी और दरवाज़ा के तरफ बढी | जगदीश राय पीछे से निशा की मटकती बड़ी गांड को देख रहा था | वह अब मैक्सी में और भी सेक्सी लग रही थी |
जगदीश राय: बेटी , यह मैक्सी तो माँ की है न |
निशा: हाँ पापा, मुझे आज मैक्सी पहनने का मन किया | क्यों कैसी लग रही हूँ |
जगदीश राय: अच्छी लग रही हो |
निशा: हाँ थोड़ी टाइट है मेरे लिये, यहाँ चेस्ट और हिप्स पर | बाकि सब ठीक है |
जगदीश राय निशा की चूचियों को देखा जो मैक्सी में समां नहीं रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे दो फुटबॉल घुसा दिया हो | जगदीश राय के मुह में पानी आ गया |
निशा अपने पापा की यह हालत समझ गयी | और मुसकुराकर बोली |
निशा: अब सो जाइए | फ़िज़ूल की बातें सोचकर जागकर रात मत काटिये |, हा हा |
और अपने गाण्ड को मटकाकर चल दी |
जगदीश राय के लंड को उनके हाथ का स्पर्श जानते हुआ देर नहीं लगी |
कमरे से निकलकर निशा अपने रूम में चलि गयी | जाते जाते आशा और सशा को आवाज़ दी |
निशा: तुम दोनों सो जाओ अब | मोबाइल पर खेलना बंद करो |
रूम में से: ठीक है मैडम हिटलर |
निशा समझ गयी की यह तो आशा ही है जो इतनी बदतमीज़ी कर सकती है |
अपने रूम में जाकर लेट गयी | उसके माँ को गुज़री 6 महीने हो चुके थे | आज पहली बार उसे एक अजीब सी ख़ुशी और आश्वासन मिला था | वह समझ गयी की आज तक वह अपने पिता के लिए चिन्तित थि, आज उसे जवाब मिल गया था | वह मुस्करायी |
अपने पापा के लम्बे लंड के बारे में सोचते सोचते कब आँख लग गयी पता नहीं चला |
दूसरे दिन, निशा फिर रोज़ के काम में लग गयी | पापा को चाय दे दिया, सबका खाना बना दिया | खुद कॉलेज चली गयी और सारा दिन गुज़ार गया | पापा भी थोड़े लेट आए ऑफिस से | और सीधे खाना खाके रूम में चल दिए |
निशा ने देखा की उसके पापा उसको अवॉयड कर रहे है | आँख नहीं मिला रहे है | बात भी खुलकर नहीं कर रहे है | उसे अब अपने बरताव पर थोड़ा पछ्तावा होने लगा था | उसे डर लग गया की कहीं उसका और पापा का फ़ासला बढ़ तो नहीं गया, बल्कि कम होने के बदले |
वह पापा को अपना प्यारे दोस्त के रूप में देखना चाहती थी |
आज फिर वह वही मैक्सी पहनकर पापा के रूम में चल दी | हाथ में दूध भी था |
उसने बिना नॉक किये रूम खोला | उसके पापा प्रेमचंद की एक किताब पढ़ रहे थे |
जगदीश राय अचानक से हुई एंट्री से चौक गया | और जब निशा को मैक्सी में देखा तो पिघल गया |
उसके मम्मे नाइटी में कल से भी ज्यादा प्यारे लग रहे थे |
जगदीश राय बेड के किनारे पर पिलो टीकाकार लेटा हुआ था |
निशा उसके एकदम पास आ गयी | निशा ने अपनी टाँग पापा के टाँग से लगा दी और बोली |
निशा: पापा यह लो दूध |
जगदीश राय निशा को देखते देखते गिलास हाथ में ले लिया |
निशा: थोड़ा हटिये, मुझे बैठना है |
यह कहकर निशा सीधे बेड के किनारे पर बैठ गयी | जगदीश राय को हटने या हिलने का मौका भी नहीं दिया | और इससे निशा की आधी से ज्यादा गाण्ड जगदीश राय के दाए पैर के ऊपर थी | और निशा की गाण्ड उसके मम्मो की तरह बड़ी थी |
जगदीश राय को एक बहुत मुलायम गाण्ड का स्पर्श हुआ, और उसे इस स्पर्श से एक करंट सी लग गयी |
उसका लंड तुरंत अपने ज़ोर दीखाने लगा | उसने धीरे से अपना पैर निशा की गाण्ड के निचे से हटाया |
निशा ने हँस्ते हुआ पूछा: क्यू, क्या मैं बहुत भारी हूँ |
जगदीश राय: नही तो | सब ठीक है
निशा (थोडा उदास होकर): आप दूध पीजिये |
जगद���श राय ने तिरन्त गिलास ख़तम कर दी , इस उम्मीद में की निशा यहाँ से चलि जाए |
उसके मन में अजीब कश्मकश थी |
निशा (गिलास लेते हुए): पापा, आप क्या मुझसे नाराज़ है |
जगदीश राय: नहीं तो बेटी |
निशा: फिर आप मुझसे बात भी नहीं कर रहे है, सीधे मुह | आँख भी नहीं मिला रहे है | क्या मुझसे कोई गलती हुई है क्या |
जगदीश राय: नहीं बेटी बिलकुल नही |
निशा: तो फिर क्या हुआ |
जगदीश राय (सर झुका कर): वह बेटी … | कल जो हुआ… | वह… |उसकी वजह…मेरा मतलब है…
निशा (सर झुका कर): कल जो हुआ, सो हुआ | पर उसे क्या मैं आपकी निशा नहीं रही | क्या आप मेरे पापा नहीं रहे |
जगदीश राय : नहीं बेटी | तुम तो हर वक़्त मेरी प्यारी निशा हो |
जगदीश राय को अपने बरताव पर ग़ुस्सा आने लगा था |
निशा: और आप मेंरे प्यारे पापा है |
यह कहकर निशा अपने पापा के सीने पर सर रख दिया | उसके बड़े मम्मे मैक्सी के ऊपर से जगदीश राय के पेट और जांघ से दब्ब गये |
जगदीश राय का लंड जो निशा के सवाल जवाब से सो गया था, फिर अचानक से खड़ा हो गया |
निशा सीने पर सर रख कर अपने पापा के लंड को देख रही थी | उसने देखा की पायजामा धीरे धीरे ऊपर उठ रहा है |
जगदीश राय को हाथ से अपना लंड ठीक करना था, पर निशा के सामने करना मुश्किल हो रहा था | वह जान गया था की निशा को उठता लंड साफ़ दिख रहा है |
वही निशा की हालत भी ख़राब होने लगी थी | उसके निप्पल्स मैक्सी के ऊपर से पापा के पेट और जांघ से दब्ब कर रगड खा रही थी | दोनों निप्पल्स खडे हो गए थे |
निशा: पता है पापा | जब लड़की बड़ी हो जाती है, तब उसके पापा पापा नहीं रहते | उसकी दोस्त बन जाते है | मैं भी आप में वह दोस्त देखना चाहती हूँ |
जगदीश राय चुप रहा | निशा जो कहना चाह रही थी वह वह समझ गया था |
फिर निशा उठि और कहा:
निशा: पापा कल मेरे एग्जाम की फीस भरना है, यूनिवर्सिटी जाना है | क्या आप मेरे साथ चलेंगे | बहुत दूर है |
जगदीश राय जो अभी भी निशा की फेकी हुई गूगली पर सोच रहा था, जवाब नहीं दे पाया |
निशा: पापा, बोलो न | चलेंगे |
जगदीश राय: हाँ हाँ ठीक है | चलेंगे |
निशा: मेरे प्यारे पापा |
यह कहकर निशा ने पापा के माथे पर एक चुम्मी दे दी |
माथे पर चुम्मी देते वक़्त, उसके दोनों मम्मे जगदीश राय के मुह से टकरा गए |जगदीश राय हड़बड़ा सा गया | इतने बड़े मुलायम चूचे उसने कभी नहीं छुये थे |
सब कुछ चंद सेकण्डस में हो गया |
निशा : कल ठीक सुबह 10 बजे निकलना है ठीक | चलो गुड नाईट, स्वीट ड्रीम्स | सो जाओ अब |
जगदीश राय: हाँ हाँ गुड नाईट |
जगदीश राय बावला हो गया था | वह पूरा गरम हो गया था | निशा के जाते ही उसने अपना पायजामा नीचे कर दिया और मुठ मारने लगा | लंड पर लग रहे हर ज़ोर पर निशा का नाम लिखा हुआ था |
बाजू के कमरे में निशा कमरे में घुसते ही अपनी मैक्सी उतार फेकी | ऑंखे बंद करके उसे अपने पापा के लम्बे और मोटे लंड का आकार दिखाई दिया |
निशा की उँगलियाँ उसके चूत को मसलने लगी |
और कुछ ही वक़्त में ढेर सारा पानी बेड को गिला कर दिया | उसी वक़्त जगदीश राय को भी ओर्गास्म आ गया |
अगले दिन जगदीश राय , नहा धोकर हॉल में आकर पेपर के साथ बैठ गया | निशा उसे चाय देने आ गई |
निशा: गुड मॉर्निंग पापा, यह लो | चलो हमें जल्दी निकलना है | मुझे यूनिवर्सिटी होकर कॉलेज भी जाना है और आपको ओफिस |
निशा नहाकर आयी थी | अपनी गीले बालों को टॉवल में बाँध रखा था | उसने एक फ्रॉक पहना हुआ था, जो घुटने तक का था |
जगदीश राय को निशा बहुत प्यारी और सुन्दर लगी | गोरा भरा हुआ बदन, बड़ी बड़ी चूचे, भरा हुआ गाँड | जब वह चलती तो उसके हिप्स फ्रॉक के अंदर मटकते हुये साफ़ दिख रहे थे | इतनी सेक्सी होने पर भी उसके चेहरे में एक मासूमियत और सुशीलता थी |
जगदीश राय: क्या मेरा जाना ज़रूरी है |
निशा (नाराज़ होते हुए): पापा, अब आप अपनी प्रॉमिस से मुकर रहे है |
जगदीश राय: ओके ओके ठीक है चलता हूँ | मैं तैयार हो जाता हूँ |
जगदीश राय चाय पीकर जब सीडी चढ़ रहा था, तब आशा और निशा स्कूल ड्रेस में निचे उतर रहे थे |
करीब 9:15 में जगदीश राय हॉल में अपना कॉटन ��र्ट और कॉटन पेंट में आकर बैठ गया | वह सोफे पर बैठकर गुज़रे हुए कुछ दिन की वाक्या सोच रहा था |
जगदीश राय(मन में): पिछले कितनो दिनों से मैंने सीमा के बारे में सोचा ही नही | जो आदमी हर रात सोते वक़्त सीमा के बारे में सोचकर रोता हो, वह आज पिछली 3 रातो से खुश है | और यह सब निशा के वजह से है |
तभी निशा पीछे से आयी |
निशा: पापा, चलें?
जगदीश राय पीछे मुडा और निशा को देखते रह गया | निशा ने अपनी बाल पोनीटेल में बांध रखा था |
गोरा चेहरा बहुत सुन्दर लग रहा था | उसने ऊपर एक ग्रीन कलर की शार्ट कुर्ती पहनी थी और नीचे रेड कलर की टाइट लेगीन्स | कुर्ती का कट पुरे उसके साइड हिप्स तक आ रहा था, जिसे उसकी बड़ी जांघे लेग्गिंग्स में साफ़ दिख रहे थे | निशा ने आज थोंग्स पहन रखी थी , इसलिए गाण्ड टाइटस में पूरा खुला दिख रही थी |
उसके मम्मे भी कुर्ती में उभरकर आ रहे थे |
निशा ने अपने पापा को उसे घूरते देखा और वह खुश हो गयी | उसने बिना कुछ कहें मुस्कुराते हुए , अपनी अन्दाज़ में मुडी और मटकती हुआ चल दी |
जगदीश राय उसके पीछे अपने खडे लंड को सम्भालते हुआ चल रहा था |
जगदीश राय बाहर आकर अपनी मारुती ८०० के तरफ चलने लगा |
निशा: पापा हम बस में जाएंगे |
जगदीश राय: क्यों बेटी, कार हैं न | इसमे चलते है |
निशा: नहीं पापा, मैं इस खटारे में नहीं आउंगी | आप तो नयी कार लेते नही | मेरे सब फ्रेंड्स के पापा के पास कम से कम नई गाड़ी तो है ही | और वैसे भी बस स्टोप तो यही है |
जगदीश राय, हर वक़्त की तरह , हार मान गया |
जगदीश राय: ठीक है चलो बस में |
निशा को सभी लोग रोड पर देख रहे थे, जगदीश राय ने देखा | जब बस आ गयी, तो बस में बेठने की कोई जगह नहीं थी |
निशा: शायद आगे के स्टॉप्स में खाली जो जाए | चलें?
जगदीश राय और निशा दोनों चढ़ गये | बस में खडे होने के लिये, बीच में, थोड़ी सी जगह बनायीं थी | जगदीश राय ने देखा की बस में ज्यादातर स्टूडेंट्स थे |
निशा (उदास चेहरे से): शायद सब युनिवरसिटी जा रहे है | तो सीट्स मिलना मुश्किल होगा |
जगदीश राय: कोई बात नही, आधे घन्टे में आ ही जाएगा |
निशा और जगदीश राय एक दूसरे को फेस करके खडे थे | निशा के पीछे एक कॉलेज का जवान लड़का खड़ा था |
बस में अगले स्टोप पर और स्टूडेंट्स चढ़ गये | अब बस पूरा पैक हो चूका था |
निशा के पीछे खड़ा जवान लड़का निशा के पीछे पूरा चिपका हुआ था | और निशा आगे से अपने पापा से चिपकी हुई थी, एक सैंडविच की तरह | जगदीश राय ने देखा की लड़का अपना पेंट के आगे का हिस्सा निशा की गाण्ड पर चिपका रखा है | निशा के चूचे पूरी तरह से जगदीश राय के शरीर पर दबी हुई है | जगदीश राय का लंड पुरे आकार में था |
निशा: ओह न, हमें कार में ही आना चाहिए था… |शीट… | बहुत उनकंफर्टबल है यहाँ… | |
जगदीश राय:क्या मैं… थोड़ा पीछे हो जाऊँ |
निशा: नहीं पापा, आप ठीक है | पर यह पीछे वाला… |उफ्फ् |
जगदीश राय समझ गया की निशा को उस जवान लड़के का लंड महसूस हो रहा है | और यह उसे पसंद नहीं आ रहा | जगदीश राय, ने जाना की निशा ,भले ही सेक्सी है और सेक्सी कपडे पहनती है, पर है सुशिल और समझदार |
निशा: मैं एक काम करती हूँ, घूम जाती हूँ |
निशा (पीछे वाले लड़के से): भैया एक मिनट, थोड़ा जगह देना |
जवान लड़का चुपचाप थोड़ा पीछे सरक गया |और निशा टर्न हो गायी | निशा ने टर्न होते ही, अपना हैंडबैग अपने छाती पर लगा दिया | उसी समय जगदीश राय ने भी नीचे हाथ डाल कर अपने लंड को पेंट के ऊपर से स��ट कर दिया |
निशा की गाण्ड अब अपने पापा पर टीका हुआ था और सामने से उसने बैग से अपने मम्मो को मसलने से बचा रखा था |
अब बस , पूरी भरी हुई, बहुत धीरे धीरे चल रही थी | उसमे हर स्टॉप पर लोग चढ़ते जा रहे थे |
जगदीश राय का लंड निशा की गाण्ड के दरार के बिलकुल ऊपर था | निशा ने अपने गाण्ड पर अपने पापा का गरम लंड महसूस किया | वह मन ही मन मुस्करायी | उसे अपने पापा के लंड से चिपके रहने में कोई दिक्कत नहीं थी |
करीब 5 मिनट इस पोजीशन में रहने के बाद, जगदीश राय का पूरा शरीर गरम हो चूका था | उसे लग रहा था की उसका लंड मानो फट जाएगा |
निशा की हालत भी कुछ सामान ही थी | उसकी चूत पूरी गिली हो चुकी थी | निशा अपने पापा के गरम लौड़े को अपन गाण्ड के दरार पर चिपका रखा था | पर लंड अभी तक दरार के अंदर घूस नहीं पाई थी | निशा की टाईट लेग्गि, पापा के लंड की ज़ोर की वजह से , गाण्ड की दरार में घूस चूका था |
निशा ने अपने गाण्ड को थोड़ा दायी तरफ मुडा दिया और फिर तुरंत उसने गाण्ड को बायीं तरफ मोड़ दिया | वह अपने पापा के लंड को अपनी गांड से सहला रही थी |
जगदीश राय अपनी बेटी के इस हरकत से पागल सा हो गया | उसकी सासे तेज़ हो रही थी |
निशा बार बार ऐसे करती गयी | थोड़ी मदद उसकी बस भी कर रहा था, जो ख़राब रास्तो की वजह से डोल रहा था |
तभी अचानक से, पापा का लंड , निशा की गांड की दरार के अन्दर घूस गया, निशा वही रुक गयी | अब उसने अपने पापा का मोटा लंड अपनी बडी, गरम और मुलायम गाण्ड की दरार में कपडे के उपर से फसा रखा था |
निशा: आह…
निशा के मुह से आह निकली |
निशा तेज़ी से सास लेने लगी | पापा के गरम लंड की गरमी, गाण्ड से लगकर सीधे चूत पर बिजली की तरह गिर रही थी | चूत पूरी तरह गीली हो चुकी थी |
जगदीश राय बस अपने आंखें बंद कर , अपनी सासों को सम्भालते हुये खड़ा था | बस में किसी को भी ज़रा सा भी भनक नहीं हुआ की यह बाप-बेटी क्या कर रहे है |
जगदीश राय को लगा की ऐसे ही चलते गये तो वह पानी छोड देगा | वह इस परिस्थिती से बचना चाहता था |
बस थोड़ा और हिलना-डुलना शुरू हुआ | जगदीश राय मौके का फायदा उठाकर लंड निशा की गांड की दरार से बाहर निकलना ठीक समझा |
निशा को लगा की पापा का लंड दरार से फिसल रहा है, वह तुरंत अपने मन से जागी और अपनी बड़ी गांड को पीछे की तरफ सरका दिया | वह किसी भी हालत में अपने पापा के लंड को खोना नहीं चाहती थी | उसने ठान जो लिया था की वह अपने पापा को कभी उदास नहीं होने देगी |
जगदीश राय यह देख कर चौक गया | वह समझ गया जो भी हो रहा है निशा के सहमती से हो रहा है |
निशा की गाण्ड पीछे करने से ��ब जगदीश राय का बचना असम्भव हो गया था |
अब बस , रास्तो के खड्डो के कारण, बुरी तरह ऊपर नीचे हिल रही थी | और उसके साथ ही, पापा का लंड निशा की गाण्ड की दारार को रगड रहा था |
निशा पागल हुई जा रही थी | उसकी पैर का थर्र थर्र कापना शुरू हुआ | उसे खड़ा होना मुश्किल हो चला था | पर वह डटी रही | निशा की तेज़ सासे जगदीश राय को सुनाई दे रही थी |
निशा(मन में): चाहे कुछ भी हो, मैं अपने प्यारे पापा को ख़ुशी देकर ही रहूँगी |
और उसने अपनी गाण्ड और पीछे धकलते हुयी, पापा के लंड से दबा दिया |
वही जगदीश राय को लगा की उसका लंड अभी पानी छोड देगा | उसे पसीना छुटने लगा |
वह निशा से सीधे मुह बोलना नहीं चाहता था की उसका पानी छुटने वाला है |
तभी कंडक्टर ने आवाज़ दिया |
कंडक्टर: युनिवर्सिटि | | यूनिवर्सिटी… यूनिवर्सिटी… निकलो सब लोग | है और कोई यूनिवर्सिटी… |
निशा और जगदीश राय अपने चिंतन से जाग गये | निशा फिर भी हिल नहीं रही थी |
पर जगदीश राइ निशा को थोड़ा धक्का दिया और कहा |
जगदीश राय: चलो बेटी…स्टॉप आ गया |
फिर निशा और जगदीश राय धीरे धीरे बस से उतरने लगे |
कडक्टर: अरे क्या अंकल | | कब से चिल्ला रहा हूँ यूनिवर्सिटी यूनिवर्सिटी…
जगदीश राय और निशा बस से उतर कर एक दूसरे को 5 सेकण्ड तक घूरते रहे | उन 5 सेकड़ो में वह एक दूसरे के विचार, खुशी, निराशा, शर्म सभी जानने का प्रयास कर रहे थे |
निशा की गाल, गोरी होने के कारण, गरम होने से , लाल हो गयी थी |
निशा (सर झुका कर शरमाती हुए): मैं रेस्टरूम जाना चाहती हूँ पहले |
जगदीश राय: हाँ हाँ… हम्म…यही होगा… | |बल्की मुझे भी जाना है |
निशा अपने पापा के इस बात पर हँस दी और पापा की तरफ देखा | जगदीश राय ने भी मुस्कुरा दिया |
रेस्टरूम के अंदर जाने से पहले, जगदीश राय ने निशा से कहा |
जगदीश राय: बाहर आकर यही वेट करना, कहीं जाना मत |
निशा: जी अच्छा बाहर आकर यहि वेट करूंग़ी | आप भी यही रहिये… |मुझे थोड़ा वक़्त लग सकता है |
और निशा शरारत भरी मुस्कान के साथ अंदर चलि जाती है |
जगदीश राय बिना रुके मेंस रेस्टरूम में घूस गया | आज उसे भी वक़्त लगने वाला था… |
रेस्टरूम से निशा बाहर आ गयी | उसके चेहरे पर एक सुकून था | टॉयलेट गन्दा होने के बावजूद उसने अपना पैर उठाकर , ऊँगली करके अपना सारी गर्मी निकाल दी थी |
वह बाहर आकर अपने पापा का इंतज़ार कर रही थी |
जगदीश राय कुछ देर बाद मेंस रेस्टरूम से बाहर आ गए |
निशा (शरारती अन्दाज़ में): क्यों पापा इतनी देर लगा दी?
जगदीश राय शर्माके मुस्कुरा दिया | निशा भी मुस्कुरायी |
तभी निशा की एक सहेली केतकी का आवाज़ सुनाई दिया |
केतकी: निशा तू यहाँ | फीस भरने आयी है?
निशा: हा |
केतकी: तो चल, हम सब साथ है | यहाँ से बाद में कॉलेज चलेंगे |
निशा: ओके ठीक है | पापा , मैं अपनी सहेली के साथ जा रही हूँ | आप यहाँ से ऑफिस जा सकेंगे ?
जगदीश राय: हाँ बेटी कोई बात नही | तुम लोग चलो | मैं यहाँ से घर जाऊंगा और फिर ऑफ्फिस |
निशा अपने सहेलीयों के साथ बातें कर चल दी |
जगदीश राय ��र की बस की राह देखने लगा |
निशा,ने अपनी एग्जाम की फीस भरके, घर जाने का फैसला किया | अब इतनी देर लगने के बाद उसे कॉलेज जाने का मन नहीं था |
उसे अपने पापा को बीच रास्ते दग़ा देना अच्छा नहीं लग रहा था, पर वह करती भी क्या, सहेलीयों से क्या कहती?
निशा , जब घर पहुंची तो चौक गयी |पापा, सोफे पर पड़े थे | उन्होंने एक लुंगी पहनी थी, जो घुटनो तक चढा हुआ था | पापा ने शर्ट नहीं पहना था |
निशा: अरे पापा, आप यहा, ऑफिस नहीं गये |
जगदीश राय: अरे बेटी, तुम? अरे हाँ… वह एक एक्सीडेंट हो गया… | मैं बस से गिर पड़ा… |
निशा: क्या…ओ गॉड… | यह आपके घुटने पर चोट लगी है… |मुझे फ़ोन क्यों नहीं किया…?
जगदीश राय: अरे कुछ नहीं हुआ… थोड़ी सी चोट लगी है…पास के गुप्ता जी मुझे क्लिनिक ले गये | अब मैं ठीक हु… |
निशा: क्या पापा आप भी |
फिर निशा जगदीश राय के पास आयी और उन्हें पकड़कर सोफ़े पर ठीक से बिठाया | घुटने पर बहुत चोट लगी थी |
निशा: क्या कहाँ डॉक्टर ने |
जगदीश राय: बस यही की एक वीक तक ऑफिस नहीं जाना | और सहारे के साथ चलना | एक छड़ी भी दी है | और यह ओइंमेंट दिया है | और एन्टिबायटिक | और कहाँ की हाथ और पैर की गरम तेल से मालिश करना | ज्यादातर लेटे रहने को कहा है |
निशा: ठीक | यह अच्छा हुआ | अब आप ज्यादा काम तो नहीं करेंगे |
जगदीश राय: अरे कुछ नही, मैं 2 दिन में ठीक हो जाऊँगा | डॉक्टर सब ऐसे ही बोलते है…
निशा: चुपचाप लेटे रहिये | अब आप अगले मंडे ही ऑफिस जाएंगे |
उस दिन जगदीश राय का देखभाल निशा ने किया, शाम को आशा सशा ने भी उसका थोड़ा हेल्प किया |
कल दिन जगदीश राय के घुटनो का दर्द काफी कम हो गया था |
जगदीश राय: अरे बेटी, तू एक काम कर, खाना टेबल पर रख दे | मैं खा लूंगा | किचन तक मुझसे चला नहीं जाएगा |
निशा: खाना किचन में ही रहेगा | और मैं आपको खिलाऊँगी |
जगदीश राय: अरे तुझे तो कॉलेज जाना है न?
निशा: नही | आप जब तक ठीक नहीं हो जाते मैं कॉलेज नहीं जाने वाली | न आप मेरे साथ यूनिवर्सिटी आते न आप बस से गिरते… |
जगदीश राय: अरे…बेटी…छोड़ यह सब | | कॉलेज जा तू… |
निशा: पापा… | चुपचाप सोईये…कहाँ न मैंने… |
और निशा ने अपने पापा को जोर से पकड़ लिया और सोफे पर ढकेल दिया | निशा की बूब्स पापा के पेट से दब गयी | जगदीश राय को बेहत आनन्द मिला निशा को भी |
थोड़ी देर में आशा और सशा दोनों स्कूल चले गए…
दोपहर हो चली थी | जगदीश राय अब काफी आराम महसूस कर रहा था |
निशा: उफ़… |कितनी गर्मी हो गयी है | मार्च का महीना शुरू हुआ नहीं… की गर्मी इतनी…देखो मेरा पूरा टीशर्ट भीग गया …
जगदीश राय निशा की टी शर्ट देखता रह गया | वाइट टाइट टीशर्ट शरीर से चिपका हुआ था | निशा की ब्लैक ब्रा टीशर्ट से साफ़ दिख रही थी | और ब्लैक ब्रा में कैद निशा के बड़े बड़े चूचो का आकर निखर रहा था |
जगदीश राय: हाँ… |बेटी… | बहुत गर्मी तो है… |
निशा: मैं चेंज करके आती हूँ |
और निशा ऊपर अपने कमरे में चली | जगदीश राय अपने खडे लंड को सम्भालने लगा |
जगदीश राय, सोफे पर बैठ , पिछले दिन बस में हुई लंड-गाण्ड की रगड और निशा की ओर्गास्म वाली बात सोच रहा था |
तभी उसे निशा की सीडियों से उतरने की आवाज़ सुनाई दी | और निशा को देखकर उसका मुह खुला रह गया |
निशा ने सिर्फ एक शर्ट पहनी थी | शर्ट के निचे उसने कुछ नहीं पहनी थी | शर्ट का एक बटन खुला था जो उसके मम्मो के क्लवेज को दिखा रहा था | शर्ट सिर्फ गांड से थोड़ी निचे तक आ रही थी |
और गांड पर कोई पेंटी नहीं दिख रही थी |
निशा: पापा मैं ने आपकी शर्ट पहन ली | कैसी लग रही हु?
जगदीश राय: बेटी | |शर्ट तो ठीक है… पर नीचे…
निशा: पापा इतनी गर्मी है… क्या करू… शॉर्ट्स/पेंट पहनूँगी तो पिघलकर मर जाउंगी… |वैसे मैंने थोंग पहन रखी है…
जगदीश राय की हालत ख़राब हो चलो थी |
जगदीश राय: ठीक है…तो फिर…
निशा: आप तो ऐसे बोल रहे हो जैसे आप को पसंद नहीं आई |
जगदीश राय: अरे नहीं… बेटी… | अच्छी लग रही हो… | |बल्की…किसी मॉडल या हीरोइन जैसे लग रही हो…
निशा (खुश होते हुए) : सच…आप तो युही कह रहे हो…
जगदीश राय: नहीं बेटी… तुम बहूत सुन्दर हो… और इस ड्रेस में तो तुम रीना रॉय एक्ट्रेस जैसी लग रही हो…
निशा: पर आप तो कहते है की रीना रॉय जो आप की फेवरेट एक्ट्रेस है वह बहुत सेक्सी है…तो क्या मैं सेक्सी लग रही हु… |
जगदीश राय: अब बेटी… मैं कैसे…मेरा मतलब है… | मुझे कैसे…पता होगा | |
निशा: क्या पापा , क्या मैं मैं कर रहे है | सीधे बताइये न क्या मैं सेक्सी लग रही हु या नहीं…यह मत भूलना की आप मेरे पापा ही नहीं दोस्त भी है…
जगदीश राय (नज़रे चुराते हुए): हाँ सेक्सीईईई लग रही हो |
निशा: रीना रॉय की तरह | |?
जगदीश राय: रीना रॉय से भी ज्यादा…
निशा: सच… | मेरे प्यारे पापा |
यह कहकर निशा हीलते हुये आयी और अपने पापा के गालों में किस दे दी |
फिर निशा दौड कर चलि गयी | दौडते वक़्त उसके शर्ट गाण्ड से ऊपर उछल रहे थे और जगदीश राय को निशा की नंगी गाण्ड साफ़ दिखाई दे रही थी |
करीब 1 बजे को निशा खाना लगाकर , जगदीश राय को खाना सोफे पर दे दिया | और खुद सामने आकर बैठ गयी |
सामने निशा की नंगे पैर और जांघो को देख कर जगदीश राय की हलक से थूक निकल नहीं रही थी |
निशा की मुलायम जांघ मानो जगदीश राय को दावत दे रही थी की "आओ मुझे चाटो" |
निशा अपने पापा की हालत को समझ रही थी | उसे अपने पापा के सामने अंग प्रदर्शन करना बहुत अच्छा लग रहा था |
खाना खकर जगदीश राय मुश्किल से अपने रूम में जाके लेट गया | करीब 2 बजे निशा आई |
हाथ में एक कटोरी थी | वह अभी भी सिर्फ शर्ट में थी |
निशा: चलिये पापा , आपकी मसाज वाली आ गयी है… |
जगदीश राय: अरे इसकी कोई ��़रूरत नही | | मैं ठीक हु…
निशा: फिर से आप शुरू हो गए…
निशा को सिर्फ शर्ट में देखकर और वह भी बंद कमरे में , जगदीश राय के मन में एक अजीब सी घबड़ाहट फ़ैल गयी | वह दरअसल अपने आप से घबरा रहा था | वह दिन ब दिन निशा के सामने कमज़ोर हो चला था |
जगदीश राय: बेटी डॉक्टर ने मसाज पर कोई ज़ोर नहीं दिया | कहाँ की "हो सके तो" | फिर भी अगर तुम कहती हो तो मैं खुद अपने पैरो में लगा दूँगा |
निशा: अगर आप को सब काम करना है तो फिर मैं किस दिन काम आऊँगी | और आपने खुद ही कहा कि, बस से गिरने के बाद आप की कमर और जोड़ों पर भी दर्द हो रहा है | तो फिर? नही | कोई बहाना नहीं चलेगा… |
निशा समझ गयी थी उसके पापा क्यों बहाना बना रहे है | उसे अब अपने पापा की कमज़ोरी पर हसी आ रही थी |
निशा (मन में) : सच कहते है लोग , मरद कमज़ोर होते है…
निशा: चलिये, अपना बुक साइड में रखिये | और सीधे लेट जाईये…हा, ऐसे… पैर सीधे…मैं पहले पैर से शुरू करती हूँ | और फिर कमर और फिर कंधा… ठीक है…
जगदीश राय: अरे बेटी… इसमें बहुत टाइम लग जायेगा…तुम जाके सो जाओ… यह सब मैं कर दूंगा…
निशा: पापा… अगर आप ऐसे जिद करते रहे तो मैं सारी दोपहर और रात यहीं गुज़ार दूँगी… इस कमरे में… इस बेड पर… आपके साथ…क्या आपको यह मंज़ूर होगा…
जगदीश राय (हड़बड़ाकर)…नही… |तुम शुरू कर दो…
निशा: यह हुई न बात…
निशा ने पापा की लूँगी को ऊपर की तरफ फेक दिया जिससे जगदीश राय की लूँगी शॉर्ट्स की तरह जांघो तक चढ़ गयी थी |
फिर निशा , बेड के साइड पर बैठ गयी | निशा की बायीं निर्वस्त्र जांघ जगदीश राय की जाँघ से चिपक गयी थी | दोनों जाँघे बहुत गरम थी |
निशा अपने पापा के स्किन के स्पर्श से कामुक तो हुई | उसने ख़ुद को को संभाल कर पैरो का मसाज शुरू किया |
करीब १० मिनट दायी पैर का मसाज करती रही | जगदीश राय को बहुत मजा आ रहा था | निशा के कोमल हाथ, उसकी गरम गोरी जाँघ का स्पर्श, उसके चूचो का मसाज के वक़्त पैरों पर लगना और पुरे कमरे में निशा और उसकी तेज़ सास | निशा की चूत भी गिली हो चलि थी |
अब निशा जगदीश राय के जांघो पर झूककर बायीं पैर का मसाज करने लगी | निशा को जगदीश राय की बाये पैर की उँगलियाँ मिल नहीं रही थी | जगदीश राय को डर लग रहा था की निशा अगर और झुकि तो उसके दोनों बड़े बूब्स उसके पैरों में मसल जाएंगे |
जगदीश राय: बेटी मैं यह पैर उठाकर यहाँ रख देता हूँ | तुम्हे आसानी होगी |
निशा: आप लेटे रहिये | मुझे कोई तकलीफ नही | मैं घुटने पर होकर मसाज कर लूंगी…
और फिर निशा उठी और अपने दाए पैर पर खडे होकर, बायीं घुटने(कनी) को बेड पर रखकर , अपने पापा के बाए पैर पर झुकी |
और ऐसा करते हुआ निशा ने जगदीश राय को वो नज़ारा दिखा दिया जिससे जगदीश राय के मुह में पानी आ गया और लंड ने लुंगी के भीतर से ज़ोर का झटका मारा |
छोटी शर्ट जो बड़े मुश्किल से गांड को छुपा रही थी, अब हार मानते हुआ निशा की पूरी गांड को खोलकर पापा के सामने पेश किया था | निशा की गांड क�� उपरी हिस्सा गाण्ड की दरार को चीरते हुआ ऊपर से निकल रहा था |
जगदीश राय निशा की गांड को बेशरमी से घूरे जा रहा था | जो गांड जीन्स और स्कर्ट में बड़ी लगती थी आज नंगी होने पर और भी बड़ी और सुन्दर लग रही थी |
निशा बाए पैर की मसाज करते करते अपने पापा के खडे लंड को देखा और मुस्कुरा दि | वह जानती थी की उसकी गांड के सामने हर मरद हथियार डाल देगा | वह खुद अपने गाण्ड को कई बार मिरर में निहार चुकी थी |
निशा अपने दोनों जाँघे सिमटकर खड़ी थी | वह जानती थी पापा कुछ देर गांड को निहारने के बाद चुत देखने का प्रयास ज़रूर करेंगे |
कुछ देर मसाज करने के बाद, निशा ने पीछे चोरी से देखा | जगदीश राय अब सर को मोड़कर निशा की चूत देखने का प्रयास कर रहा था | वह समझ रहा था की निशा उसे यह करते हुआ देख नहीं पायेगी | पर निशा समझदार थी, उसने अपने पापा की चोरी पकड़ ली थी |
वह अब जानबूजकर मसाज करते हुए अपनी गाण्ड को हिला रही थी, ताकि जगदीश राय को चूत देखने में और दिक्कत हो | वह अपने पापा को छेड रही थी |
जगदीश राय, इतना गरम हो चूका था, की बेडशीट भी गरमा गया था | उसका लंड अब लोहे की तरह खड़ा हो चूका था और उससे छूपने का कोई कोशिश नहीं कर रहा था |
जगदीश राय, निशा की चूत की एक झलक के लिए अब तरस रहा था, पर वह उसे मिल नहीं रहा था | जगदीश राय अब हार मान चूका था |
निशा अपने पापा को इस हालत में देखकर तरस आ गयी | उसने एक झटके में अपने दोनों पैर को खोला |
जगदीश राय ने वह देखा जो वह पिछले 20 मिनट से देखने को तरस रहा था | गोरी मुलायम गांड के बीच में छिपी लाल पेंटी का छोटा सा हिस्सा जगदीश राय को दिखाई दिया | निशा ने अपने पापा को चूत का नज़ारा देखते हुए देख लिया |
निशा: पापा, मसाज अच्छी लग रही है |
जगदीश राय (चूत पर से नज़र नहीं हटाते हुए): हाँ आ बेटी… |बहुत मजा आ रहा है |
अब निशा ने वह किया जिसका जगदीश राय को उम्मीद नहीं थी।
निशा जगदीश राय के जांघो पर झुक गयी। और अपने गाण्ड और पैरों को पूरी तरह खोल दिया और अपनी बड़ी गांड को पीछे ढकेल दिया। अब थोंग का चूत वाला पूरा हिस्सा जगदीश राय के नज़रों के सामने 1 फिट की दूरि पर था। और निशा उसे पूरा खोलकर दिखा रही थी। चूत का हिस्सा पूरा गिला हो चूका था और उसे देख जगदीश राय के मुह में पानी आ गया।
उसी वक़्त साथ ही निशा ने अपने बाए हाथ को सहारे के लिए मोड़ दिया और सीधे उसे पापा के खड़े लंड के ऊपर रख दिया। निशा के बाँहों(एआरएम) का हिस्सा पापा के गरम कठोर लंड की गर्मी जांच रहा था।
जगदीश राय निशा की पेंटी में-छिपी-चूत और लंड पर गरम बाहों का स्पर्श सहना असंभव था।
जगदीश राय निशा के बाँहों के स्पर्श से आँखें बंद कर लिया। निशा पहली बार एक गरम लंड को हाथ लगाये थी, उसकी चूत पूरी गिली हो गयी थी और पानी छोडने के कगार पर थी। निशा के मम्मे अब पापा की पैरो पर भी रगड रहे थे और उसके निप्पल्स अँगूर की तरह खडे हो गए थे।
निशा: अब…मसाज… कैसा लग रहा है…। पापा।। एह…
जगदीश राय (तेज़ सासों से और आंखें बंद कर): बहूत…बढ़िया…बेटी…।
निशा अब दाए हाथ से दोनों पैरो में हाथ घूमाने लगी। और साथ साथ अपनी ��ांड हिलाने लगी और अपनी बाहों से पापा के लंड को हल्के हल्के हिलाने लगी।
निशा: अब पापा…
जगदीश राय (आंखे आधी खोले, चूत को घूरते हुए): और बढ़िया…बेटी…आह।।आह
निशा ने अब अपनी बाहों का ज़ोर बढाते हुए उसे तेज़ी से गोल-गोल घुमाने लगी। अब उसके बाहों के नीचे पापा का लंड एक खूंखार जानवर की तरह मचल रहा था।
जगदीश राय अब पागलो की तरह सर घुमा रहा था। उसका अब पानी छुटने वाला था, जो वह रोकने की कोशिश कर रहा था।
निशा: अब अछा लग रहा है पापा…
निशा की बाँहों की घुमान, चूत का नज़ारा और सवाल पुछने के अन्दाज़ से, जगदीश राय का लंड अब एप्पल की तरह फूल गया। और फिर वही हुआ जिसका उसे डर था, लंड ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया ।
जगदीश राय।: हाँ बेटीईई…।आहह अह्ह्ह अह्ह्ह्ह…ओह…गूड…।।आह मत रुको आआह आआआअह।
निशा जो पहली बार लंड से पानी निकला हुआ महसूस कर रही थी, लंड से निकले पानी की गर्मी को जानकर चीख पडी।
निशा: आआह पापा… ओह्ह्ह्ह।
निशा ने अपने हाथ को पापा के लंड से नहीं उठाया। वह अपने पापा के लंड के हर उड़ान को महसूस करना चाहती थी।
जगदीश राय कम-से-कम 1 मिनट तक झड़ता रहा। झडते वक़्त , सहारा देते हुये, निशा ने बाहों से लंड को दबाये रखा।
लंड से निकली वीर्य से पापा की लुंगी पूरी गिली और चीप-चिपी हो गयी थी और लूँगी निशा के हाथ से चिपकी हुई थी।
निशा अपने पापा हो न देखते हुये पैरों की तरफ मुड़कर लेटी रही और जगदीश राय के साँसों को सम्भालने का इंतज़ार करने लगी। और साथ ही खुद भी संभल रही थी।
करीब पुरे 5 मिनट के बाद जब निशा ने महसूस किया की लंड अब छोटा हो गया है।
वह धीरे से उठी। जगदीश राय निशा की तरफ देखे जा रहा था। जगदीश राय शॉक में था। निशा ने पापा की तरफ नहीं देखा। उसने धीरे से बाहों से पापा की चिपकी हुई लूँगी निकाल दी। अपने शर्ट को सीधा किया और खड़ी हो गई।
निशा: आज के लिए मेरे ख्याल से इतना मसाज ठीक है… क्यों … ठीक है पापा
जगदीश राय।: हाँ …।। बेटी।
पुरे रूम में एक अजीब सी ख़ामोशी थी। निशा तेल की डिब्बी उठाई और दरवाज़े पर मुडी ।
निशा: अब आप आराम करिये। और लूँगी जो ख़राब हो गयी है उसे वहां फेक दिजीए। धोने की ज़रुरत नही। मैं धो दूंगी, समझे पापा।
जगदीश राय ने शरमिंदा नज़रों से निशा की तरफ देखा। निशा प्यार से उसके तरफ देख रही थी।
जगदीश राय ने सर झुका कर सर हामी में हिला दिया।
निशा कमरे से बाहर आ गयी। कमरे से बाहर आकर वह खड़ी होकर मुस्कुरा दी।
निशा को अब अपने पापा अब अच्छे लग रहे थे। पापा जो थोड़े घबराये हुये, थोड़े शरमाये हुए और थोड़ा हिम्मत जुटाते हुये। निशा को अब अपने पापा से प्यार हो गया था। एक अनोखा प्यार जो सिर्फ वह ही समझ सकती थी…।
निशा अपने कमरे में घूस गयी। पापा के साथ हुए हर पल तेज़ी से मन में दौड रहा था।
सोचने से, वह और गरम हुए जा रही थी। निशा ने देरी नहीं दीखाते हुए , शर्ट उतार फेकी। और फिर पैंटी। और पूरी नंगी हो गयी।
चुत में आग लगी हुई थी चूत से पानी बहकर जाँघो तक पहुच गया था।
चुत पर ऊँगली लगाते ही वह अकड गयी और एक ही पल में कमर उछालकर झड़ने लगी।
झडते वक़्त एक ही सोच दिमाग में कायम था उसके पापा का झड़ता हुआ लंड़।
वह इतने जोर से झडी थी , की थकावट से कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला।
दरवाज़े पे बजे बेल के आवाज़ ने उसे जगा दिया। जल्द से उसने टीशर्ट और शॉर्ट्स पहन लिया और दरवाज़ा खोला।
आशा: कहाँ थी दीदी, कब से बेल बजा रही हूँ।
निशा: दो ही बार बजाए, सशा कहाँ है।
आशा: आ रही है, किसी दोस्त से बात कर रही है। ये देखो मैं क्या लायी हूँ। रैबिट का टेल। इसे मैं भी पहन सकती हूँ, देखो।
निशा: क्या… क्या है यह्। और तू क्यों पहनेगी। भला कोई जानवर का टेल पहनता है क्या।
आशा: अरे दीदी यह रियल रैबिट का टेल नहीं है। यह तो आर्टिफीसियल है। और इसे पहनकर मैं बनी रैबिट जैसे लगूँगी।
निशा: क्या बकवास…स्पाइडरमैन को जैसे स्पाइडर ने काटा था वैसे तुझे रैबिट ने काटा है लगता है। चल जा मुझे खाना बनाना है। तेरे बचपना के लिए टाइम नहीं है
आशा: यह बचपना नहीं है…।आप को पसंद नहीं तो आप की मर्ज़ी…
और वह चल दी। थोड़ी देर में सशा आ गयी।
बाकी का दिन ऐसे ही निकल गया। जगदीश राय खाना खाने नीचे आए। खाना खाते वक़्त जगदीश राय निशा से नज़रे चुराते रहे। उन्हे ताजुब हो रहा था की इतना सब होने के बावजूद निशा के चेहरे पर कोई शर्म या अपराध बोध (गिल्ट) नहीं था।
खाना परोसते वक़्त निशा पापा के बहूत क़रीब आकर खाना परोस रही थी, पर जगदीश राय उससे बच रहा था।
खाना खाते वक़्त आशा और सशा के बड़बड़ के बीच निशा पापा को घूरे जा रही थी।
निशा आज रात पापा को न दूध देने गयी न मसाज करने गयी।
रात को निशा दिन में हुए घटने पर विचार कर रही थी। एक बात वह जान चुकी थी की पापा को वह पसंद है पर भोले होने के कारण डर रहे है। इतना आगे बढ़ने के बाद वह अब पीछे नहीं जा सकती ।
उसके माँ के बाद इस घर की औरत वही है , और वह यह कर्त्तव्य पूरा करेगी। वह अपने पापा को माँ की याद में उदास नहीं होने देगी। चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पडे।
अगले दिन जगदीश राय की नींद ��्लेट के गिरने की आवाज़ से खुल गयी। क्लॉक पर 9 बज चुके थे। वह आज बहूत लेट उठा था।
जगदीश राय(मन में): "मैं रोज़ 7 बजे से पहले उठता हूँ, और आज इतने सालो बाद लेट उठा हूँ। आजकल सब बदल रहा है। मैं बदल रहा हूँ। निशा बदल रही है। और घर का माहौल बदल रहा है। क्यों?
कल निशा की गांड के सामने मैंने अपने हथ्यार कैसे डाल दिए। क्या हुआ मेरे कण्ट्रोल को।
मुझे निशा से बात करनी पडेगी। जो हो रहा है उसे रोकना होगा।
पर क्यों रोकू मैं? क्या मैं खुश नहीं हूँ। निशा की मुलायम गांड से सुन्दर गांड देखी है किसी ��ी। सीमा शादी के वक़्त भी इतनी सुन्दर और सेक्सी नहीं थी।
निशा का क्या क़सूर है। वह सिर्फ मुझे खुश देखना चाहती है। और सारे घर का सारा काम करती है। और उसकी उम्र ही क्या है। और बदले में वह मुझसे शायद थोड़ा दोस्ती मांगती है तो यह क्या गुनाह है।
फिर भी मैं उससे बात करूंगा। पर कैसे? मुझे उससे डरकर या शर्मा कर रहना नहीं चाहिये। मैं उसका बाप हूँ कोई बॉयफ्रेंड नही। मैं ज़रूर उससे बात करुँगा।"
जगदीश राय यह सब सोचकर उठा, फ्रेश होकर, निचे ड्राइंग रूम में आकर बैठ गया।
निशा मैक्सी पहने, हाथ में चाय लेके आई।
निशा: उठ गए पापा। क्या बात है। बड़ी गहरी नींद थी। लगता है कल आप बहुत थक गए थे।।
यह कहकर निशा हंस दी।
जगदीश राय न चाहते हुआ भी शर्मा गये।
जगदीश राय: नहीं…।। बस…। युही…। लेटा रहा…।
तभी आशा और सशा दौड़ते हुए आयी, और टेबल पर पड़ी टोस्ट लेकर भाग गयी।
सशा: पापा , स्कूल बस आने ही वाली है…। लेट हो गये हम लोग…। शाम को मिलते है।
जगदीश राय: हाँ हाँ…। ठीक से पढ़ाई करना…।
निशा सशा के पीछे दरवाज़ा बंद करने ही वाली थी, तभी गुप्ताजी दिख गये। वह निशा की सेक्सी बॉडी को घूरे जा रहा था। निशा ने अपने मैक्सी को ठीक किया।
निशा: अरे अंकल आप यहा।
गुप्ताजी: निशा बेटी… कैसी हो… कॉलेज वैगरा ठीक है न…
निशा: हाँ अंकल सब ठीक है।
गुप्ताजी: कहाँ है अपने स्टंट मैन…। बस में स्टंट करते हुए गिर पड़े…।राय साहब, कहाँ हो?
जगदीश राय: अरे गुप्ता जी आप। आईये आइए, बेठिये।।।
गुप्ताजी: अब आपकी हालत कैसी है…। दर्द कम है या नहीं…।
जगदीश राय: अरे अब तो मैं एक दम ठीक हु…। ज़ख्म से भी दर्द नहीं है… और बॉडी पेन भी ग़ायब है।। बस पूरा नौजवान बन गया हु… ह। ह
गुप्ताजी: अरे वह…। मैंने तो सोचा था राय साहब तो गए एक महीने के लिये। यहाँ तो आप दो ही दिनों में ठीक हो गये।
निशा: वह तो होगा ही…। उनकी नर्स भी तो मैं ही हु…हे हे।
गुप्ताजी: हाँ… बेटी के प्यार ने ही जादू दिखाया होगा…।क्यों राय साहब…।बहुत सेवा करवा रहे हो क्या बेटी से…
जगदीश राय के मन में पिछले दिनों की सीन्स फ़्लैश बैक की तरह दौड गयी।
जगदीश राय (शर्माते हुए): अरे नहीं नहीं…कुछ भी बोलती रहती है… निशा, गुप्ताजी के लिए चाय तो बनाओ…
गुप्ताजी: अरे नहीं नहीं… मैं तो मॉर्निंग वाक के लिए निकला था…चाय पीकर निकला हूँ… फिर आऊंगा कभी …बिटिया के हाथ से खाना भी खाके जाऊंगा है है हा…।
और जाते जाते भी मैक्सी के ऊपर से निशा की फुटबॉल जैसे बड़े मम्मो को घूरते हुए चला गया।
निशा(मन में): ठरकी बुड्ढा… तू आ तुझे खाना नहीं…ज़हर देती हूँ…
फिर निशा रोज़ के काम काज पर लग गयी। उसने 11।30 बजे तक जगदीश राय से कुछ भी नहीं बोल��…
पर जगदीश राय पेपर की आड़ लिए निशा को देखे जा रहा था। मैक्सी के ऊपर से निशा का हर अंग उभर कर आ रहा था।
और पेपर के अंदर से अपने लंड को सहला भी रहा था।
थोड़ी देर बाद निशा अपने पापा के सामने आकर खड़ी हो गयी और फैन से हवा खाने लगी।
निशा: ओह पापा… कितनी गर्मी है…हमे ए सी लगा देनी चाहिये…
जगदीश राय (ड्रामा स्टाइल में, पेपर हटाते हुए): हाँ… लग सकती है…
निशा पसीने में लथपथ खड़ी थी… मैक्सी पूरी तरह उसके मम्मो , पेट और जांघ से चिपक गई थी।
जगदीश राय निशा को घूरे जा रहा था। निशा इस बात से अन्जान नहीं थी। उसने पुरी कॉन्फिडेंस से अपने बदन के अंगो को पापा को दिखा रही थी।
कुछ देर बाद वह अपने कमरे में चली गयी। जगदीश राय ने राहत की सास ली। उसका लंड खड़ा हुआ था।
जगदीश राय फिर अपने आप को पेपर के पीछे छुपा दिया।
तभी निशा नीचे आ गयी।
निशा: उफ़… अब कुछ राहत है…गर्मी ने तो मार दिया…
जगदीश राय ने जब देखा तो उसके सोने-जा रहा लंड फिर फड़फड़ना शुरू कर दिया।
निशा ने पापा की एक दूसरी शर्ट पहनी थी। जो कल वाली शर्ट से छोटी थी। शर्ट सिर्फ उसके गाण्ड तक पहुच रही थी। निशा की बड़ी गांड शर्ट के अंदर मुश्किल से समां रही थी।
निशा: क्यों… कैसी लग रही हु…।
जगदीश राय: क्या कैसी लग रही हो?
निशा: कमाल है।।आप मुझे घूर रहे है।। और मुझसे पूछ रहे है।।क्या?
जगदीश राय: वह तो…मैं कुछ और सोच रहा था…
निशा: अच्छा जी…।ठीक है।। पर बताईये तो सही… कैसी लग रही हु…
जगदीश राय: बताया तो था कल…
निशा: वह कल वाली शर्ट के लिए…आज यह दूसरी शर्ट है…यह हाफ शर्ट है…। कल वाली फुल शर्ट थी।
जगदीश राय: मुझे तो कोई फर्क नहीं नज़र आ रहा … वैसी ही लग रही हो…
जगदीश राय परिस्थिती से बचना चाहता था।
निशा: मैं आपसे बात नहीं करूंगी…जाइए…
और निशा मटकते चल दी। चलते वक़्त शर्ट निशा की गांड से उछलकर गांड के निचले हिस्से को दिखा रहा था।
फिर निशा झाड़ू ले आयी। और कहा।
निशा: पापा फैन बंद कर रही हूँ। डाइनिंग टेबल के निचे बहुत खाना गिरा पड़ा है। सशा अभी भी खाना गिरा देती है खाते वक़्त।
जगदीश राय ने जब निशा को देखा तो उसे पसीना आने लगा
अब तक जगदीश राय निशा की जाँघो पर घूर रहा था। पर अब उसने जाना की निशा शर्ट का पहला २ बटन खोल रखी है। जिसमें उसकी चूचो की गल्ला (क्लीवेज) साफ़ दिख रही थी। निशा के चुचे शर्ट के अंदर तने हुए थे। और पतली कॉटन शर्ट में से निशा की निप्पल्स का आकार साफ़ दिख रहा था।
निशा कोई अप्सरा की तरह लग रही थी।
जगदीश राय को यह जानते देर नहीं लगी की निशा ने ब्रा नहीं पहनी है। निशा ने झाड़ू मारना शुरू कर दिया। जब भी निशा झुकति , जगदीश राय को निशा की आधि से ज़ादा गोरी मुलायम बड़े चूचे दिख जाती।
जगदीश राय निशा को पुरे रूम में झाड़ू लगाते हुए घूरे जा रहा था। वह निशा के चूचे और गाण्ड की एक भी खुला दृश्य खोना नहीं चाहता था।
निशा अब झाड़ू लगा कर कमरे के बीच में आ गयी। सारा कचरा हॉल के सेण्टर में इक्कत्रित किया था।
निशा ने अब अपने पापा के ऑंखों में आंखें डाल कर द���खा। उसने देखा की उसके पापा उसे घूर रहे है।
और फिर निशा झुकी। पूरी झुकी।
थियेटर के परदे की तरह सरकती हुयी, छोटी सी शर्ट निशा की गांड को अपने पापा के सामने प्रदर्शित कर दिया।
और जगदीश राय दंग रह गया। जगदीश राय को वह दिख गया जिसे देखने के लिए उसने कल्पना भी नहीं की थी।
गाँड के सुन्हरे गालो के बीचो बीच , जाँघो से सुरक्षित , छिपी सुन्दर चूत उसके आँखों के सामने था।
निशा ने पेंटी भी नहीं पहनी थी।
जगदीश राय का लंड लोहे की तरह तनकर फड़फड़ा रहा था। साफ़ सुथरी चूत इतनी सुन्दर लग रही थी की जगदीश राय को उसे चूमने का दिल किया।
निशा उस्सी पोजीशन में कम से कम 2 मिनट तक झूकी रही। और फिर मुडी।
निशा: अब पापा, मेरी यह शर्ट कैसे लग रही है।।?
जगदीश राय निशा की चूत देखकर इतना गरम हो चूका था की उनकी कान लाल हो चुके थे।
जगदीश राय अपने होश में नहीं था।
निशा: बोलो पापा…
जगदीश राय: क्या …।बेटी… हाँ…। सब ठीक है…।
निशा: हाँ हाँ …क्या ठीक है…मैं पूछ रही हो… शर्ट कैसी लग रही है आपको अभी…
जगदीश राय , होश में आते हुये, निशा की ऑंखों में घूरते हुए, तेज़ी से सासे लेते हुए, हाथो से खड़े लंड को सहलाते हुये।।
जगदीश राय: बहूत सेक्सी है… बहूत बढ़िया… सुपर्ब…।तुम अप्सरा लग रही हो बेटी…मॉडल की तरह
निशा: हम्म्म…। यह हुई न बात…
ओर निशा किचन के तरफ चल दी।
निशा किचन में आते ही , किचन के टॉप पर हाथ रखकर झूक गयी और अपने आँखें बंद कर सर झुकाये खड़ी रही।
उसका दिल ज़ोरो से धड़क रहा था और पैर कांप रहे थे।
अपने पापा को चूत दिखाने में जो हिम्मत उसने जुटायी थी, वह सिर्फ वह ही जानती थी।
उसने कापते हाथों से गिलास लिया और खुद को सँभालने के लिए पानी पीए।
निशा के ऑंखों के सामने, चूत को घूरते हुई, पापा की दो आंखें झलक रही थी।
निशा(मन में): कहीं मैने कुछ ज्यादा तो नहीं कर दिया? नहीं तो, नहीं तो पापा तारीफ़ नहीं करते। और उन्हें तो मेरी चूत बहुत भा गायी, लगता तो ऐसे ही है। पर इस सब का अन्त कहाँ होगा? अगर पापा फ्रस्टेट हो गए तोह? शायद मैं बहुत ज्यादा सोच रही हूँ। जब पापा खुश है, मैं खुश हूं, तब तो सब ठीक है।
यह सब सोचकर निशा ड्राइंग हॉल में खाना परोसने चल दी। पर जगदीश राय वहां नहीं था।
निशा(मन में): अरे पापा कहाँ चले गए? खाना खाए बगैर… पापा।। पापा।। कहाँ हो।।?
निशा अपनी छोटी शर्ट उछालते हुयी, गांड दीखाते हुए , सीडियों से पापा के कमरे में जाने लगी।
पर जगदीश राय वहां नहीं था। और फिर निशा ने कॉमन बाथरूम बंद पाया।
निशा जैसे ही बाथरूम के दरवाज़े के पास आयी , उससे अंदर से गुर्राने की आवाज़ सुनाई देने लगी।
निशा समझ गयी, की अंदर क्या हो रहा है। उसके चेहरे पर गर्व और मुस्कान दोनों छा गयी।
जगदीश राय बाथरूम में पूरा नंगा खड़ा तेज़ी से मुठ मार रहा था। उसका लोहे जैसे लंड को ठण्डा किये बिना उससे ड्राइंग रूम में बेठना असम्भव था।
उसके आँखों के सामने से निशा की बिना बालों वाली, साफ़ गु��ाबी कलर की चूत, हट नहीं रही थी।
और वह चूत के नशे में , निशा का नाम लिए जा रहा था।
जगदीश राय (हाथ चलाते हुए):आह…आह…आह।। निशा ओह निशा…।आह…
निशा, अपना नाम अपने मूठ-मारते पापा के मुह से सुनकर गरम हो चली थी। निशा देर नहीं लगाती हुई अपनी दो ऊँगली अपने चूत के पास ले गयी।
उसकी छोटी चूत इतनी गीली थी की क्लाइटोरिस रबर के बटन की तरह फुलकर बाहर निकला हुआ था।
और बाथरूम से निकलते हुये "आह निशा" के शब्दो के ताल में वह अपने चूत को कभी सहलाती तो कभी चूत के अंदर ऊँगली डालती।
थोड़ी ही देर में जगदीश राय की आवाज़े और तेज़ हुई और जोरदार होने लगी। जगदीश राय झड़ने ही वाला था।
निशा के हाथ भी बाथरूम के बाहर तेज़ी से चल रहे थे। चूत से बहता पानी जांघो से लगकर एक लकीर बना रहा था और बाथरूम के बाहर फर्श पर गिर रहा था।
निशा खड़ा नहीं हो पा रही थी और उसने दिवार से खुदो को सम्भाला। दो उँगलियाँ चूत में घूसाते वक़्त आवाज़ बना रही थी।
ओर तभी निशा का सारा बदन अकड गया और वह तेज़ी से झडने लगी। निशा इतनी ज़ोर से झडी की मुह से चीख़ निकली और वह वही फर्श पर गिर पडी।
निशा फर्श पर टाँगे मोड़ कर, सर झुकाये बाथरूम के बाहर बैठी थी। फ़र्श पर उसकी चूत का पानी गिरा पड़ा था।
शायद उसने ओर्गास्म के वक़्त थोड़ा मूत भी दिया था। वह कांप रही थी। ओर्गास्म की लहर अभी पूरी तरह ठण्डा नहीं हुआ था।
और तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला। जगदीश राय निशा को बाथरूम के बाहर फर्श पर बैठे देख चौक गया।
निशा ने आँख खोले जब अपने पापा के पैरो को देखा तो वह पूर तरह शर्मा गयी। उसने सर नहीं उठाया।
वह इतनी बेबस थी की मन ही मन वह अपने पापा के बाहों में खो जाना चाहती थी।
जगदीश राय फर्श पर पड़े पानी को देख कर समझ गया। उसे निशा की मासूम शर्माए चेहरे पर बहुत प्यार आया।
निशा ने धीरे से अपने सर को उठाया। जगदीश राय और निशा बिना कुछ कहे , एक दूसरे को देखते रहे।
ओर फिर जगदीश राय निशा के पास आए और अपना हाथ बढाया।
निशा अपने कापते हाथ जगदीश राय के हाथेली में रख दिया । और अपने कापते पैरो को सम्भाले उठ गयी।
फर्श पर पड़े चूत के पानी से उसका पूरा गांड और शर्ट का निचला हिस्सा भीग गया था।
जगदीश राय निशा के हुस्न को निहारता गया। और अपने पापा के चीरते नज़रो के सामने निशा पिघलती गयी।
निशा शर्मायी, बिना कुछ कहे, मुड कर अपने रूम की तरफ चल दी।
शर्ट का दायाँ(राइट) भाग गाण्ड से ऊपर सरका हुआ था।
जगदीश राय , निशा की चूत की पानी से भीगी हुई , मटकती नंगी गाण्ड को निहारता रहा।
लंड फिर से खड़ा होने लगा था।
जगदीश राय हॉल में जाकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया। उसे निशा के बाथरूम से पानी की आवाज़ साफ़ सुनाइ दे रही थी।
वह बीते हुए कुछ पलो को मन ही मन निहार रहा था। कैसे निशा ने उसे अपनी चूत दिखाई थी और कैसे निशा उसी के साथ बाथरूम के बाहर मुठ मार रही थी।
निशा की पानी से चमकती हुई उभरी हुई गांड को सोचकर वह फिर से पागल हो चला था।
वह निशा का दिवाना हो चला था यह उसे पता चल गया था।
तभी निशा के पैरो की आहट सुनाई दी।
निशा: चलो पापा खाना खा लेते है।
जगदीश राय ने निशा के चेहरे की तरफ देखा। निशा के चेहरे पर कोई शर्म या हिचकिचाहट नहीं था।
निशा के टाइट टॉप और एक बहुत ही टाइट शॉर्ट्स पहनी थी। शायद वह शॉर्ट्स सशा की थी।
शॉर्टस उसके गांड को और गोलदार बना रही थी। और शॉर्ट्स से बाहर निकलती हुई उसकी गोरी जांघे जगदीश राय को पुकार रहे थे।
जगदीश राय (लंड को हाथ से छुपाते हुए): हाँ… खा लेते है…
खाने के बीच निशा का फ़ोन बजा।
निशा: हेलो…। अरे केतकी…।क्या हाल है…अरे नहीं…। मैं ठीक हु…।ह्म्म्म… अरे वह पापा
बस से गिर पड़े…।। हैं…तो उन्हें काफी चोट आयी थी……
निशा: हाँ… तो बस उन्ही के देख भाल कर रही हु…।
और निशा अपने पिता के तरफ देखा और मुस्करायी। जगदीश राय भी थोड़ा मुस्कुराया…
निशा:… ओह अच्छा… उसने बर्थडे पार्टी देना है…।कितने बजे… ४ बजे… ठीक है मैं आउंगी…
और कुछ देर कॉलेज के यहाँ वहां के बात करने के बाद निशा ने फ़ोन काट दिया।
निशा: पापा, वह मेरी फ्रेंड बर्थडे पार्टी दे रही है…तो क्या मैं जाऊं…।।6 बजे तक आ जाऊँगी।
जगदीश राय: हाँ हाँ जाओ बेटी।
निशा: पर आप ठीक है…
जगदीश राइ: हाँ हाँ मैं तो एकदम ठीक हु… और वैसे भी अब खाने के बाद मैं तो लेट जाउँगा।
निशा: फिर ठीक है…
थोडे देर बाद जगदीश राय अपने रूम में जाके लेट गया। लेटे हुए निशा के साथ बीते पलो के खलायों में सैर कर रहा था।
करीब 3:30 बजे निशा ने सलवार और जीन्स पहने , अपने पापा के रूम का दरवाज़ा खोल दिया।
उसके हाथो में एक कटोरी थी।
निशा: पापा…तेल लायी हु…
जगदीश राय: ओह… तो मसाज करोगी…?
जगदीश राय निशा को सलवार/जीन्स में देखकर उदास हो गया। पिछले दिनों से निशा सिर्फ कम कपडो में ही अच्छी लग रही थी।
निशा: जी नही… मैं तो चली…। आज आपको मेरे बिना ही काम चलाना पड़ेगा…हे हे ।।। जहाँ चाहे मसाज कर सकते है…।समझे पापा…हे हे।
और निशा की कातील हसी से रूम गूंज उठा।
जगदीश राय, थोड़ा मुस्कुराया थोड़ा शर्माया…
निशा: मैं कल आपको मसाज कर दूँगी… ठीक है… चलो बॉय। लेट हो रही हु…
जगदीश राय निशा की बातो से बहूत गरम हो गया और सीधे अपने काम पर लग गया।
शाम को 5 बजे आशा और सशा आयी।
जगदीश राय: तुमलोग आज ल��ट कैसे।
आशा, आप को याद नहीं… आज थर्स डे है… मेरा बॉलीवुड डांस क्लास होता है और सशा
का जिमनास्टिक्स क्लास।
जगदीश राय: ओह अच्छा।
निशा कुछ देर बाद आयी।
निशा: सशा और आशा आए?
जगदीश राय: हाँ… ऊपर है…
जगदीश राय मुड़कर सोफे पर जा रहा था तभी।।
निशा:पापा, क्या आपने मसज किया…
जगदीश राय: वह…।।हाँ…किया…
निशा: तेल लगाकर?
जगदीश राय (नज़रे झुकाए): हाँ… तेल लगाकर।।थोडा।।
निशा: बस थोड़ा ही… …उस दिन की तरह लुंगी तो ख़राब नहीं हुई न…क्या मैं धो दू…?
जगदीश राय (झेंपते हुए): क्या…।
निशा: लुंगी और क्या।।हेहे
जगदीश राय: नहीं …सब ठीक है …।लून्गी सब ठीक है…।।
निशा (मुस्कुराते हुए): ओके ओके…
कुछ 1 घंटे बाद निशा खाना परोसकर सब लोग खाने लगे।
आशा: दीदी… आप पिछले 3 दिनों से कॉलेज नही गयी ना…कल का क्या प्लान है।।
निशा: हाँ… कलललल…।।नही जाऊँगी…। कल तो फ्राइडे है… वैसे भी लेक्चर्स कम है…
निशा खाते खाते सोच रही थी।
निशा(मन में): कल तोह फ्राइडे है…कल के बाद मंडे से मेरी कालेज, पापा का ओफ्फिस। और यह ४ दिन की लहर थी यही ख़तम हो जाएगी…यह उमंग जो मैंने जगाया है इसे कायम रखना बहूत ज़रूरी है… पापा के लिए… और शायद अब मेरे लिए भी…
फ्राइडे सुबह निशा जल्दी उठ गयी थी। उसने फ़टाफ़ट नाश्ता वग़ैरा बनाना शुरू कर दिया।
रात को वह ठीक से सो नहीं पाई थी। अपने पापा का प्यारा चेहरा , उनका बदन और उनका कठोर मोटा लंड उसे सोने नहीं दे रही थी। पिछले ४ दिन से जो उसे आज़ादी मिली थी , आज के बाद मिलना मुश्किल होने वाला था।
निशा (मन में):मुझे तो अपने डबल-मीनिंग वाले टेढ़े बातों को भी कण्ट्रोल करना पडेगा। ओवरस्मार्ट आशा का दिमाग तेज़ी से चलता है।
करीब 9 बजे जगदीश राय उठे। आज कल जगदीश राय सुबह ��ेहद खुश रहते थे। सब कुछ मानो ठीक चल रहा हो।
निशा: पापा… चाय।
जगदीश राय , निशा का सुन्दर चेहरा देखकर और भी खुश हो गया। वह अपनी मम्मी की नाइटी पहनी थी।
निशा चाय देकर, किचन के तरफ चल दी। नाइटी से साफ़ पता चल रहा था की निशा ने अंदर पेटिकोट नहीं पहना था। जगदीश राय, रोज़ की तरह निशा की गांड पर अपनी आँखे सेंकता रहा।
करीब 9:30 बजे, आशा और सशा आ गए और नाश्ता खाकर चल दिए।
निशा: अरे सशा, आज तुम लोग कब आओगे
सशा: दीदी, मेरी तो आज एक्स्ट्रा क्लास है स्कूल में। तो क़रीब ४ बज जाएंगे। और।।
निशा: आशा मैडम आपका क्या प्रोग्राम है…
आशा: मुझे एक सहेली के घर जाना है, कुछ नोट्स तैयार करने है…
निशा: हम्म्म…।सच बोल रही है… या…?।
आशा (झेंपते हुए): सच दीदी… झूट क्यों बोलू…।।वैसे आप क्यों पूछ रही है?…
निशा (झेंपने की बारी उसकी थी): बस यही…चलो जाओ अब तुम दोनों…।
जगदीश राय ने भी यह बात सुनी।
जगदीश राय (मन में): कहीं निशा मसाज के लिए तो नहीं पूछ रही है… शायद उसे…
1 घन्टे के बाद निशा बोली…
निशा: पापा मैं ने नाश्ता टेबल पर रख दिया है… आप खा लेना…
जगदीश राय: तुम नहीं खाओगी बेटी…
निशा: नहीं पापा… मैं पहले नहाके आती हु…। इस गर्मी में रहना मुश्किल है…।
जगदीश राय टेबल पर बैठे खा रहा था। टेबल से उसे सीडियों के ऊपर का कॉरिडोर साफ़ दिख रहा था। ऊपर से पानी का आवाज़ सुनाई दे रहा था। निशा शावर में नहा रही थी शायद।
जगदीश राय मन में निशा के नंगे जिस्म पर पानी के बूंदो की कल्पना कर रहा था। उसके फुटबॉल जैसे बड़े बड़े पानी से चमकते चूचे सोचकर उसके टेबल पर बैठना मुश्किल हुए जा रहा था।
करीब 20 मिनट निशा को सोचकर खाने के बाद, जगदीश राय अपने लंड को पकडते , सीडियों से कॉमन बाथरूम की तरफ चला।
जगदीश राय अब कॉरिडोर में था, जो 3 बैडरूम और 1 कॉमन बाथरूम को मिला रहा था। निशा का रूम का दरवाज़ा बंद था। वहां से अब कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, पानी की भी नही।
जगदीश राय (मन में): शायद निशा नहा चुकी है…अब तो वह अपने पूरे जिस्म को पोंछ रही होगी… क्या मैं घूस कर देख लू…।नही यह ठीक नहीं होगा… क्या समझेगी वह मेरे बारे में…
जगदीश राय यह सोचकर कॉमन बाथरूम के तरफ बढा ही था की बाथरूम का दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया। और जगदीश राय के पैरो तले ज़मीन निकल गयी…
सामने निशा खड़ी थी। पूरी नंगी।
निशा ने कुछ भी नहीं पहना था। उसने बालो को एक ब्लू टॉवल से बांध लिया था। और बालों से पानी की छोटी बुँदे उसके नंगे बदन पर गिर रही थी।
जगदीश राय की आंखें निशा की नंगी चूचियों से हट नहीं रहा था। जगदीश राय ने अंदाज़ा भी लगाया था की निशा के चूचे इतने बड़े होंगे।
और उन बड़े चूचों के सेण्टर पर गुलाबी कलर के परिवेश (एरोला) से घेरे गुलाबी निप्पल। आज तक जगदीश राय ने सिर्फ भूरे(ब्राउन) कलर का निप्पल्स ही देखे थे, पर अपनी बेटी के गुलाबी निप्पल्स ने उसे पागल कर दिया।
जगदीश राय की नज़रे चूचियों से न���शा की पेट के तरफ फिसला तभी।
निशा (शर्माते हुए): ओह पापा…सोर्री।। ओह मेरे बाथरूम के शावर में पानी का फाॅर्स नहीं है न…।इस्लिये यहाँ चलि आयी…।
निशा ने यह कहते हुए अपने दाए हाथ से अपने दोनों चूचियों को ढक लिया, जिससे वह मुलायम बड़े चूचे दबकर और गोलदार बन गये। और फिर धीरे से उसने अपनी बायीं कलाई से अपने चूत को ढक लिया।
जगदीश राय चुप रहा और बस घूरता रहा।
जगदीश राय की ऑंखें बिना मौका गवाते हुए निशा की चूत को अच्छी तरह निहार लिया। निशा का पूरा शरीर एक अप्सरा की तरह , बाथरूम की रौशनी में चमक रहा था।
नंगी निशा सिर्फ हाथो से अपने ख़ुद को ढकते हुए धीरे से बाथरूम से बहार आयी। और धीरे धीरे , नंगे पैर और नंगे बदन से जगदीश राय के तरफ बढ़ रही थी।
निशा का हर एक कदम जगदीश राय पर भारी पड़ रहा था। निशा की साँसे भी तेज़ी से चल रही थी, जो उसकी चूचियों के उतार-चढाव से प्रकट हो रहा था।
करीडोर की चौड़ाई(विड्थ) सिर्फ 2:5 फुट का था। जब निशा पास आयी, जगदीश राय एक साइड हो गया।
अब निशा 2:5 फुट कॉरिडोर में , पूरी नंगी जगदीश राय के सामने थी। और निशा धीरे से, जगदीश राय के आँखों में देखते हुए उनके सामने से निकल रही थी।
उसने बहुत ही नज़ाकत से ख्याल रखा की उसकी नंगा शरीर पापा को स्पर्श न करे।
जगदीश राय , ने अपने आप को कण्ट्रोल करने के लिए निशा के सामने आते की गहरी सास लिए आंखें बंद कर ली। और फिर एक सेकंड बाद आँख खोला तो निशा उनके सामने से निकल चुकी थी।
जगदीश राय वहीँ खड़ा निशा की नंगी पीठ और बड़ी मदहोश गांड को अपने कमरे की तरफ जाते देखा।
निशा अपने कमरे के दरवाज़े पर पहुच कर अपने पापा के तरफ देखा। जगदीश राय तेज़ सासो से बाथरूम के तरफ बढ़ रहे थे। उनकी चाल से यह महसूस किया जा सकता था की वह मदहोश है। तभी निशा ने फिर से अपनी चाल चल दी।
निशा (सॉरी फेस से मुस्कुराते हुए): पापा…। मैं अपनी हेयर-बैंड अंदर भूल आयी हु… क्या आप ला देंगे मुझे…प्लीज…
जगदीश राय बाथरूम के अंदर गया और देखा की सामने एक लाल रंग की हेयर-बैंड जैसी चीज़ पड़ी थी। पर अगर वह नहीं भी होती तो भी जगदीश राय उसे लेकर निशा के पास चला जाता।
जगदीश राय हेयर बैंड लेकर निशा को घूरते हुए निशा की तरफ बढा। निशा का सिर्फ अब साइड-व्यू ही दिखाई दे रहा था, और उस पर निशा की कमर और गांड क़यामत ढा रही थी।
जगदीश राय सूखे मुह लेकर निशा के सामने खड़ा हो गया और एक बच्चे की तरह हेयर-बैंड हाथ में लिए खड़ा था। निशा उनकी ऑंखों में देखकर मुस्कुरायी और फिर कहा।
निशा: थैंक यू पापा…यू आर वैरी स्वीट…
और फिर निशा ने अपने दोनों हाथ चूचियों से निकाल लिया और ���पनी पूरी चूची अपने पापा के नज़रों के सामने पेश किया।
एक 20 साल की बेटी आज पहली बार अपने पापा के सामने पूरी नंगी खड़ी थी। निशा की नंगी चूची जगदीश राय से सिर्फ 6 इंच के अंतर मे थी और जगदीश राय गुलाबी निप्पल को घूरता रहा।
ओर निशा अपने कमरे में घूस गयी और अपने पापा के चेहरे पर दरवाज़ा बंद किया।
जगदीश राय कुछ देर वहीँ निशा के दरवाज़े के बाहर खड़ा रहा। वह बौखला गया था।
जगदीश राय थोड़ी देर वहां खड़ा रहने के बाद , बाथरूम में घूस गया।
��सका पूरा बदन कांप रहा था। कान और गाल गरम हो चूका था।
उसने अपनी लुंगी साइड की और लंड बाहर निकाला।
लंड लोहे की रॉड की तरह खड़ा हुआ था। लंड पर उभरे नस (वेन्स) किसी रबर वायर की तरह फूल कर साफ़ दिखाई दे रहे थे।
वह अपनी इस अवस्था को सुधारने के लिए मुठ मारना शुरू किया पर दिमाग पर हज़ारो ख्याल बम की तरह फट रहे थे।
लंड खड़ा होने के बावजूद मुठ मारा नहीं जा रहा था।
कुछ देर प्रयास करने के बाद वह खड़े लंड के साथ बाहर आ गया।
अंदर निशा का हाल भी कुछ समान था। पापा के सामने नंगी रहने में उसे बहोत मजा आया था और यह उसकी गिली चूत बता रही थी।पूरी बदन पर लहर फ़ैली हुई थी।
निशा (मन में): मुझे देखकर पापा का लंड तो साफ़ लुंगी के बाहर निकला हुआ था। पर पता नहीं पापा ने अपने आप को कैसे रोक लिया…।और कोई होता तो अब तक मुझ पर टूट पड़ता…।पापा को अपने आप पर कितना कण्ट्रोल है…मानना पड़ेगा…।
निशा ने जल्द अपनी एक रेड कलर की सिल्क शर्ट पहन ली। और अपने आप को मिरर में देखा।
शर्ट कमर से थोड़ा निचे तक आ रही थी। सिर्फ गांड और चूत को कवर कर रही थी।निशा अपने इस पोशाक से खुश हो गई और दरवाज़ा खोले निचे हॉल/किचन के तरफ चल दी।
वही जगदीश राय सोफे पर बेठा हुआ था। और निशा के बाहर आने का इंतज़ार कर रहा था।निशा को फिर से शर्ट में देखकर वह मन ही मन खुश हो गया। पर उसमे अभी भी निशा को सीधे देखने की हिम्मत नहीं जूटा पा रहा था। निशा रेड सिल्क शर्ट में क़यामत ढा रही थी, जो उसकी गोरे जाँघ को और भी खूबसूरत बना रहा था।
निशा ने सीडियों से उतरकर अपने पापा से कुछ नहीं पूछा और न कहाँ और सीधे किचन में चलि गयी। मानो जैसा कुछ हुआ ही न हो।
खाली 2 घंटे तक जगदीश राय की आंखें सिर्फ निशा का ही पीछा कर रही थी।
निशा कभी उनको अपनी जांघ, कभी अपनी आधि चूची या अपनी गांड दिखाकर बहला रही थी।
निशा ने ठान लिया था की आज वह अपने पापा को अपनी चूत नहीं दिखाएगी।
इसलिये झाड़ू लगाते वक़्त भी वह नहीं झुकी। और अपने पापा का फरस्ट्रेशन देखकर उसे मजा आ रहा था।
निशा: पापा… चलो खाना लग गया।
जगदीश राय ,बड़ी मुश्किल से अपने बेटी के साथ बैठकर खाना खाया और अपने रूम में चला गया।
उसने सोचा रूम में जाकर मुठ मार लूँगा और अपने आप को ठंड़ा कर दूंगा।
जगदीश राय रूम में जाकर बैठकर अपने लंड को बहार निकालकर मुठ मारने लगा।
सूबह से खड़ा लंड हाथ के स्पर्श से शांत होने का नाम नहीं ले रहा था।
तभी उसे सीडियों पर से निशा के कदमों की आहट सुनाई दी। उसने तुरंत अपनी लुंगी ऊपर चढा ली। निशा ने इस बार दरवाज़ा नॉक किया।
जगदीश राय (लुंगी ठीक करते हुए): हाँ…। आ जा बेटी…।
निशा (एक हाथ पीछे छुपाते हुए): देखना चाहती थी… की आप फ्री तो है न…।।
जगदीश राय निशा के सामने खड़ा लंड छुपाते हुए : हाँ बिलकुल…थोड़ा लेटने जा रहा था बेटी।
निशा: ज़रूर लेटिए…पर मसाज के बाद…। दो दिन से आप को मसाज नहीं किया…।
और निशा ने अपना ��ाथ बाहर निकाला और उसमे तेल की डिब्बी थी।
जगदीश राय : अरे …नहीं आज नहीं… कल करते है…।
निशा: नहीं…2 दिन से मसाज नहीं हुआ…आज तो करना ही है…।मसाज।
निशा: चलिये पहले कंधे और हाथ का करते है…फिर पैरो का… चलिये अपना शर्ट उतारिये…
निशा सिर्फ एक छोटी सी शर्ट पहनी आर्डर दिए जा रही थी एंड जगदीश राय बिना कुछ कहे निशा के जिस्म का दिवाना हुए पालन कर रहा था।
जगदीश राय बेड पर अब सिर्फ एक लुंगी पहन के बैठा था, जिसमें से उसके मोटे लम्बे लंड का उभार निशा को दिखाई दे रहा था। और निशा चोरी छुपे उसे देखे जा रही थी।
निशा पहले जगदीश राय के कंधे और हाथो का मसाज करने लगी।
हर एक दौरे पर वह अपने चूचो को पापा के नंगे पीठ पर रगडने से नहीं चूकती थी।जगदीश राय को निशा के खड़े निप्पल्स महसूस होने लगा।
निशा (उन्हें रगड़ते हुए): कैसा…लग रहा …है।।पापा…
जगदीश राय: अच्छा।।।। लग रहा है…।
कुछ देर बाद निशा के हाथ अब जगदीश राय के छाती पर दौडना शुरू हुआ ।
निशा जगदीश राय के छाती के बालो और निप्पल्स पर अपनी उँगलियाँ गोल गोल घुमा रही थी।
और जगदीश राय के पीछे से उनका लंड को फड़ फडाटे हुए देख रही थी।
कोई 10 मिनट बाद।।
निशा (पूरा गरम ): पापा…।अब आप…हम्म…लेट जाइये…।मैं…पैरों का करती हु…।
जगदीश राय निशा को सिल्क शर्ट में हाँफते हुए देखकर इतना गरम हो रहा था की वह बिना कुछ कहे लेट गया।
निशा: पापा… आप अपना आंखें बंद करके , हाथो को ऐसे सर के पिछे ले जाकर लेटे रहिए। हाथो को आगे ले आने की ज़रुरत नहीं…। अब सिर्फ आप मेरे मसाज को फील करिये…
निशा ने पैरो हाथ फेरना शुरू किया। निशा ने अपनी गरम नंगी जाँघ जगदीश राय के कमर/पेट से लगाकर रखी। निशा अपना हाथ लुंगी के अंदर ले जाकर जगदीश राय की जाँघ तक ले जाती।
आंखेँ बंद किया जगदीश राय ऐसे मदहोश मसाज से पूरा पागल हो चला था। उसका लंड फटने के कगार पर था।
ओर तभी जगदीश राय की लूँगी निशा के हाथो के वजह से सरक गयी और जगदीश राय का काला लम्बा मोटा लंड निशा के ऑंखों के सामने अकड़ते हुए आ गया। ऐसा लग रहा था जैसे एक मोटे साँप को आज़ादी मिली हो।
निशा पापा के लंड को इतने पास से देखकर डर गयी और चुपचाप मसाज करने लगी। पर थोडी देर बाद वह लंड को निहारती रही।तभी जगदीश राय को महसूस हुआ की उसका लंड लूँगी से बाहर निकल गया है, और उसने हाथ आगे लाकर लंड को अंदर डालना चाहा।
निशा: पापा…।यह क्या…।मैँने कहाँ था हाथ पीछे…।जब तक मेरी मसाज पूरी नहीं हुई है…
जगदीश राय : पर…बेटी… मैं तो…यह…लूंगी… लूँगी ठीक कर रहा था…
निशा: कोई ज़रुरत नहीं…।।हथ पीछे ले जाईये…।लून्गी जहाँ है वही ठीक है…जिसको बहार आना था खुद ही आ गया… है है।
और निशा ने हँस दिया।
जगदीश राय : पर… बेटी…मुझे…
निशा: पापा…आंखें बंद…। बिलकुल बंद…वैसे भी मुझे उसे देखने में कोई दिकत नहीं तो आप को क्यों…
जगदीश राय फिर से आँखें बंद किया। अपने बेटी के सामने लंड पूरा खुला दिखाई देता सोचकर, उसका लंड पूरा कड़क हो गया। निशा अब जगदीश राय के जांघो पर लुंगी के अंदर हाथ डाल कर हाथ फिरा रही थी। और यह करते वक़्त निशा जानबूजकर जगदीश राय की टट्टो को भी सहला देती।
अपने टट्टो पर निशा के मुलायम हाथो के स्पर्श लगते ही जगदीश राय के मुह से आह निकली।
जगदीश राय : आह…हहह
निशा समझ गयी की जगदीश राय को मसाज बहुत पसंद आ रही है। वह फ्राइडे के अपने प्लान से खुश थी।
इस बार निशा ने अपने बाये हाथ को जगदीश राय के टट्टो पर रहने दिया और सिर्फ अपने दाये हाथ से पैरो का मसाज करने लगी। बायां हाथ धीरे धीरे टट्टो को सहला रहा था।
थोड़ी देर बाद,
निशा: पापा… यह लूँगी की वजह से मैं आपके कमर तक नहीं पहूँच पा रही हु… उसे उतार देती हु मैं…
जगदीश राय : आआह अरे।।नही…बेटी …लूंगी रहने दो…।
पर पहले ही निशा ने जगदीश राय की पूरी लूँगी खोल दी और जगदीश राय एक छोटे बच्चे की तरह पूरा नंगा, तेल से लथपथ, अपने बेटी के सामने लेटा था।
कठोर लंड पूरा खड़ा सीलिंग फैन के तरफ था। निशा एक हाथ से बेशरमी से पापा के बड़े टट्टो को सहला रही थी। निशा धीरे धीरे दुसरा हाथ से जगदीश राय के पेट में तेल लगा रही थी।
लंड जोरो से हिल रहा था। छलाँगे मार रहा था।
निशा से अब रहा नहीं गया, और उसने बिना देर करते हुए अपने दाए हाथ से पापा के 9 इंच लंबे लंड को थाम लिया।
लंड इतना मोटा था की निशा के हाथो में समां नहीं रहा था।निशा ऐसा महसूस कर रही थी जैसे उसने लोहे के गरम रॉड को पकड़ लिया हो।
जगदीश राय निशा के लंड को पकडते ही ऑंखें खोल दी और आँख फाडे निशा को देखने लगा। निशा मुठ मारने के इरादे से , हाथ हिलाना शुरू किया। जगदीश राय पागल हो गया।
उसने तुरंत वह किया जो निशा को अनुमान नहीं था।
जगदीश राय ने एक झटके से निशा को दोनों हाथो से पकड़कर अपने छाती के उपर खीच लिया।
निशा: पापा…।वाट…क्या कर रहे हो…।रुको…।
जगदीश राय अब एक भेड़िया बन चूका था।
निशा अपने आप को पापा के बॉहो से छुड़ाने लगी पर जगदीश राय ने अपने हाथो से निशा के सभी बटन तोड़ दिये। निशा के दोनों बड़े चूचे शर्ट के बाहर कुद पडे।
निशा जगदीश राय के ऊपर गिरती है, उसके चूचे पापा के गरम खुरदरा छाती पे रगड खा रही थी। अब निशा गरम हो चुकी थी।।
निशा: पापा…प्लीस…।पापा…मत करो।। मैं…तो …बस ।।यु ही…।मज़ाक़…आह आह्ह।
जगदीश राय ने कुछ नहीं कहा। उसके कान बंद थे। जगदीश राय तुरंत पलटा और निशा निचे आ गयी और जगदीश राय उपर।
जगदीश राय की एक्सपीरियंस अब निशा की जवानी पर भारी पड़ रहा था।
ओर निशा समझ नहीं पा रही थी की क्या हो रहा है। जगदीश राय ने अपना सर झुका कर निशा की एक गुलाबी निप्पल लेके अपने मुह में चूस लिया।
निशा: आआआहहह…आआआह… पापाआ…आहहहह…क्याआआ।।ओह्ह्ह्हह्
जगदीश राय अब बेदरदी से निशा के निप्पलों को चबा रहा था। निशा की चूत पूरी गीली होकर इस एहसास से झडने लगी। निशा का शरीर पूरा अकड गया और चूत खुल गई और पानी छोडने लगी।
निशा: आआअह्ह्ह पापा…।यह ऊऊ…।।
और अपने हाथो से पापा के बालो में हाथ फेरते हुए उनके सर को अपने मम्मो के ऊपर दबा रही थी।
तब अनुभवी (एक्सपेरिएंस्ड) जगदीश राय बिना मौका गवाते हुये, तुरंत अपने पैरो से निशा के जाँघो को फैला दिया।
और इसके पहले निशा कुछ समझती ,गरम हुए चूत में एक ज़ोरदार झटका महसूस हुआ।
और निशा जोर से चिल्लायी।
निशा: आहःआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह।
निशा की कूँवारी चूत इतनी टाइट थी की जगदीश राय के मोटे लंड को बहुत मेहनत करनी पड़ रही थी।
जगदीश राय ने दूसरा झटका तुरंत ही मार दिया और आधा लंड निशा की मासूम कुँवारी चूत को चीरते हुए घूस गया।निशा दर्द के मारे पैरो को अपने पापा के ऊपर पटकने लगी। उसके ऑंखों से आँसू बहने लगे।
जगदीश राय ने 1 मिनट तक निशा को अपनी बाँहों में पकडे रहा और मौका मिलते ही निशा की निप्पल को चूस देता।
थोड़ी देर बाद निशा आहें लेते हुए शांत हुई। जगदीश राय ने प्यार से निशा के बालों में हाथ फेरा, और निशा के गालों को चूमते हुए कहा।
जगदीश राय: कोई बात …नहीं बेटी…बस हो ही गया…अब।
और यह कहते हुए जगदीश राय ने अपना मोटा लंड 1 इंच बाहर निकाला। बाहर निकालते वक़्त निशा की कसी चूत बाहर की तरफ खींच गई।
और जगदीश राय ने वह झटका दिया जिससे निशा की जान निकल गयी। पुरा 9 इंच लंड , केवल 3 झटको में, जगदीश राय ने निशा की कुवारी चूत में पुरा पेल दिया था।
यूं लग रहा था जैसे जगदीश राय ने अपने बेटी से अपने छेडख़ानी का बदला लिया हो। निशा का पूरा शरीर जगदीश राय के निचे तड़प उठा।वो रो रही थी चिल्ला रही थी।
निशा: आह…पापा…प्लीज…बहोत…दर्द…।।ओह्ह गॉड़
निशा की बड़ी गांड काँप रहे थे। जगदीश राय ख़ुद को निशा के ऊपर से उठाया और निशा की चूत की तरफ देखा।
जगदीश राय के 9 इंच के लंड का कोई निशान नहीं था क्युकी वह पूरा निशा की कुँवारी चूत में समाया हुआ था।
निशा की चूत 4 इंच मोटे लंड से खीचकर फ़टने के कगार में थी।
और फिर जगदीश राय ने वह देखा जिसको देखकर उसको ख़ुशी हुई। कसी हुई चूत से लंड से सरकते हुए लाल खून निकल रहा था।
जगदीश राय खुश हुआ की निशा अब तक कुँवारी थी और उसे कूँवारी चूत मारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
जगदीश राय पूरा लंड निशा की चूत में डाले कम से कम 3 मिनट वेट किया।
वह निशा को अब पूरा गरम करके चोदना चाहता था। और निशा की कान, गर्दन और चूचो को चाट और चूम रहा था निप्पलो को दांतो से धीरे धीरे काट रहा था।
कुछ देर बाद निशा को चूत का खिचाव महसूस हुआ। जगदीश राय ने पेलना शुरू किया।
पहले धीरे से, फिर जोर से। पुरे कमरे में सिर्फ निशा और जगदीश राय की चीखों और आह की आवाज़ थी।
कोई 10 मिनट चोदने के बाद, जगदीश राय ने अब पूरा ताकत से अपनी बेटी को पेलना शुरू किया।
जगदीश राय: ओह निशा…।आह आहः
और तभी जगदीश राय को सुबह से तडपा रही ओर्गास्म आने का अनुमान हुआ।
उसने लंड तुरंत बाहर निकाल लिया। निशा अचानक से लंड के बाहर खीचने से चीख पडी।
और निशा की आँखे जगदीश राय के लंड पर गयी।जगदीश राय का लंड पूरा खून से लाल था और फिर २ सेक्ण्ड में लंड ने वीर्य फेकना शुरू किया।
जगदीश राय: आअह आआअह्ह बेटी…।यह ले……।
गरम लंड का पहला माल निशा के पेट और चूचो पर जा गिरा। निशा लंड की गर्मी को देखकर चौक गयी।
जगदीश राय कम से कम 1 मिनट तक जोर जोर से झड़ता रहा। और फिर बेड पर एक ज़ख़्मी शेर की तरह गिर पडा।
निशा, चुदाई ,से लथपफ अपनी पैर खोले पड़ी रही। कुछ 5 मिनट बाद बड़ी मुश्किल से वह उठी।
और अपने चूत और जांघ पर लगे खून को देखकर चौक और ��र गयी। जगदीश राय उसे देख रहा था। दोनों कुछ बोलने के स्थिथि में नहीं थे।
निशा बेड से उठी और नंगी होकर लंगडाते हुए रूम के बाहर जाने लगी।
जगदीश राय: निशा बेटी…।।
निशा मुडी और जगदीश राय के ऑंखों में देखा। उसके ऑंखों में आँसू भरे थे।
जगदीश राय : आई ऍम सॉरी बेटी…।मुझे माफ़ कर दो…मैं अपने आपे में नहीं था…।तुम मसाज…।
निशा बिना कुछ कहे अपने रूम के तरफ चल देती है।
निशा कमरे के अंदर जाकर सीधे बाथरूम में चलि गयी। वह आघात स्थिति में कुछ सोच नहीं पा रही थी।
ओर फिर शावर के निचे खड़ी हो गयी।
पहले सम्भोग का दर्द शावर के पानी से मिटाने की कोशिश कर रही थी।
गरम पानी निशा की दर्दनाक चूत को सहलाता गया। निशा को आराम मिलता गया और दिमाग खुलता गया।
और फिर निशा रोने लगी। खूब रोने लगी।
उसे पता नहीं चल रहा था की वह क्यों रो रही है पर आँसू रुक नहीं रहे थे।
बाथरूम के सफ़ेद फर्श पर लाल खून के धब्बे दिखाई दे रहे थे।
निशा की आसुओं ने पानी की मदद से खून को धोने में सफल हो ही गयी थी। और खून के साथ निशा को अपना कुंवारापन बहता हुआ महसूस हुआ।
निशा पानी के निचे 20 मिनट तक ऐसे ही सर झुकाये खड़ी रही। फिर धीरे से शावर से बाहर आकर, शारीर टॉवल से पौछने लगी।
और अपने आप को बाथरूम के मिरर के सामने पाया।
मिरर के सामने , उसकी आँखों ने , एक लड़की नहीं बल्कि एक औरत को देख लिया था। एक बहुत ही सुन्दर औरत, जो उसकी पापा के शब्दो में किसी अप्सरा के काम नहीं है।
और फिर निशा के होटों में मुस्कान आ गयी।
निशा (मन में): देखा माँ, आज तुम्हारी निशा ने अपने ही पापा के साथ वह किया जो तुम सोच भी नहीं सकती… बचपन से तुम मुझे सुशील लड़की बनाने में लगी थी…निशा यह मत कर।। वह मत कर। पैर फैलाके मत बैठ…छोटे कपडे म��� पहन… अपनी छोटी बहनो के लिए आदर्श बन…।सब बकवास…।सब बकवास…तंग आ चुकी थी मैं तुम्हारी इस बकवास से…आज मैं पहली बार गन्दी फील कर रही हु…। और देखो मुझे सिर्फ ख़ुशी ही हो रही है…।आज मैं पहली बार आज़ाद हुई हु… तुम्हारी सड़ी हुई सोच के कैद से…।
निशा अपने आप से मिरर के सामने खड़ी रहकर यह सोचती रही।
उसे एहसास हुआ की वह अपने पापा को सिड्यूस कर रही थी, वह दरअसल , पापा के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए कर रही थी। खुद को आज़ाद पाने के लिये।।।
और फिर मुस्कुराते हुए अपने गीले बालो को सवारना शुरू किया।
फिर निशा अपने रूम में चलि गयी। वह पूरी नंगी थी। और अब उसे अपने नंगेपन पर गर्व हो रहा था।
निशा ड्रेसिंग टेबल से सामने बैठ गयी और अपने दोनों पैर ड्रेसिंग टेबल के इर्द-गिरद रख दिया।
और उसके ऑंखों के सामने उसकी चूदी हुई चूत मिरर में एक खिले हुए फूल की तरह नज़र आयी।
एक नयी नवेली दुलहन की तरह वह अपने चूत को घुरे जा रही थी।
चूत, जो पहले, छोटी हुआ करती थी, अब फुलकर खुल गई थी। और अंदर का लाल भाग भी साफ़ दिखाई दे रहा था। पहेली चुदाई के कारण चूत के होठ सुजे हुए थे और लाल हो गए थे।
निशा ने अपना एक हाथ जब चूत पर हाथ रखा तो दर्द महसूस हुआ। पर वह धीरे धीरे अपने चूत को सहलाने लगी। धीरे धीरे दर्द मीठा होता गया और शरीर में मस्ती की लहर आने लगी।
निशा के ऑखों के सामने उसके खून से लथपथ पापा का मोटा लंड का लाल सुपाडा चमकने लगा।
उसने अपने ड्रेसिंग टेबल के ड्रावर में से वेसलिन का डिब्बा उठाया और वेसिलीन लेकर अपने चूत के होटों पर मल दिया।
फिर निशा ने अपने नंगापन को टॉवल से ढक लिया।
निशा (मन में): मुझे आशा और सशा के आने से पहले पापा के रूम से चद्दर हटाना होगा। नहीं तो चादर पर खून दिखाई देगा। अब 2 बजे बजे है।4 बजे तक वो आने वाले थे। उन्हें इस बात की भनक भी नहीं पडना चाहिए।
और वह रूम के दरवाज़े के तरफ चल दी।
निशा(मन में): क्या मेरे इस तरह टॉवल में जाना ठीक होगा…।पापा के सामने…।।पर अब उनसे क्या छुपाना…।
और आज़ाद निशा जगदीश राय के रूम के तरफ चल देती है…।
अन्दर अपने कमरे में निशा के आसू भरी आँखों ने जगदीश राय के सीने को चीरकर रख दिया था।
उसे अपने आप पर शर्म आ रहा था।
वह वही नंगा पड़े बेड पर लगे निशा की चूत से निकली खून के धब्बो को घूरे जा रहा था।
जगदीश राय (मन में): यह मैंने क्या कर दिया… और क्यों किया… निशा तो बच्ची है…।सब मज़ाक़ समझ रही थी…उसने सपने में नहीं सोचा होगा की उसके पापा उसके साथ… है भगवन…।अब मैं निशा को किस मुह से फेस कर पाउँगा…।
तभी अचानक से रूम का दरवाज़ा खुला जो उसके सोच को काट दिया।
जगदीश राय अपने ऊपर धोती चढाने को हाथ बढाया पर धोती बेड के दुसरे कोने में पड़ी थी। उसने सोचा नहीं था की कोई उसके कमरे में आएगा अब।
तब उनकी नज़र निशा पर पड़ी , जो धीरे से कॅमरे में प्रवेश किया।
जगदीश राय तुरंत अपने दोनों हाथो से अपने लंड को छुपाये और बेड पर बेठा रहा।
निशा टॉवल में लिपटी हुई थी और जगदीश राय को घूर रही थी।
और जगदीश राय निशा की निरंतर घूरति निगाहों का अब सहन नहीं हो रहा था। अपराध बोध से वह सर झुकाये बैठा था।
निशा (कठोर रूप से): मुझे बेडशीट चेंज करनी है…।आशा-सशा के आने से पहले…
जगदीश राय (सर झुकाए): हाँ…ठीक है… मैं कर दूंग।।
निशा: नहीं…। मुझे करना है।
जगदीश राय: ठीक है… मैं धोती पहन लू…।
निशा (कठोर आवाज़ से): नहीं…रुकिए…।आपकी मालिश कहाँ पूरी हुई है…मालिश के बाद मैं चेंज कर दूंग़ी।
जगदीश राय , मालिश का नाम सुने चौक गया और कई सवालों के साथ निशा के चेहरे की तरफ देखा।
निशा (मुँह फेरती हुए): चलिए…लेट जाईये…
जगदीश राय: नहीं बेटी…नहीं… मुझे इस तरह शरमिंदा मत करो… मैं तुम्हारा कुसवार हु…मेरी नियत में खोट थी।।।मैंने तुम्हारे साथ वह किया जो एक बेटी बाप को कभी माफ़ नहीं कर सकती… इसलिये मैं माफ़ी मांगने के भी लायक नहीं हूँ…।प्लीज…।चलि जाओ…और मुझे आज से पापा बुलाने की ज़रुरत भी नहीं…
निशा: मैंने कब कहा की आपकी नियत ठीक नहीं थी…बस तरीका सही नहीं था…
जगदीश राय निशा की यह बात सुनकर बौखला गया और गुमराह बच्चे की तरह निशा के चेहरे को घूरता गया।
जगदीश राय: तो क्या…तुम्हे…।यह सब…।
निशा: जी नहीं…मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा… इससे हैवानियत कहते है…।फॉर योर काइंड इन्फोर्मटिशन
निशा(सर झुकाए): मैं तो समझी थी की आप मेरे दोस्त है… और जो करेंगे प्यार से करेंगे…।
निशा: पर आपने ।। वह किया… जो।।
जगदीश राय थोड़ी देर यह सुनकर चुप रहा ।
जगदीश राय: मैं तुम्हारा दोस्त हु… और इस दोस्त को तुम जो सजा देना चाहो मुझे मंज़ूर है।।
निशा (मुस्कुराते हुए) : सजा तो मैं दूंगी, पर वक़्त आने पर।
और निशा टॉवल पहनी जगदीश राय के बेड पर बैठ गयी।
जगदीश राय अब तक पूरा नंगा अपने हाथों से लंड और टट्टो को छुपाये बैठा था।
निशा: चलिये… लेट जाईये…।
जगदीश राय ने , बड़ी कोशिश करके थोड़ा सा मुस्कुराये और लेट गया।
निशा: और आप क्या यह हाथ पकडे लेटे है…ऐसा क्या खज़ाना छुपा रहे है जो मुझे पता ही नहीं… चलिये हाथ दोनों सर के पीछे…समझे…।हाँ ऐसे…।
जगदीश राय अब तक पूरा नंगा अपने हाथो से लंड और टट्टो को छुपाये बैठा था।
निशा: चलिये… लेट जाईये…।
जगदीश राय , बड़ी कोशिश करके थोड़ा सा मुस्कुराये और लेट गया।
निशा: और आप क्या यह हाथ पकड़े लेटे है…ऐसा क्या खज़ाना छुपा रहे है जो मुझे पता ही नहीं… चलिये हाथ दोनों सर के पीछे…समझे…।हाँ ऐसे…।
जगदीश राय निशा की ऑंखों को घूरते , हाथ पीछे ले गया। और अर्ध-खड़ा लंड निशा की ऑंखों के सामने खुला पड़ा था।
निशा ने मुस्कुराते हुए लंड को देखा।
लंड पर अभी खून लगा हुआ था। और लंड जगदीश राइ के पेट पर गिरने से खून पेट पर भी लग गया।
निशा: ओह ओह आप ने अभी तक साफ़ नहीं किया…यह देखो…सभी जगह लाली फैला रहे हो…रुको साफ़ करती हूँ।।।
और निशा ने लंड और पेट को साफ़ करने के लिए ढूँढ़ते हुए इर्द-गिर्द नज़र घुमाया।
निशा: यहाँ तो तौलिया नहीं है…
जगदीश राय : बेटा …मैं बाथरूम जाकर साफ़ करता हु…रुको
जगदीश राय उठने लगा।
निशा: कोई ज़रुरत नहीं…मेरे पास जो है तौलिया…।
और यह कहते हुए निशा ने अपने हाथ को अपने छाती पर ले जाकर , चूचो के ऊपर लगी टॉवल की गाठ को खोल दिया।
जगदीश राय आखे फाडे देखता रहा। और टॉवल के खुलते ही निशा के दो बड़े गोलदार चूचे आज़ाद हो गये।
निशा ने बड़े नज़ाक़त से सेक्सी स्टाइल में टॉवल को खीच लिया और गांड उठा कर टॉवल को अपने शरीर से अलग किया।
अब निशा अपने पापा के सामने पूरी नंगी , बेड के किनारे पर बेठी थी। और उसके पापा पुरे नंगे अपने फड़फडाते लंड के साथ उसके सामने लेटे हुये थे।
जगदीश राय निशा की चूचियों को बारीक़ी से निहार रहा था। गोरी भरी हुई चूचो के बीचो-बीच पर गुलाबी निप्पल।
निशा ने अपने चूत को जांघो से ढक रखा था।
निशा: हाँ…अब इसे साफ़ कर देती हु…क्या घूर रहे हो पापा…खा जाओगे क्या।।हे ह
जगदीश राय: नहीं…बेटी… मैं तोह…।।।
निशा: हाँ…खा भी सकते हो…भेड़िये का रूप तो आपने दिखा ही दिया…
जगदीश राय : बेटी …मैं तो बस तुम्हारी सुंदरता निहार रहा था।।
निशा को यह सुनकर अच्छा लगा।
निशा: अच्छा…क्या सुन्दर लगा…बताईये…
जगदीश राय : बस यह ही सब…
निशा: खुलकर बताइए…
और साथ ही निशा ने टॉवल जगदीश राय के लंड पर डाल दिया और लंड को टॉवल से दबोच लिया।
जगदीश राय के मुह से आह निकल गयी।
जगदीश राय : आह…ओह…तुम्हारी चूचे बेटी…मस्त है।।।
निशा :अच्छा…क्या मस्त लगा इसमें…सभी के ऐसे ही होते है…
कब निशा ने टॉवल हटा दिया। जगदीश राय का लंड अब पुरे आकार में आ रहा था।
निशा ने झटके से अपनी दायी हाथ से लंड को हाथो में दबौच लिया।
जगदीश राय निशा के हाथ के स्पर्श से पूरा गरम हो चूका था।
निशा ने अपने मुठी के अंदर लंड को बढते हुए महसूस कर रही थी।
निशा ने पूरी ताकत से लंड के चमडी को पूरा निचे तक सरका दिया।
जगदीश राय ज़ोर के इस झटके से उछल पडा।
निशा (बेदर्दी से हस्ते हुए): बताइये…क्या मस्त लगा…
जगदीश राय : आह…आहह…।।तुम्हरी निप्प्प्पल…।कितने गुलाबी…तुम्हारी…।चुचे का आकार…सभी…
निशा: हम्म्म…अच्छा…तो ...इसलिये यह हज़रत फने खान बने हुए है…और देखो कितना खून लगा हुआ…है
और यह कहते हुए निशा ने खुरदरे टॉवल से लंड के कोमल टोपे पर रगड़ना शुरू किया।
जगदीश राय: अरे रुक जाओ बेटी…ऐसे नहीं… करते…।रुक जाओ…
निशा (हँसते हुए): यही आपकी सजा है…।हाथ पीछे ले जाकर लेटे रहो…जब तक साफ़ नहीं कर देती आपको सहना पड़ेगा…
और निशा लंड के कोमल टोपे पर टॉवल रगड़ती रही।
जगदीश राय मछली की तरह उछल रहा था। और निशा 9 इंच का लंड अपने मुलायम हाथ से जकड़ रखी थी।
वह बड़े प्यार से गुनगुनाती हुई लंड को 3 मिनट तक साफ़ किया।
निशा: लो।।हो गया आपका हथियार साफ़…
जगदीश राय ने लंड के तरफ देखा। लुंड के टोपा पूरा लाल हो चूका था। जगदीश राय तेज़ी से सास ले रहा था।।
निशा: क्यों…कैसी लगी सजा…यह सिर्फ पार्ट 1 था…
जगदीश राय : आहह…तुमने तो मेरी जान ही निकाल दी…बेटी
निशा: चलिए…अब मालिश शुरू…
निशा ने तेल लिया और जगदीश राय के पेट और हाथो में मलने लगी। नंगी निशा लगभग अपने पापा के ऊपर चढ़कर मसाज कर रही थी।
जगदीश राय का शरीर का तेल निशा की चूचियों और जाँघो में लग रहा था। जगदीश राय मदहोश होकर सब सह रहा था।
निशा: अब फिर से पैरो की बारी…।
और निशा ने वह किया जो जगदीश राय को जन्नत का सैर करवा दिया।
निशा: पापा…आपके पैर इतने बड़े है मैं उनतक यहाँ से पहुच नहीं पाती। क्या मैं आपके ऊपर बैठ सकती हु?
जगदीश राय : ऊपर…मतलब।।?
निशा: मतलब…ऐसे…।
निशा ने उल्टी होकर अपने पापा के पेट की इर्द-गिर्द घुटनो के बल बैठ गयी। और फिर धीरे से पापा के तेल से लथपथ पेट पर अपनी गरम चूत को चिपका दिया।
जगदीश राय की 20 साल की बेटी अब नंगी होकर उनके ऊपर बैठी थी। मुलायम चूत और पेट के मिलन से जगदीश राय का लंड फडफडाने लगा।
निशा: ठीक है…पापा… कहीं मैं बहुत हैवी तो नहीं हु न…
जगदीश राय : नहीं बेटी…।बिल्कुल नहीं…।बहुत अछा लग रहा है…
और जगदीश राय ने पीछे से निशा के ऑवर-गिलास शेप को निहारते हुये, पीठ से हाथ सरकाकर कमर तक ले गया।
और दोनों हाथो से कमर को दबोच लिया।
निशा अब तेल लेकर पैरो का मसाज करने लगी।
जब भी निशा जगदीश राय के घुटनो तक हाथ चलाती, अपनी गांड उठाति। और अपने पापा को अपनी गांड के छेद की झलक दिखाती।
जगदीश राय अब निशा की दोनों गांड के गालो पर अपना हाथ फेरना शुरू कर दिया था।
निशा जानती थी की उसके पापा को बहुत खूबसूरत नज़ारा पेश हुआ है। और वह उसकी चूत भी क़रीब से देखना चाहते है। और वे अपने लंड का मालिश भी करना चाहते है।
पर वह यह जान बुझकर टाल रही थी…अपने पापा के साथ खेल रही थी।
निशा: पापा…मज़ा आ रहा है…कही सो तो नहीं गए…हे हे।
जगदीश राय : नही…।बेटी…ऐसे ही करते रहो…चाहो तो थोड़ा ऊपर भी मसाज कर सकती हो…
निशा: पहले नीचे तो कर लू…बस हो ही गया।।थोड़ा सबर तो कीजिये पापा…
निशा: वैसे।।लगता है आप भी मेरा मसाज कर रहे है…।
जगदीश राय : क्या करू बेटी…तुम इतनी सुन्दर हो की।।रहा नहीं जा रहा… अगर तुम थोड़ा ऊपर कर दो तो मजा आ जाए।।।
निशा: अच्छा…कहाँ…यहाँ…?
और यह कहते निशा ने हाथो से दोनों टट्टो को हाथ से दबोच लिया।
जगदीश राय : आआअह…।हाँ…वही।
निशा: ठीक है…।पर इसके लिए मुझे थोड़ा पीछे बैठना होगा…
और यह कहते हुए निशा अपने बड़ी गांड जगदीश राय के छाती में समा देति है और आगे के तरफ झूक जाती है।।
निशा: यह ठीक है पापा…आप कम्फर्टेबल तो है न।।।
जगदीश राय ने कुछ जवाब नहीं दिया। उसके चेहरे के 3 इंच के दूरि पर अपनी बेटी निशा की सुन्दर गुलाबी चूत पूरी फ़ैली हुई थी।
वह निशा की चूत को ताकता रहा। सुजी हुई चूत के अंदर समायी गुलाबी होठ उसे पुकार रहे थे। और चूत के उपरी भाग पर क्लाइटोरिस देखकर चौक गया। जगदीश राय ने आज तक इतनी बड़ी क्लाइटोरिस नहीं देखा था।
चूत की मादक गंध से जगदीश राय मदहोष हो गया।
और उसने बिना सोचे सीधे अपने होठ से निशा के चूत को दबोच लिया।
निशा: आह पापा…धीरे…ओह…गॉड…पापा…यह…। बहुत…अच्छा…।फिल…
निशा अपने हाथो से पापा के टट्टो को धीरे धीरे गोल-गोल सहला रही थी।
जगदीश राय अब निशा के कमर को पकड़ कर थोड़ा ऊपर उठा दिया , और अपने होठ से निशा की क्लाइटोरिस को दबोच लिया।
जगदीश राय कभी क्लाइटोरिस को चबाता, तो कभी अपने जीभ से निशा की पूरी चूत चाट लेता।
निशा अपने पापा के छाती पर बैठ, गांड को गोल-गोल ऊपर-नीचे उठाकर अपनी चूत को अपने पापा से चटवा रही थी।
जगदीश राय: बेटी…कैसा लग रहा है…
निशा: सवाल मत करो पापा…करते रहो…।बहुत अच्छा…।
फिर जगदीश राय ने दोनों हाथो से निशा के चूत को फैलाया। अभी चूदी हुई चूत में निशा को दर्द हुआ और उसने अपने होटों को चबाकर दर्द को सहा।
और जगदीश राय ने अपने जीभ को निशा के चूत में सरका दिया।
निशा: आअह…।पापाआ…।आआआआह।
निशा सिसकी मारते हुए आगे गिर पडी। और उसके होठ पापा के 9 इंच के लंड से लग गये।
निशा ने टट्टो को छोड लंड को दबोच लिया और और लंड को क़रीब से निहारती रही।
और एक भूखी शेरनी की तरह लंड को अपने मुह में घूसा लिया। ४ इंच मोटाई का लंड वह अपने मुह में घूसाने की कोशिश कर रही थी। कभी वह चाटती कभी चूसती। कभी हाथों से मुठ मारती।
उसे अपने पापा के लंड से प्यार हो गया था। और वह एक छोटे बच्चे की तरह उसके साथ खेले जा रही थी।
यहाँ जगदीश राय निशा की चूत को अपने जीभ से चोद रहा था और वहां निशा पापा के लंड को लोलीपोप की तरह चूस रही थी।
दोनो बड़े ही प्यार से बिना कोई जल्दबाज़ी किये आराम से एक दूसरे को चाट और चूस रहे थे।
करीब 5 मिनट बाद , निशा को अपने चूत में अकड महसूस हुई। वह अपने पापा के मुह में झड़ना नहीं चाहती थी।
जगदीश राय , अनुभवी होने के कारण समझ गया की निशा झडने वाली है।
उसने तुरंत निशा की कमर और गांड को अपने हाथों से दबोच लिया। और अपने उंगलिओं से निशा की चूत को फैलाता-सहलाता रहा। और निशा की क्लाइटोरिस को होटों में दबोच कर बेदरदी से चूसता रहा और खीचता रहा।
निशा अब लंड चूसना बंद कर अपने हाथो से मुठ मारना शुरू किया।
निशा अपने क्लाइटोरिस पर हुए इस हमले से उछल पडी। वह अपने पापा के चंगूल से निकलना चाहती थी पर पापा के पकड़ से छुड़ा नहीं पायी।
और कुछ ही क्षणो में उसका पूरा शरीर अकड गया। और वह कांपते हुए तेज़ी से झड गयी
जगदीश राय ने जान-बुझ-कर चूत के होठ ऊँगली से खुले रखे थे। क्लाइटोरिस चूसते हुए उसके आखों के सामने चूत के होठ और क्लाइटोरिस फ़ैल गया और चूत के अंदर से तेज़ी के पानी बहने लगा।
जगदीश राय ने ���ुरंत क्लाइटोरिस को छोडते हुए चूत के द्वार पर अपना मुह चिपका दिया और पानी चाटने लगा।
निशा कुछ एक मिनट तक अपने पापा के ऊपर उलटी लेटे झडती रही। और वही ढेर हो गयी।
निशा के झडने के बाद भी जगदीश राय ने चूत चाटना बंद नहीं किया। वह निशा की चूत के रस को खोना नहीं चाहता था।
कुछ देर बाद जगदीश राय ने निशा की गांड को उठाया और निशा को देखा।
निशा वही जगदीश राय के पेट के ऊपर तेज़ सासे लिए सो रही थी। दाए हाथ में लंड था और बाए हाथ टट्टो में समाया हुआ था। लंड निशा के गालो पर सटा हुआ था।
अपने पापा का लंड गालो पर लिए सोये हुए निशा का सुन्दर चेहरा देखकर, जगदीश राय को अपनी बेटी पर बहुत प्यार आया।
जगदीश राय: निशा…निशा बेटी…तुम ठीक…हो…निशा।।
निशा ने धीरे से अपनी ऑंखें खोली और लंड के पीछे से उसके होठ मुस्कराए।
जगदीश राय: आ जाओ बेटी …आ जाओ ।।अपने पापा की बाहो मैं…
निशा धीरे से उठी और जगदीश राय ने अपनी बेटी की नंगी कापते शरीर को अपने विशाल बाहों मैं लेकर सम्भाला।
कोई 5 मिनट तक निशा इसी तरह अपने पापा की बाहों में नंगी पड़ी रही।
फिर निशा धीरे से उठी और अपने पापा के ऑंखों में देखा।
दोनो एक दूसरे को घूरते रहे।
और निशा ने पापा के कठोर लंड को अपने हाथों में लेकर हिलाना शुरू किया।
निशा लंड के हिलने से जगदीश राय के चेहरे का हाव भाव पढ रही थी।
जगदीश राय से अब रहा नहीं जा रहा था। पर वह पहली बार वाली गलती दोहरना नहीं चाहता था।
जगदीश राय: निशा बेटी।।अब मुझसे रहा नहीं जा रहा…तुम निचे लेट जाओ…मैं।।
निशा: नहीं…आप लेटे रहिये…।
और निशा जगदीश राय के ऊपर लेट गयी। लंड चूत के द्वार को दस्तक दे रहा था। पर निशा लंड अंदर नहीं सरका रही थी।
जगदीश राय मचल रहा था। निशा पुरे कण्ट्रोल में थी।
फिर निशा ने अपना बाया हाथ निचे ले जाकर लंड के जड़ (बेस) को पकड़ा और धीरे धीरे चूत को लंड पर उतारने लगी।
निशा: आआअह…आह।
जगदीश राय: ओह्ह्ह्हह्ह्ह्।
हर एक मोड़ पर निशा की चूत दर्द से कांप उठती। पर वह यह दर्द सहना चाहती थी। अपने पापा के लिये। अपने लिये।
जगदीश राय समझ गया की निशा की चूत पहली चुदाई से सूजी हुई है और दर्द दे रही है।
जगदीश राय: रहने दे… बेटी…।इतना काफी है… और लेने की ज़रुरत नहीं…
लेकिन निशा ने न में सर हिलाया और फिर ख़ुद को लंड पर ढकेलने लगी।
करीब 5 इंच चूत में समा जाने के बाद, निशा रुक गयी। जगदीश राय समझ गया की उसका लंड जड़(बेस) पर ज्यादा मोटा है।
निशा धीरे धीरे लंड पर ऊपर निचे होकर खुद को चुदवाने ��गी। जगदीश राय अपने बेटी के चूचो और चेहरे को निहारता उसका साथ दे रहा था।
जगदीश राय जानता था की निशा लंड पूरा लेना चाहती है पर घबरा रही है।
पर यह रास्ता निशा को खुद पूरा करना था।
जगदीश राय: कोशिश करो बेटी…
निशा: आह…।हम्म्म्म…।आआआह आआह आआह…ओह्ह्ह्हह…।
फिर निशा धीरे धीरे अपने पापा का पूरा लंड चूत में समां लिया। चूत 4 इंच के लंड की चौडाई से फैल गई थी।
निशा अपना दायाँ हाथ चूत पर ले गयी एंड जाना की लंड पूरा घूस चूका है।
फिर निशा मुस्करायी। जगदीश राय भी मुस्कराया।
कुछ समय बाद निशा दर्द भूल कर जोर जोर से लंड पर उछलने कूदने लगी। उसके बड़े मम्में उछल रहे थे।
उसने यह सब पैतरे इंटरनेट पर ब्लू-फिल्म्स में देख रखी थी।
जगदीश राय झाडने के कगार पर था। निशा जान गई।
निशा: पापा…अंदर ही छोड दीजिये…
निशा अपने आप को पूरा अपने पापा पर समर्पण करना चाहती थी।
निशा जोर जोर से उचलने लगी। पर जगदीश राय ने अंत वक़्त पर लंड बाहर खीच लिया।
लंड तेज़ी से फवारा छोड़ना शुरू किया। और निशा को अपनी चूत और गांड के छेद पर गरम वीर्य का अनुभव हुआ।
निशा ने सवालिए नज़रो से पापा के तरफ देखा।
जगदीश राय (हफ्ते हुए): नहीं बेटी…।
निशा अपने पापा के ऊपर लेट गयी। लंड अभी भी उगल-उगलकर झड रहा था।
जगदीश राय ने निशा को बॉहो मैं कैद कर लिया।
जगदीश राय उससे बीच बीच में , कभी गालो तो कभी माथे पर किस देता रहा। हाथो से उसकी मुलायम गांड और चूचो को दबाता रहा। और निशा बीच में हाथ से लंड और टट्टो को अपने हाथो से मसाज कर देती।
अब दोनों बाप-बेटी नहीं रहे। दो प्रेमी बन चुके थे।
कम से काम आधा घण्टा दोनों ऐसे ही बिस्तर पर एक दूसरे से लीपटे पड़े रहे। दोनों खामोश थे। कमरे में एक अजीब सी ख़ामोशी थी।
जदगीश राय के मन में एक अजीब सा उत्साह थी। और निशा के मन में सुकून।
थोड़ी देर बाद निशा उठी। उठते वक़्त निशा के बाल उसके पापा के जांघो के निचे फस गया था।
निशा हँस पडी।
निशा: हे।।हे …उठिये पापा…आशा-सशा के आने से पहले…
जगदीश राय: और कुछ देर लेटी रहो बेटी…।ऐसे ही…
और जगदीश राय , किसी जवान प्रेमी की तरह , निशा को अपने बांहो में लेना चाहा। और इस कोशिश में निशा के भारी चुचो को छुकर मसल दिया।
निशा: न जी न…मैं तो चली…चलिए…आप भी…
निशा किसी नयी नवेली दुल्हन के जैसे बोल पडी।
जगदीश राय: अच्छा बाबा…।पर एक बात पुछु बेटी…।कैसा लग रहा है तुम्हे…।
निशा: हल्का…बहुत हल्का…वैरी लाइट…जैसे मन से कोई बोझ निकल गया हो…
जगदीश राय:अच्छा…?
निशा (अपनी बाहें फैलाये):…और मैं इस हलके पन में तैरते रहना चाहती हु…सदा आप की बाहों में।।
यह कहते जगदीश राय हँस पड़ा और निशा भी हँस पडी।
और दोनों एक दूसरे के बाँहों में समां गये।
फिर निशा उठी और कमरे में पड़े कपडे और टॉवल उठानी लगी। वह नंगी थी।
और जगदीश राय उसके मोटी गांड और भारी चूचो को देख रहा था।
और निशा बीच-बीच में ताक़ते पापा को देखकर मुस्कुरा रही थी।
अचानक से बेल बजी। दोनों चौक गये। निशा तुरंत कपड़े और बिस्तर पर खून-लगी-बेडशीट लेकर रूम के तरफ चल दी।
जगदीश राय ने लूँगी पहनकर दरवाज़ा खोला। सामने आशा को देखकर मन ही मन उदास हो गया।
आशा: अरे पापा… यह क्या…कहीं रेसलिंग करने चले हो क्या… इतना तेल लगा हुआ है…
जगदीश राय: अरे…यह…यह…तो बस…मैं…यु ही…नहाने जा रहा था…
तभी निशा सीडियों से उतार आयी।
निशा (मैक्सी पहने): पापा को डॉक्टर ने कहाँ है तेल लगाकर नहाने के लिए इसलिए…
आशा: अच्छा…तो क्या डॉक्टर ने पेशेंट के बेटी को भी बोला है साथ में तेल लगाने को?… तुम भी तो दीदी तेल लगायी हुई हो…चेहरे पे…हाथ पे…
निशा (झेंपते हुए): वह…तो।।मैं…
जगदीश राय:वह तो मुझे देख्कर।।मेरे साथ…इसने भी लगा दिया।।मेडिकल आयल है न…इसलिये।।
आशा: अच्छा।।स्ट्रँग।।दोनो मिलकर तेल मलो शाम के 4 बजे …मैं तो चली अपनी रूम…
निशा (मन में): साली का दिमाग…कुछ ज्यादा ही फास्ट चलता है…इससे छुपकर रहना एक चैलेंज होगा…
फिर थोड़े देर में सशा भी आ गयी। निशा अपने किचन के कामो में लग गायी।
जगदीश राय जब जब मौका मिलता किचन के सामने से गुज़रता। और निशा को नज़र मारता।
निशा जान-बुझकर कोई रिस्पांस नहीं देती। उसे पता था की पापा उसके लिए बैचैन है।
खाने के टेबल पर भी निशा और जगदीश राय एक दूसरे को देखते और मुस्कराते।
जगदीश राय कभी कभी उसके हाथो और जाँघो को हल्के से छु देता , पर निशा उससे दूर रहती।
रात को सोने से पहले , निशा पापा को दूध देने आयी।
जगदीश राय: बेटी…आशा-साशा 11 बजे तक सो ही जाते है…तुम चुपके से कमरे में आ जाना।।ठीक है…
निशा (हँसती हुई): नहीं पापा…मैं नहीं आऊँगी…आप आराम कीजिये…
जगदीश राय: पर…क्यों…बेटी…क��छ नहीं होगा…डरो मत…।
निशा (फिर हँस्ते हुए): अब आप एक बच्चे की तरह सो जाईये…चलिये।।
जगदीश राय: पर…
निशा(दरवाज़ा बंद करते हुए): गुड नाईट…स्वीट ड्रीम्स।।हे हे…
जगदीश राय रात भर करवटें बदलता रहा।
दिन में हुई घटनाओ, निशा की गिली चूत, उसपर लगी लाल बड़ी क्लिटोरिस, चूचे, गुलाबी निप्पल , मुलायम चमड़ी उसे सोने नहीं दे रहे थे।
वह खुद निशा के रूम में जाना चाहता था। कोई 4 बजे उसकी आँख लगी।
सूबह 8 बजे जगदीश राय की नींद बर्तनो की आवाज़ से खुली।
जगदीश राय मुह हाथ धोकर हॉल में पहूंच गया। निशा एक लूज मैक्सि, जो पैरो तक ढकी हुई थी, पहनी नास्ता बना रही थी।
निशा ने अपने गीले बाल एक सफ़ेद टॉवल में बांध रखे थे। और पानी की कुछ बूँदे बालों से गिरकर निशा के गर्दन पर फिसल रहा था।
जगदीश राय निशा का यह रूप देखकर बहुत उत्तेजित हो गया था।
निशा: अरे पापा।।आ गए…रुको मैं अभी चाय लेकर आती हूँ।
जगदीश राय: ओह्ह्ह्हह
जगदीश राय , रूठे हुए अंदाज़ में निशा की तरफ देखा।
निशा (मुस्कुराते हुए): क्या हुआ पापा…नाराज़ हो…मुझपर…
जगदीश राय: और नहीं तो क्या…।कल सारी रात मुझे नींद नहीं आई।
निशा (मुस्कुराते हुए): क्यूँउउ?
जगदीश राय: अब बनो मत…तुम जानती हो…क्यो?
निशा (मुस्कुराते हुए): अच्छा जी…तो सारी रात किया क्या …हे हे…
जगदीश राय (बच्चे की तरह रूठे हुए): और क्या …तुम्हारा हर अंग मेरे आखौं के सामने झलक रहा था।।नीन्द कैसे आती…
निशा (चिढ़ाते हुए):ओह ओह …सो सैड।।।
जगदीश राय: वह छोडो।।नाशता तैयार है या नहीं…
निशा: आपके लिए तो दो दो नाश्ता तैयार है…
जगदीश राय: दो दो नाश्ता है…
निशा: एक जो कढाई में उबल रही है… और दूसरे जो यहाँ नीचे उबली हुई है।।
यह कहकर निशा ने अपनी मैक्सी घूटनों तक उठा ली।
जगदीश राय , कुछ पल तक मतलब नहीं सम्झा। और युही निशा को ताकता रहा।
निशा: सोच लो…यह ऑफर की लिमिटिड वैलिडिटी है।। एक बार आशा-सशा उठ गई तो आज सैटरडे तो कुछ नहीं मिलेंगा।
जगदीश राय की हालत प्यासे-को-कुवाँ-मिलने लायक हो गयी।
उसने बिना एक सेक्ण्ड गवाये निशा के सामने झूक गया और मैक्सी में घूस गया।
निशा अपने पापा का यह उतावलापन देखकर हँस पडी।
निशा: ओह ओह …धीरे धीरे पापा।।मैं यही हु…हे ह
और फिर निशा ने मैक्सी को गिरा दिया और जगदीश राय अंदर समां गया।
जगदीश राय मैक्सी के अंदर घूसते ही , थोड़ी बहुत रौशनी से जाना की निशा ने पेंटी नहीं पहनी है।
चूत से बहुत ही मादक सुगंध आ रहा था जो निशा की चूत की गंध और कोई मॉइस्चराइजिंग लोशन का वीर्य था।
जगदीश राय एक भूखे कुते की तरह निशा की गुलाबी चूत पर टूट पडा।
पर निशा के पैरो के बीच ज्यादा जगह न होने के कारण , जगदीश राय , कोशिश करने के बावजूद, सिर्फ निशा की जाँघे ही चाट पा रहा था।
निशा: रुक जाओ पापा…जो आपको चाहिये वह देती हु…
और फिर निशा , अपने दोनों पैर फैलायी और अपने हाथो को किचन प्लेटफार्म पर सहारा देते हुए, अपने दोनों पैरो को घूटने से मोड़ दिया।
निशा: अब ठीक है पापा।
जवाब मैं जगदीश राय ने अपने कापते होटों से निशा की खुली हुई गिली चूत को दबोच लिया।
निशा: ओह…।आआह्ह्ह्ह…पापा…धीरे…।
जगदीश राय निशा की चूत को पागलो की तरह खा रहा था, चाट रहा था। क्लाइटोरस को होटों से खीच खीच कर उसने लाल कर दिया था, सुजा दिया था।
वहाँ चाय उबल रहा था और यहाँ निशा अपने पापा से चूत चुस्वाकर झडने के कगार पर थी।
अब जगदीश राय ने अपनी जीभ को निशा के चूत के अंदर सरका दिया, निशा से रहा नहीं गया।
उसके लिए अब अपने पैरो को फैलाकर और मोड़कर खड़ा रहना , मुश्किल हो चला था। पैर कांप रहे थे।
वही जगदीश राय रुक्ने का नाम नहीं ले रहा था।
निशा: पापा मैं अब रोक नहीं सकती…।
यह सुनते ही जगदीश राय और तेज़ी से चूत के अंदर होठ घुसाकर चूत चाटना शुरू किया।
निशा: पापपपपपआ…।।यह गूऊऊऊड…।।आआअह्हह्ह्ह्हह्हआआह्ह्ह।
निशा जोर से झडी। निशा के चूत से इतना पानी निकल गया की जगदीश राय का मुह पूरा भर गया और बाकि जगदीश राय के शर्ट पर गिर गया।
निशा वही किचन के फ्लोर पर गिर पडी। जगदीश राय मैक्सी में से बाहर आ गया।
निशा के पैर थर-थर कांप रहे थे। और मैक्सी ऊपर चढ़ने के कारण चूत पूरी खुली पड़ी थी। जगदीश राय ने देखा कैसे चूत के होठ निशा के हर सास के साथ अंदर बाहर हो रही है और थोड़ा पानी उगल रही है।
जगदीश राय ने तुरंत अपना लंड बाहर निकाल लिया और निशा की चूत के पास ले गया।
निशा: पापा…अभी।।नही…प्लीज नही…मैं और सह नहीं सकती…ओह गॉड…आह।
जगदीश राय के चेहरे पर निराशा झलक उठी। निशा यह समझ गयी।
निशा (तेज़ सास लेते हुए): आज रात…मैं …पक्का ।।आउंगी…प्रॉमिस…
जगदीश राय मुस्कराया।
जगदीश राय: ठीक है।।तुम प्रॉमिस दे रही हो तो…मैं जानता हु अपने पापा से किया हुआ वादा नहीं तोडोगी।।
यह कहते हुए जगदीश राय ने निशा की चूत में 2 उँगलियाँ घूसा दी और उँगलियों को मोड़कर ढेर सारा पानी बाहर खीच लिया।
निशा: आअह्हह्ह्ह्ह।
जगदीश राय उँगलियों को चाटते हुए हॉल की तरफ चल दिया।
जगदीश राय: बेटी चाय लेके आ जाना।
फिर सारा दिन गुज़र गया। निशा और जगदीश राय एक दूसरे को जब चाहे घूरते रहते और मौका मिलते ही निशा पापा की लुंगी के ऊपर से लंड को दबा लेती।
रात को जगदीश राय तैयार हुए बेठा था। ठीक 12 बजे निशा उनके रूम पर घूस गयी।
निशा पूरी नंगी थी।
जगदीश राय: अरे वाह…आज मेरे कमरे में अप्सरा पधार रही है…
निशा: हाँ…आज आप मेरे इंद्रा भगवन है।।हे हे।।
जगदीश राय बिना कोई समय गवाये निशा पर टूट पड़ा।
कम से काम 4 बजे तक निशा को हर पोज़ में चोदता रहा।
निशा पापा की इस ताकत से वाक़िफ नहीं थी। वह 4 घंटे में कम से काम 6 बार झड चुकी थी।
निशा: पापा… प्लीज रुक जाओ…अब मैं और नहीं…
जगदीश राय: क्यों बेटी… क्या मजा नहीं आ रहा…।
निशा: मजा तो बहुत…आ रहा है… पर चूत दर्द कर रहा है… देखो तो कितना सुजा दिया है…।आपने।
जगदीश राय (तेज़ धक्का मारते हुए): अरे बेटी…यह तो आम बात है…नयी नयी चूदी हुई चूत थोड़ा सूज जाती है…खुद ब खुद संभल जाएगी…
निशा: नहीं पापा…और नहीं…।मैं थक गयी हूँ।।।
जगदीश राय: पर…मेरा क्या होगा।।क्या तुम मुझे ऐसे ही…
निशा: क्या मैं मेरे प्यारे पापा को तड़पती छोड सकती हु…।
निशा तुरंत 69 पोजीशन में कुद गयी। और अपने पापा का विशाल लंड मुह में ले के चूसना शुरु किया। लंड पर लगे अपने चूत का रस भी उसे भा गया था।
निशा अपने जीभ और होंठ से पापा के लंड को दबा दबा कर ज़ोर लगा कर चूस रही थी। जगदीश राय को ऐसे चूसाई ज़िन्दगी में नहीं मिली थी।
जगदीश राय: निशा बेटी…मैं झडने वाला हूँ…।
और फीर जगदीश राय तेज़ी से झड़ना शुरू किया।
निशा ने तुरंत ही अपना मुह हटा लिया और सारा वीर्य उसने हाथों से तेज़ी से हिलाकर निकल दिया।
जगदीश राय (तेज़ सासो से) : मजा आ गया बेटी…।बहुत…।
निशा:ह्म्म्मम।
जगदीश राय: पर…।तुमने…।
निशा: क्या पापा…
जगदीश राय: तुमने मुह क्यों हटा लिया…।क्या तुम्हे वो लेना पसंद नहीं…
निशा: क्या पापा…
जगदीश राय: वीर्य बेटी…।जो तुम आज कल के लोग कम बोलते है…
निशा: नहीं पापा…मुझे…मुँह में लेना पसंद नहीं…पर आपको पसंद है तो मैं ज़रूर ट्राई करूंगी…एक दिन…।
जगदीश राय: कोई बात नहीं बेटी��। मैं तो तुम्हारे हुस्न से ही खुश हूँ।
और यह कहते हुए जगदीश राय ने एक ज़ोरदार चुमबन निशा की चूत पर लगा दिया।
निशा : आअह्ह्ह…पापा।
पहिर निशा उठ कर नंगी अपने रूम की ओर चल दी…।
रेज़र ठीक से चल नहीं रहा था। नया होने के बावजुद।
निशा (मन में): उफ़… कहाँ मैं फस गयी इस रेजर के साथ…।अब चूत साफ़ कैसे करूंगी…।पापा को वादा किया था उनके बर्थडे प्रेजेंट का …।मखमल की चूत पेश करने वाली हु…और यहाँ यह कम्बख्त रेजर की धार निकल गयी है।।
निशा अपनी चूत पर रेजर तेज़ी से चलाने लगी और अचानक रेजर की ब्लेड चूत के होठ के चमड़े से हिल गया।
निशा अचानक चिख पडी। खून के धार चूत के चमड़ी से निकल पडी। निशा ने तुरंत डेटोल लगा लिया। और आराम पाया।
निशा (मन में): लगता है आज पापा को रस के साथ मेरे चूत का खून भी चूसने का मौका मिल चूका है…हे हे
आज जगदीश राय का बर्थडे था। और निशा ने पापा से वादा किया था की उन्हें वह एक जबरदस्त यादगार तोहफा देगी।
निशा अपने साफ़ सुथरी चूत को मिरर में देखकर खुश हो गयी।
निशा (मन में): हम्म्म…चूत रानी-जी…आज तो तुम्हारी खैर नहीं…आज चाहो तुम कितने आँसू बहाओ पापा तुम्हे नहीं छोड़ेंगे…और आज मैं भी उन्हें नहीं रोकूंगी…आज खुलकर उनको अपना रस पीलाना।
निशा अपनी पहली चुदाई के आज 2 महिने गुज़र गए थे। जगदीश राय और निशा बिना रुके लगभग हर दिन चुदाई का पूरा आनन्द ले रहे थे।
और अब निशा भी जगदीश राय की तरह घण्टो चुदाई के लिए पूरा सहयोग देती।
निशा की जवान टाइट चूत अब जगदीश राय के बड़े लंड के 2 महीनो से चले लगातार झटको से खुल चुकी थी।
कैसे कौनसा भी पोज़ नहीं था जो जगदीश राय ने निशा पे नहीं अपनाया हो। कामसूत्र के कई पोज़ जगदीश राय निशा पर अपना चूका था।
हर दिन सुबह नाशते से पहले किचन में खड़ी रहकर चाय से पहले निशा अपने पापा से चूत चटवाती।
कभी कभी मौका मिलते ही जगदीश राय निशा को खड़े खड़े चोद भी देता। दोनों कई बार आशा से बाल-बाल बचे थे।
पहली दिन की कठोर चुदाई के बाद जब निशा कुछ दिनों तक पैर फ़ैला के चलती तो आशा ने उससे पूछा था।
आशा: दीदी…क्या हुआ तुम्हे…चोट लगी है क्या…ऐसे चल रही हो…
निशा: अरे नही।।बस…पीरियड चल रहे है।।फ्लॉव ज़रा ज्यादा है…पैड गिली हो चुकी है…
निशा अब भी जानती थी की आशा को उसका जवाब हज़म नहीं हुआ था। और निशा यह सब सोचकर हँस पडी।
आशा ही क्यु, बल्कि उसके कॉलेज फ्रेंड्स भी उसकी बढ-गए चूचे और गांड देखकर पूछते।
केतकी: कयू।।निशा।।बता ही दो।।कोंन सा भवरा है जो इस फूल को तँग किये जा रहा है…
निशा: क्या बक रही है…ऐसा कुछ भी नहीं…
केतकी:अरे छोड़…तेरी चेहरे की ग्लो बता रही है…तेरा भी बॉयफ्रेंड है।।तु मुझसे नहीं छुपा सकती…समझी…तेरे हर पार्ट्स बता रहे है की कितनी सर्विसिंग हुई है इनमे।।
निशा (मन में): अब क्या बताऊ केतकी…चाहते हुए भी मैं अपने इस रहस्यमय बॉयफ्रेंड के बारे में बता नहीं सकती।
ओर निशा सिर्फ मुस्कराती।
निशा जगदीश राय के 2 महीनो से चल रहे चुदाई के बारे में सोचकर शर्मा गयी।
निशा (मन में): जब शुरू हुआ था तो पापा बहुत ही धीरे धीरे चोदते थे और ज्यादा से जयदा आधा घंटे तक वह टिक पाती। पर अब २ घण्टो तक लगे रहते है। लंड भी चूत के अंदर पूरी जड़ तक पेलते है … और उसी तेज़ी से ��ूरा बाहर निकालकर फिर से जड़ तक पेल देते है…लगता है पापा ने चुदाई में मास्टरी कर ली है…हे हे
और आज भी यही होने वाला था, यह उसे पता था।
सलिए निशा ने पिछले 1 वीक से जगदीश राय को हाथ भी लगाने नहीं दिया था। जगदीश राय रोज़ सुबह उसकी चूत की रस के लिए भीख माँगते थे। निशा ने तंग आकर कहा।
निशा: पापा…मैं आपके बर्थडे के लिए ख़ुदको बचाके रखी हूँ।।और आप कण्ट्रोल नहीं कर सकते।।।
जगदीश राय: बेटी …।अब रहा नहीं जाता…सिर्फ थोड़ा चूत चूसने दो।। बस 2 मिनट…
निशा: नहीं …चूसना तो नॉट एट आल…।हाँ अगर रस ही चाहिये तो मैं निकालकर दूँगी…।बस सिर्फ आज।।…बादमें पूछ्ना भी नहीं…प्रॉमिस…
जगदीश राय (उतावले होकर): हाँ हाँ बेटी।।प्रोमिस…प्रोमिस।।
निशा ने तब मैक्सी ऊपर करके अपनी 2 उंगलिया चूत में पूरा जड़ तक घुसा दी, और कुछ एक मिनट बाद उंगलिया टेढ़ी करते हुये बाहर खीच लिया। उँगलियों पर ढेर सारा रस देखकर , तब जगदीश राय ही नहीं निशा भी चौक गयी थी।
जगदीश राय ने जिस तेज़ी से निशा के हाथ के ऊपर टूट पड़ा , वह देखकर निशा को पापा पर हसी भी आयी और तरस भी।
तो वह जानती थी, की आज उसके पापा उसकी चूत का हाल बुरा करने वाले है। और वह भी मन-ही-मन यही चाहती थी।
वही जगदीश राय के पिछले 2 महीनो में एक नया उमंग आ गया था।
पहले जो अपने वास्ते, बाल और बॉडी का ध्यान भी नहीं रखता हो आज घण्टो मिरर के सामने गुजारता।
अपने हेयर डाई करता, परर्फुमस, टी शर्ट एंड जीन्स की शॉपिंग लगतार शुरू की थी। हर रोज़ सुबह , निशा की चूत रस और चाय पिकर, वाक पर भी जाता।
पास के गुप्ताजी भी खिल्ली उडाने लगे।
गुप्ताजी: अरे राय साहब…लगता है दूसरी वाली जल्द ही लानी वाले हो…खुद को देखो…सलमान खान से कम नहीं लग रहे हो अब…
जगदीश राय सिर्फ मुस्कुरा देता।
पापा के आज बर्थडे के लिए निशा ने विस्तार से प्लान्स बनाये थे।
उसने ठान लिया था की आज वह कॉलेज नहीं जायेगी और आज सारा दिन अपने पापा के बॉहो मैं गुजारेगी।
जगदीश राय , सुबह तेज़ी से उठा। आज का दिन का महत्व वह जानता था।
आज पहली बार उसे अपने जनम होने पर नई ख़ुशी मिली थी।
वह जल्द से मुह हाथ धोकर किचन में पहुच गया। निगाहे निशा को ढून्ढ रही थी।
पर निशा नहीं थी वहां। आशा खड़ी थी, एक छोटी सी शॉर्ट्स पहने।
जगदीश राय: अरे आशा…।क्या बात है…तुम यहाँ…
आशा: हाँ पापा…निशा दीदी की तबियत ठीक नहीं है…सो उसने मुझे कहाँ चाय बनाने को। यह लीजिये
जगदीश राय पर जैसे बिजली गिर पडी।
जगदीश राय: क्या कह रहे हो बेटी…सब ठीक तो है…यह कैसे हो गया अब…
आशा , पापा का यह बरताव देखकर आश्चर्य जताते हुयी।
आशा: रिलैक्स पापा…क्या हो गया ऐसे…ठीक है वो।। बस थोड़ी सर दर्द है…आप तो ऐसे डर रहे हो जैसे…
जगदीश राय (खुद को सम्भालते हुए): ओह अच्छा…ठीक है…ठीक है…
आशा: और हाँ दीदी ने कहाँ है की आज वह नाश्ता बना नहीं पायेगी , इसलिए आप भी बाहर से खा लेना और हम भी स्कूल जाते वक़्त नुक्कड़ से खा लेंगे।
जगदीश राय (उदासी से): ठीक है
आंसा: अरे और एक बात पापा…
जगदीश राइ: और क्या।
आंसा : हैप्पी बर्थडे पापा।
और आशा अपने पापा के पास आयी और झूक कर पापा के चेहरे को अपने सीने से लगा लिया और माथे पर एक किस दे दि।
जगदीश राय (मुस्कुराते हुए): थैंक यू बेटी। चलो अब तुम लोग स्कूल जाओ…मैं भी तैयार होता हूँ।
थोड़ी ही देर में आशा और सशा , पापा को एक बार विश करके, स्कूल के लिए चल दिए।
जगदीश राय अपने किस्मत को गाली देते हुए , रेडी होने के लिए कमरे की ओर चल दिया। उसने सोचा की निशा से उसकी हालत पूछ ले पर सोचा की वह सो रही होगी।
जगदीश राय, जब कमरे में घुस, तो देखा की उसके बेड पर एक पैकेट पडा है।
चौंककर, जगदीश राय ने उसे खोला , तो देखा की उसमे लेटर और कुछ कपडे है। जगदीश राय ने लेटर खोला। वह निशा ने लिखी थी।
निशा: "प्यारे पापा, फर्स्ट ऑफ़ आल हैप्पी बर्थडे। आपके इस सुनहरे दिन के लिए पूरा प्लानिंग मैंने किया है। आपको मेरे कहे अनुसार करना होगा।
पहले, शेव करेंगे।
फिर मैंने इस पैकेट में एक क्रीम रखी है। इससे अपने लंड, टट्टो और गांड पर मलिये। और १० मिनट तक रखिये। यह हेयर-रिमूवल क्रीम है। मैं आपको जैसे आप पैदा हुए वैसे देखना चाहती हूँ।
फ़िर आप बाथ लीजिये। और बैग में एक सेंट रखी है। उसे लगाइये।
फिर मैं ने एक स्ट्रिंग अंडरवियर रखी है। वह पहन लीजिये। और बिना शर्ट के, सिर्फ लूँगी पहनकर निचे डाइनिंग टेबल पर आईए। मैं वहां आपके नाश्ता के साथ तैयार हूँ।"
जगदीश राय निशा का यह लेटर पढकर ख़ुशी से झूम उठा।
वह तेज़ी से शेविंग सेट की और बढा। हेयर रेम्योविंग क्रीम लंड और टट्टो पर फैला दिया।पर फिर उसे ख्याल आया की निशा ने गांड का भी ज़िकर किया था। वह समझ नहीं पाया की उसे उसके गाण्ड से क्या दिलचस्पी हो सकती है।
पर वह आज कोई चांस नहीं लेना चाहता था। उसने ढेर सारा क्रीम लेकर गाण्ड पर मल दिया।
इससे उसके टट्टो पर थोड़ी जलन होने लगी। पर वह उसे सहन करता रहा।
जब टट्टो पे जलन ज्यादा हो गया तो वह तुरंत नहाने चला गया।
नहाने के बाद जब जगदीश राय ख़ुदको देखा तो हसी रोक नहीं पाया।
लंड और निचला हिस्सा किसी बच्चे की तरह साफ़ था।
वह निशा के इस प्लानिंग से बेहद खुश हुआ।
फिर वह निशा की दी हुई स्ट्रिंग अंडरवियर पहन लिया। स्ट्रिंग अंडरवियर सिर्फ उसके लंड और टट्टो को संभाल रहा था।
गांड पूरी खुली थी और अंडरवियर की रस्सी अभी-साफ़-हुई-गांड के छेद को छेड रहा था। और उससे जगदीश राय के लंड पर प्रभाव पड़ रहा था।
जगदीश राय (मन में): वह निशा ने कितनी बारीकी से पूरी प्लानिंग की है…कहाँ से सीखी यह सब उसने…
फिर बिना समय गंवाए जगदीश राय एक साफ़ लूँगी पहन लिया और डिओडरंट लगा दिया।
और एक बर्थडे-प्रेजेंट-के-लिए-उतावले बच्चे की तरह डाइनिंग टेबल की तरफ निकल पडा।
जब जगदीश राय अपने रूम का दरवाज़ा खोला तो पुरे घर में कोई आवाज़ नहीं सुनाई दे रहा था।
उसने कमरे के दरवाज़े से आवाज़ लगाई।
जगदीश राय: निशा…कहाँ हो बेटी…निशा।
निशा: पापा…वहां क्यों रुक गए…आईये…नीचे आईये…मैं यहाँ डायनिंग टेबल पर आपका इंतज़ार कर रही हु…
जगदीश राय निशा की मदहोश आवज़ सुनकर धीरे धीरे डायनींग टेबल के तरफ बढा।
डायनिंग टेबल पर जब वह पंहुचा तो ताजूब रह गया। डाइनिंग टेबल पर खाना नहीं लगा था, बल्कि निशा डाइनिंग टेबल के ऊपर बैठी हुई थी।
और निशा एक सफ़ेद मखमल के चद्दर से पूरी लिपटी हुई थी। उसने लाइट मेकअप भी कर रखी थी।
निशा: क्या आपको भूख लगी है।
जगदीश राय (आँखों में घूरते): भूख तो बहुत लगी और सिर्फ तुम ही मिटा सकती हो।
निशा: कोई बात नहीं…आपके हर भूख का समाधान है मेरे पास…आईये…यहाँ पास आइये…
जगदीश राय निशा की ओर बढा। और अचानक निशा ने अपना चद्दर हटा लिया।
निशा: देखिये यहाँ क्या है आपके लिये।।
और जगदीश राय चौक पडा।
निशा पूरी नंगी थी। डाइनिंग टेबल के ऊपर पूरी पैर खोले बेठी थी। पर निशा की चूत दिखाई नहीं दे रही थी।
पुरे चूत पर मख्खन लगा हुआ था।थोड़ा सा माखन निशा की चूत के होठो के साथ हिल रहा था पर चूत पूरी छिपी हुई थी।
और दोनों बड़े चूचे पूरे खुले थे, पर निप्पल पर संतरे का एक गोल टुकड़े से घेरा हुआ था और निप्पल पर लाल अँगूर लगा हुआ था।
निशा की भरी मोटी गांड डाइनिंग टेबल पर बैठकर फ़ैल् गयी थी। और मादक बड़ी गोरी जांघ पर थोड़ा सा पानी लगा हुआ था।
निशा किसी हुस्न की परी लग रही थी।
जगदीश राय मुह खोले निशा को देखता रहा।
निशा:पापा।।हैप्पी बर्थडे।।आपकी बर्थडे ब्रेकफास्ट रेडी है…जो चाहे खा सकते हैं…बोलिये कहाँ से शुरू करेंगे…मखन से या अँगूर से…।
जगदीश राय: बेटी…।मैं तुम्हारा दिवाना हो गया बेटी…।…मैं…मैं तो माखनचोर बनना चाहता हु…देखना चाहतु की मखन के अंदर क्या छुपा है।।।
निशा: जी।। ठीक है…देखिये।
और निशा ने पैर को पूरा फैला कर जाँघों को दाया-बाया तरफ कर दिया।
जगदीश राय आकर चेयर पर बैठा और अपना सर आगे ले जाकर निशा की चूत पर लगे मखन को देखता रहा।
निशा: एक बात…नाश्ता आप सिर्फ मुह से ही खाएंगे…हाथो का इस्तेमाल नहीं करेंगे…मतलब दोनों हाथ टेबल के निचे होने चाहीये…सम्झे।
जगदीश राय तुरंत हाथो को निचे सरका दिया। निशा को पापा के तेज़ सासो का एहसास अपने जांघ और चूत पर मह्सूस हुआ।
फिर जगदीश राय ने अपनी जीभ बाहर निकाल एक बड़ी सा प्रहार लगा दिया। जीभ ने पुरे चूत की लम्बाई नापी। और ढेर सारा मखन अपने मुह में उतार लिया।
निशा के मुह से एक बड़ी सिसकी निकल पडी।
जगदीश राय को पहले वार पर सिर्फ मखन मिला था। फिर उसने और गहरायी में घुसना चाहा। और अपने होठ और जीभ को मखन के अंदर घूसा दिया।
और मखन के साथ उसे निशा के मुलायम चूत का स्पर्श हुआ। उसने एक भुक्खे कुत्ते की तरह चूत और मखन को खाने लगा।
निशा ��पने पापा का इस तरह चाटना सह नहीं सकी और वह टेबल पर ही उछल पडी।
पर उसके पापा ने उसके चूत को अपने मुह में दबोच रखा था। और उसे हिलने नहीं दे रहे थे।।
जगदीश राय कभी मखन चाटता तो कभी चूत चबाता। टेबल पर मखन के बूँद और जगदीश राय के लार टपक कर गिला हो चूका था।
निशा अब अपने पापा को पूरा चूत दावत पर पेश करना चाहती थी। उसने पीछे मुड़कर अपने दोनों पैर कंधो तक ले गयी और अपने चूत को पूरी तरह से खोलकर अपने पापा के सामने रख दिया।
इससे निशा की बड़ी सी क्लाइटोरिस मक्खन के अंदर से अपना झलक दिखा दिया। और उसकी गांड भी ऊपर होने के कारण , गांड के छेद ने भी अपनी मौजुदगी बतलायी।
चूत से मखन गलकर गांड के छेद तक पहुच रहा था। और निशा के सासों के साथ गांड का छेद भी अन्दर-बाहर हो रहा था। और मखन की कुछ बूंदे गांड के छेद के अंदर घूस रही थी।
जगदीश राय यह दृश्य देखकर पागल हो गया और उसने पूरी कठोरता से निशा की क्लाइटोरिस को मक्खन के साथ अपने होठो से दबोच लिया। और दाँतों से धीरे-धीरे चबाते हुए , एक जोरदार चुसकी लगा दिया।
निशा : आआआआअह्ह्ह्हह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह गुड़, पाआआपपपपपा।
तुरन्त ही जगदीश राय ने क्लाइटोरिस होठो से खीच दिया और निशा टेबल पर मचल उठी।
जगदीश राय , हाथों के बिना , निशा को सम्भालना मुस्किल हो चला था। पर फिर भी उसने हाथों का ईस्तेमाल नहीं किया।
जैसे ही निशा थोड़ी सम्भली, जगदीश राय ने अपना बुरा जीभ चूत के अंदर घुसा दिया। मक्खन के कारण जीभ अंदर आसानी से घूस गई, पर जगदीश राय पूरा घूसा नहीं पा रहा था।
निशा (तेज़ सासो से): क्या मेरे पाआपप।।को…।और…भूख…लगी…है…।
जगदीश राय (मक्खन से होठ चाटते हुए):हाँ बेटी…हाँ बहूत भूख लगी है…।
निशा : तो फिर …।आप को आपको खाना चूस कर बाहर निकालना होगा…।थोड़ी मेहनत…करनी …पड़ेगी…ऐसे नहीं मिलेगा…
जगदीश राय समझ नहीं पाया। पर उसने अपने पुरे मुह को खोलकर निशा की चूत को भर दिया और एक ज़ोरदार चुसकी ली।
निशा: और ज़ोर से पापा…और ज़ोर से।।
जगदीश राय चुसकी लगाता गया और निशा चिल्लाती गयी।
निशा अब अपने पापा के लगतार चुसकी से मचल रही थी, उछल रही, तड़प रही थी। और वह झडने के कगार पर थी।
और तभी जगदीस राय अपने होंठ पर केले का स्वाद पाया। उसने तुरंत अपना होठ हटाया और चूत के तरफ देखता रहा। चूत के होठ से छुपी , रस से लथपथ , केले (बनाना) ने स्वयं को प्रकट किया।
निशा : यह लिजीये पापा…।आप का …बर्थडे ब्रेकफास्ट… चूस लिजीये …खा लीजिये…
जगदीश राय यह नज़ारे देखते ही मानो झडने पर आ गया।
वह भेड़िये की तरह चूत को चूसने लगा, खाने लगा।
केला , निशा की मधूर चूत की रस से लथपथ, धीरे धीरे बाहर निकल रहा था, और जगदीश राय कभी उसे खा लेता तो कभी उसे होठ से निशा की चूत पर मसल देता। और फिर निशा की चूत को मक्खन, केला और चूत रस के वीर्य के साथ चबा लेता।
निशा: पापपपपा…। खाईएएएए पापा…।पुरा ख़ा लिजिये…।मेरी चूत का रोम रोम चबा लीजिये…।
और फिर निशा ने अचानक से अपना पूरी गांड ऊपर उछाल लिया। साथ ही जगदीश राय ने भी अपने चेहरे को गांड के साथ चिपकाते हुए , होठ को चूत से अलग नहीं होने दिया। निशा कुछ सेकंड ऐसे ही गांड को उछाले रखी और फिर एक ज़ोर से चीख़ दी।
निशा: आह आह……।ओह्ह गूड……आहः
और निशा तेज़ी से झडने लगी। निशा की चीख़ इतनी ज़ोर की थी की पड़ोस के लोगो को सुनाई दिया होगा।
चूत से रस उछल कर जगदीश राय के मुह, गले और छाती पर फ़ैल गया।
निशा पागलो की तरह उछल रही थी। बचा हुआ केला चूत की रस के साथ चूत से निकल कर टेबल पर गिर पडा।
पुरा समय जगदीश राय के होठ निशा के चूत का साथ नहीं छोडा। और निशा ने भी चूत को जगदीश राय के मुह के अंदर तक धकलते झड रही थी। वह चाहती थी की चूत रस का एक बूंद भी बेकार नहीं होना चाहिये।
कोई 5 मिनट बाद निशा शांत हुई। और टेबल पर ढेर हो गयी। उसका सारा शरीर कांप रहा था।
फिर धीरे से निशा ने आख खोला। उसके पापा अभी भी , अपने ही धुन में, होठ चूत पर लागए मक्खन और चूत के रस को चूस और चाट रहे थे।
निशा हँस पडी।
निशा: यह क्या पापा…आप ने तो मुझे झडा ही दिया…और आपने केला तो पूरा खाया ही नही। क्या आपको पसंद नहीं आयी।
जगदीश राय: कभी ऐसे हो सकता है बेटी…मैं तो बस तुम्हारे रस को खोना नहीं चाहता था…यह लो।।
जगदीश राय ने टेबल पर पड़े निशा के चूत रस में भीगा हुआ केले का टुकडा, अपने मुह से कुत्ते की तरह उठा लिया।
और एक भाग अपने होठ पर रख दूसरा भाग निशा की मुह के तरफ ले गया।
निशा ने तुरंत केले को खा लिया।
निशा: छी…आपने तो मुझे मेरा ही रस चखा दिया…वैसे बुरा नहीं है…हे हे…
जगदीश राय: पर अब उठने की सोचना भी मत…।मेरा नाश्ता हुआ नहीं है अभी…
निशा: आप जब तक चाहे आज नाश्ता कर सकते है…।में कुछ नहीं बोलूंगी…
जगदीश राय ने, बड़ी ही बारीकी से चूत चाटकर साफ़ करना शुरू किया।
जगदीश राय: बेटी…मैं तुम्हारा गांड भी चाटना चाहता हु…।
निशा (मुस्कुराकर): क्यों नहीं…।
और निशा अपने दोनों हाथो से अपने बड़ी सी गांड के गालो को अपने पापा के लिए खोल दिया।
गाँड के खोलते ही जगदीश राय ने देखा की काफी सारा मक्खन और रस गांड के दरार पर फसा हुआ है।
वही टेबल के ऊपर निशा गांड खोले लेटी रही और यहाँ जगदीश राय गांड को मदहोशी से चाट रहा था।
जगदीश राय: वाह बेटी मजा आ गया…।क्या नास्ता था…ऐसे नास्ता के लिए तो मैं रोज पैदा होना चाहूँगा…।वैसे क्या नाम है इस नाशते का…।निशा बेटी
निशा (शरारती ढंग से इतराते हुए): यह है "निशा का बानाना स्प्लिट",…।।हे हे हे।।
जगदीश राय हस्ते हुए निशा की चूत पर एक ज़ोरदार चुम्बन चिपका देता है।
निशा अपने हाथ से पापा के सर को पकड़कर अपने चूत में दबा देती है।
जगदीश राय: लगता है मेरे बेटी का चूत और भी प्यार माँग रही है।
निशा अपने दोनों हाथो से चूत को पूरी खोल देति है।
निशा: प्यार के बहुत तरसी है यह।।
जगदीश राय का पूरा मुह निशा की चूत में फस जाता है और वह भवरे की तरह रस चूस चूस कर निकालने लगता है।
थोड़ी देर बाद।।
जगदीश राय: बेटी …अब रहा नहीं जाता…मेंरा लंड और रुक नहीं सकता।।
निशा: वाह पापा…आपका नाश्ता हो गया…मेरे नाश्ता का क्या…।
जगदीश राय:मतलब…।
निशा अपने पैरो से अपने पापा को दुर करती है…
निशा: चलिये …हटिये…
और टेबल पर से छलांग लगाकर किचन की और जाती है। निशा की नंगी गाँड , मटकती हुई , जगदीश राय के लंड को और भी कड़क बना देती है।
निशा के हुकुम के अनुसार वह उसे हाथ नहीं लगा सकता था।
और निशा अपने साथ एक कटोरी में कुछ ले आती है।
निशा: अब आप की बारी…चलिए…टेबल पर जैसे मैं बेठी थी वैसे बैठ जाईये…
जगदीश राय बिना कुछ कहे टेबल पर चढ़ जाता है। और अपना पैर फैला देता है।
गदीश राय का 9 इंच का लंड स्ट्रिंग अंडरवियर से झाकने की बहूत कोशिश रहा है।
निशा : अब आप अपने हाथ पीछे ही रखेंगे …समझे…।
निशा धीरे से एक चुम्बन जगदीश राय के लंड पर , अंडरवियर के ऊपर से लगा देती है।
जगदीश राइ: अह्ह्ह्हह…।
जगदीश राय , आने वाले मज़े को सोचकर अपनी ऑंखें बंद कर लेता है।
निशा अपने पापा के लंड के आस पास अंडरवियर के ऊपर से चूमने लगती है …चाटने लगती है। वह अपने पापा को और गरम करना चाहती थी।
जगदीश राय का लंड जैसे फ़टने के कगार पर आ गया था।
जगदीश राय: बेटी …अब रहा नहीं जाता…।ले लो इसे अपने गरम मुह में…।
जगदीश राय को कटोरी ने आहट सुनि और अचानक उसे अपने लंड पर तेज़ गर्मी महसूस हुई।
निशा ने अपने पापा के लंड पर थोडा सा गरम शहद (हनी) डाल दिया था।
और शहद इतना गरम था की अंडरवियर के ऊपर गिरने के बावजूद, लंड को चटका लग ही गया।
जगदीश राय दर्द के मारे चीख़ पडा।
जगदीश राय: बेटी यह क्या…।आआह्ह्ह।
निशा ने तुरंत अपने पापा के लंड को अंडरवियर के ऊपर से मुह में ले लिया और शहद चाटने और चुसने लगी।
जगदीश राय दर्द और उतेजना के बीच में आके फस गया। उसे समझ नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है।
दरद के मारे लंड सोना चाहता था पर निशा के होठो ने एक अलग गर्मी पैदा कर दी थी।
जगदीश राय: ओह्ह्ह्ह बेटी…।।आह…।ओह बेटी…।
कुछ समय चाटने के बाद , निशा ने तुरंत पापा का अंडरवियर उतार फेका। ऐसा लग रहा था की वह अपने पापा को दर्द दे रही है।
जगदीश राय का पूरा लंड गरम शहद के वजह से लाल हो चूका था , पर लंड अभी भी पूरा खड़ा था।
निशा ने लंड को हाथ भी नहीं लगाया। और सीधे पापा के टट्टो को चूम लिया। दोनों टट्टे ऊपर नीचे उछल रहे थे।
निशा कभी चाटती, तो कभी टट्टो के अंडो को मुह में लेके चूसती।
जगदीश राय: वाहहहह …।माज़ा आ गया।
तुरन्त निशा ने गरम शहद के कुछ बूँदे टट्टो पे छिडक दिया।
जगदीश राय टेबल पर ही उछल पडा। और तडपने लगा, गरम शहद गिरते ही टट्टे दर्द के मारे उछलने लगे।
जगदीश राय टट्टो को हाथ से साफ़ करने हाथ आगे बढ़ाये। निशा ने तुरंत उनका हाथ पकड़ लिया।
निशा: हाथ पिछे…।।
जगदीश राय: क्याआ…कर रही हो बेटीई…दर्द हो रहा है…।।निकालो इससे…
निशा: किसे…इसे…
कहते हुए निशा ने कुछ गरम शहद की बूँदे और टट्टो बे गिरा दिया।
जगदीश राय: ओह्ह्ह मा…।आआअह्ह्ह्ह
लंड अभी दर्द के मारे सिकुड़ना शुरू हुआ।
निशा ने तुरंत लंड को मुह में ले लिया और बेदरदी से चूसने लगी।
पर उसने गरम शहद को टट्टो पर से साफ़ नहीं किया।
अब टट्टो के दर्द के बावजूद निशा की चूसाई इतनी अच्छि थी की लंड फिर से खड़ा होना शुरू हुआ। और देखते ही देखते पुरे आकर में आ गया।
निशा लंड चुसती रही और टट्टो पे गरम शहद फेकती रही। जगदीश राय तडपता रहा।
फिर निशा ने धुआँधार चूसाई शुरू की।
निशा: अब मैं रुक नहीं सकती…मुझे आपका मलाई चाहिए…दीजिये मेरा नास्ता ।
जगदीश राय: रुकना नहीं बेटी…मैं आने ही वाला हु…।
निशा ने कुछ 5 मिनट बाद अपने पापा का लंड फूलते हुए महसूस किया। वह समझ गयी की पापा अभी झडने वाले है।
वह लंड चुसती रही।
जगदीश राय: आह…बेटी…यह…।ले…।तेराआ…नाश्ता…चूस ले।
तभी अचानक से निशा ने लंड बाहर निकाल लिया। और कटोरी उठाई और पूरा का पूरा बचा हुआ गरम शहद लंड पर पलट दिया।
लोहे जैसे गरम लौडे पर गरम शहद के गिरने से , जगदीश राय चीख़ पडा।
निशा के सामने अपने पापा का 9 इंच का मोटा लंड , भूरा कलर का शहद से लथपथ था, शहद में डूबा हुआ था।
शहद की गर्मी से दर्द और ओर्गास्म दोनों एक साथ महसूस हो रहा था।
जगदीश राय: यह क्या…नहीईई बेटी…।दरदडडड…।मेरा छुट रहा है।
और फिर निशा ने भूरे शहदः के भीतर से सफ़ेद वीर्य के छींटे उडती दिखाई दी। सफ़ेद रंग का गाढ़ा और भूरे शहद के सामान था।
फड्फडा कर लंड , लावा की तरह, उगलता गया। वीर्य 9 इंच की लंड की लम्बाई , भूरे शहद के ऊपर से तैर रही थी।
निशा, न होठ से न हाथो से लंड को सहला रही थी। खड़ा लंड खुद ब खुद हवा में झूलता हुआ झडते जा रहा था।
निशा बड़े ही आश्चर्य से दृश्य देखती रही।
और फिर अपने पापा का गरम शहद और गरम वीर्य में लथपथ लंड को पूरा मुह खोलकर भीतर ले लिया।
लंड मुह में आते हि, जगदीश राय ज़ोर का दहाड़ मारा और लंड और तेज़ी से झडने लगा।
निशा बड़ी ही एकाग्रता से शहद और वीर्य को चाटती जा रही थी।
आज पहली बार उसने वीर्य का स्वाद चखा था। और उसे बिलकुल भी बुरा नहीं लग रहा था। शायद शहद थोड़ी मदद कर रही थी।
निशा कूछ 10 मिनट तक शहद और वीर्य चाटती गयी.
आज पहली बार उसने वीर्य का स्वाद चखा था। और उसे बिलकुल भी बुरा नहीं लग रहा था। शायद शहद थोड़ी मदद कर रही थी।
निशा कूछ १० मिनट तक शहद और वीर्य चाटती गयी।
और जगदीश राय , हाफ्ता रहा। पूरा लंड लाल हो चूका था। लंड की चमड़ी दर्द कर रहा था।
निशा ने फिर टट्टो को भी चाटकर साफ़ किया।
कफी सारा शहद और वीर्य लंड से गलकर , टट्टो से सैर करके , गांड तक पहुच गयी थी।
निशा : पापा…चलिए …अपना पैर पूरा ऊपर कीजिये…।
जगदीश राय बिना कुछ कहे ,पैरो को कंधे तक ले गया। और निशा ने अपने पापा का साफ़ सुथरी गांड में से शहद और वीर्य चाटने लगी।
गाँड पर निशा की जीभ लगते ही जगदीश राय के लंड से वीर्य कुछ बूंद और निकल पडा।
जब निशा ने पापा के सब अंग शहद और वीर्य से साफ कर दिया, तो संतुष्ट होकर राहत की सास ली।
जगदीश राय: यह क्या था बेटी…मैं ने ऐसा कभी सोचा नहीं था।।।
निशा: क्यों आपको मजा नहीं आया…।
जगदीश राय:मज़ा तो बहुत आया…पर …पर…दर्द भी बहुत हुआ…देखो तो ।।मेरे लंड को…कैसा लाल हो गया है…अगले ४ दिन तक तो इसे हाथ भी नहीं लगा सकता…
निशा: आप ने तो कहा था न…जो सजा देना चाहे दे सकती हो…सो यह थी मेरी सजा…हे हे…याद आया…
जगदीश राय:ओह ओह…तो मेरी बेटी …अपनी पापा से बदला ले रही थी…
निशा:।हाँ जी…स्वीट बदला…।हा हा
जगदीश राय : चलो सजा तो पूरा हुआ…
निशा: जी नही…अब और सजा मिलेगी…रुको …चलो बैडरूम में…आपको तो अपनी निशा को आज पुरे दिन खुश करना था न।
जगदीश राय: अरे नही…अभी नहीं…।लन्ड तो बहुत जल रहा है…।
निशा हँस पडी।
जगदीश राय, उठकर बाथरूम जाने लगा।
तब निशा ने रोक लिया।
निशा: पापा…एक मिनट…ये क्या है…यहाँ तो प्यार से दो बूंद लटक रहे है।।
जगदीश राय के अर्ध-खडे लंड में वीर्य का बूंद लगा हुआ था।
निशा ने अपने मुठी से पापा के लंड को बेदरदी से अपनी तरफ खीच लिया।
चोट खाया हुआ लंड निशा के इस बरताव से जगदीश राय चीख़ पडा।।
जगदीश राय: अरे …बेटी… लंड नहीं…आह्ह्ह्हह
निश ने तुरंत लंड को मुह में ले लिया। और वीर्य चाट लिया।
लंड को मुँह के सलीवा से राहत महसूस हो रहा था।
जगदीश राय: अरे वाह… तुम्हारे मूह में आराम मिल रहा है…
निशा: इसलिए तो कहती हु चलो बेडरुम।पुरा दिन अब लंड मेरे मुह में होगा। ठीक है…
जगदीश राय: अच्छा…तो यह सब तुम्हारी चाल थी…लंड मुह में घुसाये रखने की…
निशा: हे हे…हाँ…आल माय प्लानिंग…एक मिनट…बैडरूम में जाने से पहले।।।
फिर निशा ने लंड को बाहर निकाला। लंड अब फिर से थोड़ा खड़ा हो चूका था।
निशा ने लंड को अपने मुठी में लेकर ज़ोर से दबाया। जगदीश राय गुर्राने लगा।
लंड के द्वार पर एक छोटी सी प्यारी सी वीर्य के बूंद उभरकर आयी।
निशा ने उसे चाटते हुए कहा।
निशा: गोल्डन ड्राप कैसे छोड सकती हूँ…चलिए अब…थोड़ी देर मुह से सहलाऊंगी …फिर चूत से…।
निशा- पापा आज आपका बर्थ डे है ना.. तो आप मुझे कितनी बार चोदोगे?
जगदीश राय- जब तक मेरे लंड में जान है तब तक चोदूँगा.
निशा- अच्छा ये बात है.. और कैसे कैसे चोदोगे वो भी बता दो.
जगदीश राय- अभी तो सीधे लेटा कर ही शुरू करूँगा. उसके बाद तुझे घोड़ी बनाकर चोदुँगा।उसके बाद गोद में लेकर चोदूँगा, फिर तुझे अपने लंड के ऊपर बैठाकर कुदवाऊंगा.. तू बस मज़े लेना.
निशा- इतनी बार चोदोगे तो मैं थक नहीं जाऊंगी.. फिर कैसे मज़े?
जगदीश राय- हा हा हा… ऐसे कैसे थकने दूँगा मेरी जान को.
बीच बीच में अपना जूस भी पिलाता रहुँगा मेरी जान।
दोनों में तकरार चलती रही और इस तकरार के साथ प्यार भी हो रहा था. अब जगदीश राय निशा को बेदर्दी से रगड़ रहे थे. उसके मम्मों को ज़ोर ज़ोर से दबा रहे थे, कभी चूस रहे थे।काट रहे थे।
निशा- उम्म्ह… अहह… हय… याह… पापा दुख़ता है.. आह.. नहीं उफ ऐसे चूसो.. मेरी चुत को भी चाटो ना आह.. सस्स आह…
अब दोनों उत्तेज़ित हो गए थे. जगदीश राय ने निशा को ऊपर लेटा लिया और दोनों 69 के पोज़ में आ गए. अब ज़बरदस्त चुसाई शुरू हो गई और निशा की चुत का सारा दर्द गायब हो गया. उसमें खुजली होने लगी, जो सिर्फ़ लंड से ही दूर हो सकती थी.
निशा- आह.. सस्स पापा बस.. अब बर्दाश्त नहीं होता.. घुसा दो अपना अज़गर अपनी बेटी की चुत में.. उफ इसमें बहुत आग लगी है.
जगदीश राय ने निशा के पैरों को कंधे पे रखा और लंड के सुपारे को चुत पे टिका कर हल्के से धक्का मारा. उनका आधा लंड चुत में चला गया और निशा की चीख निकल गई.
जगदीश राय पर कोई असर नहीं हुआ उन्होंने लंड को पूरा बाहर निकाला और एक जोरदार झटका मारा, अबकी बार पूरा लंड चुत में समा गया.
निशा- आह ओह पापा आह.. आपने तो कहा था अब दर्द नहीं होगा ओफ… मर गई..
जगदीश राय- मेरी बेटी ये थोड़ी देर होगा.. ले चुद अपने पापा से आह.. ले आह…
जगदीश राय ताबड़तोड़ चुदाई करने लगे और हर झटके पे निशा की चीख निकल जाती।
करीब 20 मिनट तक जगदीश राय दे दनादन अपनी बेटी की चुदाई करते रहे, तब कहीं जाकर निशा की चुत में लंड अड्जस्ट हुआ. अब दर्द मीठा हो गया था और चुत में पानी रिसने लगा था, जिससे लंड को अन्दर बाहर होने में आसानी हो गई. अब निशा की चुत में खुजली भी बढ़ गई, अब वो भी मजा लेने लगी थी.
निशा- आ आह.. फक मी पापा.. आह.. फक मी हार्ड आइआह.. सस्स फाड��� दो मेरी चुत को आह.. नहीं ज़ोर से करो पापा आह.. मेरी चुत गई पापा चोदो मुझे आह आह फास्ट करो पापा और फास्ट आ आह…
निशा की उत्तेजना अब चरम पर पहुँच गई थी. उसकी चुत से रस की धारा बहने लगी. गर्म रस जब जगदीश राय के लंड से टकराया तो उन्होंने स्पीड और बढ़ा दी और निशा को हावड़ा एक्सप्रेस की स्पीड से चोदने लगे.
निशा का पानी निकल चुका था, वो बेजान सी होकर पड़ गई, मगर जगदीश राय अभी कहाँ झड़ने वाले थे, वो तो मज़े से निशा की चुत चोदने में लगे हुए थे.
निशा- आह.. पापा.. बस भी करो आह.. मेरी चुत में जलन होने लगी है.. थोड़ा रेस्ट तो दो आह.. प्लीज़ मान जाओ ना आह…
जगदीश राय को निशा की हालत पर तरस आ गया, उन्होंने एक झटके में लंड बाहर निकाल लिया और फ़ौरन निशा को बैठा कर उसके मुँह में लंड घुसा दिया. निशा कुछ समझ ही नहीं पाई और जगदीश राय अब उसके मुँह को चोद���े लगे।
थोड़ी देर निशा ने मज़े से लंड को चूसा. उसके बाद इशारे से पापा को कहा कि अब वापस चुत में पेल दो. तब जगदीश राय ने उसको घोड़ी बनाया और उसकी गांड को कस के पकड़ कर शॉट मारने लगे. निशा को अब मजा आने लगा था. वो गांड को हिला हिला कर चुदने लगी.
करीब 30 मिनट तक जगदीश राय निशा की पलंगतोड़ चुदाई करते रहे. उस दौरान वो दो बार झड़ गई. उसके बाद जगदीश राय ने अपना सारा रस उसकी चुत में भर दिया.
इस चुदाई के बाद दोनों बिस्तर पे लेटे छत की तरफ़ देखने लगे.निशा की हालत देखने लायक थी, वो लंबी लंबी साँसें ले रही थी उसके पापा ने बहुत चोदा था आज उसे… और जगदीश राय उसके सीने से चिपके हुए बस ऊपर देख रहे थे.
निशा मन ही मन सोच रही थी ” आखिर पापा को खुश कर दिया मैंने!”
दोनों थोड़ी देर दोनों शांत रहे, उसके बाद फिर चुदाई का दौर शुरू हुआ. इस बार जगदीश राय ने निशा को गोद में उठा लिया और हवा में उसकी चुदाई की. उसके बाद उसको अपने लंड के ऊपर कुदवाया. पूरे दिन में जगदीश राय ने 5 बार अपने लंड का रस कभी निशा की चुत में तो कभी चेहरे पर गिराया और निशा का तो पता नहीं कितनी बार पानी निकला होगा. वो एकदम टूट गई, उसमें अब जरा भी हिम्मत नहीं थी, उसका सर चकराने लगा था. आख़िर में उसकी हिम्मत जवाब दे गई. वो बिस्तर पर पेट के बल बेसुध होकर सो गई. उसके साथ जगदीश राय भी ढेर हो गए और उससे चिपक कर सो गए.
अब शाम होनेवाली थी।जगदीश राय निशा को बेड के सहारे कुतिया बना के पीछे से जबरदस्त चोद रहे थे पूरा बेड हिल रहा था। बेड के कोने पर समोसा और केक का खाया हुआ प्लेट पड़ा हुआ था।और प्लेट ज़ोरो से हिल रहा था।
जगदीश राय निशा को पीछे से लंड घूसा घुसाकर , तेज़ी से चोद रहा था।
निशा पैर खोलना चाहती थी , पर जगदीश राय निशा का पैर बंद करके चोद रहा था।
और पूरा बेड हिल रहा था। शाम के 4 बज रहे थे और निशा गिनती भूल चुकी थी की वह कितनी बार झड चुकी थी।
हर बार चोदने के बाद दोनों कुछ खा लेते और फिर शुरू हो जाते।
पर अब निशा थक चुकी थी। उसका चूत सुज चूका था और दर्द कर रहा था। बालो, हाथ, गाल और होठ पर वीर्य लगा हुआ था।
पर उसके पापा रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
उपर से निशा के पैर बंद होने के कारण चूत और सिकुड़ गयी थी। और जगदीश राय को और मजा आ रहा था। और निशा को दर्द भी हो रहा था।
निशा: पापा…बस करो…अब दर्द बढ़ चुकी है…देखो…कैसे लाल हो गयी है चूत
जगदीश राय: बेटी…बस अब रोक नहीं सकता…निकल ही रहा है…
निशा: आआह्ह…।धीरे…।कहा न मैंने…।।
जगदीश राय ओर्गास्म के कगार पर जोर जोर से गांड के ऊपर अपने जांघे पटकने लगा और फिर
लंड लेके निशा के मुह के पास ले गये।
जगदीश राय: यह ले बेटी…।और चाट ले मलाआईईई…
निशा ने बिना संकोच लंड को मुह में लेने के लिए बढी, पर उसके पहले ही एक तेज़ वीर्य की धार निशा के होठ और गाल पर पडी।
निशा ने तेज़ी से लंड मुह में घूसा लिया और बाकि के 5 मिनट तक चुसती रही।
निशा को अब वीर्य का स्वाद भा गया था और यह बात उसके पापा जान चुके थे। और निशा भी , हर बूंद को निचोड रही थी।
जगदीश राय:वाह…बेटी…मज़ा आ गया…आज का दिन मैं कभी नहीं भूलून्गा।।सच कहता हूँ।।।बेस्ट डे ऑफ़ माय लाइफ।।।
निशा, लंड को जीभ से चाटते हुयी।
निशा: हम्म्म…।मुझे भी…पर देखो क्या हाल है मेरा…पूरे शरीर पर वीर्य लगा हुआ है आपका…और चूत तो देखो …माय गॉड…सुज गयी है…पूरी…
निशा, पापा के सामने, चूत खोलकर दिखा रही थी। जगदीश राय ने निशा को बॉहो में भर लिया।
जगदीश राय: अरे वह तो होगा ही…इस बर्थडे बॉय को खुश करना इतना आसान थोड़ी है।।।और बर्थ डे बॉय के लंड के क्या कहने।।।हे हे
फिर निशा प्लेट से एक समोसा का टुकड़ा लेकर खाने लगी।
गालो पर लगा वीर्य के बूँदे फिसल कर निशा के मुह में जा रहे थे।
और निशा बिना कुछ संकोच समोसा के साथ वीर्य को भी खाए जा रही थी।
जगदीश राय यह देखकर मुस्कराया, खुश हो गया।
थोड़ी देर ऐसे ही लेटने के बाद निशा बोली।
निशा: पापा, मुझे आप से एक बात पुछनी है।
जगदीश राय: हाँ हाँ पुछो बेटी।
निशा: पापा…मेरे कॉलेज से 15 दिन के लिए साउथ इंडिया के कुछ जगहो पर एक स्टडी टूर जा रही है।टूर काफी हद तक स्पॉन्सर्ड है। सो…पैसा ज्यादा नहीं लगेगा…क्या मैं जाऊ…।
जगदीश राय, निशा को चिंतित नज़रो से देखने लगा।
निशा: हाँ मैं जानती हु…की यहाँ कोई नहीं है…घर का काम।।।इस्लिये मैं अभी तक हाँ नहीं कह पाई हूँ।। पर कल लास्ट डे है…।मैं ना कह देती हूँ…।
जगदीश राय: नहीं नहीं बेटी…मैं घर के बारे में नहीं तुम्हारे बारे में सोच रहा हूँ। तुम अकेले …।१५ दिन…जाना कैसे है।।प्लेन से…ट्रैन से…
निशा: ओफ़्कोर्से ट्रैन से…और मैं अकेली कहाँ हुँ…वह केतकी है न…वह है…और भी बहुत सारी लड़किया है…
जगदीश राय कुछ देर तक सोचता रहा।
जगदीश राय: जाओ बेटी…घूम आओ।।।कब जाना है…
निशा (चौकते हुए)पर पापा…यहाँ कौन सम्भालेगा…घर का काम।। खाना…
जगदीश राय: उसकी तुम चिंता मत करो…।में तो कैंटीन से खा सकता हु…और इन् बन्दरो के लिए तो पिज़्जा, बरगऱ, पास्ता तो है ही। कभी कभार मैं बना लूँगा…
निशा: पर…।
जगदीश राय: बेटी।।यह उम्र तुम्हारे घूमने के… मजा करने के है…खाना तो ज़िन्दगी भर बनाना है…इसलिए जाओ…और कल हाँ कर दो…मुझसे पैसे ले लेना।
निशा खुश होकर, वीर्य लगे गालो से, पापा को चूम ली।
जगदीश राय: पर।।बेटी…एक समस्या है…मेरे इसके क्या होगा…
जगदीश राय ने मुस्कुराते हुए अपने लंड की तरफ इशारा किया।
निशा: इसका …आप…।१५ दिन तक…आराम दीजिये…हाथ से भी नहीं करना ठीक है…।मैं जब आऊँगी तब आपको एक स्पेशल गिफ्ट दुँगी। तब तक यह मुझे तडपता हुआ खड़ा मिलना चाहिये।।।
जगदीश राय: अरे तुम तो यह ही कहोगी।।तुम्हारे टूर पर तो लड़के भी होंगे…क्यूँउउ…
निशा: धत। पापा…मैं तो आपके सिवा किसी को हाथ भी नहीं लगाने दूँगी…
निशा के इस जबाब से जगदीश राय कुछ सोचने लगा।
निशा उठकर बाथरूम चली गयी। और थोड़े देर बाद फ्रेश होकर , साफ़ होकर आयी।
वह नंगी खड़े होकर अपना बाल बनाने लगी।
जगदीश राय: बेटी…एक बात पूछ्ना चाहता हु…।
निशा: हाँ पापा पुछो।
जगदीश राय: बेटी।।तुम अपने पापा के साथ।।मेरा मतलब है…यह सब…यह संबंध।
निशा (सर झुकाते हुए): मैं समझ गयी पापा…
जगदीश राय: बेटी …मैं यह नहीं चाहता की ।।इसकी वजह से ।।तुम और लड़को को पसंद न करो।।मेरा क्या।।आज है कल नहीं…पर तुम्हे शादी करके एक विवाहित जीवन बीतानी है…मैं यह चाहता हु…
निशा: ओह ओह पापा…आप कहाँ चले गए…पापा , आपके साथ रास लीला रचाने के बाद ।।मुझे तो बल्कि फ़ायदा हुआ है…अब मैं अन्य लड़कियों की तरह लड़को को ताकती नहीं रहती…मैं अब लड़को से शरमाती भी नहीं… अब मैं लड़को को उनके क्वालिटीज़ के अनुसार परखती हूँ।…।
जगदीश राय: अच्छा…
निशा: तो अब बेफिक्र रहिये…मैं कोई घर बैठने वाली नहीं हूँ।।
निशा: और अब मेरे पढाई मैं भी मार्क्स अच्छे आने लगे है…क्युकी मैं लड़को और एडल्ट मूवीज से डिस्ट्रक्ट नहीं होती…
जगदीश राय यह सुनकर खुश भी हुआ और आश्चर्य चकित भी।
जगदीश राय: फिर तो…यह…अच्छी बात है… है न…
निशा (हँसते हुए): और नहीं तो क्या…।हे हे…मैं तो कहती हु…हर लड़की का पहला बॉय फ्रेंड उनके पापा होने चाहिये…हे हे
जगदीश राय: निशा को गोद में बिठा लिया। और हँसते हुए चूमने लगा।
ऑफिस के सभी लोग गपशप लड़ा रहे थे। पर जगदीश राय को सीट पर बैठना मुश्किल हो रहा था।
आज निशा को घर से गए हुए सिर्फ 2 दिन हुए थे। और जगदीश राय का जीना मुश्किल हो गया था।
ऑफिस में बैठा नहीं जा रहा था और घर में मन नहीं लगता था।
और जगदीश राय से बुरा हाल जगदीश राय के लंड का था। पिचले 2 महीनो से निशा लगातार लंड की सेवा करती थी।
जब निशा के महीने चल रहे होते, उस वक़्त भी निशा लंड को चूस चूस कर उसका रस निकालती।
और 2 दिन से लंड को निशा की प्यारी चूत और मुह की कमी मह���ूस हो रहा था। वह अब निशा को कॉलेज ट्रिप पर भेजने के फैसले से पछता रहा था।
जगदीश राय से मुठ भी नहीं मारा जाता। ऑफिस के औरतो को भी घूरता। उसे डर लगने लगा की ऐसा ही चलता रहा तो जल्द ही वह अपने नौकरी से हाथ धो बेठेंगा।
और आज तो उसकी हालत ज्यादा बुरा था। लंड पिछले 2 घण्टो से खड़ा था। और पूरी शरीर में गर्मी फ़ैली हुई थी।
जगदीश राय ने तुरंत एक सिक लेटर लिख दिया और पिओन के द्वारा अपने बॉस को भेज दिया। और बिना कुछ बोले और कहे, देरी हो जाने से पहले , वहां से निकल गया।
रास्तो की लड़कियो और औरतो को ताकते हुए वह घर पहुंचा। दोपहर के 2:30 बजे थे। आशा और सशा शाम के 4-5 बजे तक आयेंगे। तो उसके पास 2-3 घंटे है। उसने सोचा की किसी तरह मुठ मारकर खुद को थोड़ा आराम दे दे।
दरवज़ा खोलते ही , उसे ऊपर के कमरे से कुछ हँसने की आवाज़ सुनाई दी।
जगदीश राय(मन में): अरे…यह क्या…आशा घर पर…इस वक़्त…
तभी जगदीश राय को आशा की मदहोश भरी सिसकियाँ और कुछ शब्द सुनाई दिए
आशा: ओह…।इट्स फीलस सो गुड…आहाहहह…।धीरे करो न…।हाँ वही…।आह…और…अंदर…
जगदीश राय आशा की यह आवाज़ सुनकर बुरी तरह चौक गया। वह भागा भागा ऊपर के कमरे की तरफ गया और तेज़ी से दरवाज़ा खोल दिया।
और अंदर का नज़ारा देखकर सुन्न हो गया।
अंदर आशा पूरी नंगी खड़ी थी। वह बेड के किनारे खड़ी थी।
उसके बदन पे एक भी कपडा नहीं था पर उसने अपने वाइट शूज नहीं उतारे थे।
और आशा के बेड पर एक सांवला सा लड़का बैठा हुआ था। जो आशा की दाए चूचो को मुरा मुह में घूसा कर बेदरदी से चूस रहा था।
आशा तेज़ी से सिसकी ले रही थी। और लग नहीं रहा था की उसके साथ कोई जबरदस्ती की जा रही हो।
लडीके ने सिर्फ अपना शर्ट उतारा था।
और जगदीश राय ने देखा की वह पीछे आशा की गांड पर अपना बायाँ हाथ फेरकर अंदर बाहर कर रहा है। जिसकी वजह से आशा भी अपनी गांड और कमर खड़े खड़े आगे पीछे हिला रही है।
दोनो इतने मदहोश थे की दोनों की ऑंखें बंद थी। और उन्हें पता भी नहीं चला की जगदीश राय वहां खड़ा है।
जगदीश राय ने यह सब नज़ारा कुछ चंद सेकड़ो में देख लिया था।
और वह गुस्से से आग बबुला हो गया।
जगदीश राय (गुस्से में): आशा…।।यह क्या हो रहा है…मेरे घर में…यु बास्टर्ड …।कौन है तू…।।साला।
अचानक से हुए शोर से दोनों आशा और वह लड़का चौक गये। और अपने पापा को देखकर आशा चिल्लायी
आशा: पापा…ओह गॉड…।सॉरी पापा…।सॉरी…।हम यही…।।या गॉड
और आशा ने अपने हाथो से पास पड़े उसकी छोटी सी टीशर्ट से अपने चूचो और चूत को छिपाने का असफ़ल प्रयास किया।
जगदीश राय बहुत गुस्से में था। वह तेज़ी से उस लड़के के तरफ बढा। लड़का घबरा गया।
लडका: अंकल…सॉरी…मैं निकल रहा हु…अंकल…सॉरी सॉरी…।
इसके पहले की जगदीश राय कुछ करता लड़का बड़े ही फुर्ति से अपने शर्ट उठा कर वहां से दौड पडा।
जगदीश राय उसके पीछे भागा पर जब तक वह सीडियों से लड़खड़ाते निचे पंहुचा लड़का दरवाज़े से फ़रार हो चूका था।
आशा डरकर की उसके पापा कुछ कर न बैठे, नंगी पीछे भागी आयी, अपने टी शर्ट छाती में पकडे।
जगदीश राय ने उसे देखा और जा के दरवाज़ा बंद कर दिया, ताकि बाहर के लोग उसे नंगी न देखे।
आशा तुरंत अपने रूम की तरफ चल दी।
पुरी घर में सन्नाटा छाया हुआ था। जगदीश राय तेज़ी से सास ले रहा था। वह किचन में घूसकर एक गिलास पानी पी लिया और खुद को शांत करने की कोशिश की।
जगदीश राय (मन में): यह सब क्या हो रहा है…आशा की यह मज़ाल …।वह भी इतनी छोटी उम्र में पर मैं करू भी तो क्या…।
तभी जगदीश राय को निशा की बात याद आयी। जवान होने पर, बाप को बेटी का दोस्त बनना पड़ता है।
कोई 5 मिनट वही डाइनिंग टेबल के चेयर पर बैठने के बाद, वह फिर आशा की रूम की तरफ चला।
रूम का दरवाज़ा अभी भी खुला था। आशा अभी भी नंगी खड़ी थी। वह एक छोटी सी टीशर्ट अपने छाती से लिपटाये।
टी शर्ट इतनी छोटी थी की सिर्फ उसकी निप्पल और चूत के बीच का हिस्सा छुप रहा था और वो भी मुश्किल से।
जागदीश राय का ग़ुस्सा आशा को ऐसे देखकर थोड़ा सा ग़ायब हो गया।
जगदीश राय: यह सब …।कब से।।चल रहा है…ह्म्म्मम्म।
आशा चुप बैठी। सर झुकाये खडी थी।
जगदीश राय: बोलो…अब छुपाने की…जरूररत नहीं…कौन था वह हरामी…।बोलो…जल्दी।।
आशा: आप ग़ुस्सा मत होईये…मैं सब बताती हु…
जगदीश राय: अच्छा…।तो बोलो…
आशा: वह मेरा बॉयफ्रेंड है…हम ५ महीने से जानते है…एक दूसरे को…।
जगदीश राय: क्या…5 महीनो से चल रहा है यह सब…वह तुम्हारे स्कुल में पढता है? अभी जाता हु उसके बाप के पास…
आशा (थोडा मुस्कुराते): नहीं…वह तो काम कर रहा है…इंजीनियर है…उसकी पढाई सब हो गयी।।
जगदीश राय: मतलब।।वह स्टूडेंट नहीं है…और तुम उसके साथ…कहाँ मिला तुम्हे…बताओ…
सवाल पूछते हुए जगदीश राय आशा की नंगे शरीर को निहार भी रहा था। और धीरे धीरे उसके लंड पर प्रभाव पडने लगा।
आशा भी खूब जानती थी। इसलिए उसने भी जान बुझकर कपडे नहीं पहने।
और वैसे ही नंगी रहकर जावब दे रही थी। वह जान चुकी थी की पापा की नज़रे कहाँ कहाँ घूम रही है।
आशा: एक कॉमन फ्रेंड की ओर से…मेरी एक सहेली है…उसका कजिन भाई है वह…
जगदीश राय: पर तुझे शर्म नहीं आयी…यह सब करते हुए तेरी।।उमर ही क्या है…अगर इस उम्र में कुछ उच-नीच हो गया तो क्या होगा इस घर की इज़्ज़त का…सोचा कभी तूने…
आशा: पापा…मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे घर की इज़्ज़त को धक्का लग सके…बस थोड़ा सा मजा कर रही थी।
आशा ने यह कहते अपने हाथो से टीशर्ट ठीक किया और इसी बहाने अपने हाथो से अपने चूचे मसल दिए।
जगदीश राय यह देखकर हिल गया।
चूचे इतने मस्त आकार के थे की उसके मुह में पानी आ गया और लंड खड़ा होने लगा।
जगदीश राय (संभालते हुए):मम्म।।मज़ा…क्या यह मजा है…इसे मजा कहते है…
आशा (थोडा मुस्कुराते): और फिर क्या कहते है…जो आप और निशा दीदी करते है वह मजा नहीं तो और क्या है…
जगदीश राय , एक मिनट समझा नहीं की जो उसने सुना वह ठीक सुना या नही। वह दंग रह गया।
जगदीश राय:क्या…क्या।।बोल रही है तू…किस किस किसने कहा तुझसे यह सब।
आशा: इसमें कहने की क्या ज़रुरत है…यह दिवार क्या इतनी चौड़ी है की दीदी की चीखे और आपकी सिसकियाँ रोक सके…
अब ऐसा लग रहा था जैसे चोर कोतवाल हो डाट रहा हो।
जगदीश राय: तो क्या…तुम सब जानती हो…क्या तुमने हमे देखा भी…।
आशा: देखा भी और सुना भी… हाँ सब जानती हु…
जगदीश राय: मैं…मैं…वह बेटी…बस…।
आश: शुरू में , मैं भी आपकी तरह चौक गयी थी…पर फिर मुझे लगा की इस मौज में बुरा ही क्या है…
जगदीश राय: तो क्या।।तुमने हमे देखकर यह सब करना शुरू किया?
आशा: अरे नहीं…।मै तो इन सब में 4 महीनो से उलझी हूँ।।
आशा के बिन्दास जवाबो से जगदीश राय को थोड़ी हैरानी और थोड़ी चीढ़ भी आ रही थी।
आशा: क्या ।।अब आपको सब सवालो का जवाब मिला…
जगदीश राय: हा।।क्या तुम उससे और भी मिलेगी…तुम उससे नहीं मिल सकती…यह सब रोक दो…
आशा: अच्छा।।रो�� देति हूँ…पहले आप भी वादा करो की आप और निशा दीदी सब रोक दोगे।…
जगदीश राय चुप हो गया।
जगदीश राय: वो।।बेटी…वह…सोचना…।
आशा: देखा पापा…कितना आसन है बोलना…पर सच कहो तो मुझे रोकने में आपसे ज्यादा आसानी है…
जगदीश राय: क्यों…क्या तुम उस लड़के से प्यार नहीं करती…
आशा: प्यार…अरे नहीं…मैं तो सिर्फ उसे इस्तमाल ही करती हु…क्या मैं अभी अपने कपडे पहन सकती हूँ।।।
आशा ने ऐसे पूछा जैसे वह नंगी खडी अपने पापा पे मेहरबानी कर रही हो।
जगदीश राय (भूखे नज़र मारते हुए): हाँ…पहन लो…
जगदीश राय को समझ नहीं आया की वह वहां से जाये या नही।
उसने आधे मन से दरवाज़े की तरफ कदम बढाया, पर आशा ने उसकी दिल की सुन ली।
आंसा: आप इतनी जल्दी कैसे आये…आप तो 5 बजे आते है न…
आशा ने टीशर्ट पहनते हुए पूछा।
जगदीश राय मुडा। और सामने आशा बिना कुछ शरम, अपने पापा के सामने चूचे और चूत दीखाते हुए टीशर्ट पहन रही थी।
जहां निशा की चूचे बहुत बड़े और मुलायम थे, आशा के कड़क और गोलदार। निप्पल भी भूरे थे। आशा सांवली होने के बावजुद, उसके सभी अंगो में सही पैमाने पर चर्बी थी।
जगदीश राय चूचो को देखता रहा , और जैसे ही चूचो और पेट का भ्रमण करके चूत की तरफ उसकी ऑंखें पहुंची, आशा ने तुरंत अपने हाथ से चूत को ढ़क लिया।
जगदीश राय के मुह से सिसकी निकल गयी। आशा मन ही मन अपने पापा पर हँस रही थी।
आशा: बताइये ना पापा…।जल्दी कैसे आ गए…
जगदीश राय: क्यों…अच्छा हुआ जल्द आ गया…वरना तुम्हारी यह करतूत देखने को कैसे मिलता।
जगदीश राय , झूठ का ग़ुस्सा दिखाने का असफल अखरी कोशिश करते हुये।
आशा: सो तो है…पर मेरा प्रोग्राम तो चौपट कर दिया न आपने
जगदीश राय, को आशा की बेशरमी और बदतमीज़ी पर चीढ आने लगा।
आशा (मुडते हुए): मेरा।।शरट्स…हम्म्म…हाँ यहाँ है…।
आशा के गोलदार, उभरी हुई गांड जगदीश राय के सामने थी।
और गांड के बीच में कुछ था जो जगदीश राय देखकर समझ नहीं पा रहा था।
आशा , शॉर्ट्स पहनने के लिए थोड़ा झुकी पर वह सफ़ेद चीज वहां से हिल नहीं रहा था। गौर से देखने पर , उस पर ख़रगोश का मखमल का बाल लगा हुआ था।
जगदीश राय: अरे…यह क्या है।।तुम्हारे पीछे…
आशा, ने तुरंत अपना शॉर्ट्स चढा लिया। अब वह टी शर्ट और एक बहुत छोटी शॉर्ट्स पहने खड़ी थी, और शॉर्ट्स के बटन डाल रही थी।
आशा: क्या पिताजी…
जगदीश राय: यह तुम्हारे पिछवाड़े पर…सफ़ेद सा…फर का…
आशा: अच्छा वह…वह मेरी …पूँछ है…
जगदीश राय (चौकते हुए): क्या…क्या है वह…पूछ? क्या पुंछ।
आशा,अपने बुक्स उठाते हुए…
आशा: पूँछ मतलब…पूँछ…टेल है मेरी…
जगदीश राय: टेल…टेल तो जानवारो का होता है…इंसानो को कहाँ…।
आशा: मैं भी तो जानवर हु…रैबिट हु मैं…खरगोश ।
जगदीश राय: क्या…क्या पागलपन है यह…
आशा: पापा…आप समझेंगे नहीं…इसलिए आप रहने दीजिये…मुझे अब पढाई करनी है।।
जगदीश राय: अरे…क्या समझना है…तुम कुछ चिपका रखी हो…अपने गाँड में।।मेरा मतलब…पिछवाड़े पर…और कहती हो की तुम रैबिट हो…
आशा: हाँ बिलकुल…मैं ख़ुद को रैबिट की तरह महसूस करती हु…उछलती कूदती खरगोश…हे हे।।
जगदीश राय: अच्छा…
आशा: और मैंने उसे चिपका नहीं रखी है…घुसा रखी है अपने अंदर…
जगदीश राय (चौकते हुए): क्या…।तुमने कहाँ घूसा रखी है…?
आशा: अपनी गांड में…और कहाँ…
जगदीश राय , आशा की मुह से गांड शब्द सुनकर भी अनसुन्हा कर दिया, क्युकी वह जो यह सुन रहा था वह यकींन नहीं कर पा रहा था।
जगदीश राय, चौक कर, वही चेयर पर बैठ गया।
जगदीश राय: तो…।क्या…तुम…उसे बाहर निकालो…क्या उस लड़के ने तुम्हारे अंदर घुसाया…
आशा: अरे नहि।।यह बाहर नहीं आता…पुरे दिन मेरे अंदर ही रहता है।।यह मेरे शरीर का एक भाग है…जैसे मेरी हाथ पैर वैसे ही…
जगदीश राय: पुरे दिन।।तुम।।इसे अपने अंदर रखती हो…कभी बाहर नहीं निकालति।।???
आशा: बस सिर्फ नहाते वक़्त और ओफ़्कोर्स लैट्रिन जाते वक़्त।
जगदीश राय: मतलब स्कूल…टयुशन…सोते समय…हर वक़्त अंदर रहता है…
आशा (मुस्कुराते हुए): हाँ…हर वक़्त…मेरी गांड को सहलाते रहता है…
जगदीश राय , कुछ वक़्त के लिए चूप हो जाता है।
सभी जानते थे की आशा थोड़ी विचित्र है, पर इतनी सनकी हुई है आज जगदीश राय को मालुम हुआ।
और वह जानता था की अब मामला हाथ से निकल चूका है।
आशा, अपने पापा की यह हालत, बड़ी ही शीतल स्वाभाव से देखते रहती है।
जगदीश राय: यह…कब से…
आशा: यहि कोई 4 महीने से…पहले थोड़े समय के लिए रखती थी…पर अब तो हर वक़्त मेरे शरीर का हिस्सा बन चूका है।।
जगदीश राय के मन में हज़ार सवाल आ रहे थे, पर उसे पता नहीं चल रहा था की कहाँ से शुरू करे।
जगदीश राय: तुम स्कूल मैं बैठती कैसे हो…
आशा: आराम से…टेल का बाहर का हिस्सा मुलायम रैबिट के खाल से बना हुआ है। तो स्कर्ट से बाहर भी नहीं आती और आराम से बैठ पाती हूँ। शुरू शुरू में तो तक्लीक होती थी। हर घन्टे में टॉइलेट जाकर ठीक करना पड़ता था।।हे हे।।पर अब कोई प्रॉब्लम नहीं होती।।
जगदीश राय: पर…पर…तुम्हे यह मिला कहाँ से…किसने बताया…और क्यों…
आशा: मेरी एक फ्रेंड है लवीना, वह अपने दीदी को मिलने अमेरिका गयी थी। वहां से ले आयी। हम दोनों रैब्बिटस है।
जगदीश राय: तुम्हारी उस ब्यॉफ्रेंड लड़के को भी पता है…उससे कोई प्रॉब्लम नहीं है इसमें…
आशा (हँस्ती हुए): प्रॉब्लम…हा ह।।वह तो मरा पडा रहता है।।टेल को देखने के लिए…एक बार अपनी गांड दिखा दूँ तो पागल हो जाता है। कभी कभी उससे खेलने देति हूँ उसे।
आशा की यह बेशरमी बात सुनकर अब जगदीश राय कुछ गरम होने लगा था और लंड पर प्रभाव पड रहा था।
आशा , अपने पापा को बोतल में उतार चुकी थी।
जगदीश राय (गरम होकर): ठीक है…वैसे मुझे यह सब पसंद नही।।बंद कर दो यह सब…अच्छा नहीं है यह…
आशा: क्या अच्छा नहीं है…आपने कहाँ देखा मेरे टेल को…देखेंगे?
जगदीश राय: अब…।नही…।हा…ठीक है…।दिखाओ…अगर।।तुम…
इसके पहले जगदीश राय अपनी बात ख़तम करता आशा पापा के सामने खड़ी हो गयी। और पीछे मुडी
और अपने गाण्ड पर से शॉर्ट्स निचे सरका दिया।
ईद के चाँद की तरह, अपने पापा के सामने आशा की गोलदार गांड खिलकर आ गई।
आशा: यह देखिये…
गांड के बिचो बीच, गालो को चिरते हुई, ख़रगोश के पूँछ के जैसे एक पूँछ , निकल कर बाहर आ रहा था।
इतनी चिपककर घूसा हुआ था की गांड का छेद दिखाई नहीं दे रहा था।
जगदीश राय का लंड पुरे कगार में खड़ा हुआ था।
आशा , बड़ी ही नज़ाकत से चेहरा घूमाकर, अपने पापा के ऑंखों में देखी। उसे पापा के पेंट में से खड़ा लंड साफ़ दिखाई दे रहा था।
निशा को चोदते हुए पापा का लंड वो कई बार देख चुकी थी। और वह उसका आकर जानती थी।
आशा: कैसी है …पापा…कुछ बोलो तो…बस यूही ताक़ते रहोगे।।?
जगदीश राय , अपने गले से थूक निगलती हुयी।
जगदीश राय: अच्छी है…।ठीक है…
आशा: आप चाहे हो पूँछ को छु सकते हो।
काँपते हाथो से जगदीश राय, आशा के गांड के तरफ ले गया।
जगदीश राय (मन में): नहीं जगदीश…क्या।।कर रहा है तू…नहीं…रुक ज।।आशा नासमझ है…
पर लंड के सामने न दिल न दिमाग की बात न सुनी।
आशा को तुरंत अपने गाण्ड पर प्रभाव महसूस हुआ। और वह समझ गई की पापा अपने हाथो से उसके पूँछ को सहला रहे है।
जगदीश राय , को आश्चर्य हुआ की , पूँछ कितनी टाइट गांड में फँसी है। क्युकी बिच में, उसने पूँछ को धीरे से खी���ा पर , पूँछ अपनी जगह से हिली भी नही।
आशा: बाहर नहीं निकलेगी।।ऐसे…अंदर 2 इंच का मोटा गोलदार भाग उसे अंदर ही रखता है।
आशा की गांड इतनी मादक और कोमल लग रही थी, की जगदीश राय से रहा नहीं जा रहा था। और उस मादक गांड से निकलती हुई पूँछ , उसे और मादक बना रही थी।
जगदीश राय ने तुरंत अपना हाथ पूँछ से निकालकर गांड पर रख दिया , और गाण्ड को दबा दिया।
आशा ने तुरंत , अपनी शॉर्ट्स ऊपर कर ली।
आशा (लंड की तरफ इशारा करते हुए): पापा…अब आप नॉटी बॉय बन रहे है…निशा दीदी की बहुत याद आ रही है क्या…हे हे।
जगदीश राय अपने इस करतूत से थोड़ा शर्माया ।
जगदीश राय: सोर्री।।।वह बस…नहीं…ठीक है तूम पढाई करो…मैं…
आशा: अरे सॉरी क्यों…मैं जानती हूँ।।ऐसे टेल से सजा हुआ गांड तो किसी को भी पागल कर सकता है।
जगदीश राय, अपने लंड को हाथो से सम्भालते हुये, मुस्कुराते हुये, रूम से निकल जाता है।
कमरे से निकल कर , अपने रूम में घूसने से पहले ही जगदीश राय अपना लंड हाथ में लिए हिलाना शुरू कर दिया।
दिमाग पर आशा की गांड और उसमे घूसि हुई पूँछ
और निशा की यादें, लंड को झडने से रोकने वाले नहीं थे।
निशा की चूत और आशा की गांड दोनों सोच ��ोचकर, जगदीश राय ने ऐसा जोरदार मुठ निकाला की झरते वक़्त वह चीख़ पडा।
कुछ 2 घन्टे बाद जब जगदीश राय निचे हॉल में आया, आशा वही किचन में चाय बना रही थी।
उसने अपने कपडे चेंज कर लिए थे। एक टाइटस और सलवार पहनी थी।
जगदीश राय की नज़र उसकी गांड पर गयी, और आंखें ख़रगोश वाली पूँछ को ढून्ढने लगी।
आशा: क्या देख रहो हो पापा।।
जगदीश राय: नही।।कही।।बाहर जा रही हो।।
आशा: हाँ यही बुकशॉप तक…कुछ बुक्स लेने हैं…पैसे चाहिये होंगे…यह लिजीये चाय…
जगदीश राय और आशा दोनों एक दूसरे के सामने बैठकर चाय पीने लगे।
कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था।
जगदीश राय , दोपहर की घटनाओ के बारे में सोच रहा था। और खास कर आशा की पूँछ और गांड के बारे में।
आशा के चेहरे पर कोई भाव नज़र नहीं आ रहा था। वह बस एक ही भाव से अपने पापा को देखे जा रही थी।
आशा की यह दिल चीरने वाली नज़र से जगदीश राय सोफे में करवटें लेने लगा।
जगदीश राय( मन में): क्या वह अभी भी गांड में घुसायी रखी होगी…नही।।देखो कितनी आराम से बैठी है…आराम से कोई ऐसे बैठ सकता है…गांड में लिये।
पर वह आशा से पुछने की हिम्मत नहीं जूटा पा रहा था।
आशा (बिना मुस्कुराये और शर्माए): पापा…पैसे? जा कर आती हूँ…
जगदीश राय: हाँ हाँ…टीवी के निचे ही 100 रूपये पड़े हैं…ले लो…
आशा उठि और मटकती गांड से चल दी और शूज पहनने लगी।
जगदीश राय , अपनी थूक निगलते हुयी, हिम्मत जुटा रहा था। उसे यह जानना ज़रुरी हो गया था।
जगदीश राय: बेटी…क्या तुम …मेरा मतलब है…तुम अभी भी अंदर घूसा…रखी हो…उसे…मेरा मतलब है…उस टेल को…खरगोश वाली…
आश , पीछे मुड़कर बड़े ही आराम से , सहज तरीके से जवाब देती है।
आशा: हा, है अंदर …क्यू।।?
जगदीश राय (शर्माते हुए): अच्छा…।नही…यही…पूछ रहा था…टाइटस से भी दिख नहीं रहा था…इसलिये…
आशा: ओह क्युकी पूँछ की पार्ट को में ने चूत की तरफ , पैरो के बीच समा रही है।।इस्लिये…टाइटस पहनो तो करना पड़ता है यह सब, पर इससे गांड थोड़ी खीच जाती है और मजा भी आता है चलती वक़्त।।इस्लिये।…चलो बाय मैं जा कर आती हूँ…
जगदीश राय , आशा का यह जवाब सुनकर दंग रह गया। उसकी बेटी पुरे मोहल्ले के सामने , अपनी गांड में पूँछ घुसाकर चल रही है और लोगो को पता भी नही, इस सोच से ही वह पागल हो रहा था।
आशा की मुह से चूत और गांड ऐसे निकल रहे थे जैसे वह कोई बाज़ारू रांड हो।
अपनी छोटी बेटी के मुह से गंदे शब्द उसे मदहोश कर चला था। और न जाने कब उसका हाथ उसके लंड पर चला गया।
कोई दो दिनों तक , जगदीश राय और आशा के बीच , जब भी बाते होती, पूँछ का ज़िक्र छूटता नही।
अगर उसके पापा शर्मा कर नहीं पूछ्ते , तो आशा खुद अपने पापा को पूँछ के बारे में बताती, की आज उसने कैसे अपने पूँछ को सम्भाला स्कूल जाते वक़्त , सहेलियो के साथ इत्यादि।
जगदीश राय को भी बहुत मजा आ रहा था और अब उसे भी आशा की पूँछ से अजीब सा लगाव हो चूका था। हालाकी उसने उस दिन के बाद से पूँछ को देखा नहीं था , सिर्फ ज़िक्र ही सुना था।
और बातो से ही वह पागल हो चला था। और यह सब सशा से छुपके होती थी।
एक दिन, जगदीश राय के एक ऑफिस जवान कर्मचारी की शादी के रिसेप्शन का कार्ड आया। आशा और सशा दोनों पापा से ज़ोर देने लगे।
सशा: चलिये न पापा, रिसेप्शन में चलते है…बड़ा मजा आयेगा।
आशा: हाँ…वहां तो चाट वगेरा भी होंगा।
जगदीश राय: अरे।।वह बहुत दूर है यहाँ से…बस भी नही जाती।
आशा: तो यह गाडी किसलिए है…खतरा ही सही।।।कार में चलते है।
आशा की बात आज कल जगदीश राय टालने के हालत में नहीं था।
जगदीश राय: ठीक है…चलो…रेडी हो जाओ।।चलते है…।पर जल्दी ही आ जायेंगे…
सशा: हाँ हा।।खाना खाने के बाद तुरंत…
रिशेप्शन पर बहुत भीड़ थी। हर क्लास के लोग आये थे। आशा और सशा जम गए थे चाट के स्टाल पर। आशा ने टॉप और स्कर्ट पहनी थी, सशा ने जिन्स।
जगदीश राय अपने ऑफिस के कुछ कर्मचारी के साथ ऑफिस की बाते कर रहा था।
जगदीश राय: अरे।। चलो…स्टेज पर हो आते है।।गिफ्ट पैकेट देते है।।कॉनगरेट्स भी बोल आते है।
आशा और सशा भी चल दिए पापा के साथ। स्टेज की सीडियों चढ़कर आशा जगदीश राय के पास आकर खड़ी हुई।
जगदीश राय ने, दुल्हा, दुल्हन और बाकि सब लोगों से बात की।
दुल्हे का बाप: अरे राय साब, हमारा बेटा आपकी बहुत तारीफ़ करता है…आईये एक फोटो हो जाए।
और सभी लाइन में खड़े होने लगे।आशा तुरंत अपने पापा के पास आकर खड़ी हुई।
आंसा(धीमी आवज़ में): पप।।पापा।।सुनो…
जगदीश राय(धीमी आवज़ में): हाँ हाँ बोलो
आशा(धीमी आवाज़ मैं): मेरी पूँछ ।।निकल रही है गांड से…स्टेज पर चढ़ते वक़्त।।लूज हो गयी…मैं अंदर धक्का नहीं घूसा पाऊँगी…क्या आप प्लीज स्कर्ट के ऊपर से घूसा देंगे…प्लीज जल्दी।
जगदीश राय(धीमी आवज़ में): क्या।।यहाँ…स्टेज पर…।
आशा(धीमी आवाज़ में): हाँ अभी…आपका हाथ मेरे पीछे ले जाईये…कोई नहीं देखेंगा।।अगर मैं ले गयी तो अजीब लगेगा …प्लीज जल्दी कीजिये…कहीं यही न गिर जाये…मैंने पेंटी भी नहीं पहनी…
फोटोग्राफर: चलिए…आंटी जी।।थोड़ा आगे…हाँ थोड़ा पीछे…बस सही।।हाँ स्माईल।
जगदीश राय(धीमी आवज़ में): क्या तुम पागल हो…ओह गॉड।।मरवाओगी…ठीक है…आ जाओ।
और जगदीश राय, फोटो के लिए स्माइल देते हुये, माथे से पसीना छुटते हुए अपना कांपता हाथ आशा की गांड पर ले गया।
हाथ गांड पर लगते ही , उसे आशा की बात पर यकीन हो गया की उसने पेंटी नहीं पहनी थी।
लोगो के पीछे से, स्टेज पर खडे, जगदीश राय ने पूँछ को हाथो से पकड़ लिया।
फोटोग्राफर फोटो ले चूका था। अब वीडियो वाला वीडियो कैमरा घूमा रहा था।
जगदीश राय पूँछ के पिछले हिस्से को पकड़ कर, गांड में घुसाने का प्रयत्न करने लगा। पर घुस नहीं पा रहा था।
जगदीश राय (धीमे आवाज़ में): घूस नहीं रहा है…क्या करुं…
आशा ने तुरंत अपन गांड पीछे कर दिया। वीडियो कैमरा तभी आशा के सामने से गुज़र रहा था। आशा की गांड पीछे ठुकाई पोज़ में देखकर वीडियो वाला हैरान हो गया, और उसने जान बुझ कर वीडियो आशा पर टीकाये रखा।
आशा((धीमी आवज़ में): हा।।अभी ट्राई करो…उफ़ यह विडियो।।इसी वक़्त…
जगदीश राय ने अपना पूरा ज़ोर देते हुए, एक ज़ोरदार धक्का ल��ाया। आशा की गांड से 'पलोप' सा एक आवाज़ सुनाई दिया और पूरा का पूरा पूँछ अंदर घूस गया।
आशा (धीमे आवज़ में): आह…इस्सश
आशा के मुह से सिसकी निकली और दर्द और कामभाव चेहरे पर से छुपा नहीं पायी।
पुरी समय वीडियो आशा पर टीका रहा।
स्टेज से आशा और जगदीश राय धीरे से उतरे। आशा बिना कुछ कहे टॉयलेट की ओर चल दी।
थोड़ी देर बाद, आशा पापा के पास आयी।
जगदीश राय: यह सब क्या था बेटी…मैं तो डर गया…
आशा (मुस्कुराते हुए): सॉरी पापा।।वह आज मैं ने नयी क्रीम यूज किया था, जो ज़रा चिकनाई देने लगी…मैं नहीं जानती थी…और स्टेज की स्टेप्स चढ़ते वक़्त…पूँछ निकल गयी…पर थैंक यू आपने संभाल लिया।
जगदीश राय:शुक्र करो।।स्टेज पर नहीं गिर पड़ा…और तुमने पेंटी क्यों नहीं पहनी।
आशा: वह तो मैं अक्सर पेंटी नहीं पहनती…पूँछ पेंटी के बिना ज्यादा मजा देता है…
जगदीश राय:तुम और तुम्हारा मजा मुझे ले डूबेगा एक दिन।
आशा (हस्ती हुए): क्यों…आपको मजा नहीं आया।।मेरे गांड में पूँछ पेलते वक़्त।
जगदीश राय (थोडा मुस्कुराते हुये, शरमाते हुए): वह…हा।।मज़ा तो आया…
आशा : तो बस…और क्या चाहीये…मज़ा ही ना।।
और आशा सशा के पास चल दी। तभी एक लडका, आशा के पास आया।
लडका (मुस्कुराते हुए): मिस, अगर आपको वीडियो की कॉपी चाहीये तो हमे बोल देना…हमने आपकी अच्छी वीडियो ली है…
आशा (ग़ुस्से से): नो थैंक यु…
अगले 2 दिन जगदीश राय का बुरा हाल था। आशा की गांड और पुंछ उसके दिमाग से निकल ही नहीं रहा था।
जब भी आशा सामने से गुज़रती, जगदीश राय उसके गांड को ताकता रहता। इस उम्मीद में की पुंछ दिख जाये।
आशा भी यह सब समझती थी और अपने आदत से मजबूर, अपने गांड को और मटका कर चल देती।
आज का दिन भी कुछ ऐसा ही था। आशा, एक छोटी स्कर्ट पहनी, किचन में खड़ी , सब्जी काट रही थी।
सशा अपने कमरे में गाना सुन रही थी।
और जगदीश राय हॉल मैं बैठे , पेपर पढ़ रहा था, या यु कहे, पढने की कोशिश कर रहा था।
वह हॉल में बैठे , अपने बेटी की गांड को निहार रहा था। सामने उसकी बेटी, एक टाइट टॉप और छोटी स्कर्ट पहनी हुई थी।
टाइट टॉप में से निप्पल साफ़ दिख रही थी। और स्कर्ट उसके गांड को और भी मादक बना रहा था।
और अपने पापा के सामने , गांड में २ इंच का पुंछ घुसाए उसकी बेटी खड़ी सब्जियां काट रही थी।
जगदीश राय (मन में): क्या उसने पुंछ घुसायी होगी आज भी…।खडे रहने से लगता तो नहीं…।उसने कहा तो था की कभी कभार वह पुंछ को नहाती वक़्त धोती और सुखती है। और तब नही पहनती…।और अभी वह नहाकर खड़ी है…
जगदीश राय , को यह जानने की उत्सुक्ता , पागल कर रही थी।
और वह अपने सोफे पर करवटें बदल रहा था। वह उठकर, डाइनिंग टेबल पर बैठ गया।
थोड़ी देर बाद आशा , थोड़ी मूली लेकर आ��
आशा: पापा…।आप इन्हे काट देंगे प्लीज…
और डाइनिंग टेबल पर टेकते हुयी, मूली की प्लेट रख दी।
उसने अपने गांड को इस तरह पीछे धकेला , मानो अपने पापा को दावत दे रही हो।
जगदीश राय से रहा नहीं गया , और उसने तुरंत गांड पर हाथ रख दिया। और पुंछ टटोलने लगा। आशा हँस पडी।
आशा : हे हे
जगदीश राय पूँछ को अपने हाथो में पाते ही , चौक भी गया और ख़ुशी भी हुई। उसने ज़ोर से पूँछ को पकड़ कर, बाहर की तरफ खींच दिया।
आशा: अअअअअ…पापा…क्या…
और अगले ही मिनट में ज़ोर से उसे अंदर ढकेल दिया।
आशा: ओहः।।।।मम…आज कल आप बहोत नॉटी हो रहे हो… चलिये मूली पे ध्यान दीजिये…
जगदीश राय पूरा गरम होकर लाल हो गया था। और आशा को अपने पापा का यह उतावला पन बहोत भा गया।
उसी वक़्त सशा , सीडिया उतर कमरे में चली आयी।
जगदीश राय , उसे मन ही मन कोसते , मूलियों पे अपना टूटा हुआ ध्यान देने लगा।
सशा: आशा , देख तो बाहर , यह लोग दही कला (दही हंडी) लगा रहे है। बहुत मजा आयेगा शाम को।
आशा: हाँ।पापा…हम सब देखेगे। और पानी फेकेंगे उन पर…
जगदीश राय: हाँ…ठीक है।।।
शाम हो गयी थी। पूरा दोपहर , जगदीश राय का हाल बुरा था। निशा की याद और आशा की पूँछ ने उसके लंड पूरा टाइम खड़ा रखा था।
जगदीश राय , अपने कमरे मैं , लंड हाथ में लिए , हिलाना शुरू किया। पर मुठ निकल नहीं रही थी। जो लंड चूत की आदि हो जाये उससे हाथ से मजा आना मुमकिन नहीं था, यह बात जगदीश राय भी जानता था।
अचानक से दरवाज़ा खुल गया। जगदीश राय , हाथ में 9 इंच लंड पकडे, चौंक कर देखता रहा।
आशा: पापा…चलिए…।दहीकला स्टार्ट हुआ…चलिये
आशा की नज़र, तभी पापा के खड़े 9 इंच लंड पर पडी जो शाम के उजाले पर चमक रहा था।
इसके पहले जगदीश राय कुछ बोले, आशा बोल दी।
आशा: उफ़ पापा…अच्छा…आप जल्दी से यह निपटाकर…।आईए…ज्यादा देर मत लगाना…मैं और सशा निचे है…।ठीक है…
और आशा से दरवाज़ा बंद कर चल दिया।
जगदीश राय हक्का बक्का रह गया।
जगदीश राय (मन में): यह क्या हो गया अभी।।कही मेरा सपना तो नहीं था…आशा आयी…और मेरे लंड… को मुझे मुठ मारते देख…बोलकर चल दी…मानो यह उसके लिए नई बात न हो…।
जगदीश राय यह सोचकर और गरम हो गया। और ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा। पर मुठ कगार पर आकर मुठ रुक जाता। १५ मिनट तक जगदीश राय हिलाता रहा पर स्खलित न हो पाया।
अचानक फिर से दरवाज़ा खुल गया। इस बार जगदीश राय चौंका नाहि, क्यूंकि वह आँखें बंद, गहरी सोच के साथ्, मुठ मार रहा था।
पर आशा के आवाज़ ने उसकी आँखें खोल दी।
आशा:यह लो…आप अभी भी…इसी पर है…और मैं समझी थी…आप तैयार हो चुके होंगे…।
जगदीश राय : ओह बेटी…
आशा (और पास आकर): क्या बात है…मूठ नहीं निकल रहा पापा…।
आशा के ऐसे सीधे सवाल की, जगदीश राय को उम्मीद नहीं थी
जगदीश राय: नहीं बेटी…निकल नहीं रहा।
आशा: लाओ…मैं कोशिश करती हूँ।
और आशा ने तुरंत जगदीश राय के हाथ पर मार दिया और लंड को थाम लिया। आशा के हाथ इतने छोटे थे की लंड पूरी तरह समां नहीं पा रही थी।
जगदीश राय : बेटी तुम ।तुमसे नही…ओह्ह…।आहः
आशा: दही कला ख़तम होने से पहले आपको झाड दूँगी…वादा…
और आशा तेज़ी से पापा के विशाल लंड को हिलने लगी।
जगदीश राय : ओह्ह…।बहूत अच्छा…।आहः
और आशा दोनों हाथो से लंड को थामकर हिलाने लगी।
जगदीश राय , अपना हाथ आशा के स्कर्ट के अंदर से गांड पर रख दिया, और पूँछ के मुलायम बालो को पकड़कर , पूँछ को अंदर बाहर हिलाने लगा।
आशा:।।हम ।अहहह…।।कितना बड़ा है…पापा आ....आप्का…।।
जगदीश राय : तुमने तो…।।पहले भी देखा… है न इसे…।
आशा: हाँ…। पर की होल से साइज का अंदाज़ा नहीं था…हाथ पर आते ही…पता चला…
१० मिनट तक आशा लंड को बिना रुके हिलाने लगी। और बहार से दही कला के लोगों का शोर सुनाई दे रहा था । शोर से पता चल रहा था की लोग गिर पड़े थे।
आशा: पापा…आप का तो निकल ही नहीं रहा…।मेरा तो हाथ दर्द कर रहा है…
जगदीश राय : कोई बात नहीं बेटी…।एक काम करो।।तुम चली जाओ…दही कला देख आओ…।
आशा: नहीं…मैंने वादा जो किया…।एक काम कीजिये…क्या आप मेंरे गांड में डालना पसंद करेंगे…
जगदीश राय , इस सवाल से चौंक गया। और आशा की तरफ देखने लगा।
आशा: नहीं…अगर आपको पसंद नहीं हो तो कोई बात नहीं…।मैं…।ऐसे हिला…
जगदीश राय तुरंत आशा की बात काटते हुए बोल पड़ा।
जगदीश राय : पसंद।। बेटी यह किस बुढ़ऊ को पसंद नहीं होगा…तुम्हारी गांड तो जन्नत से कम नहीं है बेटी
आशा: अच्छा…।तोः फिर यह ही करते है…ठीक
जगदीश राय : पर …वो।।तुम्हरी पुंछ…
आशा ने अपना हाथ पीछे से स्कर्ट में ले गई और बोलते हुए पूँछ को बाहर खीच ने लगी।
आशा: उसे मैं …अभी…आअह्ह्ह…।खीच…देत्ती हूँ।
ओर फिर गांड में से 'पलोप' से आवाज़ सुनाई दिया।
जगदीश राय : बेटी मैं सोच रहा था की तुम मुझे तुम्हारी चूत मारने दो और गांड में पूँछ रहने दो…
आशा: नहीं पापा…मैं अपनी चूत सिर्फ अपने पति को दूँगी…जो मुझसे शादी करेगा…हाँ गांड मरवा सकती हु…
जगदीश राय यह सुनकर खुश हो गया। आशा , पहले से विचित्र थी, पर आदर्श वादी थी यह आज उसे पता चला।
जगदीश राय , आशा की हाथ में पूच को देख। पुंछ का अंदर का भाग के 2 इंच का बॉल का आकार का था। उस पर आशा की गांड का भूरा रस और मलाई लगा हुआ था।
आशा ने उसे ज़मीन पर रख दिया।
जगदीश राय ने लंड के चमड़ी को निचे सरकाकर के हाथ से ज़ोर से थामे रखा एंड बेड के किनारे लेट गया। वह जानता था की गांड मारने के लिए लंड कड़क रहना बहुत ज़रूरी है।
आशा, पीछे मुड कर खड़ी हो गयी और अपने पापा की ऑंखों के सामने स्कर्ट को ऊपर खीच लिया। और जगदीश राय के सामने दो गोलदार गांड उभरकर आ गई।
जगदीश राय, बेड के उपर बैठे होने के कारण, आशा का गांड का छेद दिखाई नहीं दे रहा था। वह बेड पर लेट गया और सर को उठाकर देखने लगा।
आशा : रेडी ।।पापा…धीरे से ओके…मेरा भी पहली बार है…और आपका तो बहुत मोटा है…
जगदीश राय ने हामी में सर हिला दिया। दोनों की धड़कन तेज़ी से चल रही थी। और बाहर दाहिकला के लोंगो का शोर।
ओर जगदीश राय के ऑखों के सामने , उसकी बेटी अपने गोलदार सुन्दर गांड के गालो को हाथो से फैलाकार, उसके 3 इंच मोटे और 9 इंच लंबे लंड पर गांड को उतार रही थी।
आशा ने गांड के छेद को पापा के लंड के बहोत पास ले गयी। और एक १ इंच के दूरी पर आकर रुक गयी।
जगदीश राय , तेज़ी से सासे लेते हुयी, आंखे फाड़कर देखता रहा।
आशा: पापा, बोलो घुसा दूँ।
जगदीश राय : हाँ हाँ…रुक क्यों गई…अब संभला नहीं जाता।घुसा दे…अपनी गांड…मेरी प्यारी बच्ची.....
आशा: पर एक शर्त है…
जगदीश राय : सब मंज़ूर है
आशा: एक मूवी, एक अच्छी ड्रेस और…।
जगदीश राय : मंज़ूर,, मंज़ूर…। बेटी…अब सब्र नहीं हो रहा…
आशा:…और…जहाँ मैं चाहु…जब चाहु…मेरी गांड मारनी पड़ेगी…।
जगदीश राय : ज़रूर बेटी…जब कहोगी तब …।
ये सुनते ही, आशा ने अपना गांड पापा के कठोर लंड पर रख दिया। गाण्ड और लंड का स्पर्श इतना सुन्हरा था की जैसे मानो दोनों कई जन्मों से एक दूसरे का इंतज़ार कर रहे हो
और गांड में लंड चीरते हुए चला जा रहा था।
आशा: आह....ओह
जगदीश राय : ओह्ह…।मम…आआह…घुसा दे बेटी…।और घुसा…
आश: नहीं पापा…इससे ज्यादा और नहीं…पुंछ की गहरायी से कही ज्यादा ले चुकी…और आपका तो बहोत मोटा है और निचे…।नही…ऐसे ही करती हु…
जगदीश राय , निशा के चुदाई से समझ गया था की उतावला पन ठीक नहीं है।
जगदीश राय : ठीक है बेटी…तुम्हे जैसा लगे वैसा करो…।
और आशा , फिर धीरे धीरे ऊपर निचे होने लगी…
आशा: कैसा लग रहा है पापा।।
जगदीश राय : बहुत अच्छा मेरी बेटी…करती रहो…अह्ह्ह्ह
आशा: दाहिकाला के मटके से दही निकलने के पहले…आपके मटकी से दही निकालूँगी…
और आशा ने लंड पर कुदती हुई पापा के दोनों टट्टो को ज़ोर से दबा दिया।
जगदीश राय , के मुह से सिसकी निकल गई।
जगदीश राय :ओह …आअह्ह्ह…।
आशा: हे हे
आशा, पापा के दरद, पर हँस पडी। और ज़ोर ज़ोर से लंड पर कुदने लगी। लण्ड अभी तक सिर्फ 6 इंच जा चूका था।
कडे हुए लंड पर हर झटके से आशा की कसी हुई गांड के अंदर लंड और थोड़ा घुसे जा रहा था।
आशा को पहली बार अपना गांड इतना फैला हुआ महसूस हो रहा था। मानो किसीने एक बड़ा सा सरिया घूसा दिया हो।
आशा अपना हाथ पीछे ले जाकर बचे हुए लंड को हाथो से नापने लगी।
जगदीश राय: बस बेटी…और थोड़ा…सिर्फ 3 इंच बची हुई है…
आशा ने ज़ोर देकर लंड पर गांड दबाना चालु रखा।
कसी हुई गांड की जकड , जगदीश राय के लंड पर भी भारी पड़ रहा था। पूरा लंड लाल हो चूका था।
बाहर दही कला का शोर चल रहा था। और आवाज़ो से महसूस हो रहा था जैसे एक और कोशिश हो रही है , हुण्डी को तोड़ने की।
जगदीश राय का उतेजना भी लोगों से कम नहीं था और वह भी स्खलित होने के कगार पर पहुँच चुके थे।
दोनो आशा और जगदीश राय पसीने से लथपथ हो चुके थे। सासे जोरो से चल रही थी।
जगदीश राय: बेटी…और मारो बेटी…ज़ोर ज़ोर से कूदो…।मारवाओ गांड अपनी…।
आशा: आहहाआअह…आह्ह्ह्हह्ह्
जगदीश राय के लंड के ऊपर आशा तेजी से कूद रही थी।उसकी गाण्ड में 9 इंच लंड पूरा घुस चूका था।जगदीश राय को बहुत मज़ा आ रहा था।वह भी निचे से अपनी बेटी के गांड में धक्का देने लगा।
अचानक आशा ने महसूस किया उसके पापा का लंड गांड के अंदर फूल रहा है।
जगदीश राय ने तुरंत आशा को कमर से पकड़ लिया और तेज़ी से अपना लंड उसके गांड में मारने लगा।
हर झटके के साथ्, बाहर से लोगों का प्रोत्साहित करने वाली पुकार सुनायी दे रही थी।
लोगों बहार से: हाँ …और ऊपर…अंदर से…।घूस जा।।।
तभी लैंड गांड के छोटे छेद को चीरते हुए एक ही झटके में पूरा अंदर तक घूस गया।
आशा: पापा…।आहः
आशा ज़ोर से चीख पड़ी ।
उसी वक़्त बाहर से "गोविन्दा गोविन्दा हुर्रियिय" का पुकार सुनाई दिया और मटकी फोड़ने की आवाज़ सुनाई दी।
गुब्बारे फूटने लगे। पटाके उडने लगे।
ओर तभी, अंदर, लंड का टोपा पूरा फूल गया और आशा को अपने गांड के अंदर एक सैलाब महसूस हुआ।
जगदीश राइ: ओह।।।।।।।
लण्ड ज़ोर ज़ोर से तेज़ी से झड रहा था। और ढेर सारा गरम वीर्य उगलने लगा।
जगदीश राय कम से कम 4 दिन बाद झड रहा था। उसका पूरा शरीर कांप रहा था।
आशा की गांड के अंदर 9 इंच लम्बा और 3 इंच मोटा लंड लिए ऐसे ही बैठी रही और लंड से निकलने वाले वीर्य के हर धार के प्रभाव , आंखें मूंद कर महसूस कर रही थी।
कम से काम 5 मिनट बाद, बाहर और अंदर सन्नटा छा गया।
आशा धीरे धीरे अपने पापा के लंड से उठने लगी।
आशा: हम…आहः
और गांड की चमड़ी पूरी बाहर के तरफ खीच गयी। जब लंड पूरा बाहर निकल गया तभी , गांड के अंदर से ढेर सारा वीर्य लंड के ऊपर उगलकर गिर पडा।
आशा लंड और वीर्य को देख कर मुस्कुरायी।
जगदीश राय: बेटी…बहुत अच्छा लगा…तुमने तो अपना वादा निभाया।।पर दही कला शायद ख़तम हो गयी…तुमने मटकी फोड़नी मिस कर दी
आशा: न न पापा मैंने तो असली मटकी फोड़ी है…और ढेर सारा मलाई भी निकाली है…बाहर के लोग यह नज़ारा मिस कर गये।।हे हे।
जगदीश राय , अपने कमरे को ठीक करने में लगा था।
उसकी उत्साह कोई छोटे बच्चे से कम नहीं था।
आज रात आशा ने कहा था की वह आएगी।
दही कला के दिन गांड मरवाने के बाद, हर रात 11-12 बजे रात को आशा छुपके से , अपने पापा के कमरे में घूस जाती।
और कम से कम 1 घन्टे तक , उछल उछल कर गांड मरवाती।
जगदीश राय , जो पहले कभी गांड नहीं मारा था, आज कल खुद को किसी एक्सपर्ट से कम नहीं समझ रहा था।
जगदीश राय को कभी कभार आशा की बेशरमी और पागलपन पर चीढ़ भी आ जाता।
कभी कभार वह अपने पापा के लंड को काट देती और पापा के दर्द पर मुस्कराती।
कभी कभार जान बुझकर गांड में कोई तेल या क्रीम न लगाकर, लंड पर ज़ोर से बैठ जाती।
और लंड के दर्द से हंस पडती, भले ही उसे भी दर्द हो रहा हो।
और पिछले 2 रातो से, जान बुझकर वादा करके , मुकर जाती।
जगदीश राय , मन ही मन, उम्मीद कर रहा था की कल रात की हालत उसकी न हो, जब आशा कमरे में आकर, गांड न देते हुए, उसके लंड को हिलाने लगी, और ओर्गास्म के च���म सीमा पर आकर, "मुझे नींद आ रही है" कहकर चल दी।
आशा , न लंड ज्यादा देर मुँह में लेती । न ही चूत में ऊँगली डालने देती। सिर्फ गांड मरवाती।
जगदीश राय , उससे निशा से तुलना कर रहा था। एक जगह पर निशा थी जो अपने पापा के ख़ुशी के लिए कुछ भी कर जाती और दूसरे ओर यह पगली आशा जो उसे अपनी उँगलियों पे नचा रही थी।
हालाँकी जगदीश राय, बहुत बार ठान लिया था की आशा को भाव न देकर रास्ते पर लाये, पर हर वक़्त आशा की गांड और उसमें से निकल रही सुन्दर पूँछ के सामने , उसका लंड जबाब दे देता।
निशा 2 दिन में वापस आने वाली थी, और जगदीश राय सोच पड़ा की वह आशा से कैसे सम्बन्ध रख पायेगा।
तभी आशा कमरे में घूस गयी। वह सिर्फ एक शर्ट पहनी थी।, जिसमें बहुत मादक लग रही थी।
जगदीश राय (बड़े मुश्किल से झूठा ग़ुस्सा दिखाते हुए): बहुत देर लगा दी…पर आयी तो सही महारानी…
आशा: हाँ…सशा सो ही नहीं रही थी…।अभी भी उससे यह बोल के आयी हु…की बाथरूम जा रही हु…
जगदीश राय : ओह…तो अब…मैं आज रोक नहीं सकता…कल तुमने अच्छा नहीं किया आशा…
जगदीश राय किसी बच्चे की तरह उससे शिकायत कर रहा था.
और कहीं उसके अवचेतन मन में उससे अपने खुद के बरताव पर भी काफी शर्म आ रहा था।
आशा: वह सब छोड़ो…आज सिर्फ 4-5 मिनट है आपके पास…नहीं तो मैं चली…
जगदीश राय: अरे नहीं…पहले कपडे तो निकालो।
आशा (बात काटते हुयी, सीधे भाव से): वह सब पॉसिबल नहीं है…यह लो…घुसा लो…
आशा तुरंत अपना गांड पापा की तरफ कर दिया, और दिवार से टेककर खड़ी हो गयी। उसने अपना दोनों हाथ से शर्ट को उतना ही ऊपर किया जितना उसकी गांड दिखाई दे सके।
जगदीश राय : ऐसे खड़े खड़े…पर इसमे तो पूँछ लगी है…बेटा।
आशा: अरे तो निकाल लेना खीचकर गांड से पापा…क्रीम लगा कर सॉफ्ट करके आयी हुँ…
जगदीश राय , उतावले कापते हाथो से पूछ की मुलायम रेश्मी बालो को पकड़ कर गांड से खीच लेता है।
खिचते वक़्त उससे पता चलता है की आशा की गांड कितनी टाइट है। इतनी गांड मारने के बाद भी आशा की गांड बहुत टाइट थी।
आशा: पापा…ज़ोर से खीचिए…ऐसे नहीं निकलेगी।।।
जगदीश राय , पूरा ज़ोर लगा खीचना शुरू किया ।
धीरे धीरे आशा की गांड से बाहर गया, और अन्तः में 2 इंच का गोलदार भाग 'पलॉक' के आवाज़ से बाहर निकल गई।
पूँछ बाहर निकलते ही, आशा की गोलदार गांड के बीचो बीच एक 2 इंच का सुन्दर होल, गांड के छेद को चौड़ा कर , अपने पापा के लंड को मानो पुकार रहा था।
जगदीश राय, ने जवाब में 3 इंच मोटे लंड को उस होल में घुसाना उचित समझा ।
और १० सेक्ण्ड के अंदर, अपने पापा के 9 इंच लम्बाई के लंड से कठोर चुदाई , आशा की गांड खोलकर ले रही थी।
हर चुदाई के भारी धक्के से, आशा दिवार से चिपक जाती और गांड का छेद 3 इंच तक खीच जाता।
इसके पहले की देर हो जाए, जगदीश राय ने तुरंत तूफ़ानी गति से पेलते हुए, अपना ढेर सारा गाढ़ा वीर्य से आशा की गांड को भर दिया।
हाफ्ती हुयी, कापते पैरो से, जगदीश राय , लंड को गांड से बाहर निकाला।और बिस्तर पर बैठ गया।
आशा, बिना किछ कहे, पूछ का गोलदार हिस्सा, बाये हाथ से गांड पर ले जाती है। और "ह्म्ममम्म" के आवाज़ से गांड में एक झटके से घुसा देती है।
गाँड में घुसते वक़्त , पापा का ढेर सारा मलाइदार वीर्य गांड के छेद से निकलकर पूँछ और उसके हाथो पर गिर पड़ता है। और थोड़ा शर्ट पर भी। आशा उसकी कोई परवाह नहीं करते हुयी, शर्ट ठीक करके, चलने लगती है।
जगदीश राय : बेटी…कल भी आना…।अब सिर्फ कल की रात है।।परसो रात से निशा आ जाएगी…
आशा: मतलब परसो रात से तो आप फिर से दूल्हे राजा…नहीं…हाँ पर मेरे बारे में निशा दीदी को कुछ पता नहीं चलनी चाहिए।।
जगदीश राय : हाँ हाँ बेटी ।।।बिल्कूल।…मैं क्यू।।कैसे…
आशा: तो फिर ठीक है।।वैसे कौन ज्यादा पसंद है आपको।। दीदी की चूत या ��ेरी गांड।।।
अगले दिन, आशा ने अपने पापा को पूरा निचोड कर रख दिया था। कल आशा ने छुपके से अपने पापा से कहा था।
आशा (प्यार से): पापा…मेरी आज म्यूजिक क्लास है…लेकिन आप चाहो तो मैं आपकी इस बासुरी के साथ गुज़ार सकती हु…क्या आप जल्दी आ सकते है…?
जगदीश राय को आशा की प्यार भरी अंदाज़ से ताजुब हुआ।
जगदीश राय (मैं मैं): अरे कल तक तो यह मुझ पर उपकार कर रही थी।।और आज इतने प्यार से…
जगदीश राय : हाँ …मैं…कोशिश कर सकता हूँ।
आशा: तो फिर ठीक…3 बजे।। और सशा कल लेट आयेगी…उसकी सहेली की बर्थडे जो है…तो हमें आराम से 4-5 घन्टे मिलेंगे।।
जगदीश राय 5 घन्टे सुनकर खूशी से पागल हो गया। क्युकी आज तक उससे 30 मिनट से ज्यादा आशा ने नहीं दिया था।
पर आज जगदीश राय को पता चल गया था की वह सब इस आशा की चाल थी।
वह जानती थी की 15 दिन से भूखी निशा आते ही लंड माँगेगी। और पूरी रात निशा आज उनका लंड चूसेगी और निचोड़ेगी।
ओर जो दर्द जगदीश राय को होगा, उसे देखकर परपीड़क (सैडिस्ट) आशा को मजा आयेगा।
जगदीश राय (मैं मैं): देख तो कैसी बेठी है अब,एक नंबर की हरामी है यह घर की। पर कल सच में आशा ने हाल बुरा कर दिया मेरा।
सोचा नहीं था की आज कल की लड़कियां मर्दो का ऐसा हाल करके चुदवाती है।
कल दोपहर, जगदीश राय पहली 2 चुदाई के बाद, हाफ्ते बेड पर पड़ा रह।
जगदीश राय : बस बेटी…थक गया…
आशा , पैर खोले, गांड में 2 उंगलिया , पूरा घुस्साकर , ज़ोरो से अंदर बाहर कर रही थी।
आशा: क्या पापा…अभी तो सिर्फ ४५ मिनट हुई है…और पूरा 5 घण्टा बाकी है…मुझे तो अभी गर्मी आयी है… चलिये…खड़ा कीजिये…मैं हिला दू?
जगदीश राय: बस 5 मिनट दे दो…
आशा: मैं जानती हु…इस पप्पू का क्या करना है।
आशा तुरंत उठ गयी। और बिस्तर पर खड़ी हो गयी। और इस के पहले जगदीश राय कुछ समझ पाता, आशा अपने पापा के चेहरे के 2 इंच दूरी पर अपने गांड के छेद को ले गयी। उसने अपने गांड को हाथो से खोल रखा था।
गाँड में से अजीब सी गंध आ रही थी, जो बहुत मादक लग रही थी। और आशा के ऑंखों के सामने, उसके पापा का लंड फिर से खड़ा होने लगा।
जगदीश राय के लाख चाहने पर भी, आशा ने उस वक़्त गांड को चाटने नहीं दिया था। वह पैतरा आगे के लिए रखी थी।
पुरी 5 घण्टो में, जगदीश राय 5 बार झड गया। हर बार आशा कुछ नए अन्दाज़ में उसका लंड खड़ा करती और तुरंत गांड में घूसा देती।
यह सब सोच कर जगदीश राय का लंड फिर से खड़ा हो गया। पर खड़ा होते वक़्त लंड और टट्टे दर्द करने लगा।
सभी निशा का इंतज़ार कर रहे थे। निशा ने फ़ोन में बता दिया था की उसकी सहेली के पापा , उसे घर ड्राप कर देंगे।
जगदीश राय, निशा के बारे में सोचते ही उसे निशा की चूत की खूशबू याद आ रहा था। पर आज लंड खड़ा होते होते दर्द कर रहा था।
अचानक घण्टी बजी।
आशा: लगता है दीदी आ गयी…
दरवज़ा ख़ुलते ही निशा हँसते हुई आयी। आशा और सशा , निशा से लिपट गई।
फिर निशा भागके आकर अपने पापा से ज़ोर से गले लगी।
निशा: पापा…कैसे हो…।
निशा ने अपना भरे भरे चूचे , पापा के सीने में चिपकाकर रख दिए। जगदीश राय को निशा के चूचियो का गर्मी से अंदाज़ा हो गया की वह कितनी भूखी है।
आशा की नज़रे पापा और निशा पर थी। और आशा को देखकर जगदीश राय थोड़ा सा शर्मा गया। पर निशा इन सब से बेखबर , पापा से लिपटी रही।
जगदीश राय : बेटी मैं तो ठीक हु…तुम बताओ …।कैसी रही…तुमारी ट्रिप…सब कुछ ठीक हुआ ना।
निशा: बहुत मजा आया पापा…क्या बताऊ…
और निशा अगले 2 घण्टो तक बक बक करती रही। तीनो लड़कियों आपस में दोपहर तक बातचीत करती रही। और खाना बाहर से मंगवा लिया।
दोपहर को जगदीश राय के कमरे में निशा घूस गयी।
निशा के आते ही सशा और आशा उसे उसके ट्रिप के बारे में पुछकर फोटोज देखने लग गये।
जगदीश राय , यह जानते हुए की खाना बनाना तो दूर की बात है, होटल से खाना आर्डर कर दिया।
निशा : पापा…आप को फोटोज नहीं देखनी…यह देखिये मेरी क्लास पिछे फाल्स के पास की है…
यह केहकर निशा भाग के जगदीश राय के पास आयी और सीधे जगदीश राय के गोद पर बैठ गयी।
जगदीश राय शरमाते हुए चौक गया। आशा ने एक मुसकान दी और सशा हँस पडी।
निशा ने, जवान होने के बाद से, बेचारी पहले कभी अपनी पापा के गोद में इस तरह सबके सामने नहीं बैठी थी।
जगदीश राय और आशा दोनों समझ गए की निशा बहुत गरम हो चुकी है। और लंड के लिए तड़प रही है।
जगदीश राय: अच्छा बेटी अच्छा देखता हु…पहले तुम निचे सोफे पर तो बैठ जाओ।
आशा: अरे बेठने दो न पापा…दीदी इतने दिनों बाद तो आयी है…अपनी प्यारे पापा का मिस कर रही है…सॉरी…मेरा मतलब है…पापा को मिस कर रही है
जगदीश राय झेप गया।
लेकिन निशा आज शर्म हया भूल चुकी थी। पीछले 10 दिनों में उसका जो हाल हुआ था वह सिर्फ वह ही जानती थी।
उसके बहुत सारी सहेली , अपने बॉय फ्रेंड के साथ चुदवा रही थी रात को और वह अपने उँगलियों से काम चला रही थी।
दो तीन लड़को ने उसे ऑफर भी दिया था इन डायरेक्टली पर उसने उन्हें मना कर दिया।
उसकी यह हालत देखकर, उसकी एक सहेली पारुल ने उससे समझाया भी।
परूल: देख निशा…सभी कॉलेज ट्रिप में मजा करने आते है…ताकि घर की निगरानी से दूर बेफिक्र होकर चुदवा सके…।और तू है की…
निशा: लेकिन मेरा तो कोई बॉय फ्रेंड नहीं है…तो मैं कैसे।।
परूल: अरे पगली…बॉय फ्रेंड किसको चाहिये…चूत को सिर्फ लंड चाहिये… वह किसीका भी हो…इतने सारे लंड है यहाँ…चुन ले किसी एक को…तेरे लिए तो हर कोई भी राजी होगा…
निशा: क्या…क्या बक्क रही है…
पारूल: अरे और नहीं तो क्या…वह सिमरन पिछले ४ रातो से 7 लंड ले चुकी है।। और उसकी तो तेरे जैसी अच्छि फिगर भी नहीं है…यहाँ सब बिन्दास है डियर…
निशा: मैं तो नहीं मानती…मैडम और सर जान जायेंगे… डायरेक्ट घर फ़ोन लगेगा…
परूल : है है है…अरे पगली…फ़ोन तो मैडम और सर के घर लगनी चाइये…वह दोनों तो जब से आए है, तब से एक भी रात एक दूसरे के बगैर नहीं सोये है…सर ने तो कल मेरे बॉय फ्रेंड विशाल से कंडोम भी लेके गए थे…तू सपनो की दुनिया मैं है।
निशा: क्या बोल रही है…सच।।?
पारूल: मूछ…और नहीं तो क्या…बोल कौन सा लंड चाहिये…।मैंने सुना है…त्रिलोक का लंड काफी बड़ा है।।चलेगा…और फिर सोनू चूत बहुत देर तक चाटता है।।और आकाश…गांड।।।
निशा: नहीं नहीं…मैं तो त्रिलोक और सोनु से तो बात भी नहीं करती…और उन सब की तो गर्ल फ्रेंड भी है।।
पारूल: लो तू फिर शुरू हो गयी…ठीक है…विशाल तो ठीक है…?
निशा: पर वह तो तेरा बॉय फ्रेंड है।
पारूल: वह मेरी प्रॉब्लम है… उससे तुझे क्या…तू बस उसका लंड ले ले एक बार…पर सिर्फ जस्ट वन टाइम ओके…बाद में नहीं मिलेगी।।हे हे
निशा: पर तुझे बुरा नहीं लगेगा…
पारूल: नहीं…क्युकी डियर…अपना वसूल है…जितना लंड बाटोगे उतना तुम्हे लंड मिलेगा…हे हे…और वह अगर तेरी चूत मारेगा।।तो मुझे भी दूसरे लंड खाने का मौका मिलेगा…क्यों है न प्लान सही हे हे।
निशा: अब समझी कमिनी… हे हा।
पारूल: तो फिर बोल दूँ विशाल को की आज उसके लिए एक नयी हॉट माल है…?
निशा: हम्म्म…नहीं…रुक जा…मैं तुझे बताउंगी तब बोलना।
पारूल:…तेरी मर्ज़ी…हम सिर्फ भटके हुए को रास्ता दिखा सकती हैं…हे हे।
और अगला 6 दिन निशा करवटे बदल बदल कर निकाली। वह जानती थी की उसके पापा का भी यहीं हाल हो रहा होगा। और वह उनको तडपा कर खुद एश नहीं कर सकती।
और आज वह दिन आ गया था। आज वह पापा से खूब चूदना चाहती थी।
निशा ने अपने गांड को पापा के लंड से दबाये रखा। वही आशा यह सब देखकर मुस्कुरा रही थी।
आशा: सशा चल हम ऊपर चलती है…।शायद दीदी को पापा के साथ कुछ टाइम स्पेंड करना होगा।
सशा: अच्छा?
निशा: हाँ…बहुत दिनों बाद मिली हूँ न पापा से…
सशा: चलो ठीक है फिर…वैसे भी मेरे होमवर्क का टाइम हो गया है…
आशा: होम वर्क का तो इस घर में सबका टाइम हो गया है , हे हे।
निशा आशा की यह बात समझ नहीं पायी, और उसे दाल में काला नज़र आने लगी।
आशा और सशा के जाते ही, निशा पापा के गोद में , टांगे इर्द-गिर्द फैला कर बैठ गयी। अब उसकी भट्टी जैसी गरम चूत सीधे लंड को छु रही थी।
जगदीश राय का लंड , कल रात की चुदाई के बावजूद , दर्द होते हुए खड़ा हो गया।
निशा: पापा…ओह…मुझसे अब रहा नहीं जा रहा…प्लीज चोद दो मुझे…।
जगदीश राय: यहाँ…अभी…
निशा: हाँ…देखो न चूत कितनी गरम है और पानी छोड रही है…बस अपना लंड बाहर निकालो …मैं बैठ जाती हु…।चलो धोती खोल दो…चलो।
जगदीश राय: अरे नहीं नहीं…।सशा देख लेगी तो क्या सोचेगी…
निशा ने नोट किया की जगदीश राय ने आशा का नाम नहीं लिया।
जगदीश राय: दोपहर को इत्मिनान से करते है…
निशा(रूठते हुए): आप बहोत गंदे हो…बेटी इतनी दिनों बाद आयी है…चूत के लिए लंड माँग रही…और आप भाव खा रहे हो…
जगदीश राय: अरे नहीं प्यारी…कहो तो आज दोपहर पूरा टाइम लंड इस चूत से बहार निकलेगा ही नहि। बस…वादा रहा।।
जगदीश राय ने जोश में कह तो दिया था, पर अभी भी उसके टट्टो में दर्द था। आशा ने उसे बुरी तरह जो निचोड दिया था, कल रात।
निशा: हम्म…ठीक है फिर तो…पर आप चाट तो सकते है न…।।
जगदीश राय: हम्म…हाँ…क्यो नहीं…चाटना सेफ होगा…मेरे ख्याल से…
यह सुनते हि, किसी चुदासी रांड की तरह, निशा ने तुरंत अपना स्कर्ट ऊपर उछाल लिया और बिना-पेंटी की चूत जगदीश राय को प्रस्तुत किया।
निशा: यह लीजिये…।थोड़ा चेयर पर निचे सरक जाइये पापा…।हाँ ऐसे…यह लो… गरम रसीली चूत आपके मुह में…ओह्ह्ह…।वाउ…।मा…।इतने दिनों बाद…ह…क्या मज़्ज़ा …।।हाँ पापा…ऐसे ही…।हाँ चूत खोलकर…डालिये जीभ अंदर…।।हाँ ऐसेही…।।और तेज़…और…और…और…और ।।और…और।।ओह्ह्ह म्मा…मैं झड रही हु पापा……ओह …।।यह आ ओह आ…ओह…।पापा…ओह……ओह…।।हाँ चाटिये…।सारा पानी…।यह माँ…।।यह…।।पापा
जब निशा को होश आया तो उसने देखा तो हँस पड़ी… उसके पापा नज़र नहीं आ रहे थे। जगदीश राय को पूरे उसके स्कर्ट ने ढक रखा था।
निशा (बेशर्मी से): ओह पापा…।बहुत अच्छा लगा…क्या चाटा आपने…आपको कैसे लगा …अब मैं दोपहर तक का इंतज़ार कर सकती हु…।
जगदीश राय: बेटी यह कोई पूछने की बात है…।तुम्हारी चूत का पानी तो दिन भर पीते ही जाऊं।
निशा: धत…।
खाना खाने के बाद, जगदीश राय ने आशा को बुलाया।
आशा: क्यों पापा…।दीदी की चूत का पानी कैसा था?
जगदीश राय: तो क्या तुमने सब सुन लिया…।?
आशा: सुना भी और देखा भी…इतना जो चिल्ला रही थी दीदी …।बहुत गरम है दीदी…।
जगदीश राय (घबराते हुए): सशा ने भी…?
आशा: नहीं…लकीली वह उस वक़्त बाथरूम में चलि गयी…हाँ यह पता नहीं की उससे बाथरूम में दीदी की चीख़ पुकार सुनि या नहीं…
जगदीश राय: नहीं सुनि होगी…वरना वह कहते वक़्त पूछती ज़रूर…अच्छा आशा बेटि, तुम एक काम करो अभी सशा को लेकर कहीं चलि जाओ।
आशा: कहाँ…मैं नहीं जाने वाली।
जगदीश राय: अरे समझा कर…।तेरी दीदी बहुत गरम है…।
आशा: अरे तो दीदी को लंड चाहिए तो हम क्यों घर से बाहर जाये…आप लोग क्यों नहीं जाते किसी होटल में…
जगदीश राय (थोडा गुस्से में): बकवास मत कर…तू अच्छि तरह जानती है की सशा को इन सब की खबर नही��� होना चाहिए…
आशा: अच्छा बाबा जाती हु…हम शॉपिंग और फिर मोवी, ठीक है…?
जगदीश राय: सिर्फ मूवी काफी नहीं है…
आशा: जी नहीं…।शोप्पिंग एंड मोवी।
जगदीश राय: ठीक है…
आशा: और एक शर्त…।आज रात को दीदी की चुदाई के बाद मेरा गांड चाटेंगे और मारेंगे भी।
जगदीश राय: अरे…क्या…।कैसे…मतलब…तेरी दीदी तो खुद मुझे देर रात तक …।और फिर तुम्हे कैसे…।
आशा: वह सब मैं नहीं जानती…।दीदी के जाते ही मैं आउंगी … मंज़ूर है…
जगदीश राय: ठीक है…देखते है…
आशा मुसकुराकर अपनी जीत का जलवा दीखाते हुए गांड हिलाकर चल दि। क़रीब १० मिनट बाद सशा और आशा दोनों शॉपिंग के लिए चल दिये।
यहाँ आशा-सशा घर से निकल ही गए थे, की जगदीश राय के बैडरूम पर दस्तक हुई।
दरवाज़ा खुला और निशा खड़ी थी। उसने कुछ भी नहीं पहन रखा था…पूरी नंगी थी।
नंगी निशा किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। जगदीश राय का लंड अपने दर्द को भूल कर, खड़ा हो गया।
निशा भाग कर अपने पापा के ऊपर कूद पडी।
निशा : अच्छा हुआ आप ने आशा और सशा को बाहर भेज दिया। क्या कहा उनसे?
जगदीश राय: कुछ नहीं…यहीं की जाके मूवी देख आओ…और शॉपिंग कर लेना।
निशा को यह बात कुछ हज़म नहीं हुई।
निशा: चलो जो भी है…आज मैं आपके लंड को निचोड दूँगी…।और आपका कोई बहाना नहीं चलेगा …। समझे पापा।
जगदीश राय , मुस्कुरा दिया पर मन की मन थोड़ा डर भी रहा था।
निशा ने तुरंत पापा की धोती साइड कर दी और खड़े लंड को हाथ में पकड़ लिया।
और बिना कुछ कहे, एक भूखी शेरनी की तरह , सीधे मुह में लेके चूसने लागी। चूसाई इतनी ज़ोर की थी की पता चल रहा था की लंड की कितनी प्यासी है निशा।
जगदीश राय ने कंडोम का पैकेट लेने के लिए हाथ बढाया, पर निशा ने उन्हें रोक दिया।
निशा: पापा …आज से कंडोम नहीं…मैंने पिल्स ले ली है…मैं आपका लंड का स्पर्श फील करना चाहती हु आज से…।और आप आज से अंदर भी छोड सकते है अपने माल को।
जगदीश राय यह सुनकर खुश हो गया और तुरंत निशा को बॉहो में ले लिया।
पर निशा ने जगदीश राय को निचे ढकेल दिया और खुद ऊपर चढ़ गयी। बिना कोई देर किये एक ही झटके में उसने जगदीश राय का लम्बा मोटा लंड चूत में घुसेड दिया।
निशा ने पूरा गांड ऊपर करके ज़ोर ज़ोर से लंड पे अपनी चूत मारने लागी। चूत इतनी टाइट और गरम थी की जगदीश राय चंद मिनिटो में झड़ने के कगार पर पहुच गया था।
हर बार जब निशा गांड ऊपर करती, चूत बाहर की तरफ खीच जाती। आज पापा उसे नहीं चोद रहे थे बल्कि निशा आज पापा से चुदवा रही थी।
जगदीश राय: बेटी…धीरे करो……नही तो मैं झड जाउँगा…
निशा: धीरे नहीं होगा पापा…झड़ना है तो झड जाओ…पर चूत अब नहीं रुकने वाली…
निशा जोर जोर से लंड पर चूत मारने लगी, समझ नहीं आ रहा था की कौन किसे चोद रहा है। पुरे कमरे में फच फच की आवाज़ गूँज रही थी साथ में निशा की सिसकियाँ…
जगदीश राय , एक ज़ोर का आवाज़ निकाला और निशा की चूत में झडने लगा। पर निशा की चूत की रफ़्तार थोड़ी भी धीमी नहीं हुई।
झडते लंड पर वीर्य के फवारे के साथ निशा की चूत उसे और निचोड रही थी।
जगदीश राय: रुक जा बेटी…मैं झड गया हु…थोड़ा धीरे…
निशा: नहीं पापा…मैं रुक नहीं सकती…प्लीज आप लेटे रहिये…लंड खुद कड़क हो जाएगा।।।
जगदीश राय का लंड , झडने के बाद सुकड़ना चाह रहा था, पर निशा की गरम गिली चूत की मार से खड़ा ही रह गया। जगदीश राय के टट्टो में दर्द होने लगा पर निशा आज कुछ परवाह नहीं कर रही थी।
जगदीश राय के झडने के २० मिनट तक निशा ऐसे ही ज़ोर ज़ोर से अपने पापा को चोदती रही, बिना रुके, बिना टोके। जगदीश राय की हर बिनती को उसने नज़रअंदाज़ कर दिया।
२० मिनट बाद जगदीश राय का लंड फिर से खड़ा हो गया था। पर वह झड़ना नहीं चाहता था क्युकी झडते वक़्त उसके टट्टो में दर्द हो रहा था।
और फिर निशा ज़ोर ज़ोर से हाँफते हुए तूफ़ानी अंदाज़ में चूत मारने लगी। और एक साथ जगदीश राय और निशा दोनों झड़ने लगे।
जगदीश राय: आर्गग्घहहह…निशा…बेटी…रऊउउउक…हाआआ…मैं झड़डडडडहह रआआह्ह्हआआ हूऊऊऊ
निशा: आआअह्हह्ह्ह्ह…पाआआआप्पप्पपप्पपाआआ……।
निशा कमसे कम 4 मिनट तक झडती रही। उसका सारा बदन थर थर कांप रहा था।
निशा इतनी जोर की झडी की उसे उसके मूठ पर कण्ट्रोल न रहा और उसने झड़ने के साथ साथ अपने पापा के कमर पर मूत भी दिया।
निशा बेहोशी की हालत में अपने पापा के ऊपर सोयी पड़ी थी। लंड अभी भी चूत में फसा हुआ था और निशा के पानी में नहा रहा था।
जगदीश राय का लंड दर्द कर रहा था। लंड अभी भी वीर्य उगल रहा था।
जगदीश राय, समझ गया की निशा को जी-स्पॉट ओर्गास्म आ चूका है। उसने काँपती निशा को बाहो में भर लिया। निशा झड़ती जा रही थी।
कोई १० मिनट बाद निशा जाग गयी।
निशा: सॉरी पापा…।शायद मैं ने आपके ऊपर थोड़ी सु-सु (यूरिन) कर दी।
जगदीश राय (निशा के गालो में हाथ फेरते हुए): बस थोड़ी सी? क्या पूरी नहीं की…नहीं किया तो और कर दो…
निशा: क्या…? नहीं…मैं आपके ऊपर थोड़ी ही कर सकती हूँ।
जगदीश राय: क्यों नहीं…मैं कह रहा हु न मुझे भी सु सु लगी है आओ…साथ में कर दो…
यह कहकर जगदीश राय ने अपना लंड फिर से निशा की चूत में घुसा दिया और बोला।चलो साथ में सु सु करते है।बहुत मज़ा आएगा।
दोनों एक साथ सु सु करने लगते है।निशा की आखे आनंद से बंद हो जाती है।पेशाब धीरे धीरे निचे आने लगता है।दोनों को इतना मज़ा आ रहा है की दोनों एक दूसरे के होठों को चूसने लगते है।
जगदीश राय को अपने लंड पर गरम पानी का एहसास हुआ था निशा को भी अपने चूत में तेज खलबली महसूस हुई।निशा की मुह से सु-सु निकलते हुए सिसकी निकली थी। जगदीश राय निशा को कसके बाहो में भर लिया और उसके गालो को चुमा।
निशा सु-सु करके वही पापा के ऊपर सो गयी। लंड अभी भी चूत के अंदर था।
निशा को चूत में कुछ महसूस हुआ। जब उसने आँख खोला तो अपने आप को पापा के ऊपर पाया। उसके दोनों मम्मे पापा की छाती से दबे हुए थे। और चूत में लंड खड़ा और कठोर हो चूका था।
निशा को अपने पापा का वादा याद आया की आज दोपहर तक लंड चूत से बाहर नहीं निकलने वाला है। सुसु की कामुक गंध सब जगह फ़ैल गयी थी, पर निशा को यह गंध और भी उत्तेजित कर रही थी।
जगदीश राय , अभी भी सो रहा था। निशा ने धीरे धीरे गांड हिलाकर लंड को अंदर बाहर करना शुरू किया।
थोड़ी देर बाद जगदीश राय की आँख खुली। और पाया की निशा फिर से चुदवा रही है। और कमरे में सुसु की गंध उसे भी पसंद आने लगी।
एक गजब सा वातावरण हो गया था, पिशाब और वीर्य के बदबू से। पर आज बाप-बेटी ख़ुद को गंदे साबित करने में हिचकिचा नहीं रहे थे।
जगदीश राय ने निशा की आँखों में देखा और निशा मुस्करायी। और फिर आंखें बंद कर ऊपर-नीचे होने लगी।
जगदीश राय ने तुरंत निशा को निचे पटक दिया और जोर-जोर से निशा को पेलने लगा। निशा खुद भी यही चाहती थी।
कोई 2 घन्टे तक , कभी निशा ऊपर तो कभी जगदीश राय, कभी डोगी स्टाइल तो कभी खड़े-खड़े निशा और जगदीश राय एक दूसरे को चोदते रहे।
शाम के 6:30 हो गया था।
जगदीश राय: मैं तो थक गया बेटी…।अब तेरा यह बूढ़े बाप से इतना ही हो पायेगा।
निशा: अरे मेरे प्यारे पापा, आप नहीं जानते आप में कितनी ताकत है।
और पापा के टट्टो को दबाते हुए कहा।
निशा: देखो टट्टे अभी भी भरे हुए है।
निशा के टट्टो को दबाने से जगदीश राय की दर्द से सिसकी निकल गयी
निशा: चलो अभी ब्रेक ले लेते है। वैसे भी वह दोनों आते ही होंगे। रात को खाना खाने के बाद मिलते है, सो मत जाना पापा। ठीक है।।
जगदीश राय: अरे बेटी…मुझे नहीं लगता मुझसे कुछ हो पायेगा रात को…एक काम करते है…कल संडे हैं…मैं इन्हे फिर कहीं भेज देता हु…
निशा: जी नही, कोई बहाना नहीं…।मैं रात को 11 बजे आउंगी। लंड तैयार रखना, मेरी चूत तो तैयार है ही।
फिर निशा चल दी।
जगदीश राय सोचने लगा की अब कैसे वह निशा और फिर आशा को खुश करे। वह अब २ पत्नियों के पति की दुविधा में फस चूका था।वह तैयार होकर जल्दी से मार्केट निकल गया।और एक मेडिकल स्टोर से बियाग्रा की गोली खरीद लाया और अपने रूम में छुपाकर रख दिया।वह समझ गया था की आज दोनों बेटियों की जवानी की गर्मी को शांत करने के लिए इसकी बेहद जरुरत है।
आज जगदीश राय को निशा की जबान से 'लंड' और 'चूत' जैसे शब्द सुनकर आस्चर्य हो रहा था। शायद ये उसने किसी सहेली के साथ बोलकर आदत डाल ली है।
रात का 10:45 बज चूका था। जगदीश राय अपने बैडरूम में बैठा हुआ था। बेडशीट बदली हुई थी पर कमरे में अभी भी सु-सु की गंध थी।
वह बार-बार किसी नई नवेली दुल्हन की तरह घडी को देखे जा रहा था।
उसने धोती हटाकर अपने लंड को देखा। लंड , एक घायल शेर की तरह, सोया पड़ा हुआ था।उसने गोली खा लिया।
उसने सोचा अगर लंड जल्दी खड़ा नहीं हुआ तो तब तक निशा को चाटकर खुश करेगा।
वही आशा , सशा के सोने का राह देख रही थी। उसे पता था ही निशा फिर पापा से चुदने जाएगी। और पापा जो कल रात और आज दोपहर चुदाई करके थक गए है।
पापा का यह बुरा हाल देखकर उसे बहुत मजा आ रहा था। उसने अपना कान दरवाज़े पर जमाये रखा।
ठीक 11 बजे जगदीश राय का दरवाज़ा खुला और निशा वहां खड़ी थी। पूरी नंगी थी। जगदीश राय, को उसके नंगापन पे आश्चर्य हुआ की कैसे उसे आशा-सशा का डर नहीं रहा।
जगदीश राय: बेटी…देखो…मुझे नहीं लगता आज ज्यादा देर होगा…मैं चाहु तो…
निशा (टोकते हुए): अरे पापा, आप उसकी चिंता क्यों करते है…।आप मुझे खुश देखना चाहते है न…।
जगदीश राय: हाँ बेटी…
निशा: तो , यह बताइये आपको मेरा कौन सा हिस्सा चुमना है…?
जगदीश राय: बेटी वैसे तो तुम पूरा चुमने लायक हो…पर तुम्हारी चूत बहुत प्यारी है।
निशा: तो आप सिर्फ मेरी चूत चूमो और चाटो। बाकि सब मुझपे छोड दो…ठीक है।
जगदीश राय: ठीक है।
निशा ने अपने चूत को जगदीश राय के चेहरे के ऊपर रख दिया। और जगदीश राय चाटने लगा। निशा ने फिर 69 पोजीशन में आकर पापा के लंड को मुह में ले लिया।
और निशा ने किसी वैक्यूम क्लीनर के फाॅर्स से पापा का लंड चूसने लगी।
हर चूसाई से एक "स्स्स…" की आवाज़ रूम में फ़ैल रही थी।
निशा की चूत की मादक खुसबू और लुंड के चूसने से, १० मिनट में ही जगदीश राय का लंड खड़ा होने लगा।
निशा फिर अपने पापा के ऊपर चढ़कर चोदने लगी।
1 बजे रात तक यही सिलसिला चलता रहा। जगदीश राय 2 बार झड चूका था। हर बार निशा उसकी लंड चूस कर खड़ा कर देती और लंड चूत में घूसा लेती। और फिर बिना रुके लंड को अलग अलग पोज में चूत में घुसवाकर चुदाने लगती।ज्यादा धक्के वही लगाती।कभी कुतिया की तरह बन जाती।कभी पापा के लंड पर चढ़कर कूदने लगती।
झडते वक़्त जगदीश राय दर्द से चीख पडता। निशा कितनी बार झड चुकी थी, उसकी गिनती वह भूल चुकी थी। पूरा बेड निशा के चूत रस से गिला पड़ गया था।
निशा पापा के इस दर्द से वाक़िब थी , पर वह अपने गरम चूत के सामने बेबस हो चुकी थी।
जगदीश राय: बेटी अब और नहीं…बस हो गया…।
निशा: ठीक है पापा…आज के लिए इतना। कल फिर करेंगे। ओके। तब तक आप अपने प्यारे लंड को आराम दे।
यह कहकर निशा पापा के माथे पर चुम्मी दी और अपनी गांड मटकाती हुई , नंगी ही अपने कमरे में भागती हुई चल दी।
रात के 2:30 बजे , जगदीश राय , नंगा होकर, थक कर सो गया था। कमरे में लाइट चालु थी । और कमरे के लाइट में जगदीश राय का लंड निशा के चूत-रस से चमक रहा था।
तभी उसे महसूस हुआ की कोई कमरे में आ चूका है। और देखा तो वहां आशा खड़ी थी।
आशा: क्यों पापा…सो गए क्या…
जगदीश राय: अरे बेटी …तुम यहाँ क्या कर रही हो…इस वक़्त।
आशा: आपकी प्रॉमिस भूल गए…
जगदीश राय: नहीं बेटी…आज तो नहीं होगा…प्लीज…जाओ सो जाओ…
आशा: यह अच्छी बात नहीं है…पापा…आप ने हमे सिखाया था की "प्रोमिस शुड बी केपट"। और आप ही मुकर रहे हो…
जगदीश राय: अरे बेटी…सॉरी…पर आज नहीं होगा कुछ…
आशा (ग़ुस्से में): मैं इतना रात तक उल्लु की तरह जागी…और आप…ह्म्मम।। मैं निशा दीदी को कल सब बता दूँगी…।
जगदीश राय: क्या? नहीं…?
आशा: हाँ… और सशा को भी…?
जगदीश राय: बिलकुल नहीं…चूप।।।…
आशा:नहीं…तो ठीक है…फिर यह लो…चाटो
यह कहकर आशा खड़े खड़े अपनी स्कर्ट ऊपर कर दी। और गांड जगदीश राय के तरफ कर दी।
गाँड , गोलदार सावली और उसमें से चिरती हुई सफ़ेद पूँछ। न चाहते हुए भी लंड पर ज़ोर आ गया। लंड दर्द करने लगा।
जगदीश राय, थका हुआ शरीर लेकर आशा की गांड की पूँछ को धीरे से उठाया। और पूँछ से छिपी सांवली मुलायम चूत नज़र आ गयी।
जगदीश राय यह उम्मीद में था की कहीं उसने आशा की चूत को चाटकर उसका पानी निकाल दिया, तो वह शायद उसे आज रात के लिए छोड दे।
वह आशा की चूत पर टूट पडा। आशा अपना गांड पीछे कर , पीछे से चूत चटवा रही थी।
आशा:मम…हाहह… पापा…जीभ अंदर तक डालो न…।।लो…मैं पैर ऊपर कर देती हूँ…।।अब लो…।।चाटो खुलकर चाटो…।।हाँ…।ऐसे ही…।और चाटो……।और ।।और…।आह…
करीब १५ मिनट तक आशा खुद को रोककर खड़ी रही और फिर खड़े खड़े ही ज़ोर से झड़ने लगी। उसका सारा शरीर ज़ोर से हिलने लगा।
जगदीश राय को लगा मानो वह ज़मीन पर गिर जाएगी। पर आशा बेड पर गिर पडी।
जगदीश राय ने राहत की सास ली…
जगदीश राय: बहुत ज़ोरो से झडी तुम बेटी…थक गयी हो सो जाओ अब…
आशा: क्या…नही…यह तो मैं दीदी की चुदाई देखकर हॉट हो गयी थी…इसलिए…अपना लंड खड़ा कीजिये…मेरे गांड में बहुत ज़ोरो की खुजली मची है…
आशा बेशरमी से अपने पापा को उनपर होने वाले ज़ुल्म का घोषणा दी।
जगदीश राय , चौकते हुए… अरे नहीं बेटी…मैं न कहा न…आज तो…
आशा ने तुरंत ज़ोरो से जगदीश राय का लंड मुठी में थाम लिया और उसे बेदरदी से पकड़कर कहने लगी
आशा: आज तो मैं इससे इत्तनी चुदवाऊंगी…सारी प्यास बुझा दूँगी…निचोड लूँगी इसे…
जगदीश राय: ओके
…बेटी…। तुम क्या निचोड़ेगी…पहले से तेरे दीदी ने निचोड लिया है इसे…।
आशा: पापा…बहुत रस बचा है इसमे…अभी दिखाती हु…
और आशा तेज़ी से लंड चूसने लगी। पूरे गले तक लेने लगी। जगदीश राय आँखे बंद किये अपने लंड के दर्द को बर्दाष्त कर रहा था। और देखेते ही देखते जगदीश राय का लंड , १० मिनट के भयंकर चूसाई के बाद ,बिलकुल रॉड की तरह खड़ा हो गया।
टट्टो में बहोत दर्द हो रहा था, पर न जाने क्यू, इस दर्द से लंड पर और प्रभाव पड़ रहा था और लंड और कड़क हो चला था। इसके बीच आशा ने गांड में से पूँछ को "फोक" की आवाज से बाहर खीच लिया।
आशा बिना चेतावनी दिए, घूम गयी और सीधे अपनी गांड के छेद में लंड घुसेड दिया। बिना तेल लगाये हुआ गाँड का छेद,में जगदीश राय का दर्दनाक लंड चीरता हुआ घूस गया।
जगदीश राय के आखों से आसूँ निकल गया, पर उसने अपनी चीख़ को रोका।
आशा को भी दर्द हुआ, पर आशा को दर्द से मजा आ रहा था।
आशा : अब दिखाती हु आपके इस लंड को…बहुत चोद रहा था दीदी की चूत को…अब इसका सामना मेरे गांड से है…
जगदीश राय: आह…धीरे बेटी धीरे…
यह कहना मुश्किल हो गया था की कौन मरद और कौन औरत।
आशा एक हाथ से अपने चूत को सहला रही थी और अपनी सूखी गांड लंड पर पटक रही थी। क़रीब चुदाई डेढ़ घन्टे तक चली। आशा 3 बार झड चुकी थी,
जगदीश राय का लंड पूरा लाल हो चूका था। और जो जगदीश राय को डर था वह होने वाला था। उसका लंड झडने के कगार पर था। और झडते वक़्त टट्टो का दर्द वह सह नहीं सकता था।
जगदीश राय: बेटी…रुक…जा…में झडने वाला हु…।मुझे…।दरद…होगा…रुक रुक…।आह…नहीं…आह…ओह।
झगीश राय , इतना ज़ोरो से चीख़ पड़ा के टट्टो-से दर्द का जैसा बम फटा हो। वह पागलो की तरह कापने लगा।। और लंड आशा की गांड के अंदर पिचकारी मारता गया। हर पिचकरी का दर्द एक चीख़ ले आता।
आशा, अपने पापा के ऊपर हंसती जा रही थी। उसे अपने पापा के इस दुर्दशा पर मजा आ रहा था।
जगदीश राय , अभी झड़ना , ख़तम कर ही रहा था की अचानक से दरवाज़ा खूल गया।
दोनो चौक पडे। झडते हुए पापा के ऑंखों के सामने रूम के उजाले में , पतली मैक्सी पहने निशा खड़ी थी।
निशा गुस्से से जगदीश राय और आशा को घूरे जा रही थी।
निशा बिना कुछ कहें १० सेकेंड तक दोनों को घूरकर, बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गयी।
जगदीश राय तुरंत लंड बाहर खीच लिया, लंड अभी भी वीर्य उगल रहा था।
जगदीश राय: हे भगवन…निशा सब देख चुकी है…अब खुश हो गयी…मैंने कहाँ था…निकल जा यहाँ से…
आशा , पहले डरी हुई थी पर अब वह मुस्कुरा दी।
आशा: अच्छा हुआ…दीदी ने…सब देख लिया…अब तो मैं यहाँ पूरी रात गुज़ार सकती हुँ।।क्यूं…?
जगदीश राय (धीमे आवाज में, समझाते हुए) : चुप कर…अपने कमरे में चली जा।।
आशा: अच्छा बाबा जाती हूँ…
और वह , फर्श पर से स्कर्ट उठाकर…गांड मटका के चल दी।
जगदीश राय , मन में, निशा को कल किस मुँह से देखे। इस विचार में टेंशन के साथ सोने की कोशिश करने लगा।
अगले दिन सुबह जगदीश राय, बिना किसी से कुछ कहें , जल्द ऑफिस चला गया। वह निशा को फेस नहीं करना चाहता था।
हालांकी वह जानता था की रात को उसे निशा से मुलाकात करनी पडेगी।
अगले तीन दिन तक घर पर सन्नाटा बना रहा। जो भी बात होती वह बस सशा ही करती। निशा अपने पापा से मुह तक नहीं मिला रही थी।
आशा का बरताव ऐसा था जैसे कुछ हुआ ही न हो। पर निशा और आशा भी नहीं बोल रहे थे।
चौथे दिन, जगदीश राय ने फैसला किया की जो भी हो उसे इस उलझन हो सुलझाना पडेगा, नहीं तो उसका परिवार बिखर भी सकता है।
वह सुबह जाने से पहले आशा से कहा।
जगदीश राय: आशा आज स्कूल से सीधे घर आना…एक्स्ट्रा क्लास में मत बैठना।
आशा: क्यों…।आज क्या है…
जगदीश राय (ग़ुस्से से): जो बोला है वह करो…।और ज़बान को लगाम दो…गॉट इट।
आशा, पापा के इस रूप से थोड़ी डर गयी और हामी में सर हिला दी।
शाम को जगदीश राय 3 बजे घर पहुँच गया। दरवाज़ा निशा ने खोल दिया। निशा बिना कुछ कहे अंदर को जाने लगी।
जगदीश राय: आशा आ गयी…?
निशा : हाँ आ गई।
जगदीश राय: उसे भी बुलाओ और तुम भी आओ। मुझे कुछ बात करनी है…
निशा: पापा…।इसकी…कोई…
जगदीश राय (भारी आवाज़ में) : जो बोलै है …वह करो…
थोड़ी देर बाद आशा और निशा दोनों ड्राइंग रूम में पापा के सामने खड़े थे।
जगदीश राय: बैठो…पिछले कई दिनों…इस घर में…जो कुछ भी चल रहा था … वह क्यों हुआ …कैसे हुआ…मैं नहीं जानता…
जगदीश राय: और जो भी हुआ है…इसमें सब गलती मेरी है…तुम्हारी कुछ नहीं…
जगदीश राय: इस लिए…आज के बाद…सब कुछ बंद…।तुम दोनों बहने हो…और तुम्हे ज़िन्दगी भर हर वक़्त प्यार से रहना है…
निशा: पर पापा…
जगदीश राय: बीच में मत टोको…।।आज से…जैसे हम थे…।।तुम्हारी मम्मी के वक़्त वैसे ही रहेंगे…समझी…।अब तुम दोनों गले मिलो और यह सब भूल जाओ।
आशा और निशा दोनों अपने पापा के तरफ घूरते रहे और फिर दोनों मुस्कुरा दी।
निशा: पापा…हमने तो कब की सूलह कर दी…और गले भी मिल लिए…और क्या आप के कहने से क्या सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा…
जगदीश राय: कोशिश तो कर सकती है।
निशा: नहीं पापा…जो भी हुआ है…सही या गलत मैं नहीं जानती…लेकिन…हालात के अनुसार हुआ है…आप और मैं या आप और आशा दोनों हालात के चँगुल मैं फस गये। अब इससे पीछे जाना मुमकिन नही।
जगदीश राय: तुम बोलना क्या चाहती हो।
निशा: यहि की गलती मेरी है…मुझे आप दोनों के प्यार और खेल को देखकर ग़ुस्सा नहीं करना चाहिए था। आशा का भी आप पर उतना ही हक़ है जितना मेरा। और वैसे भी मैं तो सिर्फ आपको खुश देखना चाहती थी। और वही ख़ुशी आपको आशा दे उसमे कोई बुराई नही।
जगदीश राय का मुह खुला ही रह गया।
जगदीश राय:क्या…तुम…
निशा: हाँ पापा…आजसे आप की मर्ज़ी…माँ की कमी पूरी करने के लिए आपकी दोनों बेटियां तैयार है।।क्योंकि आप हमारे प्यारे पापा है…
जगदीश राय को यकीन नहीं हो रहा था की क्या सुन रहा है।
निशा: तो ठीक है…क्या अब मैं आपके लिए चाय बना लाऊँ…की किसी को और कुछ बातें करनी है।
आशा जो अब तक चुप थी, बोल पडी।
आशा (शरारती ढंग से): क्या चाय से पहले…मैं और पापा एक राउंड खेल खेलकर आये…?
निशा: चुपकर…बेशरम…
आशा: नही दीदी।…।तीन दिन हो चुके अब…।अब सहा नहीं जाता।।।
निशा: मारूंगी अभी मैं तुझे…जा ऊपर होमवर्क कम्पलीट कर…।पापा इससे तो आप पूरा हफ्ता अपने कमरे से बाहर रखना…
आशा: पापा…आप दीदी की बात मत सुनना।
जगदीश राय को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वह क्या बोले।
जगदीश राय: तुम दोनों मेरी प्यारी बेटी हो।
आशा ने निशा को ठेंगा दिखाकर , ऊपर कमरे की तरफ भाग गयी। निशा भी हँस दी।
और 3 दिनों के बाद आज जगदीश राय बेहद खुश था। वह सोफ़े पर बैठा और पेपर उठा कर पढने लगा।
पर दिमाग पर यह सवाल था की आज किसकी बारी होनी चाहिये।
शाम को जब आशा और सशा पढाई कर रहे थे और निशा किचन में खाना बना रही थी तो जगदीश राय किचन में चला गया और निशा को बाँहों में भरकर चूमने लगा।आज 3 दिनों में जगदीश राय की प्यास बहुत बढ़ गई थी।उसने निशा की गांड को सहलाते हुए कहा।
जगदीश राय:बेटी तुमने अपना वादा पूरा नहीं किया।
निशा:कौन सा वादा पापा।
जगदीश राय:टूर पर जाते समय तुमने वादा किया था की तुम मुझे स्पेशल गिफ्ट दोगी।कब दोगी तुम और आज रात मेरे पास आओगी ना।प्लीज
निशा: ओके पापा।मैं रात के 12 बजे आऊँगी।और गिफ्ट भी दूँगी।पहले अभी तो छोड़िए।
जगदीश राय:निशा के होठों को चूसकर ओके बेटी मैं इंतज़ार करुँगा।
जब सभी खाना खाकर सो जाते है।लेकिन जगदीश राय की आँखों में नींद नहीं थी।उसका लंड अकड़ा हुवा था।वह 12 बजे तक जाग रहा था अपना लंड सहलाते हुए।वह पहले ही आशा को बता चूका था की आज रात वो निशा के साथ बिताएगा।तुम कल दिन में स्कुल बंक करके आ जाना।मैं भी ऑफिस से छुट्टी ले के 12 बजे तक आ जाउँगा।
रात के ठीक बारह बजे निशा जगदीश राय के रूम में आती है।वो भी सिर्फ ब्रा और पेंटी में। ठीक किसी मॉडल की तरह चलते हुए आकर जगदीश राय के बेड पर बैठ जाती है।
जगदीश राय अब निशा को पीछे अपनी बाँहों में भर लेता हैं और अपने जलते हुए होंठो को निशा की गर्देन पर रखकर धीरे धीरे चाटने लगता हैं और बहुत धीरे धीरे उसकी पीठ तक नीचे सरकता हुआ नीचे आता हैं. निशा की बेकरारी सॉफ उसकी सिसकारियों से स���नाई दे रही थी.जगदीश राय आज उसे पूरा पागल करने के मूड में था. वो चाहता था कि निशा पूरी तरह से बेकरार होकर उसकी बाहों में अपने आप को पूरा समर्पण कर दे. वैसे तो निशा ने ये बात बोल दी थी मगर करने और कहने में बहुत फ़र्क होता हैं.
जगदीश राय बहुत देर तक निशा के ऐसे ही पूरे बदन को जीभ से चाटता हैं और उधर निशा का सब्र जवाब देने लगता हैं.
निश���- पापा अब बस भी करो. क्या आप मुझे पागल करना चाहते हैं. अब मुझसे बर्दास्त नही होता.
जगदीश राय- इतनी जल्दी भी क्या हैं बेटी अभी तो पूरी रात पड़ी हैं. अभी तो मैने सिर्फ़ चिंगारी भड़काई हैं.अभी तो आग लगाना बाकी हैं.अब देखना ये हैं ये आग कितनी जल्दी शोले में बदल जाती हैं.
निशा- ये तो वक़्त ही बताएगा पापा कि आप के अंदर कितनी आग हैं. आज मैं भी देखूँगी कि आप में कितना दम हैं और इतना कहकर निशा मुस्कुरा देती हैं.........
जगदीश राय- तू मुझे चॅलेंज कर रही हैं देख लेना मैं दावे से कहता हूँ कि तू मेरे सामने टिक नहीं पाएगी. मैं अच्छे से जानता हूँ कि किसी भी लड़की को कैसे वश में किया जाता हैं.
निशा मुस्कुराते हुए- ये तो वक़्त ही बतायेगा कि आपका पलड़ा भारी हैं या मेरा.
जगदीश राय- फिर ठीक हैं लग गयी बाज़ी. अगर तू मेरे सामने अपनी घुटने ना टेक दे तो मैं आज के बाद हमेशा के लिए तेरी गुलामी करूँगा ये तेरे पापा की ज़ुबान हैं.
निशा- सोच लो पापा कहीं ये सौदा आपको महँगा ना पड़ जाए.
जगदीश राय- मर्द हूँ एक बार जो कसम ले ली तो फिर पीछे नहीं हटूँगा. मगर तू मुझे किसी भी बात के लिए मना नहीं करेगी. बोल मंजूर हैं.
निशा मुस्कुराते हुए- फिर ठीक हैं मुझे आपकी शर्त मंज़ूर हैं.
जगदीश राय कुछ देर ऐसे ही खामोश रहता हैं फिर गहरे विचार के बाद वो निशा के बिल्कुल करीब आता हैं. वैसे जगदीश राय मंझा हुआ खिलाड़ी था. इसकी दो वजह थी एक तो उसका हथियार काफ़ी दमदार था और दूसरा वो बहुत सैयम से काम लेता था. किसी भी परिस्थिति में वो विचलित नही होता था.
और पिछलों कुछ दिनों में आशा की कुँवारी गांड मारकर उसका मनोबल और भी बढ़ चूका था।
इस लिए उसे पूरा विश्वास था कि वो हर हाल में बाज़ी ज़रूर जीत जाएगा. हालाकी निशा की रगों में भी उसका ही खून था मगर निशा इन सब मामलों में एक्सपर्ट नहीं थी. उसने तो अपनी ज़िंदगी में बस अपने पापा के साथ सेक्स किया था. इस वजह से उसे सेक्स के बारे में ज़्यादा पता नहीं था.
जगदीश राय एक दम धीरे से निशा के पीछे आता हैं और और उसके कंधे पर अपने लब रखकर एक प्यारा सा किस करता हैं और अपने दोनो हाथों को धीरे से बढ़ाकर निशा के दोनो बूब्स को धीरे धीरे मसलना शुरू कर देता हैं. निशा मदहोशी में अपनी आँखें बंद कर लेती हैं और उसके मूह से सिसकारी निकल जाती हैं.
जगदीश राय फिर अपना होंठ निशा के पीठ पर रखकर फिर से उसी अंदाज़ में हौले हौले चाटना शुरू करता हैं. निशा की पैंटी पूरी भीग चुकी थी. वो तो बड़े मुश्किल से अपने आप को संभालने की नाकाम कोशिश कर रही थी.
निशा- पापा बस भी करो मुझे कुछ हो रहा हैं.
जगदीश राय-क्या हो रहा हैं बता ना. क्या तेरी चूत गीली हो गयी हैं. हां शायद यही वजह हैं और इतना कहकर जगदीश राय एक पल में अपना हाथ नीचे लेजा कर निशा की चूत को अपनी मुट्ठी में थाम लेता हैं.निशा के मूह से एक तेज़ सिसकारी निकल पड़ती है. फिर धीरे धीरे वो अपना हाथ निशा की पैंटी के अंदर सरका देता हैं और उसके क्लिट को अपनी उंगली से मसल्ने लगता हैं. निशा एक दम से बेचैन हो जाती हैं और जवाब में वो अपना लिप्स को अपने पापा के लिप्स पर रखकर उसे चूसने लगती हैं.
एक हाथ से जगदीश राय निशा के बूब्स को मसल रहा था और दूसरे हाथों से वो निशा की चूत को सहला रहा था. और निशा उसके लिप्स को चूस रही थी. माहौल पूरा आग लगा देने वाला था. थोड़ी देर में जगदीश राय का हाथ पूरा गीला हो जाता हैं.
निशा- पापा.............. अब बस भी करो मुझसे अब बर्दास्त नही हो रहा. आप शर्त जीत गये.
जगदीश राय- अरे मेरी जान तूने इतनी जल्दी कैसे हार मान ली. अभी तो शुरूवात हैं. देखना आगे आगे मैं क्या करता हूँ. इतना बोलकर जगदीश राय अपने दोनो हाथ निशा की पीठ पर रखकर उसकी ब्रा का स्ट्रिप्स को खोल देता हैं और अगले पल निशा झट से अपने गिरते हुए ब्रा को दोनो हाथों से थाम लेती हैं.
जगदीश राय अगले पल निशा के ब्रा को पकड़कर उसके बदन से अलग कर देता हैं और निशा भी कोई विरोध नहीं कर पाती. बस अपनी नज़रें नीची करके अपनी गर्देन झुका लेती हैं. जगदीश राय भी झट से निशा के सामने आता हैं और वो निशा के बूब्स को देखने लगता हैं. फिर वो अपना लिप्स को निशा के निपल्स पर रखकर उसे एक दम हौले हौले चूसने लगता हैं. ना चाहते हुए भी निशा अपने पापा की हरकतों को इनकार नही कर पाती और वो अपना एक हाथ अपने पापा के बालों पर फिराने लगती हैं.
जगदीश राय- निशा तुम्हारे ये दूध कितने मस्त हैं. जी तो करता हैं इन्हें ऐसे ही चूस्ता रहूं.निप्पलो को काट लूँ।
निशा- तो चूसो ना मैने कब मना किया हैं. जब तक आपका मन नहीं भरता आप ऐसे ही इन्हें चूस्ते रहो काटते रहो।
फिर जगदीश राय एक हाथ से उसके निपल को अपनी उंगली में मसल्ने लगता हैं और दूसरी तरफ वो अपना मूह लगाकर निशा के बूब्स पीने लगता हैं. निशा को तो लगता हैं कि अब उसकी जान निकल जाएगी. जगदीश राय सब कुछ एक दम आराम से कर रहा था. उसे किसी भी चीज़ की जल्दी नहीं थी. और वो जानता भी था कि ऐसे कुछ देर में निशा का भी संयम जवाब दे देगा और वो सब कुछ करेगी जो वो चाहता हैं.
करीब 10 मिनिट के बाद आख़िर निशा का सब्र टूट जाता हैं और वो तुरंत अपना हाथ आगे बढ़ाकर जगदीश राय का लंड थाम लेती हैं और उसे अपने नाज़ुक हाथों से मसल्ने लगती हैं. जगदीश राय ये देखकर मुस्कुरा देता हैं और अपना अंडरवेर उतारने लगता हैं और कुछ पल में वो एक दम नंगा उसके सामने हो जाता हैं.
निशा एक टक अपने पापा के लंड को देखने लगती है. निशा को ऐसे देखता पाकर जगदीश राय भी अपना लंड उसके सामने कर देता हैं.
जगदीश राय- ऐसे क्या देख रही हैं बेटी ।सिर्फ देखती रहोगी क्या.
राधिका अपना थूक निगलते हुए- पापा आज तो ये और बड़ा हो गया है।
फिर जगदीश राय निशा को बिस्तर पर सीधा लेटा देता हैं और उसकी पैंटी भी सरकाकर उसे पूरा नंगा कर देता हैं. अब निशा की चूत अपने पापा के सामने बे-परदा थी।
फिर जगदीश राय उसकी गर्देन पर अच्छे से अपनी जीभ फिराता हैं और फिर एक हाथ से उसके बूब्स को कस कर मसल्ने लगता हैं और और दूसरी उंगली उसकी चूत पर फिराने लगता हैं. और अपना जीभ से उसके दूसरे निपल्स को चूसने लगता हैं.फिर धीरे धीरे निचे आते हुए अपनी जीभ से निशा की चूत को चूसने लगता है। अब निशा का सब्र जवाब दे देता हैं और वो ना चाहते हुए भी चीख पड़ती हैं.
निशा- बस........ पापा........आज .. मेरी ....जान लोगे.......क्या. मैं....मर .जाउन्गि............आह... और इतना कहते कहते उसकी चूत से उसका पानी निकलना शुरू हो जाता हैं और निशा का ऑर्गॅनिसम हो जाता हैं वो वही एक लाश की तरह अपने पापा की बाहों में पड़ी रहती हैं. उसकी धड़कनें बहुत ज़ोर ज़ोर से चल रही थी. और साँसें भी कंट्रोल के बाहर थी. बड़ी मुश्किल से वो अपनी साँसों को कंट्रोल करती हैं और अपनी आँखें बंद करके अपने पापा के लबों को चूम लेती हैं....
जगदीश राय- बेटी अब तेरी बारी हैं. चल अब तू मेरी प्यास को शांत कर. और इतना बोलकर जगदीश राय अपना लंड निशा के मूह के एकदम करीब रख देता हैं. निशा बड़े गौर से जगदीश राय के लंड को देखने लगती हैं. फिर अपनी जीभ निकालकर धीरे से उसके लंड का सूपड़ा को नीचे से लेकर उपर तक चाटने लगती हैं.जगदीश राय के मूह से सिसकारी निकल पड़ती हैं.
फिर वो निशा के सिर के बालो को खोल देता हैं और अपना हाथ निशा के सिर पर फिराने लगता हैं.निशा धीरे धीरे जगदीश राय के लंड पर अपना जीभ फिराती हैं. अचानक जगदीश राय को ना जाने क्या सुझता हैं वो तुरंत निशा के मूह से अपना लंड बाहर निकाल लेता हैं. निशा हैरत भरी नज़रों से अपने पापा को देखने लगती हैं. जगदीश राय उठकर किचन में चला जाता हैं और थोड़ी देर के बाद वो एक शहद की शीशी ल��कर वापस आता हैं.
शहद की शीशी को देखकर निशा के चेहरे पर मुस्कान तैर जाती हैं. वो भी अपने पापा का मतलब समझ जाती हैं. जगदीश राय फिर शहद की शीशी को खोलता हैं और और उसे अपने लंड पर अच्छे से लगा देता हैं. जगदीश राय का लंड बिल्कुल लाल कलर में दिखाई देने लगता हैं.फिर वो निशा के तरफ बड़े प्यार से देखने लगता हैं. निशा मुस्कुरा कर आगे बढ़ती हैं और अपना मूह खोलकर शहद से लिपटा अपने पापा के लंड को धीरे धीरे चूसना शुरू करती हैं. एक तरफ नमकीन का स्वाद और एक तरफ शहद का स्वाद दोनो का टेस्ट कुल मिलकर बड़ा अद्भुत था. थोड़ी देर के बाद निशा अपने पापा के लंड पर का पूरा शहद चाट कर सॉफ कर देती हैं.
जगदीश राय- बेटी एक बार मेरा लंड को पूरा अपने मूह में लेकर चूसो ना. तुझे भी बहुत मज़ा आएगा.
निशा- पापा आपका दिमाग़ तो नहीं खराब हो गया. भला इतना बड़ा लंड पूरा मेरे मूह में कैसे जाएगा. नहीं मैं इसे पूरा अपने मूह में नहीं ले सकती.
जगदीश राय- क्या तू मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती. मैं जानता हूँ बोलने और करने में बहुत फरक होता हैं. ठीक हैं मैं तुझसे ज़बरदस्ती नहीं करूँगा. आगे तेरी मर्ज़ी. और जगदीश राय के चेहरे पर मायूसी छा जाती हैं.
अपने पापा को ऐसे मायूस देखकर निशा तुरंत अपना इरादा बदल लेती हैं.
निशा- क्यों नाराज़ होते हो पापा. मेरा कहने का ये मतलब नहीं था. मैं तो बस......................अच्छा फिर ठीक हैं अगर आपकी खुशी इसी में हैं तो मैं अब आपको किसी भी बात के लिए मना नहीं करूँगी. कर लो जो आपका दिल करता हैं.आज मैं साबित कर दूँगी कि निशा जो बोलती हैं वो करती भी हैं.
जगदीश राय भी मुस्कुरा देता हैं और निशा के बूब्स को पूरी ताक़त से मसल देता हैं. निशा के मूह से एक तेज़ सिसकारी निकल जाती हैं.
जगदीश राय- मैं तो यही चाहता हूँ कि तू खुशी खुशी मेरा लंड पूरा अपने मूह में लेकर चूसे. मैं यकीन से कहता हूँ कि तुझे भी बहुत मज़ा आएगा. हां शुरू में थोड़ी तकलीफ़ होगी फिर तू भी आसानी से इसे पूरा अपने मूह में ले लेगी.
निशा- जैसा आपका हुकुम सरकार.. मगर मुझे तकलीफ़ होगी तो क्या आपको अच्छा लगेगा. बोलो......................
जगदीश राय-अगर चुदाई में तकलीफ़ ना हो तो मज़ा कैसा. पहले दर्द तो होता ही हैं फिर मज़ा भी बहुत आता हैं. बस तू मेरा पूरा साथ दो। फिर देखना ये सारा दर्द मज़ा में बदल जाएगा.
जगदीश राय फिर शहद अपनी उंगली में लेता हैं और अपने टिट्स पर मलने लगता हैं और फिर अपने लंड के आखरी छोर पर भी पूरा शहद लगा देता हैं.
जगदीश राय निशा को बेड पर लेटा देता हैं और उसकी गर्देन को बिस्तेर के नीचे झुका देता हैं. निशा को जब समझ आता हैं तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं. वो तो सोच रही थी कि वो अपनी मर्ज़ी से पूरा लंड धीरे धीरे अपने मूह में ले लेगी मगर यहाँ तो उसकी मर्ज़ी नहीं बल्कि वो तो खुद अपने पापा के रहमो करम पर थी. मगर वो अपने पापा की ख़ुशी के लिए उसे सब मंजूर था.
जगदीश राय भी निशा के मूह के पास अपना लंड रख देता हैं और फिर निशा की ओर देखने लगता हैं. निशा भी अपनी आँखों से उसे लंड अंदर डालने का इशारा करती हैं. जगदीश राय निशा के सिर को पकड़कर धीरे धीरे अपने लंड पर प्रेशर डालने लगता हैं और निशा भी अपना मूह पूरा खोल देती हैं. धीरे धीरे उसका लंड निशा के मूह के अंदर जाने लगता हैं.जगदीश राय करीब 5 इंच तक निशा के मूह में लंड पेल देता हैं और फिर उसके मूह में अपना लंड आगे पीछे करके चोदने लगता हैं.
निशा की गरम साँसें उसको पल पल पागल कर रही थी. वो धीरे धीरे अपनी रफ़्तार बढ़ाने लगता हैं और साथ साथ अपना लंड भी अंदर पेलने लगता हैं. निशा की हालत धीरे धीरे खराब होनी शुरू हो जाती हैं. वैसे ये निशा का फर्स्ट एक्सपीरियेन्स था. वो अपने पापा का लंड कई बार चूसी थी पर कभी अपने मूह में पूरा नही ली थी. इसलिए तकलीफ़ होना लाजमी था. जगदीश राय करीब 7 इंच तक निशा के मूह में लंड डाल देता हैं और निशा की साँसें उखाड़ने लगती हैं.
जगदीश राय एक टक निशा को देखता हैं और फिर अपना लंड पूरा बाहर निकाल कर एक झटके में पूरा अंदर पेल देता हैं. लंड करीब 8 इंच से भी ज़्यादा निशा के मूह में चला जाता हैं. निशा को तो ऐसा लगता हैं कि अभी उसका गला फट जाएगा. उसकी आँखों से भी आँसू निकल पड़ते हैं और आँखें भी बाहर की ओर आ जाती हैं.तकलीफ़ तो उसे बहुत हो रही थी मगर वो अपने पापा की खुशी के लिए सारी तकलीफो को घुट घुट कर पी रही थी. निशा को कुछ राहत मिलती हैं मगर जगदीश राय कहाँ रुकने वाला था वो फिर एक झटके से अपना लंड बाहर निकालकर फिर से उतनी ही स्पीड से वो निशा के मूह में पूरा लंड पेल देता हैं.
इस बार जगदीश राय अपना पूरा लंड निशा के हलक तक पहुँचने में सफल हो गया था.निशा के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. उसे तो ऐसा लग रहा था कि उसका दम घुट जाएगा और वो वही मर जाएगी.निशा ऐसे ही करीब 10 सेकेंड्स तक निशा के हलक में अपना लंड फँसाए रखता हैं. निशा के मूह से गु.......गु.......गू............. की लगातार दर्द भरी आवाज़ें निकल रही थी. जब उसकी बर्दास्त की सीमा बाहर हो गयी तो अपना दोनो हाथों से अपने पापा के पैरों पर मारने लगती हैं जगदीश राय को भी तुरंत आभास होता हैं और वो एक झटके से अपना पूरा लंड निशा के हलक से बाहर निकाल देता हैं. निशा वही ज़ोर ज़ोर से खांसने लगती हैं वो वही धम्म से बिस्तर पर पसर जाती हैं.
जगदीश राय के लंड से एक थूक की लकीर निशा के मूह तक जुड़ी हुई थी. ऐसा लग रहा था कि उसके लंड से कोई धागा निशा के मूह तक बाँध दिया हो. वो घूर कर एक नज़र अपने पापा को देखती हैं.
निशा- ये क्या पापा भला कोई ऐसे भी सेक्स करता हैं क्या. आज तो लग रहा था कि आप मुझे मार ही डालोगे. मुझे कितनी तकलीफ़ हो रही थी आपको क्या मालूम. देखो ना अभी तक मेरा मूह भी दर्द कर रहा हैं.
जगदीश राय- तू जानती नहीं हैं निशा बेटी मेरा एक सपना था कि मैं किसी भी लड़की के मूह में अपना पूरा लंड पेलने का. मगर आज तूने मेरा सपना पूरा कर दिया. ना जाने मैं कितनी लड़कियों के साथ सेक्स किया हूँ मगर उनमें से किसी ने भी मेरे लंड अपने मूह में पूरा नहीं लिया. आख़िर अपना खून अपना ही होता हैं.
निशा:अब तो आप खुश हो ना।
जगदीश राय: हां बेटी।अच्छा तुम मुझे गिफ्ट देनेवाली थी ना।क्या है वो तेरी स्पेशल गिफ्ट।
निशा:मुस्कुराकर।आप गेस करके बताइए।आपकी इस समय सबसे बड़ी इच्छा क्या है मैं वो पूरी करुँगी।वही आपका स्पेशल गिफ्ट होगा।
जगदीश राय- मेरा तो इस समय सबसे ज़्यादा मन तेरी गाण्ड मारने को कर रहा हैं. अगर तू मुझे इसकी इजाज़त दे तो.................
निशा:चलो पापा आज रात आपको अपनी गांड आपको गिफ्ट में दिया।आप जैसे चाहो मेरी गांड मार लो।
जगदीश राय झट से निशा को अपनी बाहों में ले लेता हैं और उसका लब चूम लेता हैं.
जगदीश राय- तू सच में बहुत बिंदास है बेटी। मैने आज तक तेरे जैसे लड़की नहीं देखी. सच में तेरा पति बहुत किस्मत वाला होगा.
निशा- और आप नहीं हो क्या .निशा धीरे से मुस्कुरा देती हैं.
जगदीश राय- सच में तेरी जैसे बेटी पाकर तो मेरा भी नसीब खुल गया. और इतना कहकर वो निशा की गान्ड को कसकर अपने दोनो हाथों से भीच लेता हैं.
जगदीश राय- बेटी मेरा लंड को पूरा खड़ा कर ना. फिर मैं तेरी गांड मारूँगा.करीब 5 मिनिट तक निशा जगदीश राय के लंड को पूरा थूक लगाकर चूसती और चाटती है तब जगदीश राय का का लंड निशा की कुँवारी गांड को फाड़ने के लिए तैयार हो जाता हैं।
जगदीश राय:बेटी पहले तेरी गदराई गांड से तो जी भर के प्यार कर लूँ।
जगदीश राय बस देखने लगता है अपनी बेटी के गान्ड की खूबसूरती ...उफफफफ्फ़..क्या नज़ारा था.. भारी भारी गोल गोल उभरे हुए गोरे गोरे चूतड ..जिन्हें अपनी हथेलियों से बड़े ही हल्के से दबाता हुआ अलग करता है ...दरार चौड़ी हो जाती है ..दरार के बीच थोड़ी सी डार्कनेस लिए गान्ड के होल की चारों ओर का गोश्त ... गाँड की सूराख पूरी बंद हुई ... पर चारों ओर का गोश्त एक दम टाइट ..बन्द सूराख इस बात की गवाही दे रहा था कि गान्ड में कोई लंड अंदर नहीं गया है... और पूरी दरार चीकनी और चमकती हुई ... उस ने अपने अंगूठे से गान्ड की दरार को हल्के से दबाया ....अंगूठा उसकी चीकनी गान्ड में फिसलता हुआ उपर की ओर बढ़ता गया।उफ़फ्फ़ इतनी चीकनी और भारी गान्ड जगदीश राय ने आज तक नही देखी....
निशा अपने पापा की हरकतों से मस्त थी..मुस्कुरा रही थी..और अंगूठे के दबाव से सीहर उठी ...उस ने अपनी गान्ड थोड़ी सी उपर उठाते हुए कहा ..
" हां ..हां पापा अच्छे से छू लो , दबा लो देख लो ... तुम्हारे लौडे के लिए सही है ना..? "
" बेटी... बहोत शानदार , जानदार और मालदार है तेरी गान्ड ..उफफफफ्फ़..सही में तुम ने काफ़ी मेहनत की है ....ज़रा चाट लूँ बेटी ? "
यह बात सुन कर निशा और भी मस्ती में आ जाती है ..और अपनी गान्ड और भी उपर उठाते हुए पापा के मुँह पर रखती है ...
" पापा ..पूछते क्यूँ हो....आप की बेटी है ..आप की प्य��री बेटी का गान्ड है..जो जी चाहे करो ना ..चाटो..चूसो खा जाओ ना ....पर लॉडा अंदर ज़रूर पेलना ..."
और अपने पापा के मुँह से गान्ड और भी लगा देती है ..
जगदीश राय उसकी गान्ड नीचे पलंग पर कर देता है , दरार को फिर से अलग करता हुआ अपनी जीभ उसके सूराख पर लगाता है और पूरी दरार की लंबाई चाट जाता है..जीभ को अच्छे से दबाता हुआ .... उफफफफ्फ़ उसकी गान्ड की मदमस्त महक और एक अजीब ही सोंधा सोंधा सा टेस्ट था ...
दो चार बार दरार में जीभ फिराता है ..जीभ के छूने से और जीभ की लार के ठंडे ठंडे टच से निशा सीहर उठ ती है ...और फिर जगदीश राय उसकी गान्ड के गोश्त को अपने होंठों से जाकड़ लेता है और बूरी तरह चूसता है...मानो गान्ड के अंदर का पूरा माल अपने मुँह में लेने को तड़प रहा हो....
निशा मज़े में चीख उठती है " आआआआः....पापा ....उईईई..देखो ना मेरी गान्ड कितनी मस्त है .? अब देर ना करो ..बस पेल दो ना अंदर ..प्लीज्जज्जज्जज्जज्ज ...।
जगदीश राय किचन में जाकर तेल की शीशी लेकर आता हैं.निशा जब अपने पापा के हाथ में तेल की शीशी देखती हैं तो उसकी हालत बिगड़ जाती हैं. उसने तो बोल दिया था कि वो अपने पापा से अपनी गान्ड मरवायेगि मगर इतना मोटा और लंबा लंड को वो अपनी गान्ड में कैसे बर्दास्त कर पाएगी ये उसकी समझ में नहीं आ रहा था. जगदीश राय फिर तेल की शीशी खोलता हैं और थोड़ा सा तेल लेकर निशा की गान्ड के छेद पर गिरा देता हैं और अपनी दोनो उंगली में अच्छे से तेल लगाकर वो उसकी गान्ड में धीरे धीरे ऊँगली पेलना शुरू कर देता हैं. कुछ देर के बाद वो अपनी दोनो उंगली को निशा की गान्ड में डालकर अच्छे से आगे पीछे करने लगता हैं. निशा फिर से गरम होने लगती हैं.
निशा को समझ में नहीं आ रहा था कि उसे क्या हो गया है. भला वो बार बार कैसे गरम हो रही हैं. जगदीश राय फिर तेल की शीशी को अपने लंड पर लगाता हैं और कुछ निशा की गान्ड में भी डाल देता है. फिर अपना लंड को निशा की गान्ड पर रखकर धीरे धीरे उसे निशा की गान्ड में पेलने लगता हैं. निशा के मूह से चीख निकलने लगती हैं मगर वो अपने पापा को रोकने का बिल्कुल प्रयास नहीं करती. जैसे ही जगदीश राय का सूपाड़ा अंदर जाता हैं निशा की आँखों से आँसू निकल जाते हैं. उसे इतना दर्द होता है लगता हैं किसी ने उसकी गान्ड में जलता हुआ सरिया डाल दिया हो. वो फिर भी अपने पापा के लिए वो दर्द को बर्दास्त करती हैं।
निशा :उफफफफ्फ़.पापा आप कितने बेरहम हो......पूरा घुसा दिया........इतना मोटा लॉडा पूरा मेरी गान्ड में डाल दिया"
जगदीश राय:हां बेटी.....पूरा ले लिया है तूने........ऐसे ही बेकार में डर रही थी"
निशा:बेकार में......उूउउफफफफ्फ़.........मेरी जगह आप होते तो मालूम चलता.....अभी भी कितना दुख रहा है....,धीरे करो पापा"
जगदीश राय: बेटी अब तो चला गया है ना पूरा अंदर.......बस कुछ पलों की देर है देखना तू खुद अपनी गान्ड मेरे लौडे पर मारेगी" बेटी की पीठ चूमता बोला.
"धीरे पेलो पापा.......हाए बहुत दुख रही है मेरी गान्ड......."निशा सिसिया रही थी. जगदीश राय तेल वाला सुझाव वाकई मे बड़ा समझदारी वाला था. तेल से लंड आराम से अंदर बाहर फिसलने लगा था. जहाँ पहले इतना ज़ोर लगाना पड़ रहा था लंड को थोड़ी सी भी गति देने के लिए अब वो उतनी ही आसानी से अंदर बाहर होने लगा था. हालाँकि निशा ने अपने पापा धीरे धीरे धक्के लगाने के लिए कहा था मगर पिछले आधे घंटे से किए सबर का बाँध टूट गया और जगदीश राय ना चाहता हुआ भी अपनी बेटी की गान्ड को कस कस कर चोदने लगा.
निशा: हाए उउउफफफफफफफ्फ़.........आआआहज्ज्ज्ज मार...डााअल्ल्लीीगगगघाा क्यआआअ......हीईीईईईई.....ओह माआआअ.......,,हे भगवान......मेरी गान्ड....,उफफफफफफफ़फ्ग फट गईईईईई।
निशा चीख रही थी, चिल्ला रही थी मगर अपने पापा को रुकने के लिए नही कह रही थी. सॉफ था उसे इस बेदर्दी में भी मज़ा आ रहा था.वैसे भी वो रोकती तो भी जगदीश राय रुकने वाला नही था. दाँत भींचे वह निशा की गान्ड को पेलता जा रहा था और वो पेलवाती जा रही थी.
जगदीश राय: हाए अब बोल बेटी......मज़ा आ रहा है ना गान्ड मरवाने में....."
निशा: आ रहा है....हाए बहुत मज़ा आ रहा है....ऐसे ही ज़ोर लगा कर चोदते रहिए पापा.......हाए मारो अपनी बेटी की कुँवारी गान्ड"
जगदीश राय: "ले बिटिया.....ले....यह ले.........मेरा लॉडा अपनी गान्ड में" जगदीश राय पूरी रफ़्तार पकड़ते हुए निशा के चुतड़ों पर तड़ तड़ चान्टे मारने सुरू कर दिए.
निशा:हाय....उूुुउउफफफ्फ़...,मारो ..पापा....मारो अपनी बेटी की गान्ड....फाड़ो अपनी बेटी की गान्ड.......,हाए मारो फाड़ डालो। इसे...,उफफ़गगगगगग...हे भगवान..........ले लो मेरी गान्ड.......ले लो मेरे पापा..." ।
और फिर जगदीश राय पूरी रफ़्तार से अपना लंड अंदर और अंदर पेलना शुरू करता हैं और तब तक नहीं रुकता जब तक उसका लंड निशा की गान्ड की गहराई में पूरा नहीं उतर जाता. निशा की हालत बहुत खराब थी. वो दर्द से उबर नहीं पा रही थी. करीब 5 मिनिट तक वो ऐसे ही अपना लंड को निशा के गान्ड में रहने देता हैं.
फिर धीरे धीरे वो उसकी गान्ड को चोदना शुरू करता है. निशा के मूह से दर्द और सिसकारी का मिश्रण निकलने लगता हैं और जगदीश राय तब तक नहीं रुकता जब तक वो निशा की गान्ड से खून नहीं निकाल देता। करीब 30 मिनिट तक ज़बरदस्त गान्ड मारने के बाद आख़िरकार निशा का बदन भी जवाब दे देता हैं और वो भी चिल्लाते हुए ज़ोर ज़ोर से झरने लगती हैं।साथ में जगदीश राय भी निशा के गांड में अपनी मलाई छोड़ देता है।
वही दोनो बाप बेटी वही बिस्तर पर एक दूसरे की बाहों में समा जाते हैं. और निशा अपने पापा को अपने सीने से चिपका लेती हैं. जगदीश राय भी उसके सीने पर अपना सिर रखकर लेट जाता हैं।
निशा:एक बात पूँछू पापा।प्लीज आप सही सही बताना।चूँकि मैं आशा से डायरेक्ट नहीं पूछ सकती।आप मेरे दोस्त हो तो आप बताओ।आशा से आप......कैसे.....
जगदीश राय:देखो बेटी।जब तुम टूर पर चली गई तो 2-3 दिन बाद मेरा मन नहीं लग रहा था ऑफिस में तो मैं घर चला आया।यहाँ देखा की आशा अपने कमरे में एक लड़के के साथ है।दोनों नंगे थे।लड़का मुझे देख के भाग गया।लेकिन आशा वैसी ही खड़ी रही।फिर जब मैंने उसे डाँटा तो उसने ये राज खोला की पापा आप भी तो निशा दीदी के साथ मज़े लेते हो।
मुझे तो विस्वास ही नहीं हुवा लेकिन आशा ने कभी रात में हमें देखा था।इसलिए मुझे झुकना पड़ा।फिर मैंने देखा की आशा की गाँड में एक पूँछ घुसी हुई है।मैंने पूछा तो उसने बताया की उसे इसमें मज़ा आता है।वो रैबिट की पूँछ है।और उसकी सहेली विदेश से लाई है दोनों के लिए।
फिर दो तीन दिन बाद मैं एक दिन ��ुठ मार रहा था तो आशा आ गई और मेरी हेल्प करने के बहाने अपनी गांड में लंड डालने पर मजबूर किया।
निशा:लेकिन चूत में क्यों नहीं।
जगदीश राय:क्योंकि आशा बोल रही थी की वो कुंवारी चूत अपने पति को देगी।दूसरे को सिर्फ गाँड देगी।मैं भी ये सोचकर उसके साथ किया की कम से कम बाहर
इज्जत ख़राब ना करे।आजकल के लड़कों का क्या भरोसा। कोई वीडियो बना लेगा तो हमारी इज़्ज़त का क्या होगा।घर में हम आपस में खुश रहेंगे।हमारी जरूरतें भी पूरी होती रहेगी।
निशा:अजीब पागल है ये लड़की भी।थैंक्स पापा आपने अच्छा किया।कम से कम हमारी इज़्ज़त तो बची रहेगी।
फिर जगदीश राय सोने लगा।
कुछ देर बाद जगदीश राय को अपने लंड पर गीली गरम जीभ का अहसास हुवा तो उसने आँखे खोल दी।उसने देखा उसकी बेटी किसी कुतिया की तरह उसके लंड को ऊपर से निचे तक चाट रही थी।जगदीश राय का लंड फिर से अकड़ने लगा था।निशा लंड को तेजी में चूस रही थी।अब जगदीश राय का लंड निशा के थूक से पूरा गिला हो गया था।
जब लंड पूरा खड़ा हो गया तो जगदीश राय ने निशा को सुला दिया और अपना लन्ड एक ही झटके में पूरा 9 इंच का लंड अपनी बेटी निशा की चूत में पेल दिया।
निशा:आआऐईईइ.....इसस्स्स्सस्स....ऊऊऊ इइइइइ मआआ..... मर गयी. आअहह...इससस्स...आ.” पापा के मोटे लंड ने निशा की चूत के छेद को इतना ज़्यादा चौड़ा कर दिया था, ऐसा लगता था कि चूत फॅट ही जाएगी.
“क्या हुआ बेटी?” जगदीश राय ने लंड थोड़ा सा और अंदर बाहर करते हुए पूछा.
निशा:“पापा, इसस्स....बहुत..... बहुत मोटा लंड है आआपका. आप तो हमारी चूत फाड़ डालेंगे.”
जगदीश राय:हम अपनी प्यारी बिटिया की चूत कैसे फाड़ सकते हैं?” पापा ने निशा के होंठों का रसपान करते हुए बोले.
जगदीश राय ने निशा की दोनो टाँगें मोड़ के उसके घुटने उसकी चुचियों से चिपका दिए थे. अब तो वह बिल्कुल लाचार थी और उसकी चूत पापा के मोटे तगड़े लंड की दया पे थी. हलाकी अब तक तो पापा अपने लंबे तगड़े लंड से कितनी बार निशा को चोद चुके थे, लेकिन आज पापा का लंड झेलना भारी पड़ रहा था. इतने में जगदीश राय ने अपना लंड थोड़ा सा निशा की चूत के बाहर खींचा और फिर एक ज़ोर का धक्का लगा दिया. आधे से ज़्यादा लंड फिर से चूत में समा गया.
निशा:“आाआऐययईईईईईई....ऊऊऊीीईईईई माआआआ........आहह धीरे....अया...धीरे..ईीीइससस्स....”
इससे पहले कि निशा कुछ संभलती जगदीश राय ने फिर से अपना लंड सुपाडे तक बाहर खींचा और इस बार एक और भी भयंकर धक्का मार के पूरा लंड निशा की चूत में उतार दिया.
निशा:“आआअहह...आाययइ.....मार डाला.. फाड़ डालिए. ...... आपको क्या? इससस्स.. बेटी की चाहे फॅट जाए.” पापा का मोटा लंड आख़िर जड़ तक निशा की चूत में घुस गया था और उनके मोटे मोटे बॉल्स उसकी गांड के छेद पे दस्तक दे रहे थे. निशा का बदन पसीने में नहा गया था. पापा थोडी देर बिना हिले निशा के ऊपर पड़े रहे और निशा की चूचियों और होंठों का रसपान करते रहे. निशा की चूत का दर्द भी अब कम होने लगा था.अब उसे बहुत मज़ा आ रहा था।
“बेटी थोड़ा दर्द कम हुआ?” जगदीश राय निशा की चूचियों को दबाते हुए बोले.
“हाँ पापा, अब जी भर के चोद लीजिए अपनी प्यारी बिटिया को.” निशा उनके कान में फुसफुसाते हुए बोली. अब जगदीश राय ने पूरा लंड बाहर निकाल के निशा की चूत में पेलना शुरू कर दिया. सच! ज़िंदगी में चुदवाने में इतना मज़ा आएगा निशा ने कभी सोचा नहीं था. अब निशा को एहसास हुआ कि क्यूँ उसकी सहेलियां रोज़ चुदवाने के लिए उतावली रहती है. अब निशा की चूत बहुत गीली हो गयी थी उसमें से फ़च...फ़च...फ़च का मादक संगीत निकल रहा था. कुच्छ देर तक चोदने के बाद उन्होने अपना लंड निशा की चूत से बाहर खींचा और उसके मुँह में डाल दिया. पापा का पूरा लंड और बॉल्स निशा की चूत के रस में सने हुए थे.निशा ने पापा का लंड और बॉल्स चाट चाट कर साफ कर दिए. अब पापा बोले,
जगदीश राय: “निशा मेरी जान, अब थोड़ा कुतिया बन जाओ. अपने इन जान लेवा नितम्बों के दर्शन भी तो करा दो.”
“आपको मेरे नितम्ब बहुत अच्छे लगते हैं ना?” निशा पापा के बॉल्स सहलाते हुए बोली.
जगदीश राय“हां बेटी बहुत ही सेक्सी नितम्ब हैं तुम्हारी.”
निशा“ और मेरी? मेरी गाँड अच्छी लगी आपको?”
जगदीश राय: “तुम्हारी गाँड तो बिल्कुल जान लेवा हैं बेटी. जब नहा के टाइट कपड़ो में घूमती हो तो ऐसा लगता है जैसे कपडे फाड़ के बाहर निकल आएँगे. तुम्हारे मटकते हुए चूतडों को देख के तो हमारा लंड ना जाने कितनी बार खड़ा हो जाता है.”
निशा:“हाय पापा इतना तंग करते हैं हमारे नितम्ब आपको? ठीक है मैं कुतिया बन जाती हूँ. अब ये नितम्ब आपके हवाले. आप जो चाहे कर लीजिए.”
ये कह कर निशा जल्दी से पापा के लंड के मोटे सुपाडे को चूम लिया और फिर कुतिया बन गयी. अब उसकी चूचियाँ बिस्तर पे टिकी हुई थी और चूतड हवा में लहरा रहे थे. निशा चूतड चुदवाने की मुद्रा में उचका रखे थे. जगदीश राय निशा के विशाल चूतडो को देख कर गरम हो गये. उन्होने निशा के दोनो चूतडो को अपने हाथ में दबोचा और अपना मुँह उनके बीच में घुसेड दिया. अब निशा कुतिया बनी हुई थी और जगदीश राय उसके पीछे कुत्ते की तरह निशा के चूतडो के बीच मुँह दिए उसकी चूत चाट रहे थे.
फिर उन्होने निशा के चूतडो को पकड़ के चौड़ा किया और उसकी गांड के छेद के चारों ओर जीभ फेरने लगे. निशा तो अब सातवें आसमान पे थी. बहुत ही मज़ा आ रहा था. इतने में जगदीश राय ने अपनी जीभ निशा के गांड के छेद में घुसेड दी. निशा ये ना सह सकी और एकदम से झड़ गयी. काफ़ी देर तक इसी मुद्रा में निशा की चूत और गांड चाटने के बाद उन्होने दोनो हाथों से निशा के चूतडो को पकड़ा और अपने मोटे लंड का गरम गरम सुपारा निशा की लार टपकाती चूत पे टिका दिया........
निशा का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. तभी जगदीश राय ने एक ज़बरदस्त धक्का लगा दिया और उनका लंड चूत को चीरता हुआ पूरा अंदर समा गया.
“ आाऐययईईई….आआअहह….आह.” निशा के मुँह से ज़ोर की चीख निकल गयी.
जगदीश राय“बेटी ऐसे चिल्लाओगी तो आशा और सशा जाग जाएगी.”
निशा“आप भी तो हमें कितनी बेरहमी से चोद रहे हैं पापा.” जगदीश राय के मोटे मूसल ने निशा की चूत को बुरी तरह से फैला के चौड़ा कर दिया था . अब जगदीश राय ने निशा की कमर पकड़ के धक्के लगाना शुरू कर दिया. आसानी से उनका लंड निशा की चूत में जा सके इसलिए अब उसने टाँगें बिल्कुल चौड़ी कर दी थी. मीठा मीठा दर्द हो रहा था. निशा अपने ही बाप से कुतिया बन के चुदवा रही थी.
“ निशा बेटी तुम्हारी चूत तो बहुत टाइट है.” फ़च फ़च.. फ़च…..फ़च फ़च….फ़च… की आवाज़ें ज़ोर ज़ोर से आ रही थी. निशा की चूत बुरी तरह से पानी छोड़ रही थी. वह इतनी उत्तेजित हो गयी थी की अपने चूतड पीछे की ओर उचका उचका के अपने पापा का लंड अपनी चूत में ले रही थी.
जगदीश राय“ निशा मेरी जान, तुम्हारी मम्मी को चोद कर भी आज तक इतना मज़ा नहीं आया था”बहुत मज़ा आ रहा है बेटी।
निशा:मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा है पापा।3 दिनों से मेरी चूत में बहुत खुजली हो रही थी।आज जाकर मेरी गर्मी शांत हुई।और चोदो पापा।
निशा तो वासना में पागल हुई जा रही थी. शायद अपने ही बाप से चुदवाने के एहसास ने उसकी वासना को और भड़का दिया था.
जगदीश राय निशा के चूतडो को पकड़ के ज़ोर ज़ोर से धक्के मारते हुए बोले,
“निशा बेटी. सच इन चूतडो ने तो हमारा जीना ही हराम कर रखा था.आज इसे फाड़ने में बहुत मज़ा आया और तुम्हारा ये गुलाबी छेद!” ये कहते हुए उन्होने एक उंगली मेरी गांड में सरका दी.
“आआआहह…….. ईीइससस्स... ये क्या कर रहे हैं पापा?”
जगदीश राय:“बेटी तुम्हारे पापा ने आज पहली बार इस छेद को प्यार किया है?” पापा अब मेरी गांड में उंगली अंदर बाहर कर रहे थे.
“आईईIईईIई
ईईईईईई निशा समझ गयी थी कि अब पापा फिर से गांड मारना चाहते थे.निशा को मालूम था कि पापा को गांड मारने का बहुत शौक है. अपने ही बाप से फिर से गांड मरवाने की बात सोच सोच कर वह बहुत उत्तेजित हो गयी थी और निशा की चूत तो इतनी गीली थी कि रस बह कर उसकी टाँगों पे बह रहा था. आख़िर वही हुआ जिसका उसे अंदेशा था.
पापा निशा की गांड में उंगली करते हुए बोले,
“ निशा बेटी हम तुम्हारे इस गुलाबी छेद को भी प्यार करना चाहते हैं.”इसमें अपना मोटा लंड डालके पेलना चाहता हूँ।
“हाय पापा आपको हमारे चूतड इतने पसंद हैं तो कर लीजिए जी भर के उस छेद से प्यार. आज की रात मैं पूरी तरह से आपको खुश करना चाहती हूँ.”
जगदीश राय:“शाबाश मेरी जान , ये हुई ना बात. हमे पता था की हमारी प्यारी बिटिया हमे गांड ज़रूर देगी. अब अपने ये मोटे मोटे चूतड थोडे से और ऊपर करो”
निशा ने चूतड ऊपर की ओर इस तरह उचका दिए कि पापा का लंड आसानी से गांड में जा सके. पापा ने निशा की गांड से उंगली निकाली और नीचे झुक के अपनी जीभ निशा की गांड के छेद पे टीका दी. निशा की तो वासना इतनी भड़क उठी थी की अब और सहन नहीं हो रहा था.वासना के नशे में वो धीरे धीरे निशा की गांड चाट रहे थे और कभी कभी जीभ गांड के छेद में घुसेड देते. एक हाथ से वो मेरी गीली चूत सहला रहे थे.
जगदीश राय: “सच बेटी तुम्हारी गांड बहुत ही ज़्यादा स्वादिष्ट लग रही है. तुम्हारी गांड में से बहुत मादक खुश्बू आ रही है.” निशा को आज तक ये बात समझ नहीं आई थी कि लड़को को लडकियों की गांड चाटने में क्या मज़ा आता है. अब पापा ने निशा की चूत के रस में से सना हुआ लंड उसकी गांड के छेद पे टिका दिया. हाय राम ! निशा के पापा उसकी गांड फिर से मारने जा रहे थे. निशा भी कुतिया बनी उस पल का इंतज़ार कर रही थी जब पापा का लंड उसकी गांड में घुसेगा. पापा ने निशा के चूतडो को पकड़ के चौड़ा किया और साथ ही एक ज़ोर का धक्का लगा दिया.
निशा: “ आआईयईई……आआआअहह….इसस्स्स्स्स्स्स्स्सस्स” जैसे ही लंड का मोटा सुपाडा निशा की गांड में घुसा उसके मुँह से चीख निकल ही गयी.
जगदीश राय: “हाय मेरी जान ! क्या मस्त गांड है तुम्हारी!” पापा ने निशा के चूतड पकड के एक ज़ोर का धक्का लगा के आधे से ज़्यादा लंड निशा की मोटी गांड में पेल दिया.
निशा: “आआईईईआआआआआ……..ऊऊऊऊऊओ……….ईईस्स्स्स्स्स स.” निशा का दर्द के मारे बुरा हाल था.उसे पक्का विश्वास था कि आज तो फिर से उसकी गांड ज़रूर फटेगी, लेकिन पापा से गांड मरवाने की चाह ने उसे अँधा कर दिया था.
जगदीश राय: निशा बेटी जितना मज़ा तुम्हारी गांड मार के आ रहा है उतना मज़ा तो तुम्हारी मम्मी की गांड मार के कभी नहीं आया.” निशा को सबसे ज़्यादा खुशी इस बात की थी की उसको चोदने में पापा को मम्मी से भी ज़्यादा मज़ा आ रहा था. इस बार जगदीश राय ने पूरा लंड बाहर खीच कर एक ज़बरदस्त धक्के के साथ पूरा लंड जड़ तक निशा की गांड में पेल दिया.
निशा: “ऊऊऊऊीीईईईईईईईईईईईई………………आआआआआआआआआआ आ……..आआआआआअहह....मर गयी....ईीइससस्स”
अब जगदीश राय ने ज़ोर ज़ोर से धक्के मार मार के लंड निशा के गांड के अंदर बाहर करना शुरू कर दिया था. हर धक्के के साथ उनके बॉल्स निशा की चूत पे चिपक जाते.पापा अब जोर जोर से निशा की गाँड मार रहे थे।साथ ही साथ चूत में भी अपनी ऊँगली पेलने लगे थे जिससे निशा एक बार फिर झड़ गयी.
पापा के धक्के अब तेज़ होते जा रहे थे और शायद वो झड़ने वाले थे. अचानक निशा को अपनी गांड में गरम गरम पिचकारियाँ सी महसूस हुई. पापा झड़ गये थे. निशा की गांड लाबा लब उनके वीर्य से भर गयी थी. उन्होने जैसे ही निशा की गांड से अपना लंड बाहर खींचा।
वीर्य गांड में से निकल कर निशा की चूत और जांघों पे बहने लगा. निशा पीठ के बल लेट गयी और अपनी गांड से निकला हुआ पापा का लंड अपने मुँह में ले लिया . पूरा लंड, बॉल्स और जांघें मेरी चूत के रस और उनके वीर्य के मिश्रण में सनी हुई थी. उनके लंड से मेरी चूत और गांड दोनो की गंध आ रही थी.निशा ने बडे प्यार से जगदीश राय लंड और बॉल्स को चाट चाट के सॉफ किया. पापा भी 3 घंटे से निशा को चोद रहे थे. वो भी तक कर निढाल हो गये थे।फिर निशा भी अपने कपडे पहन कर अपने रूम में सोने चली गई।
अगले दिन जगदीश राय लंच से पाँच मिनट पहले ही ऑफिस से छुट्टी लेकर घर आ गया था लेकिन आशा अभी नहीं आई थी।आशा को कॉल किया तो बोली 10 मिनट में आ रही हूँ।तब जगदीश राय ने बियाग्रा की 1 गोली खा ली।आज आशा से उसे बदला लेना था।
ठीक 10 मिनट बाद आशा आ गई।डोर बंद करके अंदर आते ही आशा ने अपने सभी कपडे उतार फेंके।वो अपने पापा के सामने पूरी नंगी थी।वो भी दिन में उसका नंगा बदन चमक रहा था।उसकी गांड में फँसी पुंछ को देखकर जगदीश राय का लंड फुंफकारने लगा।
जगदीश राय आशा के पास जाकर 1 हाथ से उसकी पुंछ और गांड सहलाने लगा।इधर आशा ने जगदीश राय के कपडे निकालने शुरू कर दिए।थोड़ी ही देर में वो भी आशा की तरह पुरे नंगे थे।अब आशा अपने पापा के आगे घुटनों पर बैठ गई और जगदीश राय के लंड को किसी कुतिया की तरह चाटने लगी।फिर आशा अपने पापा के लंड को मुँह में भर कर चूसने लगी।
जगदीश राय :आशा.... बेटी.... थोड़ा और अंदर लो बेटी… नाक से सासे लेती रहो ....
आशा आँखो से हामी भरी …..
जगदीश राय धीरे धीरे लंड अंदर धकेलने लगा ...
आशा के गले की दीवारो पे उनका लंड ठोकरे मारने लगा ...
धीरे धीरे पूरा लंड आशा के मुह में घुस गया ...
उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था ...
जगदीश राय की झांटे आशा के नाक पे लग रही थी ...
आशा के गले में खराश होने लगी थी ...
लेकिन आशा मना भी नहीं कर पा रही थी ...
उसके मुँह से गुं गुं की आवाज निकलने लगी ...
जगदीश राय ने लंड वापस खींचा तो आशा ने सांस ली ...
थोड़ी देर बाद जगदीश राय ने अपना पूरा लंड फिर से आशा के गले तक उतारा ...और आशा के मुँह में पेलने लगा।
जगदीश राय के चहरे पे स्वर्गीय आनंद की अनुभूति दिख रही थी …
कुछ देर आशा का मुह ऐसी ही चोदने के बाद जगदीश ने अपना लंड निकाल लिया …..
फिर जगदीश राय ने आशा को अपनी गोद में उठाया...
और पलंग पे ले गए …जगदीश राय अब पलंग पे बैठे थे ...और आशा उनकी गोद में ...फिर जगदीश राय ने आशा की गांड में घुसी पूँछ को सहलाने लगे।फिर धीरे धीरे उन्होंने आशा की गांड से पूँछ निकाल दिया।
आशा ने जगदीश राय को साफ मना कर दिया था चूत चोदने के लिए।इसलिए वो आशा की गांड में थूक लगाकर धीरे धीरे ऊँगली पेलने लगे।
उनका कठोर लंड आशा की चूत पे टकरा रहा था….
जगदीश राय आशा की चुचिया मसलते हुए उसके होठो को चुम रहे थे…..
जगदीश राय का लंड आशा की गाँड में घुसने के लिए….. बेक़रार था ।
उन्होंने आशा की टाँगे फैला कर …
अपना लंड आशा की गाँड में पेल दिया
आशा के मुह से सिसकी निकल गयी ।वह सिसियाने लगी ।
हाआआयय्य्य्य्य्य उफ्फ्फ्फ्फ़ स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स
जगदीश राय का पूरा लंड अंदर घुसने के बाद उन्होंने धक्के लगाने शुरू किये
आशा पापा के हर धक्के को कमर उचका कर जवाब देने लगी ।
जगदीश राय: लगता है बेटी तुमको पहले जैसा दर्द नहीं हो रहा ।
आशा: नहीं पापा … अब दर्द नहीं हो रहा … बहोत मजा आ रहा है .... और तेज करिये ना …...
जगदीश राय ने अपनी स्पीड बढ़ा दी ….
कुछ देर धक्के मारने के बाद वो रुके ....
उन्होंने आशा को उठाया ……
और खुद निचे लेटे … अब उनका वो फौलादी लंड कुतुबमीनार की तरह खड़ा था
जगदीश राय: आओ.... बेटी .... बैठो अपनी सवारी पर……
आशा उनकी दोनों ओर पैर रख कर खड़ी हुयी ……
एक हाथ से पकड़कर उनका लंड अपनी गाँड पर अड्जस्ट करके धीरे धीरे निचे बैठने लगी …...
अब उनका व�� मोटा लंड पूरी तरह से आशा की टाइट गांड में कैद हो गया था ….
आशा पापा का लंड अंदर लेते लेते थक गयी थी
सो लंड पूरा अंदर जाने के बाद में बैठे बैठे हांपने लगी
आशा को आराम से बैठा देख उसके पापा बोले
आशा बेटी .... सिर्फ बैठना नहीं है… जरा ऊपर निचे करो …मेरे लंड पर
फिर देखना कैसा जन्नत का मजा आता है
फिर आशा थोडी सी ऊपर हुयी … और निचे भी ….
धीरे धीरे उसकी स्पीड बढ़ती गयी
उसके बाल बार बार चहरे पर आ रहे थे
जगदीश राय ने उन बालो की लट को ठीक किया ….
आशा को बहोत ही मस्त लगा रहा था इसी मस्ती में उसके मुह से आहे निकल रही थी।
धीरे धीरे वह पापा के लंड पर उछलने लगी
और उसकी आहे भी तेज होने लगी ।अब आशा पूरी तेजी से अपनी गांड अपने पापा के लंड पर पटक रही थी।लंड एक ही बार में आशा की गांड में पूरा घुस जाता और फिर अगले ही पल निकलने लगता।
10 मिनट घुड़सवारी करने के बाद आशा निचे उतरी ....फिर जगदीश राय ने बेड में सुलाकर आशा की गांड में लंड घुसाकर पेलते हुए बोला।
जगदीश राय: वाह क्या उछली हो मेरी जान … पूरी रंडी लग रही थी तुम….
आशा: छिः पापा … ये क्या आप मेरे लिए इतना गन्दा बोल रहे हो …..
जगदीश राय:इसमें गन्दा क्या है बेटी …… मैं तो तेरी तारीफ़ कर रहा हु …..
आशा: ऐसे करते है तारीफ।.... रंडी क्या अच्छा वर्ड है।
जगदीश राय: अरे बेटी कहा ये अच्छे बुरे के बारे में सोच रही हो ….चुदाई में कुछ गलत नहीं ….कुछ गन्दा नहीं होता।
आशा: … पर....
जगदीश राय: अरे बेटी .... एक अच्छी रंडी ही सबसे बेहतर चुदना जानती है ….. ये एक बहोत बड़ी कला है मेरी जान ….हाँ ये रण्डी वर्ड कुछ लोगो को बुरा लगता है……. पर बेटी चुदाई के समय ऐसे शब्द यूज़ करना बड़ा अच्छा लगता है ….
आशा: अगर आपको अच्छा लगता है … तो … आप मुझे जो चाहे बुलाओ…..
जगदीश राय: हाय मेंरी प्यारी बिटिया।…
आशा: हा मेरे प्यारे पापा …… अपनी इस रंडी से टूट के प्यार करो … चोद डालो अपनी इस रंडी को ….
जगदीश राय:आशा … तू भी मुझे गालिया दे तो और भी मजा आएगा …
आशा: तो मैं क्या आपसे डरती हु क्या … आप भी तो बेटीचोद …..हो।अपनी दो दो बेटियों को चोद रहे हो।
जगदीश राय: वाह मेरी रंडी साली.... मजा आ गया ….
तेरी गांड में जो मज़ा है।वो किसी में नहीं है।कितनी गरम और टाइट गांड है तेरी।कितना भी पेलो तुझे फर्क नहीं पड़ता।साली तेरी कुँवारी चूत में जिसका लंड पहली बार जाएगा वो कितना लकी होगा।
आशा:और जोर से पेलो पापा।आप भी कम लकी नहीं हो।आपको मेरी कुँवारी गांड मिली।चूत भी चूस लेते हो।जीभ से चोद भो देते हो।मेरी चूत में ऊँगली भी घुसा देते हो।और मेरे मुँह को तो चूत की तरह चोदते हो और आपको क्या चाहिए पापा।
और आज तो आपने मुझे अपनी रंडी भी बना दिया
जगदीश राय:ठीक है मेरी रांड।आज से तू मेरी पर्सनल रांड है।अब तू साली कुतिया बन जा।आज मैं तेरी गाँड को इतना फाडूँगा की उसमे से आज फिर खून निकल जाए।तू दर्द से चीखने लगे।
आशा बेड से निचे उतरकर अपने पापा के लंड को पकड़कर हिलाने लगती है।लंड आशा की गांड से निकला था।वो रस में भीगा पिला रंग का हो गया था।लेकिन आशा ने लंड को अपने मुँह में भर लिया और चुसने चाटने लगी।जगदीश राय भी मस्ती में भरकर आशा के मुँह को चोदने लगा।
कुछ देर बाद जगदीश राय ने निशा को कुतिया बना दिया।
जगदीश राय: हाँ बेटी अब मैं तुम्हे अपनी फेवरेट पोजीशन में चोदूंगा ....
आशा : तो चोदो न पापा ....
जगदीश राय: लेकिन इसबार तुम्हें बहोत दर्द हो सकता है ।क्योंकि इस बार तुम्हारी गांड फाड़ने का मन कर रहा है …
आशा : आप उस की चिंता मत करो पापा …आप मुझे जैसे चाहो वैसे चोदो …… मेरे दर्द की परवाह मत करो
जगदीश राय ने आशा को खीच के गले लगाया उसे चूमा …...
बाद में उन्होंने आशा को पलंग को पकड़ कर कुतिया जैसा खड़ा किया ….
आशा की टाँगे फैला दी…..
और खुद उसकी गांड के पीछे खड़े हुए ……
उन्होंने अपना लंड आशा की गांड के भूरे छेद पे रगड़ा…
और अचानक एक करारा धक्का दे कर आधा लंड अंदर पेल दिया …..
आशा इस अचानक हमले के लिए तैयार नहीं थी ….
वह गिरते गिरते बची …..
फिर जगदीश राय ने झुककर आशा की चुचिया थामी … और उसे पीछे खींचा।
जगदीश राय ने बेदर्दी से आशा की चूचियोंको मसलना शुरू किया बिलकुल रफ तरीके से।
आशा के मुह से जोरो की आह ��िकल गयी
ओफ्फ्फ्फ्फ्फ़ ह्म्म्म्म्म्म पापा हाय्य्य्य्य्य्य्य
जगदीश राय: साली रंडी अभी तो शुरू भी नहीं किया है … अभी इतना तड़प रही है तो आगे क्या होगा।
आशा: नहीं पापा कुछ नहीं हुआ है .... आप आगे बढ़ो
और आशा ने अपनी गांड उभार के दिखाई
जगदीश राय गांड पे थप्पड लगाते बोले…. "वाह….. बेटी…...ये हुयी ना बात।और अपनी गांड पीछे कर।
फिर उन्होंने एक और तेज झटका मार के पूरा के पूरा लंड आशा की गाण्ड में घुसा दिया।
आशा अपने होठ दबा रखे थे .... वह चाहती थी की उसके मुह से कराह न निकले।
फिर जगदीश राय ने आशा की कमर थामी
और लंड आगे पीछे करके आशा की गांड में अपना 9 इंच का लंड पेलने लगे ।
धीरे धीरे वो अपनी स्पीड में इजाफा कर रहे थे
कुछ ही देर में उनकी स्पीड इतनी बढ़ गयी ....
की उनके हर धक्के से आशा तो हिल ही जाती लेकिन साथ साथ पलंग भी चरमरा जाता।
साथ ही साथ थप्पड़ मार मार के उन्होंने आशा के चुचड़ पुरे लाल कर दिए थे।इतनी बुरी तरह से आज पहली बार उन्होंने आशा की गांड मारी थी।
अब दोनों खड़े खड़े पसीने में भीग गए थे
जगदीश राय ने खूब धक्के लगाये। …
आशा इस धुँवाधार चुदाई में दो बार झड़ी थी
जब जगदीश राय को लगा की वो झड़ने वाले है …
वो बोले " बेटी.... अब मैं झड़ने वाला हूँ। ....
आशा: तो झड़ियें ना पापा … आप के माल से मेरी गाण्ड भर दो पापा ।
जगदीश राय: मैं तुम्हारे मुह में झड़ना चाहता हु साली रंडी।मुह खोल के बैठ साली कुतिया …
आशा सीधी हुयी और बोली " तो डाल दो न पापा … आपका लंड अपनी रंडी बेटी के मुँह में ।
आशा उनके आगे घुटनो पर बैठी
उनका लंड हाथ में लेकर उसे चाटने और चूसने लगी।
और उसी समय जगदीश राय नेअपना लंड आशा के मुह में घुसाया ….और उसका सर पकडे वो आशा के मुह को चोदने लगे...
आशा उनकी आँखों में आँखे डाले उन्हें देख रही थी ...
उनके चहरे के हाव भाव से उसे पता चला की अब वो झड़ने की कगार पर है ...
तो आशा ने अपनी मुट्ठी उनके लंड पर कसी और चूसने लगी ...
आशा के चूसते चूसते ही.... उसके मुँह में उसके पापा के वीर्य की बौछार होने लगी ...कुछ भीतर मुह में जा रहा था ।पापा का वीर्य इतना ज्यादा था की कुछ वीर्य आशा मुह से टपक रहा था ….
वीर्य की आखरी बून्द तक वह चूसती रही ।
आशा लगभग सारा वीर्य गटक गयी …फिर भी थोडा सा उसके होठो के आसपास और उसकी ठुड्डी पर लगा था। पापा के वीर्य की टेस्ट आशा बहोत अच्छी लगी ….
आशा ने अपने होठो पे जीभ घुमाकर इदर उधर लगा माल चाट लिया…
फिर पापा और आशा पलंग पर लेटे आराम करने लगे…
और हम एकदूसरे की बाहो में समां गए….
कुछ देर तक युही ख़ामोशी से पड़े रहने के बाद पापा बाते करने लगे …..
जगदीश राय : सॉरी बेटी मैंने तुमको गाली दिया।
आशा:कोई बात नहीं पापा।रफ सेक्स में गाली सुनने में भी मज़ा आता है।
जगदीश राय:कैसा लगा आशा बेटी…..
आशा: आपने तो मेरी जान ही निकाल दी थी पापा ....
जगदीश राय: इतनीसी चुदाई से जान नहीं निकलती मेरी जान … चुदाई का मजा आया की नहीं …..
आशा:मुझे भी बाद में बहुत मज़ा आया पापा।
कुछ देर बाद आशा बोली- चलो पापा, खाना खा लेते हैं.
जगदीश राय- ठीक है लेकिन हम लोग ऐसे ही नंगे रह कर खाना खाएंगे और तू मेरी गोद में बैठकर खाना खाएगी. मेरा लंड भी खाते वक़्त तेरी गांड में रहेगा।
तुझे खाने के साथ मेरी आइसक्रीम भी खानी पड़ेगी.. मंजूर है!
आशा बोली- ठीक है पापा आज आप जो कहोगे, वह मैं करूँगी.
फिर दोनों ने मिल कर टेबल पर खाना सजाया.जगदीश राय ने अलग से फ्रिज से आइसक्रीम भी निकाल कर सजा दी.जगदीश राय ने आइसक्रीम को आशा की चूचियों पर लगा दिया और चूचियों को चूसने और चाटने लगा . आशा भी बहुत गर्म हो गई थी.पूरा आइसक्रीम चाटने तक जगदीश राय चूचियों और निप्पलों को काटता रहा ,चूसता रहा।
जगदीश राय ने कुछ आइसक्रीम अपने लंड पर भी लगा दी और आशा को चूसने का इशारा किया.आशा आइसक्रीम के साथ साथ जगदीश राय के लंड को भी चूस रही थी. फिर कभी कभी आइसक्रीम वह उसके होंठों पर भी लगा देता था और दोनों फ्रेंच किस करने लगते. जगदीश राय आइसक्रीम के साथ साथ आशा के चेहरे को भी चूस और चाट रहा था।
अब जगदीश राय आशा की गाँड में उंगली डालने लगा. वह पूरी तरह से गर्म हो गई थी. जगदीश राय का भी लंड पूरा खड़ा हो गया था. जगदीश राय ने कहा- तुम मेरे लंड पर अपनी गांड चौड़ी करके बैठ जाओ. उसके बाद हम लोग खाना खाते हैं.
आशा अपनी गांड में अपने पापा का लंड लेकर उनकी गोद में बैठ गई. उसकी गाँड में जगदीश राय लंड अन्दर तक घुस गया. अब दोनों खाना खाने लगे.
आशा बोली- बहुत दर्द कर रहा है पापा. लेकिन जगदीश राय उसके चेहरे को चूसते हुए नीचे से धीरे-धीरे उसकी गाण्ड में लंड की ठोकर मारता रहा.इसी तरह चुदाई करते हुए दोनों ने खाना खा लिया था.
कुछ देर बाद जगदीश राय ने उसे टेबल के सहारे झुका के कुतिया बना दिया और उसकी गाँड मारने लगा. कुछ ही देर में आशा झड़ गई.जगदीश राय जोर-जोर से उसकी गाँड में अपना लंड पेलता रहा. कुछ देर बाद जगदीश राय का वीर्य निकलने वाला था तो उसने अपना वीर्य आइसक्रीम में गिरा दिया और अपनी बेटी को बोला कि वह मेरा पूरा वीर्य आइसक्रीम के साथ चाट जाए.
आशा भी पूरी गर्म थी, वो आइसक्रीम के साथ अपने पापा लंड भी चाट रही थी.वो पूरा वीर्य और आइसक्रीम चाट के खा गई।
एक ही दिन में जगदीश राय ने आशा को पूरा रंडी बना दिया था. इस वक्त आशा एक कुतिया की तरह अपने बाप के लंड के रस को आइसक्रीम के साथ चाट कर खा गई।
करीब आधा घंटे बाद जगदीश राय ने आशा को बाथरूम जाते देखा. तो वो भी उसके साथ बाथरूम में चला गया. आशा शरमाते हुए बोली- पापा, आप बाहर जाइए ना मुझे सु सु करना है.
जगदीश राय- कोई बात नहीं, मुझे तुमको सु सु करते हुए देखना है. आज तक मैंने किसी लड़की को सू सू करते हुए नहीं देखा है.अभी मेरा लंड भी खड़ा हो गया है, तुम सू सू करो.
आशा- लंड खड़ा हो गया है तो क्या आप मुझे अभी ही चोदने की सोच रहे हैं?
जगदीश राय:मैं तो चाहता हूँ की अपना लंड तुम्हारी गांड में पेल दूँ।और मैं इधर पेलता रहूँ और तुम सु सु करती रहो।
आशा:क्या क्या सोचते रहते हो आप भी।जल्दी अपना लंड मेरी गांड में पेलो।मेरी भी गाण्ड में खुजली हो रही है।
जगदीश राय ने आशा को कुतिया की तरह झुक दिया और उसकी गांड पे थूक दिया और उंगली से उसकी गांड सहलाने लगा. कुछ ही देर में उसकी गांड का छेद मुलायम हो गया.
अब जगदीश राय अपने लंड को आशा की गांड के होल में घुसा दिया.
वो “आअह्ह.. पापा..” करते हुए चिल्लाने लगी.
जगदीश राय तेजी से आशा की गांड मारने लगा.
और अब आशा को बर्दास्त नहीं हुवा ।
वह धक्के के साथ ही सु सु करने लगी।
काफी देर तक जगदीश राय आशा की चूत में उंगली और गांड में लंड पेलता रहा.
आशा दो बार झड़ गई.. लेकिन वह उसको पेलता रहा.
फिर आधे घंटे गांड मारने के बाद आशा की गांड में ही अपना वीर्य भर दिया.फिर जगदीश राय अपने लंड को उसके मुँह के पास ले गया और बोला- मेरे लंड को चूसो.फिर आशा ने जगदीश राय के लंड को चूसकर पूरा चमका दिया।
फिर दोनों लेटकर एक दूसरे को सहलाते हुए बात करने लगे।
जगदीश राय:आज मेरी ज़िन्दगी का सबसे हसीन पल था।मेरी बहुत सारी इच्छाये तुमने पूरी कर दी बेटी।
आशा:जगदीश राय को चूमते हुए।आप भी कमाल ले हो पापा।आप ले साथ मुझे बहुत मज़ा आया।आपकी और भी कोई इच्छा हो तो मैं पूरी करने की कोशिश करुँगी।
जगदीश राय:बेटी मेरी एक और इच्छा है की मैं चूत और गांड एक साथ मारूँ।मेरा लंड कभी चूत में घुसे तो कभी गांड में।
आशा:सॉरी पापा।मैं आपकी ये इच्छा पूरी नहीं कर सकती।आप तो जानते है मैं शादी तक वर्जिन रहना चाहती हूँ।
जगदीश:एक उपाय है बेटी ।तुम कुँवारी भी रहोगी और मेरी इच्छा भी पूरी हो जायेगी।
आशा:कैसे पापा।आप बताइये।आपकी ख़ुशी के लिए मैं करुँगी।
जगदीश:तुम और निशा एक साथ मिल जाओ तो मेरी इच्छा पूरी हो जायेगी।निशा की चूत और तुम्हारी मस्त गांड मेरे लंड के सारे ख्वाब पूरा कर देंगे।
आशा: ठीक है पापा। मैं कोशिश करुँगी।
फिर आशा जगदीश राय का लंड चूसकर खड़ा करती है।और जगदीश राय आशा को कुतिया बनाके उसकी गांड मारता है।आधे घंटे की रफ चुदाई के बाद दोनों थक जाते है।आशा दो बार झड़ चुकी थी।फिर जगदीश राय अपना लंड आशा के मुँह में पेलकर अपना सारा माल आशा को पिला देता है।फिर दोनों साफ सफाई करके अपने अपने रूम में चले जाते है।
जगदीश राय को ऑफिस के काम के सिलसिलें में चार पाँच दिन के लिए बाहर जाना पड़ा।उसने तीनों बेटियो को समझाकर पैसे भी दे दिए और चला गया।
आज निशा और आशा बहुत खुश थी क्योंकि आज उनके पापा आने वाले थे।लेकिन जब पापा ने बताया की वो शाम को ही घर आ पाएंगे तो दोनों को अच्छा नहीं लगा।
निशा पूरी गरम हो रही थी।पाँच दिन अपने पापा से दूर रहने से उसकी चूत पानी छोड़ रही थी।आज शशा की सहेली का बर्थडे था तो वो रात को उसके घर ही रुकने वाली थी।वह पापा से फ़ोन पर बात करके अपने सहेली के घर चली गई।
जगदीश राय जब शाम को घर आया तो घर में घुसते ही निशा और आशा दोनों अपने पापा से लिपट गई।निशा तो इतनी गरम हो चुकी थी की वो अपने पापा को उसने चूम लिया।जिसे देखकर आशा हंसने लगी।निशा शरमा गई।
कुछ देर बाद आशा अपने रूम में पढ़ने चली गई।निशा किचन में चली गई।पीछे पीछे जगदीश राय भी किचन में चला गया।किचन में घुसते ही निशा अपने पापा से लिपट गई और अपने पापा के होंठो पर होंठ रखके चूसने लगी।जगदीश राय भी निशा की मस्त चुचियों को मसलने लगा।साथ ही अपने लंड को निशा की गाँड के दरार में रगड़ने लगा।
निशा जल्दी ही जगदीश राय के आगे घुटनों पर बैठ गई और जगदीश राय के मोटे लंड को निकालकर चूसने चाटने लगी।वह अपने पापा के लंड को पूरा मुँह में भरकर चूसने लगी।तभी अचानक आशा आ गई और बोली:दीदी अकेले अकेले ही सारे मज़े मत ले लेना।
मेरे लिए भी छोड़ देना।
निशा:चल भाग यहाँ से।
आशा हँसते हुए भाग गई।
निशा:मुँह से लंड निकालकर पापा आपने आशा को और बिगाड़ दिया है।
जगदीश राय:अरे नहीं बेटी।उसकी भी गांड में खुजली हो रही होगी।
निशा:धत कितना गन्दा बोलते हो आप।आज तो मैं आपको नहीं छोड़ूँगी।रात भर हम साथ में सोयेंगे।
जगदीश राय:अरे बेटी ऐसा करोगी तो आशा को जानती हो न।उसे भी साथ बुला लेंगे।
निशा:कैसी बात करते हो पापा।मुझे तो बहुत शरम आयगी।
जगदीश राय:अरे बेटी अब शरमाने से काम नहीं चलेगा।आशा बोल रही थी।उसे तुम्हारे साथ कोई प्रॉब्लम नहीं है।मुझे भी बहुत मन था की कभी दो जवानी का मज़ा एक साथ लूँ।लेकिन लगता है मेरी ये इच्छा कभी भी पूरी नहीं होगी।
जगदीश राय ने इमोशनल होकर दुखी आवाज में कहा।
जिसे सुनकर निशा बोली।
अगर आपकी इच्छा है पापा तो मैं भी तैयार हूँ।आपकी ख़ुशी के लिए तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ।
फिर दोनों ने किस करके थोड़े बहुत मज़ा किये।फिर निशा खाना बनाने लगी।।
जब तीनों खाना खा लिए तो जगदीश राय ने आशा को भी बता दिया की आज हम तीनों एक साथ मज़ा करेंगे।
आशा भी खुश हो गई।
दस बजते ही जगदीश राय ने वियाग्रा की 1 गोली खा ली।क्योंकि निशा और आशा के आने का टाइम हो गया था।आज जगदीश राय की जिंदगी का सबसे हसीं पल आने वाला था।जब उसकी दोनों जवान गदराई बेटीयाँ उसकी बाहों में आ रही थी।
दस बजते ही निशा आ गई आते ही उसने पापा को किस किया और उनकी बाँहो में समा गई।अब दोनों ही एक दूसरे को किस करने लगे।जगदीश राय निशा के कपडे उतारने लगा।आशा के आने के पहले वह निशा को पूरा गरम कर देना चाहता था।
निशा भी आज कहाँ पीछे रहनेवाली थी उसने भी अपने पाप को पूरा नंगा कर दिया।
अब जगदीश राय ने नंगी पड़ी निशा को बेड पर लिटाया और उसके दोनो हाथो को उसने बेड पर एक हाथ से दबोच दिया..ताकि वो उसे रोक ना पाए...बेचारी उसके नीचे दबकर सिर्फ़ छटपटाने के अलावा कुछ नही कर पा रही थी।
उसके अंदर उठ रही तरंगे उसके जिस्म को उपर की तरफ उचका रही थी..और वो अपने कूल्हे उठाकर अपनी चूत को जगदीश राय के खड़े हुए लंड से रगड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी.
लेकिन जगदीश राय बड़ी ही चालाकी से अपने लंड को उसकी चूत से दूर रखकर उसकी बेकरारी को बड़ा रहा था.
जगदीश राय उसके बूब्स को चूसता - 2 नीचे की तरफ बढ़ने लगा...उसकी नाभि पर पहुँचकर उसने अपनी जीभ उसके अंदर डाल दी...और उसकी नाभि को अपनी जीभ से चोदने लगा..
तभी आशा रूम में आई।निशा ने तो नहीं देखा लेकिन जगदीश राय ने उसे दूर से ही देखने का इशारा किया।
वह ध्यान से देखने लगी।
निशा की नाभि की चुदाई देखकर दूर बैठी आशा ने भी अपनी टी शर्ट उतारकर अपनी नाभि की गहराई देखी की क्या वो भी जीभ से चोदने लायक है या नही...वो उतनी गहरी नही थी जितनी निशा की थी...कारण था निशा का गदराया हुआ जिस्म, जिसकी वजह से उसकी नाभि उसके पेट में थोड़ा अंदर जा धँसी थी...और इस वक़्त जगदीश राय उसी नाभि को अच्छी तरह से चाटकर उसे पूरी तरह से उत्तेजित कर रहा था.
थोड़ी देर बाद उसने फिर से निचे का रुख़ किया और उसकी जीभ निशा की चूत के द्वार पर जाकर रुक गयी...
जगदिश राय ने उपर मुँह करके निशा के चेहरे को देखा...वो साँस रोके उसके अगले कदम की प्रतीक्षा कर रही थी.
जगदिश राय ने अपनी उँगलियों से निशा की चूत की क्लिट को फैलाया,तो उसकी कमाल की चूत उभरकर जगदिश राय के सामने आती चली गयी.निशा की चूत इतनी गरम थी की लग रहा था की भाँप छोड़ रही हो।
कमाल की इसलिए की एक तो वो बिल्कुल गोरी थी...और उपर हर जगह से वो एकदम सफाचट थी.
उसने आशा की तरफ देखा तो वो अपनी चूत मसलते हुए जगदीश राय को देखकर मुस्कुरा उठी...और अपने बूब्स को प्रेस करके एक सिसकारी भी मारी...जगदीश राय समझ गया की आशा भी पूरी गरम हो चुकी है।
अब जगदीश राय के सामने एकदम रसीली और जूस से भरी हुई चूत पड़ी थी...उसने अपनी जीभ को तैयार किया और टूट पड़ा निशा की चूत में .
सेलाब तो कब से उमड़ रहा था उसकी चूत में ....अब जगदीश राय की जीभ से चोदकर उसकी चूत में सैलाब लेकर आना था....और वो ये काम करना बख़ुबी जानता था.
जगदीश राय निशा की चुत चूसने लगा था, तभी आशा बोल पड़ी, पापा दीदी की चुत खट्टी मीठी है ना।
ये सुनकर निशा ने शरमाते हुए आशा की तरफ देखा और बोली तो तू छुपकर हमें देख रही है।
आशा : "नही दीदी....मैं तो एक आइडिया लेकर आई हूँ ...जिसमे पापा को इसे सक्क करने में ज़्यादा मज़ा आएगा...''
इतना कहकर वो भागकर किचन में गयी और फ्रिज खोलकर एक छोटी सी शहद की शीशी निकाल लाई...
जगदीश राय समझ गया की ये क्या करने वाली है...
अब आशा करीब आई और उसने वो ठंडा-2 शहद निशा की चूत के उपर उडेल दिया....एक गाड़ी सुनहरे रंग की लकीर के रूप में वो शहद धीरे-2 निशा की गरमा गरम चूत को अपने रंग में रंगने लगा..थोड़ा शहद उसने उसकी गांड की तरफ से भी डाल दिया,जो धीरे-२ बहकर उसकी चुत तक पहुँचने लगा।
जगदीश राय देख पा रहा था की आशा शहद उड़ेलते हुए अपनी जीभ ऐसे लपलपा रही थी जैसे वो बरसो की प्यासी हो....
शहद की पूरी शीशी उड़ेलने के बाद वो बोली : "लो पापा....अब आपकी ये स्वीट डिश आपके लिए तैयार है...''
और ये कहकर जैसे ही वो उठकर जाने लगी, जगदीश राय ने उसकी कलाई पकड़ ली और बोला : "अब इतना काम कर दिया है तो थोड़ा और कर दो मेरे लिए....इसे अपनी दीदी की चुत पर फैला भी दो...अपने अंदाज में ..''आशा आगे बढ़ने लगी तो जगदीश राय बोला।पहले पूरी नंगी तो हो जा।
ये बात सुनते ही आशा के होंठ थरथरा उठे...उसके पूरे शरीर के रोँये खड़े हो गये....अपनी बड़ी दीदी और पापा के साथ सेक्स के बारे में सोचकर।
वो सोचने लगी की इसका मतलब ये है की पापा उसे इस सेक्स के खेल में शामिल होने के लिए बोल रहे है...
और दूसरी तरफ निशा को भी झटका लगा...वो नही चाहती थी की आज आशा उनके इस चुदाई वाले खेल में शामिल हो...वो बस यही चाहती थी की वो दूर बैठकर ये खेल सिर्फ़ देखे..
लेकिन आशा के चेहरे और निशा के दिमाग़ में चल रही बातो को जैसे जगदीश राय ने पढ़ लिया था...वो बोला... : "देखो....तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ ये एक छोटा सा काम करोगी...और कुछ नही...उसके बाद वापिस अपनी जगह पर जाकर बैठ जाओगी...अच्छे बच्चो की तरह....ओके ..''
आशा के लिए ये एक सपने जैसा ही था...वो अपनी बहन की शहद से भीगी चूत को चूसने वाली थी...उसी चूत को जिसे उसके पापा सिर्फ़ दस मिनट बाद चोदने वाले थे...यानी उसके पापा चाहते थे की वो अपनी बहन की चूत खुद तैयार करे,ताकि वो बाद में उसकी चुदाई सही से कर सके।वो जल्दी से पूरी नंगी हो गई।
निशा ने भी कुछ नही कहा...वैसे भी उसे एक्साइट करने के लिए सही ढंग से चूत की चुसाई करना बहुत ज़रूरी था ...और ये काम आशा से अच्छी तरह कोई और कर ही नही सकता था...
जगदीश राय निशा की टाँगो के बीच से उठकर उपर बेड की तरफ चला गया...और आशा उसकी जगह पर आकर बैठ गयी...उसने निशा की दोनो टाँगो को दोनो दिशाओं में फेलाया और अपनी जीभ निकाल कर उसकी नोक से ढेर सारा शहद समेटा और दोनो हाथों की उंगलियों से निशा की चूत की फांके फेला कर नीचे से उपर की तरफ ले जाते हुए उसकी चूत का को चाटना शुरू कर दिया...एक लंबी आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह के साथ निशा ने अपनी बगल में बैठे अपने पापा के लंड को बुरी तरह से पकड़ा और ज़ोर से मसल डाला...
निशा:''आआआआआआआआआआआआआआआआआहह ओह...... आशाआआआआआअ......''
आशा की जीभ ने वो ठंडा -2 शहद उसकी खुली हुई चूत के अंदर धकेलना शुरू कर दिया था...
ये शहद वाली ट्रिक उसने कई दिनो से सोच के रखी हुई थी किसी लड़की के लिए...लेकिन उसे करने का मौका ऐसे आएगा ये उसने सपने में भी नही सोचा था...वो भी अपनी सगी बहन के साथ।
जगदीश राय भी अपने घुटनो के बल बैठकर अपने लंड को उसके मुँह के करीब ले आया...और निशा उसे किसी गली की कुतिया की तरह चाटने लगी...अपनी जीभ से लपलपा कर उसने जगदीश राय के लंड को अपने ही शहद से तर-बतर कर दिया...ठीक उसी तरह जिस तरह से उसकी चूत को आशा ने कर दिया था इस वक़्त..
आशा तो बड़े ही चाव से उसकी चूत के हर भाग को शहद में लपेट कर चाट रही थी....चूत से निकलता खट्टापन अब शहद में मिलकर कुछ अलग ही स्वाद दे रहा था...जो आशा को काफ़ी पसंद आया...और उसे पता था की पापा को भी ये स्वाद पसंद आएगा...
कुछ देर बाद वो अपने रस से भीगे होंठ वहां से उठा कर बोली : "आओ पापा....अब ट्राइ करो...''
जगदीश राय ने एक लंबी छलाँग लगाई
और बेड से नीचे उतर आया...आशा के हटते ही उसने मोर्चा संभाल लिया और जब उसकी जीभ निशा की चूत से टकराई तो वहां के बदले स्वाद को महसूस करते ही वो पागल सा हो गया...और पहले से कही ज़्यादा तेज़ी से उसकी चूत को अपने मुँह से चोदने लगा...इधर आशा निचे बैठकर अपने पापा का लंड अपने मुँह में भरकर चूसने लगी।
जगदीश राय: आह बेटी,आह आराम से चूसो।
इधर निशा को इतना मज़ा आ रहा था की वह गांड उठाकर अपनी चूत अपने पापा के मुँह पर धकेल रही थी। करीब दस मिनट तक अच्छी तरह से चूसवाने के बाद निशा को एहसास हो गया की चूत की ऐसी चुसाई से बड़ा मजा इस दुनिया में और कोई नहीं है।
और इधर जगदीश राय को भी अहसास हो गया की अब निशा की चूत अंदर और बाहर से पूरी तरह गीली है...यही सही मौका है....उसके चूत में अपना मोटा लंड पेलने का।
इधर आशा ने जगदीश राय के लंड को चूस चूसकर रॉड बना दिया था।
वो उठा और अपने लंड को उसने निशा की गर्म चूत पर टीका दिया..
ये वो मौका था जब निशा और आशा अपनी साँसे रोके एक साथ उस पॉइंट को देख रही थी...जहाँ पर जगदीश राय के लंबे लंड और निशा की गीली चूत का मिलन हो रहा था.
जयसिंह ने धीरे-2 करके अपने लंड को निशा की चूत के अंदर पेलना शुरू किया...
निशा : "उम्म्म्म.....पापा.....आह धीरे धीरे....पेलो।
निशा कई बार चुद चुकी थी अपने पापा से पर आज वो ऐसे रियेक्ट कर रही थी मानो उसकी पहली चुदाई हो।
जगदीश राय : "नही मेरी जान.....इतनी देर तक जो तेरी चूत को तैयार किया है, वो इसलिए ही ना की दर्द ना हो....अब सिर्फ़ मज़ा ही मज़ा मिलेगा...दर्द नही...''
और जैसे-2 उसका लंड निशा के अंदर जाता जा रहा था, उसके चेहरे के एक्शप्रेशन बदलते जा रहे थे...
और धीरे-2 करते हुए जगदीश राय ने अपना आधे से ज़्यादा लंड उसकी चूत में पेल दिया....अब तक निशा को थोडा थोडा दर्द होने लगा था..पर वो अपने मुँह पर हाथ रखकर अपनी दर्द को बाहर नही निकलने दे रही थी...
जगदीश राय ने उसके दोनो हाथो को बेड पर टीकाया और धीरे से उसके उपर झुकते हुए बोला : "बस बेटी....थोड़ा सा और....'''
वो कुछ बोल पाती, इससे पहले ही जगदीश राय ने अपना पूरा का पूरा भार उसके उपर एक झटके मे डाल दिया ....और उसका खंबे जैसा लंड निशा की चूत को किसी ककड़ी की तरह चीरता हुआ अंदर तक घुसता चला गया...
निशा: ''आआआआआआआआआआआआहह ऊऊऊऊऊऊओह मररर्र्र्र्र्र्र्र्र्रर्र्र्ररर गईईईईईईईईईईईईईईsssssssss ..... आआआआआआआआआहहsssssssssss पापाsssssssss..................................''
आशा भागकर उसके करीब गई और बेड पर चढकर वो निशा के चेहरे को चूमने लगी ।
वो तो ऐसे दिलासा दे रही थी उसे जैसे वो बरसो से चुदती आई है, आशा अपने होंठ उसके होंठो पर रखकर उसे बुरी तरह से चूसने भी लगी.
आशा की किस का जवाब भी देना शुरू कर दिया था निशा ने....दोनो एक दूसरे के होंठों को किसी भूखी बिल्लियों की तरह से चूस रही थी...और आशा ने जब देखा की निशा का दर्द अब गायब हो चुका है तो वो बेमन से वापिस अपनी जगह पर जाकर बैठ गयी..
निशा ने जाते हुए उसे थेंक्स भी कहा...और फिर अपने पापा के साथ वो एक बार फिर से मस्ती के खेल में शामिल हो गयी.
अब तो वो अपनी टांगे दोनो दिशाओ में फेलाकर पूरे जोश से अपने पाप के लंबे लंड को अंदर तक ले रही थी...और सिसकारियाँ मारकर उसे और ज़ोर से चोदने के लिए उकसा भी रही थी...
निशा:''आआआआआआआआहह पापा........ मेरी जानssssssssss ....... और तेज़ी से करो.................. उम्म्म्ममममममममममम...... आहह पापा.............. मजा आ रहा है ....................... उम्म्म्ममममममममम..... इसी मज़े के लिए कब से तरस रही थी..... आआआआआआआआहह ........ ऐसे ही................... हमेशा मेरे अंदर ही रहना ...................... दिन रात...................चोदो मुझे ..................मेरे प्यारे पापा............................ सिर्फ़ मेरे पापा.................''
दूर बैठी छोटी बहन आशा बुदबुदा उठी ..'तेरे ही क्यो....मेरे भी तो पापा है...
वो अपनी चूत को खोलकर मसल रही थी ..... और साथ ही साथ बाहर की तरफ निकले हुए क्लिट के दाने को भी रगड़कर अपनी गर्मी शांत करने की कोशिश कर रही थी।
लेकिन जगदीश राय और निशा में से किसी का भी ध्यान उसकी तरफ नहीं था, वो दोनों तो बुरी तरह से एक दूसरे को चोदने में लगे हुए थे
जगदीश राय भी अपनी पागल सी हुई जा रही बेटी को इस तरह से चोदकर बावला हुए जा रहा था, और वो इस मौके का भरपूर फायदा उठा रहा था....
आख़िरकार ज़ोर-2 से चिलाते हुए निशा झड़ गयी ...
निशा: ''आआआआआआआआहह ओह माय गॉड ................ पापा ..................... आई एम कमिंग ..................''
जगदीश राय भी चिल्लाया : "मैं भी आआआआआआय्य्ाआआआआ... मेरी ज़ाआाआआनन्न....''
निशा : "अंदर ही निकालो .............पापा............. आज मेरे...................... अंदर ही निकााआआाआल्लो.....''
लेकिन यहाँ ना तो कंडोम लगाने का टाइम था और ना ही जगदीश राय ने कुछ समझदारी दिखाई....और उपर से निशा खुद ये बात बोल रही थी की उसके रस को अंदर ही निकाले....क्या वो प्रेगञेन्ट होना चाहती है....ये बात आशा को परेशान कर रही थी.
निशा ने भी ऐसा कुछ नही सोचा था....लेकिन इस मौके पर आकर वो एक बार अपने अंदर तक अपने पापा के प्यार को महसूस करना चाहती थी...इसलिए उसने एक सेकेंड में ही ये सोच लिया की आज जो हो रहा है, होने दो...बाद में टेबलेट ले लेगी...
जगदीश राय ने भी एक सांड की तरह हुंकारते हुए अपने लंड का सारा पानी अपनी प्यारी बेटी की चूत के अंदर निकाल दिया....
''आआआआआआआआआआअहह मेरी ज़ाआाआआआअन्न् ......ये ले......................''
जगदीश राय ने अपनी प्यारी बेटी के लिए सहेज के रखा हुआ प्रेम रस पूरी तरह से उसकी प्यासी चूत
मे उडेल दिया , अपनी बाल्स को पूरी तरह से खाली कर दिया उसने..
निशा की चूत ने भी जगदीश राय के लंड को किसी वेक्यूम क्लीनर की तरह चूस डाला और पूरी तरह से तृप्त होकर पस्त हो गयी.
और फिर गहरी साँसे लेता हुआ उसके मुम्मों पर सिर रखकर लेट गया...उसका लंड अपने आप फिसलकर बाहर निकल आया...और पीछे से निकला दोनो के प्यार का मिला जुला पानी में लिपटा सफ़ेद जूस...
आशा ने जो आज देखा था उसे सोचकर उसका पूरा शरीर गर्म सा हो रहा था....वो भी कुछ देर में इसी लंड से गांड मरवाएगी ...और उसका भी ऐसे ही पानी निकलेगा...वो भी मज़े लेगी...वो भी चिल्लाएगी....ये सब सोचते-सोचते वो मुस्कुरा दी।
जगदीश राय और निशा दोनो ने नोट ही नही किया की उनके पीछे खड़ी आशा उनके इस मिलन को देखकर कैसे अपने बूब्स और चूत को रगड़ रही है...
उसे पता था की अभी तक उसका नंबर नही आया है,इसलिए वो इस तरह से दूर खड़ी होकर अभी के लिए तो बस यही कर सकती थी...पर वो ऐसी थी नही...वो जानती थी की आजकल की दुनिया में ऐसे दूर रहकर कुछ नही मिलने वाला...बड़े लोग हमेशा छोटो को दबाते है..उनके हक को खुद छीनकर ले जाते है...भले ही अभी के लिए इन दोनों बहनों में ऐसी कोई भी भावना नही थी पर इस तरह दूर खड़े होकर वो निश्चिन्त तौर पर कुछ खो ही रही थी...या ये कह लो की उसकी बहन सारे मज़े खुद लेकर उसे ऐसे मज़े से वंचित रख रही थी..
और कुछ पाने के लिए वो उन दोनो के करीब आ गयी...
वो भी तो नंगी ही थी...इसने अपना वो नंगा बदन अपने पापा से ले जाकर चिपका दिया...
क्योंकि वो जानती थी की जो भी उसके साथ होगा वो पापा के लंड द्वारा ही होगा...
इधर जगदीश राय और निशा अब दूसरे राउंड के लिए पूरी तरह तैयार थे,जगदीश राय और निशा दोबारा एक दूसरे के होठों को चबाने में मशगूल हो गए,पर जगदीश राय को जब आशा के गर्म बदन का एहसास हुआ तो उसने अपनी किस्स तोड़ी और आशा की तरफ देखा...निशा भी उसे देखकर समझ चुकी थी की उसकी बदन में भी अब कुलबुलाहट शुरू हो चुकी है....दोनो ने मुस्कुराते हुए आशा को भी अपनी बाहों मे जगह देकर उसे अंदर घुसा लिया....और फिर एक साथ तीनो ने अपने-2 मुँह आगे कर दिए और तीन तरफ़ा स्मूच शुरू हो गयी....
दोनो बिल्लियों की तरह जगदीश राय के होंठों को ही चूसने का प्रयास कर रही थी...जगदीश राय भी कभी एक को तो कभी दूसरी को फ्रेंच किस कर रहा था...ऐसे अलग-2 नर्म होंठों को चूसने में उसे बहुत मज़ा आ रहा था...ऐसा ही कुछ वो उन���ी चुतों के साथ भी करना चाहता था.
जगदीश राय ने तुरंत वो सामूहिक किस्स तोड़ी और अपनी गोद मे बैठी निशा को नीचे उतार दिया...वो तो उसपर से उतरने को ही राज़ी नही हो रही थी...पर जब जगदीश राय ने उसकी गर्म चूत में उंगली डाली तब जाकर वो नीचे उतरी...
उन दोनो को जगदीश राय ने धक्का देकर बेड पर लिटा दिया, जगदीश राय अपने होठों पर जीभ फिर रहा था, दोनो बहने उसे ऐसा करते हुए देख रही थी और अपनी चूत में उंगली और मुम्मो पर पंजा लाकर उसके आगे बढ़ने का इंतजार कर रही थी...
जगदीश राय के लण्ड को देखकर दोनो की चूत में से नींबू पानी निकल रहा था..
जगदीश राय ने दोनो की बहती हुई चूत देखी और वो उनके पैरों के पास आकर बैठ गया...अब तक दोनो समझ चुकी थी की उनके साथ क्या होने वाला है...दोनो ने एक दूसरे का हाथ जोरों से पकड़ लिया...
जगदीश राय ने दोबारा सबसे पहले निशा की चूत में अपना मुँह डाला...वहाँ से इतना गीलापन निकल रहा था की उसे एक पल के लिए ऐसा लगा की वो लिम्का पी रहा है...एकदम शहद में लिपटा खट्टा-मीठा सा स्वाद था उसकी चूत के रस का...
कुछ देर तक उसे चूसने के बाद वो आशा की तरफ पलटा...और अपनी जीभ लगाकर उसका स्वाद चखा...वो थोड़ा मीठा था...उसने अपने होंठों और दाँतों से उसकी चूत पर हमला कर दिया...
वो तड़प उठी...और तड़पकर उसने पास लेटी निशा को पकड़कर अपने उपर खींच लिया...और उसके मम्मों को जोरों से चूसने लगी...
''आआआआआआआआआहह माय बैबी...''
निशा को अपनी छोटी बहन अपनी बच्ची जैसी लग रही थी...जो अभी पैदा हुई थी...वो उसे माँ बनकर अपना दूध पिलाने लगी...नीचे से जगदीश राय उसकी चूत चूस रहा था और उपर से वो निशा के मम्मे चूसकर अपना सारा मज़ा आगे ट्रान्स्फर कर रही थी...
कुछ देर बाद जगदीश राय फिर से निशा की चूत पर आ लगा...और ऐसा उसने करीब 3-4 बार किया....कभी आशा तो कभी निशा की चूत चाटता...
अब निशा भी उठकर आ गई और अपने पापा के साथ साथ आशा की चूत चाटने लगी।जल्दी ही आशा की चूत ने जवाब दे दिया।आशा काफ़ी देर से बिलख रही थी...और आख़िरकार उसकी चूत ने पानी छोड़ ही दिया...
वो भरभराकर झड़ने लगी....जगदीश राय और निशा ने मिलकर उसकी चूत का पानी पी डाला..
अब जगदीश राय की बारी थी...निशा ने उन्हें बेड पर लिटा कर पीछे पिल्लो लगा दिया और खुद उनकी टाँगो के बीच पहुँच गयी...दूसरी तरफ से आशा भी आ गयी...फिर दोनो ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे को देखा और मिलकर जगदीश राय के लंड पर टूट पड़ी...जगदीश राय का लंड जिसमे अभी भी निशा की चूत का पानी और वीर्य लगा हुवा था।लेकिन दोनों बहनें रंडियों की तरह अपने पापा का लंड चूसने चाटने लगी।
जगदीश राय ने तो बेड की चादर को ज़ोर से पकड़ लिया जब उसपर ये हमला हुआ तो...निशा ने उसके लण्ड को निगल लिया था और आशा ने उसकी गोटियों को....
ऐसा लग रहा था जैसे भूखे इंसानों को 1 महीने बाद कुछ खाने को मिला है...
जगदीश राय के लंड को चूस चूस करके दोनों खाने लगी...उनकी गर्म जीभे , तेज दाँत और नर्म होंठों के मिश्रण से उसे बहुत गुदगुदी भी हो रही थी...पर उससे ज़्यादा मज़ा भी बहुत आ रहा था...
जगदीश राय ने हाथ आगे करके दोनों के मुम्मे सहलाने शुरू कर दिए...दोनो के निप्पल एकदम कड़क हो चुके थे...उन्हे मसलने में उसे बहुत मज़ा आ रहा था...जगदीश राय दोनों के निप्पलों को दोनों हाथों से नोंच रहा था।
दोनों जगदीश राय के लंड को बुरी तरह से चूस रहे थे, एक गोटियां चूस रही थी तो दूसरी लंड.
दोनों बहने नंगी जगदीश राय के सामने थी..जगदीश राय के मुँह में पानी आ गया उन गोरी-2 छातियों को देखकर ।
और उसने आशा को अपनी तरफ खींचकर अपने होंठ लगा दिए उसके मुम्मों पर और जोरों से चूसने लगा..
आशा ने जगदीश राय के सिर को पकड़कर और ज़ोर से अपनी छाती में घुसा लिया और चिल्लाई : "ओह पापा........ ज़ोर से सक्क्क करो..... बहुत परेशान करते है ये.... दबाओ इन्हे..... चूसो.... काट लो दांतो से..... अहह ...ओह पापा ...... सस्सस्स ..''
जगदीश राय ने उसके बूब्स पर दांतो से काटना शुरू कर दिए...
कुछ देर तक अपनी ब्रेस्ट चुसवाने के बाद वो बड़े ही प्यार से बोली : "पापा..... मुझे भी चूसना है...''
जगदीश राय मुस्कुरा दिया उसके भोलेपन को देखकर...
कितनी मासूमियत से वो खुद ही उसके लंड को चूसने के लिए बोल रही थी...
इससे उसके उतावलेपन का सॉफ पता चल रहा था...
जगदीश राय जानता था की वो ज़्यादा देर तक तो इस खेल को बड़ा नही पाएगा,क्योंकि 5 दिन से वो झड़ा नहीं था। पर जितने मज़े वो ले सकता है उतने वो ले लेना चाहता था.
जगदीश राय ने हामी भर दी..
दोनों बहनें पूरी रंडी बनकर अपने पापा के लंड को खा जाने में जुटी थी,दोनों बहनों ने अपनी जीभ का वो कमाल दिखाया की जगदीश राय का लण्ड फटने को तैयार हो गया।दोनों बहनो ने दोनों तरफ से मुँह खोलकर लंड को चूसना और चाटना शुरू किया तो जगदीश राय को लगा की सारा पानी दोनों के मुँह पर ही छोड़ देगा।
कुछ ही देर में उनकी मेहनत रंग लाने लगी, जगदीश राय के लण्ड में ने फुफकारना शुरू कर चुका था और कुछ ही मिनट में अब वो रॉड की तरह खड़ा था।
अब जगदीश राय ने निशा को ऊपर मुँह करके सीधा लेटाया और उसके ऊपर आशा को उल्टा लिटा दिया।अब दोनों की चूचियाँ एक दूसरे से दब गई।और दोनों एक दूसरे को चूसने लगी।
ऊपर से जगदीश राय ने आशा की गांड पर थूक दिया और एक ही झटके में अपने पूरे लंड को उसकी गाण्ड में उतार दिया।आशा की गांड फटती चली गई और लंड पूरा घुसता चला गया।अब जगदीश राय आशा की टाइट गांड में अपना मूसल लंड पेलने लगा।फिर उसने अपने लंड को आशा की गाँड से निकालकर निशा की चूत में पेल दिया।निशा की चूत पूरा पानी छोड़ रही थी।जिसमे लंड फच फच कर रहा था।
कुछ देर निशा की चूत में पेलने के बाद फिर जगदीश राय ने अपने लण्ड को निशा की चूत से निकालकर आशा की मस्तानी गांड में पेल दिया।अब तो लण्ड आशा की गांड में पूरा जड़ तक घुसा के पेल रहा था।
एक मिनट आशा की गांड में पेलता फिर एक मिनट निशा की चूत में पेलने लगता।
लेकिन इस बार निशा की चूत में पेलने के बाद जगदीश राय ने लंड को फिर से निशा की कसी हुई टाइट गांड में ही पेल दिया।निशा दर्द से सिसियाने लगी।जब थोड़ी देर हुई तो आशा बोली।
आशा:पापा क्या कर रहे हो।कितनी देर से निशा दीदी को ही चोद रहे हो।इधर मेरी गाण्ड में खुजली हो रही है।जल्दी पेलो पापा।फाड़ डालो मेरी गांड को।
जगदीश राय: क्या करू बेटी।तेरी दीदी के पास दो दो छेद है।तो दोनों में पेल रहा हूँ।तू तो एक ही छेद दे रही है।इसलिए तेरी दीदी में ज्यादा टाइम लग रहा है।
आशा :कोई बात नहीं पापा।इसका बदला मैं भी लेकर रहूंगी।
निशा:अरे आशा तुझे जितना मन करे।चुदा ले।
आशा की गाण्ड लंड के इस घर्सण से उत्तपन्न गर्मी से पिघली जा रही थी, इधर निशा ने भी आशा के होठो और मुंम्मो पर लगातार हमला जारी रखा हुआ था।
इस दो तरफा हमले को सह पाना आशा के लिए बड़ा मुश्किल हुआ जा रहा था, जगदीश राय पोजीशन बदल बदल कर आशा की गांड की धज्जियां उडाए जा रहा था, बीच बीच मे अब वो अपना लंड निकालकर निशा की चुत में भी घुसेड़ देता ।
फिर जगदीश राय ने दोनों बेटियों को एक दूसरे के ऊपर कुतिया बनाके चोदना शुरू किया।पहले आशा की गांड मारता।फिर निशा की चूत और गांड मारने लगता।फिर अपना लंड आशा की गांड में पेल देता।दोनों की गांड पर कभी कभी थप्पड़ भी मारने लगता।
तीनों छेदों को 1 मिनट का भी आराम नहीं था।
चौथा छेद आशा की चूत में कभी कभी ऊँगली पेल देता।दोनों बहने कुतिया बने बने कितनी बार झड़ चुकी थी।
तकरीबन 45 मिनट की घमासान धमाकेदार चुदाई के बाद जगदीश राय ने अपना लंड ब��हर निकाला और दोनों बेटीयों को निचे बैठ दिया और अपना पानी दोनों बहनों के मुँह और मुंम्मो पर छोड़ दिया जिसे दोनों बहनों ने अमृत समझ चाट लिया, इस बीच वो दोनों भी न जाने कितनी बार अपना पानी छोड़ चुकी थी।
कुछ देर आराम करने के बाद फिर दोनों ने जगदीश राय के लंड को सहलाना शुरू कर दिया।जगदीश राय ने दोनों बहनों को अपना लंड चाटने का इशारा किया।
अब जब दोनों बहनों में जगदीश राय के लंड को चूसना शुरू किया तो दो दो गरम मुँह की गर्मी से जगदीश राय के लंड का बुरा हाल हो गया।इस बार जगदीश राय ने फर्श पर गद्दा डलवाया और पहले निशा को उल्टा लिटा दिया।और आशा को उसकी गांड और चूत को गिला करने को कहा।आशा ने जल्दी ही निशा की चूत और गांड को अपनी जीभ से चाट कर और थूक लगाकर गिला कर दिया फिर उसने अपने पापा के लंड को भी गिला कर दिया और बोली और फाड़ डालो पापा दीदी की चूत और गांड।
जगदीश राय ने अपने लंड को निशा की चूत पर रखा और एक ही धक्के में अपना 9 इंच का लंड अपनी बेटी निशा की चूत में जड़ तक पेल दिया।निशा चिल्लाने लगी।
लेकिन जगदीश राय को कोई फर्क नहीं पड़ा।वह तो धक्के पे धक्के मार के पेल रहा था।जब लंड पूरा गिला हो गया तो उसने लंड निकालकर आशा को चूसने को बोला।आशा जल्दी जल्दी चूसने लगी।इस बार जगदीश राय ने अपने लंड को निशा की गांड के भूरे छेद पर लगाया तो निशा कांप उठी।लेकिन जगदीश राय ने जोर का धक्का मारा और उसका पूरा लंड निशा की गाण्ड को फैलाता हुवा घुस गया।।
निशा:आह मरर गईईईईई पपाआआआ।धीरे धीरे पेलो ना।
लेकिन जगदीश राय को कोई फर्क नहीं पड़ा वह निशा की गांड से लंड निकाल के आशा क�� मुँह को चोदने लगता।फिर मुँह से निकालकर निशा की चूत और गांड फाड़ने लगता।इस बार पूरी बेरहमी से उसने निशा की चूत और गांड मारी।आखिरी समय में तो निशा मज़े से चिल्लाने लगी और बुरी तरह से झड़ गई।जगदीश राय ने भी अपना पूरा वीर्य अपनी बेटी निशा की गाँड में भर दिया।
जगदीश राय ने अपना लंड निशा की गांड से निकल कर आशा के मुँह में पेल दिया।जिसे आशा ने चाट चाट कर चमका दिया।निशा पूरी तरह थक गई थी।उसने अपने पापा को किस किया और सोने चली गई।
जगदीश राय और आशा ने कुछ देर रेस्ट किया फिर आशा बोली:पापा आपने तो आज दीदी की बैंड बजा दिया।
जगदीश राय:आ अब तेरी बारी है।इस बार तुझे भी ऐसा चोदुँगा की 2-3 दिनों तक तेरी गाँड में खुजली नहीं होगी।थोडा मेरा लंड तो चूस दे ।फिर देख तेरा क्या हाल करता हूँ।
आशा घुटनों पर बैठके अपने पापा का लंड चूसने लगती है।जगदीश राय दोनों हाथों से उसके सर को पकड़कर अपना लंड आशा की मुँह में पेलने लगता है।
पांच मिनट तक आशा की मुँह चोदने के बाद जगदीश राय आशा को कुतिया बना देता है।फिर अपना गिला लण्ड आशा की टाइट गांड में जबरदस्ती पेल देता है।
जगदीश राय:देख साली रंडी।अब तुझे कैसे कुतिया की तरह दौड़ा दौड़ा के पेलता हूँ।दौड़ते हुए थोडा भी रुकी तो साली तेरी गांड पर कितने थप्पड़ पड़ेंगे तुझे पता भी नहीं होगा।बोल साली रंडी तू मेरी क्या है।
आशा:मैं आपकी रांड हूँ।आपकी पर्सनल रांड।
मुझे जैसे चाहो मुझे चोदो मेरे मालिक।
फिर जगदीश राय आशा के दोनों पैरों को ऊपर उठा देता है।और आशा की गांड में लंड पेलते हुए उसे आगे चलने को कहता है।आशा दोनों हाथो के बल आगे चलने लगती है।फिर तो जगदीश राय आशा को किसी गली की कुतिया की तरह घर के कोने कोने में दौड़ाकर उसकी गांड मारता है।आधे घंटे तक जगदीश राय आशा की गांड मारता है।तब तक आशा दो बार झड़ चुकी है।
फिर जगदीश राय आशा की गांड से लंड निकालकर उसके मुँह को चोदने लगता है।फिर आशा भी अपने ही गाण्ड से निकले लंड को चूस चूसकर उसका पूरा वीर्य पि जाती है।फिर दोनों साफ सफाई करके सोने चले जाते है।
ऐसे ही मस्ती में दिन बीत रहे थे की एक दिन सुबह सशा के कमरे के बाहर से गुजर रहा था की उसे फोन पर बात करने की आवाज सुनाई दी।
सशा : नहीं....नहीं सर प्लीज्जज्जज्जज्ज सर।
फिर उधर से कुछ कहा गया।
सशा:प्लीज सर......ओके मैं आ रही हूँ।
इतना सुनकर जगदीश राय को शक हो गया की जरूर दाल में कुछ काला है।वह निशा को ऑफिस जाने को कहकर जल्दी ही घर से निकल गया।बाहर आकर मेन रोड पर एक दुकान में बैठकर चाय पिने लगा।
कुछ ही देर बाद सशा घर से स्कूल ड्रेस में जाती दिखाई दी।जबकि अभी स्कुल जाने में बहुत देर था।इतना पहले वह क्यों जा रही है।जगदीश राय उसका पीछा करने लगा।स्कूल ज्यादा दूर नहीं था।यही कोई 1 किलोमीटर।सशा स्कूल में घुस गई अभी स्कूल में कोई नहीं आया था।
सशा सीधे ऊपर चली गई।ऊपर लिखा था ओनली फॉर स्टाफ।जगदीश राय भी छुपकर ऊपर चला गया।वह धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था।तभी उसे शशा की आवाज एक कमरे से सुनाई दी।जगदीश राय ने जल्दी से अपने मोबाइल को साइलेंट किया और उसकी कैमरे की लाइट बंद करके कैमरा चालू कर दिया।फिर वह उस रूम की खिड़की तक पहुँचा और खिड़की की झिरी से देखा की एक 50 की उम्र का आदमी खड़ा था।वह सशा का टीचर था और शशा उसके आगे बैठकर उसका लंड सहला रही थी।
खिड़की पुरानी थी जो लकड़ी की बनी हुई थी इसलिए उसमे झिरी बन गई थी।जगदीश राय ने खिड़की को थोडा सा दबाया तो मालूम पड़ा की वह खुली हुई थी।उसने मोबाइल का वीडियो कैमरा चालू करके उनलोगो के तरफ करके मोबाईल अंदर रख दिया।
फिर दरार से देखने लगा।अब टीचर ने सशा को अपने लंड को चूसने को बोला।लेकिन सशा बार बार मना कर रही थी।लेकिन जब टीचर ने गुस्से में धमकी दिया तो सशा मज़बूरी में उसका लंड चूसने लगी।अब वह टीचर साशा के बालों को पकड़कर उसके मुँह में अपना लंड पेलने लगा।
साथ ही साथ उसने सशा की स्कर्ट के बटन को खोलकर उसकी छोटी छोटी चूचियों को भी मसलने लगा।अब सशा भी धीरे धीरे गरम होने लगी थी क्योंकि अब वह भी उसके मोटे लंड को मज़े से चूस रही थी।टीचर तो इतना गरम हो गया था की सशा के मुँह में ही झर गया।जिसे साशा ने फर्श पर थूक दिया।और अपने कपडे ठीक करके बाहर निकल गई।
जगदीश राय ने भी अपना मोबाइल निकाला और छुपते छुपाते स्कूल से बाहर निकल गया।आज उसका ड्यूटी जाने का मन नहीं था।इसलिए वह घर आ गया।घर पर कोई नहीं था।निशा और आशा कालेज चली गई थी।और सशा के पास से आ ही रहा था।
अपने रूम में आकर उसने वीडियो देखा तो वीडियो पूरा क्लिअर था।लेकिन वह समझ नहीं पाया की यह टीचर उसकी बेटी को कैसे ब्लैकमेल कर रहा है।वह आराम करने लगा।तभी लांच टाइम पर दरवाजे खुलने की आवाज़ आई तो जाकर देखा तो सशा आ गई थी।
जगदीश राय:अरे बेटी तुम इतना जल्दी कैसे आ गई।
तबियत तो ठीक है ना।
सशा: पापा मेरा सर थोडा भारी था।इसलिए आ गई।
लेकिन आप आफिस नहीं गए।
जगदीश राय:सुबह गया था बेटी।आज जल्दी काम खत्म हो गया तो चला आया।तुम फ्रेश हो के आओ।मुझे तुमसे कुछ काम है।
साशा:ओके पापा।अभी आती हूँ।
सशा 10 मिनट बाद फ्रेस होकर आ जाती है।जब जगदीश राय पहले पढाई के बारे में बात करता है।फिर धीरे धीरे सशा से असली बात पर आता है।
जगदीश राय:देखो बेटी।तुमको कोई भी प्रॉब्लम है मुझे बताओ।मैं तुमको कुछ नहीं बोलूंगा।लेकिन जब बार बार पूछने पर सशा कुछ नहीं बताती तो जगदीश राय
अपनी मोबाइल में का वीडियो दिखाता है।जिसे देखकर साशा अपना सर निचे झुका लेती है और फुट फुट कर रोने लगती है।
जगदीश राय सशा को बाँहो में भर लेता है और उसे चूमते हुए चुप कराने लगता है।धीरे धीरे सशा चुप हो जाती है।तब जगदीश राय उससे पूछता है की किस मज़बूरी में वह ऐसा कर रही थी।तब सशा बताने लगती है।
एक हफ्ते पहले की बात है।एक लड़का बहुत दिनों से मेरे पीछे पड़ा हुवा था।रोज मेर�� पीछा करता।मुझसे बात करने की कोशिश करता।हर समय मुझे देखकर मुस्कुरा देता।लेकिन मुझे कोई असर नहीं हुवा लेकिन 3-4 दिन पहले रात को मेरी नींद खुल गई।मुझे जोरो से पेशाब लगी हुई थी।जब मैं पेशाब करके आ रही थी तो निशा दीदी की आवाज आपके कमरे से सुनाई दी तो मैंने की होल से देखा की आप और दीदी सेक्स कर रहे थे।
वो देखकर मैं काफी गरम हो गई थी।इसी का असर था की मैंने उस लड़के से दोस्ती करना चाहती थी।ताकि मैं अपनी प्यास बुझा सकूँ।मुझे वह अच्छा लगता था इसलिए मैंने भी उसे देखकर मुस्कुरा दिया।फिर एक दिन उसने मुझे एक लेटर दिया और मुझे स्कुल शुरू होने के 1 घंटे पहले मुझे स्कुल के पीछे मिलने को बुलाया।
जाने क्या मन में आया की मैं उससे मिलने चली गई।
स्कुल के पीछे जब मैं उस लड़के से मिली तो उसने मुझे बाहों में भर लिया और मेरे होंठो और गालों को चूमने लगा।फिर उसने मेरी स्कर्ट उठाकर मेरे मम्मो को भी चूसने लगा।जब मुझे होश आया तो मैंने उसे धक्का दिया और वहाँ से भाग आई।लेकिन बाद में मुझे मालूम चला की उस टीचर ने खिड़की से पूरी वीडियो शूट कर लिया था।जिसमे बहुत साफ साफ वीडियो था।
बाद में उस टीचर ने मुझे बुलाया।और मुझे वो वीडियो दिखाया तो मेरे होश उड़ गए।तब से वह मुझे ब्लैकमेल कर रहा है।
जगदीश राय:अब तक कितनी बार तुमको बुलाया है।
सशा :आज तीसरा दिन था।लेकिन असली प्रॉब्लम संडे को है।उसने मुझे धमकी दी है की संडे को किसी बहाने उसके घर जाना है।उसकी बीबी उस दिन अपने घर जाने वाली है।नहीं जाने पर वो वीडियो नेट पर डाल देगा।ये बोलकर फिर सशा रोने लगती है।
जगदीश राय:फिर जगदीश राय सशा को चुप कराने लगता है।अच्छा बेटी तुमने बोला नहीं वो वीडियो डिलीट करने के लिए।
साशा : बोला था पापा।लेकिन वो बोल रहा है की संडे को मेरे घर आओ।अगर तुमने मुझे खुश कर दिया तो वो वीडियो डीलीट कर देगा।वो मेरे साथ सेक्स करना चाहता है पापा।
जगदीश राय:तुम चिंता मत करो बेटी।मैं। हूँ ना।
मैं आज ही वो वीडियो आज ही लाकर तुम्हे दूंगा।तुम अपने हाथो से डिलीट करना।तुम्हे इतनी बड़ी प्रॉब्लम से निकालूँगा।तो बदले में मुझे क्या मिलेगा।
सशा:आप जो बोलोगे मैं वो करुँगी पापा।आज के बाद आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी।यह कहकर अपने पापा से लिपट जाती है और उनके गालो पर किस करके चली जाती है।
जगदीश राय सोच में गुम हो जाता है।कुछ देर सोचने के बाद उस वीडियो की 2 मिनट का एक पार्ट अलग करता है जिसमे लड़की का चेहरा नहीं दीखता।सिर्फ टीचर का चेहरा दीखता है और कोई स्कुल ड्रेस पहने लड़की उसका लंड चूस रही है।ये साफ दिख रहा है।उस वीडियो को वह उस टीचर के व्हाट्सअप पे भेज देता है और लिख देता है की 1 घंटे के अंदर शहर के बाहर एक ख़ाली मकान में बुलाता है।
साथ में धमकी भी दे देता है की किसी को खबर की तो ये वीडियो स्कुल के प्रिंसपल और पुलिस के पास भेज दुँगा।टीचर डर जाता है।वह जाकर उस मकान के बाहर खड़ा हो जाता है।
अंदर से जब जगदीश राय देखता है वह अकेले आया है तो वह नकाब पहन कर खिड़की से कड़क आवाज़ में उस टीचर से उसकी मोबाइल मांगता है।जब टीचर अपना मोबाइल देता है तो जगदीश राय उसका कोड मालूम कर लेता है उसका सिम निकालकर दे देता है ।जगदीश राय मोबाइल चेक करता है तो वो वीडियो मिल जाता है और मोबाइल अपने पास रख लेता है और बोलता है।
जल्दी से भाग जा यहाँ से नहीं तो मेरे आदमी तुझे गोली मार देंगे।आज ��े बाद किसी लड़की को ब्लैकमेल किया तो वो दिन तेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होगा।
भाग साले जल्दी।
टीचर वहाँ से ऐसे भागता है जैसे उसके पीछे भुत लग गए हो।फिर जगदीश राय पीछे से निकालकर अपने घर आ जाता है।
घर आकर अपने रूम में जब वो वीडियो देखता है तो अपनी छोटी बेटी की संतरे जैसी चूचियों की चुसाई देखकर उसका लंड खड़ा हो जाता है।
फिर जगदीश राय ने सशा को बुलाया।जब सशा आ गई तो जगदीश राय ने वो मोबाईल दिखाया।देखो बेटी यही मोबाईल है ना।सशा ख़ुशी के मारे अपने पापा से लिपट गई और बोली।जल्दी से वो वीडियो डिलीट करो पापा।
प्लीज।
जगदीश राय:पहले देख तो लो वो वीडियो है की नहीं।फिर जगदीश राय ने गैलरी खोला और वो वीडियो चला दिया।वीडियो देखते ही सशा शरमा गई।
साशा: प्लीज पापा जल्दी डिलीट करो ना।
जगदीश राय:अरे बेटी पूरा तो देखने दो।मैं भी तो देखूं मेरी बेटी कितनी सुन्दर है।
सशा:प्लीज पापा।
जगदीश राय:ओके बेटी ओके।पहले मेरी बात ध्यान से सुनो। सशा बेटी तुम जानती हो कि निशा और मैं सेक्स करते हैं लेकिन यह नहीं जानती कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं मैं अपनी दोनों बेटियों के साथ सेक्स करता हूं क्योंकि अगर मैं उनके साथ सेक्स नहीं करूंगा तो वह भी किसी ना किसी के पास अपनी जिस्म की आग शांत करने के लिए जाएगी।
फिर वह दोनों भी तुम्हारी तरह किसी न किसी तरह के चक्कर में फस जाएगी हो सकता है । सेक्स करते समय कोई आदमी इन लोगों का वीडियो बना ले तो समझ लो हमारी कितनी बदनामी होगी हम लोगों में से किसी के पास भी कोई ऑप्शन नहीं बचेगा ।
आजकल हर जगह यही चल रहा है किसी ना किसी लड़की का रोज नेट पर सेक्स का वीडियो अपलोड हो रहा है इसीलिए मैं चाहता हूं कि भले ही हम लोग घर में कुछ भी करें लेकिन बाहर हमारी इज्जत खराब नहीं होनी चाहिए हम लोग घर में ही एक दूसरे की आग को शांत कर सकते हैं तुम दोनों से छोटी हो अभी तुम्हारी शादी होने में बहुत टाइम बाकी है इसीलिए मैं चाहता हूं की तुम अभी इस चक्कर में कम रहो ।
अगर तुम्हें कभी अपने जिसमें गर्मी महसूस हो तो मेरे पास आकर अपनी गर्मी शांत करना मेरे साथ तुम्हारा रिश्ता बहुत दिन तक चलने वाला है क्योंकि तुम्हारी शादी सबसे बाद में होगी मैं चाहता हूं कि तुम्हारी दोनों बहनों की ठीक से शादी हो जाए फिर हम दोनों जिंदगी के मजे लेते रहेंगे फिर जब तुम कहोगी तो तुम्हारी शादी तुम्हारी पसंद के लड़के से कर दूंगा।
सशा: ठीक है पापा अगर आप ऐसा सोचते हैं तो यह भी ठीक ही है मैं भी एक बार फंसकर जान चुकी हूँ कि आप जो बोल रहे हैं वही सही है।
जगदीश राय: देखो बेटी पहली बार सेक्स करते समय थोड़ा सा दर्द होता है तुम सिर्फ उस दर्द को बर्दाश्त कर लेना उसके बाद तुम्हें अपनी जिंदगी का सबसे ज्यादा मजा महसूस होगा।
तुमको मुझसे एक वादा करना होगा कि तुम आज जो हुआ वह या तुम अपने सेक्स वाली बात किसी को भी नहीं बताओगी अपने दोनों बहनों को भी नहीं मैं भी जानता हूं कि यह मुश्किल है लेकिन मैं भी तुम्हारी चुदाई की सभी बातें किसी को नहीं बताऊंगा।
तुम्हारी दोनों दिदियों में से किसी को भी नहीं यह सिर्फ हमारे पास राज रहेगा तुम उनके सामने कभी भी शो मत करना कि मेरे साथ तुम्हारा कोई गलत रिश्ता है अगर तुम मुझे आशा या निशा के साथ देखोगी कुछ भी करते हुए तो तुम उसको इग्नोर कर देना।
सारी बाते समझकर जगदीश राय वो वीडियो डिलीट कर देता है।फिर दोनों उस मोबाइल को चेक करते है उसके बहुत सारी ब्लू फिल्म थी।जिसमे बाप बेटी भाई बहन जैसी ब्लू फिल्में थी।जगदीश राय एक बाप बेटी की फ़िल्म प्ले कर देता है जिसे देखकर सशा गरम होने लगती है।
फ़िल्म बहुत ही गरम था।जिसे देखकर जगदीश राय का लंड पूरा रॉड बन जाता है।वह अपना लंड निकालकर सशा के हाथों में पकड़ा देता है।
सशा अपने पापा का लंड अपने हाथों में सहलाने लगती है उसको बहुत शर्म लग रहा था लेकिन ब्लू फिल्म देख कर वह बहुत गर्म हो चुकी थी।
वह धीरे से नीचे बैठ जाती है और अपने पापा के लंड को अपने कोमल हाथो से सहलाने लगती है जगदीश राय धीरे धीरे सशा के कपड़े निकालने लगता है।
वह सशा को पूरी नंगी कर देता है सशा की सूचियां बहुत ही मस्त थी जगदीश राय उसे मसलने लगता है फिर जगदीश राय अपने भी सारे कपड़े उतार देता है।
अब सशा ने जगदीश राय के लंड को थाम दुसरे हाथ से उसके सुपाडे को बहुत कोमलता से सहलाया ,
“आआह्ह्ह्ह... सशा" जगदीश राय के मुंह से एक हल्की सिसकारी निकल गयी।
सशा ने एक बार लंड की त्वचा को देखा और फिर जगदीश राय के चेहरे की तरफ देखते हुए नीचे झुककर अपने नर्म मुलायम होंठ उसके खड़े लंड के सुपाडे पर रख दिए
“उंहहहहह्ह्ह्हह”जगदीश राय धीमे से आहे भरने लगा
सशा के नाज़ुक गरम होंठ बहुत ही कोमलता से लंड की नर्म त्वचा को जगह जगह चूम रहे थे , धिमे धीमे लंड की कोमल त्वचा पर पुच पुच करती वो चुम्बन लेने लगी, जगदीश राय को अपनी बेटी के नाज़ुक होंठों का स्पर्श उस संवेंदनशील जगह पर बहुत ही प्यारा महसूस हो रहा था।
हाँ .......बेटी....... बहुत अच्छा लग रहा है” जगदीश राय की बात सुन सशा के होंठों पर भी मुस्कान फ़ैल गयी, जगदीश राय की बात से थोडा उत्साहित होकर सशा और भी तेज़ी से लंड के सुपाडे को चूमने लगी, कुछ ही पलों में जगदीश राय अपनी बेटी के होंठों के स्पर्श के उस सुखद एहसास में डूबने लगा।
“आआहह... बेटी... प्लीज बेटी ऐसे ही करते रहो” सशा तो जैसे यही सुनना चाहती थी , उसने लंड को ऊपर उठाया और जड़ से लेकर टोपे तक लंड पर चुम्बनों की बरसात कर दी , फिर उसके होंठ खुले और उसकी जीभ बाहर आई , उसने जीभ की नोंक से लंड की त्वचा को सहलाया , गीली नर्म जीभ का एहसास होते ही जगदिश् राय के मुख से खुद ब खुद सिसकारी निकल गयी, सशा की जीभ उस सिसकी को सुन और भी गति से लंड की निचली त्वचा पर रेंगने लगी, परन्तु उसे थोड़ा सा अजीब सा भी महसूस हो रहा था, उसे लग रहा था कि मानो जगदीश राय के लंड पर कोई द्रव लगा था जो बाद में सुख गया था और उसका अजीब सा पर अच्छा स्वाद सशा को अपनी जीभ पर महसूस हो रहा था, पर उसने इसकी ओर ज्यादा ध्यान नही दिया और लंड चुसाई में लगी रही।
“अह्ह्हह्ह्ह्ह ............बेटी बहुत अच्छा लग रहा है.. बहुत........बहुत मज़ा आ रहा है” जगदीश राय के मुख से लम्बी लम्बी सिसकारियां निकलनी शुरू हो गयी थी, अपने पापा के मुख से आनंदमई सिसकी सुन सशा के होंठों की मुस्कान उसके पूरे चेहरे पर फ़ैल गयी, उसकी जीभ अब सिर्फ सुपाडे पर ही नहीं बल्कि उसके आस पास तक घूम रही थी , सशा बेपरवाह अपनी जीभ लंड की जड़ से लेकर सिरे तक घुमा रही थी
जगदीश राय के लिए तो ये एक जबरदस्त मज़ा था , इस मज़े से उसकी हालत खराब होती जा रही थी , पूरे जिस्म में गर्मी सी महसूस होने लगी थी , उसके लंड का तनाव पल पल बढ़ता ही जा रहा था।
जैसे जैसे लंड का आकार बढ़ता जा रहा था, वैसे वैसे सशा की जीभ की स्पीड बढती जा रही थी , लंड का कठोर रूप अब उसके सामने था और वो रूप उसके तन बदन में आग लगा रहा था , उसके पूरे बदन में होने वाली झुरझुरी उसकी हवस को बयां कर रही थी , उसका अंग अंग फड़कने लगा था।
धीरे धीरे उसकी चूत में रस बहना चालू हो चूका था , वो अपने आप पर काबू खोती जा रही थी , उसकी सांसें गहरी होती जा रही थी और उसका सीना उसकी साँसों के साथ तेज़ी से ऊपर निचे हो रहा था , बदन में कम्कम्पी सी दौड़ रही थी।
इधर जगदीश राय का लंड पूरा कड़क हो चूका था, अब सशा से और बर्दास्त करना मुश्किल हो रहा था और उसने अगले ही पल झट से जगदीश राय के लंड के सुपाडे को अपने रसीले होंठों में भर लिया और अपनी जीभ उस पर रगडते हुए उसे जोर जोर से चूसने लगी ,जगदीश राय के आनंद में कई गुना बढ़ोतरी हो गई थी, अपने पापा के मुख से निकलती ‘अह्ह्ह्ह- अह्ह्ह्ह’ ‘उफ़’ ने सशा को और भी उतेजित कर दिया , धीरे धीरे उसके होंठ लंड के ऊपर की और जाने लगे , जैसे जैसे सशा के होंठ ऊपर को बढ़ रहे थे, दोनों बाप बेटी की साँसे और सिसकियाँ गहरी होती जा रही थीं ,
सशा के होंठ अब सुपाड़े के नीचे वाले हिस्से की भी सवारी करना शुरू कर चुके थे।
अगले ही पल वो हुआ जिसकी आशा में जगदीश राय और सशा दोनों का बदन कांप रहा था, बुखार की तरह तप रहा था , सशा के होंठ अपने पापा के लंड के चारों और बुरी तरह कस गए , और जगदीश राय के लंड का आधे से ज्यादा हिस्सा सशा की गले की गहराइयों में ओझल हो चुका था।
जगदीश राय को लगा शायद वो गिर जाएगा और उसके बदन ने एक ज़ोरदार झटका खाया।
“आहह्ह्ह... म..उफफ्फ्फ्फ़”जगदीश राय सुपाड़े की अति संवेदनशील त्वचा पर अपनी बेटी की रसीली जीभ की रगड़ से कराहने लगा , उसके हाथ ऊपर उठे और अपनी बेटी के सर पर कस गए।
सशा तो जैसे पूरे जोश में आ गई , उसने होंठ कस कर अपनी जीभ तेज़ी से चलानी शुरू कर दी , उसका एक हाथ अपने पापा की कमर पर चला गया और दुसरे से वो उनके आंडो को सहलाने लगी।
अब सशा का मुंह भी लंड पर आगे पीछे होने लगा था , उसके गिले मुख में धीरे धीरे अन्दर बाहर होते लंड ने जगदीश को जोश दिला दिया , वो अपनी बेटी के सर को थामे अपना लंड उसके मुंह में जोर जोर से आगे पेलने लगा , हर शॉट में अब उसका लंड सशा के गले की गहराइयों को नाप रहा था, और अब जगदीश राय तेज़ी से अपने लंड को आगे पीछे करते हुए गहराई तक अपनी बेटी के मुँह को चोदने लगा , जब जगदीश राय का लंड सशा के गले को टच करता तो उसके मुख से ‘गु –गु’ की आवाज़ निकलती ।
उधर जगदीश राय तो जैसे किसी और ही दुनिया में था , आँखें बंद किए वो अपनी बेटी के मुंह में अपना लंड पेलते जा रहा था।उसको लग रहा की वह कोई कुँवारी चूत चोद रहा है।
सशा को हालाँकि लंड के इतने तेज़ तेज़ धक्कों से थोड़ी दिक्कत हो रही थी मगर वो हर संभव प्रयास कर रही थी अपने पापा के लंड की ज़बरदस्त चुसाई करने का , उसकी जीभ अन्दर बाहर हो रहे लंड के सुपाड़े को रगडती तो उसके होंठ सुपाड़े से लेकर लंड के मध्य भाग तक लंड को दबाते , लंड अन्दर जाते ही उसके गाल फूल जाते और बाहर आते ही वो पिचकने लगते।
जल्द ही जगदीश राय को अपने अंडकोष दवाब सा बनता महसूस होने लगा , उसे एहसास हो गया वो झड़ने के करीब है , उसने अब अपनी बेटी के मुख को और भी तीव्रता से चोदना शुरू कर दिया , उधर सशा के लिए अब इस गति से अन्दर बाहर हो रहे लंड को चुसना संभव नही था , वो तो बस अपने होंठो और जीभ के इस्तेमाल से जितना हो सकता लंड को सहलाने की कोशिश कर रही थी।
खुद वो अपनी टांगें आपस में रगड़ कर उस सनसनाहट को कम करने की कोशिश कर रही थी , जो उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी , चुत से रस निकल निकल कर उसकी जांघें गीली कर चुका था।
तकरीबन 10 मिनट की भीषण चुसाई के बाद अचानक जगदीश राय को लगने लगा जैसे उसकी शक्ति का केंद्र बिंदु उसका लंड बन गया है , वो झड़ने के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था , पर वो चाहता था कि उसके पानी की हर एक बूंद सशा की गले की गहराइयों में उतर जाए, इसलिए अब उसके धक्के और भी ज्यादा तेज होते जा रहे थे।
सशा को भी ये अहसास होने लगा था था कि अब शायद उसके पापा झड़ने वाले हैं इसलिए उसने अपने आपको पूरी तरह उनके हवाले कर दिया, जगदीश राय सशा के सिर को पकड़कर जोर जोर से अपना लंड उसके मुंह मे पेल रहा था।
और फिर अगले ही पल जगदीश राय के बदन में एक तेज़ लहर उठी और वो भलभला कर झड़ने लगा, उसके लंड से वीर्य की बौछार होने लगी जो सशा के गले मे जाकर उसे तृप्त कर रही थी।
सशा भी एक मझे हुए खिलाड़ी की तरह जगदीश राय के पानी की आखिरी बून्द भी पी लेना चाहती थी, जब जगदीश राय पूरी तरह झड़कर शांत हो गया तो सशा ने जीभ की नोंक से सुपाड़े के छेद से निकल रही वीर्य को भी चाट लिया।
जगदीश राय: “ .उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस" ओह्हहहहहह बेटी उम्ह्ह्ह्ह्ह.”
जगदीश राय लगातार सिसकता ही जा रहा था।
सशा की जीभ आखिरी बार पूरे लंड पर घूमने लगी और वो उसे चाट कर साफ़ करने लगी , लंड पूरा साफ़ होने के बाद उसने सुपाड़े को अपने होंठो में एक बार फिर से भरकर चूसा और फिर अपने होंठ उसपे दबाकर एक ज़ोरदार चुम्बन लिया।
कुछ देर आराम करने के बाद जगदीश राय सशा को बेड पर सुला देता है और उसकी छोटी सी कुंवारी चूत को अपनी जीभ से चाटने लगता है कुछ ही देर में सशा उत्तेजना से तड़पने लगती है।
जगदीश राय झुक कर उसकी चूत को धीरे से चूम लिया और दरार को नीचे से ऊपर तक चाटा, कई कई बार चाटा और समूची चूत को मुंह में भर लिया और झिंझोड़ डाला.
आनन्द के मारे सशा के मुंह से किलकारी निकल गई. फिर ऊपर हाथ ले जाकर उसके दोनों मम्मे पकड़ लिए और चूत का दाना, वो छोटा सा भागंकुर अपनी जीभ से टटोलने लगा और इसे अपनी मुंह में लेकर चूसा और चूत की गहराई में जीभ घुसा कर प्यार से, बहुत ही निष्ठा पूर्वक उसकी शर्बती चूत चाटने लगा.
वो बेचारी इतना सब कैसे सहन कर पाती, बदले में वो अपनी चूत उठा उठा कर अपने पापा के मुंह पे मारने लगी.
अब जगदीश राय अपनी नाक चूत की गहराई में रगड़ता हुआ चाटने लगा.
मुश्किल से 5 ही मिनट बीता होगा की वो आ गई… भलभला कर झड़ गई.
‘हाय पापा…’ वो इतना ही बोल पाई और अपनी जांघें ताकत से अपने पापा के सिर पर लपेट दीं और झड़ने लगी.
चूत रस का नमकीन स्वाद जगदीश राय मुंह में आ गया. करीब दो तीन मिनट तक वो यूं ही अपने पापा सिर को अपनी चूत पर जांघों से दबोचे रही फिर धीरे से पैर खोल दिए और चित लेट के गहरी गहरी साँसें लेने लगी.
जगदीश राय उसकी जांघ पर सर रखे हुए लेटा रहा.
‘प्लीज पापा, मेरे पास आओ!’ उसकी आवाज बदली बदली सी थी जैसे किसी कुएं के भीतर से बुला रही हो.
जगदीश राय ऊपर खिसक कर उसके पहलू में लेट गया और उसे अपने सीने से लगा लिया. वो मासूम अबोध किशोरी सी अपने पापा से चिपक गई और अपनी अंगुली से उनकी छाती पर जैसे कुछ लिखती रही.
‘क्या लिखा मेरे सीने पर?’ जगदीश राय उसका सिर प्यार से सहलाते हुए पूछा
‘ऊं हूँ!’
‘बता ना?’
‘म्मम्म कुछ नहीं…’ वो बोली और जगदीश राय अपनी बांहों में कस लिया.
कैसा लगा ये सब?’ जगदीश राय उसे चूमते हुए पूछा
साशा :‘बहुत अच्छा बहुत ही प्यारा प्यारा. जब आप मेरी चूत चाट रहे थे तो जैसे मेरे बॉडी में फूल ही फूल खिल गये थे, सारे बदन में रंगीन फुलझड़ियाँ सी झर रहीं थीं. मैंने सोचा भी नहीं था कि ये सब इतना मस्त मस्त लगेगा!’ वो बोली.
‘और अब कैसा लग रहा है?’
‘लग रहा है मैं बहुत हल्की फुल्की सी हो गई हूँ. मेरे भीतर से कुछ बह के निकल गया है जो मुझे हरदम बेचैन किये रहता था.’सशा ने बताया.
कुछ ही देर बाद जगदीश राय सशा की छोटी छोटी टाइट चूचियों को पूरा मुँह में भरकर चूसने लगा।उसके छोटे छोटे निप्पल को दाँतों से काटने लगा।5 मिनट में ही जगदीश राय ने दोनों चूचियों को काट कर चु कर लाल कर दिया।अंब सशा भी पूरी गरम होकर सिसियाने लगी।
दोनों पूरी तरह से गर्म हो चुके हैं जगदीश राय अपने लंड को सशा की छोटी सी कुंवारी चूत पर रगड़ने लगता है सशा अपनी गांड उपर उठाकर लंड को जल्द से जल्द अंदर लेना चाहती है लेकिन जगदीश राय सशा को और गर्म कर देना चाहता है ताकि उसको कम से कम दर्द हो।
तब सशा ने जगदीश राय के लंड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर दबाया, तो जगदीश राय के लंड का सुपाडा उसकी चूत की फांको को फेलाता हुआ, छेद पर जा लगा,सशा की कुँवारी चूत की फाँकें जगदीश राय के लंड के सुपाडे के चारो तरफ फैेलाते हुए कस गई, अपनी चूत के छेद पर अपने पापा के लंड का गरम सुपाडा महसूस करते ही उसके बदन में मानो हज़ारो वॉट की बिजली कोंध गई हो,सशा का पूरा बदन थरथरा गया….
सशा की चूत उसकी चूत से निकल रहे कामरस से एक दम गीली हो चुकी थी, सशा ने अपनी आँखो को बड़ी मुस्किल से खोल कर जगदीश राय की तरफ देखा, और फिर काँपती आवाज़ में बोली…
सशा: पापा धीरे-धीरे ही अंदर करना, मैं ये सब पहली बार कर रही हूँ, इसलिए मुझे दर्द होगा, पर आप चिंता मत करना , चाहे मुझे कितना भी दर्द हो, आप अपना लंड मेरी कुँवारी चूत में पूरा घुसाना।
अब जगदीश राय ने धीरे धीरे अपने लंड के सुपाडे को सशा की चूत के छेद पर दोबारा दबाना शुरू किया, जैसे ही उसके लंड का सुपाडा सशा की गीली चूत के छेद में थोड़ा सा घुसा, सशा एक दम सिसक उठी, जगदीश राय के लंड का सुपाडा सशा की चूत की सील पर जाकर अटक गया, जगदीश राय भी इस रुकावट को साफ महसूस कर पा रहा था….
सशा की चूत की झिल्ली,जगदीश राय के लंड के सुपाड़े से बुरी तरह अंदर को खिच गई, जिसके कारण सशा के बदन में दर्द की एक तेज लहर दौड़ गई, उसके चेहरे पर उसके दर्द का साफ पता चल रहा था।
जगदीश राय: क्या हुआ बेटी ? ज्यादा दर्द हो रहा है क्या ?
सशा: आहह हां पापा…दर्द हो रहा है…..
जगदीश राय: बाहर निकाल लूँ…..
सशा: नही पापा बाहर मत निकालना….ये दर्द तो हर लड़की को जिंदगी में एक ना एक बार तो सहन करना ही पड़ता है….पापा आप बस ज़ोर से धक्का मारो….और एक ही बार मे मेरी चूत फाड़ दो।
जगदीश राय: अगर तुम्हे दर्द हुआ तो ?
सशा: मैं सह लूँगी……आप मारो न धक्का।
जगदीश राय ने अपनी पूरी ताक़त अपनी गान्ड में जमा की, और अपने आप को अगला शाट मारने के लिए तैयार करने लगा, सशा ने अपने दोनो हाथों से जगदीश राय के बाजुओं को कस के पकड़ लिया, और अपनी टाँगों को पूरा फैला लिया..
सशा - पापा…पापा फाड़ दो अब…..
जगदीश राय ने कुछ पलो के लिए सशा के चेहरे की तरफ देखा, जो अपनी आँखें बंद किए हुए लेटी हुई थी, उसने अपने होंठो को दांतो में दबा रखा था. जैसे वो अपने आप को उस दर्द के लिए तैयार कर रही हो, उसके माथे पर पसीने के बूंदे उभर आई थी, जगदीश राय ने एक गहरी साँस ली, और फिर अपनी पूरी ताक़त के साथ एक ज़ोर दार धक्का मारा।
जगदीश राय के लंड का सुपाडा सशा की चूत की झिल्ली को फाड़ता हुआ अंदर घुस गया, जगदीश राय का आधे से ज़्यादा लंड एक ही बार मे सशा की कुँवारी चूत के अंदर जा चुका था…
" हाए मम्मी मर गई हाईए अहह पापाआआआ बहुत दर्द हो रहा है….” सशा छटपटाते हुए, अपने सर को इधर उधर पटक रही थी, उसे अपनी चूत में दर्द की तेज लहर दौड़ती हुई महसूस हो रही थी….
सशा के इस तरह से दर्द के कारण बिलबिलाने से जगदीश राय भी घबरा गया, उसने सशा की ओर देखा, उसकी बंद आँखो से आँसू बह कर उसके गालो पर आ रहे थे।
"बेटी मैं बाहर निकाल लेता हूँ" जगदीश राय ने सशा की ओर देखते हुए कहा….
सशा: (अपनी आँखो को खोलते हुए) नही नही पापा बाहर मत निकालना…पूरा अंदर कर दो….मेरी फिकर मत करो…..
जगदीश राय: पर बेटी…
सशा: मैंने कहा ना मेरी परवाह मत करो….आप अपना लंड पूरा मेरी चूत में पूरा डाल दो…..
जगदीश राय ने अपने लंड की तरफ देखा, जो सशा की टाइट चूत के छेद में घुस कर फँसा हुआ था, और फिर उसने एक बार फिर से पूरी ताक़त के साथ झटका मारा, इस बार उसके लंड का सुपाडा उसकी चूत की दीवारो को फैला���ा हुआ पूरा का पूरा अंदर जा घुसा।
सशा: "उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…..पापाऽऽऽऽऽऽऽ…योर डिक पापा…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो बिग…पापा…….."
सशा ने दर्द से छटपटाते हुए अपने हाथों से जगदीश राय के बाजुओ को इतनी कस के पकड़ा कि उसके नाख़ून जगदीश राय के बाजुओ में गढ़ने लगे, जगदीश राय को अपने लंड के इर्द गिर्द सशा की टाइट चूत की दीवारे कसी हुई महसूस हो रही थी, उसके लंड में तेज गुदगुदी सी होने लगी,
दोनो थोड़ी देर वैसे ही लेटे रहे, जगदीश राय अब धक्के लगाने को उतावला हो रहा था, पर सशा ने उसकी कमर में अपनी टाँगो को लपेट रखा था, जिसकी वजह से जगदीश राय हिल भी नही पा रहा था, कुछ लम्हे दोनो यूँ ही लेटे रहे, फिर धीरे-धीरे सशा का दर्द कुछ कम होने लगा, और उसे अपनी चूत में अजीब सी सरसराहट होने लगी, अब उसे मज़ा आने लगा था, और उसने अपनी टाँगो को जो कि उसने जगदीश राय की कमर पर कस रखी थी, को ढीला कर दिया, जैसे ही जगदीश राय की कमर पर सशा की टाँगों की पकड़ ढीली हुई,जगदीश राय ने अपना आधे से ज़्यादा लंड एक ही बार में सशा की चूत से बाहर खींचा, और फिर से एक झटके के साथ सशा की चूत में पेल दिया,
धक्का इतना जबरदस्त था कि सशा का पूरा बदन हिल गया।
सशा: "आह शीईइ पापा उंह धीरे उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…..पापाऽऽऽ" सशा ने फिर से अपने पैरो को जगदीश राय के चुतड़ों के ऊपर रख कर उसे अपनी तरफ दबा लिया।
जब उसे अपनी चूत की दीवार पर जगदीश राय के लंड के सुपाडे की रगड़ महसूस हुई तो वो एक दम से मस्त हो गई, फिर थोड़ी देर रुकने के बाद सशा ने जगदीश राय को धीरे से कहा।
"पापा अब अपने लंड को धीरे से बाहर निकालो…मुझे कुछ देखना है" ये कहते हुए उसने फिर से अपने पैरो की पकड़ ढीली की और जगदीश राय ने घुटनो के बल बैठते हुए धीरे-2 अपने लंड को बाहर निकालना शुरू किया, फिर से वही मज़े की लहर सशा के रोम-रोम में दौड़ गई, उसे जगदीश राय के लंड का सुपाडा अपनी चूत के दीवारो पर रगड़ ख़ाता हुआ सॉफ महसूस हो रहा था
"ओह्ह पापा मेरी चूत में आह आह बहुत मज़ा आ रहा है..ओह्ह उम्ह्ह." सशा बोली।
जगदीश राय ने जैसे ही अपना लंड सशा की चूत से बाहर निकाला, तो उसकी आँखे फटी की फटी रह गई, उसका लंड खून और सशा के चूत से निकल रहे कामरस से सना हुआ था।
सशा ने अपने पास रखे एक कपड़े को अपनी चूत पर दबा दिया…ताकि उसमे से खून निकल कर, बेड शीट पर ना गिरे…..
फिर उसने अपनी चूत को उस कपड़े से रगड़ कर साफ किया, और फिर जगदीश राय की तरफ देखा, जो हैरत से उसकी तरफ देख रहा था।
सशा: क्या हुआ पापा आप ऐसे क्या देख रहे हो ?
जगदीश राय: बेटी तुम तो काफी समझदार हो।
"हाँ जानती हूँ" सशा खिलखिलाकर बोली।
फिर सशा उठ कर बैठी और जगदीश राय के लंड को हाथ में लेकर उसे कपड़े से अच्छे से साफ किया, फिर उस कपड़े को साइड में रखते हुए, बेड पर लेट गई , सशा ने अपनी बाहों को खोल कर जगदीश राय को आने का इशारा किया।
जगदीश राय सशा ऊपर झुक गया, सशा ने उसे अपनी बाहों में कस लिया और उसके आँखो में झाँकते हुए बोली "आइ लव यू पापा" और फिर दोनो के होंठ फिर से आपस में मिल गए, और दोनों एक दूसरे के होंठो को चूसने लगे।फिर से वही उम्ह्ह आहह उन्घ्ह की आवाज़े उनके मुँह से आने लगी।
जगदीश राय का लंड अब उसकी चूत की फांको पर रगड़ खा रहा था, जगदीश राय भी मस्ती में उसके होंठो को चूस्ता हुआ उसके निपल्स को अपनी उंगलियों से भिचते हुए उसकी चुचियों को दबा रहा था, सशा की चूत में कुलबुली सी होने लगी, वो नीचे से अपनी गान्ड को हिलाते हुए अपने पापा के लंड को अपनी चूत के छेद पर सेट करने की कोशिश कर रही थी
थोड़ी देर के बाद अचानक से जगदीश राय के लंड का सुपाडा सशा की चूत के छेद पर अपने आप जा लगा, सशा का पूरा बदन एक दम से थरथरा गया, उसने अपने होंठो को जगदीश राय के होंठो से अलग किया और फिर जगदीश राय की आँखो में देखते हुए मुस्कुराने लगी,फिर उसने अपने आँखे शरमा कर बंद कर ली, उसके होंठो पर मुस्कान फ़ैली हुई थी….
जगदीश राय ने भी बिना देर किए, धीरे-2 अपने लंड के सुपाडे को सशा की चूत के छेद में पेलना शुरू कर दिया….
"उंह पापा सीईईईई अहह बहुत माजा आ रहा है….." सशा बोली।
जगदीश के लंड का सुपाडा सशा की चूत के छेद और दीवारो को फ़ैलाकर रगड़ ख़ाता हुआ अंदर बढ़ने लगा, सशा के बदन में मस्ती के लहरे उमड़ रही थी, उसका पूरा बदन उतेजना के कारण काँप रहा था, उसकी चूत की दीवारे जगदीश राय के लंड को अपने अंदर कस कर निचोड़ रही थी।
धीरे-2 जगदीश राय का पूरा लंड सशा की चूत में समा गया, सशा ने सिसकते हुए जगदीश राय को अपनी बाहों में कस लिया और उसकी पीठ को अपने हाथो से सहलाने लगी।
"आह पापा और पेलो उंह आ सीईईई आह पापा मुझे बहुत मज़ा आ रहा है….”
जगदीश राय ने सशा के फेस को अपनी तरफ घुमाया, और फिर अपने होंठो को उसके पतले होंठो पर रख दिया, सशा ने अपने होंठो को खोल दिया, जगदीश राय ने थोड़ी देर सशा के होंठो को चूसा, और फिर अपने होंठो को हटाते हुए, उसकी जाँघो के बीच में घुटनो के बल बैठते हुए, अपनी पोज़िशन सेट की, और अपने लंड को धीरे-2 आगे पीछे करने लगा।
जगदीश राय के लंड के सुपाडे को सशा अपनी चूत की दीवारो पर महसूस करके एक दम मस्त हो गई, और अपनी आँखें बंद किए हुए अपनी पहली चुदाई का मज़ा लेने लगी
"अह्ह्ह्ह पापा हाईए मेरे चूत आह मारो और ज़ोर से मारो आह फाड़ दो अह्ह्ह्ह आह”
धीरे-2 जगदीश राय अपने धक्कों की रफतार को बढ़ाने लगा, पूरे रूम में सशा की सिसकारियो और बेड के हिलने से चर-2 की आवाज़ गूंजने लगी, सशा पूरी तरह मस्त हो चुकी थी, सशा की चूत उसके काम रस से भीग चुकी थी, जिससे जगदीश राय का लंड चिकना होकर सशा की चूत के अंदर बाहर होने लगा था, सशा भी अपनी गान्ड को धीरे-2 ऊपर की ओर उछाल कर चुदवा रही थी….
"हाई ओईए अहह मेरी चूत अह्ह्ह्ह पापा बहुत मज़ा आ रहा है.आह चोदो मुझे अह्ह्ह्ह और तेज करो सही…मैं झड़ने वाली हूँ आह उहह उहह उंघह ह पापा ममैं गईए अहह…." सशा धीरे धीरे आहे भर रही थी।
जगदीश राय के जबरदस्त धक्को ने कुछ ही मिनट में सशा की चूत को पानी पानी कर दिया था, उसका पूरा बदन रह रह कर झटके खा रहा था, जगदीश राय अभी भी लगातार अपने लंड को बाहर निकाल निकाल कर सशा की चूत में पेल रहा था, सशा झड़ने के बाद एक दम मस्त हो गई थी, उसकी चूत से इतना पानी निकाला था कि, जगदीश राय का लंड पूरा गीला हो गया था।
अब सशा अपनी आँखें बंद किए हुए लेटी थी,और लंबी लंबी साँसे ले रही थी, सशा ने अपनी आँखें खोल कर जगदीश राय की तरफ देखा, जो पसीने से तर बतर हो चुका था, और अभी भी तेज़ी से धक्के लगा रहा था,अब रूम में सिर्फ़ बेड के चरचराने से चू चू की आवाज़ आ रही थी….जैसे जैसे जगदीश राय झटके मारता, बेड हिलता हुआ हल्की हल्की चू चू की आवाज़ कर रहा था।
सशा बेड के हिलने की आवाज़ सुन कर शरमा गई, और अपने फेस को साइड में घुमा कर मुस्कराने लगी…
जगदीश राय: (अपने लंड को अंदर बाहर करते हुए) क्या हुआ…?
सशा: (मुस्कुराते हुए) कुछ नही…..
जगदीश राय: फिर मेरी तरफ देखो ना…
सशा: नही मुझे शरम आती है…..पापा।
जगदीश राय ने अपने दोनो हाथों से सशा के चेहरे को अपनी तरफ घुमाया, पर सशा ने पहले ही अपनी आँखे बंद कर ली, उसके चेहरे पर शर्मीली मुस्कान फ़ैली हुई थी, जगदीश राय ने सशा के होंठो को अपने होंठो में लेकर चुसते हुए अपने धक्को की रफ़्तार बढ़ा दी और फिर कुछ ही पलो में उसके लंड में तेज सुरसुरी हुई, उसका लंड सशा की चूत में झटके खाने लगा, और फिर वो सशा के ऊपर निढाल हो कर गिर पडा, सशा और जगदीश राय दोनों एक साथ झड़ कर शांत हो गए।
अब जगदीश राय अपनी जिंदगी के सारे मजे ले रहा था उस उसकी हर रात सुहाग रात थी अब तो वह आशा और निशा को एक साथ चोदता था ।
लेकिन सशा को उसने समझा दिया था की उसको जब भी मजा लेना हो वह स्कूल से छुट्टी करके अपने पापा को बता दे फिर दोनों मजे करेंगे बाकी कभी भी किसी भी समय अपने पापा के पास मजे के लिए नहीं आए।
अब जगदीश राय आशा और निशा के साथ कभी भी कहीं भी मजे लेने लगा था क्योंकि वह जानता था कि अब सशा से भी कोई प्रॉब्लम नहीं है।
जगदीश राय अपने आप को दुनिया का सबसे किस्मतवाला समझ रहा है।
उ���की बड़ी बेटी निशा जो उसका पत्नी की तरह ख्याल रखती है।वह जो कहे करने को तैयार।दिन में तो ख्याल रखती ही है।रात को और ज्यादा ख्याल रखती है।
मँझली बेटी आशा।जिसको रफ सेक्स पसंद है।जगदीश राय की पर्सनल रंडी है।वो इसको कितनी भी रफ तरीके से पेलता है।उसको किसी रंडी की तरह कुतिया बनाकर उसकी गांड मारता है।
छोटी बेटी सशा एक कच्ची कली जिसे जगदीश राय जिसका रस धीरे धीरे चूसकर उसको फूल बना रहा है।
क्योंकि इसका रस उसे बहुत दिन तक चूसना है।
पापा चाय के लिए वेट कर रहे थे। चाय पापा को देकर, आशा और सशा के लिए लंच भी तैयार करना था उसे। वह जानती थी अगर वह लंच नहीं बनायी, तो दोनों छोटी बहने भूखे रहेंगे और टीवी के सामने बैठी रहेंगी।
चाय कप में डाल कर वह ड्राइंग रूम में गयी।
पापा (जगदीश राय) सुबह का पेपर लेकर बेठे थे और रोबर्ट वाड्रा को बुरा-भला कह रहे थे।
निशा:पापा, ये लो चाय।
पापा: अरे, बना दिया। क्यों तकलीफ की। मैं बना देता। तू अपने कॉलेज जाने पे ज़ोर दे और पढाई ठीक से कर।
निशा( जाते हुए): पापा, अब आप हर सुबह की तरह फिर शुरू मत हो जाइए। चुप चाप चाय पिजिए और ऑफिस जाइए।
पापा: (थोडा मुस्कुराकर) ठीक है मेरी माँ। ला दे बैठ, थोड़ा चाय मेरे में से पी ले।
निशा: नही, मुझे लंच भी बनाना है। दो महारानियों के लिये।
पापा: अरे वह मैं बना दूंगा। तू फिकर मत कर। मुझे आज ऑफिस लेट जाना है।
निशा: नही। किचन का काम मेरा है। आप उसमे दखल न दे।
पापा: अरे तेरी माँ जब थी, तब भी मैं कभी कभी लंच बना लेता था। तो अब क्यों नही।
मॉम का ज़िक्र सुनकर निशा चुप हो गयी और सर झुका के बैठ गयी। जगदीश राय भी चुप हो गया और उसका आँख भर गई। निशा ये देख कर बहुत उदास हो गयी। वह उठकर किचन में चली गयी।
मॉम(सीमा राय) की मृत्यु कोई 6 महिने पहले हुई थी। निशा जानती थी की पापा अभी तक उनके माँ को मिस कर रहे है। वह जानती थी की घर की स्त्री अब वह है, उसे ही सबको सम्भालना है।
तभी सीडियों से भूकम्प की तरह शोर मचाते हुए आशा और सशा उतर पडी। सशा चिल्लाकर रोती हुई बोल रही थी।
सशा: देखो न दीदी, आशा मुझे अपनी ड्रेस पहनने नहीं दे रही है।
निशा: अरे तुम दोनों फिर शुरू हो गई। पापा, आप ही सम्भालिए इन्हे।
पापा: अरे भाई क्या हुआ।
सशा: देखो न पापा, आशा मुझे अपनी ड्रेस पहनने नहीं दे रही है।
आशा: अरे बुद्धू, वह तेरी साइज की नहीं है। अपना चेस्ट तो देख। दीदी, तुम ही समझाओ इस फूल को
सशा: फूल होगी तु। सिर्फ 2 इंच कम है मेरी तुम से। जब मैं तेरी ब्रा पहन सकती हु तो ड्रेस क्यों नही।
निशा: यह बात तो सही है। आशा, तो फिर क्या प्रोब्लम।
आशा: दीदि, ये हैगिंग ड्रेस है। ये पहनेगी तो अच्छी नहीं लगेगी। इसके मम्मे भी नहीं दिखेंगे।
सशा: सब दिखेंगे और तेरी से भी अच्छे।
निशा: (हँसती हुई) सशा हम तुम्हारे लिए शाम को ऐसा ही ड्रेस ला देंगे। क्यों पापा?
जगदीश राय के समझ में नहीं आ रहा था, क्या बोले। लड़किया बड़ी भी हो गयी थी और ओपन भी। इन्हे एक औरत ही संभाल सकती थी। हलाकी निशा उनमें से बड़ी थी , पर सिर्फ 3 साल। उसके रिश्तेदारों ने कहा की , दूसरी शादी की सोच ले। पर वह इस उम्र में दूसरी बीवी नहीं लाना चाहता था।
पापा: (बौखला के)। हाँ हाँ क्यों नही।
दोनो वहां से चली गयी। जगदीश राय ने देखा की अनजाने में उसमे एक अजीब सी लहर आ गयी थी। और ये देखकर चौक गया की उसका लंड खड़ा था। उसने जल्द से अपने पायजामा के ऊपर से लंड को ठीक कर दिया। उसे समझ में नहीं आया की ऐसा क्यों हुआ।
पापा को लंड के ऊपर से हाथ फेरकर ठीक करते हुये निशा ने देख लिया। उसने तुरंत अपना मुह दूसरी ओर घुमा दिया और किचन में चली गयी।
लंच तैयार करके निशा कॉलेज को रवाना हो गई। शाम के 5 बजे जगदीश राय घर आया तो देखा की खाने के सभी प्लेट्स हॉल में फैला हुआ है। वह जानता था की यह हरकत आशा और सशा की है। उसने चील्लाकर उन्हें बुलाया पर कोई जवाब नहीं आया। फिर वह ऊपर उनके रूम में, देखने चला गया की यह दोनों कर क्या रहे है।
रूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था। उसने धीरे से उसे खोला तो देखा की दोनों ��ो रही है। दोनों के गर्दन तक चद्दर चढा हुआ था सर हाथ भी अंदर थे।सशा हर वक्त की तरह अँगूठा मुह में ले कर सोयी थी।
जगदीश राय ने सोचा की उनको जगा देंना चाहिये और अंदर आ गया। पहले आशा के पास गया।
पापा: आशा उठ जा। होमवर्क नहीं करनी है। चल सशा बेटी तू भी उठ ज। मुह हाथ धो लो।
पापा की आवाज़ सुनकर सशा थोड़ी सी हिली और फिर करवट बदलकर चद्दर से लिपटकर सो गयी। अंगूठा नींद में चूसने लगी।
आशा: क्या पापा, सोने दो न।
जगदीश राय जानता था की तीनो बेटियां में सबसे झगड़ालू और बदतमीज़ आशा है।
पापा: उठती हो या पानी मारु।
आशा: ठीक है बाबा। उठती हूँ।
यह कहकर उसने अपना पैर चद्दर से बाहर निकाल लिया। पैर देखकर जगदिश राय चौक गया। पैर कमर से लेकर पूरा नंगा था।
पापा: यह क्या। तुम्हारा पायजामा कहाँ है।
आशा: अरे हा, उसमे दाल गिर गया तो मैंने उसे धोने को डाल दिया।
पापा: तो क्या कुछ भी नहीं पहनी।
आशा: पहनी हु न। पेंटी पहनी हूँ।
ये कहकर आशा ने अपने ऊपर से चद्दर हटा दिया। जगदीश राय देखता ही रह गया।
आशा ने ऊपर सिर्फ एक स्लीवलेस बनियान स्टाइल टॉप पहनी थी। उसमे से उसकी ब्रा की स्ट्राप दिख रहा थी, जो लाइट ब्लू कलर का था। टॉप सिर्फ नाभि के होल के ऊपर तक था। टॉप काफी टाइट था, उसमे से उसके चूचे उभर कर निकल रहे थे। जगदीश राय ने देखा चुच्ची बहुत बड़ी भी नहीं है, पर शेप में थी। चूचो का शेप देखकर कोई भी कह सकता था की बहुत मज़ेदार शेप है उनकी।
नाभी के छेद से लेकर कमर तक का पूरा बदन खुला था। आशा थोड़ी सांवली थी। जगदीश राय ने ये जाना की भले ही आशा बहुत गोरी नहीं थी पर उसका फिगर क़ातिलाना था।
कमर के निचे उसने एक लाल रंग की पेंटी पहनी थी। जगदीश राय ने ऐसी पेंटी पहले नहीं देखि थी। उसने देखा सिर्फ बीच के भाग पर कपडा लगा हुआ है, साइड पे सिर्फ रस्सी के शेप की डोर लगी है।
आशा खड़ी हो गयी और अपना हाथ ऊपर उठा कर बाल को बाँधने लगी। आशा को कोई शर्म नहीं आ रही थी अपने पापा के सामने ऐसा रहने से। जगदीश राय, एक छोटे बच्चे की तरह उसे देखे जा रहा था। उसका मुह सुख चूका था।
आशा: मेरी शॉर्ट्स कहाँ है। यहाँ पड़ी हुई थी। शायद निशा दीदी ने कप्बोर्ड में रखी होगी।
और ये कहकर आशा पलटी। जगदीश का मुह खुला रह गया। आशा की गांड पूरी नंगी थी। पेंटी की डोर गांड की दरार से चिरकर निकल रही थी, गाण्ड पर कोई कपडा नहीं था। और जहाँ वह डोर जाके मिल रहा था, वहां एक हार्ट शेप का प्लास्टिक लगा हुआ था, और उसमे लिखा था "लव यु"
जगदीश राय ने अपने आप को सम्भाला। वह जल्दी से मुड गया और जोर से कहा।
पापा: ठीक है। ज��्दी से निचे आओ और उस सशा को भी उठा देना।
आशा: जो आज्ञा जहाँपनाह।
और फिर जगदीश राय बाहर आ गया। बाहर आते ही उसने चैन की सास ली। दिल ज़ोर से धड़क रहा था। वह कंफ्यूज सा हो गया की क्यों वह इतना बेचैन हुआ है। ऐसा तो नहीं की उसने आशा को पहले कभी नहीं देखा कम कपडो में, पर तब वह छोटी थी। तो अब कौन सी बहुत बड़ी है। उसे लगा की शायद उसे उनके रूम में नहीं आना चाहीए था। लड़किया अब बड़ी नहीं पर छोटी भी नहीं है। ये सब सोचकर वह सीडियों से निचे उतर रहा था, तब बेल बजा। उसने जा के दरवाज़ा खोला।
निशा: अरे पापा आप कब आए। मैं अभी चाय बनाती हूँ।
पापा: नहीं बेटी, मैं ऑफिस से पीके आया हूँ। बस अब नहाने जा रहा हूँ।।
निशा फ्रेश होकर अपने कमरे में गयी। ऊपर के तीन कमरो में, उसका एक छोटा सा कमरा था, जो वह किसी के साथ शेयर नहीं करती थी। पापा का कमरा बीच में था।
उसने अलमारी से एक वाइट टैंक-टॉप टीशर्ट पहन लिया और स्कर्ट उठा लिया। टैंक टोप पुरानी थी इसलिए छोटी थी। स्कर्ट कोई घुटनो तक का था। वह शॉर्ट्स पहनना चाहती थी पर पापा के होते हुये वह शॉर्ट्स में कम्फर्टेबले फील नहीं करती थी। मुह हाथ धोकर वह नीचे आ गई तो देखा पापा सर पर तेल मल रहे है।
जगदीश राय एक वाइट टीशर्ट और ढिला पायजामा शॉर्ट्स पहना हुआ था। निशा की माँ थी तो वो पापा के सर और शरीर पर तेल लगा दिया करती थी, और अब पापा बेचारे खुद ही कर रहे है। निशा ने ठान लिया था की पापा को माँ की कमी कभी महसूस नहीं होने दूंग़ी।
निशा: पापा मैं लगा देती हूँ।
पापा: अरे नही, तुम कॉलेज से थकि आयी हो। जाओ कुछ खा लो।
निशा: नहीं मैं कैंटीन से खाके आयी हूँ।
जगदीश राय, आशा की वजह से गरम हुआ था। उसके दिमाग में वह दृश्य घूम रहा था।
तभी आशा उतरी और हॉल में आ गयी।
आशा: पापा दीदी मैं और सशा वैलेंटाइन कार्ड लेने जा रहे है।
निशा: अरे वो, तुम्हारा कौन सा बॉयफ्रेंड है।
आशा: कई है। सबको बताती फिरूंगी। और चिल्लाने लगी, सशा सशा जल्दी आ। मैं नहीं रूकुंगी तेरे लिये। उफ्फ,छोटी उम्र में इतना सवरना।
जगदीश राय निशा के तरफ देखने लगा, मानो की सवाल पूछ रहा हो। निशा समझ गयी। निशा ने नकारते हुये सर हिला दिया और जगदिश राय समझ गया की आशा सिर्फ मज़ाक़ कर रही है, उसका कोई बॉय फ्रेंड नहीं है।
तभी सशा हॉल में आ गयी। उसने एक छोटा स्कर्ट पहने हुआ था और बड़ी प्यारी लग रही थी। सीडियों से कुदते वक़्त उसके छोटे चुचे हिल रहे थे और स्कर्ट भी उछल रहा था। जगदीश राइ ने सोचा की सशा ठीक कह रही है, की उसके बूब्स छोटे नहीं है।
ये सोच आते ही, जगदीश राय अपने आप को कोसने लगा की उसे यह ख्याल आया कैसे।
सशा और आशा दोनों चले गये। निशा अपने पापा के पास आयी और कहा।
निशा: लाओ तेल की शीशी।
जगदीश राय नीचे बैठ गया और निशा सोफे पर बैठ गयी।
निशा: पापा, आप मेरे पैरो के बीच बैठ जाइये ताकि मैं आपके सर पर तेल लगा सकुं।
पापा: ठीक है बेटी
निशा: रुको, अपना शर्ट उतार लो।
पापा: क्यु
निशा: आपके शरीर पर तेल नहीं लगाना है क्या। और तेल से शर्ट ख़राब हो जाएगा। और मुझे फिर धोना पडेगा, आपका क्या।
निशा अब पूरा एक घर सँभालने वाली औरत की तरफ बोल रही थी। जगदीश राय भी मुस्कुरा दिया।
और उसने शर्ट उतार दिया। अब जगदीश राय सिर्फ एक ढीला पायजामा शॉर्ट्स पहने बेठा था।
पापा: शरीर पर मैं लगा दूंगा। तू बस सर पर लगा।
निशा कुछ नहीं बोली और तेल सर पर लगाना शुरू कर दिया। तभी उसने कहा।
निशा: ओह ओह। तेल स्कर्ट पर गिर रहा है। रुको।
और उसने अपना स्कर्ट बीच से पकड़ कर ऊपर उठा लिया और उसे अपने थाइस के बीच में घुसा दिया। इससे स्कर्ट एक शॉर्ट्स जैसे हो गया था। मानो, बहुत ही छोटा शॉर्टस।
निशा: हाँ अब ठिक़। पीछे आओ पापा। मेरे पैरो के बीच ठीक से बैठो।
जगदीश राय पीछे मुड़कर देखा तो नज़ारा बहुत प्यारा था। सोफे पर उसकी बेटी पूरी जाँघ दिखा कर बैठी थी। गोरी मुलायम जांघ। जांघ इतना सॉफ्ट दिख रहा था की हाथ लगाओ तो फिसल जाए।निशा ने स्कर्ट इतना अंदर घुसा दिया था और पैर इतना खुला रखा था, की जाँघ के अंदर का भाग भी दिख रहा था जो थोड़ा सांवला था।
जगदीश राय का दिल धड़क रहा था , और वह इस परिस्थिती से बचना चाहता था।
पापा: अरे बेटी, मैं एक काम करता हु , चेयर पर बैठता ह, तुम पीछे से खड़ी होकर लगा देना, ठीक है।
निशा: नही, खड़े रहकर सर पर तेल लगाना मुश्किल होता है। मुझे पता है।
जगदीश राय वैसे ही बड़े भोले और चुप किसम के इंसान थे। तो वह जानता था की इन लड़कियों से जीतना मुश्किल है।
मचलते और धडकते दिल लेकर जगदीश राय मुड गया और अपना नंगा शरीर निशा की जांघ से टेक कर बैठ गया।
यहाँ जगदीश राय का गरम और खुरदरा जांघ जैसे ही निशा की जांघ से टकराया , जगदीश राय के शरीर में एक अजीब सी ग़र्मी मच गयी। मानो एक साथ 2 व्हिस्की के गिलास पेट में गया हो।
वो अपने जांघो द्वारा निशा के गरम जांघ की गर्मी चूस रहा था। और चूसा हुआ गर्मी सीधे उसके लंड पर जाकर रुक रहा था। उसका लंड अपने पुरे आकार में खड़ा था।
दूसरी तरफ निशा का हाल बुरा हो चला था। पहले तो अनजाने में उसने अपने पापा को बु���ाकर बैठाया था पर अब अपने जांघ पापा के कंधे पर टीका होने से उसे अजीब सा महसूस हो रहा था। उसने सोचा की पापा को बोलू थोड़ा आगे होने के लिए पर वह पापा को कोई गलत सिग्नल नहीं देना चाहती थी। उसने सोचा की जल्दी से तेल लगा लूँगी और उठ जाऊंगी।
पर पापा का गरम हाथ और कंधा उसके जाँघ और जिस्म को गरम कर चला था। निशा की चूत अपने स्कर्ट और पेंटी में ढकी हुई थी पर पापा के गर्दन से कुछ 6 इंच की दूरी पर थी।
एक जवान कुवारी लड़की के लिए इतना मिलन उसको म��होश करने के लिए काफी था। खास कर निशा जैसे लड़की के लिए।
उसका कोई बॉयफ्रेंड नहीं था, हालाकी वो हर वक़्त अपने बाकि सहेलीयों की तरह एक बार शादी से पहले चुदना चाहती थी। पर वह ऐसा साथी चाहती थी जो उसका ख्याल करे और वह केवल चुदना नहीं बल्कि प्यार करता हो। उसके मन में अभी वो सभी ब्लू फिल्म के पिक्चर दौड रहे थे जो उसने छुप छुप के इंटरनेट में देखी थी।
वही जगदीश राय ऑंखें बंद करके उस पल को पूरी तरह एन्जॉय कर रहा था और उसका हाथ अपने लंड के ऊपर से उसको दबा रहा था।
निशा ने काँपते स्वर से कहा,
निशा: पापा आप।। अपना सर थोड़ा पीछे करो, तेल लगाना चालु करती हूँ।
पापा के सर पीछे करते ही निशा ने हाथो में तेल लिया और पापा के सर पर मल दिया।
और वह धीरे धीरे पापा के सर को मलने लगी। वह अनजाने में अपना उंगलिया और हाथ बहुत धीरे और गोल गोल घुमा रही थी। कभी वह पापा के बालों को पकड़ कर मरोड़ देती।
जगदीश राय ने ऐसी तेल मालिश कभी नहीं कारवाई थी और पूरी तरह एन्जॉय कर रहा था। वह अपने आप में नहीं था और नहीं कुछ सोचना चाहता था । वह बस इस पल को पूरी तरह एन्जॉय करना चाहता था।
मालिश करते करते निशा जगदिश राय के कानो तक पहुच गयी। उसने देखा कान बहुत लाल हो चुके है। उसने कानो को अपने हाथो में पकड़ा और धीरे सहलाना शुरू किया।
दोनो बाप बेटी कुछ नहीं बोल रहे थे। पुरी रूम में बस उनकी तेज़ साँसे और तेल मलने की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
जगदीश राय का दिमाग बहुत सारे खयालो से गुज़र रहा था। उसने सोचा की मालिश अभी बंद होने वाली है क्युकी उसने कहाँ की शरीर पर तेल वह लगा लेगा। और वह धीरे धीरे अपने शॉर्ट्स को सेट कर रहा था ताकि निशा उसका खड़ा लंड न देख सके।
पर निशा उनके कान को सहलाती जा रही थी। फिर निशा ने धीरे से अपना दोनों हाथ पापा के कंधो में ले गई और वहां मसाज करना शुरू कर दिया। कंधो का मसाज करने के लिए उसे अपने पैरो को खोलना पडा, और उसने पैरो को खोला। और ऐसा करते ही वह पापा के सर के क़रीब आ गई।
निशा मन में बोल रही थी: ये मेरे प्यारे पापा है, जो अब बहुत दुखी है। इनका ख्याल मुझे रखना है। मैं अब पीछे हट नहीं सकती।
और वह अपने पापा को दिखाना चाहती थी की वह उनकी प्यारी बेटी है।
निशा पुरे ताकत से अपने आप को झुका कर , पापा के कंधो से हाथ फेरते हुआ पूरा उनकी कलाई तक ले जा रही थी। और ऐसा करते वक़्त निशा के बूब्स पापा के सर पर टकरा रहे थे।
जगदीश राय, निशा की इन हरक़तों से पागल हो चला था। 6 महीने से उसने मुठ तक नहीं मारी थी और आज उसे लग रहा था की उसका कम वही निकल जाएगा। निशा ज़ोर ज़ोर से पापा के हाथो का मालिश करते जा रही थी और फिर जल्द उसने थोड़ा और तेल लिया और पापा के पीछे से झूक कर उनके छाती पर मलना शुरू किया।
पापा की छाती उसने आज पहली बार इतनी मदहोशी में छुआ था। और उसने पाया की उनकी छाती भट्टी की तरह गरम है। और वह उस पर तेल मलने लगी, ज़ोर ज़ोर से।
जगदीश राय से यह रहा नहीं गया, और उसने अपन��� सर पीछे मोड़ दिया। और तभी निशा झुकी और उसने अपना बूब्स पापा के मुह से सटा पाया। पापा के मुह की गरम साँस उसे चूचो पर लग रहा था। वह कसमसायी, पर अपने कर्त्तव्य से पीछे नहीं हटी।
जगदीश राय निशा की बूब्स अपने मुह के ऊपर पाकर ऐसा महसूस कर रहा था की मानो जन्नत प्राप्त हुआ हो। उसे पता था की निशा की बूब्स बड़ी है पर आज उसने जाना की कितनी भरी हुई है। उसके दोनों चूचो के बीच उसका पूरा मुह अंदर समां गया। और निशा अब तक 20 की भी नहीं थी।
उसने दो बार निशा के बूब्स से अपना मुह सहलाना के बाद , अपना सर आगे की तरफ सीधा कर दिया।
निशा अभी भी अपने आप को झुका कर , पापा के छाती पर तेल मली जा रही थी। वह अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी। पैर खुले होने के वजह से, उसका चूत पूरा खुला हुआ था। और चूत पूरी गिली हो गई थी। उसका मन लग रहा था की उसके पेंटी को फाडकर, अपना तेल से लथपथ हाथ लेकर चूत को मसले। पर वह पापा के सामने नहीं करना चाहती थी।
मालिश करने के जोश में उसने अपने स्कर्ट पर ध्यान नहीं रखा और स्कर्ट अब तक कमर तक पहुच चुकी थी। अब उसकी चूत पर सिर्फ एक पतली सी पेंटी थी जो उसकी पूरी चूत को छुपा तो रही थी, पर वह पूरी गिली हो चुकी थी। निशा की चूत ने लगतार पानी छोडा था।
न जगदीश राय जानता था की निशा का यह हाल और न निशा जानती थी अपने पापा का हाल। निशा अब पूरी लगन से , झुक झुक कर, चूचो को अपने पापा पे मसल कर तेल लगायी जा रही थी। वह पूरी गरम और मदहोश हो चुकी थी। उसे लगा उसका पानी अब कभी भी छूट सकता है, पर अपने आप को कण्ट्रोल कर रही थी।
तब जगदीश राय ने अपनी खुद की मदहोशी में अपना गर्दन पीछ को सरकाया। निशा उसी वक़्त आगे सरकी और निशा की गोरी मुलायम पेंटी में छिपी गीली चूत अपने पापा के नंगे गरम जाँघ से जा मिली। एक ४०० वाट करंट निशा की पूरी शरीर पर एक लहर की तरह फ़ैल उठी और वह ज़ोर से चिल्लायी और चिल्लाती गयी।
निशा : अहहहहहहह…। अह्हह्ह्ह्ह…।डहह्हह्हह…अह्ह्ह्।। आह।
जगदीश राय चौक पड़ा और वह तुरन्त पीछे मुडा। और वह नज़ारा देखकर वह बौखला गया।उसने देखा निशा सोफे पर लेटी, मुह खोले हाँफ़ रही है और उसकी ऑंखें बंद है। निशा का पूरा गोरा बदन पसीने से चमक रहा है।उसकी वाइट टी शर्ट पसीने से पूरी चिपकी हुई है, जिसमें से उसकी लाल ब्रा साफ़ दिखाई दे रही है। वह हाफ़ और कांप रही है और तेज़ सासो से उसकी बड़ी मुलायम चूचे ऊपर नीचे हो रही है। उसका स्कर्ट पूरा ऊपर पेट तक चढा हुआ है। दोनों पैर पूरी खुली हुई है। और पैर के बीच में उसकी वाइट पेंटी दिख रही है। पेंटी पूरी गीली है मानो किसी ने पानी मारा हो। और गीली पेंटी में छिपा हुआ चूत के बाल साफ़ दिख रहे है। निशा की जाँघ अभी भी कांप रही थी। जगदीश राय को देर नहीं लगी समझने में की उसकी बेटी को ओर्गास्म आया है और उसकी चूत अभी भी पानी छोडे जा रही है।
करीब 2 मिनट में निशा ने आँख खोला और पाया की पापा उसके नीचे बैठे उसकी तरफ देख रहे है। उसने देखा की पापा की ऑंखों में एक अजीब सा भाव था जो वह जान न सकी। तब ��सकी नज़र अपने आप पर पड़ी और वह शर्मा गयी। उसने तुरंत अपना स्कर्ट से अपने गीली चूत को छुपाया। निशा और पापा दोनों एक दूसरे को घुरे जा रहे थे और बिना कुछ बोले ही वह दोनों बहुत कुछ बोल चुके थे। निशा उठी और चुपचाप ऊपर अपने कमरे में गयी। जगदीश राय अपने बेटी की सीडी चढ़ते हुए मटकड़े गांड को एक नये नज़रिये से देखने लगा और अपना लंड तेल से मलने लगा।
निशा के पैर सीढी चढने के क़ाबिल नहीं थे, कांप रहे थे। थोडा तो ओर्गास्म का असर था और थोड़ा गुज़रे हुये पल का।
फिर भी वह अपने कमरे तक तेज़ी से चली गयी और अंदर जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया।
दरवज़ा बंद करते ही वह अपने बेड पर लेट गयी। ऑंखे मूंदकर अपने सासों को काबू में लाने का प्रयत्न करने लगी।
पर उसके ऑंखों के सामने अपना पापा का तेल से लथपथ शरीर और उनकी काम वासना की नज़र लगतार झलक रहा था। वह चाहते हुए भी उसे दूर नहीं कर पा रही थी।वह बेड से उठी और अपनी चिपचिपी पेंटी में हाथ डालकर उसे खीच कर बाहर निकाल फेका।पेंटी की हालत देखकर वह हैरान रह गयी।
निशा (मन ही मन म��ं): क्या इतना सारा पानी निकला मेरा। ओह गॉड़। पेंटी पूरी गिली हो गयी।
वह अपना हाथ चूत में ले गयी और अपने दाए हाथ की बड़ी ऊँगली चूत में घुसा दी।
निशा: आहहः।।।
मुह से एक ख़ुशी की आह निकली। फिर उसने धीरे से ऊँगली बहार खीच लिया। ऊँगली पूरी गिली थी और उसपर लगा हुआ पानी बल्ब की रौशनी में चमक रहा था।
निशा बहुत बार मुठ मार चुकी थी, पर इतना पानी और मज़ा उसे कभी नहीं मिला था।
वह उठी और बाथरूम जाकर पिशाब करने के बाद, वह थोड़ा बेहतर महसूस कर पायी। और झूक कर वॉशबेसिन में अपने चेहरे पर बहुत सारा पानी मारा।
अपना पानी लगा चेहरा , मिरर में देखने लगी। और सोचने लगी।।।।
निशा: यह क्या हो गया था मुझे। अपने पापा को कैसे मैं ऐसा देखने लगी। और पापा मुझे ऐसा क्यों घूर रहे थे। क्या उनका भी हाल मेरे जैसा हुआ होगा? नहीं , बिलकुल नही। पर उनका चेहरे का भाव में तो वासना भरी हुई थी। और वह मेरी चूत को क्यों घूर रहे थे?
यह सवाल वह अपने आप से कर रही थी। वह अपना मुह पोंछ कर एक दूसरी टीशर्ट पहन ली और शॉर्ट्स पहन ली। इस बार उसने एक मोटी पेंटी पहन लिया जो वह अपने पीरियड्स के वक़्त पहनती है।
उसे अब अपने चूत पर भरोसा नहीं रहा या यु कहिये अपने आप पर भरोसा नहीं था।
अब उसे बाहर जाकर खाना बनाना था। रात होने वाली थी, आशा सशा आती ही होंगी। पर वह पापा को फेस नहीं करना चाहती थी। दरवाज़ा के पास आकर वह सोचने लगी की क्या करे।
निशा मन में: शायद मैं पापा के नहाने जाने तक वेट करती हूँ, फिर चली जाऊंगी।
उसने धीरे से अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और बाथरूम के तरफ देखा। घर पर 2 बाथरूम था। एक उसके रूम में और एक कॉमन। कॉमन बाथरूम तो खुला था, उसने जाना की पापा अभी तक नहाने नहीं ��ए है।
उसने दाबे पाँव हॉल में झाँका। और जो उसने देखा उसकी आँखें खुली रह गयी।
पापा सोफे पर बैठे हुए थे। उनका शॉर्ट्स पैरों के बीच पड़ा हुआ था। वह पुरे नंगे थे , और उनका पूरा शरीर लाइट के नीचे तेल के कारण चमक रहा था।
और फिर निशा ने अपने पापा के हाथों में पापा का लंड देखा लंड देखते ही वह उसे घूरते रह गयी। इतना मोटा लंड उसने कभी नहीं देखा था। और पुरे लंड पर तेल लगा हुआ था। तेल से वह लंड और भी मुश्टण्डा लग रहा था, किसी गरम लोहे की तरह।
लंड का उपरी भाग पूरा लाल हो गया था और एप्पल की तरह फुला हुआ था। लंड की चमड़ी पूरी नीचे सरक गयी थी। लंड पर बहुत सारा तेल लगा हुआ था। और पापा लंड को धीरे धीरे मल रहे थे।
निशा ने बहुत बार ब्लू फिल्म देखी थी लेकिन उसके मुह में पापा के लंड को देखकर एक अजीब सा नशा चढ गया।
तेल लंड से निकलकर उनके टट्टो (बॉल्स) को भी नहला रही थी। निशा ने देखा की पापा के बॉल्स भी बहुत बड़े है। वह लटके हुये थे।
पापा कुछ बड़बड़ा रहे थे पर वह सुन नहीं पायी।
अचानक पापा का हाथ तेज़ चलना शुरू हुआ। हॉल से "पच पच फच" की आवाज़ आ रही थी। निशा समझी की लंड और तेल की रगड का नतीजा है।
और तभी पापा जोर जोर से लंड हिलाने लगे और कुछ गुर्राती रहे। और फिर उसके पापा जोर से चिल्लाये।
पापा: निशा आआआआआआ आएह… आह…
उसने पापा के लंड से सफ़ेद मलाई की छिंटें उडती देखि और फिर ढेर सारा सफ़ेद पानी, पापा के हाथों से लगकर सीधें फर्श पर गिर रहा था।
निशा दंग रह गयी। वह तुरंत भागकर अपने रूम में घुस गयी और रूम का दरवाज़ा ज़ोर से बंद कर दिया। दरवाज़े ने ज़ोर का आवाज़ बनाया।
निशा को अपनी गलती का अंदर आते ही एहसास हुआ।
वहाँ जगदीश राय अपने हाथों में लंड लेके वीर्य की आखरी बूंद निकालने का प्रयत्न कर रहा था।
अचानक हुई दरवाज़े की आवाज़ से वह चौक पडा। उसे लगा शायद आशा और सशा आ गई। वह झटके से उठ कर अपना पायजामा और शॉर्ट्स चढा लिया।
फिर उसने जाना की वह निशा का दरवाज़ा था।
जगदीश राय (मन ही मन): क्या निशा ने देख लिया मुझे। ओह गोड़, यह क्या हो गया। मुझे लगा की वह नहाने गयी होगी। वह क्या सोचेगी अब मेरे बारे में।
जगदीश राय वहां से जल्दी से सीडी चढ़कर कॉमन बाथरूम में घूस गया, शायद यह सोचकर कर की पानी से अपना सोच को साफ़ करे।
अपने कमरे में निशा , हॉल में देखे हुए सीन से बहुत गरम हो चुकी थी। उसने खुद को सम्भाला और बेड पर बेठकर ठन्डे दिमाग से सोचना शुरू किया।
निशा (मन में): "यह बात तो पक्का हुआ की पापा मुझे सोचकर मुठ मार रहे थे, नाम तो मेरा ही लिया था। पर क्यु। क्या मैं इतनी खूबसूरत हूँ।
या फिर पापा माँ को मिस कर रहे है। हा, शायद यही बात है। पापा माँ को मिस कर रहे है। एक आदमी कब तक औरत के बिना रह सकता है। और पापा ने हमारे लिए दूसरी शादी भी नहीं कि, ��म तीन लड़कियों के लिये।
मेरी पेंटी और गिली चूत देखकर शायद वह आज अपने आप को कण्ट्रोल नहीं कर पाये होंगे। बेचारे।
पापा है तो बड़े भोले। कभी दूसरी औरत के ऊपर मुह उठाकर भी नहीं देखते। और अगर वह किसी दूसरी औरत के पास गए तो कितनी बदनामी होगी हमारी।
मुझे आज के वाक्यात का बुरा नहीं मानना चहिये। एक तरह से जो हुआ ठीक हुआ, खास कर बेचारे पापा के लिये। वह कहते है न आल फॉर द बेस। "
निशा के चेहरे पर मुसकान थी। वह ऐसा समझ रही थी की उसने अपने पापा की हेल्प की है।
वह अपने कमरे से, सर उठा कर, मुसकान लेकर बाहर आ गयी। वह अपने पापा को फेस करने के लिए तैयार थी।
पर जगदीश राय तो बाथरूम में था। बाथरूम में आकर वह गहरी सोच में पड़ गया। शावर चालु था और पानी सर और शरीर पर पडते ही सुकून आ रहा था।
वह समझ नहीं पा रहा था की कैसे निशा से आँख मिलाये। और निशा को कैसे ओर्गास्म आया उसे छुकर, एक 50 साल उम्र के इंसान को।
और तब उसे अपने दूसरी गलती का एहसास हुआ। उसका वीर्य(कम) वही फर्श पर पड़ा हुआ है।
जगदीश राय (मन में): अगर निशा ने फर्श पर पड़ी वीर्य को देख लिया तो बवाल खड़ा कर देगी। शायद मुझसे बात ही न करे।
उसने जल्द अपना तौलिया(टॉवल) लिया और अपने आप को पोछ लिया और अपने कमरे में घूस गया।
कमरे में घूस कर उसने एक लूँगी उठाई और पहन लिया। अपने तौलिए को उसने कंधे पर डाल दिया। उसने प्लान बनाया था की हॉल में जाकर, टॉवल फर्श पर गिराकर सारा वीर्य साफ़ कर दूंगा।
अपने रूम से बाहर आकर देखा तो निशा का रूम खुला है और किचन से आवाज़े आ रही है।
जगदीश राय: शायद निशा किचन में है, ओह गॉड़। जल्दी कर जगदीश।।
वह हॉल में आ गया और सीधे सोफे की तरफ गया।
और टॉवल नीचे फर्श पर फेकने ही वाला था, की देख कर चौक गया। फ़र्श एक दम साफ़ था। सोफा भी ठीक से रखा हुआ था।
जगदीश राय: यह कैसे हो गया। मैंने तो साफ़ नहीं किया। तो क्या निशा!!। ओह नो…क्या उसने अपने हाथो से…मेरा वीर्य।
उसमे शर्म के साथ साथ एक अजीब सा कामुक उत्साह भी आ गया।
वहाँ निशा अपने आँख के कोने से अपने पापा को देख रही थी। उसे हँसी आ रही थी, अपने पापा पर। उसने कचरे के डब्बे पर पड़ा हुआ पेपर का टुकड़ा देखा, जिस पर सफ़ेद पानी लगा हुआ था और पेपर के अंदर से धीरे धीरे बह रहा था।
निशा (मन में): कितना सारा वीर्य था। उफ्फ्फ्, साफ़ करते हाथ दर्द हो रहे थे। इतना मोटा और लम्बा लंड से तो इतना वीर्य तो निकलता होगा शायद। ब्लू फिल्म्स में भी लोगों का इतना निकलता न हो। पापा को कोई ब्लू फ़िल्म में एक्टिंग करना चाहिये।
यह सोच कर वह हँस पडी। जगदीश राय अपनी बेटी की हंसी सुना, और शर्मा कर चुप चाप टीवी के सामने बैठ गया।उसे लगा निशा उस पर हँस रही है।
दोनो बाप बेटी एक दूसरे के बारे में सोच रहे थे।
जगदीश राय टीवी पर दौड रहे अनगिनत न्यूज़ चैनल से रिमोट दौड़ा रहा था।
��र उनका ध्यान वहां नहीं था, वह निशा के बारे में सोच रहा था। की कैसे उसकी लड़की ने बिना कुछ कहे उसका सारा वीर्य साफ़ कर दिया।और अब हँस भी रही है। क्या उसने इसके पहले किसी और के वीर्य को छुआ होगा? हो तो नहीं सकता, वह जानता था की निशा कितनी सुशील है। पर सुशील होती तो फर्श पर पड़े वीर्य देखकर साफ़ नहीं करती, पिता को मसाज देते उसे ओर्गास्म नहीं आती।
क्या यह सिर्फ , उसके चरित्र पर , उम्र का एक धब्बा तो नहीं?
तभी उसकी सोच को चीरते हुआ बेल बजी। निशा ने जाके दरवाज़ा खोला। सशा और आशा घर में घूसे।
निशा: आ गई राजकुमारीया। क्या लिया वैलेंटाइन के लिये।
सशा: जो लिया आशा ने लिये। मेरे स्कूल में क्या वलेन्टाइन।
आशा (दीदी से): तुम से मतलब। यह मेरे और मेरे फ्रेंड्स के बीच की बात है।
निशा(आशा के कान में): ज्यादा बकवास मत कर। मैं अच्छी तरह जानती हु तेरे कैसे फ्रेंड्स है। तू पापा को बेवकूफ बना सकती है। मुझे नही, समझी क्या।
आशा (थोड़ी डरी हुई): वह दीदी …। मैं तो ऐसे ही…ऐसा कुछ भी नहीं है।
निशा: चुप चाप पढाई में ध्यान दे, यह साल बारहवी का मेजर साल है। चल जा अब।
फिर सशा और आशा दोनों अपने कमरे में चलि गयी। जगदीश राय ने कुछ बेटियों के बीच ख़ुसर-पुसार सूनी पर कुछ समझ नहीं पाया।
करीब 8:30 बजे निशा ने आवाज़ लगाई" चलो सब आ जाओ, खाना लग गया है"
निशा (मुस्कुराते): पापा , आप भी आइए।
जगदीश राय बिना कुछ कहे डाइनिंग टेबल पर बैठ गया, सशा सामने थी, आशा और निशा दाए बाए। वह निशा के आँखों में देख नहीं पा रहा था। पर निशा को अपने पापा से कोई शर्म नहीं आ रही थी, बल्कि उसको पापा की शर्मन्दिगी पर प्यार और हँसी आ रही थी।
आशा : निशा दीदी, क्या हम एक रैबिट (खरगोश) ले सकती है।
निशा : क्यु।
आशा: मुझे रैब्बिटस बहुत पसंद है। लवीना के पास एक ख़रगोश है, उसकी टेल बहुत प्यारी है।
सशा: अगर तुझे उसकी टेल इतनी पसंद है, तो सिर्फ टेल काटकर ले आ। पुरी रैबिट की क्या ज़रुरत है।
आशा: तू चुप कर। दीदी, बोलो न।
निशा: शार्ट एंड स्ट्रैट आंसर देती हु , नही।
आशा: लेकिन, मुझे उसकी टेल बहुत प्यारी लगती है।
2
तभी जगदीश राय के हाथ से दाल की कटोरी फिसल गयी और थोड़ी सी दाल फर्श पर गिरी |
जगदीश राय: ओह न, सोर्री | मैं साफ कर दूंगा | तुम लोग खाओ |
निशा: पापा आप रुकिये | मैं साफ़ कर देती हूँ |
फिर निशा किचन से एक पोछा ले आई |
निशा: पापा, आज कल आप फर्श बहुत गन्दा कर रहे है | क्या बात है?
जगदीश राय यह सुनकर दंग रह गया | उसने निशा की तरफ देखा, उसके चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान थी |
जगदीश राय: मैं… |नही तो…क्यूं
निशा: कोई बात नही | मैं तो साफ़ कर ही लूंग़ी | अआप बस गिराते रहिये |
जगदीश राय कुछ नहीं बोला | वह चुप चाप प्लेट की तरफ देखकर खाने लगा | सशा और आशा कुछ समझ नहीं पा रही थी |
जगदीश राय जल्द से खाना ख़तम करके वहां से चला गया | और सीधे रूम पर जाके लेट गया |
वह पुरे दिन की घटनाओ को सोच रहा था और अपने सब सवालो पर सवाल कर रहा था | जवाबो की उससे कोई उम्मीद नहीं थी, बल्कि जवाबो से उसे थोड़ा डर लग रहा था |
निशा की चूत और आशा की गाण्ड उसके ऑंखों के सामने बार बार आ रहे थे | उसका लंड अब लोहे ही तरह तना हुआ था |
तभी, डोर पर एक नॉक सुनाई दी | इसके पहले वह कुछ बोले, दरवाज़ा खुल गया और निशा खड़ी थी | वह एक मैक्सी पहनी हुई थी और जगदीश राय ने जाना की वह उसकी स्वर्गवासी पत्नी की मैक्सी थी |
जगदीश राय : निशा बेटी तुम |
निशा: हाँ , मैं हु आपके लिए दूध लेके आयी हूँ |
जगदीश राय : लेकिन मैं तो दूध नहीं पिता रात को
निशा: लेकिन आज से आप पिएँगे, सोने से पहले | 10 |30 हो गयी है, लो पी लो | इसमें काजू और पिस्ता भी डाला हुआ है, आपके सेहत के लिये |
जगदीश राय : पर यह सब मेरे लिए…क्यों…
निशा: क्यों की आज से आपका ख्याल मैं रखूँगी | अब ज्यादा सवाल मत कीजिये |
जगदीश राय कापते हाथो से गिलास लेकर होटों पर लगा दिया | निशा की नज़र अपने पापा के शरीर पर गुज़र रही थी | और जाकर रुकि उनकी पायजामें पर | उसे अपने पापा का मोटा और खड़ा लंड साफ़ दिखाई दे रहा था | और बिना किसी शर्म के उसे घूरे जा रही थी |
जगदीश राय दूध पीकर गिलास निशा को दे दिया, जो उसके तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी |
निशा मुडी और दरवाज़ा के तरफ बढी | जगदीश राय पीछे से निशा की मटकती बड़ी गांड को देख रहा था | वह अब मैक्सी में और भी सेक्सी लग रही थी |
जगदीश राय: बेटी , यह मैक्सी तो माँ की है न |
निशा: हाँ पापा, मुझे आज मैक्सी पहनने का मन किया | क्यों कैसी लग रही हूँ |
जगदीश राय: अच्छी लग रही हो |
निशा: हाँ थोड़ी टाइट है मेरे लिये, यहाँ चेस्ट और हिप्स पर | बाकि सब ठीक है |
जगदीश राय निशा की चूचियों को देखा जो मैक्सी में समां नहीं रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे दो फुटबॉल घुसा दिया हो | जगदीश राय के मुह में पानी आ गया |
निशा अपने पापा की यह हालत समझ गयी | और मुसकुराकर बोली |
निशा: अब सो जाइए | फ़िज़ूल की बातें सोचकर जागकर रात मत काटिये |, हा हा |
और अपने गाण्ड को मटकाकर चल दी |
जगदीश राय के लंड को उनके हाथ का स्पर्श जानते हुआ देर नहीं लगी |
कमरे से निकलकर निशा अपने रूम में चलि गयी | जाते जाते आशा और सशा को आवाज़ दी |
निशा: तुम दोनों सो जाओ अब | मोबाइल पर खेलना बंद करो |
रूम में से: ठीक है मैडम हिटलर |
निशा समझ गयी की यह तो आशा ही है जो इतनी बदतमीज़ी कर सकती है |
अपने रूम में जाकर लेट गयी | उसके माँ को गुज़री 6 महीने हो चुके थे | आज पहली बार उसे एक अजीब सी ख़ुशी और आश्वासन मिला था | वह समझ गयी की आज तक वह अपने पिता के लिए चिन्तित थि, आज उसे जवाब मिल गया था | वह मुस्करायी |
अपने पापा के लम्बे लंड के बारे में सोचते सोचते कब आँख लग गयी पता नहीं चला |
दूसरे दिन, निशा फिर रोज़ के काम में लग गयी | पापा को चाय दे दिया, सबका खाना बना दिया | खुद कॉलेज चली गयी और सारा दिन गुज़ार गया | पापा भी थोड़े लेट आए ऑफिस से | और सीधे खाना खाके रूम में चल दिए |
निशा ने देखा की उसके पापा उसको अवॉयड कर रहे है | आँख नहीं मिला रहे है | बात भी खुलकर नहीं कर रहे है | उसे अब अपने बरताव पर थोड़ा पछ्तावा होने लगा था | उसे डर लग गया की कहीं उसका और पापा का फ़ासला बढ़ तो नहीं गया, बल्कि कम होने के बदले |
वह पापा को अपना प्यारे दोस्त के रूप में देखना चाहती थी |
आज फिर वह वही मैक्सी पहनकर पापा के रूम में चल दी | हाथ में दूध भी था |
उसने बिना नॉक किये रूम खोला | उसके पापा प्रेमचंद की एक किताब पढ़ रहे थे |
जगदीश राय अचानक से हुई एंट्री से चौक गया | और जब निशा को मैक्सी में देखा तो पिघल गया |
उसके मम्मे नाइटी में कल से भी ज्यादा प्यारे लग रहे थे |
जगदीश राय बेड के किनारे पर पिलो टीकाकार लेटा हुआ था |
निशा उसके एकदम पास आ गयी | निशा ने अपनी टाँग पापा के टाँग से लगा दी और बोली |
निशा: पापा यह लो दूध |
जगदीश राय निशा को देखते देखते गिलास हाथ में ले लिया |
निशा: थोड़ा हटिये, मुझे बैठना है |
यह कहकर निशा सीधे बेड के किनारे पर बैठ गयी | जगदीश राय को हटने या हिलने का मौका भी नहीं दिया | और इससे निशा की आधी से ज्यादा गाण्ड जगदीश राय के दाए पैर के ऊपर थी | और निशा की गाण्ड उसके मम्मो की तरह बड़ी थी |
जगदीश राय को एक बहुत मुलायम गाण्ड का स्पर्श हुआ, और उसे इस स्पर्श से एक करंट सी लग गयी |
उसका लंड तुरंत अपने ज़ोर दीखाने लगा | उसने धीरे से अपना पैर निशा की गाण्ड के निचे से हटाया |
निशा ने हँस्ते हुआ पूछा: क्यू, क्या मैं बहुत भारी हूँ |
जगदीश राय: नही तो | सब ठीक है
निशा (थोडा उदास होकर): आप दूध पीजिये |
जगद���श राय ने तिरन्त गिलास ख़तम कर दी , इस उम्मीद में की निशा यहाँ से चलि जाए |
उसके मन में अजीब कश्मकश थी |
निशा (गिलास लेते हुए): पापा, आप क्या मुझसे नाराज़ है |
जगदीश राय: नहीं तो बेटी |
निशा: फिर आप मुझसे बात भी नहीं कर रहे है, सीधे मुह | आँख भी नहीं मिला रहे है | क्या मुझसे कोई गलती हुई है क्या |
जगदीश राय: नहीं बेटी बिलकुल नही |
निशा: तो फिर क्या हुआ |
जगदीश राय (सर झुका कर): वह बेटी … | कल जो हुआ… | वह… |उसकी वजह…मेरा मतलब है…
निशा (सर झुका कर): कल जो हुआ, सो हुआ | पर उसे क्या मैं आपकी निशा नहीं रही | क्या आप मेरे पापा नहीं रहे |
जगदीश राय : नहीं बेटी | तुम तो हर वक़्त मेरी प्यारी निशा हो |
जगदीश राय को अपने बरताव पर ग़ुस्सा आने लगा था |
निशा: और आप मेंरे प्यारे पापा है |
यह कहकर निशा अपने पापा के सीने पर सर रख दिया | उसके बड़े मम्मे मैक्सी के ऊपर से जगदीश राय के पेट और जांघ से दब्ब गये |
जगदीश राय का लंड जो निशा के सवाल जवाब से सो गया था, फिर अचानक से खड़ा हो गया |
निशा सीने पर सर रख कर अपने पापा के लंड को देख रही थी | उसने देखा की पायजामा धीरे धीरे ऊपर उठ रहा है |
जगदीश राय को हाथ से अपना लंड ठीक करना था, पर निशा के सामने करना मुश्किल हो रहा था | वह जान गया था की निशा को उठता लंड साफ़ दिख रहा है |
वही निशा की हालत भी ख़राब होने लगी थी | उसके निप्पल्स मैक्सी के ऊपर से पापा के पेट और जांघ से दब्ब कर रगड खा रही थी | दोनों निप्पल्स खडे हो गए थे |
निशा: पता है पापा | जब लड़की बड़ी हो जाती है, तब उसके पापा पापा नहीं रहते | उसकी दोस्त बन जाते है | मैं भी आप में वह दोस्त देखना चाहती हूँ |
जगदीश राय चुप रहा | निशा जो कहना चाह रही थी वह वह समझ गया था |
फिर निशा उठि और कहा:
निशा: पापा कल मेरे एग्जाम की फीस भरना है, यूनिवर्सिटी जाना है | क्या आप मेरे साथ चलेंगे | बहुत दूर है |
जगदीश राय जो अभी भी निशा की फेकी हुई गूगली पर सोच रहा था, जवाब नहीं दे पाया |
निशा: पापा, बोलो न | चलेंगे |
जगदीश राय: हाँ हाँ ठीक है | चलेंगे |
निशा: मेरे प्यारे पापा |
यह कहकर निशा ने पापा के माथे पर एक चुम्मी दे दी |
माथे पर चुम्मी देते वक़्त, उसके दोनों मम्मे जगदीश राय के मुह से टकरा गए |जगदीश राय हड़बड़ा सा गया | इतने बड़े मुलायम चूचे उसने कभी नहीं छुये थे |
सब कुछ चंद सेकण्डस में हो गया |
निशा : कल ठीक सुबह 10 बजे निकलना है ठीक | चलो गुड नाईट, स्वीट ड्रीम्स | सो जाओ अब |
जगदीश राय: हाँ हाँ गुड नाईट |
जगदीश राय बावला हो गया था | वह पूरा गरम हो गया था | निशा के जाते ही उसने अपना पायजामा नीचे कर दिया और मुठ मारने लगा | लंड पर लग रहे हर ज़ोर पर निशा का नाम लिखा हुआ था |
बाजू के कमरे में निशा कमरे में घुसते ही अपनी मैक्सी उतार फेकी | ऑंखे बंद करके उसे अपने पापा के लम्बे और मोटे लंड का आकार दिखाई दिया |
निशा की उँगलियाँ उसके चूत को मसलने लगी |
और कुछ ही वक़्त में ढेर सारा पानी बेड को गिला कर दिया | उसी वक़्त जगदीश राय को भी ओर्गास्म आ गया |
अगले दिन जगदीश राय , नहा धोकर हॉल में आकर पेपर के साथ बैठ गया | निशा उसे चाय देने आ गई |
निशा: गुड मॉर्निंग पापा, यह लो | चलो हमें जल्दी निकलना है | मुझे यूनिवर्सिटी होकर कॉलेज भी जाना है और आपको ओफिस |
निशा नहाकर आयी थी | अपनी गीले बालों को टॉवल में बाँध रखा था | उसने एक फ्रॉक पहना हुआ था, जो घुटने तक का था |
जगदीश राय को निशा बहुत प्यारी और सुन्दर लगी | गोरा भरा हुआ बदन, बड़ी बड़ी चूचे, भरा हुआ गाँड | जब वह चलती तो उसके हिप्स फ्रॉक के अंदर मटकते हुये साफ़ दिख रहे थे | इतनी सेक्सी होने पर भी उसके चेहरे में एक मासूमियत और सुशीलता थी |
जगदीश राय: क्या मेरा जाना ज़रूरी है |
निशा (नाराज़ होते हुए): पापा, अब आप अपनी प्रॉमिस से मुकर रहे है |
जगदीश राय: ओके ओके ठीक है चलता हूँ | मैं तैयार हो जाता हूँ |
जगदीश राय चाय पीकर जब सीडी चढ़ रहा था, तब आशा और निशा स्कूल ड्रेस में निचे उतर रहे थे |
करीब 9:15 में जगदीश राय हॉल में अपना कॉटन ��र्ट और कॉटन पेंट में आकर बैठ गया | वह सोफे पर बैठकर गुज़रे हुए कुछ दिन की वाक्या सोच रहा था |
जगदीश राय(मन में): पिछले कितनो दिनों से मैंने सीमा के बारे में सोचा ही नही | जो आदमी हर रात सोते वक़्त सीमा के बारे में सोचकर रोता हो, वह आज पिछली 3 रातो से खुश है | और यह सब निशा के वजह से है |
तभी निशा पीछे से आयी |
निशा: पापा, चलें?
जगदीश राय पीछे मुडा और निशा को देखते रह गया | निशा ने अपनी बाल पोनीटेल में बांध रखा था |
गोरा चेहरा बहुत सुन्दर लग रहा था | उसने ऊपर एक ग्रीन कलर की शार्ट कुर्ती पहनी थी और नीचे रेड कलर की टाइट लेगीन्स | कुर्ती का कट पुरे उसके साइड हिप्स तक आ रहा था, जिसे उसकी बड़ी जांघे लेग्गिंग्स में साफ़ दिख रहे थे | निशा ने आज थोंग्स पहन रखी थी , इसलिए गाण्ड टाइटस में पूरा खुला दिख रही थी |
उसके मम्मे भी कुर्ती में उभरकर आ रहे थे |
निशा ने अपने पापा को उसे घूरते देखा और वह खुश हो गयी | उसने बिना कुछ कहें मुस्कुराते हुए , अपनी अन्दाज़ में मुडी और मटकती हुआ चल दी |
जगदीश राय उसके पीछे अपने खडे लंड को सम्भालते हुआ चल रहा था |
जगदीश राय बाहर आकर अपनी मारुती ८०० के तरफ चलने लगा |
निशा: पापा हम बस में जाएंगे |
जगदीश राय: क्यों बेटी, कार हैं न | इसमे चलते है |
निशा: नहीं पापा, मैं इस खटारे में नहीं आउंगी | आप तो नयी कार लेते नही | मेरे सब फ्रेंड्स के पापा के पास कम से कम नई गाड़ी तो है ही | और वैसे भी बस स्टोप तो यही है |
जगदीश राय, हर वक़्त की तरह , हार मान गया |
जगदीश राय: ठीक है चलो बस में |
निशा को सभी लोग रोड पर देख रहे थे, जगदीश राय ने देखा | जब बस आ गयी, तो बस में बेठने की कोई जगह नहीं थी |
निशा: शायद आगे के स्टॉप्स में खाली जो जाए | चलें?
जगदीश राय और निशा दोनों चढ़ गये | बस में खडे होने के लिये, बीच में, थोड़ी सी जगह बनायीं थी | जगदीश राय ने देखा की बस में ज्यादातर स्टूडेंट्स थे |
निशा (उदास चेहरे से): शायद सब युनिवरसिटी जा रहे है | तो सीट्स मिलना मुश्किल होगा |
जगदीश राय: कोई बात नही, आधे घन्टे में आ ही जाएगा |
निशा और जगदीश राय एक दूसरे को फेस करके खडे थे | निशा के पीछे एक कॉलेज का जवान लड़का खड़ा था |
बस में अगले स्टोप पर और स्टूडेंट्स चढ़ गये | अब बस पूरा पैक हो चूका था |
निशा के पीछे खड़ा जवान लड़का निशा के पीछे पूरा चिपका हुआ था | और निशा आगे से अपने पापा से चिपकी हुई थी, एक सैंडविच की तरह | जगदीश राय ने देखा की लड़का अपना पेंट के आगे का हिस्सा निशा की गाण्ड पर चिपका रखा है | निशा के चूचे पूरी तरह से जगदीश राय के शरीर पर दबी हुई है | जगदीश राय का लंड पुरे आकार में था |
निशा: ओह न, हमें कार में ही आना चाहिए था… |शीट… | बहुत उनकंफर्टबल है यहाँ… | |
जगदीश राय:क्या मैं… थोड़ा पीछे हो जाऊँ |
निशा: नहीं पापा, आप ठीक है | पर यह पीछे वाला… |उफ्फ् |
जगदीश राय समझ गया की निशा को उस जवान लड़के का लंड महसूस हो रहा है | और यह उसे पसंद नहीं आ रहा | जगदीश राय, ने जाना की निशा ,भले ही सेक्सी है और सेक्सी कपडे पहनती है, पर है सुशिल और समझदार |
निशा: मैं एक काम करती हूँ, घूम जाती हूँ |
निशा (पीछे वाले लड़के से): भैया एक मिनट, थोड़ा जगह देना |
जवान लड़का चुपचाप थोड़ा पीछे सरक गया |और निशा टर्न हो गायी | निशा ने टर्न होते ही, अपना हैंडबैग अपने छाती पर लगा दिया | उसी समय जगदीश राय ने भी नीचे हाथ डाल कर अपने लंड को पेंट के ऊपर से स��ट कर दिया |
निशा की गाण्ड अब अपने पापा पर टीका हुआ था और सामने से उसने बैग से अपने मम्मो को मसलने से बचा रखा था |
अब बस , पूरी भरी हुई, बहुत धीरे धीरे चल रही थी | उसमे हर स्टॉप पर लोग चढ़ते जा रहे थे |
जगदीश राय का लंड निशा की गाण्ड के दरार के बिलकुल ऊपर था | निशा ने अपने गाण्ड पर अपने पापा का गरम लंड महसूस किया | वह मन ही मन मुस्करायी | उसे अपने पापा के लंड से चिपके रहने में कोई दिक्कत नहीं थी |
करीब 5 मिनट इस पोजीशन में रहने के बाद, जगदीश राय का पूरा शरीर गरम हो चूका था | उसे लग रहा था की उसका लंड मानो फट जाएगा |
निशा की हालत भी कुछ सामान ही थी | उसकी चूत पूरी गिली हो चुकी थी | निशा अपने पापा के गरम लौड़े को अपन गाण्ड के दरार पर चिपका रखा था | पर लंड अभी तक दरार के अंदर घूस नहीं पाई थी | निशा की टाईट लेग्गि, पापा के लंड की ज़ोर की वजह से , गाण्ड की दरार में घूस चूका था |
निशा ने अपने गाण्ड को थोड़ा दायी तरफ मुडा दिया और फिर तुरंत उसने गाण्ड को बायीं तरफ मोड़ दिया | वह अपने पापा के लंड को अपनी गांड से सहला रही थी |
जगदीश राय अपनी बेटी के इस हरकत से पागल सा हो गया | उसकी सासे तेज़ हो रही थी |
निशा बार बार ऐसे करती गयी | थोड़ी मदद उसकी बस भी कर रहा था, जो ख़राब रास्तो की वजह से डोल रहा था |
तभी अचानक से, पापा का लंड , निशा की गांड की दरार के अन्दर घूस गया, निशा वही रुक गयी | अब उसने अपने पापा का मोटा लंड अपनी बडी, गरम और मुलायम गाण्ड की दरार में कपडे के उपर से फसा रखा था |
निशा: आह…
निशा के मुह से आह निकली |
निशा तेज़ी से सास लेने लगी | पापा के गरम लंड की गरमी, गाण्ड से लगकर सीधे चूत पर बिजली की तरह गिर रही थी | चूत पूरी तरह गीली हो चुकी थी |
जगदीश राय बस अपने आंखें बंद कर , अपनी सासों को सम्भालते हुये खड़ा था | बस में किसी को भी ज़रा सा भी भनक नहीं हुआ की यह बाप-बेटी क्या कर रहे है |
जगदीश राय को लगा की ऐसे ही चलते गये तो वह पानी छोड देगा | वह इस परिस्थिती से बचना चाहता था |
बस थोड़ा और हिलना-डुलना शुरू हुआ | जगदीश राय मौके का फायदा उठाकर लंड निशा की गांड की दरार से बाहर निकलना ठीक समझा |
निशा को लगा की पापा का लंड दरार से फिसल रहा है, वह तुरंत अपने मन से जागी और अपनी बड़ी गांड को पीछे की तरफ सरका दिया | वह किसी भी हालत में अपने पापा के लंड को खोना नहीं चाहती थी | उसने ठान जो लिया था की वह अपने पापा को कभी उदास नहीं होने देगी |
जगदीश राय यह देख कर चौक गया | वह समझ गया जो भी हो रहा है निशा के सहमती से हो रहा है |
निशा की गाण्ड पीछे करने से ��ब जगदीश राय का बचना असम्भव हो गया था |
अब बस , रास्तो के खड्डो के कारण, बुरी तरह ऊपर नीचे हिल रही थी | और उसके साथ ही, पापा का लंड निशा की गाण्ड की दारार को रगड रहा था |
निशा पागल हुई जा रही थी | उसकी पैर का थर्र थर्र कापना शुरू हुआ | उसे खड़ा होना मुश्किल हो चला था | पर वह डटी रही | निशा की तेज़ सासे जगदीश राय को सुनाई दे रही थी |
निशा(मन में): चाहे कुछ भी हो, मैं अपने प्यारे पापा को ख़ुशी देकर ही रहूँगी |
और उसने अपनी गाण्ड और पीछे धकलते हुयी, पापा के लंड से दबा दिया |
वही जगदीश राय को लगा की उसका लंड अभी पानी छोड देगा | उसे पसीना छुटने लगा |
वह निशा से सीधे मुह बोलना नहीं चाहता था की उसका पानी छुटने वाला है |
तभी कंडक्टर ने आवाज़ दिया |
कंडक्टर: युनिवर्सिटि | | यूनिवर्सिटी… यूनिवर्सिटी… निकलो सब लोग | है और कोई यूनिवर्सिटी… |
निशा और जगदीश राय अपने चिंतन से जाग गये | निशा फिर भी हिल नहीं रही थी |
पर जगदीश राइ निशा को थोड़ा धक्का दिया और कहा |
जगदीश राय: चलो बेटी…स्टॉप आ गया |
फिर निशा और जगदीश राय धीरे धीरे बस से उतरने लगे |
कडक्टर: अरे क्या अंकल | | कब से चिल्ला रहा हूँ यूनिवर्सिटी यूनिवर्सिटी…
जगदीश राय और निशा बस से उतर कर एक दूसरे को 5 सेकण्ड तक घूरते रहे | उन 5 सेकड़ो में वह एक दूसरे के विचार, खुशी, निराशा, शर्म सभी जानने का प्रयास कर रहे थे |
निशा की गाल, गोरी होने के कारण, गरम होने से , लाल हो गयी थी |
निशा (सर झुका कर शरमाती हुए): मैं रेस्टरूम जाना चाहती हूँ पहले |
जगदीश राय: हाँ हाँ… हम्म…यही होगा… | |बल्की मुझे भी जाना है |
निशा अपने पापा के इस बात पर हँस दी और पापा की तरफ देखा | जगदीश राय ने भी मुस्कुरा दिया |
रेस्टरूम के अंदर जाने से पहले, जगदीश राय ने निशा से कहा |
जगदीश राय: बाहर आकर यही वेट करना, कहीं जाना मत |
निशा: जी अच्छा बाहर आकर यहि वेट करूंग़ी | आप भी यही रहिये… |मुझे थोड़ा वक़्त लग सकता है |
और निशा शरारत भरी मुस्कान के साथ अंदर चलि जाती है |
जगदीश राय बिना रुके मेंस रेस्टरूम में घूस गया | आज उसे भी वक़्त लगने वाला था… |
रेस्टरूम से निशा बाहर आ गयी | उसके चेहरे पर एक सुकून था | टॉयलेट गन्दा होने के बावजूद उसने अपना पैर उठाकर , ऊँगली करके अपना सारी गर्मी निकाल दी थी |
वह बाहर आकर अपने पापा का इंतज़ार कर रही थी |
जगदीश राय कुछ देर बाद मेंस रेस्टरूम से बाहर आ गए |
निशा (शरारती अन्दाज़ में): क्यों पापा इतनी देर लगा दी?
जगदीश राय शर्माके मुस्कुरा दिया | निशा भी मुस्कुरायी |
तभी निशा की एक सहेली केतकी का आवाज़ सुनाई दिया |
केतकी: निशा तू यहाँ | फीस भरने आयी है?
निशा: हा |
केतकी: तो चल, हम सब साथ है | यहाँ से बाद में कॉलेज चलेंगे |
निशा: ओके ठीक है | पापा , मैं अपनी सहेली के साथ जा रही हूँ | आप यहाँ से ऑफिस जा सकेंगे ?
जगदीश राय: हाँ बेटी कोई बात नही | तुम लोग चलो | मैं यहाँ से घर जाऊंगा और फिर ऑफ्फिस |
निशा अपने सहेलीयों के साथ बातें कर चल दी |
जगदीश राय ��र की बस की राह देखने लगा |
निशा,ने अपनी एग्जाम की फीस भरके, घर जाने का फैसला किया | अब इतनी देर लगने के बाद उसे कॉलेज जाने का मन नहीं था |
उसे अपने पापा को बीच रास्ते दग़ा देना अच्छा नहीं लग रहा था, पर वह करती भी क्या, सहेलीयों से क्या कहती?
निशा , जब घर पहुंची तो चौक गयी |पापा, सोफे पर पड़े थे | उन्होंने एक लुंगी पहनी थी, जो घुटनो तक चढा हुआ था | पापा ने शर्ट नहीं पहना था |
निशा: अरे पापा, आप यहा, ऑफिस नहीं गये |
जगदीश राय: अरे बेटी, तुम? अरे हाँ… वह एक एक्सीडेंट हो गया… | मैं बस से गिर पड़ा… |
निशा: क्या…ओ गॉड… | यह आपके घुटने पर चोट लगी है… |मुझे फ़ोन क्यों नहीं किया…?
जगदीश राय: अरे कुछ नहीं हुआ… थोड़ी सी चोट लगी है…पास के गुप्ता जी मुझे क्लिनिक ले गये | अब मैं ठीक हु… |
निशा: क्या पापा आप भी |
फिर निशा जगदीश राय के पास आयी और उन्हें पकड़कर सोफ़े पर ठीक से बिठाया | घुटने पर बहुत चोट लगी थी |
निशा: क्या कहाँ डॉक्टर ने |
जगदीश राय: बस यही की एक वीक तक ऑफिस नहीं जाना | और सहारे के साथ चलना | एक छड़ी भी दी है | और यह ओइंमेंट दिया है | और एन्टिबायटिक | और कहाँ की हाथ और पैर की गरम तेल से मालिश करना | ज्यादातर लेटे रहने को कहा है |
निशा: ठीक | यह अच्छा हुआ | अब आप ज्यादा काम तो नहीं करेंगे |
जगदीश राय: अरे कुछ नही, मैं 2 दिन में ठीक हो जाऊँगा | डॉक्टर सब ऐसे ही बोलते है…
निशा: चुपचाप लेटे रहिये | अब आप अगले मंडे ही ऑफिस जाएंगे |
उस दिन जगदीश राय का देखभाल निशा ने किया, शाम को आशा सशा ने भी उसका थोड़ा हेल्प किया |
कल दिन जगदीश राय के घुटनो का दर्द काफी कम हो गया था |
जगदीश राय: अरे बेटी, तू एक काम कर, खाना टेबल पर रख दे | मैं खा लूंगा | किचन तक मुझसे चला नहीं जाएगा |
निशा: खाना किचन में ही रहेगा | और मैं आपको खिलाऊँगी |
जगदीश राय: अरे तुझे तो कॉलेज जाना है न?
निशा: नही | आप जब तक ठीक नहीं हो जाते मैं कॉलेज नहीं जाने वाली | न आप मेरे साथ यूनिवर्सिटी आते न आप बस से गिरते… |
जगदीश राय: अरे…बेटी…छोड़ यह सब | | कॉलेज जा तू… |
निशा: पापा… | चुपचाप सोईये…कहाँ न मैंने… |
और निशा ने अपने पापा को जोर से पकड़ लिया और सोफे पर ढकेल दिया | निशा की बूब्स पापा के पेट से दब गयी | जगदीश राय को बेहत आनन्द मिला निशा को भी |
थोड़ी देर में आशा और सशा दोनों स्कूल चले गए…
दोपहर हो चली थी | जगदीश राय अब काफी आराम महसूस कर रहा था |
निशा: उफ़… |कितनी गर्मी हो गयी है | मार्च का महीना शुरू हुआ नहीं… की गर्मी इतनी…देखो मेरा पूरा टीशर्ट भीग गया …
जगदीश राय निशा की टी शर्ट देखता रह गया | वाइट टाइट टीशर्ट शरीर से चिपका हुआ था | निशा की ब्लैक ब्रा टीशर्ट से साफ़ दिख रही थी | और ब्लैक ब्रा में कैद निशा के बड़े बड़े चूचो का आकर निखर रहा था |
जगदीश राय: हाँ… |बेटी… | बहुत गर्मी तो है… |
निशा: मैं चेंज करके आती हूँ |
और निशा ऊपर अपने कमरे में चली | जगदीश राय अपने खडे लंड को सम्भालने लगा |
जगदीश राय, सोफे पर बैठ , पिछले दिन बस में हुई लंड-गाण्ड की रगड और निशा की ओर्गास्म वाली बात सोच रहा था |
तभी उसे निशा की सीडियों से उतरने की आवाज़ सुनाई दी | और निशा को देखकर उसका मुह खुला रह गया |
निशा ने सिर्फ एक शर्ट पहनी थी | शर्ट के निचे उसने कुछ नहीं पहनी थी | शर्ट का एक बटन खुला था जो उसके मम्मो के क्लवेज को दिखा रहा था | शर्ट सिर्फ गांड से थोड़ी निचे तक आ रही थी |
और गांड पर कोई पेंटी नहीं दिख रही थी |
निशा: पापा मैं ने आपकी शर्ट पहन ली | कैसी लग रही हु?
जगदीश राय: बेटी | |शर्ट तो ठीक है… पर नीचे…
निशा: पापा इतनी गर्मी है… क्या करू… शॉर्ट्स/पेंट पहनूँगी तो पिघलकर मर जाउंगी… |वैसे मैंने थोंग पहन रखी है…
जगदीश राय की हालत ख़राब हो चलो थी |
जगदीश राय: ठीक है…तो फिर…
निशा: आप तो ऐसे बोल रहे हो जैसे आप को पसंद नहीं आई |
जगदीश राय: अरे नहीं… बेटी… | अच्छी लग रही हो… | |बल्की…किसी मॉडल या हीरोइन जैसे लग रही हो…
निशा (खुश होते हुए) : सच…आप तो युही कह रहे हो…
जगदीश राय: नहीं बेटी… तुम बहूत सुन्दर हो… और इस ड्रेस में तो तुम रीना रॉय एक्ट्रेस जैसी लग रही हो…
निशा: पर आप तो कहते है की रीना रॉय जो आप की फेवरेट एक्ट्रेस है वह बहुत सेक्सी है…तो क्या मैं सेक्सी लग रही हु… |
जगदीश राय: अब बेटी… मैं कैसे…मेरा मतलब है… | मुझे कैसे…पता होगा | |
निशा: क्या पापा , क्या मैं मैं कर रहे है | सीधे बताइये न क्या मैं सेक्सी लग रही हु या नहीं…यह मत भूलना की आप मेरे पापा ही नहीं दोस्त भी है…
जगदीश राय (नज़रे चुराते हुए): हाँ सेक्सीईईई लग रही हो |
निशा: रीना रॉय की तरह | |?
जगदीश राय: रीना रॉय से भी ज्यादा…
निशा: सच… | मेरे प्यारे पापा |
यह कहकर निशा हीलते हुये आयी और अपने पापा के गालों में किस दे दी |
फिर निशा दौड कर चलि गयी | दौडते वक़्त उसके शर्ट गाण्ड से ऊपर उछल रहे थे और जगदीश राय को निशा की नंगी गाण्ड साफ़ दिखाई दे रही थी |
करीब 1 बजे को निशा खाना लगाकर , जगदीश राय को खाना सोफे पर दे दिया | और खुद सामने आकर बैठ गयी |
सामने निशा की नंगे पैर और जांघो को देख कर जगदीश राय की हलक से थूक निकल नहीं रही थी |
निशा की मुलायम जांघ मानो जगदीश राय को दावत दे रही थी की "आओ मुझे चाटो" |
निशा अपने पापा की हालत को समझ रही थी | उसे अपने पापा के सामने अंग प्रदर्शन करना बहुत अच्छा लग रहा था |
खाना खकर जगदीश राय मुश्किल से अपने रूम में जाके लेट गया | करीब 2 बजे निशा आई |
हाथ में एक कटोरी थी | वह अभी भी सिर्फ शर्ट में थी |
निशा: चलिये पापा , आपकी मसाज वाली आ गयी है… |
जगदीश राय: अरे इसकी कोई ��़रूरत नही | | मैं ठीक हु…
निशा: फिर से आप शुरू हो गए…
निशा को सिर्फ शर्ट में देखकर और वह भी बंद कमरे में , जगदीश राय के मन में एक अजीब सी घबड़ाहट फ़ैल गयी | वह दरअसल अपने आप से घबरा रहा था | वह दिन ब दिन निशा के सामने कमज़ोर हो चला था |
जगदीश राय: बेटी डॉक्टर ने मसाज पर कोई ज़ोर नहीं दिया | कहाँ की "हो सके तो" | फिर भी अगर तुम कहती हो तो मैं खुद अपने पैरो में लगा दूँगा |
निशा: अगर आप को सब काम करना है तो फिर मैं किस दिन काम आऊँगी | और आपने खुद ही कहा कि, बस से गिरने के बाद आप की कमर और जोड़ों पर भी दर्द हो रहा है | तो फिर? नही | कोई बहाना नहीं चलेगा… |
निशा समझ गयी थी उसके पापा क्यों बहाना बना रहे है | उसे अब अपने पापा की कमज़ोरी पर हसी आ रही थी |
निशा (मन में) : सच कहते है लोग , मरद कमज़ोर होते है…
निशा: चलिये, अपना बुक साइड में रखिये | और सीधे लेट जाईये…हा, ऐसे… पैर सीधे…मैं पहले पैर से शुरू करती हूँ | और फिर कमर और फिर कंधा… ठीक है…
जगदीश राय: अरे बेटी… इसमें बहुत टाइम लग जायेगा…तुम जाके सो जाओ… यह सब मैं कर दूंगा…
निशा: पापा… अगर आप ऐसे जिद करते रहे तो मैं सारी दोपहर और रात यहीं गुज़ार दूँगी… इस कमरे में… इस बेड पर… आपके साथ…क्या आपको यह मंज़ूर होगा…
जगदीश राय (हड़बड़ाकर)…नही… |तुम शुरू कर दो…
निशा: यह हुई न बात…
निशा ने पापा की लूँगी को ऊपर की तरफ फेक दिया जिससे जगदीश राय की लूँगी शॉर्ट्स की तरह जांघो तक चढ़ गयी थी |
फिर निशा , बेड के साइड पर बैठ गयी | निशा की बायीं निर्वस्त्र जांघ जगदीश राय की जाँघ से चिपक गयी थी | दोनों जाँघे बहुत गरम थी |
निशा अपने पापा के स्किन के स्पर्श से कामुक तो हुई | उसने ख़ुद को को संभाल कर पैरो का मसाज शुरू किया |
करीब १० मिनट दायी पैर का मसाज करती रही | जगदीश राय को बहुत मजा आ रहा था | निशा के कोमल हाथ, उसकी गरम गोरी जाँघ का स्पर्श, उसके चूचो का मसाज के वक़्त पैरों पर लगना और पुरे कमरे में निशा और उसकी तेज़ सास | निशा की चूत भी गिली हो चलि थी |
अब निशा जगदीश राय के जांघो पर झूककर बायीं पैर का मसाज करने लगी | निशा को जगदीश राय की बाये पैर की उँगलियाँ मिल नहीं रही थी | जगदीश राय को डर लग रहा था की निशा अगर और झुकि तो उसके दोनों बड़े बूब्स उसके पैरों में मसल जाएंगे |
जगदीश राय: बेटी मैं यह पैर उठाकर यहाँ रख देता हूँ | तुम्हे आसानी होगी |
निशा: आप लेटे रहिये | मुझे कोई तकलीफ नही | मैं घुटने पर होकर मसाज कर लूंगी…
और फिर निशा उठी और अपने दाए पैर पर खडे होकर, बायीं घुटने(कनी) को बेड पर रखकर , अपने पापा के बाए पैर पर झुकी |
और ऐसा करते हुआ निशा ने जगदीश राय को वो नज़ारा दिखा दिया जिससे जगदीश राय के मुह में पानी आ गया और लंड ने लुंगी के भीतर से ज़ोर का झटका मारा |
छोटी शर्ट जो बड़े मुश्किल से गांड को छुपा रही थी, अब हार मानते हुआ निशा की पूरी गांड को खोलकर पापा के सामने पेश किया था | निशा की गांड क�� उपरी हिस्सा गाण्ड की दरार को चीरते हुआ ऊपर से निकल रहा था |
जगदीश राय निशा की गांड को बेशरमी से घूरे जा रहा था | जो गांड जीन्स और स्कर्ट में बड़ी लगती थी आज नंगी होने पर और भी बड़ी और सुन्दर लग रही थी |
निशा बाए पैर की मसाज करते करते अपने पापा के खडे लंड को देखा और मुस्कुरा दि | वह जानती थी की उसकी गांड के सामने हर मरद हथियार डाल देगा | वह खुद अपने गाण्ड को कई बार मिरर में निहार चुकी थी |
निशा अपने दोनों जाँघे सिमटकर खड़ी थी | वह जानती थी पापा कुछ देर गांड को निहारने के बाद चुत देखने का प्रयास ज़रूर करेंगे |
कुछ देर मसाज करने के बाद, निशा ने पीछे चोरी से देखा | जगदीश राय अब सर को मोड़कर निशा की चूत देखने का प्रयास कर रहा था | वह समझ रहा था की निशा उसे यह करते हुआ देख नहीं पायेगी | पर निशा समझदार थी, उसने अपने पापा की चोरी पकड़ ली थी |
वह अब जानबूजकर मसाज करते हुए अपनी गाण्ड को हिला रही थी, ताकि जगदीश राय को चूत देखने में और दिक्कत हो | वह अपने पापा को छेड रही थी |
जगदीश राय, इतना गरम हो चूका था, की बेडशीट भी गरमा गया था | उसका लंड अब लोहे की तरह खड़ा हो चूका था और उससे छूपने का कोई कोशिश नहीं कर रहा था |
जगदीश राय, निशा की चूत की एक झलक के लिए अब तरस रहा था, पर वह उसे मिल नहीं रहा था | जगदीश राय अब हार मान चूका था |
निशा अपने पापा को इस हालत में देखकर तरस आ गयी | उसने एक झटके में अपने दोनों पैर को खोला |
जगदीश राय ने वह देखा जो वह पिछले 20 मिनट से देखने को तरस रहा था | गोरी मुलायम गांड के बीच में छिपी लाल पेंटी का छोटा सा हिस्सा जगदीश राय को दिखाई दिया | निशा ने अपने पापा को चूत का नज़ारा देखते हुए देख लिया |
निशा: पापा, मसाज अच्छी लग रही है |
जगदीश राय (चूत पर से नज़र नहीं हटाते हुए): हाँ आ बेटी… |बहुत मजा आ रहा है |
अब निशा ने वह किया जिसका जगदीश राय को उम्मीद नहीं थी।
निशा जगदीश राय के जांघो पर झुक गयी। और अपने गाण्ड और पैरों को पूरी तरह खोल दिया और अपनी बड़ी गांड को पीछे ढकेल दिया। अब थोंग का चूत वाला पूरा हिस्सा जगदीश राय के नज़रों के सामने 1 फिट की दूरि पर था। और निशा उसे पूरा खोलकर दिखा रही थी। चूत का हिस्सा पूरा गिला हो चूका था और उसे देख जगदीश राय के मुह में पानी आ गया।
उसी वक़्त साथ ही निशा ने अपने बाए हाथ को सहारे के लिए मोड़ दिया और सीधे उसे पापा के खड़े लंड के ऊपर रख दिया। निशा के बाँहों(एआरएम) का हिस्सा पापा के गरम कठोर लंड की गर्मी जांच रहा था।
जगदीश राय निशा की पेंटी में-छिपी-चूत और लंड पर गरम बाहों का स्पर्श सहना असंभव था।
जगदीश राय निशा के बाँहों के स्पर्श से आँखें बंद कर लिया। निशा पहली बार एक गरम लंड को हाथ लगाये थी, उसकी चूत पूरी गिली हो गयी थी और पानी छोडने के कगार पर थी। निशा के मम्मे अब पापा की पैरो पर भी रगड रहे थे और उसके निप्पल्स अँगूर की तरह खडे हो गए थे।
निशा: अब…मसाज… कैसा लग रहा है…। पापा।। एह…
जगदीश राय (तेज़ सासों से और आंखें बंद कर): बहूत…बढ़िया…बेटी…।
निशा अब दाए हाथ से दोनों पैरो में हाथ घूमाने लगी। और साथ साथ अपनी ��ांड हिलाने लगी और अपनी बाहों से पापा के लंड को हल्के हल्के हिलाने लगी।
निशा: अब पापा…
जगदीश राय (आंखे आधी खोले, चूत को घूरते हुए): और बढ़िया…बेटी…आह।।आह
निशा ने अब अपनी बाहों का ज़ोर बढाते हुए उसे तेज़ी से गोल-गोल घुमाने लगी। अब उसके बाहों के नीचे पापा का लंड एक खूंखार जानवर की तरह मचल रहा था।
जगदीश राय अब पागलो की तरह सर घुमा रहा था। उसका अब पानी छुटने वाला था, जो वह रोकने की कोशिश कर रहा था।
निशा: अब अछा लग रहा है पापा…
निशा की बाँहों की घुमान, चूत का नज़ारा और सवाल पुछने के अन्दाज़ से, जगदीश राय का लंड अब एप्पल की तरह फूल गया। और फिर वही हुआ जिसका उसे डर था, लंड ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया ।
जगदीश राय।: हाँ बेटीईई…।आहह अह्ह्ह अह्ह्ह्ह…ओह…गूड…।।आह मत रुको आआह आआआअह।
निशा जो पहली बार लंड से पानी निकला हुआ महसूस कर रही थी, लंड से निकले पानी की गर्मी को जानकर चीख पडी।
निशा: आआह पापा… ओह्ह्ह्ह।
निशा ने अपने हाथ को पापा के लंड से नहीं उठाया। वह अपने पापा के लंड के हर उड़ान को महसूस करना चाहती थी।
जगदीश राय कम-से-कम 1 मिनट तक झड़ता रहा। झडते वक़्त , सहारा देते हुये, निशा ने बाहों से लंड को दबाये रखा।
लंड से निकली वीर्य से पापा की लुंगी पूरी गिली और चीप-चिपी हो गयी थी और लूँगी निशा के हाथ से चिपकी हुई थी।
निशा अपने पापा हो न देखते हुये पैरों की तरफ मुड़कर लेटी रही और जगदीश राय के साँसों को सम्भालने का इंतज़ार करने लगी। और साथ ही खुद भी संभल रही थी।
करीब पुरे 5 मिनट के बाद जब निशा ने महसूस किया की लंड अब छोटा हो गया है।
वह धीरे से उठी। जगदीश राय निशा की तरफ देखे जा रहा था। जगदीश राय शॉक में था। निशा ने पापा की तरफ नहीं देखा। उसने धीरे से बाहों से पापा की चिपकी हुई लूँगी निकाल दी। अपने शर्ट को सीधा किया और खड़ी हो गई।
निशा: आज के लिए मेरे ख्याल से इतना मसाज ठीक है… क्यों … ठीक है पापा
जगदीश राय।: हाँ …।। बेटी।
पुरे रूम में एक अजीब सी ख़ामोशी थी। निशा तेल की डिब्बी उठाई और दरवाज़े पर मुडी ।
निशा: अब आप आराम करिये। और लूँगी जो ख़राब हो गयी है उसे वहां फेक दिजीए। धोने की ज़रुरत नही। मैं धो दूंगी, समझे पापा।
जगदीश राय ने शरमिंदा नज़रों से निशा की तरफ देखा। निशा प्यार से उसके तरफ देख रही थी।
जगदीश राय ने सर झुका कर सर हामी में हिला दिया।
निशा कमरे से बाहर आ गयी। कमरे से बाहर आकर वह खड़ी होकर मुस्कुरा दी।
निशा को अब अपने पापा अब अच्छे लग रहे थे। पापा जो थोड़े घबराये हुये, थोड़े शरमाये हुए और थोड़ा हिम्मत जुटाते हुये। निशा को अब अपने पापा से प्यार हो गया था। एक अनोखा प्यार जो सिर्फ वह ही समझ सकती थी…।
निशा अपने कमरे में घूस गयी। पापा के साथ हुए हर पल तेज़ी से मन में दौड रहा था।
सोचने से, वह और गरम हुए जा रही थी। निशा ने देरी नहीं दीखाते हुए , शर्ट उतार फेकी। और फिर पैंटी। और पूरी नंगी हो गयी।
चुत में आग लगी हुई थी चूत से पानी बहकर जाँघो तक पहुच गया था।
चुत पर ऊँगली लगाते ही वह अकड गयी और एक ही पल में कमर उछालकर झड़ने लगी।
झडते वक़्त एक ही सोच दिमाग में कायम था उसके पापा का झड़ता हुआ लंड़।
वह इतने जोर से झडी थी , की थकावट से कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला।
दरवाज़े पे बजे बेल के आवाज़ ने उसे जगा दिया। जल्द से उसने टीशर्ट और शॉर्ट्स पहन लिया और दरवाज़ा खोला।
आशा: कहाँ थी दीदी, कब से बेल बजा रही हूँ।
निशा: दो ही बार बजाए, सशा कहाँ है।
आशा: आ रही है, किसी दोस्त से बात कर रही है। ये देखो मैं क्या लायी हूँ। रैबिट का टेल। इसे मैं भी पहन सकती हूँ, देखो।
निशा: क्या… क्या है यह्। और तू क्यों पहनेगी। भला कोई जानवर का टेल पहनता है क्या।
आशा: अरे दीदी यह रियल रैबिट का टेल नहीं है। यह तो आर्टिफीसियल है। और इसे पहनकर मैं बनी रैबिट जैसे लगूँगी।
निशा: क्या बकवास…स्पाइडरमैन को जैसे स्पाइडर ने काटा था वैसे तुझे रैबिट ने काटा है लगता है। चल जा मुझे खाना बनाना है। तेरे बचपना के लिए टाइम नहीं है
आशा: यह बचपना नहीं है…।आप को पसंद नहीं तो आप की मर्ज़ी…
और वह चल दी। थोड़ी देर में सशा आ गयी।
बाकी का दिन ऐसे ही निकल गया। जगदीश राय खाना खाने नीचे आए। खाना खाते वक़्त जगदीश राय निशा से नज़रे चुराते रहे। उन्हे ताजुब हो रहा था की इतना सब होने के बावजूद निशा के चेहरे पर कोई शर्म या अपराध बोध (गिल्ट) नहीं था।
खाना परोसते वक़्त निशा पापा के बहूत क़रीब आकर खाना परोस रही थी, पर जगदीश राय उससे बच रहा था।
खाना खाते वक़्त आशा और सशा के बड़बड़ के बीच निशा पापा को घूरे जा रही थी।
निशा आज रात पापा को न दूध देने गयी न मसाज करने गयी।
रात को निशा दिन में हुए घटने पर विचार कर रही थी। एक बात वह जान चुकी थी की पापा को वह पसंद है पर भोले होने के कारण डर रहे है। इतना आगे बढ़ने के बाद वह अब पीछे नहीं जा सकती ।
उसके माँ के बाद इस घर की औरत वही है , और वह यह कर्त्तव्य पूरा करेगी। वह अपने पापा को माँ की याद में उदास नहीं होने देगी। चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पडे।
अगले दिन जगदीश राय की नींद ��्लेट के गिरने की आवाज़ से खुल गयी। क्लॉक पर 9 बज चुके थे। वह आज बहूत लेट उठा था।
जगदीश राय(मन में): "मैं रोज़ 7 बजे से पहले उठता हूँ, और आज इतने सालो बाद लेट उठा हूँ। आजकल सब बदल रहा है। मैं बदल रहा हूँ। निशा बदल रही है। और घर का माहौल बदल रहा है। क्यों?
कल निशा की गांड के सामने मैंने अपने हथ्यार कैसे डाल दिए। क्या हुआ मेरे कण्ट्रोल को।
मुझे निशा से बात करनी पडेगी। जो हो रहा है उसे रोकना होगा।
पर क्यों रोकू मैं? क्या मैं खुश नहीं हूँ। निशा की मुलायम गांड से सुन्दर गांड देखी है किसी ��ी। सीमा शादी के वक़्त भी इतनी सुन्दर और सेक्सी नहीं थी।
निशा का क्या क़सूर है। वह सिर्फ मुझे खुश देखना चाहती है। और सारे घर का सारा काम करती है। और उसकी उम्र ही क्या है। और बदले में वह मुझसे शायद थोड़ा दोस्ती मांगती है तो यह क्या गुनाह है।
फिर भी मैं उससे बात करूंगा। पर कैसे? मुझे उससे डरकर या शर्मा कर रहना नहीं चाहिये। मैं उसका बाप हूँ कोई बॉयफ्रेंड नही। मैं ज़रूर उससे बात करुँगा।"
जगदीश राय यह सब सोचकर उठा, फ्रेश होकर, निचे ड्राइंग रूम में आकर बैठ गया।
निशा मैक्सी पहने, हाथ में चाय लेके आई।
निशा: उठ गए पापा। क्या बात है। बड़ी गहरी नींद थी। लगता है कल आप बहुत थक गए थे।।
यह कहकर निशा हंस दी।
जगदीश राय न चाहते हुआ भी शर्मा गये।
जगदीश राय: नहीं…।। बस…। युही…। लेटा रहा…।
तभी आशा और सशा दौड़ते हुए आयी, और टेबल पर पड़ी टोस्ट लेकर भाग गयी।
सशा: पापा , स्कूल बस आने ही वाली है…। लेट हो गये हम लोग…। शाम को मिलते है।
जगदीश राय: हाँ हाँ…। ठीक से पढ़ाई करना…।
निशा सशा के पीछे दरवाज़ा बंद करने ही वाली थी, तभी गुप्ताजी दिख गये। वह निशा की सेक्सी बॉडी को घूरे जा रहा था। निशा ने अपने मैक्सी को ठीक किया।
निशा: अरे अंकल आप यहा।
गुप्ताजी: निशा बेटी… कैसी हो… कॉलेज वैगरा ठीक है न…
निशा: हाँ अंकल सब ठीक है।
गुप्ताजी: कहाँ है अपने स्टंट मैन…। बस में स्टंट करते हुए गिर पड़े…।राय साहब, कहाँ हो?
जगदीश राय: अरे गुप्ता जी आप। आईये आइए, बेठिये।।।
गुप्ताजी: अब आपकी हालत कैसी है…। दर्द कम है या नहीं…।
जगदीश राय: अरे अब तो मैं एक दम ठीक हु…। ज़ख्म से भी दर्द नहीं है… और बॉडी पेन भी ग़ायब है।। बस पूरा नौजवान बन गया हु… ह। ह
गुप्ताजी: अरे वह…। मैंने तो सोचा था राय साहब तो गए एक महीने के लिये। यहाँ तो आप दो ही दिनों में ठीक हो गये।
निशा: वह तो होगा ही…। उनकी नर्स भी तो मैं ही हु…हे हे।
गुप्ताजी: हाँ… बेटी के प्यार ने ही जादू दिखाया होगा…।क्यों राय साहब…।बहुत सेवा करवा रहे हो क्या बेटी से…
जगदीश राय के मन में पिछले दिनों की सीन्स फ़्लैश बैक की तरह दौड गयी।
जगदीश राय (शर्माते हुए): अरे नहीं नहीं…कुछ भी बोलती रहती है… निशा, गुप्ताजी के लिए चाय तो बनाओ…
गुप्ताजी: अरे नहीं नहीं… मैं तो मॉर्निंग वाक के लिए निकला था…चाय पीकर निकला हूँ… फिर आऊंगा कभी …बिटिया के हाथ से खाना भी खाके जाऊंगा है है हा…।
और जाते जाते भी मैक्सी के ऊपर से निशा की फुटबॉल जैसे बड़े मम्मो को घूरते हुए चला गया।
निशा(मन में): ठरकी बुड्ढा… तू आ तुझे खाना नहीं…ज़हर देती हूँ…
फिर निशा रोज़ के काम काज पर लग गयी। उसने 11।30 बजे तक जगदीश राय से कुछ भी नहीं बोल��…
पर जगदीश राय पेपर की आड़ लिए निशा को देखे जा रहा था। मैक्सी के ऊपर से निशा का हर अंग उभर कर आ रहा था।
और पेपर के अंदर से अपने लंड को सहला भी रहा था।
थोड़ी देर बाद निशा अपने पापा के सामने आकर खड़ी हो गयी और फैन से हवा खाने लगी।
निशा: ओह पापा… कितनी गर्मी है…हमे ए सी लगा देनी चाहिये…
जगदीश राय (ड्रामा स्टाइल में, पेपर हटाते हुए): हाँ… लग सकती है…
निशा पसीने में लथपथ खड़ी थी… मैक्सी पूरी तरह उसके मम्मो , पेट और जांघ से चिपक गई थी।
जगदीश राय निशा को घूरे जा रहा था। निशा इस बात से अन्जान नहीं थी। उसने पुरी कॉन्फिडेंस से अपने बदन के अंगो को पापा को दिखा रही थी।
कुछ देर बाद वह अपने कमरे में चली गयी। जगदीश राय ने राहत की सास ली। उसका लंड खड़ा हुआ था।
जगदीश राय फिर अपने आप को पेपर के पीछे छुपा दिया।
तभी निशा नीचे आ गयी।
निशा: उफ़… अब कुछ राहत है…गर्मी ने तो मार दिया…
जगदीश राय ने जब देखा तो उसके सोने-जा रहा लंड फिर फड़फड़ना शुरू कर दिया।
निशा ने पापा की एक दूसरी शर्ट पहनी थी। जो कल वाली शर्ट से छोटी थी। शर्ट सिर्फ उसके गाण्ड तक पहुच रही थी। निशा की बड़ी गांड शर्ट के अंदर मुश्किल से समां रही थी।
निशा: क्यों… कैसी लग रही हु…।
जगदीश राय: क्या कैसी लग रही हो?
निशा: कमाल है।।आप मुझे घूर रहे है।। और मुझसे पूछ रहे है।।क्या?
जगदीश राय: वह तो…मैं कुछ और सोच रहा था…
निशा: अच्छा जी…।ठीक है।। पर बताईये तो सही… कैसी लग रही हु…
जगदीश राय: बताया तो था कल…
निशा: वह कल वाली शर्ट के लिए…आज यह दूसरी शर्ट है…यह हाफ शर्ट है…। कल वाली फुल शर्ट थी।
जगदीश राय: मुझे तो कोई फर्क नहीं नज़र आ रहा … वैसी ही लग रही हो…
जगदीश राय परिस्थिती से बचना चाहता था।
निशा: मैं आपसे बात नहीं करूंगी…जाइए…
और निशा मटकते चल दी। चलते वक़्त शर्ट निशा की गांड से उछलकर गांड के निचले हिस्से को दिखा रहा था।
फिर निशा झाड़ू ले आयी। और कहा।
निशा: पापा फैन बंद कर रही हूँ। डाइनिंग टेबल के निचे बहुत खाना गिरा पड़ा है। सशा अभी भी खाना गिरा देती है खाते वक़्त।
जगदीश राय ने जब निशा को देखा तो उसे पसीना आने लगा
अब तक जगदीश राय निशा की जाँघो पर घूर रहा था। पर अब उसने जाना की निशा शर्ट का पहला २ बटन खोल रखी है। जिसमें उसकी चूचो की गल्ला (क्लीवेज) साफ़ दिख रही थी। निशा के चुचे शर्ट के अंदर तने हुए थे। और पतली कॉटन शर्ट में से निशा की निप्पल्स का आकार साफ़ दिख रहा था।
निशा कोई अप्सरा की तरह लग रही थी।
जगदीश राय को यह जानते देर नहीं लगी की निशा ने ब्रा नहीं पहनी है। निशा ने झाड़ू मारना शुरू कर दिया। जब भी निशा झुकति , जगदीश राय को निशा की आधि से ज़ादा गोरी मुलायम बड़े चूचे दिख जाती।
जगदीश राय निशा को पुरे रूम में झाड़ू लगाते हुए घूरे जा रहा था। वह निशा के चूचे और गाण्ड की एक भी खुला दृश्य खोना नहीं चाहता था।
निशा अब झाड़ू लगा कर कमरे के बीच में आ गयी। सारा कचरा हॉल के सेण्टर में इक्कत्रित किया था।
निशा ने अब अपने पापा के ऑंखों में आंखें डाल कर द���खा। उसने देखा की उसके पापा उसे घूर रहे है।
और फिर निशा झुकी। पूरी झुकी।
थियेटर के परदे की तरह सरकती हुयी, छोटी सी शर्ट निशा की गांड को अपने पापा के सामने प्रदर्शित कर दिया।
और जगदीश राय दंग रह गया। जगदीश राय को वह दिख गया जिसे देखने के लिए उसने कल्पना भी नहीं की थी।
गाँड के सुन्हरे गालो के बीचो बीच , जाँघो से सुरक्षित , छिपी सुन्दर चूत उसके आँखों के सामने था।
निशा ने पेंटी भी नहीं पहनी थी।
जगदीश राय का लंड लोहे की तरह तनकर फड़फड़ा रहा था। साफ़ सुथरी चूत इतनी सुन्दर लग रही थी की जगदीश राय को उसे चूमने का दिल किया।
निशा उस्सी पोजीशन में कम से कम 2 मिनट तक झूकी रही। और फिर मुडी।
निशा: अब पापा, मेरी यह शर्ट कैसे लग रही है।।?
जगदीश राय निशा की चूत देखकर इतना गरम हो चूका था की उनकी कान लाल हो चुके थे।
जगदीश राय अपने होश में नहीं था।
निशा: बोलो पापा…
जगदीश राय: क्या …।बेटी… हाँ…। सब ठीक है…।
निशा: हाँ हाँ …क्या ठीक है…मैं पूछ रही हो… शर्ट कैसी लग रही है आपको अभी…
जगदीश राय , होश में आते हुये, निशा की ऑंखों में घूरते हुए, तेज़ी से सासे लेते हुए, हाथो से खड़े लंड को सहलाते हुये।।
जगदीश राय: बहूत सेक्सी है… बहूत बढ़िया… सुपर्ब…।तुम अप्सरा लग रही हो बेटी…मॉडल की तरह
निशा: हम्म्म…। यह हुई न बात…
ओर निशा किचन के तरफ चल दी।
निशा किचन में आते ही , किचन के टॉप पर हाथ रखकर झूक गयी और अपने आँखें बंद कर सर झुकाये खड़ी रही।
उसका दिल ज़ोरो से धड़क रहा था और पैर कांप रहे थे।
अपने पापा को चूत दिखाने में जो हिम्मत उसने जुटायी थी, वह सिर्फ वह ही जानती थी।
उसने कापते हाथों से गिलास लिया और खुद को सँभालने के लिए पानी पीए।
निशा के ऑंखों के सामने, चूत को घूरते हुई, पापा की दो आंखें झलक रही थी।
निशा(मन में): कहीं मैने कुछ ज्यादा तो नहीं कर दिया? नहीं तो, नहीं तो पापा तारीफ़ नहीं करते। और उन्हें तो मेरी चूत बहुत भा गायी, लगता तो ऐसे ही है। पर इस सब का अन्त कहाँ होगा? अगर पापा फ्रस्टेट हो गए तोह? शायद मैं बहुत ज्यादा सोच रही हूँ। जब पापा खुश है, मैं खुश हूं, तब तो सब ठीक है।
यह सब सोचकर निशा ड्राइंग हॉल में खाना परोसने चल दी। पर जगदीश राय वहां नहीं था।
निशा(मन में): अरे पापा कहाँ चले गए? खाना खाए बगैर… पापा।। पापा।। कहाँ हो।।?
निशा अपनी छोटी शर्ट उछालते हुयी, गांड दीखाते हुए , सीडियों से पापा के कमरे में जाने लगी।
पर जगदीश राय वहां नहीं था। और फिर निशा ने कॉमन बाथरूम बंद पाया।
निशा जैसे ही बाथरूम के दरवाज़े के पास आयी , उससे अंदर से गुर्राने की आवाज़ सुनाई देने लगी।
निशा समझ गयी, की अंदर क्या हो रहा है। उसके चेहरे पर गर्व और मुस्कान दोनों छा गयी।
जगदीश राय बाथरूम में पूरा नंगा खड़ा तेज़ी से मुठ मार रहा था। उसका लोहे जैसे लंड को ठण्डा किये बिना उससे ड्राइंग रूम में बेठना असम्भव था।
उसके आँखों के सामने से निशा की बिना बालों वाली, साफ़ गु��ाबी कलर की चूत, हट नहीं रही थी।
और वह चूत के नशे में , निशा का नाम लिए जा रहा था।
जगदीश राय (हाथ चलाते हुए):आह…आह…आह।। निशा ओह निशा…।आह…
निशा, अपना नाम अपने मूठ-मारते पापा के मुह से सुनकर गरम हो चली थी। निशा देर नहीं लगाती हुई अपनी दो ऊँगली अपने चूत के पास ले गयी।
उसकी छोटी चूत इतनी गीली थी की क्लाइटोरिस रबर के बटन की तरह फुलकर बाहर निकला हुआ था।
और बाथरूम से निकलते हुये "आह निशा" के शब्दो के ताल में वह अपने चूत को कभी सहलाती तो कभी चूत के अंदर ऊँगली डालती।
थोड़ी ही देर में जगदीश राय की आवाज़े और तेज़ हुई और जोरदार होने लगी। जगदीश राय झड़ने ही वाला था।
निशा के हाथ भी बाथरूम के बाहर तेज़ी से चल रहे थे। चूत से बहता पानी जांघो से लगकर एक लकीर बना रहा था और बाथरूम के बाहर फर्श पर गिर रहा था।
निशा खड़ा नहीं हो पा रही थी और उसने दिवार से खुदो को सम्भाला। दो उँगलियाँ चूत में घूसाते वक़्त आवाज़ बना रही थी।
ओर तभी निशा का सारा बदन अकड गया और वह तेज़ी से झडने लगी। निशा इतनी ज़ोर से झडी की मुह से चीख़ निकली और वह वही फर्श पर गिर पडी।
निशा फर्श पर टाँगे मोड़ कर, सर झुकाये बाथरूम के बाहर बैठी थी। फ़र्श पर उसकी चूत का पानी गिरा पड़ा था।
शायद उसने ओर्गास्म के वक़्त थोड़ा मूत भी दिया था। वह कांप रही थी। ओर्गास्म की लहर अभी पूरी तरह ठण्डा नहीं हुआ था।
और तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला। जगदीश राय निशा को बाथरूम के बाहर फर्श पर बैठे देख चौक गया।
निशा ने आँख खोले जब अपने पापा के पैरो को देखा तो वह पूर तरह शर्मा गयी। उसने सर नहीं उठाया।
वह इतनी बेबस थी की मन ही मन वह अपने पापा के बाहों में खो जाना चाहती थी।
जगदीश राय फर्श पर पड़े पानी को देख कर समझ गया। उसे निशा की मासूम शर्माए चेहरे पर बहुत प्यार आया।
निशा ने धीरे से अपने सर को उठाया। जगदीश राय और निशा बिना कुछ कहे , एक दूसरे को देखते रहे।
ओर फिर जगदीश राय निशा के पास आए और अपना हाथ बढाया।
निशा अपने कापते हाथ जगदीश राय के हाथेली में रख दिया । और अपने कापते पैरो को सम्भाले उठ गयी।
फर्श पर पड़े चूत के पानी से उसका पूरा गांड और शर्ट का निचला हिस्सा भीग गया था।
जगदीश राय निशा के हुस्न को निहारता गया। और अपने पापा के चीरते नज़रो के सामने निशा पिघलती गयी।
निशा शर्मायी, बिना कुछ कहे, मुड कर अपने रूम की तरफ चल दी।
शर्ट का दायाँ(राइट) भाग गाण्ड से ऊपर सरका हुआ था।
जगदीश राय , निशा की चूत की पानी से भीगी हुई , मटकती नंगी गाण्ड को निहारता रहा।
लंड फिर से खड़ा होने लगा था।
जगदीश राय हॉल में जाकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया। उसे निशा के बाथरूम से पानी की आवाज़ साफ़ सुनाइ दे रही थी।
वह बीते हुए कुछ पलो को मन ही मन निहार रहा था। कैसे निशा ने उसे अपनी चूत दिखाई थी और कैसे निशा उसी के साथ बाथरूम के बाहर मुठ मार रही थी।
निशा की पानी से चमकती हुई उभरी हुई गांड को सोचकर वह फिर से पागल हो चला था।
वह निशा का दिवाना हो चला था यह उसे पता चल गया था।
तभी निशा के पैरो की आहट सुनाई दी।
निशा: चलो पापा खाना खा लेते है।
जगदीश राय ने निशा के चेहरे की तरफ देखा। निशा के चेहरे पर कोई शर्म या हिचकिचाहट नहीं था।
निशा के टाइट टॉप और एक बहुत ही टाइट शॉर्ट्स पहनी थी। शायद वह शॉर्ट्स सशा की थी।
शॉर्टस उसके गांड को और गोलदार बना रही थी। और शॉर्ट्स से बाहर निकलती हुई उसकी गोरी जांघे जगदीश राय को पुकार रहे थे।
जगदीश राय (लंड को हाथ से छुपाते हुए): हाँ… खा लेते है…
खाने के बीच निशा का फ़ोन बजा।
निशा: हेलो…। अरे केतकी…।क्या हाल है…अरे नहीं…। मैं ठीक हु…।ह्म्म्म… अरे वह पापा
बस से गिर पड़े…।। हैं…तो उन्हें काफी चोट आयी थी……
निशा: हाँ… तो बस उन्ही के देख भाल कर रही हु…।
और निशा अपने पिता के तरफ देखा और मुस्करायी। जगदीश राय भी थोड़ा मुस्कुराया…
निशा:… ओह अच्छा… उसने बर्थडे पार्टी देना है…।कितने बजे… ४ बजे… ठीक है मैं आउंगी…
और कुछ देर कॉलेज के यहाँ वहां के बात करने के बाद निशा ने फ़ोन काट दिया।
निशा: पापा, वह मेरी फ्रेंड बर्थडे पार्टी दे रही है…तो क्या मैं जाऊं…।।6 बजे तक आ जाऊँगी।
जगदीश राय: हाँ हाँ जाओ बेटी।
निशा: पर आप ठीक है…
जगदीश राइ: हाँ हाँ मैं तो एकदम ठीक हु… और वैसे भी अब खाने के बाद मैं तो लेट जाउँगा।
निशा: फिर ठीक है…
थोडे देर बाद जगदीश राय अपने रूम में जाके लेट गया। लेटे हुए निशा के साथ बीते पलो के खलायों में सैर कर रहा था।
करीब 3:30 बजे निशा ने सलवार और जीन्स पहने , अपने पापा के रूम का दरवाज़ा खोल दिया।
उसके हाथो में एक कटोरी थी।
निशा: पापा…तेल लायी हु…
जगदीश राय: ओह… तो मसाज करोगी…?
जगदीश राय निशा को सलवार/जीन्स में देखकर उदास हो गया। पिछले दिनों से निशा सिर्फ कम कपडो में ही अच्छी लग रही थी।
निशा: जी नही… मैं तो चली…। आज आपको मेरे बिना ही काम चलाना पड़ेगा…हे हे ।।। जहाँ चाहे मसाज कर सकते है…।समझे पापा…हे हे।
और निशा की कातील हसी से रूम गूंज उठा।
जगदीश राय, थोड़ा मुस्कुराया थोड़ा शर्माया…
निशा: मैं कल आपको मसाज कर दूँगी… ठीक है… चलो बॉय। लेट हो रही हु…
जगदीश राय निशा की बातो से बहूत गरम हो गया और सीधे अपने काम पर लग गया।
शाम को 5 बजे आशा और सशा आयी।
जगदीश राय: तुमलोग आज ल��ट कैसे।
आशा, आप को याद नहीं… आज थर्स डे है… मेरा बॉलीवुड डांस क्लास होता है और सशा
का जिमनास्टिक्स क्लास।
जगदीश राय: ओह अच्छा।
निशा कुछ देर बाद आयी।
निशा: सशा और आशा आए?
जगदीश राय: हाँ… ऊपर है…
जगदीश राय मुड़कर सोफे पर जा रहा था तभी।।
निशा:पापा, क्या आपने मसज किया…
जगदीश राय: वह…।।हाँ…किया…
निशा: तेल लगाकर?
जगदीश राय (नज़रे झुकाए): हाँ… तेल लगाकर।।थोडा।।
निशा: बस थोड़ा ही… …उस दिन की तरह लुंगी तो ख़राब नहीं हुई न…क्या मैं धो दू…?
जगदीश राय (झेंपते हुए): क्या…।
निशा: लुंगी और क्या।।हेहे
जगदीश राय: नहीं …सब ठीक है …।लून्गी सब ठीक है…।।
निशा (मुस्कुराते हुए): ओके ओके…
कुछ 1 घंटे बाद निशा खाना परोसकर सब लोग खाने लगे।
आशा: दीदी… आप पिछले 3 दिनों से कॉलेज नही गयी ना…कल का क्या प्लान है।।
निशा: हाँ… कलललल…।।नही जाऊँगी…। कल तो फ्राइडे है… वैसे भी लेक्चर्स कम है…
निशा खाते खाते सोच रही थी।
निशा(मन में): कल तोह फ्राइडे है…कल के बाद मंडे से मेरी कालेज, पापा का ओफ्फिस। और यह ४ दिन की लहर थी यही ख़तम हो जाएगी…यह उमंग जो मैंने जगाया है इसे कायम रखना बहूत ज़रूरी है… पापा के लिए… और शायद अब मेरे लिए भी…
फ्राइडे सुबह निशा जल्दी उठ गयी थी। उसने फ़टाफ़ट नाश्ता वग़ैरा बनाना शुरू कर दिया।
रात को वह ठीक से सो नहीं पाई थी। अपने पापा का प्यारा चेहरा , उनका बदन और उनका कठोर मोटा लंड उसे सोने नहीं दे रही थी। पिछले ४ दिन से जो उसे आज़ादी मिली थी , आज के बाद मिलना मुश्किल होने वाला था।
निशा (मन में):मुझे तो अपने डबल-मीनिंग वाले टेढ़े बातों को भी कण्ट्रोल करना पडेगा। ओवरस्मार्ट आशा का दिमाग तेज़ी से चलता है।
करीब 9 बजे जगदीश राय उठे। आज कल जगदीश राय सुबह ��ेहद खुश रहते थे। सब कुछ मानो ठीक चल रहा हो।
निशा: पापा… चाय।
जगदीश राय , निशा का सुन्दर चेहरा देखकर और भी खुश हो गया। वह अपनी मम्मी की नाइटी पहनी थी।
निशा चाय देकर, किचन के तरफ चल दी। नाइटी से साफ़ पता चल रहा था की निशा ने अंदर पेटिकोट नहीं पहना था। जगदीश राय, रोज़ की तरह निशा की गांड पर अपनी आँखे सेंकता रहा।
करीब 9:30 बजे, आशा और सशा आ गए और नाश्ता खाकर चल दिए।
निशा: अरे सशा, आज तुम लोग कब आओगे
सशा: दीदी, मेरी तो आज एक्स्ट्रा क्लास है स्कूल में। तो क़रीब ४ बज जाएंगे। और।।
निशा: आशा मैडम आपका क्या प्रोग्राम है…
आशा: मुझे एक सहेली के घर जाना है, कुछ नोट्स तैयार करने है…
निशा: हम्म्म…।सच बोल रही है… या…?।
आशा (झेंपते हुए): सच दीदी… झूट क्यों बोलू…।।वैसे आप क्यों पूछ रही है?…
निशा (झेंपने की बारी उसकी थी): बस यही…चलो जाओ अब तुम दोनों…।
जगदीश राय ने भी यह बात सुनी।
जगदीश राय (मन में): कहीं निशा मसाज के लिए तो नहीं पूछ रही है… शायद उसे…
1 घन्टे के बाद निशा बोली…
निशा: पापा मैं ने नाश्ता टेबल पर रख दिया है… आप खा लेना…
जगदीश राय: तुम नहीं खाओगी बेटी…
निशा: नहीं पापा… मैं पहले नहाके आती हु…। इस गर्मी में रहना मुश्किल है…।
जगदीश राय टेबल पर बैठे खा रहा था। टेबल से उसे सीडियों के ऊपर का कॉरिडोर साफ़ दिख रहा था। ऊपर से पानी का आवाज़ सुनाई दे रहा था। निशा शावर में नहा रही थी शायद।
जगदीश राय मन में निशा के नंगे जिस्म पर पानी के बूंदो की कल्पना कर रहा था। उसके फुटबॉल जैसे बड़े बड़े पानी से चमकते चूचे सोचकर उसके टेबल पर बैठना मुश्किल हुए जा रहा था।
करीब 20 मिनट निशा को सोचकर खाने के बाद, जगदीश राय अपने लंड को पकडते , सीडियों से कॉमन बाथरूम की तरफ चला।
जगदीश राय अब कॉरिडोर में था, जो 3 बैडरूम और 1 कॉमन बाथरूम को मिला रहा था। निशा का रूम का दरवाज़ा बंद था। वहां से अब कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, पानी की भी नही।
जगदीश राय (मन में): शायद निशा नहा चुकी है…अब तो वह अपने पूरे जिस्म को पोंछ रही होगी… क्या मैं घूस कर देख लू…।नही यह ठीक नहीं होगा… क्या समझेगी वह मेरे बारे में…
जगदीश राय यह सोचकर कॉमन बाथरूम के तरफ बढा ही था की बाथरूम का दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया। और जगदीश राय के पैरो तले ज़मीन निकल गयी…
सामने निशा खड़ी थी। पूरी नंगी।
निशा ने कुछ भी नहीं पहना था। उसने बालो को एक ब्लू टॉवल से बांध लिया था। और बालों से पानी की छोटी बुँदे उसके नंगे बदन पर गिर रही थी।
जगदीश राय की आंखें निशा की नंगी चूचियों से हट नहीं रहा था। जगदीश राय ने अंदाज़ा भी लगाया था की निशा के चूचे इतने बड़े होंगे।
और उन बड़े चूचों के सेण्टर पर गुलाबी कलर के परिवेश (एरोला) से घेरे गुलाबी निप्पल। आज तक जगदीश राय ने सिर्फ भूरे(ब्राउन) कलर का निप्पल्स ही देखे थे, पर अपनी बेटी के गुलाबी निप्पल्स ने उसे पागल कर दिया।
जगदीश राय की नज़रे चूचियों से न���शा की पेट के तरफ फिसला तभी।
निशा (शर्माते हुए): ओह पापा…सोर्री।। ओह मेरे बाथरूम के शावर में पानी का फाॅर्स नहीं है न…।इस्लिये यहाँ चलि आयी…।
निशा ने यह कहते हुए अपने दाए हाथ से अपने दोनों चूचियों को ढक लिया, जिससे वह मुलायम बड़े चूचे दबकर और गोलदार बन गये। और फिर धीरे से उसने अपनी बायीं कलाई से अपने चूत को ढक लिया।
जगदीश राय चुप रहा और बस घूरता रहा।
जगदीश राय की ऑंखें बिना मौका गवाते हुए निशा की चूत को अच्छी तरह निहार लिया। निशा का पूरा शरीर एक अप्सरा की तरह , बाथरूम की रौशनी में चमक रहा था।
नंगी निशा सिर्फ हाथो से अपने ख़ुद को ढकते हुए धीरे से बाथरूम से बहार आयी। और धीरे धीरे , नंगे पैर और नंगे बदन से जगदीश राय के तरफ बढ़ रही थी।
निशा का हर एक कदम जगदीश राय पर भारी पड़ रहा था। निशा की साँसे भी तेज़ी से चल रही थी, जो उसकी चूचियों के उतार-चढाव से प्रकट हो रहा था।
करीडोर की चौड़ाई(विड्थ) सिर्फ 2:5 फुट का था। जब निशा पास आयी, जगदीश राय एक साइड हो गया।
अब निशा 2:5 फुट कॉरिडोर में , पूरी नंगी जगदीश राय के सामने थी। और निशा धीरे से, जगदीश राय के आँखों में देखते हुए उनके सामने से निकल रही थी।
उसने बहुत ही नज़ाकत से ख्याल रखा की उसकी नंगा शरीर पापा को स्पर्श न करे।
जगदीश राय , ने अपने आप को कण्ट्रोल करने के लिए निशा के सामने आते की गहरी सास लिए आंखें बंद कर ली। और फिर एक सेकंड बाद आँख खोला तो निशा उनके सामने से निकल चुकी थी।
जगदीश राय वहीँ खड़ा निशा की नंगी पीठ और बड़ी मदहोश गांड को अपने कमरे की तरफ जाते देखा।
निशा अपने कमरे के दरवाज़े पर पहुच कर अपने पापा के तरफ देखा। जगदीश राय तेज़ सासो से बाथरूम के तरफ बढ़ रहे थे। उनकी चाल से यह महसूस किया जा सकता था की वह मदहोश है। तभी निशा ने फिर से अपनी चाल चल दी।
निशा (सॉरी फेस से मुस्कुराते हुए): पापा…। मैं अपनी हेयर-बैंड अंदर भूल आयी हु… क्या आप ला देंगे मुझे…प्लीज…
जगदीश राय बाथरूम के अंदर गया और देखा की सामने एक लाल रंग की हेयर-बैंड जैसी चीज़ पड़ी थी। पर अगर वह नहीं भी होती तो भी जगदीश राय उसे लेकर निशा के पास चला जाता।
जगदीश राय हेयर बैंड लेकर निशा को घूरते हुए निशा की तरफ बढा। निशा का सिर्फ अब साइड-व्यू ही दिखाई दे रहा था, और उस पर निशा की कमर और गांड क़यामत ढा रही थी।
जगदीश राय सूखे मुह लेकर निशा के सामने खड़ा हो गया और एक बच्चे की तरह हेयर-बैंड हाथ में लिए खड़ा था। निशा उनकी ऑंखों में देखकर मुस्कुरायी और फिर कहा।
निशा: थैंक यू पापा…यू आर वैरी स्वीट…
और फिर निशा ने अपने दोनों हाथ चूचियों से निकाल लिया और ���पनी पूरी चूची अपने पापा के नज़रों के सामने पेश किया।
एक 20 साल की बेटी आज पहली बार अपने पापा के सामने पूरी नंगी खड़ी थी। निशा की नंगी चूची जगदीश राय से सिर्फ 6 इंच के अंतर मे थी और जगदीश राय गुलाबी निप्पल को घूरता रहा।
ओर निशा अपने कमरे में घूस गयी और अपने पापा के चेहरे पर दरवाज़ा बंद किया।
जगदीश राय कुछ देर वहीँ निशा के दरवाज़े के बाहर खड़ा रहा। वह बौखला गया था।
जगदीश राय थोड़ी देर वहां खड़ा रहने के बाद , बाथरूम में घूस गया।
��सका पूरा बदन कांप रहा था। कान और गाल गरम हो चूका था।
उसने अपनी लुंगी साइड की और लंड बाहर निकाला।
लंड लोहे की रॉड की तरह खड़ा हुआ था। लंड पर उभरे नस (वेन्स) किसी रबर वायर की तरह फूल कर साफ़ दिखाई दे रहे थे।
वह अपनी इस अवस्था को सुधारने के लिए मुठ मारना शुरू किया पर दिमाग पर हज़ारो ख्याल बम की तरह फट रहे थे।
लंड खड़ा होने के बावजूद मुठ मारा नहीं जा रहा था।
कुछ देर प्रयास करने के बाद वह खड़े लंड के साथ बाहर आ गया।
अंदर निशा का हाल भी कुछ समान था। पापा के सामने नंगी रहने में उसे बहोत मजा आया था और यह उसकी गिली चूत बता रही थी।पूरी बदन पर लहर फ़ैली हुई थी।
निशा (मन में): मुझे देखकर पापा का लंड तो साफ़ लुंगी के बाहर निकला हुआ था। पर पता नहीं पापा ने अपने आप को कैसे रोक लिया…।और कोई होता तो अब तक मुझ पर टूट पड़ता…।पापा को अपने आप पर कितना कण्ट्रोल है…मानना पड़ेगा…।
निशा ने जल्द अपनी एक रेड कलर की सिल्क शर्ट पहन ली। और अपने आप को मिरर में देखा।
शर्ट कमर से थोड़ा निचे तक आ रही थी। सिर्फ गांड और चूत को कवर कर रही थी।निशा अपने इस पोशाक से खुश हो गई और दरवाज़ा खोले निचे हॉल/किचन के तरफ चल दी।
वही जगदीश राय सोफे पर बेठा हुआ था। और निशा के बाहर आने का इंतज़ार कर रहा था।निशा को फिर से शर्ट में देखकर वह मन ही मन खुश हो गया। पर उसमे अभी भी निशा को सीधे देखने की हिम्मत नहीं जूटा पा रहा था। निशा रेड सिल्क शर्ट में क़यामत ढा रही थी, जो उसकी गोरे जाँघ को और भी खूबसूरत बना रहा था।
निशा ने सीडियों से उतरकर अपने पापा से कुछ नहीं पूछा और न कहाँ और सीधे किचन में चलि गयी। मानो जैसा कुछ हुआ ही न हो।
खाली 2 घंटे तक जगदीश राय की आंखें सिर्फ निशा का ही पीछा कर रही थी।
निशा कभी उनको अपनी जांघ, कभी अपनी आधि चूची या अपनी गांड दिखाकर बहला रही थी।
निशा ने ठान लिया था की आज वह अपने पापा को अपनी चूत नहीं दिखाएगी।
इसलिये झाड़ू लगाते वक़्त भी वह नहीं झुकी। और अपने पापा का फरस्ट्रेशन देखकर उसे मजा आ रहा था।
निशा: पापा… चलो खाना लग गया।
जगदीश राय ,बड़ी मुश्किल से अपने बेटी के साथ बैठकर खाना खाया और अपने रूम में चला गया।
उसने सोचा रूम में जाकर मुठ मार लूँगा और अपने आप को ठंड़ा कर दूंगा।
जगदीश राय रूम में जाकर बैठकर अपने लंड को बहार निकालकर मुठ मारने लगा।
सूबह से खड़ा लंड हाथ के स्पर्श से शांत होने का नाम नहीं ले रहा था।
तभी उसे सीडियों पर से निशा के कदमों की आहट सुनाई दी। उसने तुरंत अपनी लुंगी ऊपर चढा ली। निशा ने इस बार दरवाज़ा नॉक किया।
जगदीश राय (लुंगी ठीक करते हुए): हाँ…। आ जा बेटी…।
निशा (एक हाथ पीछे छुपाते हुए): देखना चाहती थी… की आप फ्री तो है न…।।
जगदीश राय निशा के सामने खड़ा लंड छुपाते हुए : हाँ बिलकुल…थोड़ा लेटने जा रहा था बेटी।
निशा: ज़रूर लेटिए…पर मसाज के बाद…। दो दिन से आप को मसाज नहीं किया…।
और निशा ने अपना ��ाथ बाहर निकाला और उसमे तेल की डिब्बी थी।
जगदीश राय : अरे …नहीं आज नहीं… कल करते है…।
निशा: नहीं…2 दिन से मसाज नहीं हुआ…आज तो करना ही है…।मसाज।
निशा: चलिये पहले कंधे और हाथ का करते है…फिर पैरो का… चलिये अपना शर्ट उतारिये…
निशा सिर्फ एक छोटी सी शर्ट पहनी आर्डर दिए जा रही थी एंड जगदीश राय बिना कुछ कहे निशा के जिस्म का दिवाना हुए पालन कर रहा था।
जगदीश राय बेड पर अब सिर्फ एक लुंगी पहन के बैठा था, जिसमें से उसके मोटे लम्बे लंड का उभार निशा को दिखाई दे रहा था। और निशा चोरी छुपे उसे देखे जा रही थी।
निशा पहले जगदीश राय के कंधे और हाथो का मसाज करने लगी।
हर एक दौरे पर वह अपने चूचो को पापा के नंगे पीठ पर रगडने से नहीं चूकती थी।जगदीश राय को निशा के खड़े निप्पल्स महसूस होने लगा।
निशा (उन्हें रगड़ते हुए): कैसा…लग रहा …है।।पापा…
जगदीश राय: अच्छा।।।। लग रहा है…।
कुछ देर बाद निशा के हाथ अब जगदीश राय के छाती पर दौडना शुरू हुआ ।
निशा जगदीश राय के छाती के बालो और निप्पल्स पर अपनी उँगलियाँ गोल गोल घुमा रही थी।
और जगदीश राय के पीछे से उनका लंड को फड़ फडाटे हुए देख रही थी।
कोई 10 मिनट बाद।।
निशा (पूरा गरम ): पापा…।अब आप…हम्म…लेट जाइये…।मैं…पैरों का करती हु…।
जगदीश राय निशा को सिल्क शर्ट में हाँफते हुए देखकर इतना गरम हो रहा था की वह बिना कुछ कहे लेट गया।
निशा: पापा… आप अपना आंखें बंद करके , हाथो को ऐसे सर के पिछे ले जाकर लेटे रहिए। हाथो को आगे ले आने की ज़रुरत नहीं…। अब सिर्फ आप मेरे मसाज को फील करिये…
निशा ने पैरो हाथ फेरना शुरू किया। निशा ने अपनी गरम नंगी जाँघ जगदीश राय के कमर/पेट से लगाकर रखी। निशा अपना हाथ लुंगी के अंदर ले जाकर जगदीश राय की जाँघ तक ले जाती।
आंखेँ बंद किया जगदीश राय ऐसे मदहोश मसाज से पूरा पागल हो चला था। उसका लंड फटने के कगार पर था।
ओर तभी जगदीश राय की लूँगी निशा के हाथो के वजह से सरक गयी और जगदीश राय का काला लम्बा मोटा लंड निशा के ऑंखों के सामने अकड़ते हुए आ गया। ऐसा लग रहा था जैसे एक मोटे साँप को आज़ादी मिली हो।
निशा पापा के लंड को इतने पास से देखकर डर गयी और चुपचाप मसाज करने लगी। पर थोडी देर बाद वह लंड को निहारती रही।तभी जगदीश राय को महसूस हुआ की उसका लंड लूँगी से बाहर निकल गया है, और उसने हाथ आगे लाकर लंड को अंदर डालना चाहा।
निशा: पापा…।यह क्या…।मैँने कहाँ था हाथ पीछे…।जब तक मेरी मसाज पूरी नहीं हुई है…
जगदीश राय : पर…बेटी… मैं तो…यह…लूंगी… लूँगी ठीक कर रहा था…
निशा: कोई ज़रुरत नहीं…।।हथ पीछे ले जाईये…।लून्गी जहाँ है वही ठीक है…जिसको बहार आना था खुद ही आ गया… है है।
और निशा ने हँस दिया।
जगदीश राय : पर… बेटी…मुझे…
निशा: पापा…आंखें बंद…। बिलकुल बंद…वैसे भी मुझे उसे देखने में कोई दिकत नहीं तो आप को क्यों…
जगदीश राय फिर से आँखें बंद किया। अपने बेटी के सामने लंड पूरा खुला दिखाई देता सोचकर, उसका लंड पूरा कड़क हो गया। निशा अब जगदीश राय के जांघो पर लुंगी के अंदर हाथ डाल कर हाथ फिरा रही थी। और यह करते वक़्त निशा जानबूजकर जगदीश राय की टट्टो को भी सहला देती।
अपने टट्टो पर निशा के मुलायम हाथो के स्पर्श लगते ही जगदीश राय के मुह से आह निकली।
जगदीश राय : आह…हहह
निशा समझ गयी की जगदीश राय को मसाज बहुत पसंद आ रही है। वह फ्राइडे के अपने प्लान से खुश थी।
इस बार निशा ने अपने बाये हाथ को जगदीश राय के टट्टो पर रहने दिया और सिर्फ अपने दाये हाथ से पैरो का मसाज करने लगी। बायां हाथ धीरे धीरे टट्टो को सहला रहा था।
थोड़ी देर बाद,
निशा: पापा… यह लूँगी की वजह से मैं आपके कमर तक नहीं पहूँच पा रही हु… उसे उतार देती हु मैं…
जगदीश राय : आआह अरे।।नही…बेटी …लूंगी रहने दो…।
पर पहले ही निशा ने जगदीश राय की पूरी लूँगी खोल दी और जगदीश राय एक छोटे बच्चे की तरह पूरा नंगा, तेल से लथपथ, अपने बेटी के सामने लेटा था।
कठोर लंड पूरा खड़ा सीलिंग फैन के तरफ था। निशा एक हाथ से बेशरमी से पापा के बड़े टट्टो को सहला रही थी। निशा धीरे धीरे दुसरा हाथ से जगदीश राय के पेट में तेल लगा रही थी।
लंड जोरो से हिल रहा था। छलाँगे मार रहा था।
निशा से अब रहा नहीं गया, और उसने बिना देर करते हुए अपने दाए हाथ से पापा के 9 इंच लंबे लंड को थाम लिया।
लंड इतना मोटा था की निशा के हाथो में समां नहीं रहा था।निशा ऐसा महसूस कर रही थी जैसे उसने लोहे के गरम रॉड को पकड़ लिया हो।
जगदीश राय निशा के लंड को पकडते ही ऑंखें खोल दी और आँख फाडे निशा को देखने लगा। निशा मुठ मारने के इरादे से , हाथ हिलाना शुरू किया। जगदीश राय पागल हो गया।
उसने तुरंत वह किया जो निशा को अनुमान नहीं था।
जगदीश राय ने एक झटके से निशा को दोनों हाथो से पकड़कर अपने छाती के उपर खीच लिया।
निशा: पापा…।वाट…क्या कर रहे हो…।रुको…।
जगदीश राय अब एक भेड़िया बन चूका था।
निशा अपने आप को पापा के बॉहो से छुड़ाने लगी पर जगदीश राय ने अपने हाथो से निशा के सभी बटन तोड़ दिये। निशा के दोनों बड़े चूचे शर्ट के बाहर कुद पडे।
निशा जगदीश राय के ऊपर गिरती है, उसके चूचे पापा के गरम खुरदरा छाती पे रगड खा रही थी। अब निशा गरम हो चुकी थी।।
निशा: पापा…प्लीस…।पापा…मत करो।। मैं…तो …बस ।।यु ही…।मज़ाक़…आह आह्ह।
जगदीश राय ने कुछ नहीं कहा। उसके कान बंद थे। जगदीश राय तुरंत पलटा और निशा निचे आ गयी और जगदीश राय उपर।
जगदीश राय की एक्सपीरियंस अब निशा की जवानी पर भारी पड़ रहा था।
ओर निशा समझ नहीं पा रही थी की क्या हो रहा है। जगदीश राय ने अपना सर झुका कर निशा की एक गुलाबी निप्पल लेके अपने मुह में चूस लिया।
निशा: आआआहहह…आआआह… पापाआ…आहहहह…क्याआआ।।ओह्ह्ह्हह्
जगदीश राय अब बेदरदी से निशा के निप्पलों को चबा रहा था। निशा की चूत पूरी गीली होकर इस एहसास से झडने लगी। निशा का शरीर पूरा अकड गया और चूत खुल गई और पानी छोडने लगी।
निशा: आआअह्ह्ह पापा…।यह ऊऊ…।।
और अपने हाथो से पापा के बालो में हाथ फेरते हुए उनके सर को अपने मम्मो के ऊपर दबा रही थी।
तब अनुभवी (एक्सपेरिएंस्ड) जगदीश राय बिना मौका गवाते हुये, तुरंत अपने पैरो से निशा के जाँघो को फैला दिया।
और इसके पहले निशा कुछ समझती ,गरम हुए चूत में एक ज़ोरदार झटका महसूस हुआ।
और निशा जोर से चिल्लायी।
निशा: आहःआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह।
निशा की कूँवारी चूत इतनी टाइट थी की जगदीश राय के मोटे लंड को बहुत मेहनत करनी पड़ रही थी।
जगदीश राय ने दूसरा झटका तुरंत ही मार दिया और आधा लंड निशा की मासूम कुँवारी चूत को चीरते हुए घूस गया।निशा दर्द के मारे पैरो को अपने पापा के ऊपर पटकने लगी। उसके ऑंखों से आँसू बहने लगे।
जगदीश राय ने 1 मिनट तक निशा को अपनी बाँहों में पकडे रहा और मौका मिलते ही निशा की निप्पल को चूस देता।
थोड़ी देर बाद निशा आहें लेते हुए शांत हुई। जगदीश राय ने प्यार से निशा के बालों में हाथ फेरा, और निशा के गालों को चूमते हुए कहा।
जगदीश राय: कोई बात …नहीं बेटी…बस हो ही गया…अब।
और यह कहते हुए जगदीश राय ने अपना मोटा लंड 1 इंच बाहर निकाला। बाहर निकालते वक़्त निशा की कसी चूत बाहर की तरफ खींच गई।
और जगदीश राय ने वह झटका दिया जिससे निशा की जान निकल गयी। पुरा 9 इंच लंड , केवल 3 झटको में, जगदीश राय ने निशा की कुवारी चूत में पुरा पेल दिया था।
यूं लग रहा था जैसे जगदीश राय ने अपने बेटी से अपने छेडख़ानी का बदला लिया हो। निशा का पूरा शरीर जगदीश राय के निचे तड़प उठा।वो रो रही थी चिल्ला रही थी।
निशा: आह…पापा…प्लीज…बहोत…दर्द…।।ओह्ह गॉड़
निशा की बड़ी गांड काँप रहे थे। जगदीश राय ख़ुद को निशा के ऊपर से उठाया और निशा की चूत की तरफ देखा।
जगदीश राय के 9 इंच के लंड का कोई निशान नहीं था क्युकी वह पूरा निशा की कुँवारी चूत में समाया हुआ था।
निशा की चूत 4 इंच मोटे लंड से खीचकर फ़टने के कगार में थी।
और फिर जगदीश राय ने वह देखा जिसको देखकर उसको ख़ुशी हुई। कसी हुई चूत से लंड से सरकते हुए लाल खून निकल रहा था।
जगदीश राय खुश हुआ की निशा अब तक कुँवारी थी और उसे कूँवारी चूत मारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
जगदीश राय पूरा लंड निशा की चूत में डाले कम से कम 3 मिनट वेट किया।
वह निशा को अब पूरा गरम करके चोदना चाहता था। और निशा की कान, गर्दन और चूचो को चाट और चूम रहा था निप्पलो को दांतो से धीरे धीरे काट रहा था।
कुछ देर बाद निशा को चूत का खिचाव महसूस हुआ। जगदीश राय ने पेलना शुरू किया।
पहले धीरे से, फिर जोर से। पुरे कमरे में सिर्फ निशा और जगदीश राय की चीखों और आह की आवाज़ थी।
कोई 10 मिनट चोदने के बाद, जगदीश राय ने अब पूरा ताकत से अपनी बेटी को पेलना शुरू किया।
जगदीश राय: ओह निशा…।आह आहः
और तभी जगदीश राय को सुबह से तडपा रही ओर्गास्म आने का अनुमान हुआ।
उसने लंड तुरंत बाहर निकाल लिया। निशा अचानक से लंड के बाहर खीचने से चीख पडी।
और निशा की आँखे जगदीश राय के लंड पर गयी।जगदीश राय का लंड पूरा खून से लाल था और फिर २ सेक्ण्ड में लंड ने वीर्य फेकना शुरू किया।
जगदीश राय: आअह आआअह्ह बेटी…।यह ले……।
गरम लंड का पहला माल निशा के पेट और चूचो पर जा गिरा। निशा लंड की गर्मी को देखकर चौक गयी।
जगदीश राय कम से कम 1 मिनट तक जोर जोर से झड़ता रहा। और फिर बेड पर एक ज़ख़्मी शेर की तरह गिर पडा।
निशा, चुदाई ,से लथपफ अपनी पैर खोले पड़ी रही। कुछ 5 मिनट बाद बड़ी मुश्किल से वह उठी।
और अपने चूत और जांघ पर लगे खून को देखकर चौक और ��र गयी। जगदीश राय उसे देख रहा था। दोनों कुछ बोलने के स्थिथि में नहीं थे।
निशा बेड से उठी और नंगी होकर लंगडाते हुए रूम के बाहर जाने लगी।
जगदीश राय: निशा बेटी…।।
निशा मुडी और जगदीश राय के ऑंखों में देखा। उसके ऑंखों में आँसू भरे थे।
जगदीश राय : आई ऍम सॉरी बेटी…।मुझे माफ़ कर दो…मैं अपने आपे में नहीं था…।तुम मसाज…।
निशा बिना कुछ कहे अपने रूम के तरफ चल देती है।
निशा कमरे के अंदर जाकर सीधे बाथरूम में चलि गयी। वह आघात स्थिति में कुछ सोच नहीं पा रही थी।
ओर फिर शावर के निचे खड़ी हो गयी।
पहले सम्भोग का दर्द शावर के पानी से मिटाने की कोशिश कर रही थी।
गरम पानी निशा की दर्दनाक चूत को सहलाता गया। निशा को आराम मिलता गया और दिमाग खुलता गया।
और फिर निशा रोने लगी। खूब रोने लगी।
उसे पता नहीं चल रहा था की वह क्यों रो रही है पर आँसू रुक नहीं रहे थे।
बाथरूम के सफ़ेद फर्श पर लाल खून के धब्बे दिखाई दे रहे थे।
निशा की आसुओं ने पानी की मदद से खून को धोने में सफल हो ही गयी थी। और खून के साथ निशा को अपना कुंवारापन बहता हुआ महसूस हुआ।
निशा पानी के निचे 20 मिनट तक ऐसे ही सर झुकाये खड़ी रही। फिर धीरे से शावर से बाहर आकर, शारीर टॉवल से पौछने लगी।
और अपने आप को बाथरूम के मिरर के सामने पाया।
मिरर के सामने , उसकी आँखों ने , एक लड़की नहीं बल्कि एक औरत को देख लिया था। एक बहुत ही सुन्दर औरत, जो उसकी पापा के शब्दो में किसी अप्सरा के काम नहीं है।
और फिर निशा के होटों में मुस्कान आ गयी।
निशा (मन में): देखा माँ, आज तुम्हारी निशा ने अपने ही पापा के साथ वह किया जो तुम सोच भी नहीं सकती… बचपन से तुम मुझे सुशील लड़की बनाने में लगी थी…निशा यह मत कर।। वह मत कर। पैर फैलाके मत बैठ…छोटे कपडे म��� पहन… अपनी छोटी बहनो के लिए आदर्श बन…।सब बकवास…।सब बकवास…तंग आ चुकी थी मैं तुम्हारी इस बकवास से…आज मैं पहली बार गन्दी फील कर रही हु…। और देखो मुझे सिर्फ ख़ुशी ही हो रही है…।आज मैं पहली बार आज़ाद हुई हु… तुम्हारी सड़ी हुई सोच के कैद से…।
निशा अपने आप से मिरर के सामने खड़ी रहकर यह सोचती रही।
उसे एहसास हुआ की वह अपने पापा को सिड्यूस कर रही थी, वह दरअसल , पापा के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए कर रही थी। खुद को आज़ाद पाने के लिये।।।
और फिर मुस्कुराते हुए अपने गीले बालो को सवारना शुरू किया।
फिर निशा अपने रूम में चलि गयी। वह पूरी नंगी थी। और अब उसे अपने नंगेपन पर गर्व हो रहा था।
निशा ड्रेसिंग टेबल से सामने बैठ गयी और अपने दोनों पैर ड्रेसिंग टेबल के इर्द-गिरद रख दिया।
और उसके ऑंखों के सामने उसकी चूदी हुई चूत मिरर में एक खिले हुए फूल की तरह नज़र आयी।
एक नयी नवेली दुलहन की तरह वह अपने चूत को घुरे जा रही थी।
चूत, जो पहले, छोटी हुआ करती थी, अब फुलकर खुल गई थी। और अंदर का लाल भाग भी साफ़ दिखाई दे रहा था। पहेली चुदाई के कारण चूत के होठ सुजे हुए थे और लाल हो गए थे।
निशा ने अपना एक हाथ जब चूत पर हाथ रखा तो दर्द महसूस हुआ। पर वह धीरे धीरे अपने चूत को सहलाने लगी। धीरे धीरे दर्द मीठा होता गया और शरीर में मस्ती की लहर आने लगी।
निशा के ऑखों के सामने उसके खून से लथपथ पापा का मोटा लंड का लाल सुपाडा चमकने लगा।
उसने अपने ड्रेसिंग टेबल के ड्रावर में से वेसलिन का डिब्बा उठाया और वेसिलीन लेकर अपने चूत के होटों पर मल दिया।
फिर निशा ने अपने नंगापन को टॉवल से ढक लिया।
निशा (मन में): मुझे आशा और सशा के आने से पहले पापा के रूम से चद्दर हटाना होगा। नहीं तो चादर पर खून दिखाई देगा। अब 2 बजे बजे है।4 बजे तक वो आने वाले थे। उन्हें इस बात की भनक भी नहीं पडना चाहिए।
और वह रूम के दरवाज़े के तरफ चल दी।
निशा(मन में): क्या मेरे इस तरह टॉवल में जाना ठीक होगा…।पापा के सामने…।।पर अब उनसे क्या छुपाना…।
और आज़ाद निशा जगदीश राय के रूम के तरफ चल देती है…।
अन्दर अपने कमरे में निशा के आसू भरी आँखों ने जगदीश राय के सीने को चीरकर रख दिया था।
उसे अपने आप पर शर्म आ रहा था।
वह वही नंगा पड़े बेड पर लगे निशा की चूत से निकली खून के धब्बो को घूरे जा रहा था।
जगदीश राय (मन में): यह मैंने क्या कर दिया… और क्यों किया… निशा तो बच्ची है…।सब मज़ाक़ समझ रही थी…उसने सपने में नहीं सोचा होगा की उसके पापा उसके साथ… है भगवन…।अब मैं निशा को किस मुह से फेस कर पाउँगा…।
तभी अचानक से रूम का दरवाज़ा खुला जो उसके सोच को काट दिया।
जगदीश राय अपने ऊपर धोती चढाने को हाथ बढाया पर धोती बेड के दुसरे कोने में पड़ी थी। उसने सोचा नहीं था की कोई उसके कमरे में आएगा अब।
तब उनकी नज़र निशा पर पड़ी , जो धीरे से कॅमरे में प्रवेश किया।
जगदीश राय तुरंत अपने दोनों हाथो से अपने लंड को छुपाये और बेड पर बेठा रहा।
निशा टॉवल में लिपटी हुई थी और जगदीश राय को घूर रही थी।
और जगदीश राय निशा की निरंतर घूरति निगाहों का अब सहन नहीं हो रहा था। अपराध बोध से वह सर झुकाये बैठा था।
निशा (कठोर रूप से): मुझे बेडशीट चेंज करनी है…।आशा-सशा के आने से पहले…
जगदीश राय (सर झुकाए): हाँ…ठीक है… मैं कर दूंग।।
निशा: नहीं…। मुझे करना है।
जगदीश राय: ठीक है… मैं धोती पहन लू…।
निशा (कठोर आवाज़ से): नहीं…रुकिए…।आपकी मालिश कहाँ पूरी हुई है…मालिश के बाद मैं चेंज कर दूंग़ी।
जगदीश राय , मालिश का नाम सुने चौक गया और कई सवालों के साथ निशा के चेहरे की तरफ देखा।
निशा (मुँह फेरती हुए): चलिए…लेट जाईये…
जगदीश राय: नहीं बेटी…नहीं… मुझे इस तरह शरमिंदा मत करो… मैं तुम्हारा कुसवार हु…मेरी नियत में खोट थी।।।मैंने तुम्हारे साथ वह किया जो एक बेटी बाप को कभी माफ़ नहीं कर सकती… इसलिये मैं माफ़ी मांगने के भी लायक नहीं हूँ…।प्लीज…।चलि जाओ…और मुझे आज से पापा बुलाने की ज़रुरत भी नहीं…
निशा: मैंने कब कहा की आपकी नियत ठीक नहीं थी…बस तरीका सही नहीं था…
जगदीश राय निशा की यह बात सुनकर बौखला गया और गुमराह बच्चे की तरह निशा के चेहरे को घूरता गया।
जगदीश राय: तो क्या…तुम्हे…।यह सब…।
निशा: जी नहीं…मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा… इससे हैवानियत कहते है…।फॉर योर काइंड इन्फोर्मटिशन
निशा(सर झुकाए): मैं तो समझी थी की आप मेरे दोस्त है… और जो करेंगे प्यार से करेंगे…।
निशा: पर आपने ।। वह किया… जो।।
जगदीश राय थोड़ी देर यह सुनकर चुप रहा ।
जगदीश राय: मैं तुम्हारा दोस्त हु… और इस दोस्त को तुम जो सजा देना चाहो मुझे मंज़ूर है।।
निशा (मुस्कुराते हुए) : सजा तो मैं दूंगी, पर वक़्त आने पर।
और निशा टॉवल पहनी जगदीश राय के बेड पर बैठ गयी।
जगदीश राय अब तक पूरा नंगा अपने हाथों से लंड और टट्टो को छुपाये बैठा था।
निशा: चलिये… लेट जाईये…।
जगदीश राय ने , बड़ी कोशिश करके थोड़ा सा मुस्कुराये और लेट गया।
निशा: और आप क्या यह हाथ पकडे लेटे है…ऐसा क्या खज़ाना छुपा रहे है जो मुझे पता ही नहीं… चलिये हाथ दोनों सर के पीछे…समझे…।हाँ ऐसे…।
जगदीश राय अब तक पूरा नंगा अपने हाथो से लंड और टट्टो को छुपाये बैठा था।
निशा: चलिये… लेट जाईये…।
जगदीश राय , बड़ी कोशिश करके थोड़ा सा मुस्कुराये और लेट गया।
निशा: और आप क्या यह हाथ पकड़े लेटे है…ऐसा क्या खज़ाना छुपा रहे है जो मुझे पता ही नहीं… चलिये हाथ दोनों सर के पीछे…समझे…।हाँ ऐसे…।
जगदीश राय निशा की ऑंखों को घूरते , हाथ पीछे ले गया। और अर्ध-खड़ा लंड निशा की ऑंखों के सामने खुला पड़ा था।
निशा ने मुस्कुराते हुए लंड को देखा।
लंड पर अभी खून लगा हुआ था। और लंड जगदीश राइ के पेट पर गिरने से खून पेट पर भी लग गया।
निशा: ओह ओह आप ने अभी तक साफ़ नहीं किया…यह देखो…सभी जगह लाली फैला रहे हो…रुको साफ़ करती हूँ।।।
और निशा ने लंड और पेट को साफ़ करने के लिए ढूँढ़ते हुए इर्द-गिर्द नज़र घुमाया।
निशा: यहाँ तो तौलिया नहीं है…
जगदीश राय : बेटा …मैं बाथरूम जाकर साफ़ करता हु…रुको
जगदीश राय उठने लगा।
निशा: कोई ज़रुरत नहीं…मेरे पास जो है तौलिया…।
और यह कहते हुए निशा ने अपने हाथ को अपने छाती पर ले जाकर , चूचो के ऊपर लगी टॉवल की गाठ को खोल दिया।
जगदीश राय आखे फाडे देखता रहा। और टॉवल के खुलते ही निशा के दो बड़े गोलदार चूचे आज़ाद हो गये।
निशा ने बड़े नज़ाक़त से सेक्सी स्टाइल में टॉवल को खीच लिया और गांड उठा कर टॉवल को अपने शरीर से अलग किया।
अब निशा अपने पापा के सामने पूरी नंगी , बेड के किनारे पर बेठी थी। और उसके पापा पुरे नंगे अपने फड़फडाते लंड के साथ उसके सामने लेटे हुये थे।
जगदीश राय निशा की चूचियों को बारीक़ी से निहार रहा था। गोरी भरी हुई चूचो के बीचो-बीच पर गुलाबी निप्पल।
निशा ने अपने चूत को जांघो से ढक रखा था।
निशा: हाँ…अब इसे साफ़ कर देती हु…क्या घूर रहे हो पापा…खा जाओगे क्या।।हे ह
जगदीश राय: नहीं…बेटी… मैं तोह…।।।
निशा: हाँ…खा भी सकते हो…भेड़िये का रूप तो आपने दिखा ही दिया…
जगदीश राय : बेटी …मैं तो बस तुम्हारी सुंदरता निहार रहा था।।
निशा को यह सुनकर अच्छा लगा।
निशा: अच्छा…क्या सुन्दर लगा…बताईये…
जगदीश राय : बस यह ही सब…
निशा: खुलकर बताइए…
और साथ ही निशा ने टॉवल जगदीश राय के लंड पर डाल दिया और लंड को टॉवल से दबोच लिया।
जगदीश राय के मुह से आह निकल गयी।
जगदीश राय : आह…ओह…तुम्हारी चूचे बेटी…मस्त है।।।
निशा :अच्छा…क्या मस्त लगा इसमें…सभी के ऐसे ही होते है…
कब निशा ने टॉवल हटा दिया। जगदीश राय का लंड अब पुरे आकार में आ रहा था।
निशा ने झटके से अपनी दायी हाथ से लंड को हाथो में दबौच लिया।
जगदीश राय निशा के हाथ के स्पर्श से पूरा गरम हो चूका था।
निशा ने अपने मुठी के अंदर लंड को बढते हुए महसूस कर रही थी।
निशा ने पूरी ताकत से लंड के चमडी को पूरा निचे तक सरका दिया।
जगदीश राय ज़ोर के इस झटके से उछल पडा।
निशा (बेदर्दी से हस्ते हुए): बताइये…क्या मस्त लगा…
जगदीश राय : आह…आहह…।।तुम्हरी निप्प्प्पल…।कितने गुलाबी…तुम्हारी…।चुचे का आकार…सभी…
निशा: हम्म्म…अच्छा…तो ...इसलिये यह हज़रत फने खान बने हुए है…और देखो कितना खून लगा हुआ…है
और यह कहते हुए निशा ने खुरदरे टॉवल से लंड के कोमल टोपे पर रगड़ना शुरू किया।
जगदीश राय: अरे रुक जाओ बेटी…ऐसे नहीं… करते…।रुक जाओ…
निशा (हँसते हुए): यही आपकी सजा है…।हाथ पीछे ले जाकर लेटे रहो…जब तक साफ़ नहीं कर देती आपको सहना पड़ेगा…
और निशा लंड के कोमल टोपे पर टॉवल रगड़ती रही।
जगदीश राय मछली की तरह उछल रहा था। और निशा 9 इंच का लंड अपने मुलायम हाथ से जकड़ रखी थी।
वह बड़े प्यार से गुनगुनाती हुई लंड को 3 मिनट तक साफ़ किया।
निशा: लो।।हो गया आपका हथियार साफ़…
जगदीश राय ने लंड के तरफ देखा। लुंड के टोपा पूरा लाल हो चूका था। जगदीश राय तेज़ी से सास ले रहा था।।
निशा: क्यों…कैसी लगी सजा…यह सिर्फ पार्ट 1 था…
जगदीश राय : आहह…तुमने तो मेरी जान ही निकाल दी…बेटी
निशा: चलिए…अब मालिश शुरू…
निशा ने तेल लिया और जगदीश राय के पेट और हाथो में मलने लगी। नंगी निशा लगभग अपने पापा के ऊपर चढ़कर मसाज कर रही थी।
जगदीश राय का शरीर का तेल निशा की चूचियों और जाँघो में लग रहा था। जगदीश राय मदहोश होकर सब सह रहा था।
निशा: अब फिर से पैरो की बारी…।
और निशा ने वह किया जो जगदीश राय को जन्नत का सैर करवा दिया।
निशा: पापा…आपके पैर इतने बड़े है मैं उनतक यहाँ से पहुच नहीं पाती। क्या मैं आपके ऊपर बैठ सकती हु?
जगदीश राय : ऊपर…मतलब।।?
निशा: मतलब…ऐसे…।
निशा ने उल्टी होकर अपने पापा के पेट की इर्द-गिर्द घुटनो के बल बैठ गयी। और फिर धीरे से पापा के तेल से लथपथ पेट पर अपनी गरम चूत को चिपका दिया।
जगदीश राय की 20 साल की बेटी अब नंगी होकर उनके ऊपर बैठी थी। मुलायम चूत और पेट के मिलन से जगदीश राय का लंड फडफडाने लगा।
निशा: ठीक है…पापा… कहीं मैं बहुत हैवी तो नहीं हु न…
जगदीश राय : नहीं बेटी…।बिल्कुल नहीं…।बहुत अछा लग रहा है…
और जगदीश राय ने पीछे से निशा के ऑवर-गिलास शेप को निहारते हुये, पीठ से हाथ सरकाकर कमर तक ले गया।
और दोनों हाथो से कमर को दबोच लिया।
निशा अब तेल लेकर पैरो का मसाज करने लगी।
जब भी निशा जगदीश राय के घुटनो तक हाथ चलाती, अपनी गांड उठाति। और अपने पापा को अपनी गांड के छेद की झलक दिखाती।
जगदीश राय अब निशा की दोनों गांड के गालो पर अपना हाथ फेरना शुरू कर दिया था।
निशा जानती थी की उसके पापा को बहुत खूबसूरत नज़ारा पेश हुआ है। और वह उसकी चूत भी क़रीब से देखना चाहते है। और वे अपने लंड का मालिश भी करना चाहते है।
पर वह यह जान बुझकर टाल रही थी…अपने पापा के साथ खेल रही थी।
निशा: पापा…मज़ा आ रहा है…कही सो तो नहीं गए…हे हे।
जगदीश राय : नही…।बेटी…ऐसे ही करते रहो…चाहो तो थोड़ा ऊपर भी मसाज कर सकती हो…
निशा: पहले नीचे तो कर लू…बस हो ही गया।।थोड़ा सबर तो कीजिये पापा…
निशा: वैसे।।लगता है आप भी मेरा मसाज कर रहे है…।
जगदीश राय : क्या करू बेटी…तुम इतनी सुन्दर हो की।।रहा नहीं जा रहा… अगर तुम थोड़ा ऊपर कर दो तो मजा आ जाए।।।
निशा: अच्छा…कहाँ…यहाँ…?
और यह कहते निशा ने हाथो से दोनों टट्टो को हाथ से दबोच लिया।
जगदीश राय : आआअह…।हाँ…वही।
निशा: ठीक है…।पर इसके लिए मुझे थोड़ा पीछे बैठना होगा…
और यह कहते हुए निशा अपने बड़ी गांड जगदीश राय के छाती में समा देति है और आगे के तरफ झूक जाती है।।
निशा: यह ठीक है पापा…आप कम्फर्टेबल तो है न।।।
जगदीश राय ने कुछ जवाब नहीं दिया। उसके चेहरे के 3 इंच के दूरि पर अपनी बेटी निशा की सुन्दर गुलाबी चूत पूरी फ़ैली हुई थी।
वह निशा की चूत को ताकता रहा। सुजी हुई चूत के अंदर समायी गुलाबी होठ उसे पुकार रहे थे। और चूत के उपरी भाग पर क्लाइटोरिस देखकर चौक गया। जगदीश राय ने आज तक इतनी बड़ी क्लाइटोरिस नहीं देखा था।
चूत की मादक गंध से जगदीश राय मदहोष हो गया।
और उसने बिना सोचे सीधे अपने होठ से निशा के चूत को दबोच लिया।
निशा: आह पापा…धीरे…ओह…गॉड…पापा…यह…। बहुत…अच्छा…।फिल…
निशा अपने हाथो से पापा के टट्टो को धीरे धीरे गोल-गोल सहला रही थी।
जगदीश राय अब निशा के कमर को पकड़ कर थोड़ा ऊपर उठा दिया , और अपने होठ से निशा की क्लाइटोरिस को दबोच लिया।
जगदीश राय कभी क्लाइटोरिस को चबाता, तो कभी अपने जीभ से निशा की पूरी चूत चाट लेता।
निशा अपने पापा के छाती पर बैठ, गांड को गोल-गोल ऊपर-नीचे उठाकर अपनी चूत को अपने पापा से चटवा रही थी।
जगदीश राय: बेटी…कैसा लग रहा है…
निशा: सवाल मत करो पापा…करते रहो…।बहुत अच्छा…।
फिर जगदीश राय ने दोनों हाथो से निशा के चूत को फैलाया। अभी चूदी हुई चूत में निशा को दर्द हुआ और उसने अपने होटों को चबाकर दर्द को सहा।
और जगदीश राय ने अपने जीभ को निशा के चूत में सरका दिया।
निशा: आअह…।पापाआ…।आआआआह।
निशा सिसकी मारते हुए आगे गिर पडी। और उसके होठ पापा के 9 इंच के लंड से लग गये।
निशा ने टट्टो को छोड लंड को दबोच लिया और और लंड को क़रीब से निहारती रही।
और एक भूखी शेरनी की तरह लंड को अपने मुह में घूसा लिया। ४ इंच मोटाई का लंड वह अपने मुह में घूसाने की कोशिश कर रही थी। कभी वह चाटती कभी चूसती। कभी हाथों से मुठ मारती।
उसे अपने पापा के लंड से प्यार हो गया था। और वह एक छोटे बच्चे की तरह उसके साथ खेले जा रही थी।
यहाँ जगदीश राय निशा की चूत को अपने जीभ से चोद रहा था और वहां निशा पापा के लंड को लोलीपोप की तरह चूस रही थी।
दोनो बड़े ही प्यार से बिना कोई जल्दबाज़ी किये आराम से एक दूसरे को चाट और चूस रहे थे।
करीब 5 मिनट बाद , निशा को अपने चूत में अकड महसूस हुई। वह अपने पापा के मुह में झड़ना नहीं चाहती थी।
जगदीश राय , अनुभवी होने के कारण समझ गया की निशा झडने वाली है।
उसने तुरंत निशा की कमर और गांड को अपने हाथों से दबोच लिया। और अपने उंगलिओं से निशा की चूत को फैलाता-सहलाता रहा। और निशा की क्लाइटोरिस को होटों में दबोच कर बेदरदी से चूसता रहा और खीचता रहा।
निशा अब लंड चूसना बंद कर अपने हाथो से मुठ मारना शुरू किया।
निशा अपने क्लाइटोरिस पर हुए इस हमले से उछल पडी। वह अपने पापा के चंगूल से निकलना चाहती थी पर पापा के पकड़ से छुड़ा नहीं पायी।
और कुछ ही क्षणो में उसका पूरा शरीर अकड गया। और वह कांपते हुए तेज़ी से झड गयी
जगदीश राय ने जान-बुझ-कर चूत के होठ ऊँगली से खुले रखे थे। क्लाइटोरिस चूसते हुए उसके आखों के सामने चूत के होठ और क्लाइटोरिस फ़ैल गया और चूत के अंदर से तेज़ी के पानी बहने लगा।
जगदीश राय ने ���ुरंत क्लाइटोरिस को छोडते हुए चूत के द्वार पर अपना मुह चिपका दिया और पानी चाटने लगा।
निशा कुछ एक मिनट तक अपने पापा के ऊपर उलटी लेटे झडती रही। और वही ढेर हो गयी।
निशा के झडने के बाद भी जगदीश राय ने चूत चाटना बंद नहीं किया। वह निशा की चूत के रस को खोना नहीं चाहता था।
कुछ देर बाद जगदीश राय ने निशा की गांड को उठाया और निशा को देखा।
निशा वही जगदीश राय के पेट के ऊपर तेज़ सासे लिए सो रही थी। दाए हाथ में लंड था और बाए हाथ टट्टो में समाया हुआ था। लंड निशा के गालो पर सटा हुआ था।
अपने पापा का लंड गालो पर लिए सोये हुए निशा का सुन्दर चेहरा देखकर, जगदीश राय को अपनी बेटी पर बहुत प्यार आया।
जगदीश राय: निशा…निशा बेटी…तुम ठीक…हो…निशा।।
निशा ने धीरे से अपनी ऑंखें खोली और लंड के पीछे से उसके होठ मुस्कराए।
जगदीश राय: आ जाओ बेटी …आ जाओ ।।अपने पापा की बाहो मैं…
निशा धीरे से उठी और जगदीश राय ने अपनी बेटी की नंगी कापते शरीर को अपने विशाल बाहों मैं लेकर सम्भाला।
कोई 5 मिनट तक निशा इसी तरह अपने पापा की बाहों में नंगी पड़ी रही।
फिर निशा धीरे से उठी और अपने पापा के ऑंखों में देखा।
दोनो एक दूसरे को घूरते रहे।
और निशा ने पापा के कठोर लंड को अपने हाथों में लेकर हिलाना शुरू किया।
निशा लंड के हिलने से जगदीश राय के चेहरे का हाव भाव पढ रही थी।
जगदीश राय से अब रहा नहीं जा रहा था। पर वह पहली बार वाली गलती दोहरना नहीं चाहता था।
जगदीश राय: निशा बेटी।।अब मुझसे रहा नहीं जा रहा…तुम निचे लेट जाओ…मैं।।
निशा: नहीं…आप लेटे रहिये…।
और निशा जगदीश राय के ऊपर लेट गयी। लंड चूत के द्वार को दस्तक दे रहा था। पर निशा लंड अंदर नहीं सरका रही थी।
जगदीश राय मचल रहा था। निशा पुरे कण्ट्रोल में थी।
फिर निशा ने अपना बाया हाथ निचे ले जाकर लंड के जड़ (बेस) को पकड़ा और धीरे धीरे चूत को लंड पर उतारने लगी।
निशा: आआअह…आह।
जगदीश राय: ओह्ह्ह्हह्ह्ह्।
हर एक मोड़ पर निशा की चूत दर्द से कांप उठती। पर वह यह दर्द सहना चाहती थी। अपने पापा के लिये। अपने लिये।
जगदीश राय समझ गया की निशा की चूत पहली चुदाई से सूजी हुई है और दर्द दे रही है।
जगदीश राय: रहने दे… बेटी…।इतना काफी है… और लेने की ज़रुरत नहीं…
लेकिन निशा ने न में सर हिलाया और फिर ख़ुद को लंड पर ढकेलने लगी।
करीब 5 इंच चूत में समा जाने के बाद, निशा रुक गयी। जगदीश राय समझ गया की उसका लंड जड़(बेस) पर ज्यादा मोटा है।
निशा धीरे धीरे लंड पर ऊपर निचे होकर खुद को चुदवाने ��गी। जगदीश राय अपने बेटी के चूचो और चेहरे को निहारता उसका साथ दे रहा था।
जगदीश राय जानता था की निशा लंड पूरा लेना चाहती है पर घबरा रही है।
पर यह रास्ता निशा को खुद पूरा करना था।
जगदीश राय: कोशिश करो बेटी…
निशा: आह…।हम्म्म्म…।आआआह आआह आआह…ओह्ह्ह्हह…।
फिर निशा धीरे धीरे अपने पापा का पूरा लंड चूत में समां लिया। चूत 4 इंच के लंड की चौडाई से फैल गई थी।
निशा अपना दायाँ हाथ चूत पर ले गयी एंड जाना की लंड पूरा घूस चूका है।
फिर निशा मुस्करायी। जगदीश राय भी मुस्कराया।
कुछ समय बाद निशा दर्द भूल कर जोर जोर से लंड पर उछलने कूदने लगी। उसके बड़े मम्में उछल रहे थे।
उसने यह सब पैतरे इंटरनेट पर ब्लू-फिल्म्स में देख रखी थी।
जगदीश राय झाडने के कगार पर था। निशा जान गई।
निशा: पापा…अंदर ही छोड दीजिये…
निशा अपने आप को पूरा अपने पापा पर समर्पण करना चाहती थी।
निशा जोर जोर से उचलने लगी। पर जगदीश राय ने अंत वक़्त पर लंड बाहर खीच लिया।
लंड तेज़ी से फवारा छोड़ना शुरू किया। और निशा को अपनी चूत और गांड के छेद पर गरम वीर्य का अनुभव हुआ।
निशा ने सवालिए नज़रो से पापा के तरफ देखा।
जगदीश राय (हफ्ते हुए): नहीं बेटी…।
निशा अपने पापा के ऊपर लेट गयी। लंड अभी भी उगल-उगलकर झड रहा था।
जगदीश राय ने निशा को बॉहो मैं कैद कर लिया।
जगदीश राय उससे बीच बीच में , कभी गालो तो कभी माथे पर किस देता रहा। हाथो से उसकी मुलायम गांड और चूचो को दबाता रहा। और निशा बीच में हाथ से लंड और टट्टो को अपने हाथो से मसाज कर देती।
अब दोनों बाप-बेटी नहीं रहे। दो प्रेमी बन चुके थे।
कम से काम आधा घण्टा दोनों ऐसे ही बिस्तर पर एक दूसरे से लीपटे पड़े रहे। दोनों खामोश थे। कमरे में एक अजीब सी ख़ामोशी थी।
जदगीश राय के मन में एक अजीब सा उत्साह थी। और निशा के मन में सुकून।
थोड़ी देर बाद निशा उठी। उठते वक़्त निशा के बाल उसके पापा के जांघो के निचे फस गया था।
निशा हँस पडी।
निशा: हे।।हे …उठिये पापा…आशा-सशा के आने से पहले…
जगदीश राय: और कुछ देर लेटी रहो बेटी…।ऐसे ही…
और जगदीश राय , किसी जवान प्रेमी की तरह , निशा को अपने बांहो में लेना चाहा। और इस कोशिश में निशा के भारी चुचो को छुकर मसल दिया।
निशा: न जी न…मैं तो चली…चलिए…आप भी…
निशा किसी नयी नवेली दुल्हन के जैसे बोल पडी।
जगदीश राय: अच्छा बाबा…।पर एक बात पुछु बेटी…।कैसा लग रहा है तुम्हे…।
निशा: हल्का…बहुत हल्का…वैरी लाइट…जैसे मन से कोई बोझ निकल गया हो…
जगदीश राय:अच्छा…?
निशा (अपनी बाहें फैलाये):…और मैं इस हलके पन में तैरते रहना चाहती हु…सदा आप की बाहों में।।
यह कहते जगदीश राय हँस पड़ा और निशा भी हँस पडी।
और दोनों एक दूसरे के बाँहों में समां गये।
फिर निशा उठी और कमरे में पड़े कपडे और टॉवल उठानी लगी। वह नंगी थी।
और जगदीश राय उसके मोटी गांड और भारी चूचो को देख रहा था।
और निशा बीच-बीच में ताक़ते पापा को देखकर मुस्कुरा रही थी।
अचानक से बेल बजी। दोनों चौक गये। निशा तुरंत कपड़े और बिस्तर पर खून-लगी-बेडशीट लेकर रूम के तरफ चल दी।
जगदीश राय ने लूँगी पहनकर दरवाज़ा खोला। सामने आशा को देखकर मन ही मन उदास हो गया।
आशा: अरे पापा… यह क्या…कहीं रेसलिंग करने चले हो क्या… इतना तेल लगा हुआ है…
जगदीश राय: अरे…यह…यह…तो बस…मैं…यु ही…नहाने जा रहा था…
तभी निशा सीडियों से उतार आयी।
निशा (मैक्सी पहने): पापा को डॉक्टर ने कहाँ है तेल लगाकर नहाने के लिए इसलिए…
आशा: अच्छा…तो क्या डॉक्टर ने पेशेंट के बेटी को भी बोला है साथ में तेल लगाने को?… तुम भी तो दीदी तेल लगायी हुई हो…चेहरे पे…हाथ पे…
निशा (झेंपते हुए): वह…तो।।मैं…
जगदीश राय:वह तो मुझे देख्कर।।मेरे साथ…इसने भी लगा दिया।।मेडिकल आयल है न…इसलिये।।
आशा: अच्छा।।स्ट्रँग।।दोनो मिलकर तेल मलो शाम के 4 बजे …मैं तो चली अपनी रूम…
निशा (मन में): साली का दिमाग…कुछ ज्यादा ही फास्ट चलता है…इससे छुपकर रहना एक चैलेंज होगा…
फिर थोड़े देर में सशा भी आ गयी। निशा अपने किचन के कामो में लग गायी।
जगदीश राय जब जब मौका मिलता किचन के सामने से गुज़रता। और निशा को नज़र मारता।
निशा जान-बुझकर कोई रिस्पांस नहीं देती। उसे पता था की पापा उसके लिए बैचैन है।
खाने के टेबल पर भी निशा और जगदीश राय एक दूसरे को देखते और मुस्कराते।
जगदीश राय कभी कभी उसके हाथो और जाँघो को हल्के से छु देता , पर निशा उससे दूर रहती।
रात को सोने से पहले , निशा पापा को दूध देने आयी।
जगदीश राय: बेटी…आशा-साशा 11 बजे तक सो ही जाते है…तुम चुपके से कमरे में आ जाना।।ठीक है…
निशा (हँसती हुई): नहीं पापा…मैं नहीं आऊँगी…आप आराम कीजिये…
जगदीश राय: पर…क्यों…बेटी…क��छ नहीं होगा…डरो मत…।
निशा (फिर हँस्ते हुए): अब आप एक बच्चे की तरह सो जाईये…चलिये।।
जगदीश राय: पर…
निशा(दरवाज़ा बंद करते हुए): गुड नाईट…स्वीट ड्रीम्स।।हे हे…
जगदीश राय रात भर करवटें बदलता रहा।
दिन में हुई घटनाओ, निशा की गिली चूत, उसपर लगी लाल बड़ी क्लिटोरिस, चूचे, गुलाबी निप्पल , मुलायम चमड़ी उसे सोने नहीं दे रहे थे।
वह खुद निशा के रूम में जाना चाहता था। कोई 4 बजे उसकी आँख लगी।
सूबह 8 बजे जगदीश राय की नींद बर्तनो की आवाज़ से खुली।
जगदीश राय मुह हाथ धोकर हॉल में पहूंच गया। निशा एक लूज मैक्सि, जो पैरो तक ढकी हुई थी, पहनी नास्ता बना रही थी।
निशा ने अपने गीले बाल एक सफ़ेद टॉवल में बांध रखे थे। और पानी की कुछ बूँदे बालों से गिरकर निशा के गर्दन पर फिसल रहा था।
जगदीश राय निशा का यह रूप देखकर बहुत उत्तेजित हो गया था।
निशा: अरे पापा।।आ गए…रुको मैं अभी चाय लेकर आती हूँ।
जगदीश राय: ओह्ह्ह्हह
जगदीश राय , रूठे हुए अंदाज़ में निशा की तरफ देखा।
निशा (मुस्कुराते हुए): क्या हुआ पापा…नाराज़ हो…मुझपर…
जगदीश राय: और नहीं तो क्या…।कल सारी रात मुझे नींद नहीं आई।
निशा (मुस्कुराते हुए): क्यूँउउ?
जगदीश राय: अब बनो मत…तुम जानती हो…क्यो?
निशा (मुस्कुराते हुए): अच्छा जी…तो सारी रात किया क्या …हे हे…
जगदीश राय (बच्चे की तरह रूठे हुए): और क्या …तुम्हारा हर अंग मेरे आखौं के सामने झलक रहा था।।नीन्द कैसे आती…
निशा (चिढ़ाते हुए):ओह ओह …सो सैड।।।
जगदीश राय: वह छोडो।।नाशता तैयार है या नहीं…
निशा: आपके लिए तो दो दो नाश्ता तैयार है…
जगदीश राय: दो दो नाश्ता है…
निशा: एक जो कढाई में उबल रही है… और दूसरे जो यहाँ नीचे उबली हुई है।।
यह कहकर निशा ने अपनी मैक्सी घूटनों तक उठा ली।
जगदीश राय , कुछ पल तक मतलब नहीं सम्झा। और युही निशा को ताकता रहा।
निशा: सोच लो…यह ऑफर की लिमिटिड वैलिडिटी है।। एक बार आशा-सशा उठ गई तो आज सैटरडे तो कुछ नहीं मिलेंगा।
जगदीश राय की हालत प्यासे-को-कुवाँ-मिलने लायक हो गयी।
उसने बिना एक सेक्ण्ड गवाये निशा के सामने झूक गया और मैक्सी में घूस गया।
निशा अपने पापा का यह उतावलापन देखकर हँस पडी।
निशा: ओह ओह …धीरे धीरे पापा।।मैं यही हु…हे ह
और फिर निशा ने मैक्सी को गिरा दिया और जगदीश राय अंदर समां गया।
जगदीश राय मैक्सी के अंदर घूसते ही , थोड़ी बहुत रौशनी से जाना की निशा ने पेंटी नहीं पहनी है।
चूत से बहुत ही मादक सुगंध आ रहा था जो निशा की चूत की गंध और कोई मॉइस्चराइजिंग लोशन का वीर्य था।
जगदीश राय एक भूखे कुते की तरह निशा की गुलाबी चूत पर टूट पडा।
पर निशा के पैरो के बीच ज्यादा जगह न होने के कारण , जगदीश राय , कोशिश करने के बावजूद, सिर्फ निशा की जाँघे ही चाट पा रहा था।
निशा: रुक जाओ पापा…जो आपको चाहिये वह देती हु…
और फिर निशा , अपने दोनों पैर फैलायी और अपने हाथो को किचन प्लेटफार्म पर सहारा देते हुए, अपने दोनों पैरो को घूटने से मोड़ दिया।
निशा: अब ठीक है पापा।
जवाब मैं जगदीश राय ने अपने कापते होटों से निशा की खुली हुई गिली चूत को दबोच लिया।
निशा: ओह…।आआह्ह्ह्ह…पापा…धीरे…।
जगदीश राय निशा की चूत को पागलो की तरह खा रहा था, चाट रहा था। क्लाइटोरस को होटों से खीच खीच कर उसने लाल कर दिया था, सुजा दिया था।
वहाँ चाय उबल रहा था और यहाँ निशा अपने पापा से चूत चुस्वाकर झडने के कगार पर थी।
अब जगदीश राय ने अपनी जीभ को निशा के चूत के अंदर सरका दिया, निशा से रहा नहीं गया।
उसके लिए अब अपने पैरो को फैलाकर और मोड़कर खड़ा रहना , मुश्किल हो चला था। पैर कांप रहे थे।
वही जगदीश राय रुक्ने का नाम नहीं ले रहा था।
निशा: पापा मैं अब रोक नहीं सकती…।
यह सुनते ही जगदीश राय और तेज़ी से चूत के अंदर होठ घुसाकर चूत चाटना शुरू किया।
निशा: पापपपपपआ…।।यह गूऊऊऊड…।।आआअह्हह्ह्ह्हह्हआआह्ह्ह।
निशा जोर से झडी। निशा के चूत से इतना पानी निकल गया की जगदीश राय का मुह पूरा भर गया और बाकि जगदीश राय के शर्ट पर गिर गया।
निशा वही किचन के फ्लोर पर गिर पडी। जगदीश राय मैक्सी में से बाहर आ गया।
निशा के पैर थर-थर कांप रहे थे। और मैक्सी ऊपर चढ़ने के कारण चूत पूरी खुली पड़ी थी। जगदीश राय ने देखा कैसे चूत के होठ निशा के हर सास के साथ अंदर बाहर हो रही है और थोड़ा पानी उगल रही है।
जगदीश राय ने तुरंत अपना लंड बाहर निकाल लिया और निशा की चूत के पास ले गया।
निशा: पापा…अभी।।नही…प्लीज नही…मैं और सह नहीं सकती…ओह गॉड…आह।
जगदीश राय के चेहरे पर निराशा झलक उठी। निशा यह समझ गयी।
निशा (तेज़ सास लेते हुए): आज रात…मैं …पक्का ।।आउंगी…प्रॉमिस…
जगदीश राय मुस्कराया।
जगदीश राय: ठीक है।।तुम प्रॉमिस दे रही हो तो…मैं जानता हु अपने पापा से किया हुआ वादा नहीं तोडोगी।।
यह कहते हुए जगदीश राय ने निशा की चूत में 2 उँगलियाँ घूसा दी और उँगलियों को मोड़कर ढेर सारा पानी बाहर खीच लिया।
निशा: आअह्हह्ह्ह्ह।
जगदीश राय उँगलियों को चाटते हुए हॉल की तरफ चल दिया।
जगदीश राय: बेटी चाय लेके आ जाना।
फिर सारा दिन गुज़र गया। निशा और जगदीश राय एक दूसरे को जब चाहे घूरते रहते और मौका मिलते ही निशा पापा की लुंगी के ऊपर से लंड को दबा लेती।
रात को जगदीश राय तैयार हुए बेठा था। ठीक 12 बजे निशा उनके रूम पर घूस गयी।
निशा पूरी नंगी थी।
जगदीश राय: अरे वाह…आज मेरे कमरे में अप्सरा पधार रही है…
निशा: हाँ…आज आप मेरे इंद्रा भगवन है।।हे हे।।
जगदीश राय बिना कोई समय गवाये निशा पर टूट पड़ा।
कम से काम 4 बजे तक निशा को हर पोज़ में चोदता रहा।
निशा पापा की इस ताकत से वाक़िफ नहीं थी। वह 4 घंटे में कम से काम 6 बार झड चुकी थी।
निशा: पापा… प्लीज रुक जाओ…अब मैं और नहीं…
जगदीश राय: क्यों बेटी… क्या मजा नहीं आ रहा…।
निशा: मजा तो बहुत…आ रहा है… पर चूत दर्द कर रहा है… देखो तो कितना सुजा दिया है…।आपने।
जगदीश राय (तेज़ धक्का मारते हुए): अरे बेटी…यह तो आम बात है…नयी नयी चूदी हुई चूत थोड़ा सूज जाती है…खुद ब खुद संभल जाएगी…
निशा: नहीं पापा…और नहीं…।मैं थक गयी हूँ।।।
जगदीश राय: पर…मेरा क्या होगा।।क्या तुम मुझे ऐसे ही…
निशा: क्या मैं मेरे प्यारे पापा को तड़पती छोड सकती हु…।
निशा तुरंत 69 पोजीशन में कुद गयी। और अपने पापा का विशाल लंड मुह में ले के चूसना शुरु किया। लंड पर लगे अपने चूत का रस भी उसे भा गया था।
निशा अपने जीभ और होंठ से पापा के लंड को दबा दबा कर ज़ोर लगा कर चूस रही थी। जगदीश राय को ऐसे चूसाई ज़िन्दगी में नहीं मिली थी।
जगदीश राय: निशा बेटी…मैं झडने वाला हूँ…।
और फीर जगदीश राय तेज़ी से झड़ना शुरू किया।
निशा ने तुरंत ही अपना मुह हटा लिया और सारा वीर्य उसने हाथों से तेज़ी से हिलाकर निकल दिया।
जगदीश राय (तेज़ सासो से) : मजा आ गया बेटी…।बहुत…।
निशा:ह्म्म्मम।
जगदीश राय: पर…।तुमने…।
निशा: क्या पापा…
जगदीश राय: तुमने मुह क्यों हटा लिया…।क्या तुम्हे वो लेना पसंद नहीं…
निशा: क्या पापा…
जगदीश राय: वीर्य बेटी…।जो तुम आज कल के लोग कम बोलते है…
निशा: नहीं पापा…मुझे…मुँह में लेना पसंद नहीं…पर आपको पसंद है तो मैं ज़रूर ट्राई करूंगी…एक दिन…।
जगदीश राय: कोई बात नहीं बेटी��। मैं तो तुम्हारे हुस्न से ही खुश हूँ।
और यह कहते हुए जगदीश राय ने एक ज़ोरदार चुमबन निशा की चूत पर लगा दिया।
निशा : आअह्ह्ह…पापा।
पहिर निशा उठ कर नंगी अपने रूम की ओर चल दी…।
रेज़र ठीक से चल नहीं रहा था। नया होने के बावजुद।
निशा (मन में): उफ़… कहाँ मैं फस गयी इस रेजर के साथ…।अब चूत साफ़ कैसे करूंगी…।पापा को वादा किया था उनके बर्थडे प्रेजेंट का …।मखमल की चूत पेश करने वाली हु…और यहाँ यह कम्बख्त रेजर की धार निकल गयी है।।
निशा अपनी चूत पर रेजर तेज़ी से चलाने लगी और अचानक रेजर की ब्लेड चूत के होठ के चमड़े से हिल गया।
निशा अचानक चिख पडी। खून के धार चूत के चमड़ी से निकल पडी। निशा ने तुरंत डेटोल लगा लिया। और आराम पाया।
निशा (मन में): लगता है आज पापा को रस के साथ मेरे चूत का खून भी चूसने का मौका मिल चूका है…हे हे
आज जगदीश राय का बर्थडे था। और निशा ने पापा से वादा किया था की उन्हें वह एक जबरदस्त यादगार तोहफा देगी।
निशा अपने साफ़ सुथरी चूत को मिरर में देखकर खुश हो गयी।
निशा (मन में): हम्म्म…चूत रानी-जी…आज तो तुम्हारी खैर नहीं…आज चाहो तुम कितने आँसू बहाओ पापा तुम्हे नहीं छोड़ेंगे…और आज मैं भी उन्हें नहीं रोकूंगी…आज खुलकर उनको अपना रस पीलाना।
निशा अपनी पहली चुदाई के आज 2 महिने गुज़र गए थे। जगदीश राय और निशा बिना रुके लगभग हर दिन चुदाई का पूरा आनन्द ले रहे थे।
और अब निशा भी जगदीश राय की तरह घण्टो चुदाई के लिए पूरा सहयोग देती।
निशा की जवान टाइट चूत अब जगदीश राय के बड़े लंड के 2 महीनो से चले लगातार झटको से खुल चुकी थी।
कैसे कौनसा भी पोज़ नहीं था जो जगदीश राय ने निशा पे नहीं अपनाया हो। कामसूत्र के कई पोज़ जगदीश राय निशा पर अपना चूका था।
हर दिन सुबह नाशते से पहले किचन में खड़ी रहकर चाय से पहले निशा अपने पापा से चूत चटवाती।
कभी कभी मौका मिलते ही जगदीश राय निशा को खड़े खड़े चोद भी देता। दोनों कई बार आशा से बाल-बाल बचे थे।
पहली दिन की कठोर चुदाई के बाद जब निशा कुछ दिनों तक पैर फ़ैला के चलती तो आशा ने उससे पूछा था।
आशा: दीदी…क्या हुआ तुम्हे…चोट लगी है क्या…ऐसे चल रही हो…
निशा: अरे नही।।बस…पीरियड चल रहे है।।फ्लॉव ज़रा ज्यादा है…पैड गिली हो चुकी है…
निशा अब भी जानती थी की आशा को उसका जवाब हज़म नहीं हुआ था। और निशा यह सब सोचकर हँस पडी।
आशा ही क्यु, बल्कि उसके कॉलेज फ्रेंड्स भी उसकी बढ-गए चूचे और गांड देखकर पूछते।
केतकी: कयू।।निशा।।बता ही दो।।कोंन सा भवरा है जो इस फूल को तँग किये जा रहा है…
निशा: क्या बक रही है…ऐसा कुछ भी नहीं…
केतकी:अरे छोड़…तेरी चेहरे की ग्लो बता रही है…तेरा भी बॉयफ्रेंड है।।तु मुझसे नहीं छुपा सकती…समझी…तेरे हर पार्ट्स बता रहे है की कितनी सर्विसिंग हुई है इनमे।।
निशा (मन में): अब क्या बताऊ केतकी…चाहते हुए भी मैं अपने इस रहस्यमय बॉयफ्रेंड के बारे में बता नहीं सकती।
ओर निशा सिर्फ मुस्कराती।
निशा जगदीश राय के 2 महीनो से चल रहे चुदाई के बारे में सोचकर शर्मा गयी।
निशा (मन में): जब शुरू हुआ था तो पापा बहुत ही धीरे धीरे चोदते थे और ज्यादा से जयदा आधा घंटे तक वह टिक पाती। पर अब २ घण्टो तक लगे रहते है। लंड भी चूत के अंदर पूरी जड़ तक पेलते है … और उसी तेज़ी से ��ूरा बाहर निकालकर फिर से जड़ तक पेल देते है…लगता है पापा ने चुदाई में मास्टरी कर ली है…हे हे
और आज भी यही होने वाला था, यह उसे पता था।
सलिए निशा ने पिछले 1 वीक से जगदीश राय को हाथ भी लगाने नहीं दिया था। जगदीश राय रोज़ सुबह उसकी चूत की रस के लिए भीख माँगते थे। निशा ने तंग आकर कहा।
निशा: पापा…मैं आपके बर्थडे के लिए ख़ुदको बचाके रखी हूँ।।और आप कण्ट्रोल नहीं कर सकते।।।
जगदीश राय: बेटी …।अब रहा नहीं जाता…सिर्फ थोड़ा चूत चूसने दो।। बस 2 मिनट…
निशा: नहीं …चूसना तो नॉट एट आल…।हाँ अगर रस ही चाहिये तो मैं निकालकर दूँगी…।बस सिर्फ आज।।…बादमें पूछ्ना भी नहीं…प्रॉमिस…
जगदीश राय (उतावले होकर): हाँ हाँ बेटी।।प्रोमिस…प्रोमिस।।
निशा ने तब मैक्सी ऊपर करके अपनी 2 उंगलिया चूत में पूरा जड़ तक घुसा दी, और कुछ एक मिनट बाद उंगलिया टेढ़ी करते हुये बाहर खीच लिया। उँगलियों पर ढेर सारा रस देखकर , तब जगदीश राय ही नहीं निशा भी चौक गयी थी।
जगदीश राय ने जिस तेज़ी से निशा के हाथ के ऊपर टूट पड़ा , वह देखकर निशा को पापा पर हसी भी आयी और तरस भी।
तो वह जानती थी, की आज उसके पापा उसकी चूत का हाल बुरा करने वाले है। और वह भी मन-ही-मन यही चाहती थी।
वही जगदीश राय के पिछले 2 महीनो में एक नया उमंग आ गया था।
पहले जो अपने वास्ते, बाल और बॉडी का ध्यान भी नहीं रखता हो आज घण्टो मिरर के सामने गुजारता।
अपने हेयर डाई करता, परर्फुमस, टी शर्ट एंड जीन्स की शॉपिंग लगतार शुरू की थी। हर रोज़ सुबह , निशा की चूत रस और चाय पिकर, वाक पर भी जाता।
पास के गुप्ताजी भी खिल्ली उडाने लगे।
गुप्ताजी: अरे राय साहब…लगता है दूसरी वाली जल्द ही लानी वाले हो…खुद को देखो…सलमान खान से कम नहीं लग रहे हो अब…
जगदीश राय सिर्फ मुस्कुरा देता।
पापा के आज बर्थडे के लिए निशा ने विस्तार से प्लान्स बनाये थे।
उसने ठान लिया था की आज वह कॉलेज नहीं जायेगी और आज सारा दिन अपने पापा के बॉहो मैं गुजारेगी।
जगदीश राय , सुबह तेज़ी से उठा। आज का दिन का महत्व वह जानता था।
आज पहली बार उसे अपने जनम होने पर नई ख़ुशी मिली थी।
वह जल्द से मुह हाथ धोकर किचन में पहुच गया। निगाहे निशा को ढून्ढ रही थी।
पर निशा नहीं थी वहां। आशा खड़ी थी, एक छोटी सी शॉर्ट्स पहने।
जगदीश राय: अरे आशा…।क्या बात है…तुम यहाँ…
आशा: हाँ पापा…निशा दीदी की तबियत ठीक नहीं है…सो उसने मुझे कहाँ चाय बनाने को। यह लीजिये
जगदीश राय पर जैसे बिजली गिर पडी।
जगदीश राय: क्या कह रहे हो बेटी…सब ठीक तो है…यह कैसे हो गया अब…
आशा , पापा का यह बरताव देखकर आश्चर्य जताते हुयी।
आशा: रिलैक्स पापा…क्या हो गया ऐसे…ठीक है वो।। बस थोड़ी सर दर्द है…आप तो ऐसे डर रहे हो जैसे…
जगदीश राय (खुद को सम्भालते हुए): ओह अच्छा…ठीक है…ठीक है…
आशा: और हाँ दीदी ने कहाँ है की आज वह नाश्ता बना नहीं पायेगी , इसलिए आप भी बाहर से खा लेना और हम भी स्कूल जाते वक़्त नुक्कड़ से खा लेंगे।
जगदीश राय (उदासी से): ठीक है
आंसा: अरे और एक बात पापा…
जगदीश राइ: और क्या।
आंसा : हैप्पी बर्थडे पापा।
और आशा अपने पापा के पास आयी और झूक कर पापा के चेहरे को अपने सीने से लगा लिया और माथे पर एक किस दे दि।
जगदीश राय (मुस्कुराते हुए): थैंक यू बेटी। चलो अब तुम लोग स्कूल जाओ…मैं भी तैयार होता हूँ।
थोड़ी ही देर में आशा और सशा , पापा को एक बार विश करके, स्कूल के लिए चल दिए।
जगदीश राय अपने किस्मत को गाली देते हुए , रेडी होने के लिए कमरे की ओर चल दिया। उसने सोचा की निशा से उसकी हालत पूछ ले पर सोचा की वह सो रही होगी।
जगदीश राय, जब कमरे में घुस, तो देखा की उसके बेड पर एक पैकेट पडा है।
चौंककर, जगदीश राय ने उसे खोला , तो देखा की उसमे लेटर और कुछ कपडे है। जगदीश राय ने लेटर खोला। वह निशा ने लिखी थी।
निशा: "प्यारे पापा, फर्स्ट ऑफ़ आल हैप्पी बर्थडे। आपके इस सुनहरे दिन के लिए पूरा प्लानिंग मैंने किया है। आपको मेरे कहे अनुसार करना होगा।
पहले, शेव करेंगे।
फिर मैंने इस पैकेट में एक क्रीम रखी है। इससे अपने लंड, टट्टो और गांड पर मलिये। और १० मिनट तक रखिये। यह हेयर-रिमूवल क्रीम है। मैं आपको जैसे आप पैदा हुए वैसे देखना चाहती हूँ।
फ़िर आप बाथ लीजिये। और बैग में एक सेंट रखी है। उसे लगाइये।
फिर मैं ने एक स्ट्रिंग अंडरवियर रखी है। वह पहन लीजिये। और बिना शर्ट के, सिर्फ लूँगी पहनकर निचे डाइनिंग टेबल पर आईए। मैं वहां आपके नाश्ता के साथ तैयार हूँ।"
जगदीश राय निशा का यह लेटर पढकर ख़ुशी से झूम उठा।
वह तेज़ी से शेविंग सेट की और बढा। हेयर रेम्योविंग क्रीम लंड और टट्टो पर फैला दिया।पर फिर उसे ख्याल आया की निशा ने गांड का भी ज़िकर किया था। वह समझ नहीं पाया की उसे उसके गाण्ड से क्या दिलचस्पी हो सकती है।
पर वह आज कोई चांस नहीं लेना चाहता था। उसने ढेर सारा क्रीम लेकर गाण्ड पर मल दिया।
इससे उसके टट्टो पर थोड़ी जलन होने लगी। पर वह उसे सहन करता रहा।
जब टट्टो पे जलन ज्यादा हो गया तो वह तुरंत नहाने चला गया।
नहाने के बाद जब जगदीश राय ख़ुदको देखा तो हसी रोक नहीं पाया।
लंड और निचला हिस्सा किसी बच्चे की तरह साफ़ था।
वह निशा के इस प्लानिंग से बेहद खुश हुआ।
फिर वह निशा की दी हुई स्ट्रिंग अंडरवियर पहन लिया। स्ट्रिंग अंडरवियर सिर्फ उसके लंड और टट्टो को संभाल रहा था।
गांड पूरी खुली थी और अंडरवियर की रस्सी अभी-साफ़-हुई-गांड के छेद को छेड रहा था। और उससे जगदीश राय के लंड पर प्रभाव पड़ रहा था।
जगदीश राय (मन में): वह निशा ने कितनी बारीकी से पूरी प्लानिंग की है…कहाँ से सीखी यह सब उसने…
फिर बिना समय गंवाए जगदीश राय एक साफ़ लूँगी पहन लिया और डिओडरंट लगा दिया।
और एक बर्थडे-प्रेजेंट-के-लिए-उतावले बच्चे की तरह डाइनिंग टेबल की तरफ निकल पडा।
जब जगदीश राय अपने रूम का दरवाज़ा खोला तो पुरे घर में कोई आवाज़ नहीं सुनाई दे रहा था।
उसने कमरे के दरवाज़े से आवाज़ लगाई।
जगदीश राय: निशा…कहाँ हो बेटी…निशा।
निशा: पापा…वहां क्यों रुक गए…आईये…नीचे आईये…मैं यहाँ डायनिंग टेबल पर आपका इंतज़ार कर रही हु…
जगदीश राय निशा की मदहोश आवज़ सुनकर धीरे धीरे डायनींग टेबल के तरफ बढा।
डायनिंग टेबल पर जब वह पंहुचा तो ताजूब रह गया। डाइनिंग टेबल पर खाना नहीं लगा था, बल्कि निशा डाइनिंग टेबल के ऊपर बैठी हुई थी।
और निशा एक सफ़ेद मखमल के चद्दर से पूरी लिपटी हुई थी। उसने लाइट मेकअप भी कर रखी थी।
निशा: क्या आपको भूख लगी है।
जगदीश राय (आँखों में घूरते): भूख तो बहुत लगी और सिर्फ तुम ही मिटा सकती हो।
निशा: कोई बात नहीं…आपके हर भूख का समाधान है मेरे पास…आईये…यहाँ पास आइये…
जगदीश राय निशा की ओर बढा। और अचानक निशा ने अपना चद्दर हटा लिया।
निशा: देखिये यहाँ क्या है आपके लिये।।
और जगदीश राय चौक पडा।
निशा पूरी नंगी थी। डाइनिंग टेबल के ऊपर पूरी पैर खोले बेठी थी। पर निशा की चूत दिखाई नहीं दे रही थी।
पुरे चूत पर मख्खन लगा हुआ था।थोड़ा सा माखन निशा की चूत के होठो के साथ हिल रहा था पर चूत पूरी छिपी हुई थी।
और दोनों बड़े चूचे पूरे खुले थे, पर निप्पल पर संतरे का एक गोल टुकड़े से घेरा हुआ था और निप्पल पर लाल अँगूर लगा हुआ था।
निशा की भरी मोटी गांड डाइनिंग टेबल पर बैठकर फ़ैल् गयी थी। और मादक बड़ी गोरी जांघ पर थोड़ा सा पानी लगा हुआ था।
निशा किसी हुस्न की परी लग रही थी।
जगदीश राय मुह खोले निशा को देखता रहा।
निशा:पापा।।हैप्पी बर्थडे।।आपकी बर्थडे ब्रेकफास्ट रेडी है…जो चाहे खा सकते हैं…बोलिये कहाँ से शुरू करेंगे…मखन से या अँगूर से…।
जगदीश राय: बेटी…।मैं तुम्हारा दिवाना हो गया बेटी…।…मैं…मैं तो माखनचोर बनना चाहता हु…देखना चाहतु की मखन के अंदर क्या छुपा है।।।
निशा: जी।। ठीक है…देखिये।
और निशा ने पैर को पूरा फैला कर जाँघों को दाया-बाया तरफ कर दिया।
जगदीश राय आकर चेयर पर बैठा और अपना सर आगे ले जाकर निशा की चूत पर लगे मखन को देखता रहा।
निशा: एक बात…नाश्ता आप सिर्फ मुह से ही खाएंगे…हाथो का इस्तेमाल नहीं करेंगे…मतलब दोनों हाथ टेबल के निचे होने चाहीये…सम्झे।
जगदीश राय तुरंत हाथो को निचे सरका दिया। निशा को पापा के तेज़ सासो का एहसास अपने जांघ और चूत पर मह्सूस हुआ।
फिर जगदीश राय ने अपनी जीभ बाहर निकाल एक बड़ी सा प्रहार लगा दिया। जीभ ने पुरे चूत की लम्बाई नापी। और ढेर सारा मखन अपने मुह में उतार लिया।
निशा के मुह से एक बड़ी सिसकी निकल पडी।
जगदीश राय को पहले वार पर सिर्फ मखन मिला था। फिर उसने और गहरायी में घुसना चाहा। और अपने होठ और जीभ को मखन के अंदर घूसा दिया।
और मखन के साथ उसे निशा के मुलायम चूत का स्पर्श हुआ। उसने एक भुक्खे कुत्ते की तरह चूत और मखन को खाने लगा।
निशा ��पने पापा का इस तरह चाटना सह नहीं सकी और वह टेबल पर ही उछल पडी।
पर उसके पापा ने उसके चूत को अपने मुह में दबोच रखा था। और उसे हिलने नहीं दे रहे थे।।
जगदीश राय कभी मखन चाटता तो कभी चूत चबाता। टेबल पर मखन के बूँद और जगदीश राय के लार टपक कर गिला हो चूका था।
निशा अब अपने पापा को पूरा चूत दावत पर पेश करना चाहती थी। उसने पीछे मुड़कर अपने दोनों पैर कंधो तक ले गयी और अपने चूत को पूरी तरह से खोलकर अपने पापा के सामने रख दिया।
इससे निशा की बड़ी सी क्लाइटोरिस मक्खन के अंदर से अपना झलक दिखा दिया। और उसकी गांड भी ऊपर होने के कारण , गांड के छेद ने भी अपनी मौजुदगी बतलायी।
चूत से मखन गलकर गांड के छेद तक पहुच रहा था। और निशा के सासों के साथ गांड का छेद भी अन्दर-बाहर हो रहा था। और मखन की कुछ बूंदे गांड के छेद के अंदर घूस रही थी।
जगदीश राय यह दृश्य देखकर पागल हो गया और उसने पूरी कठोरता से निशा की क्लाइटोरिस को मक्खन के साथ अपने होठो से दबोच लिया। और दाँतों से धीरे-धीरे चबाते हुए , एक जोरदार चुसकी लगा दिया।
निशा : आआआआअह्ह्ह्हह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह गुड़, पाआआपपपपपा।
तुरन्त ही जगदीश राय ने क्लाइटोरिस होठो से खीच दिया और निशा टेबल पर मचल उठी।
जगदीश राय , हाथों के बिना , निशा को सम्भालना मुस्किल हो चला था। पर फिर भी उसने हाथों का ईस्तेमाल नहीं किया।
जैसे ही निशा थोड़ी सम्भली, जगदीश राय ने अपना बुरा जीभ चूत के अंदर घुसा दिया। मक्खन के कारण जीभ अंदर आसानी से घूस गई, पर जगदीश राय पूरा घूसा नहीं पा रहा था।
निशा (तेज़ सासो से): क्या मेरे पाआपप।।को…।और…भूख…लगी…है…।
जगदीश राय (मक्खन से होठ चाटते हुए):हाँ बेटी…हाँ बहूत भूख लगी है…।
निशा : तो फिर …।आप को आपको खाना चूस कर बाहर निकालना होगा…।थोड़ी मेहनत…करनी …पड़ेगी…ऐसे नहीं मिलेगा…
जगदीश राय समझ नहीं पाया। पर उसने अपने पुरे मुह को खोलकर निशा की चूत को भर दिया और एक ज़ोरदार चुसकी ली।
निशा: और ज़ोर से पापा…और ज़ोर से।।
जगदीश राय चुसकी लगाता गया और निशा चिल्लाती गयी।
निशा अब अपने पापा के लगतार चुसकी से मचल रही थी, उछल रही, तड़प रही थी। और वह झडने के कगार पर थी।
और तभी जगदीस राय अपने होंठ पर केले का स्वाद पाया। उसने तुरंत अपना होठ हटाया और चूत के तरफ देखता रहा। चूत के होठ से छुपी , रस से लथपथ , केले (बनाना) ने स्वयं को प्रकट किया।
निशा : यह लिजीये पापा…।आप का …बर्थडे ब्रेकफास्ट… चूस लिजीये …खा लीजिये…
जगदीश राय यह नज़ारे देखते ही मानो झडने पर आ गया।
वह भेड़िये की तरह चूत को चूसने लगा, खाने लगा।
केला , निशा की मधूर चूत की रस से लथपथ, धीरे धीरे बाहर निकल रहा था, और जगदीश राय कभी उसे खा लेता तो कभी उसे होठ से निशा की चूत पर मसल देता। और फिर निशा की चूत को मक्खन, केला और चूत रस के वीर्य के साथ चबा लेता।
निशा: पापपपपा…। खाईएएएए पापा…।पुरा ख़ा लिजिये…।मेरी चूत का रोम रोम चबा लीजिये…।
और फिर निशा ने अचानक से अपना पूरी गांड ऊपर उछाल लिया। साथ ही जगदीश राय ने भी अपने चेहरे को गांड के साथ चिपकाते हुए , होठ को चूत से अलग नहीं होने दिया। निशा कुछ सेकंड ऐसे ही गांड को उछाले रखी और फिर एक ज़ोर से चीख़ दी।
निशा: आह आह……।ओह्ह गूड……आहः
और निशा तेज़ी से झडने लगी। निशा की चीख़ इतनी ज़ोर की थी की पड़ोस के लोगो को सुनाई दिया होगा।
चूत से रस उछल कर जगदीश राय के मुह, गले और छाती पर फ़ैल गया।
निशा पागलो की तरह उछल रही थी। बचा हुआ केला चूत की रस के साथ चूत से निकल कर टेबल पर गिर पडा।
पुरा समय जगदीश राय के होठ निशा के चूत का साथ नहीं छोडा। और निशा ने भी चूत को जगदीश राय के मुह के अंदर तक धकलते झड रही थी। वह चाहती थी की चूत रस का एक बूंद भी बेकार नहीं होना चाहिये।
कोई 5 मिनट बाद निशा शांत हुई। और टेबल पर ढेर हो गयी। उसका सारा शरीर कांप रहा था।
फिर धीरे से निशा ने आख खोला। उसके पापा अभी भी , अपने ही धुन में, होठ चूत पर लागए मक्खन और चूत के रस को चूस और चाट रहे थे।
निशा हँस पडी।
निशा: यह क्या पापा…आप ने तो मुझे झडा ही दिया…और आपने केला तो पूरा खाया ही नही। क्या आपको पसंद नहीं आयी।
जगदीश राय: कभी ऐसे हो सकता है बेटी…मैं तो बस तुम्हारे रस को खोना नहीं चाहता था…यह लो।।
जगदीश राय ने टेबल पर पड़े निशा के चूत रस में भीगा हुआ केले का टुकडा, अपने मुह से कुत्ते की तरह उठा लिया।
और एक भाग अपने होठ पर रख दूसरा भाग निशा की मुह के तरफ ले गया।
निशा ने तुरंत केले को खा लिया।
निशा: छी…आपने तो मुझे मेरा ही रस चखा दिया…वैसे बुरा नहीं है…हे हे…
जगदीश राय: पर अब उठने की सोचना भी मत…।मेरा नाश्ता हुआ नहीं है अभी…
निशा: आप जब तक चाहे आज नाश्ता कर सकते है…।में कुछ नहीं बोलूंगी…
जगदीश राय ने, बड़ी ही बारीकी से चूत चाटकर साफ़ करना शुरू किया।
जगदीश राय: बेटी…मैं तुम्हारा गांड भी चाटना चाहता हु…।
निशा (मुस्कुराकर): क्यों नहीं…।
और निशा अपने दोनों हाथो से अपने बड़ी सी गांड के गालो को अपने पापा के लिए खोल दिया।
गाँड के खोलते ही जगदीश राय ने देखा की काफी सारा मक्खन और रस गांड के दरार पर फसा हुआ है।
वही टेबल के ऊपर निशा गांड खोले लेटी रही और यहाँ जगदीश राय गांड को मदहोशी से चाट रहा था।
जगदीश राय: वाह बेटी मजा आ गया…।क्या नास्ता था…ऐसे नास्ता के लिए तो मैं रोज पैदा होना चाहूँगा…।वैसे क्या नाम है इस नाशते का…।निशा बेटी
निशा (शरारती ढंग से इतराते हुए): यह है "निशा का बानाना स्प्लिट",…।।हे हे हे।।
जगदीश राय हस्ते हुए निशा की चूत पर एक ज़ोरदार चुम्बन चिपका देता है।
निशा अपने हाथ से पापा के सर को पकड़कर अपने चूत में दबा देती है।
जगदीश राय: लगता है मेरे बेटी का चूत और भी प्यार माँग रही है।
निशा अपने दोनों हाथो से चूत को पूरी खोल देति है।
निशा: प्यार के बहुत तरसी है यह।।
जगदीश राय का पूरा मुह निशा की चूत में फस जाता है और वह भवरे की तरह रस चूस चूस कर निकालने लगता है।
थोड़ी देर बाद।।
जगदीश राय: बेटी …अब रहा नहीं जाता…मेंरा लंड और रुक नहीं सकता।।
निशा: वाह पापा…आपका नाश्ता हो गया…मेरे नाश्ता का क्या…।
जगदीश राय:मतलब…।
निशा अपने पैरो से अपने पापा को दुर करती है…
निशा: चलिये …हटिये…
और टेबल पर से छलांग लगाकर किचन की और जाती है। निशा की नंगी गाँड , मटकती हुई , जगदीश राय के लंड को और भी कड़क बना देती है।
निशा के हुकुम के अनुसार वह उसे हाथ नहीं लगा सकता था।
और निशा अपने साथ एक कटोरी में कुछ ले आती है।
निशा: अब आप की बारी…चलिए…टेबल पर जैसे मैं बेठी थी वैसे बैठ जाईये…
जगदीश राय बिना कुछ कहे टेबल पर चढ़ जाता है। और अपना पैर फैला देता है।
गदीश राय का 9 इंच का लंड स्ट्रिंग अंडरवियर से झाकने की बहूत कोशिश रहा है।
निशा : अब आप अपने हाथ पीछे ही रखेंगे …समझे…।
निशा धीरे से एक चुम्बन जगदीश राय के लंड पर , अंडरवियर के ऊपर से लगा देती है।
जगदीश राइ: अह्ह्ह्हह…।
जगदीश राय , आने वाले मज़े को सोचकर अपनी ऑंखें बंद कर लेता है।
निशा अपने पापा के लंड के आस पास अंडरवियर के ऊपर से चूमने लगती है …चाटने लगती है। वह अपने पापा को और गरम करना चाहती थी।
जगदीश राय का लंड जैसे फ़टने के कगार पर आ गया था।
जगदीश राय: बेटी …अब रहा नहीं जाता…।ले लो इसे अपने गरम मुह में…।
जगदीश राय को कटोरी ने आहट सुनि और अचानक उसे अपने लंड पर तेज़ गर्मी महसूस हुई।
निशा ने अपने पापा के लंड पर थोडा सा गरम शहद (हनी) डाल दिया था।
और शहद इतना गरम था की अंडरवियर के ऊपर गिरने के बावजूद, लंड को चटका लग ही गया।
जगदीश राय दर्द के मारे चीख़ पडा।
जगदीश राय: बेटी यह क्या…।आआह्ह्ह।
निशा ने तुरंत अपने पापा के लंड को अंडरवियर के ऊपर से मुह में ले लिया और शहद चाटने और चुसने लगी।
जगदीश राय दर्द और उतेजना के बीच में आके फस गया। उसे समझ नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है।
दरद के मारे लंड सोना चाहता था पर निशा के होठो ने एक अलग गर्मी पैदा कर दी थी।
जगदीश राय: ओह्ह्ह्ह बेटी…।।आह…।ओह बेटी…।
कुछ समय चाटने के बाद , निशा ने तुरंत पापा का अंडरवियर उतार फेका। ऐसा लग रहा था की वह अपने पापा को दर्द दे रही है।
जगदीश राय का पूरा लंड गरम शहद के वजह से लाल हो चूका था , पर लंड अभी भी पूरा खड़ा था।
निशा ने लंड को हाथ भी नहीं लगाया। और सीधे पापा के टट्टो को चूम लिया। दोनों टट्टे ऊपर नीचे उछल रहे थे।
निशा कभी चाटती, तो कभी टट्टो के अंडो को मुह में लेके चूसती।
जगदीश राय: वाहहहह …।माज़ा आ गया।
तुरन्त निशा ने गरम शहद के कुछ बूँदे टट्टो पे छिडक दिया।
जगदीश राय टेबल पर ही उछल पडा। और तडपने लगा, गरम शहद गिरते ही टट्टे दर्द के मारे उछलने लगे।
जगदीश राय टट्टो को हाथ से साफ़ करने हाथ आगे बढ़ाये। निशा ने तुरंत उनका हाथ पकड़ लिया।
निशा: हाथ पिछे…।।
जगदीश राय: क्याआ…कर रही हो बेटीई…दर्द हो रहा है…।।निकालो इससे…
निशा: किसे…इसे…
कहते हुए निशा ने कुछ गरम शहद की बूँदे और टट्टो बे गिरा दिया।
जगदीश राय: ओह्ह्ह मा…।आआअह्ह्ह्ह
लंड अभी दर्द के मारे सिकुड़ना शुरू हुआ।
निशा ने तुरंत लंड को मुह में ले लिया और बेदरदी से चूसने लगी।
पर उसने गरम शहद को टट्टो पर से साफ़ नहीं किया।
अब टट्टो के दर्द के बावजूद निशा की चूसाई इतनी अच्छि थी की लंड फिर से खड़ा होना शुरू हुआ। और देखते ही देखते पुरे आकर में आ गया।
निशा लंड चुसती रही और टट्टो पे गरम शहद फेकती रही। जगदीश राय तडपता रहा।
फिर निशा ने धुआँधार चूसाई शुरू की।
निशा: अब मैं रुक नहीं सकती…मुझे आपका मलाई चाहिए…दीजिये मेरा नास्ता ।
जगदीश राय: रुकना नहीं बेटी…मैं आने ही वाला हु…।
निशा ने कुछ 5 मिनट बाद अपने पापा का लंड फूलते हुए महसूस किया। वह समझ गयी की पापा अभी झडने वाले है।
वह लंड चुसती रही।
जगदीश राय: आह…बेटी…यह…।ले…।तेराआ…नाश्ता…चूस ले।
तभी अचानक से निशा ने लंड बाहर निकाल लिया। और कटोरी उठाई और पूरा का पूरा बचा हुआ गरम शहद लंड पर पलट दिया।
लोहे जैसे गरम लौडे पर गरम शहद के गिरने से , जगदीश राय चीख़ पडा।
निशा के सामने अपने पापा का 9 इंच का मोटा लंड , भूरा कलर का शहद से लथपथ था, शहद में डूबा हुआ था।
शहद की गर्मी से दर्द और ओर्गास्म दोनों एक साथ महसूस हो रहा था।
जगदीश राय: यह क्या…नहीईई बेटी…।दरदडडड…।मेरा छुट रहा है।
और फिर निशा ने भूरे शहदः के भीतर से सफ़ेद वीर्य के छींटे उडती दिखाई दी। सफ़ेद रंग का गाढ़ा और भूरे शहद के सामान था।
फड्फडा कर लंड , लावा की तरह, उगलता गया। वीर्य 9 इंच की लंड की लम्बाई , भूरे शहद के ऊपर से तैर रही थी।
निशा, न होठ से न हाथो से लंड को सहला रही थी। खड़ा लंड खुद ब खुद हवा में झूलता हुआ झडते जा रहा था।
निशा बड़े ही आश्चर्य से दृश्य देखती रही।
और फिर अपने पापा का गरम शहद और गरम वीर्य में लथपथ लंड को पूरा मुह खोलकर भीतर ले लिया।
लंड मुह में आते हि, जगदीश राय ज़ोर का दहाड़ मारा और लंड और तेज़ी से झडने लगा।
निशा बड़ी ही एकाग्रता से शहद और वीर्य को चाटती जा रही थी।
आज पहली बार उसने वीर्य का स्वाद चखा था। और उसे बिलकुल भी बुरा नहीं लग रहा था। शायद शहद थोड़ी मदद कर रही थी।
निशा कूछ 10 मिनट तक शहद और वीर्य चाटती गयी.
आज पहली बार उसने वीर्य का स्वाद चखा था। और उसे बिलकुल भी बुरा नहीं लग रहा था। शायद शहद थोड़ी मदद कर रही थी।
निशा कूछ १० मिनट तक शहद और वीर्य चाटती गयी।
और जगदीश राय , हाफ्ता रहा। पूरा लंड लाल हो चूका था। लंड की चमड़ी दर्द कर रहा था।
निशा ने फिर टट्टो को भी चाटकर साफ़ किया।
कफी सारा शहद और वीर्य लंड से गलकर , टट्टो से सैर करके , गांड तक पहुच गयी थी।
निशा : पापा…चलिए …अपना पैर पूरा ऊपर कीजिये…।
जगदीश राय बिना कुछ कहे ,पैरो को कंधे तक ले गया। और निशा ने अपने पापा का साफ़ सुथरी गांड में से शहद और वीर्य चाटने लगी।
गाँड पर निशा की जीभ लगते ही जगदीश राय के लंड से वीर्य कुछ बूंद और निकल पडा।
जब निशा ने पापा के सब अंग शहद और वीर्य से साफ कर दिया, तो संतुष्ट होकर राहत की सास ली।
जगदीश राय: यह क्या था बेटी…मैं ने ऐसा कभी सोचा नहीं था।।।
निशा: क्यों आपको मजा नहीं आया…।
जगदीश राय:मज़ा तो बहुत आया…पर …पर…दर्द भी बहुत हुआ…देखो तो ।।मेरे लंड को…कैसा लाल हो गया है…अगले ४ दिन तक तो इसे हाथ भी नहीं लगा सकता…
निशा: आप ने तो कहा था न…जो सजा देना चाहे दे सकती हो…सो यह थी मेरी सजा…हे हे…याद आया…
जगदीश राय:ओह ओह…तो मेरी बेटी …अपनी पापा से बदला ले रही थी…
निशा:।हाँ जी…स्वीट बदला…।हा हा
जगदीश राय : चलो सजा तो पूरा हुआ…
निशा: जी नही…अब और सजा मिलेगी…रुको …चलो बैडरूम में…आपको तो अपनी निशा को आज पुरे दिन खुश करना था न।
जगदीश राय: अरे नही…अभी नहीं…।लन्ड तो बहुत जल रहा है…।
निशा हँस पडी।
जगदीश राय, उठकर बाथरूम जाने लगा।
तब निशा ने रोक लिया।
निशा: पापा…एक मिनट…ये क्या है…यहाँ तो प्यार से दो बूंद लटक रहे है।।
जगदीश राय के अर्ध-खडे लंड में वीर्य का बूंद लगा हुआ था।
निशा ने अपने मुठी से पापा के लंड को बेदरदी से अपनी तरफ खीच लिया।
चोट खाया हुआ लंड निशा के इस बरताव से जगदीश राय चीख़ पडा।।
जगदीश राय: अरे …बेटी… लंड नहीं…आह्ह्ह्हह
निश ने तुरंत लंड को मुह में ले लिया। और वीर्य चाट लिया।
लंड को मुँह के सलीवा से राहत महसूस हो रहा था।
जगदीश राय: अरे वाह… तुम्हारे मूह में आराम मिल रहा है…
निशा: इसलिए तो कहती हु चलो बेडरुम।पुरा दिन अब लंड मेरे मुह में होगा। ठीक है…
जगदीश राय: अच्छा…तो यह सब तुम्हारी चाल थी…लंड मुह में घुसाये रखने की…
निशा: हे हे…हाँ…आल माय प्लानिंग…एक मिनट…बैडरूम में जाने से पहले।।।
फिर निशा ने लंड को बाहर निकाला। लंड अब फिर से थोड़ा खड़ा हो चूका था।
निशा ने लंड को अपने मुठी में लेकर ज़ोर से दबाया। जगदीश राय गुर्राने लगा।
लंड के द्वार पर एक छोटी सी प्यारी सी वीर्य के बूंद उभरकर आयी।
निशा ने उसे चाटते हुए कहा।
निशा: गोल्डन ड्राप कैसे छोड सकती हूँ…चलिए अब…थोड़ी देर मुह से सहलाऊंगी …फिर चूत से…।
निशा- पापा आज आपका बर्थ डे है ना.. तो आप मुझे कितनी बार चोदोगे?
जगदीश राय- जब तक मेरे लंड में जान है तब तक चोदूँगा.
निशा- अच्छा ये बात है.. और कैसे कैसे चोदोगे वो भी बता दो.
जगदीश राय- अभी तो सीधे लेटा कर ही शुरू करूँगा. उसके बाद तुझे घोड़ी बनाकर चोदुँगा।उसके बाद गोद में लेकर चोदूँगा, फिर तुझे अपने लंड के ऊपर बैठाकर कुदवाऊंगा.. तू बस मज़े लेना.
निशा- इतनी बार चोदोगे तो मैं थक नहीं जाऊंगी.. फिर कैसे मज़े?
जगदीश राय- हा हा हा… ऐसे कैसे थकने दूँगा मेरी जान को.
बीच बीच में अपना जूस भी पिलाता रहुँगा मेरी जान।
दोनों में तकरार चलती रही और इस तकरार के साथ प्यार भी हो रहा था. अब जगदीश राय निशा को बेदर्दी से रगड़ रहे थे. उसके मम्मों को ज़ोर ज़ोर से दबा रहे थे, कभी चूस रहे थे।काट रहे थे।
निशा- उम्म्ह… अहह… हय… याह… पापा दुख़ता है.. आह.. नहीं उफ ऐसे चूसो.. मेरी चुत को भी चाटो ना आह.. सस्स आह…
अब दोनों उत्तेज़ित हो गए थे. जगदीश राय ने निशा को ऊपर लेटा लिया और दोनों 69 के पोज़ में आ गए. अब ज़बरदस्त चुसाई शुरू हो गई और निशा की चुत का सारा दर्द गायब हो गया. उसमें खुजली होने लगी, जो सिर्फ़ लंड से ही दूर हो सकती थी.
निशा- आह.. सस्स पापा बस.. अब बर्दाश्त नहीं होता.. घुसा दो अपना अज़गर अपनी बेटी की चुत में.. उफ इसमें बहुत आग लगी है.
जगदीश राय ने निशा के पैरों को कंधे पे रखा और लंड के सुपारे को चुत पे टिका कर हल्के से धक्का मारा. उनका आधा लंड चुत में चला गया और निशा की चीख निकल गई.
जगदीश राय पर कोई असर नहीं हुआ उन्होंने लंड को पूरा बाहर निकाला और एक जोरदार झटका मारा, अबकी बार पूरा लंड चुत में समा गया.
निशा- आह ओह पापा आह.. आपने तो कहा था अब दर्द नहीं होगा ओफ… मर गई..
जगदीश राय- मेरी बेटी ये थोड़ी देर होगा.. ले चुद अपने पापा से आह.. ले आह…
जगदीश राय ताबड़तोड़ चुदाई करने लगे और हर झटके पे निशा की चीख निकल जाती।
करीब 20 मिनट तक जगदीश राय दे दनादन अपनी बेटी की चुदाई करते रहे, तब कहीं जाकर निशा की चुत में लंड अड्जस्ट हुआ. अब दर्द मीठा हो गया था और चुत में पानी रिसने लगा था, जिससे लंड को अन्दर बाहर होने में आसानी हो गई. अब निशा की चुत में खुजली भी बढ़ गई, अब वो भी मजा लेने लगी थी.
निशा- आ आह.. फक मी पापा.. आह.. फक मी हार्ड आइआह.. सस्स फाड��� दो मेरी चुत को आह.. नहीं ज़ोर से करो पापा आह.. मेरी चुत गई पापा चोदो मुझे आह आह फास्ट करो पापा और फास्ट आ आह…
निशा की उत्तेजना अब चरम पर पहुँच गई थी. उसकी चुत से रस की धारा बहने लगी. गर्म रस जब जगदीश राय के लंड से टकराया तो उन्होंने स्पीड और बढ़ा दी और निशा को हावड़ा एक्सप्रेस की स्पीड से चोदने लगे.
निशा का पानी निकल चुका था, वो बेजान सी होकर पड़ गई, मगर जगदीश राय अभी कहाँ झड़ने वाले थे, वो तो मज़े से निशा की चुत चोदने में लगे हुए थे.
निशा- आह.. पापा.. बस भी करो आह.. मेरी चुत में जलन होने लगी है.. थोड़ा रेस्ट तो दो आह.. प्लीज़ मान जाओ ना आह…
जगदीश राय को निशा की हालत पर तरस आ गया, उन्होंने एक झटके में लंड बाहर निकाल लिया और फ़ौरन निशा को बैठा कर उसके मुँह में लंड घुसा दिया. निशा कुछ समझ ही नहीं पाई और जगदीश राय अब उसके मुँह को चोद���े लगे।
थोड़ी देर निशा ने मज़े से लंड को चूसा. उसके बाद इशारे से पापा को कहा कि अब वापस चुत में पेल दो. तब जगदीश राय ने उसको घोड़ी बनाया और उसकी गांड को कस के पकड़ कर शॉट मारने लगे. निशा को अब मजा आने लगा था. वो गांड को हिला हिला कर चुदने लगी.
करीब 30 मिनट तक जगदीश राय निशा की पलंगतोड़ चुदाई करते रहे. उस दौरान वो दो बार झड़ गई. उसके बाद जगदीश राय ने अपना सारा रस उसकी चुत में भर दिया.
इस चुदाई के बाद दोनों बिस्तर पे लेटे छत की तरफ़ देखने लगे.निशा की हालत देखने लायक थी, वो लंबी लंबी साँसें ले रही थी उसके पापा ने बहुत चोदा था आज उसे… और जगदीश राय उसके सीने से चिपके हुए बस ऊपर देख रहे थे.
निशा मन ही मन सोच रही थी ” आखिर पापा को खुश कर दिया मैंने!”
दोनों थोड़ी देर दोनों शांत रहे, उसके बाद फिर चुदाई का दौर शुरू हुआ. इस बार जगदीश राय ने निशा को गोद में उठा लिया और हवा में उसकी चुदाई की. उसके बाद उसको अपने लंड के ऊपर कुदवाया. पूरे दिन में जगदीश राय ने 5 बार अपने लंड का रस कभी निशा की चुत में तो कभी चेहरे पर गिराया और निशा का तो पता नहीं कितनी बार पानी निकला होगा. वो एकदम टूट गई, उसमें अब जरा भी हिम्मत नहीं थी, उसका सर चकराने लगा था. आख़िर में उसकी हिम्मत जवाब दे गई. वो बिस्तर पर पेट के बल बेसुध होकर सो गई. उसके साथ जगदीश राय भी ढेर हो गए और उससे चिपक कर सो गए.
अब शाम होनेवाली थी।जगदीश राय निशा को बेड के सहारे कुतिया बना के पीछे से जबरदस्त चोद रहे थे पूरा बेड हिल रहा था। बेड के कोने पर समोसा और केक का खाया हुआ प्लेट पड़ा हुआ था।और प्लेट ज़ोरो से हिल रहा था।
जगदीश राय निशा को पीछे से लंड घूसा घुसाकर , तेज़ी से चोद रहा था।
निशा पैर खोलना चाहती थी , पर जगदीश राय निशा का पैर बंद करके चोद रहा था।
और पूरा बेड हिल रहा था। शाम के 4 बज रहे थे और निशा गिनती भूल चुकी थी की वह कितनी बार झड चुकी थी।
हर बार चोदने के बाद दोनों कुछ खा लेते और फिर शुरू हो जाते।
पर अब निशा थक चुकी थी। उसका चूत सुज चूका था और दर्द कर रहा था। बालो, हाथ, गाल और होठ पर वीर्य लगा हुआ था।
पर उसके पापा रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
उपर से निशा के पैर बंद होने के कारण चूत और सिकुड़ गयी थी। और जगदीश राय को और मजा आ रहा था। और निशा को दर्द भी हो रहा था।
निशा: पापा…बस करो…अब दर्द बढ़ चुकी है…देखो…कैसे लाल हो गयी है चूत
जगदीश राय: बेटी…बस अब रोक नहीं सकता…निकल ही रहा है…
निशा: आआह्ह…।धीरे…।कहा न मैंने…।।
जगदीश राय ओर्गास्म के कगार पर जोर जोर से गांड के ऊपर अपने जांघे पटकने लगा और फिर
लंड लेके निशा के मुह के पास ले गये।
जगदीश राय: यह ले बेटी…।और चाट ले मलाआईईई…
निशा ने बिना संकोच लंड को मुह में लेने के लिए बढी, पर उसके पहले ही एक तेज़ वीर्य की धार निशा के होठ और गाल पर पडी।
निशा ने तेज़ी से लंड मुह में घूसा लिया और बाकि के 5 मिनट तक चुसती रही।
निशा को अब वीर्य का स्वाद भा गया था और यह बात उसके पापा जान चुके थे। और निशा भी , हर बूंद को निचोड रही थी।
जगदीश राय:वाह…बेटी…मज़ा आ गया…आज का दिन मैं कभी नहीं भूलून्गा।।सच कहता हूँ।।।बेस्ट डे ऑफ़ माय लाइफ।।।
निशा, लंड को जीभ से चाटते हुयी।
निशा: हम्म्म…।मुझे भी…पर देखो क्या हाल है मेरा…पूरे शरीर पर वीर्य लगा हुआ है आपका…और चूत तो देखो …माय गॉड…सुज गयी है…पूरी…
निशा, पापा के सामने, चूत खोलकर दिखा रही थी। जगदीश राय ने निशा को बॉहो में भर लिया।
जगदीश राय: अरे वह तो होगा ही…इस बर्थडे बॉय को खुश करना इतना आसान थोड़ी है।।।और बर्थ डे बॉय के लंड के क्या कहने।।।हे हे
फिर निशा प्लेट से एक समोसा का टुकड़ा लेकर खाने लगी।
गालो पर लगा वीर्य के बूँदे फिसल कर निशा के मुह में जा रहे थे।
और निशा बिना कुछ संकोच समोसा के साथ वीर्य को भी खाए जा रही थी।
जगदीश राय यह देखकर मुस्कराया, खुश हो गया।
थोड़ी देर ऐसे ही लेटने के बाद निशा बोली।
निशा: पापा, मुझे आप से एक बात पुछनी है।
जगदीश राय: हाँ हाँ पुछो बेटी।
निशा: पापा…मेरे कॉलेज से 15 दिन के लिए साउथ इंडिया के कुछ जगहो पर एक स्टडी टूर जा रही है।टूर काफी हद तक स्पॉन्सर्ड है। सो…पैसा ज्यादा नहीं लगेगा…क्या मैं जाऊ…।
जगदीश राय, निशा को चिंतित नज़रो से देखने लगा।
निशा: हाँ मैं जानती हु…की यहाँ कोई नहीं है…घर का काम।।।इस्लिये मैं अभी तक हाँ नहीं कह पाई हूँ।। पर कल लास्ट डे है…।मैं ना कह देती हूँ…।
जगदीश राय: नहीं नहीं बेटी…मैं घर के बारे में नहीं तुम्हारे बारे में सोच रहा हूँ। तुम अकेले …।१५ दिन…जाना कैसे है।।प्लेन से…ट्रैन से…
निशा: ओफ़्कोर्से ट्रैन से…और मैं अकेली कहाँ हुँ…वह केतकी है न…वह है…और भी बहुत सारी लड़किया है…
जगदीश राय कुछ देर तक सोचता रहा।
जगदीश राय: जाओ बेटी…घूम आओ।।।कब जाना है…
निशा (चौकते हुए)पर पापा…यहाँ कौन सम्भालेगा…घर का काम।। खाना…
जगदीश राय: उसकी तुम चिंता मत करो…।में तो कैंटीन से खा सकता हु…और इन् बन्दरो के लिए तो पिज़्जा, बरगऱ, पास्ता तो है ही। कभी कभार मैं बना लूँगा…
निशा: पर…।
जगदीश राय: बेटी।।यह उम्र तुम्हारे घूमने के… मजा करने के है…खाना तो ज़िन्दगी भर बनाना है…इसलिए जाओ…और कल हाँ कर दो…मुझसे पैसे ले लेना।
निशा खुश होकर, वीर्य लगे गालो से, पापा को चूम ली।
जगदीश राय: पर।।बेटी…एक समस्या है…मेरे इसके क्या होगा…
जगदीश राय ने मुस्कुराते हुए अपने लंड की तरफ इशारा किया।
निशा: इसका …आप…।१५ दिन तक…आराम दीजिये…हाथ से भी नहीं करना ठीक है…।मैं जब आऊँगी तब आपको एक स्पेशल गिफ्ट दुँगी। तब तक यह मुझे तडपता हुआ खड़ा मिलना चाहिये।।।
जगदीश राय: अरे तुम तो यह ही कहोगी।।तुम्हारे टूर पर तो लड़के भी होंगे…क्यूँउउ…
निशा: धत। पापा…मैं तो आपके सिवा किसी को हाथ भी नहीं लगाने दूँगी…
निशा के इस जबाब से जगदीश राय कुछ सोचने लगा।
निशा उठकर बाथरूम चली गयी। और थोड़े देर बाद फ्रेश होकर , साफ़ होकर आयी।
वह नंगी खड़े होकर अपना बाल बनाने लगी।
जगदीश राय: बेटी…एक बात पूछ्ना चाहता हु…।
निशा: हाँ पापा पुछो।
जगदीश राय: बेटी।।तुम अपने पापा के साथ।।मेरा मतलब है…यह सब…यह संबंध।
निशा (सर झुकाते हुए): मैं समझ गयी पापा…
जगदीश राय: बेटी …मैं यह नहीं चाहता की ।।इसकी वजह से ।।तुम और लड़को को पसंद न करो।।मेरा क्या।।आज है कल नहीं…पर तुम्हे शादी करके एक विवाहित जीवन बीतानी है…मैं यह चाहता हु…
निशा: ओह ओह पापा…आप कहाँ चले गए…पापा , आपके साथ रास लीला रचाने के बाद ।।मुझे तो बल्कि फ़ायदा हुआ है…अब मैं अन्य लड़कियों की तरह लड़को को ताकती नहीं रहती…मैं अब लड़को से शरमाती भी नहीं… अब मैं लड़को को उनके क्वालिटीज़ के अनुसार परखती हूँ।…।
जगदीश राय: अच्छा…
निशा: तो अब बेफिक्र रहिये…मैं कोई घर बैठने वाली नहीं हूँ।।
निशा: और अब मेरे पढाई मैं भी मार्क्स अच्छे आने लगे है…क्युकी मैं लड़को और एडल्ट मूवीज से डिस्ट्रक्ट नहीं होती…
जगदीश राय यह सुनकर खुश भी हुआ और आश्चर्य चकित भी।
जगदीश राय: फिर तो…यह…अच्छी बात है… है न…
निशा (हँसते हुए): और नहीं तो क्या…।हे हे…मैं तो कहती हु…हर लड़की का पहला बॉय फ्रेंड उनके पापा होने चाहिये…हे हे
जगदीश राय: निशा को गोद में बिठा लिया। और हँसते हुए चूमने लगा।
ऑफिस के सभी लोग गपशप लड़ा रहे थे। पर जगदीश राय को सीट पर बैठना मुश्किल हो रहा था।
आज निशा को घर से गए हुए सिर्फ 2 दिन हुए थे। और जगदीश राय का जीना मुश्किल हो गया था।
ऑफिस में बैठा नहीं जा रहा था और घर में मन नहीं लगता था।
और जगदीश राय से बुरा हाल जगदीश राय के लंड का था। पिचले 2 महीनो से निशा लगातार लंड की सेवा करती थी।
जब निशा के महीने चल रहे होते, उस वक़्त भी निशा लंड को चूस चूस कर उसका रस निकालती।
और 2 दिन से लंड को निशा की प्यारी चूत और मुह की कमी मह���ूस हो रहा था। वह अब निशा को कॉलेज ट्रिप पर भेजने के फैसले से पछता रहा था।
जगदीश राय से मुठ भी नहीं मारा जाता। ऑफिस के औरतो को भी घूरता। उसे डर लगने लगा की ऐसा ही चलता रहा तो जल्द ही वह अपने नौकरी से हाथ धो बेठेंगा।
और आज तो उसकी हालत ज्यादा बुरा था। लंड पिछले 2 घण्टो से खड़ा था। और पूरी शरीर में गर्मी फ़ैली हुई थी।
जगदीश राय ने तुरंत एक सिक लेटर लिख दिया और पिओन के द्वारा अपने बॉस को भेज दिया। और बिना कुछ बोले और कहे, देरी हो जाने से पहले , वहां से निकल गया।
रास्तो की लड़कियो और औरतो को ताकते हुए वह घर पहुंचा। दोपहर के 2:30 बजे थे। आशा और सशा शाम के 4-5 बजे तक आयेंगे। तो उसके पास 2-3 घंटे है। उसने सोचा की किसी तरह मुठ मारकर खुद को थोड़ा आराम दे दे।
दरवज़ा खोलते ही , उसे ऊपर के कमरे से कुछ हँसने की आवाज़ सुनाई दी।
जगदीश राय(मन में): अरे…यह क्या…आशा घर पर…इस वक़्त…
तभी जगदीश राय को आशा की मदहोश भरी सिसकियाँ और कुछ शब्द सुनाई दिए
आशा: ओह…।इट्स फीलस सो गुड…आहाहहह…।धीरे करो न…।हाँ वही…।आह…और…अंदर…
जगदीश राय आशा की यह आवाज़ सुनकर बुरी तरह चौक गया। वह भागा भागा ऊपर के कमरे की तरफ गया और तेज़ी से दरवाज़ा खोल दिया।
और अंदर का नज़ारा देखकर सुन्न हो गया।
अंदर आशा पूरी नंगी खड़ी थी। वह बेड के किनारे खड़ी थी।
उसके बदन पे एक भी कपडा नहीं था पर उसने अपने वाइट शूज नहीं उतारे थे।
और आशा के बेड पर एक सांवला सा लड़का बैठा हुआ था। जो आशा की दाए चूचो को मुरा मुह में घूसा कर बेदरदी से चूस रहा था।
आशा तेज़ी से सिसकी ले रही थी। और लग नहीं रहा था की उसके साथ कोई जबरदस्ती की जा रही हो।
लडीके ने सिर्फ अपना शर्ट उतारा था।
और जगदीश राय ने देखा की वह पीछे आशा की गांड पर अपना बायाँ हाथ फेरकर अंदर बाहर कर रहा है। जिसकी वजह से आशा भी अपनी गांड और कमर खड़े खड़े आगे पीछे हिला रही है।
दोनो इतने मदहोश थे की दोनों की ऑंखें बंद थी। और उन्हें पता भी नहीं चला की जगदीश राय वहां खड़ा है।
जगदीश राय ने यह सब नज़ारा कुछ चंद सेकड़ो में देख लिया था।
और वह गुस्से से आग बबुला हो गया।
जगदीश राय (गुस्से में): आशा…।।यह क्या हो रहा है…मेरे घर में…यु बास्टर्ड …।कौन है तू…।।साला।
अचानक से हुए शोर से दोनों आशा और वह लड़का चौक गये। और अपने पापा को देखकर आशा चिल्लायी
आशा: पापा…ओह गॉड…।सॉरी पापा…।सॉरी…।हम यही…।।या गॉड
और आशा ने अपने हाथो से पास पड़े उसकी छोटी सी टीशर्ट से अपने चूचो और चूत को छिपाने का असफ़ल प्रयास किया।
जगदीश राय बहुत गुस्से में था। वह तेज़ी से उस लड़के के तरफ बढा। लड़का घबरा गया।
लडका: अंकल…सॉरी…मैं निकल रहा हु…अंकल…सॉरी सॉरी…।
इसके पहले की जगदीश राय कुछ करता लड़का बड़े ही फुर्ति से अपने शर्ट उठा कर वहां से दौड पडा।
जगदीश राय उसके पीछे भागा पर जब तक वह सीडियों से लड़खड़ाते निचे पंहुचा लड़का दरवाज़े से फ़रार हो चूका था।
आशा डरकर की उसके पापा कुछ कर न बैठे, नंगी पीछे भागी आयी, अपने टी शर्ट छाती में पकडे।
जगदीश राय ने उसे देखा और जा के दरवाज़ा बंद कर दिया, ताकि बाहर के लोग उसे नंगी न देखे।
आशा तुरंत अपने रूम की तरफ चल दी।
पुरी घर में सन्नाटा छाया हुआ था। जगदीश राय तेज़ी से सास ले रहा था। वह किचन में घूसकर एक गिलास पानी पी लिया और खुद को शांत करने की कोशिश की।
जगदीश राय (मन में): यह सब क्या हो रहा है…आशा की यह मज़ाल …।वह भी इतनी छोटी उम्र में पर मैं करू भी तो क्या…।
तभी जगदीश राय को निशा की बात याद आयी। जवान होने पर, बाप को बेटी का दोस्त बनना पड़ता है।
कोई 5 मिनट वही डाइनिंग टेबल के चेयर पर बैठने के बाद, वह फिर आशा की रूम की तरफ चला।
रूम का दरवाज़ा अभी भी खुला था। आशा अभी भी नंगी खड़ी थी। वह एक छोटी सी टीशर्ट अपने छाती से लिपटाये।
टी शर्ट इतनी छोटी थी की सिर्फ उसकी निप्पल और चूत के बीच का हिस्सा छुप रहा था और वो भी मुश्किल से।
जागदीश राय का ग़ुस्सा आशा को ऐसे देखकर थोड़ा सा ग़ायब हो गया।
जगदीश राय: यह सब …।कब से।।चल रहा है…ह्म्म्मम्म।
आशा चुप बैठी। सर झुकाये खडी थी।
जगदीश राय: बोलो…अब छुपाने की…जरूररत नहीं…कौन था वह हरामी…।बोलो…जल्दी।।
आशा: आप ग़ुस्सा मत होईये…मैं सब बताती हु…
जगदीश राय: अच्छा…।तो बोलो…
आशा: वह मेरा बॉयफ्रेंड है…हम ५ महीने से जानते है…एक दूसरे को…।
जगदीश राय: क्या…5 महीनो से चल रहा है यह सब…वह तुम्हारे स्कुल में पढता है? अभी जाता हु उसके बाप के पास…
आशा (थोडा मुस्कुराते): नहीं…वह तो काम कर रहा है…इंजीनियर है…उसकी पढाई सब हो गयी।।
जगदीश राय: मतलब।।वह स्टूडेंट नहीं है…और तुम उसके साथ…कहाँ मिला तुम्हे…बताओ…
सवाल पूछते हुए जगदीश राय आशा की नंगे शरीर को निहार भी रहा था। और धीरे धीरे उसके लंड पर प्रभाव पडने लगा।
आशा भी खूब जानती थी। इसलिए उसने भी जान बुझकर कपडे नहीं पहने।
और वैसे ही नंगी रहकर जावब दे रही थी। वह जान चुकी थी की पापा की नज़रे कहाँ कहाँ घूम रही है।
आशा: एक कॉमन फ्रेंड की ओर से…मेरी एक सहेली है…उसका कजिन भाई है वह…
जगदीश राय: पर तुझे शर्म नहीं आयी…यह सब करते हुए तेरी।।उमर ही क्या है…अगर इस उम्र में कुछ उच-नीच हो गया तो क्या होगा इस घर की इज़्ज़त का…सोचा कभी तूने…
आशा: पापा…मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे घर की इज़्ज़त को धक्का लग सके…बस थोड़ा सा मजा कर रही थी।
आशा ने यह कहते अपने हाथो से टीशर्ट ठीक किया और इसी बहाने अपने हाथो से अपने चूचे मसल दिए।
जगदीश राय यह देखकर हिल गया।
चूचे इतने मस्त आकार के थे की उसके मुह में पानी आ गया और लंड खड़ा होने लगा।
जगदीश राय (संभालते हुए):मम्म।।मज़ा…क्या यह मजा है…इसे मजा कहते है…
आशा (थोडा मुस्कुराते): और फिर क्या कहते है…जो आप और निशा दीदी करते है वह मजा नहीं तो और क्या है…
जगदीश राय , एक मिनट समझा नहीं की जो उसने सुना वह ठीक सुना या नही। वह दंग रह गया।
जगदीश राय:क्या…क्या।।बोल रही है तू…किस किस किसने कहा तुझसे यह सब।
आशा: इसमें कहने की क्या ज़रुरत है…यह दिवार क्या इतनी चौड़ी है की दीदी की चीखे और आपकी सिसकियाँ रोक सके…
अब ऐसा लग रहा था जैसे चोर कोतवाल हो डाट रहा हो।
जगदीश राय: तो क्या…तुम सब जानती हो…क्या तुमने हमे देखा भी…।
आशा: देखा भी और सुना भी… हाँ सब जानती हु…
जगदीश राय: मैं…मैं…वह बेटी…बस…।
आश: शुरू में , मैं भी आपकी तरह चौक गयी थी…पर फिर मुझे लगा की इस मौज में बुरा ही क्या है…
जगदीश राय: तो क्या।।तुमने हमे देखकर यह सब करना शुरू किया?
आशा: अरे नहीं…।मै तो इन सब में 4 महीनो से उलझी हूँ।।
आशा के बिन्दास जवाबो से जगदीश राय को थोड़ी हैरानी और थोड़ी चीढ़ भी आ रही थी।
आशा: क्या ।।अब आपको सब सवालो का जवाब मिला…
जगदीश राय: हा।।क्या तुम उससे और भी मिलेगी…तुम उससे नहीं मिल सकती…यह सब रोक दो…
आशा: अच्छा।।रो�� देति हूँ…पहले आप भी वादा करो की आप और निशा दीदी सब रोक दोगे।…
जगदीश राय चुप हो गया।
जगदीश राय: वो।।बेटी…वह…सोचना…।
आशा: देखा पापा…कितना आसन है बोलना…पर सच कहो तो मुझे रोकने में आपसे ज्यादा आसानी है…
जगदीश राय: क्यों…क्या तुम उस लड़के से प्यार नहीं करती…
आशा: प्यार…अरे नहीं…मैं तो सिर्फ उसे इस्तमाल ही करती हु…क्या मैं अभी अपने कपडे पहन सकती हूँ।।।
आशा ने ऐसे पूछा जैसे वह नंगी खडी अपने पापा पे मेहरबानी कर रही हो।
जगदीश राय (भूखे नज़र मारते हुए): हाँ…पहन लो…
जगदीश राय को समझ नहीं आया की वह वहां से जाये या नही।
उसने आधे मन से दरवाज़े की तरफ कदम बढाया, पर आशा ने उसकी दिल की सुन ली।
आंसा: आप इतनी जल्दी कैसे आये…आप तो 5 बजे आते है न…
आशा ने टीशर्ट पहनते हुए पूछा।
जगदीश राय मुडा। और सामने आशा बिना कुछ शरम, अपने पापा के सामने चूचे और चूत दीखाते हुए टीशर्ट पहन रही थी।
जहां निशा की चूचे बहुत बड़े और मुलायम थे, आशा के कड़क और गोलदार। निप्पल भी भूरे थे। आशा सांवली होने के बावजुद, उसके सभी अंगो में सही पैमाने पर चर्बी थी।
जगदीश राय चूचो को देखता रहा , और जैसे ही चूचो और पेट का भ्रमण करके चूत की तरफ उसकी ऑंखें पहुंची, आशा ने तुरंत अपने हाथ से चूत को ढ़क लिया।
जगदीश राय के मुह से सिसकी निकल गयी। आशा मन ही मन अपने पापा पर हँस रही थी।
आशा: बताइये ना पापा…।जल्दी कैसे आ गए…
जगदीश राय: क्यों…अच्छा हुआ जल्द आ गया…वरना तुम्हारी यह करतूत देखने को कैसे मिलता।
जगदीश राय , झूठ का ग़ुस्सा दिखाने का असफल अखरी कोशिश करते हुये।
आशा: सो तो है…पर मेरा प्रोग्राम तो चौपट कर दिया न आपने
जगदीश राय, को आशा की बेशरमी और बदतमीज़ी पर चीढ आने लगा।
आशा (मुडते हुए): मेरा।।शरट्स…हम्म्म…हाँ यहाँ है…।
आशा के गोलदार, उभरी हुई गांड जगदीश राय के सामने थी।
और गांड के बीच में कुछ था जो जगदीश राय देखकर समझ नहीं पा रहा था।
आशा , शॉर्ट्स पहनने के लिए थोड़ा झुकी पर वह सफ़ेद चीज वहां से हिल नहीं रहा था। गौर से देखने पर , उस पर ख़रगोश का मखमल का बाल लगा हुआ था।
जगदीश राय: अरे…यह क्या है।।तुम्हारे पीछे…
आशा, ने तुरंत अपना शॉर्ट्स चढा लिया। अब वह टी शर्ट और एक बहुत छोटी शॉर्ट्स पहने खड़ी थी, और शॉर्ट्स के बटन डाल रही थी।
आशा: क्या पिताजी…
जगदीश राय: यह तुम्हारे पिछवाड़े पर…सफ़ेद सा…फर का…
आशा: अच्छा वह…वह मेरी …पूँछ है…
जगदीश राय (चौकते हुए): क्या…क्या है वह…पूछ? क्या पुंछ।
आशा,अपने बुक्स उठाते हुए…
आशा: पूँछ मतलब…पूँछ…टेल है मेरी…
जगदीश राय: टेल…टेल तो जानवारो का होता है…इंसानो को कहाँ…।
आशा: मैं भी तो जानवर हु…रैबिट हु मैं…खरगोश ।
जगदीश राय: क्या…क्या पागलपन है यह…
आशा: पापा…आप समझेंगे नहीं…इसलिए आप रहने दीजिये…मुझे अब पढाई करनी है।।
जगदीश राय: अरे…क्या समझना है…तुम कुछ चिपका रखी हो…अपने गाँड में।।मेरा मतलब…पिछवाड़े पर…और कहती हो की तुम रैबिट हो…
आशा: हाँ बिलकुल…मैं ख़ुद को रैबिट की तरह महसूस करती हु…उछलती कूदती खरगोश…हे हे।।
जगदीश राय: अच्छा…
आशा: और मैंने उसे चिपका नहीं रखी है…घुसा रखी है अपने अंदर…
जगदीश राय (चौकते हुए): क्या…।तुमने कहाँ घूसा रखी है…?
आशा: अपनी गांड में…और कहाँ…
जगदीश राय , आशा की मुह से गांड शब्द सुनकर भी अनसुन्हा कर दिया, क्युकी वह जो यह सुन रहा था वह यकींन नहीं कर पा रहा था।
जगदीश राय, चौक कर, वही चेयर पर बैठ गया।
जगदीश राय: तो…।क्या…तुम…उसे बाहर निकालो…क्या उस लड़के ने तुम्हारे अंदर घुसाया…
आशा: अरे नहि।।यह बाहर नहीं आता…पुरे दिन मेरे अंदर ही रहता है।।यह मेरे शरीर का एक भाग है…जैसे मेरी हाथ पैर वैसे ही…
जगदीश राय: पुरे दिन।।तुम।।इसे अपने अंदर रखती हो…कभी बाहर नहीं निकालति।।???
आशा: बस सिर्फ नहाते वक़्त और ओफ़्कोर्स लैट्रिन जाते वक़्त।
जगदीश राय: मतलब स्कूल…टयुशन…सोते समय…हर वक़्त अंदर रहता है…
आशा (मुस्कुराते हुए): हाँ…हर वक़्त…मेरी गांड को सहलाते रहता है…
जगदीश राय , कुछ वक़्त के लिए चूप हो जाता है।
सभी जानते थे की आशा थोड़ी विचित्र है, पर इतनी सनकी हुई है आज जगदीश राय को मालुम हुआ।
और वह जानता था की अब मामला हाथ से निकल चूका है।
आशा, अपने पापा की यह हालत, बड़ी ही शीतल स्वाभाव से देखते रहती है।
जगदीश राय: यह…कब से…
आशा: यहि कोई 4 महीने से…पहले थोड़े समय के लिए रखती थी…पर अब तो हर वक़्त मेरे शरीर का हिस्सा बन चूका है।।
जगदीश राय के मन में हज़ार सवाल आ रहे थे, पर उसे पता नहीं चल रहा था की कहाँ से शुरू करे।
जगदीश राय: तुम स्कूल मैं बैठती कैसे हो…
आशा: आराम से…टेल का बाहर का हिस्सा मुलायम रैबिट के खाल से बना हुआ है। तो स्कर्ट से बाहर भी नहीं आती और आराम से बैठ पाती हूँ। शुरू शुरू में तो तक्लीक होती थी। हर घन्टे में टॉइलेट जाकर ठीक करना पड़ता था।।हे हे।।पर अब कोई प्रॉब्लम नहीं होती।।
जगदीश राय: पर…पर…तुम्हे यह मिला कहाँ से…किसने बताया…और क्यों…
आशा: मेरी एक फ्रेंड है लवीना, वह अपने दीदी को मिलने अमेरिका गयी थी। वहां से ले आयी। हम दोनों रैब्बिटस है।
जगदीश राय: तुम्हारी उस ब्यॉफ्रेंड लड़के को भी पता है…उससे कोई प्रॉब्लम नहीं है इसमें…
आशा (हँस्ती हुए): प्रॉब्लम…हा ह।।वह तो मरा पडा रहता है।।टेल को देखने के लिए…एक बार अपनी गांड दिखा दूँ तो पागल हो जाता है। कभी कभी उससे खेलने देति हूँ उसे।
आशा की यह बेशरमी बात सुनकर अब जगदीश राय कुछ गरम होने लगा था और लंड पर प्रभाव पड रहा था।
आशा , अपने पापा को बोतल में उतार चुकी थी।
जगदीश राय (गरम होकर): ठीक है…वैसे मुझे यह सब पसंद नही।।बंद कर दो यह सब…अच्छा नहीं है यह…
आशा: क्या अच्छा नहीं है…आपने कहाँ देखा मेरे टेल को…देखेंगे?
जगदीश राय: अब…।नही…।हा…ठीक है…।दिखाओ…अगर।।तुम…
इसके पहले जगदीश राय अपनी बात ख़तम करता आशा पापा के सामने खड़ी हो गयी। और पीछे मुडी
और अपने गाण्ड पर से शॉर्ट्स निचे सरका दिया।
ईद के चाँद की तरह, अपने पापा के सामने आशा की गोलदार गांड खिलकर आ गई।
आशा: यह देखिये…
गांड के बिचो बीच, गालो को चिरते हुई, ख़रगोश के पूँछ के जैसे एक पूँछ , निकल कर बाहर आ रहा था।
इतनी चिपककर घूसा हुआ था की गांड का छेद दिखाई नहीं दे रहा था।
जगदीश राय का लंड पुरे कगार में खड़ा हुआ था।
आशा , बड़ी ही नज़ाकत से चेहरा घूमाकर, अपने पापा के ऑंखों में देखी। उसे पापा के पेंट में से खड़ा लंड साफ़ दिखाई दे रहा था।
निशा को चोदते हुए पापा का लंड वो कई बार देख चुकी थी। और वह उसका आकर जानती थी।
आशा: कैसी है …पापा…कुछ बोलो तो…बस यूही ताक़ते रहोगे।।?
जगदीश राय , अपने गले से थूक निगलती हुयी।
जगदीश राय: अच्छी है…।ठीक है…
आशा: आप चाहे हो पूँछ को छु सकते हो।
काँपते हाथो से जगदीश राय, आशा के गांड के तरफ ले गया।
जगदीश राय (मन में): नहीं जगदीश…क्या।।कर रहा है तू…नहीं…रुक ज।।आशा नासमझ है…
पर लंड के सामने न दिल न दिमाग की बात न सुनी।
आशा को तुरंत अपने गाण्ड पर प्रभाव महसूस हुआ। और वह समझ गई की पापा अपने हाथो से उसके पूँछ को सहला रहे है।
जगदीश राय , को आश्चर्य हुआ की , पूँछ कितनी टाइट गांड में फँसी है। क्युकी बिच में, उसने पूँछ को धीरे से खी���ा पर , पूँछ अपनी जगह से हिली भी नही।
आशा: बाहर नहीं निकलेगी।।ऐसे…अंदर 2 इंच का मोटा गोलदार भाग उसे अंदर ही रखता है।
आशा की गांड इतनी मादक और कोमल लग रही थी, की जगदीश राय से रहा नहीं जा रहा था। और उस मादक गांड से निकलती हुई पूँछ , उसे और मादक बना रही थी।
जगदीश राय ने तुरंत अपना हाथ पूँछ से निकालकर गांड पर रख दिया , और गाण्ड को दबा दिया।
आशा ने तुरंत , अपनी शॉर्ट्स ऊपर कर ली।
आशा (लंड की तरफ इशारा करते हुए): पापा…अब आप नॉटी बॉय बन रहे है…निशा दीदी की बहुत याद आ रही है क्या…हे हे।
जगदीश राय अपने इस करतूत से थोड़ा शर्माया ।
जगदीश राय: सोर्री।।।वह बस…नहीं…ठीक है तूम पढाई करो…मैं…
आशा: अरे सॉरी क्यों…मैं जानती हूँ।।ऐसे टेल से सजा हुआ गांड तो किसी को भी पागल कर सकता है।
जगदीश राय, अपने लंड को हाथो से सम्भालते हुये, मुस्कुराते हुये, रूम से निकल जाता है।
कमरे से निकल कर , अपने रूम में घूसने से पहले ही जगदीश राय अपना लंड हाथ में लिए हिलाना शुरू कर दिया।
दिमाग पर आशा की गांड और उसमे घूसि हुई पूँछ
और निशा की यादें, लंड को झडने से रोकने वाले नहीं थे।
निशा की चूत और आशा की गांड दोनों सोच ��ोचकर, जगदीश राय ने ऐसा जोरदार मुठ निकाला की झरते वक़्त वह चीख़ पडा।
कुछ 2 घन्टे बाद जब जगदीश राय निचे हॉल में आया, आशा वही किचन में चाय बना रही थी।
उसने अपने कपडे चेंज कर लिए थे। एक टाइटस और सलवार पहनी थी।
जगदीश राय की नज़र उसकी गांड पर गयी, और आंखें ख़रगोश वाली पूँछ को ढून्ढने लगी।
आशा: क्या देख रहो हो पापा।।
जगदीश राय: नही।।कही।।बाहर जा रही हो।।
आशा: हाँ यही बुकशॉप तक…कुछ बुक्स लेने हैं…पैसे चाहिये होंगे…यह लिजीये चाय…
जगदीश राय और आशा दोनों एक दूसरे के सामने बैठकर चाय पीने लगे।
कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था।
जगदीश राय , दोपहर की घटनाओ के बारे में सोच रहा था। और खास कर आशा की पूँछ और गांड के बारे में।
आशा के चेहरे पर कोई भाव नज़र नहीं आ रहा था। वह बस एक ही भाव से अपने पापा को देखे जा रही थी।
आशा की यह दिल चीरने वाली नज़र से जगदीश राय सोफे में करवटें लेने लगा।
जगदीश राय( मन में): क्या वह अभी भी गांड में घुसायी रखी होगी…नही।।देखो कितनी आराम से बैठी है…आराम से कोई ऐसे बैठ सकता है…गांड में लिये।
पर वह आशा से पुछने की हिम्मत नहीं जूटा पा रहा था।
आशा (बिना मुस्कुराये और शर्माए): पापा…पैसे? जा कर आती हूँ…
जगदीश राय: हाँ हाँ…टीवी के निचे ही 100 रूपये पड़े हैं…ले लो…
आशा उठि और मटकती गांड से चल दी और शूज पहनने लगी।
जगदीश राय , अपनी थूक निगलते हुयी, हिम्मत जुटा रहा था। उसे यह जानना ज़रुरी हो गया था।
जगदीश राय: बेटी…क्या तुम …मेरा मतलब है…तुम अभी भी अंदर घूसा…रखी हो…उसे…मेरा मतलब है…उस टेल को…खरगोश वाली…
आश , पीछे मुड़कर बड़े ही आराम से , सहज तरीके से जवाब देती है।
आशा: हा, है अंदर …क्यू।।?
जगदीश राय (शर्माते हुए): अच्छा…।नही…यही…पूछ रहा था…टाइटस से भी दिख नहीं रहा था…इसलिये…
आशा: ओह क्युकी पूँछ की पार्ट को में ने चूत की तरफ , पैरो के बीच समा रही है।।इस्लिये…टाइटस पहनो तो करना पड़ता है यह सब, पर इससे गांड थोड़ी खीच जाती है और मजा भी आता है चलती वक़्त।।इस्लिये।…चलो बाय मैं जा कर आती हूँ…
जगदीश राय , आशा का यह जवाब सुनकर दंग रह गया। उसकी बेटी पुरे मोहल्ले के सामने , अपनी गांड में पूँछ घुसाकर चल रही है और लोगो को पता भी नही, इस सोच से ही वह पागल हो रहा था।
आशा की मुह से चूत और गांड ऐसे निकल रहे थे जैसे वह कोई बाज़ारू रांड हो।
अपनी छोटी बेटी के मुह से गंदे शब्द उसे मदहोश कर चला था। और न जाने कब उसका हाथ उसके लंड पर चला गया।
कोई दो दिनों तक , जगदीश राय और आशा के बीच , जब भी बाते होती, पूँछ का ज़िक्र छूटता नही।
अगर उसके पापा शर्मा कर नहीं पूछ्ते , तो आशा खुद अपने पापा को पूँछ के बारे में बताती, की आज उसने कैसे अपने पूँछ को सम्भाला स्कूल जाते वक़्त , सहेलियो के साथ इत्यादि।
जगदीश राय को भी बहुत मजा आ रहा था और अब उसे भी आशा की पूँछ से अजीब सा लगाव हो चूका था। हालाकी उसने उस दिन के बाद से पूँछ को देखा नहीं था , सिर्फ ज़िक्र ही सुना था।
और बातो से ही वह पागल हो चला था। और यह सब सशा से छुपके होती थी।
एक दिन, जगदीश राय के एक ऑफिस जवान कर्मचारी की शादी के रिसेप्शन का कार्ड आया। आशा और सशा दोनों पापा से ज़ोर देने लगे।
सशा: चलिये न पापा, रिसेप्शन में चलते है…बड़ा मजा आयेगा।
आशा: हाँ…वहां तो चाट वगेरा भी होंगा।
जगदीश राय: अरे।।वह बहुत दूर है यहाँ से…बस भी नही जाती।
आशा: तो यह गाडी किसलिए है…खतरा ही सही।।।कार में चलते है।
आशा की बात आज कल जगदीश राय टालने के हालत में नहीं था।
जगदीश राय: ठीक है…चलो…रेडी हो जाओ।।चलते है…।पर जल्दी ही आ जायेंगे…
सशा: हाँ हा।।खाना खाने के बाद तुरंत…
रिशेप्शन पर बहुत भीड़ थी। हर क्लास के लोग आये थे। आशा और सशा जम गए थे चाट के स्टाल पर। आशा ने टॉप और स्कर्ट पहनी थी, सशा ने जिन्स।
जगदीश राय अपने ऑफिस के कुछ कर्मचारी के साथ ऑफिस की बाते कर रहा था।
जगदीश राय: अरे।। चलो…स्टेज पर हो आते है।।गिफ्ट पैकेट देते है।।कॉनगरेट्स भी बोल आते है।
आशा और सशा भी चल दिए पापा के साथ। स्टेज की सीडियों चढ़कर आशा जगदीश राय के पास आकर खड़ी हुई।
जगदीश राय ने, दुल्हा, दुल्हन और बाकि सब लोगों से बात की।
दुल्हे का बाप: अरे राय साब, हमारा बेटा आपकी बहुत तारीफ़ करता है…आईये एक फोटो हो जाए।
और सभी लाइन में खड़े होने लगे।आशा तुरंत अपने पापा के पास आकर खड़ी हुई।
आंसा(धीमी आवज़ में): पप।।पापा।।सुनो…
जगदीश राय(धीमी आवज़ में): हाँ हाँ बोलो
आशा(धीमी आवाज़ मैं): मेरी पूँछ ।।निकल रही है गांड से…स्टेज पर चढ़ते वक़्त।।लूज हो गयी…मैं अंदर धक्का नहीं घूसा पाऊँगी…क्या आप प्लीज स्कर्ट के ऊपर से घूसा देंगे…प्लीज जल्दी।
जगदीश राय(धीमी आवज़ में): क्या।।यहाँ…स्टेज पर…।
आशा(धीमी आवाज़ में): हाँ अभी…आपका हाथ मेरे पीछे ले जाईये…कोई नहीं देखेंगा।।अगर मैं ले गयी तो अजीब लगेगा …प्लीज जल्दी कीजिये…कहीं यही न गिर जाये…मैंने पेंटी भी नहीं पहनी…
फोटोग्राफर: चलिए…आंटी जी।।थोड़ा आगे…हाँ थोड़ा पीछे…बस सही।।हाँ स्माईल।
जगदीश राय(धीमी आवज़ में): क्या तुम पागल हो…ओह गॉड।।मरवाओगी…ठीक है…आ जाओ।
और जगदीश राय, फोटो के लिए स्माइल देते हुये, माथे से पसीना छुटते हुए अपना कांपता हाथ आशा की गांड पर ले गया।
हाथ गांड पर लगते ही , उसे आशा की बात पर यकीन हो गया की उसने पेंटी नहीं पहनी थी।
लोगो के पीछे से, स्टेज पर खडे, जगदीश राय ने पूँछ को हाथो से पकड़ लिया।
फोटोग्राफर फोटो ले चूका था। अब वीडियो वाला वीडियो कैमरा घूमा रहा था।
जगदीश राय पूँछ के पिछले हिस्से को पकड़ कर, गांड में घुसाने का प्रयत्न करने लगा। पर घुस नहीं पा रहा था।
जगदीश राय (धीमे आवाज़ में): घूस नहीं रहा है…क्या करुं…
आशा ने तुरंत अपन गांड पीछे कर दिया। वीडियो कैमरा तभी आशा के सामने से गुज़र रहा था। आशा की गांड पीछे ठुकाई पोज़ में देखकर वीडियो वाला हैरान हो गया, और उसने जान बुझ कर वीडियो आशा पर टीकाये रखा।
आशा((धीमी आवज़ में): हा।।अभी ट्राई करो…उफ़ यह विडियो।।इसी वक़्त…
जगदीश राय ने अपना पूरा ज़ोर देते हुए, एक ज़ोरदार धक्का ल��ाया। आशा की गांड से 'पलोप' सा एक आवाज़ सुनाई दिया और पूरा का पूरा पूँछ अंदर घूस गया।
आशा (धीमे आवज़ में): आह…इस्सश
आशा के मुह से सिसकी निकली और दर्द और कामभाव चेहरे पर से छुपा नहीं पायी।
पुरी समय वीडियो आशा पर टीका रहा।
स्टेज से आशा और जगदीश राय धीरे से उतरे। आशा बिना कुछ कहे टॉयलेट की ओर चल दी।
थोड़ी देर बाद, आशा पापा के पास आयी।
जगदीश राय: यह सब क्या था बेटी…मैं तो डर गया…
आशा (मुस्कुराते हुए): सॉरी पापा।।वह आज मैं ने नयी क्रीम यूज किया था, जो ज़रा चिकनाई देने लगी…मैं नहीं जानती थी…और स्टेज की स्टेप्स चढ़ते वक़्त…पूँछ निकल गयी…पर थैंक यू आपने संभाल लिया।
जगदीश राय:शुक्र करो।।स्टेज पर नहीं गिर पड़ा…और तुमने पेंटी क्यों नहीं पहनी।
आशा: वह तो मैं अक्सर पेंटी नहीं पहनती…पूँछ पेंटी के बिना ज्यादा मजा देता है…
जगदीश राय:तुम और तुम्हारा मजा मुझे ले डूबेगा एक दिन।
आशा (हस्ती हुए): क्यों…आपको मजा नहीं आया।।मेरे गांड में पूँछ पेलते वक़्त।
जगदीश राय (थोडा मुस्कुराते हुये, शरमाते हुए): वह…हा।।मज़ा तो आया…
आशा : तो बस…और क्या चाहीये…मज़ा ही ना।।
और आशा सशा के पास चल दी। तभी एक लडका, आशा के पास आया।
लडका (मुस्कुराते हुए): मिस, अगर आपको वीडियो की कॉपी चाहीये तो हमे बोल देना…हमने आपकी अच्छी वीडियो ली है…
आशा (ग़ुस्से से): नो थैंक यु…
अगले 2 दिन जगदीश राय का बुरा हाल था। आशा की गांड और पुंछ उसके दिमाग से निकल ही नहीं रहा था।
जब भी आशा सामने से गुज़रती, जगदीश राय उसके गांड को ताकता रहता। इस उम्मीद में की पुंछ दिख जाये।
आशा भी यह सब समझती थी और अपने आदत से मजबूर, अपने गांड को और मटका कर चल देती।
आज का दिन भी कुछ ऐसा ही था। आशा, एक छोटी स्कर्ट पहनी, किचन में खड़ी , सब्जी काट रही थी।
सशा अपने कमरे में गाना सुन रही थी।
और जगदीश राय हॉल मैं बैठे , पेपर पढ़ रहा था, या यु कहे, पढने की कोशिश कर रहा था।
वह हॉल में बैठे , अपने बेटी की गांड को निहार रहा था। सामने उसकी बेटी, एक टाइट टॉप और छोटी स्कर्ट पहनी हुई थी।
टाइट टॉप में से निप्पल साफ़ दिख रही थी। और स्कर्ट उसके गांड को और भी मादक बना रहा था।
और अपने पापा के सामने , गांड में २ इंच का पुंछ घुसाए उसकी बेटी खड़ी सब्जियां काट रही थी।
जगदीश राय (मन में): क्या उसने पुंछ घुसायी होगी आज भी…।खडे रहने से लगता तो नहीं…।उसने कहा तो था की कभी कभार वह पुंछ को नहाती वक़्त धोती और सुखती है। और तब नही पहनती…।और अभी वह नहाकर खड़ी है…
जगदीश राय , को यह जानने की उत्सुक्ता , पागल कर रही थी।
और वह अपने सोफे पर करवटें बदल रहा था। वह उठकर, डाइनिंग टेबल पर बैठ गया।
थोड़ी देर बाद आशा , थोड़ी मूली लेकर आ��
आशा: पापा…।आप इन्हे काट देंगे प्लीज…
और डाइनिंग टेबल पर टेकते हुयी, मूली की प्लेट रख दी।
उसने अपने गांड को इस तरह पीछे धकेला , मानो अपने पापा को दावत दे रही हो।
जगदीश राय से रहा नहीं गया , और उसने तुरंत गांड पर हाथ रख दिया। और पुंछ टटोलने लगा। आशा हँस पडी।
आशा : हे हे
जगदीश राय पूँछ को अपने हाथो में पाते ही , चौक भी गया और ख़ुशी भी हुई। उसने ज़ोर से पूँछ को पकड़ कर, बाहर की तरफ खींच दिया।
आशा: अअअअअ…पापा…क्या…
और अगले ही मिनट में ज़ोर से उसे अंदर ढकेल दिया।
आशा: ओहः।।।।मम…आज कल आप बहोत नॉटी हो रहे हो… चलिये मूली पे ध्यान दीजिये…
जगदीश राय पूरा गरम होकर लाल हो गया था। और आशा को अपने पापा का यह उतावला पन बहोत भा गया।
उसी वक़्त सशा , सीडिया उतर कमरे में चली आयी।
जगदीश राय , उसे मन ही मन कोसते , मूलियों पे अपना टूटा हुआ ध्यान देने लगा।
सशा: आशा , देख तो बाहर , यह लोग दही कला (दही हंडी) लगा रहे है। बहुत मजा आयेगा शाम को।
आशा: हाँ।पापा…हम सब देखेगे। और पानी फेकेंगे उन पर…
जगदीश राय: हाँ…ठीक है।।।
शाम हो गयी थी। पूरा दोपहर , जगदीश राय का हाल बुरा था। निशा की याद और आशा की पूँछ ने उसके लंड पूरा टाइम खड़ा रखा था।
जगदीश राय , अपने कमरे मैं , लंड हाथ में लिए , हिलाना शुरू किया। पर मुठ निकल नहीं रही थी। जो लंड चूत की आदि हो जाये उससे हाथ से मजा आना मुमकिन नहीं था, यह बात जगदीश राय भी जानता था।
अचानक से दरवाज़ा खुल गया। जगदीश राय , हाथ में 9 इंच लंड पकडे, चौंक कर देखता रहा।
आशा: पापा…चलिए…।दहीकला स्टार्ट हुआ…चलिये
आशा की नज़र, तभी पापा के खड़े 9 इंच लंड पर पडी जो शाम के उजाले पर चमक रहा था।
इसके पहले जगदीश राय कुछ बोले, आशा बोल दी।
आशा: उफ़ पापा…अच्छा…आप जल्दी से यह निपटाकर…।आईए…ज्यादा देर मत लगाना…मैं और सशा निचे है…।ठीक है…
और आशा से दरवाज़ा बंद कर चल दिया।
जगदीश राय हक्का बक्का रह गया।
जगदीश राय (मन में): यह क्या हो गया अभी।।कही मेरा सपना तो नहीं था…आशा आयी…और मेरे लंड… को मुझे मुठ मारते देख…बोलकर चल दी…मानो यह उसके लिए नई बात न हो…।
जगदीश राय यह सोचकर और गरम हो गया। और ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा। पर मुठ कगार पर आकर मुठ रुक जाता। १५ मिनट तक जगदीश राय हिलाता रहा पर स्खलित न हो पाया।
अचानक फिर से दरवाज़ा खुल गया। इस बार जगदीश राय चौंका नाहि, क्यूंकि वह आँखें बंद, गहरी सोच के साथ्, मुठ मार रहा था।
पर आशा के आवाज़ ने उसकी आँखें खोल दी।
आशा:यह लो…आप अभी भी…इसी पर है…और मैं समझी थी…आप तैयार हो चुके होंगे…।
जगदीश राय : ओह बेटी…
आशा (और पास आकर): क्या बात है…मूठ नहीं निकल रहा पापा…।
आशा के ऐसे सीधे सवाल की, जगदीश राय को उम्मीद नहीं थी
जगदीश राय: नहीं बेटी…निकल नहीं रहा।
आशा: लाओ…मैं कोशिश करती हूँ।
और आशा ने तुरंत जगदीश राय के हाथ पर मार दिया और लंड को थाम लिया। आशा के हाथ इतने छोटे थे की लंड पूरी तरह समां नहीं पा रही थी।
जगदीश राय : बेटी तुम ।तुमसे नही…ओह्ह…।आहः
आशा: दही कला ख़तम होने से पहले आपको झाड दूँगी…वादा…
और आशा तेज़ी से पापा के विशाल लंड को हिलने लगी।
जगदीश राय : ओह्ह…।बहूत अच्छा…।आहः
और आशा दोनों हाथो से लंड को थामकर हिलाने लगी।
जगदीश राय , अपना हाथ आशा के स्कर्ट के अंदर से गांड पर रख दिया, और पूँछ के मुलायम बालो को पकड़कर , पूँछ को अंदर बाहर हिलाने लगा।
आशा:।।हम ।अहहह…।।कितना बड़ा है…पापा आ....आप्का…।।
जगदीश राय : तुमने तो…।।पहले भी देखा… है न इसे…।
आशा: हाँ…। पर की होल से साइज का अंदाज़ा नहीं था…हाथ पर आते ही…पता चला…
१० मिनट तक आशा लंड को बिना रुके हिलाने लगी। और बहार से दही कला के लोगों का शोर सुनाई दे रहा था । शोर से पता चल रहा था की लोग गिर पड़े थे।
आशा: पापा…आप का तो निकल ही नहीं रहा…।मेरा तो हाथ दर्द कर रहा है…
जगदीश राय : कोई बात नहीं बेटी…।एक काम करो।।तुम चली जाओ…दही कला देख आओ…।
आशा: नहीं…मैंने वादा जो किया…।एक काम कीजिये…क्या आप मेंरे गांड में डालना पसंद करेंगे…
जगदीश राय , इस सवाल से चौंक गया। और आशा की तरफ देखने लगा।
आशा: नहीं…अगर आपको पसंद नहीं हो तो कोई बात नहीं…।मैं…।ऐसे हिला…
जगदीश राय तुरंत आशा की बात काटते हुए बोल पड़ा।
जगदीश राय : पसंद।। बेटी यह किस बुढ़ऊ को पसंद नहीं होगा…तुम्हारी गांड तो जन्नत से कम नहीं है बेटी
आशा: अच्छा…।तोः फिर यह ही करते है…ठीक
जगदीश राय : पर …वो।।तुम्हरी पुंछ…
आशा ने अपना हाथ पीछे से स्कर्ट में ले गई और बोलते हुए पूँछ को बाहर खीच ने लगी।
आशा: उसे मैं …अभी…आअह्ह्ह…।खीच…देत्ती हूँ।
ओर फिर गांड में से 'पलोप' से आवाज़ सुनाई दिया।
जगदीश राय : बेटी मैं सोच रहा था की तुम मुझे तुम्हारी चूत मारने दो और गांड में पूँछ रहने दो…
आशा: नहीं पापा…मैं अपनी चूत सिर्फ अपने पति को दूँगी…जो मुझसे शादी करेगा…हाँ गांड मरवा सकती हु…
जगदीश राय यह सुनकर खुश हो गया। आशा , पहले से विचित्र थी, पर आदर्श वादी थी यह आज उसे पता चला।
जगदीश राय , आशा की हाथ में पूच को देख। पुंछ का अंदर का भाग के 2 इंच का बॉल का आकार का था। उस पर आशा की गांड का भूरा रस और मलाई लगा हुआ था।
आशा ने उसे ज़मीन पर रख दिया।
जगदीश राय ने लंड के चमड़ी को निचे सरकाकर के हाथ से ज़ोर से थामे रखा एंड बेड के किनारे लेट गया। वह जानता था की गांड मारने के लिए लंड कड़क रहना बहुत ज़रूरी है।
आशा, पीछे मुड कर खड़ी हो गयी और अपने पापा की ऑंखों के सामने स्कर्ट को ऊपर खीच लिया। और जगदीश राय के सामने दो गोलदार गांड उभरकर आ गई।
जगदीश राय, बेड के उपर बैठे होने के कारण, आशा का गांड का छेद दिखाई नहीं दे रहा था। वह बेड पर लेट गया और सर को उठाकर देखने लगा।
आशा : रेडी ।।पापा…धीरे से ओके…मेरा भी पहली बार है…और आपका तो बहुत मोटा है…
जगदीश राय ने हामी में सर हिला दिया। दोनों की धड़कन तेज़ी से चल रही थी। और बाहर दाहिकला के लोंगो का शोर।
ओर जगदीश राय के ऑखों के सामने , उसकी बेटी अपने गोलदार सुन्दर गांड के गालो को हाथो से फैलाकार, उसके 3 इंच मोटे और 9 इंच लंबे लंड पर गांड को उतार रही थी।
आशा ने गांड के छेद को पापा के लंड के बहोत पास ले गयी। और एक १ इंच के दूरी पर आकर रुक गयी।
जगदीश राय , तेज़ी से सासे लेते हुयी, आंखे फाड़कर देखता रहा।
आशा: पापा, बोलो घुसा दूँ।
जगदीश राय : हाँ हाँ…रुक क्यों गई…अब संभला नहीं जाता।घुसा दे…अपनी गांड…मेरी प्यारी बच्ची.....
आशा: पर एक शर्त है…
जगदीश राय : सब मंज़ूर है
आशा: एक मूवी, एक अच्छी ड्रेस और…।
जगदीश राय : मंज़ूर,, मंज़ूर…। बेटी…अब सब्र नहीं हो रहा…
आशा:…और…जहाँ मैं चाहु…जब चाहु…मेरी गांड मारनी पड़ेगी…।
जगदीश राय : ज़रूर बेटी…जब कहोगी तब …।
ये सुनते ही, आशा ने अपना गांड पापा के कठोर लंड पर रख दिया। गाण्ड और लंड का स्पर्श इतना सुन्हरा था की जैसे मानो दोनों कई जन्मों से एक दूसरे का इंतज़ार कर रहे हो
और गांड में लंड चीरते हुए चला जा रहा था।
आशा: आह....ओह
जगदीश राय : ओह्ह…।मम…आआह…घुसा दे बेटी…।और घुसा…
आश: नहीं पापा…इससे ज्यादा और नहीं…पुंछ की गहरायी से कही ज्यादा ले चुकी…और आपका तो बहोत मोटा है और निचे…।नही…ऐसे ही करती हु…
जगदीश राय , निशा के चुदाई से समझ गया था की उतावला पन ठीक नहीं है।
जगदीश राय : ठीक है बेटी…तुम्हे जैसा लगे वैसा करो…।
और आशा , फिर धीरे धीरे ऊपर निचे होने लगी…
आशा: कैसा लग रहा है पापा।।
जगदीश राय : बहुत अच्छा मेरी बेटी…करती रहो…अह्ह्ह्ह
आशा: दाहिकाला के मटके से दही निकलने के पहले…आपके मटकी से दही निकालूँगी…
और आशा ने लंड पर कुदती हुई पापा के दोनों टट्टो को ज़ोर से दबा दिया।
जगदीश राय , के मुह से सिसकी निकल गई।
जगदीश राय :ओह …आअह्ह्ह…।
आशा: हे हे
आशा, पापा के दरद, पर हँस पडी। और ज़ोर ज़ोर से लंड पर कुदने लगी। लण्ड अभी तक सिर्फ 6 इंच जा चूका था।
कडे हुए लंड पर हर झटके से आशा की कसी हुई गांड के अंदर लंड और थोड़ा घुसे जा रहा था।
आशा को पहली बार अपना गांड इतना फैला हुआ महसूस हो रहा था। मानो किसीने एक बड़ा सा सरिया घूसा दिया हो।
आशा अपना हाथ पीछे ले जाकर बचे हुए लंड को हाथो से नापने लगी।
जगदीश राय: बस बेटी…और थोड़ा…सिर्फ 3 इंच बची हुई है…
आशा ने ज़ोर देकर लंड पर गांड दबाना चालु रखा।
कसी हुई गांड की जकड , जगदीश राय के लंड पर भी भारी पड़ रहा था। पूरा लंड लाल हो चूका था।
बाहर दही कला का शोर चल रहा था। और आवाज़ो से महसूस हो रहा था जैसे एक और कोशिश हो रही है , हुण्डी को तोड़ने की।
जगदीश राय का उतेजना भी लोगों से कम नहीं था और वह भी स्खलित होने के कगार पर पहुँच चुके थे।
दोनो आशा और जगदीश राय पसीने से लथपथ हो चुके थे। सासे जोरो से चल रही थी।
जगदीश राय: बेटी…और मारो बेटी…ज़ोर ज़ोर से कूदो…।मारवाओ गांड अपनी…।
आशा: आहहाआअह…आह्ह्ह्हह्ह्
जगदीश राय के लंड के ऊपर आशा तेजी से कूद रही थी।उसकी गाण्ड में 9 इंच लंड पूरा घुस चूका था।जगदीश राय को बहुत मज़ा आ रहा था।वह भी निचे से अपनी बेटी के गांड में धक्का देने लगा।
अचानक आशा ने महसूस किया उसके पापा का लंड गांड के अंदर फूल रहा है।
जगदीश राय ने तुरंत आशा को कमर से पकड़ लिया और तेज़ी से अपना लंड उसके गांड में मारने लगा।
हर झटके के साथ्, बाहर से लोगों का प्रोत्साहित करने वाली पुकार सुनायी दे रही थी।
लोगों बहार से: हाँ …और ऊपर…अंदर से…।घूस जा।।।
तभी लैंड गांड के छोटे छेद को चीरते हुए एक ही झटके में पूरा अंदर तक घूस गया।
आशा: पापा…।आहः
आशा ज़ोर से चीख पड़ी ।
उसी वक़्त बाहर से "गोविन्दा गोविन्दा हुर्रियिय" का पुकार सुनाई दिया और मटकी फोड़ने की आवाज़ सुनाई दी।
गुब्बारे फूटने लगे। पटाके उडने लगे।
ओर तभी, अंदर, लंड का टोपा पूरा फूल गया और आशा को अपने गांड के अंदर एक सैलाब महसूस हुआ।
जगदीश राइ: ओह।।।।।।।
लण्ड ज़ोर ज़ोर से तेज़ी से झड रहा था। और ढेर सारा गरम वीर्य उगलने लगा।
जगदीश राय कम से कम 4 दिन बाद झड रहा था। उसका पूरा शरीर कांप रहा था।
आशा की गांड के अंदर 9 इंच लम्बा और 3 इंच मोटा लंड लिए ऐसे ही बैठी रही और लंड से निकलने वाले वीर्य के हर धार के प्रभाव , आंखें मूंद कर महसूस कर रही थी।
कम से काम 5 मिनट बाद, बाहर और अंदर सन्नटा छा गया।
आशा धीरे धीरे अपने पापा के लंड से उठने लगी।
आशा: हम…आहः
और गांड की चमड़ी पूरी बाहर के तरफ खीच गयी। जब लंड पूरा बाहर निकल गया तभी , गांड के अंदर से ढेर सारा वीर्य लंड के ऊपर उगलकर गिर पडा।
आशा लंड और वीर्य को देख कर मुस्कुरायी।
जगदीश राय: बेटी…बहुत अच्छा लगा…तुमने तो अपना वादा निभाया।।पर दही कला शायद ख़तम हो गयी…तुमने मटकी फोड़नी मिस कर दी
आशा: न न पापा मैंने तो असली मटकी फोड़ी है…और ढेर सारा मलाई भी निकाली है…बाहर के लोग यह नज़ारा मिस कर गये।।हे हे।
जगदीश राय , अपने कमरे को ठीक करने में लगा था।
उसकी उत्साह कोई छोटे बच्चे से कम नहीं था।
आज रात आशा ने कहा था की वह आएगी।
दही कला के दिन गांड मरवाने के बाद, हर रात 11-12 बजे रात को आशा छुपके से , अपने पापा के कमरे में घूस जाती।
और कम से कम 1 घन्टे तक , उछल उछल कर गांड मरवाती।
जगदीश राय , जो पहले कभी गांड नहीं मारा था, आज कल खुद को किसी एक्सपर्ट से कम नहीं समझ रहा था।
जगदीश राय को कभी कभार आशा की बेशरमी और पागलपन पर चीढ़ भी आ जाता।
कभी कभार वह अपने पापा के लंड को काट देती और पापा के दर्द पर मुस्कराती।
कभी कभार जान बुझकर गांड में कोई तेल या क्रीम न लगाकर, लंड पर ज़ोर से बैठ जाती।
और लंड के दर्द से हंस पडती, भले ही उसे भी दर्द हो रहा हो।
और पिछले 2 रातो से, जान बुझकर वादा करके , मुकर जाती।
जगदीश राय , मन ही मन, उम्मीद कर रहा था की कल रात की हालत उसकी न हो, जब आशा कमरे में आकर, गांड न देते हुए, उसके लंड को हिलाने लगी, और ओर्गास्म के च���म सीमा पर आकर, "मुझे नींद आ रही है" कहकर चल दी।
आशा , न लंड ज्यादा देर मुँह में लेती । न ही चूत में ऊँगली डालने देती। सिर्फ गांड मरवाती।
जगदीश राय , उससे निशा से तुलना कर रहा था। एक जगह पर निशा थी जो अपने पापा के ख़ुशी के लिए कुछ भी कर जाती और दूसरे ओर यह पगली आशा जो उसे अपनी उँगलियों पे नचा रही थी।
हालाँकी जगदीश राय, बहुत बार ठान लिया था की आशा को भाव न देकर रास्ते पर लाये, पर हर वक़्त आशा की गांड और उसमें से निकल रही सुन्दर पूँछ के सामने , उसका लंड जबाब दे देता।
निशा 2 दिन में वापस आने वाली थी, और जगदीश राय सोच पड़ा की वह आशा से कैसे सम्बन्ध रख पायेगा।
तभी आशा कमरे में घूस गयी। वह सिर्फ एक शर्ट पहनी थी।, जिसमें बहुत मादक लग रही थी।
जगदीश राय (बड़े मुश्किल से झूठा ग़ुस्सा दिखाते हुए): बहुत देर लगा दी…पर आयी तो सही महारानी…
आशा: हाँ…सशा सो ही नहीं रही थी…।अभी भी उससे यह बोल के आयी हु…की बाथरूम जा रही हु…
जगदीश राय : ओह…तो अब…मैं आज रोक नहीं सकता…कल तुमने अच्छा नहीं किया आशा…
जगदीश राय किसी बच्चे की तरह उससे शिकायत कर रहा था.
और कहीं उसके अवचेतन मन में उससे अपने खुद के बरताव पर भी काफी शर्म आ रहा था।
आशा: वह सब छोड़ो…आज सिर्फ 4-5 मिनट है आपके पास…नहीं तो मैं चली…
जगदीश राय: अरे नहीं…पहले कपडे तो निकालो।
आशा (बात काटते हुयी, सीधे भाव से): वह सब पॉसिबल नहीं है…यह लो…घुसा लो…
आशा तुरंत अपना गांड पापा की तरफ कर दिया, और दिवार से टेककर खड़ी हो गयी। उसने अपना दोनों हाथ से शर्ट को उतना ही ऊपर किया जितना उसकी गांड दिखाई दे सके।
जगदीश राय : ऐसे खड़े खड़े…पर इसमे तो पूँछ लगी है…बेटा।
आशा: अरे तो निकाल लेना खीचकर गांड से पापा…क्रीम लगा कर सॉफ्ट करके आयी हुँ…
जगदीश राय , उतावले कापते हाथो से पूछ की मुलायम रेश्मी बालो को पकड़ कर गांड से खीच लेता है।
खिचते वक़्त उससे पता चलता है की आशा की गांड कितनी टाइट है। इतनी गांड मारने के बाद भी आशा की गांड बहुत टाइट थी।
आशा: पापा…ज़ोर से खीचिए…ऐसे नहीं निकलेगी।।।
जगदीश राय , पूरा ज़ोर लगा खीचना शुरू किया ।
धीरे धीरे आशा की गांड से बाहर गया, और अन्तः में 2 इंच का गोलदार भाग 'पलॉक' के आवाज़ से बाहर निकल गई।
पूँछ बाहर निकलते ही, आशा की गोलदार गांड के बीचो बीच एक 2 इंच का सुन्दर होल, गांड के छेद को चौड़ा कर , अपने पापा के लंड को मानो पुकार रहा था।
जगदीश राय, ने जवाब में 3 इंच मोटे लंड को उस होल में घुसाना उचित समझा ।
और १० सेक्ण्ड के अंदर, अपने पापा के 9 इंच लम्बाई के लंड से कठोर चुदाई , आशा की गांड खोलकर ले रही थी।
हर चुदाई के भारी धक्के से, आशा दिवार से चिपक जाती और गांड का छेद 3 इंच तक खीच जाता।
इसके पहले की देर हो जाए, जगदीश राय ने तुरंत तूफ़ानी गति से पेलते हुए, अपना ढेर सारा गाढ़ा वीर्य से आशा की गांड को भर दिया।
हाफ्ती हुयी, कापते पैरो से, जगदीश राय , लंड को गांड से बाहर निकाला।और बिस्तर पर बैठ गया।
आशा, बिना किछ कहे, पूछ का गोलदार हिस्सा, बाये हाथ से गांड पर ले जाती है। और "ह्म्ममम्म" के आवाज़ से गांड में एक झटके से घुसा देती है।
गाँड में घुसते वक़्त , पापा का ढेर सारा मलाइदार वीर्य गांड के छेद से निकलकर पूँछ और उसके हाथो पर गिर पड़ता है। और थोड़ा शर्ट पर भी। आशा उसकी कोई परवाह नहीं करते हुयी, शर्ट ठीक करके, चलने लगती है।
जगदीश राय : बेटी…कल भी आना…।अब सिर्फ कल की रात है।।परसो रात से निशा आ जाएगी…
आशा: मतलब परसो रात से तो आप फिर से दूल्हे राजा…नहीं…हाँ पर मेरे बारे में निशा दीदी को कुछ पता नहीं चलनी चाहिए।।
जगदीश राय : हाँ हाँ बेटी ।।।बिल्कूल।…मैं क्यू।।कैसे…
आशा: तो फिर ठीक है।।वैसे कौन ज्यादा पसंद है आपको।। दीदी की चूत या ��ेरी गांड।।।
अगले दिन, आशा ने अपने पापा को पूरा निचोड कर रख दिया था। कल आशा ने छुपके से अपने पापा से कहा था।
आशा (प्यार से): पापा…मेरी आज म्यूजिक क्लास है…लेकिन आप चाहो तो मैं आपकी इस बासुरी के साथ गुज़ार सकती हु…क्या आप जल्दी आ सकते है…?
जगदीश राय को आशा की प्यार भरी अंदाज़ से ताजुब हुआ।
जगदीश राय (मैं मैं): अरे कल तक तो यह मुझ पर उपकार कर रही थी।।और आज इतने प्यार से…
जगदीश राय : हाँ …मैं…कोशिश कर सकता हूँ।
आशा: तो फिर ठीक…3 बजे।। और सशा कल लेट आयेगी…उसकी सहेली की बर्थडे जो है…तो हमें आराम से 4-5 घन्टे मिलेंगे।।
जगदीश राय 5 घन्टे सुनकर खूशी से पागल हो गया। क्युकी आज तक उससे 30 मिनट से ज्यादा आशा ने नहीं दिया था।
पर आज जगदीश राय को पता चल गया था की वह सब इस आशा की चाल थी।
वह जानती थी की 15 दिन से भूखी निशा आते ही लंड माँगेगी। और पूरी रात निशा आज उनका लंड चूसेगी और निचोड़ेगी।
ओर जो दर्द जगदीश राय को होगा, उसे देखकर परपीड़क (सैडिस्ट) आशा को मजा आयेगा।
जगदीश राय (मैं मैं): देख तो कैसी बेठी है अब,एक नंबर की हरामी है यह घर की। पर कल सच में आशा ने हाल बुरा कर दिया मेरा।
सोचा नहीं था की आज कल की लड़कियां मर्दो का ऐसा हाल करके चुदवाती है।
कल दोपहर, जगदीश राय पहली 2 चुदाई के बाद, हाफ्ते बेड पर पड़ा रह।
जगदीश राय : बस बेटी…थक गया…
आशा , पैर खोले, गांड में 2 उंगलिया , पूरा घुस्साकर , ज़ोरो से अंदर बाहर कर रही थी।
आशा: क्या पापा…अभी तो सिर्फ ४५ मिनट हुई है…और पूरा 5 घण्टा बाकी है…मुझे तो अभी गर्मी आयी है… चलिये…खड़ा कीजिये…मैं हिला दू?
जगदीश राय: बस 5 मिनट दे दो…
आशा: मैं जानती हु…इस पप्पू का क्या करना है।
आशा तुरंत उठ गयी। और बिस्तर पर खड़ी हो गयी। और इस के पहले जगदीश राय कुछ समझ पाता, आशा अपने पापा के चेहरे के 2 इंच दूरी पर अपने गांड के छेद को ले गयी। उसने अपने गांड को हाथो से खोल रखा था।
गाँड में से अजीब सी गंध आ रही थी, जो बहुत मादक लग रही थी। और आशा के ऑंखों के सामने, उसके पापा का लंड फिर से खड़ा होने लगा।
जगदीश राय के लाख चाहने पर भी, आशा ने उस वक़्त गांड को चाटने नहीं दिया था। वह पैतरा आगे के लिए रखी थी।
पुरी 5 घण्टो में, जगदीश राय 5 बार झड गया। हर बार आशा कुछ नए अन्दाज़ में उसका लंड खड़ा करती और तुरंत गांड में घूसा देती।
यह सब सोच कर जगदीश राय का लंड फिर से खड़ा हो गया। पर खड़ा होते वक़्त लंड और टट्टे दर्द करने लगा।
सभी निशा का इंतज़ार कर रहे थे। निशा ने फ़ोन में बता दिया था की उसकी सहेली के पापा , उसे घर ड्राप कर देंगे।
जगदीश राय, निशा के बारे में सोचते ही उसे निशा की चूत की खूशबू याद आ रहा था। पर आज लंड खड़ा होते होते दर्द कर रहा था।
अचानक घण्टी बजी।
आशा: लगता है दीदी आ गयी…
दरवज़ा ख़ुलते ही निशा हँसते हुई आयी। आशा और सशा , निशा से लिपट गई।
फिर निशा भागके आकर अपने पापा से ज़ोर से गले लगी।
निशा: पापा…कैसे हो…।
निशा ने अपना भरे भरे चूचे , पापा के सीने में चिपकाकर रख दिए। जगदीश राय को निशा के चूचियो का गर्मी से अंदाज़ा हो गया की वह कितनी भूखी है।
आशा की नज़रे पापा और निशा पर थी। और आशा को देखकर जगदीश राय थोड़ा सा शर्मा गया। पर निशा इन सब से बेखबर , पापा से लिपटी रही।
जगदीश राय : बेटी मैं तो ठीक हु…तुम बताओ …।कैसी रही…तुमारी ट्रिप…सब कुछ ठीक हुआ ना।
निशा: बहुत मजा आया पापा…क्या बताऊ…
और निशा अगले 2 घण्टो तक बक बक करती रही। तीनो लड़कियों आपस में दोपहर तक बातचीत करती रही। और खाना बाहर से मंगवा लिया।
दोपहर को जगदीश राय के कमरे में निशा घूस गयी।
निशा के आते ही सशा और आशा उसे उसके ट्रिप के बारे में पुछकर फोटोज देखने लग गये।
जगदीश राय , यह जानते हुए की खाना बनाना तो दूर की बात है, होटल से खाना आर्डर कर दिया।
निशा : पापा…आप को फोटोज नहीं देखनी…यह देखिये मेरी क्लास पिछे फाल्स के पास की है…
यह केहकर निशा भाग के जगदीश राय के पास आयी और सीधे जगदीश राय के गोद पर बैठ गयी।
जगदीश राय शरमाते हुए चौक गया। आशा ने एक मुसकान दी और सशा हँस पडी।
निशा ने, जवान होने के बाद से, बेचारी पहले कभी अपनी पापा के गोद में इस तरह सबके सामने नहीं बैठी थी।
जगदीश राय और आशा दोनों समझ गए की निशा बहुत गरम हो चुकी है। और लंड के लिए तड़प रही है।
जगदीश राय: अच्छा बेटी अच्छा देखता हु…पहले तुम निचे सोफे पर तो बैठ जाओ।
आशा: अरे बेठने दो न पापा…दीदी इतने दिनों बाद तो आयी है…अपनी प्यारे पापा का मिस कर रही है…सॉरी…मेरा मतलब है…पापा को मिस कर रही है
जगदीश राय झेप गया।
लेकिन निशा आज शर्म हया भूल चुकी थी। पीछले 10 दिनों में उसका जो हाल हुआ था वह सिर्फ वह ही जानती थी।
उसके बहुत सारी सहेली , अपने बॉय फ्रेंड के साथ चुदवा रही थी रात को और वह अपने उँगलियों से काम चला रही थी।
दो तीन लड़को ने उसे ऑफर भी दिया था इन डायरेक्टली पर उसने उन्हें मना कर दिया।
उसकी यह हालत देखकर, उसकी एक सहेली पारुल ने उससे समझाया भी।
परूल: देख निशा…सभी कॉलेज ट्रिप में मजा करने आते है…ताकि घर की निगरानी से दूर बेफिक्र होकर चुदवा सके…।और तू है की…
निशा: लेकिन मेरा तो कोई बॉय फ्रेंड नहीं है…तो मैं कैसे।।
परूल: अरे पगली…बॉय फ्रेंड किसको चाहिये…चूत को सिर्फ लंड चाहिये… वह किसीका भी हो…इतने सारे लंड है यहाँ…चुन ले किसी एक को…तेरे लिए तो हर कोई भी राजी होगा…
निशा: क्या…क्या बक्क रही है…
पारूल: अरे और नहीं तो क्या…वह सिमरन पिछले ४ रातो से 7 लंड ले चुकी है।। और उसकी तो तेरे जैसी अच्छि फिगर भी नहीं है…यहाँ सब बिन्दास है डियर…
निशा: मैं तो नहीं मानती…मैडम और सर जान जायेंगे… डायरेक्ट घर फ़ोन लगेगा…
परूल : है है है…अरे पगली…फ़ोन तो मैडम और सर के घर लगनी चाइये…वह दोनों तो जब से आए है, तब से एक भी रात एक दूसरे के बगैर नहीं सोये है…सर ने तो कल मेरे बॉय फ्रेंड विशाल से कंडोम भी लेके गए थे…तू सपनो की दुनिया मैं है।
निशा: क्या बोल रही है…सच।।?
पारूल: मूछ…और नहीं तो क्या…बोल कौन सा लंड चाहिये…।मैंने सुना है…त्रिलोक का लंड काफी बड़ा है।।चलेगा…और फिर सोनू चूत बहुत देर तक चाटता है।।और आकाश…गांड।।।
निशा: नहीं नहीं…मैं तो त्रिलोक और सोनु से तो बात भी नहीं करती…और उन सब की तो गर्ल फ्रेंड भी है।।
पारूल: लो तू फिर शुरू हो गयी…ठीक है…विशाल तो ठीक है…?
निशा: पर वह तो तेरा बॉय फ्रेंड है।
पारूल: वह मेरी प्रॉब्लम है… उससे तुझे क्या…तू बस उसका लंड ले ले एक बार…पर सिर्फ जस्ट वन टाइम ओके…बाद में नहीं मिलेगी।।हे हे
निशा: पर तुझे बुरा नहीं लगेगा…
पारूल: नहीं…क्युकी डियर…अपना वसूल है…जितना लंड बाटोगे उतना तुम्हे लंड मिलेगा…हे हे…और वह अगर तेरी चूत मारेगा।।तो मुझे भी दूसरे लंड खाने का मौका मिलेगा…क्यों है न प्लान सही हे हे।
निशा: अब समझी कमिनी… हे हा।
पारूल: तो फिर बोल दूँ विशाल को की आज उसके लिए एक नयी हॉट माल है…?
निशा: हम्म्म…नहीं…रुक जा…मैं तुझे बताउंगी तब बोलना।
पारूल:…तेरी मर्ज़ी…हम सिर्फ भटके हुए को रास्ता दिखा सकती हैं…हे हे।
और अगला 6 दिन निशा करवटे बदल बदल कर निकाली। वह जानती थी की उसके पापा का भी यहीं हाल हो रहा होगा। और वह उनको तडपा कर खुद एश नहीं कर सकती।
और आज वह दिन आ गया था। आज वह पापा से खूब चूदना चाहती थी।
निशा ने अपने गांड को पापा के लंड से दबाये रखा। वही आशा यह सब देखकर मुस्कुरा रही थी।
आशा: सशा चल हम ऊपर चलती है…।शायद दीदी को पापा के साथ कुछ टाइम स्पेंड करना होगा।
सशा: अच्छा?
निशा: हाँ…बहुत दिनों बाद मिली हूँ न पापा से…
सशा: चलो ठीक है फिर…वैसे भी मेरे होमवर्क का टाइम हो गया है…
आशा: होम वर्क का तो इस घर में सबका टाइम हो गया है , हे हे।
निशा आशा की यह बात समझ नहीं पायी, और उसे दाल में काला नज़र आने लगी।
आशा और सशा के जाते ही, निशा पापा के गोद में , टांगे इर्द-गिर्द फैला कर बैठ गयी। अब उसकी भट्टी जैसी गरम चूत सीधे लंड को छु रही थी।
जगदीश राय का लंड , कल रात की चुदाई के बावजूद , दर्द होते हुए खड़ा हो गया।
निशा: पापा…ओह…मुझसे अब रहा नहीं जा रहा…प्लीज चोद दो मुझे…।
जगदीश राय: यहाँ…अभी…
निशा: हाँ…देखो न चूत कितनी गरम है और पानी छोड रही है…बस अपना लंड बाहर निकालो …मैं बैठ जाती हु…।चलो धोती खोल दो…चलो।
जगदीश राय: अरे नहीं नहीं…।सशा देख लेगी तो क्या सोचेगी…
निशा ने नोट किया की जगदीश राय ने आशा का नाम नहीं लिया।
जगदीश राय: दोपहर को इत्मिनान से करते है…
निशा(रूठते हुए): आप बहोत गंदे हो…बेटी इतनी दिनों बाद आयी है…चूत के लिए लंड माँग रही…और आप भाव खा रहे हो…
जगदीश राय: अरे नहीं प्यारी…कहो तो आज दोपहर पूरा टाइम लंड इस चूत से बहार निकलेगा ही नहि। बस…वादा रहा।।
जगदीश राय ने जोश में कह तो दिया था, पर अभी भी उसके टट्टो में दर्द था। आशा ने उसे बुरी तरह जो निचोड दिया था, कल रात।
निशा: हम्म…ठीक है फिर तो…पर आप चाट तो सकते है न…।।
जगदीश राय: हम्म…हाँ…क्यो नहीं…चाटना सेफ होगा…मेरे ख्याल से…
यह सुनते हि, किसी चुदासी रांड की तरह, निशा ने तुरंत अपना स्कर्ट ऊपर उछाल लिया और बिना-पेंटी की चूत जगदीश राय को प्रस्तुत किया।
निशा: यह लीजिये…।थोड़ा चेयर पर निचे सरक जाइये पापा…।हाँ ऐसे…यह लो… गरम रसीली चूत आपके मुह में…ओह्ह्ह…।वाउ…।मा…।इतने दिनों बाद…ह…क्या मज़्ज़ा …।।हाँ पापा…ऐसे ही…।हाँ चूत खोलकर…डालिये जीभ अंदर…।।हाँ ऐसेही…।।और तेज़…और…और…और…और ।।और…और।।ओह्ह्ह म्मा…मैं झड रही हु पापा……ओह …।।यह आ ओह आ…ओह…।पापा…ओह……ओह…।।हाँ चाटिये…।सारा पानी…।यह माँ…।।यह…।।पापा
जब निशा को होश आया तो उसने देखा तो हँस पड़ी… उसके पापा नज़र नहीं आ रहे थे। जगदीश राय को पूरे उसके स्कर्ट ने ढक रखा था।
निशा (बेशर्मी से): ओह पापा…।बहुत अच्छा लगा…क्या चाटा आपने…आपको कैसे लगा …अब मैं दोपहर तक का इंतज़ार कर सकती हु…।
जगदीश राय: बेटी यह कोई पूछने की बात है…।तुम्हारी चूत का पानी तो दिन भर पीते ही जाऊं।
निशा: धत…।
खाना खाने के बाद, जगदीश राय ने आशा को बुलाया।
आशा: क्यों पापा…।दीदी की चूत का पानी कैसा था?
जगदीश राय: तो क्या तुमने सब सुन लिया…।?
आशा: सुना भी और देखा भी…इतना जो चिल्ला रही थी दीदी …।बहुत गरम है दीदी…।
जगदीश राय (घबराते हुए): सशा ने भी…?
आशा: नहीं…लकीली वह उस वक़्त बाथरूम में चलि गयी…हाँ यह पता नहीं की उससे बाथरूम में दीदी की चीख़ पुकार सुनि या नहीं…
जगदीश राय: नहीं सुनि होगी…वरना वह कहते वक़्त पूछती ज़रूर…अच्छा आशा बेटि, तुम एक काम करो अभी सशा को लेकर कहीं चलि जाओ।
आशा: कहाँ…मैं नहीं जाने वाली।
जगदीश राय: अरे समझा कर…।तेरी दीदी बहुत गरम है…।
आशा: अरे तो दीदी को लंड चाहिए तो हम क्यों घर से बाहर जाये…आप लोग क्यों नहीं जाते किसी होटल में…
जगदीश राय (थोडा गुस्से में): बकवास मत कर…तू अच्छि तरह जानती है की सशा को इन सब की खबर नही��� होना चाहिए…
आशा: अच्छा बाबा जाती हु…हम शॉपिंग और फिर मोवी, ठीक है…?
जगदीश राय: सिर्फ मूवी काफी नहीं है…
आशा: जी नहीं…।शोप्पिंग एंड मोवी।
जगदीश राय: ठीक है…
आशा: और एक शर्त…।आज रात को दीदी की चुदाई के बाद मेरा गांड चाटेंगे और मारेंगे भी।
जगदीश राय: अरे…क्या…।कैसे…मतलब…तेरी दीदी तो खुद मुझे देर रात तक …।और फिर तुम्हे कैसे…।
आशा: वह सब मैं नहीं जानती…।दीदी के जाते ही मैं आउंगी … मंज़ूर है…
जगदीश राय: ठीक है…देखते है…
आशा मुसकुराकर अपनी जीत का जलवा दीखाते हुए गांड हिलाकर चल दि। क़रीब १० मिनट बाद सशा और आशा दोनों शॉपिंग के लिए चल दिये।
यहाँ आशा-सशा घर से निकल ही गए थे, की जगदीश राय के बैडरूम पर दस्तक हुई।
दरवाज़ा खुला और निशा खड़ी थी। उसने कुछ भी नहीं पहन रखा था…पूरी नंगी थी।
नंगी निशा किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। जगदीश राय का लंड अपने दर्द को भूल कर, खड़ा हो गया।
निशा भाग कर अपने पापा के ऊपर कूद पडी।
निशा : अच्छा हुआ आप ने आशा और सशा को बाहर भेज दिया। क्या कहा उनसे?
जगदीश राय: कुछ नहीं…यहीं की जाके मूवी देख आओ…और शॉपिंग कर लेना।
निशा को यह बात कुछ हज़म नहीं हुई।
निशा: चलो जो भी है…आज मैं आपके लंड को निचोड दूँगी…।और आपका कोई बहाना नहीं चलेगा …। समझे पापा।
जगदीश राय , मुस्कुरा दिया पर मन की मन थोड़ा डर भी रहा था।
निशा ने तुरंत पापा की धोती साइड कर दी और खड़े लंड को हाथ में पकड़ लिया।
और बिना कुछ कहे, एक भूखी शेरनी की तरह , सीधे मुह में लेके चूसने लागी। चूसाई इतनी ज़ोर की थी की पता चल रहा था की लंड की कितनी प्यासी है निशा।
जगदीश राय ने कंडोम का पैकेट लेने के लिए हाथ बढाया, पर निशा ने उन्हें रोक दिया।
निशा: पापा …आज से कंडोम नहीं…मैंने पिल्स ले ली है…मैं आपका लंड का स्पर्श फील करना चाहती हु आज से…।और आप आज से अंदर भी छोड सकते है अपने माल को।
जगदीश राय यह सुनकर खुश हो गया और तुरंत निशा को बॉहो में ले लिया।
पर निशा ने जगदीश राय को निचे ढकेल दिया और खुद ऊपर चढ़ गयी। बिना कोई देर किये एक ही झटके में उसने जगदीश राय का लम्बा मोटा लंड चूत में घुसेड दिया।
निशा ने पूरा गांड ऊपर करके ज़ोर ज़ोर से लंड पे अपनी चूत मारने लागी। चूत इतनी टाइट और गरम थी की जगदीश राय चंद मिनिटो में झड़ने के कगार पर पहुच गया था।
हर बार जब निशा गांड ऊपर करती, चूत बाहर की तरफ खीच जाती। आज पापा उसे नहीं चोद रहे थे बल्कि निशा आज पापा से चुदवा रही थी।
जगदीश राय: बेटी…धीरे करो……नही तो मैं झड जाउँगा…
निशा: धीरे नहीं होगा पापा…झड़ना है तो झड जाओ…पर चूत अब नहीं रुकने वाली…
निशा जोर जोर से लंड पर चूत मारने लगी, समझ नहीं आ रहा था की कौन किसे चोद रहा है। पुरे कमरे में फच फच की आवाज़ गूँज रही थी साथ में निशा की सिसकियाँ…
जगदीश राय , एक ज़ोर का आवाज़ निकाला और निशा की चूत में झडने लगा। पर निशा की चूत की रफ़्तार थोड़ी भी धीमी नहीं हुई।
झडते लंड पर वीर्य के फवारे के साथ निशा की चूत उसे और निचोड रही थी।
जगदीश राय: रुक जा बेटी…मैं झड गया हु…थोड़ा धीरे…
निशा: नहीं पापा…मैं रुक नहीं सकती…प्लीज आप लेटे रहिये…लंड खुद कड़क हो जाएगा।।।
जगदीश राय का लंड , झडने के बाद सुकड़ना चाह रहा था, पर निशा की गरम गिली चूत की मार से खड़ा ही रह गया। जगदीश राय के टट्टो में दर्द होने लगा पर निशा आज कुछ परवाह नहीं कर रही थी।
जगदीश राय के झडने के २० मिनट तक निशा ऐसे ही ज़ोर ज़ोर से अपने पापा को चोदती रही, बिना रुके, बिना टोके। जगदीश राय की हर बिनती को उसने नज़रअंदाज़ कर दिया।
२० मिनट बाद जगदीश राय का लंड फिर से खड़ा हो गया था। पर वह झड़ना नहीं चाहता था क्युकी झडते वक़्त उसके टट्टो में दर्द हो रहा था।
और फिर निशा ज़ोर ज़ोर से हाँफते हुए तूफ़ानी अंदाज़ में चूत मारने लगी। और एक साथ जगदीश राय और निशा दोनों झड़ने लगे।
जगदीश राय: आर्गग्घहहह…निशा…बेटी…रऊउउउक…हाआआ…मैं झड़डडडडहह रआआह्ह्हआआ हूऊऊऊ
निशा: आआअह्हह्ह्ह्ह…पाआआआप्पप्पपप्पपाआआ……।
निशा कमसे कम 4 मिनट तक झडती रही। उसका सारा बदन थर थर कांप रहा था।
निशा इतनी जोर की झडी की उसे उसके मूठ पर कण्ट्रोल न रहा और उसने झड़ने के साथ साथ अपने पापा के कमर पर मूत भी दिया।
निशा बेहोशी की हालत में अपने पापा के ऊपर सोयी पड़ी थी। लंड अभी भी चूत में फसा हुआ था और निशा के पानी में नहा रहा था।
जगदीश राय का लंड दर्द कर रहा था। लंड अभी भी वीर्य उगल रहा था।
जगदीश राय, समझ गया की निशा को जी-स्पॉट ओर्गास्म आ चूका है। उसने काँपती निशा को बाहो में भर लिया। निशा झड़ती जा रही थी।
कोई १० मिनट बाद निशा जाग गयी।
निशा: सॉरी पापा…।शायद मैं ने आपके ऊपर थोड़ी सु-सु (यूरिन) कर दी।
जगदीश राय (निशा के गालो में हाथ फेरते हुए): बस थोड़ी सी? क्या पूरी नहीं की…नहीं किया तो और कर दो…
निशा: क्या…? नहीं…मैं आपके ऊपर थोड़ी ही कर सकती हूँ।
जगदीश राय: क्यों नहीं…मैं कह रहा हु न मुझे भी सु सु लगी है आओ…साथ में कर दो…
यह कहकर जगदीश राय ने अपना लंड फिर से निशा की चूत में घुसा दिया और बोला।चलो साथ में सु सु करते है।बहुत मज़ा आएगा।
दोनों एक साथ सु सु करने लगते है।निशा की आखे आनंद से बंद हो जाती है।पेशाब धीरे धीरे निचे आने लगता है।दोनों को इतना मज़ा आ रहा है की दोनों एक दूसरे के होठों को चूसने लगते है।
जगदीश राय को अपने लंड पर गरम पानी का एहसास हुआ था निशा को भी अपने चूत में तेज खलबली महसूस हुई।निशा की मुह से सु-सु निकलते हुए सिसकी निकली थी। जगदीश राय निशा को कसके बाहो में भर लिया और उसके गालो को चुमा।
निशा सु-सु करके वही पापा के ऊपर सो गयी। लंड अभी भी चूत के अंदर था।
निशा को चूत में कुछ महसूस हुआ। जब उसने आँख खोला तो अपने आप को पापा के ऊपर पाया। उसके दोनों मम्मे पापा की छाती से दबे हुए थे। और चूत में लंड खड़ा और कठोर हो चूका था।
निशा को अपने पापा का वादा याद आया की आज दोपहर तक लंड चूत से बाहर नहीं निकलने वाला है। सुसु की कामुक गंध सब जगह फ़ैल गयी थी, पर निशा को यह गंध और भी उत्तेजित कर रही थी।
जगदीश राय , अभी भी सो रहा था। निशा ने धीरे धीरे गांड हिलाकर लंड को अंदर बाहर करना शुरू किया।
थोड़ी देर बाद जगदीश राय की आँख खुली। और पाया की निशा फिर से चुदवा रही है। और कमरे में सुसु की गंध उसे भी पसंद आने लगी।
एक गजब सा वातावरण हो गया था, पिशाब और वीर्य के बदबू से। पर आज बाप-बेटी ख़ुद को गंदे साबित करने में हिचकिचा नहीं रहे थे।
जगदीश राय ने निशा की आँखों में देखा और निशा मुस्करायी। और फिर आंखें बंद कर ऊपर-नीचे होने लगी।
जगदीश राय ने तुरंत निशा को निचे पटक दिया और जोर-जोर से निशा को पेलने लगा। निशा खुद भी यही चाहती थी।
कोई 2 घन्टे तक , कभी निशा ऊपर तो कभी जगदीश राय, कभी डोगी स्टाइल तो कभी खड़े-खड़े निशा और जगदीश राय एक दूसरे को चोदते रहे।
शाम के 6:30 हो गया था।
जगदीश राय: मैं तो थक गया बेटी…।अब तेरा यह बूढ़े बाप से इतना ही हो पायेगा।
निशा: अरे मेरे प्यारे पापा, आप नहीं जानते आप में कितनी ताकत है।
और पापा के टट्टो को दबाते हुए कहा।
निशा: देखो टट्टे अभी भी भरे हुए है।
निशा के टट्टो को दबाने से जगदीश राय की दर्द से सिसकी निकल गयी
निशा: चलो अभी ब्रेक ले लेते है। वैसे भी वह दोनों आते ही होंगे। रात को खाना खाने के बाद मिलते है, सो मत जाना पापा। ठीक है।।
जगदीश राय: अरे बेटी…मुझे नहीं लगता मुझसे कुछ हो पायेगा रात को…एक काम करते है…कल संडे हैं…मैं इन्हे फिर कहीं भेज देता हु…
निशा: जी नही, कोई बहाना नहीं…।मैं रात को 11 बजे आउंगी। लंड तैयार रखना, मेरी चूत तो तैयार है ही।
फिर निशा चल दी।
जगदीश राय सोचने लगा की अब कैसे वह निशा और फिर आशा को खुश करे। वह अब २ पत्नियों के पति की दुविधा में फस चूका था।वह तैयार होकर जल्दी से मार्केट निकल गया।और एक मेडिकल स्टोर से बियाग्रा की गोली खरीद लाया और अपने रूम में छुपाकर रख दिया।वह समझ गया था की आज दोनों बेटियों की जवानी की गर्मी को शांत करने के लिए इसकी बेहद जरुरत है।
आज जगदीश राय को निशा की जबान से 'लंड' और 'चूत' जैसे शब्द सुनकर आस्चर्य हो रहा था। शायद ये उसने किसी सहेली के साथ बोलकर आदत डाल ली है।
रात का 10:45 बज चूका था। जगदीश राय अपने बैडरूम में बैठा हुआ था। बेडशीट बदली हुई थी पर कमरे में अभी भी सु-सु की गंध थी।
वह बार-बार किसी नई नवेली दुल्हन की तरह घडी को देखे जा रहा था।
उसने धोती हटाकर अपने लंड को देखा। लंड , एक घायल शेर की तरह, सोया पड़ा हुआ था।उसने गोली खा लिया।
उसने सोचा अगर लंड जल्दी खड़ा नहीं हुआ तो तब तक निशा को चाटकर खुश करेगा।
वही आशा , सशा के सोने का राह देख रही थी। उसे पता था ही निशा फिर पापा से चुदने जाएगी। और पापा जो कल रात और आज दोपहर चुदाई करके थक गए है।
पापा का यह बुरा हाल देखकर उसे बहुत मजा आ रहा था। उसने अपना कान दरवाज़े पर जमाये रखा।
ठीक 11 बजे जगदीश राय का दरवाज़ा खुला और निशा वहां खड़ी थी। पूरी नंगी थी। जगदीश राय, को उसके नंगापन पे आश्चर्य हुआ की कैसे उसे आशा-सशा का डर नहीं रहा।
जगदीश राय: बेटी…देखो…मुझे नहीं लगता आज ज्यादा देर होगा…मैं चाहु तो…
निशा (टोकते हुए): अरे पापा, आप उसकी चिंता क्यों करते है…।आप मुझे खुश देखना चाहते है न…।
जगदीश राय: हाँ बेटी…
निशा: तो , यह बताइये आपको मेरा कौन सा हिस्सा चुमना है…?
जगदीश राय: बेटी वैसे तो तुम पूरा चुमने लायक हो…पर तुम्हारी चूत बहुत प्यारी है।
निशा: तो आप सिर्फ मेरी चूत चूमो और चाटो। बाकि सब मुझपे छोड दो…ठीक है।
जगदीश राय: ठीक है।
निशा ने अपने चूत को जगदीश राय के चेहरे के ऊपर रख दिया। और जगदीश राय चाटने लगा। निशा ने फिर 69 पोजीशन में आकर पापा के लंड को मुह में ले लिया।
और निशा ने किसी वैक्यूम क्लीनर के फाॅर्स से पापा का लंड चूसने लगी।
हर चूसाई से एक "स्स्स…" की आवाज़ रूम में फ़ैल रही थी।
निशा की चूत की मादक खुसबू और लुंड के चूसने से, १० मिनट में ही जगदीश राय का लंड खड़ा होने लगा।
निशा फिर अपने पापा के ऊपर चढ़कर चोदने लगी।
1 बजे रात तक यही सिलसिला चलता रहा। जगदीश राय 2 बार झड चूका था। हर बार निशा उसकी लंड चूस कर खड़ा कर देती और लंड चूत में घूसा लेती। और फिर बिना रुके लंड को अलग अलग पोज में चूत में घुसवाकर चुदाने लगती।ज्यादा धक्के वही लगाती।कभी कुतिया की तरह बन जाती।कभी पापा के लंड पर चढ़कर कूदने लगती।
झडते वक़्त जगदीश राय दर्द से चीख पडता। निशा कितनी बार झड चुकी थी, उसकी गिनती वह भूल चुकी थी। पूरा बेड निशा के चूत रस से गिला पड़ गया था।
निशा पापा के इस दर्द से वाक़िब थी , पर वह अपने गरम चूत के सामने बेबस हो चुकी थी।
जगदीश राय: बेटी अब और नहीं…बस हो गया…।
निशा: ठीक है पापा…आज के लिए इतना। कल फिर करेंगे। ओके। तब तक आप अपने प्यारे लंड को आराम दे।
यह कहकर निशा पापा के माथे पर चुम्मी दी और अपनी गांड मटकाती हुई , नंगी ही अपने कमरे में भागती हुई चल दी।
रात के 2:30 बजे , जगदीश राय , नंगा होकर, थक कर सो गया था। कमरे में लाइट चालु थी । और कमरे के लाइट में जगदीश राय का लंड निशा के चूत-रस से चमक रहा था।
तभी उसे महसूस हुआ की कोई कमरे में आ चूका है। और देखा तो वहां आशा खड़ी थी।
आशा: क्यों पापा…सो गए क्या…
जगदीश राय: अरे बेटी …तुम यहाँ क्या कर रही हो…इस वक़्त।
आशा: आपकी प्रॉमिस भूल गए…
जगदीश राय: नहीं बेटी…आज तो नहीं होगा…प्लीज…जाओ सो जाओ…
आशा: यह अच्छी बात नहीं है…पापा…आप ने हमे सिखाया था की "प्रोमिस शुड बी केपट"। और आप ही मुकर रहे हो…
जगदीश राय: अरे बेटी…सॉरी…पर आज नहीं होगा कुछ…
आशा (ग़ुस्से में): मैं इतना रात तक उल्लु की तरह जागी…और आप…ह्म्मम।। मैं निशा दीदी को कल सब बता दूँगी…।
जगदीश राय: क्या? नहीं…?
आशा: हाँ… और सशा को भी…?
जगदीश राय: बिलकुल नहीं…चूप।।।…
आशा:नहीं…तो ठीक है…फिर यह लो…चाटो
यह कहकर आशा खड़े खड़े अपनी स्कर्ट ऊपर कर दी। और गांड जगदीश राय के तरफ कर दी।
गाँड , गोलदार सावली और उसमें से चिरती हुई सफ़ेद पूँछ। न चाहते हुए भी लंड पर ज़ोर आ गया। लंड दर्द करने लगा।
जगदीश राय, थका हुआ शरीर लेकर आशा की गांड की पूँछ को धीरे से उठाया। और पूँछ से छिपी सांवली मुलायम चूत नज़र आ गयी।
जगदीश राय यह उम्मीद में था की कहीं उसने आशा की चूत को चाटकर उसका पानी निकाल दिया, तो वह शायद उसे आज रात के लिए छोड दे।
वह आशा की चूत पर टूट पडा। आशा अपना गांड पीछे कर , पीछे से चूत चटवा रही थी।
आशा:मम…हाहह… पापा…जीभ अंदर तक डालो न…।।लो…मैं पैर ऊपर कर देती हूँ…।।अब लो…।।चाटो खुलकर चाटो…।।हाँ…।ऐसे ही…।और चाटो……।और ।।और…।आह…
करीब १५ मिनट तक आशा खुद को रोककर खड़ी रही और फिर खड़े खड़े ही ज़ोर से झड़ने लगी। उसका सारा शरीर ज़ोर से हिलने लगा।
जगदीश राय को लगा मानो वह ज़मीन पर गिर जाएगी। पर आशा बेड पर गिर पडी।
जगदीश राय ने राहत की सास ली…
जगदीश राय: बहुत ज़ोरो से झडी तुम बेटी…थक गयी हो सो जाओ अब…
आशा: क्या…नही…यह तो मैं दीदी की चुदाई देखकर हॉट हो गयी थी…इसलिए…अपना लंड खड़ा कीजिये…मेरे गांड में बहुत ज़ोरो की खुजली मची है…
आशा बेशरमी से अपने पापा को उनपर होने वाले ज़ुल्म का घोषणा दी।
जगदीश राय , चौकते हुए… अरे नहीं बेटी…मैं न कहा न…आज तो…
आशा ने तुरंत ज़ोरो से जगदीश राय का लंड मुठी में थाम लिया और उसे बेदरदी से पकड़कर कहने लगी
आशा: आज तो मैं इससे इत्तनी चुदवाऊंगी…सारी प्यास बुझा दूँगी…निचोड लूँगी इसे…
जगदीश राय: ओके
…बेटी…। तुम क्या निचोड़ेगी…पहले से तेरे दीदी ने निचोड लिया है इसे…।
आशा: पापा…बहुत रस बचा है इसमे…अभी दिखाती हु…
और आशा तेज़ी से लंड चूसने लगी। पूरे गले तक लेने लगी। जगदीश राय आँखे बंद किये अपने लंड के दर्द को बर्दाष्त कर रहा था। और देखेते ही देखते जगदीश राय का लंड , १० मिनट के भयंकर चूसाई के बाद ,बिलकुल रॉड की तरह खड़ा हो गया।
टट्टो में बहोत दर्द हो रहा था, पर न जाने क्यू, इस दर्द से लंड पर और प्रभाव पड़ रहा था और लंड और कड़क हो चला था। इसके बीच आशा ने गांड में से पूँछ को "फोक" की आवाज से बाहर खीच लिया।
आशा बिना चेतावनी दिए, घूम गयी और सीधे अपनी गांड के छेद में लंड घुसेड दिया। बिना तेल लगाये हुआ गाँड का छेद,में जगदीश राय का दर्दनाक लंड चीरता हुआ घूस गया।
जगदीश राय के आखों से आसूँ निकल गया, पर उसने अपनी चीख़ को रोका।
आशा को भी दर्द हुआ, पर आशा को दर्द से मजा आ रहा था।
आशा : अब दिखाती हु आपके इस लंड को…बहुत चोद रहा था दीदी की चूत को…अब इसका सामना मेरे गांड से है…
जगदीश राय: आह…धीरे बेटी धीरे…
यह कहना मुश्किल हो गया था की कौन मरद और कौन औरत।
आशा एक हाथ से अपने चूत को सहला रही थी और अपनी सूखी गांड लंड पर पटक रही थी। क़रीब चुदाई डेढ़ घन्टे तक चली। आशा 3 बार झड चुकी थी,
जगदीश राय का लंड पूरा लाल हो चूका था। और जो जगदीश राय को डर था वह होने वाला था। उसका लंड झडने के कगार पर था। और झडते वक़्त टट्टो का दर्द वह सह नहीं सकता था।
जगदीश राय: बेटी…रुक…जा…में झडने वाला हु…।मुझे…।दरद…होगा…रुक रुक…।आह…नहीं…आह…ओह।
झगीश राय , इतना ज़ोरो से चीख़ पड़ा के टट्टो-से दर्द का जैसा बम फटा हो। वह पागलो की तरह कापने लगा।। और लंड आशा की गांड के अंदर पिचकारी मारता गया। हर पिचकरी का दर्द एक चीख़ ले आता।
आशा, अपने पापा के ऊपर हंसती जा रही थी। उसे अपने पापा के इस दुर्दशा पर मजा आ रहा था।
जगदीश राय , अभी झड़ना , ख़तम कर ही रहा था की अचानक से दरवाज़ा खूल गया।
दोनो चौक पडे। झडते हुए पापा के ऑंखों के सामने रूम के उजाले में , पतली मैक्सी पहने निशा खड़ी थी।
निशा गुस्से से जगदीश राय और आशा को घूरे जा रही थी।
निशा बिना कुछ कहें १० सेकेंड तक दोनों को घूरकर, बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गयी।
जगदीश राय तुरंत लंड बाहर खीच लिया, लंड अभी भी वीर्य उगल रहा था।
जगदीश राय: हे भगवन…निशा सब देख चुकी है…अब खुश हो गयी…मैंने कहाँ था…निकल जा यहाँ से…
आशा , पहले डरी हुई थी पर अब वह मुस्कुरा दी।
आशा: अच्छा हुआ…दीदी ने…सब देख लिया…अब तो मैं यहाँ पूरी रात गुज़ार सकती हुँ।।क्यूं…?
जगदीश राय (धीमे आवाज में, समझाते हुए) : चुप कर…अपने कमरे में चली जा।।
आशा: अच्छा बाबा जाती हूँ…
और वह , फर्श पर से स्कर्ट उठाकर…गांड मटका के चल दी।
जगदीश राय , मन में, निशा को कल किस मुँह से देखे। इस विचार में टेंशन के साथ सोने की कोशिश करने लगा।
अगले दिन सुबह जगदीश राय, बिना किसी से कुछ कहें , जल्द ऑफिस चला गया। वह निशा को फेस नहीं करना चाहता था।
हालांकी वह जानता था की रात को उसे निशा से मुलाकात करनी पडेगी।
अगले तीन दिन तक घर पर सन्नाटा बना रहा। जो भी बात होती वह बस सशा ही करती। निशा अपने पापा से मुह तक नहीं मिला रही थी।
आशा का बरताव ऐसा था जैसे कुछ हुआ ही न हो। पर निशा और आशा भी नहीं बोल रहे थे।
चौथे दिन, जगदीश राय ने फैसला किया की जो भी हो उसे इस उलझन हो सुलझाना पडेगा, नहीं तो उसका परिवार बिखर भी सकता है।
वह सुबह जाने से पहले आशा से कहा।
जगदीश राय: आशा आज स्कूल से सीधे घर आना…एक्स्ट्रा क्लास में मत बैठना।
आशा: क्यों…।आज क्या है…
जगदीश राय (ग़ुस्से से): जो बोला है वह करो…।और ज़बान को लगाम दो…गॉट इट।
आशा, पापा के इस रूप से थोड़ी डर गयी और हामी में सर हिला दी।
शाम को जगदीश राय 3 बजे घर पहुँच गया। दरवाज़ा निशा ने खोल दिया। निशा बिना कुछ कहे अंदर को जाने लगी।
जगदीश राय: आशा आ गयी…?
निशा : हाँ आ गई।
जगदीश राय: उसे भी बुलाओ और तुम भी आओ। मुझे कुछ बात करनी है…
निशा: पापा…।इसकी…कोई…
जगदीश राय (भारी आवाज़ में) : जो बोलै है …वह करो…
थोड़ी देर बाद आशा और निशा दोनों ड्राइंग रूम में पापा के सामने खड़े थे।
जगदीश राय: बैठो…पिछले कई दिनों…इस घर में…जो कुछ भी चल रहा था … वह क्यों हुआ …कैसे हुआ…मैं नहीं जानता…
जगदीश राय: और जो भी हुआ है…इसमें सब गलती मेरी है…तुम्हारी कुछ नहीं…
जगदीश राय: इस लिए…आज के बाद…सब कुछ बंद…।तुम दोनों बहने हो…और तुम्हे ज़िन्दगी भर हर वक़्त प्यार से रहना है…
निशा: पर पापा…
जगदीश राय: बीच में मत टोको…।।आज से…जैसे हम थे…।।तुम्हारी मम्मी के वक़्त वैसे ही रहेंगे…समझी…।अब तुम दोनों गले मिलो और यह सब भूल जाओ।
आशा और निशा दोनों अपने पापा के तरफ घूरते रहे और फिर दोनों मुस्कुरा दी।
निशा: पापा…हमने तो कब की सूलह कर दी…और गले भी मिल लिए…और क्या आप के कहने से क्या सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा…
जगदीश राय: कोशिश तो कर सकती है।
निशा: नहीं पापा…जो भी हुआ है…सही या गलत मैं नहीं जानती…लेकिन…हालात के अनुसार हुआ है…आप और मैं या आप और आशा दोनों हालात के चँगुल मैं फस गये। अब इससे पीछे जाना मुमकिन नही।
जगदीश राय: तुम बोलना क्या चाहती हो।
निशा: यहि की गलती मेरी है…मुझे आप दोनों के प्यार और खेल को देखकर ग़ुस्सा नहीं करना चाहिए था। आशा का भी आप पर उतना ही हक़ है जितना मेरा। और वैसे भी मैं तो सिर्फ आपको खुश देखना चाहती थी। और वही ख़ुशी आपको आशा दे उसमे कोई बुराई नही।
जगदीश राय का मुह खुला ही रह गया।
जगदीश राय:क्या…तुम…
निशा: हाँ पापा…आजसे आप की मर्ज़ी…माँ की कमी पूरी करने के लिए आपकी दोनों बेटियां तैयार है।।क्योंकि आप हमारे प्यारे पापा है…
जगदीश राय को यकीन नहीं हो रहा था की क्या सुन रहा है।
निशा: तो ठीक है…क्या अब मैं आपके लिए चाय बना लाऊँ…की किसी को और कुछ बातें करनी है।
आशा जो अब तक चुप थी, बोल पडी।
आशा (शरारती ढंग से): क्या चाय से पहले…मैं और पापा एक राउंड खेल खेलकर आये…?
निशा: चुपकर…बेशरम…
आशा: नही दीदी।…।तीन दिन हो चुके अब…।अब सहा नहीं जाता।।।
निशा: मारूंगी अभी मैं तुझे…जा ऊपर होमवर्क कम्पलीट कर…।पापा इससे तो आप पूरा हफ्ता अपने कमरे से बाहर रखना…
आशा: पापा…आप दीदी की बात मत सुनना।
जगदीश राय को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वह क्या बोले।
जगदीश राय: तुम दोनों मेरी प्यारी बेटी हो।
आशा ने निशा को ठेंगा दिखाकर , ऊपर कमरे की तरफ भाग गयी। निशा भी हँस दी।
और 3 दिनों के बाद आज जगदीश राय बेहद खुश था। वह सोफ़े पर बैठा और पेपर उठा कर पढने लगा।
पर दिमाग पर यह सवाल था की आज किसकी बारी होनी चाहिये।
शाम को जब आशा और सशा पढाई कर रहे थे और निशा किचन में खाना बना रही थी तो जगदीश राय किचन में चला गया और निशा को बाँहों में भरकर चूमने लगा।आज 3 दिनों में जगदीश राय की प्यास बहुत बढ़ गई थी।उसने निशा की गांड को सहलाते हुए कहा।
जगदीश राय:बेटी तुमने अपना वादा पूरा नहीं किया।
निशा:कौन सा वादा पापा।
जगदीश राय:टूर पर जाते समय तुमने वादा किया था की तुम मुझे स्पेशल गिफ्ट दोगी।कब दोगी तुम और आज रात मेरे पास आओगी ना।प्लीज
निशा: ओके पापा।मैं रात के 12 बजे आऊँगी।और गिफ्ट भी दूँगी।पहले अभी तो छोड़िए।
जगदीश राय:निशा के होठों को चूसकर ओके बेटी मैं इंतज़ार करुँगा।
जब सभी खाना खाकर सो जाते है।लेकिन जगदीश राय की आँखों में नींद नहीं थी।उसका लंड अकड़ा हुवा था।वह 12 बजे तक जाग रहा था अपना लंड सहलाते हुए।वह पहले ही आशा को बता चूका था की आज रात वो निशा के साथ बिताएगा।तुम कल दिन में स्कुल बंक करके आ जाना।मैं भी ऑफिस से छुट्टी ले के 12 बजे तक आ जाउँगा।
रात के ठीक बारह बजे निशा जगदीश राय के रूम में आती है।वो भी सिर्फ ब्रा और पेंटी में। ठीक किसी मॉडल की तरह चलते हुए आकर जगदीश राय के बेड पर बैठ जाती है।
जगदीश राय अब निशा को पीछे अपनी बाँहों में भर लेता हैं और अपने जलते हुए होंठो को निशा की गर्देन पर रखकर धीरे धीरे चाटने लगता हैं और बहुत धीरे धीरे उसकी पीठ तक नीचे सरकता हुआ नीचे आता हैं. निशा की बेकरारी सॉफ उसकी सिसकारियों से स���नाई दे रही थी.जगदीश राय आज उसे पूरा पागल करने के मूड में था. वो चाहता था कि निशा पूरी तरह से बेकरार होकर उसकी बाहों में अपने आप को पूरा समर्पण कर दे. वैसे तो निशा ने ये बात बोल दी थी मगर करने और कहने में बहुत फ़र्क होता हैं.
जगदीश राय बहुत देर तक निशा के ऐसे ही पूरे बदन को जीभ से चाटता हैं और उधर निशा का सब्र जवाब देने लगता हैं.
निश���- पापा अब बस भी करो. क्या आप मुझे पागल करना चाहते हैं. अब मुझसे बर्दास्त नही होता.
जगदीश राय- इतनी जल्दी भी क्या हैं बेटी अभी तो पूरी रात पड़ी हैं. अभी तो मैने सिर्फ़ चिंगारी भड़काई हैं.अभी तो आग लगाना बाकी हैं.अब देखना ये हैं ये आग कितनी जल्दी शोले में बदल जाती हैं.
निशा- ये तो वक़्त ही बताएगा पापा कि आप के अंदर कितनी आग हैं. आज मैं भी देखूँगी कि आप में कितना दम हैं और इतना कहकर निशा मुस्कुरा देती हैं.........
जगदीश राय- तू मुझे चॅलेंज कर रही हैं देख लेना मैं दावे से कहता हूँ कि तू मेरे सामने टिक नहीं पाएगी. मैं अच्छे से जानता हूँ कि किसी भी लड़की को कैसे वश में किया जाता हैं.
निशा मुस्कुराते हुए- ये तो वक़्त ही बतायेगा कि आपका पलड़ा भारी हैं या मेरा.
जगदीश राय- फिर ठीक हैं लग गयी बाज़ी. अगर तू मेरे सामने अपनी घुटने ना टेक दे तो मैं आज के बाद हमेशा के लिए तेरी गुलामी करूँगा ये तेरे पापा की ज़ुबान हैं.
निशा- सोच लो पापा कहीं ये सौदा आपको महँगा ना पड़ जाए.
जगदीश राय- मर्द हूँ एक बार जो कसम ले ली तो फिर पीछे नहीं हटूँगा. मगर तू मुझे किसी भी बात के लिए मना नहीं करेगी. बोल मंजूर हैं.
निशा मुस्कुराते हुए- फिर ठीक हैं मुझे आपकी शर्त मंज़ूर हैं.
जगदीश राय कुछ देर ऐसे ही खामोश रहता हैं फिर गहरे विचार के बाद वो निशा के बिल्कुल करीब आता हैं. वैसे जगदीश राय मंझा हुआ खिलाड़ी था. इसकी दो वजह थी एक तो उसका हथियार काफ़ी दमदार था और दूसरा वो बहुत सैयम से काम लेता था. किसी भी परिस्थिति में वो विचलित नही होता था.
और पिछलों कुछ दिनों में आशा की कुँवारी गांड मारकर उसका मनोबल और भी बढ़ चूका था।
इस लिए उसे पूरा विश्वास था कि वो हर हाल में बाज़ी ज़रूर जीत जाएगा. हालाकी निशा की रगों में भी उसका ही खून था मगर निशा इन सब मामलों में एक्सपर्ट नहीं थी. उसने तो अपनी ज़िंदगी में बस अपने पापा के साथ सेक्स किया था. इस वजह से उसे सेक्स के बारे में ज़्यादा पता नहीं था.
जगदीश राय एक दम धीरे से निशा के पीछे आता हैं और और उसके कंधे पर अपने लब रखकर एक प्यारा सा किस करता हैं और अपने दोनो हाथों को धीरे से बढ़ाकर निशा के दोनो बूब्स को धीरे धीरे मसलना शुरू कर देता हैं. निशा मदहोशी में अपनी आँखें बंद कर लेती हैं और उसके मूह से सिसकारी निकल जाती हैं.
जगदीश राय फिर अपना होंठ निशा के पीठ पर रखकर फिर से उसी अंदाज़ में हौले हौले चाटना शुरू करता हैं. निशा की पैंटी पूरी भीग चुकी थी. वो तो बड़े मुश्किल से अपने आप को संभालने की नाकाम कोशिश कर रही थी.
निशा- पापा बस भी करो मुझे कुछ हो रहा हैं.
जगदीश राय-क्या हो रहा हैं बता ना. क्या तेरी चूत गीली हो गयी हैं. हां शायद यही वजह हैं और इतना कहकर जगदीश राय एक पल में अपना हाथ नीचे लेजा कर निशा की चूत को अपनी मुट्ठी में थाम लेता हैं.निशा के मूह से एक तेज़ सिसकारी निकल पड़ती है. फिर धीरे धीरे वो अपना हाथ निशा की पैंटी के अंदर सरका देता हैं और उसके क्लिट को अपनी उंगली से मसल्ने लगता हैं. निशा एक दम से बेचैन हो जाती हैं और जवाब में वो अपना लिप्स को अपने पापा के लिप्स पर रखकर उसे चूसने लगती हैं.
एक हाथ से जगदीश राय निशा के बूब्स को मसल रहा था और दूसरे हाथों से वो निशा की चूत को सहला रहा था. और निशा उसके लिप्स को चूस रही थी. माहौल पूरा आग लगा देने वाला था. थोड़ी देर में जगदीश राय का हाथ पूरा गीला हो जाता हैं.
निशा- पापा.............. अब बस भी करो मुझसे अब बर्दास्त नही हो रहा. आप शर्त जीत गये.
जगदीश राय- अरे मेरी जान तूने इतनी जल्दी कैसे हार मान ली. अभी तो शुरूवात हैं. देखना आगे आगे मैं क्या करता हूँ. इतना बोलकर जगदीश राय अपने दोनो हाथ निशा की पीठ पर रखकर उसकी ब्रा का स्ट्रिप्स को खोल देता हैं और अगले पल निशा झट से अपने गिरते हुए ब्रा को दोनो हाथों से थाम लेती हैं.
जगदीश राय अगले पल निशा के ब्रा को पकड़कर उसके बदन से अलग कर देता हैं और निशा भी कोई विरोध नहीं कर पाती. बस अपनी नज़रें नीची करके अपनी गर्देन झुका लेती हैं. जगदीश राय भी झट से निशा के सामने आता हैं और वो निशा के बूब्स को देखने लगता हैं. फिर वो अपना लिप्स को निशा के निपल्स पर रखकर उसे एक दम हौले हौले चूसने लगता हैं. ना चाहते हुए भी निशा अपने पापा की हरकतों को इनकार नही कर पाती और वो अपना एक हाथ अपने पापा के बालों पर फिराने लगती हैं.
जगदीश राय- निशा तुम्हारे ये दूध कितने मस्त हैं. जी तो करता हैं इन्हें ऐसे ही चूस्ता रहूं.निप्पलो को काट लूँ।
निशा- तो चूसो ना मैने कब मना किया हैं. जब तक आपका मन नहीं भरता आप ऐसे ही इन्हें चूस्ते रहो काटते रहो।
फिर जगदीश राय एक हाथ से उसके निपल को अपनी उंगली में मसल्ने लगता हैं और दूसरी तरफ वो अपना मूह लगाकर निशा के बूब्स पीने लगता हैं. निशा को तो लगता हैं कि अब उसकी जान निकल जाएगी. जगदीश राय सब कुछ एक दम आराम से कर रहा था. उसे किसी भी चीज़ की जल्दी नहीं थी. और वो जानता भी था कि ऐसे कुछ देर में निशा का भी संयम जवाब दे देगा और वो सब कुछ करेगी जो वो चाहता हैं.
करीब 10 मिनिट के बाद आख़िर निशा का सब्र टूट जाता हैं और वो तुरंत अपना हाथ आगे बढ़ाकर जगदीश राय का लंड थाम लेती हैं और उसे अपने नाज़ुक हाथों से मसल्ने लगती हैं. जगदीश राय ये देखकर मुस्कुरा देता हैं और अपना अंडरवेर उतारने लगता हैं और कुछ पल में वो एक दम नंगा उसके सामने हो जाता हैं.
निशा एक टक अपने पापा के लंड को देखने लगती है. निशा को ऐसे देखता पाकर जगदीश राय भी अपना लंड उसके सामने कर देता हैं.
जगदीश राय- ऐसे क्या देख रही हैं बेटी ।सिर्फ देखती रहोगी क्या.
राधिका अपना थूक निगलते हुए- पापा आज तो ये और बड़ा हो गया है।
फिर जगदीश राय निशा को बिस्तर पर सीधा लेटा देता हैं और उसकी पैंटी भी सरकाकर उसे पूरा नंगा कर देता हैं. अब निशा की चूत अपने पापा के सामने बे-परदा थी।
फिर जगदीश राय उसकी गर्देन पर अच्छे से अपनी जीभ फिराता हैं और फिर एक हाथ से उसके बूब्स को कस कर मसल्ने लगता हैं और और दूसरी उंगली उसकी चूत पर फिराने लगता हैं. और अपना जीभ से उसके दूसरे निपल्स को चूसने लगता हैं.फिर धीरे धीरे निचे आते हुए अपनी जीभ से निशा की चूत को चूसने लगता है। अब निशा का सब्र जवाब दे देता हैं और वो ना चाहते हुए भी चीख पड़ती हैं.
निशा- बस........ पापा........आज .. मेरी ....जान लोगे.......क्या. मैं....मर .जाउन्गि............आह... और इतना कहते कहते उसकी चूत से उसका पानी निकलना शुरू हो जाता हैं और निशा का ऑर्गॅनिसम हो जाता हैं वो वही एक लाश की तरह अपने पापा की बाहों में पड़ी रहती हैं. उसकी धड़कनें बहुत ज़ोर ज़ोर से चल रही थी. और साँसें भी कंट्रोल के बाहर थी. बड़ी मुश्किल से वो अपनी साँसों को कंट्रोल करती हैं और अपनी आँखें बंद करके अपने पापा के लबों को चूम लेती हैं....
जगदीश राय- बेटी अब तेरी बारी हैं. चल अब तू मेरी प्यास को शांत कर. और इतना बोलकर जगदीश राय अपना लंड निशा के मूह के एकदम करीब रख देता हैं. निशा बड़े गौर से जगदीश राय के लंड को देखने लगती हैं. फिर अपनी जीभ निकालकर धीरे से उसके लंड का सूपड़ा को नीचे से लेकर उपर तक चाटने लगती हैं.जगदीश राय के मूह से सिसकारी निकल पड़ती हैं.
फिर वो निशा के सिर के बालो को खोल देता हैं और अपना हाथ निशा के सिर पर फिराने लगता हैं.निशा धीरे धीरे जगदीश राय के लंड पर अपना जीभ फिराती हैं. अचानक जगदीश राय को ना जाने क्या सुझता हैं वो तुरंत निशा के मूह से अपना लंड बाहर निकाल लेता हैं. निशा हैरत भरी नज़रों से अपने पापा को देखने लगती हैं. जगदीश राय उठकर किचन में चला जाता हैं और थोड़ी देर के बाद वो एक शहद की शीशी ल��कर वापस आता हैं.
शहद की शीशी को देखकर निशा के चेहरे पर मुस्कान तैर जाती हैं. वो भी अपने पापा का मतलब समझ जाती हैं. जगदीश राय फिर शहद की शीशी को खोलता हैं और और उसे अपने लंड पर अच्छे से लगा देता हैं. जगदीश राय का लंड बिल्कुल लाल कलर में दिखाई देने लगता हैं.फिर वो निशा के तरफ बड़े प्यार से देखने लगता हैं. निशा मुस्कुरा कर आगे बढ़ती हैं और अपना मूह खोलकर शहद से लिपटा अपने पापा के लंड को धीरे धीरे चूसना शुरू करती हैं. एक तरफ नमकीन का स्वाद और एक तरफ शहद का स्वाद दोनो का टेस्ट कुल मिलकर बड़ा अद्भुत था. थोड़ी देर के बाद निशा अपने पापा के लंड पर का पूरा शहद चाट कर सॉफ कर देती हैं.
जगदीश राय- बेटी एक बार मेरा लंड को पूरा अपने मूह में लेकर चूसो ना. तुझे भी बहुत मज़ा आएगा.
निशा- पापा आपका दिमाग़ तो नहीं खराब हो गया. भला इतना बड़ा लंड पूरा मेरे मूह में कैसे जाएगा. नहीं मैं इसे पूरा अपने मूह में नहीं ले सकती.
जगदीश राय- क्या तू मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती. मैं जानता हूँ बोलने और करने में बहुत फरक होता हैं. ठीक हैं मैं तुझसे ज़बरदस्ती नहीं करूँगा. आगे तेरी मर्ज़ी. और जगदीश राय के चेहरे पर मायूसी छा जाती हैं.
अपने पापा को ऐसे मायूस देखकर निशा तुरंत अपना इरादा बदल लेती हैं.
निशा- क्यों नाराज़ होते हो पापा. मेरा कहने का ये मतलब नहीं था. मैं तो बस......................अच्छा फिर ठीक हैं अगर आपकी खुशी इसी में हैं तो मैं अब आपको किसी भी बात के लिए मना नहीं करूँगी. कर लो जो आपका दिल करता हैं.आज मैं साबित कर दूँगी कि निशा जो बोलती हैं वो करती भी हैं.
जगदीश राय भी मुस्कुरा देता हैं और निशा के बूब्स को पूरी ताक़त से मसल देता हैं. निशा के मूह से एक तेज़ सिसकारी निकल जाती हैं.
जगदीश राय- मैं तो यही चाहता हूँ कि तू खुशी खुशी मेरा लंड पूरा अपने मूह में लेकर चूसे. मैं यकीन से कहता हूँ कि तुझे भी बहुत मज़ा आएगा. हां शुरू में थोड़ी तकलीफ़ होगी फिर तू भी आसानी से इसे पूरा अपने मूह में ले लेगी.
निशा- जैसा आपका हुकुम सरकार.. मगर मुझे तकलीफ़ होगी तो क्या आपको अच्छा लगेगा. बोलो......................
जगदीश राय-अगर चुदाई में तकलीफ़ ना हो तो मज़ा कैसा. पहले दर्द तो होता ही हैं फिर मज़ा भी बहुत आता हैं. बस तू मेरा पूरा साथ दो। फिर देखना ये सारा दर्द मज़ा में बदल जाएगा.
जगदीश राय फिर शहद अपनी उंगली में लेता हैं और अपने टिट्स पर मलने लगता हैं और फिर अपने लंड के आखरी छोर पर भी पूरा शहद लगा देता हैं.
जगदीश राय निशा को बेड पर लेटा देता हैं और उसकी गर्देन को बिस्तेर के नीचे झुका देता हैं. निशा को जब समझ आता हैं तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं. वो तो सोच रही थी कि वो अपनी मर्ज़ी से पूरा लंड धीरे धीरे अपने मूह में ले लेगी मगर यहाँ तो उसकी मर्ज़ी नहीं बल्कि वो तो खुद अपने पापा के रहमो करम पर थी. मगर वो अपने पापा की ख़ुशी के लिए उसे सब मंजूर था.
जगदीश राय भी निशा के मूह के पास अपना लंड रख देता हैं और फिर निशा की ओर देखने लगता हैं. निशा भी अपनी आँखों से उसे लंड अंदर डालने का इशारा करती हैं. जगदीश राय निशा के सिर को पकड़कर धीरे धीरे अपने लंड पर प्रेशर डालने लगता हैं और निशा भी अपना मूह पूरा खोल देती हैं. धीरे धीरे उसका लंड निशा के मूह के अंदर जाने लगता हैं.जगदीश राय करीब 5 इंच तक निशा के मूह में लंड पेल देता हैं और फिर उसके मूह में अपना लंड आगे पीछे करके चोदने लगता हैं.
निशा की गरम साँसें उसको पल पल पागल कर रही थी. वो धीरे धीरे अपनी रफ़्तार बढ़ाने लगता हैं और साथ साथ अपना लंड भी अंदर पेलने लगता हैं. निशा की हालत धीरे धीरे खराब होनी शुरू हो जाती हैं. वैसे ये निशा का फर्स्ट एक्सपीरियेन्स था. वो अपने पापा का लंड कई बार चूसी थी पर कभी अपने मूह में पूरा नही ली थी. इसलिए तकलीफ़ होना लाजमी था. जगदीश राय करीब 7 इंच तक निशा के मूह में लंड डाल देता हैं और निशा की साँसें उखाड़ने लगती हैं.
जगदीश राय एक टक निशा को देखता हैं और फिर अपना लंड पूरा बाहर निकाल कर एक झटके में पूरा अंदर पेल देता हैं. लंड करीब 8 इंच से भी ज़्यादा निशा के मूह में चला जाता हैं. निशा को तो ऐसा लगता हैं कि अभी उसका गला फट जाएगा. उसकी आँखों से भी आँसू निकल पड़ते हैं और आँखें भी बाहर की ओर आ जाती हैं.तकलीफ़ तो उसे बहुत हो रही थी मगर वो अपने पापा की खुशी के लिए सारी तकलीफो को घुट घुट कर पी रही थी. निशा को कुछ राहत मिलती हैं मगर जगदीश राय कहाँ रुकने वाला था वो फिर एक झटके से अपना लंड बाहर निकालकर फिर से उतनी ही स्पीड से वो निशा के मूह में पूरा लंड पेल देता हैं.
इस बार जगदीश राय अपना पूरा लंड निशा के हलक तक पहुँचने में सफल हो गया था.निशा के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. उसे तो ऐसा लग रहा था कि उसका दम घुट जाएगा और वो वही मर जाएगी.निशा ऐसे ही करीब 10 सेकेंड्स तक निशा के हलक में अपना लंड फँसाए रखता हैं. निशा के मूह से गु.......गु.......गू............. की लगातार दर्द भरी आवाज़ें निकल रही थी. जब उसकी बर्दास्त की सीमा बाहर हो गयी तो अपना दोनो हाथों से अपने पापा के पैरों पर मारने लगती हैं जगदीश राय को भी तुरंत आभास होता हैं और वो एक झटके से अपना पूरा लंड निशा के हलक से बाहर निकाल देता हैं. निशा वही ज़ोर ज़ोर से खांसने लगती हैं वो वही धम्म से बिस्तर पर पसर जाती हैं.
जगदीश राय के लंड से एक थूक की लकीर निशा के मूह तक जुड़ी हुई थी. ऐसा लग रहा था कि उसके लंड से कोई धागा निशा के मूह तक बाँध दिया हो. वो घूर कर एक नज़र अपने पापा को देखती हैं.
निशा- ये क्या पापा भला कोई ऐसे भी सेक्स करता हैं क्या. आज तो लग रहा था कि आप मुझे मार ही डालोगे. मुझे कितनी तकलीफ़ हो रही थी आपको क्या मालूम. देखो ना अभी तक मेरा मूह भी दर्द कर रहा हैं.
जगदीश राय- तू जानती नहीं हैं निशा बेटी मेरा एक सपना था कि मैं किसी भी लड़की के मूह में अपना पूरा लंड पेलने का. मगर आज तूने मेरा सपना पूरा कर दिया. ना जाने मैं कितनी लड़कियों के साथ सेक्स किया हूँ मगर उनमें से किसी ने भी मेरे लंड अपने मूह में पूरा नहीं लिया. आख़िर अपना खून अपना ही होता हैं.
निशा:अब तो आप खुश हो ना।
जगदीश राय: हां बेटी।अच्छा तुम मुझे गिफ्ट देनेवाली थी ना।क्या है वो तेरी स्पेशल गिफ्ट।
निशा:मुस्कुराकर।आप गेस करके बताइए।आपकी इस समय सबसे बड़ी इच्छा क्या है मैं वो पूरी करुँगी।वही आपका स्पेशल गिफ्ट होगा।
जगदीश राय- मेरा तो इस समय सबसे ज़्यादा मन तेरी गाण्ड मारने को कर रहा हैं. अगर तू मुझे इसकी इजाज़त दे तो.................
निशा:चलो पापा आज रात आपको अपनी गांड आपको गिफ्ट में दिया।आप जैसे चाहो मेरी गांड मार लो।
जगदीश राय झट से निशा को अपनी बाहों में ले लेता हैं और उसका लब चूम लेता हैं.
जगदीश राय- तू सच में बहुत बिंदास है बेटी। मैने आज तक तेरे जैसे लड़की नहीं देखी. सच में तेरा पति बहुत किस्मत वाला होगा.
निशा- और आप नहीं हो क्या .निशा धीरे से मुस्कुरा देती हैं.
जगदीश राय- सच में तेरी जैसे बेटी पाकर तो मेरा भी नसीब खुल गया. और इतना कहकर वो निशा की गान्ड को कसकर अपने दोनो हाथों से भीच लेता हैं.
जगदीश राय- बेटी मेरा लंड को पूरा खड़ा कर ना. फिर मैं तेरी गांड मारूँगा.करीब 5 मिनिट तक निशा जगदीश राय के लंड को पूरा थूक लगाकर चूसती और चाटती है तब जगदीश राय का का लंड निशा की कुँवारी गांड को फाड़ने के लिए तैयार हो जाता हैं।
जगदीश राय:बेटी पहले तेरी गदराई गांड से तो जी भर के प्यार कर लूँ।
जगदीश राय बस देखने लगता है अपनी बेटी के गान्ड की खूबसूरती ...उफफफफ्फ़..क्या नज़ारा था.. भारी भारी गोल गोल उभरे हुए गोरे गोरे चूतड ..जिन्हें अपनी हथेलियों से बड़े ही हल्के से दबाता हुआ अलग करता है ...दरार चौड़ी हो जाती है ..दरार के बीच थोड़ी सी डार्कनेस लिए गान्ड के होल की चारों ओर का गोश्त ... गाँड की सूराख पूरी बंद हुई ... पर चारों ओर का गोश्त एक दम टाइट ..बन्द सूराख इस बात की गवाही दे रहा था कि गान्ड में कोई लंड अंदर नहीं गया है... और पूरी दरार चीकनी और चमकती हुई ... उस ने अपने अंगूठे से गान्ड की दरार को हल्के से दबाया ....अंगूठा उसकी चीकनी गान्ड में फिसलता हुआ उपर की ओर बढ़ता गया।उफ़फ्फ़ इतनी चीकनी और भारी गान्ड जगदीश राय ने आज तक नही देखी....
निशा अपने पापा की हरकतों से मस्त थी..मुस्कुरा रही थी..और अंगूठे के दबाव से सीहर उठी ...उस ने अपनी गान्ड थोड़ी सी उपर उठाते हुए कहा ..
" हां ..हां पापा अच्छे से छू लो , दबा लो देख लो ... तुम्हारे लौडे के लिए सही है ना..? "
" बेटी... बहोत शानदार , जानदार और मालदार है तेरी गान्ड ..उफफफफ्फ़..सही में तुम ने काफ़ी मेहनत की है ....ज़रा चाट लूँ बेटी ? "
यह बात सुन कर निशा और भी मस्ती में आ जाती है ..और अपनी गान्ड और भी उपर उठाते हुए पापा के मुँह पर रखती है ...
" पापा ..पूछते क्यूँ हो....आप की बेटी है ..आप की प्य��री बेटी का गान्ड है..जो जी चाहे करो ना ..चाटो..चूसो खा जाओ ना ....पर लॉडा अंदर ज़रूर पेलना ..."
और अपने पापा के मुँह से गान्ड और भी लगा देती है ..
जगदीश राय उसकी गान्ड नीचे पलंग पर कर देता है , दरार को फिर से अलग करता हुआ अपनी जीभ उसके सूराख पर लगाता है और पूरी दरार की लंबाई चाट जाता है..जीभ को अच्छे से दबाता हुआ .... उफफफफ्फ़ उसकी गान्ड की मदमस्त महक और एक अजीब ही सोंधा सोंधा सा टेस्ट था ...
दो चार बार दरार में जीभ फिराता है ..जीभ के छूने से और जीभ की लार के ठंडे ठंडे टच से निशा सीहर उठ ती है ...और फिर जगदीश राय उसकी गान्ड के गोश्त को अपने होंठों से जाकड़ लेता है और बूरी तरह चूसता है...मानो गान्ड के अंदर का पूरा माल अपने मुँह में लेने को तड़प रहा हो....
निशा मज़े में चीख उठती है " आआआआः....पापा ....उईईई..देखो ना मेरी गान्ड कितनी मस्त है .? अब देर ना करो ..बस पेल दो ना अंदर ..प्लीज्जज्जज्जज्जज्ज ...।
जगदीश राय किचन में जाकर तेल की शीशी लेकर आता हैं.निशा जब अपने पापा के हाथ में तेल की शीशी देखती हैं तो उसकी हालत बिगड़ जाती हैं. उसने तो बोल दिया था कि वो अपने पापा से अपनी गान्ड मरवायेगि मगर इतना मोटा और लंबा लंड को वो अपनी गान्ड में कैसे बर्दास्त कर पाएगी ये उसकी समझ में नहीं आ रहा था. जगदीश राय फिर तेल की शीशी खोलता हैं और थोड़ा सा तेल लेकर निशा की गान्ड के छेद पर गिरा देता हैं और अपनी दोनो उंगली में अच्छे से तेल लगाकर वो उसकी गान्ड में धीरे धीरे ऊँगली पेलना शुरू कर देता हैं. कुछ देर के बाद वो अपनी दोनो उंगली को निशा की गान्ड में डालकर अच्छे से आगे पीछे करने लगता हैं. निशा फिर से गरम होने लगती हैं.
निशा को समझ में नहीं आ रहा था कि उसे क्या हो गया है. भला वो बार बार कैसे गरम हो रही हैं. जगदीश राय फिर तेल की शीशी को अपने लंड पर लगाता हैं और कुछ निशा की गान्ड में भी डाल देता है. फिर अपना लंड को निशा की गान्ड पर रखकर धीरे धीरे उसे निशा की गान्ड में पेलने लगता हैं. निशा के मूह से चीख निकलने लगती हैं मगर वो अपने पापा को रोकने का बिल्कुल प्रयास नहीं करती. जैसे ही जगदीश राय का सूपाड़ा अंदर जाता हैं निशा की आँखों से आँसू निकल जाते हैं. उसे इतना दर्द होता है लगता हैं किसी ने उसकी गान्ड में जलता हुआ सरिया डाल दिया हो. वो फिर भी अपने पापा के लिए वो दर्द को बर्दास्त करती हैं।
निशा :उफफफफ्फ़.पापा आप कितने बेरहम हो......पूरा घुसा दिया........इतना मोटा लॉडा पूरा मेरी गान्ड में डाल दिया"
जगदीश राय:हां बेटी.....पूरा ले लिया है तूने........ऐसे ही बेकार में डर रही थी"
निशा:बेकार में......उूउउफफफफ्फ़.........मेरी जगह आप होते तो मालूम चलता.....अभी भी कितना दुख रहा है....,धीरे करो पापा"
जगदीश राय: बेटी अब तो चला गया है ना पूरा अंदर.......बस कुछ पलों की देर है देखना तू खुद अपनी गान्ड मेरे लौडे पर मारेगी" बेटी की पीठ चूमता बोला.
"धीरे पेलो पापा.......हाए बहुत दुख रही है मेरी गान्ड......."निशा सिसिया रही थी. जगदीश राय तेल वाला सुझाव वाकई मे बड़ा समझदारी वाला था. तेल से लंड आराम से अंदर बाहर फिसलने लगा था. जहाँ पहले इतना ज़ोर लगाना पड़ रहा था लंड को थोड़ी सी भी गति देने के लिए अब वो उतनी ही आसानी से अंदर बाहर होने लगा था. हालाँकि निशा ने अपने पापा धीरे धीरे धक्के लगाने के लिए कहा था मगर पिछले आधे घंटे से किए सबर का बाँध टूट गया और जगदीश राय ना चाहता हुआ भी अपनी बेटी की गान्ड को कस कस कर चोदने लगा.
निशा: हाए उउउफफफफफफफ्फ़.........आआआहज्ज्ज्ज मार...डााअल्ल्लीीगगगघाा क्यआआअ......हीईीईईईई.....ओह माआआअ.......,,हे भगवान......मेरी गान्ड....,उफफफफफफफ़फ्ग फट गईईईईई।
निशा चीख रही थी, चिल्ला रही थी मगर अपने पापा को रुकने के लिए नही कह रही थी. सॉफ था उसे इस बेदर्दी में भी मज़ा आ रहा था.वैसे भी वो रोकती तो भी जगदीश राय रुकने वाला नही था. दाँत भींचे वह निशा की गान्ड को पेलता जा रहा था और वो पेलवाती जा रही थी.
जगदीश राय: हाए अब बोल बेटी......मज़ा आ रहा है ना गान्ड मरवाने में....."
निशा: आ रहा है....हाए बहुत मज़ा आ रहा है....ऐसे ही ज़ोर लगा कर चोदते रहिए पापा.......हाए मारो अपनी बेटी की कुँवारी गान्ड"
जगदीश राय: "ले बिटिया.....ले....यह ले.........मेरा लॉडा अपनी गान्ड में" जगदीश राय पूरी रफ़्तार पकड़ते हुए निशा के चुतड़ों पर तड़ तड़ चान्टे मारने सुरू कर दिए.
निशा:हाय....उूुुउउफफफ्फ़...,मारो ..पापा....मारो अपनी बेटी की गान्ड....फाड़ो अपनी बेटी की गान्ड.......,हाए मारो फाड़ डालो। इसे...,उफफ़गगगगगग...हे भगवान..........ले लो मेरी गान्ड.......ले लो मेरे पापा..." ।
और फिर जगदीश राय पूरी रफ़्तार से अपना लंड अंदर और अंदर पेलना शुरू करता हैं और तब तक नहीं रुकता जब तक उसका लंड निशा की गान्ड की गहराई में पूरा नहीं उतर जाता. निशा की हालत बहुत खराब थी. वो दर्द से उबर नहीं पा रही थी. करीब 5 मिनिट तक वो ऐसे ही अपना लंड को निशा के गान्ड में रहने देता हैं.
फिर धीरे धीरे वो उसकी गान्ड को चोदना शुरू करता है. निशा के मूह से दर्द और सिसकारी का मिश्रण निकलने लगता हैं और जगदीश राय तब तक नहीं रुकता जब तक वो निशा की गान्ड से खून नहीं निकाल देता। करीब 30 मिनिट तक ज़बरदस्त गान्ड मारने के बाद आख़िरकार निशा का बदन भी जवाब दे देता हैं और वो भी चिल्लाते हुए ज़ोर ज़ोर से झरने लगती हैं।साथ में जगदीश राय भी निशा के गांड में अपनी मलाई छोड़ देता है।
वही दोनो बाप बेटी वही बिस्तर पर एक दूसरे की बाहों में समा जाते हैं. और निशा अपने पापा को अपने सीने से चिपका लेती हैं. जगदीश राय भी उसके सीने पर अपना सिर रखकर लेट जाता हैं।
निशा:एक बात पूँछू पापा।प्लीज आप सही सही बताना।चूँकि मैं आशा से डायरेक्ट नहीं पूछ सकती।आप मेरे दोस्त हो तो आप बताओ।आशा से आप......कैसे.....
जगदीश राय:देखो बेटी।जब तुम टूर पर चली गई तो 2-3 दिन बाद मेरा मन नहीं लग रहा था ऑफिस में तो मैं घर चला आया।यहाँ देखा की आशा अपने कमरे में एक लड़के के साथ है।दोनों नंगे थे।लड़का मुझे देख के भाग गया।लेकिन आशा वैसी ही खड़ी रही।फिर जब मैंने उसे डाँटा तो उसने ये राज खोला की पापा आप भी तो निशा दीदी के साथ मज़े लेते हो।
मुझे तो विस्वास ही नहीं हुवा लेकिन आशा ने कभी रात में हमें देखा था।इसलिए मुझे झुकना पड़ा।फिर मैंने देखा की आशा की गाँड में एक पूँछ घुसी हुई है।मैंने पूछा तो उसने बताया की उसे इसमें मज़ा आता है।वो रैबिट की पूँछ है।और उसकी सहेली विदेश से लाई है दोनों के लिए।
फिर दो तीन दिन बाद मैं एक दिन ��ुठ मार रहा था तो आशा आ गई और मेरी हेल्प करने के बहाने अपनी गांड में लंड डालने पर मजबूर किया।
निशा:लेकिन चूत में क्यों नहीं।
जगदीश राय:क्योंकि आशा बोल रही थी की वो कुंवारी चूत अपने पति को देगी।दूसरे को सिर्फ गाँड देगी।मैं भी ये सोचकर उसके साथ किया की कम से कम बाहर
इज्जत ख़राब ना करे।आजकल के लड़कों का क्या भरोसा। कोई वीडियो बना लेगा तो हमारी इज़्ज़त का क्या होगा।घर में हम आपस में खुश रहेंगे।हमारी जरूरतें भी पूरी होती रहेगी।
निशा:अजीब पागल है ये लड़की भी।थैंक्स पापा आपने अच्छा किया।कम से कम हमारी इज़्ज़त तो बची रहेगी।
फिर जगदीश राय सोने लगा।
कुछ देर बाद जगदीश राय को अपने लंड पर गीली गरम जीभ का अहसास हुवा तो उसने आँखे खोल दी।उसने देखा उसकी बेटी किसी कुतिया की तरह उसके लंड को ऊपर से निचे तक चाट रही थी।जगदीश राय का लंड फिर से अकड़ने लगा था।निशा लंड को तेजी में चूस रही थी।अब जगदीश राय का लंड निशा के थूक से पूरा गिला हो गया था।
जब लंड पूरा खड़ा हो गया तो जगदीश राय ने निशा को सुला दिया और अपना लन्ड एक ही झटके में पूरा 9 इंच का लंड अपनी बेटी निशा की चूत में पेल दिया।
निशा:आआऐईईइ.....इसस्स्स्सस्स....ऊऊऊ इइइइइ मआआ..... मर गयी. आअहह...इससस्स...आ.” पापा के मोटे लंड ने निशा की चूत के छेद को इतना ज़्यादा चौड़ा कर दिया था, ऐसा लगता था कि चूत फॅट ही जाएगी.
“क्या हुआ बेटी?” जगदीश राय ने लंड थोड़ा सा और अंदर बाहर करते हुए पूछा.
निशा:“पापा, इसस्स....बहुत..... बहुत मोटा लंड है आआपका. आप तो हमारी चूत फाड़ डालेंगे.”
जगदीश राय:हम अपनी प्यारी बिटिया की चूत कैसे फाड़ सकते हैं?” पापा ने निशा के होंठों का रसपान करते हुए बोले.
जगदीश राय ने निशा की दोनो टाँगें मोड़ के उसके घुटने उसकी चुचियों से चिपका दिए थे. अब तो वह बिल्कुल लाचार थी और उसकी चूत पापा के मोटे तगड़े लंड की दया पे थी. हलाकी अब तक तो पापा अपने लंबे तगड़े लंड से कितनी बार निशा को चोद चुके थे, लेकिन आज पापा का लंड झेलना भारी पड़ रहा था. इतने में जगदीश राय ने अपना लंड थोड़ा सा निशा की चूत के बाहर खींचा और फिर एक ज़ोर का धक्का लगा दिया. आधे से ज़्यादा लंड फिर से चूत में समा गया.
निशा:“आाआऐययईईईईईई....ऊऊऊीीईईईई माआआआ........आहह धीरे....अया...धीरे..ईीीइससस्स....”
इससे पहले कि निशा कुछ संभलती जगदीश राय ने फिर से अपना लंड सुपाडे तक बाहर खींचा और इस बार एक और भी भयंकर धक्का मार के पूरा लंड निशा की चूत में उतार दिया.
निशा:“आआअहह...आाययइ.....मार डाला.. फाड़ डालिए. ...... आपको क्या? इससस्स.. बेटी की चाहे फॅट जाए.” पापा का मोटा लंड आख़िर जड़ तक निशा की चूत में घुस गया था और उनके मोटे मोटे बॉल्स उसकी गांड के छेद पे दस्तक दे रहे थे. निशा का बदन पसीने में नहा गया था. पापा थोडी देर बिना हिले निशा के ऊपर पड़े रहे और निशा की चूचियों और होंठों का रसपान करते रहे. निशा की चूत का दर्द भी अब कम होने लगा था.अब उसे बहुत मज़ा आ रहा था।
“बेटी थोड़ा दर्द कम हुआ?” जगदीश राय निशा की चूचियों को दबाते हुए बोले.
“हाँ पापा, अब जी भर के चोद लीजिए अपनी प्यारी बिटिया को.” निशा उनके कान में फुसफुसाते हुए बोली. अब जगदीश राय ने पूरा लंड बाहर निकाल के निशा की चूत में पेलना शुरू कर दिया. सच! ज़िंदगी में चुदवाने में इतना मज़ा आएगा निशा ने कभी सोचा नहीं था. अब निशा को एहसास हुआ कि क्यूँ उसकी सहेलियां रोज़ चुदवाने के लिए उतावली रहती है. अब निशा की चूत बहुत गीली हो गयी थी उसमें से फ़च...फ़च...फ़च का मादक संगीत निकल रहा था. कुच्छ देर तक चोदने के बाद उन्होने अपना लंड निशा की चूत से बाहर खींचा और उसके मुँह में डाल दिया. पापा का पूरा लंड और बॉल्स निशा की चूत के रस में सने हुए थे.निशा ने पापा का लंड और बॉल्स चाट चाट कर साफ कर दिए. अब पापा बोले,
जगदीश राय: “निशा मेरी जान, अब थोड़ा कुतिया बन जाओ. अपने इन जान लेवा नितम्बों के दर्शन भी तो करा दो.”
“आपको मेरे नितम्ब बहुत अच्छे लगते हैं ना?” निशा पापा के बॉल्स सहलाते हुए बोली.
जगदीश राय“हां बेटी बहुत ही सेक्सी नितम्ब हैं तुम्हारी.”
निशा“ और मेरी? मेरी गाँड अच्छी लगी आपको?”
जगदीश राय: “तुम्हारी गाँड तो बिल्कुल जान लेवा हैं बेटी. जब नहा के टाइट कपड़ो में घूमती हो तो ऐसा लगता है जैसे कपडे फाड़ के बाहर निकल आएँगे. तुम्हारे मटकते हुए चूतडों को देख के तो हमारा लंड ना जाने कितनी बार खड़ा हो जाता है.”
निशा:“हाय पापा इतना तंग करते हैं हमारे नितम्ब आपको? ठीक है मैं कुतिया बन जाती हूँ. अब ये नितम्ब आपके हवाले. आप जो चाहे कर लीजिए.”
ये कह कर निशा जल्दी से पापा के लंड के मोटे सुपाडे को चूम लिया और फिर कुतिया बन गयी. अब उसकी चूचियाँ बिस्तर पे टिकी हुई थी और चूतड हवा में लहरा रहे थे. निशा चूतड चुदवाने की मुद्रा में उचका रखे थे. जगदीश राय निशा के विशाल चूतडो को देख कर गरम हो गये. उन्होने निशा के दोनो चूतडो को अपने हाथ में दबोचा और अपना मुँह उनके बीच में घुसेड दिया. अब निशा कुतिया बनी हुई थी और जगदीश राय उसके पीछे कुत्ते की तरह निशा के चूतडो के बीच मुँह दिए उसकी चूत चाट रहे थे.
फिर उन्होने निशा के चूतडो को पकड़ के चौड़ा किया और उसकी गांड के छेद के चारों ओर जीभ फेरने लगे. निशा तो अब सातवें आसमान पे थी. बहुत ही मज़ा आ रहा था. इतने में जगदीश राय ने अपनी जीभ निशा के गांड के छेद में घुसेड दी. निशा ये ना सह सकी और एकदम से झड़ गयी. काफ़ी देर तक इसी मुद्रा में निशा की चूत और गांड चाटने के बाद उन्होने दोनो हाथों से निशा के चूतडो को पकड़ा और अपने मोटे लंड का गरम गरम सुपारा निशा की लार टपकाती चूत पे टिका दिया........
निशा का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. तभी जगदीश राय ने एक ज़बरदस्त धक्का लगा दिया और उनका लंड चूत को चीरता हुआ पूरा अंदर समा गया.
“ आाऐययईईई….आआअहह….आह.” निशा के मुँह से ज़ोर की चीख निकल गयी.
जगदीश राय“बेटी ऐसे चिल्लाओगी तो आशा और सशा जाग जाएगी.”
निशा“आप भी तो हमें कितनी बेरहमी से चोद रहे हैं पापा.” जगदीश राय के मोटे मूसल ने निशा की चूत को बुरी तरह से फैला के चौड़ा कर दिया था . अब जगदीश राय ने निशा की कमर पकड़ के धक्के लगाना शुरू कर दिया. आसानी से उनका लंड निशा की चूत में जा सके इसलिए अब उसने टाँगें बिल्कुल चौड़ी कर दी थी. मीठा मीठा दर्द हो रहा था. निशा अपने ही बाप से कुतिया बन के चुदवा रही थी.
“ निशा बेटी तुम्हारी चूत तो बहुत टाइट है.” फ़च फ़च.. फ़च…..फ़च फ़च….फ़च… की आवाज़ें ज़ोर ज़ोर से आ रही थी. निशा की चूत बुरी तरह से पानी छोड़ रही थी. वह इतनी उत्तेजित हो गयी थी की अपने चूतड पीछे की ओर उचका उचका के अपने पापा का लंड अपनी चूत में ले रही थी.
जगदीश राय“ निशा मेरी जान, तुम्हारी मम्मी को चोद कर भी आज तक इतना मज़ा नहीं आया था”बहुत मज़ा आ रहा है बेटी।
निशा:मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा है पापा।3 दिनों से मेरी चूत में बहुत खुजली हो रही थी।आज जाकर मेरी गर्मी शांत हुई।और चोदो पापा।
निशा तो वासना में पागल हुई जा रही थी. शायद अपने ही बाप से चुदवाने के एहसास ने उसकी वासना को और भड़का दिया था.
जगदीश राय निशा के चूतडो को पकड़ के ज़ोर ज़ोर से धक्के मारते हुए बोले,
“निशा बेटी. सच इन चूतडो ने तो हमारा जीना ही हराम कर रखा था.आज इसे फाड़ने में बहुत मज़ा आया और तुम्हारा ये गुलाबी छेद!” ये कहते हुए उन्होने एक उंगली मेरी गांड में सरका दी.
“आआआहह…….. ईीइससस्स... ये क्या कर रहे हैं पापा?”
जगदीश राय:“बेटी तुम्हारे पापा ने आज पहली बार इस छेद को प्यार किया है?” पापा अब मेरी गांड में उंगली अंदर बाहर कर रहे थे.
“आईईIईईIई
ईईईईईई निशा समझ गयी थी कि अब पापा फिर से गांड मारना चाहते थे.निशा को मालूम था कि पापा को गांड मारने का बहुत शौक है. अपने ही बाप से फिर से गांड मरवाने की बात सोच सोच कर वह बहुत उत्तेजित हो गयी थी और निशा की चूत तो इतनी गीली थी कि रस बह कर उसकी टाँगों पे बह रहा था. आख़िर वही हुआ जिसका उसे अंदेशा था.
पापा निशा की गांड में उंगली करते हुए बोले,
“ निशा बेटी हम तुम्हारे इस गुलाबी छेद को भी प्यार करना चाहते हैं.”इसमें अपना मोटा लंड डालके पेलना चाहता हूँ।
“हाय पापा आपको हमारे चूतड इतने पसंद हैं तो कर लीजिए जी भर के उस छेद से प्यार. आज की रात मैं पूरी तरह से आपको खुश करना चाहती हूँ.”
जगदीश राय:“शाबाश मेरी जान , ये हुई ना बात. हमे पता था की हमारी प्यारी बिटिया हमे गांड ज़रूर देगी. अब अपने ये मोटे मोटे चूतड थोडे से और ऊपर करो”
निशा ने चूतड ऊपर की ओर इस तरह उचका दिए कि पापा का लंड आसानी से गांड में जा सके. पापा ने निशा की गांड से उंगली निकाली और नीचे झुक के अपनी जीभ निशा की गांड के छेद पे टीका दी. निशा की तो वासना इतनी भड़क उठी थी की अब और सहन नहीं हो रहा था.वासना के नशे में वो धीरे धीरे निशा की गांड चाट रहे थे और कभी कभी जीभ गांड के छेद में घुसेड देते. एक हाथ से वो मेरी गीली चूत सहला रहे थे.
जगदीश राय: “सच बेटी तुम्हारी गांड बहुत ही ज़्यादा स्वादिष्ट लग रही है. तुम्हारी गांड में से बहुत मादक खुश्बू आ रही है.” निशा को आज तक ये बात समझ नहीं आई थी कि लड़को को लडकियों की गांड चाटने में क्या मज़ा आता है. अब पापा ने निशा की चूत के रस में से सना हुआ लंड उसकी गांड के छेद पे टिका दिया. हाय राम ! निशा के पापा उसकी गांड फिर से मारने जा रहे थे. निशा भी कुतिया बनी उस पल का इंतज़ार कर रही थी जब पापा का लंड उसकी गांड में घुसेगा. पापा ने निशा के चूतडो को पकड़ के चौड़ा किया और साथ ही एक ज़ोर का धक्का लगा दिया.
निशा: “ आआईयईई……आआआअहह….इसस्स्स्स्स्स्स्स्सस्स” जैसे ही लंड का मोटा सुपाडा निशा की गांड में घुसा उसके मुँह से चीख निकल ही गयी.
जगदीश राय: “हाय मेरी जान ! क्या मस्त गांड है तुम्हारी!” पापा ने निशा के चूतड पकड के एक ज़ोर का धक्का लगा के आधे से ज़्यादा लंड निशा की मोटी गांड में पेल दिया.
निशा: “आआईईईआआआआआ……..ऊऊऊऊऊओ……….ईईस्स्स्स्स्स स.” निशा का दर्द के मारे बुरा हाल था.उसे पक्का विश्वास था कि आज तो फिर से उसकी गांड ज़रूर फटेगी, लेकिन पापा से गांड मरवाने की चाह ने उसे अँधा कर दिया था.
जगदीश राय: निशा बेटी जितना मज़ा तुम्हारी गांड मार के आ रहा है उतना मज़ा तो तुम्हारी मम्मी की गांड मार के कभी नहीं आया.” निशा को सबसे ज़्यादा खुशी इस बात की थी की उसको चोदने में पापा को मम्मी से भी ज़्यादा मज़ा आ रहा था. इस बार जगदीश राय ने पूरा लंड बाहर खीच कर एक ज़बरदस्त धक्के के साथ पूरा लंड जड़ तक निशा की गांड में पेल दिया.
निशा: “ऊऊऊऊीीईईईईईईईईईईईई………………आआआआआआआआआआ आ……..आआआआआअहह....मर गयी....ईीइससस्स”
अब जगदीश राय ने ज़ोर ज़ोर से धक्के मार मार के लंड निशा के गांड के अंदर बाहर करना शुरू कर दिया था. हर धक्के के साथ उनके बॉल्स निशा की चूत पे चिपक जाते.पापा अब जोर जोर से निशा की गाँड मार रहे थे।साथ ही साथ चूत में भी अपनी ऊँगली पेलने लगे थे जिससे निशा एक बार फिर झड़ गयी.
पापा के धक्के अब तेज़ होते जा रहे थे और शायद वो झड़ने वाले थे. अचानक निशा को अपनी गांड में गरम गरम पिचकारियाँ सी महसूस हुई. पापा झड़ गये थे. निशा की गांड लाबा लब उनके वीर्य से भर गयी थी. उन्होने जैसे ही निशा की गांड से अपना लंड बाहर खींचा।
वीर्य गांड में से निकल कर निशा की चूत और जांघों पे बहने लगा. निशा पीठ के बल लेट गयी और अपनी गांड से निकला हुआ पापा का लंड अपने मुँह में ले लिया . पूरा लंड, बॉल्स और जांघें मेरी चूत के रस और उनके वीर्य के मिश्रण में सनी हुई थी. उनके लंड से मेरी चूत और गांड दोनो की गंध आ रही थी.निशा ने बडे प्यार से जगदीश राय लंड और बॉल्स को चाट चाट के सॉफ किया. पापा भी 3 घंटे से निशा को चोद रहे थे. वो भी तक कर निढाल हो गये थे।फिर निशा भी अपने कपडे पहन कर अपने रूम में सोने चली गई।
अगले दिन जगदीश राय लंच से पाँच मिनट पहले ही ऑफिस से छुट्टी लेकर घर आ गया था लेकिन आशा अभी नहीं आई थी।आशा को कॉल किया तो बोली 10 मिनट में आ रही हूँ।तब जगदीश राय ने बियाग्रा की 1 गोली खा ली।आज आशा से उसे बदला लेना था।
ठीक 10 मिनट बाद आशा आ गई।डोर बंद करके अंदर आते ही आशा ने अपने सभी कपडे उतार फेंके।वो अपने पापा के सामने पूरी नंगी थी।वो भी दिन में उसका नंगा बदन चमक रहा था।उसकी गांड में फँसी पुंछ को देखकर जगदीश राय का लंड फुंफकारने लगा।
जगदीश राय आशा के पास जाकर 1 हाथ से उसकी पुंछ और गांड सहलाने लगा।इधर आशा ने जगदीश राय के कपडे निकालने शुरू कर दिए।थोड़ी ही देर में वो भी आशा की तरह पुरे नंगे थे।अब आशा अपने पापा के आगे घुटनों पर बैठ गई और जगदीश राय के लंड को किसी कुतिया की तरह चाटने लगी।फिर आशा अपने पापा के लंड को मुँह में भर कर चूसने लगी।
जगदीश राय :आशा.... बेटी.... थोड़ा और अंदर लो बेटी… नाक से सासे लेती रहो ....
आशा आँखो से हामी भरी …..
जगदीश राय धीरे धीरे लंड अंदर धकेलने लगा ...
आशा के गले की दीवारो पे उनका लंड ठोकरे मारने लगा ...
धीरे धीरे पूरा लंड आशा के मुह में घुस गया ...
उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था ...
जगदीश राय की झांटे आशा के नाक पे लग रही थी ...
आशा के गले में खराश होने लगी थी ...
लेकिन आशा मना भी नहीं कर पा रही थी ...
उसके मुँह से गुं गुं की आवाज निकलने लगी ...
जगदीश राय ने लंड वापस खींचा तो आशा ने सांस ली ...
थोड़ी देर बाद जगदीश राय ने अपना पूरा लंड फिर से आशा के गले तक उतारा ...और आशा के मुँह में पेलने लगा।
जगदीश राय के चहरे पे स्वर्गीय आनंद की अनुभूति दिख रही थी …
कुछ देर आशा का मुह ऐसी ही चोदने के बाद जगदीश ने अपना लंड निकाल लिया …..
फिर जगदीश राय ने आशा को अपनी गोद में उठाया...
और पलंग पे ले गए …जगदीश राय अब पलंग पे बैठे थे ...और आशा उनकी गोद में ...फिर जगदीश राय ने आशा की गांड में घुसी पूँछ को सहलाने लगे।फिर धीरे धीरे उन्होंने आशा की गांड से पूँछ निकाल दिया।
आशा ने जगदीश राय को साफ मना कर दिया था चूत चोदने के लिए।इसलिए वो आशा की गांड में थूक लगाकर धीरे धीरे ऊँगली पेलने लगे।
उनका कठोर लंड आशा की चूत पे टकरा रहा था….
जगदीश राय आशा की चुचिया मसलते हुए उसके होठो को चुम रहे थे…..
जगदीश राय का लंड आशा की गाँड में घुसने के लिए….. बेक़रार था ।
उन्होंने आशा की टाँगे फैला कर …
अपना लंड आशा की गाँड में पेल दिया
आशा के मुह से सिसकी निकल गयी ।वह सिसियाने लगी ।
हाआआयय्य्य्य्य्य उफ्फ्फ्फ्फ़ स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स
जगदीश राय का पूरा लंड अंदर घुसने के बाद उन्होंने धक्के लगाने शुरू किये
आशा पापा के हर धक्के को कमर उचका कर जवाब देने लगी ।
जगदीश राय: लगता है बेटी तुमको पहले जैसा दर्द नहीं हो रहा ।
आशा: नहीं पापा … अब दर्द नहीं हो रहा … बहोत मजा आ रहा है .... और तेज करिये ना …...
जगदीश राय ने अपनी स्पीड बढ़ा दी ….
कुछ देर धक्के मारने के बाद वो रुके ....
उन्होंने आशा को उठाया ……
और खुद निचे लेटे … अब उनका वो फौलादी लंड कुतुबमीनार की तरह खड़ा था
जगदीश राय: आओ.... बेटी .... बैठो अपनी सवारी पर……
आशा उनकी दोनों ओर पैर रख कर खड़ी हुयी ……
एक हाथ से पकड़कर उनका लंड अपनी गाँड पर अड्जस्ट करके धीरे धीरे निचे बैठने लगी …...
अब उनका व�� मोटा लंड पूरी तरह से आशा की टाइट गांड में कैद हो गया था ….
आशा पापा का लंड अंदर लेते लेते थक गयी थी
सो लंड पूरा अंदर जाने के बाद में बैठे बैठे हांपने लगी
आशा को आराम से बैठा देख उसके पापा बोले
आशा बेटी .... सिर्फ बैठना नहीं है… जरा ऊपर निचे करो …मेरे लंड पर
फिर देखना कैसा जन्नत का मजा आता है
फिर आशा थोडी सी ऊपर हुयी … और निचे भी ….
धीरे धीरे उसकी स्पीड बढ़ती गयी
उसके बाल बार बार चहरे पर आ रहे थे
जगदीश राय ने उन बालो की लट को ठीक किया ….
आशा को बहोत ही मस्त लगा रहा था इसी मस्ती में उसके मुह से आहे निकल रही थी।
धीरे धीरे वह पापा के लंड पर उछलने लगी
और उसकी आहे भी तेज होने लगी ।अब आशा पूरी तेजी से अपनी गांड अपने पापा के लंड पर पटक रही थी।लंड एक ही बार में आशा की गांड में पूरा घुस जाता और फिर अगले ही पल निकलने लगता।
10 मिनट घुड़सवारी करने के बाद आशा निचे उतरी ....फिर जगदीश राय ने बेड में सुलाकर आशा की गांड में लंड घुसाकर पेलते हुए बोला।
जगदीश राय: वाह क्या उछली हो मेरी जान … पूरी रंडी लग रही थी तुम….
आशा: छिः पापा … ये क्या आप मेरे लिए इतना गन्दा बोल रहे हो …..
जगदीश राय:इसमें गन्दा क्या है बेटी …… मैं तो तेरी तारीफ़ कर रहा हु …..
आशा: ऐसे करते है तारीफ।.... रंडी क्या अच्छा वर्ड है।
जगदीश राय: अरे बेटी कहा ये अच्छे बुरे के बारे में सोच रही हो ….चुदाई में कुछ गलत नहीं ….कुछ गन्दा नहीं होता।
आशा: … पर....
जगदीश राय: अरे बेटी .... एक अच्छी रंडी ही सबसे बेहतर चुदना जानती है ….. ये एक बहोत बड़ी कला है मेरी जान ….हाँ ये रण्डी वर्ड कुछ लोगो को बुरा लगता है……. पर बेटी चुदाई के समय ऐसे शब्द यूज़ करना बड़ा अच्छा लगता है ….
आशा: अगर आपको अच्छा लगता है … तो … आप मुझे जो चाहे बुलाओ…..
जगदीश राय: हाय मेंरी प्यारी बिटिया।…
आशा: हा मेरे प्यारे पापा …… अपनी इस रंडी से टूट के प्यार करो … चोद डालो अपनी इस रंडी को ….
जगदीश राय:आशा … तू भी मुझे गालिया दे तो और भी मजा आएगा …
आशा: तो मैं क्या आपसे डरती हु क्या … आप भी तो बेटीचोद …..हो।अपनी दो दो बेटियों को चोद रहे हो।
जगदीश राय: वाह मेरी रंडी साली.... मजा आ गया ….
तेरी गांड में जो मज़ा है।वो किसी में नहीं है।कितनी गरम और टाइट गांड है तेरी।कितना भी पेलो तुझे फर्क नहीं पड़ता।साली तेरी कुँवारी चूत में जिसका लंड पहली बार जाएगा वो कितना लकी होगा।
आशा:और जोर से पेलो पापा।आप भी कम लकी नहीं हो।आपको मेरी कुँवारी गांड मिली।चूत भी चूस लेते हो।जीभ से चोद भो देते हो।मेरी चूत में ऊँगली भी घुसा देते हो।और मेरे मुँह को तो चूत की तरह चोदते हो और आपको क्या चाहिए पापा।
और आज तो आपने मुझे अपनी रंडी भी बना दिया
जगदीश राय:ठीक है मेरी रांड।आज से तू मेरी पर्सनल रांड है।अब तू साली कुतिया बन जा।आज मैं तेरी गाँड को इतना फाडूँगा की उसमे से आज फिर खून निकल जाए।तू दर्द से चीखने लगे।
आशा बेड से निचे उतरकर अपने पापा के लंड को पकड़कर हिलाने लगती है।लंड आशा की गांड से निकला था।वो रस में भीगा पिला रंग का हो गया था।लेकिन आशा ने लंड को अपने मुँह में भर लिया और चुसने चाटने लगी।जगदीश राय भी मस्ती में भरकर आशा के मुँह को चोदने लगा।
कुछ देर बाद जगदीश राय ने निशा को कुतिया बना दिया।
जगदीश राय: हाँ बेटी अब मैं तुम्हे अपनी फेवरेट पोजीशन में चोदूंगा ....
आशा : तो चोदो न पापा ....
जगदीश राय: लेकिन इसबार तुम्हें बहोत दर्द हो सकता है ।क्योंकि इस बार तुम्हारी गांड फाड़ने का मन कर रहा है …
आशा : आप उस की चिंता मत करो पापा …आप मुझे जैसे चाहो वैसे चोदो …… मेरे दर्द की परवाह मत करो
जगदीश राय ने आशा को खीच के गले लगाया उसे चूमा …...
बाद में उन्होंने आशा को पलंग को पकड़ कर कुतिया जैसा खड़ा किया ….
आशा की टाँगे फैला दी…..
और खुद उसकी गांड के पीछे खड़े हुए ……
उन्होंने अपना लंड आशा की गांड के भूरे छेद पे रगड़ा…
और अचानक एक करारा धक्का दे कर आधा लंड अंदर पेल दिया …..
आशा इस अचानक हमले के लिए तैयार नहीं थी ….
वह गिरते गिरते बची …..
फिर जगदीश राय ने झुककर आशा की चुचिया थामी … और उसे पीछे खींचा।
जगदीश राय ने बेदर्दी से आशा की चूचियोंको मसलना शुरू किया बिलकुल रफ तरीके से।
आशा के मुह से जोरो की आह ��िकल गयी
ओफ्फ्फ्फ्फ्फ़ ह्म्म्म्म्म्म पापा हाय्य्य्य्य्य्य्य
जगदीश राय: साली रंडी अभी तो शुरू भी नहीं किया है … अभी इतना तड़प रही है तो आगे क्या होगा।
आशा: नहीं पापा कुछ नहीं हुआ है .... आप आगे बढ़ो
और आशा ने अपनी गांड उभार के दिखाई
जगदीश राय गांड पे थप्पड लगाते बोले…. "वाह….. बेटी…...ये हुयी ना बात।और अपनी गांड पीछे कर।
फिर उन्होंने एक और तेज झटका मार के पूरा के पूरा लंड आशा की गाण्ड में घुसा दिया।
आशा अपने होठ दबा रखे थे .... वह चाहती थी की उसके मुह से कराह न निकले।
फिर जगदीश राय ने आशा की कमर थामी
और लंड आगे पीछे करके आशा की गांड में अपना 9 इंच का लंड पेलने लगे ।
धीरे धीरे वो अपनी स्पीड में इजाफा कर रहे थे
कुछ ही देर में उनकी स्पीड इतनी बढ़ गयी ....
की उनके हर धक्के से आशा तो हिल ही जाती लेकिन साथ साथ पलंग भी चरमरा जाता।
साथ ही साथ थप्पड़ मार मार के उन्होंने आशा के चुचड़ पुरे लाल कर दिए थे।इतनी बुरी तरह से आज पहली बार उन्होंने आशा की गांड मारी थी।
अब दोनों खड़े खड़े पसीने में भीग गए थे
जगदीश राय ने खूब धक्के लगाये। …
आशा इस धुँवाधार चुदाई में दो बार झड़ी थी
जब जगदीश राय को लगा की वो झड़ने वाले है …
वो बोले " बेटी.... अब मैं झड़ने वाला हूँ। ....
आशा: तो झड़ियें ना पापा … आप के माल से मेरी गाण्ड भर दो पापा ।
जगदीश राय: मैं तुम्हारे मुह में झड़ना चाहता हु साली रंडी।मुह खोल के बैठ साली कुतिया …
आशा सीधी हुयी और बोली " तो डाल दो न पापा … आपका लंड अपनी रंडी बेटी के मुँह में ।
आशा उनके आगे घुटनो पर बैठी
उनका लंड हाथ में लेकर उसे चाटने और चूसने लगी।
और उसी समय जगदीश राय नेअपना लंड आशा के मुह में घुसाया ….और उसका सर पकडे वो आशा के मुह को चोदने लगे...
आशा उनकी आँखों में आँखे डाले उन्हें देख रही थी ...
उनके चहरे के हाव भाव से उसे पता चला की अब वो झड़ने की कगार पर है ...
तो आशा ने अपनी मुट्ठी उनके लंड पर कसी और चूसने लगी ...
आशा के चूसते चूसते ही.... उसके मुँह में उसके पापा के वीर्य की बौछार होने लगी ...कुछ भीतर मुह में जा रहा था ।पापा का वीर्य इतना ज्यादा था की कुछ वीर्य आशा मुह से टपक रहा था ….
वीर्य की आखरी बून्द तक वह चूसती रही ।
आशा लगभग सारा वीर्य गटक गयी …फिर भी थोडा सा उसके होठो के आसपास और उसकी ठुड्डी पर लगा था। पापा के वीर्य की टेस्ट आशा बहोत अच्छी लगी ….
आशा ने अपने होठो पे जीभ घुमाकर इदर उधर लगा माल चाट लिया…
फिर पापा और आशा पलंग पर लेटे आराम करने लगे…
और हम एकदूसरे की बाहो में समां गए….
कुछ देर तक युही ख़ामोशी से पड़े रहने के बाद पापा बाते करने लगे …..
जगदीश राय : सॉरी बेटी मैंने तुमको गाली दिया।
आशा:कोई बात नहीं पापा।रफ सेक्स में गाली सुनने में भी मज़ा आता है।
जगदीश राय:कैसा लगा आशा बेटी…..
आशा: आपने तो मेरी जान ही निकाल दी थी पापा ....
जगदीश राय: इतनीसी चुदाई से जान नहीं निकलती मेरी जान … चुदाई का मजा आया की नहीं …..
आशा:मुझे भी बाद में बहुत मज़ा आया पापा।
कुछ देर बाद आशा बोली- चलो पापा, खाना खा लेते हैं.
जगदीश राय- ठीक है लेकिन हम लोग ऐसे ही नंगे रह कर खाना खाएंगे और तू मेरी गोद में बैठकर खाना खाएगी. मेरा लंड भी खाते वक़्त तेरी गांड में रहेगा।
तुझे खाने के साथ मेरी आइसक्रीम भी खानी पड़ेगी.. मंजूर है!
आशा बोली- ठीक है पापा आज आप जो कहोगे, वह मैं करूँगी.
फिर दोनों ने मिल कर टेबल पर खाना सजाया.जगदीश राय ने अलग से फ्रिज से आइसक्रीम भी निकाल कर सजा दी.जगदीश राय ने आइसक्रीम को आशा की चूचियों पर लगा दिया और चूचियों को चूसने और चाटने लगा . आशा भी बहुत गर्म हो गई थी.पूरा आइसक्रीम चाटने तक जगदीश राय चूचियों और निप्पलों को काटता रहा ,चूसता रहा।
जगदीश राय ने कुछ आइसक्रीम अपने लंड पर भी लगा दी और आशा को चूसने का इशारा किया.आशा आइसक्रीम के साथ साथ जगदीश राय के लंड को भी चूस रही थी. फिर कभी कभी आइसक्रीम वह उसके होंठों पर भी लगा देता था और दोनों फ्रेंच किस करने लगते. जगदीश राय आइसक्रीम के साथ साथ आशा के चेहरे को भी चूस और चाट रहा था।
अब जगदीश राय आशा की गाँड में उंगली डालने लगा. वह पूरी तरह से गर्म हो गई थी. जगदीश राय का भी लंड पूरा खड़ा हो गया था. जगदीश राय ने कहा- तुम मेरे लंड पर अपनी गांड चौड़ी करके बैठ जाओ. उसके बाद हम लोग खाना खाते हैं.
आशा अपनी गांड में अपने पापा का लंड लेकर उनकी गोद में बैठ गई. उसकी गाँड में जगदीश राय लंड अन्दर तक घुस गया. अब दोनों खाना खाने लगे.
आशा बोली- बहुत दर्द कर रहा है पापा. लेकिन जगदीश राय उसके चेहरे को चूसते हुए नीचे से धीरे-धीरे उसकी गाण्ड में लंड की ठोकर मारता रहा.इसी तरह चुदाई करते हुए दोनों ने खाना खा लिया था.
कुछ देर बाद जगदीश राय ने उसे टेबल के सहारे झुका के कुतिया बना दिया और उसकी गाँड मारने लगा. कुछ ही देर में आशा झड़ गई.जगदीश राय जोर-जोर से उसकी गाँड में अपना लंड पेलता रहा. कुछ देर बाद जगदीश राय का वीर्य निकलने वाला था तो उसने अपना वीर्य आइसक्रीम में गिरा दिया और अपनी बेटी को बोला कि वह मेरा पूरा वीर्य आइसक्रीम के साथ चाट जाए.
आशा भी पूरी गर्म थी, वो आइसक्रीम के साथ अपने पापा लंड भी चाट रही थी.वो पूरा वीर्य और आइसक्रीम चाट के खा गई।
एक ही दिन में जगदीश राय ने आशा को पूरा रंडी बना दिया था. इस वक्त आशा एक कुतिया की तरह अपने बाप के लंड के रस को आइसक्रीम के साथ चाट कर खा गई।
करीब आधा घंटे बाद जगदीश राय ने आशा को बाथरूम जाते देखा. तो वो भी उसके साथ बाथरूम में चला गया. आशा शरमाते हुए बोली- पापा, आप बाहर जाइए ना मुझे सु सु करना है.
जगदीश राय- कोई बात नहीं, मुझे तुमको सु सु करते हुए देखना है. आज तक मैंने किसी लड़की को सू सू करते हुए नहीं देखा है.अभी मेरा लंड भी खड़ा हो गया है, तुम सू सू करो.
आशा- लंड खड़ा हो गया है तो क्या आप मुझे अभी ही चोदने की सोच रहे हैं?
जगदीश राय:मैं तो चाहता हूँ की अपना लंड तुम्हारी गांड में पेल दूँ।और मैं इधर पेलता रहूँ और तुम सु सु करती रहो।
आशा:क्या क्या सोचते रहते हो आप भी।जल्दी अपना लंड मेरी गांड में पेलो।मेरी भी गाण्ड में खुजली हो रही है।
जगदीश राय ने आशा को कुतिया की तरह झुक दिया और उसकी गांड पे थूक दिया और उंगली से उसकी गांड सहलाने लगा. कुछ ही देर में उसकी गांड का छेद मुलायम हो गया.
अब जगदीश राय अपने लंड को आशा की गांड के होल में घुसा दिया.
वो “आअह्ह.. पापा..” करते हुए चिल्लाने लगी.
जगदीश राय तेजी से आशा की गांड मारने लगा.
और अब आशा को बर्दास्त नहीं हुवा ।
वह धक्के के साथ ही सु सु करने लगी।
काफी देर तक जगदीश राय आशा की चूत में उंगली और गांड में लंड पेलता रहा.
आशा दो बार झड़ गई.. लेकिन वह उसको पेलता रहा.
फिर आधे घंटे गांड मारने के बाद आशा की गांड में ही अपना वीर्य भर दिया.फिर जगदीश राय अपने लंड को उसके मुँह के पास ले गया और बोला- मेरे लंड को चूसो.फिर आशा ने जगदीश राय के लंड को चूसकर पूरा चमका दिया।
फिर दोनों लेटकर एक दूसरे को सहलाते हुए बात करने लगे।
जगदीश राय:आज मेरी ज़िन्दगी का सबसे हसीन पल था।मेरी बहुत सारी इच्छाये तुमने पूरी कर दी बेटी।
आशा:जगदीश राय को चूमते हुए।आप भी कमाल ले हो पापा।आप ले साथ मुझे बहुत मज़ा आया।आपकी और भी कोई इच्छा हो तो मैं पूरी करने की कोशिश करुँगी।
जगदीश राय:बेटी मेरी एक और इच्छा है की मैं चूत और गांड एक साथ मारूँ।मेरा लंड कभी चूत में घुसे तो कभी गांड में।
आशा:सॉरी पापा।मैं आपकी ये इच्छा पूरी नहीं कर सकती।आप तो जानते है मैं शादी तक वर्जिन रहना चाहती हूँ।
जगदीश:एक उपाय है बेटी ।तुम कुँवारी भी रहोगी और मेरी इच्छा भी पूरी हो जायेगी।
आशा:कैसे पापा।आप बताइये।आपकी ख़ुशी के लिए मैं करुँगी।
जगदीश:तुम और निशा एक साथ मिल जाओ तो मेरी इच्छा पूरी हो जायेगी।निशा की चूत और तुम्हारी मस्त गांड मेरे लंड के सारे ख्वाब पूरा कर देंगे।
आशा: ठीक है पापा। मैं कोशिश करुँगी।
फिर आशा जगदीश राय का लंड चूसकर खड़ा करती है।और जगदीश राय आशा को कुतिया बनाके उसकी गांड मारता है।आधे घंटे की रफ चुदाई के बाद दोनों थक जाते है।आशा दो बार झड़ चुकी थी।फिर जगदीश राय अपना लंड आशा के मुँह में पेलकर अपना सारा माल आशा को पिला देता है।फिर दोनों साफ सफाई करके अपने अपने रूम में चले जाते है।
जगदीश राय को ऑफिस के काम के सिलसिलें में चार पाँच दिन के लिए बाहर जाना पड़ा।उसने तीनों बेटियो को समझाकर पैसे भी दे दिए और चला गया।
आज निशा और आशा बहुत खुश थी क्योंकि आज उनके पापा आने वाले थे।लेकिन जब पापा ने बताया की वो शाम को ही घर आ पाएंगे तो दोनों को अच्छा नहीं लगा।
निशा पूरी गरम हो रही थी।पाँच दिन अपने पापा से दूर रहने से उसकी चूत पानी छोड़ रही थी।आज शशा की सहेली का बर्थडे था तो वो रात को उसके घर ही रुकने वाली थी।वह पापा से फ़ोन पर बात करके अपने सहेली के घर चली गई।
जगदीश राय जब शाम को घर आया तो घर में घुसते ही निशा और आशा दोनों अपने पापा से लिपट गई।निशा तो इतनी गरम हो चुकी थी की वो अपने पापा को उसने चूम लिया।जिसे देखकर आशा हंसने लगी।निशा शरमा गई।
कुछ देर बाद आशा अपने रूम में पढ़ने चली गई।निशा किचन में चली गई।पीछे पीछे जगदीश राय भी किचन में चला गया।किचन में घुसते ही निशा अपने पापा से लिपट गई और अपने पापा के होंठो पर होंठ रखके चूसने लगी।जगदीश राय भी निशा की मस्त चुचियों को मसलने लगा।साथ ही अपने लंड को निशा की गाँड के दरार में रगड़ने लगा।
निशा जल्दी ही जगदीश राय के आगे घुटनों पर बैठ गई और जगदीश राय के मोटे लंड को निकालकर चूसने चाटने लगी।वह अपने पापा के लंड को पूरा मुँह में भरकर चूसने लगी।तभी अचानक आशा आ गई और बोली:दीदी अकेले अकेले ही सारे मज़े मत ले लेना।
मेरे लिए भी छोड़ देना।
निशा:चल भाग यहाँ से।
आशा हँसते हुए भाग गई।
निशा:मुँह से लंड निकालकर पापा आपने आशा को और बिगाड़ दिया है।
जगदीश राय:अरे नहीं बेटी।उसकी भी गांड में खुजली हो रही होगी।
निशा:धत कितना गन्दा बोलते हो आप।आज तो मैं आपको नहीं छोड़ूँगी।रात भर हम साथ में सोयेंगे।
जगदीश राय:अरे बेटी ऐसा करोगी तो आशा को जानती हो न।उसे भी साथ बुला लेंगे।
निशा:कैसी बात करते हो पापा।मुझे तो बहुत शरम आयगी।
जगदीश राय:अरे बेटी अब शरमाने से काम नहीं चलेगा।आशा बोल रही थी।उसे तुम्हारे साथ कोई प्रॉब्लम नहीं है।मुझे भी बहुत मन था की कभी दो जवानी का मज़ा एक साथ लूँ।लेकिन लगता है मेरी ये इच्छा कभी भी पूरी नहीं होगी।
जगदीश राय ने इमोशनल होकर दुखी आवाज में कहा।
जिसे सुनकर निशा बोली।
अगर आपकी इच्छा है पापा तो मैं भी तैयार हूँ।आपकी ख़ुशी के लिए तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ।
फिर दोनों ने किस करके थोड़े बहुत मज़ा किये।फिर निशा खाना बनाने लगी।।
जब तीनों खाना खा लिए तो जगदीश राय ने आशा को भी बता दिया की आज हम तीनों एक साथ मज़ा करेंगे।
आशा भी खुश हो गई।
दस बजते ही जगदीश राय ने वियाग्रा की 1 गोली खा ली।क्योंकि निशा और आशा के आने का टाइम हो गया था।आज जगदीश राय की जिंदगी का सबसे हसीं पल आने वाला था।जब उसकी दोनों जवान गदराई बेटीयाँ उसकी बाहों में आ रही थी।
दस बजते ही निशा आ गई आते ही उसने पापा को किस किया और उनकी बाँहो में समा गई।अब दोनों ही एक दूसरे को किस करने लगे।जगदीश राय निशा के कपडे उतारने लगा।आशा के आने के पहले वह निशा को पूरा गरम कर देना चाहता था।
निशा भी आज कहाँ पीछे रहनेवाली थी उसने भी अपने पाप को पूरा नंगा कर दिया।
अब जगदीश राय ने नंगी पड़ी निशा को बेड पर लिटाया और उसके दोनो हाथो को उसने बेड पर एक हाथ से दबोच दिया..ताकि वो उसे रोक ना पाए...बेचारी उसके नीचे दबकर सिर्फ़ छटपटाने के अलावा कुछ नही कर पा रही थी।
उसके अंदर उठ रही तरंगे उसके जिस्म को उपर की तरफ उचका रही थी..और वो अपने कूल्हे उठाकर अपनी चूत को जगदीश राय के खड़े हुए लंड से रगड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी.
लेकिन जगदीश राय बड़ी ही चालाकी से अपने लंड को उसकी चूत से दूर रखकर उसकी बेकरारी को बड़ा रहा था.
जगदीश राय उसके बूब्स को चूसता - 2 नीचे की तरफ बढ़ने लगा...उसकी नाभि पर पहुँचकर उसने अपनी जीभ उसके अंदर डाल दी...और उसकी नाभि को अपनी जीभ से चोदने लगा..
तभी आशा रूम में आई।निशा ने तो नहीं देखा लेकिन जगदीश राय ने उसे दूर से ही देखने का इशारा किया।
वह ध्यान से देखने लगी।
निशा की नाभि की चुदाई देखकर दूर बैठी आशा ने भी अपनी टी शर्ट उतारकर अपनी नाभि की गहराई देखी की क्या वो भी जीभ से चोदने लायक है या नही...वो उतनी गहरी नही थी जितनी निशा की थी...कारण था निशा का गदराया हुआ जिस्म, जिसकी वजह से उसकी नाभि उसके पेट में थोड़ा अंदर जा धँसी थी...और इस वक़्त जगदीश राय उसी नाभि को अच्छी तरह से चाटकर उसे पूरी तरह से उत्तेजित कर रहा था.
थोड़ी देर बाद उसने फिर से निचे का रुख़ किया और उसकी जीभ निशा की चूत के द्वार पर जाकर रुक गयी...
जगदिश राय ने उपर मुँह करके निशा के चेहरे को देखा...वो साँस रोके उसके अगले कदम की प्रतीक्षा कर रही थी.
जगदिश राय ने अपनी उँगलियों से निशा की चूत की क्लिट को फैलाया,तो उसकी कमाल की चूत उभरकर जगदिश राय के सामने आती चली गयी.निशा की चूत इतनी गरम थी की लग रहा था की भाँप छोड़ रही हो।
कमाल की इसलिए की एक तो वो बिल्कुल गोरी थी...और उपर हर जगह से वो एकदम सफाचट थी.
उसने आशा की तरफ देखा तो वो अपनी चूत मसलते हुए जगदीश राय को देखकर मुस्कुरा उठी...और अपने बूब्स को प्रेस करके एक सिसकारी भी मारी...जगदीश राय समझ गया की आशा भी पूरी गरम हो चुकी है।
अब जगदीश राय के सामने एकदम रसीली और जूस से भरी हुई चूत पड़ी थी...उसने अपनी जीभ को तैयार किया और टूट पड़ा निशा की चूत में .
सेलाब तो कब से उमड़ रहा था उसकी चूत में ....अब जगदीश राय की जीभ से चोदकर उसकी चूत में सैलाब लेकर आना था....और वो ये काम करना बख़ुबी जानता था.
जगदीश राय निशा की चुत चूसने लगा था, तभी आशा बोल पड़ी, पापा दीदी की चुत खट्टी मीठी है ना।
ये सुनकर निशा ने शरमाते हुए आशा की तरफ देखा और बोली तो तू छुपकर हमें देख रही है।
आशा : "नही दीदी....मैं तो एक आइडिया लेकर आई हूँ ...जिसमे पापा को इसे सक्क करने में ज़्यादा मज़ा आएगा...''
इतना कहकर वो भागकर किचन में गयी और फ्रिज खोलकर एक छोटी सी शहद की शीशी निकाल लाई...
जगदीश राय समझ गया की ये क्या करने वाली है...
अब आशा करीब आई और उसने वो ठंडा-2 शहद निशा की चूत के उपर उडेल दिया....एक गाड़ी सुनहरे रंग की लकीर के रूप में वो शहद धीरे-2 निशा की गरमा गरम चूत को अपने रंग में रंगने लगा..थोड़ा शहद उसने उसकी गांड की तरफ से भी डाल दिया,जो धीरे-२ बहकर उसकी चुत तक पहुँचने लगा।
जगदीश राय देख पा रहा था की आशा शहद उड़ेलते हुए अपनी जीभ ऐसे लपलपा रही थी जैसे वो बरसो की प्यासी हो....
शहद की पूरी शीशी उड़ेलने के बाद वो बोली : "लो पापा....अब आपकी ये स्वीट डिश आपके लिए तैयार है...''
और ये कहकर जैसे ही वो उठकर जाने लगी, जगदीश राय ने उसकी कलाई पकड़ ली और बोला : "अब इतना काम कर दिया है तो थोड़ा और कर दो मेरे लिए....इसे अपनी दीदी की चुत पर फैला भी दो...अपने अंदाज में ..''आशा आगे बढ़ने लगी तो जगदीश राय बोला।पहले पूरी नंगी तो हो जा।
ये बात सुनते ही आशा के होंठ थरथरा उठे...उसके पूरे शरीर के रोँये खड़े हो गये....अपनी बड़ी दीदी और पापा के साथ सेक्स के बारे में सोचकर।
वो सोचने लगी की इसका मतलब ये है की पापा उसे इस सेक्स के खेल में शामिल होने के लिए बोल रहे है...
और दूसरी तरफ निशा को भी झटका लगा...वो नही चाहती थी की आज आशा उनके इस चुदाई वाले खेल में शामिल हो...वो बस यही चाहती थी की वो दूर बैठकर ये खेल सिर्फ़ देखे..
लेकिन आशा के चेहरे और निशा के दिमाग़ में चल रही बातो को जैसे जगदीश राय ने पढ़ लिया था...वो बोला... : "देखो....तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ ये एक छोटा सा काम करोगी...और कुछ नही...उसके बाद वापिस अपनी जगह पर जाकर बैठ जाओगी...अच्छे बच्चो की तरह....ओके ..''
आशा के लिए ये एक सपने जैसा ही था...वो अपनी बहन की शहद से भीगी चूत को चूसने वाली थी...उसी चूत को जिसे उसके पापा सिर्फ़ दस मिनट बाद चोदने वाले थे...यानी उसके पापा चाहते थे की वो अपनी बहन की चूत खुद तैयार करे,ताकि वो बाद में उसकी चुदाई सही से कर सके।वो जल्दी से पूरी नंगी हो गई।
निशा ने भी कुछ नही कहा...वैसे भी उसे एक्साइट करने के लिए सही ढंग से चूत की चुसाई करना बहुत ज़रूरी था ...और ये काम आशा से अच्छी तरह कोई और कर ही नही सकता था...
जगदीश राय निशा की टाँगो के बीच से उठकर उपर बेड की तरफ चला गया...और आशा उसकी जगह पर आकर बैठ गयी...उसने निशा की दोनो टाँगो को दोनो दिशाओं में फेलाया और अपनी जीभ निकाल कर उसकी नोक से ढेर सारा शहद समेटा और दोनो हाथों की उंगलियों से निशा की चूत की फांके फेला कर नीचे से उपर की तरफ ले जाते हुए उसकी चूत का को चाटना शुरू कर दिया...एक लंबी आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह के साथ निशा ने अपनी बगल में बैठे अपने पापा के लंड को बुरी तरह से पकड़ा और ज़ोर से मसल डाला...
निशा:''आआआआआआआआआआआआआआआआआहह ओह...... आशाआआआआआअ......''
आशा की जीभ ने वो ठंडा -2 शहद उसकी खुली हुई चूत के अंदर धकेलना शुरू कर दिया था...
ये शहद वाली ट्रिक उसने कई दिनो से सोच के रखी हुई थी किसी लड़की के लिए...लेकिन उसे करने का मौका ऐसे आएगा ये उसने सपने में भी नही सोचा था...वो भी अपनी सगी बहन के साथ।
जगदीश राय भी अपने घुटनो के बल बैठकर अपने लंड को उसके मुँह के करीब ले आया...और निशा उसे किसी गली की कुतिया की तरह चाटने लगी...अपनी जीभ से लपलपा कर उसने जगदीश राय के लंड को अपने ही शहद से तर-बतर कर दिया...ठीक उसी तरह जिस तरह से उसकी चूत को आशा ने कर दिया था इस वक़्त..
आशा तो बड़े ही चाव से उसकी चूत के हर भाग को शहद में लपेट कर चाट रही थी....चूत से निकलता खट्टापन अब शहद में मिलकर कुछ अलग ही स्वाद दे रहा था...जो आशा को काफ़ी पसंद आया...और उसे पता था की पापा को भी ये स्वाद पसंद आएगा...
कुछ देर बाद वो अपने रस से भीगे होंठ वहां से उठा कर बोली : "आओ पापा....अब ट्राइ करो...''
जगदीश राय ने एक लंबी छलाँग लगाई
और बेड से नीचे उतर आया...आशा के हटते ही उसने मोर्चा संभाल लिया और जब उसकी जीभ निशा की चूत से टकराई तो वहां के बदले स्वाद को महसूस करते ही वो पागल सा हो गया...और पहले से कही ज़्यादा तेज़ी से उसकी चूत को अपने मुँह से चोदने लगा...इधर आशा निचे बैठकर अपने पापा का लंड अपने मुँह में भरकर चूसने लगी।
जगदीश राय: आह बेटी,आह आराम से चूसो।
इधर निशा को इतना मज़ा आ रहा था की वह गांड उठाकर अपनी चूत अपने पापा के मुँह पर धकेल रही थी। करीब दस मिनट तक अच्छी तरह से चूसवाने के बाद निशा को एहसास हो गया की चूत की ऐसी चुसाई से बड़ा मजा इस दुनिया में और कोई नहीं है।
और इधर जगदीश राय को भी अहसास हो गया की अब निशा की चूत अंदर और बाहर से पूरी तरह गीली है...यही सही मौका है....उसके चूत में अपना मोटा लंड पेलने का।
इधर आशा ने जगदीश राय के लंड को चूस चूसकर रॉड बना दिया था।
वो उठा और अपने लंड को उसने निशा की गर्म चूत पर टीका दिया..
ये वो मौका था जब निशा और आशा अपनी साँसे रोके एक साथ उस पॉइंट को देख रही थी...जहाँ पर जगदीश राय के लंबे लंड और निशा की गीली चूत का मिलन हो रहा था.
जयसिंह ने धीरे-2 करके अपने लंड को निशा की चूत के अंदर पेलना शुरू किया...
निशा : "उम्म्म्म.....पापा.....आह धीरे धीरे....पेलो।
निशा कई बार चुद चुकी थी अपने पापा से पर आज वो ऐसे रियेक्ट कर रही थी मानो उसकी पहली चुदाई हो।
जगदीश राय : "नही मेरी जान.....इतनी देर तक जो तेरी चूत को तैयार किया है, वो इसलिए ही ना की दर्द ना हो....अब सिर्फ़ मज़ा ही मज़ा मिलेगा...दर्द नही...''
और जैसे-2 उसका लंड निशा के अंदर जाता जा रहा था, उसके चेहरे के एक्शप्रेशन बदलते जा रहे थे...
और धीरे-2 करते हुए जगदीश राय ने अपना आधे से ज़्यादा लंड उसकी चूत में पेल दिया....अब तक निशा को थोडा थोडा दर्द होने लगा था..पर वो अपने मुँह पर हाथ रखकर अपनी दर्द को बाहर नही निकलने दे रही थी...
जगदीश राय ने उसके दोनो हाथो को बेड पर टीकाया और धीरे से उसके उपर झुकते हुए बोला : "बस बेटी....थोड़ा सा और....'''
वो कुछ बोल पाती, इससे पहले ही जगदीश राय ने अपना पूरा का पूरा भार उसके उपर एक झटके मे डाल दिया ....और उसका खंबे जैसा लंड निशा की चूत को किसी ककड़ी की तरह चीरता हुआ अंदर तक घुसता चला गया...
निशा: ''आआआआआआआआआआआआहह ऊऊऊऊऊऊओह मररर्र्र्र्र्र्र्र्र्रर्र्र्ररर गईईईईईईईईईईईईईईsssssssss ..... आआआआआआआआआहहsssssssssss पापाsssssssss..................................''
आशा भागकर उसके करीब गई और बेड पर चढकर वो निशा के चेहरे को चूमने लगी ।
वो तो ऐसे दिलासा दे रही थी उसे जैसे वो बरसो से चुदती आई है, आशा अपने होंठ उसके होंठो पर रखकर उसे बुरी तरह से चूसने भी लगी.
आशा की किस का जवाब भी देना शुरू कर दिया था निशा ने....दोनो एक दूसरे के होंठों को किसी भूखी बिल्लियों की तरह से चूस रही थी...और आशा ने जब देखा की निशा का दर्द अब गायब हो चुका है तो वो बेमन से वापिस अपनी जगह पर जाकर बैठ गयी..
निशा ने जाते हुए उसे थेंक्स भी कहा...और फिर अपने पापा के साथ वो एक बार फिर से मस्ती के खेल में शामिल हो गयी.
अब तो वो अपनी टांगे दोनो दिशाओ में फेलाकर पूरे जोश से अपने पाप के लंबे लंड को अंदर तक ले रही थी...और सिसकारियाँ मारकर उसे और ज़ोर से चोदने के लिए उकसा भी रही थी...
निशा:''आआआआआआआआहह पापा........ मेरी जानssssssssss ....... और तेज़ी से करो.................. उम्म्म्ममममममममममम...... आहह पापा.............. मजा आ रहा है ....................... उम्म्म्ममममममममम..... इसी मज़े के लिए कब से तरस रही थी..... आआआआआआआआहह ........ ऐसे ही................... हमेशा मेरे अंदर ही रहना ...................... दिन रात...................चोदो मुझे ..................मेरे प्यारे पापा............................ सिर्फ़ मेरे पापा.................''
दूर बैठी छोटी बहन आशा बुदबुदा उठी ..'तेरे ही क्यो....मेरे भी तो पापा है...
वो अपनी चूत को खोलकर मसल रही थी ..... और साथ ही साथ बाहर की तरफ निकले हुए क्लिट के दाने को भी रगड़कर अपनी गर्मी शांत करने की कोशिश कर रही थी।
लेकिन जगदीश राय और निशा में से किसी का भी ध्यान उसकी तरफ नहीं था, वो दोनों तो बुरी तरह से एक दूसरे को चोदने में लगे हुए थे
जगदीश राय भी अपनी पागल सी हुई जा रही बेटी को इस तरह से चोदकर बावला हुए जा रहा था, और वो इस मौके का भरपूर फायदा उठा रहा था....
आख़िरकार ज़ोर-2 से चिलाते हुए निशा झड़ गयी ...
निशा: ''आआआआआआआआहह ओह माय गॉड ................ पापा ..................... आई एम कमिंग ..................''
जगदीश राय भी चिल्लाया : "मैं भी आआआआआआय्य्ाआआआआ... मेरी ज़ाआाआआनन्न....''
निशा : "अंदर ही निकालो .............पापा............. आज मेरे...................... अंदर ही निकााआआाआल्लो.....''
लेकिन यहाँ ना तो कंडोम लगाने का टाइम था और ना ही जगदीश राय ने कुछ समझदारी दिखाई....और उपर से निशा खुद ये बात बोल रही थी की उसके रस को अंदर ही निकाले....क्या वो प्रेगञेन्ट होना चाहती है....ये बात आशा को परेशान कर रही थी.
निशा ने भी ऐसा कुछ नही सोचा था....लेकिन इस मौके पर आकर वो एक बार अपने अंदर तक अपने पापा के प्यार को महसूस करना चाहती थी...इसलिए उसने एक सेकेंड में ही ये सोच लिया की आज जो हो रहा है, होने दो...बाद में टेबलेट ले लेगी...
जगदीश राय ने भी एक सांड की तरह हुंकारते हुए अपने लंड का सारा पानी अपनी प्यारी बेटी की चूत के अंदर निकाल दिया....
''आआआआआआआआआआअहह मेरी ज़ाआाआआआअन्न् ......ये ले......................''
जगदीश राय ने अपनी प्यारी बेटी के लिए सहेज के रखा हुआ प्रेम रस पूरी तरह से उसकी प्यासी चूत
मे उडेल दिया , अपनी बाल्स को पूरी तरह से खाली कर दिया उसने..
निशा की चूत ने भी जगदीश राय के लंड को किसी वेक्यूम क्लीनर की तरह चूस डाला और पूरी तरह से तृप्त होकर पस्त हो गयी.
और फिर गहरी साँसे लेता हुआ उसके मुम्मों पर सिर रखकर लेट गया...उसका लंड अपने आप फिसलकर बाहर निकल आया...और पीछे से निकला दोनो के प्यार का मिला जुला पानी में लिपटा सफ़ेद जूस...
आशा ने जो आज देखा था उसे सोचकर उसका पूरा शरीर गर्म सा हो रहा था....वो भी कुछ देर में इसी लंड से गांड मरवाएगी ...और उसका भी ऐसे ही पानी निकलेगा...वो भी मज़े लेगी...वो भी चिल्लाएगी....ये सब सोचते-सोचते वो मुस्कुरा दी।
जगदीश राय और निशा दोनो ने नोट ही नही किया की उनके पीछे खड़ी आशा उनके इस मिलन को देखकर कैसे अपने बूब्स और चूत को रगड़ रही है...
उसे पता था की अभी तक उसका नंबर नही आया है,इसलिए वो इस तरह से दूर खड़ी होकर अभी के लिए तो बस यही कर सकती थी...पर वो ऐसी थी नही...वो जानती थी की आजकल की दुनिया में ऐसे दूर रहकर कुछ नही मिलने वाला...बड़े लोग हमेशा छोटो को दबाते है..उनके हक को खुद छीनकर ले जाते है...भले ही अभी के लिए इन दोनों बहनों में ऐसी कोई भी भावना नही थी पर इस तरह दूर खड़े होकर वो निश्चिन्त तौर पर कुछ खो ही रही थी...या ये कह लो की उसकी बहन सारे मज़े खुद लेकर उसे ऐसे मज़े से वंचित रख रही थी..
और कुछ पाने के लिए वो उन दोनो के करीब आ गयी...
वो भी तो नंगी ही थी...इसने अपना वो नंगा बदन अपने पापा से ले जाकर चिपका दिया...
क्योंकि वो जानती थी की जो भी उसके साथ होगा वो पापा के लंड द्वारा ही होगा...
इधर जगदीश राय और निशा अब दूसरे राउंड के लिए पूरी तरह तैयार थे,जगदीश राय और निशा दोबारा एक दूसरे के होठों को चबाने में मशगूल हो गए,पर जगदीश राय को जब आशा के गर्म बदन का एहसास हुआ तो उसने अपनी किस्स तोड़ी और आशा की तरफ देखा...निशा भी उसे देखकर समझ चुकी थी की उसकी बदन में भी अब कुलबुलाहट शुरू हो चुकी है....दोनो ने मुस्कुराते हुए आशा को भी अपनी बाहों मे जगह देकर उसे अंदर घुसा लिया....और फिर एक साथ तीनो ने अपने-2 मुँह आगे कर दिए और तीन तरफ़ा स्मूच शुरू हो गयी....
दोनो बिल्लियों की तरह जगदीश राय के होंठों को ही चूसने का प्रयास कर रही थी...जगदीश राय भी कभी एक को तो कभी दूसरी को फ्रेंच किस कर रहा था...ऐसे अलग-2 नर्म होंठों को चूसने में उसे बहुत मज़ा आ रहा था...ऐसा ही कुछ वो उन���ी चुतों के साथ भी करना चाहता था.
जगदीश राय ने तुरंत वो सामूहिक किस्स तोड़ी और अपनी गोद मे बैठी निशा को नीचे उतार दिया...वो तो उसपर से उतरने को ही राज़ी नही हो रही थी...पर जब जगदीश राय ने उसकी गर्म चूत में उंगली डाली तब जाकर वो नीचे उतरी...
उन दोनो को जगदीश राय ने धक्का देकर बेड पर लिटा दिया, जगदीश राय अपने होठों पर जीभ फिर रहा था, दोनो बहने उसे ऐसा करते हुए देख रही थी और अपनी चूत में उंगली और मुम्मो पर पंजा लाकर उसके आगे बढ़ने का इंतजार कर रही थी...
जगदीश राय के लण्ड को देखकर दोनो की चूत में से नींबू पानी निकल रहा था..
जगदीश राय ने दोनो की बहती हुई चूत देखी और वो उनके पैरों के पास आकर बैठ गया...अब तक दोनो समझ चुकी थी की उनके साथ क्या होने वाला है...दोनो ने एक दूसरे का हाथ जोरों से पकड़ लिया...
जगदीश राय ने दोबारा सबसे पहले निशा की चूत में अपना मुँह डाला...वहाँ से इतना गीलापन निकल रहा था की उसे एक पल के लिए ऐसा लगा की वो लिम्का पी रहा है...एकदम शहद में लिपटा खट्टा-मीठा सा स्वाद था उसकी चूत के रस का...
कुछ देर तक उसे चूसने के बाद वो आशा की तरफ पलटा...और अपनी जीभ लगाकर उसका स्वाद चखा...वो थोड़ा मीठा था...उसने अपने होंठों और दाँतों से उसकी चूत पर हमला कर दिया...
वो तड़प उठी...और तड़पकर उसने पास लेटी निशा को पकड़कर अपने उपर खींच लिया...और उसके मम्मों को जोरों से चूसने लगी...
''आआआआआआआआआहह माय बैबी...''
निशा को अपनी छोटी बहन अपनी बच्ची जैसी लग रही थी...जो अभी पैदा हुई थी...वो उसे माँ बनकर अपना दूध पिलाने लगी...नीचे से जगदीश राय उसकी चूत चूस रहा था और उपर से वो निशा के मम्मे चूसकर अपना सारा मज़ा आगे ट्रान्स्फर कर रही थी...
कुछ देर बाद जगदीश राय फिर से निशा की चूत पर आ लगा...और ऐसा उसने करीब 3-4 बार किया....कभी आशा तो कभी निशा की चूत चाटता...
अब निशा भी उठकर आ गई और अपने पापा के साथ साथ आशा की चूत चाटने लगी।जल्दी ही आशा की चूत ने जवाब दे दिया।आशा काफ़ी देर से बिलख रही थी...और आख़िरकार उसकी चूत ने पानी छोड़ ही दिया...
वो भरभराकर झड़ने लगी....जगदीश राय और निशा ने मिलकर उसकी चूत का पानी पी डाला..
अब जगदीश राय की बारी थी...निशा ने उन्हें बेड पर लिटा कर पीछे पिल्लो लगा दिया और खुद उनकी टाँगो के बीच पहुँच गयी...दूसरी तरफ से आशा भी आ गयी...फिर दोनो ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे को देखा और मिलकर जगदीश राय के लंड पर टूट पड़ी...जगदीश राय का लंड जिसमे अभी भी निशा की चूत का पानी और वीर्य लगा हुवा था।लेकिन दोनों बहनें रंडियों की तरह अपने पापा का लंड चूसने चाटने लगी।
जगदीश राय ने तो बेड की चादर को ज़ोर से पकड़ लिया जब उसपर ये हमला हुआ तो...निशा ने उसके लण्ड को निगल लिया था और आशा ने उसकी गोटियों को....
ऐसा लग रहा था जैसे भूखे इंसानों को 1 महीने बाद कुछ खाने को मिला है...
जगदीश राय के लंड को चूस चूस करके दोनों खाने लगी...उनकी गर्म जीभे , तेज दाँत और नर्म होंठों के मिश्रण से उसे बहुत गुदगुदी भी हो रही थी...पर उससे ज़्यादा मज़ा भी बहुत आ रहा था...
जगदीश राय ने हाथ आगे करके दोनों के मुम्मे सहलाने शुरू कर दिए...दोनो के निप्पल एकदम कड़क हो चुके थे...उन्हे मसलने में उसे बहुत मज़ा आ रहा था...जगदीश राय दोनों के निप्पलों को दोनों हाथों से नोंच रहा था।
दोनों जगदीश राय के लंड को बुरी तरह से चूस रहे थे, एक गोटियां चूस रही थी तो दूसरी लंड.
दोनों बहने नंगी जगदीश राय के सामने थी..जगदीश राय के मुँह में पानी आ गया उन गोरी-2 छातियों को देखकर ।
और उसने आशा को अपनी तरफ खींचकर अपने होंठ लगा दिए उसके मुम्मों पर और जोरों से चूसने लगा..
आशा ने जगदीश राय के सिर को पकड़कर और ज़ोर से अपनी छाती में घुसा लिया और चिल्लाई : "ओह पापा........ ज़ोर से सक्क्क करो..... बहुत परेशान करते है ये.... दबाओ इन्हे..... चूसो.... काट लो दांतो से..... अहह ...ओह पापा ...... सस्सस्स ..''
जगदीश राय ने उसके बूब्स पर दांतो से काटना शुरू कर दिए...
कुछ देर तक अपनी ब्रेस्ट चुसवाने के बाद वो बड़े ही प्यार से बोली : "पापा..... मुझे भी चूसना है...''
जगदीश राय मुस्कुरा दिया उसके भोलेपन को देखकर...
कितनी मासूमियत से वो खुद ही उसके लंड को चूसने के लिए बोल रही थी...
इससे उसके उतावलेपन का सॉफ पता चल रहा था...
जगदीश राय जानता था की वो ज़्यादा देर तक तो इस खेल को बड़ा नही पाएगा,क्योंकि 5 दिन से वो झड़ा नहीं था। पर जितने मज़े वो ले सकता है उतने वो ले लेना चाहता था.
जगदीश राय ने हामी भर दी..
दोनों बहनें पूरी रंडी बनकर अपने पापा के लंड को खा जाने में जुटी थी,दोनों बहनों ने अपनी जीभ का वो कमाल दिखाया की जगदीश राय का लण्ड फटने को तैयार हो गया।दोनों बहनो ने दोनों तरफ से मुँह खोलकर लंड को चूसना और चाटना शुरू किया तो जगदीश राय को लगा की सारा पानी दोनों के मुँह पर ही छोड़ देगा।
कुछ ही देर में उनकी मेहनत रंग लाने लगी, जगदीश राय के लण्ड में ने फुफकारना शुरू कर चुका था और कुछ ही मिनट में अब वो रॉड की तरह खड़ा था।
अब जगदीश राय ने निशा को ऊपर मुँह करके सीधा लेटाया और उसके ऊपर आशा को उल्टा लिटा दिया।अब दोनों की चूचियाँ एक दूसरे से दब गई।और दोनों एक दूसरे को चूसने लगी।
ऊपर से जगदीश राय ने आशा की गांड पर थूक दिया और एक ही झटके में अपने पूरे लंड को उसकी गाण्ड में उतार दिया।आशा की गांड फटती चली गई और लंड पूरा घुसता चला गया।अब जगदीश राय आशा की टाइट गांड में अपना मूसल लंड पेलने लगा।फिर उसने अपने लंड को आशा की गाँड से निकालकर निशा की चूत में पेल दिया।निशा की चूत पूरा पानी छोड़ रही थी।जिसमे लंड फच फच कर रहा था।
कुछ देर निशा की चूत में पेलने के बाद फिर जगदीश राय ने अपने लण्ड को निशा की चूत से निकालकर आशा की मस्तानी गांड में पेल दिया।अब तो लण्ड आशा की गांड में पूरा जड़ तक घुसा के पेल रहा था।
एक मिनट आशा की गांड में पेलता फिर एक मिनट निशा की चूत में पेलने लगता।
लेकिन इस बार निशा की चूत में पेलने के बाद जगदीश राय ने लंड को फिर से निशा की कसी हुई टाइट गांड में ही पेल दिया।निशा दर्द से सिसियाने लगी।जब थोड़ी देर हुई तो आशा बोली।
आशा:पापा क्या कर रहे हो।कितनी देर से निशा दीदी को ही चोद रहे हो।इधर मेरी गाण्ड में खुजली हो रही है।जल्दी पेलो पापा।फाड़ डालो मेरी गांड को।
जगदीश राय: क्या करू बेटी।तेरी दीदी के पास दो दो छेद है।तो दोनों में पेल रहा हूँ।तू तो एक ही छेद दे रही है।इसलिए तेरी दीदी में ज्यादा टाइम लग रहा है।
आशा :कोई बात नहीं पापा।इसका बदला मैं भी लेकर रहूंगी।
निशा:अरे आशा तुझे जितना मन करे।चुदा ले।
आशा की गाण्ड लंड के इस घर्सण से उत्तपन्न गर्मी से पिघली जा रही थी, इधर निशा ने भी आशा के होठो और मुंम्मो पर लगातार हमला जारी रखा हुआ था।
इस दो तरफा हमले को सह पाना आशा के लिए बड़ा मुश्किल हुआ जा रहा था, जगदीश राय पोजीशन बदल बदल कर आशा की गांड की धज्जियां उडाए जा रहा था, बीच बीच मे अब वो अपना लंड निकालकर निशा की चुत में भी घुसेड़ देता ।
फिर जगदीश राय ने दोनों बेटियों को एक दूसरे के ऊपर कुतिया बनाके चोदना शुरू किया।पहले आशा की गांड मारता।फिर निशा की चूत और गांड मारने लगता।फिर अपना लंड आशा की गांड में पेल देता।दोनों की गांड पर कभी कभी थप्पड़ भी मारने लगता।
तीनों छेदों को 1 मिनट का भी आराम नहीं था।
चौथा छेद आशा की चूत में कभी कभी ऊँगली पेल देता।दोनों बहने कुतिया बने बने कितनी बार झड़ चुकी थी।
तकरीबन 45 मिनट की घमासान धमाकेदार चुदाई के बाद जगदीश राय ने अपना लंड ब��हर निकाला और दोनों बेटीयों को निचे बैठ दिया और अपना पानी दोनों बहनों के मुँह और मुंम्मो पर छोड़ दिया जिसे दोनों बहनों ने अमृत समझ चाट लिया, इस बीच वो दोनों भी न जाने कितनी बार अपना पानी छोड़ चुकी थी।
कुछ देर आराम करने के बाद फिर दोनों ने जगदीश राय के लंड को सहलाना शुरू कर दिया।जगदीश राय ने दोनों बहनों को अपना लंड चाटने का इशारा किया।
अब जब दोनों बहनों में जगदीश राय के लंड को चूसना शुरू किया तो दो दो गरम मुँह की गर्मी से जगदीश राय के लंड का बुरा हाल हो गया।इस बार जगदीश राय ने फर्श पर गद्दा डलवाया और पहले निशा को उल्टा लिटा दिया।और आशा को उसकी गांड और चूत को गिला करने को कहा।आशा ने जल्दी ही निशा की चूत और गांड को अपनी जीभ से चाट कर और थूक लगाकर गिला कर दिया फिर उसने अपने पापा के लंड को भी गिला कर दिया और बोली और फाड़ डालो पापा दीदी की चूत और गांड।
जगदीश राय ने अपने लंड को निशा की चूत पर रखा और एक ही धक्के में अपना 9 इंच का लंड अपनी बेटी निशा की चूत में जड़ तक पेल दिया।निशा चिल्लाने लगी।
लेकिन जगदीश राय को कोई फर्क नहीं पड़ा।वह तो धक्के पे धक्के मार के पेल रहा था।जब लंड पूरा गिला हो गया तो उसने लंड निकालकर आशा को चूसने को बोला।आशा जल्दी जल्दी चूसने लगी।इस बार जगदीश राय ने अपने लंड को निशा की गांड के भूरे छेद पर लगाया तो निशा कांप उठी।लेकिन जगदीश राय ने जोर का धक्का मारा और उसका पूरा लंड निशा की गाण्ड को फैलाता हुवा घुस गया।।
निशा:आह मरर गईईईईई पपाआआआ।धीरे धीरे पेलो ना।
लेकिन जगदीश राय को कोई फर्क नहीं पड़ा वह निशा की गांड से लंड निकाल के आशा क�� मुँह को चोदने लगता।फिर मुँह से निकालकर निशा की चूत और गांड फाड़ने लगता।इस बार पूरी बेरहमी से उसने निशा की चूत और गांड मारी।आखिरी समय में तो निशा मज़े से चिल्लाने लगी और बुरी तरह से झड़ गई।जगदीश राय ने भी अपना पूरा वीर्य अपनी बेटी निशा की गाँड में भर दिया।
जगदीश राय ने अपना लंड निशा की गांड से निकल कर आशा के मुँह में पेल दिया।जिसे आशा ने चाट चाट कर चमका दिया।निशा पूरी तरह थक गई थी।उसने अपने पापा को किस किया और सोने चली गई।
जगदीश राय और आशा ने कुछ देर रेस्ट किया फिर आशा बोली:पापा आपने तो आज दीदी की बैंड बजा दिया।
जगदीश राय:आ अब तेरी बारी है।इस बार तुझे भी ऐसा चोदुँगा की 2-3 दिनों तक तेरी गाँड में खुजली नहीं होगी।थोडा मेरा लंड तो चूस दे ।फिर देख तेरा क्या हाल करता हूँ।
आशा घुटनों पर बैठके अपने पापा का लंड चूसने लगती है।जगदीश राय दोनों हाथों से उसके सर को पकड़कर अपना लंड आशा की मुँह में पेलने लगता है।
पांच मिनट तक आशा की मुँह चोदने के बाद जगदीश राय आशा को कुतिया बना देता है।फिर अपना गिला लण्ड आशा की टाइट गांड में जबरदस्ती पेल देता है।
जगदीश राय:देख साली रंडी।अब तुझे कैसे कुतिया की तरह दौड़ा दौड़ा के पेलता हूँ।दौड़ते हुए थोडा भी रुकी तो साली तेरी गांड पर कितने थप्पड़ पड़ेंगे तुझे पता भी नहीं होगा।बोल साली रंडी तू मेरी क्या है।
आशा:मैं आपकी रांड हूँ।आपकी पर्सनल रांड।
मुझे जैसे चाहो मुझे चोदो मेरे मालिक।
फिर जगदीश राय आशा के दोनों पैरों को ऊपर उठा देता है।और आशा की गांड में लंड पेलते हुए उसे आगे चलने को कहता है।आशा दोनों हाथो के बल आगे चलने लगती है।फिर तो जगदीश राय आशा को किसी गली की कुतिया की तरह घर के कोने कोने में दौड़ाकर उसकी गांड मारता है।आधे घंटे तक जगदीश राय आशा की गांड मारता है।तब तक आशा दो बार झड़ चुकी है।
फिर जगदीश राय आशा की गांड से लंड निकालकर उसके मुँह को चोदने लगता है।फिर आशा भी अपने ही गाण्ड से निकले लंड को चूस चूसकर उसका पूरा वीर्य पि जाती है।फिर दोनों साफ सफाई करके सोने चले जाते है।
ऐसे ही मस्ती में दिन बीत रहे थे की एक दिन सुबह सशा के कमरे के बाहर से गुजर रहा था की उसे फोन पर बात करने की आवाज सुनाई दी।
सशा : नहीं....नहीं सर प्लीज्जज्जज्जज्ज सर।
फिर उधर से कुछ कहा गया।
सशा:प्लीज सर......ओके मैं आ रही हूँ।
इतना सुनकर जगदीश राय को शक हो गया की जरूर दाल में कुछ काला है।वह निशा को ऑफिस जाने को कहकर जल्दी ही घर से निकल गया।बाहर आकर मेन रोड पर एक दुकान में बैठकर चाय पिने लगा।
कुछ ही देर बाद सशा घर से स्कूल ड्रेस में जाती दिखाई दी।जबकि अभी स्कुल जाने में बहुत देर था।इतना पहले वह क्यों जा रही है।जगदीश राय उसका पीछा करने लगा।स्कूल ज्यादा दूर नहीं था।यही कोई 1 किलोमीटर।सशा स्कूल में घुस गई अभी स्कूल में कोई नहीं आया था।
सशा सीधे ऊपर चली गई।ऊपर लिखा था ओनली फॉर स्टाफ।जगदीश राय भी छुपकर ऊपर चला गया।वह धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था।तभी उसे शशा की आवाज एक कमरे से सुनाई दी।जगदीश राय ने जल्दी से अपने मोबाइल को साइलेंट किया और उसकी कैमरे की लाइट बंद करके कैमरा चालू कर दिया।फिर वह उस रूम की खिड़की तक पहुँचा और खिड़की की झिरी से देखा की एक 50 की उम्र का आदमी खड़ा था।वह सशा का टीचर था और शशा उसके आगे बैठकर उसका लंड सहला रही थी।
खिड़की पुरानी थी जो लकड़ी की बनी हुई थी इसलिए उसमे झिरी बन गई थी।जगदीश राय ने खिड़की को थोडा सा दबाया तो मालूम पड़ा की वह खुली हुई थी।उसने मोबाइल का वीडियो कैमरा चालू करके उनलोगो के तरफ करके मोबाईल अंदर रख दिया।
फिर दरार से देखने लगा।अब टीचर ने सशा को अपने लंड को चूसने को बोला।लेकिन सशा बार बार मना कर रही थी।लेकिन जब टीचर ने गुस्से में धमकी दिया तो सशा मज़बूरी में उसका लंड चूसने लगी।अब वह टीचर साशा के बालों को पकड़कर उसके मुँह में अपना लंड पेलने लगा।
साथ ही साथ उसने सशा की स्कर्ट के बटन को खोलकर उसकी छोटी छोटी चूचियों को भी मसलने लगा।अब सशा भी धीरे धीरे गरम होने लगी थी क्योंकि अब वह भी उसके मोटे लंड को मज़े से चूस रही थी।टीचर तो इतना गरम हो गया था की सशा के मुँह में ही झर गया।जिसे साशा ने फर्श पर थूक दिया।और अपने कपडे ठीक करके बाहर निकल गई।
जगदीश राय ने भी अपना मोबाइल निकाला और छुपते छुपाते स्कूल से बाहर निकल गया।आज उसका ड्यूटी जाने का मन नहीं था।इसलिए वह घर आ गया।घर पर कोई नहीं था।निशा और आशा कालेज चली गई थी।और सशा के पास से आ ही रहा था।
अपने रूम में आकर उसने वीडियो देखा तो वीडियो पूरा क्लिअर था।लेकिन वह समझ नहीं पाया की यह टीचर उसकी बेटी को कैसे ब्लैकमेल कर रहा है।वह आराम करने लगा।तभी लांच टाइम पर दरवाजे खुलने की आवाज़ आई तो जाकर देखा तो सशा आ गई थी।
जगदीश राय:अरे बेटी तुम इतना जल्दी कैसे आ गई।
तबियत तो ठीक है ना।
सशा: पापा मेरा सर थोडा भारी था।इसलिए आ गई।
लेकिन आप आफिस नहीं गए।
जगदीश राय:सुबह गया था बेटी।आज जल्दी काम खत्म हो गया तो चला आया।तुम फ्रेश हो के आओ।मुझे तुमसे कुछ काम है।
साशा:ओके पापा।अभी आती हूँ।
सशा 10 मिनट बाद फ्रेस होकर आ जाती है।जब जगदीश राय पहले पढाई के बारे में बात करता है।फिर धीरे धीरे सशा से असली बात पर आता है।
जगदीश राय:देखो बेटी।तुमको कोई भी प्रॉब्लम है मुझे बताओ।मैं तुमको कुछ नहीं बोलूंगा।लेकिन जब बार बार पूछने पर सशा कुछ नहीं बताती तो जगदीश राय
अपनी मोबाइल में का वीडियो दिखाता है।जिसे देखकर साशा अपना सर निचे झुका लेती है और फुट फुट कर रोने लगती है।
जगदीश राय सशा को बाँहो में भर लेता है और उसे चूमते हुए चुप कराने लगता है।धीरे धीरे सशा चुप हो जाती है।तब जगदीश राय उससे पूछता है की किस मज़बूरी में वह ऐसा कर रही थी।तब सशा बताने लगती है।
एक हफ्ते पहले की बात है।एक लड़का बहुत दिनों से मेरे पीछे पड़ा हुवा था।रोज मेर�� पीछा करता।मुझसे बात करने की कोशिश करता।हर समय मुझे देखकर मुस्कुरा देता।लेकिन मुझे कोई असर नहीं हुवा लेकिन 3-4 दिन पहले रात को मेरी नींद खुल गई।मुझे जोरो से पेशाब लगी हुई थी।जब मैं पेशाब करके आ रही थी तो निशा दीदी की आवाज आपके कमरे से सुनाई दी तो मैंने की होल से देखा की आप और दीदी सेक्स कर रहे थे।
वो देखकर मैं काफी गरम हो गई थी।इसी का असर था की मैंने उस लड़के से दोस्ती करना चाहती थी।ताकि मैं अपनी प्यास बुझा सकूँ।मुझे वह अच्छा लगता था इसलिए मैंने भी उसे देखकर मुस्कुरा दिया।फिर एक दिन उसने मुझे एक लेटर दिया और मुझे स्कुल शुरू होने के 1 घंटे पहले मुझे स्कुल के पीछे मिलने को बुलाया।
जाने क्या मन में आया की मैं उससे मिलने चली गई।
स्कुल के पीछे जब मैं उस लड़के से मिली तो उसने मुझे बाहों में भर लिया और मेरे होंठो और गालों को चूमने लगा।फिर उसने मेरी स्कर्ट उठाकर मेरे मम्मो को भी चूसने लगा।जब मुझे होश आया तो मैंने उसे धक्का दिया और वहाँ से भाग आई।लेकिन बाद में मुझे मालूम चला की उस टीचर ने खिड़की से पूरी वीडियो शूट कर लिया था।जिसमे बहुत साफ साफ वीडियो था।
बाद में उस टीचर ने मुझे बुलाया।और मुझे वो वीडियो दिखाया तो मेरे होश उड़ गए।तब से वह मुझे ब्लैकमेल कर रहा है।
जगदीश राय:अब तक कितनी बार तुमको बुलाया है।
सशा :आज तीसरा दिन था।लेकिन असली प्रॉब्लम संडे को है।उसने मुझे धमकी दी है की संडे को किसी बहाने उसके घर जाना है।उसकी बीबी उस दिन अपने घर जाने वाली है।नहीं जाने पर वो वीडियो नेट पर डाल देगा।ये बोलकर फिर सशा रोने लगती है।
जगदीश राय:फिर जगदीश राय सशा को चुप कराने लगता है।अच्छा बेटी तुमने बोला नहीं वो वीडियो डिलीट करने के लिए।
साशा : बोला था पापा।लेकिन वो बोल रहा है की संडे को मेरे घर आओ।अगर तुमने मुझे खुश कर दिया तो वो वीडियो डीलीट कर देगा।वो मेरे साथ सेक्स करना चाहता है पापा।
जगदीश राय:तुम चिंता मत करो बेटी।मैं। हूँ ना।
मैं आज ही वो वीडियो आज ही लाकर तुम्हे दूंगा।तुम अपने हाथो से डिलीट करना।तुम्हे इतनी बड़ी प्रॉब्लम से निकालूँगा।तो बदले में मुझे क्या मिलेगा।
सशा:आप जो बोलोगे मैं वो करुँगी पापा।आज के बाद आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी।यह कहकर अपने पापा से लिपट जाती है और उनके गालो पर किस करके चली जाती है।
जगदीश राय सोच में गुम हो जाता है।कुछ देर सोचने के बाद उस वीडियो की 2 मिनट का एक पार्ट अलग करता है जिसमे लड़की का चेहरा नहीं दीखता।सिर्फ टीचर का चेहरा दीखता है और कोई स्कुल ड्रेस पहने लड़की उसका लंड चूस रही है।ये साफ दिख रहा है।उस वीडियो को वह उस टीचर के व्हाट्सअप पे भेज देता है और लिख देता है की 1 घंटे के अंदर शहर के बाहर एक ख़ाली मकान में बुलाता है।
साथ में धमकी भी दे देता है की किसी को खबर की तो ये वीडियो स्कुल के प्रिंसपल और पुलिस के पास भेज दुँगा।टीचर डर जाता है।वह जाकर उस मकान के बाहर खड़ा हो जाता है।
अंदर से जब जगदीश राय देखता है वह अकेले आया है तो वह नकाब पहन कर खिड़की से कड़क आवाज़ में उस टीचर से उसकी मोबाइल मांगता है।जब टीचर अपना मोबाइल देता है तो जगदीश राय उसका कोड मालूम कर लेता है उसका सिम निकालकर दे देता है ।जगदीश राय मोबाइल चेक करता है तो वो वीडियो मिल जाता है और मोबाइल अपने पास रख लेता है और बोलता है।
जल्दी से भाग जा यहाँ से नहीं तो मेरे आदमी तुझे गोली मार देंगे।आज ��े बाद किसी लड़की को ब्लैकमेल किया तो वो दिन तेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होगा।
भाग साले जल्दी।
टीचर वहाँ से ऐसे भागता है जैसे उसके पीछे भुत लग गए हो।फिर जगदीश राय पीछे से निकालकर अपने घर आ जाता है।
घर आकर अपने रूम में जब वो वीडियो देखता है तो अपनी छोटी बेटी की संतरे जैसी चूचियों की चुसाई देखकर उसका लंड खड़ा हो जाता है।
फिर जगदीश राय ने सशा को बुलाया।जब सशा आ गई तो जगदीश राय ने वो मोबाईल दिखाया।देखो बेटी यही मोबाईल है ना।सशा ख़ुशी के मारे अपने पापा से लिपट गई और बोली।जल्दी से वो वीडियो डिलीट करो पापा।
प्लीज।
जगदीश राय:पहले देख तो लो वो वीडियो है की नहीं।फिर जगदीश राय ने गैलरी खोला और वो वीडियो चला दिया।वीडियो देखते ही सशा शरमा गई।
साशा: प्लीज पापा जल्दी डिलीट करो ना।
जगदीश राय:अरे बेटी पूरा तो देखने दो।मैं भी तो देखूं मेरी बेटी कितनी सुन्दर है।
सशा:प्लीज पापा।
जगदीश राय:ओके बेटी ओके।पहले मेरी बात ध्यान से सुनो। सशा बेटी तुम जानती हो कि निशा और मैं सेक्स करते हैं लेकिन यह नहीं जानती कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं मैं अपनी दोनों बेटियों के साथ सेक्स करता हूं क्योंकि अगर मैं उनके साथ सेक्स नहीं करूंगा तो वह भी किसी ना किसी के पास अपनी जिस्म की आग शांत करने के लिए जाएगी।
फिर वह दोनों भी तुम्हारी तरह किसी न किसी तरह के चक्कर में फस जाएगी हो सकता है । सेक्स करते समय कोई आदमी इन लोगों का वीडियो बना ले तो समझ लो हमारी कितनी बदनामी होगी हम लोगों में से किसी के पास भी कोई ऑप्शन नहीं बचेगा ।
आजकल हर जगह यही चल रहा है किसी ना किसी लड़की का रोज नेट पर सेक्स का वीडियो अपलोड हो रहा है इसीलिए मैं चाहता हूं कि भले ही हम लोग घर में कुछ भी करें लेकिन बाहर हमारी इज्जत खराब नहीं होनी चाहिए हम लोग घर में ही एक दूसरे की आग को शांत कर सकते हैं तुम दोनों से छोटी हो अभी तुम्हारी शादी होने में बहुत टाइम बाकी है इसीलिए मैं चाहता हूं की तुम अभी इस चक्कर में कम रहो ।
अगर तुम्हें कभी अपने जिसमें गर्मी महसूस हो तो मेरे पास आकर अपनी गर्मी शांत करना मेरे साथ तुम्हारा रिश्ता बहुत दिन तक चलने वाला है क्योंकि तुम्हारी शादी सबसे बाद में होगी मैं चाहता हूं कि तुम्हारी दोनों बहनों की ठीक से शादी हो जाए फिर हम दोनों जिंदगी के मजे लेते रहेंगे फिर जब तुम कहोगी तो तुम्हारी शादी तुम्हारी पसंद के लड़के से कर दूंगा।
सशा: ठीक है पापा अगर आप ऐसा सोचते हैं तो यह भी ठीक ही है मैं भी एक बार फंसकर जान चुकी हूँ कि आप जो बोल रहे हैं वही सही है।
जगदीश राय: देखो बेटी पहली बार सेक्स करते समय थोड़ा सा दर्द होता है तुम सिर्फ उस दर्द को बर्दाश्त कर लेना उसके बाद तुम्हें अपनी जिंदगी का सबसे ज्यादा मजा महसूस होगा।
तुमको मुझसे एक वादा करना होगा कि तुम आज जो हुआ वह या तुम अपने सेक्स वाली बात किसी को भी नहीं बताओगी अपने दोनों बहनों को भी नहीं मैं भी जानता हूं कि यह मुश्किल है लेकिन मैं भी तुम्हारी चुदाई की सभी बातें किसी को नहीं बताऊंगा।
तुम्हारी दोनों दिदियों में से किसी को भी नहीं यह सिर्फ हमारे पास राज रहेगा तुम उनके सामने कभी भी शो मत करना कि मेरे साथ तुम्हारा कोई गलत रिश्ता है अगर तुम मुझे आशा या निशा के साथ देखोगी कुछ भी करते हुए तो तुम उसको इग्नोर कर देना।
सारी बाते समझकर जगदीश राय वो वीडियो डिलीट कर देता है।फिर दोनों उस मोबाइल को चेक करते है उसके बहुत सारी ब्लू फिल्म थी।जिसमे बाप बेटी भाई बहन जैसी ब्लू फिल्में थी।जगदीश राय एक बाप बेटी की फ़िल्म प्ले कर देता है जिसे देखकर सशा गरम होने लगती है।
फ़िल्म बहुत ही गरम था।जिसे देखकर जगदीश राय का लंड पूरा रॉड बन जाता है।वह अपना लंड निकालकर सशा के हाथों में पकड़ा देता है।
सशा अपने पापा का लंड अपने हाथों में सहलाने लगती है उसको बहुत शर्म लग रहा था लेकिन ब्लू फिल्म देख कर वह बहुत गर्म हो चुकी थी।
वह धीरे से नीचे बैठ जाती है और अपने पापा के लंड को अपने कोमल हाथो से सहलाने लगती है जगदीश राय धीरे धीरे सशा के कपड़े निकालने लगता है।
वह सशा को पूरी नंगी कर देता है सशा की सूचियां बहुत ही मस्त थी जगदीश राय उसे मसलने लगता है फिर जगदीश राय अपने भी सारे कपड़े उतार देता है।
अब सशा ने जगदीश राय के लंड को थाम दुसरे हाथ से उसके सुपाडे को बहुत कोमलता से सहलाया ,
“आआह्ह्ह्ह... सशा" जगदीश राय के मुंह से एक हल्की सिसकारी निकल गयी।
सशा ने एक बार लंड की त्वचा को देखा और फिर जगदीश राय के चेहरे की तरफ देखते हुए नीचे झुककर अपने नर्म मुलायम होंठ उसके खड़े लंड के सुपाडे पर रख दिए
“उंहहहहह्ह्ह्हह”जगदीश राय धीमे से आहे भरने लगा
सशा के नाज़ुक गरम होंठ बहुत ही कोमलता से लंड की नर्म त्वचा को जगह जगह चूम रहे थे , धिमे धीमे लंड की कोमल त्वचा पर पुच पुच करती वो चुम्बन लेने लगी, जगदीश राय को अपनी बेटी के नाज़ुक होंठों का स्पर्श उस संवेंदनशील जगह पर बहुत ही प्यारा महसूस हो रहा था।
हाँ .......बेटी....... बहुत अच्छा लग रहा है” जगदीश राय की बात सुन सशा के होंठों पर भी मुस्कान फ़ैल गयी, जगदीश राय की बात से थोडा उत्साहित होकर सशा और भी तेज़ी से लंड के सुपाडे को चूमने लगी, कुछ ही पलों में जगदीश राय अपनी बेटी के होंठों के स्पर्श के उस सुखद एहसास में डूबने लगा।
“आआहह... बेटी... प्लीज बेटी ऐसे ही करते रहो” सशा तो जैसे यही सुनना चाहती थी , उसने लंड को ऊपर उठाया और जड़ से लेकर टोपे तक लंड पर चुम्बनों की बरसात कर दी , फिर उसके होंठ खुले और उसकी जीभ बाहर आई , उसने जीभ की नोंक से लंड की त्वचा को सहलाया , गीली नर्म जीभ का एहसास होते ही जगदिश् राय के मुख से खुद ब खुद सिसकारी निकल गयी, सशा की जीभ उस सिसकी को सुन और भी गति से लंड की निचली त्वचा पर रेंगने लगी, परन्तु उसे थोड़ा सा अजीब सा भी महसूस हो रहा था, उसे लग रहा था कि मानो जगदीश राय के लंड पर कोई द्रव लगा था जो बाद में सुख गया था और उसका अजीब सा पर अच्छा स्वाद सशा को अपनी जीभ पर महसूस हो रहा था, पर उसने इसकी ओर ज्यादा ध्यान नही दिया और लंड चुसाई में लगी रही।
“अह्ह्हह्ह्ह्ह ............बेटी बहुत अच्छा लग रहा है.. बहुत........बहुत मज़ा आ रहा है” जगदीश राय के मुख से लम्बी लम्बी सिसकारियां निकलनी शुरू हो गयी थी, अपने पापा के मुख से आनंदमई सिसकी सुन सशा के होंठों की मुस्कान उसके पूरे चेहरे पर फ़ैल गयी, उसकी जीभ अब सिर्फ सुपाडे पर ही नहीं बल्कि उसके आस पास तक घूम रही थी , सशा बेपरवाह अपनी जीभ लंड की जड़ से लेकर सिरे तक घुमा रही थी
जगदीश राय के लिए तो ये एक जबरदस्त मज़ा था , इस मज़े से उसकी हालत खराब होती जा रही थी , पूरे जिस्म में गर्मी सी महसूस होने लगी थी , उसके लंड का तनाव पल पल बढ़ता ही जा रहा था।
जैसे जैसे लंड का आकार बढ़ता जा रहा था, वैसे वैसे सशा की जीभ की स्पीड बढती जा रही थी , लंड का कठोर रूप अब उसके सामने था और वो रूप उसके तन बदन में आग लगा रहा था , उसके पूरे बदन में होने वाली झुरझुरी उसकी हवस को बयां कर रही थी , उसका अंग अंग फड़कने लगा था।
धीरे धीरे उसकी चूत में रस बहना चालू हो चूका था , वो अपने आप पर काबू खोती जा रही थी , उसकी सांसें गहरी होती जा रही थी और उसका सीना उसकी साँसों के साथ तेज़ी से ऊपर निचे हो रहा था , बदन में कम्कम्पी सी दौड़ रही थी।
इधर जगदीश राय का लंड पूरा कड़क हो चूका था, अब सशा से और बर्दास्त करना मुश्किल हो रहा था और उसने अगले ही पल झट से जगदीश राय के लंड के सुपाडे को अपने रसीले होंठों में भर लिया और अपनी जीभ उस पर रगडते हुए उसे जोर जोर से चूसने लगी ,जगदीश राय के आनंद में कई गुना बढ़ोतरी हो गई थी, अपने पापा के मुख से निकलती ‘अह्ह्ह्ह- अह्ह्ह्ह’ ‘उफ़’ ने सशा को और भी उतेजित कर दिया , धीरे धीरे उसके होंठ लंड के ऊपर की और जाने लगे , जैसे जैसे सशा के होंठ ऊपर को बढ़ रहे थे, दोनों बाप बेटी की साँसे और सिसकियाँ गहरी होती जा रही थीं ,
सशा के होंठ अब सुपाड़े के नीचे वाले हिस्से की भी सवारी करना शुरू कर चुके थे।
अगले ही पल वो हुआ जिसकी आशा में जगदीश राय और सशा दोनों का बदन कांप रहा था, बुखार की तरह तप रहा था , सशा के होंठ अपने पापा के लंड के चारों और बुरी तरह कस गए , और जगदीश राय के लंड का आधे से ज्यादा हिस्सा सशा की गले की गहराइयों में ओझल हो चुका था।
जगदीश राय को लगा शायद वो गिर जाएगा और उसके बदन ने एक ज़ोरदार झटका खाया।
“आहह्ह्ह... म..उफफ्फ्फ्फ़”जगदीश राय सुपाड़े की अति संवेदनशील त्वचा पर अपनी बेटी की रसीली जीभ की रगड़ से कराहने लगा , उसके हाथ ऊपर उठे और अपनी बेटी के सर पर कस गए।
सशा तो जैसे पूरे जोश में आ गई , उसने होंठ कस कर अपनी जीभ तेज़ी से चलानी शुरू कर दी , उसका एक हाथ अपने पापा की कमर पर चला गया और दुसरे से वो उनके आंडो को सहलाने लगी।
अब सशा का मुंह भी लंड पर आगे पीछे होने लगा था , उसके गिले मुख में धीरे धीरे अन्दर बाहर होते लंड ने जगदीश को जोश दिला दिया , वो अपनी बेटी के सर को थामे अपना लंड उसके मुंह में जोर जोर से आगे पेलने लगा , हर शॉट में अब उसका लंड सशा के गले की गहराइयों को नाप रहा था, और अब जगदीश राय तेज़ी से अपने लंड को आगे पीछे करते हुए गहराई तक अपनी बेटी के मुँह को चोदने लगा , जब जगदीश राय का लंड सशा के गले को टच करता तो उसके मुख से ‘गु –गु’ की आवाज़ निकलती ।
उधर जगदीश राय तो जैसे किसी और ही दुनिया में था , आँखें बंद किए वो अपनी बेटी के मुंह में अपना लंड पेलते जा रहा था।उसको लग रहा की वह कोई कुँवारी चूत चोद रहा है।
सशा को हालाँकि लंड के इतने तेज़ तेज़ धक्कों से थोड़ी दिक्कत हो रही थी मगर वो हर संभव प्रयास कर रही थी अपने पापा के लंड की ज़बरदस्त चुसाई करने का , उसकी जीभ अन्दर बाहर हो रहे लंड के सुपाड़े को रगडती तो उसके होंठ सुपाड़े से लेकर लंड के मध्य भाग तक लंड को दबाते , लंड अन्दर जाते ही उसके गाल फूल जाते और बाहर आते ही वो पिचकने लगते।
जल्द ही जगदीश राय को अपने अंडकोष दवाब सा बनता महसूस होने लगा , उसे एहसास हो गया वो झड़ने के करीब है , उसने अब अपनी बेटी के मुख को और भी तीव्रता से चोदना शुरू कर दिया , उधर सशा के लिए अब इस गति से अन्दर बाहर हो रहे लंड को चुसना संभव नही था , वो तो बस अपने होंठो और जीभ के इस्तेमाल से जितना हो सकता लंड को सहलाने की कोशिश कर रही थी।
खुद वो अपनी टांगें आपस में रगड़ कर उस सनसनाहट को कम करने की कोशिश कर रही थी , जो उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी , चुत से रस निकल निकल कर उसकी जांघें गीली कर चुका था।
तकरीबन 10 मिनट की भीषण चुसाई के बाद अचानक जगदीश राय को लगने लगा जैसे उसकी शक्ति का केंद्र बिंदु उसका लंड बन गया है , वो झड़ने के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था , पर वो चाहता था कि उसके पानी की हर एक बूंद सशा की गले की गहराइयों में उतर जाए, इसलिए अब उसके धक्के और भी ज्यादा तेज होते जा रहे थे।
सशा को भी ये अहसास होने लगा था था कि अब शायद उसके पापा झड़ने वाले हैं इसलिए उसने अपने आपको पूरी तरह उनके हवाले कर दिया, जगदीश राय सशा के सिर को पकड़कर जोर जोर से अपना लंड उसके मुंह मे पेल रहा था।
और फिर अगले ही पल जगदीश राय के बदन में एक तेज़ लहर उठी और वो भलभला कर झड़ने लगा, उसके लंड से वीर्य की बौछार होने लगी जो सशा के गले मे जाकर उसे तृप्त कर रही थी।
सशा भी एक मझे हुए खिलाड़ी की तरह जगदीश राय के पानी की आखिरी बून्द भी पी लेना चाहती थी, जब जगदीश राय पूरी तरह झड़कर शांत हो गया तो सशा ने जीभ की नोंक से सुपाड़े के छेद से निकल रही वीर्य को भी चाट लिया।
जगदीश राय: “ .उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस" ओह्हहहहहह बेटी उम्ह्ह्ह्ह्ह.”
जगदीश राय लगातार सिसकता ही जा रहा था।
सशा की जीभ आखिरी बार पूरे लंड पर घूमने लगी और वो उसे चाट कर साफ़ करने लगी , लंड पूरा साफ़ होने के बाद उसने सुपाड़े को अपने होंठो में एक बार फिर से भरकर चूसा और फिर अपने होंठ उसपे दबाकर एक ज़ोरदार चुम्बन लिया।
कुछ देर आराम करने के बाद जगदीश राय सशा को बेड पर सुला देता है और उसकी छोटी सी कुंवारी चूत को अपनी जीभ से चाटने लगता है कुछ ही देर में सशा उत्तेजना से तड़पने लगती है।
जगदीश राय झुक कर उसकी चूत को धीरे से चूम लिया और दरार को नीचे से ऊपर तक चाटा, कई कई बार चाटा और समूची चूत को मुंह में भर लिया और झिंझोड़ डाला.
आनन्द के मारे सशा के मुंह से किलकारी निकल गई. फिर ऊपर हाथ ले जाकर उसके दोनों मम्मे पकड़ लिए और चूत का दाना, वो छोटा सा भागंकुर अपनी जीभ से टटोलने लगा और इसे अपनी मुंह में लेकर चूसा और चूत की गहराई में जीभ घुसा कर प्यार से, बहुत ही निष्ठा पूर्वक उसकी शर्बती चूत चाटने लगा.
वो बेचारी इतना सब कैसे सहन कर पाती, बदले में वो अपनी चूत उठा उठा कर अपने पापा के मुंह पे मारने लगी.
अब जगदीश राय अपनी नाक चूत की गहराई में रगड़ता हुआ चाटने लगा.
मुश्किल से 5 ही मिनट बीता होगा की वो आ गई… भलभला कर झड़ गई.
‘हाय पापा…’ वो इतना ही बोल पाई और अपनी जांघें ताकत से अपने पापा के सिर पर लपेट दीं और झड़ने लगी.
चूत रस का नमकीन स्वाद जगदीश राय मुंह में आ गया. करीब दो तीन मिनट तक वो यूं ही अपने पापा सिर को अपनी चूत पर जांघों से दबोचे रही फिर धीरे से पैर खोल दिए और चित लेट के गहरी गहरी साँसें लेने लगी.
जगदीश राय उसकी जांघ पर सर रखे हुए लेटा रहा.
‘प्लीज पापा, मेरे पास आओ!’ उसकी आवाज बदली बदली सी थी जैसे किसी कुएं के भीतर से बुला रही हो.
जगदीश राय ऊपर खिसक कर उसके पहलू में लेट गया और उसे अपने सीने से लगा लिया. वो मासूम अबोध किशोरी सी अपने पापा से चिपक गई और अपनी अंगुली से उनकी छाती पर जैसे कुछ लिखती रही.
‘क्या लिखा मेरे सीने पर?’ जगदीश राय उसका सिर प्यार से सहलाते हुए पूछा
‘ऊं हूँ!’
‘बता ना?’
‘म्मम्म कुछ नहीं…’ वो बोली और जगदीश राय अपनी बांहों में कस लिया.
कैसा लगा ये सब?’ जगदीश राय उसे चूमते हुए पूछा
साशा :‘बहुत अच्छा बहुत ही प्यारा प्यारा. जब आप मेरी चूत चाट रहे थे तो जैसे मेरे बॉडी में फूल ही फूल खिल गये थे, सारे बदन में रंगीन फुलझड़ियाँ सी झर रहीं थीं. मैंने सोचा भी नहीं था कि ये सब इतना मस्त मस्त लगेगा!’ वो बोली.
‘और अब कैसा लग रहा है?’
‘लग रहा है मैं बहुत हल्की फुल्की सी हो गई हूँ. मेरे भीतर से कुछ बह के निकल गया है जो मुझे हरदम बेचैन किये रहता था.’सशा ने बताया.
कुछ ही देर बाद जगदीश राय सशा की छोटी छोटी टाइट चूचियों को पूरा मुँह में भरकर चूसने लगा।उसके छोटे छोटे निप्पल को दाँतों से काटने लगा।5 मिनट में ही जगदीश राय ने दोनों चूचियों को काट कर चु कर लाल कर दिया।अंब सशा भी पूरी गरम होकर सिसियाने लगी।
दोनों पूरी तरह से गर्म हो चुके हैं जगदीश राय अपने लंड को सशा की छोटी सी कुंवारी चूत पर रगड़ने लगता है सशा अपनी गांड उपर उठाकर लंड को जल्द से जल्द अंदर लेना चाहती है लेकिन जगदीश राय सशा को और गर्म कर देना चाहता है ताकि उसको कम से कम दर्द हो।
तब सशा ने जगदीश राय के लंड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर दबाया, तो जगदीश राय के लंड का सुपाडा उसकी चूत की फांको को फेलाता हुआ, छेद पर जा लगा,सशा की कुँवारी चूत की फाँकें जगदीश राय के लंड के सुपाडे के चारो तरफ फैेलाते हुए कस गई, अपनी चूत के छेद पर अपने पापा के लंड का गरम सुपाडा महसूस करते ही उसके बदन में मानो हज़ारो वॉट की बिजली कोंध गई हो,सशा का पूरा बदन थरथरा गया….
सशा की चूत उसकी चूत से निकल रहे कामरस से एक दम गीली हो चुकी थी, सशा ने अपनी आँखो को बड़ी मुस्किल से खोल कर जगदीश राय की तरफ देखा, और फिर काँपती आवाज़ में बोली…
सशा: पापा धीरे-धीरे ही अंदर करना, मैं ये सब पहली बार कर रही हूँ, इसलिए मुझे दर्द होगा, पर आप चिंता मत करना , चाहे मुझे कितना भी दर्द हो, आप अपना लंड मेरी कुँवारी चूत में पूरा घुसाना।
अब जगदीश राय ने धीरे धीरे अपने लंड के सुपाडे को सशा की चूत के छेद पर दोबारा दबाना शुरू किया, जैसे ही उसके लंड का सुपाडा सशा की गीली चूत के छेद में थोड़ा सा घुसा, सशा एक दम सिसक उठी, जगदीश राय के लंड का सुपाडा सशा की चूत की सील पर जाकर अटक गया, जगदीश राय भी इस रुकावट को साफ महसूस कर पा रहा था….
सशा की चूत की झिल्ली,जगदीश राय के लंड के सुपाड़े से बुरी तरह अंदर को खिच गई, जिसके कारण सशा के बदन में दर्द की एक तेज लहर दौड़ गई, उसके चेहरे पर उसके दर्द का साफ पता चल रहा था।
जगदीश राय: क्या हुआ बेटी ? ज्यादा दर्द हो रहा है क्या ?
सशा: आहह हां पापा…दर्द हो रहा है…..
जगदीश राय: बाहर निकाल लूँ…..
सशा: नही पापा बाहर मत निकालना….ये दर्द तो हर लड़की को जिंदगी में एक ना एक बार तो सहन करना ही पड़ता है….पापा आप बस ज़ोर से धक्का मारो….और एक ही बार मे मेरी चूत फाड़ दो।
जगदीश राय: अगर तुम्हे दर्द हुआ तो ?
सशा: मैं सह लूँगी……आप मारो न धक्का।
जगदीश राय ने अपनी पूरी ताक़त अपनी गान्ड में जमा की, और अपने आप को अगला शाट मारने के लिए तैयार करने लगा, सशा ने अपने दोनो हाथों से जगदीश राय के बाजुओं को कस के पकड़ लिया, और अपनी टाँगों को पूरा फैला लिया..
सशा - पापा…पापा फाड़ दो अब…..
जगदीश राय ने कुछ पलो के लिए सशा के चेहरे की तरफ देखा, जो अपनी आँखें बंद किए हुए लेटी हुई थी, उसने अपने होंठो को दांतो में दबा रखा था. जैसे वो अपने आप को उस दर्द के लिए तैयार कर रही हो, उसके माथे पर पसीने के बूंदे उभर आई थी, जगदीश राय ने एक गहरी साँस ली, और फिर अपनी पूरी ताक़त के साथ एक ज़ोर दार धक्का मारा।
जगदीश राय के लंड का सुपाडा सशा की चूत की झिल्ली को फाड़ता हुआ अंदर घुस गया, जगदीश राय का आधे से ज़्यादा लंड एक ही बार मे सशा की कुँवारी चूत के अंदर जा चुका था…
" हाए मम्मी मर गई हाईए अहह पापाआआआ बहुत दर्द हो रहा है….” सशा छटपटाते हुए, अपने सर को इधर उधर पटक रही थी, उसे अपनी चूत में दर्द की तेज लहर दौड़ती हुई महसूस हो रही थी….
सशा के इस तरह से दर्द के कारण बिलबिलाने से जगदीश राय भी घबरा गया, उसने सशा की ओर देखा, उसकी बंद आँखो से आँसू बह कर उसके गालो पर आ रहे थे।
"बेटी मैं बाहर निकाल लेता हूँ" जगदीश राय ने सशा की ओर देखते हुए कहा….
सशा: (अपनी आँखो को खोलते हुए) नही नही पापा बाहर मत निकालना…पूरा अंदर कर दो….मेरी फिकर मत करो…..
जगदीश राय: पर बेटी…
सशा: मैंने कहा ना मेरी परवाह मत करो….आप अपना लंड पूरा मेरी चूत में पूरा डाल दो…..
जगदीश राय ने अपने लंड की तरफ देखा, जो सशा की टाइट चूत के छेद में घुस कर फँसा हुआ था, और फिर उसने एक बार फिर से पूरी ताक़त के साथ झटका मारा, इस बार उसके लंड का सुपाडा उसकी चूत की दीवारो को फैला���ा हुआ पूरा का पूरा अंदर जा घुसा।
सशा: "उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…..पापाऽऽऽऽऽऽऽ…योर डिक पापा…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो बिग…पापा…….."
सशा ने दर्द से छटपटाते हुए अपने हाथों से जगदीश राय के बाजुओ को इतनी कस के पकड़ा कि उसके नाख़ून जगदीश राय के बाजुओ में गढ़ने लगे, जगदीश राय को अपने लंड के इर्द गिर्द सशा की टाइट चूत की दीवारे कसी हुई महसूस हो रही थी, उसके लंड में तेज गुदगुदी सी होने लगी,
दोनो थोड़ी देर वैसे ही लेटे रहे, जगदीश राय अब धक्के लगाने को उतावला हो रहा था, पर सशा ने उसकी कमर में अपनी टाँगो को लपेट रखा था, जिसकी वजह से जगदीश राय हिल भी नही पा रहा था, कुछ लम्हे दोनो यूँ ही लेटे रहे, फिर धीरे-धीरे सशा का दर्द कुछ कम होने लगा, और उसे अपनी चूत में अजीब सी सरसराहट होने लगी, अब उसे मज़ा आने लगा था, और उसने अपनी टाँगो को जो कि उसने जगदीश राय की कमर पर कस रखी थी, को ढीला कर दिया, जैसे ही जगदीश राय की कमर पर सशा की टाँगों की पकड़ ढीली हुई,जगदीश राय ने अपना आधे से ज़्यादा लंड एक ही बार में सशा की चूत से बाहर खींचा, और फिर से एक झटके के साथ सशा की चूत में पेल दिया,
धक्का इतना जबरदस्त था कि सशा का पूरा बदन हिल गया।
सशा: "आह शीईइ पापा उंह धीरे उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…..पापाऽऽऽ" सशा ने फिर से अपने पैरो को जगदीश राय के चुतड़ों के ऊपर रख कर उसे अपनी तरफ दबा लिया।
जब उसे अपनी चूत की दीवार पर जगदीश राय के लंड के सुपाडे की रगड़ महसूस हुई तो वो एक दम से मस्त हो गई, फिर थोड़ी देर रुकने के बाद सशा ने जगदीश राय को धीरे से कहा।
"पापा अब अपने लंड को धीरे से बाहर निकालो…मुझे कुछ देखना है" ये कहते हुए उसने फिर से अपने पैरो की पकड़ ढीली की और जगदीश राय ने घुटनो के बल बैठते हुए धीरे-2 अपने लंड को बाहर निकालना शुरू किया, फिर से वही मज़े की लहर सशा के रोम-रोम में दौड़ गई, उसे जगदीश राय के लंड का सुपाडा अपनी चूत के दीवारो पर रगड़ ख़ाता हुआ सॉफ महसूस हो रहा था
"ओह्ह पापा मेरी चूत में आह आह बहुत मज़ा आ रहा है..ओह्ह उम्ह्ह." सशा बोली।
जगदीश राय ने जैसे ही अपना लंड सशा की चूत से बाहर निकाला, तो उसकी आँखे फटी की फटी रह गई, उसका लंड खून और सशा के चूत से निकल रहे कामरस से सना हुआ था।
सशा ने अपने पास रखे एक कपड़े को अपनी चूत पर दबा दिया…ताकि उसमे से खून निकल कर, बेड शीट पर ना गिरे…..
फिर उसने अपनी चूत को उस कपड़े से रगड़ कर साफ किया, और फिर जगदीश राय की तरफ देखा, जो हैरत से उसकी तरफ देख रहा था।
सशा: क्या हुआ पापा आप ऐसे क्या देख रहे हो ?
जगदीश राय: बेटी तुम तो काफी समझदार हो।
"हाँ जानती हूँ" सशा खिलखिलाकर बोली।
फिर सशा उठ कर बैठी और जगदीश राय के लंड को हाथ में लेकर उसे कपड़े से अच्छे से साफ किया, फिर उस कपड़े को साइड में रखते हुए, बेड पर लेट गई , सशा ने अपनी बाहों को खोल कर जगदीश राय को आने का इशारा किया।
जगदीश राय सशा ऊपर झुक गया, सशा ने उसे अपनी बाहों में कस लिया और उसके आँखो में झाँकते हुए बोली "आइ लव यू पापा" और फिर दोनो के होंठ फिर से आपस में मिल गए, और दोनों एक दूसरे के होंठो को चूसने लगे।फिर से वही उम्ह्ह आहह उन्घ्ह की आवाज़े उनके मुँह से आने लगी।
जगदीश राय का लंड अब उसकी चूत की फांको पर रगड़ खा रहा था, जगदीश राय भी मस्ती में उसके होंठो को चूस्ता हुआ उसके निपल्स को अपनी उंगलियों से भिचते हुए उसकी चुचियों को दबा रहा था, सशा की चूत में कुलबुली सी होने लगी, वो नीचे से अपनी गान्ड को हिलाते हुए अपने पापा के लंड को अपनी चूत के छेद पर सेट करने की कोशिश कर रही थी
थोड़ी देर के बाद अचानक से जगदीश राय के लंड का सुपाडा सशा की चूत के छेद पर अपने आप जा लगा, सशा का पूरा बदन एक दम से थरथरा गया, उसने अपने होंठो को जगदीश राय के होंठो से अलग किया और फिर जगदीश राय की आँखो में देखते हुए मुस्कुराने लगी,फिर उसने अपने आँखे शरमा कर बंद कर ली, उसके होंठो पर मुस्कान फ़ैली हुई थी….
जगदीश राय ने भी बिना देर किए, धीरे-2 अपने लंड के सुपाडे को सशा की चूत के छेद में पेलना शुरू कर दिया….
"उंह पापा सीईईईई अहह बहुत माजा आ रहा है….." सशा बोली।
जगदीश के लंड का सुपाडा सशा की चूत के छेद और दीवारो को फ़ैलाकर रगड़ ख़ाता हुआ अंदर बढ़ने लगा, सशा के बदन में मस्ती के लहरे उमड़ रही थी, उसका पूरा बदन उतेजना के कारण काँप रहा था, उसकी चूत की दीवारे जगदीश राय के लंड को अपने अंदर कस कर निचोड़ रही थी।
धीरे-2 जगदीश राय का पूरा लंड सशा की चूत में समा गया, सशा ने सिसकते हुए जगदीश राय को अपनी बाहों में कस लिया और उसकी पीठ को अपने हाथो से सहलाने लगी।
"आह पापा और पेलो उंह आ सीईईई आह पापा मुझे बहुत मज़ा आ रहा है….”
जगदीश राय ने सशा के फेस को अपनी तरफ घुमाया, और फिर अपने होंठो को उसके पतले होंठो पर रख दिया, सशा ने अपने होंठो को खोल दिया, जगदीश राय ने थोड़ी देर सशा के होंठो को चूसा, और फिर अपने होंठो को हटाते हुए, उसकी जाँघो के बीच में घुटनो के बल बैठते हुए, अपनी पोज़िशन सेट की, और अपने लंड को धीरे-2 आगे पीछे करने लगा।
जगदीश राय के लंड के सुपाडे को सशा अपनी चूत की दीवारो पर महसूस करके एक दम मस्त हो गई, और अपनी आँखें बंद किए हुए अपनी पहली चुदाई का मज़ा लेने लगी
"अह्ह्ह्ह पापा हाईए मेरे चूत आह मारो और ज़ोर से मारो आह फाड़ दो अह्ह्ह्ह आह”
धीरे-2 जगदीश राय अपने धक्कों की रफतार को बढ़ाने लगा, पूरे रूम में सशा की सिसकारियो और बेड के हिलने से चर-2 की आवाज़ गूंजने लगी, सशा पूरी तरह मस्त हो चुकी थी, सशा की चूत उसके काम रस से भीग चुकी थी, जिससे जगदीश राय का लंड चिकना होकर सशा की चूत के अंदर बाहर होने लगा था, सशा भी अपनी गान्ड को धीरे-2 ऊपर की ओर उछाल कर चुदवा रही थी….
"हाई ओईए अहह मेरी चूत अह्ह्ह्ह पापा बहुत मज़ा आ रहा है.आह चोदो मुझे अह्ह्ह्ह और तेज करो सही…मैं झड़ने वाली हूँ आह उहह उहह उंघह ह पापा ममैं गईए अहह…." सशा धीरे धीरे आहे भर रही थी।
जगदीश राय के जबरदस्त धक्को ने कुछ ही मिनट में सशा की चूत को पानी पानी कर दिया था, उसका पूरा बदन रह रह कर झटके खा रहा था, जगदीश राय अभी भी लगातार अपने लंड को बाहर निकाल निकाल कर सशा की चूत में पेल रहा था, सशा झड़ने के बाद एक दम मस्त हो गई थी, उसकी चूत से इतना पानी निकाला था कि, जगदीश राय का लंड पूरा गीला हो गया था।
अब सशा अपनी आँखें बंद किए हुए लेटी थी,और लंबी लंबी साँसे ले रही थी, सशा ने अपनी आँखें खोल कर जगदीश राय की तरफ देखा, जो पसीने से तर बतर हो चुका था, और अभी भी तेज़ी से धक्के लगा रहा था,अब रूम में सिर्फ़ बेड के चरचराने से चू चू की आवाज़ आ रही थी….जैसे जैसे जगदीश राय झटके मारता, बेड हिलता हुआ हल्की हल्की चू चू की आवाज़ कर रहा था।
सशा बेड के हिलने की आवाज़ सुन कर शरमा गई, और अपने फेस को साइड में घुमा कर मुस्कराने लगी…
जगदीश राय: (अपने लंड को अंदर बाहर करते हुए) क्या हुआ…?
सशा: (मुस्कुराते हुए) कुछ नही…..
जगदीश राय: फिर मेरी तरफ देखो ना…
सशा: नही मुझे शरम आती है…..पापा।
जगदीश राय ने अपने दोनो हाथों से सशा के चेहरे को अपनी तरफ घुमाया, पर सशा ने पहले ही अपनी आँखे बंद कर ली, उसके चेहरे पर शर्मीली मुस्कान फ़ैली हुई थी, जगदीश राय ने सशा के होंठो को अपने होंठो में लेकर चुसते हुए अपने धक्को की रफ़्तार बढ़ा दी और फिर कुछ ही पलो में उसके लंड में तेज सुरसुरी हुई, उसका लंड सशा की चूत में झटके खाने लगा, और फिर वो सशा के ऊपर निढाल हो कर गिर पडा, सशा और जगदीश राय दोनों एक साथ झड़ कर शांत हो गए।
अब जगदीश राय अपनी जिंदगी के सारे मजे ले रहा था उस उसकी हर रात सुहाग रात थी अब तो वह आशा और निशा को एक साथ चोदता था ।
लेकिन सशा को उसने समझा दिया था की उसको जब भी मजा लेना हो वह स्कूल से छुट्टी करके अपने पापा को बता दे फिर दोनों मजे करेंगे बाकी कभी भी किसी भी समय अपने पापा के पास मजे के लिए नहीं आए।
अब जगदीश राय आशा और निशा के साथ कभी भी कहीं भी मजे लेने लगा था क्योंकि वह जानता था कि अब सशा से भी कोई प्रॉब्लम नहीं है।
जगदीश राय अपने आप को दुनिया का सबसे किस्मतवाला समझ रहा है।
उ���की बड़ी बेटी निशा जो उसका पत्नी की तरह ख्याल रखती है।वह जो कहे करने को तैयार।दिन में तो ख्याल रखती ही है।रात को और ज्यादा ख्याल रखती है।
मँझली बेटी आशा।जिसको रफ सेक्स पसंद है।जगदीश राय की पर्सनल रंडी है।वो इसको कितनी भी रफ तरीके से पेलता है।उसको किसी रंडी की तरह कुतिया बनाकर उसकी गांड मारता है।
छोटी बेटी सशा एक कच्ची कली जिसे जगदीश राय जिसका रस धीरे धीरे चूसकर उसको फूल बना रहा है।
क्योंकि इसका रस उसे बहुत दिन तक चूसना है।