गाँव का राजा (COMPLETED)
हेलो दोस्तो मैं एक और नई कहानी गाँव का राजा लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे दोस्तो
गाओं का माहौल बड़ा ही अज़ीब किस्म का होता है. वेहा एक ओर तो सब कुच्छ ढका छुपा होता है तो दूसरी ओर अंदर ही अंदर ऐसे ऐसे कारनामे होते है कि जान जाओ तो दन्तो तले उंगली दबा लो. थोड़ा सा भी झगड़ा होने पर लोग ऐसी मोटी मोटी गलिया देंगे मगर, अपनी बहू बेटियो को दो गज का घूँघट निकालने के लिए बोलेंगे. फिर यही लोग दूसरो की बहू बेटियों पर बुरी नज़र रखेंगे और ज़रा सा भी मौका अगर मिल जाए तो अपने अंदर की सारी कुंठा और गंदी वासना निकाल देंगे. कहने का मतलब ये कि गाओं में जो ये दबी छुपी कामुक भावनाए है वो विभिन्न अव्सरो पर भिन्न भिन्न तरीक़ो से बाहर निकलती है. खेत, खलिहान, आमो का बगीचा आदि कई ऐसी जगहे है जहा पर छुप छुप के तरह तरह के कुकर्म होते है कभी उनका पता चल जाता है कभी नही चल पाता. गाओं के बड़े बड़े घरो के मर्द तो बकाएदा एक आध रखैले भी रखते है, जिनकी रखैल ना हो उनकी इज़्ज़त कम होती थी. ये अलग बात है कि इन बड़े घरो की औरते पयासी ही रह जाती थी क्यों कि मर्द तो किसी और ही कुआँ का पानी पी रहा होता था. दूसरो के कुए का पानी पीने के बाद अपने घर के पानी को पीने की उनकी इच्छा ही नही होती थी. और अगर किसी दिन पी भी लिया तो उन्हे मज़ा नही आता था. इन औरतो ने भी अपनी प्यास भुझाने के लिए तरह तरह के उपाए कर रखे थे. कुच्छ ने अपने नौकरो को फसा रखा था और उनकी बाँहो में अपनी सन्तुस्ति खोज़ती थी कुच्छ ने चोरी छुपे अपने यार बना रखे थे और कुच्छ यू ही दिन रात वासना की आग में जल कर ह���स्टीरिया की मरीज़ बन चुकी थी. खैर ये तो हुआ गाओं के माहौल का थोड़ा सा परिचय. अब आपको गाओं की ही एक बड़े घर की कहानी सुनाता हू. वैसे तो सभी समझ गये होंगे कि ये गाओं की कोई वासनात्मक कहानी है, फिर इसको बताने की क्या ज़रूरत है जब इसमे कुच्छ भी नया नही है, तो दोस्तो इसमे बताने के लिए एक अनोखी बात है जो उस गाओं में पहले कभी नही हुई थी इसलिए बताई जा रही है. तो फिर सुनो कहानी.
गाओं के एक सुखी संपन्न परिवार की कहानी है. घर की मालकिन का नाम शीला देवी था. मलिक का नाम तो पता नही पर सब उसे चौधरी कहते थे. शीला देवी, जब शादी हो के आई थी तो देखने में कुच्छ खास नही थी रंग भी थोड़ा सावला सा था और शरीर दुबला पतला, छरहरा था. मगर बच्चा पैदा होने के बाद उनका सरीर भरना शुरू हो गया और कुच्छ ही समय में एक दुबली पतली औरत से एक अच्छी ख़ासी स्वस्थ भरे-पूरे शरीर की मालकिन बन गई. पहले जिस की तरफ एक्का दुक्का लोगो की नज़रे इनायत होती थी वो अब सबकी नज़रो की चाहत बन चुकी थी. उसके बदन में सही जॅघो पर भराव आ जाने के कारण हर जगह से कामुकता फूटने लगी थी. छ्होटी छ्होटी छातियाँ अब उन्नत वक्ष स्थल में तब्दील हो चुकी थी. बाँहे जो पहले तो लकड़ी के डंडे सी लगती थी अब काफ़ी मांसल हो चुकी थी. पतली कमर थोड़ी मोटी हो गई थी और पेट पर माँस चढ़ जाने के कारण गुदजपन आ गया था. और झुकने या बैठने पर दो मोटे मोटे फोल्ड से बन ने लगे थे. चूतरो में भी मांसलता आ चुकी थी और अब तो यही चूतर लोगो के दिलोको धड़का देते थे. जंघे मोटी मोटी केले के खंभो में बदल चुकी थी. चेहरे पर एक कशिश सी आ गई थी और आँखे तो ऐसी नशीली लगती थी जैसे दो बॉटल शराब पी रखी हो. सुंदरता बढ़ने के साथ साथ उसको सम्भहाल कर रखने का ढंग भी उसे आ गया और वो अपने आप को खूब सज़ा सॉवॅर के रखती थी. बोल चाल में बहुत तेज तर्रार थी और सारे घर के काम वो खुद ही नौकरो की सहयता से करवाती थी उसकी सुंदरता ने उसके पति को भी बाँध कर रखा हुआ था. चौधरी अपनी बीबी से डरता भी था इसलिए कही और मुँह मारने की हिम्मत उसकी नही होती थी. बीबी जब आई थी तो बहुत सारा दहेज ले के आई थी इसलिए उसके सामने मुँह खोलने में भी डरता था, बीबी भी उसके उपर पूरा हुकुम चलाती थी. उसने सारे घर को एक तरह से अपने क़ब्ज़े में कर के रखा हुआ था. बेचारा चौधरी अगर एक दिन भी घर देर से पहुचता था तो ऐसी ऐसी बाते सुनाती कि उसकी सिट्टी पिटी गुम हो जाती थी. काम-वासना के मामले में भी वो बीबी से थोड़ा उननिश ही पड़ता था. शीला देवी कुच्छ ज़यादा ही गरम थी. उसका नाम ऐसी औरतो में शुमार होता था जो खुद मर्द के उपर चढ़ जाए. गाओं की लग भग सारी औरते उसका लोहा मानती थी और कभी भी कोई मुसीबत में फस्ने पर उसे ही याद करती थी. चौधरी बेचारा तो बस नाम का चौधरी था असली चौधरी तो चौधरायण थी. उन दोनो का एक ही बेटा था नाम उसका राजेश था प्यार से सब उसे राजू कहा करते थे. देखने में बचपन से सुंदर था, थोरी बहुत चंचलता भी थी मगर वैसे सीधा साधा लड़का था. थोड़ा जैसे ही बड़ा हुआ तो शीला देवी को लगा की इसको गाओं के माहौल से दूर भेज दिया जाए ताकि इसकी पढ़ाई लिखाई अच्छे से हो और गाओं के लड़को के साथ रह कर बिगड़ ना जाए. चौधरी ने थोडा बहुत विरोध करने की भी कोशिश की "हमारा तो एक ही लड़का है उसको भी क्यों बाहर भेज रही हो" मगर उसकी कौन सुनता, लड़के क�� उसके मामा के पास भेज दिया गया जो कि शहर में रह कर व्यापार करता था. मामा की भी बस एक लड़की ही थी. शीला देवी का ये भाई उस से उम्र में बड़ा था और वो खुशी खुशी अपने भानजे को अपने घर रखने के लिए तैय्यार हो गया था. दिन इसी तरह बीत रहे थे चौधरैयन के रूप में और ज़यादा निखार आता जा रहा था और चौधरी सुखता जा रहा था. अब अगर किसी को बहुत ज़यादा दबाया जाए तो वो चीज़ इतना दब जाती है कि उतना ही भूल जाती है. यही हाल चौधरी का भी था. उसने भी सब कुच्छ लगभग छ्चोड़ ही दिया था और घर के सबसे बाहर वाले कमरे में चुप चाप बैठा दो-चार निथल्ले मर्दो के साथ या तो दिन भर हुक्का पीता या फिर तास खेलता. शाम होने पर चुप चाप सटाक लेता और एक बॉटल देसी चढ़ा के घर जल्दी से वापस आ कर बाहर के कमरे में पर जाता. नौकरानी खाना दे जाती तो खा लेता नही तो अगर पता चल जाता की चौधरायण जली भूनी बैठी है तो खाना भी नही माँगता और सो जाता. लड़का छुट्टियों में घर आता तो फिर सब की चाँदी रहती थी क्यों की चौधरायण बहूत खुश रहती थी. घर में तरह के पकवान बनते और किसी को भी शीला देवी के गुस्से का सामना नही करना पड़ता था.
शीला देवी
ऐसे ही दिन महीने साल बीत ते गये, लड़का अब सत्रह बरस का हो चुका था. थोड़ा बहुत चंचल तो हो ही चुका था और बारहवी की परीक्षा उसने दे दी थी. परीक्षा जब ख़तम हुई तो शहर में रह कर क्या करता, शीला देवी ने बुलवा लिया. एप्रिल में परीक्षा के ख़तम होते ही वो गाओं वापस आ गया. लोंडे पर नई नई जवानी चड़ी थी. शहर की हवा लग चुकी थी जिम जाता था सो बदन खूब गठिला हो गया था. गाओं जब वो आया तो उसकी खूब आव-भगत हुई. मा ने खूब जम के खिलाया पिलाया. लड़के का मन भी लग गया. पर दो चार दिन बाद ही उसका इन सब चीज़ो से मन उब सा गया. अब शहर में रहने पर स्कूल जाना टशन जाना और फिर दोस्तो यारो के साथ समय कट जाता था पर यहा गाओं में तो करने धरने के लिए कुच्छ था नही, दिन भर बैठे रहो. इसलिए उसने अपनी समस्या अपनी शीला देवी को बता दी. शीला देवी ने कहा की "देख बेटा मैने तो तुझे गाओं के इसी गंदे माहौल से दूर रखने के लिए शहर भेजा था, मगर अब तू जिद्द कर रहा है तो ठीक है, गाओं के कुच्छ अच्छे लड़को के साथ दोस्ती कर ले और उन्ही के साथ क्रिकेट या फुटबॉल खेल ले या फिर घूम आया कर मगर एक बात और शाम में ज़यादा देर घर से बाहर नही रह सकता तू". राजू इस पर खुश हो गया और बोला "ठीक है मम्मी तुझे शिकायत का मौका नही दूँगा". राजू लड़का था, गाओं के कुच्छ बचपन के दोस्त भी थे उसके, उनके साथ घूमना फिरना शुरू कर दिया. सुबह शाम उनकी क्रिकेट भी शुरू हो गई. राजू का मन अब थोड़ा बहुत गाओं में लगना शुरू हो गया था.
घर में चारो तरफ खुशी का वा��ावरण था क्यों की आज राजू का जनम दिन था. सुबह उठ कर शीला देवी ने घर की सॉफ सफाई करवाई, हलवाई लगवा दिया और खुद भी शाम की तैय्यारियों में जुट गई. राजू सुबह से बाहर ही घूम रहा था. पर आज उसको पूरी छूट मिली हुई थी. तकरीबन 12 बजे के आस पास जब शीला देवी अपने पति को कुच्छ काम समझा कर बाजार भेज रही थी तो उसकी मालिश करने वाली आया आ गई. शीला देवी उसको देख कर खुश होती हुई बोली "चल अच्छा किया आज आ गई, मैं तुझे खबर भिजवाने ही वाली थी, पता नही दो तीन दिन से पीठ में बड़ी अकड़न सी हो रखी है". आया बोली "मैं तो जब सुनी कि आज मुन्ना बाबू का जनम दिन है तो चली आई कि कही कोई काम ना निकल आए". काम क्या होना था, ये जो आया थी वो बहुत मुँह लगी थी चौधरायण के. आया चौधरायण की कामुकता को मानसिक संतुष्टि प्रदान करती थी. अपने दिमाग़ के साथ पूरे गाओं की तरह तरह की बाते जैसे की कौन किसके साथ लगी है कौन किस से फसि है और कौन किस पे नज़र रखहे हुए है आदि करने में उसे बड़ा मज़ा आता था. आया भी थोड़ी कुत्सित प्रवृति की थी उसके दिमाग़ में जाने क्या क्या चलता रहता था. गाओं, मुहल्ले की बाते खूब नमक मिर्च लगा कर और रंगीन बना कर बताने में उसे बरा मज़ा आता था. इसलिए दोनो की जमती भी खूब थी. तो फिर चौधरायण सब कामो से फ़ुर्सत पा कर अपनी मालिश करवाने के लिए अपने कमरे में जा घुसी. दरवाज़ा बंद करने के बाद चौधरैयन बिस्तेर पर लेट गई और आया उसके बगल में तेल की कटोरी ले कर बैठ गई. दोनो हाथो में तेल लगा कर चौधरायण की साडी को घुटनो से उपर तक उठाते हुए उसने तेल लगा शुरू कर दिया. चौधरायण की गोरी चिकनी टॅंगो पर तेल लगाते हुए आया की बातो का सिलसिला शुरू हो गया था. आया ने चौधरायण की तारीफो के पूल बांधना शुरू कर दिए था. चौधरायण ने थोड़ा सा मुस्कुराते हुए पुचछा "और गाओं का हाल चाल तो बता, तू तो पता नही कहा मुँह मारती रहती है मेरी तारीफ तू बाद में कर लेना". आया के चेहरे पर एक अनोखी चमक आ गई "क्या हाल चाल बताए मालकिन, गाओं में तो अब बस जिधर देखो उधर ज़ोर ज़बरदस्ती हो रही है, परसो मुखिया ने नंदू कुम्हार को पिटवा दिया पर आप तो जानती ही हो आज कल के लड़को को.. उँछ नीच का उन्हे कुच्छ ख्याल तो है नही, नंदू का बेटा शहर से पढ़ाई कर के आया है पता नही क्या क्या सीखके के आया है, उसने भी कल मुखिया को अकेले में धर दबोचा और लगा दी चार पाँच पटखनी, मुखिया पड़ा हुआ है अपने घर पर अपनी टूटी टांग ले के और नंदू का बेटा गया थाने" "हा रे, इधर काम के चक्कर में तो पता ही नही चला, मैं भी सोच रही थी कि कल पोलीस क्यों आई थी, पर एक बात तो बता मैने तो ये भी सुना है कि मुखिया की बेटी का कुच्छ चक्कर था नंदू के बेटे से" "सही सुना है मालकिन, दोनो में बड़ा जबरदस्त नैन मत्तक्का चल रहा है, इसी से मुखिया खार खाए बैठा था"
"बड़ा खराब जमाना आ गया है, लोगो में एक तो उँछ नीच का भेद मिट गया है, कौन किसके साथ घूम फिर रहा है ये भी पता नही चलता है, खैर और सुना, मैने सुना है तेरा भी बड़ा नैन मत्तक्का चल रहा है आज कल उस सरपंच के छ्होरे के साथ, साली बुढ़िया हो के कहा से फसा लेती है जवान जवान लोंडो को"
आया का चेहरा कान तक लाल हो गया था, छिनाल तो वो थी मगर चोरी पकड़े जाने पर चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई. शरमाते और मुस्कुराते हुए बोली "अर्रे मालकिन आप तो आज कल के लोंडो का हाल जानती ही हो सब साले च्छे��� के चक्कर में पगलाए घूमते रहते है"
"पगलाए घूमते है या तू पागल कर देती है,,,,,,,,,,,अपनी जवानी दिखा के"
आया के चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कुराहट दौड़ गई, "क्या मालकिन मैं क्या दिखौँगी, फिर थोड़ा बहुत तो सब करते है"
"थोड़ा सा....साली क्यों झूट बोलती है तू तो पूरी की पूरी छिनाल है, सारे गाओं के लड़को को बिगाड़ के रख देगी,,,,,,,,,,
"अर्रे मालकिन बिगड़े हुए को मैं क्या बिगाड़ूँगी, गाओं के सारे छ्होरे तो दिन रात इसी चक्कर में लगे रहते हैं".
"चल साली, तू जैसे दूध की धूलि है"
"अब जो समझ लो मालकिन, पर एक बात बता दू आपको कि ये लोंडे भी कम नही है गाओं के तालाब पर जो पेड़ लगे हुए है ना उस पर बैठ का खूब तान्क झ���ँक करते है"
"अक्चा, पर तुम लोग क्या भगाती नही उन लोंडो को..........."
"घने घने पेड़ है चारो तरफ, अब कोई उनके पिछे छुपा बैठा रहेगा तो कैसे पता चलेगा, कभी दिख जाते है कभी नही दिखते"
"बड़े हरामी लोंडे है, औरतो को चैन से नहाने भी नही देते"
"लोंडे तो लोंडे, लड़कियाँ भी कोई कम हरामी नही है"
"क्यों वो क्या करती है"
"अर्रे मालकिन दिखा दिखा के नहाती है"
"अच्छा, बड़ा गंदा माहौल हो गया है गाओं का"
"जो भी है मालकिन अब जीना तो इसी गाओं में है ना"
"हा रे वो तो है, मगर मुझे तो मेरे लड़के के कारण डर लगता है, कही वो भी ना बिगड़ जाए"
इस पर आया के होंठो के कमान थोड़े से खींच गये. उसके चेहरे की कुटिल मुस्कान जैसे कह रही थी की बिगड़े हुए को और क्या बिगाड़ना. मगर आया ने कुच्छ बोला नही.
शीला देवी हँसते हुए बोली "अब तो लड़का भी जवान हो गया है, तेरे जैसी रंडियो के नज़रो से तो बचाना ही पड़ेगा नही तो तुम लोग कब उसको हाज़ाम कर जाओगी ये भी पता नही लगेगा"
"अब मालकिन झूठ नही बोलूँगी पर अगर आप सच सुन सको तो एक बात बोलू"
"हा बोल क्या बात"
"चलो रहने दो मालकिन" कह कर आया ने पूरा ज़ोर लगा के चौधरायण की कमर को थोड़ा कस के दबाया, गोरी खाल लाल हो गई, चौधरायण के मुँह से हल्की सी आह निकली गई, आया का हाथ अब तेज़ी से कमर पर चल रहा था. आया के तेज चलते हाथो ने चौधरायण को थोरी देर के लिए भूला दिया कि वो क्या पुच्छ रही थी. आआया ने अपने हाथो को अब कमर से थोड़ा नीचे चलाना शुरू कर दिया था. उसने चौधरायण की पेटिकोट के अंदर ख़ुसी हुई साडी को अपने हाथो से निकाल दिया और कमर की साइड में हाथ लगा कर पेटिकोट के नाडे को खोल दिया. पेटिकोट को ढीला कर उसने अपने हाथो को कमर के और नीचे उतार दिया. हाथो में तेल लगा कर चौधरायण के मोटे-मोटे चूतरो के मंसो को अपने हथेलियो में दबोच दबोच कर दबा रही थी. शीला देवी के मुँह से हर बार एक हल्की सी आनद भरी आह निकल जाती थी. अपने तेल लगे हाथो से आया ने चौधरायण की पीठ से लेकर उसके मांसल चूतरो तक के एक-एक कस बल को ढीला कर दिया था. आया का हाथ चूतरो क�� मसल्ते मसल्ते उनके बीच की दरार में भी चला जाता था. चूतरो के दरार को सहलाने पर हुई गुद-गुडी और सिहरन के कारण चौधरायण के मुँह से हल्की सी हसी के साथ कराह निकल जाती थी. आया के मालिश करने के इसी मस्ताने अंदाज की शीला देवी दीवानी थी. आया ने अपना हाथ चूतरो पर से खींच कर उसकी सारी को जाँघो तक उठा कर उसके गोरे-गोरे बिना बालो के गुदाज़ मांसल जाँघो को अपने हाथो में दबा-दबा के मालिश करना शुरू कर दिया. चौधरायण की आँखे आनंद से मुंदी जा रही थी. आया का हाथ घुटनो से लेकर पूरे जाँघो तक घूम रहे थे. जाँघो और चूतरो के निचले भाग पर मालिश करते हुए आया का हाथ अब धीरे धीरे चौधरायण के चूत और उसकी झांतो को भी टच कर रहा था. images
आया ने अपने हाथो से हल्के हल्के चूत को छुना शुरू कर दिया था. चूत को छुते ही शीला देवी के पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई थी. उसके मुँह से मस्ती भरी आह निकल गई. उस से रहा नही गया और पीठ के बल होते हुए बोली "साली तू मानेगी नही"
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"मालकिन मेरे से मालिश करवाने का यही तो मज़ा है"
"चल साली, आज जल्दी छोड़ दे मुझे बहुत सारा काम है"
"अर्रे काम-धाम तो सारे नौकर चाकर कर ही रहे है मालकिन, ज़रा अच्छे से मालिश करवा लो इतने दीनो के बाद आई हू, बदन हल्का हो जाएगा"
चौधरायण ने अपनी जाँघो को और चौड़ा कर दिया और अपने एक पैर को घुटनो के पास से मोड़ दिया, और अपनी चूचियों पर से साडी को हटा दिया. मतलब आया को ये सीधा संकेत दे दिया था कि कर ले अपनी मर्ज़ी जो भी करना है मगर बोली "हट साली तेरे से बदन हल्का करवाने के चक्कर में नही पड़ना मुझे आज, आग लगा देती है साली...............चौधरायण ने अपनी बात अभी पूरी भी नही की थी और आया का हाथ सीधा साड़ी और पेटिकोट के नीचे से शीला देवी के चूत पर पहुच गया था. चूत की फांको पर उंगलिया चलाते हुए अपने अंगूठे से हल्के से शीला देवी की चूत के क्लिट को आया सहलाने लगी. चूत एकदम से पनिया गई. आया ने चूत को एक थपकी लगाई और मालकिन की ओर देखते हुए मुस्कुराते हुए बोली "पानी तो छोड रही हो मालकिन". इस पर शीला देवी सिसकते हुए बोली "साली ऐसे थपकी लगाएगी तो पानी तो निकलेगा ही" फिर अपने ब्लाउस के बटनो को खोलने लगी.
आया ने पुचछा "पूरा कर्वाओगि क्या मालकिन"
"पूरा तो करवाना ही पड़ेगा साली अब जब तूने आग लगा दी है..."
आया ने मुस्कुराते हुए अपने हाथो को शीला देवी की चुचियों की ओर बढ़ा दिया और उनको हल्के हाथो से पकड़ कर सहलाने लगी जैसे की पूछकर कर रही हो. फिर अपने हाथो में तेल लगा के दोनो चूचियों को दोनो हाथो से पकड़ के हल्के से खीचते हुए निपपलो को अपने अंगूठे और उंगलियों के बीच में दबा कर खीचने लगी. चुचियों में धीरे-धीरे तनाव आना शुरू हो गया. निपल खड़े हो गये और दोनो चूचियों में उमर के साथ जो थोड़ा बहुत थुल-थुलापन आया हुआ था वो अब मांसल कठोरता में बदल गया. उत्तेजना बढ़ने के कारण चुचियों में तनाव आना स्वाभाविक था. आया की समझ में आ गया था कि अब मालकिन को गर्मी पूरी चढ़ गई है. आया को औरतो के साथ ��ेलने में उतना ही मज़ा आता था जितना मज़ा उसको लड़को के साथ खेलने में आता था. चुचियो को तेल लगाने के साथ-साथ मसल्ते हुए आया ने अपने हाथो को धीरे धीरे पेट पर चलना शुरू कर दिया था.
चौधरायण की गोल-गोल नाभि में अपने उंगलियों को चलाते हुए आया ने फिर से बाते करनी शुरू कर दी.
"मालकिन अब क्या बोलू, मगर मुन्ना बाबू (चौधराईएन का बेटा) भी कम उस्ताद नही है
मस्ती में डूबी हुई अधखुली आँखो से आया को देखते हुए शीला देवी ने पुच्छा
"क्यों, क्या किया मुन्ना ने तेरे साथ"
"मेरे साथ क्या करेंगे मुन्ना बाबू, आप गुस्सा ना हो एक बताउ आपको. चौधरायण ने अब अपनी आँखे खोल दी और चोकन्नि हो गई
"हा हा बोल ना क्या बोलना है"
"मालकिन अपने मुन्ना बाबू भी काम नही है, उनकी भी संगत बिगड़ गई है"
"ऐसा कैसे बोल रही है तू"
"ऐसा इसलिए बोल रही हू क्यों की, अपने मुन्ना बाबू भी तलब के चक्कर खूब लगते है"
"इसका क्या मतलब हुआ, हो सकता है दोस्तो के साथ खेलने या फिर तैरने चला जाता होगा"
"खाली तैरने जाए तब तो ठीक है मालकिन मगर, मुन्ना बाबू को तो मैने कई तालाब किनारे वाले पेड़ पर चढ़ कर छुप कर बैठे हुए भी देखा है".
"सच बोल रही है तू........"
"और क्या मालकिन, आप से झूट बोलूँगी, कह कर आया ने अपना हाथ फिर से पेटिकोट के अंदर सरका दिया और चूत से खेलने लगी. अपनी मोटी मोटी दो उंगलियों को उसने गचक से शीला देवी के चूत में पेल दिया. चूत में उंगली के जाते ही शीला देवी के मुँह से आह निकल गई मगर उसने कुच्छ बोला नही. अपने बेटे के बारे में जानकर उसके ध्यान सेक्स से हट गया था और वो उसके बारे और ज़यादा जान ना चाहती थी. इसलिए फिर आया को कुरेदते हुए कहा
"अब मुन्ना भी तो जवान हो गया है थोड़ी बहुत तो उत्सुकता सब के मन में होती, वो भी देखने चला गया होगा इन मुए गाओं के छोरो के साथ"
"पर मालकिन मैने तो उनको शाम में अमिया (आमो का बगीचा) में गुलाबो के चुचे दबाते हुए भी देखा है"
चौधरैयन का गुस्सा सातवे आसमान पर जा पहुचा, उसने आया को एक लात कस के मारी, आया गिरी तो नही मग�� थोड़ा हिल ज़रूर गई. आया ने अपनी उंगलिओ को अभी भी चूत से नही निकलने दिया. लात खाकर भी हस्ती हुई बोली "मालकिन जितना गुस्सा निकालना हो निकाल लो मगर मैं एक दम सच-सच बोल रही हू. झूट बोलू तो मेरी ज़ुबान कट के गिर जाए मगर मुन्ना बाबू को तो कई बार मैने गाओं की औरते जिधर दिशा-मैदान करने जाती है उधर भी घूमते हुए देखा है"
"हाई दैया उधर क्या करने जाता है ये सुअर"
"बसंती के पिछे भी पड़े हुए है छ्होटे मलिक, वो भी साली खूब दिखा दिखा के नहाती है,,,,,,
साली को जैसे ही छ्होटे मालिक को देखती और ज़यादा चूतर मटका मटका के चलने लगती है, छ्होटे मलिक भी पूरा लट्तू हुए बैठे है"
"क्या जमाना आ गया है, इतना पढ़ाने लिखाने का कुच्छ फ़ायदा नही हुआ, सब मिट्टी में मिला दिया, इन्ही भंगिनो और धोबनो के पिछे घूमने के लिए इसे शहर भेजा था"
दो मोटी-मोटी उंगलियों को चूत में कच-कच पेलते, निकालते हुए आया ने कहा,
"आप भी मालकिन बेकार में नाराज़ हो रही हो, नया खून है थोड़ा बहुत तो उबाल मारेगा ही, फिर यहा गाओं में कौन सा उनका मन लगता होगा, मन लगाने के लिए थोड़ा बहुत इधर उधर कर लेते है"
"नही रे, मैं सोचती थी कम से कम मेरा बेटा तो ऐसा ना करे"
"वाह मालकिन आप भी कमाल की हो, अपने बेटे को भी अपने ही जैसा बना दो"
"क्या मतलब है रे तेरा"
"मतलब क्या है आप भी समझती हो, खुद तो आग में जलती रहती हो और चाहती हो की बेटा भी जले"
नज़रे छुपाते हुए चौधरायण ने कहा
"मैं कौन सी आग में जलती हू री कुतिया....."
"क्यों जलती नही हो क्या, मुझे क्या नही पता की मर्द के हाथो की गर्मी पाए आपको ना जाने कितने साल बीत चुके है, जैसे आपने अपनी इच्च्छाओ को दबा के रखा हुआ है वैसा ही आप चाहती हो छ्होटे मालिक भी करे"
"ऐसा नही है रे, ये सब काम करने की भी एक उमर होती है वो अभी बच्चा है"
"बच्चा है, आरे मालकिन वो ना जाने कितनो को अपने बच्चे की मा बना दे और आप कहती हो बच्चा है".
"चल साली क्या बकवास करती है"
आया ने चूत के क्लिट को सहलाते हुए और उंगलियों को पेलते हुए कहा "मेरी बाते तो बकवास ही लगेंगी मगर क्या आपने कभी छ्होटे मलिक का औज़ार देखा है"
"दूर हट कुतिया, क्या बोल रही है बेशरम तेरे बेटे की उमर का है"
आया ने मुस्कुराते हुए कहा- "बेशरम बोलो या फिर जो मन में आए बोलो मगर मालकिन सच बोलू तो मुन्ना बाबू का औज़ार देख के तो मेरी भी पनिया गई थी" कह कर चुप हो गई और चौधरायण की दोनो टाँगो को फैला कर उसके बीच में बैठ गई. फिर धीरे से अपने जीभ को चूत की क्लिट पर लगा कर चलाने लगी. चौधरायण ने अपने जाँघो को और ज़यादा फैला दिया, चूत पर आया की जीभ गजब का जादू कर रही थी.
आया के पास 25 साल का अनुभव था हाथो से मालिश करने का मगर जब उसका आकर्षण औरतो की तरफ बढ़ा तो धीरे धीरे उसने अपने हाथो के जादू को अपनी ज़ुबान में उतार दिया था. जब वो अपनी जीभ को चूत के उपरी भाग में नुकीला कर के रगड़ती थी तो शीला देवी की जलती हुई चूत ऐसे पानी छोड़ती थी जैसे कोई झरना छोड़ता है. चूत के एक एक पेपोट को अपने होंठो के बीच दबा दबा के ऐसे चुस्ती थी कि शीला देवी के मुँह से बरबस सिसकारिया फूटने लगी थी. गांद हवा में 4 इंच उपर उठा-उठा के वो आया के मुँह पर रगड़ रही थी. शीला देवी काम-वासना की आग में जल उठी थी. आया ने जब देखा मालकिन अब पूरे उबाल पर आ गई है तो उसको जल्दी से झदाने के इरादे से उसने अपनी ज़ुबान हटा के फिर कचक से दो मोटी उंगलिया पेल दी और गाचा-गच अंदर बाहर करने लगी. आया ने फिर से बातो का सिलसिला शुरू कर दिया......
"मालकिन, अपने लिए भी कुच्छ इंतज़ाम कर लो अब,
"क्या मतलब है रीए तेराअ उईईईई सस्स्स्स्स्स्सिईईईई जल्दी जल्दी हाथ चला साली"
"मतलब तो बड़ा सीधा साधा है मालकिन, कब तक ऐसे हाथो से करवाती रहोगी"
"तो फिर क्या करू रे, साली ज़यादा दिमाग़ मत चला हाथ चला"
"मालकिन आपकी चूत मांगती है लंड का रूस और आप हो कि इसको ..........खीरा ककरी खिला रही हो"
"चुप साली, अब कोई उमर रही है मेरी ये सब काम करवाने की"
"अच्छा आपको कैसे पता की आपकी उमर बीत गई है, ज़रा सा छु देती हू उसमे तो पनिया जाती है आपकी और बोलती हो अब उमर बीत गई"
"नही रे,,, लड़का जवान हो गया, बिना मर्द के सुख के इतने दिन बीत गये अब क्या अब तो बुढ़िया हो गई हू"
"क्या बात करती हो मालकिन, आप और बुढ़िया ! अभी भी अच्छे अछो के कान काट दोगि आप, इतना भरा हुआ नशील�� बदन तो इस गाओं आस-पास के चार सौ गाओं में ढूँढे नही मिलेगा.
"चल साली क्यों चने के झाड़ पर चढ़ा रही है"
"क्या मालकिन मैं क्यों ऐसा करूँगी, फिर लड़का जवान होने का ये मतलब थोड़े ही है की आप बुढ़िया हो गई हो क्यों अपना सत्यानाश करवा रही हो"
"तू मुझे बिगाड़ने पर क्यों तुली हुई है"
आया ने इस पर हस्ते हुए कहा, "थोड़ा आप बिगड़ो और थोड़ा छ्होटे मालिक को भी बिगड़ने का मौका दो"
"छ्हि रनडिीई ....कैसी कैसी बाते करती है ! मेरे बेटे पर नज़र डाली तो मुँह नोच लूँगी"
"मालकिन मैं क्या करूँगी, छ्होटे मलिक खुद ही कुच्छ ना कुच्छ कर देंगे"
"वो क्यों करेगा रे.......वो कुच्छ नही करने वाला"
"मालकिन बड़ा मस्त हथियार है छ्होटे मलिक का, गाओं की छोरियाँ छोड़ने वाली नही"
"हराम जादि, छोरियो की बात छ्चोड़ मुझे तो लगता है तू ही उसको नही छोड़ेगी, शरम कर बेटे की उमर का है"
"हाई मालकिन औज़ार देख के तो सब कुच्छ भूल जाती हू मैं"
इतनी देर से अपने बेटे की बराई सुन-सुन के शीला देवी के मन में भी उत्सुकता जाग उठी थी. उसने आख़िर आया से पुच्छ ही लिया.....
"कैसे देखा लिया तूने मुन्ना का". आया ने अंजान बनते हुए पुचछा "मुन्ना बाबू का क्या मालकिन". एक फिर आया को चौधरैयन की एक लात खानी पड़ी, फिर चुधरायण ने हस्ते हुए कहा "कमिनि सब समझ के अंजान बनती है". आया ने भी हस्ते हुए कहा "मालकिन मैने तो सोचा की आप अभी तो बेटा बेटा कर रही थी फिर उसके औज़ार के बारे में कैसे पुछोगि?". आया की बात सुन कर चौधरैयन थोड़ा शर्मा गई. उसकी समझ में ही नही आ रहा था कि क्या जवाब दे वो आया को, फिर भी उसने थोड़ा झेप्ते हुए कहा.
"साली मैं तो ये पुच्छ रही थी की तूने कैसे देख लिया"
"मैने बताया तो था मालकिन की छ्होटे मालिक जिधर गाओं की औरते दिशा-मैदान करने जाती है उधर घूमते रहते है, फिर ये साली बसंती भी उनपे लट्तू हुई बैठी है. एक दिन शाम में मैं जब पाखाना करने गई थी तो देखा झारियों में खुशुर पुसुर की आवाज़ आ रही है. मैने सोचा देखु तो ज़रा कौन है, देखा तो हक्की-बक्की रह गई क्या बताउ, मुन्ना बाबू और बसंती दोनो खुसुर पुसुर कर रहे थे. मुन्ना बाबू का हाथ बसंती की चोली में और बसंती का हाथ मुन्ना बाबू के हाफ पॅंट में घुसा हुआ था. मुन्ना बाबू रीरयते हुए बसंती से बोल रहे थे एक बार अपना माल दिखा दे और बसंती उनको मना कर रही थी". इतना कह कर आया चुप हो गई और एक हाथ से शीला देवी की चुचि दबाते हुए अपनी उंगलिया चूत के अंदर तेज़ी से घूमने लगी.
शीला देवी सिसकरते हुए बोली "हा फिर क्या हुआ, मुन्ना ने क्या किया". चौधरैयन के अंदर अब उत्सुकता जाग उठी थी.
"मुन्ना बाबू ने फिर ज़ोर से बसंती की एक चुचि को एक हाथ में थाम लिया और दूसरी हाथ की हथेली को सीधा उसकी दोनो जाँघो के बीच रख के पूरी मुठ्ठी में उसकी चूत को भर लिया और फुसफुसाते हुए बोले 'हाई दिखा दे एक बार, चखा दे अपना लल्मु��िया को बस एक बार रानी फिर देख ��ैं इस बार मेले में तुझे सबसे मह्न्गा लहनगा खरीद दूँगा, बस एक बार चखा दे रानी', इतनी ज़ोर से चुचि डबवाने पर साली को दर्द भी हो रहा होगा मगर साली की हिम्मत देखो एक बार भी छ्होटे मलिक के हाथ को हटाने की उसने कोशिश नही की,
खाली मुँह से बोल रही थी 'हाई छोड़ दो मालिक छोड़ दो मालिक' मगर छ्होटे मालिक हाथ आई मुर्गी को कहा छोड़ने वाले थे" . शीला देवी की चूत पसीज रही थी अपने बेटे की करतूत सुन कर उसे पता नही क्यों गुस्सा नही आ रहा था. उसके मन में एक अजीब तरह का कौतूहल भरा हुआ था. आया भी अपने मालकिन के मन को खूब समझ रही थी इसलिए वो और नमक मिर्च लगा कर मुन्ना की करतूतों की कहानी सुनाए जा रही थी.
"फिर मालकिन मुन्ना बाबू ने उसके गाल का चुम्मा लिया और बोले 'बहुत मज़ा आएगा रानी बस एक बार चखा दो, हाई जब तुम गांद मटका के चलती हो तो क्या बताए कसम से कलेजे पर छुरि चल जाती है, बसंती बस एक बार चखा दो' बसंती शरमाते हुए बोली 'नही मालिक आपका बहुत मोटा है, मेरी फट जाएगी' इस पर मुन्ना बाबू ने कहा 'हाथ से पकड़ने पर तो मोटा लगता ही है जब चूत में जाएगा तो पता भी नही चलेगा' फिर बसंती के हाथ को अपनी निक्केर से निकाल के उन्होने झट से अपनी निक्केर उतार दी, है मालकिन क्या बताउ कलेजा धक से मुँह को आ गया, बसंती तो चीख कर एक कदम पिछे हट गई, क्या भयंकर लंड था मलिक का एक दम से काले साँप की तरह, लपलपाता हुआ, मोटा मोटा पहाड़ी आलू के जैसा नुकीला गुलाबी सुपरा और मालकिन सच कह रही हू कम से कम 10 इंच लंबा और कम से कम 2.5 इंच मोटा लॉडा होगा छ्होटे मलिक का, अफ ऐसा जबरदस्त औज़ार मैने आज तक नही देखा था, बसंती अगर उस समय कोशिश भी करती तो चुदवा नही पाती, वही खेत में ही बेहोश हो के मर जाती साली मगर छ्होटे मलिक का लंड उसकी चूत में नही जाता"
चौधरैयन एक टक गौर से अपने बेटे की काली करतूतो का बखान सुन रही थी. उसका बदन काम-वासना से जल रहा था और आया की वासना भारी बाते जो कहने को तो उसके बेटे के बारे में थी पर फिर भी उसके अंदर एक अनोखी कसक पैदा कर रही थी. आया को चुप देख कर उस से रहा नही गया और वो पुच्छ बैठी "आगे क्या हुआ".
आया ने फिर हस्ते हुए बताया "अर्रे मालकिन होना क्या था, तभी अचानक झारियों में सुरसूराहट हुई, मुन्ना बाबू तो कुच्छ समझ नही पाए मगर बसंती तो चालू है, मालकिन, साली झट से लहनगा समेत कर पिछे की ओर भागी और गायब हो गई. और मुन्ना बाबू जब तक संभालते तब तक उनके सामने बसंती की भाभी आ के खड़ी हो गई. अब आप तो जानती ही हो कि इस साली लाजवंतीको ठीक अपने नाम की उलट बिना किसी लाज शर्म की औरत है. जब साली बसंती की उमर की थी और नई नई शादी हो के गाओं में आई थी तब से उसने 2 साल में गाओं के सारे जवान मर्दो के लंड का पानी चख लिया होगा. अ��ी भी हरम्जादी ने अपने आप को बना सॉवॅर के रखा हुआ है". इतना बता कर आया फिर से चुप हो गई.
" फिर क्या हुआ, लाजवंती तो खूब गुस्सा हो गई होगी"
"अर्रे नही मालकिन, उसे कहा पता चला की अभी अभी 2 सेकेंड पहले मुन्ना बाबू अपना लंड उसकी ननद को दिखा रहे थे. वो साली तो खुद अपने चक्कर में आई हुई थी. उसने जब मुन्ना बाबू का बलिश्त भर का खड़ा मुसलान्ड देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया और मुन्ना बाबू को पटाने के इरादे से बोली 'यहा क्या कर रहे है छ्होटे मालिक आप कब से हम ग़रीबो की तरह से खुले में दिशा करने लगे'. छोटे मलिक तो बेचारे हक्के बक्के से खड़े थे, उनकी समझ में नही आ रहा था कि क्या करे, एक दम देखने लायक नज़ारा था. हाफ पॅंट घुटनो तक उतरी हुई थी और शर्ट मोड़ के पेट पर चढ़ा रखा था, दोनो जाँघो के बीच एक दम काला भुजंग मुसलांड लहरा रहा था". images
"छ्होटे मालिक तो बस "उः आह उः" कर के रह गये. तब तक लाजवंती छ्होटे मालिक के एक दम पास पहुच गई और बिना किसी जीझक या शर्म के उनके हथियार को पकड़ लिया और बोली 'क्या मालिक कुच्छ गड़बड़ तो नही कर रहे थे पूरा खड़ा कर के रखा हुआ है. इतना क्यों फनफना रहा है आपका औज़ार, कही कुच्छ देख तो नही लिया'. इतना कह कर हस्ने लगी".
"छ्होटे मालिक के चेहरे की रंगत देखने लायक थी. एक दम हक्के-बक्के से लाजवंती का मुँह तके जा रहे थे. अपना हाफ पॅंट भी उन्होने अभी तक नही उठाया था. लाजवंती ने सीधा उनके मूसल को अपने हाथो में पकड़ लिया और मुस्कुराती हुई बोली 'क्या मालिक औरतो को हगते हुए देखने आए थे क्या' कह कर खी खी कर के हस्ते हुए मुन्ना बाबू के औज़ार को ऐसे कस के मसला साली ने की उस अंधेरे में भी मालिक का लाल लाल मोटे पहाड़ी आलू जैसा सुपरा एक दम से चमक गया जैसे की उसमे बहुत सारा खून भर गया हो और लंड और फनफना के लहरा उठा".
" बड़ी हरम्खोर है ये लाजवंती, साली को ज़रा भी शरम नही है क्या"
"जिसने सारे गाओं के लोंडो का लंड अपने अंदर करवाया हो वो क्या शरम करेगी"
"फिर क्या हुआ, मेरा मुन्ना तो ज़रूर भाग गया होगा वाहा से बेचारा"
"मालकिन आप भी ना हद करती हो अभी 2 मिनिट पहले आपको बताया था कि आपका लाल बसंती के चुचो को दबा रहा था और आप अब भी उसको सीधा सीधा स्मझ रही हो, जबकि उन्होने तो उस दिन वो सब कर दिया जिसके बारे में आपने सपने में भी नही सोचा होगा"
चौधरायण एक दम से चौंक उठी "क्या कर दिया, क्यों बात को घूम फिरा रही है"
"वही किया जो एक जवान मर्द करता है"
"क्यों झूट बोलती हो, जल्दी से बताओ ना क्या किया"
"छ्होटे मालिक में भी पूरा जोश भरा हुआ था और उपर से लाजवंती की उकसाने वाली हरकते दोनो ने मिल कर आग में घी का काम किया. लाजवंती बोली "छोरियो को पेशाब और पाखाना करते हुए देख कर हिलाने की तैय्यारि में थे क्या, या फिर किसी लौंडिया के इंतेज़ार में खड़ा कर रखा है' ��ुन्ना बाबू क्या बोलते पर उनके चेहरे को देख के लग रहा था कि उनकी साँसे तेज हो गई है. उन्होने ने भी अबकी बार लाजवंती के हाथो को पकड़ लिया और अपने लंड पर और कस के चिपका दिया और बोले "हाई भौजी मैं तो बस पेशाब करने आया था' इस पर वो बोली 'तो फिर खड़ा कर के क्यों बैठे हो मालिक कुच्छ चाहिए क्या' मुन्ना बाबू की तो बाँछे खिल गई. खुल्लम खुल्ला चुदाई का निमंत्रण था. झट से बोले 'चाहिए तो ज़रूर अगर तू दे दे तो मेले में से पायल दिलवा दूँगा'. खुशी के मारे तो साली लाजवंती का चेहरा च्मकने लगा, मुफ़्त में मज़ा और माल दोनो मिलने का आसार नज़र आ रहा था. झट से वही पर घास पर बैठ गई और बोली 'हाई मालिक कितना बड़ा और मोटा है आपका, कहा कुन्वारियो के पिछे पड़े रहते हो, आपका तो मेरे जैसी शादी शुदा औरतो वाला औज़ार है, बसंती तो साली पूरा ले भी नही पाएगी' छ्होटे मालिक बसंती का नाम सुन के चौंक उठे कि इसको कैसे पता बसंती के बारे में. लाजवंती ने फिर से कहा ' कितना मोटा और लंबा है, ऐसा लंड लेने की बड़ी तमन्ना थी मेरी' इस पर छ्होटे मालिक ने नीचे बैठ ते हुए कहा 'आज तमन्ना पूरी कर ले, बस चखा दे ज़रा सा, बड़ी तलब लगी है' इस पर लाजवंती बोली 'ज़रा सा चखना है या पूरा मालिक' तो फिर मालिक बोले 'हाई पूरा चखा दे मेले से तेरी पसंद की पायल दिवा दूँगा'.
आया की बात अभी पूरी नही हुई थी कि चौधरैयन ने बीच में बोल पड़ी "ओह मेरी तो किस्मत ही फुट गई, मेरा बेटा रंडियों पर पैसा लूटा रहा है, किसी को लहनगा तो किसी हरम्जदि को पायल बाँट रहा है, कह कर आया को फिर से एक लात लगाई और थोड़े गुस्से से बोली "हरम्खोर, तू ये सारा नाटक वाहा खड़ी हो के देखे जा रही थी, तुझे ज़रा भी मेरा ख्याल ना आया, एक बार जा के दोनो को ज़रा सा धमका देती दोनो भाग जाते". आया ने मुँह बिचकाते हुए कहा "शेर के मुँह के आगे से नीवाला छीनने की औकात नही है मेरी मालकिन मैं तो बस चुप चाप तमाशा देख रही थी". कह कर आया चुप हो गई और चूत की मालिश करने लगी. चौधरैयन के मन की उत्सुकता दबाए नही दब रही थी कुच्छ देर में खुद ही कसमसा कर बोली "चुप क्यों हो गई आगे बता ना"
"फिर क्या होना था मालकिन, लाजवंती वही घास पर लेट गई और छ्होटे मालिक उसके उपर, दोनो गुत्थम गुत्था हो रहे थे. कभी वो उपर कभी मालिक उपर. red-hot-tamil-saree-sex.png
छ्होटे मालिक ने अपना मुँह लाजवंती चोली में दे दिया और एक हाथ से उसके लहंगे को उपर उठा के उसकी चूत में उंगली डाल दी, लाजवंती के हाथ में मालिक का मोटा लंड था और दोनो चिपक चिपक के मज़ा लूटने लगे. कुच्छ देर बाद छ्होटे मालिक उठे और लाजवंती के दोनो टांगो के बीच बैठ गये. उस छिनाल ने भी अपने साड़ी को उपर उठा दिया और दोनो टाँगो को फैला दिया. मुन्ना बाबू ने अपना मुसलांड सीधा उसकी चूत के उपर रख के धक्का मार दिया.
साली चुड़क्कड़ एक दम से मिम्याने लगी. इतना मोटा लंड घुसने के ��ाद तो कोई कितनी भी बड़ी रंडी हो उसकी हेकड़ी तो एक पल के लिए गुम हो ही जाती है. पर मुन्ना बाबू तो नया खून है, उन्होने कोई रहम नही दिखाया, उल्टा और कस कस के धक्के लगाने लगे"
"ठीक किया मुन्ना ने, साली रंडी की यही सज़ा है" चौधरैयन ने अपने मन की खुंदक निकाली, हालाँकि उसको ये सुन के बड़ा मज़ा आ रहा था कि उसके बेटे के लंड ने एक रंडी के मुँह से भी चीखे निकलवा दी.
"कुच्छ धक्को के बाद तो मालकिन साली चुदैल ऐसे अपनी गांद को उपर उच्छालने लगी और गपा गॅप मुन्ना बाबू के लंड को निगलते हुए बोल रही थी 'हाई मालिक फाड़ दो, हाई ऐसा लंड आज तक नही मिला, सीधा बच्चेदानी को छु रहा है, लगता है मैं ही चौधरी के पोते को पैदा करूँगी, मारो कस कस्के', मुन्ना बाबू भी पूरे जोश में थे, गांद उठा उठा के ऐसा धक्का लगा रहे थे कि क्या कहना, जैसे चूत फाड़ के गांद से लंड निकाल देंगे, दोनो हाथ से चुचि मसल रहे थे और, पका पक लंड पेल रहे थे. images
लाजवंती साली सिसकार रही थी और बोल रही थी 'मलिक पायल दिलवा देना फिर देखना कितना मज़ा कर्वौन्गि, अभी तो जल्दी में चुदाई हो रही है, मारो मालिक, इतने मोटे लंड वाले मालिक को अब नही तरसने दूँगी, जब बुलाओगे चली आउन्गि, हाई मालिक पूरे गाओं में आपके लंड के टक्कर का कोई नही है'. इतना कह कर आया चुप हो गई.
आया ने जब लाजवंती के द्वारा कही गई ये बात की पूरे गाओं में मुन्ना के लंड के टक्कर का कोई नही है सुन कर चौधरैयन के माथे पर बल पड़ गये. वो सोचने लगी कि क्या सच में ऐसा है. क्या सच में उसके लरके का लंड ऐसा है जो की पूरे गाओं के लंडो से बढ़ कर है. वो थोड़ी देर तक चुप रही फिर बोली "तू जो कुच्छ भी मुझे बता रही है वो सच है ना"
"हा मालकिन सो फीसदी सच बोल रही हू"
"फिर भी एक बात मेरी समझ में नही आती कि मुन्ना का इतना बड़ा कैसे हो सकता है जितना बड़ा तू बता रही है"
"क्यों मालकिन ऐसा क्यों बोल रही हो आप"
"नही ऐसे ही मैं सोच रही हू इतना बड़ा आम तौर पे होता तो नही, फिर तेरे मलिक के अलावा और किसी के साथ.................." बात अधूरी छ्होर कर चौधरैयन चुप हो गई. आया सब समझ गई और धीरे से मुस्कुराती हुई बोली "आरे मालकिन कोई ज़रूरी थोड़े ही है कि जितना बड़ा चौधरी साहब का होगा उतना ही बड़ा छ्होटे मालिक का भी होगा, चौधरी साहब का तो कद भी थोड़ा छ्होटा ही है मगर छ्होटे मालिक को देखो इसी उमर में पूरे 6 फुट के हो गये है". बात थोड़ी बहुत चौधरैयन के भेजे में भी घुस गई, मगर अपने बेटे के अनोखे हथियार को देखने की तमन्ना भी शायद उसके दिल के किसी कोने में जाग उठी थी.
मुन्ना उसी समय घर के आँगन से मा ......मा पुकारता हुआ अपनी मा के कमरे की ओर दौड़ता हुआ आया और पूरी तेज़ी के साथ भड़ाक से चुधरैयन के कमरे के दरवाजे को खोल के अंदर घुस गया. अंदर घुसते ही उसकी आँखे चौधिया गई. कलेजे पर जैसे बिजली चल गई. मुँह से बोल नही फुट रह�� थे. चौधारायन लगभग पूरी नंगी और आया अधनंगी हो के बैठी थी. मुन्ना की आँखों ने एक पल में ही अपनी मा का पूरा मुआयना कर डाला. ब्लाउस खुला हुआ था दोनो बड़ी बड़ी गोरी गोरी नारियल के जैसी चुचिया अपनी चोंच को उठाए खड़ी थी , साडी उपर उठी हुई थी और मोटे मोटे कन्द्लि के खम्भे जैसे जंघे ट्यूब लाइट की रोशनी में चमक रही थी. चूत तो नही दिख रही थी . images
.ना तो आया ना ही चौधरैयन के मुँह से कोई कुच्छ निकला. कुच्छ देर तक ऐसे ही रहने के बाद आया को जैसे कुच्छ होश आया उसने जल्दी से जाँघो पर साड़ी खींच दी और साड़ी के पल्लू से दोनो चुचियों को धक दिया. अपने नंगे अंगो के ढके जाने पर चौधरैयन को जैसे होश आया वो झट से अपने पैरो को समेटे हुए उठ कर बैठ गई. चुचियों को अच्छी तरह से ढकते हुए झेंप मिटाते हुए बोली "क्या बात मुन्ना, क्या चाहिए". मा की आवाज़ सुन मुन्ना को भी एक झटका लगा और उसने अपना सिर नीचे करते हुए कहा, कुच्छ नही मैं तो पुच्छने आया था की शाम में फंक्षन कब शुरू होगा मेरे दोस्त पुच्छ रहे थे"
शीला देवी अब अपने आप को संभाल चुकी थी और अब उसके अंदर ग्लानि और गुस्सा दोनो भाव पैदा हो गये थे. उसने धीमे स्वर में जवाब दिया "तुझे पता नही है क्या जो 6-7 बजे से फंक्षन शुरू हो जाएगा. और क्या बात थी"
"वो मुझे भूख भी लगी थी"
"तो नौकरानी से माँग लेना था, जा उस को बोल के माँग ले"
मुन्ना वाहा से चला गया. आया ने झट से उठ कर दरवाजा बंद किया और चौधरैयन ने अपने कपड़े ठीक किए. आया बोलने लगी की "दरवाजा तो ठीक से बंद ही था मगर लगता है पूरी तरह से बंद नही हुआ था, पर इतना ध्यान रखने की ज़रूरत तो कभी रही नही क्यों की आम तौर पर आपके कमरे में तो कोई आता नही"
"चल जाने दे जो हुआ सो हुआ क्या कर सकते है" इतना बोल कर चौधरैयन चुप हो गई मगर उसके मन में एक गाँठ बन गई और अपने ही बेटे के सामने नंगे होने का अपराध बोध उस हावी हो गया.
अब सुनिए अपने मुन्ना बाबू की बात:-------
मुन्ना जब अपने मा के कमरे से निकला तब उसका दिमाग़ एक दम से काम नही कर रहा था. उसने आज तक अपनी मा का ऐसा रूप नही देखा. मतल्ब नंगा तो कभी नही देखा था. मगर आज शीला देवी का जो सुहाना रूप उसके सामने आया था उसने तो उसके होश उड़ा दिए थे. वो एक बदहवास हो चुका था. मा की गोरी गोरी मखमली जंघे और अल्फान्सो आम के जैसी चुचियों ने उसके होश उड़ा दिए थे. उसके दिमाग़ में रह रह कर मोटी जाँघो के बीच की काली-काली झांते उभर जाती थी.
उसकी भूख मर चुकी थी. वो सीधा अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर के तकियों के बीच अपने सिर को छुपा लिया. बंद आँखो के बीच जब मा के खूबसूरत चेहरे के साथ उसकी पलंग पर अस्त-वयस्त हालत में लेटी ��ुई तस्वीर जब उभरी तो धीरे-धीरे उसके लंड में हरकत होने लगी.
वैसे अपने मुन्ना बाबू कोई सीधे-सादे संत नही है इतना तो पता चल गया होगा. मगर आपको ये जान कर असचर्या होगा की अब से 2 साल पहले तक सच मुच में अपने राजा बाबू उर्फ राजेश उर्फ राजू बड़े प्यारे से भोले भाले लड़के हुआ करते थे. जब 15 साल के हुए और अंगो में आए प्रिवर्तन को स्मझने लगे तब बेचारे बहुत परेशान रहने लगे. लंड बिना बात के खड़ा हो जाता था. पेशाब लगी हो तब भी और मन में कुच्छ ख्याल आ जाए तब भी. करे तो क्या करे. स्कूल में सारे दोस्तो ने अंडरवेर पहनना शुरू कर दिया था. मगर अपने भोलू राम के पास तो केवल पॅंट थी. कभी अंडरवेर पहना ही नही. लंड भी मुन्ना बाबू का औकात से कुच्छ ज़यादा ही बड़ा था, फुल-पॅंट में तो थोड़ा ठीक रहता था पर अगर जनाब पाजामे में खेल रहे होते तो, दौड़ते समय इधर उधर डोलने लगता था.जो कि उपर दिखता था और हाफ पॅंट में तो और मुसीबत होती थी अगर कभी घुटने मोड़ कर पलंग पर बैठे हो तो जाँघो के पास के ढीली मोहरी से अंदर का नज़ारा दिख जाता था. बेचारे किसी कह भी नही पाते थे कि मुझे अंडरवेर ला दो क्योंकि रहते थे मामा मामी के पास, वाहा मामा या मामी से कुच्छ भी बोलने में बड़ी शरम आती थी. गाँव काफ़ी दीनो से गये नही थे. बेचारे बारे परेशान थे.
सौभाग्या से मुन्ना बाबू की मामी हासमुख स्वाभाव की थी और अपने मुन्ना बाबू से थोड़ा बहुत हसी मज़ाक भी कर लेती थी. उसने कई बार ये नोटीस किया था कि मुन्ना बाबू से अपना लंड सम्भाले नही स्म्भल रहा है. सुभह-सुभह तो लग-भग हर रोज उसको मुन्ना के खड़े लंड का दर्शन हो जाता था. जब मुन्ना को उठाने जाती और वो उठ कर दनदनाता हुआ सीधा बाथरूम की ओर भागता था. मुन्ना की ये मुसीबत देख कर मामी को बड़ा मज़ा आता था. एक बार जब मुन्ना अपने पलंग पर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था तब वो भी उसके सामने प्लन्ग पर बैठ गई. मुन्ना ने उस दिन संयोग से खूब ढीला ढाला हाफ पॅंट पहन रखा था. मुन्ना पालती मार कर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था. सामने मामी भी एक मेग्ज़ीन खोल कर देख रही थी. पढ़ते पढ़ते मुन्ना ने अपना एक पैर खोल कर घुटने के पास से हल्का सा मोड़ कर सामने फैला दिया. इस स्थिति में उसके जाँघो के पास की हाफ-पॅंट की मोहरी नीचे ढूलक गई और सामने से जब मामी जी की नज़र पड़ी तो वो दंग रह गई. मुन्ना बाबू का मुस्टंडा लंड जो की अभी सोई हुई हालत में भी करीब तीन चार इंच लंबा दिख रहा था अपने लाल सुपरे की आँखो से मामी जी की ओर ताक रहा था.
उर्मिला जी इस नज़ारे को ललचाई नज़रो से एकटक देखे जा रही थी. उसकी आँखे वहाँ से हटाए नही हट रही थी. वो सोचने लगी की जब इस छ्होकरे का सोया हुआ है, तब इतना लंबा दिख रहा है, जब जाग कर खड़ा होता होगा तब कितना बड़ा दिखता ��ोगा. उसके पति यानी कि मुन्ना के मामा का तो बमुश्किल साढ़े पाँच इंच का था. अब तक उसने मुन्ना के मामा के अलावा और किसी का लंड नही देखा था मगर इतनी उमर होने के कारण इतना तो ज्ञान था ही मोटे और लंबे लंड कितना मज़ा देते है.
गाँव का राजा पार्ट -3 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
अचानक munna की नज़र अपनी मामी उर्मिला देवी पर पड़ी वो बड़े गौर से उसके पेरॉं की तरफ देख रहीं थी तब munna को अहसास हुआ मामी उसके लॅंड को ही देख रही है munna ने अपने पैर को मोड़ लिया ओर मामी की तरफ देखा उर्मिला देवी munna को अपनी ओर देखते पाकर हॅडबड़ा गई और अपनी नज़रें मेग्ज़ीन पर लगा ली
कुच्छ देर तक दोनो ऐसे ही शर्मिंदगी के अहसास में डूबे हुए बैठे रहे फिर उर्मिला देवी वाहा से उठ कर चली गई.
उस दिन की घटना ने दोनो के बीच एक हिचक की दीवार खड़ी कर दी. दोनो अब जब बाते करते तो थोड़ा नज़रे चुरा कर करते थे. उर्मिला देवी अब munna को बड़े गौर से देखती थी. पाजामे में उसके हिलते डुलते लंड और हाफ पॅंट से झाँकते हुए लंड को देखने की फिराक में रहती थी. munna भी सोच में डूबा रहता था कि मामी उसके लंड को क्यों देख रही थी. ऐसा वो क्यों कर रही थी. बड़ा परेशान था बेचारा. मामी जी भी अलग फिराक में लग गई थी. वो सोच रही थी क्या ऐसा हो सकता है कि मैं munna के इस मस्ताने हथियार का मज़ा चख सकु. कैसे क्या करे ये उनकी समझ में नही आ रहा था. फिर उन्होने एक रास्ता खोज़ा.
अब उर्मिला देवी ने अब नज़रे चुराने की जगह munna से आँखे मिलाने का फ़ैसला कर लिया था. वो अब राजू की आँखो में अपने रूप की मस्ती घोलना चाहती थी. देखने में तो वो माशा अल्लाह शुरू से खूबसूरत थी. munna के सामने अब वो खुल कर अंग प्रदर्शन करने लगी थी. जैसे जब भी वो munna के सामने बैठती थी तो अपनी साड़ी को घुटनो तक उपर उठा कर बैठती, साडी का आँचल तो दिन में ना जाने कितनी बार ढूलक जाता था
(जबकि पहले ऐसा नही होता था), झाड़ू लगाते समय तो ब्लाउस के दोनो बटन खुले होते थे और उनमे से उनकी मस्तानी चुचिया झलकती रहती थी. बाथरूम से कई बार केवल पेटिकोट और ब्लाउस या ब्रा में बाहर निकल कर अपने बेडरूम में समान लाने जाती फिर वापस आती फिर जाती फिर वापस आती. images
नहाने के बाद बाथरूम से केवल एक लंबा वाला तौलिया लपेट कर बाहर निकल जाती थी.
बेचारा munna बीच ड्रॉयिंग रूम में बैठ ये सारा नज़ारा देखता रहता था. लरकियों को देख कर उसका लंड खड़ा तो होने लगा था मगर कभी सोचा नही था की मामी को देख के भी लंड खड़ा होगा. लंड तो लंड है वो कहा कुच्छ देखता है. उसको अगर चिकनी चमड़ी वाला खूबसूरत बदन दिखेगा तो खड़ा तो होगा ही. मामी जी उसको ये दिखा रही थी और वो खड़ा हो रहा था.
munna को उसी दौरान सेक्सी कहानियो की एक किताब हाथ लग गई. किताब पढ़ कर जब लंड खड़ा हुआ और उसको मुठिया कर जब अपना पानी निकाला तो उसकी तीसरी आँख खुल गई. उसकी स्मझ में आ गया की चुदाई क्या होती है और उसमे कितना मज़ा आ सकता है. जब किताब पढ़ के कल्पना करने और मुठियाने में इतना मज़ा है तो फिर सच में अगर चूत में लंड डालने को मिले तो कितना मज़ा आएगा. राज शर्मा की कहानियों में तो रिश्तो में चुदाई की कहानिया भी होती है और एक बार जो वो किताब पढ़ लेता है फिर रिश्ते की औरतो के बारे में उल्टी सीधी बाते सोच ही लेता है चाहे वो ऐसा ना सोचने के लिए कितनी भी कोशिश करे. वही हाल अपने munna बाबा का भी था. वो चाह रहे थे कि अपनी मामी के बारे में ऐसा ना सोचे मगर जब भी वो अपनी मामी के चिकने बदन को देखते तो ऐसा हो जाता था. मामी भी यही चाह रही थी. खूब छल्का छल्का के अपना बदन दिखा रही थी.
बाथरूम से पेशाब करने के बाद साडी को जाँघो तक उठाए बाहर निकल जाती थी. munna की ओर देखे बिना साडी और पेटिकोट को वैसे ही उठाए हुए अपने कमरे में जाती और फिर चूकने की आक्टिंग करते हुए हल्के से मुस्कुराते हुए साडी को नीचे गिरा देती थी. munna भी अब हर रोज इंतेज़ार करता था की कब मामी झाड़ू लगाएँगी और अपनी गुदाज़ चुचियों के दर्शन कराएँगी या फिर कब वो अपनी साडी उठा के उसे अपनी मोटी-मोटी जाँघो के दर्शन कराएँगी. कहानियाँ तो अब वो हर रोज पढ़ता था. ज्ञान बढ़ाने के साथ अब उसके दिमाग़ में हर रोज़ नई नई तरकीब सूझने लगी कि कैसे मामी को पटाया जाए. साड़ी उठा के उनकी चूत के दर्शन किए जाए और हो सके तो उस��ें अपने हलब्बी लंड को प्रविष्ट कराया जाए और एक बार ही सही मगर चुदाई का मज़ा लिया जाए. सभी तरह के तरकीबो को सोचने के बाद उनकी छ्होटी बुद्धि ने या फिर ये कहे की उनके लंड ने क्योंकि चुदाई की आग में जलता हुआ छ्होकरा लंड से सोचने लगता है, एक तरकीब खोज ली.................
एक दिन मामी जी बाथरूम से तौलिया लपेटे हुए निकली, हर रोज़ की तरह मुन्ना बाबू उनको एक टक घूर घूर कर देखे जा रहे थे. images
तभी मामी ने munna को आवाज़ दी, "munna ज़रा बाथरूम में कुच्छ कपड़े है, मैं ने धो दिए है ज़रा बाल्कनी में सुखाने के लिए डाल दे". munna जो कि एक टक मामी जी की गोरी चिकनी जाँघो को देख के आनंद लूट रहा था को झटका सा लगा, हॅडबड़ा के नज़रे उठाई और देखा तो सामने मामी अपनी चूचियों पर अपने तौलिए को कस के पकड़े हुए थी. मामी ने हस्ते हुए कहा "जा बेटा जल्दी से सुखाने के लिए डाल दे नही तो कपड़े खराब हो जाएँगे"
राजू उठा और जल्दी से बाथरूम में घुस गया. मामी को उसका खरा लंड पाजामे में नज़र आ गया.
वो हस्ते हुए चुप चाप अपने कमरे में चली गई. muuna ने कपड़ो की बाल्टी उठाई और फिर ब्लॉकोनी में जा कर एक एक करके सूखने के लिए डालने लगा. मामी की पॅंटी और ब्रा को सुखाने के लिए डालने से पहले एक बार अच्छी तरह से च्छू कर देखता रहा फिर अपने होंठो तक ले गया और सूंघने लगा. images
तभी मामी कमरे से निकली तो ये देख कर जल्दी से उसने वो कपड़े सूखने के लिए डाल दिए.
शाम में जब सूखे हुए कपड़ो को उठाते समय munna भी मामी की मदद करने ल���ा. munna ने अपने मामा का सूखा हुआ अंडरवेर अपने हाथ में लिया और धीरे से मामी के पास गया. मामी ने उसकी ओर देखते हुए पुचछा "क्या है, कोई बात बोलनी है"? munnaथोड़ा सा हकलाते हुए बोला:-
"माआअम्म्म्मी...एक बात बोलनी थी"
"हा तो बोल ना"
"मामी मेरे सारे दोस्त अब ब्ब्ब्ब्बबब"
"अब क्या ......" उर्मिला देवी ने अपनी तीखी नज़रे उसके चेहरे पर गढा रखी थी.
"मामी मेरे सारे दोस्त अब उन.... अंडर....... अंडरवेर पहनते है"
मामी को हसी आ गई, मगर अपनी हसी रोकते हुए पूछा "हा तो इसमे क्या है सभी लड़के पहनते है"
"पर पर मामी मेरे पास अंडरवेर नही है"
मामी एक पल के लिए ठिठक गई और उसका चेहरा देखने लगी.munna को लग रहा था इस पल में वो शर्म से मर जाएगा उसने अपनी गर्दन नीचे झुका ली.
उर्मिला देवी ने उसकी ओर देखते हुए कहा "तुझे भी अंडरवेर चाहिए क्या"
"हा मामी मुझे भी अंडरवेर दिलवा दो ना"
"हम तो सोचते थे की तू अभी बच्चा है, मगर" कह कर वो हस्ने लगी. munna ने इस पर बुरा सा मुँह बनाया और रोआन्सा होते हुए बोला "मेरे सारे दोस्त काफ़ी दीनो से अंडरवेर पहन रहे है, मुझे बहुत बुरा लगता है बिना अंडरवेर के पॅंट पहन ना."
उर्मिला देवी ने अब अपनी नज़रे सीधे पॅंट के उपर टीका दी और हल्की मुस्कुराहट के साथ बोली "कोई बात नही, कल बाज़ार चलेंगे साथ में". munna खु�� होता हुआ बोला "थॅंक यू मामी". फिर सारे कपड़े समेत दोनो अपने अपने कमरो में चले गये.
वैसे तो munna कई बार मामी के साथ बाज़ार जा चुका था. मगर आज कुच्छ नई बात लग रही थी. दोनो खूब बन सवर के निकले थे. उर्मिला देवी ने आज बहुत दीनो के बाद काले रंग की सलवार कमीज़ पहन रखी थी और राजू को टाइट जीन्स पहनवा दिया था. हालाँकि राजू अपनी ढीली पॅंट ही पहना चाहता था मगर मामी के ज़ोर देने पर बेचारा क्या करता. कार मामी खूद ड्राइव कर रही थी.
काले सलवार समीज़ में बहुत सुंदर लग रही थी. हाइ हील की सॅंडल पहन रख थी. टाइट जीन्स में राजू का लंड नीचे की तरफ हो कर उसकी जाँघो से चिपका हुआ एक केले की तरह से साफ पता चल रहा था. उसने अपनी टी-शर्ट को बाहर निकाल लिया पर जब वो कार में मामी के बगल में बैठा तो फिर वही ढाक के तीन पाट, सब कुच्छ दिख रहा था. मामी अपनी तिर्छि नज़रो से उसको देखते हुए मुस्कुरा रही थी. munna बड़ी परेशानी महसूस कर रहा था. खैर मामी ने कार एक दुकान पर रोक ली. वो एक बहुत ही बड़ी दुकान थी. दुकान में सारे सेल्सरेप्रेज़ेंटेटिव लरकियाँ थी. एक सेलेज़्गर्ल के पास पहुच कर मामी ने मुस्कुराते हुए उस से कहा इनके साइज़ का अंडरवेर दिखाइए. सेल्समन ने घूर कर उसकी ओर देखा जैसे वो अपनी आँखो से ही उसकी साइज़ का पता लगा लेगी. फिर munna से पुचछा आप बनियान कितने साइज़ का पहनते हो. munna ने अपना साइज़ बता दिया और उसने उसी साइज़ का अंडरवेर ला कर उसे ट्राइयल रूम में ले जा कर ट्राइ करने को कहा. ट्राइयल रूम में जब munna ने अंडरवेर पहना तो उसे बहुत टाइट लगा. उसने बाहर आ कर नज़रे झुकाए हुए ही कहा "ये तो बहुत टाइट है". इस पर मामी हस्ने लगी और बोली "हमारा munna बेटा नीचे से कुच्छ ज़यादा ही बड़ा है, एक साइज़ बड़ा ला दो" . उर्मिला देवी की ये बात सुन कर सेलेज़्गर्ल का चेहरा भी लाल हो गया. वो हॅडबड़ा कर पिछे भागी और एक साइज़ बड़ा अंडरवेर ला कर दे दिया और बोली पॅक करा देती हू ये फिट आ जाएगी. मामी ने पुचछा "क्यों munna एक बार और ट्राइ करेगा या फिर पॅक करवा ले".
"नही पॅक करवा लीजिए"
"ठीक है दो अंडरवेर पॅक कर दो, और मेरे लिए कुच्छ दिखाओ". मामी के मुँह से ये बात सुन कर munna चौंक गया. मामी क्या खरीदना चाहती है अपने लिए. यहा तो केवल पॅंटी और ब्रा मिलेगी. सेलेज़्गर्ल मुस्कुराते हुए पिछे घूमी और मामी के सामने गुलाबी, काले, सफेद, नीले रंगो के ब्रा और पॅंटीस की ढेर लगा दिए. मामी हर ब्रा को एक एक कर के उठाती जाती और फैला फैला कर देखती फिर munna की ओर घूम कर जैसे की उस से पुच्छ रही हो बोलती "ये ठीक रहेगी क्या, मोटे कप्डे की है, सॉफ्ट नही है या फिर इसका कलर ठीक है क्या" munna हर बात पर केवल अपना सिर हिला कर रह जाता था. उसका तो दिमाग़ घूम गया था. उर्मिला देवी पॅंटीस को उठा उठा के फैला के देखती. उनकी एलास्टिक चेक करती ��िर छोड़ देती. कुच्छ देर तक ऐसे ही देखने के बाद उन्होने तीन ब्रा और तीन पॅंटीस खरीद ली. munna को तीनो ब्रा आंड पॅंटीस काफ़ी छ्होटी लगी. मगर उसने कुच्छ नही कहा. सारा समान पॅक करवा कर कर की पिच्छली सीट पर डालने के बाद मामी ने पुचछा "अब कहा चलना है",
munna ने कहा "घर चलिए, अब और कहा चलना है". इस पर मामी बोली "अभी घर जा कर क्या करोगे चलो थोड़ा कही घूमते है.
"ठीक है" कह कर munna भी कार में बैठ गया. फिर उसका टी-शर्ट थोड़ा सा उँचा हो गया पर इस बार munna को कोई फिकर नही थी. मामी ने उसकी ओर देखा और देख कर हल्के से मुस्कुरई. मामी से नज़रे मिलने पर munna भी थोड़ा सा शरमाते हुए मुस्कुराया फिर खुद ही बोल पड़ा "वो मैं ट्राइयल रूम में जा कर अंडरवेर पहन आया था". मामी इस पर हस्ते हुए बोली "वा रे छ्होरे बड़ा होसियार निकला तू तो, मैने तो अपना ट्राइ भी नही किया और तुम पहन कर घूम भी रहे हो, अब कैसा लग रहा है"
"बहुत कंफर्टबल लग रहा है, बड़ी परेशानी होती थी"
"मुझे कहा पता था की इतना बड़ा हो गया है, नही तो कब की दिला देती"
मामी के इस दुहरे अर्थ वाली बात को स्मझ कर मुन्ना बेचारा चुपचाप मुस्कुरा कर रह गया. मामी कार ड्राइव करने लगी. घर पर मामा और बड़ी बहन काजल दोनो नही थे. मामा अपने बिज़्नेस टूर पर और काजल कॉलेज ट्रिप पर. सो दोनो मामी भांजा शाम के सात बजे तक घूमते रहे. शाम में कार पार्किंग में लगा कर दोनो माल में घूम रहे थे कि बारिश शुरू हो गई. बड़ी देर तक तेज बारिश होती रही. जब 8 बजने को आए तो दोनो ने माल से पार्किंग तक का सफ़र भाग कर तय करने की कोशिश की, और इस चक्कर में दोनो के दोनो पूरी तरह से भीग गये. जल्दी से कार का दरवाजा खोल झट से अंदर घुस गये. मामी ने अपने गीले दुपट्टे से ही अपने चेहरे और बाँहो को पोच्छा और फिर उसको पिच्छली सीट पर फेंक दिया. munna ने भी हॅंकी से अपने चेहरे को पोछ लिया. मामी उसकी ओर देखते हुए बोली "पूरे कपड़े गीले हो गये"
"हा मैं भी गीला हो गया हू". बारिश से भीग जाने के कारण मामी की समीज़ उनके बदन से चिपक गई थी और उनकी सफेद ब्रा के स्ट्रॅप नज़र आ रहे थे. समीज़ चूकि स्लीवलेशस थी इसलिए मामी की गोरी गोरी बाँहे गजब की खूबसूरत लग रही थी.
उन्होने दाहिने कलाई में एक पतला सा सोने का कड़ा पहन रखा था और दूसरे हाथ में पतले स्ट्रॅप की घड़ी बाँध रखी थी. उनकी उंगलियाँ पतली पतली थी और नाख़ून लूंबे लूंबे जिन पर पिंक कलर की सुनहरी नाइल पोलिश लगी हुई थी. स्टियरिंग को पकड़ने के कारण उनका हाथ थोड़ा उँचा हो गया था जिस के कारण उनकी चिकनी चिकनी कानखो के दर्शन भी munna को आराम से हो रहे थे. बारिस के पानी से भीग कर मामी का बदन और भी सुनहरा हो गया था. बालो की एक लट उनके गालो पर अठखेलिया खेल रही थी. मामी के इस खूबसूरत रूप को निहार कर munna का लंड खड़ा हो गया था.
घर पहुच कर कार को पार्किंग में लगा कर लॉन पार करते हुए दोनो घर के दरवाजे की ओर चल दिए. बारिश दोनो को भीगा रही थी. दोनो के कपड़े बदन से पूरी तरह से चिपक गये थे. मामी की समीज़ उनके बदन से चिपक कर उनकी चुचियों को और भी ज़यादा उभार रही थी. चुस्त सलवार उनके बदन उनके जाँघो से चिपक कर उनकी मोटी जाँघो का मदमस्त नज़ारा दिखा रही थी. समीज़ चिपक कर मामी की गांद की दरार में घुस गई थी.
munna पिछे पिछे चलते हुए अपने लंड को खड़ा कर रहा था. तभी लॉन की घास पर मामी का पैर फिसला और वो पिछे की तरफ गिर प��री. उनका एक पैर लग भग मूड गया था और वो munna के उपर गिर पड़ी जो ठीक उनके पिछे चल रहा था. मामी muna के उपर गिरी हुई थी.
मामी के मदमस्त चूतर munna के लंड से सॅट गये. मामी को शायद munna के खड़े लंड का एहसास हो गया था उसने अपने चूतरो को लंड पर थोड़ा और दबा दिया और फिर आराम से उठ गई. munna भी उठ कर बैठ गया. मामी ने उसकी ओर मुस्कुराते हुए देखा और बोली "बारिश में गिरने का भी अपना अलग ही मज़ा है".
"कपड़े तो पूरे खराब हो गये मामी"
"हॅ तेरे नये अंडरवेर का अच्छा उदघाटन हो गया" munna हस्ने लगा. घर के अंदर पहुच कर जल्दी से अपने अपने कमरो की ओर भागे. munna ने फिर से हाफ पॅंट और एक टी-शर्ट डाल ली और गंदे कपड़ो को बाथरूम में डाल दिया. कुच्छ देर में मामी भी अपने कमरे से निकली. मामी ने अभी एक बड़ी खूबसूरत सी गुलाबी रंग की नाइटी पहन रखी थी. मॅक्सी के जैसी स्लीव्लेस्स नाइटी थी. नाइटी कमर से उपर तक तो ट्रॅन्स्परेंट लग रही थी मगर उसके नीचे शायद
मामी ने नाइटी के अंदर पेटिकोट पहन रखा था इसलिए वो ट्रॅन्स्परेंट नही दिख रही थी.
उर्मिला देवी किचन में घुस गई और munna ड्रॉयिंग रूम में मस्ती से बैठ कर टेलीविज़न देखने लगा. उसने दूसरा वाला अंडरवेर भी पहन रखा था अब उसे लंड के खड़े होने पर पकड़े जाने की कोई चिंता नही थी. किचन में दिन की कुच्छ सब्जिया और दाल पड़ी हुई थी. चावल बना कर मामी उसके पास आई और बोली "चल कुच्छ खाना खा ले". खाना खा कर सारे बर्तन सिंक में डाल कर मामी ड्रॉयिंग रूम में बैठ गई और munna भी अपने लिए मॅंगो शेक ले कर आया और सामने के सोफे पर बैठ गया. मामी ने अपने पैर को उठा कर अपने सामने रखी एक छ्होटी टेबल पर रख दिया और नाइटी को घुटनो तक खींच लिया था. घुटनो तक के गोरे गोरे पैर दिख रहे थे. बड़े खूबसूरत पैर थे मामी के. images
तभी munna का ध्यान उर्मिला देवी के पैरो से हट कर उनके हाथो पर गया. उसने देखा की मामी अपने हाथो से अपने चुचियों को हल्के हल्के खुज़ला रही थी. फिर मामी ने अपने हाथो को पेट पर रख लिया. कुच्छ देर तक ऐसे ही रखने के बाद फिर उनका हाथ उनके दोनो जाँघो के बीच पहुच गया. munna बड़े ध्यान से उनकी ये हरकते देख रहा था. मामी के हाथ ठीक उनकी जाँघो के बीच पहुच गये और वो वाहा खुजली करने लगी. झंघो के ठीक बीच में चूत के उपर हल्के हल्के खुजली करते-करते उनका ध्यान munna की तरफ गया. munna तो एक तक अपनी मामी को देखे जा रहा था. उर्मिला देवी की नज़रे जैसे ही munna से टकराई उनके मुँह से हँसी निकल गई. हस्ते हुए वो ��ोली
"नई पॅंटी पहनी है ना इसलिए खुजली हो रही है". munna अपनी चोरी पकड़े जाने पर शर्मिंदगी के साथ हस कर मुँह घुमा कर अपनी नज़रो को टीवी से चिपका दिया. उर्मिला देवी ने अपने पैरो को और ज़यादा फैला दिया. ऐसा करने से उनकी नाइटी नीचे की तरफ लटक गई थी. munna के लिए ये बड़ा बढ़िया मौका था, उसने अपने हाथो में एक रब्बर की बॉल पकड़ी हुई थी जिसे उसने जान बूझ के नीचे गिरा दिया. बॉल लुढ़कता हुआ ठीक उस छ्होटे से टेबल के नीचे चला गया जिस पर मामी ने पैर रखे हुए थे. munaa "ओह" कहता हुआ उठा और टेबल के पास जाकर बॉल लेने के बहाने से लटकी हुए नाइटी के अंदर झाँकने लगा. एक तो नाइटी और उसके अंदर मामी ने पेटिकोट पहन रखा था, लाइट वाहा तक पूरी तरह से नही पहुच पा रही थी पर फिर भी munna को मामी के मस्त जाँघो के दर्शन हो ही गये. उर्मिला देवी भी munna के इस हरकत पर मन ही मन मुस्कुरा उठी. वो समझ गई की छ्होकरे के पॅंट में भी हलचल हो रही है और उसी हलचल के चक्कर में उनकी पॅंटी के अंदर झाँकने के चक्कर में पड़ा हुआ है. munna बॉल लेकर फिर से सोफे पर बैठ गया तो उर्मिला देवी ने उसकी तरफ देखते हुए कहा
"अब इस रब्बर के बॉल से खलेने की तेरी उमर बीत गई, अब दूसरे बॉल से खेला कर". munna थोड़ा सा शरमाते हुए बोला "और कौन सी बॉल होती है मामी, खलेने वाली सारी बॉल्स तो रब्बर से ही बनी होती है"
"हा, होती तो है मगर तेरे इस बॉल की तरह इधर उधर कम लुढ़कति है" कह कर फिर से munna के आँखो के सामने ही अपनी चूत पर खुजली करके हस्ते हुए बोली "बड़ी खुजली सी हो रही है पता नही क्यों, शायद नई पॅंटी पहनी है इसलिए".munna तो एक दम से गरम हो गया और एक टक जाँघो के बीच देखते हुए बोला
"पर मेरा अंडरवेर भी तो नया है वो तो नही काट रहा"
"अच्छा, तब तो ठीक है, वैसे मैने थोड़ी टाइट फिटिंग वाली पॅंटी ली है, हो सकता है इसलिए काट रही होगी"
"वा मामी आप भी कमाल करती हो इतनी टाइट फिटिंग वाली पॅंटी खरीदने की क्या ज़रूरत थी आपको"
"टाइट फिटिंग वाली पॅंटी हमारे बहुत काम की होती है, ढीली पॅंटी में परेशानी हो जाती है, वैसे तेरी परेशानी तो ख़तम हो गई ना"
"हा मामी, बिना अंडरवेर के बहुत परेशानी होती थी, सारे लड़के मेरा मज़ाक उरते थे".
"पर लड़कियों को तो अच्छा लगता होगा, क्यों?"
"हि मामी, आप भी नाआ,,,, "
"क्यों लड़कियाँ तुझे नही देखती क्या"
"लड़कियाँ मुझे क्यों देखेंगी, मेरे में ऐसा क्या है"
"तू अब जवान हो गया है, मर्द बन गया है"
"कहा मामी, आप भी क्या बात करती हो"
"अब जब अंडरवेर पहन ने लगा है तो इसका मतलब ही है की तू अब जवान हो गया है"
munna इस पर एक दम से शर्मा गया,
"धात मामी,......"
" तेरा खड़ा होने लगा है क्या",
मामी की इस बात पर तो munna का चेहरा एक्दुम से लाल हो गया. उसकी समझ में नही आ रहा था क्या बोले. तभी उर्मिला देवी ने अपनी नाइटी को एक्दुम घुटनो के उपर तक खीचते हुए बड़े बिंदास अंदाज़ में अपना एक पैर जो की टेबल पर रखा हुआ था उसको munna के जाँघो पर रख दिया (munna दरअसल पास के सोफे पर पालती मार के बैठा हुआ था.) munna को एक्दुम से झटका सा लगा.
मामी अपने गोरे गोरे पैरो की एडियों से उसके
जाँघो को हल्के हल्के दबाने लगी और एक हाथ को फिर से अपने जाँघो के बीच ले जा कर चूत को हल्के हल्के खुजलाते हुए बोली "क्यों मैं ठीक बोल रही हू ना"
"ओह मामी,"
"नया अंडरवेर लिया है, दिखा तो सही कैसा लगता है"
"अर्रे क्या मामी आप भी ना बस ऐसे........ अंडरवेर भी कोई पहन के दिखाने वाली चीज़ है"
"क्यों लोग जब नया कपड़ा पहनते है तो दिखाते नही है क्या" कह कर उर्मिला देवी ने अपने एडियों का दबाब जाँघो पर थोड़ा सा और बढ़ा दिया, पैर की उंगलिया से हल्के से पेट के निचले भाग को कुरेदा और मुस्कुरा के सीधे munna की आँखो में झाँक कर देखती हुई बोली, "दिखा ना कैसा लगता है, फिट है या नही"
"छोड़ो ना मामी"
"अर्रे नये कपड़े पहन कर दिखाने का तो लोगो को शौक होता है और तू है की शर्मा रहा है, मैं तो हमेशा नये कपड़े पहनती हू तो सबसे पहले तेरे मामा को दिखाती हू, वही बताते है कि फिटिंग कैसी है या फिर मेरे उपर जचता है या नही, अभी तेरे मामा नही है........"
"पर मामी ये कौन सा नया कपड़ा है, अपने भी तो नई पॅंटी खरीदी है वो आप दिखाइएंगी क्या". उर्मिला देवी भी स्मझ गई की लड़का लाइन पर आ रहा है, और पॅंटी देखने के चक्कर में है. फिर मन ही मन खुद से कहा की बेटा तुझे तो मैं पॅंटी भी दिखौँगी और उसके अंदर का माल भी पर ज़रा तेरे अंडरवेर का माल भी तो देख लू नज़र भर के फिर बोली
"हा दिखौँगी ना तेरे मामा को तो मैं सारे कपड़े दिखाती हू"
"धात मामी.... तो फिर जाने दो मैं भी मामा को ही दिखौँगा"
"अर्रे तो इसमे शरमाने की क्या बात है, आज तो तेरे मामा नही है इसलिए मामी को ही दिखा दे," और उर्मिला देवी ने अपने पूरे पैर को सरका कर उसके जाँघो के बीच में रख दिया जहा पर उसका लंड था. munna का लंड खड़ा तो हो ही चुका था. उर्मिला देवी ने हल्के से लंड की औकात पर अपने पैर को चला कर दबाब डाला और मुस्कुरा कर munna की आँखो में झाँकते हुए बोली "क्यों मामी को दिखाने में शर्मा रहा है क्या"
munna की तो सिट्टी पिटी गुम हो गई थी. मुँह से बोल नही फुट रहे थे. धीरे से बोला "रहने दीजिए मामी मुझे शर्म आती है" उर्मिला देवी इस पर थोड़ा झिरकने वाले अंदाज में बोली "इसीलिए तो अभी तक इस रब्बर की बॉल से खेल रहा है" munna ने अपनी गर्दन उपर उठाई तो देखा की उर्मिला देवी अपनी चुचियों पर हाथ फिरा रही थी. राजू बोला "तो और कौन सी बॉल से खेलु"
"ये भी बताना पड़ेगा क्या, मैं तो सोचती थी ��ू स्मझदार हो गया होगा, चल आज तुझे समझदार बनाती हूँ".
"हाई मामी मुझे शरम आ रही है" उर्मिला देवी ने अपने पंजो का दबाब उसके लंड पर बढ़ा दिया और ढाकी च्छूपी बात करने की जगह सीधा हमला बोल दिया "बिना अंडरवेर के जब खड़ा कर के घूमता था तब तो शरम नही आती थी,…….. दिखा ना". और लंड को कस के अपने पंजो से दबाया ताकि munna अब अच्छी तरह से समझ जाए की ऐसा अंजाने में नही बल्कि जान-बूझ कर हो रहा है. इस काम में उर्मिला देवी को बड़ा मज़ा आ रहा था. munna थोड़ा परेशान सा हो गया फिर उसने हिम्मत कर के कहा "ठीक है मामी, मगर अपने पैर तो हटाओ".
"ये हुई ना बात" कह कर उर्मिला देवी ने अपने पैर हटा लिए. munna खड़ा हो गया और धीरे से अपनी हाफ पॅंट घुटनो के नीचे तक सरका दी. उर्मिला देवी को बड़ा मज़ा आ रहा था. लड़कों को जैसे स्ट्रीप टीज़ देखने में मज़ा आता है, आज उर्मिला देवी को अपने भाँझे के सौजन्या से वैसा ही स्ट्रीप टीज़ देखने को मिल रहा था. उसने कहा "पूरा पॅंट उतार ना, और अच्छे से दिखा". munna ने अपना पूरा हाफ पॅंट उतार दिया और शरमाते-सकुचते सोफे पर बैठने लगा तो उर्मिला देवी ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर munna का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया और अपने पास खड़ा कर लिया और धीरे से उसकी आँखो में झाँकते हुए बोली "ज़रा अच्छे से देखने दे ना कैसी फिटिंग आई है". munna ने अपने टी-शर्ट को अपने पेट पर चढ़ा रखा था और मामी बड़े प्यार से उसके उनड़ेवएअर की फिटिंग चेक कर रही थी. छ्होटा सा वी शेप का अंडरवेर था. एलास्टिक में हाथ लगा कर देखते हुए मामी बोली "हू फिटिंग तो ठीक लग रही है, ये नीला रंग भी तेरे उपर खूब अच्छा लग रहा है मगर थोड़ी टाइट लगती है" images
"वो कैसे मामी, मुझे तो थोड़ा भी टाइट नही लग रहा", munna का खड़ा लंड उनड़ेवएअर में एक दम से उभरा हुआ सीधा डंडे की शकल बना रहा था. उर्मिला देवी ने अपने हाथ को लंड की लंबाई पर फिराते हुए कहा, images
"तू खुद ही देख ले, पूरा पता चल रहा है कि तेरा औज़ार खड़ा हो गया है". लंड पर मामी का हाथ चलते ही मारे सनसनी के munna की तो हालत खराब होने लगी, कांपति हुई आवाज़ में "ओह आहह" करके रह गया. उर्मिला देवी ने मुस्कुराते हुए पुचछा "हर समय ऐसे ही रहता है क्या"
"नेह्हियी मामी, हमेशा ऐसे नही रहता"
"और समय ढीला रहता है"
"हा मामी" .
"अच्छा, तब तो ठीक फिटिंग का है, मैं सोच रही थी की अगर हर समय ऐसे ही खड़ा रहता होगा तो तब तो तुझे थोड़ा और ढीला लेना चाहिए था, वैसे ये खड़ा क्यों है
"ओह, मुझे नही पता मामी."
"बहुत बड़ा दिख रहा है, पहसब तो नही लगी है तुझे"
"नही मामी"
"तब तो कोई और ही कारण होगा, वैसे वो सेल्स गर्ल भी हस रही थी जब मैने बोला की मेरे मुन्ना बेटे का थोड़ा ज़यादा ही बड़ा है" कह कर उर्मिला देवी ने लंड को अंडरवेर के उपर से कस कर दबाया.
munna के मुँह से एक सिसकारी निकल गई. उर्मिला देवी ने लंड को एक बार और दबा दिया और बोली "चल जा सोफे पर बैठ". munna सीधे धरती पर आ गया. लंड पर मामी के कोम�� हाथो का सपर्श जो मज़ा दे रहा था वो बड़ा अनूठा और अजूबा था. मन कर रहा था की मामी थोरी देर और लंड दबाती पर मन मार कर चुप चाप सोफे पर आ के बैठ गया और अपनी सांसो को ठीक करने लगा. उर्मिला देवी भी बड़ी सयानी औरत थी जानती थी कि लोंडे के मन में अगर एक बार तड़प जाग जाएगी तो फिर लौंडा खुद उसके चंगुल में फस जाएगा. कमसिन उमर के नौजवान छ्होकरे के मोटे लंड को खाने के चक्कर में वो मुन्ना को थोड़ा तड़पाना चाहती थी. उर्मिला देवी ने अभी भी अपनी नाइटी को अपने घुटनो से उपर तक उठाया हुआ था और अपने दोनो पैर फिर से सामने की टेबल पर रख लिए थे. munna ने धीरे से अपने हाफ पॅंट को उठाया और पहन ने लगा. उर्मिला देवी तभी बोल पड़ी "क्यों पहन रहा है, घर में और कोई तो है नही, और मैने तो देख ही लिया है,"
गाँव का राजा पार्ट -4लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
"हाई नही मामी मुझे बड़ी शरम आ रही है"
तभी उर्मिला देवी ने फिर से अपनी चूत के उपर खुजली की. munna का ध्यान भी मामी के हाथो के साथ उसी तरफ चला गया. उर्मिला देवी मुस्कुराती हुई बोली "अभी तक तो शायद केवल पॅंटी काट रही थी पर अब लगता है पॅंटी के अंदर भी खुजली हो रही है". munna इसका मतलब नही समझा चुप-चाप मामी को घूरता रहा. उर्मिला देवी ने सोचा खुद ही कुच्छ करना पड़ेगा, लौंडा तो कुच्छ करेगा नही. अपनी नाइटी को और उपर सीधा जाँघो तक उठा कर उसके अंदर हाथ घुसा कर हल्के हल्के सहलाने लगी. और बोली "जा ज़रा पाउडर ले आ तो". munna अंडरवेर में ही बेडरूम में जाने मे थोड़ा हिचका मगर मामी ने फिर से कहा "ले आ ज़रा सा लगा लेती हू".
munna उठा और अपनी गांद मॅटकाते हुए पाउडर ले आया. उर्मिला देवी ने पाउडर ले लिया और थोड़ा सा पाउडर हाथो में ले कर अपनी हथेली को नाइटी में घुसा दिया. और पाउडर लगाने लगी. munna तिर्छि निगाहों से अपने मामी हर्कतो को देख रहा था और सोच रहा था काश मामी उसको पाउडर लगाने को कहती. उर्मिला देवी शायद उसके मन की बात को स्मझ गई और बोली "munna क्या सोच रहा है"
"कुच्छ नही मामी, मैं तो बस टी.वी. देख रहा हू"
"तू बस टी.वी. देखता ही रह जाएगा, तेरी उमर के लड़के ना जाने क्या-क्या कर लेते है, तुझे पता है दुनिया कितनी आगे निकल गई है"
"क्या मामी आप भी क्या बात करती हो मैं अपने क्लास का सबसे तेज़ बच्चा हू"
"तेरी तेज़ी तो मुझे कही भी देखने को नही मिली"
"क्या मतलब है आपका मामी"
"अभी तू कमसिन उमर का लड़का है तेरा मन तो करता होगा",
"क्या मन करता होगा मामी,"
"तान्क-झाँक करने का, अपनी चूत पर नाइटी के अंदर से हाथ चलाते हुए बोली "अब तो तेरा पूरा खड़ा होने लगा है"
"के मामी….."
"क्यों मन नही करता क्या, मैं जैसे ऐसे तेरे सामने पाउडर लगा रही हू तो तेरा मन करता होगा………….."
"धात मामी…….."
"मैं सब समझती हू… "तू शरमाता क्यों है, तेरी उमर में तो हर लड़का यही तमन्ना रखता है की कोई खोल के दिखा दे,,,,,,,,,,,,,,,,,तेरा भी मन करता होगा…………फिर बात बदलते बोली तेरे मामा होते तो उनसे पाउडर लगवा लेती"
फिर munna के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली "खोलने की बात सुनते ही सब समझ गया, कैसे चेहरा लाल हो गया है तेरा, मैं सब समझती हू तेरा हाल"
munna का चेहरा और ज़यादा शरम से लाल हो गया और अपनी नज़रे झुकाते हुए बोला "आप बात ही ऐसी कर रही हो…..लाओ मैं पाउडर लगा देता हू"
"हाई, लगवा तो लू मगर तू कही बहक गया तो"
"हाई मामी मैं क्यों बहकुंगा"
"नही तेरी उमर कम है, देख के ही जब तेरा इतना खड़ा था तो हाथ लगा के क्या हाल हो जाएगा, फिर बदनामी………."
munna का चेहरा खुशी से दमक उठा था, उसको स्मझ में आ गया था कि गाड़ी अब पटरी पर आ चुकी है बोला "आपकी कसम मामी किसी को भी नही बताउन्गा"
इस पर उर्मिला देवी ने munna का हाथ पकड़ अपनी तरफ खींचा, munna अब मामी के बगल में बैठ गया था. उर्मिला देवी ने अपने हाथो से उसके गाल को हल्का सा मसालते हुए कहा "हाई, बड़ी समझदारी दिखा रहा है पर है तो तू बच्चा ही ना कही बोल दिया तो"
" मामी…..नही किसी से नही………"
"खाली पाउडर ही लगाएगा या फिर…..देखेगा भी……..मैं तो समझती थी की तेरा मन करता होगा पर….."
"हाई मामी पर क्या……."
"ठीक है चल लगा दे पाउडर,"
उर्मिला देवी खड़ी हो गई और अपनी नाइटी को अपने कमर तक उठा लिया. munna की नज़र भी उस तरफ घूम गई. मामी अपनी नाइटी को कमर तक उठा कर उसके सामने अपनी पॅंटी के एलास्टिक में हाथ लगा कर खड़ी थी. मामी की मोटी मोटी खंभे के जैसी सफेद खूबसूरत जंघे और उनके बीच कयामत बरपाति उनकी काली पॅंटीऔर काली पॅंटी को देख पाउडर का डिब्बा हाथ से छूट कर गिर गया और पाउडर लगाने की बात भी दिमाग़ से निकल गई. पॅंटी एक दम छ्होटी सी थी और मामी की चूत पर चिपकी हुई थी.
munnaतो बिना बोले एक टक घूर घूर कर देखे जा रहा था. उर्मिला देवी चुप-चाप मुस्कुराते हुए अपनी नशीली जवानी का असर munna पर होता हुआ देख रही थी. munna का ध्यान तोड़ने की गरज से वो हस्ती हुई बोली "कैसी है मेरी पॅंटी की फिटिंग ठीक ठाक है ना". munna एक दम से शर्मा गया. हकलाते हुए उसके मुँह से कुच्छ नही निकला. पर उमिला देवी वैसे ही हस्ते हुए बोली "कोई बात नही, शरमाता क्यों है, चल ठीक से देख कर बता कैसी फिटिंग आई है. munna कुच्छ नही बोला और चुप चाप बैठा रहा. इस पर खुद उर्मिला देवी ने उसका हाथ पकड़ के खींच कर उठा दिया और बोली, "देख के बता ना, कही सच मुच में टाइट तो नही, अगर होगी तो कल चल के बदल लेंगे". munna ने भी थोड़ी सी हिम्मत दिखाई और सीधा मामी के पैरो के पास घुटनो के बल खड़ा हो गया और बड़े ध्यान से देखने लगा. मामी की चूत पॅंटी में एक दम से उभरी हुई थी. चूत की दोनो फाँक के बीच में पॅंटी फस गई थी और चूत के च्छेद के पास थोड़ा सा गीलापन दिख रहा था.
munna को इतने ध्यान से देखते हुए देख कर उर्मिला देवी ने हस्ते हुए कहा "क्यों फिट है या नही, ज़रा पिछे से भी देख के बता" कह कर उर्मिला देवी ने अपने मोटे मोटे गठिले चूतर munna की आँखो के सामने कर दिए. पॅंटी का पिछे वाला भाग तो पतला सा स्टाइलिश पॅंटीस की तरह था. उसमे बस एक पतली सी कपड़े की लकीर सी थी जो की उर्मिला देवी के गांद क�� दरार में फसि हुई थी.
गोरे-गोरे मैदे के जैसे गुदाज चूतरो को देख कर तो munna के होश ही उड़ गये, बेशक्ता उसके मुँह से निकल गया "मामी पिछे से तो आपकी पॅंटी और भी छ्होटी है चूतर भी कवर नही कर पा रही". इस पर मामी ने हस्ते हुए कहा "अरे ये पॅंटी ऐसी ही होती है, पिछे की तरफ केवल एक पतला सा कपड़ा होता जो बीच में फस जाता है, देख मेरे चूतरो के बीच में फसा हुआ है ना"
"हा मामी, ये एक दम से बीच में घुस गया है"
"तू पिछे का छोड़ आगे का देख के बता ये तो ठीक है ना"
"मुझे तो मामी ये भी छ्होटा लग रहा है, और आगे का कपड़ा भी कही फसा हुआ लग रहा है". इस पर उर्मिला देवी अपने हाथो से पॅंटी के जाँघो के बीच वाले भाग के किनारो को पकड़ा और थोड़ा फैलाते हुए बोली "वो उठने बैठने पर फस ही जाता है, अब देख मैने फैला दिया है, अब कैसा लग रहा है"
"अब थोड़ा ठीक लग रहा मामी, पर उपर से पता तो फिर भी चल रहा है"
"अर्रे तो इतने पास से देखेगा तो उपर से पता नही चलेगा क्या, मेरा तो फिर भी ठीक है तेरा तो सॉफ दिख जाता है".
"पर मामी, हम लोगो का तो खड़ा होता है ना आप लोगो का खड़ा नही होता"
"हा हमारे में छेद होता है, इसी से तो हर चीज़ इसके अंदर घुस जाती है". कह कर उर्मिला देवी खिलखिला कर हस्ने लगी. munna ने भी थोड़ा सा शरमाने का नाटक किया. अब उसकी भी हिम्मत खुल चुकी थी. अब अगर उर्मिला देवी चुचि पकड़ाती तो आगे बढ़ कर पूरा चोद देता. उर्मिला देवी भी इस बात को समझ चुकी थी. ज़यादा नाटक छोड़ने की जगह अब सीधा खुल्लम खुल्लम बाते करने में दोनो की भलाई थी, ये बात अब दोनो समझ चुके थे. उर्मिला देवी ने इस पर munna के गालो को अपने हाथो से मसल्ते हुए कहा "देखने से तो बड़ा भोला भाला लगता है मगर जानता सब है, कि किसका खड़ा होता है और किसका नही, लड़की मिल जाए तो सबसे पहले ............ बिगड़ गया है तू" कह कर उर्मिला देवी ने अपने नाइटी को जिसको उन्होने कमर तक उठा रखा था नीचे गिरा दिया.
"क्या मामी आप भी ना, मैं कहा बिगड़ा हू, लाओ पाउडर लगा दू"
ये सब तो मैने कहानियों मे पढ़ा था उसी मे बताया था लड़की का खड़ा नही होता
..क्या तू हिन्दी सेक्सी कहानियाँ भी पढ़ने लगा
"अच्छा बिगड़ा नही है फिर ये जो तेरी अंडरवेर में है उसको क्यों खड़ा कर के रखा हुआ है". मुन्ना ने चौंक कर अपने अंडरवेर की तरफ देखा, सच-मुच उसका लंड एक दम से तन्ना गया था और अंडरवेर को एक टेंट की तरह से उभारे हुए था. उसने शर्मा कर अपने एक हाथ से अपने उभार को च्छुपाने की कोशिश की. "हाई मामी छोड़ो लाओ पाउडर लगा दू"
"तू रहने दे पाउडर वो मैने लगा लिया है, कही कुच्छ उल्टा सीधा हो गया तो".
"क्या उल्टा सीधा होगा मामी, मैं तो इसलिए कह रहा था की आपको खुजली हो रही थी तो फिर............." बात बीच में ही काट गई.
"खूब समझती हू क्यों बोल रहे थे,
"हाई मामी नही, मैं तो बस आप को खुजली.......".
"मैं अच्छी तरह से समझती हू तेरा इरादा क्या है और तू कहा नज़र गढ़ाए रहता है, मैं तुझे देखती थी पर सोचती थी ऐसे ��ी देखता होगा मगर अब मेरी समझ में अच्छी तरह से आ गया है"
मामी के इतना खुल्लम खुल्ला बोलने पर munna के लंड में एक सनसनी दौड़ गई
"हि मामी नही ……………..munna की बाते उसके मुँह में ही रह गई और उर्मिला देवी ने आगे बढ़ कर राजू के गाल पर हल्के से चिकोटी काटी.
मामी के कोमल हाथो का स्परश जब munna के गालो पर हुआ तो उसका लंड एक बार फिर से लहरा गया. मामी के नंगी जाँघो के नज़ारे की गर्माहट अभी तक लंड और आँख दोनो को गर्मा रही थी. तभी मामी ने उसकी ठुड्डी पकड़ के उसके चेहरे को थोड़ा सा उपर उठाया और अपनी चुचियों को एक हाथ से सहलाते हुए बोली "बहुत घूर घूर के देखते हो ना इनको, दिल चाहता होगा की नंगी करके देखते, है ना" मामी की ये बात सुन कर munna का का चेहरा लाल हो गया और गला सुख गया फसी हुई आवाज़ में "माआआआमम्म्ममी............" करके रह गया.
मामी ने इस बार munna का एक हाथ पकड़ लिया और हल्के से उसकी हथेली को दबा कर कहा "क्यों मन करता है कि नही, कि किसी की देखते". munna का हाथ मामी के कोमल हाथो में कांप रहा था. munna को अपने और पास खिचते हुए उर्मिला देवी ने लगभग munna को अपने से सटा लिया था. munna और उसकी मामी के बीच केवल इंच भर का फासला था. images
मामी की गर्म सांसो का अहसास उसे चेहरे पर हो रहा था. munna अगर थोड़ा सा आगे की तरफ हिलता तो उसकी छाती मामी के नुकीले चुचो से ज़रूर टकरा जाती. इतने पास से munna पहली बार मामी को देख रहा था. दोनो की साँसे तेर्ज चल रही थी. मामी की उठती गिरती चूचियों से munna की नज़र हटाए नही हट रही थी. उर्मिला देवी ने munna का हाथ पकड़ के अपनी चूचियों पर रख दिया और अपने हाथो से उसको दबाते हुए बोली "मन करता होगा कि देखे, देख तेरा हाथ कैसे कांप रहा है, मन करता है ना". images
थूक निगल के गले को तर करता हुआ munna बोला "हाआ मामी मन...... करता ..". उर्मिला देवी ने हल्के से फिर उसके हाथ को अपने चुचियों पर दबाते हुए कहा "देख मैं कहती थी ना तेरा मन करता होगा, पूरा नंगा देखे, लौंडा जैसे ही जवान होता है उसके मन में सबसे पहले यही आता है कि किसी औरत की देखे". अब munna भी थोड़ा खुल गया हकलाते हुए बोला
"हाँ, मामी बहुत मन करता है कि देखे"
"मैं तो दिखा देती मगर"
"हाँ मामी, मगर क्या"
"तूने कभी किसी की देखी नही है क्या"
"नही मेयायाययामियीयियीयियी"
"तेरी उमर कम है, फिर मैं तेरी मामी हू"
"हाई मामी मैं अब बड़ा हो गया हू,"
"मैं दिखा देती मगर तेरी उमर कम है तेरे से रहा नही जाएगा"
"नही मामी, मैं रह लूँगा, बस दिखा दो एक बार"
"तू नही रह पाएगा, कह कर उर्मिला देवी ने अपना एक हाथ munna के अंडरवेर के उपर से उसके लंड पर रख दिया.
munna एक दम से लहरा गया. मामी के कोमल हाथो का लंड पर दबाब पा कर मज़े के कारण से उसकी पलके बंद होने को आ गई. उर्मिला देवी बोली "देख कैसे खड़ा कर के रखा हुआ है, अगर दिखा दूँगी तो तेरी बेताबी और बढ़ जाएगी,"
" नही मामी, प्लीज़ एक बार दिखा दो"
"पॅंटी खोल के दिखा दू"
"हा मामी, दिखा दो बस एक बार, किसी की नही देखी" munna का एक हाथ जो अभी तक उर्मिला देवी की चुचियों पर ही था उसको अपने हाथो से दबाते हुए और अपनी चुचियों को थोड़ा और उचकाते हुए उर्मिला देवी बोली "��ैने नई ब्रा भी पहनी हुई, उसको नही देखेगा क्या" images
"हाँ मामी उसको भी ….."
"चल दिखा दूँगी मगर एक शर्त पर"
"बताओ मामी, मैं आपकी हर बात मानूँगा"
"ठीक है फिर जा और मूत कर के अपना अंडरवेर उतार के आ" munna को एक दम से झटका लग गया. उसकी स्मझ में नही आ रहा था की क्या जवाब दे. मामी और उसके बीच खुल्लम खुल्ला बाते हो रही थी मगर मामी अचानक से ये खेल इतना कुल्लम खुल्ला हो जाएगा, ये तो munna ने सोचा भी ना था. कुच्छ घबराता और कुच्छ सकपकाता हुआ वो बोला " पर मामी अंडरवेर…….."
"हा जल्दी से अंडरवेर उतार के मेरे बेडरूम में आ जा फिर दिखाउन्गी" कह कर उर्मिला देवी उस से अलग हो गई और टी.वी. ऑफ कर के अपने बेडरूम की तरफ चल दी. मामी को बेडरूम की तरफ जाता देख जल्दी से बाथरूम की तरफ भागा.
अंडरवेर उतार कर जब munna मूतने लगा तो उसके लंड से पेशाब की एक मोटी धार कमोड में छर छर कर गिरने लगी. जल्दी से पेशाब कर अपने फन्फनाते लंड को काबू में कर munna मामी के बेडरूम की तरफ भागा. अनादर पहुच कर देखा की मामी ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो कर अपने बालो का जुड़ा बना रही थी. images
munna को देखते ही तपाक से बोली चल बेड पर बैठ मैं आती हू और अटॅच्ड बाथरूम में चली गई. बाथरूम से मामी के मूतने की सिटी जैसी आवाज़ सुनाई दे रही थी. कुच्छ पल बाद ही मामी बाथरूम से अपनी नाइटी को जाँघो तक उठाए हुए बाहर निकली. munna का लंड एक बार फिर से सनसानया. उसका दिल कर रहा था की मामी की दोनो जाँघो के बीच अपने मुँह को घुसा दे और उनकी रसीली चूत को कस के चूम ले. तभी उर्मिला देवी जो कि, बेड तक पहुच चुकी थी की आवाज़ ने उसको वर्तमान में लौटा दिया " तू अभी तक अंडरवेर पहने हुए है, उतारा क्यों नही" munna थोड़ा सरमाया
" मामी शरम आ रही है……….तुम तो दिखाने को बोल रही थी"
"धात बेवकूफ़, चल अंडरवेर उतार"
"पर मामी अंडरवेर उतार के क्या होगा,,,,,,"
"असली गेंदो का मज़ा चखाउन्गी" कह कर हल्के से अपनी चुचियों पर हाथ फेरा. राजू का लंड और भी ज़यादा ख़ड़ा हो गया. images
"पर मामी मैं पूरा नंगा हो जाउन्गा"
"तो क्या हुआ, मुझे पॅंटी खोल के दिखाने के लिए बोलता है उसमे शर्म नही आती तुझे, खोल ना अंडरवेर फिर मैं तुझे बताउन्गी की तेरी मामी को कहा कहा खुजली होती है और खुजली मिटाने की दूसरी दवा भी बताउन्गी"
" मामी, दूसरी कौन से दवा है "
"बताउन्गी बेटा, पहले ज़रा अपना बेलन तो दिखा". munna ने थोड़ा सा शरमाने का नाटक करते हुए अपना अंडरवेर धीरे धीरे सरका दिया. उर्मिला देवी की आँखो की चमक बढ़ती जा रही थी. आज दस इंच मोटे तगड़े लंड का दर्शन पहली बार खुल्लम खुल्ला ट्यूब लाइट की रोशनी में हो रहा था. नाइटी जिसको अब तक एक हाथ से उन्होने उठा कर रखा हुआ था नीचे छूट कर गिर गयी. munnaके आँखो को गर्मी देने वाली चीज़ तो ढक चुकी थी मगर उसकी मामी के मज़े वाली चीज़ अपने पूरे औकात पर आ के फुफ्कार रही थी.
उर्मिला देवी ने एक बार अपनी नाइटी के उपर से ही अपनी चूत को दबाया और ��ुजली करते हुए बोली "इसस्स्स्स्सस्स बड़ा हथियार है तेरा, देख के तो और खुजली बढ़ गई"
munna जो की थोड़ा बहुत शर्मा रहा था बोला "खुजली बढ़ गई तो पॅंटी उतार लो ना मामी, वो काम तो करती नही हो, पर अंडरवेर बेकार में उतरवा दिया"
"अभी उतारती हू, फिर तुझे बताउन्गी अपनी खुजली की दवाई, हाई कैसा मूसल जैसा है तेरा" फिर उर्मिला देवी ने अपनी नाइटी के बटन खोलने शुरू कर दिए. नाइटी को बड़े आराम से धीरे कर के पूरा उतार दिया. अब उर्मिला देवी के बदन पर केवल एक काले रंग ब्रा और नाइटी के अंदर पहनी हुई पेटिकोट थी. images
गोरी मैदे के जैसा मांसल पेट, उसके बीच गहरी गुलाबी नाभि, दो मोटी मोटी चुचियाँ, जो की ऐसा लग रहा था की ब्रा को फाड़ के अभी निकल जाएगी उनके बीच की गहरी खाई,
ये सब देख कर तो munna एक दम से बेताब हो गया था. लंड फुफ्कार मार रहा था और बार-बार झटके ले रहा था. munna एक दम से पागल हो कर अपने हाथो से अपने लंड को पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा. उर्मिला देवी ने जब उसकी बेताबी देखी तो आगे बढ़ कर खुद अपने हाथो से उसके लंड को पाकर लिया और मुस्कुराती हुई बोली "मैं कहती थी ना की तेरे बस का नही है, तू रह नही पाएगा, अभी तो मैने पूरा खोला भी नही है तू शुरू हो गया" बाहर खूब जोरो की बारिश शुरू हो रही थी. ऐसे मस्ताने मौसम में मामी-भानजे का मस्ताना खेल अब शुरू हो गया था.
ना तो अब उर्मिला देवी रुकने वाली थी ना ही munna. उर्मिला देवी ने munna का हाथ अपने ब्रा में क़ैद चुचियों के उपर रख दिया और बोली "तू ऐसे तो मानेगा नही इधर मैं खोल के दिखाती रहूंगी इधर तू मूठ मारता रहेगा, ले अब खुद ही खोल के देख" munna ने काँपते हुए हाथो से अपनी मामी के ब्रा के स्ट्रॅप खोलने की कोशिश की मगर ब्रा इतनी टाइट थी की खुल नही रही थी. उर्मिला देवी ने हस्ते हुए अपने बदन को थोड़ा ढीला किया खुद अपने हाथो को पीछे ले जा कर अपनी ब्रा के स्ट्रॅप को खोल दिया और हस्ते हुए बोली "ब्रा भी नही खोलना जानता है, चल कोई बात नही मैं तुझे पूरा ट्रेंड कर दूँगी, ले देख अब मेरी नंगी चुचिया जिनको देखने के लिए इतना तरसता था" मामी के कंधो से ब्रा के स्ट्रॅप को उतार कर munna ने जल्दी से ब्रा को एक झटके में निकाल फेंका. उर्मिला देवी हस्ते हुए बोली "बड़ी जल्दी है, आराम से उतार, अब जब बोल दिया है तो दिखा दूँगी तो फिर मैं पीछे नही हटने वाली". मामी के उठे हुए मोटे मोटे मम्मे देख कर munna तो जैसे पागल ही हो गया था. एक टक घूर घूर कर देख रहा था उनकी मलाई जैसे चुचो को. एक दम बेल के जैसी ठोस और गुदाज चुचिया थी. निपल भी काफ़ी मोटे मोटे और और हल्का गुलबीपन लिए हुए थे उनके चारो तरफ छ्होटे छ्होटे दाने थे.
मामी ने जब munna को अपने चुचियों को घूरते हुए देखा तो munna का हाथ पकड़ कर अपनी चुचियों पर रख दिया और और मुस्कुराती हुई बोली "कैसा लग रहा है, पहली बार देखी है ना"
"हा मामी पहली बार देखी है, बहुउउउउउत खूबसूरत है" munna को लग रहा था जैसे की उसका लंड में से कुच्छ निकल जाएगा. लंड एक दम से अकड़ कर उप डाउन हो रहा था और सुपरा तो एक दम पहाड़ी ��लू के जैसा लाल हो गया था.
"देख तेरा औज़ार कैसे फनफना रहा है, थोड़ी देर और देखेगा तो फट जाएगा"
"ही मामी फट जाने दो, थोड़ा सा और पॅंटी खोल के भीईइ............"
इस पर उर्मिला देवी ने उसके लंड को अपनी मुठ्ठी में थाम लिया और दबाती हुई बोली "अभी तो ये हाल है पॅंटी खोल दिया तो क्या होगा"
"हाई मामी ज़रा सा बस खोल के.......", इस पर उर्मिला देवी ने उसक�� लंड को अपनी मुठ्ठी में और कस के दबोच लिया और उपर नीचे करने लगी. लंड के सुपाडे से चमड़ी पूरी तरह से हट जाती थी और फिर जब मुठ्ठी उपर होती तो चमड़ी फिर से ढक जाती थी. इतनी ज़ोर से तो मुन्ना ने भी कभी अपने हाथो से मूठ नही मारी जितनी ज़ोर से आज मामी मूठ मार रही थी. सनसनी के कारण munna की गांद फट रही थी. उसकी समझ में नही आ रहा था की क्या करे. सब कुच्छ भूल कर सिसकारी लेते हुए मामी के हाथो से मूठ मराई का मज़ा लूट रहा था. लंड तो पहले से ही पके आम के तरह से हो रखा था. दो चार हाथ मरने की ज़रूरत थी, फट से पानी फेंक देता मगर कयामत तो तब हो गयी जब उर्मिला देवी ने आगे झुक कर लंड को अपने मुँह में ले लिया. अपने पतले गुलाबी होंठो के बीच लंड को दबोच कर जैसे पीपे से पानी चूस कर निकालते हैं वैसे ही कस के जो चुसाइ शुरू की तो आँखे बंद होने लगी, गला सुख गया ऐसा लगा जैसे शरीर का सारा खून सिमट कर लंड में भर गया है और मामी उसको चूस लेना चाहती है. मज़े के कारण आँखें नही खुल रही थी. मुँह से केवल गोगियाने हुई आवाज़ में बोलता जा रहा था "हाई चूस लो चूस लो ओह मामी चूस लो............."
तभी उर्मिला देवी ने चूसना बंद कर अपने होंठो को लंड पर से हटा लिया और फिर से अपने हाथो से मूठ मारते हुए बोली "अब देख तेरा कैसे फल फला के निकलेगा जब तू मेरी पॅंटी की सहेली को देखेगा" चुसाइ बंद होने से मज़ा थोड़ा कम हुआ तो munna ने भी अपनी आँखे खोल दी. मामी ने एक हाथ से मूठ मारते हुए दूसरे हाथ से अपने पेटिकोट को पूरा पेट तक उपर उठा दिया और अपनी जाँघो को खोल कर पॅंटी के किनारे (मयनि) को पकड़ एक तरफ सरका कर अपनी चूत के दर्शन कराए तो images
munna के लंड ने भल-भला कर पानी छोड़ना शुरू कर दिया. munna के मुँह से एकदम से आनंद भरी ज़ोर की सिसकारी निकली और आँखे बंद होने लगी और "ओह मामी ओह मामी" करता हुआ अपने लंड का पानी छोड़ने लगा. उर्मिला देवी ने उसके झाड़ते लंड का सारा माल अपने हाथो में लिया और फिर बगल में रखे टॉवेल में पोछ्ति हुई बोली "देखा मैं कहती थी ना कि देखते ही तेरा निकल जाएगा". munna अब एक दम सुस्त हो गया था. इतने जबरदस्त तरीके से वो आजतक नही झाड़ा था. उर्मिला देवी ने उसके गालो को चुटकी में भर कर मसल्ते हुए एक हाथ से उसके ढीले लंड को फिर से मसला. munna अपनी मामी को हसरत भारी निगाहो से देख रहा थ.
उर्मिला देवी munna की आँखो में झाँकते हुए वही पर कोहनी के बल munna के बगल में अढ़लेटी सी बैठ कर अपने दूसरे हाथ से munna के ढीले लंड को अपनी मुट्ठी में उसके आंडो समेत कस कर दबाया और बोली "मज़ा आया.....". munna के चेहरे पर एक थकान भरी मुस्कुराहट फैल गई. पर मुस्कुराहट में हसरत भी थी और चाहत भी थी.
"मज़ा आया" उर्मिला देवी ने पुछा.
"हाँ मामी बहुत………"
"पहले हाथ से करता था"
"कभी कभी"
"इतना मज़ा आया कभी"
"नही मामी इतना मज़ा कभी नही आया,….."
मामी ने munna के लंड ज़ोर से दबोच कर उसके गालो पर अपना दाँत गढ़ाते हुए एक हल्की सी पुच्चि ली और अपनी टाँगो को उसकी टाँगो पर चढ़ा कर रगड़ते हुए बोली
"पूरा मज़ा लेगा". munna थोड़ा सा शरमाते हुए बोला "हाँ मामी, हा". उर्मिला देवी की गोरी चिकनी टाँगे munna के पैरो से रगड़ खा रही थी. उर्मिला देवी का पेटिकोट अब जाँघो से उपर तक चढ़ चुका था.
"जानता है पूरे मज़े का मतलब!" munna ने थोड़ा सकुचाते हुए अपनी गर्दन हा में हिला दी. इस पर उर्मिला देवी ने अपनी नंगी गदराई जाँघो से munna के लंड को मसल्ते हुए उसके गालो पर फिर से अपने दाँत गढ़ा दिए और हल्की सी एक प्यार भरी चपत लगाते हुए बोली "मुझे पहले से ही शक़ था, तू हमेशा घूरता रहता था".फिर जब तूने बताया था कितू सेक्सीकहानियाँ पढ़ता है तो मुझे पूरा यकीन हो गया फिर प्यार से उसके होंठो को चूम लिया और उसके लंड को दबोचा. munna को थोड़ा सा दर्द हुआ. मामी के हाथ को अपनी हथेली से रोक कर सिसकते हुए बोला "हाई मामी. munna को ये मीठा दर्द सुहाना लग रहा था. वो सारी दुनिया भूल चुक्का था. उसके दोनो हाथ अपने आप मामी के पीठ से लग गये और उसने उर्मिला देवी को अपनी बाँहो में भर लिया. मामी की दोनो बड़ी बड़ी चुचियाँ अब उसकी छाती से लग कर चिपकी हुई थी.
उर्मिला देवी ने फिर से राजू के होंठो को अपने होंठो में भर लिया और अपनी जीभ को उसके मुँह में डाल कर घूमाते हुए दोनो एक दूसरे को चूमने लगे. औरत के होंठो का ये पहला स्पर्श जहा munna को मीठे रसगुले से भी ज़यादा मीठा लग रहा था वही उर्मिला देवी एक नौजवान कमसिन लंड के होंठो का रस पी कर अपने होश खो बैठी थी. उर्मिला देवी ने munna के लंड को अपने हथेलियो में भर कर फिर से मसलना शुरू कर दिया. कुच्छ ही देर में मुरझाए लंड में जान आ गई. दोनो के होंठ जब एक दूसरे से अलग हुए तो दोनो हाँफ रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे मिलो लंबी रेस लगा कर आए है. अलग हट कर munna के चेहरे को देखते हुए उर्मिला देवी ने munna के हाथ को पकड़ कर अपने चुचियों पर रखा और कहा "अब तू मज़ा लेने लायक हो गया है" फिर उसके हाथो को अपने चुचियों पर दबाया. munna इशारा समझ गया.उसने उर्मिला देवी के चुचियों को हल्के हल्के दबाना शुरू कर दिया. उर्मिला देवी ने भी मुस्कुराते हुए उसके munna के लेंड को अपने कोमल हाथो में थाम लिया और हल्के हल्के सहलाने लगी. आज मोटे और दस इंच के लंड से चुदवाने की उसकी सालो की तमन्ना पूरी होने वाली थी. उसके लिए सबसे मजेदार बात तो ये थी की लंड एक दम कमसिन उमर का था. जैसे मर्द कमसिन उमर की अनचुदी लरकियों को चोदने की कल्पना से सिहर उठते है शायद उर्मिला जी के साथ भी ऐसा ही हो रहा था, मुन्ना बाबू के लंड को मसालते हुए उनकी चूत पासीज रही थी और इस दस इंच के लंड को अपनी चूत की दीवारो के बीच कसने के लिए बेताब हुई जा रही थी.
munna भी अब समझ चुका था कि आज उसके लंड की सील तो ज़रूर टूट जाएगी. दोनो हाथो से मामी की नंगी चुचियों को पकड़ कर मसल्ते हुए मामी के होंठो और गालो पर बेतहाशा चुम्मिया काटे जा रहा था. th
दोनो मामी भानजे जोश में आकर एक दूसरे से लिपट चिपेट रहे थे. तभी उर्मिला जी munna के लंड को कस कर दबाते हुए अपने होंठ भीच कर munna को उकसाया "ज़रा कस कर". munna ने अपनी हथेलियों में दोनो चुचियों को भर कर ज़ोर से मसल्ते हुए निपल को चुटकी में पकड़ कर आगे की तरफ खीचते हुए जब दबाया तो उर्मिला देवी के मुँह से आह निकल गई. दर्द और मज़ा दोनो ही जब एक साथ मिला तो मुँह से सिसकारियाँ फूटने लगी. पैर की एडियो से बिस्तर को रगड़ते हुए अपने चूतरो को हवा में उच्छालने लगी. munna ने मामी को मस्ती में आते हुए देख और ज़ोर से चुचियों को मसला और अपने दाँत गाल पर गढ़ा दिए. उर्मिला देवी एक्दुम से तिलमिला गई और munna के लंड को कस कर मरोड़ दिया "उईईईईईई माआआआआआ सीईई धीरे से……". लंड के ज़ोर से मसले जाने के कारण munna एक दम से दर्द से तड़प गया पर उसने चुचियों को मसलना जारी रखा और मामी की पप्पियाँ लेते हुए बोला "अभी तो बोल रही थी ज़ोर से और अभी चिल्ला रही हो……..ओह मामी". तभी उर्मिला देवी ने munna के सिर को पकड़ा और उसे अपनी चुचियों पर खींच लिया और अपनी बाई चुचि के निपल को उसके मुँह से सटा दिया और बोली "इतनी सारी सेक्सीकहानियाँ पढ़ कर क्या खाली चुचि दबाना ही सीखा है, चूसना नही सिखाया क्या उसमे. munna ने चुचि के निपल को अपने होंठो के बीच कस लिया. थोड़ी देर तक निपल चुसवाने के बाद मामी ने अपनी चुचि को अपने हाथो से पकड़ कर munna के मुँह में ठेला, munna का मुँह अपने आप खुलता चला गया और निपल के साथ जितनी चुचि उसके मुँह में समा सकती थी उतनी चुचि को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा. दूसरे हाथ से दूसरी चुचि को मसल्ते हुए munna अपनी मामी के मुममे चूस रहा था.
कभी कभी munna के दाँत भी उसकी मुम्मो पर गढ़ जाते, पर उर्मिला देवी को यही तो चाहिए था-----एक नौजवान जोश से भरा लौंडा जो उसको नोचे खसोटे और एक जंगली जानवर की तरह उसको चोद कर जवानी का जोश भर दे. चुचि चूसने के तरीके से उर्मिला देवी को पता चल गया था कि लौंडा अभी अनाड़ी है पर अनाड़ी को खिलाड़ी तो उसे ही बनाना था. एक बार लौंडा जब खिलाड़ी बन जाता तो फिर उसकी चूत की चाँदी थी. munna के सिर के बालो पर हाथ फेरती हुई बोली "………धीरे धीरे चुचि चूस और निपल को रब्बर की तरह से मत खीच आराम से होंठो के बीच दबा के धीरे-धीरे जीभ की मदद से चुँला और देख ये जो निपल के चारो तरफ काला गोल घेरा बना हुआ है ना, उस पर और उसके चारो तरफ अपनी जीभ घूमाते हुए चूसेगा तो मज़ा आएगा". munnaने मामी के चुचि को अपने मुँह से निकाल
"हा इसी तरह से जीभ को चोरो तरफ घूमाते हुए, धीरे धीरे". चुदाई की ये कोचैंग आगे जा कर munna के बहुत काम आने वाली थी जिसका पता दोनो में से किसी को नही था. जीभ को चुचि पर बड़े आराम से धीरे धीरे चला रहा था निपल के चारो तरफ के काले घेरे पर भी जीभ फिरा रहा था. बीच बीच में दोनो चुचि को पूरा का पूरा मुँह में भर कर भी चूस लेता था. उर्मिला देवी को बड़ा मज़ा आ रहा था और उसके मुँह से सिसकारिया फूटने लगी थी "ऊऊउउउईई....आअहह... ..सस्स्सिईईई... .राजू बेटा... ......आहह..... ऐसे ही मेरे राजा,,,,,,,,,,सीईईईईईईईईईई एक बार में ही सीख गया, हाई मज़ा आ रहा है" images
"हाई मामी, बहुत मज़ा है, ओह मामी आपकी चुचि……..सीईई कितनी खूबसूरत, हमेशा सोचता था कैसी होगी आज……
"उफफफ्फ़ सस्स्स्स्स्स्स्सिईईईईई……., आअराआअम से आराम से, उफ्फ साले खा जा तेरी मा का भेजा हुआ लंगड़ा आम है भोसड़ी के…….चूस के सारा रस पी जा ".
मामी की गद्देदार मांसल चुचियों को munna, सच में शायद लंगड़ा आम समझ रहा था. कभी बाई चुचि मुँह में भरता तो कभी ढहिनी चुचि को मुँह में दबा लेता. कभी दोनो को अपनी मुट्ही में कसते हुए बीच वाली घाटी में पुच...प्यूच करते हुए चुममे लेता, कभी उर्मिला देवी की गोरी सुरहिदार गर्दन को चूमता.
बहुत दीनो के बाद उर्मिला देवी की चुचियों को किसी ने इस तरह से माथा था. उसके मुँह से लगातार सिसकारियाँ निकल रही थी, आहे निकल रही थी, चूत पनिया कर पसिज रही थी और अपनी उत्तेजना पर काबू करने के लिए वो बार-बार अपनी जाँघो को भीच ��ीच कर पैरो को बिस्तेर पर रगड़ते हुए हाथ पैर फेंक रही थी. दोनो चुचिया ऐसे मसले जाने और चूसे जाने के कारण लाल हो गई थी. चुचि चूस्ते-चूस्ते राजू नीचे बढ़ गया था और मामी के गुदाज पेट पर अपने प्यार का इज़हार करते हुए पुच्चिया काट रहा था. उर्मिला देवी की चूत एक दम गीली हो कर चुहने लगी. भगनासा खड़ा होकर लाल हो गया था. इतनी देर से munna के साथ खिलवाड़ करने के कारण धीरे-धीरे जो उत्तेजना का तूफान उसके अंदर जमा हुआ था वो अब बाहर निकलने के लिए बेताब हो उठा था. एकद्ूम से बेचैन होकर सीस्याते हुए बोली "कितना दूध पिएगा मुए, उई…सीईई…..साले, चुचि देख के चुचि में ही खो गया, इसी में छोड़ेगा क्या भोसड़ी के". munna मामी के होंठो को चूम कर बोला "ओह मामी बहुत मज़ा आ रहा है सच में, मैने कभी सोचा भी नही था, , मामी आपकी चूची को चोद दू……" उर्मिला देवी ने एक झापड़ उसके चूतर पर मारा और उसके गाल पर दाँत गढ़ाते हुए बोली "साले अबी तक चुचि पर ही अटका हुआ है". munna बिस्तर पर उठ कर बैठ गया और एक हाथ में अपने तमतमाए हुए लंड को पकड़ उसकी चमड़ी को खींच कर पहाड़ी आलू के जैसे लाल-लाल सुपरे को मामी की चुचियों पर रगड़ने लगा. उत्तेजना के मारे munna का बुरा हाल हो चुक्का था, उसे कुच्छ भी समझ में नही लग रहा था. खेलने के लिए मिले इस नये खिलौने के साथ वो जी भर के खेल लेना चाहता था. लंड का सुपरा रगड़ते हुए उसके मुँह से मज़े की सिसकारिया फुट रही थी "ओह मामी, सस्स्स्स्स्सीईई मज़ा आ गया मामी, सस्स्स्सीईई और लो मामी.
उर्मिला देवी की चूत में तो आग लगी हुई थी उन्होने झट से munna को धकेलते हुए बिस्तर पर पटक दिया और उसके उपर चढ़ कर अपने पेटिकोट को उपर किया एक हाथ से लंड को पकड़ा और अपनी पनियाई हुई चूत के गुलाबी छेद पर लगा कर बैठ गई. गीली चूत ने सटाक से munna के पहाड़ी आलू जैसे सुपरे को निगल लिया. munna का क्यों की ये पहली बार था इसलिए जैसे ही सुपरे पर से चमड़ी खिसक कर नीचे गई munna थोड़ा सा चिहुनक गया.
"ओह मामी,"
"पहली बार है ना, सुपरे की चमड़ी नीचे जाने से………" और अपनी गांद उठा कर कचक से एक जोरदार धक्का मारा. गीली चूत ने झट से पूरे लंड को निगल लिया. पूरा लंड अपनी चूत में लेकर, पेटिकोट को कमर के पास समेट कर खोस लिया और चूतर उठा कर दो तीन और धक्के लगा दिए. munna की समझ में खुच्छ नही आ रहा था. बस इतना लग रहा था जैसे उसके लंड को किसी ने गरम भट्टी में डाल दिया है. गर्दन उठा कर उसने देखने की कोशिश की. मामी ने अपने चूतर को पूरा उपर उठाया, चूत के रस से चमचमता हुआ लंड बाहर निकला, फिर तेज़ी के साथ मामी के गांद नीचे करते ही fhuli hui chut में समा गया.
"सीईए मामी आप ने तो अपनी नीचे वाली ठीक से देखने भी नही………."
"बाद में……अभी तो नीचे आग लगी है"
"हाई मामी…………दिखा देती तूऊऊऊऊ"
"अभी मज़ा आ रहा है……"
"हाँ, हा आ रहा हाईईईईईईईई……."
"तो फिर मज़ा लूट ना भोसड़ी के, देख के अचार डालेगा…………"
"उफ्फ मामी…………..सीईई ओह आपकी नीचे वाली तो एकद्ूम गरम………."
"हा………बहुत गर्मी है इसमे, अभी इसकी सारी गर्मी निकाल दे फिर बाद में……भट्टी देखना…….अभी बहुत खुजली हो रही थी, ऐसे ही चुदाई होती है समझा, पूरा मज़ा इसी को सीईए……….जब चूत में लंड अंदर बाहर होता है तभी……….हाई पहली चुदाई है ना तेरीईईईईई"
"हा मामी………ही सीईईईई"
"क्यों क्या हुआ……….सस्स्स्सीईईई"
"ऐसा लग रहा है जैसे उफफफफफफ्फ़………जैसे ही आप नीचे आती है एकद्ूम से मेरे लंड की चमड़ी नीचे उतर जाती है…………..उफफफफफफफ्फ़ माआआमीईईईई बहुत गुदगुदी हो रही है"
"तेरा बहुत मोटा है ना………इसलिए मेरी में एकदम चिपक कर जा रहा है……"
इतना कह कर उर्मिला देवी ने कचक-कचक धक्के लगाना शुरू कर दिया. चूत में लंड ऐसे फिट हो गया था जैसे बॉटल में कॉर्क. उर्मिला देवी की चूत जो की चुद चुद के भोसड़ी हो गई थी, आज 10 इंच मोटे लंड को खा कर अन्चुदी चूत बनी हुई थी और इठला कर, इतरा कर पानी छोड़ रही थी. लंड चूत की दीवारो से एकद्ूम चिपक कर रगड़ता हुआ पूरा अंदर तक घुस जाता था और फिर उसी तरह से चूत की दीवारो को रगड़ते हुए सुपरे तक सटाक से निकल कर फिर से घुसने के लिए तैय्यार हो जाता था. चूत के पानी छोड़ने के कारण लंड अब सटा-सॅट अंदर बाहर हो रहा था. munna ने गर्दन उठा कर अपनेलंड देखने की कोशिश की मगर उर्मिला देवी के धक्को की रफ़्तार इतनी तेज और झटकेदार थी की उसकी गर्दन फिर से तकिये पर गिर गई. उर्मिला देवी के मुँह से तेज तेज सिसकारियाँ निकल रही थी और वो गांद उठा उठा के तेज-तेज झटके मार रही थी. लंड सीधा उसकी बछेदानि पर ठोकर मार रहा था और बार बार बस उसके मुँह से चीख निकल जाती थी. आज उसको बहुत दीनो के बाद ऐसा अनोखा मज़ा आ रहा था. दोनो मामी भांजा कुतिया कुत्ते की तरह से हाँफ रहे थे और कमरे में गछ-गछ, फॅक-फॅक की आवाज़ गूँज रही थी.
"ऑश……सस्स्स्सीईई……munna बहुत मस्त लंड है तेरा तो हाई…….उफफफफफफफफफ्फ़"
"हा……..मामी…….बहुत मज़ा आ रहा है……….चुचीईईईई"
"हा, हा दबा ना, चुचि दबा…………बहुत दीनो के बाद ऐसा मज़ा आ रहा है…"
"सच माआमी……आअज तो आपने स्वर्ग में पहुचा दिया………"
"हाई तेरे इस घोड़े जैसे लंड ने तो…….आआअजजजज मेरी बार्षो की प्यास भुजाआअ…"
कच-कच, करता हुआ लंड, चूत में तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था. उर्मिला देवी की मोटी-मोटी गांद राजू क��� लंड पर तेज़ी से उच्छल कूद कर रही थी. मस्तानी मामी की दोनो चुचिया राजू के हाथो में थी, और उनको अपने दोनो हाथो के बीच दबा कर मठ रहा था.
"ओह हो ऱजुउउउउउउउउ बेटॅयायेयीययाया…….मेरा निकलेगा अब सस्स्स्स्स्स्सीईई ही निकल जाएगा…………ऊऊऊऊगगगगगगगगगग………(फॅक-फॅक-फॅक) …….सीईई ही रीईईईईई कहा था त्त्त्त्त्त्त्त्तुउउउउउउ……मज़ा आआआअ गयाआआआ रीईई, गई मैं ……हाई आआआआअज तो चूत फाड़ के पानी निकल दियाआआआ तुनीई…उफफफफ्फ़"
"हाई मामी और तेज मारो….मारो और तेज……और ज़ोर सीईई, उफफफफफ्फ़ बतूत गुद्गुदीईइ हूऊऊओ……."
तभी उर्मिला देवी एक ज़ोर की चीख मारते हुए……सीईईई करते हुए munna के उपर ढेर हो गई. उसकी चूत ने फॉल्फला कर पानी छोड़ दिया. चूत की छेद पकड़ते हुए लंड को कभी अपनी गिरफ़्त में कस रही थी कभी छोड़ रही थी. munna भी सयद झरने के करीब था मगर उर्मिला देवी के रुकने के कारण चुदाई रुक गई थी और वो बस कसमसा कर रह गया. उर्मिला देवी के भारी शरीर को अपनी बाँहो में जकड़े हुए नीचे से हल्के हल्के गांद उठा उठा कर अपने आप को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहा था. मगर कहते है की थूक चाटने से प्यास नही भुजती. munna का लंड ऐसे तो झरने वाला नही था. हा अगर वो खुद उपर चढ़ कर चार पाँच धक्के भी ज़ोर से लगा देता तो सयद उसका पानी भी निकल जाता. पर ये तो उसकी पहली चुदाई थी, उसे ना तो इस बात का पता था ना ही उर्मिला देवी ने ऐसा किया. लंड चूत के अंदर ही फूल कर और मोटा हो गया था. दीवारो से और ज़यादा कस गया था. धीरे धीरे जब मामी की साँसे स्थिर हुई तब वो फिर से उठ कर बैठ गई और munna के बालो में हाथ फेरते हुए उसके होंठो से अपने होंठो को सटा कर एक गहरा चुंबन लिया.
"हाई,………..मामी रुक क्यों गई……..और धक्का लगाओ ना…….."
"मुझे पता है…….तेरा अभी निकला नही………..मेरी तो इतने दीनो से पयासी थी…….ठहर ही नही पाई…………." कहते हुए उर्मिला देवी थोड़ा सा उपर उठ गई. पक की आवाज़ करते हुए munna का मोटा लंड उर्मिला देवी की बित्ते भर की चूत से बाहर निकल गया. उर्मिला देवी जो की अभी भी पेटिकोट पहने हुई थी ने पेटिकोट को चूत के उपर दबा दिया. उसकी चूत पानी छोड़ रही थी और पेटिकोट को चूत के उपर दबाते हुए उसके उपर कपड़े को हल्के से रगड़ते हुए पानी पोछ रही थी. अपनी दाहिनी जाँघ को उठाते हुए munna की कमर के उपर से वो उतर गई और धडाम से बिस्तर पर अपनी दोनो जाँघो को फैला कर तकिये पर सर रख कर लेट गई. पेटिकोट तो पूरी तरह से उपर था ही, उसका बस तोड़ा सा भाग उसकी fhuli hui चूत को ढके हुए था. वो अब झड़ने के बाद सुस्त हो गई थी. आँखे बंद थी और साँसे अब धीरे धीरे स्थिर हो रही थी.
munna अपनी मामी के बगल में लेटा हुआ उसको देख रहा था. उसका लंड एक दम सीधा तना हुआ छत की ओर देख रहा था. लंड की नसे फूल गई थी और सुपरा एक दम लाल हो गया था. munna बस दो चार धक्को का ही मेमहमान था लेकिन ठीक उसी समय मामी ने उसके लंड को अपनी चूत से बेदखल कर दिया था. झरने की कगार पर होने के कारण लंड फुफ्कार रहा था मगर मामी तो अपना झाड़ कर उसकी बगल में लेटी थी.
गाँव का राजा पार्ट -6 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
सुबह से तरह तरह के आग भड़काने वाले करम करने के कारण उर्मिला देवी बहुत ज़यादा चुदास से भरी हुई थी munna का मोटा लंड अपनी चूत में लेकर झर गई पर munna का लंड तो एक बार चूस कर झार चुकी थी इसलिए नही झारा. उर्मिला देवी अगर चाहती तो चार पाँच धक्के और मार कर झार देती मगर उसने ऐसा नही किया. क्योंकि वो munna को तड़पाना चाहती थी वो चाहती थी की munna उसका गुलाम बन जाए. जब उसकी मर्ज़ी करे तब वो munna से चुडवाए अपनी गांद चटवाए मगर जब उसका दिल करे तो वो munna की गांद पे लात मार सके और वो उसकी चूत के चक्कर में उसके तलवे चाटे लंड हाथ में ले कर उसकी गांद के पिछे घूमे.
उर्मिला देवी की आँखे बंद थी और सांसो के साथ धीरे धीरे उसकी ��ंगी चुचिया उपर की ओर उभर जाती थी. गोरी चुचियों का रंग हल्का लाल हो गया था. निपल अभी भी खड़े और गहरे काले रंग के भूरे थे, सयद उनमे खून भर गया था, munna ने उनको खूब चूसा जो था. मामी की गोरी चिकनी मांसल पेट और उसके बीच की गहरी नाभि…….
का बस चलता तो लंड उसी में पेल देता. बीच में पेटिकोट था और उसके बाद मामी की कन्द्लि के खंभे जैसी जंघे और घुटना और मोटी पिंदलियाँ और पैर. मामी की आँखे बंद थी इसलिए munna अपनी आँखे फाड़ फाड़ कर देख सकता था. वो अपनी मामी के मसताने रूप को अपनी आँखो से ही पी जाना चाहता था, munna अपने हाथो से मामी की मोटी मोटी जाँघो को सहलाने लगा. उसके मन में आ रहा था कि इन मोटी-मोटी जाँघो पर अपना लंड रगड़ दे और हल्के हल्के काट काट कर इन जाँघो को खा जाए. ये सब तो उसने नही किया मगर अपनी जीभ निकाल कर चूमते हुए जाँघो को चाटना ज़रूर शुरू कर दिया. बारी-बारी से दोनो जाँघो को चाट ते हुए मामी के रानो की ओर बढ़ गया. उर्मिला देवी ने एक पैर घुटनो के पास मोड़ रखा था और दूसरा पैर पसार रखा था. ठीक जाँघो के जोड़ के पास पहुच कर हल्के हल्के चाटने लगा और एक हाथ से धीरे से पेटिकोट का चूत के उपर रखा कपड़ा हल्के से उठा कर चूत देखने की कोशिश करने लगा.
तभी उर्मिला देवी की आँखे खूल गई. देखा तो munnaउसकी चूत के पास झुका हुआ आँखे फाड़ कर देख रहा है. उर्मिला देवी के होंठो पर एक मुस्कान फैल गई और उन्होने अपनी दूसरी टाँग को भी सीधा फैला दिया. मामी के बदन में हरकत देख कर munna ने अपना गर्दन उपर उठाई. मामी से नज़र मिलते ही munna झेंप गया. उर्मिला देवी ने बुरा सा मुँह बना कर नींद से जागने का नाटक किया "उऊहह उः क्या कर रहा है" फिर अपने दोनो पैरो को घुटने के पास से मोड़ कर पेटिकोट के कपड़े को समेत कर जाँघो के बीच रख दिया और गर्दन के पिछे तकिया लगा कर अपने आप को उपर उठा लिया और एकद्ूम बुरा सा मुँह बनाते हुए बोली "तेरा काम हुआ नही क्या………नींद से जगा दिया……सो जा". munna अब उसके एकद्ूम सामने बैठा हुआ था. उर्मिला देवी की पूरी टांग रानो तक नंगी थी. केवल पेटिकोट समेट कर रानो के बीच में चूत को ढक रखा था.
munna की समझ में नही आया की मामी क्या बोल रही है. वो घिघ्याते हुए बोला "मामी……वो……मैं बस ज़रा सा देखना……"
"हा क्या देखना………चूत….?
"हा हा मामी वही……."
उर्मिला देवी मुँह बिचकाते हुए बोली "क्या करेगा……झांट गिनेगा…"
munna चौंक गया, हार्बराहट में मुँह से निकल गया "जी. जी मामी……."
"हरामी…….झांट गिनेगा"
"ओह नही मामी……..प्लीज़ बस देखने है………अच्छी तरह से…"
चूत पर रखे पेटिकोट के कपड़े को एक बार अपने हाथ से उठा कर फिर से नीचे रखा जैसे वो उसे अच्छी तरह से ढक रही हो और बोली "पागल हो गया है क्या……..जा सो जा". उर्मिला देवी के कपड़ा उठाने से चूत की झांतो की एक झलक मिली तो राजू का लंड सिहर उठा, खड़ा तो था ही. उर्मिला देवी ने सामने बैठे munna के लंड को अपने पैर के पंजो से हल्की सी ठोकर मारी.
"बहनचोड़………खड़ा कर के रखा है..." munna ने अपना हाथ उर्मिला देवी के जाँघो पर धीरे से रख दिया और जाँघो को हल्के हल्के दबाने लगा जैसे कोई चमचा अपना कोई काम निकलवाने के लिए किसी नेता के पैर दबाता है और बोला "ओह मामी………बस एक बार अच्छे से दिखा दो……सो जाउन्गा फिर.." उर्मिला देवी ने munna का हाथ जाँघो पर से झटक दिया और झिरकते हुए बोली "छोड़…..हाथ से कर ले…….खड़ा है इसलिए तेरा मन कर रहा……निकाल लेगा तो आराम से नींद आ जाएगी…….कल दिखा दूँगी"
"हाई नही मामी……..अभी दिखा दो ना"
"नही मेरा मन नही…….ला हाथ से कर देती हू"
"ओह मामी…..हाथ से ही कर देना पर……..दिखा तो दो….." अब उर्मिला देवी ने गुस्सा होने का नाटक किया.
"भाग भोसड़ी के……..रट लगा रखी है दिखा दो…दिखा दो….
"हाई मामी मेरे लिए तो…… प्लीज़……" अपने पैर पर से उसके हाथो को हटाते हुए बोली
"चल छोड़ बाथरूम जाने दे"
munna ने अभी भी उसके जाँघो पर अपना एक हाथ रखा हुआ था. उसकी समझ में नही आ रहा था की क्या करे. तभी उर्मिला देवी ने जो सवाल उस से किया उसने उसका दिमाग़ घुमा दिया.
"कभी किसी औरत को पेशाब करते हुए देखा है……."
"क क क्क्या मामी…."
"चूतिया एक बार में नही सुनता क्या……..पेशाब करते हुए देखा है……किसी औरत को……."
"न न्न्नाही मामी……अभी तक तो चूत ही नही…..तो पेशाब करते हुए कहा से……"
"ओह हा मैं तो भूल ही गई थी…..तूने तो अभी तक……चल ठीक है….इधर आ जाँघो के बीच में…..उधर कहा जा रहा है…" munna को दोनो जाँघो के बीच में बुला मामी ने अपने पेटिकोट को अब पूरा उपर उठा दिया, गांद उठा कर उसके नीचे से भी पेटिकोट के कपड़े को हटा दिया अब उर्मिला देवी पूरी नंगी हो चुकी थी. उसकी चौड़ी चकली saved चूत munna की आँखो के सामने थी. अपनी गोरी रानो को फैला कर अपनी बित्ते भर की चूत की दोनो फांको को अपने हाथो से फैलाती हुई बोली "चल देख …"
munna की आँखो में भूके कुत्ते के जैसी चमक आ गई थी. वो आँखे फाड़ कर उर्मिला देवी की खूबसूरत डबल रोटी के जैसी फूली हुई चूत को देख रहा था.
"देख ये चूत की फांके है और उपर वाला छ्होटा छेद पेशाब वाला और नीचे वाला बड़ा छेद चुदाई वाला………यही पर थोड़ी देर पहले तेरा लंड…….
"ओह मामी कितनी सुंदर चूत है……एकद्ूम गद्देदार फूली हुई.."
"देख ये गुलाबी वाला बड़ा छेद…..इसी में लंड…..ठहर जा हाथ मत लगा…."
"ओह बस ज़रा सा च्छू कर……."
"बहनचोड़…अभी बोल रहा था दिखा दो…..दिखा दो और अब छुना है…." कहते हुए उर्मिला देवी ने राजू के हाथो को परे धकेला. munna ने फिर से हाथ आगे बढ़ते हुए चूत पर रख दिया और बोला "ओह मामी प्लीज़ ऐसा मत करो….अब नही रहा जा रहा प्लीज़…….." उर्मिला देवी ने इस बार उसका हाथ तो नही हटाया मगर उठ कर सीधा बैठ गई और बोली "ना….रहने दे, छोड़ तू आगे बढ़ता जा रहा है…..वैसे भी मुझे पेशाब लगी"
"उफफफफफफ्फ़ मामी बस थोड़ा सा……."
"थोड़ा सा क्या……मुझे बहुत ज़ोर पेशाब लगी है……"
"वो नही मामी मैं तो बस थोड़ा छु कर……."
"ठीक है चल छु ले….पर एक बात बता चूत देख कर तेरा मन चाटने का नही करता…….."
"चाटने का…….."
"हा चूत चाटने का………देख कैसी पनिया गई है…..देख गुलाबी वाले छेद को…..ठहर जा पूरा फैला कर दिखाती हू…….देख अंदर कैसा पानी लगा है…इसको चाटने में बहुत मज़ा आता है……….चाटेगा…..चल आ जा.." और बिना कुच्छ पुच्छे उर्मिला देवी ने munna के सिर को बालो से पकड़ कर अपनी चूत पर झुका दिया. munna भी सेक्सी कहानियों को पढ़ कर जानता तो था ही कि चूत छाती और चूसी जाती है और इनकार करने का मतलब नही था क्या पता मामी फिर इरादा बदल दे इसलिए चुपचाप मामी के दोनो रानो पर अपने हाथो को जमा कर अपना जीभ निकाल कर चूत के गुलाबी होंठो को चाटने लगा. उर्मिला देवी उसको बता रही थी की कैसे चाटना है
"हा पूरी चूत पर उपर से नीचे तक जीभ फिरा के चाट…..हा ऐसे ही सस्स्स्स्स्स्स्सीईई ठीक इसी तरह से हाआअ उपर जो दाना जैसा दिख रहा है ना चूत की भग्नाशा है……..उसको अपनी जीभ से रगड़ते हुए हल्के हल्के चाट……सीईई शाबाश……बहनचोड़ टीट को मुँह में लीईए". munna ने चूत के भग्नाशे को अपने होंठो के बीच ले लिया और चूसने लगा. उर्मिला देवी की चूतकी टीट चूसा वह मस्त हो कर पानी छोड़ने लगी. पहली बार चूत चाटने को मिली थी तो पूरा जोश दिखा रहा था. जंगली कुत्ते की तरह लफ़र लफ़र करता हुआ अपनी खुरदरी जीभ से मामी की चूत को घायल करते हुए चाटे जा रहा था. चूत की गुलाबी पंखुरियों पर खुरदरी जीभ का हर प्रहार उर्मिला देवी को अच्छा लग रहा था. वो अपने बदन के हर अंग को रगड़वाना चाहती थी, चाहती थी कि munna पूरी चूत को मुँह में भर ले और स्लूर्र्ररर्प स्लूर्र्रप करते हुए चूसे. munna के सिर को अपने चूत पर और कस के दबा कर सिस्याईीई "ठीक से चूस…..munna बेटा……पूरा मुँह में ले कर………हा ऐसे ही…….सीईई मदारचोद्द्द्दद्ड….बहुत मज़ा दे रहा है………आआआआहााअ……सही चूस रहा है कुत्तीईई हाआअ ऐसे ही चूऊवस………..आआआअसस्स्स्सीई"
munna भी पूरा ठर्की था. इतनी देर में समझ गया था कि उसकी मामी एक नंबर की चुदैल रंडी मदर्चोद किस्म की औरत है. साली छिनाल चूत देगी मगर तडपा तडपा कर. वैसे उसको भी मज़ा आ रहा था ऐसे नाटक करने में. उसने चूत के दोनो फांको को अपने उंगलियों से फैला कर पूरा चौड़ा दिया और जीभ को नुकीला कर के गुलाबी छेद में डाल कर घुमाने लगा. चूत एकद्ूम पासीज कर पानी छोड़ रही थी. नुकीली जीभ को चूत के गुलाबी छेद में डाल कर घुमाते हुए चूत की दीवारो से रिस रहे पानी को चाटने लगा. उर्मिला देवी मस्त हो गांद हवा में लहरा रही थी. अपने दोनो हाथो से चुचियों को दबाते हुए munna के होंठो पर अपनी फुददी को रगड़ते हुए चिल्लाई
"ओह munna…… मेरा बेटेयाआया…….बहुत मज़ा आ रहा है रे…..ऐसे ही चाट…पूरी चूत चाट ले……..तूने तो फिर से चुदास से भर दिया…….हरामी ठीक से पूरा मुँह लगा कर चाट नही तो मुँह में मूत दुन्गीईईइ……..अच्छी तरह से चाट टत्तत्ट……"
ये अब एकद्ूम नये किस्म की धमकी थी. munna एक दम असचर्यचकित रह गया. अजीब कंजरफ, कमिनि औरत थी. munna जहा सोचता अब मामला पटरी पर आ गया है, ठीक उसी समय कुच्छ नया शगूफा छोड़ देती. चूत पर से मुँह हटा दिया और बोला "ओह मामी……..तुमको पेशाब लगी है तो जाओ कर आओ…" चूत से मुँह हटा ते ही उर्मिला देवी का मज़ा किरकिरा हुआ तो उसने munna केबालो को पकड़ लिया और गुस्से से भनभनाते हुई उसको ज़ोर से बिस्तर पर पटक दिया और छाती पर चढ़ कर बोली "चुप मादर्चोद…….अभी चाट ठीक से…….अब तो तेरे मुँह में ही मुतुँगी….पेशाब करने जा रही थी तब क्यों रोका…….."कहते हुए अपनी चूत को munna के मुँह पर रख कर ज़ोर से दबा दिया. इतनी ज़ोर से दबा रही थी की munna को लग रहा था की उसका दम घूट जाएगा. दोनो चूतर के नीचे हाथ लगा कर किसी तरह से उसने चूत के दबाब को अपने मुँह पर से कम किया मगर उर्मिला देवी तो मान ही नही रही थी. चूत फैला कर ठीक पेशाब वाले छेद को राजू के होंठो पर दबा दिया और रगड़ते हुए बोली "चाट ना…चाट ज़रा मेरी पेशाब वाले छेद को….नही तो अभी मूत दूँगी तेरे मुँह पर…….हरामी……कभी किसी औरत को मूत ते हुए नही देखा है ना….अभी दिखाती हू तुझे" और सच में एक बूँद पेशाब टपका दिया…….अब तो munna की समझ में नही आ रहा था की क्या करे कुच्छ बोला भी नही जा रहा था. munna ने सोचा साली ने अभी तो एक बूँद ही मूत पिलाया है पर कही अगर कुतिया ने सच में पेशाब कर दिया तो क्या करूँगा चुप-चाप चाटने में ही भलाई है, ऐसे भी पूरी चूत तो चटवा ही रही है. पेशाब वाले छेद को मुँह में भर कर चाटने लगा. चूत के भग्नाशे को भी अपनी जीभ से छेड़ते हुए चाट रहा था. पहले तो थोड़ा घिंन सा लगा था मगर फिर munna को भी मज़ा आने लगा. अब वो बड़े आराम से पूरी फुददी को चाट रहा था. दोनो हाथो से गुदाज चूतरों को मसलते हुए चूत का रस चख रहा था. images
उर्मिला देवी अब चुदास से भर चुकी थी "उफफफफफफफफफ्फ़…सीई बहुत…मज़ा…..हाई रीईईई तूने तो खुजली बढ़ा दी कंजरे…….अब तो फिर चुदवाना ही पड़ेगा…..भोसड़ी के लंड खड़ा है कि……." munna जल्दी से चूत पर से मुँह हटा कर बोला "ख खड़ा है मामी……एकद्ूम खड़ा हाईईईईईईईई"
"कैसे चोदना है…….चल छोड़ मैं खुद……"
"हाई नही मामी….इस बार…..मैं………"
"फिर आजा मा के लॉड……..जल्दी से…….बहुत खुजली हो……." कहते हुए उर्मिला देवी नीचे पलंग पर लेट गई. दोनो टांग घुटनो के पास से मोड़ कर जाँघ फैला दिया, चूत की फांको ने अपना मुँह खोल दिया था. munna लंड हाथ में लेकर जल्दी से दोनो जाँघो के बीच में आया और चूत पर लगा कर कमर को हल्का सा झटका दिया. लंड का सुपरा उर्मिला देवी की भोसड़ी में घुस गया. सुपरा घुसते ही उर्मिला देवी ने अपनी गांद उचका दी. मोटा पहाड़ी आलू जैसा सुपरा पूरा घुस चुका था. मामी की फुददी एकद्ूम गरम भट्टी की तरह थी. चूत की गर्मी को पाकर munna का लंड फनफना गया. उसने पानी छोड़ रही चूत में लंड को गांद तक का ज़ोर लगा कर ठेला. लंड कच से मामी की चूत में फिसलता चला गया.
कुँवारी लौडिया होती तो शायद रुकता, मगर यहा तो उर्मिला देवी की सैकड़ो बार चुदी चूत थी, जिसकी दीवारो ने आराम से रास्ता दे दिया. उर्मिला देवी को लगा जैसे किसी ने उसकी चूत में मोटा लोहे का डंडा गरम करके डाल दिया. लंड चूत के आख़िरी कोने तक पहुच कर ठोकर मार रहा था.
"उफफफफ्फ़..हरामी आराम से नही डाल सकता था…….एक बार में पुर्र्रराआआअ….."
आवाज़ गले में ही घुट गई क्योंकि ठर्की munna अब नही रुकने वाला था. गांद उच्छाल उच्छाल कर पका-पक लंड पेले जा रहा था. मामी की बातो को सुन कर भी उनसुनी कर दी. मन ही मन उर्मिला देवी को ग़ाली दे रहा था…साली, कुतिया इतना नाटक करवाया है…….बेहन की लॉडी ने…..अब इसकी बातो को सुन ने का मतलब है फिर कोई नया नाटक खड़ा कर देगी……जो होगा बाद में देखूँगा……पहले लंड का माल इसकी चूत में निकाल दू…….सोचते हुए दना-डन गांद उच्छाल-उच्छाल कर पूरे लंड को सुपरे तक खींच चूत में डाल रहा था. कुच्छ ही देर में चूत की दीवारो से पानी का सैलाब बहने लगा. लंड अब सटा-सॅट फुच फुच की आवाज़ करते हुए अंदर बाहर हो रहा था. उर्मिला देवी भी बेपनाह मज़े में डूब गई. munna के चेहरे को अपने हाथो से पकड़ उसके होंठो को चूम रही थी, munna भी कभी होंठो कभी गालो को चूमते हुए चोद रहा था. उर्मिला देवी के मुँह से सिसकारिया निकल रही थी…
"सेसिईईईईईई……आईईईईईई…और ज़ोर सीईईईई राजू…….उफफफफफ्फ़ बहुत मज़ा आआअक्कककककक…….फ़ाआआअर दीईईगाआआअ…..उफफफफफफ्फ़ मधर्च….."
"उफफफफफफ्फ़ मामी बहुत मज़ा आ रहा हाईईईईईईई……."
"हा munna बहुत मज़ा आ रहा है…….ऐसे ही धक्के मार….बहुत मज़ा दे रहाहै तेरा हथियार……हाई सीईई चोद्द्द….अपने घोड़े जैसे……लंड सेयीई"
तभी munna ने दोनो चुचियों को हाथो में भर लिया और खूब कस कर दबाते हुए एक चुचि को मुँह में भर लिया और धीरे धीरे गांद उच्छालने लगा. उर्मिला देवी को अच्छा तो लगा मगर उसकी चूत पर तगड़े धक्के नही पड़ रहे थे.
"मादरचोड, रुकता क्यो है, दूध बाद में पीना पहले गांद तक का ज़ोर लगा के चोद"
"हाई मामी थोडा दम तो लेने दो…….पहली बार………"
"चुप हरामी…….गांद में दम नही……तो चोदने के लिए क्यों मर रहा था……..मामी की चूत में मज़ा नही आ रहा क्या……."
"ओह मामी मेरा तो सपना सच हो गयाआ…….हर रोज सोचता था कैसे आपको चोदु……आज…….मामी……..ओह मामी…….बहुत मज़ा आ रहा हाईईईईईईईईई…..बहुत गरम हाईईईईईई आपकी चूत"
"हा गरम और टाइट भी है…. चोदो….आह…..चोदो अपनी इस चुदासी मामी को ओह…..बहुत तडपी हू……….मोटा लंड खाने के लिए……तेरा मामा, बेहन का लंड तो बसस्स्सस्स……..तू……अब मेरे पास ही रहेगा…..तेरी मा चाहे गांद मरा ले मगर उसके पास नही भेजने वाली……यही पर अपनी जाँघो के बीच दबोच कर रखूँगी……"
"हा मामी अब तो मैं आपको छोड़ कर जाने वाला नहियीईईईई…….ओह मामी सच में चुदाई में कितना मज़ा है……गाओं में मा के पास कहा से ऐसा मज़ा मिलेगा…. मामी देखो ना कितने मज़े से मेरा लंड आपकी चूत में जा रहा और आप उस समय बेकार में चिल्ला….."
"भोसड़ी के लंड वाला है ना, तुझे क्या पता……..इतना मोटा लंड किसी कुँवारी लौंडिया में घुसा देता तो……अब तक बेहोश…..मेरे जैसी चूत्मरानि औरत को भी एक बार………बहुत मस्त लंड है ऐसे ही पूरा जड़ तक थेल थेल कर चोद आआआआ……..सीईईई बहनचोद्द्द्द्दद्ड….तू तो पूरा खिलाड़ी हो,,,,,"
लंड फॅक फॅक करता हुआ चूत के अंदर बाहर हो रहा था. उर्मिला देवी गांद उच्छाल उच्छाल कर लंड ले रही थी. उसकी बहकी हुई चूत को मोटे 10 इंच के लंड का सहारा मिल गया था. चूत इतरा-इतरा कर लंड लील रही थी. munna का लंड पूरा बाहर तक निकल जाता था और फिर कच से चूत के गुलाबी दीवारो को रौन्द्ता हुआ सीधा जड़ तक ठोकर मारता था. दोनो अब हाँफ रहे थे. चुदाई की रफ़्तार में बहुत ज़यादा तेज़ी आ गई थी. चूत की नैया अब किनारा खोज रही थी. उर्मिला देवी ने अपने पैरो को राजू के कमर के इर्द गिर्द लपेट दिया था और गांद उच्छालते हुए सिसकते हुए बोली "ओह सीई राजा अब मेरा निकल जाएगा………ज़ोर ज़ोर से चोद……पेलता रह……तेरी मा को चोदु……मार ज़ोर सीई…….निकाल दे अपना माआआल्ल अपनी मामी की चूत के अंदर……..ओह ओह"
"ही ममिीईई मेरा भी निकलेगा सीईईई तुम्हारी बूऊऊररररर में डाल दूंगाआआअ……मेरे लंड कययाया पनीईईई……..ओह ममिीईईईईई….हीईीई……मामी चूत्मरानि……उफफफफफफफ्फ़."
"ही मैं गैिईईईईईईईईईई ओह आआअहहााआ सीईए" करते हुए उर्मिला देवी ने राजू को अपनी ��ाहों में कस लिया, उसकी चूत ने बहुत सारा पानी छ्चोड़ दिया. munna के लंड से तेज फ़ौव्वारे की तरह से पानी निकलने लगा. उसकी कमर ने एक तेज झटका खाया और लंड को पूरा चूत के अंदर पेल कर वो भी हान्फ्ते हुए ओह करते हुए झरने लगा. लंड ने चूत की दीवारो को अपने पानी से सारॉबार कर दिया. दोनो मामी भांजा एक दूसरे से पूरी तरह से लिपट गये. दोनो पसीने से तर-बतर एक दूसरे की बाहों में खोए हुए बेशुध हो गये.
करीब पाँच मिनिट तक इसी अवस्था में रहने के बाद जैसे उर्मिला देवी को होश आया उसने munna को कंधो के पास से पकड़ कर हिलाते हुए उठाया "munna उठ…मेरे उपर ही सोएगा क्या". munna जैसे ही उठा पक की आवाज़ करते हुए उसका मोटा लंड चूत में से निकल गया. वो अपनी मामी के बगल में ही लेट गया. उर्मिला देवी ने अपने पेटिकोट से अपनी चूत पर लगे पानी कोपोच्छा और उठ कर अपनी चूत को देखा तो उसकी की हालत को देख कर उसको हसी आ गई. चूत का मुँह अभी भी थोडा सा खुला हुआ था. उर्मिला देवी समझ गई की munna के हाथ भर के लंड ने उसकी चूत को पूरा फैला दिया है. अब उसकी चूत सच में भोसड़ा बन चुकी है और वो खुद भोस्डेवाली. माथे पर छलक आए पसीने को वही रखे टवल से पोच्छने के बाद उसी टवल से munna के लंड को बड़े पायर से साफ कर दिया. राजू मामी को देख रहा था. उर्मिला देवी की नज़रे जब उस से मिली तो वो उसके पास सरक गई और munna के माथे का पसीना पोछ कर पुचछा "मज़ा आया….." munna ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया "हा मामी…..बहुत". अभी ठीक 5 मिनिट पहले रंडी के जैसे गाली गलौज़ करने वाली बड़े प्यार से बाते कर रही थी.
"थक गया क्या……..सो जा, पहली बार में ही तूने आज इतनी जबरदस्त मेहनत की है जितनी तेरे मामा ने सुहाग रात को नही की होगी" राजू को उठ ता देख बोली "कहा जा रहा है"
"अभी आया मामी…..बहुत ज़ोर की पेशाब लगी है"
"ठीक है मैं तो सोने जा रही हू…….अगर मेरे पास सोना होगा तो यही सो जाना नही तो अपने कमरे में चले जाना…….केवल जाते समय लाइट ऑफ कर देना"
पेशाब करने के बाद munna ने मामी के कमरे की लाइट ऑफ की और दरवाज़ा खींच कर अपने कमरे में चला. उर्मिला देवी तुरंत सो गई, उन्होने इस ओर ध्यान भी नही दिया. अपने कमरे में पहुच munna धड़ाम से बिस्तर पर गिर पड़ा उसे ज़रा भी होश नही था.
सुबह करीब सात बजे के उर्मिला देवी की नींद खुली. जब अपने नंगेपन का अहसास हुआ तो पास में पड़ी चादर खींच ली. अभी उसका उठने का मन नही था. बंद आँखो के नीचे रात की कहानी याद कर उनके होंठो पर हल्की मुस्कुराहट फैल गई. सारा बदन गुद-गुदा गया. बीती रात जो मज़ा आया वो कभी ना भूलने वाला था. ये सब सोच कर ह��� उसके गालो में गड्ढे पड़ गये की उसने munna के मुँह पर अपना एक बूँद पेशाब भी कर दिया था. उसके रंगीन सपने साकार होते नज़र आ रहे थे. उपर से उर्मिला देवी भले ही कितनी भी सीधी साधी और हासमुख दिखती थी अंदर से वो बहुत ही कामुक कुत्सित औरत थी. उसके अंदर की इस कामुकता को उभारने वाली उसकी सहेली हेमा शर्मा थी. जो अब उर्मिला देवी की तरह ही एक शादी शुदा औरत थी और उन्ही के शहर में रहती थी. हेमा, उर्मिला देवी के कॉलेज के जमाने की सहेली थी. कॉलेज में ही जब उर्मिला देवी ने जवानी की दहलीज़ पर पहला कदम रखा था तभी उनकी इस सहेली ने जो हर रोज अपने चाचा-चाची की चुदाई देखती थी उनके अंदर काम वासना की आग भड़का दी. फिर दोनो शहेलिया एक दूसरे के साथ लिपटा चिपटि कर तरह-तरह के कुतेव करती थी, गंदी-गंदी किताबे पढ़ती थीउनकी सबसे पहली पसंद राज शर्मा की सेक्सीकहानियाँ थी और शादी के बाद अपने पतियों के साथ मस्ती करने के सपने देखा करती. हेमा का तो पता नही मगर उर्मिला देवी की किस्मत में एक सीधा साधा पति लिखा था जिसके साथ कुच्छ दीनो तक तो उन्हे बहुत मज़ा आया मगर बाद में सब एक जैसा हो गया. और जब से लड़की थोड़ी बड़ी हो गई munna का मामा हफ्ते में एक बार नियम से उर्मिला देवी की साड़ी उठाता लंड डालता डाकम पेल करता और फिर सो जाता. उर्मिला देवी का गदराया बदन कुच्छ नया माँगता था. वो बाल-बच्चे घर परिवार सब से निसचिंत हो गई थी सब कुच्छ अपनी रुटीन अवस्था में चल रहा था. ऐसे में उसके पास करने धरने के लिए कुच्छ नही था और उसकी कामुकता अपने उफान पर आ चुकी थी. अगर पति का साथ मिल जाता तो फिर…… मगर उर्मिला देवी की किस्मत ने धोखा दे दिया. मन की कामुक भावनाओ को बहुत ज़यादा दबाने के कारण, कोमल भावनाए कुत्सित भावनाओ में बदल गई थी. अब वो अपने इस नये यार के साथ तरह-तरह के कुतेव करते हुए मज़ा लूटना चाहती थी.
गाँव का राजा पार्ट -7 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
आठ बजने पर बिस्तर छोड़ा और भाग कर बाथरूम में गई कमोड पर जब बैठी और चूत से पेशाब की धारा निकलने लगी तो रात की बात फिर से याद आ गई और चेहरा शर्म और मज़े की लाली से भर गया. अपनी चुदी चूत को देखते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान खेल गई कि कैसे रात में munna के मुँह पर उन्होने अपनी चूत को रगड़ा था और कैसे लौडे को तडपा तडपा कर अपनी चूत की चटनी चटाई थी. नहा धो कर फ्रेश हो कर निकलते निकलते 9 बज गये, जल्दी से munna को उठाने उसके कमरे में गई तो देखा लौंडा बेसूध होकर सो रहा है. थोड़ा सा पानी उसके चेहरे पर डाल दिया. munna एक दम से हर्बाड़ा उठ ता हुआ बोला "पेस्सशाब….मत…..". आँखे खोली तो सामने मामी खड़ी थी. वो समझ गई कि राजू शायद रात की बातो को सपने में देख रहा था और पानी गिरने पर उसे लगा शायद मामी ने उसके मुँह मैं पिशाबफिर से कर दिया. munna आँखे फाडे उर्मिला देवी को देख रहा था.
"अब उठ भी जाओ ….9 बज गये अभी रात के ख्वाबो में डूबे हो के"…..फिर उसके शॉर्ट्स के उपर से लंड पर एक थपकी मारती हुई बोली "चल जल्दी से फ्रेश हो जा"
उर्मिला देवी किचन में नाश्ता तैयार कर रही थी.
बाथरूम से munna अभी भी नही निकला था.
"आरे जल्दी कर…..नाश्ता तैय्यार है…….इतनी देर क्यों लगा रहा है बेटा…"
ये मामी भी अजीब है. अभी बेटा और रात में क्या मस्त छिनाल बनी हुई थी. पर जो भी हो बड़ा मज़ा आया था. नाश्ते के बाद एक बार चुदाई करूँगा तब कही जाउन्गा. ऐसा सोच कर munna बाथरूम से बाहर आया तो देखा मामी डाइनिंग टेबल पर बैठ चुकी थी. munna भी जल्दी से बैठ गया नाश्ता करने लगा. कुच्छ देर बाद उसे लगा जैसे उसके शॉर्ट्स पर ठीक लंड के उपर कुच्छ हरकत हुई. उसने मामी की ओर देखा, उर्मिला देवी हल्के हल्के मुस्कुरा रही थी. नीचे देखा तो मामी अपने पैरो के तलवे से उसके लंड को छेड रही थी. munna भी हँस पड़ा और उसने मामी के कोमल पैर अपने हाथो से पकड़ कर उनके तलवे ठीक अपने लंड के उपर रख दोनो जाँघो के बीच जाकड लिया. दोनो मामी भानजे हँस पड़े. munna ने जल्दी जल्दी ब्रेड के टुकड़ो को मुँह में ठुसा और हाथो से मामी के तलवे को सहलाते हुए धीरे धीरे उनकी साड़ी को घुटनो तक उपर कर दिया. munna का लंड फनफना गया था. उर्मिला देवी लंड को तलवे से हल्के हल्के दबा रही. munna ने अपने आप को कुर्सी पर अड्जस्ट कर अपने हाथो को लंबा कर साड़ी के अंदर और आगे की तरफ घुसा कर जाँघो को छुते हुए सहलाने की कोशिश की. उर्मिला देवी ने हस्ते हुए कहा "उईइ क्या कर रहा….कहा हाथ ले जा रहा है……"
"कोशिश कर रहा हू कम से कम उसको छु लू जिसको कल रात आपने बहुत तडपाया था छुने के लिए…."
"अच्छा बहुत बोल रहा है…..रात में तो मामी..मामी कर रहा था"
" कल रात में तो आप एकदम अलग तरह से बिहेव कर रही थी"
"शैतान तेरे कहने का क्या मतलब कल रात तेरी मामी नही थी तब"
"नही मामी तो आप मेरी सदा रहोगी तब भी अब भी मगर…."
"तो रात वाली मामी अच्छी थी या अभी वाली मामी…"
"मुझे तो दोनो अच्छी लगती है…पर अभी ज़रा रात वाली मामी की याद आ रही है" कहते हुए munna कुर्सी सेनीचे खिसक गया और जब तक उर्मिला देवी "रुक क्या कर रहा है" कहते हुए रोक पाती वो डिनाइनिंग टेबल के नीचे घुस चुका था और उर्मिला देवी के तलवो और पिंदलियो कोचाटने लगा था. उर्मिला देवी के मुँह सिसकारी निकल गई वो भी सुबह से गरम हो चुकी थी.
"ओये……क्या कर रहा है….नाश्ता तो कर लेने दे….."
"पुच्च पुच्च….ओह तुम नाश्ता करो मामी……मुझे अपना नाश्ता कर लेने दो"
"उफ़फ्फ़……मुझे बाज़ार जाना है अभीईइ छोड़ दे…..बाद मीएइन्न……." उर्मिला देवी की आवाज़ उनके गले में ही रह गई. munna अब तक साड़ी को जाँघो से उपर तक उठा कर उनके बीच घुस चुक्का था. मामी ने आज लाल रंग की पॅंटी पहन रखी थी. नहाने कारण उक्नकि स्किन चमकीली और मक्खन के जैसी गोरी लग रही थी और भीनी भीनी सुगंध आ रही थी. munna गदराई गोरी जाँघो पर पप्पी लेता हुआ आगे बढ़ा और पॅंटी उपर एक जोरदार चुम्मि ली. उर्मिला देवी ने मुँह से "आउच….इसस्स क्या कर रहा है" निकला. images
"ममीईइ…मुझे भी टुशण जाना है……पर अभी तो तुम्हारा फ्रूट जूस पी कर हीईइ…." कहते हुए munna ने पूरी चूत को पॅंटी के उपर से अपने मुँह भर कर ज़ोर से चूसा.
"इसस्सस्स…….एक ही दिन में ही उस्ताद…बन गया हॅयियी….चूत का पानी फ्रूट जूस लगता हाईईईईईईईई……..उफफफ्फ़ पॅंटी मत उतर्ररर……" मगर munna कहा मान ने वाला था. उसके दिल का डर तो कल रात में ही भाग गया था. जब वो उर्मिला देवी के बैठे रहने के कारण पॅंटी उतारने में असफल रहा तो उसने दोनो जाँघो को फैला कर चूत को ढकने वाली पट्टी के किनारे को पकड़ कर खींचा और चूत नंगी कर उस पर अपना मुँह लगा दिया.
chut से आती भीनी-भीनी खुसबु को अपनी सांसोमैं भरता हुआ जीभ निकाल चूत के भग्नासे को भूखे भेड़िए की तरह काटने लगा. फिर तो उर्मिला देवी ने भी हथियार डाल दिए और सुबह-सुबह ब्रेकफास्ट में चूत चुसाइ का मज़ा लेने लगी. उनके मुँह से सिसकारियाँ फूटने लगी. कब उन्होने कुर्सी पर से अपनी गांद उठाई, कब पॅंटी निकाली और कब उनकी जंघे फैल गई इसका उन्हे पता भी ना चला. उन्हे तो बस इतना पता था उनकी फैली हुई चूत के मोटे मोटे होंठो के बीच munna की जीभ घुस कर उनके चूत की चुदाई कर रही थी और उनके दूनो हाथ उसके सिर के बालो में घूम रहे थे और उसके सिर को जितना हो सके अपनी चूत पर दबा रहे थे.
थोरी देर की चुसाइ चटाई में ही उर्मिला देवी पस्त होकर झार गई और आँख मुन्दे वही कुर्सी पर बैठी रही. munna भी चूत के पानी को पी अपने होंठो पर जीभ फेरता जब डाइनिंग टेबल के नीचे से बाहर निकला तब उर्मिला देवी उसको देख मुस्कुरा दी और खुद ही अपना हाथ बढ़ा उसके शॉर्ट्स को ��रका कर घुटनो तक कर दिया.
"सुबह सुबह तूने….ये क्या कर दिया …" कहते हुए उसके लंड पर मूठ लगाने लगी.
"ओह मामी मूठ मत लगाओ ना….चलो बेडरूम में डालूँगा."
"नही कपड़े खराब हो जाएँगे…चूस कर निकाल….." और गप से लंड के सुपरे को अपने गुलाबी होंठो के बीच दबोच लिया. होंठो को आगे पिछे करते हुए लंड को चूसने लगी. munna मामी के सिर को अपने हाथो से पकड़ हल्के हल्के कमर को आगे पिछे करने लगा.
तभी उसके दिमाग़ में आया की क्यों ना पिछे से लंड डाला जाए कपड़े भी खराब नही होंगे.
"मामी पिछे से डालु….कपड़े खराब नही होंगे.."
लंड पर से अपने होंठो को हटा उसके लंड को मुठियाते हुए बोली "नही बहुत टाइम लग जाएगा…रात में पिछे से डालना" munna ने उर्मिला देवी के कंधो को पकड़ कर उठाते हुए कहा "प्लीज़ मामी……उठो ना चलो उठो….."
"अर्रे नही बाबा…….मुझे मार्केट भी जाना है…..ऐसे ही देर हो गई है…."
"ज़यादा देर नही लगेगी बस दो मिनिट…."
"अर्रे नही तू छोड़ दे मेरा काम तो वैसे भी हो….."
"क्या मामी……..थोड़ा तो रहम करो…..हर समय क्यों तड़पाती हो…"
"तू मानेगा नही….."
"ना, बस दो मिनिट दे दो……."
"ठीक है दो मिनिट में नही निकला तो खुद अपने हाथ से करना…..मैं ना रुकने वाली"
उर्मिला देवी उठ कर डाइनिंग टेबल के सहारे अपने चूतरो को उभार कर घोड़ी बन गई. munna पिछे आया और जल्दी से उसने मामी की सारी को उठा कर कमर पर कर दिया. पॅंटी तो पहले ही खुल चुकी थी. उर्मिला देवी की मक्खन मलाई सी चमचमाती गोरी गांद munna की आँखो के सामने आ गई.
उसके होश फाख्ता हो गये. ऐसे खूबसूरत चूतर तो सायद उन अँग्रेजानो की भी नही थे जिनको उसने अँग्रेज़ी फ़िल्मो में देखा था. उर्मिला देवी अपने चूतरो को हिलाते हुए बोली "क्या कर रहा है जल्दी कर देर हो रही है….". चूतर हिलने पर थल थाला गये. एक दम गुदाज और मांसल चूतर और उनके बीच खाई. राजू का लंड फुफ्कार उठा.
"मामी…..आपने रात में अपना ये तो दिखाया ही नही……अफ कितना सुंदर है मामी….
"जो भी देखना है रात में देखना पहली रात में क्या तुझ से गांद भी………तुझे जो करना है जल्दी कार्ररर……
ओह सीईई मामी मैं हमेशा सोचता था आप का पिच्छवाड़ा कैसा होगा. जब आप चलती थी और आपके दोनो चूतर जब हिलते थे तो दिल करता था कि उनमे अपने मुँह को घुसा कर रगड़ दू……..उफफफफ्फ़"
"ओह हूऊऊऊ……..जल्दी कर ना"….कह कर चूतरो को फिर से हिलाया.
"चूतर पर एक चुम्मा ले लू….."
"ओह हो एक दम कमीना है तू…….जो भी करना है जल्दी कर नही तो मैं जा रही हू…"
munna तेज़ी के साथ नीचे झुका और पुच पुच करते हुए चूतरो को चूमने लगा.
दोनो मांसल चूतरो को अपनी मुट्ठी में ले कर मसल्ते हुए चूमते हुए चाटने लगा. उर्मिला देवी का बदन भी सिहर उठा. बिना कुच्छ बोले उन्होने अपनी टाँगे और फैला दी. munna ने दोनो चूतरो को फैला दिया और उसके बीच की खाई में भूरे रंग की मामी की गोल सिकुड़ी हुई गांद का छेद नज़र आ गया. दोनो चूतरो के बीच की खाई में जैसे ही राजू ने हल्के से अपनी जीभ चलाई. उर्मिला देवी के पैर कांप उठे. उसने कभी सोचा भी नही था की उसका ये भांजा इतनी जल्दी तरक्की करेगा. munna ने देखा की चूतरो के बीच जीभ फ़िराने से गांद का छेद अपने आप हल्के हल्के फैलने और सिकुड़ने लगा और मामी के पैर हल्के-हल्के थर-थारा रहे थे.
"ओह मामी आपकी गांद कितनी…….उफफफफफफ्फ़ कैसी खुसबु है…प्यूच"
इस बार उसने जीभ को पूरी खाई में उपर से नीचे तक चलाया और गांद के सिकुदे हुए छेद के पास ला कर जीभ को रोक दिया और कुरेदने लगा. उर्मिला देवी के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई. उसने कभी सपने में भी नही सोचा था की घर में बैठे बिठाए उसकी गांद चाटने वाला मिल जाएगा. मारे उत्तेजना के उसके मुँह से आवाज़ नही निकल रही थी. गु गु की आवाज़ करते हुए अपने एक हाथ को पिछे ले जा कर अपना चूतरो को खींच कर फैलाया. munna समझ गया था कि मामी को मज़ा आ रहा है और अब समय की कोई चिंता नही. उसने गांद के छेद के ठीक पास में दोनो तरफ अपने दोनो अंगूठे लगाए और छेद को चौड़ा कर जीभ नुकीली कर पेल दी. गांद की छेद में जीभ चलाते हुए चूतरो पर हल्के हल्के दाँत भी गढ़ा देता था. गांद की गुदगुदी ने मामी को एकद्ूम बेहाल कर दिया था. उनके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी "ओह munna क्या कर रहा है…..बेटा…..उफफफफफफफ्फ़……मुझे तो लगता था तुझे कुच्छ भी नही…..पगले सस्स्स्स्सीईए उफफफफफफ्फ़ गान्ड चाटता रह हाईईईईईईई…….मेरी तो समझ में नहियीईई………". समझ में तो munna की भी कुच्छ नही आ रहा था मगर गांद पर चुम्मिया काट ते हुए बोला
"पुच्च पुच्च…मामी सीईए….मेरा दिल तो आपके हर अंग को चूमने और चाटने को करता है…..आप इतनी खूबसूरत हो…मुझे नही पता गांद चाटी जाती है या नहीइ…हो सकता है नही चाती जाती होगी मगर…..मैं नही रुक सकता…..मैं तो इसको चुमूंगा और चाट कर खा जाउन्गा जैसे आपकी चूत….."
"सीईई…..एक दिन में ही तू कहा से कहा पहुच गया…..उफफफ्फ़ तुझे अपनी मामी की गांद इतनी पसंद है तो चाट….चूम……उफफफफफ्फ़ सीईई munna बेटा……बात मत कर…मैं सब समझती हू…….तू जो भी करना चाहता है करता रह…..कुत्तीई…गांद में ऐसे ही जीभ पेल कर चातत्तटटटटटतत्त."
munna समझ गया कि रात वाली छिनाल मामी फिर से वापस आ गई है. वो एक पल को रुक गया अपनी जीभ को आराम देने के लिए मगर उर्मिला देवी को देरी बर्दाश्त नही हुई. पीछे पलट कर munna के सिर को दबाती हुई बोली "अफ रुक मत…….जल्दी जल्दी चाट.." मगर munna भी उसको तड़पाना चाहता था. उर्मिला देवी पिछे घूमी और munna को उसके टी-शर्ट के कॉलर से पकड़ कर खींचती हुई डाइनिंग टेबल पर पटक दिया. उसके नथुने फूल रहे थे, चेहरा लाल हो गया था. munna को गर्दन के पास से पकड़ उसके होंठो को अपने होंठो से सटा खूब ज़ोर से चुम्मा लिया. इतनी ज़ोर से जैसे उसके होंठो को काट खाना चाहती हो और फिर उसकी गाल पर दाँत गढ़ा कर काट लिया. munna ने भी मामी के गालो को अपने दांतो से काट लिया. "अफ कामीने निशान पर जाएगा…..रुकता क्यों है….जल्दी कर नही तो बहुत गाली सुनेगा….और रात के जैसा चोद दूँगी" munna उठ कर बैठता हुआ बोला "जितनी गालियाँ देनी है दे दो…." और चूतर पर कस कर दाँत गढ़ा कर काट लिया. images
"उफफफफ्फ़….हरामी गाली सुन ने में मज़ा आता है तुझे…….."
munna कुच्छ नही बोला, गांद की चुम्मियाँ लेता रहा "…आ ह पुछ पुच्छ." उर्मिला देवी समझ गई की इस कम उमर में ही छोकरा रसिया बन गया है.
चूत के भज्नाशे को अपनी उंगली रगड़ कर दो उंगलियों को कच से चूत में पेल दिया चूत एक दम पासीज कर पानी छोड़ रही थी. चूत के पानी को उंगलियों में ले कर पिछे मुड़ कर munna के मुँह के पास ले गई जो की गांद चाटने में मसगूल था और अपनी गांद और उसके मुँह के बीच उंगली घुसा कर पानी को रगड़ दिया. कुच्छ पानी गांद पर लगा कुच्छ munna के मुँह पर.
"देख कितना पानी छ्चोड़ रही है चूत अब जल्दी कार्रर्र्र्ररर …."
पानी छोड़ती चूत का इलाज़ munna ने अपना मुँह चूत पर लगा कर किया. चूत में जीभ पेल कर चारो तरफ घूमाते हुए चाटने लगा.
"ये क्या कर रहा है सुअर्रर…….खाली चाट ता ही रहेगा क्या… मदर्चोद.उफ़फ्फ़ चाट गांद चूत सब चाट लीईए……..भोसड़ी के……..लंड तो तेरा सुख गया है नाआअ…..हरामी….गांद खा के पेट भर और चूत का पानी पीईए ……..ऐसे ही फिर से झार गई तो हाथ में लंड ले के घुम्नाआ……"
अब munna से भी नही रहा जा रहा था जल्दी से उठ कर लंड को चूत के पनियाए छेद पर लगा ढ़ाचक से घुसेड दिया. उर्मिला देवी का बॅलेन्स बिगड़ गया और टेबल पर ही गिर पड़ी, चिल्लाते हुए बोली "हराम्जादे बोल नही सकता था क्या……..तेरी मा की ���ूत में घोड़े का लंड……गांदमरे…..आराम सीईई"
पर munnaने संभालने का मौका नही दिया. ढ़ाचा ढ़च लंड पेलता रहा. पानी से सारॉबार चूत ने कोई रुकावट नही पैदा की. दोनो चूतरो के मोटे मोटे माँस को पकड़े हुए गाप-गप लंड डाल कर उर्मिला देवी को अपने धक्को की रफ़्तार से पूरा हिला दिया था उसने. उर्मिला देवी मज़े से सिसकारिया लेते हुए चूत में गांद उचका उचका कर लंड लील रही थी. फ़च फच की आवाज़ एक बार फिर गूँज उठी थी. जाँघ से जाँघ और चूतर टकराने से पटक-पटक की आवाज़ भी निकल रही. दोनो के पैर उत्तेजना के मारे कांप रहे थे.
"पेलता रह….और ज़ोर से माआआअरर…बेटा मार…..फाड़ दे चूत….मामी को बहुत मज़ा दे रहा हाईईईई……..ओह चोद……देख री मेरी ननद तूने कैसा लाल पैदा किया है……तेरे भाई का काम कर रहा है…आईईईईईईईई..फ़ाआआआद दियाआआआअ सल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लीई ने"
"ओह मामी आअज्जजज्ज आपकी चूत….सीईईईईईईईई…मन कर रहा इसी में लंड डाले….ओह…..सीईईई मेरे मामा की लुगाई…….सीईइ बस ऐसे ही हमेशा मेरा लंड लेती….."
"हाई चोद…..बहुत मज़ा……सेईईईईईई गांड्चतु….. तू ने तो मेरी जवानी पर जादू कर दिया..."
"हाई मामी ऐसे ही गांद हिला-हिला के लॉडा लो……..सीईईईईई, जादू तो तुमने किया हाईईईई....अहसान किया है…..इतनी हसीन चूत मेरे लंड के हवाले करके…..पक पाक….लो मामी…ऐसे ही गांद नचा-नचा के मेरा लंड अपनी चूत में दबोचो…….सीईईईईईई"
"....रंडी की औलाद ....अपनी मा को चोद रहा है कि मामी को....ज़ोर लगा के चोद ना भोसड़ी के……..देख..देख तेरा लंड गया तेरी मा की चूत में... डाल साला…पेल साले ....पेल अपनी मा की चूत में.....रंडी बना दे मुझे....चोद अपनी मामी की चूत....रंडी की औलाद..... साला .....मादर्चोद".... .फ़च.... फ़च....फ़च... और एक झटके के साथ उर्मिला देवी का बदन अकड़ गया.."ओह ओह सीईए गई मैं गई करती हुई डाइनिंग टेबल पर सिर रख दिया.
झरती हुई चूत ने जैसे ही munna के लंड को दबोचा उसके लंड ने भी पिचकारी छोड़ दी फॅक फॅक करता हुआ लंड का पानी चूत के पसीने से मिल गया. दोनो पसीने से तर बतर हो चुके थे. munna उर्मिला देवी की पीठ पर निढाल हो कर पड़ गया था. दोनो गहरी गहरी साँसे ले रहे थे. जबरदस्त चुदाई के कारण दोनो के पैर काप रहे थे. एक दूसरे का भार संभालने में असमर्थ. धीरे से munna मामी की पीठ पर से उतर गया और उर्मिला देवी ने अपनी साड़ी नीचे की और साड़ी के पल्लू से पसीना पोछती हुई सीधी खड़ी हो गई. वो अभी भी हाँफ रही थी. munna पास में परे टवल से लंड पोछ रहा था. munna के गालो को चुटकी में भर मसलते हुए बोली
"कामीने…..अब संतुष्टि मिल गई…..पूरा टाइम खराब कर दिया और कपड़े भी…"
"पर मामी मज़ा भी तो आया…सुबह सुबह कभी मामा के साथ ऐसे मज़ा लिया…" मामी को बाँहो में भर लिपट ते हुए munna बोला. उर्मिला देवी ने उसको परे धकेला "चल हट ज़यादा लाड़ मत दिखा तेरे मामा अच्छे आदमी है. मैं पहले आराम करूँगी फिर मार्केट जाउन्गी और खबरदार जो मेरे कमरे में आया तो, तुझे टुशण जाना होगा तो चले जाना.."
गाँव का राजा पार्ट -8 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
"ओके मामी…..पहले थोडा आराम करूँगा ज़रा" बोलता हुआ munna अपने कमरे में और उर्मिला देवी बाथरूम में घुस गई. थोडी देर खाट पाट की आवाज़ आने के बाद फिर शांति छा गई.munna यू ही बेड पर पड़ा सोचता रहा कि सच में मामी कितनी मस्त औरत है और कितनी मस्ती से मज़ा देती है. उनको जैसे सब कुच्छ पता है कि किस बात से मज़ा आएगा और कैसे आएगा. रात में कितना गंदा बोल रही थी….मुँह में मूत दूँगी….ये सोच कर ही लंड खड़ा हो जाता है मगर ऐसा कुच्छ नही हुआ चुदवाने के बाद भी वो पेशाब करने कहाँ गई, हो सकता है बाद में गई हो मगर चुदवाते से समय ऐसे बोल रही थी जैसे……शायद ये सब मेरे और अपने मज़े को बढ़ाने के लिए किया होगा. सोचते सोचते थोड़ी देर में munna को झपकी आ गई. एक घंटे बाद जब उठा तो मामी जा चुकी थी वो भी तैय्यार हो कर टुशन पढ़ने चला गया. दिन इसी तरह गुजर गया. शाम में घर आने पर दोनो एक दूसरे को देख इतने खुश लग रहे थे जैसे कितने दीनो बाद मिले हो. फिर तो खाना पीना हुआ और उस दिन रात में दो बार ऐसी भयंकर चुदाई हुई कि दोनो के कस बल ढीले पद गये. दोनो जब भी झरने को होते चुदाई बंद कर देते. रुक जाते और फिर दुबारा दुगुने जोश से जुट जाते. munna भी खुल गया. खूब गंदी गंदी बाते की. मामी को रंडी…..चूत्मरनि…….बेहन की लॉडी कहता और वो खूब खुस हो कर उसे गांडमरा…हरामी…….रंडी की औलाद कहती. उर्मिला देवी के शरीर का हर एक भाग थूक से भीग जाता और चूतरों चुचियों और जाँघो पर तो munna ने दाँत के निशान पड़ जाते. उसी तरह से munna के कमसिन गाल, पीठ और छाती पर भी उर्मिला देवी के दांतो और नाख़ून का निशान बनते थे.
घर में तो कोई था नही खुल्लम खुल्ला जहा मर्ज़ी वही चुदाई शुरू कर देते थे दोनो. मामी को गोद में बैठा कर टीवी देखता था. किचन में उर्मिला देवी बिना शलवार के केवल लंबा वाला समीज़ पहन कर खाना बनाती
और munna से समीज़ उठा कर दोनो जाँघो के बीच बैठा चूत चत्वाती. चूत में केला डाल कर उसको धीरे धीरे करके खिलाती. अपनी बेटी की फ्रॉक पहन कर डाइनिंग टेबल के उपर एक पैर घुटनो के पास से मोड़ कर बैठ जाती और munna को सामने बिठा कर अपनी नंगी चूत दिखाती और दोनो नाश्ता करते. images
munna कभी उंगली तो कभी चम्मच घुसा देता मगर उनको तो इस सब में मज़ा आता था. munna का लंड खड़ा कर उस पर अपना दुपट्टा कस कर बाँध देती थी. उसको लगता जैसे लंड फट जाएगा मगर गांद चटवाती रहती थी और चोदने नही देती. दोनो जब चुदाई करते करते थक जाते तो एक ही बेड पर नंग धड़ंग सो जाते.
कुच्छ दीनो में munna एक्सपर्ट चोदु बन गया था. जब मामा और ममेरी बहन घर आ गये तो दोनो दिन में मौका खोज लेते और छुट्टी वाले दिन कार लेकर सहर से थोरी दूरी पर बने फार्म हाउस पर काम करवाने के बहाने निकल जाते. जब भी जाते काजल को भी बोलते चलो मगर वो तो सहर की पार्केटी लड़की थी मना कर देती. फिर दोनो फार्म हाउस में मस्ती करते. इसी तरह से munna के दिन सुख से कट ते गये. और भी बहुत सारी घटनाए हुई बीच में मगर उन सबको बाद में बताउन्गा. तो ये थी मुन्ना बाबू के ट्रैनिंग की कहानी. मुन्ना को उसकी मामी ने पूरा बिगाड़ दिया.
खैर हमे क्या हम वापस गाओं लौट ते है. देखते है वाहा क्या गुल खिल रहे है. तो दोस्तो कैसी लगी मामी भानजे की मस्ती
अपनी मा और आया को देखने के दो तीन दिन बाद तक मुन्ना बाबू को कोई होश नही था. इधर उधर पगलाए घूमते रहते थे. हर समय दिमाग़ में वही चलता रहता. घर में भी वो शीला देवी से नज़रे चुराने लगे थे. जब शीला देवी इधर उधर देख रही होती तो उसको निहारते. हालाँकि कई बार दिमाग़ में आता कि अपनी मा को देखना बड़ी कंज़रफी की बात है मगर जिसकी ट्रैनिंग ही मामी से हुई उस लड़के के दिमाग़ में ज़यादा देर ये बात टिकने वाली नही थी. मन बार-बार शीला देवी के नशीले बदन को देखने के लिए ललचाता. उसको इस बात पर ताज्जुब होता कि इतने दीनो में उसकी नज़र शीला देवी पर कैसे नही पड़ी. तीन चार दिन बाद कुच्छ नॉर्मल होने पर मुन्ना ने सोचा कि हर औरत उसकी मामी जैसी तो हो नही सकती. फिर ये उसकी मा है और वो भी ऐसी कि ज़रा सा उन्च नीच होने पर चमड़ी उधेड़ के रख दे. इसलिए ज़यादा हाथ पैर चलाने की जगह अपने लंड के लिए गाओं में जुगाड़ खोजना ज़यादा ज़रूरी है. किस्मत में होगा तो मिल जाएगा.
मुन्ना ने गाओं की भौजी लाजवंती को तो चोद ही दिया था और उसकी ननद बसंती के मुममे दबाए थे मगर चोद नही पाया था. सीलबंद माल थी. आजतक किसी अनचुदी को नही चोदा था इसलिए मन में आरजू पैदा हो गई कि बसंती की लेते. बसंती, मुन्ना बाबू को देखते ही बिदक कर भाग जाती थी. हाथ ही नही आ रही थी. उसकी शादी हो चुकी ��ी मगर गौना नही हुआ था. मुन्ना बाबू के शैतानी दिमाग़ ने बताया कि बसंती की चूत का रास्ता लाजवंती के भोसड़े से होकर गुज़रता है. तो फिर उन्होने लाजवंती को पटाने की ठानी. एक दिन सुबह में जब लाजवंती लोटा हाथ में लिए लौट रही थी तभी उसको गन्ने के खेत के पास पकड़ा.
"क्या भौजी उस दिन के बाद से तो दिखना ही बंद हो गया तुम्हारा…" लाजवंती पहले तो थोड़ा चौंकी फिर जब देखा की आस पास कोई नही है तब मुस्कुराती हुई बोली "आप तो खुद ही गायब हो गये छ्होटे मलिक वादा कर के….."
"आरे नही रे, दो दिन से तो तुझे खोज रहा हू और हम चौधरी लोग जो वादा करते है निभाते भी है मुझे सब याद है"
"तो फिर लाओ मेरा इनाम……."
"ऐसे कैसे दे दे भौजी…इतनी हड़बड़ी भी ना दिखाओ…."
"अच्छा अभी मैं तेज़ी दिखा रही हू…..और उस दिन खेत में लेते समय तो बड़ी जल्दी में थे आप छ्होटे मलिक…आप सब मरद लोग एक जैसे ही हो"
मुन्ना ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर खींचा और कोने में ले खूब कस के गाल काट लिया. लाजवंती चीखी तो उसका मुँह दबाते हुए बोला "क्या करती हो भौजी चीखो मत सब मिलेगा….तेरी पायल मैं ले आया हू और बसंती के लिए लहनगा भी". मुन्ना ने चारा फेंका. लाजवंती चौंक गई "हाई मलिक बसंती के लिए क्यों….."
"उसको बोला था कि लहनगा दिलवा दूँगा सो ले आया." कह कर लाजवंती को एक हाथ से कमर के पास से पकड़ उसकी एक चुचि को बाए हाथ से दबाया. लाजवंती थोड़ा कसमसाती हुई मुन्ना की हाथ की पकड़ को ढीला करती हुई बोली "उस से कब बोला था आपने"
"आरे जलती क्यों है….उसी दिन खेत में बोला था जब तेरी चूत मारी थी" और अपना हाथ चुचि पर से हटा कर चूत पर रखा और हल्के से दबाया.
"अच्छा अब समझी तभी आप उस दिन वाहा खड़ा कर के खड़े थे और मुझे देख कर वो भाग गई और आपने मेरे उपर हाथ साफ कर लिया".
"एक दम ठीक समझी रानी…" और उसकी चूत को मुठ्ठी में भर कस कर दबाया. लाजवंती चिहुन्क गई. मुन्ना का हाथ हटा ती बोली "छोड़ो मलिक वो तो एकद्ूम कच्ची कली है". अचानक सुबह सुबह उसके रोकने का मतलब लाजवंती को तुरंत समझ में आ गया.
"अर्रे कहा की कच्ची कली मेरे उमर की तो है…"
"हा पर अनचुदी है…एकद्ूम सीलबॅंड….दो महीने बाद उसका गौना है"
"धात तेरे की बस दो महीने की मेहमान है तो फिर तो जल्दी कर भौजी कैसे भी जल्दी से दिलवा दे……." कह कर उसके होंठो पर चुम्मा लिया.
"उउउ हह छोड़ो कोई देख लेगा…पायल तो दिया नही और अब मेरी कोरी ननद भी माँग रहे हो….बड़े चालू हो छ्होटे मलिक"
लाजवंती को पूरा अपनी तरफ घुमा कर चिपका लिया और खड़ा लंड साड़ी के उपर से चूत पर रगड़ते हुए उसकी गांद की दरार में उंगली चला मुन्ना बोला "आरे कहा ना दोनो चीज़ ले आया हू…दोनो ननद भौजाई एक दिन आ जाना फिर…"
"लगता है छ्होटे मलिक का दिल बसंती पर पूरा आ गया है"
"हा रे तेरे बसंती की जवानी है ही ऐसी…..बड़ी मस्त लगती है…"
"हा मलिक गाओं के सारे लौडे उसके दीवाने है…."
"गाओं के छोरे मा चुड़ाएँ…..तू बस मेरे बारे में सोच…." कह कर उसके होंठो पर चुम्मि ले फिर से चुचि को दबा दिया.
"सीए मलिक क्या बताए वो मुखिया का बेटा तो ऐसा दीवाना हो गया है कि….उस दिन तालाब के पास आकर पैर छुने लगा और सोने की चैन दिखा रहा था, कह रहा था कि भौजी एक बार बसंती की…..पर मैने तो भगा दिया साले को दोनो बाप बेटे कामीने है"
मुन्ना समझ गया की साली रंडी अपनी औकात पर आ गई है. पॅंट की जेब में हाथ डाल पायल निकली और लाजवंती के सामने लहरा कर बोला "ले बहुत पायल-पायल कर रही है ना तो पकड़ इसको….और बता बसंती को कब ले कर आ रही है….."
"हाई मलिक पायल लेकर आए थे….और देखो तब से मुझे तडपा रहे थे…" और पायल को हाथ में ले उलट पुलट कर देखने लगी. मुन्ना ने सोचा जब पेशगी दे ही दी है तो थोड़ा सा काम भी ले लिया जाए और उसका एक हाथ पकड़ खेत में थोड़ा और अंदर खींच लिया. लाजवंती अभी भी पायल में ही खोई हुई थी. मुन्ना ने उसके हाथ से पायल ले ली और बोला "ला पहना दू…" लाजवंती ने चारो तरफ देखा तो पाया की वो खेत के और अंदर आ गई है. किसी के देखने की संभावना नही तो चुप चाप अपनी साड़ी को एक हाथ से पकड़ घुटनो तक उठा एक पैर आगे बढ़ा दिया. मुन्ना ने बड़े प्यार से उसको एक-एक करके पायल पहनाई फिर उसको खींच कर घास पर गिरा दिया और उसकी साड़ी को उठाने लगा. लाजवंती ने कोई विरोध नही किया. दोनो पैरों के बीच आ जब मुन्ना लंड डालने वाला था तभी लाजवंती ने अपने हाथ से लंड पकड़ लिया और बोली "लाओ मैं डालती हू…" और लंड को अपनी चूत के होंठो पर रगड़ती हुई बोली "वैसे छ्होटे मलिक एक बात बोलू….."
"हा बोल…..छेद पर लगा दे टाइम नही है……."
"सोने का चैन बहुत महनगा आता है क्या….." मुन्ना समझ गया कि साली को पायल मिल गयी है बिना गोल्ड की चैन लिए इसकी आत्मा को शांति नही मिलेगी और मुझे बसंती. लंड को उसके हाथ से झटक कर चूत के मुहाने पर लगा कच से पेलता हुआ बोला "महनगा आए चाहे सस्ता तुझे क्या…आम खाने से मतलब रख गुठली मत गिन"
इतना सुनते ही जैसे लाजवंती एकदम गनगॅना गई दोनो बहो का हार मुन्ना के गले में डालती बोली "हाई मलिक…मैं कहा….मैं तो सोच रही थी कही आपका ज़्यादा खर्चा ना हो जाए…..सम्भहाल के मलिक ज़रा धीरे-धीरे आपका बड़ा मोटा है".
"मोटा है तभी तो तेरी जैसी छिनाल की चूत में भी टाइट जाता है…" ज़ोर ज़ोर से धकके लगाता हुआ मुन्ना बोला.
"हाई मालिक चोदो अब ठीक है…..मालिक अपने लंड के जैसा मोटा चैन लेना…..जैसे आपका मोटा लंड खा कर चूत को मज़ा आ जाता है वैसे ही चैन पहन कर……"
"ठीक है भौजी तू चिंता मत कर….सोने से लाद दूँगा….". फिर थोड़ी देर तक धुआँधार चुदाई चलती रही. मुन्ना ने अपना माल झाड़ा और लंड निकल कर उसकी साड़ी से पोछ कर पॅंट पहन लिया. लाजवंती उठ ती हुई बोली "मालिक जगह का उपाय करना होगा. बसंती अनचुड़ी है. पहली बार लेगी वो भी आपका हलब्बी लंड तो बीदकेगी और चिल्लाएगी. ऐसे खेत में जल्दी का काम नही है. आराम से लेनी होगी बसंती की"
मुन्ना कुच्छ सोचता हुआ बोला "ये मेरा जो आम का बगीचा है वो कैसा रहेगा" मुन्ना के बाबूजी ने दो कमरा और बाथरूम बना रखा था वाहा पर सब जानते थे.
"हाई मलिक वाहा पर कैसे…..वाहा तो बाबूजी.." मुन्ना बात समझ गया और बोला तू चिंता मत कर मैं देख लूँगा.
लाजवंती ने हा में सिर हिलाते हुए कहा "हा मलिक ठीक रहेगा…ज़्यादा दूर भी नही फिर रात में किसी बहाने से मैं बसंती को खिसका के लेती आउन्गि"
"चल फिर ठीक है, जैसे ही बसंती मान जाए मुझे बता देना" फिर दोनो अपने अपने रास्ते चल पड़े.
व का राजा पार्ट -9 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
आम के बगीचे में जो मकान या खलिहान जो भी कहे बना था वो वास्तव में चौधरी जब जवान था तब उसकी ऐषगाह थी. वाहा वो रंडिया ले जा कर नाचवाता और मौज मस्ती करता था.
जब से दारू के नशे में डूबा तब से उसने वाहा जाना लगभग छोड़ ही दिया था. बाहर से देखने पर तो खलिहान जैसा गाओं में होता है वैसा ही दिखता था मगर अंदर चौधरी ने उसे बड़ा खूबसूरत और आलीशान बना रखा था. दो क��रे जो की काफ़ी बड़े और एक कमरे में बहुत बड़ा बेड था. सुख सुविधा के सारे समान वाहा थे. 2
वाहा पर एक मॅनेजर जो की चौकीदार का काम भी करता था रहता था. ये मॅनेजर मुन्ना के लिए बहुत बड़ी प्राब्लम था. क्यों कि लाजवंती और बसंती दरअसल उसी की बहू और बेटी थी. लाजवंती उसके बेटे की पत्नी थी जो की शहर में रहता था. मुन्ना बाबू घर पहुच कर कुच्छ देर तक सोचते रहे कैसे अपने रास्ते के इस पत्थ��� को हटाया जाए. खोपड़ी तो शैतानी थी ही. तरक़ीब सूझ गई. उठ कर सीधा आम के बगीचे की ओर चल दिए. मे महीने का पहला हफ़्ता चल रहा था. बगीचे में एक जगह खाट डाल कर मॅनेजर बैठा हुआ दो लड़कियों की टोकरियो में अधपके और कच्चे आम गिन गिन कर रख रहा था. मुन्ना बाबू एक दम से उसके सामने जा कर खड़े हो गये. मॅनेजर हड़बड़ा गया और जल्दी से उठ कर खड़ा हुआ.
"क्या हो रहा है……ये अधपके आम क्यों बेच रहे हो…" मॅनेजर की तो घिघी बँध गई समझ में नही आ रहा था क्या बोले.
"ऐसे ही हर रोज दो टोकरी बेच देते हो क्या …." थोड़ा और धमकाया.
"छ्होटे मलिक….नही छ्होटे मलिक…….वो तो ये बेचारी ऐसे ही…..बड़ी ग़रीब बच्चियाँ है आचार बनाने के लिए माँग रही……" दोनो लड़कियाँ तब तक भाग चुकी थी.
"खूब आचार बना रहे हो…….चलो अभी मा से बोलता हू फिर पता चलेगा….".
मॅनेजर झुक कर पैर पकड़ने लगा. मुन्ना ने उसका हाथ झटक दिया और तेज़ी से घर आ गया. घर आ कर चौधरैयन को सारी बात नमक मिर्च लगा कर बता दी. चुधरैयन ने तुरंत मॅनेजर को बुलवा भेजा खूब झाड़ लगाई और बगीचे से उसकी ड्यूटी हटा दी और चौधरी को बोला कि दीनू को ब्गीचे में भेज दे रखवाली के लिए. अब जितने भी बगीचे थे सब जगह थोड़ी बहुत चोरी तो सारे मॅनेजर करते थे. चौधरी की इतनी ज़मीन ज़ायदाद थी कि उसका ठीक ठीक हिसाब किसी को नही पता था. आम के बगीचे में तो कोई झाँकने भी नही जाता जब फल पक जाते तभी चौधरैयन एक बार चक्कर लगाती थी. मॅनेजर की किस्मत फूटी थी मुन्ना बाबू के चक्कर में फस गया. फिर मुन्ना ने चौधरी से बगीचे वाले मकान की चाभी ले ली. दीनू को बोल दिया मत जाना, गया तो टांग तोड़ दूँगा…तू भी चोर है. दीनू डर के मारे गया ही नही और ना ही किसी से इसकी शिकायत की. जब सब सो जाते तो रात में चाभी ले मुन्ना बाबू खिसक जाते. दो रातो तक लाजवंती की जवानी का रस चूसा आख़िर पायल की कीमत वसूलनी थी. तीसरे दिन लाजवंती ने बता दिया की रात में ले कर आउन्गी. मुन्ना बाबू पूरी तैय्यारि से बगीचे वाले मकान पर पहुच गये. करीब आधे घंटे के बाद ही दरवाजे पर खाट खाट हुई.
मुन्ना ने दरवाजा खोला सामने लाजवंती खड़ी थी. मुन्ना ने धीरे से पोच्छा "भौजी बसंती". लाजवंती ने अंदर घुसते हुए आँखो से अपने पिछे इशारा किया. दरवाजे के पास बसंती सिर झुकाए खड़ी थी. मुन्ना के दिल को करार आ गया. बसंती को इशारे से अंदर बुलाया. बसंती धीरे-धीरे सर्माती सकुचाती अंदर आ गई. मुन्ना ने दरवाजा बंद कर दिया और अंदर वाले कमरे की ओर बढ़ चला. लाजवंती, बसंती का हाथ खींचती हुई पिछे-पिछे चल पड़ी. अंदर पहुच कर मुन्ना ने अंगड़ाई ली. उसने लूँगी पहन रखी थी. लाजवंती को हाथो से पकड़ अपनी ओर खींच लिया और उसके होंठो पर चुम्मा ले बोला "के बात है भौजी आज तो कयामत लग रही हो….." images
"हाई छ्होटे मलिक आप तो ऐसे ही…..बसंती को ले आई…." बसंती बेड के पास चुप चाप खड़ी थी.
"हा वो तो देख ही रहा हू…."
"हा मलिक लाजवंती अपना किया वादा नही भूलती……लोग भूल जाते है……" मुन्ना ने पास में पड़े कुर्ते में हाथ डाल कर एक डिब्बा निकाला और लाजवंती के हाथो में थमा दिया. फिर उसकी कमर के पास से पकड़ अपने से चिपका उसके चूतरो को कस कर दबाता हुआ बोला "आते ही अपनी औकात पर आ गई……खोल के देख….." लाजवंती ने खोल के देखा तो उसकी आँखो में चमक आ गई.
"हाई मलिक मैं आपके बारे में कहा बोल रही थी…..मुझे क्या पता नही की चौधरी ख़ानदान के लोग… कितने पक्के होते है….हाई मार दिया …हड्डिया तर्तर गई…"
लाजवंती की गांद की दरार में साडी के उपर से उंगली चलाते हुए उसके गाल पर दाँत गाढ उसकी एक चुचि पकड़ी और कस कर चिपकाया. लाजवंती "आ मालिक आआआअ उईईईई" करने लगी. बसंती एक ओर खड़ी होकर उन दोनो को देख रही थी. मुन्ना ने लाजवंती को बिस्तर पर पटक दिया. बिस्तर इतना बड़ा था की चार आदमी एक साथ सो सके. दोनो एक दूसरे से गुत्थम गुथा हो कर बिस्तर पर लुढ़कने लगे. होंठो को चूस्ते हुए कभी गाल काट ता कभी गर्दन पर चुम्मि लेता. चुचि को पूरी ताक़त से मसल देता था. चूतर दबोच कर गांद में साड़ी के उपर से ऐसे उंगली कर रहा था जैसे पूरी साड़ी घुसा देगा. लाजवंती के मुँह से "आ हा आह….उईईईईईईईईई मालिक निकल रहा था.." तभी फुसफुसाते हुए बोली "मेरे पर ही सारा ज़ोर निकलोगे क्या…..बसंती तो….." मुन्ना भी फुसफुसाते हुए बोला "अरी खड़ी रहने दे तुझे एक बार चोद देता हू….फिर खुद गरम हो जाएगी…." मुन्ना की चालाकी समझ वो भी चुप हो गई. फिर मुन्ना ने जल्दी से लाजवंती को पूरा नंगा कर दिया. अपनी ननद के सामने पूरा नंगा होने पर शर्मा कर बोली "हाई मालिक कुच्छ तो छोड़ दो….." मुन्ना अपनी लूँगी खोलते हुए बोला "आज तो पूरा नंगा करके….साडी उठाने से काम नही चलेगा भौजी"
मुन्ना का दस इंच लंबा लंड देख कर बसंती एकदम सिहर गई. मगर लाजवंती ने लपक कर अपने हाथो में थाम लिया और मसल्ने लगी. मुन्ना मसनद के सहारे बैठ ता हुआ बोला "रानी ज़रा चूसो…". लाजवंती बैठ कर सुपरे की चमड़ी हटा जीभ फिराती हुई बोली "मालिक बसंती ऐसे ही खड़ी रहेगी क्या…."
"आरे मैने कब कहा खड़ी रहने को…बैठ जाए…."
"ऐसी क्या बेरूख़ी मलिक……बेचारी को अपने पास बुला लो ना…." पूरे लंड को अपने मुँह में ले चूस्ते हुए बोली.
" बहुत अच्छा भौजी……अच्छे से चूसो…..मैं कहा बेरूख़ी दिखा रहा हू वो तो खुद ही दूर खड़ी है….."
"है मलिक जब से आई है आपने कुच्छ बोला नही है……बसंती आ जा…..अपने छ्होटे मालिक बहुत अच्छे है…..शहर से पढ़ लिख कर आए है…गाओं के गँवारो से तो लाख दर्जा अच्छे है……" बसंती थोडा सा हिचकी तो लंड छोड़ कर लाजवंती उठी और हाथ पकड़ बेड पर खींच लिया. मुन्ना ने एक और मसनद लगा उसको थप थपाते हुए इशारा किया. बसंती शरमाते हुए मुन्ना की बगल में बैठ गई. लाजवंती ने मुन्ना का लंड पकड़ हिलाते हुए दिखाया "देख कितना अच्छा है अपने छ्होटे मलिक का….एकदम घोड़े के जैसा है….ऐसा पूरे गाओं में किसी का नही…". और फिर से चूसने लगी. झुके पॅल्को के नीचे से बसंती ने मुन्ना का हलब्बी लंड देखा दिल में एक अजीब सी कसक उठी. हाथ उसे पकड़ने को ललचाए मगर शर्मो हया का दामन नही छोड़ पाई. मुन्ना ने बसंती की कमर में हाथ डाल अपनी तरफ खींचा "शरमाती क्यों है आराम से बैठ…….आज तो बड़ी सुंदर लग रही है…..खेत में तो तुझे अपना लंड दिखाया था ना….तो फिर क्यों शर्मा रही है." बसंती ने शर्मा कर गर्दन झुका ली. उस दिन के मुन्ना और आज के मुन्ना में उसे ज़मीन आसमान का अंतर नज़र आया. उस दिन मुन्ना उसके सामने गिडगीडा रहा था उसको लहंगे का तोहफा दे कर ललचाने की कोशिश कर रहा था और आज का मुन्ना अपने पूरे रुआब में था वो इसलिए क्योंकि आज वो खुद उसके दरवाजे तक चल कर आई थी.
"हाई मलिक…मैने आज तक कभी….."
"आरे तेरी तो शादी हो गई है दो महीने बाद गौना हो कर जाएगी तो फिर तेरा पति तो दिखाएगा ही…"
"धात मलिक……."
"तेरा लहनगा भी लाया हू…लेती जाना…..सुहागरात के दिन पहन ना…" कह कर अपने पास खींच उसकी एक चुचि को हल्के से पकड़ा. बसंती शर्मा कर और सिमट गई. मुन्ना ने ठोडी से पकड़ उसका चेहरा उपर उठा ते हुए कहा "एक चुम्मा दे….बड़ी नशीली लग रही है" और उसके होंठो से अपने होंठ सटा कर चूसने लगा. बसंती की आँखे मूंद गई. मुन्ना ने उसके होंठो को चूस्ते हुए उसकी चुचि को पकड़ लिया और खूब ज़ोर ज़ोर से दबाते हुए उसकी चोली में हाथ घुसा दिया. बसंती एक दम से छटपटा गई.
"उईईईईई मलिक सीई…" मुन्ना ने धीरे से उसकी चोली के बटन खोलने की कोशिश की तो बसंती ने शर्मा कर मुन्ना का हाथ हल्के से हटा दिया. लाजवंती लंड को पू���ा मुँह में ले चूस रही थी. उसकी लटकती हुई चुचि को पकड़ दबाते हुए मुन्ना बोला "देखो भौजी कैसे शर्मा रही है….पहले तो चुप चाप वाहा खड़ी रही अब कुच्छ करने नही दे रही……" लाजवंती लंड पर से मुँह हटा बसंती की ओर खिसकी और उसके गालो को चुटकी में मसल बोली "हाई मलिक पहली बार है बेचारी का शर्मा रही है…लाओ मैं खोल देती हू…"
"मेरे हाथो में क्या बुराई है…"
"मलिक बुराई आपके हाथो में नही लंड में है….देख कर डर गई है" फिर धीरे से बसंती की चोली खोल अंगिया निकाल दी. बसंती और उसकी भौजी दोनो गेहूए (वीटिश) रंग की थी. मतलब बहुत गोरी तो नही थी मगर काली भी नही थी. बसंती की दोनो चुचियाँ छोटी मुट्ठी में आ जाने लायक थी. निपल गुलाबी और छ्होटे-छ्होटे. एक दम अनटच चुचि थी. कठोर और नुकीली. मुन्ना ने एक चुचि को हल्के से थाम लिया.
"हाई क्या चुचि है…मुँह में डाल कर पीने लायक…" और दूसरी चुचि पर अपना मुँह लगा जीभ निकाल कर निपल को छेड़ते हुए चारो तरफ घुमाने लगा. बसंती सिहर उठी. पहली बार जो था. सिसकते हुए मुँह से निकला " भाभी….." लाजवंती ने उसका हाथ पकड़ कर मुन्ना के लंड पर रख दिया और उसके होंठो को चूम बोली "पकड़ के तू भी मसल छ्होटे मलिक तो अपने खिलोने से खेल रहे है….ये हम लोगो का खिलोना है" मुन्ना दोनो चुचियों को बारी बारी से चूसने लगा. बड़ा मज़ा आ रहा था उसको. कुच्छ देर बाद उसने बसंती को अपनी गोद में खींच लिया और अपने लंड पर उसको बैठा लिया "आओ रानी तुझे झूला झूला दू…..शर्मा मत…शरमाएगी तो सारा मज़ा तेरी भाभी लूट लेगी" मुन्ना का खड़ा लंड उसकी गांद में चुभने लगा. ठीक गांद की दरार के बीच में लंड लगा कर दोनो चुचि मसल्ते हुए गाल और गर्दन को चूमने लगा. तभी लाजवंती ने मुन्ना का हाथ पकड़ अपनी ढीली चुचि पर रखते हुए कहा "हाई मलिक कोरा माल मिलते ही मुझे भूल गये"
"तुझे कैसे भूल जाउन्गा छ���नाल…चल आ अपनी चुचि पीला मैं तब तक इसकी दबाता हू"
"हाई मलिक पीजिए……अपनी इस छिनाल भौजी की चुचि को….ओह हो सस्ससे…" मुन्ना तो जन्नत में था दोनो हाथ में दो अछूती चुचि लंड के उपर अनचुड़ी लौंडिया अपना गांद ले कर बैठी हुई थी और मुँह में खुद से चुचि थेल थेल कर पिलाती रंडी. दो चुचियों को मसल मसल कर और दो को चूस चूस कर लाल कर दिया. चुचि चुस्वा कर लाजवंती एकद्ूम गरम हो गई अपने हाथ से अपनी चूत को रगड़ने लगी. मुन्ना ने देखा तो मुस्कुरा दिया और बसंती को दिखाते हुए बोला "देख तेरी भौजी कैसे गरमा गई है… हाथी का भी लंड लील जाएगी." देख कर बसंती शर्मा कर "धात मलिक.....आपका तो खुद घोड़े जैसा…" इतनी देर में वो भी थोड़ा बहुत खुल चुकी थी.
"अच्छा है ना ?"
"धात मलिक….. आपका बहुत मोटा.."
"मोटे और लंब लंड से ही मज़ा आता है…..क्यों भौजी"
"हा छ्होटे मलिक आपका तो बड़ा मस्त लंड है…मेरे जैसी चुदी हुई में भी…..बसंती को भी चुस्वओ मालिक" एक हाथ से बसंती की चुचि को मसल्ते हुए दूसरे से बसंती का लहनगा उठा उसकी नंगी जाँघो पर हाथ फेरते हुए मुन्ना ने पुचछा "चुसेगी….अच्छा लगेगा…..तेरी भौजी तो इसकी दीवानी है..".
"धात मलिक…..भौजी को इसकी आदत है…"
"शरमाना छोड़…..देख मैं तेरी चुचि दबाता हू तो मज़ा आता है ना.."
"हाँ मलिक……अच्छा लगता है"
"और तेरी चुचि दबाने में मुझे भी मज़ा आता है…वैसे ही लंड चुसेगी तो…."
"हाई मलिक भौजी से चुस्वओ…"
"भौजी तो चुस्ती है….तू भी इसका स्वाद ले….शरमाएगी तो फिर….भौजी छोड़ो इसको तुम ही आ जाओ ये बहुत शर्मा रही है…"कह कर मुन्ना ने अपने हाथ बसंती के बदन पर से हटा लिए और उसको अपनी गोद से हल्के से नीचे उतार दिया. बसंती जो अब तक मज़े के लहर में डूबी हुई थी जब उसका मज़ा थोड़ा हल्का हुआ तो होश आया. तब तक लाजवंती फिर से अपने छ्होटे मालिक का लंड अपने मुँह में ले चुचि मीसवाति हुई मज़ा लूट रही थी. बसंती अपनी ललचाई आँखो से उसको देखने लगी.
उसका मन कर रहा था की फिर से जा कर मुन्ना की गोद में बैठ जाए और कहे " मालिक चुचि दबाओ…..आप जो कहोगे मैं करूँगी…". पर चुप चाप वही बैठी रही. लाजवंती ने लंड को मुँह से निकाल हिलाते हुए उसको दिखाया और बोली "तेरी तो किस्मत ही फूटी है…वही बैठी रह और देख-देख कर ललचा…".
"धात भाभी मेरे से नही…."
देती हू…" बसंती का मन तो ललचा ही रहा था. धीरे से सरक कर पास गई. लाजवंती ने मोटा बलिश्त भर का लंड उसके हाथ में थमा दिया और उसके सिर को पकड़ नीचे झुकाती हुई बोली "ले आराम से जीभ निकाल कर सुपरा चाट…फिर सुपरे को मुँह भर कर चूसना….पूरा लंड तेरे मुँह में नही जाएगा अभी….". बसंती लंड का सुपरा मुँह में ले चूसने लगी. पहले धीरे-धीरे फिर ज़ोर ज़ोर से. भौजी को देख आख़िर इतना तो सीख ही लिया था. मुन्ना के पूरे बदन में आनंद की तरंगे उठ रही थी. शहर से आने के बहुत दीनो बाद ऐसा मज़ा उसे मिल रहा था. लाजवंती उसको अंडकोषो को पकड़ अपने मुँह में भर कर चुँला ते हुए चूस रही थी. xxx-sex-photo-lund-
कुच्छ देर तक लंड चुसवाने के बाद मुन्ना ने दोनो को हटा दिया और बोला
"भौजी ज़रा अपनी ननद के लल्मुनिया के दर्शन तो कर्वाओ…"
"हाई मलिक नज़राना लगेगा….एक दम कोरा माल है आज तक किसी ने नही…"
"तुझे तो दिया ही है…अपनी बसंती रानी को भी खुश कर दूँगा…मैं भी तो देखु कोरा माल कैसा…."
" मलिक देखोगे तो बिना चोदे निकाल दोगे…इधर आ बसंती अपनी ननद रानी को तो मैं गोद मैं बैठा कर…" कहते हुए बसंती को खीच कर अपनी गोद मैं बैठा लिया और उसके लहंगे को धीरे-धीरे कर उठाने लगी. शरम और मज़े के कारण बसंती की आँखे आधी बंद थी. मुन्ना उसकी दोनो टांगो के बीच बैठा हुआ उसके लहंगे को उठ ता हुआ देख रहा था. बसंती की गोरी-गोरी जंघे बड़ी कोमल और चिकनी थी.
बसंती ने लहंगे के नीचे एक पॅंटी पहन रखी थी जैसा गाओं की कुँवारी लरकियाँ आम तौर पर पहनती है. लहनगा पूरा उपर उठा पॅंटी के उपर हाथ फेरती लाजवंती बोली "कछि फाड़ कर दिखाउ.."
" जैसे मर्ज़ी वैसे दिखा…..तू कछि फाड़ मैं फिर इसकी चूत फाड़ुँगा"
लाजवंती ने कछि के बीच में हाथ रखा और म्यानी की सिलाई जो थोड़ी उधरी हुई थी में अपने दोनो हाथो की उंगलियों को फसा छर्ररर से कछि फाड़ दी. बसंती की 16 साल की कच्ची चूत मुन्ना की भूखी आँखो के सामने आ गई. हल्के हल्के झांतो वाली एक दम कचोरी के जैसी फूली चूत देख कर मुन्ना के लंड को एक जोरदार झटका लगा. लाजवंती ने बसंती की दोनो टाँगे फैला दी और बसंती की चूत के उपर हाथ फेरती हुई पॅंटी को फाड़ पूरा दो भाग में बाँट दिया और उसकी चूत के गुलाबी होंठो पर उंगली चलाते हुए बोली " छ्होटे मालिक देखो हमारी ननद रानी की लल्मुनिया…" नंगी चूत पर उंगली चलाने से बसंती के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई. सिसकार कर उसने अपनी आँखे पूरी खोल दी. मुन्ना को अपनी चूत की तरफ भूखे भेड़िए की तरह से घूरते देख उसका पूरा बदन सिहर गया और शरम के मारे अपनी जाँघो को सिकोड़ने की कोशिश की मगर लाजवंती के हाथो ने ऐसा करने नही दिया. वो तो उल्टा बसंती की चूत के गुलाबी होंठो को अपनी उंगलियों से खोल कर मुन्ना को दिखा रही थी "हाई मलिक देख लो कितना खरा माल है…ऐसा माल पूरे गाओं में नही…वो तो बड़े चौधरी के बाबूजी पर इतने अहसान है कि मैं आपको मना नही कर पाई….नही तो ऐसा माल कहा मिलता है…"
"हा रानी सच कह रही है तू….मार डाला तेरी ननद ने तो…क्या ललगुडिया चूत है.."
"खाओगे मालिक…चख कर देखो"
"ला रानी खिला....कोरी चूत का स्वाद कैसा होता है…" लाजवंती ने दोनो जाँघो को फैला दिया. मुन्ना आगे सरक कर अपने चेहरे को उसकी चूत के ��ास ले गया और जीभ निकाल कर चूत पर लगा दिया. चूत तो उसने मामी की भी चूसी थी मगर वो चूड़ी चूत थी कच्ची कोरी चूत उपर जीभ फिराते ही उसे अहसास हो गया की अनचुड़ी चूत का स्वाद अनोखा होता है. लाजवंती ने चूत के होंठो को अपनी उंगली फसा कर खोल दिया. चूत के गुलाबी होंठो पर जीभ चलते ही बसंती का पूरा बदन अकड़ कर काँपने लगा.
"उूउउ…….भौजी….सीई मालिक….."
चूत के गुलाबी होंठो के बीच जीभ घुसाते ही मुन्ना को अनचुड़ी चूत के खारे पानी का स्वाद जब मिला तो उसका लंड अकड़ के उप डाउन होने लगा. मुन्ना ने चूत के दोनो छ्होटे छ्होटे होंठो को अपने मुँह में भर खूब ज़ोर ज़ोर से चूसा और फिर जीभ पेल कर घुमाने लगा. बसंती की अनचुड़ी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया. जीभ को चूत के च्छेद में घुमते हुए उसके भज्नसे को अपने होंठो के बीच कस कर चुँलने लगा. लाजवंती उसकी चुचियों को मसल रही थी. बसंती के पूरे तन-बदन में आग लग गई. मुँह से सिसकारियाँ निकालने लगी. लाजवंती ने पुचछा
"बिटो मज़ा आ रहा है…
" मालिक…ऊऊ उउउस्स्स्स्सिईईईई भौजी बहुत…उफफफ्फ़…भौजी बचा लो मुझे कुच्छ हो जाएगा…उफफफफ्फ़ बहुत गुद-गुड़ी…सीई मालिक को बोलो जीभ हटा ले…हीईीई." लाजवंती समझ गई कि मज़े के कारण सब उल्टा पुल्टा बोल रही है. उसकी चुचियों से खेलती हुई बोली " मालिक…चाटो…अच्छे से…अनचुड़ी चूत है फिर नही मिलेगी…पूरी जीभ पेल कर घूमाओ..गरम हो जाएगी तब खुद…"
मुन्ना भी चाहता था कि बसंती को पूरा गरम कर दे फिर उसको भी आसानी होगी अपना लंड उसकी चूत में डालने में यही सोच उसने अपनी एक उंगली को मुँह में डाल थूक से भीगा कर कच से बसंती की चूत में पेल दिया और टीट के उपर अपनी जीभ लफ़र लफ़र करते हुए चलाने लगा. उंगली जाते ही बसंती सिसक उठी. पहली बार कोई चीज़ उसके चूत के अंदर गई थी. हल्का सा दर्द हुआ मगर फिर कच-कच चलती हुई उंगली ने चूत की दीवारों को ऐसा रगड़ा कि उसके अंदर आनंद की एक तेज लहर दौर गई. ऐसा लगा जैसे चूत से कुच्छ निकलेगा मगर तभी मुन्ना ने अपनी उंगली खीच ली और भज्नाशे पर एक ज़ोर दार चुम्मा दे उठ कर बैठ गया. मज़े का सिलसिला जैसे ही टूटा बसंती की आँखे खुल गई. मुन्ना की ओर असहाय भरी नज़रो देखा.
"मज़ा आया बसंती रानी……"
"हाँ मलिक…सीई" करके दोनो जाँघो को भीचती हुई बसंती सरमाई.
"अर्रे शरमाती क्यों है…मज़ा आ रहा है तो खुल के बता…और चाटू.."
"हाई मालिक….मैं नही जानती" कह कर अपने मुँह को दोनो हाथो से ढक कर लाजवंती की गोद में एक अंगड़ाई ली.
"तेरी चूत तो पानी फेंक रही है"
बसंती ने जाँघो को और कस कर भींचा और लाजवंती की छाती में मुँह छुपा लिया.
मुन्ना समझ गया की अब लंड खाने लायक तैय्यार हो गई है. दोनो जाँघो को फिर से खोल कर चूत के फांको को चुटकी में पकड़ कर मसलते हुए चूत के भज्नाशे को अंगूठे से कुरेदा और आगे झुक कर बसंती का एक चुम्मा लिया. लाजवंती दोनो चुचियों को दोनो हाथो में थाम कर दबा रही थी. मुन्ना ने फिर से अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में पेल दी और तेज़ी से चलाने लगा. बसंती सिसकने लगी. "हाई मलिक निकल जाएगा…सीई म्म्म मालिक "
"क्या निकल जाएगा….पेशाब करेगी क्या….."
"हा मलिक….सीई पेशाब निकल….." मुन्ना ने सटाक से उंगली खींच ली..."ठीक है जा पेशाब कर के आ जा…मैं तब तक भौजी को चोद देता हू…"
लाजवंती ने बसंती को झट गोद से उतार दिया और बोली "हा मलिक……बहुत पानी छोड़ रही है…" उंगली के बाहर निकलते ही बसंती आसमान से धरती पर आ गई. पेशाब तो लगा नही था
गाँव का राजा पार्ट -10 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
चूत अपना पानी निकालना चाह रही थी ये बात उसकी समझ में तुरंत आ गई. मगर तब तक तो ��ाशा पलट चुक्का था. उसने देखा कि लाजवंती अपनी दोनो टांग फैला लेट गई थी और मुन्ना, लाजवंती की दोनो जाँघो के बीच लंड को चूत के छेद पर टिका दोनो चुचि दोनो हाथ में थाम पेलने ही वाला था. बसंती एक दम जल भुन कर कोयला हो गई. उसका जी कर रहा था कि लाजवंती को धकेल कर हटा दे और खुद मुन्ना के सामने लेट जाए और कहे की मालिक मेरी में डाल दो. तभी लाजवंती ने बसंती को अपने पास बुलाया " बसंती आ इधर आ कर देख कैसे छ्होटे मालिक मेरी में डालते है….तेरी भी ट्रैनिंग…."
बसंती मन मसोस कर सरक कर मन ही मन गाली देते हुए लाजवंती के पास गई तो उसने हाथ उठा उसकी चुचि को पकड़ लिया और बोली "देख कैसे मालिक अपना लंड मेरी चूत में डालते है ऐसे ही तेरी चूत में भी…"
मुन्ना ने अपना फनफनता हुआ लंड उसकी चूत से सटा ज़ोर का धक्का मारा एक ही झटके में कच से पूरा लंड उतार दिया. लाजवंती कराह उठी "हायययययययययययी मालिक एक ही बार में पूरा……सीईए"
"साली इतना नाटक क्यों चोदती है अभी भी तेरे को दर्द होता है….."
"हायययययी मालिक आपका बहुत बड़ा है…." फिर बसंती की ओर देखते हुए बोली "…तू चिंता मत कर तेरी में धीरे-धीरे खुद हाथ से पकड़ के दल्वाउन्गि… तू ज़रा मेरी चुचि चूस". मुन्ना अब ढ़ाचा-ढ़च धक्के मार रहा था. कमरे में लाजवंती की सिसकारियाँ और धच-धच फॅक-फॅक की आवाज़ गूँज रही थी.
"हिआआआय्य्य्य्य्य्य्य्य मालिक ज़ोर…. और ज़ोर से चोदो मलिक……ही सीईई"
"हा मेरी छिनाल भौजी तेरी तो आज फाड़ दूँगा….बहुत खुजली है ना तेरी चूत में…ले रंडी…खा मेरा लंड…सीई कितना पानी छोड़ती है……कंजरी"
"हायीईईईई मालिक आज तो आप कुच्छ ज़यादा ही जोश में….हा फाड़ दो मलिक "
"आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह भौजी मज़ा आ गया….तूने ऐसी कचोरी जैसी चूत का दर्शन करवाया है कि बस…लंड लोहा हो गया है…ऐसा ही मज़ा आ रहा है ना भौजी…आज तो तेरी गांद भी मारूँगा….सीईए शियैयीयी"
बसंती देख रही थी की उसकी भाभी अपना गांद हवा में लहरा लहरा कर मुन्ना का लंड अपनी ढीली चूत में खा रही थी और मुन्ना भी गांद उठा-उठा कर उसकी चूत में दे रहा था. मन ही मन सोच रही थी की साला जोश में मेरी चूत को देख कर आया है मगर चोद भाभी को रहा है. पता नही चोदेगा कि नही.
करीब पंद्रह मिनिट की ढकां पेल चोदा चोदि के बाद लाजवंती ने पानी छोड़ दिया और बदन आकड़ा कर मुन्ना की छाती से लिपट गई. मुन्ना भी रुक गया वो अपना पानी आज बसंती की अनचुदी बुर में ही छोड़ना चाहता था. अपनी सांसो को स्थिर करने के बाद. मुन्ना ने उसकी चूत से लंड खींचा. पाक की आवाज़ के साथ लंड बाहर निकल गया. चूत के पानी में लिपटा हुआ लंड अभी भी तमतमाया हुआ था लाल सुपरे पर से चमड़ी खिसक कर नीचे आ गई थी. पास में पड़ी साड़ी से पोच्छने के बाद वही मसनद पर सिर रख कर लेट गया. उसकी साँसे अभी भी तेज चल रही थी. लाजवंती को तो होश ही नही था. आँखे मुन्दे टांग फैलाए बेहोश सी पड़ी थी. बसंती ने जब देखा की मुन्ना अपना खड़ा लंड ले कर ऐसे ही लेट गया तो उस से रहा नही गया. सरक कर उसके पास गई और उसकी जाँघो पर हल्के से हाथ रखा है. मुन्ना ने आँखे खोल कर उसकी तरफ देखा तो बसंती ने मुस्कुराते हुए कहा
"हाययययययययी मालिक मुझे बड़ा डर लग रहा हा आपका बहुत लंबा…"
मुन्ना समझ गया की साली को चुदास लगी हुई है. तभी खुद से उसके पास आ कर बाते बना रही है कि मोटा और लंबा है. मुन्ना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"अर्रे लंबे और मोटे लंड से ही तो मज़ा आता है एक बार खा लेगी फिर जिंदगी भर याद रखेगी चल ज़रा सा चूस तो….खाली सुपरा मुँह भर कर…जैसे टॉफी खाते है ना वैसे……" कहते हुए बसंती का हाथ पकड़ के खींच कर अपने लंड पर रख दिया. बसंती ने शरमाते सकुचते अपने सिर को झुका दिया मुन्ना ने कहा "अरे शरमाना छोड़ रानी..." और उसके सिर को हाथो से पकड़ झुका कर लंड का सुपरा उसके होंठो पर रख दिया. बसंती ने भी अपने होंठ धीरे खोल कर लंड के लाल सुपरे को अपने मुँह में भर लिया. लाजवंती वही पास पड़ी ये सब देख रही थी. थोड़ी देर में जब उसको होश आया तो उठ कर बैठ गई और अपनी ननद के पास आ कर उसकी चूत अपने हाथ से टटोलती हुई बोली "बहुत हुआ रानी कितना चुसेगी…अब ज़रा मूसल से कुटाई करवा ले" और बसंती के मुँह को मुन्ना के लंड पर से हटा दिया और मुन्ना का लंड पकड़ के हिलाती हुई बोली "हाई मलिक….जल्दी करिए…बुर एकदम पनिया गई है".
"हा भौजी….क्यों बसंती डाल दू ना…"
"हि मालिक मैं नही जानती.."
"…चोदे ना..."
"हाय्य्य्य्य्य…मुझे नही…जो आपकी मर्ज़ी हो…"
"अर्रे क्या मालिक आप भी….चल आ बसंती यहा मेरी गोद में सिर रख कर लेट" इतना कहते हुए लाजवंती ने बसंती को खींच कर उसका सिर अपनी गोद में ले लिया और उसको लिटा दिया. बसंती ने अपनी आँखे बंद कर अपने दोनो पैर पसारे लेट गई थी. मुन्ना उसके पैरों को फैलाते हुए उनके बीच बैठ गया. फिर उसने बसंती के दोनो पैर के टख़नो को पकड़ कर उठाते हुए उसके पैरो को घुटने के पास से मोड़ दिया. बसंती मोम की गुड़िया बनी हुई ये सब करवा रही थी. तभी लाजवंती बोली "मालिक इसकी गांद के नीचे तकिया लगा दो…आराम से घुस जाएगा". मुन्ना ने लाजवंती की सलाह मान कर मसनद उठाया और हाथो से ठप थापा कर उसको पतला कर के बसंती के चूतरो के नीचे लगा दिया. बसंती ने भी आराम से गांद उठा कर तकिया लगवाया. दोनो जाँघो के बीच उसकी अनचुदी हल्की झांतो वाली बूर चमचमा रही थी. चूत के दोनो गुलाबी फाँक आपस में सटे हुए थे. मुन्ना ने अपना फंफनता हुआ लंड एक हाथ से पकड़ कर बुर् के फुलते पिचकते छेद पर लगा दिया और रगड़ने लगा. बसंती गणगना गई. गुदगुदी के कारण अपनी जाँघो को सिकोड़ने लगी. लाजवंती उसकी दोनो चुचियों को मसल्ते हुए उनके निपल को चुटकी में पकड़ मसल रही थी.
"मालिक नारियल तेल लगा लो.." लाजवंती बोली
"चूत तो पानी फेंक रही है…इसी से काम चला लूँगा.."
"अर्रे नही मालिक आप नही जानते…आपका सुपरा बहुत मोटा है…नही घुसेगा…लगा लो"
मुन्ना उठ कर गया और टेबल से नारियल तेल का डिब्बा उठा लाया. फिर बसंती की जाँघो के बीच बैठ कर तेल हाथ में ले उसकी चूत उपर मल दिया. फांको को थोड़ा फैला कर उसके अंदर तेल टपका दिया.
"अपने सुपरे और लंड पर भी लगा लो मलिक" लाजवंती ने कहा. मुन्ना ने थोडा तेल अपने लंड पर भी लगा दिया.
"बहुत नाटक हो गया भौजी अब डाल देता हू.."
"हा मालिक डालो" कहते हुए लाजवंती ने बसंती की अनचुड़ी बुर के छेद की दोनो फांको को दोनो हाथो की उंगलियों से चौड़ा दिया. मुन्ना ने चौड़े हुए छेद पर सुपरे को रख कर हल्का सा धक्का दिया. कच से सुपरा कच्ची बुर को चीरता अंदर घुसा. बसंती तड़प कर मछली की तरह उछली पर तब तक लाजवंती ने अपना हाथ चूत पर से हटा उसके कंधो को मजबूती से पकड़ लिया था. मुन्ना ने भी उसकी जाँघो को मजबूती से पकड़ कर फैलाए रखा और अपनी कमर को एक और झटका दिया. लंड सुपरा सहित चार इंच अंदर धस गया. बसंती को लगा बुर में कोई गरम डंडा डाल रहा है मुँह से चीख निकल गई "आआआ मार..माररर्र्ररर गेयीयियीयियी". आह्ह्ह्ह्ह्ह भाभी बचाऊऊऊलाजवंती उसके उपर झुक कर उसके होंठो और गालो को चूमते हुए चूची दबाते हुए बोली "कुच्छ नही हुआ बित्तो कुच्छ नही…बस दो सेकेंड की बात है". मुन्ना रुक गया उसको नज़र उठा इशारा किया काम चालू रखो. मुन्ना समझ गया और लंड खींच कर धक्का मारा और आधे से अधिक लंड को धंसा दिया. बसंती का पूरा बदन अकड़ गया था. खुद मुन्ना को लग रहा था जैसे किसी जलती हुए लकड़ी के गोले के अंदर लंड घुसा रहा है लंड की चमड़ी पूरी उलट गई. आज के पहले उसने किसी अनचुड़ी चूत में लंड नही डाला था. जिसे भी चोदा था वो चुदा हुआ भोसड़ा ही था. बसंती के होंठो को लाजवंती ने अपने होंठो के नीचे कस कर दबा रखा था इसलिए वो घुटि घुटे आवाज़ में चीख रही थी और छटपटा रही थी. मुन्ना उसकी इन चीखो को सुन रुका मगर लाजवंती ने तुरंत मुँह हटा कर कहा "मालिक झटके से पूरा डाल दो एक बार में….ऐसे धीरे धीरे हलाल करोगे तो और दर्द होगा साली को…डालो" मुन्ना ने फिर कमर उठा कर गांद तक का ज़ोर लगा कर धक्का मारा. कच से नारियल तेल में डूबा लंड बसंती की अनचुड़ी चूत की दीवारों को कुचालता हुआ अंदर घुसता चला गया. बसंती ने पूरा ज़ोर लगा कर लाजवंती को धकेला और चिल्लाई "ओह…..मार दियाआआअ….आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हहरामी ने मार दिया….कुट्टी साली भौजी हरम्जदि……बचा लूऊऊऊ…आआ फाड़ दीयाआआआआअ…खून भीईीईईईईईईई…" अरीईईईई कोइईईईईई तूऊऊऊओ बचाऊऊऊऊलाजवंती ने जल्दी से उसका मुँह बंद करने की कोशिश की मगर उसने हाथ झटक दिया. मुन्ना अभी भी चूत में लंड डाले उसके उपर झुका था.
"लंड बाहर निकालो,आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह मुझे नही चुदाआआआआआनाआआआआअ ... भौजिइइईईईईईईई को चोदूऊऊओ... मलिक उतर जाओ... तुम्हरीईईईईए पाओ पड़ती हू... मररर्र्र्र्र्ररर जाउन्गीईईईई.." तब लाजवंती बोली "मालिक रूको मत…जल्दी जल्दी धक्का मारो मैं इसकी चुचि दबाती हू ठीक हो जाएगा.." बस मुन्ना ने बसंती की कलाईयों को पकड़ नीचे दबा दिया और कमर उठा-उठा कर आधा लंड खींच-खींच कर धक्के लगाना शुरू कर दिया. कुच्छ देर में सब ठीक हो गया. बसंती गांद उचकाने लगी. चेहरे पर मुस्कान फैल गई. लॉरा आराम से चूत के पानी में फिसलता हुआ सटा-सॅट अंदर बाहर होने लगा….. images
उस रात भर खूब रासलीला हुई. बसंती कीदो बार चुदाइ हुई. चूत सूज गई मगर दूसरी बार में उसको खूब मज़ा आया. बुर से निकले खून को देख पहले थोड़ा सहम गई पर बाद में फिर खुल कर चुदवाया. सुबह चार बजे जब अगली रात फिर आने का वादा कर दोनो विदा हुई तो बसंती थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी मगर उसके आँखो में अगली रात के इंतेज़ार का नशा झलक रहा था. मुन्ना भी अपने आप को फिर से तरो ताज़ा कर लेना चाहता था इसलिए घोड़े बेच कर सो गया.
आम के बगीचे में मुन्ना की कारस्तानिया एक हफ्ते तक चलती रही. मुन्ना के लिए जैसे मौज मज़े की बाहर आ गई थी. तरह तरह के कुतेव और करतूतो के साथ उसने लाजवंती और बसंती का खूब जम के भोग लगाया. पर एक ना एक दिन तो कुच्छ गड़बड़ होनी ही थी और वो हो गई. एक रात जब बसंती और लाजवंती अपनी चूतो की कुटाई करवा कर अपने घर में घुस रही थी कि आया की नज़र पर गई. वो उन्दोनो के घर के पास ही रहती थी. उसके शैतानी दिमाग़ को झटका लगा की कहा से आ रही है ये दोनो. लाजवंती के बारे में तो पहले से पता था की गाओं भर की रंडी है. ज़रूर कही से चुदवा कर आ रही होगी. मगर जब उसके साथ बसंती को देखा तो सोचने लगी की ये छ्छोकरी उसके साथ कहाँ गई थी.
दूसरे दिन जब नदी पर नहाने गई तो संयोग से लाजवंती भी आ गई. लाजवंती ने अपनी साड़ी ब्लाउस उतारा और पेटिकोट खींच कर छाती पर बाँध लिया. पेटिकोट उँचा होते ही आया की नज़र लाजवंती के पैरो पर पड़ी. देखा पैरो में नये चमचमाते हुए पायल. और लाजवंती भी ठुमक ठुमक चलती हुई नदी में उतर कर नहाने लगी.
"अर्रे बहुरिया मरद का क्या हाल चाल है…"
"ठीक ठाक है चाची….परसो चिट्ठी आई थी"
"बहुत प्यार करता है…और लगता है खूब पैसे भी कमा रहा है"
"का मतलब चाची ….."
"वाह बड़ी अंजान बन रही हो बहुरिया….अर्रे इतना सुंदर पायल कहा से मिला ये तो…"
"कहा से का क्या मतलब चाची….जब आए थे तब दे गये थे"
"अर्रे तो जो चीज़ दो महीने पहले दे गया उसको अब पहन रही है"
लाजवंती थोड़ा घबरा गई फिर अपने को सम्भालते हुए बोली "ऐसे ही रखा हुआ था….कल पहन ने का मन किया तो…"
आया क�� चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैल गई
"किसको उल्लू बना….सब पता है तू क्या-क्या गुल खिला रही है….हमको भी सिखा दे लोगो से माल एंठाने के गुण"
इतना सुनते ही लाजवंती के तन बदन में आग लग गई.
"चुप साली तू क्या बोलेगी …हराम्जादी कुतिया खाली इधर का बात उधर करती रहती है…."
आया का माथा भी इतना सुनते घूम गया और अपने बाए हाथ से लाजवंती के कंधे को पकड़ धकेलते हुए बोली "हरम्खोर रंडी…चूत को टकसाल बना रखा है…..मरवा के पायल मिला होगा तभी इतना आग लग रहा है".
"हा हा मरवा के पायल लिया है..और भी बहुत कुच्छ लिया है…तेरी गांद में क्यों दर्द हो रहा है चुगलखोर…" जो चुगली करे उसे चुगलखोर बोल दो तो फिर आग लगना तो स्वाभाभिक है.
"साली भोसर्चोदि मुझे चुगलखोर बोलती है सारे गाओं को बता दूँगी बेटाचोदी तू किस किस से मरवाती फिरती है" इतनी देर में आस पास की नहाने आई बहुत सारी औरते जमा हो गई. ये कोई नई बात तो थी नही रोज तालाब पर नहाते समय किसी ना किसी का पंगा होता ही था और अधनंगी औरते एक दूसरे के साथ भिड़ जाती थी, दोनो एक दूसरे को नोच ही डालती मगर तभी एक बुढ़िया बीच में आ गई. फिर और भी औरते आ गई और बात सम्भाल गई. दोनो को एक दूसरे से दूर हटा दिया गया.
नहाना ख़तम कर दोनो वापस अपने घर को लौट गई मगर आया के दिल में तो काँटा घुस गया था. इश्स गाओं में और कोई इतने बड़ा दिलवाला है नही जो उस रंडी को पायल दे. तभी ध्यान आया की चौधरैयन का बेटा मुन्ना उस दिन खेत में पटक के जब लाजवंती की ले रहा था तब उसने पायल देने की बात कही थी, कही उसी ने तो नही दिया. फिर रात में लाजवंती और बसंती जिस तरफ से आ रही थी उसी तरफ तो चौधरी का आम का बगीचा है. बस फिर क्या था अपने भारी भरकम पिच्छवाड़े को मॅटकाते हुए सीधा चौधरैयन के घर की ओर दौड़ पड़ी.
चौधरैयन ने जब आया को देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई. हस्ती हुई बोली "क्या रे कैसे रास्ता भूल गई…कहा गायब थी….थोड़ा जल्दी आती अब तो मैने नहा भी लिया"
माथे का पसीना पोछ्ति हुई आया बोली "का कहे मालकिन घर का बहुत सारा काम….फिर तालाब पर नहाने गई तो वाहा…"
"क्यों क्या हुआ तालाब पर…?"
"छोड़ो मालकिन तालाब के किससे को, ये सब तो…अंदर चलो ना बिना तेल के थोड़ी बहुत तो सेवा कर दू.."
"आररी नही रहने दे…" पर आया के ज़ोर देने पर शीला देवी ने पलंग पर लेट अपने पैर पसार दिए. आया पास बैठ कर शीला देवी के पैरों के तलवे को अपने हाथ में पकड़ हल्के हल्के मसल्ते हुए दबाने लगी. शीला देवी ने आँखे बंद कर रखी थी. आया कुच्छ देर तक तो इधर उधर की बकवास करती रही फिर पेट में लगी आग भुझाने के लिए बोली "मालकिन मुन्ना बाबू कहा है नज़र नही आते…पहले तो गाओं के लड़कों को साथ घूमते फिरते मिल जाते थे अब तो…."
"उसके दिमाग़ का कुच्छ पता चलता….घर में ही होगा अपने कमरे में सो रहा होगा.."
"ये कोई टाइम है भला सोने का….रात में ठीक से सोते नही का…"
"नही सुबह में बड़ी जल्दी उठ जाता है….इसलिए शायद दिन में सोता है बेचारा"
"सुबह में जल्दी उठ जाते या फिर रात भर सोते ही नही है…." बाए जाँघ को धीरे धीरे दबाती हुई आया बोली.
"अर्रे रात भर क्यों जागेगा भला…"
"मालकिन जवान लड़के तो रात में ही जागते है…" कह कर दाँत निकाल कर हँसने लगी.
"चुप कमिनि जब भी आती है….उल्टा सीधा ही बोलती है"
चौधरैयन की ये बात सुन आया दाँत निकाल कर हँसने लगी. शीला देवी ने आँखे खोल कर उसकी तरफ देखा तो आँखे नचा कर बोली "बड़ी भोली हो आप भी चौधरैयन….जवान लंडो के लिए इश्स गाओं में कोई कमी है क्या…फिर अपने मुन्ना बाबू तो….सारी कहानी तो आपको पता ही है…"
"चुप रह चोत्ति…तेरी बातो पर विस्वास कर के मैने क्या-क्या सोच लिया था…मगर जिस दिन तू ये सब बता के गई थी उसी दिन से मैं मुन्ना पर नज़र ��खे हू. वो बेचारा तो घर से निकलता ही नही था. चुपचाप घर में बैठा रहता था….अगर मेरे बेटे को इधर उधर मुँह मारने की आदत होती तो घर में बैठा रहता" (जैसा की आपको याद होगा मुन्ना जब अपनी मा के कमरे में आया के मालिश करते समय घुस गया था और शीला देवी के मस्ताने रसीले रूप ने उसके होश उड़ा कर रख दिए थे तो तीन चार दिन तो ऐसे ही गुम्सुम सा घर में घुसा रहा था)
"पता नही…मालकिन मैने तो जो देखा था वो सब बताया था..अब अगर मैं बोलूँगी की आज ही सुबह मैने मुन्ना बाबू को आम के बगीचे की तरफ से आते हुए देखा था तो फिर….." शीला देवी चौंक कर बैठती हुई बोली "क्या मतलब है तेरा…वो क्यों जाएगा सुबह-सुबह बगीचे में"
"अब मुझे क्या पता क्यों गये थे…मैने तो सुबह में उधर से आते देखा सो बता दिया, सुबह में लाजवंती और बसंती को भी आते हुए देखा.…लाजवंती तो नया पायल पहन ठुमक ठुमक कर चल….."
बस इतना ही काफ़ी था, shiला देवी जो कि अभी झपकी ले रही थी उठ कर बैठ गई नथुने फूला कर बोली ""एक नंबर की छिनाल है तू…हराम्जादी…कुतिया तू बाज़ नही आएगी… …रंडी…निकल अभी तू यहा से …चल भाग….दुबारा नज़र मत आना…" शीला देवी दाँत पीस पीस कर मोटी मोटी गालियाँ निकल रही थी. आया समझ गई की अब रुकी तो खैर नही. उसने जो करना है कर दिया बाकी चौधरैयन की गालियाँ तो उसने कई बार खाई है. आया ने तुरंत दरवाजा खोला और भाग निकली.
आया के जाने के बाद चौधरैयन का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ ठंडा पानी पी कर बिस्तर पर धम से गिर पड़ी. आँखो की नींद अब उड़ चुकी थी. कही आया सच तो नही बोल रही…उसकी आख़िर मुन्ना से क्या दुस्मनि जो झूठ बोलेगी. पिच्छली बार भी मैने उसकी बातो पर विस्वास नही किया था. कैसे पता चलेगा.
दीनू को बुलाया फिर उसे एक तरफ ले जाकर पुचछा. वो घबरा कर चौधरैयन के पैरो में गिर परा और गिड-गिडाने लगा "मालकिन मुझे माफ़ कर दो….मैने कुच्छ नही…मालकिन मुन्ना बाबू ने मुझे बगीचे पर जाने से मना किया…मेरे से चाभी भी ले ली…मैं क्या करता…उन्होने किसी को बताने से मना…" शीला देवी का सिर चकरा गया. एक झटके में सारी बात समझ में आ गई.
कमरे में वापस आ आँखो को बंद कर बिस्तर पर लेट गई. मुन्ना के बारे में सोचते ही उसके दिमाग़ में एक नंगे लड़के की तस्वीर उभर आती थी जो किसी लड़की के उपर चढ़ा हुआ होता. उसकी कल्पना में मुन्ना एक नंगे मर्द के रूप में नज़र आ रहा था. शीला देवी बेचैनी से करवट बदल रही थी नींद उनकी आँखो से कोषो दूर जा चुकी थी. उनको अपने बेटे पर गुस्सा भी आ रहा था कि रंडियों के चक्कर में इधर उधर मुँह मारता फिर रहा है. फिर सोचती मुन्ना ने किसी के साथ ज़बरदस्ती तो की नही अगर गाओं की लड़कियाँ खुद मरवाने के लिए तैय्यार है तो वो भी अपने आप को कब तक रोकेगा. नया लड़का है, आख़िर उसको भी गर्मी चढ़ती होगी छेद तो खोजेगा ही…घर में छेद नही मिलेगा तो बाहर मुँह मारेगा. क्या सच में मुन्ना का हथियार उतना बड़ा है जितना आया बता रही थी. बेटे के लंड के बारे में सोचते ही एक सिहरन सी दौड़ गई साथ ही साथ उसके गाल भी लाल हो गये. एक मा हो कर अपने बेटे के…औज़ार के बारे में सोचना…करीब घंटा भर वो बिस्तर पर वैसे ही लेटी हुई मुन्ना के लंड और पिच्छली बार आया की सुनाई चुदाई की कहानियों को याद करती, अपने जाँघो को भीचती करवट बदलते रही.
खाट-पाट की आवाज़ होने पर शीला देवी ने अपनी आँखे खोली तो देखा मुन्ना उसके कमरे के आगे से गुजर रहा था. शीला देवी ने लेटे लेटे आवाज़ लगाई "मुन्ना…मुन्ना ज़रा इधर आ…". शीला देवी की आवाज़ सुनते ही उसके कदम रुक गये और वो कमरे का दरवाज़ा खोल कर घुसा. शीला देवी ने उसको उपर से नीचे देखा, हाफ पॅंट पर नज़र जाते ही वो थोड़ा चौंक गई. इस समय मुन्ना की हाफ पॅंट में तंबू बना हुआ था. पर ��पने आप को सम्भहाल थोड़ा उठ ती हुई बोली " इधर आ ज़रा…". शीला देवी की नज़रे अभी भी उसके तंबू में बने खंभे पर टिकी हुई थी.
ये देख मुन्ना ने अपने हाथ को पॅंट के उपर रख अपने लंड को छुपाने की कोशिश की और बोला "जी….मा क्या बात है…" मुन्ना, शीला देवी से डरता बहुत था. पेशाब लगी थी मगर बोल नही पाया की मुझे बाथरूम जाना है.
लगता है इसे पेशाब लगी है…तभी हथियार खड़ा करके घूम रहा है, घर में अंडरवेर नही पहनता है शायद, ये सोच शीला देवी के बदन में सनसनी दौड़ गई. शायद आया ठीक कहती है.
"क्या बात है तुझे बाथरूम जाना है क्या…"
"नही नही मा..तुम बोलो ना क्या बात है…" अपने हाथो को पॅंट के उपर रख कर खरे लंड को छुपाने की कोशिश करने लगा. शीला देवी कुच्छ देर तक मुन्ना को देखती रही…फिर बोली "तू आज कल इतनी जल्दी कैसे उठ जाता है फिर सारा दिन सोया रहता है…क्या बात है". मुन्ना इस अचानक सवाल से घबरा गया अटकते हुए बोला "कोई बात नही है मा…सुबह आँख खुल जाती है तो फिर उठ जाता हू…"
"तू बगीचे पर हर रोज जाता है क्या…"
इस सवाल ने मुन्ना को चौंका दिया. उसकी नज़रे नीचे को झुक गई. शीला देवी तेज नज़रो से उसे देखती रही. फिर अपने पैर समेट ठीक से बैठते हुए बोली "क्या हुआ…मैं पुच्छ रही हू, बगीचे पर गया था क्या जवाब दे…"
"वो..वो मा..बस थोड़ा…सुबह आँख खुल गई थी टहलने च…चला गया…" मुन्ना के चेहरे का रंग उड़ चुक्का था.
शीला देवी ने फिर कड़कती आवाज़ में पुचछा "तू रात में भी वही सोता है ना…?" इस सवाल ने तो मुन्ना का गांद का बॅंड बजा दिया. उसका कलेज़ा धक से रह गया. ये बात मम्मी को कैसे पता चली. हकलाते हुए जल्दी से बोल पड़ा "नही…नही …मा…ऐसा…किसने…कहा…मैं भला रात में वहाँ क्यों…"
"तो फिर दीनू झूठ बोल रहा है…चौधरी साहिब से पुच्छू क्या…उन्होने किसको दी थी चाभी…" मुन्ना समझ गया की अगर मम्मी ने चौधरी से पुचछा तो वो तो शीला देवी के सामने झूठ बोल नही पाएँगे और उसकी चोरी पकड़ी जाएगी. साले दीनू ने फसा दिया. कल रात ही लाजवंती वादा करके गई थी कि एक नये माल को फसा कर लाउन्गि. सारा प्लान चौपट. तभी शीला देवी अपने तेवर थोड़ा ढीला करती हुई बोली "अपनी ज़मीन जयदाद की देख भाल करना अच्छी बात है, तू आम के बगीचे पर जाता है…कोई बात नही मगर मुझे बता देता….किसी नौकर को साथ ले जाता…"
"नौकरो को वाहा से हटाने के लिए ही तो मैं वाहा जाता हू…सब चोर है" मुन्ना को मौका मिल गया था और उसने तपाक से बहाना बना लिया.
"तो ये बात तूने मुझे पहले क्यों नही बताई…"
"वो मा..मा मैं डर गया था कि तुम गुस्सा करोगी…"
"ठीक है जा अपने कमरे में बैठ बाद में बात करती हू तेरे से…कही जाने की ज़रूरत नही है और खबरदार जो दीनू को कुच्छ बोला तो…". मुन्ना चुपचाप अपने कमरे में आ कर बैठ गया समझ में नही आ रहा था की क्या करे. इधर शीला देवी के मन में हलचल मच गई थी. अब उसे पूरा विस्वास हो गया था कि जो कुच्छ भी आया बोल रही थी वो सच था. मुन्ना हर रोज बगीचे पर जाकर रात भर किसी के साथ मज़ा करता है. गाओं में रंडियों की कोई कमी नही, एक खोजेगा हज़ार मिलेंगी. उसने कल्पना में मुन्ना के हथियार के बारे में सोचने की कोशिश की. फिर खुद से शरमा गई. उसने आज तक उतना बड़ा लंड नही देखा था जितने बड़े लंड के बारे में आया ने कहा था. उसने तो आज तक केवल अपने पति चौधरी का लन्ड देखा था जो लगभग 6 इंच का रहा होगा. और अब तो वो 6 इंच का लंड भी पता नही किसकी गांद में घुस गया था, कभी बाहर निकलता ही नही था. पता नही कितने दिन, महीने या साल बीत गये, उसे तो याद भी नही है, जब अंतिम बार कोई हथियार उसकी बिल में घुसा था. ये सब सोचते सोचते जाँघो के बीच सरसराहट हुई. साडी के उपर से ही हाथ लगा कर अपनी चूत को हल्का सा दबाया, चूत गीली हो चुकी थी. बेटे के लंड ने बेचैनी इतनी बढ़ा दी कि रहा नही गया और बिस्तर से उठ कर बाहर निकली. मुन्ना के कमरे का दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ था. धीरे से अंदर घुसी तो तो देखा मुन्ना बिस्तर पर आँखो के उपर हाथ रख कर लेटा हुआ एक हाथ पॅंट के अंदर घुसा कर हल्के हल्के चला रहा था. खड़ा लंड पॅंट के उपर से दिख रहा था. शीला देवी के कदम वही जमे रह गये, फिर दबे पाओ वापस लौट गई. बिस्तर पर लेट ते हुए सोचने लगी पता नही कितनी गर्मी है इस लड़के में. शायद मूठ मार रहा था. जबकि इसने रात में दो-दो लरकियों की चुदाई की होगी. जब जवान थी तब भी चौधरी ज़यादा से ज़यादा रात भर में उसकी दो बार लेता था वो भी शुरू के एक महीने तक. फिर पता नही क्या हुआ कुच्छ दिन बाद तो वो भी ख़तम हो गया हफ्ते में दो बार फिर घट कर एक बार से कभी कभार में बदल गया. और अब तो पता नही कितने दिन हो गये. आज तक जिंदगी में बस एक ही लंड से पाला पड़ा था. जबकि अगर आया की बातों पर विस्वास करे तो गाओं की हर औरत कम से कम दो लंडो से अपनी चूत की कुटाई करवा रही थी. उसी की किस्मत फूटी हुई थी. कुच्छ रंडियों ने तो अपने घर में ही इंतेज़ाम कर रखा था. यहा तो घर में भी कोई नही, ना देवर ना जेठ. एक लड़क��� जवान हो गया है…मगर वो भी बाहर की रंडियों के चक्कर में…..मेरी तरफ तो किसी का…अपने घर का माल है…मगर बेटा है कैसे उसके साथ…उसका दिमाग़ घूम फिर कर मुन्ना के औज़ार की तरफ पहुच जाता था. उत्तेजना अब उसके उपर हावी हो गई थी. छूत पासीज कर पानी छोड़ रही थी. दरवाजा बंद कर साड़ी उठा कर अपनी दो उंगलियों को चूत में डाल कर सहलाते हुए रगड़ने लगी.
उंगली को मुन्ना का लंड समझ कच-कच कर चूत में जब अंदर बाहर किया तो पूरे बदन में आग लग गई. बेटे के लंड से चुदवाने के बारे में सोचने से ही इतना मज़ा आ रहा था कि वो एकदम छॅट्पाटा गई. एक हाथ से अपनी चुचि को खुद से पूरी ताक़त से मसल दिया…मुँह से आह निकल गई. उसके बदन में कसक उठने लगी. दिल कर रहा था कोई मर्द उसे अपनी बाहों में लेकर उसकी हड्डियाँ तर-तरा दे. उसकी इन उठी हुई नुकीली चुचियों को अपनी छाती से दबा कर मसल दे…. चूत में चीटियाँ सरसराने लगी थी. गन्न्ड़ में सुरसुरी होने लगी थी. भग्नाशा खड़ा होकर लाल हो चुका था और चाह रहा था कि कोई उसे मसल कर उसकी गर्मी शांत कर दे…. मगर अफ़सोस हाथ का सहारा ही उसके पास था. छॅट्पाटा ते हुए उठी और किचन में जा एक बैगान उठा लाई और कोल्ड क्रीम लगा कर अपनी चूत में डालने की कोशिश की.
मगर अभी तोड़ा सा ही बैगान गया था कि चूत में छीलकं सा महसूस हुआ, दोनो टाँगे फैला कर चूत को देखने लगी. बैगान को थोडा और ठेला तो समझ में आ गया इतने दीनो से मशीन बंद रहने के कारण छेद सिकुड गया है. "….मोटा लंड मिल जाए फिर चाहे किसी का….इश्स….उफफफफ्फ़ मैं भी कैसी छिनाल…पर अब सहा नही जा रहा…कितने दीनो तक छेद और मुँह बंद…कर के….." चूत लंड माँग रही थी, चूत के कीड़े मचल रहे थे बुर की गुलाबी पत्तियाँ फेडक कर अपना मुँह खोल रही. उसकी मशीन आयिलिंग माँग रही थी. बेटे के लंड ने इतने दीनो से दबी कुचली हुई भावनाओ को भड़का दिया. कुच्छ देर बाद जैसे तैसे बैगान पेल कर चूत के अंदर बाहर करते हुए अपने आप को संतुष्ट कर वैसे ही अस्त वयस्त हालत में सो गई.
शाम हो चुकी थी और शीला देवी बाहर नही निकली. गाओं में तो लोग शाम सात-आठ बजे ही खाना खा लेते है. सावन का महीना था बादलो के कारण अंधेरा जल्दी हो गया था गर्मी भी बहुत लग रही थी. मुन्ना अपने कमरे से निकला देखा मा का कमरा अभी भी बंद है घर में अभी तक खाना बनाने की खाट-पाट शुरू हो जाती थी. चक्कर क्या है ये सोच उसने हल्के से शीला देवी के कमरे के दरवाज़े को धकेला दरवाज़ा खुल गया. दरअसल शीला देवी जब किचन से बैगन ले कर वापस आई थी तो फिर दरवाज़ा बंद करना भूल गई थी. अंदर झाँकते ही ऐसा लगा जैसे लंड पानी फेंक देगा... मुन्ना की आँखो के सामने पलंग ��र उसकी मा आस्त व्यस्त हालत में लेटी हुई नाक बजा रही थी. साड़ी उसके जाँघो तक उठी हुई थी और आँचल एक तरफ लुढ़का पड़ा था और ब्लाउस के बटन खुले हुए थे, एक चुचि पर से ब्लाउस का कपड़ा हटा हुआ था जिसके कारण काले रंग की ब्रा दिख रही थी. शीला देवी एकदम गहरी नींद में थी. हर साँस के साथ उसकी नुकीली चूचियाँ उपर नीचे हो रही थी. मुन्ना की साँस रुक गई. उस दिन आया जब मालिश कर रही थी तब उसने पहली बार अपनी मा को अर्धनग्न देखा था. images
उस दिन वो बस एक झलक ही देख पाया था और उसके होश उड़ गये थे. आज शीला देवी आराम से सोई हुई थी. वो बिना किसी लाज-शरम आँखे फाड़ उसको निहारने लगा. ब्रा के अंदर से झाँकती गोरी चुचि, गुदाज पेट और मोटी-मोटी जाँघो ने उसके होश उड़ा दिए. मोटी मांसल, गोरी, चिकनी जंघे…मामी की जाँघ से थोड़ा सा ज़यादा मोटी …चुचि भी एक दम ठोस नुकीली… "काश ये साड़ी थोड़ी और उपर होती..अफ… ये बैगन यहा पलंग पर क्या कर रहा है"…अभी मुन्ना सोच ही रहा था कि कमरे के अंदर घुस कर पलंग के नीचे बैठ दोनो टाँगो के बीच देखु. "छ्होटे मलिक…मालकिन को जगाओ…क्या खाना बनाना है..ज़रा पुछो तो सही…" पिछे से एक बुढ़िया नौकरानी की आवाज़ सुनाई दी
"आ ..हा..हा .. अभी जगाता हू.." कहते हुए मुन्ना ने दरवाज़े पर दस्तक दी. शीला देवी एक दम हॅड-बडाते हुए उठ कर बैठ गई झट से अपनी साड़ी को नीचे किया आँचल को उठा छाती पर रखा " आ हा..क्या बात है…"
"मा वो नौकरानी पुच्छ रही है…क्या खाना बनेगा…अंधेरा हो गया…मैने सोचा तुम इतनी देर तक तो…"
"पता नही क्यों आज..आँख लग गई थी ...अभी बताती हू उसको…" और पलंग से नीचे उतर गई. मुन्ना जल्दी से अपने कमरे में भाग गया. पॅंट खोल कर देखा तो लंड लोहा बना हुआ था और सुपरे पर पानी की दो बूंदे छलक आई थी.
खाना खाने के बाद शीला देवी मुन्ना के कमरे में गई और पुछा "आज बगीचे पर नही जाएगा क्या…". मुन्ना ने तो बगीचे पर जाने का इरादा छोड़ दिया था. वो समझ गया था कि भले ही शीला देवी ने कुच्छ बोला नही फिर भी उसके कारनामो की खबर उसको ज़रूर हो गई होगी.
"जाना तो था…मगर आप तो मना कर रही…".
"नही, मैने कब मना किया…वैसे भी बहुत आम चोरी हो रहे है…कम से कम तू देख भाल तो कर लेता है…"
मुन्ना खुशी से उच्छल पड़ा "तो फिर मैं जाउ…".
"हा हा…जा ज़रूर जा…और किसी नौकर को भी साथ लेता जा…"
गाँव का राजा पार्ट -11
"अरे मा उसकी कोई ज़रूरत नही है….मैं अभी निकलता हू…" कहते हुए मुन्ना उठ कर लूँगी पहन ने लगा. शीला देवी अपने बेटे के मजबूत बदन को घूरती हुई बोली "ना..ना अकेले तो जाना ही नही है….किसी नौकर को नही ले जाना तो मैं चलती हूँ…" इस धमाके ने मुन्ना के लूँगी की ओर बढ़ते हाथो को रोक दिया. कुच्छ देर तक तो वो शीला देवी का चेहरा असचर्या से देखता रह गया. फिर अपने आप को संभालते हुए बोला "ओह मा तुम वाहा क्या करने जाओगी…मैं अकेला ही…"
"नही मैं भी चलती हू…बहुत टाइम हो गया…बहुत पहले गर्मियों में कई बार चौधरी शहिब के साथ वाहा पर सोई हू….कई बार तो रात में ही हमने आम तोड़ के खाए है…चल मैं चलती हू...". मुन्ना विरोध नही कर पाया.
"ठहर जा ज़रा टॉर्च तो ले लू…."
फिर शीला देवी टॉर्च लेकर मुन्ना के साथ निकल पड़ी. शीला देवी ने अपनी साड़ी बदल ली थी और अपने आप को सवार लिया था. मुन्ना ने अपनी मा को नज़र भर कर देखा एक दम बनी ठनी, बहुत खूबसूरत लग रही थी.
मुन्ना की नज़रो को भापते हुए वो हस्ते हुए बोली "क्या देख रहा है…" हस्ते समय शीला देवी की गालो में गड्ढे पड़ते थे.
" कुच्छ नही मैं सोच रहा था तुम्हे कही और तो नही जाना…" शीला देवी के होंठो पर मुस्कुराहट फैल गई. हस्ते हुए बोली "ऐसा क्यों…मैं तो तेरे साथ बगीचे पर चल..."
"नही तुमने साड़ी बदली हुई है तो…"
"वो तो ऐसे ही बदल लिया…क्यों अच्छा नही लग रहा…"
"नही बहुत अच्छा लग….तुम बहुत सुंदर…" बोलते हुए मुन्ना थोड़ासा सरमाया तो शीला देवी हल्के हँस दी. शीला देवी के गालो में पड़ते गड्ढे देख मुन्ना के बदन में सिहरन हो गई. मुन्ना थोड़ा धीरे चल रहा था. मा के पीछे चलते हुए उसके मस्ताने मटकते चूतरो पर नज़र पड़ी तो उसका मन किया की धीरे से पिछे से शीला देवी को पकड़ ले और लंड को गांद की दरार में लगा कर प्यार से उसके गालो को चूसे. उसके गालो के गड्ढे में अपनी जीभ डाल कर चाट ले. पीछे से साड़ी उठा कर उसके अंदर अपना सिर घुसा दे और दोनो चूतरों को मुट्ठी में भर कर मसल्ते हुए गांद की दरार में अपना मुँह घुसा दे. बहुत दिन हो गये थे किसी की गांद चाटे, पर इसके लिए उर्मिला देवी जैसी खूबसूरत गदराई जवानी भी तो चाहिए. मामी के साथ बिताए पल याद आ गये जब वो किचन में काम करती मुन्ना पिछे से गाउन उठा उसके अंदर घुस कर चूत और गांद चाट ता था. मा की तो मामी से भी दो कदम आगे होगी. कितनी गतीली और सुंदर लग रही है. लूँगी के अंदर लंड तो फरफदा रहा था मगर कुच्छ कर नही सकता था. आज तो लाजवंती का भी कोई चान्स नही था. तभी ध्यान आया कि लाजवंती को तो बताया ही नही. डर हुआ कि कही वो मा के सामने आ गई तो क्या करूँगा. और वही हुआ बगीचे पर पहुच कर खलिहान या मकान जो भी कहिए उसका दरवाजा ही खोला था कि बगीचे की बाउंड्री का गेट खोलती हुई लाजवंती और एक और औरत घुसी. अंधेरा तो बहुत ज़यादा था मगर फिर भी किसी बिजली के खंभे की रोशनी बगीचे में आ रही थी. शीला देवी ने देख लिया और बोली "कौन घुस रहा है बगीचे में…" मुन्ना ने भी पलट कर देखा, तुरंत समझ गया की लाजवंती होगी. इस से पहले की कुच्छ बोल पाता शीला देवी की कॅड्क आवाज़ पूरे बगीचे में गूँज गई "कौन है रे….ठहर अभी बताती हू.." इसके साथ ही शीला देवी ने दौड़ लगा दी " साली आम चोर कुतिया….ठहर वही पर…." भागते भागते एक डंडा भी हाथ में उठा लिया था. शीला देवी की कदकती आवाज़ जैसे ही लाजवंती के कानो में पड़ी उसकी तो गांद का पाखाना तक सुख गया. अपने साथ लाई औरत का हाथ पकड़ घसीटती हुई बोली "ये तो चौधरैयन…है….चल भाग…" दोनो औरते बेतहाशा भागी. पीछे शीला देवी हाथ में डंडा लिया गालियो की बौच्हर कर रही थी. दोनो जब बाउंड्री के गेट के बाहर भाग गई तो शीला देवी रुक गई. गेट को ठीक से बंद किया और वापस लौटी. मुन्ना खलिहान के बाहर ही खड़ा था. शीला देवी की साँसे फूल रही थी. डंडे को एक तरफ फेंक कर अंदर जा कर धम से बिस्तर पर बैठ गई और लंबी लंबी साँसे लेते हुए बोली "साली हरमज़ड़िया…देखो तो कितनी हिम्मत है शाम होते ही आ गई चोरी करने…अगर हाथ आ जाती तो सुअरनियों की गांद में डंडा पेल देती…हरम्खोर साली तभी तो इस बगीचे से उतनी कमाई नही होती जितनी पहले होती थी….मदर्चोदिया अपनी चूत में आम भर भर के ले जाती है…��ंडियों का चेहरा नही देख पाई…" मुन्ना शीला देवी के मुँह से ऐसी मोटी मोटी भद्दी गालियों को सुन कर सन्न रह गया. हालाँकि वो जानता था की उसकी मा करक स्वाभाव की है और नौकर चाकरो को गालियाँ देती रहती है मगर ऐसी गंदी-गंदी गलियाँ उसके मुँह से पहली बार सुनी थी, हिम्मत करके बोला
"अरे मा छोड़ो ना तुम भी…भगा तो दिया…अब मैं यहा आ रहा हू ना देखना इस बार अच्छी कमाई…"
"ना ना…ऐसे इनकी आदत नही छूटने वाली…जब तक पकड़ के इनकी चूत में मिर्ची नही डालोगे ना बेटा तब तक ये सब भोशर्चोदिया ऐसे ही चोरी करने आती रहेंगी….माल किसी का खा कोई और रहा है…"
मुन्ना ने कभी मा को ऐसे गलियाँ देते नही सुना था. बोल तो कुच्छ सकता नही था मगर उसे उर्मिला देवी यानी अपनी प्यारी छिनाल, चुदक्कर मामी की याद आ गई, जो चुदवाते समय अपने सुंदर मुखरे से जब गंदी गंदी बाते करती थी तब उसका लंड लोहा हो जाता था. शीला देवी के खूबसूरत चेहरे को वो एकट�� देखने लगा भरे हुए कमनिदार होंठो को बिचकती हुई जब शीला देवी ने दो चार और मोटी गलियाँ निकाली तो उसके इस छिनल्पन को देख मुन्ना का लंड खड़ा होने लगा. मन में आया उसके उन भरे हुए होंठो को अपने होंठो में कस ले और ऐसा चुम्मा ले की होंठो का सारा रस चूस ले. खड़े होते लंड को छुपाने के लिए जल्दी से बिस्तर पर अपनी मा के सामने बैठ गया. शीला देवी की साँसे अभी काफ़ी तेज चल रही थी और उसका आँचल नीचे उसकी गोद में गिरा हुआ था. मोटी-मोटी चुचियाँ हर साँस के साथ उपर नीचे हो रही थी. गोरा चिकना मांसल पेट. मुन्ना का लंड पूरा खड़ा हो चुका था. तभी शीला देवी ने पैर पसारे और अपनी साड़ी को खींचते हुए घुटनो से थोड़ा उपर तक चढ़ा एक पैर मोड़ कर एक पैर पसार कर अपने आँचल से माथे का पसीना पोछती हुई बोली "हरम्खोरो के कारण दौड़ना पद गया…बड़ी गर्मी लग रही है खिड़की खोल दे बेटा". जल्दी से उठ कर खिड़की खोलने गया. लंड ने लूँगी के कपड़े को उपर उठा रखा था और मुन्ना के चलने के साथ हिल रहा था. शीला देवी की आँखो में अज़ीब सी चमक उभर आई थी वो एकदम खा जाने वाली निगाहों से लूँगी के अंदर के डोलते हुए हथियार को देख रही थी. मुन्ना जल्दी से खिड़की खोल कर बिस्तर पर बैठ गया, बाहर से सुहानी हवा आने लगी. उठी हुई साड़ी से शीला देवी गोरी मखमली टाँगे दीख रही थी. शीला देवी ने अपने गर्दन के पसीने को पोछ्ते हुए अपनी ब्लाउस के सबसे उपर वाले बटन को खोल दिया और साड़ी के पल्लू को ब्लाउस के भीतर घुसा पसीना पोच्छने लगी. पसीने के कारण ब्लाउस का उपरी भाग भीग चुका था. ब्लाउस के अंदर हाथ घुमाती बोली "बहुत गर्मी है..बहुत पसीना आ गया". मुन्ना मुँह फाडे ब्लाउस में घूमते हाथ को देखता हुआ भौचक्का सा बोल पड़ा "हा..आह पूरा ब्लाउस भीग..गया.."
"तू शर्ट खोल दे…बनियान तो पहन ही रखी होगी…".
साड़ी को और खींचती थोड़ा सा जाँघो के उपर उठाती शीला देवी ने अपने पैर पसारे "साड़ी भी खराब हो….यहा रात में तो कोई आएगा नही…"
"नही मा यहा…रात में कौन…"
"पता नही कही कोई आ जाए….किसी को बुलाया तो नही" मुन्ना ने मन ही मन सोचा जिसको बुलाया था उसको तो भगा दिया, पर बोला "नही..नही…किसी को नही बुलाया"
"तो मैं भी साड़ी उतार देती हू…" कहती हुई उठ गई और साड़ी खोलने लगी. मुन्ना भी गर्दन हिलाता हुआ बोला "हा मा..फिर पेटिकोट और ब्लाउस…सोने में भी हल्का…"
"हा सही है….पर तू यहा सोने के लिए आता है…सो जाएगा तो फिर रखवाली कौन करेगा…"
"मैं अपने सोने की बात कहा कर रहा हू…तुम सो जाओ…मैं रखवाली करूँगा…"
"मैं भी तेरे साथ रखवाली करूँगी…"
"तब तो हो गया काम…तुम तो सब के पिछे डंडा ले कर दौरोगी…"
"क्यों तू नही दौड़ता डंडा ले कर….मैने तो सुना है गाओं की सारी छ्होरियों को अपने डंडे से धमकाया हुआ है तूने.."
मुन्ना एकदम से झेंप गया "धात मा…क्या बात कर रही हो…"
"इसमे शरमाने की क्या बात है…ठीक तो करता है अपना आम तुझे खुद खाना है….सब चूत्मरानियो को ऐसे ही धमका दिया कर…." मुन्ना की रीढ़ की हद्ढियों में सिहरन दौड़ गई. शीला देवी के मुँह से निकले इस चूत सब्द ने उसे पागल कर दिया. उत्तेजना में अपने लंड को जाँघो के बीच ज़ोर से दबा दिया. चौधरायण ने साड़ी खोल एक ओर फेंक दिया और फिर पेटिकोट को फिर से घुटने के थोड़ा उपर तक खींच कर बैठ गई और खिड़की के तरफ मुँह घुमा कर बोली "लगता है आज बारिश होगी".
मुन्ना कुच्छ नही बोला उसकी नज़रे तो शीला देवी की गोरी गथिलि पिंदलियों का मुआएना कर रही थी. घूमती नज़रे जाँघो तक पहुच गई और वो उसी में खोया रहता अगर अचानक शीला देवी ना बोल पड़ती "बेटे आम खाएगा…" मुन्ना ने चौंक कर नज़र उठा कर देखा तो उसे ब्लाउस के अंदर कसे हुए दो आम नज़र आए, इतने पास की दिल में आया मुँह आगेआ कर चुचियाँ को मुँह में भर ले दूसरे किसी आम के बारे में तो उसका दिमाग़ सोच भी नही पा रहा था हॅडबड़ाते हुए बोला "आम…कहा है आम….अभी कहा से…" शीला देवी उसके और पास आ अपने सांसो की गर्मी उसके चेहरे पर फेंकती हुई बोली "आम के बगीचे मैं बैठ कर…आम ढूँढ रहा है…" कह कर मुस्कुरई…".
"पर रात में…आम.." बोलते हुए मुन्ना के मन में आया की गड्ढे वाले गालो को अपने मुँह भर कर चूस लू.
धीरे से बोली "रात में ही खाने में मज़ा आता है…चल बाहर चलते है…" कहती हुई मुन्ना को एक तरफ धकेलते बिस्तर से उतारने लगी. इतने पास से बिस्तर से उतार रही थी की उसकी नुकीली चुचियों ने अपने चोंच से मुन्ना की बाहों को छु लिया. मुन्ना का बदन गन्गना गया. उठ ते हुए बोला "के मा…तुम भी क्या..क्या सोचती रहती हो…इतनी रात में आम कहा दिखेंगे"
"ये टॉर्च है ना…बारिश आने वाली है…जीतने भी पके हुए आम है गिर कर खराब हो जाएगे…." और टॉर्च उठा बाहर की ओर चल दी. आज उसकी चाल में एक खास बात थी, मुन्ना का ध्यान बरबस उसकी मटकती गुदाज कमर और मांसल हिलते चूतरों की ओर चला गया.
गाओं की अनचुदी जवान लौंदीयों को छोड़ने के बाद भी उसको वो मज़ा नही आया था जो उसे उसकी मामी उर्मिला देवी ने दिया था. इतनी कम उम्र में ही मुन्ना को ये बात समझ में आ गई थी की बड़ी उम्र की मांसल गदराई हुई औरतो को चोदने में जो मज़ा है वो मज़ा दुबली पतली अछूती चूतो को चोदने में नही. खेली खाई औरते कुतेव करते हुए लंड डलवाती है और उस समय जब उनकी चूत से फॅक फॅक…गछ गछ आवाज़ निकलती है तो फिर घंटो चोद्ते रहो…उनके मांसल गदराए जिस्म को जितनी मर्ज़ी उतना रागडो. एक दम गदराए गथीले चूतर, पेटिकोट के उपर से देखने से लग रहा था कि हाथ लगा कर अगर पकड़े तो मोटी मांसल चुटटरों को रगड़ने का मज़ा आ जाएगा
. ऐसे चूतर की उसके दोनो भागो को अलग करने के लिए भी मेहनत करनी पड़ेगी. फिर उसके बीच गांद का छोटा सा भूरे रंग का छेद बस मज़ा आ जाए. लूँगी के अंदर लंड फनफना रहा था. अगर शीला देवी उसकी मा नही होती तो अब तक तो वो उसे दबोच चुका होता. इतने पास से केवल पेटिकोट-ब्लाउस में पहली बार देखने का मौका मिला था. एक दम मस्त गदराई गथिलि जवानी थी. हर अंग फेडॅफाडा रहा था. कसकती हुई जवानी थी जिसको रगड़ते हुए बदन के हर हिस्से को चूमते हुए दन्तो से काट ते हुए रस चूसने लायक था. रात में सो जाने पर साड़ी उठा के चूत देखने की कोशिश की जा सकती थी, ज़्यादा परेशानी शायद ना हो क्योंकि उसे पता था कि गाओं की औरते पॅंटी नही पहनती. इसी उधेरबुन में फसा हुआ अपनी मा की हिलती गांद और उसमे फासे हुए पेटिकोट के कपड़े को देखता हुआ पिछे चलते हुए आम के पेड़ो के बीच पहुच गया. वाहा शीला देवी फ्लश लाइट (टॉर्च) जला कर उपर की ओर देखते हुए बारी-बारी से सभी पेड़ो पर रोशनी डाल रही थी.
"इस पेड़ पर तो सारे कच्चे आम है…इस पर एक आध ही पके हुए दिख रहे…"
"इस तरफ टॉर्च दिखाओ तो मा…इस पेड़ पर …पके हुए आम दिख…."
"कहा है…इस पेड़ पर भी नही है पके हुए…तू क्या करता था यहा पर….तुझे तो ये भी नही पता किस पेड़ पर पके हुए आम है…" मुन्ना ने शीला देवी की ओर देखते हुए कहा "पता तो है मगर उस पेड़ से तुम तोड़ने नही दोगि…".
"क्यों नही तोड़ने दूँगी…तू बता तो सही मैं खुद तोड़ कर ख़िलाउंगी...." फिर एक पेड़ के पास रुक गई "हा….देख ये पेड़ तो एकदम लदा हुआ है पके आमो से….चल ले टॉर्च पकड़ के दिखा मैं ज़रा आम तोड़ती हू…." कहते हुए शीला देवी ने मुन्ना को टॉर्च पकड़ा दी. मुन्ना ने उसे रोकते हुए कहा "क्या करती हो…कही गिर गई तो …..तुम रहने दो मैं तोड़ देता हू…."
"चल बड़ा आया…आम तोड़ने वाला…बेटा मैं गाओं में ही बड़ी हुई हू…जब मैं छ्होटी थी तो अपने सहेलियों में मुझ से ज़यादा तेज कोई नही था पेर पर चढ़ने में…देख मैं कैसे चढ़ती हू…"
"अर्रे तब की बात और…" पर मुन्ना की बाते उसक�� मुँह में ही रह गई और शीला देवी ने अपने पेटिकोट को थोड़ा उपर कर अपनी कमर में खोस लिया और पेड़ पर चढ़ना शुरू कर दिया. मुन्ना ने भी टॉर्च की रोशनी उसकी तरफ कर दी. थोड़ी ही देर में काफ़ी उपर चढ़ गई और पेड़ के दो डालो के उपर पैर जमा कर खड़ी हो गई और टॉर्च की रोशनी में हाथ बढ़ा कर आम तोड़ने लगी तभी टॉर्च फिसल कर मुन्ना की हाथो से नीचे गिर गयी.
"अर्रे…क्या करता है तू…ठीक से टॉर्च भी नही दिखा सकता क्या". मुन्ना ने जल्दी से नीचे झुक कर टॉर्च उठाया और फिर उपर किया…
"ठीक से दिखा….इधर की तरफ…" टॉर्च की रोशनी शीला देवी जहा आम तोड़ रही थी वाहा ले जाने के क्रम में ही रोशनी शीला देवी के पैरो के पास पड़ी तो मुन्ना के होश ही अर गये. शीला देवी ने अपने दोनो पैरो को दो डालो पर टीका के रखा हुआ था जिसके कारण उसका पेटिकोट दो भागो में बाट गया था और टॉर्च की रोशनी सीधा उसके दोनो पैरो के बीच के अंधेरे को चीरती हुई पेटिकोट अंदर के माल को रोशनी से जगमगा दिया. पेटिकोट के अंदर के नज़ारे ने मुन्ना की तो आँखो को चौंधिया दिया. टॉर्च की रोशनी में पेटिकोट के अंदर क़ैद चमचमाती मखमली टाँगे पूरी तरह से नुमाया हो गई, रोशनी पूरा उपर तक saved चूत भी दिखा रही थी. टॉर्च की रोशनी में कन्द्लि के खंभे जैसी चिकनी मोटी जाँघो और saved चूत को देख मुन्ना को लगा कि उसका लंड पानी फेंक देगा, उसका गला सुख गया और हाथ-पैर काँपने लगे. images
तभी शीला देवी की आवाज़ सुनाई दी "अर्रे कहा दिखा रहा है यहा उपर दिखा ना…". हकलाते हुए बोला "हा..हा अभी दिखाता…वो टॉर्च गिर गया था…" फिर टॉर्च की रोशनी चौधरैयन के हाथो पर फोकस कर दिया. चौधरायण ने दो आम तोड़ लिए फिर बोली "ले कॅच कर तो ज़रा…" और नीचे की तरफ फेंका, मुन्ना ने जल्दी से टॉर्च
को कांख में दबा दोनो आम बारी बारी से कॅच कर लिए और एक तरफ रख कर फिर से टॉर्च उपर की तरफ दिखाने लगा…और इस बार सीधा दोनो टॅंगो बीच में रोशनी फेंकी..इतनी देर में शीला देवी की टाँगे कुच्छ और फैल गई थी पेटिकोट भी थोडा उपर उठ गया था और चूत और ज़यादा सॉफ दिख रही थी. मुन्ना का ये भ्रम था या सच्चाई पर शीला देवी के हिलने पर उसे ऐसा लगा जैसे चूत के लाल लपलपते होंठो ने हल्का सा अपना मुँह खोला था. लेंड तो लूँगी के अंदर ऐसे खड़ा था जैसे नीचे से ही चौधरायण की चूत में घुस जाएगा. नीचे अंधेरा होने का फ़ायदा उठाते हुए मुन्ना ने एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर हल्के से दबाया. तभी शीला देवी ने "कहा ज़रा इधर दिखा…." मुन्ना ने वैसा ही किया पर बार-बार वो मौका देख टॉर्च की रोशनी को उसके टॅंगो के बीच में फेंक देता था. कुच्छ समय बाद शीला देवी बोली "और तो कोई पका आम नही दिख रहा.…चल मैं नीचे आ जाती हू वैसे भी दो आम तो मिल ही गये….तू खाली इधर उधर लाइट दिखा रहा है ध्यान से मेरे पैरों के पास लाइट दिखना". कहते हुए नीचे उतरने लगी. मुन्ना को अब पूरा मौका मिल गया ठीक पेड़ की जड़ के पास नीचे खड़ा हो कर लाइट दिखाने लगा. नीचे उतरती चुधरायण के पेटिकोट के अंदर रोशनी फेंकते हुए उसकी मस्त मांसल चिकनी जाँघो को अब वो आराम से देख सकता था क्योंकि चौधरैयन का पूरा ध्यान तो नीचे उतरने पर था, हालाँकि चूत का दिखना अब बंद हो गया था मगर चौधरैयन का मुँह पेड़ की तरफ होने के कारण पिछे से उसके मोटे मोटे चूतरो का निचला भाग पेटिकोट के अंदर दिख रहा था. मस्त गोरी गांद के निचले भाग को देख लंड अपने आप हिलने लगा था.
एक हाथ से लंड पकड़ कस कर दबाते हुए मुन्ना मन ही मन बोला "हाई मा ऐसे ही पेड़ पर चढ़ि रह उफ़फ्फ़…क्या गांद है…किसी ने आज तक नही मारी होगी एक दम अछूती गांद होगी….हाई मा…लंड ले कर खड़ा हू जल्दी से नीचे उतर के इस पर बैठ जा ना…" ये सोचने भर से लंड ने दो चार बूँद पानी टपका दिया. तभी शीला देवी जब एकदम नीचे उतरने वाली थी कि उसका पैर फिसला और हाथ छूट गया. मुन्ना ने हर्बरा कर नीचे गिरती शीला देवी को कमर के पास से पकड़ कर लपक लिया. मुन्ना के दोनो हाथ अब उसकी कमर से लिपटे हुए थे और चौधरैयन के दोनो पैर हवा में और चूतर उसकी कमर के पास. मुन्ना का लंड सीधा चौधरैयन की मोटी गुदाज गांद को छु रहा था. गुदाज मांसल पेट के फोल्ड्स उसकी मुट्ही में आ गये थे. हर्बराहट में दोनो की समझ में कुच्छ नही आ रहा था, कुच्छ पल तक मुन्ना ने भी उसके भारी सरीर को ऐसे ही थामे रखा और शीला देवी भी उसके हाथो को पकड़े अपनी गांद उसके लंड पर टिकाए झूलती रही.
कुच्छ देर बाद धीरे से शरमाई आवाज़ में बोली "हाई…बच गई…अभी गिर जाती..अब छोड़ ऐसे ही उठाए रखेगा क्या…" मुन्ना उसको ज़मीन पर खड़ा करता हुआ बोला "मैने तो पहले ही कहा था…" शीला देवी का चेहरा लाल पर गया था. हल्के से मुस्कुराती हुई कनखियों से लूँगी में मुन्ना के खड़े लंड को देखने की कोशिश कर रही थी. अंधेरे के कारण देख नही पाई मगर अपनी गांद पर अभी भी उसके लंड की चुभन का अहसास उसको हो रहा था. अपने पेट को सहलाते हुए धीरे से बोली "कितनी ज़ोर से पकड़ता है तू…लगता है निशान पड़ गया…" मुन्ना तुरंत टॉर्च जला कर उसके पेट को देखते हुए बुदबुदाते हुए बोला "…वो अचानक हो….". मुस्कुराती हुई शीला देवी धीरे कदमो से चलती मुन्ना के एकदम पास पहुच गई…इतने पास की उसकी दोनो चुचियों का अगला नुकीला भाग लगभग मुन्ना की छाती को टच कर रहा था और उसकी बनियान में कसी छाती पर हल्के से हाथ मारती बोली "पूरा सांड़ हो गया है…तू…मैं इतनी भारी हू…मुझे ऐसे टाँग लिया….चल आम उठा ले.
मुन्ना का दिल किया कि ब्लाउस में कसे दोनो आमो को अपनी मुट्ठी में भर कर मसल दे पर मन मार कर टॉर्च अपनी मा के हाथ में पकड़ा नीचे गिरे आमो को उठा लिया और अपनी मुट्ही में भर दबाता हुआ उसकी पठार जैसी सख़्त नुकीली चुचियों को घूरता हुआ बोला "पक गये है…चूस चूस…खाने में…". शीला देवी मुस्कुराती हुई शरमाई सी बोली "हा..चूस के खाने लायक…इसस्स…ज़यादा ज़ोर से मत दबा….सारा रस निकल जाएगा….आराम से खाना".
चलते-चलते शीला देवी ने एक दूसरे पेड़ की डाल पर टॉर्च की रोशनी को फोकस किया और बोली "इधर देख मुन्ना…ये तो एक ड्म पका आम है…. इसको भी तोड़…थोड़ा उपर है…तू लंबा है…ज़रा इस बार तू चढ़ के…" मुन्ना भी उधर देखते हुए बोला "हा है तो एकदम पका हुआ और काफ़ी बड़ा भी…है…तुम चढ़ो ना…चढ़ने में एक्सपर्ट बता रही थी उस समय"
"ना रे गिरते-गिरते बची हू…फिर तू ठीक से टॉर्च भी नही दिखाता…कहती हू हाथ पर तो दिखाता है पैर पर"
"हाथ हिल जाता है…."
धीरे से बोली मगर मुन्ना ने सुन लिया "तेरा तो सब कुच्छ हिलता है…तू चढ़ ना…उपर…"
मुन्ना ने लूँगी को दोहरा करके लपेटा लिया. इस से लूँगी उसके घुटनो के उपर तक आ गई. लंड अभी भी खड़ा था मगर अंधेरा होने के कारण पता नही चल रहा था. शीला देवी उसको पैरों पर टॉर्च दिखा रही थी. थोड़ी देर में ही मुन्ना काफ़ी उँचा चढ़ गया था. अभी भी वो उस जगह से दूर था जहा आम लटका हुआ था. दो डालो के उपर पैर रख जब मुन्ना खड़ा हुआ तब शीला देवी ने नीचे से टॉर्च की रोशनी सीधा उसके लूँगी के बीच डाली. चौड़ी चकली जाँघो के बीच मुन्ना का ढाई इंच मोटा लंड आराम से दिखने लगा. लंड अभी पूरा खड़ा नही था पेर पर चढ़ने की मेहनत ने उसके लंड को ढीला कर दिया था मगर अभी भी काफ़ी लंबा और मोटा दिख रहा था. शीला देवी का हाथ अपने आप अपनी जाँघो के बीच चला गया. नीचे से लंड लाल लग रहा था शायद सुपरे पर से चमड़ी हटी हुई थी. जाँघो को भीचती होंठो पर जीभ फेरती अपनी नज़रो को जमाए भूखी आँखो से देख रही थी. images
"अर्रे...रोशनी तो दिखाओ हाथो पर…."
"आ..हा..हा.. तू चढ़ रहा था….इसलिए पैरों पर दिखा…." कहते हुए उसके हाथो पर दिखाने लगी. मुन्ना ने हाथ बढ़ा कर आम तोड़ लिया. "लो पाकड़ो…". शीला देवी ने जल्दी से टॉर्च को अपनी कनखो में दबा कर अपने दोनो हाथ जोड़ लिए मुन्ना ने आम फेंका और शीला देवी ने उसको अपनी चुचियों के उपर उनकी सहयता लेते हुए कॅच कर लिया. फिर मुन्ना नीचे उतर गया और शीला देवी ने उसके नीचे उतर ते समय भी अपने आँखो की उसके लटकते लंड और अंडकोषो को देख कर अच्छी तरह से सिकाई की.
मुन्ना के लंड ने चूत को पनिया दिया. मुन्ना के नीचे उतर ते ही बारिश की मोटी बूंदे गिरने लगी. मुन्ना हर्बराता हुआ बोला "चलो जल्दी…भीग जाएँगे...." दोनो तेज कदमो से खलिहान की तरफ चल पड़े. अंदर पहुचते पहुचते थोड़ा बहुत तो भीग ही गये. शीला देवी का ब्लाउस और मुन्ना की बनियान दोनो पतले कपड़े के थे, भीग कर बदन से ऐसे चिपक गये थे जैसे दोनो उसी में पैदा हुए हो. बाल भी गीले हो चुके थे. मुन्ना ने जल्दी से अपनी बनियान उतार दी और पलट कर मा की तरफ देखा पाया की वो अपने बालो को तौलिए से रगड़ रही थी. भींगे ब्लाउस में कसी चुचियाँ अब और जालिम लग रही थी. चुचियों की चोंच स्पस्ट दिख रही थी. उपर का एक बटन खुला था जिस के कारण चुचियो के बीच की गहरी घाटी भी अपनी चमक बिखेर रही थी. तौलिए से बाल रगड़ के सुखाने के कारण उसका बदन हिल रहा था और साथ में उसकी मोटे मोटे मुममे भी. उसकी आँखे हिलती चुचियों ओर उनकी घाटी से हटाए नही हट रही थी. तभी शीला देवी धीरे से बोली "तौलिया ले…और जा कर मुँह हाथ अच्छी तरह से धो कर आ…". मुन्ना चुप चाप बाथरूम में घुस गया और दरवाजा उसने खुला छोड़ दिया था. कमोड पर खड़ा हो मूतने के बाद हाथ पैर धो कर वापस कमरे में आया तो देखा कि शीला देवी बिस्तर पर बैठ अपने घुटनो को मोड़ कर बैठी थी और एक पैर की पायल निकाल कर देख रही थी. मुन्ना ने हाथ पैर पोछे और बिस्तर पर बैठते हुए पुचछा….
"क्या हुआ…."
"पता नही कैसे पायल का हुक खुल गया…"
"लाओ मैं देखता हू…" कहते हुए मुन्ना ने पायल अपने हाथ में ले लिया.
"इसका तो हुक सीधा हो गया है लगता है टूट…" कहते हुए मुन्ना हुक मोड़ के पायल को शीला देवी के पैर में पहनाने की कोशिश करने लगा पर वो फिट नही हो पा रहा था. शीला देवी पेटिकोट को घुटनो तक चढ़ाए एक पैर मोड़ कर, दूसरे पैर को मुन्ना की तरफ आगे बढ़ाए हुए बैठी थी. मुन्ना ने पायल पहना ने के बहाने शीला देवी के कोमल पैरों को एक दो बार हल्के से सहला दिया.
शीला देवी उसके हाथो को पैरों पर से हटा ते हुए रुआंसी होकर बोली "रहने दे…ये पायल ठीक नही होगी…शायद टूट गयी है…"
"हा…शायद टूट गयी…दूसरी मंगवा लेना…"
एकदम उदास होकर मुँह बनाती हुई शीला देवी बोली "कौन ला के देगा पायल…तेरे बाप से तो आशा है नही और ….तू तो…" कहते हुए एक ठंडी साँस भरी. शीला देवी की बात सुन एक बार मुन्ना के चेहरे का रंग उड़ गया. फिर हकलाते हुए बोला "ऐसा क्यों मा…मैं ला दूँगा…इस बार जब शहर जाउन्गा…इस शनिवार को शहर से…"
"रहने दे…तू क्यों मेरे लिए पायल लाएगा…" कहती हुई पेटिकोट के कपड़े को ठीक करती हुई बगल में रखे तकिये पर लेट गई. मुन्ना पैर के तलवे को सहलाता और हल्के हल्के दबाता हुआ बोला "ओह हो छोड़ो ना…मा…तुम भी इतनी मामूली सी बात…." images
पर शीला देवी ने कोई जवाब नही दिया. खिड़की खुली थी कमरे में बिजली का बल्ब जल रहा था, बाहर जोरो की बारिशा शुरू हो चुकी थी. मौसम एक दम सुहाना हो गया था और ठंडी हवाओं के साथ पानी की एक दो बूंदे भी अंदर आ जाती थी. मुन्ना कुच्छ पल तक उसके तलवे को सहलाता रहा फिर बोला "मा…ब्लाउस तो बदल लो….गीला ब्लाउस पहन…"
"उ…रहने दे थोरी देर में सुख जाएगा..दूसरा ब्लाउस कहा लाई..जो…"
"तौलिया लपेट लेना…" शीला देवी ने कोई जवाब नही दिया.
मुन्ना हल्के हल्के पैर दबाते हुए बोला "आम नही खाओगि…"
"ना रहने दे मन नही है…"
"क्या मा… क्यों उदास हो रही हो…"
"ना मुझे सोने दे…तू आम. खा.."
"ओह हो…तुम भी खाओ ना…. कहते हुए मुन्ना ने आम के उपरी सिरे को नोच कर शीला देवी के हाथ में एक आम थमा दिया और उसके पैर फिर से दबाने लगा. शीला देवी अनमने भाव से आम को हाथ में रखे रही. ये देख मुन्ना ने कहा "क्या हुआ…आम अच्छे नही लगते क्या…चूस ना…पेर पर चढ़ के तोड़ा और इतनी मेहनत की…चूसो ना"
मुन्ना की नज़रे तो शीला देवी की नारियल की तरह खड़ी चुचियों से हट ही नही रही थी. दोनो चुचियों को एकटक घूरते हुए वो अपनी मा को देख रहा था. शीला देवी ने बड़ी अदा के साथ अनमने भाव से अपने रस भरे होंठो को खोला और आम को एक बार चूसा फिर बोली "तू नही खाएगा…"
"खाउन्गा ना…." खाते हुए मुन्ना ने दूसरा आम उठाया और उसको चूसा तो फिर बुरा सा मुँह बनाता हुआ बोला "ये तो एक दम खट्टा है…" .
"ये ले मेरे आम चूस…बहुत मीठा है…" धीमी आवाज़ में शीला देवी अपनी एक चुचि को ब्लाउस के उपर से खुजलाती हुई बोली और अपना आम मुन्ना को पकड़ा दिया. "मुझे तो पहले ही पता था…तेरा वाला मीठा होगा…" धीरे से बोलते हुए मुन्ना ने शीला देवी के हाथ से आम ले लिया और मुँह में ले कर ऐसे चूसने लगा जैसे चुचि चूस रहा हो. शीला देवी के अब चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए बोली "हाई…बड़े मज़े से चूस रहा है... मीठा है ना….". शीला देवी और मुन्ना के दोनो के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट खेल रही थी.
मुन्ना प्यार से आम चूस्ता हुआ बोला "हा मा…बहुत मीठा है…तेरा आम…ले ना तू भी चूस…"
"ना तू चूस… मुझे नही खाना…" फिर मुस्कुराती हुई धीरे से बोली "बेटा अपने..पेड़ के आम..खाया कर…"
"मिलते…नही…" मुन्ना उसकी चुचियों को घूरते हुए बोला.
"कोशिश…कर के देख…" उसकी आँखो में झकति शीला देवी बोली. दोनो को अब दोहरे अर्थो वाली बातो में मज़ा आ रहा था. मुन्ना अपने हाथ को लूँगी के उपर से लंड पर लगा हल्के से सहलाता हुआ उसकी चुचियों को घूरता हुआ बोला "तू मेरा वाला…चूस… खट्टा है…..औरतो को तो खट्टा…."
"हा..ला मैं तेरा…चूस्ति हू…खट्टे आम भी अच्छे होते…" कहते हुए शीला देवी ने खट्टा वाला आम ले लिया और चूसने लगी. अब शीला देवी के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट आ गई थी, अपने रसीले होंठो से धीरे-धीरे आम को चूस रही थी. उसके चूसने की इस अदा और दोहरे अर्थो वाली बात चीत ने अब तक मुन्ना और शीला देवी दोनो की अंदर आग लगा दी थी. दोनो अब उत्तेजित होकर वासना की आग में धीरे धीरे सुलग रहे थे. पेड़ के उपर चढ़ने पर दोनो ने एक दूसरे के पेटिकोट और लूँगी के अंदर छुपे माल को देखा था ये दोनो को पता था. दोनो के मन में बस यही था की कैसे भी करके पेटिकोट के माल का मिलन लूँगी के हथियार के साथ हो जाए. मुन्ना अब उसके कोमल पैरो को सहलाते हुए उसके एक पैर में पड़ी पायल से खेल रहा था शीला देवी आम चूस्ते हुए उसको देख रही थी. बार-बार मुन्ना का हाथ उसकी कोमल, चिकनी पिंदलियों तक फिसलता हुआ चला जाता. पेटिकोट घुटनो तक उठा हुआ था. एक पैर पसारे एक पैर घुटने के पास से मोड हुए शीला देवी बैठी हुई थी. कमरे में
पूरा सन्नाटा पसरा हुआ था, दोनो चुपचाप नज़रो को नीचे किए बैठे थे. बाहर से तेज बारिश की आवाज़ आ रही थी. आगे कैसे बढ़े ये सोचते हुए मुन्ना बोला
"…तेरा पायल मैं कल ला दूँगा सुबह जाउन्गा और…."
"रहने दे मुझे नही चाहिए तेरी पायल…."
"…मैं अच्छी वाली पायल…ला…"
"ना रहने दे, तू….पायल देगा…फिर मेरे से…उसके बदले…" धीरे से मुँह बनाते हुए शीला देवी ने कहा जैसे नाराज़ हो
मुन्ना के चेहरे के रंग उड़ गया. धीरे से हकलाता ��ुआ बोला "बदले में…क्या…मतलब…"
आँखो को नचाती मुँह फुलाए हुए धीरे से बोली "....लाजवंती को भी….पायल...." इस से ज़्यादा मुन्ना सुन नही पाया, लाजवंती का नाम ही काफ़ी था. उसका चेहरा कानो तक लाल हो गया और दिमाग़ हवा में तैरने लगा, तभी शीला देवी के होंठो के किनारों पर लगा आम का रस छलक कर उसकी चुचियों पर गिर पड़ा. शीला देवी उसको जल्दी से छाती पर से पोच्छने लगी तो मुन्ना ने गीला तौलिया उठा अपने हाथ को आगे बढ़ाया तो उसके हाथ को रोकती हुई बोली
"…ना ना रहने दे…अभी तो मैने तेरे से पायल लिया भी नही है जो…"
ये शीला देवी की तरफ से ये दूसरा खुल्लम खुल्ला सिग्नल था कि आगे बढ़. शीला देवी के पैर की पिंदलियों पर से काँपते हाथो को सरका कर उसके घुटनो तक ले जाते हुए धीरे से बोला "प...पायल दूँगा तो….तो दे...गी…"
धीरे से शीला देवी बोली "…प..आयल देगा..तो…? "
".आम…सा…आफ…करने…देगी…" धीरे से मुन्ना बोला. आम के रस की जगह आम सॉफ करने की बात शायद मुन्ना ने जानभूझ कर कही थी.
"तू…सबको…पायल..देता है क्या…" सरसरती आवाज़ में शीला देवी ने पुचछा
"नही…"
"लाजवंत को तो दी …" मुन्ना चुपचाप बैठा रहा.
"उसके आ..म सा…फ… किए…तूने…." मुन्ना की समझ में आ गया की शीला देवी क्या चाहती है.
"अपने पेड़ का…आम…खाना है मुझे…" इतना कहते हुए मुन्ना नेआगे बढ़ अपना एक हाथ शीला देवी के पेट पर रख दिया और उसकी वासना से जलती नासीली आँखो में झाँक कर देखा.
"तो खा…ना….मैं तो हमेशा…." चाहती थी और अनुरोध से ��रे आँखो ने मुन्ना को हिम्मत दी और उसने छाती पर झुक कर अपनी लंबी गरम ज़ुबान बाहर निकाल कर चुचियों के उपर लगे आम के रस को चाट लिया. इतनी देर से गीला ब्लाउस पहन ने के कारण शीला देवी की चूचियाँ एक दम ठंडी हो चुकी थी. ठंडी चुचियों पर ब्लाउस के उपर मुन्ना की गरम जीभ जब सरसरती हुई धीरे से चली तो उसके बदन में सिहरन दौड़ गई. कसमसाती हुई अपने रसीले होंठो को अपनी दांतो से काट ती हुई बोली "चा..अट कर ….सा…आफ करेगा…". मुन्ना ने कोई जवाब नही दिया.
"आम तो चूसा…मैं तो…चूस..वाने आई थी…". शीला देवी ने सीधी बात करने का फ़ैसला कर लिया था.
"हाई…चूस..वाएगी…?" चूची चूसने के इस खुल्लम खुल्ला आमंत्रण ने लंड को फनफना दिया, उत्तेजना अब सीमा पार कर रही थी.
पेट पर रखे हाथ को धीरे से पकड़ अपनी छाती पर रखती हुई शीला देवी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली " मेरा आम चू..ओस…बहुत मीठा है…". मुन्ना ने अपने बाए हथेली में उसकी एक चुचि को कस लिया और ज़ोर से दबा दिया, शीला देवी के मुँह से सिसकारी निकल गई "चूसने के लिए..बोला…" images
"दबा के देखने तो दे…चूसने लायक पके है…या…" शैतानी से मुस्कुराता धीरे से बोला.
"तो धीरे से दबा…ज़ोर से दबा के… तो..सारा रस..निकल.." मुन्ना की चालाकी पर धीरे से हस दी.
"तू सच में चूस…वाने आई थी…" मुन्ना ने वासना से जलती आँखो में झाँकते हुए पुचछा.
"और कैसे….बोलू…" उत्तेजना से काँपति, गुस्से से मुँह बिचकाती बोली.
मुन्ना को अब भी विस्वास नही हो रहा था कि ये सब इतनी आसानी से हो रहा है. कहा तो वो प्लान बना रहा था कि रात में साड़ी उठा कर अनदर का माल देखेगा…यहा तो पूरा सिर कड़ाही में घुसने जा रहा था. गर्दन नीचे झुकाते हुए मुन्ना ने अपना मुँह खोल भीगे ब्लाउस के उपर से चुचि को निपल सहित अपने मुँह में भर लिया. हल्का सा दाँत चुभाते हुए इतनी ज़ोर से चूसा कि शीला देवी की मुँह से आह भरी सिसकारी निकल गई. मगर मुन्ना तो अब पागल हो चुका था. एक चुचि को अपने हाथ से दबाते हुए दूसरी चुचि में मुँह गाढ़ने चूसने, चूमने लगा. शीला देवी बरसो तक वासना की आग में जलती रही थी मगर आज इतने दीनो के बाद जब उसकी चूचियों को एक मर्द ने अपने हाथ और मुँह से मसलना शुरू किया तो उसके तन-बदन में आग लग गई. मुँह से सिसकारियाँ निकालने लगी, अपनी जाँघो को भीचती एडियों को रगड़ती हुई मुन्ना के सिर को अपनी चुचियों पर भींच लिया. गीले ब्लाउस के उपर से चुचियों को चूसने का बड़ा अनूठा मज़ा था. images
गरम चुचियों को गीले ब्लाउस में लपेट कर बारी-बारी से दोनो चुचियों को चूस्ते हुए वो निपल को अपने होंठो के बीच दबाते हुए चबाने लगा. निपल एक दम खड़े हो चुके थे और उनको अपने होंठो के बीच दबा कर खींचते हुए जब मुन्ना ने चूसा तो शीला देवी च्चटपटा गई. मुन्ना के सिर को और ज़ोर से अपने सिने पर भीचती सिस्ययई "इसस्सस्स…उफ़फ्फ़….धीरे…आराम से आम चू…ओस…" दोनो चुचियों के चोंच को बारी बारी से चूस्ते हुए जीभ निकाल कर छाती और उसके बीच वाली घाटी को ब्लाउस के खुले बटन से चाटने लगा. फिर अपनी जीभ आगे बढ़ाते हुए उसके गर्दन को चाट ते हुए अपने होंठो को उसके कानो तक ले गया और अपने दोनो हाथो में दोनो चुचियों को थाम फुसफुसते हुए बोला "बहुत मीठा है तेरा आम…छिल्का उतार के खाउ…". शीला देवी भी उसके गर्दन में बाँहे डाले अपने से चिपकाए फुसफुसती हुई बोली "हाई…छिल्का…उतार के…? "
"हा…शरम आ रही है…क्या ?
"शरमाती तो…आम हाथ में पकड़ाती…?"
"तो उतार दू…छिल्का…?"
"उतार दे…बहुत बक बक करता है…हरामी.." मुन्ना ने जल्दी से गीले ब्लाउस के बटन चटकते हुए खोल दिया,
ब्लाउस के दोनो भागो को दो तरफ करते हुए उसकी काली रंग की ब्रा को खोलने के लिए अपने दोनो हाथो को शीला देवी की पीठ के नीचे घुसाया तो उसने अपने आप को अपनी चुटटरो और गर्दन के सहारे बिस्तर से थोड़ा सा उपर उठा लिया. शीला देवी की दोनो चुचिया मुन्ना की छाती में दब गई.
चुचियों के कठोरे निपल मुन्ना की छाती में चुभने लगे तो मुन्ना ने पीठ पर हाथो का दबाब बढ़ा दिया कर शीला देवी को और ज़ोर से अपनी छाती से चिपका लिया और उसकी कठोरे चुचियों को अपने छाती से पिसते हुए धीरे से ब्रा के हुक को खोल दिए.
कसमसाती हुई शीला देवी ने उसे थोड़ा सा पिछे धकेला और ब्लाउस उतार दिया. फिर तकिये पर लेट मुन्ना की ओर देखने लगी. काँपते हाथो से ब्रा उतार कर दोनो गदराई, गथिलि चुचियों को अपने हाथ में भर धीरे से बोला "बड़े…मस्त आ..म है.." हल्के से दबाया तो गोरी चुचियों का रंग लाल हो गया.
गाँव का राजा पार्ट -13
उसने सपने में भी नही सोचा था कि उसकी मा की चुचियाँ इतनी सख़्त और गुदाज होंगी. रंडी और घर के माल का अंतर उसे पता चल गया. शीला देवी की आँखे नशे में डूबी लग रही थी. उसके बगल में लेट ते हुए अपनी तरफ घुमा लिया और उसके रस भरे होंठो को अपने होंठो में भर नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए अपने बाहों के घेरे में कस ज़ोर से चिपका लिया. करीब पाच मिनिट तक दोनो मा-बेटे एक दूसरे से चिपके हुए एक दूसरे के मुँह में जीभ ठेल-ठेल कर चुम्मा-चाटि करते रहे. th
जब दोनो अलग हुए तो हाँफ रहे थे और दोनो के आँखो की शरम अब धीरे-धीरे घुलने लगी थी. मुन्ना ने शीला देवी की चुचियों को फिर से दोनो हाथो में थाम लिया और उसके निपल को चुटकी में पकड़ मसल्ते हुए एक चुचि के निपल से अपनी जीभ से सहलाने लगा.
शीला देवी भी अपने एक हाथ से चुचि को पकड़ मुन्ना के मुँह में ठेलने की कोशिश करते हुए सीस्यते हुए चुस्वा रही थी. बारी-बारी से दोनो चुचियों को मसालते चुस्ते हुए उसने दोनो चुचियों को चूस-चूस कर लाल कर दिया. चुचियों पर दाँत गढ़ाते हुए चूस्ते हुए बोला "मा…तू ..ठीक कहती… है…अपने पेड़ के…आम…अफ..पहले क्यों…अभी तक तो पूरा चूस चूस कर…सारा आम-रस पी.." मुन्ना का जोश और चूसने का तरीका शीला देवी को पागल बना रहा था.
अपनी छिनाल मामी की दी हुई ट्रैनिंग का पूरा फ़ायदा उठा ते हुए वो शीला देवी की चुचि चूस्ते हुए उसे गरम कर रहा था. वो कभी उसक�� सिर के बालो को सहलाती कभी उसकी पीठ को कभी उसके चूतरों तक हाथ फेरती बोली "अभी…चूसने को मिला…अच्छे से चूस…बेटा….सारा रस तेरे लिए ही…संभाल…" तभी मुन्ना ने अपने दन्तो को उसकी चुचियों पर गढ़ाते हुए निपल को खींचा तो दर्द से करहती बोली "कु..त्ती…चूसने वाला…आम है,....खाने वाला…उन रंडियों…का होगा..जिनको…उफ़फ्फ़….धीरे से चूस…चूस कर…अफ ..बेटा…निपल को…होंठो के बीच दबा…के…बचपन…में…धीरे से…नही तो छोड़…दे…" इस बात पर मुन्ना ने हस्ते हुए शीला देवी की चूचियों पर से मुँह हटा उसके होंठो को चूम धीरे से कान में बोला "इतने जबर्दर्स्त...आम पहले नही चखाए उसी की सज़ा…" शीला देवी भी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली "कमीना…गंदा लरका..."
"गंदी औरत…कम…" बोलते बोलते मुन्ना रुक गया. शीला देवी की मुस्कान और चौड़ी हो गई. दोनो हाथो में बेटे के चेहरे को भरती हुई उसके होंठो और गालो को बेतहाशा चूमती हुई उसके गाल पर अपने दाँत गढ़ा दिए, मुन्ना सीस्या कर कराह उठा. हस्ती हुई बोली "कैसा लगा…गंदी औरत बोलता है…खुद अपनी मा के साथ गंदा काम…". मुन्ना ने भी अपना गाल छुड़ा कर उसके गाल पर दाँत सेकाट लिया और बोला "तू भी तो अपने बेटे के साथ…". दोनो अब बेशरम हो चुके थे. झिझक दूर हो चुकी थी. मुन्ना अपने हाथ को चुचियों पर से हटा नीचे जाँघो पर ले गया और टटोलते हुए अपने हाथ को जाँघो के बीच डाल दिया. चूत पर पेटिकोट के उपर से हाथ लगते ही शीला देवी ने अपनी जाँघो को भींचा तो मुन्ना ने ज़बरदस्ती अपनी पूरी हथेली जाँघो के बीच घुसा दी और चूत को मुठ्ठी में भर, पकड़ कर मसल्ते हुए बोला "अपना बिल दिखा ना…" पूरी चूत को मसले जाने पर कसमसा गई शीला देवी, फुसफुसती हुई बोली
"तू…आम…चूस…मेरी ..छेद…देखेगा तो मादर…चोद…बन…" मुन्ना समझ गया की गंदी बाते करने में मा को मज़ा आ रहा है.
"डंडा डालूँगा…. तभी….मादर..चोद बनूंगा…अभी खाली दिखा…." कहते हुए चूत को पेटिकोट के उपर से और ज़ोर से मसलते उसकी पुट्तियों को चुटकी में पकड़ ज़ोर से मसला.
"हाई…हरामी मेरी…बिल… में डंडा…घुसा…एगा." जोश में आ उसके गालो को अपने दन्तो में भर लिया और अपने हाथ को सरका कमर के पास ले जाती लूँगी के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की. हाथ नही घुसा मगर मुन्ना की दोनो अंडकोष उसकी हथेली में आ गये. ज़ोर से उसी को दबा दिया, मुन्ना दर्द से कराह उठा. कराहते हुए बोला "उखडीगी,…क्या…चाहिए…"
शीला देवी ने जल्दी से अंडकोष पर पकड़ ढीली की "हथियार…दिखा.."
"थोड़ा उपर नही पकड़ सकती थी….पेड़ पर तो सब देख लिया था…"
"पेड़ पर… तो तूने भी….देखा…"
"तुझे पता…था…जान-बूझ कर दिखा…" कहते हुए शीला देवी का हाथ पकड़ अपनी लूँगी के भीतर घुसा दिया. images
खड़े लंड पर हाथ पड़ते ही उसका बदन सिहर गया. गरम लोहे की छड़ की तरह तपते हुए लंड को मुठ्ठी में कसते ही लगा जैसे चूत ने एक बूँद पानी टपका दिया. लंड को हथेली में कस कर जाकड़ मरोर्ति हुई बोली "गधे का…उखाड़ कर लगा लिया…"
"है तो…तेरे बेटे का…मगर…गधे के…जैसा.." बोलते हुए चूत की दरार में पेटिकोट के उपर से उंगली चलाते हुए बोला "पानी…फेंक रही है…"
"मादर..चोद बने..एगा...क्या.."
"तू…रंडी…बन..ना"
"हा….अब रहा नही जा रहा…"
"नंगी कर…दू…"
"हा….और तू भी…" झट से बैठ ते हुए अपनी लूँगी खोल एक तरफ फेंका तो उसका दस इंच का तम्तमता हुआ लंड कमरे की रोशनी में शीला देवी की आँखों को चौंधिया गया. उठ कर बैठ ते हुए हाथ बढ़ा उसके लंड को फिर से पकड़ लिया और चमड़ी खींच उसके पहाड़ी आलू जैसे लाल सुपरे को देखती बोली "हाई…आया ठीक बोलती…तू बहुत बड़ा….हो गया है…तेरा…केला तो….च्छेद…फाड़"
पेटिकोट के नारे को हाथ में पकड़ झटके के साथ खोलते हुए बोला "फर..वाएगी…."
"हाई…मेरा….छेद…फार…"
कहती हुई शीला देवी ने अपनी गांद उठा पेटिकोट को गांद के नीचे से सरकाते हुए निकाल दिया. इस काम में मुन्ना ने भी उसकी मदद की और सरसरते हुए पेटिकोट को उसके पैरों से खींच दिया.
शीला देवी लेट गई और अपनी दोनो टांगो को घुटनों के पास से मोड़ कर फैला दिया. दोनो मा बेटे अब असीम उत्तेजना का शिकार हो चुके थे दोनो में से कोई भी अब रुकना नही चाहता था. शीला देवी की चमचमाती जाँघो को अपने हाथ से पकड़ थोड़ा और फैलाता हुआ उनके उपर अपना मुँह लगा चूमते हुए दाँत से काट ते उसकी saved चूत के उपर एक जोरदार चुम्मा लिया और बित्ते भर की बूर की दरार में जीभ चलाते हुए बूर की टीट को मुँह में भर कर खींचा तो शीला देवी लहरा गई.
चूत की दोनो पुट्तियों ने दूप-दुपते हुए अपने मुँह खोल दिए. सीस्यति हुई बोली "इसस्स…..क्या कर रहा है…" कभी चूत चटवाया नही था. दरार में जीभ चलाने पर मज़ा तो आया था मगर लंड, बूर में लेने की जल्दी थी. जल्दी से मुन्ना के सिर को पिछे धकेल्ति बोली "….क्या…करता…है…जल्दी से चढ़….".
पनियाई चूत की दरार पर उंगली चला उसका पानी लेकर, लंड की चमरी खींच, सुपरे की मंडी पर लगा कर चमचमते सुपरे को शीला देवी को दिखता बोला "मा...देख मेरा…डंडा…तेरी छेद…में…"
"हा…जल्दी से….मेरी छेद में…. " . लंड के सुपरे को चूत के छेद पर लगा पूरी दरार पर उपर से नीचे तक चला बूर के होंठो पर लंड रगड़ते हुए बोला "हां पेल दू…पूरा…"
"हा….मादर…चोद बन जा…"
"हाई…छेद…फाड़ दूँगा…रंडी…"
"बक्चोदि छोड़…फड़वाने के….लिए तो….खोल के…नीचे लेटी….जल्दी कर…" वासना के अतिरेक से काँपति आवाज़ में शीला देवी बोली. लंड के लाल सुपरे को चूत के गुलाबी झांतदार छेद पर लगा मुन्ना ने कच से धक्का मारा. सुपरा सहित चार इंच लंड चूत की कसमसाती छेद की दीवारों को कुचालता हुआ घुस गया. हाथ आगे बढ़ा मुन्ना के सिर को बालो में हाथ फेरती हुई उसको अपने से चिपका भर्रई आवाज़ में बोली " पूरा…डाल दे…बेटा…चढ़ जा". मुन्ना ने अपनी कमर को थोड़ा उपर खींचते हुए फिर से अपने लंड को सुपरे तक बाहर निकाल धक्का मारा. इस बार का धक्का ज़ोर दार था. शीला देवी की गांद फट गई. इतने दीनो से उसने लंड नही खाया था उसके कारण उसकी चूत का छेद सिकुर कर टाइट हो गया था. चूत के अंदर जब तीन इंच मोटा और दस इंच लंबा लंड जड़ तक घुसाने की कोशिश कर रहा था तो चूत छिलगई और दर्द की एक तेज लहर ने उसको कंपा दिया. "आआ….धीरे….फट….उई..माआआआआआ…." करते हुए अपने होंठो को भींच दर्द को पीने की कोशिश करते हुए अपने हाथो के नाख़ून मुन्ना की पीठ में गढ़ा दिए.
"बहुत….टाइट…है…तेरा…छेद…" चूत के पानी में फिसलता हुआ पूरा लंड उसकी चूत के जड़ तक उतार ता चला गया.
"बहुत बड़ा…है..तेरा…केला…उफ़फ्फ़….मेरे…आम चूस्ते हुए….डाल" मुन्ना ने एक चूची को अपनी मुट्ठी में जाकड़ मसालते हुए दूसरी चुचि पर मुँह लगा कर चूस्ते हुए धीरे धीरे एक चौथाई लंड खींच कर धक्के लगाते पुचछा
"पेलवाती… नही… थी…"
"नही….किस से पेलवाती…"
"क्यों…चौधरी…."
"उसका अब…खड़ा…नही…"
"दूसरा…कोई…"
"हरामी….कुत्ते….तुझे अच्छा…लगेगा…मैं दूसरे से….यही चाहता है…तेरी मा…" गुस्से से चूतर पर मुक्का मारती हुई बोली.
"बात तो सुन लिया कर पूरी…सीधा गाली…देने…" झल्लाते हुए मुन्ना चार पाँच तगड़े धक्के लगाता हुआ बोला. तगड़े धक्को ने शीला देवी को पूरा हिला दिया. चुचियाँ थल-थॅला गई. मोटी जाँघो में दल्कन पैदा हो गई. थोड़ा दर्द हुआ मगर मज़ा भी आया क्योंकि चूत पूरी तरह से पनिया गई थी और लंड गछ गछ फिसलता हुआ अंदर-बाहर हुआ था. अपने पैरों को मुन्ना के कमर से लपेट उसको भींचती सीस्यति हुई "उफ़फ्फ़…सी…हरामी…दुखा…दिया…आराम..से..भी बोल सकता…था…" मुन्ना कुच्छ नही बोला, लंड अब चुकी आराम से फिसलता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था इसलिए वो अपनी मा की टाइट गद्देदार रसीली चूत का रस अपने लंड के पीपे से चूस्ते हुए गाचा-गछ धक्के लगा रहा था. शीला देवी को भी अब पूरा मज़ा आ रहा था, लंड सीधा उसकी चूत के आख़िरी किनारे तक पहुच कर ठोकर मार रहा था. धीरे धीरे गांद उचकाते हुए सीस्यति हुई बोली "बोल ना…तो जो बोल…रहा…
"मैं तो…बोल रहा था…कि अच्छा हुआ…जो किसी और से…नही…करवाया…नही तो….मुझे…तेरी टाइट…छेद की जगह…ढीली…छेद…"
"हाई…हरामी…तुझे..छेद की…पड़ी है…इस बात की नही की मैं दूसरे आदमी…"
"मैं तो…बस एक..बात बोल रहा…था की…वैसे…"
"चुप कर…कामीने…दूसरे से करवा कर मैं बदनाम होती…साले…घर की बात…"
"हा…घर की बात…घर में…रहे तो, …फिर दस इंच के हथियार वाला बेटा किस दिन…काम आएगा…ठीक किया तूने…बचा कर रखा…मज़ा आ रहा….अब तुझे खूब मज़े…"
"हाई…बहुत मज़ा…आ…पेलता रह…मेरा जवान लौंडा….गाओं भर की हरमज़ड़िया मज़े लूटे और मैं…"
"हाई अब…गाओंवालियों को छ्चोड़…अब तो बस तेरा बेटा…तेरे को….ही…सीईईईईई उफ़फ्फ़…बहुत मजेदार छेद है…" गपा-गॅप लंड पेलता हुआ मुन्ना सीस्यते हुए बोला. लंड बूर की दीवारों को बुरी तरह से कुचालता हुआ अंदर घुसते समय चूत के दूप-दुपते छेद को पूरा चौड़ा कर देता था और फिर जब बाहर निकलता था तो चूत की पत्तियाँ अपने आप सिकुड कर छेद को फिर से छ्होटा बना देती थी. बड़े होंठो वाली गुदाज चूत होने का यही फ़ायडा था. हमेशा गद्देदार और टाइट रहती थी. उपर के रसीले होंठो को चूस्ते हुए नीचे के होंठो में लंड धँसाते हुए मुन्ना तेज़ी से अपनी गांद उच्छाल उच्छाल कर शीला देवी के उपर कूद रहा था.
"हाई तेरा केला भी….बहुत मजेदार…है, मैने आजतक इतना लंबा…डंडा…सस्सीईईई…ही डालता रह….ऐसे ही…अफ…पहले दर्द किया…मगर…अब….आराम से….ही….अब फाड़ दे…डाल….सीईए…पूरा डाल…कर….हाँ मादर..चोद…बहुत पानी फेंक रही…है मेरी…चू…." नीचे से गांद उच्छलती मुन्ना के चूतरों को दोनो हाथो से पकड़ अपनी चूत के उपर दबाती गॅप गॅप लंड खा रही थी शीला देवी. कमरे में बारिश की आवाज़ के साथ शीला देवी की चूत के पानी में फॅक-फॅक करते हुए लंड के अंदर-बाहर होने की आवाज़ भी गूँज रही थी. इस सुहाने मौसम में खलिहान के वीरान में दोनो मा-बेटे जवानी का मज़ा लूट रहे थे. कहा तो मुन्ना अपनी चोरी पकड़े जाने पर अफ़सोस मना रहा था वही अभी खुशी से गांद कूदते हुए अपनी मा की टाइट पवरोटी जैसी फूली चूत में लंड पेल कर वाडा-पाव खा रहा था. उधर शीला देवी जो सोच रही थी कि उसका बेटा बिगड़ गया है, नंगी अपने बेटे के नीचे लेट कर उसके तीन इंच मोटे और दस इंच लंब लंड को कच-कच खाते हुए अपने बेटे के बिगड़ने की खुशियाँ मना रही थी. आख़िर हो भी क्यों ना, जिस लंड के पिछे गाओं भर की औरतो की नज़र थी अब उसके कब्ज़े में था, घर के अंदर, जितनी मर्ज़ी उतना चुदवा सकती थी.
"हाइईईईईई बहुत….मजेदार है तेरे आम…तेरा छेद…उफफफफफफफफ्फ़…शियीयीयियीयियी अब तो…हाइईईईई मा मज़ा आ रहा अपने बेटे डंडा बिल में घुस्वा के….सीईईईईईई….हाइईईईईईईईईईईई पहले बता दिया होता तो…अब तक…कितनी बार तेरा आम-रस पी लेता….तेरी छेद पेल देता…सीईईईईई तेरी सिकुदीईईईईईईइ हुई छेद खोल देता…रंडी…खा अपने बेटे का….लंड…द्द्दद्ड….हीईईईईईइ…बहुत मज़ा हीईईई…तूने तो खेल खेल कर इतना…तडपा दिया है…अब बर्दाश्त नही हो रहा…मेरा तो निकल जाएगा……सीईई…पानी फेंक दू तेरीईईईईईईईईईइ….चूऊऊऊऊऊऊऊऊओ…त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त..में. सीस्यते हुए मुन्ना बोला. नीचे से धक्का मारती और उपर से ढाका-धक लंड खाती शीला देवी भी अब चरम सीमा पर पहुच चुकी थी. गांद उच्छलती हुई अपनी टाँगो को मुन्ना की कमर पर कास्ती चिल्लई…"मार..मार ना भोसड़ीवाले…मेरे छ्होटे चौधरी…मार…अपनी चौधरैयन….की चूत…फाड़ दे….हाइईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई….बेटा मेरिइईईईईईईईईईईईईईईईई भी अब पानी फेंक देगीईईईईईईईइ…..पुराआआआआआआ लंड…डाल के चोद दीईईईईईई…अपनी मा…की बूर….हाइईईईईईईई…सीईई अपने घोड़े जैसे….लंड का पानी…डाल दे…पेल दीईईईईईईईई….माआआआआआ के लालल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल….बेहन्चोद्द्द्द……मेरी चूऊत में…." यही सब बकते हुए उसने मुन्ना को अपनी बाहों में कस लिया. उसकी चूत ने पानी
फेंकना शुरू कर दिया था. मुन्ना के लंड से भी तेज फ़ौवार्रे के साथ पानी निकलना शुरू हो गया था. मुन्ना के होंठ चौधरैयन के होंठो से चिपक हुए थे, दोनो का पूरा बदन अकड़ गया था. दोनो आपस में ऐसे चिपक गये थे कि तिल रखने की जगह भी नही थी. पसीने से लत-पथ गहरी सांस लेते हुए. जब मुन्ना के लंड का पानी चौधरैयन की बूर में गिरा तो उसे ऐसा लगा जैसे उसकी बर्शो की प्यास भुज गई हो. तपते रेगिस्तान पर मुन्ना का लंड बारिश कर रहा था और बहुत ज़यादा कर रहा था आख़िर उसने अपनी मामी के बाद अपनी मा को चोद दिया था. उसके लंड के नीचे उसके ख्वाबो की दोनो पारियाँ आ चुकी थी.
करीब आधे घंटे तक दोनो एक दूसरे से चिपके बेशुध हो कर वैसे ही नंगे लेट रहे मुन्ना अब उसके बगल में लेटा हुआ था. शीला देवी आँखे बंद किए टांग फैलाए बेशुध लेटी हुई थी और बाहर बारिश अपने पूरे शबाब पर छ्होटे चौधरी और बड़ी चौधरैयन की चुदाई की खुशी मना रही थी.
आधे घंटे बाद जब शीला देवी को होश आया तो खुद को नंगी लेटी देख हर्बरा कर उठ गई. चुदाई का नशा उतरने के बाद होश आया तो अपने पर बड़ी शरम आई. बगल में बेटा भी नंगा लेटा हुआ था. उसका लटका हुआ लॉरा और उसका लाल सुपाड़ा उसके मन में फिर से गुद-गुड़ी पैदा कर गया. आहिस्ते से बिस्तर से उतर अपने पेटिकोट और ब्लाउस को फिर से पहन लिया और मुन्ना की लूँगी उसके उपर डाल जैसे ही फिर से लेटने को हुई कि मुन्ना की आँखे खुल गई. अपने उपर रखे लूँगी का अहसास उसे हुआ तो मुस्कुराते हुए लूँगी को ठीक से पहन लिया. शीला देवी भी शरमाते सकुचाते उस से थोरी दूर पर लेट गई.
दोनो मा-बेटे एक दूसरे से आँख मिलाने की हिम्मत जुटा रहे थे. चुदाई का नशा उतरने के बाद जब दिल और दिमाग़ दोनो सही तरह से काम करने लगा तो अपने किए का अहसास हो रहा था. थोरी देर तक तो दोनो में से कोई नही बोला पर फिर मुन्ना धीरे से सरक कर शीला देवी की ओर घूम गया और उसके पेट पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे हाथ चला कर सहलाने लगा. फिर धीरे से बोला “मा….क्या हुआ…” शीला देवी कुच्छ नही बोली तब फिर बोला “इधर देख ना….” शीला देवी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ घूम गई. th
मुन्ना उसके पेट को हल्के-हल्के सहलाते हुए धीरे से उसके पेटिकोट के लटके हुए नारे के साथ खेलने लगा. नारा जहा पर बाँधा जाता वाहा पर पेटिकोट आम तौर पर थोरा सा फटा हुआ होता है या यू समझिए कि गॅप सा बना होता है. नारे से खेलते-खेलते मुन्ना ने अपनी उंगलियाँ धीरे से उसमे सरका कर चलाई तो गुद-गुडी होने पर उसके हाथ को हटाती बोली “क्या करता है…हाथ हटा…” मुन्ना ने हाथ वाहा से हटा कमर पर रख दिया और थोरा और आगे सरक शीला देवी की आँखो में झाँकते हुए बोला “…मज़ा आया…” शरम से शीला देवी का चेहरा लाल हो गया उसकी छाती पर के मुक्का मारती हुई बोली “...चुप…गधा कही का…” मुन्ना समझ गया कि अभी पहली बार है थोरा तो सरमाएगी ही उसकी नाभि में उंगली चलाता हुआ बोला “मुझे तो बहुत मज़ा...आया…बता ना तुझे कैसा लगा…”
“हाई, नही छोरे…तू पहले हाथ हटा…”
“क्यों…अभी तो…बता ना…मा..”
“..धात…छोड़…वैसे आज कोई आम चुराने वाली नही आई..” शीला देवी ने बात बदलने के इरादे से कहा.
“तूने इतनी मोटी-मोटी गलियाँ दी…कि वो सब…”
“चल…मेरी गालियो का…असर…उनपे कहा से….होने वाला…”
“क्यों इतनी मोटी गलियाँ सुन कर कोई भी भाग जाएगा…मैने तो तुझे पहले कभी ऐसी गलियाँ देते नही सुना”
“वो तो…वो तो ऐसे ही…बस…पता नही…शायद गुस्सा…बहुत ज़यादा…”
“अच्छा गुस्से में कोई ऐसी गलियाँ देता है….वैसे बरी…मजेदार गलियाँ दे रही थी…मुझे तो पता ही नही था…”
“….चल हट बेशरम…”
“….. उन बेचारियों को तो तूने….”
“अच्छा…वो सब बेचारियाँ हो गई…सच -सच बता….लाजवंती थी ना…” आँखे नचती शीला देवी ने पुचछा. हस्ते हुए मुन्ना बोला “तुझे कैसे पता…तूने तो उसका बॅंड बजा…” कहते हुए उसके होंठो को हल्के से चूम लिया. शीला देवी उसको पिछे धकेलते हुए बोली “हट….बदमाश…तूने अब तक गाओं में कितनो के साथ…” मुन्ना एक पल खामोश रहा फिर बोला “क्या..मा…किसी के साथ नही..”
“चल झूठे….मुझे सब पता…है सच सच बता” कहते हुए फिर उसके हाथ को अपने पेट पर से हटाया. मुन्ना ने फिर से हाथ को पेट पर रख उसकी कमर पकड़ अपनी तरफ खींचते हुए कहा “साची साची बताउ…”
“हा साची…कितनो के साथ…” कहती हुई उसकी छाती पर हाथ फेरा. मुन्ना उसको और अपनी तरफ खींचता हुआ अपनी कमर को उसके कमर से सटा धीरे से फुसफुसता हुआ बोला “याद नही पर..बारह तेरह होंगी…”.
“हाई…दैयया…इतनी सारी…कैसे करता था मुए…मुझे तो केवल लाजवंती और बसंती का पता था…”कहते हुए उसके गाल पर चिकोटी काटी.
“वो तो तुझे इसलिए पता है ना क्योंकि तेरी जासूस आया ने बताया होगा…बाकियों को तो मैने इधर उधर कही खेत में कभी पास वाले जंगल में कभी नदी किनारे निपटा दिया था….”
“कमीना कही का…तुझे शरम नही आती…बेशरम…” उसकी छाती पर मुक्का मारती बोली.
“अब तो मा को…. ही निपटा…..” कहते हुए उसने शीला देवी को कमर से पकड़ कस कर भींचा. उसका खरा हो चुका लंड सीधा शीला देवी की जाँघो के बीच दस्तक देने लगा. शीला देवी उसकी बाँहो से छूटने का असफल प्रयास करती मुँह फुलाते हुए बोली “छ्चोड़…बेशरम…मुझे फसा कर…बदमास…” पर ये सब बोलते हुए उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान भी तेर रही थी. मुन्ना ने अपनी एक टांग उठा उसके जाँघो पर रखते हुए उसके पैरो को अपने दोनो पैरों के बीच करते हुए लंड को पेटिकोट के उपर से चूत पर सताते हुए उसके होंठो से अपने होंठो को सटा उसका मुँह बंद कर दिया. रसीले होंठो को अपने होंठो के बीच दबोच चूस्ते हुए अपनी जीभ को उसके मुँह में थेल उसके मुँह में चारो तरफ घूमते हुए चुम्मा लेने लगा.
कुच्छ पल तो शीला देवी के मुँह से गो गो करके गोगियाने की आवाज़ आती रही मगर फिर वो भी अपनी जीभ को थेल थेल कर पूरा सहयोग करने लगी. दोनो आपस में लिपटे हुए अपने पैरों से एक दूसरे को रगर्ते हुए चुम्मा-चाती कर रहे थे. मुन्ना ने अपने हाथ कमर से हटा उसकी चुचियों पर रख दिया था और ब्लाउस के उपर से उन्हे दबाने लगा. शीला देवी ने जल्दी से अपने होंठो को उसके चुंबन से छुड़ाया, दोनो हाँफ रहे थे और दोनो का चेहरा लाल हो गया था. मुन्ना के हाथों को अपनी चुचियों पर से हटाती हुई बोली “इश्स…क्या करता है…”. मुन्ना ने शीला देवी के हाथ को पकड़ अपनी लूँगी के भीतर घुसा अपना लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया. शीला देवी ने अपना हाथ पिछे खींचने की कोशिश की मगर उसने ज़बरदस्ती उसकी मुत्हियाँ खोल अपना गरम तप्ता हुआ खरा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया. लौरे की गर्मी पा कर उसका हाथ अपने आप लंड पर कसता चला गया.
“….तेरा मन नही भरा क्या…” लंड को पूरी ताक़त से मरोर्ति दाँत पीसती बोली.
“हाई…..नही भरा…एक बार और करने दे…ना…” कहते हुए मुन्ना ने उसके घुटनो तक उठे हुए पेटिकोट के भीतर झटके से हाथ घुसा दिया. शीला देवी ने चिहुन्क कर लंड को छ्चोड़ पेटिकोट के भीतर घुसते उसके हाथो को रोकने की कोशिश करते हुए बोली “इससस्स…..क्या करता है…कहा हाथ घुसा रहा…” मुन्ना ज़बरदस्ती हाथ को उसकी जाँघो के बीच ठेलता हुआ बोला “हाई….एक बार और…देख ना कैसे खड़ा है…”
“उफफफ्फ़…हाथ हटा….बहुत बिगड़ गया है तू…” तब तक मुन्ना का हाथ उसके जाँघो के बीच चूत तक पहुच चुका था. चूत की झांतो के बीच से रास्ता खोजते हुए चूत की छेद में बीच वाली उंगली को धकेला. शीला देवी की चूत पनिया गई थी. थोरा सा ठेलने पर ही उंगली कच से बूर में घुस गई. दो तीन बार कच कच उंगली चलाता हुआ मुन्ना बोला “हाई…पनिया गई है…तेरी चू…” शीला देवी उसकी कलाई पकड़ रोकने की कोशिश करती बोली “अफ…छ्चोड़..ना..क्या करता है…वो पानी तो पहले का है…”. एक हाथ से लूँगी को लंड पर हटाता हुआ बोला “पहले का कहा से आएगा…देख इस पर लगा पानी तो कब का सुख गया…”. नंगा खड़ा लंड देखते ही शीला देवी शरमाई आँखे चुराती कनिखियों से देखती हुई बोली “तेरी लूँगी से पुच्छ गया होगा…मेरा अंदर गिरा था कैसे सूखेगा…” कहते हुए मुन्ना के हाथ को पेटिकोट के अंदर से खींच दिया. पेटिकोट जाँघो तक उठा चुका था. लंड को अपने हाथ से पकड़ दिखाता हुआ मुन्ना बोला “….दुबारा…गिराने का दिल कर रहा है…आराम से जाएगा…इस..बार चिकनी हो गई है…तेरी चू…”
“चुप…बेशरम…बहुत देर हो चुकी है…”
“हाई…मया…एक बार में मन नही भरा…एक बार और…”
“रात भर तू यही करता रहता था क्या…”
“…तीन…चार…बार तो करता ही...”
“….मुआ…तभी दिन भर सोता था…रंडियों के चक्कर में”
“….अब उनका चक्कर छ्चोड़ दिया…अब केवल तेरे साथ…ही…एक बार और…” कहते हुए फिर से उसके पेटिकोट के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की.
“हट…नही करवाना….पायल कहा दिया…बिना पायल दिए ले चुका है…एक बार…पहले पायल…दे” कहते हुए उसके हाथ को झटके से हटाती हस दी. मुन्ना भी हस पड़ा और उसकी चुचि को पकड़ कस कर दबा दाँत पीसते बोला “कल ला दूँगा फिर…कम से कम पाँच बार लूँगा…”
“अफ…सीईई….कमिने छ्चोड़….घड़ी देख….क्या टाइम हुआ…” मुन्ना ने घड़ी देखी. सुबह के 4:30 बज रहे थे टाइम का पता ही नही चला था. पहले तो दोनो मा-बेटा पर पर चढ़ने उतरने का नाटक करते रहे फिर कौन पहल करे, इसी लूका-छिपि और एक बार की चुदाई में सुबह के साढ़े चार बज गये. शीला देवी हर्बरा कर उठ गई क्यों कि वो जानती थी कि गाओं में लोग जल्दी सोते है तो जल्दी उठ भी जाते थोरी देर में सड़को पर लोग चलने लगेंगे और थोरा बहुत उजाला भी हो जाएगा ऐसे में पकड़े जाने की संभावना ज़यादा है. मुन्ना को बोली “चल जल्दी बाकी जो करना होगा कल करेंगे….अंधेरा रहते घर….” मुन्ना का मन तो नही था मगर मजबूरी थी चुप-चाप उठ कर अपनी लूँगी ठीक कर खड़ा हो गया. शीला देवी सारी पहन रही थी उसके पास जा कर उसकी कमर पकर पेट सहलाता हुआ बोला “…है बड़ा दिल कर रहा था दुबारा लेने…का….बरी खूबसूरत….”
“छ्चोड़…पकड़े गये तो…फिर कभी मौका भी नही मिलने वाला…चल जल्दी…” और उसका हाथ हटा जल्दी से बाहर की ओर चल दी. मुन्ना भी पिछे पिछे चल पड़ा. तेज कदमो से चलते हुए दोनो घर पहुच चुप-चाप बिना आवाज़ किए अपने-अपने कमरे में चले गये. थोरी देर तक तो दोनो को नींद नही आई, रात की मीठी यादों ने सोने नही दिया मगर फिर दोनो सो गये. सुबह मुन्ना को तो कोई उठाने नही आया मगर शीला देवी को मजबूरन उठना पड़ा. करीब दस बजे दिन में मुन्ना उठा जल्दी से नहा धो कर खाना खाया और फिर बाहर निकल गया. शीला देवी वापस अपने कमरे में घुस गई और जा कर सो गई. शाम में खाना खाने के समय मुन्ना और शीला देवी मिले. चुप चाप खाना खाया फिर अपने अपने कमरो में चले गये. कमरे में घुसने से पहले शीला देवी और मुन्ना की आँखे एक दूसरे से मिली तो मुन्ना ने इशारा करने की कोशिश की मगर शीला देवी ने होंठ बिचका कर के दूसरी तरफ मुँह घुमा लिया. शाम का आठ बज चुके इसलिए लूँगी पहन बैठ गया. बगीचे पर पहुचने के लिए बेताब था मगर शीला देवी तो कमरे में घुसी पड़ी थी. मुन्ना अपने कमरे से निकल कर शीला देवी के कमरे के पास पहुच गया. दरवाज़ा धीरे से खोलते हुए अंदर झाँक कर देखा तो पाया की शीला देवी बिस्तर पर आँखो पर हाथ रख लेटी हुई थी. उसके पास जा कर हिला कर उठाया. शीला देवी ने ओह आह..करते हुए आँखे खोली और पुचछा क्या बात है. मुन्ना मुँह बनाते हुए बोला “क्या…मा…मैं वाहा इंतेज़ार कर रहा था और तुम यहा…”. थोड़ा मुस्कुराती थोड़ा मुँह बनाती बोली “क्यों…इंतेज़ार कर रहा है…”
क..क्या मतलब बगीचे पर नही जाना क्या…”
“तू जा…मैं वाहा जा कर क्या करूँगी…” आँखे नचाती बोली.
“ आमो की रखवाली कौन करेगा….” मुन्ना समझ गया कि ये फिर नाटक कर रही है.
“क्यों तू तो कर ही लेता है…जा और अपनी सहेलियों को भी बुला ले…”
“अब…चल ना…देख कैसे तड़प रहा है मेरा…लौरा..एयेए” चिरोरी करते हुए मुन्ना लंड को लूँगी के उपर से सहलाते हुए बोला.
“तड़प रहा तो….खुद ही शांत कर…मैं नही आती….” मुन्ना एक पल उसे देखता रहा फिर चिढ़ कर बोला. “ठीक है मत चल…मैं जा रहा हू…कोई ना कोई तो मिल ही जाएगी…” और फिर तेज़ी के साथ बाहर निकल गया. उसे पहले पता होता तो बसंती को बुला लेता, मगर आज तो कोई जुगाड़ नही था. फिर भी गुस्से में बाहर निकल सीधा बगीचे पर पहुँचा और दरवाज़ा बंद कर बिस्तर पर लेट गया. नींद तो आ नही रही थी. चुप-चाप वही लेटा करवटें बदलने लगा.
मुन्ना के बाहर निकल जाने के थोरी देर तक शीला देवी कुच्छ सोचती रही, फिर धीरे से उठी और बाहर निकल गई. उसके कदम अपने आप बगीचे की तरफ बढ़ते चले गये. कुच्छ समय बाद वो खलिहान के दरवाजे पर थी. दरवाजे पर खाट-खाट की आवाज़ सुन मुन्ना बिस्तर से उच्छल कर नीचे उतरा. कौन हो सकता है सोचते हुए उसने दरवाजा खोल दिया. सामने शीला देवी खड़ी थी पसीने से लत-पथ, लगता है जैसे दौरती हुई आई थी. उसकी साँसे तेज चल रही थी और सांसो के साथ उसकी छातियाँ उपर नीचे हो रही थी. नज़रे नीचे की ओर झुकी हुई थी. मुन्ना ने एक पल को उपर से नीचे शीला देवी को निहारा फिर चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोला “बाहर ही खरी रहोगी या अंदर आओगी”
एक पल रुक कर धीरे से वो अंदर आ गई और धीरे धीरे चलते हुए बिस्तर पर पैर लटका कर बैठ गई. फिर मासूम सा चेहरा बना मायूस आवाज़ में बोली “बेटा ये ठीक नही है… मैं नही चाहती की तू रंडियों के चक्कर में पड़े…ये सब बंद कर दे….” .
“मुझे कौन सा उनके साथ मज़ा आता है…पर तू तो…जब कि कल…”
“मैं तेरी मा हू…मुझे कल रात से खुद पर शरम आ रही है….इसलिए तुझे दुबारा करने से रोका…अंधी हो गई थी…ये ठीक नही है…..फिर तू उन रंडियों के साथ करता था मुझे बहुत बुरा लगता था…”
“तुझे मज़ा नही आया..था…सच बता…. तुझे मेरी कसम…”
“हा…आया था…बहुत मज़ा आया….पर…” शरम से लाल होती शीला देवी बोली. शीला देवी को थोरा सा खिसका कर उसके पास बिस्तर बैठ उसकी जाँघो पर हाथ रख कर मुन्ना उसे समझाने वाले अंदाज में बोला “तू गाओं में रह कर कुएँ की मेंढक बन गई है….दुनिया में सब कितना मज़ा करते है…फिर गाओं भर की जासूस वो बुढ़िया तो तेरे पास आती है, क्या वो तुझे नही बताती कि लोगो के घरो में क्या-क्या होता है.”
“आती है…और बताती भी है मगर…फिर भी हम औरो के जैसा क्यों…”
“तो फिर क्यों आई है भागती हुई”
“मैं तुझे रोकने आई हूँ....मैं नही चाहती तू औरो के जैसे बन जाए”
“बात उनके जैसा बन ने की नही. बात मज़े करने की है. कोई और हमारे बदले मज़ा नही कर सकता ना ही हम किसी को बताने जा रहे है कि हम कितने मज़े करते है. लोगो को अपना मज़ा करने दो हम अपना करते है. घर के अंदर कोई देखने आता है?…खुल कर मज़ा लेगी तभी सुखी रहेगी….शहर में तो….. ”
“तू मुझे ग़लत बाते सीखा रहा है…गंदी औरत बना रहा है…”
“…जिंदगी का असली मज़ा इसी में है…”
“पर तू मेरा…बेटा है…तेरे साथ…ये ग़लत है.
“मतलब मेरे साथ नही करवाएगी…बाहर के किसी से…”
“तू बात को पता नही कहाँ से कहाँ ले जाता है…देख बेटा ऐसा मत…कर…मुझे किसी से नही करवाना और उन रंडियों का चक्कर…ठीक नही…तू भी छ्चोड़ दे”
“तू अपनी सारी उठा कर रखेगी तो मैं बाहर क्यों मुँह मारूँगा…”
“बहुत बरी ….कीमत माँग रहा है….”
“तेरी छेद घिस जाएगी क्या…फिर तुझे भी तो मज़ा आएगा…बाहर करवाएगी तो बदनामी होगी…घर में…खुल कर मज़ा लूट…नही तो…जाम हो जाएगा…छेद…फिर उंगली भी डालेगी तो नही घुसेगी…” मुन्ना का ये भाषण सुन कर शीला देवी हस्ने लगी अब पर उसको ये बात भी समझ आ गई वो मुन्ना को नही रोक सकती. वो बाहर जाएगा ही. कुच्छ पल सोचती रही फिर समझ में आ गया कि अच्छा होगा वो अपनी छेद की सेवा उस से करवाती रहे. उसके दोनो हाथ में लड्डू रहेगा बेटा भी कब्ज़े में रहेगा और उसकी खुजली भी शांत रहेगी. इतना सोच मुस्कुराते हुए बोली “घिसेगी तो नही पर ढीली ज़रूर हो जाएगी…”
दोनो की हसी निकल गई. मुन्ना समझ गया कि सन्सय के बदल छट गये. कल रात से शीला देवी के मन में जो उथल-पुथल चल रहा था वो सब अब शायद ख़तम हो गया था. कल रात जो मज़ा आया था उसकी याद ने शीला देवी के बदन को एक बार फिर से सिहरा दिया. दोनो चुप थे और शीला देवी सिर नीचे किए अपनी चूत में उठ रहे झन-झनाहट और मचल रहे कीड़ो को महसूस कर रही थी. डुप्दुपति चूत को जाँघो के बीच कसती हुई धीरे से बोली “अब किसी रंडी के पास मुँह मारने तो नही जाएगा…”
“नही जौंगा बाबा…लेकिन तू पहले बोल खुल के मज़ा लेगी….”
“हा लूँगी…अब खुल के लूँगी…पर तू…”
“अरी….बोल तो दिया नही जाउन्गा…”
“चल झूठे….तेरा कोई भरोसा नही कसम ले पहले…”
“ठीक चल…तेरी कसम…”
“ना मेरी कसम क्यों खा…रहा है…” मुँह बिचकाती बोली. शीला देवी की आवाज़ से लग रहा था कि अब वो पूरे मज़े के लिए तैय्यार है. चेहरे पर और बोलने के अंदाज में चंचलता आ चुकी थी. मुन्ना कुच्छ पल सोचता रहा फिर बोला “ तब किसकी…”
“….अपने लूँ…ड्ड की कसम खा ना…” मुस्कुराती हुई बोली. ये बोलते हुए चौधरैयन का चेहरा शरम से लाल हो गया और गालो में गड्ढे पर गये. मुन्ना उपर से नीचे तक सन सना गया. शीला देवी ने लंड बोला और मुन्ना की रीढ़ की हड्डी का खून दौरता हुआ सीधा उसके लौरे में उतरता चला गया. शीला देवी की आँखो में झाँकते हुए तपाक से अपनी लूँगी को उठा खरे लंड को हाथ में पकड़ उसकी चमरी उलट कर चमचमाते सुपरे को दिखाता शीला देवी के पास खरा हो बोला “ हाई….इस लनन्ड की कसम जो तेरी चूत छ्चोड़ किसी और की….” कहते हुए आगे झुक कर उसकी गाल पर दाँत काट ते हुए दूसरे हाथ से उसकी एक चुचि को ज़ोर से दबा दिया. शीला देवी “उई मा…” खहते हुए उच्छल कर बैठ गई और मुन्ना को पिछे धकेला.
“इससस्स कितनी ज़ोर से काट लिया मुए…”
“हाई…यही पटक कर ले लूँगा…अफ….ऐसे ही खुल कर मज़ा लेगी तो….”.
कहते हुए मुन्ना ने शीला देवी के चूतर पर चिकोटी काटी. शीला देवी ने एक घूँसा उसकी छाती पर मारा और बोली “हट कुत्ते…भाग यहाँ से…”
लंड लूँगी में फरफारा रहा था. आज मुन्ना ने इरादा कर लिया था कि आराम से मज़ा लूँगा. एक-एक अंग को चाट-चाट कर, काट कर पहले खाउन्गा फिर रात भर गद्देदार चूत में लंड पेल कर चोदुन्गा. साली को आज सोने नही दूँगा.
शीला देवी की कमर में हाथ डाल उस से लिपट कर उसके कान की लौ को मुँह से पकड़ फुसफुसते हुए बोला “हाई बहुत तडपाया है…सुबह से…किसी काम में मन नही लग रहा था….” मुन्ना का हाथ लगते ही शीला देवी का पूरा बदन सिहर गया.
मुन्ना कान को चूमने के बाद धीरे से उसकी गर्दन और उसके पिछले भाग पर अपने होंठो को चलाते हुए चूम रहा था. आज शीला देवी ने पीठ पर बटन लगने वाला ब्लाउस पहन रखा था हाथ को धीरे धीरे उसकी पीठ पर सरकाते हुए आहिस्ता आहिस्ता मुन्ना एक-एक बटन खोलने लगा. ब्लाउस के बटन खुलते ही शीला देवी को जैसे होश आया मुन्ना को थोरा परे धकेल्ति हुई बोली “हाई रुक तो ज़रा… हाथ हटा….” images
“हाई तो और क्या करू....अब नही रुका जाता… “.
इस पर शीला देवी मुँह बनाती हुई बोली “अर्रे…दरवाजा तो बंद कर ले कुत्ते.....”
“ओह…अभी बंद कर के आता हू…एक चुम्मा दे…”
“नही तू बंद कर के आ…और फिर पहले मेरा पायल दे….फिर माँगना चुम्मा….” शीला देवी ने अपने सारी के पल्लू को ठीक करते हुए मुँह बनाते हुए कहा जैसे गुस्से में हो.
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“तो ये बोल ना…कि तुझे पायल चाहिए…”
“वो तो चाहिए ही….रंडियों को देगा और मा…को देने में….तुम सब बाप बेटे …एक जैसे…” कहते हुए उसने मुन्ना को धकेल कर बिस्तर से उतार दिया. मुन्ना दरवाज़ा बंद करने की जगह खोल कर बाहर निकल चारो तरफ देखने लगा. पूरे बगीचे में घनघोर अंधकार फैला हुआ था. आसमान में बदल छाए हुए थे और इसलिए चाँद भी उनके पिछे च्छूपा हुआ था. बारिश के आसार थे. दूर दूर तक एक कुत्ता भी नज़र नही आ रहा था. लूँगी के उपर से अपने लंड को पकड़ ज़ोर से हिलाते हुए अपने हाथ से ही लंड को मरोड़ कर धीरे से बोला साली….कल से तरप रहा हू…मा की चूत…हाई चौधरैयन आज तो तेरी फार दूँगा…. अचानक उसके होंठो पर एक मुस्कान फैल गई और और अपनी जेब में रखे पायल को उसने बाहर निकाल लिया और वही खुले में एक पेड़ के नीचे खड़े हो पेशाब करने के बाद तेज़ी से अंदर घुसा और दरवाजा बंद कर पिछे मुड़ा तो देखा कि शीला देवी कही नज़र नही आई अलबत्ता बाथरूम से तेज सिटी के जैसी आवाज़ आ रही थी. बाथरूम का दरवाज़ा पूरी तरह से बंद नही था. मुन्ना दबे पाव बाथरूम में घुस गया. शीला देवी कमोड के उपर बैठी मूतने में व्यस्त थी, पेटिकोट पिछे से पूरा उठा हुआ था और उसके मस्ताने गद्देदार गोरे गोरे चुट्टर सॉफ दिख रहे थे. चुटटर थोरा उठा हुआ था इसलिए पिछे से उसकी चूत भी थोरी दिख रही थी,
गांद का छेद दोनो भारी चुटटरो के बीच दबा हुआ था. मुन्ना के लंड को झंझणा देने के लिए इतना काफ़ी था. दिल में आया कि पिछे जा कर गांद में लंड सटा दे. दबे पाव शीला देवी के पिछे पहुच उसकी पेशाब करती हुई चूत को देखने की इच्छा से अपने सिर को आगे झुकाया ही था कि शीला देवी उठ कर खड़ी हो गई. मुन्ना को देखते ही चौंक गई शरम और गुस्से से मुन्ना को धकेला “उईईइ….मा..यहा क्या कर रहा है …डरा दिया…मैने सोचा पता नही कौन आ गया….कमीना..”
“देखने आया था तू कैसे मूत….ती है…” हस्ते हुए मुन्ना बोला.
“शरम नही आती…” फ्लस चलाती शीला देवी बोली.
“कल ही देखी थी तेरी…. जिस से तू मूत ती है…”
“उफफफ्फ़….मुए…बेशरम गंदी बाते करता है….सुअर कही का…”
“अब यही खरा रहेगा क्या....” मुन्ना को धकेल्ति बाथरूम से बाहर निकलती और खुद भी निकलती हुई बोली.
“खरा तो ना जाने कब से है….” अपनी लूँगी के उपर से लंड पकड़ के दिखाता हुआ बोला.
“हट मुए…बाहर निकलने के लिए बोल रही हू …चल…” बोलती हुई वो बाथरूम से बाहर निकल गई.
शीला देवी ने इस समय केवल पेटिकोट और ब्रा पहन रखा था. मुन्ना जब दरवाजा बंद करने गया था तभी उसने सारी और ब्लाउस उतार दिया था. hot-aunties-and-beautiful-teenshot-aunties-back-picshot-aunties-backhot-aunty-backhot-aunty-in-sareesaree-auntyhot-aunty-in-punjabi-
ब्रा काले रंग का नॉर्मल सा था बहुत ज़यादा स्टाइलिश नही था. इसलिए चुचे पूरे ढके हुए थे. खाली बीच वाली गोरी घाटी नज़र आ रही थी. काले रंग की एकदम फिट पेटिकोट नाभि से नीचे बँधी हुई थी और चुटटरो से चिपकी हुई उसके मस्ताने गथिले चुटटरो का आकार बता रही थी. शीला देवी भुन-भुनाते हुए बिस्तर पर पैर लटका कर बैठ गई. मुन्ना कुत्ते की तरह जीभ लपलपता उसके पिछे पिछे गया और बिस्तर पर बैठ गया और उसकी कमर में हाथ डाल कर कहा “…चल गुस्सा छ्चोड़…”
“नही तू…बहुत गंदा लड़का है…”
“अरे मा ग़लती हो गई….बरी इच्छा हो रही थी….. कि देखे कैसे करती हो..”
“क्या कैसे….करते हू…”
“पेशाब….और….क्या…”
“छि…गंदे…पता नही कहा से सीख कर आ गया है” मुँह बनाती हाथ चमकती हुई शीला देवी बोली.
अरे मा तू क्या जाने जब मे मामी के यहा था तो मैं अक्सर कामुक-कहानियाँ
हिन्दीसेक्सीकहानिया से सेक्सीकहानिया पढ़ता था वास्तव मे मा राज शर्मा की कहानिया बहुत मस्त होती है “हाई…तू जिसको…गंदा बोलती है…हाई पेशाब करते समय ना जब सिटी जैसी आवाज़…”
“धात…बेशरम वो तो औरते जब भी पेशाब करती है तब…आवाज़…”
“हा..वही…ये आवाज़ सुनते ही ना मेरा तो एकदम खड़ा हो जाता…”
“क्या…मतलब…. पेशाब करने की आवाज़ सुन के…छि…कितना कमीना हो गया है तू…”
“हाई..अब जो भी कह ले…देख ना…कैसे खड़ा है…” कहते हुए अपने लूँगी के उपर हाथ लगा लंड दिखाया और अपने हाथ को उसकी ब्रा मे कसी चुचियों पर ले गया. शीला देवी ने बुरा सा मुँह बनाते हुए उसका हाथ हटा दिया. मुन्ना फिर से अपने हाथ को उसकी ब्रा पर ले गया और उसकी बाई चुचि को मुट्ठी में पकड़ ज़ोर से दबाया. शीला देवी को ज़ोर से दर्द हुआ “उई…मा…”करते हुए चौंक गई और मुन्ना को परे धकेला. अपने हाथ से अपनी छाती सहलाती हुई बोली “नोच लेगा क्या…अफ…जुंगली कही का…”
“मा….खोल ना, अब नही खोलेगी तो फाड़ दूँगा तेरा ब्लाउस…” मुन्ना फिर से चिरोरी करते बोला. पर शीला देवी ने उसका हाथ झटक दिया और बोली “ना पहले…पायल दे…उसके बिना हाथ नही लगाने दूँगी…”
“कमाल करती है…पायल के पिछे पड़ी है…”
“रंडी तो तूने बना दिया है….अब तो बिना…पायल के…”
“तो फिर वैसे ही पटक कर लूँगा….”
“ले लेना हरामी….पर पहले पायल दे…..”
“तो ले….” कहते हुए मुन्ना उसके सामने खड़ा हो गया और अपनी लूँगी को खोल कर नीचे गिरा दिया. चौधरायण ने जब देखा तो उसके मुँह से एक तेज किलकरी निकल गई….”उईईइ….मा……मुए कितना कमीना है तू……” मुन्ना का दस इंच का लंड एक दम सीधा खड़ा था अपने लाल चमचमते सुपरे से लार टपका रहा था. पर खास बात ये थी मुन्ना ने पायल को लंड के चारो तरफ लपेट रखा था. उसकी इसी बदमासी ने शीला देवी के मुँह से किलकरी निकाल दी थी. लंड के चारो तरफ पायल लपेटे मुन्ना कमर पर हाथ रखे शान से खड़ा था.
“ले..ले अपना पायल….” कहते हुए उसने एक हाथ से शीला देवी का हाथ पकड़ा और उसको अपने लंड पर रख दिया. मुन्ना की ये अदा शीला देवी को पूरी तरह से मदहोश कर गई. लंड के सुपरे को पकड़ आहिस्ता-आहिस्ता उसने उसके चारो तरफ लपेटा हुआ पायल उतारा और मुन्ना को अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखो से घूरते अपने एक पैर को घुटने के पास से हल्का सा मोड़ कर बिस्तर पर रखा और फिर अदा के साथ धीरे से अपने अपने पेटिकोट को घुटनो तक उपर उठा कर अपनी गोरी पिंदलियों में पतली सी सोने की पायल पहन ने लगी. उसकी एक चुचि उसके घुटनो से दबी हुई ब्रा के बाहर आने को उतावली हुई थी. शीला देवी की इस अदा ने मुन्ना को ऐसा घायल किया कि उसका दिल कर रहा था इसकी तस्वीर निकाल कर हमेशा के लिए सन्जो ले. अपने काँपते हाथो से उसके तलवे को पकड़ पैर की उंगलियों पर हाथो को फेरा. शीला देवी ने पायल पहन लिया था.
हेलो दोस्तो मैं एक और नई कहानी गाँव का राजा लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे दोस्तो
गाओं का माहौल बड़ा ही अज़ीब किस्म का होता है. वेहा एक ओर तो सब कुच्छ ढका छुपा होता है तो दूसरी ओर अंदर ही अंदर ऐसे ऐसे कारनामे होते है कि जान जाओ तो दन्तो तले उंगली दबा लो. थोड़ा सा भी झगड़ा होने पर लोग ऐसी मोटी मोटी गलिया देंगे मगर, अपनी बहू बेटियो को दो गज का घूँघट निकालने के लिए बोलेंगे. फिर यही लोग दूसरो की बहू बेटियों पर बुरी नज़र रखेंगे और ज़रा सा भी मौका अगर मिल जाए तो अपने अंदर की सारी कुंठा और गंदी वासना निकाल देंगे. कहने का मतलब ये कि गाओं में जो ये दबी छुपी कामुक भावनाए है वो विभिन्न अव्सरो पर भिन्न भिन्न तरीक़ो से बाहर निकलती है. खेत, खलिहान, आमो का बगीचा आदि कई ऐसी जगहे है जहा पर छुप छुप के तरह तरह के कुकर्म होते है कभी उनका पता चल जाता है कभी नही चल पाता. गाओं के बड़े बड़े घरो के मर्द तो बकाएदा एक आध रखैले भी रखते है, जिनकी रखैल ना हो उनकी इज़्ज़त कम होती थी. ये अलग बात है कि इन बड़े घरो की औरते पयासी ही रह जाती थी क्यों कि मर्द तो किसी और ही कुआँ का पानी पी रहा होता था. दूसरो के कुए का पानी पीने के बाद अपने घर के पानी को पीने की उनकी इच्छा ही नही होती थी. और अगर किसी दिन पी भी लिया तो उन्हे मज़ा नही आता था. इन औरतो ने भी अपनी प्यास भुझाने के लिए तरह तरह के उपाए कर रखे थे. कुच्छ ने अपने नौकरो को फसा रखा था और उनकी बाँहो में अपनी सन्तुस्ति खोज़ती थी कुच्छ ने चोरी छुपे अपने यार बना रखे थे और कुच्छ यू ही दिन रात वासना की आग में जल कर ह���स्टीरिया की मरीज़ बन चुकी थी. खैर ये तो हुआ गाओं के माहौल का थोड़ा सा परिचय. अब आपको गाओं की ही एक बड़े घर की कहानी सुनाता हू. वैसे तो सभी समझ गये होंगे कि ये गाओं की कोई वासनात्मक कहानी है, फिर इसको बताने की क्या ज़रूरत है जब इसमे कुच्छ भी नया नही है, तो दोस्तो इसमे बताने के लिए एक अनोखी बात है जो उस गाओं में पहले कभी नही हुई थी इसलिए बताई जा रही है. तो फिर सुनो कहानी.
गाओं के एक सुखी संपन्न परिवार की कहानी है. घर की मालकिन का नाम शीला देवी था. मलिक का नाम तो पता नही पर सब उसे चौधरी कहते थे. शीला देवी, जब शादी हो के आई थी तो देखने में कुच्छ खास नही थी रंग भी थोड़ा सावला सा था और शरीर दुबला पतला, छरहरा था. मगर बच्चा पैदा होने के बाद उनका सरीर भरना शुरू हो गया और कुच्छ ही समय में एक दुबली पतली औरत से एक अच्छी ख़ासी स्वस्थ भरे-पूरे शरीर की मालकिन बन गई. पहले जिस की तरफ एक्का दुक्का लोगो की नज़रे इनायत होती थी वो अब सबकी नज़रो की चाहत बन चुकी थी. उसके बदन में सही जॅघो पर भराव आ जाने के कारण हर जगह से कामुकता फूटने लगी थी. छ्होटी छ्होटी छातियाँ अब उन्नत वक्ष स्थल में तब्दील हो चुकी थी. बाँहे जो पहले तो लकड़ी के डंडे सी लगती थी अब काफ़ी मांसल हो चुकी थी. पतली कमर थोड़ी मोटी हो गई थी और पेट पर माँस चढ़ जाने के कारण गुदजपन आ गया था. और झुकने या बैठने पर दो मोटे मोटे फोल्ड से बन ने लगे थे. चूतरो में भी मांसलता आ चुकी थी और अब तो यही चूतर लोगो के दिलोको धड़का देते थे. जंघे मोटी मोटी केले के खंभो में बदल चुकी थी. चेहरे पर एक कशिश सी आ गई थी और आँखे तो ऐसी नशीली लगती थी जैसे दो बॉटल शराब पी रखी हो. सुंदरता बढ़ने के साथ साथ उसको सम्भहाल कर रखने का ढंग भी उसे आ गया और वो अपने आप को खूब सज़ा सॉवॅर के रखती थी. बोल चाल में बहुत तेज तर्रार थी और सारे घर के काम वो खुद ही नौकरो की सहयता से करवाती थी उसकी सुंदरता ने उसके पति को भी बाँध कर रखा हुआ था. चौधरी अपनी बीबी से डरता भी था इसलिए कही और मुँह मारने की हिम्मत उसकी नही होती थी. बीबी जब आई थी तो बहुत सारा दहेज ले के आई थी इसलिए उसके सामने मुँह खोलने में भी डरता था, बीबी भी उसके उपर पूरा हुकुम चलाती थी. उसने सारे घर को एक तरह से अपने क़ब्ज़े में कर के रखा हुआ था. बेचारा चौधरी अगर एक दिन भी घर देर से पहुचता था तो ऐसी ऐसी बाते सुनाती कि उसकी सिट्टी पिटी गुम हो जाती थी. काम-वासना के मामले में भी वो बीबी से थोड़ा उननिश ही पड़ता था. शीला देवी कुच्छ ज़यादा ही गरम थी. उसका नाम ऐसी औरतो में शुमार होता था जो खुद मर्द के उपर चढ़ जाए. गाओं की लग भग सारी औरते उसका लोहा मानती थी और कभी भी कोई मुसीबत में फस्ने पर उसे ही याद करती थी. चौधरी बेचारा तो बस नाम का चौधरी था असली चौधरी तो चौधरायण थी. उन दोनो का एक ही बेटा था नाम उसका राजेश था प्यार से सब उसे राजू कहा करते थे. देखने में बचपन से सुंदर था, थोरी बहुत चंचलता भी थी मगर वैसे सीधा साधा लड़का था. थोड़ा जैसे ही बड़ा हुआ तो शीला देवी को लगा की इसको गाओं के माहौल से दूर भेज दिया जाए ताकि इसकी पढ़ाई लिखाई अच्छे से हो और गाओं के लड़को के साथ रह कर बिगड़ ना जाए. चौधरी ने थोडा बहुत विरोध करने की भी कोशिश की "हमारा तो एक ही लड़का है उसको भी क्यों बाहर भेज रही हो" मगर उसकी कौन सुनता, लड़के क�� उसके मामा के पास भेज दिया गया जो कि शहर में रह कर व्यापार करता था. मामा की भी बस एक लड़की ही थी. शीला देवी का ये भाई उस से उम्र में बड़ा था और वो खुशी खुशी अपने भानजे को अपने घर रखने के लिए तैय्यार हो गया था. दिन इसी तरह बीत रहे थे चौधरैयन के रूप में और ज़यादा निखार आता जा रहा था और चौधरी सुखता जा रहा था. अब अगर किसी को बहुत ज़यादा दबाया जाए तो वो चीज़ इतना दब जाती है कि उतना ही भूल जाती है. यही हाल चौधरी का भी था. उसने भी सब कुच्छ लगभग छ्चोड़ ही दिया था और घर के सबसे बाहर वाले कमरे में चुप चाप बैठा दो-चार निथल्ले मर्दो के साथ या तो दिन भर हुक्का पीता या फिर तास खेलता. शाम होने पर चुप चाप सटाक लेता और एक बॉटल देसी चढ़ा के घर जल्दी से वापस आ कर बाहर के कमरे में पर जाता. नौकरानी खाना दे जाती तो खा लेता नही तो अगर पता चल जाता की चौधरायण जली भूनी बैठी है तो खाना भी नही माँगता और सो जाता. लड़का छुट्टियों में घर आता तो फिर सब की चाँदी रहती थी क्यों की चौधरायण बहूत खुश रहती थी. घर में तरह के पकवान बनते और किसी को भी शीला देवी के गुस्से का सामना नही करना पड़ता था.
शीला देवी
ऐसे ही दिन महीने साल बीत ते गये, लड़का अब सत्रह बरस का हो चुका था. थोड़ा बहुत चंचल तो हो ही चुका था और बारहवी की परीक्षा उसने दे दी थी. परीक्षा जब ख़तम हुई तो शहर में रह कर क्या करता, शीला देवी ने बुलवा लिया. एप्रिल में परीक्षा के ख़तम होते ही वो गाओं वापस आ गया. लोंडे पर नई नई जवानी चड़ी थी. शहर की हवा लग चुकी थी जिम जाता था सो बदन खूब गठिला हो गया था. गाओं जब वो आया तो उसकी खूब आव-भगत हुई. मा ने खूब जम के खिलाया पिलाया. लड़के का मन भी लग गया. पर दो चार दिन बाद ही उसका इन सब चीज़ो से मन उब सा गया. अब शहर में रहने पर स्कूल जाना टशन जाना और फिर दोस्तो यारो के साथ समय कट जाता था पर यहा गाओं में तो करने धरने के लिए कुच्छ था नही, दिन भर बैठे रहो. इसलिए उसने अपनी समस्या अपनी शीला देवी को बता दी. शीला देवी ने कहा की "देख बेटा मैने तो तुझे गाओं के इसी गंदे माहौल से दूर रखने के लिए शहर भेजा था, मगर अब तू जिद्द कर रहा है तो ठीक है, गाओं के कुच्छ अच्छे लड़को के साथ दोस्ती कर ले और उन्ही के साथ क्रिकेट या फुटबॉल खेल ले या फिर घूम आया कर मगर एक बात और शाम में ज़यादा देर घर से बाहर नही रह सकता तू". राजू इस पर खुश हो गया और बोला "ठीक है मम्मी तुझे शिकायत का मौका नही दूँगा". राजू लड़का था, गाओं के कुच्छ बचपन के दोस्त भी थे उसके, उनके साथ घूमना फिरना शुरू कर दिया. सुबह शाम उनकी क्रिकेट भी शुरू हो गई. राजू का मन अब थोड़ा बहुत गाओं में लगना शुरू हो गया था.
घर में चारो तरफ खुशी का वा��ावरण था क्यों की आज राजू का जनम दिन था. सुबह उठ कर शीला देवी ने घर की सॉफ सफाई करवाई, हलवाई लगवा दिया और खुद भी शाम की तैय्यारियों में जुट गई. राजू सुबह से बाहर ही घूम रहा था. पर आज उसको पूरी छूट मिली हुई थी. तकरीबन 12 बजे के आस पास जब शीला देवी अपने पति को कुच्छ काम समझा कर बाजार भेज रही थी तो उसकी मालिश करने वाली आया आ गई. शीला देवी उसको देख कर खुश होती हुई बोली "चल अच्छा किया आज आ गई, मैं तुझे खबर भिजवाने ही वाली थी, पता नही दो तीन दिन से पीठ में बड़ी अकड़न सी हो रखी है". आया बोली "मैं तो जब सुनी कि आज मुन्ना बाबू का जनम दिन है तो चली आई कि कही कोई काम ना निकल आए". काम क्या होना था, ये जो आया थी वो बहुत मुँह लगी थी चौधरायण के. आया चौधरायण की कामुकता को मानसिक संतुष्टि प्रदान करती थी. अपने दिमाग़ के साथ पूरे गाओं की तरह तरह की बाते जैसे की कौन किसके साथ लगी है कौन किस से फसि है और कौन किस पे नज़र रखहे हुए है आदि करने में उसे बड़ा मज़ा आता था. आया भी थोड़ी कुत्सित प्रवृति की थी उसके दिमाग़ में जाने क्या क्या चलता रहता था. गाओं, मुहल्ले की बाते खूब नमक मिर्च लगा कर और रंगीन बना कर बताने में उसे बरा मज़ा आता था. इसलिए दोनो की जमती भी खूब थी. तो फिर चौधरायण सब कामो से फ़ुर्सत पा कर अपनी मालिश करवाने के लिए अपने कमरे में जा घुसी. दरवाज़ा बंद करने के बाद चौधरैयन बिस्तेर पर लेट गई और आया उसके बगल में तेल की कटोरी ले कर बैठ गई. दोनो हाथो में तेल लगा कर चौधरायण की साडी को घुटनो से उपर तक उठाते हुए उसने तेल लगा शुरू कर दिया. चौधरायण की गोरी चिकनी टॅंगो पर तेल लगाते हुए आया की बातो का सिलसिला शुरू हो गया था. आया ने चौधरायण की तारीफो के पूल बांधना शुरू कर दिए था. चौधरायण ने थोड़ा सा मुस्कुराते हुए पुचछा "और गाओं का हाल चाल तो बता, तू तो पता नही कहा मुँह मारती रहती है मेरी तारीफ तू बाद में कर लेना". आया के चेहरे पर एक अनोखी चमक आ गई "क्या हाल चाल बताए मालकिन, गाओं में तो अब बस जिधर देखो उधर ज़ोर ज़बरदस्ती हो रही है, परसो मुखिया ने नंदू कुम्हार को पिटवा दिया पर आप तो जानती ही हो आज कल के लड़को को.. उँछ नीच का उन्हे कुच्छ ख्याल तो है नही, नंदू का बेटा शहर से पढ़ाई कर के आया है पता नही क्या क्या सीखके के आया है, उसने भी कल मुखिया को अकेले में धर दबोचा और लगा दी चार पाँच पटखनी, मुखिया पड़ा हुआ है अपने घर पर अपनी टूटी टांग ले के और नंदू का बेटा गया थाने" "हा रे, इधर काम के चक्कर में तो पता ही नही चला, मैं भी सोच रही थी कि कल पोलीस क्यों आई थी, पर एक बात तो बता मैने तो ये भी सुना है कि मुखिया की बेटी का कुच्छ चक्कर था नंदू के बेटे से" "सही सुना है मालकिन, दोनो में बड़ा जबरदस्त नैन मत्तक्का चल रहा है, इसी से मुखिया खार खाए बैठा था"
"बड़ा खराब जमाना आ गया है, लोगो में एक तो उँछ नीच का भेद मिट गया है, कौन किसके साथ घूम फिर रहा है ये भी पता नही चलता है, खैर और सुना, मैने सुना है तेरा भी बड़ा नैन मत्तक्का चल रहा है आज कल उस सरपंच के छ्होरे के साथ, साली बुढ़िया हो के कहा से फसा लेती है जवान जवान लोंडो को"
आया का चेहरा कान तक लाल हो गया था, छिनाल तो वो थी मगर चोरी पकड़े जाने पर चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई. शरमाते और मुस्कुराते हुए बोली "अर्रे मालकिन आप तो आज कल के लोंडो का हाल जानती ही हो सब साले च्छे��� के चक्कर में पगलाए घूमते रहते है"
"पगलाए घूमते है या तू पागल कर देती है,,,,,,,,,,,अपनी जवानी दिखा के"
आया के चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कुराहट दौड़ गई, "क्या मालकिन मैं क्या दिखौँगी, फिर थोड़ा बहुत तो सब करते है"
"थोड़ा सा....साली क्यों झूट बोलती है तू तो पूरी की पूरी छिनाल है, सारे गाओं के लड़को को बिगाड़ के रख देगी,,,,,,,,,,
"अर्रे मालकिन बिगड़े हुए को मैं क्या बिगाड़ूँगी, गाओं के सारे छ्होरे तो दिन रात इसी चक्कर में लगे रहते हैं".
"चल साली, तू जैसे दूध की धूलि है"
"अब जो समझ लो मालकिन, पर एक बात बता दू आपको कि ये लोंडे भी कम नही है गाओं के तालाब पर जो पेड़ लगे हुए है ना उस पर बैठ का खूब तान्क झ���ँक करते है"
"अक्चा, पर तुम लोग क्या भगाती नही उन लोंडो को..........."
"घने घने पेड़ है चारो तरफ, अब कोई उनके पिछे छुपा बैठा रहेगा तो कैसे पता चलेगा, कभी दिख जाते है कभी नही दिखते"
"बड़े हरामी लोंडे है, औरतो को चैन से नहाने भी नही देते"
"लोंडे तो लोंडे, लड़कियाँ भी कोई कम हरामी नही है"
"क्यों वो क्या करती है"
"अर्रे मालकिन दिखा दिखा के नहाती है"
"अच्छा, बड़ा गंदा माहौल हो गया है गाओं का"
"जो भी है मालकिन अब जीना तो इसी गाओं में है ना"
"हा रे वो तो है, मगर मुझे तो मेरे लड़के के कारण डर लगता है, कही वो भी ना बिगड़ जाए"
इस पर आया के होंठो के कमान थोड़े से खींच गये. उसके चेहरे की कुटिल मुस्कान जैसे कह रही थी की बिगड़े हुए को और क्या बिगाड़ना. मगर आया ने कुच्छ बोला नही.
शीला देवी हँसते हुए बोली "अब तो लड़का भी जवान हो गया है, तेरे जैसी रंडियो के नज़रो से तो बचाना ही पड़ेगा नही तो तुम लोग कब उसको हाज़ाम कर जाओगी ये भी पता नही लगेगा"
"अब मालकिन झूठ नही बोलूँगी पर अगर आप सच सुन सको तो एक बात बोलू"
"हा बोल क्या बात"
"चलो रहने दो मालकिन" कह कर आया ने पूरा ज़ोर लगा के चौधरायण की कमर को थोड़ा कस के दबाया, गोरी खाल लाल हो गई, चौधरायण के मुँह से हल्की सी आह निकली गई, आया का हाथ अब तेज़ी से कमर पर चल रहा था. आया के तेज चलते हाथो ने चौधरायण को थोरी देर के लिए भूला दिया कि वो क्या पुच्छ रही थी. आआया ने अपने हाथो को अब कमर से थोड़ा नीचे चलाना शुरू कर दिया था. उसने चौधरायण की पेटिकोट के अंदर ख़ुसी हुई साडी को अपने हाथो से निकाल दिया और कमर की साइड में हाथ लगा कर पेटिकोट के नाडे को खोल दिया. पेटिकोट को ढीला कर उसने अपने हाथो को कमर के और नीचे उतार दिया. हाथो में तेल लगा कर चौधरायण के मोटे-मोटे चूतरो के मंसो को अपने हथेलियो में दबोच दबोच कर दबा रही थी. शीला देवी के मुँह से हर बार एक हल्की सी आनद भरी आह निकल जाती थी. अपने तेल लगे हाथो से आया ने चौधरायण की पीठ से लेकर उसके मांसल चूतरो तक के एक-एक कस बल को ढीला कर दिया था. आया का हाथ चूतरो क�� मसल्ते मसल्ते उनके बीच की दरार में भी चला जाता था. चूतरो के दरार को सहलाने पर हुई गुद-गुडी और सिहरन के कारण चौधरायण के मुँह से हल्की सी हसी के साथ कराह निकल जाती थी. आया के मालिश करने के इसी मस्ताने अंदाज की शीला देवी दीवानी थी. आया ने अपना हाथ चूतरो पर से खींच कर उसकी सारी को जाँघो तक उठा कर उसके गोरे-गोरे बिना बालो के गुदाज़ मांसल जाँघो को अपने हाथो में दबा-दबा के मालिश करना शुरू कर दिया. चौधरायण की आँखे आनंद से मुंदी जा रही थी. आया का हाथ घुटनो से लेकर पूरे जाँघो तक घूम रहे थे. जाँघो और चूतरो के निचले भाग पर मालिश करते हुए आया का हाथ अब धीरे धीरे चौधरायण के चूत और उसकी झांतो को भी टच कर रहा था. images
आया ने अपने हाथो से हल्के हल्के चूत को छुना शुरू कर दिया था. चूत को छुते ही शीला देवी के पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई थी. उसके मुँह से मस्ती भरी आह निकल गई. उस से रहा नही गया और पीठ के बल होते हुए बोली "साली तू मानेगी नही"
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"मालकिन मेरे से मालिश करवाने का यही तो मज़ा है"
"चल साली, आज जल्दी छोड़ दे मुझे बहुत सारा काम है"
"अर्रे काम-धाम तो सारे नौकर चाकर कर ही रहे है मालकिन, ज़रा अच्छे से मालिश करवा लो इतने दीनो के बाद आई हू, बदन हल्का हो जाएगा"
चौधरायण ने अपनी जाँघो को और चौड़ा कर दिया और अपने एक पैर को घुटनो के पास से मोड़ दिया, और अपनी चूचियों पर से साडी को हटा दिया. मतलब आया को ये सीधा संकेत दे दिया था कि कर ले अपनी मर्ज़ी जो भी करना है मगर बोली "हट साली तेरे से बदन हल्का करवाने के चक्कर में नही पड़ना मुझे आज, आग लगा देती है साली...............चौधरायण ने अपनी बात अभी पूरी भी नही की थी और आया का हाथ सीधा साड़ी और पेटिकोट के नीचे से शीला देवी के चूत पर पहुच गया था. चूत की फांको पर उंगलिया चलाते हुए अपने अंगूठे से हल्के से शीला देवी की चूत के क्लिट को आया सहलाने लगी. चूत एकदम से पनिया गई. आया ने चूत को एक थपकी लगाई और मालकिन की ओर देखते हुए मुस्कुराते हुए बोली "पानी तो छोड रही हो मालकिन". इस पर शीला देवी सिसकते हुए बोली "साली ऐसे थपकी लगाएगी तो पानी तो निकलेगा ही" फिर अपने ब्लाउस के बटनो को खोलने लगी.
आया ने पुचछा "पूरा कर्वाओगि क्या मालकिन"
"पूरा तो करवाना ही पड़ेगा साली अब जब तूने आग लगा दी है..."
आया ने मुस्कुराते हुए अपने हाथो को शीला देवी की चुचियों की ओर बढ़ा दिया और उनको हल्के हाथो से पकड़ कर सहलाने लगी जैसे की पूछकर कर रही हो. फिर अपने हाथो में तेल लगा के दोनो चूचियों को दोनो हाथो से पकड़ के हल्के से खीचते हुए निपपलो को अपने अंगूठे और उंगलियों के बीच में दबा कर खीचने लगी. चुचियों में धीरे-धीरे तनाव आना शुरू हो गया. निपल खड़े हो गये और दोनो चूचियों में उमर के साथ जो थोड़ा बहुत थुल-थुलापन आया हुआ था वो अब मांसल कठोरता में बदल गया. उत्तेजना बढ़ने के कारण चुचियों में तनाव आना स्वाभाविक था. आया की समझ में आ गया था कि अब मालकिन को गर्मी पूरी चढ़ गई है. आया को औरतो के साथ ��ेलने में उतना ही मज़ा आता था जितना मज़ा उसको लड़को के साथ खेलने में आता था. चुचियो को तेल लगाने के साथ-साथ मसल्ते हुए आया ने अपने हाथो को धीरे धीरे पेट पर चलना शुरू कर दिया था.
चौधरायण की गोल-गोल नाभि में अपने उंगलियों को चलाते हुए आया ने फिर से बाते करनी शुरू कर दी.
"मालकिन अब क्या बोलू, मगर मुन्ना बाबू (चौधराईएन का बेटा) भी कम उस्ताद नही है
मस्ती में डूबी हुई अधखुली आँखो से आया को देखते हुए शीला देवी ने पुच्छा
"क्यों, क्या किया मुन्ना ने तेरे साथ"
"मेरे साथ क्या करेंगे मुन्ना बाबू, आप गुस्सा ना हो एक बताउ आपको. चौधरायण ने अब अपनी आँखे खोल दी और चोकन्नि हो गई
"हा हा बोल ना क्या बोलना है"
"मालकिन अपने मुन्ना बाबू भी काम नही है, उनकी भी संगत बिगड़ गई है"
"ऐसा कैसे बोल रही है तू"
"ऐसा इसलिए बोल रही हू क्यों की, अपने मुन्ना बाबू भी तलब के चक्कर खूब लगते है"
"इसका क्या मतलब हुआ, हो सकता है दोस्तो के साथ खेलने या फिर तैरने चला जाता होगा"
"खाली तैरने जाए तब तो ठीक है मालकिन मगर, मुन्ना बाबू को तो मैने कई तालाब किनारे वाले पेड़ पर चढ़ कर छुप कर बैठे हुए भी देखा है".
"सच बोल रही है तू........"
"और क्या मालकिन, आप से झूट बोलूँगी, कह कर आया ने अपना हाथ फिर से पेटिकोट के अंदर सरका दिया और चूत से खेलने लगी. अपनी मोटी मोटी दो उंगलियों को उसने गचक से शीला देवी के चूत में पेल दिया. चूत में उंगली के जाते ही शीला देवी के मुँह से आह निकल गई मगर उसने कुच्छ बोला नही. अपने बेटे के बारे में जानकर उसके ध्यान सेक्स से हट गया था और वो उसके बारे और ज़यादा जान ना चाहती थी. इसलिए फिर आया को कुरेदते हुए कहा
"अब मुन्ना भी तो जवान हो गया है थोड़ी बहुत तो उत्सुकता सब के मन में होती, वो भी देखने चला गया होगा इन मुए गाओं के छोरो के साथ"
"पर मालकिन मैने तो उनको शाम में अमिया (आमो का बगीचा) में गुलाबो के चुचे दबाते हुए भी देखा है"
चौधरैयन का गुस्सा सातवे आसमान पर जा पहुचा, उसने आया को एक लात कस के मारी, आया गिरी तो नही मग�� थोड़ा हिल ज़रूर गई. आया ने अपनी उंगलिओ को अभी भी चूत से नही निकलने दिया. लात खाकर भी हस्ती हुई बोली "मालकिन जितना गुस्सा निकालना हो निकाल लो मगर मैं एक दम सच-सच बोल रही हू. झूट बोलू तो मेरी ज़ुबान कट के गिर जाए मगर मुन्ना बाबू को तो कई बार मैने गाओं की औरते जिधर दिशा-मैदान करने जाती है उधर भी घूमते हुए देखा है"
"हाई दैया उधर क्या करने जाता है ये सुअर"
"बसंती के पिछे भी पड़े हुए है छ्होटे मलिक, वो भी साली खूब दिखा दिखा के नहाती है,,,,,,
साली को जैसे ही छ्होटे मालिक को देखती और ज़यादा चूतर मटका मटका के चलने लगती है, छ्होटे मलिक भी पूरा लट्तू हुए बैठे है"
"क्या जमाना आ गया है, इतना पढ़ाने लिखाने का कुच्छ फ़ायदा नही हुआ, सब मिट्टी में मिला दिया, इन्ही भंगिनो और धोबनो के पिछे घूमने के लिए इसे शहर भेजा था"
दो मोटी-मोटी उंगलियों को चूत में कच-कच पेलते, निकालते हुए आया ने कहा,
"आप भी मालकिन बेकार में नाराज़ हो रही हो, नया खून है थोड़ा बहुत तो उबाल मारेगा ही, फिर यहा गाओं में कौन सा उनका मन लगता होगा, मन लगाने के लिए थोड़ा बहुत इधर उधर कर लेते है"
"नही रे, मैं सोचती थी कम से कम मेरा बेटा तो ऐसा ना करे"
"वाह मालकिन आप भी कमाल की हो, अपने बेटे को भी अपने ही जैसा बना दो"
"क्या मतलब है रे तेरा"
"मतलब क्या है आप भी समझती हो, खुद तो आग में जलती रहती हो और चाहती हो की बेटा भी जले"
नज़रे छुपाते हुए चौधरायण ने कहा
"मैं कौन सी आग में जलती हू री कुतिया....."
"क्यों जलती नही हो क्या, मुझे क्या नही पता की मर्द के हाथो की गर्मी पाए आपको ना जाने कितने साल बीत चुके है, जैसे आपने अपनी इच्च्छाओ को दबा के रखा हुआ है वैसा ही आप चाहती हो छ्होटे मालिक भी करे"
"ऐसा नही है रे, ये सब काम करने की भी एक उमर होती है वो अभी बच्चा है"
"बच्चा है, आरे मालकिन वो ना जाने कितनो को अपने बच्चे की मा बना दे और आप कहती हो बच्चा है".
"चल साली क्या बकवास करती है"
आया ने चूत के क्लिट को सहलाते हुए और उंगलियों को पेलते हुए कहा "मेरी बाते तो बकवास ही लगेंगी मगर क्या आपने कभी छ्होटे मलिक का औज़ार देखा है"
"दूर हट कुतिया, क्या बोल रही है बेशरम तेरे बेटे की उमर का है"
आया ने मुस्कुराते हुए कहा- "बेशरम बोलो या फिर जो मन में आए बोलो मगर मालकिन सच बोलू तो मुन्ना बाबू का औज़ार देख के तो मेरी भी पनिया गई थी" कह कर चुप हो गई और चौधरायण की दोनो टाँगो को फैला कर उसके बीच में बैठ गई. फिर धीरे से अपने जीभ को चूत की क्लिट पर लगा कर चलाने लगी. चौधरायण ने अपने जाँघो को और ज़यादा फैला दिया, चूत पर आया की जीभ गजब का जादू कर रही थी.
आया के पास 25 साल का अनुभव था हाथो से मालिश करने का मगर जब उसका आकर्षण औरतो की तरफ बढ़ा तो धीरे धीरे उसने अपने हाथो के जादू को अपनी ज़ुबान में उतार दिया था. जब वो अपनी जीभ को चूत के उपरी भाग में नुकीला कर के रगड़ती थी तो शीला देवी की जलती हुई चूत ऐसे पानी छोड़ती थी जैसे कोई झरना छोड़ता है. चूत के एक एक पेपोट को अपने होंठो के बीच दबा दबा के ऐसे चुस्ती थी कि शीला देवी के मुँह से बरबस सिसकारिया फूटने लगी थी. गांद हवा में 4 इंच उपर उठा-उठा के वो आया के मुँह पर रगड़ रही थी. शीला देवी काम-वासना की आग में जल उठी थी. आया ने जब देखा मालकिन अब पूरे उबाल पर आ गई है तो उसको जल्दी से झदाने के इरादे से उसने अपनी ज़ुबान हटा के फिर कचक से दो मोटी उंगलिया पेल दी और गाचा-गच अंदर बाहर करने लगी. आया ने फिर से बातो का सिलसिला शुरू कर दिया......
"मालकिन, अपने लिए भी कुच्छ इंतज़ाम कर लो अब,
"क्या मतलब है रीए तेराअ उईईईई सस्स्स्स्स्स्सिईईईई जल्दी जल्दी हाथ चला साली"
"मतलब तो बड़ा सीधा साधा है मालकिन, कब तक ऐसे हाथो से करवाती रहोगी"
"तो फिर क्या करू रे, साली ज़यादा दिमाग़ मत चला हाथ चला"
"मालकिन आपकी चूत मांगती है लंड का रूस और आप हो कि इसको ..........खीरा ककरी खिला रही हो"
"चुप साली, अब कोई उमर रही है मेरी ये सब काम करवाने की"
"अच्छा आपको कैसे पता की आपकी उमर बीत गई है, ज़रा सा छु देती हू उसमे तो पनिया जाती है आपकी और बोलती हो अब उमर बीत गई"
"नही रे,,, लड़का जवान हो गया, बिना मर्द के सुख के इतने दिन बीत गये अब क्या अब तो बुढ़िया हो गई हू"
"क्या बात करती हो मालकिन, आप और बुढ़िया ! अभी भी अच्छे अछो के कान काट दोगि आप, इतना भरा हुआ नशील�� बदन तो इस गाओं आस-पास के चार सौ गाओं में ढूँढे नही मिलेगा.
"चल साली क्यों चने के झाड़ पर चढ़ा रही है"
"क्या मालकिन मैं क्यों ऐसा करूँगी, फिर लड़का जवान होने का ये मतलब थोड़े ही है की आप बुढ़िया हो गई हो क्यों अपना सत्यानाश करवा रही हो"
"तू मुझे बिगाड़ने पर क्यों तुली हुई है"
आया ने इस पर हस्ते हुए कहा, "थोड़ा आप बिगड़ो और थोड़ा छ्होटे मालिक को भी बिगड़ने का मौका दो"
"छ्हि रनडिीई ....कैसी कैसी बाते करती है ! मेरे बेटे पर नज़र डाली तो मुँह नोच लूँगी"
"मालकिन मैं क्या करूँगी, छ्होटे मलिक खुद ही कुच्छ ना कुच्छ कर देंगे"
"वो क्यों करेगा रे.......वो कुच्छ नही करने वाला"
"मालकिन बड़ा मस्त हथियार है छ्होटे मलिक का, गाओं की छोरियाँ छोड़ने वाली नही"
"हराम जादि, छोरियो की बात छ्चोड़ मुझे तो लगता है तू ही उसको नही छोड़ेगी, शरम कर बेटे की उमर का है"
"हाई मालकिन औज़ार देख के तो सब कुच्छ भूल जाती हू मैं"
इतनी देर से अपने बेटे की बराई सुन-सुन के शीला देवी के मन में भी उत्सुकता जाग उठी थी. उसने आख़िर आया से पुच्छ ही लिया.....
"कैसे देखा लिया तूने मुन्ना का". आया ने अंजान बनते हुए पुचछा "मुन्ना बाबू का क्या मालकिन". एक फिर आया को चौधरैयन की एक लात खानी पड़ी, फिर चुधरायण ने हस्ते हुए कहा "कमिनि सब समझ के अंजान बनती है". आया ने भी हस्ते हुए कहा "मालकिन मैने तो सोचा की आप अभी तो बेटा बेटा कर रही थी फिर उसके औज़ार के बारे में कैसे पुछोगि?". आया की बात सुन कर चौधरैयन थोड़ा शर्मा गई. उसकी समझ में ही नही आ रहा था कि क्या जवाब दे वो आया को, फिर भी उसने थोड़ा झेप्ते हुए कहा.
"साली मैं तो ये पुच्छ रही थी की तूने कैसे देख लिया"
"मैने बताया तो था मालकिन की छ्होटे मालिक जिधर गाओं की औरते दिशा-मैदान करने जाती है उधर घूमते रहते है, फिर ये साली बसंती भी उनपे लट्तू हुई बैठी है. एक दिन शाम में मैं जब पाखाना करने गई थी तो देखा झारियों में खुशुर पुसुर की आवाज़ आ रही है. मैने सोचा देखु तो ज़रा कौन है, देखा तो हक्की-बक्की रह गई क्या बताउ, मुन्ना बाबू और बसंती दोनो खुसुर पुसुर कर रहे थे. मुन्ना बाबू का हाथ बसंती की चोली में और बसंती का हाथ मुन्ना बाबू के हाफ पॅंट में घुसा हुआ था. मुन्ना बाबू रीरयते हुए बसंती से बोल रहे थे एक बार अपना माल दिखा दे और बसंती उनको मना कर रही थी". इतना कह कर आया चुप हो गई और एक हाथ से शीला देवी की चुचि दबाते हुए अपनी उंगलिया चूत के अंदर तेज़ी से घूमने लगी.
शीला देवी सिसकरते हुए बोली "हा फिर क्या हुआ, मुन्ना ने क्या किया". चौधरैयन के अंदर अब उत्सुकता जाग उठी थी.
"मुन्ना बाबू ने फिर ज़ोर से बसंती की एक चुचि को एक हाथ में थाम लिया और दूसरी हाथ की हथेली को सीधा उसकी दोनो जाँघो के बीच रख के पूरी मुठ्ठी में उसकी चूत को भर लिया और फुसफुसाते हुए बोले 'हाई दिखा दे एक बार, चखा दे अपना लल्मु��िया को बस एक बार रानी फिर देख ��ैं इस बार मेले में तुझे सबसे मह्न्गा लहनगा खरीद दूँगा, बस एक बार चखा दे रानी', इतनी ज़ोर से चुचि डबवाने पर साली को दर्द भी हो रहा होगा मगर साली की हिम्मत देखो एक बार भी छ्होटे मलिक के हाथ को हटाने की उसने कोशिश नही की,
खाली मुँह से बोल रही थी 'हाई छोड़ दो मालिक छोड़ दो मालिक' मगर छ्होटे मालिक हाथ आई मुर्गी को कहा छोड़ने वाले थे" . शीला देवी की चूत पसीज रही थी अपने बेटे की करतूत सुन कर उसे पता नही क्यों गुस्सा नही आ रहा था. उसके मन में एक अजीब तरह का कौतूहल भरा हुआ था. आया भी अपने मालकिन के मन को खूब समझ रही थी इसलिए वो और नमक मिर्च लगा कर मुन्ना की करतूतों की कहानी सुनाए जा रही थी.
"फिर मालकिन मुन्ना बाबू ने उसके गाल का चुम्मा लिया और बोले 'बहुत मज़ा आएगा रानी बस एक बार चखा दो, हाई जब तुम गांद मटका के चलती हो तो क्या बताए कसम से कलेजे पर छुरि चल जाती है, बसंती बस एक बार चखा दो' बसंती शरमाते हुए बोली 'नही मालिक आपका बहुत मोटा है, मेरी फट जाएगी' इस पर मुन्ना बाबू ने कहा 'हाथ से पकड़ने पर तो मोटा लगता ही है जब चूत में जाएगा तो पता भी नही चलेगा' फिर बसंती के हाथ को अपनी निक्केर से निकाल के उन्होने झट से अपनी निक्केर उतार दी, है मालकिन क्या बताउ कलेजा धक से मुँह को आ गया, बसंती तो चीख कर एक कदम पिछे हट गई, क्या भयंकर लंड था मलिक का एक दम से काले साँप की तरह, लपलपाता हुआ, मोटा मोटा पहाड़ी आलू के जैसा नुकीला गुलाबी सुपरा और मालकिन सच कह रही हू कम से कम 10 इंच लंबा और कम से कम 2.5 इंच मोटा लॉडा होगा छ्होटे मलिक का, अफ ऐसा जबरदस्त औज़ार मैने आज तक नही देखा था, बसंती अगर उस समय कोशिश भी करती तो चुदवा नही पाती, वही खेत में ही बेहोश हो के मर जाती साली मगर छ्होटे मलिक का लंड उसकी चूत में नही जाता"
चौधरैयन एक टक गौर से अपने बेटे की काली करतूतो का बखान सुन रही थी. उसका बदन काम-वासना से जल रहा था और आया की वासना भारी बाते जो कहने को तो उसके बेटे के बारे में थी पर फिर भी उसके अंदर एक अनोखी कसक पैदा कर रही थी. आया को चुप देख कर उस से रहा नही गया और वो पुच्छ बैठी "आगे क्या हुआ".
आया ने फिर हस्ते हुए बताया "अर्रे मालकिन होना क्या था, तभी अचानक झारियों में सुरसूराहट हुई, मुन्ना बाबू तो कुच्छ समझ नही पाए मगर बसंती तो चालू है, मालकिन, साली झट से लहनगा समेत कर पिछे की ओर भागी और गायब हो गई. और मुन्ना बाबू जब तक संभालते तब तक उनके सामने बसंती की भाभी आ के खड़ी हो गई. अब आप तो जानती ही हो कि इस साली लाजवंतीको ठीक अपने नाम की उलट बिना किसी लाज शर्म की औरत है. जब साली बसंती की उमर की थी और नई नई शादी हो के गाओं में आई थी तब से उसने 2 साल में गाओं के सारे जवान मर्दो के लंड का पानी चख लिया होगा. अ��ी भी हरम्जादी ने अपने आप को बना सॉवॅर के रखा हुआ है". इतना बता कर आया फिर से चुप हो गई.
" फिर क्या हुआ, लाजवंती तो खूब गुस्सा हो गई होगी"
"अर्रे नही मालकिन, उसे कहा पता चला की अभी अभी 2 सेकेंड पहले मुन्ना बाबू अपना लंड उसकी ननद को दिखा रहे थे. वो साली तो खुद अपने चक्कर में आई हुई थी. उसने जब मुन्ना बाबू का बलिश्त भर का खड़ा मुसलान्ड देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया और मुन्ना बाबू को पटाने के इरादे से बोली 'यहा क्या कर रहे है छ्होटे मालिक आप कब से हम ग़रीबो की तरह से खुले में दिशा करने लगे'. छोटे मलिक तो बेचारे हक्के बक्के से खड़े थे, उनकी समझ में नही आ रहा था कि क्या करे, एक दम देखने लायक नज़ारा था. हाफ पॅंट घुटनो तक उतरी हुई थी और शर्ट मोड़ के पेट पर चढ़ा रखा था, दोनो जाँघो के बीच एक दम काला भुजंग मुसलांड लहरा रहा था". images
"छ्होटे मालिक तो बस "उः आह उः" कर के रह गये. तब तक लाजवंती छ्होटे मालिक के एक दम पास पहुच गई और बिना किसी जीझक या शर्म के उनके हथियार को पकड़ लिया और बोली 'क्या मालिक कुच्छ गड़बड़ तो नही कर रहे थे पूरा खड़ा कर के रखा हुआ है. इतना क्यों फनफना रहा है आपका औज़ार, कही कुच्छ देख तो नही लिया'. इतना कह कर हस्ने लगी".
"छ्होटे मालिक के चेहरे की रंगत देखने लायक थी. एक दम हक्के-बक्के से लाजवंती का मुँह तके जा रहे थे. अपना हाफ पॅंट भी उन्होने अभी तक नही उठाया था. लाजवंती ने सीधा उनके मूसल को अपने हाथो में पकड़ लिया और मुस्कुराती हुई बोली 'क्या मालिक औरतो को हगते हुए देखने आए थे क्या' कह कर खी खी कर के हस्ते हुए मुन्ना बाबू के औज़ार को ऐसे कस के मसला साली ने की उस अंधेरे में भी मालिक का लाल लाल मोटे पहाड़ी आलू जैसा सुपरा एक दम से चमक गया जैसे की उसमे बहुत सारा खून भर गया हो और लंड और फनफना के लहरा उठा".
" बड़ी हरम्खोर है ये लाजवंती, साली को ज़रा भी शरम नही है क्या"
"जिसने सारे गाओं के लोंडो का लंड अपने अंदर करवाया हो वो क्या शरम करेगी"
"फिर क्या हुआ, मेरा मुन्ना तो ज़रूर भाग गया होगा वाहा से बेचारा"
"मालकिन आप भी ना हद करती हो अभी 2 मिनिट पहले आपको बताया था कि आपका लाल बसंती के चुचो को दबा रहा था और आप अब भी उसको सीधा सीधा स्मझ रही हो, जबकि उन्होने तो उस दिन वो सब कर दिया जिसके बारे में आपने सपने में भी नही सोचा होगा"
चौधरायण एक दम से चौंक उठी "क्या कर दिया, क्यों बात को घूम फिरा रही है"
"वही किया जो एक जवान मर्द करता है"
"क्यों झूट बोलती हो, जल्दी से बताओ ना क्या किया"
"छ्होटे मालिक में भी पूरा जोश भरा हुआ था और उपर से लाजवंती की उकसाने वाली हरकते दोनो ने मिल कर आग में घी का काम किया. लाजवंती बोली "छोरियो को पेशाब और पाखाना करते हुए देख कर हिलाने की तैय्यारि में थे क्या, या फिर किसी लौंडिया के इंतेज़ार में खड़ा कर रखा है' ��ुन्ना बाबू क्या बोलते पर उनके चेहरे को देख के लग रहा था कि उनकी साँसे तेज हो गई है. उन्होने ने भी अबकी बार लाजवंती के हाथो को पकड़ लिया और अपने लंड पर और कस के चिपका दिया और बोले "हाई भौजी मैं तो बस पेशाब करने आया था' इस पर वो बोली 'तो फिर खड़ा कर के क्यों बैठे हो मालिक कुच्छ चाहिए क्या' मुन्ना बाबू की तो बाँछे खिल गई. खुल्लम खुल्ला चुदाई का निमंत्रण था. झट से बोले 'चाहिए तो ज़रूर अगर तू दे दे तो मेले में से पायल दिलवा दूँगा'. खुशी के मारे तो साली लाजवंती का चेहरा च्मकने लगा, मुफ़्त में मज़ा और माल दोनो मिलने का आसार नज़र आ रहा था. झट से वही पर घास पर बैठ गई और बोली 'हाई मालिक कितना बड़ा और मोटा है आपका, कहा कुन्वारियो के पिछे पड़े रहते हो, आपका तो मेरे जैसी शादी शुदा औरतो वाला औज़ार है, बसंती तो साली पूरा ले भी नही पाएगी' छ्होटे मालिक बसंती का नाम सुन के चौंक उठे कि इसको कैसे पता बसंती के बारे में. लाजवंती ने फिर से कहा ' कितना मोटा और लंबा है, ऐसा लंड लेने की बड़ी तमन्ना थी मेरी' इस पर छ्होटे मालिक ने नीचे बैठ ते हुए कहा 'आज तमन्ना पूरी कर ले, बस चखा दे ज़रा सा, बड़ी तलब लगी है' इस पर लाजवंती बोली 'ज़रा सा चखना है या पूरा मालिक' तो फिर मालिक बोले 'हाई पूरा चखा दे मेले से तेरी पसंद की पायल दिवा दूँगा'.
आया की बात अभी पूरी नही हुई थी कि चौधरैयन ने बीच में बोल पड़ी "ओह मेरी तो किस्मत ही फुट गई, मेरा बेटा रंडियों पर पैसा लूटा रहा है, किसी को लहनगा तो किसी हरम्जदि को पायल बाँट रहा है, कह कर आया को फिर से एक लात लगाई और थोड़े गुस्से से बोली "हरम्खोर, तू ये सारा नाटक वाहा खड़ी हो के देखे जा रही थी, तुझे ज़रा भी मेरा ख्याल ना आया, एक बार जा के दोनो को ज़रा सा धमका देती दोनो भाग जाते". आया ने मुँह बिचकाते हुए कहा "शेर के मुँह के आगे से नीवाला छीनने की औकात नही है मेरी मालकिन मैं तो बस चुप चाप तमाशा देख रही थी". कह कर आया चुप हो गई और चूत की मालिश करने लगी. चौधरैयन के मन की उत्सुकता दबाए नही दब रही थी कुच्छ देर में खुद ही कसमसा कर बोली "चुप क्यों हो गई आगे बता ना"
"फिर क्या होना था मालकिन, लाजवंती वही घास पर लेट गई और छ्होटे मालिक उसके उपर, दोनो गुत्थम गुत्था हो रहे थे. कभी वो उपर कभी मालिक उपर. red-hot-tamil-saree-sex.png
छ्होटे मालिक ने अपना मुँह लाजवंती चोली में दे दिया और एक हाथ से उसके लहंगे को उपर उठा के उसकी चूत में उंगली डाल दी, लाजवंती के हाथ में मालिक का मोटा लंड था और दोनो चिपक चिपक के मज़ा लूटने लगे. कुच्छ देर बाद छ्होटे मालिक उठे और लाजवंती के दोनो टांगो के बीच बैठ गये. उस छिनाल ने भी अपने साड़ी को उपर उठा दिया और दोनो टाँगो को फैला दिया. मुन्ना बाबू ने अपना मुसलांड सीधा उसकी चूत के उपर रख के धक्का मार दिया.
साली चुड़क्कड़ एक दम से मिम्याने लगी. इतना मोटा लंड घुसने के ��ाद तो कोई कितनी भी बड़ी रंडी हो उसकी हेकड़ी तो एक पल के लिए गुम हो ही जाती है. पर मुन्ना बाबू तो नया खून है, उन्होने कोई रहम नही दिखाया, उल्टा और कस कस के धक्के लगाने लगे"
"ठीक किया मुन्ना ने, साली रंडी की यही सज़ा है" चौधरैयन ने अपने मन की खुंदक निकाली, हालाँकि उसको ये सुन के बड़ा मज़ा आ रहा था कि उसके बेटे के लंड ने एक रंडी के मुँह से भी चीखे निकलवा दी.
"कुच्छ धक्को के बाद तो मालकिन साली चुदैल ऐसे अपनी गांद को उपर उच्छालने लगी और गपा गॅप मुन्ना बाबू के लंड को निगलते हुए बोल रही थी 'हाई मालिक फाड़ दो, हाई ऐसा लंड आज तक नही मिला, सीधा बच्चेदानी को छु रहा है, लगता है मैं ही चौधरी के पोते को पैदा करूँगी, मारो कस कस्के', मुन्ना बाबू भी पूरे जोश में थे, गांद उठा उठा के ऐसा धक्का लगा रहे थे कि क्या कहना, जैसे चूत फाड़ के गांद से लंड निकाल देंगे, दोनो हाथ से चुचि मसल रहे थे और, पका पक लंड पेल रहे थे. images
लाजवंती साली सिसकार रही थी और बोल रही थी 'मलिक पायल दिलवा देना फिर देखना कितना मज़ा कर्वौन्गि, अभी तो जल्दी में चुदाई हो रही है, मारो मालिक, इतने मोटे लंड वाले मालिक को अब नही तरसने दूँगी, जब बुलाओगे चली आउन्गि, हाई मालिक पूरे गाओं में आपके लंड के टक्कर का कोई नही है'. इतना कह कर आया चुप हो गई.
आया ने जब लाजवंती के द्वारा कही गई ये बात की पूरे गाओं में मुन्ना के लंड के टक्कर का कोई नही है सुन कर चौधरैयन के माथे पर बल पड़ गये. वो सोचने लगी कि क्या सच में ऐसा है. क्या सच में उसके लरके का लंड ऐसा है जो की पूरे गाओं के लंडो से बढ़ कर है. वो थोड़ी देर तक चुप रही फिर बोली "तू जो कुच्छ भी मुझे बता रही है वो सच है ना"
"हा मालकिन सो फीसदी सच बोल रही हू"
"फिर भी एक बात मेरी समझ में नही आती कि मुन्ना का इतना बड़ा कैसे हो सकता है जितना बड़ा तू बता रही है"
"क्यों मालकिन ऐसा क्यों बोल रही हो आप"
"नही ऐसे ही मैं सोच रही हू इतना बड़ा आम तौर पे होता तो नही, फिर तेरे मलिक के अलावा और किसी के साथ.................." बात अधूरी छ्होर कर चौधरैयन चुप हो गई. आया सब समझ गई और धीरे से मुस्कुराती हुई बोली "आरे मालकिन कोई ज़रूरी थोड़े ही है कि जितना बड़ा चौधरी साहब का होगा उतना ही बड़ा छ्होटे मालिक का भी होगा, चौधरी साहब का तो कद भी थोड़ा छ्होटा ही है मगर छ्होटे मालिक को देखो इसी उमर में पूरे 6 फुट के हो गये है". बात थोड़ी बहुत चौधरैयन के भेजे में भी घुस गई, मगर अपने बेटे के अनोखे हथियार को देखने की तमन्ना भी शायद उसके दिल के किसी कोने में जाग उठी थी.
मुन्ना उसी समय घर के आँगन से मा ......मा पुकारता हुआ अपनी मा के कमरे की ओर दौड़ता हुआ आया और पूरी तेज़ी के साथ भड़ाक से चुधरैयन के कमरे के दरवाजे को खोल के अंदर घुस गया. अंदर घुसते ही उसकी आँखे चौधिया गई. कलेजे पर जैसे बिजली चल गई. मुँह से बोल नही फुट रह�� थे. चौधारायन लगभग पूरी नंगी और आया अधनंगी हो के बैठी थी. मुन्ना की आँखों ने एक पल में ही अपनी मा का पूरा मुआयना कर डाला. ब्लाउस खुला हुआ था दोनो बड़ी बड़ी गोरी गोरी नारियल के जैसी चुचिया अपनी चोंच को उठाए खड़ी थी , साडी उपर उठी हुई थी और मोटे मोटे कन्द्लि के खम्भे जैसे जंघे ट्यूब लाइट की रोशनी में चमक रही थी. चूत तो नही दिख रही थी . images
.ना तो आया ना ही चौधरैयन के मुँह से कोई कुच्छ निकला. कुच्छ देर तक ऐसे ही रहने के बाद आया को जैसे कुच्छ होश आया उसने जल्दी से जाँघो पर साड़ी खींच दी और साड़ी के पल्लू से दोनो चुचियों को धक दिया. अपने नंगे अंगो के ढके जाने पर चौधरैयन को जैसे होश आया वो झट से अपने पैरो को समेटे हुए उठ कर बैठ गई. चुचियों को अच्छी तरह से ढकते हुए झेंप मिटाते हुए बोली "क्या बात मुन्ना, क्या चाहिए". मा की आवाज़ सुन मुन्ना को भी एक झटका लगा और उसने अपना सिर नीचे करते हुए कहा, कुच्छ नही मैं तो पुच्छने आया था की शाम में फंक्षन कब शुरू होगा मेरे दोस्त पुच्छ रहे थे"
शीला देवी अब अपने आप को संभाल चुकी थी और अब उसके अंदर ग्लानि और गुस्सा दोनो भाव पैदा हो गये थे. उसने धीमे स्वर में जवाब दिया "तुझे पता नही है क्या जो 6-7 बजे से फंक्षन शुरू हो जाएगा. और क्या बात थी"
"वो मुझे भूख भी लगी थी"
"तो नौकरानी से माँग लेना था, जा उस को बोल के माँग ले"
मुन्ना वाहा से चला गया. आया ने झट से उठ कर दरवाजा बंद किया और चौधरैयन ने अपने कपड़े ठीक किए. आया बोलने लगी की "दरवाजा तो ठीक से बंद ही था मगर लगता है पूरी तरह से बंद नही हुआ था, पर इतना ध्यान रखने की ज़रूरत तो कभी रही नही क्यों की आम तौर पर आपके कमरे में तो कोई आता नही"
"चल जाने दे जो हुआ सो हुआ क्या कर सकते है" इतना बोल कर चौधरैयन चुप हो गई मगर उसके मन में एक गाँठ बन गई और अपने ही बेटे के सामने नंगे होने का अपराध बोध उस हावी हो गया.
अब सुनिए अपने मुन्ना बाबू की बात:-------
मुन्ना जब अपने मा के कमरे से निकला तब उसका दिमाग़ एक दम से काम नही कर रहा था. उसने आज तक अपनी मा का ऐसा रूप नही देखा. मतल्ब नंगा तो कभी नही देखा था. मगर आज शीला देवी का जो सुहाना रूप उसके सामने आया था उसने तो उसके होश उड़ा दिए थे. वो एक बदहवास हो चुका था. मा की गोरी गोरी मखमली जंघे और अल्फान्सो आम के जैसी चुचियों ने उसके होश उड़ा दिए थे. उसके दिमाग़ में रह रह कर मोटी जाँघो के बीच की काली-काली झांते उभर जाती थी.
उसकी भूख मर चुकी थी. वो सीधा अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर के तकियों के बीच अपने सिर को छुपा लिया. बंद आँखो के बीच जब मा के खूबसूरत चेहरे के साथ उसकी पलंग पर अस्त-वयस्त हालत में लेटी ��ुई तस्वीर जब उभरी तो धीरे-धीरे उसके लंड में हरकत होने लगी.
वैसे अपने मुन्ना बाबू कोई सीधे-सादे संत नही है इतना तो पता चल गया होगा. मगर आपको ये जान कर असचर्या होगा की अब से 2 साल पहले तक सच मुच में अपने राजा बाबू उर्फ राजेश उर्फ राजू बड़े प्यारे से भोले भाले लड़के हुआ करते थे. जब 15 साल के हुए और अंगो में आए प्रिवर्तन को स्मझने लगे तब बेचारे बहुत परेशान रहने लगे. लंड बिना बात के खड़ा हो जाता था. पेशाब लगी हो तब भी और मन में कुच्छ ख्याल आ जाए तब भी. करे तो क्या करे. स्कूल में सारे दोस्तो ने अंडरवेर पहनना शुरू कर दिया था. मगर अपने भोलू राम के पास तो केवल पॅंट थी. कभी अंडरवेर पहना ही नही. लंड भी मुन्ना बाबू का औकात से कुच्छ ज़यादा ही बड़ा था, फुल-पॅंट में तो थोड़ा ठीक रहता था पर अगर जनाब पाजामे में खेल रहे होते तो, दौड़ते समय इधर उधर डोलने लगता था.जो कि उपर दिखता था और हाफ पॅंट में तो और मुसीबत होती थी अगर कभी घुटने मोड़ कर पलंग पर बैठे हो तो जाँघो के पास के ढीली मोहरी से अंदर का नज़ारा दिख जाता था. बेचारे किसी कह भी नही पाते थे कि मुझे अंडरवेर ला दो क्योंकि रहते थे मामा मामी के पास, वाहा मामा या मामी से कुच्छ भी बोलने में बड़ी शरम आती थी. गाँव काफ़ी दीनो से गये नही थे. बेचारे बारे परेशान थे.
सौभाग्या से मुन्ना बाबू की मामी हासमुख स्वाभाव की थी और अपने मुन्ना बाबू से थोड़ा बहुत हसी मज़ाक भी कर लेती थी. उसने कई बार ये नोटीस किया था कि मुन्ना बाबू से अपना लंड सम्भाले नही स्म्भल रहा है. सुभह-सुभह तो लग-भग हर रोज उसको मुन्ना के खड़े लंड का दर्शन हो जाता था. जब मुन्ना को उठाने जाती और वो उठ कर दनदनाता हुआ सीधा बाथरूम की ओर भागता था. मुन्ना की ये मुसीबत देख कर मामी को बड़ा मज़ा आता था. एक बार जब मुन्ना अपने पलंग पर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था तब वो भी उसके सामने प्लन्ग पर बैठ गई. मुन्ना ने उस दिन संयोग से खूब ढीला ढाला हाफ पॅंट पहन रखा था. मुन्ना पालती मार कर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था. सामने मामी भी एक मेग्ज़ीन खोल कर देख रही थी. पढ़ते पढ़ते मुन्ना ने अपना एक पैर खोल कर घुटने के पास से हल्का सा मोड़ कर सामने फैला दिया. इस स्थिति में उसके जाँघो के पास की हाफ-पॅंट की मोहरी नीचे ढूलक गई और सामने से जब मामी जी की नज़र पड़ी तो वो दंग रह गई. मुन्ना बाबू का मुस्टंडा लंड जो की अभी सोई हुई हालत में भी करीब तीन चार इंच लंबा दिख रहा था अपने लाल सुपरे की आँखो से मामी जी की ओर ताक रहा था.
उर्मिला जी इस नज़ारे को ललचाई नज़रो से एकटक देखे जा रही थी. उसकी आँखे वहाँ से हटाए नही हट रही थी. वो सोचने लगी की जब इस छ्होकरे का सोया हुआ है, तब इतना लंबा दिख रहा है, जब जाग कर खड़ा होता होगा तब कितना बड़ा दिखता ��ोगा. उसके पति यानी कि मुन्ना के मामा का तो बमुश्किल साढ़े पाँच इंच का था. अब तक उसने मुन्ना के मामा के अलावा और किसी का लंड नही देखा था मगर इतनी उमर होने के कारण इतना तो ज्ञान था ही मोटे और लंबे लंड कितना मज़ा देते है.
गाँव का राजा पार्ट -3 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
अचानक munna की नज़र अपनी मामी उर्मिला देवी पर पड़ी वो बड़े गौर से उसके पेरॉं की तरफ देख रहीं थी तब munna को अहसास हुआ मामी उसके लॅंड को ही देख रही है munna ने अपने पैर को मोड़ लिया ओर मामी की तरफ देखा उर्मिला देवी munna को अपनी ओर देखते पाकर हॅडबड़ा गई और अपनी नज़रें मेग्ज़ीन पर लगा ली
कुच्छ देर तक दोनो ऐसे ही शर्मिंदगी के अहसास में डूबे हुए बैठे रहे फिर उर्मिला देवी वाहा से उठ कर चली गई.
उस दिन की घटना ने दोनो के बीच एक हिचक की दीवार खड़ी कर दी. दोनो अब जब बाते करते तो थोड़ा नज़रे चुरा कर करते थे. उर्मिला देवी अब munna को बड़े गौर से देखती थी. पाजामे में उसके हिलते डुलते लंड और हाफ पॅंट से झाँकते हुए लंड को देखने की फिराक में रहती थी. munna भी सोच में डूबा रहता था कि मामी उसके लंड को क्यों देख रही थी. ऐसा वो क्यों कर रही थी. बड़ा परेशान था बेचारा. मामी जी भी अलग फिराक में लग गई थी. वो सोच रही थी क्या ऐसा हो सकता है कि मैं munna के इस मस्ताने हथियार का मज़ा चख सकु. कैसे क्या करे ये उनकी समझ में नही आ रहा था. फिर उन्होने एक रास्ता खोज़ा.
अब उर्मिला देवी ने अब नज़रे चुराने की जगह munna से आँखे मिलाने का फ़ैसला कर लिया था. वो अब राजू की आँखो में अपने रूप की मस्ती घोलना चाहती थी. देखने में तो वो माशा अल्लाह शुरू से खूबसूरत थी. munna के सामने अब वो खुल कर अंग प्रदर्शन करने लगी थी. जैसे जब भी वो munna के सामने बैठती थी तो अपनी साड़ी को घुटनो तक उपर उठा कर बैठती, साडी का आँचल तो दिन में ना जाने कितनी बार ढूलक जाता था
(जबकि पहले ऐसा नही होता था), झाड़ू लगाते समय तो ब्लाउस के दोनो बटन खुले होते थे और उनमे से उनकी मस्तानी चुचिया झलकती रहती थी. बाथरूम से कई बार केवल पेटिकोट और ब्लाउस या ब्रा में बाहर निकल कर अपने बेडरूम में समान लाने जाती फिर वापस आती फिर जाती फिर वापस आती. images
नहाने के बाद बाथरूम से केवल एक लंबा वाला तौलिया लपेट कर बाहर निकल जाती थी.
बेचारा munna बीच ड्रॉयिंग रूम में बैठ ये सारा नज़ारा देखता रहता था. लरकियों को देख कर उसका लंड खड़ा तो होने लगा था मगर कभी सोचा नही था की मामी को देख के भी लंड खड़ा होगा. लंड तो लंड है वो कहा कुच्छ देखता है. उसको अगर चिकनी चमड़ी वाला खूबसूरत बदन दिखेगा तो खड़ा तो होगा ही. मामी जी उसको ये दिखा रही थी और वो खड़ा हो रहा था.
munna को उसी दौरान सेक्सी कहानियो की एक किताब हाथ लग गई. किताब पढ़ कर जब लंड खड़ा हुआ और उसको मुठिया कर जब अपना पानी निकाला तो उसकी तीसरी आँख खुल गई. उसकी स्मझ में आ गया की चुदाई क्या होती है और उसमे कितना मज़ा आ सकता है. जब किताब पढ़ के कल्पना करने और मुठियाने में इतना मज़ा है तो फिर सच में अगर चूत में लंड डालने को मिले तो कितना मज़ा आएगा. राज शर्मा की कहानियों में तो रिश्तो में चुदाई की कहानिया भी होती है और एक बार जो वो किताब पढ़ लेता है फिर रिश्ते की औरतो के बारे में उल्टी सीधी बाते सोच ही लेता है चाहे वो ऐसा ना सोचने के लिए कितनी भी कोशिश करे. वही हाल अपने munna बाबा का भी था. वो चाह रहे थे कि अपनी मामी के बारे में ऐसा ना सोचे मगर जब भी वो अपनी मामी के चिकने बदन को देखते तो ऐसा हो जाता था. मामी भी यही चाह रही थी. खूब छल्का छल्का के अपना बदन दिखा रही थी.
बाथरूम से पेशाब करने के बाद साडी को जाँघो तक उठाए बाहर निकल जाती थी. munna की ओर देखे बिना साडी और पेटिकोट को वैसे ही उठाए हुए अपने कमरे में जाती और फिर चूकने की आक्टिंग करते हुए हल्के से मुस्कुराते हुए साडी को नीचे गिरा देती थी. munna भी अब हर रोज इंतेज़ार करता था की कब मामी झाड़ू लगाएँगी और अपनी गुदाज़ चुचियों के दर्शन कराएँगी या फिर कब वो अपनी साडी उठा के उसे अपनी मोटी-मोटी जाँघो के दर्शन कराएँगी. कहानियाँ तो अब वो हर रोज पढ़ता था. ज्ञान बढ़ाने के साथ अब उसके दिमाग़ में हर रोज़ नई नई तरकीब सूझने लगी कि कैसे मामी को पटाया जाए. साड़ी उठा के उनकी चूत के दर्शन किए जाए और हो सके तो उस��ें अपने हलब्बी लंड को प्रविष्ट कराया जाए और एक बार ही सही मगर चुदाई का मज़ा लिया जाए. सभी तरह के तरकीबो को सोचने के बाद उनकी छ्होटी बुद्धि ने या फिर ये कहे की उनके लंड ने क्योंकि चुदाई की आग में जलता हुआ छ्होकरा लंड से सोचने लगता है, एक तरकीब खोज ली.................
एक दिन मामी जी बाथरूम से तौलिया लपेटे हुए निकली, हर रोज़ की तरह मुन्ना बाबू उनको एक टक घूर घूर कर देखे जा रहे थे. images
तभी मामी ने munna को आवाज़ दी, "munna ज़रा बाथरूम में कुच्छ कपड़े है, मैं ने धो दिए है ज़रा बाल्कनी में सुखाने के लिए डाल दे". munna जो कि एक टक मामी जी की गोरी चिकनी जाँघो को देख के आनंद लूट रहा था को झटका सा लगा, हॅडबड़ा के नज़रे उठाई और देखा तो सामने मामी अपनी चूचियों पर अपने तौलिए को कस के पकड़े हुए थी. मामी ने हस्ते हुए कहा "जा बेटा जल्दी से सुखाने के लिए डाल दे नही तो कपड़े खराब हो जाएँगे"
राजू उठा और जल्दी से बाथरूम में घुस गया. मामी को उसका खरा लंड पाजामे में नज़र आ गया.
वो हस्ते हुए चुप चाप अपने कमरे में चली गई. muuna ने कपड़ो की बाल्टी उठाई और फिर ब्लॉकोनी में जा कर एक एक करके सूखने के लिए डालने लगा. मामी की पॅंटी और ब्रा को सुखाने के लिए डालने से पहले एक बार अच्छी तरह से च्छू कर देखता रहा फिर अपने होंठो तक ले गया और सूंघने लगा. images
तभी मामी कमरे से निकली तो ये देख कर जल्दी से उसने वो कपड़े सूखने के लिए डाल दिए.
शाम में जब सूखे हुए कपड़ो को उठाते समय munna भी मामी की मदद करने ल���ा. munna ने अपने मामा का सूखा हुआ अंडरवेर अपने हाथ में लिया और धीरे से मामी के पास गया. मामी ने उसकी ओर देखते हुए पुचछा "क्या है, कोई बात बोलनी है"? munnaथोड़ा सा हकलाते हुए बोला:-
"माआअम्म्म्मी...एक बात बोलनी थी"
"हा तो बोल ना"
"मामी मेरे सारे दोस्त अब ब्ब्ब्ब्बबब"
"अब क्या ......" उर्मिला देवी ने अपनी तीखी नज़रे उसके चेहरे पर गढा रखी थी.
"मामी मेरे सारे दोस्त अब उन.... अंडर....... अंडरवेर पहनते है"
मामी को हसी आ गई, मगर अपनी हसी रोकते हुए पूछा "हा तो इसमे क्या है सभी लड़के पहनते है"
"पर पर मामी मेरे पास अंडरवेर नही है"
मामी एक पल के लिए ठिठक गई और उसका चेहरा देखने लगी.munna को लग रहा था इस पल में वो शर्म से मर जाएगा उसने अपनी गर्दन नीचे झुका ली.
उर्मिला देवी ने उसकी ओर देखते हुए कहा "तुझे भी अंडरवेर चाहिए क्या"
"हा मामी मुझे भी अंडरवेर दिलवा दो ना"
"हम तो सोचते थे की तू अभी बच्चा है, मगर" कह कर वो हस्ने लगी. munna ने इस पर बुरा सा मुँह बनाया और रोआन्सा होते हुए बोला "मेरे सारे दोस्त काफ़ी दीनो से अंडरवेर पहन रहे है, मुझे बहुत बुरा लगता है बिना अंडरवेर के पॅंट पहन ना."
उर्मिला देवी ने अब अपनी नज़रे सीधे पॅंट के उपर टीका दी और हल्की मुस्कुराहट के साथ बोली "कोई बात नही, कल बाज़ार चलेंगे साथ में". munna खु�� होता हुआ बोला "थॅंक यू मामी". फिर सारे कपड़े समेत दोनो अपने अपने कमरो में चले गये.
वैसे तो munna कई बार मामी के साथ बाज़ार जा चुका था. मगर आज कुच्छ नई बात लग रही थी. दोनो खूब बन सवर के निकले थे. उर्मिला देवी ने आज बहुत दीनो के बाद काले रंग की सलवार कमीज़ पहन रखी थी और राजू को टाइट जीन्स पहनवा दिया था. हालाँकि राजू अपनी ढीली पॅंट ही पहना चाहता था मगर मामी के ज़ोर देने पर बेचारा क्या करता. कार मामी खूद ड्राइव कर रही थी.
काले सलवार समीज़ में बहुत सुंदर लग रही थी. हाइ हील की सॅंडल पहन रख थी. टाइट जीन्स में राजू का लंड नीचे की तरफ हो कर उसकी जाँघो से चिपका हुआ एक केले की तरह से साफ पता चल रहा था. उसने अपनी टी-शर्ट को बाहर निकाल लिया पर जब वो कार में मामी के बगल में बैठा तो फिर वही ढाक के तीन पाट, सब कुच्छ दिख रहा था. मामी अपनी तिर्छि नज़रो से उसको देखते हुए मुस्कुरा रही थी. munna बड़ी परेशानी महसूस कर रहा था. खैर मामी ने कार एक दुकान पर रोक ली. वो एक बहुत ही बड़ी दुकान थी. दुकान में सारे सेल्सरेप्रेज़ेंटेटिव लरकियाँ थी. एक सेलेज़्गर्ल के पास पहुच कर मामी ने मुस्कुराते हुए उस से कहा इनके साइज़ का अंडरवेर दिखाइए. सेल्समन ने घूर कर उसकी ओर देखा जैसे वो अपनी आँखो से ही उसकी साइज़ का पता लगा लेगी. फिर munna से पुचछा आप बनियान कितने साइज़ का पहनते हो. munna ने अपना साइज़ बता दिया और उसने उसी साइज़ का अंडरवेर ला कर उसे ट्राइयल रूम में ले जा कर ट्राइ करने को कहा. ट्राइयल रूम में जब munna ने अंडरवेर पहना तो उसे बहुत टाइट लगा. उसने बाहर आ कर नज़रे झुकाए हुए ही कहा "ये तो बहुत टाइट है". इस पर मामी हस्ने लगी और बोली "हमारा munna बेटा नीचे से कुच्छ ज़यादा ही बड़ा है, एक साइज़ बड़ा ला दो" . उर्मिला देवी की ये बात सुन कर सेलेज़्गर्ल का चेहरा भी लाल हो गया. वो हॅडबड़ा कर पिछे भागी और एक साइज़ बड़ा अंडरवेर ला कर दे दिया और बोली पॅक करा देती हू ये फिट आ जाएगी. मामी ने पुचछा "क्यों munna एक बार और ट्राइ करेगा या फिर पॅक करवा ले".
"नही पॅक करवा लीजिए"
"ठीक है दो अंडरवेर पॅक कर दो, और मेरे लिए कुच्छ दिखाओ". मामी के मुँह से ये बात सुन कर munna चौंक गया. मामी क्या खरीदना चाहती है अपने लिए. यहा तो केवल पॅंटी और ब्रा मिलेगी. सेलेज़्गर्ल मुस्कुराते हुए पिछे घूमी और मामी के सामने गुलाबी, काले, सफेद, नीले रंगो के ब्रा और पॅंटीस की ढेर लगा दिए. मामी हर ब्रा को एक एक कर के उठाती जाती और फैला फैला कर देखती फिर munna की ओर घूम कर जैसे की उस से पुच्छ रही हो बोलती "ये ठीक रहेगी क्या, मोटे कप्डे की है, सॉफ्ट नही है या फिर इसका कलर ठीक है क्या" munna हर बात पर केवल अपना सिर हिला कर रह जाता था. उसका तो दिमाग़ घूम गया था. उर्मिला देवी पॅंटीस को उठा उठा के फैला के देखती. उनकी एलास्टिक चेक करती ��िर छोड़ देती. कुच्छ देर तक ऐसे ही देखने के बाद उन्होने तीन ब्रा और तीन पॅंटीस खरीद ली. munna को तीनो ब्रा आंड पॅंटीस काफ़ी छ्होटी लगी. मगर उसने कुच्छ नही कहा. सारा समान पॅक करवा कर कर की पिच्छली सीट पर डालने के बाद मामी ने पुचछा "अब कहा चलना है",
munna ने कहा "घर चलिए, अब और कहा चलना है". इस पर मामी बोली "अभी घर जा कर क्या करोगे चलो थोड़ा कही घूमते है.
"ठीक है" कह कर munna भी कार में बैठ गया. फिर उसका टी-शर्ट थोड़ा सा उँचा हो गया पर इस बार munna को कोई फिकर नही थी. मामी ने उसकी ओर देखा और देख कर हल्के से मुस्कुरई. मामी से नज़रे मिलने पर munna भी थोड़ा सा शरमाते हुए मुस्कुराया फिर खुद ही बोल पड़ा "वो मैं ट्राइयल रूम में जा कर अंडरवेर पहन आया था". मामी इस पर हस्ते हुए बोली "वा रे छ्होरे बड़ा होसियार निकला तू तो, मैने तो अपना ट्राइ भी नही किया और तुम पहन कर घूम भी रहे हो, अब कैसा लग रहा है"
"बहुत कंफर्टबल लग रहा है, बड़ी परेशानी होती थी"
"मुझे कहा पता था की इतना बड़ा हो गया है, नही तो कब की दिला देती"
मामी के इस दुहरे अर्थ वाली बात को स्मझ कर मुन्ना बेचारा चुपचाप मुस्कुरा कर रह गया. मामी कार ड्राइव करने लगी. घर पर मामा और बड़ी बहन काजल दोनो नही थे. मामा अपने बिज़्नेस टूर पर और काजल कॉलेज ट्रिप पर. सो दोनो मामी भांजा शाम के सात बजे तक घूमते रहे. शाम में कार पार्किंग में लगा कर दोनो माल में घूम रहे थे कि बारिश शुरू हो गई. बड़ी देर तक तेज बारिश होती रही. जब 8 बजने को आए तो दोनो ने माल से पार्किंग तक का सफ़र भाग कर तय करने की कोशिश की, और इस चक्कर में दोनो के दोनो पूरी तरह से भीग गये. जल्दी से कार का दरवाजा खोल झट से अंदर घुस गये. मामी ने अपने गीले दुपट्टे से ही अपने चेहरे और बाँहो को पोच्छा और फिर उसको पिच्छली सीट पर फेंक दिया. munna ने भी हॅंकी से अपने चेहरे को पोछ लिया. मामी उसकी ओर देखते हुए बोली "पूरे कपड़े गीले हो गये"
"हा मैं भी गीला हो गया हू". बारिश से भीग जाने के कारण मामी की समीज़ उनके बदन से चिपक गई थी और उनकी सफेद ब्रा के स्ट्रॅप नज़र आ रहे थे. समीज़ चूकि स्लीवलेशस थी इसलिए मामी की गोरी गोरी बाँहे गजब की खूबसूरत लग रही थी.
उन्होने दाहिने कलाई में एक पतला सा सोने का कड़ा पहन रखा था और दूसरे हाथ में पतले स्ट्रॅप की घड़ी बाँध रखी थी. उनकी उंगलियाँ पतली पतली थी और नाख़ून लूंबे लूंबे जिन पर पिंक कलर की सुनहरी नाइल पोलिश लगी हुई थी. स्टियरिंग को पकड़ने के कारण उनका हाथ थोड़ा उँचा हो गया था जिस के कारण उनकी चिकनी चिकनी कानखो के दर्शन भी munna को आराम से हो रहे थे. बारिस के पानी से भीग कर मामी का बदन और भी सुनहरा हो गया था. बालो की एक लट उनके गालो पर अठखेलिया खेल रही थी. मामी के इस खूबसूरत रूप को निहार कर munna का लंड खड़ा हो गया था.
घर पहुच कर कार को पार्किंग में लगा कर लॉन पार करते हुए दोनो घर के दरवाजे की ओर चल दिए. बारिश दोनो को भीगा रही थी. दोनो के कपड़े बदन से पूरी तरह से चिपक गये थे. मामी की समीज़ उनके बदन से चिपक कर उनकी चुचियों को और भी ज़यादा उभार रही थी. चुस्त सलवार उनके बदन उनके जाँघो से चिपक कर उनकी मोटी जाँघो का मदमस्त नज़ारा दिखा रही थी. समीज़ चिपक कर मामी की गांद की दरार में घुस गई थी.
munna पिछे पिछे चलते हुए अपने लंड को खड़ा कर रहा था. तभी लॉन की घास पर मामी का पैर फिसला और वो पिछे की तरफ गिर प��री. उनका एक पैर लग भग मूड गया था और वो munna के उपर गिर पड़ी जो ठीक उनके पिछे चल रहा था. मामी muna के उपर गिरी हुई थी.
मामी के मदमस्त चूतर munna के लंड से सॅट गये. मामी को शायद munna के खड़े लंड का एहसास हो गया था उसने अपने चूतरो को लंड पर थोड़ा और दबा दिया और फिर आराम से उठ गई. munna भी उठ कर बैठ गया. मामी ने उसकी ओर मुस्कुराते हुए देखा और बोली "बारिश में गिरने का भी अपना अलग ही मज़ा है".
"कपड़े तो पूरे खराब हो गये मामी"
"हॅ तेरे नये अंडरवेर का अच्छा उदघाटन हो गया" munna हस्ने लगा. घर के अंदर पहुच कर जल्दी से अपने अपने कमरो की ओर भागे. munna ने फिर से हाफ पॅंट और एक टी-शर्ट डाल ली और गंदे कपड़ो को बाथरूम में डाल दिया. कुच्छ देर में मामी भी अपने कमरे से निकली. मामी ने अभी एक बड़ी खूबसूरत सी गुलाबी रंग की नाइटी पहन रखी थी. मॅक्सी के जैसी स्लीव्लेस्स नाइटी थी. नाइटी कमर से उपर तक तो ट्रॅन्स्परेंट लग रही थी मगर उसके नीचे शायद
मामी ने नाइटी के अंदर पेटिकोट पहन रखा था इसलिए वो ट्रॅन्स्परेंट नही दिख रही थी.
उर्मिला देवी किचन में घुस गई और munna ड्रॉयिंग रूम में मस्ती से बैठ कर टेलीविज़न देखने लगा. उसने दूसरा वाला अंडरवेर भी पहन रखा था अब उसे लंड के खड़े होने पर पकड़े जाने की कोई चिंता नही थी. किचन में दिन की कुच्छ सब्जिया और दाल पड़ी हुई थी. चावल बना कर मामी उसके पास आई और बोली "चल कुच्छ खाना खा ले". खाना खा कर सारे बर्तन सिंक में डाल कर मामी ड्रॉयिंग रूम में बैठ गई और munna भी अपने लिए मॅंगो शेक ले कर आया और सामने के सोफे पर बैठ गया. मामी ने अपने पैर को उठा कर अपने सामने रखी एक छ्होटी टेबल पर रख दिया और नाइटी को घुटनो तक खींच लिया था. घुटनो तक के गोरे गोरे पैर दिख रहे थे. बड़े खूबसूरत पैर थे मामी के. images
तभी munna का ध्यान उर्मिला देवी के पैरो से हट कर उनके हाथो पर गया. उसने देखा की मामी अपने हाथो से अपने चुचियों को हल्के हल्के खुज़ला रही थी. फिर मामी ने अपने हाथो को पेट पर रख लिया. कुच्छ देर तक ऐसे ही रखने के बाद फिर उनका हाथ उनके दोनो जाँघो के बीच पहुच गया. munna बड़े ध्यान से उनकी ये हरकते देख रहा था. मामी के हाथ ठीक उनकी जाँघो के बीच पहुच गये और वो वाहा खुजली करने लगी. झंघो के ठीक बीच में चूत के उपर हल्के हल्के खुजली करते-करते उनका ध्यान munna की तरफ गया. munna तो एक तक अपनी मामी को देखे जा रहा था. उर्मिला देवी की नज़रे जैसे ही munna से टकराई उनके मुँह से हँसी निकल गई. हस्ते हुए वो ��ोली
"नई पॅंटी पहनी है ना इसलिए खुजली हो रही है". munna अपनी चोरी पकड़े जाने पर शर्मिंदगी के साथ हस कर मुँह घुमा कर अपनी नज़रो को टीवी से चिपका दिया. उर्मिला देवी ने अपने पैरो को और ज़यादा फैला दिया. ऐसा करने से उनकी नाइटी नीचे की तरफ लटक गई थी. munna के लिए ये बड़ा बढ़िया मौका था, उसने अपने हाथो में एक रब्बर की बॉल पकड़ी हुई थी जिसे उसने जान बूझ के नीचे गिरा दिया. बॉल लुढ़कता हुआ ठीक उस छ्होटे से टेबल के नीचे चला गया जिस पर मामी ने पैर रखे हुए थे. munaa "ओह" कहता हुआ उठा और टेबल के पास जाकर बॉल लेने के बहाने से लटकी हुए नाइटी के अंदर झाँकने लगा. एक तो नाइटी और उसके अंदर मामी ने पेटिकोट पहन रखा था, लाइट वाहा तक पूरी तरह से नही पहुच पा रही थी पर फिर भी munna को मामी के मस्त जाँघो के दर्शन हो ही गये. उर्मिला देवी भी munna के इस हरकत पर मन ही मन मुस्कुरा उठी. वो समझ गई की छ्होकरे के पॅंट में भी हलचल हो रही है और उसी हलचल के चक्कर में उनकी पॅंटी के अंदर झाँकने के चक्कर में पड़ा हुआ है. munna बॉल लेकर फिर से सोफे पर बैठ गया तो उर्मिला देवी ने उसकी तरफ देखते हुए कहा
"अब इस रब्बर के बॉल से खलेने की तेरी उमर बीत गई, अब दूसरे बॉल से खेला कर". munna थोड़ा सा शरमाते हुए बोला "और कौन सी बॉल होती है मामी, खलेने वाली सारी बॉल्स तो रब्बर से ही बनी होती है"
"हा, होती तो है मगर तेरे इस बॉल की तरह इधर उधर कम लुढ़कति है" कह कर फिर से munna के आँखो के सामने ही अपनी चूत पर खुजली करके हस्ते हुए बोली "बड़ी खुजली सी हो रही है पता नही क्यों, शायद नई पॅंटी पहनी है इसलिए".munna तो एक दम से गरम हो गया और एक टक जाँघो के बीच देखते हुए बोला
"पर मेरा अंडरवेर भी तो नया है वो तो नही काट रहा"
"अच्छा, तब तो ठीक है, वैसे मैने थोड़ी टाइट फिटिंग वाली पॅंटी ली है, हो सकता है इसलिए काट रही होगी"
"वा मामी आप भी कमाल करती हो इतनी टाइट फिटिंग वाली पॅंटी खरीदने की क्या ज़रूरत थी आपको"
"टाइट फिटिंग वाली पॅंटी हमारे बहुत काम की होती है, ढीली पॅंटी में परेशानी हो जाती है, वैसे तेरी परेशानी तो ख़तम हो गई ना"
"हा मामी, बिना अंडरवेर के बहुत परेशानी होती थी, सारे लड़के मेरा मज़ाक उरते थे".
"पर लड़कियों को तो अच्छा लगता होगा, क्यों?"
"हि मामी, आप भी नाआ,,,, "
"क्यों लड़कियाँ तुझे नही देखती क्या"
"लड़कियाँ मुझे क्यों देखेंगी, मेरे में ऐसा क्या है"
"तू अब जवान हो गया है, मर्द बन गया है"
"कहा मामी, आप भी क्या बात करती हो"
"अब जब अंडरवेर पहन ने लगा है तो इसका मतलब ही है की तू अब जवान हो गया है"
munna इस पर एक दम से शर्मा गया,
"धात मामी,......"
" तेरा खड़ा होने लगा है क्या",
मामी की इस बात पर तो munna का चेहरा एक्दुम से लाल हो गया. उसकी समझ में नही आ रहा था क्या बोले. तभी उर्मिला देवी ने अपनी नाइटी को एक्दुम घुटनो के उपर तक खीचते हुए बड़े बिंदास अंदाज़ में अपना एक पैर जो की टेबल पर रखा हुआ था उसको munna के जाँघो पर रख दिया (munna दरअसल पास के सोफे पर पालती मार के बैठा हुआ था.) munna को एक्दुम से झटका सा लगा.
मामी अपने गोरे गोरे पैरो की एडियों से उसके
जाँघो को हल्के हल्के दबाने लगी और एक हाथ को फिर से अपने जाँघो के बीच ले जा कर चूत को हल्के हल्के खुजलाते हुए बोली "क्यों मैं ठीक बोल रही हू ना"
"ओह मामी,"
"नया अंडरवेर लिया है, दिखा तो सही कैसा लगता है"
"अर्रे क्या मामी आप भी ना बस ऐसे........ अंडरवेर भी कोई पहन के दिखाने वाली चीज़ है"
"क्यों लोग जब नया कपड़ा पहनते है तो दिखाते नही है क्या" कह कर उर्मिला देवी ने अपने एडियों का दबाब जाँघो पर थोड़ा सा और बढ़ा दिया, पैर की उंगलिया से हल्के से पेट के निचले भाग को कुरेदा और मुस्कुरा के सीधे munna की आँखो में झाँक कर देखती हुई बोली, "दिखा ना कैसा लगता है, फिट है या नही"
"छोड़ो ना मामी"
"अर्रे नये कपड़े पहन कर दिखाने का तो लोगो को शौक होता है और तू है की शर्मा रहा है, मैं तो हमेशा नये कपड़े पहनती हू तो सबसे पहले तेरे मामा को दिखाती हू, वही बताते है कि फिटिंग कैसी है या फिर मेरे उपर जचता है या नही, अभी तेरे मामा नही है........"
"पर मामी ये कौन सा नया कपड़ा है, अपने भी तो नई पॅंटी खरीदी है वो आप दिखाइएंगी क्या". उर्मिला देवी भी स्मझ गई की लड़का लाइन पर आ रहा है, और पॅंटी देखने के चक्कर में है. फिर मन ही मन खुद से कहा की बेटा तुझे तो मैं पॅंटी भी दिखौँगी और उसके अंदर का माल भी पर ज़रा तेरे अंडरवेर का माल भी तो देख लू नज़र भर के फिर बोली
"हा दिखौँगी ना तेरे मामा को तो मैं सारे कपड़े दिखाती हू"
"धात मामी.... तो फिर जाने दो मैं भी मामा को ही दिखौँगा"
"अर्रे तो इसमे शरमाने की क्या बात है, आज तो तेरे मामा नही है इसलिए मामी को ही दिखा दे," और उर्मिला देवी ने अपने पूरे पैर को सरका कर उसके जाँघो के बीच में रख दिया जहा पर उसका लंड था. munna का लंड खड़ा तो हो ही चुका था. उर्मिला देवी ने हल्के से लंड की औकात पर अपने पैर को चला कर दबाब डाला और मुस्कुरा कर munna की आँखो में झाँकते हुए बोली "क्यों मामी को दिखाने में शर्मा रहा है क्या"
munna की तो सिट्टी पिटी गुम हो गई थी. मुँह से बोल नही फुट रहे थे. धीरे से बोला "रहने दीजिए मामी मुझे शर्म आती है" उर्मिला देवी इस पर थोड़ा झिरकने वाले अंदाज में बोली "इसीलिए तो अभी तक इस रब्बर की बॉल से खेल रहा है" munna ने अपनी गर्दन उपर उठाई तो देखा की उर्मिला देवी अपनी चुचियों पर हाथ फिरा रही थी. राजू बोला "तो और कौन सी बॉल से खेलु"
"ये भी बताना पड़ेगा क्या, मैं तो सोचती थी ��ू स्मझदार हो गया होगा, चल आज तुझे समझदार बनाती हूँ".
"हाई मामी मुझे शरम आ रही है" उर्मिला देवी ने अपने पंजो का दबाब उसके लंड पर बढ़ा दिया और ढाकी च्छूपी बात करने की जगह सीधा हमला बोल दिया "बिना अंडरवेर के जब खड़ा कर के घूमता था तब तो शरम नही आती थी,…….. दिखा ना". और लंड को कस के अपने पंजो से दबाया ताकि munna अब अच्छी तरह से समझ जाए की ऐसा अंजाने में नही बल्कि जान-बूझ कर हो रहा है. इस काम में उर्मिला देवी को बड़ा मज़ा आ रहा था. munna थोड़ा परेशान सा हो गया फिर उसने हिम्मत कर के कहा "ठीक है मामी, मगर अपने पैर तो हटाओ".
"ये हुई ना बात" कह कर उर्मिला देवी ने अपने पैर हटा लिए. munna खड़ा हो गया और धीरे से अपनी हाफ पॅंट घुटनो के नीचे तक सरका दी. उर्मिला देवी को बड़ा मज़ा आ रहा था. लड़कों को जैसे स्ट्रीप टीज़ देखने में मज़ा आता है, आज उर्मिला देवी को अपने भाँझे के सौजन्या से वैसा ही स्ट्रीप टीज़ देखने को मिल रहा था. उसने कहा "पूरा पॅंट उतार ना, और अच्छे से दिखा". munna ने अपना पूरा हाफ पॅंट उतार दिया और शरमाते-सकुचते सोफे पर बैठने लगा तो उर्मिला देवी ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर munna का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया और अपने पास खड़ा कर लिया और धीरे से उसकी आँखो में झाँकते हुए बोली "ज़रा अच्छे से देखने दे ना कैसी फिटिंग आई है". munna ने अपने टी-शर्ट को अपने पेट पर चढ़ा रखा था और मामी बड़े प्यार से उसके उनड़ेवएअर की फिटिंग चेक कर रही थी. छ्होटा सा वी शेप का अंडरवेर था. एलास्टिक में हाथ लगा कर देखते हुए मामी बोली "हू फिटिंग तो ठीक लग रही है, ये नीला रंग भी तेरे उपर खूब अच्छा लग रहा है मगर थोड़ी टाइट लगती है" images
"वो कैसे मामी, मुझे तो थोड़ा भी टाइट नही लग रहा", munna का खड़ा लंड उनड़ेवएअर में एक दम से उभरा हुआ सीधा डंडे की शकल बना रहा था. उर्मिला देवी ने अपने हाथ को लंड की लंबाई पर फिराते हुए कहा, images
"तू खुद ही देख ले, पूरा पता चल रहा है कि तेरा औज़ार खड़ा हो गया है". लंड पर मामी का हाथ चलते ही मारे सनसनी के munna की तो हालत खराब होने लगी, कांपति हुई आवाज़ में "ओह आहह" करके रह गया. उर्मिला देवी ने मुस्कुराते हुए पुचछा "हर समय ऐसे ही रहता है क्या"
"नेह्हियी मामी, हमेशा ऐसे नही रहता"
"और समय ढीला रहता है"
"हा मामी" .
"अच्छा, तब तो ठीक फिटिंग का है, मैं सोच रही थी की अगर हर समय ऐसे ही खड़ा रहता होगा तो तब तो तुझे थोड़ा और ढीला लेना चाहिए था, वैसे ये खड़ा क्यों है
"ओह, मुझे नही पता मामी."
"बहुत बड़ा दिख रहा है, पहसब तो नही लगी है तुझे"
"नही मामी"
"तब तो कोई और ही कारण होगा, वैसे वो सेल्स गर्ल भी हस रही थी जब मैने बोला की मेरे मुन्ना बेटे का थोड़ा ज़यादा ही बड़ा है" कह कर उर्मिला देवी ने लंड को अंडरवेर के उपर से कस कर दबाया.
munna के मुँह से एक सिसकारी निकल गई. उर्मिला देवी ने लंड को एक बार और दबा दिया और बोली "चल जा सोफे पर बैठ". munna सीधे धरती पर आ गया. लंड पर मामी के कोम�� हाथो का सपर्श जो मज़ा दे रहा था वो बड़ा अनूठा और अजूबा था. मन कर रहा था की मामी थोरी देर और लंड दबाती पर मन मार कर चुप चाप सोफे पर आ के बैठ गया और अपनी सांसो को ठीक करने लगा. उर्मिला देवी भी बड़ी सयानी औरत थी जानती थी कि लोंडे के मन में अगर एक बार तड़प जाग जाएगी तो फिर लौंडा खुद उसके चंगुल में फस जाएगा. कमसिन उमर के नौजवान छ्होकरे के मोटे लंड को खाने के चक्कर में वो मुन्ना को थोड़ा तड़पाना चाहती थी. उर्मिला देवी ने अभी भी अपनी नाइटी को अपने घुटनो से उपर तक उठाया हुआ था और अपने दोनो पैर फिर से सामने की टेबल पर रख लिए थे. munna ने धीरे से अपने हाफ पॅंट को उठाया और पहन ने लगा. उर्मिला देवी तभी बोल पड़ी "क्यों पहन रहा है, घर में और कोई तो है नही, और मैने तो देख ही लिया है,"
गाँव का राजा पार्ट -4लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
"हाई नही मामी मुझे बड़ी शरम आ रही है"
तभी उर्मिला देवी ने फिर से अपनी चूत के उपर खुजली की. munna का ध्यान भी मामी के हाथो के साथ उसी तरफ चला गया. उर्मिला देवी मुस्कुराती हुई बोली "अभी तक तो शायद केवल पॅंटी काट रही थी पर अब लगता है पॅंटी के अंदर भी खुजली हो रही है". munna इसका मतलब नही समझा चुप-चाप मामी को घूरता रहा. उर्मिला देवी ने सोचा खुद ही कुच्छ करना पड़ेगा, लौंडा तो कुच्छ करेगा नही. अपनी नाइटी को और उपर सीधा जाँघो तक उठा कर उसके अंदर हाथ घुसा कर हल्के हल्के सहलाने लगी. और बोली "जा ज़रा पाउडर ले आ तो". munna अंडरवेर में ही बेडरूम में जाने मे थोड़ा हिचका मगर मामी ने फिर से कहा "ले आ ज़रा सा लगा लेती हू".
munna उठा और अपनी गांद मॅटकाते हुए पाउडर ले आया. उर्मिला देवी ने पाउडर ले लिया और थोड़ा सा पाउडर हाथो में ले कर अपनी हथेली को नाइटी में घुसा दिया. और पाउडर लगाने लगी. munna तिर्छि निगाहों से अपने मामी हर्कतो को देख रहा था और सोच रहा था काश मामी उसको पाउडर लगाने को कहती. उर्मिला देवी शायद उसके मन की बात को स्मझ गई और बोली "munna क्या सोच रहा है"
"कुच्छ नही मामी, मैं तो बस टी.वी. देख रहा हू"
"तू बस टी.वी. देखता ही रह जाएगा, तेरी उमर के लड़के ना जाने क्या-क्या कर लेते है, तुझे पता है दुनिया कितनी आगे निकल गई है"
"क्या मामी आप भी क्या बात करती हो मैं अपने क्लास का सबसे तेज़ बच्चा हू"
"तेरी तेज़ी तो मुझे कही भी देखने को नही मिली"
"क्या मतलब है आपका मामी"
"अभी तू कमसिन उमर का लड़का है तेरा मन तो करता होगा",
"क्या मन करता होगा मामी,"
"तान्क-झाँक करने का, अपनी चूत पर नाइटी के अंदर से हाथ चलाते हुए बोली "अब तो तेरा पूरा खड़ा होने लगा है"
"के मामी….."
"क्यों मन नही करता क्या, मैं जैसे ऐसे तेरे सामने पाउडर लगा रही हू तो तेरा मन करता होगा………….."
"धात मामी…….."
"मैं सब समझती हू… "तू शरमाता क्यों है, तेरी उमर में तो हर लड़का यही तमन्ना रखता है की कोई खोल के दिखा दे,,,,,,,,,,,,,,,,,तेरा भी मन करता होगा…………फिर बात बदलते बोली तेरे मामा होते तो उनसे पाउडर लगवा लेती"
फिर munna के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली "खोलने की बात सुनते ही सब समझ गया, कैसे चेहरा लाल हो गया है तेरा, मैं सब समझती हू तेरा हाल"
munna का चेहरा और ज़यादा शरम से लाल हो गया और अपनी नज़रे झुकाते हुए बोला "आप बात ही ऐसी कर रही हो…..लाओ मैं पाउडर लगा देता हू"
"हाई, लगवा तो लू मगर तू कही बहक गया तो"
"हाई मामी मैं क्यों बहकुंगा"
"नही तेरी उमर कम है, देख के ही जब तेरा इतना खड़ा था तो हाथ लगा के क्या हाल हो जाएगा, फिर बदनामी………."
munna का चेहरा खुशी से दमक उठा था, उसको स्मझ में आ गया था कि गाड़ी अब पटरी पर आ चुकी है बोला "आपकी कसम मामी किसी को भी नही बताउन्गा"
इस पर उर्मिला देवी ने munna का हाथ पकड़ अपनी तरफ खींचा, munna अब मामी के बगल में बैठ गया था. उर्मिला देवी ने अपने हाथो से उसके गाल को हल्का सा मसालते हुए कहा "हाई, बड़ी समझदारी दिखा रहा है पर है तो तू बच्चा ही ना कही बोल दिया तो"
" मामी…..नही किसी से नही………"
"खाली पाउडर ही लगाएगा या फिर…..देखेगा भी……..मैं तो समझती थी की तेरा मन करता होगा पर….."
"हाई मामी पर क्या……."
"ठीक है चल लगा दे पाउडर,"
उर्मिला देवी खड़ी हो गई और अपनी नाइटी को अपने कमर तक उठा लिया. munna की नज़र भी उस तरफ घूम गई. मामी अपनी नाइटी को कमर तक उठा कर उसके सामने अपनी पॅंटी के एलास्टिक में हाथ लगा कर खड़ी थी. मामी की मोटी मोटी खंभे के जैसी सफेद खूबसूरत जंघे और उनके बीच कयामत बरपाति उनकी काली पॅंटीऔर काली पॅंटी को देख पाउडर का डिब्बा हाथ से छूट कर गिर गया और पाउडर लगाने की बात भी दिमाग़ से निकल गई. पॅंटी एक दम छ्होटी सी थी और मामी की चूत पर चिपकी हुई थी.
munnaतो बिना बोले एक टक घूर घूर कर देखे जा रहा था. उर्मिला देवी चुप-चाप मुस्कुराते हुए अपनी नशीली जवानी का असर munna पर होता हुआ देख रही थी. munna का ध्यान तोड़ने की गरज से वो हस्ती हुई बोली "कैसी है मेरी पॅंटी की फिटिंग ठीक ठाक है ना". munna एक दम से शर्मा गया. हकलाते हुए उसके मुँह से कुच्छ नही निकला. पर उमिला देवी वैसे ही हस्ते हुए बोली "कोई बात नही, शरमाता क्यों है, चल ठीक से देख कर बता कैसी फिटिंग आई है. munna कुच्छ नही बोला और चुप चाप बैठा रहा. इस पर खुद उर्मिला देवी ने उसका हाथ पकड़ के खींच कर उठा दिया और बोली, "देख के बता ना, कही सच मुच में टाइट तो नही, अगर होगी तो कल चल के बदल लेंगे". munna ने भी थोड़ी सी हिम्मत दिखाई और सीधा मामी के पैरो के पास घुटनो के बल खड़ा हो गया और बड़े ध्यान से देखने लगा. मामी की चूत पॅंटी में एक दम से उभरी हुई थी. चूत की दोनो फाँक के बीच में पॅंटी फस गई थी और चूत के च्छेद के पास थोड़ा सा गीलापन दिख रहा था.
munna को इतने ध्यान से देखते हुए देख कर उर्मिला देवी ने हस्ते हुए कहा "क्यों फिट है या नही, ज़रा पिछे से भी देख के बता" कह कर उर्मिला देवी ने अपने मोटे मोटे गठिले चूतर munna की आँखो के सामने कर दिए. पॅंटी का पिछे वाला भाग तो पतला सा स्टाइलिश पॅंटीस की तरह था. उसमे बस एक पतली सी कपड़े की लकीर सी थी जो की उर्मिला देवी के गांद क�� दरार में फसि हुई थी.
गोरे-गोरे मैदे के जैसे गुदाज चूतरो को देख कर तो munna के होश ही उड़ गये, बेशक्ता उसके मुँह से निकल गया "मामी पिछे से तो आपकी पॅंटी और भी छ्होटी है चूतर भी कवर नही कर पा रही". इस पर मामी ने हस्ते हुए कहा "अरे ये पॅंटी ऐसी ही होती है, पिछे की तरफ केवल एक पतला सा कपड़ा होता जो बीच में फस जाता है, देख मेरे चूतरो के बीच में फसा हुआ है ना"
"हा मामी, ये एक दम से बीच में घुस गया है"
"तू पिछे का छोड़ आगे का देख के बता ये तो ठीक है ना"
"मुझे तो मामी ये भी छ्होटा लग रहा है, और आगे का कपड़ा भी कही फसा हुआ लग रहा है". इस पर उर्मिला देवी अपने हाथो से पॅंटी के जाँघो के बीच वाले भाग के किनारो को पकड़ा और थोड़ा फैलाते हुए बोली "वो उठने बैठने पर फस ही जाता है, अब देख मैने फैला दिया है, अब कैसा लग रहा है"
"अब थोड़ा ठीक लग रहा मामी, पर उपर से पता तो फिर भी चल रहा है"
"अर्रे तो इतने पास से देखेगा तो उपर से पता नही चलेगा क्या, मेरा तो फिर भी ठीक है तेरा तो सॉफ दिख जाता है".
"पर मामी, हम लोगो का तो खड़ा होता है ना आप लोगो का खड़ा नही होता"
"हा हमारे में छेद होता है, इसी से तो हर चीज़ इसके अंदर घुस जाती है". कह कर उर्मिला देवी खिलखिला कर हस्ने लगी. munna ने भी थोड़ा सा शरमाने का नाटक किया. अब उसकी भी हिम्मत खुल चुकी थी. अब अगर उर्मिला देवी चुचि पकड़ाती तो आगे बढ़ कर पूरा चोद देता. उर्मिला देवी भी इस बात को समझ चुकी थी. ज़यादा नाटक छोड़ने की जगह अब सीधा खुल्लम खुल्लम बाते करने में दोनो की भलाई थी, ये बात अब दोनो समझ चुके थे. उर्मिला देवी ने इस पर munna के गालो को अपने हाथो से मसल्ते हुए कहा "देखने से तो बड़ा भोला भाला लगता है मगर जानता सब है, कि किसका खड़ा होता है और किसका नही, लड़की मिल जाए तो सबसे पहले ............ बिगड़ गया है तू" कह कर उर्मिला देवी ने अपने नाइटी को जिसको उन्होने कमर तक उठा रखा था नीचे गिरा दिया.
"क्या मामी आप भी ना, मैं कहा बिगड़ा हू, लाओ पाउडर लगा दू"
ये सब तो मैने कहानियों मे पढ़ा था उसी मे बताया था लड़की का खड़ा नही होता
..क्या तू हिन्दी सेक्सी कहानियाँ भी पढ़ने लगा
"अच्छा बिगड़ा नही है फिर ये जो तेरी अंडरवेर में है उसको क्यों खड़ा कर के रखा हुआ है". मुन्ना ने चौंक कर अपने अंडरवेर की तरफ देखा, सच-मुच उसका लंड एक दम से तन्ना गया था और अंडरवेर को एक टेंट की तरह से उभारे हुए था. उसने शर्मा कर अपने एक हाथ से अपने उभार को च्छुपाने की कोशिश की. "हाई मामी छोड़ो लाओ पाउडर लगा दू"
"तू रहने दे पाउडर वो मैने लगा लिया है, कही कुच्छ उल्टा सीधा हो गया तो".
"क्या उल्टा सीधा होगा मामी, मैं तो इसलिए कह रहा था की आपको खुजली हो रही थी तो फिर............." बात बीच में ही काट गई.
"खूब समझती हू क्यों बोल रहे थे,
"हाई मामी नही, मैं तो बस आप को खुजली.......".
"मैं अच्छी तरह से समझती हू तेरा इरादा क्या है और तू कहा नज़र गढ़ाए रहता है, मैं तुझे देखती थी पर सोचती थी ऐसे ��ी देखता होगा मगर अब मेरी समझ में अच्छी तरह से आ गया है"
मामी के इतना खुल्लम खुल्ला बोलने पर munna के लंड में एक सनसनी दौड़ गई
"हि मामी नही ……………..munna की बाते उसके मुँह में ही रह गई और उर्मिला देवी ने आगे बढ़ कर राजू के गाल पर हल्के से चिकोटी काटी.
मामी के कोमल हाथो का स्परश जब munna के गालो पर हुआ तो उसका लंड एक बार फिर से लहरा गया. मामी के नंगी जाँघो के नज़ारे की गर्माहट अभी तक लंड और आँख दोनो को गर्मा रही थी. तभी मामी ने उसकी ठुड्डी पकड़ के उसके चेहरे को थोड़ा सा उपर उठाया और अपनी चुचियों को एक हाथ से सहलाते हुए बोली "बहुत घूर घूर के देखते हो ना इनको, दिल चाहता होगा की नंगी करके देखते, है ना" मामी की ये बात सुन कर munna का का चेहरा लाल हो गया और गला सुख गया फसी हुई आवाज़ में "माआआआमम्म्ममी............" करके रह गया.
मामी ने इस बार munna का एक हाथ पकड़ लिया और हल्के से उसकी हथेली को दबा कर कहा "क्यों मन करता है कि नही, कि किसी की देखते". munna का हाथ मामी के कोमल हाथो में कांप रहा था. munna को अपने और पास खिचते हुए उर्मिला देवी ने लगभग munna को अपने से सटा लिया था. munna और उसकी मामी के बीच केवल इंच भर का फासला था. images
मामी की गर्म सांसो का अहसास उसे चेहरे पर हो रहा था. munna अगर थोड़ा सा आगे की तरफ हिलता तो उसकी छाती मामी के नुकीले चुचो से ज़रूर टकरा जाती. इतने पास से munna पहली बार मामी को देख रहा था. दोनो की साँसे तेर्ज चल रही थी. मामी की उठती गिरती चूचियों से munna की नज़र हटाए नही हट रही थी. उर्मिला देवी ने munna का हाथ पकड़ के अपनी चूचियों पर रख दिया और अपने हाथो से उसको दबाते हुए बोली "मन करता होगा कि देखे, देख तेरा हाथ कैसे कांप रहा है, मन करता है ना". images
थूक निगल के गले को तर करता हुआ munna बोला "हाआ मामी मन...... करता ..". उर्मिला देवी ने हल्के से फिर उसके हाथ को अपने चुचियों पर दबाते हुए कहा "देख मैं कहती थी ना तेरा मन करता होगा, पूरा नंगा देखे, लौंडा जैसे ही जवान होता है उसके मन में सबसे पहले यही आता है कि किसी औरत की देखे". अब munna भी थोड़ा खुल गया हकलाते हुए बोला
"हाँ, मामी बहुत मन करता है कि देखे"
"मैं तो दिखा देती मगर"
"हाँ मामी, मगर क्या"
"तूने कभी किसी की देखी नही है क्या"
"नही मेयायाययामियीयियीयियी"
"तेरी उमर कम है, फिर मैं तेरी मामी हू"
"हाई मामी मैं अब बड़ा हो गया हू,"
"मैं दिखा देती मगर तेरी उमर कम है तेरे से रहा नही जाएगा"
"नही मामी, मैं रह लूँगा, बस दिखा दो एक बार"
"तू नही रह पाएगा, कह कर उर्मिला देवी ने अपना एक हाथ munna के अंडरवेर के उपर से उसके लंड पर रख दिया.
munna एक दम से लहरा गया. मामी के कोमल हाथो का लंड पर दबाब पा कर मज़े के कारण से उसकी पलके बंद होने को आ गई. उर्मिला देवी बोली "देख कैसे खड़ा कर के रखा हुआ है, अगर दिखा दूँगी तो तेरी बेताबी और बढ़ जाएगी,"
" नही मामी, प्लीज़ एक बार दिखा दो"
"पॅंटी खोल के दिखा दू"
"हा मामी, दिखा दो बस एक बार, किसी की नही देखी" munna का एक हाथ जो अभी तक उर्मिला देवी की चुचियों पर ही था उसको अपने हाथो से दबाते हुए और अपनी चुचियों को थोड़ा और उचकाते हुए उर्मिला देवी बोली "��ैने नई ब्रा भी पहनी हुई, उसको नही देखेगा क्या" images
"हाँ मामी उसको भी ….."
"चल दिखा दूँगी मगर एक शर्त पर"
"बताओ मामी, मैं आपकी हर बात मानूँगा"
"ठीक है फिर जा और मूत कर के अपना अंडरवेर उतार के आ" munna को एक दम से झटका लग गया. उसकी स्मझ में नही आ रहा था की क्या जवाब दे. मामी और उसके बीच खुल्लम खुल्ला बाते हो रही थी मगर मामी अचानक से ये खेल इतना कुल्लम खुल्ला हो जाएगा, ये तो munna ने सोचा भी ना था. कुच्छ घबराता और कुच्छ सकपकाता हुआ वो बोला " पर मामी अंडरवेर…….."
"हा जल्दी से अंडरवेर उतार के मेरे बेडरूम में आ जा फिर दिखाउन्गी" कह कर उर्मिला देवी उस से अलग हो गई और टी.वी. ऑफ कर के अपने बेडरूम की तरफ चल दी. मामी को बेडरूम की तरफ जाता देख जल्दी से बाथरूम की तरफ भागा.
अंडरवेर उतार कर जब munna मूतने लगा तो उसके लंड से पेशाब की एक मोटी धार कमोड में छर छर कर गिरने लगी. जल्दी से पेशाब कर अपने फन्फनाते लंड को काबू में कर munna मामी के बेडरूम की तरफ भागा. अनादर पहुच कर देखा की मामी ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो कर अपने बालो का जुड़ा बना रही थी. images
munna को देखते ही तपाक से बोली चल बेड पर बैठ मैं आती हू और अटॅच्ड बाथरूम में चली गई. बाथरूम से मामी के मूतने की सिटी जैसी आवाज़ सुनाई दे रही थी. कुच्छ पल बाद ही मामी बाथरूम से अपनी नाइटी को जाँघो तक उठाए हुए बाहर निकली. munna का लंड एक बार फिर से सनसानया. उसका दिल कर रहा था की मामी की दोनो जाँघो के बीच अपने मुँह को घुसा दे और उनकी रसीली चूत को कस के चूम ले. तभी उर्मिला देवी जो कि, बेड तक पहुच चुकी थी की आवाज़ ने उसको वर्तमान में लौटा दिया " तू अभी तक अंडरवेर पहने हुए है, उतारा क्यों नही" munna थोड़ा सरमाया
" मामी शरम आ रही है……….तुम तो दिखाने को बोल रही थी"
"धात बेवकूफ़, चल अंडरवेर उतार"
"पर मामी अंडरवेर उतार के क्या होगा,,,,,,"
"असली गेंदो का मज़ा चखाउन्गी" कह कर हल्के से अपनी चुचियों पर हाथ फेरा. राजू का लंड और भी ज़यादा ख़ड़ा हो गया. images
"पर मामी मैं पूरा नंगा हो जाउन्गा"
"तो क्या हुआ, मुझे पॅंटी खोल के दिखाने के लिए बोलता है उसमे शर्म नही आती तुझे, खोल ना अंडरवेर फिर मैं तुझे बताउन्गी की तेरी मामी को कहा कहा खुजली होती है और खुजली मिटाने की दूसरी दवा भी बताउन्गी"
" मामी, दूसरी कौन से दवा है "
"बताउन्गी बेटा, पहले ज़रा अपना बेलन तो दिखा". munna ने थोड़ा सा शरमाने का नाटक करते हुए अपना अंडरवेर धीरे धीरे सरका दिया. उर्मिला देवी की आँखो की चमक बढ़ती जा रही थी. आज दस इंच मोटे तगड़े लंड का दर्शन पहली बार खुल्लम खुल्ला ट्यूब लाइट की रोशनी में हो रहा था. नाइटी जिसको अब तक एक हाथ से उन्होने उठा कर रखा हुआ था नीचे छूट कर गिर गयी. munnaके आँखो को गर्मी देने वाली चीज़ तो ढक चुकी थी मगर उसकी मामी के मज़े वाली चीज़ अपने पूरे औकात पर आ के फुफ्कार रही थी.
उर्मिला देवी ने एक बार अपनी नाइटी के उपर से ही अपनी चूत को दबाया और ��ुजली करते हुए बोली "इसस्स्स्स्सस्स बड़ा हथियार है तेरा, देख के तो और खुजली बढ़ गई"
munna जो की थोड़ा बहुत शर्मा रहा था बोला "खुजली बढ़ गई तो पॅंटी उतार लो ना मामी, वो काम तो करती नही हो, पर अंडरवेर बेकार में उतरवा दिया"
"अभी उतारती हू, फिर तुझे बताउन्गी अपनी खुजली की दवाई, हाई कैसा मूसल जैसा है तेरा" फिर उर्मिला देवी ने अपनी नाइटी के बटन खोलने शुरू कर दिए. नाइटी को बड़े आराम से धीरे कर के पूरा उतार दिया. अब उर्मिला देवी के बदन पर केवल एक काले रंग ब्रा और नाइटी के अंदर पहनी हुई पेटिकोट थी. images
गोरी मैदे के जैसा मांसल पेट, उसके बीच गहरी गुलाबी नाभि, दो मोटी मोटी चुचियाँ, जो की ऐसा लग रहा था की ब्रा को फाड़ के अभी निकल जाएगी उनके बीच की गहरी खाई,
ये सब देख कर तो munna एक दम से बेताब हो गया था. लंड फुफ्कार मार रहा था और बार-बार झटके ले रहा था. munna एक दम से पागल हो कर अपने हाथो से अपने लंड को पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा. उर्मिला देवी ने जब उसकी बेताबी देखी तो आगे बढ़ कर खुद अपने हाथो से उसके लंड को पाकर लिया और मुस्कुराती हुई बोली "मैं कहती थी ना की तेरे बस का नही है, तू रह नही पाएगा, अभी तो मैने पूरा खोला भी नही है तू शुरू हो गया" बाहर खूब जोरो की बारिश शुरू हो रही थी. ऐसे मस्ताने मौसम में मामी-भानजे का मस्ताना खेल अब शुरू हो गया था.
ना तो अब उर्मिला देवी रुकने वाली थी ना ही munna. उर्मिला देवी ने munna का हाथ अपने ब्रा में क़ैद चुचियों के उपर रख दिया और बोली "तू ऐसे तो मानेगा नही इधर मैं खोल के दिखाती रहूंगी इधर तू मूठ मारता रहेगा, ले अब खुद ही खोल के देख" munna ने काँपते हुए हाथो से अपनी मामी के ब्रा के स्ट्रॅप खोलने की कोशिश की मगर ब्रा इतनी टाइट थी की खुल नही रही थी. उर्मिला देवी ने हस्ते हुए अपने बदन को थोड़ा ढीला किया खुद अपने हाथो को पीछे ले जा कर अपनी ब्रा के स्ट्रॅप को खोल दिया और हस्ते हुए बोली "ब्रा भी नही खोलना जानता है, चल कोई बात नही मैं तुझे पूरा ट्रेंड कर दूँगी, ले देख अब मेरी नंगी चुचिया जिनको देखने के लिए इतना तरसता था" मामी के कंधो से ब्रा के स्ट्रॅप को उतार कर munna ने जल्दी से ब्रा को एक झटके में निकाल फेंका. उर्मिला देवी हस्ते हुए बोली "बड़ी जल्दी है, आराम से उतार, अब जब बोल दिया है तो दिखा दूँगी तो फिर मैं पीछे नही हटने वाली". मामी के उठे हुए मोटे मोटे मम्मे देख कर munna तो जैसे पागल ही हो गया था. एक टक घूर घूर कर देख रहा था उनकी मलाई जैसे चुचो को. एक दम बेल के जैसी ठोस और गुदाज चुचिया थी. निपल भी काफ़ी मोटे मोटे और और हल्का गुलबीपन लिए हुए थे उनके चारो तरफ छ्होटे छ्होटे दाने थे.
मामी ने जब munna को अपने चुचियों को घूरते हुए देखा तो munna का हाथ पकड़ कर अपनी चुचियों पर रख दिया और और मुस्कुराती हुई बोली "कैसा लग रहा है, पहली बार देखी है ना"
"हा मामी पहली बार देखी है, बहुउउउउउत खूबसूरत है" munna को लग रहा था जैसे की उसका लंड में से कुच्छ निकल जाएगा. लंड एक दम से अकड़ कर उप डाउन हो रहा था और सुपरा तो एक दम पहाड़ी ��लू के जैसा लाल हो गया था.
"देख तेरा औज़ार कैसे फनफना रहा है, थोड़ी देर और देखेगा तो फट जाएगा"
"ही मामी फट जाने दो, थोड़ा सा और पॅंटी खोल के भीईइ............"
इस पर उर्मिला देवी ने उसके लंड को अपनी मुठ्ठी में थाम लिया और दबाती हुई बोली "अभी तो ये हाल है पॅंटी खोल दिया तो क्या होगा"
"हाई मामी ज़रा सा बस खोल के.......", इस पर उर्मिला देवी ने उसक�� लंड को अपनी मुठ्ठी में और कस के दबोच लिया और उपर नीचे करने लगी. लंड के सुपाडे से चमड़ी पूरी तरह से हट जाती थी और फिर जब मुठ्ठी उपर होती तो चमड़ी फिर से ढक जाती थी. इतनी ज़ोर से तो मुन्ना ने भी कभी अपने हाथो से मूठ नही मारी जितनी ज़ोर से आज मामी मूठ मार रही थी. सनसनी के कारण munna की गांद फट रही थी. उसकी समझ में नही आ रहा था की क्या करे. सब कुच्छ भूल कर सिसकारी लेते हुए मामी के हाथो से मूठ मराई का मज़ा लूट रहा था. लंड तो पहले से ही पके आम के तरह से हो रखा था. दो चार हाथ मरने की ज़रूरत थी, फट से पानी फेंक देता मगर कयामत तो तब हो गयी जब उर्मिला देवी ने आगे झुक कर लंड को अपने मुँह में ले लिया. अपने पतले गुलाबी होंठो के बीच लंड को दबोच कर जैसे पीपे से पानी चूस कर निकालते हैं वैसे ही कस के जो चुसाइ शुरू की तो आँखे बंद होने लगी, गला सुख गया ऐसा लगा जैसे शरीर का सारा खून सिमट कर लंड में भर गया है और मामी उसको चूस लेना चाहती है. मज़े के कारण आँखें नही खुल रही थी. मुँह से केवल गोगियाने हुई आवाज़ में बोलता जा रहा था "हाई चूस लो चूस लो ओह मामी चूस लो............."
तभी उर्मिला देवी ने चूसना बंद कर अपने होंठो को लंड पर से हटा लिया और फिर से अपने हाथो से मूठ मारते हुए बोली "अब देख तेरा कैसे फल फला के निकलेगा जब तू मेरी पॅंटी की सहेली को देखेगा" चुसाइ बंद होने से मज़ा थोड़ा कम हुआ तो munna ने भी अपनी आँखे खोल दी. मामी ने एक हाथ से मूठ मारते हुए दूसरे हाथ से अपने पेटिकोट को पूरा पेट तक उपर उठा दिया और अपनी जाँघो को खोल कर पॅंटी के किनारे (मयनि) को पकड़ एक तरफ सरका कर अपनी चूत के दर्शन कराए तो images
munna के लंड ने भल-भला कर पानी छोड़ना शुरू कर दिया. munna के मुँह से एकदम से आनंद भरी ज़ोर की सिसकारी निकली और आँखे बंद होने लगी और "ओह मामी ओह मामी" करता हुआ अपने लंड का पानी छोड़ने लगा. उर्मिला देवी ने उसके झाड़ते लंड का सारा माल अपने हाथो में लिया और फिर बगल में रखे टॉवेल में पोछ्ति हुई बोली "देखा मैं कहती थी ना कि देखते ही तेरा निकल जाएगा". munna अब एक दम सुस्त हो गया था. इतने जबरदस्त तरीके से वो आजतक नही झाड़ा था. उर्मिला देवी ने उसके गालो को चुटकी में भर कर मसल्ते हुए एक हाथ से उसके ढीले लंड को फिर से मसला. munna अपनी मामी को हसरत भारी निगाहो से देख रहा थ.
उर्मिला देवी munna की आँखो में झाँकते हुए वही पर कोहनी के बल munna के बगल में अढ़लेटी सी बैठ कर अपने दूसरे हाथ से munna के ढीले लंड को अपनी मुट्ठी में उसके आंडो समेत कस कर दबाया और बोली "मज़ा आया.....". munna के चेहरे पर एक थकान भरी मुस्कुराहट फैल गई. पर मुस्कुराहट में हसरत भी थी और चाहत भी थी.
"मज़ा आया" उर्मिला देवी ने पुछा.
"हाँ मामी बहुत………"
"पहले हाथ से करता था"
"कभी कभी"
"इतना मज़ा आया कभी"
"नही मामी इतना मज़ा कभी नही आया,….."
मामी ने munna के लंड ज़ोर से दबोच कर उसके गालो पर अपना दाँत गढ़ाते हुए एक हल्की सी पुच्चि ली और अपनी टाँगो को उसकी टाँगो पर चढ़ा कर रगड़ते हुए बोली
"पूरा मज़ा लेगा". munna थोड़ा सा शरमाते हुए बोला "हाँ मामी, हा". उर्मिला देवी की गोरी चिकनी टाँगे munna के पैरो से रगड़ खा रही थी. उर्मिला देवी का पेटिकोट अब जाँघो से उपर तक चढ़ चुका था.
"जानता है पूरे मज़े का मतलब!" munna ने थोड़ा सकुचाते हुए अपनी गर्दन हा में हिला दी. इस पर उर्मिला देवी ने अपनी नंगी गदराई जाँघो से munna के लंड को मसल्ते हुए उसके गालो पर फिर से अपने दाँत गढ़ा दिए और हल्की सी एक प्यार भरी चपत लगाते हुए बोली "मुझे पहले से ही शक़ था, तू हमेशा घूरता रहता था".फिर जब तूने बताया था कितू सेक्सीकहानियाँ पढ़ता है तो मुझे पूरा यकीन हो गया फिर प्यार से उसके होंठो को चूम लिया और उसके लंड को दबोचा. munna को थोड़ा सा दर्द हुआ. मामी के हाथ को अपनी हथेली से रोक कर सिसकते हुए बोला "हाई मामी. munna को ये मीठा दर्द सुहाना लग रहा था. वो सारी दुनिया भूल चुक्का था. उसके दोनो हाथ अपने आप मामी के पीठ से लग गये और उसने उर्मिला देवी को अपनी बाँहो में भर लिया. मामी की दोनो बड़ी बड़ी चुचियाँ अब उसकी छाती से लग कर चिपकी हुई थी.
उर्मिला देवी ने फिर से राजू के होंठो को अपने होंठो में भर लिया और अपनी जीभ को उसके मुँह में डाल कर घूमाते हुए दोनो एक दूसरे को चूमने लगे. औरत के होंठो का ये पहला स्पर्श जहा munna को मीठे रसगुले से भी ज़यादा मीठा लग रहा था वही उर्मिला देवी एक नौजवान कमसिन लंड के होंठो का रस पी कर अपने होश खो बैठी थी. उर्मिला देवी ने munna के लंड को अपने हथेलियो में भर कर फिर से मसलना शुरू कर दिया. कुच्छ ही देर में मुरझाए लंड में जान आ गई. दोनो के होंठ जब एक दूसरे से अलग हुए तो दोनो हाँफ रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे मिलो लंबी रेस लगा कर आए है. अलग हट कर munna के चेहरे को देखते हुए उर्मिला देवी ने munna के हाथ को पकड़ कर अपने चुचियों पर रखा और कहा "अब तू मज़ा लेने लायक हो गया है" फिर उसके हाथो को अपने चुचियों पर दबाया. munna इशारा समझ गया.उसने उर्मिला देवी के चुचियों को हल्के हल्के दबाना शुरू कर दिया. उर्मिला देवी ने भी मुस्कुराते हुए उसके munna के लेंड को अपने कोमल हाथो में थाम लिया और हल्के हल्के सहलाने लगी. आज मोटे और दस इंच के लंड से चुदवाने की उसकी सालो की तमन्ना पूरी होने वाली थी. उसके लिए सबसे मजेदार बात तो ये थी की लंड एक दम कमसिन उमर का था. जैसे मर्द कमसिन उमर की अनचुदी लरकियों को चोदने की कल्पना से सिहर उठते है शायद उर्मिला जी के साथ भी ऐसा ही हो रहा था, मुन्ना बाबू के लंड को मसालते हुए उनकी चूत पासीज रही थी और इस दस इंच के लंड को अपनी चूत की दीवारो के बीच कसने के लिए बेताब हुई जा रही थी.
munna भी अब समझ चुका था कि आज उसके लंड की सील तो ज़रूर टूट जाएगी. दोनो हाथो से मामी की नंगी चुचियों को पकड़ कर मसल्ते हुए मामी के होंठो और गालो पर बेतहाशा चुम्मिया काटे जा रहा था. th
दोनो मामी भानजे जोश में आकर एक दूसरे से लिपट चिपेट रहे थे. तभी उर्मिला जी munna के लंड को कस कर दबाते हुए अपने होंठ भीच कर munna को उकसाया "ज़रा कस कर". munna ने अपनी हथेलियों में दोनो चुचियों को भर कर ज़ोर से मसल्ते हुए निपल को चुटकी में पकड़ कर आगे की तरफ खीचते हुए जब दबाया तो उर्मिला देवी के मुँह से आह निकल गई. दर्द और मज़ा दोनो ही जब एक साथ मिला तो मुँह से सिसकारियाँ फूटने लगी. पैर की एडियो से बिस्तर को रगड़ते हुए अपने चूतरो को हवा में उच्छालने लगी. munna ने मामी को मस्ती में आते हुए देख और ज़ोर से चुचियों को मसला और अपने दाँत गाल पर गढ़ा दिए. उर्मिला देवी एक्दुम से तिलमिला गई और munna के लंड को कस कर मरोड़ दिया "उईईईईईई माआआआआआ सीईई धीरे से……". लंड के ज़ोर से मसले जाने के कारण munna एक दम से दर्द से तड़प गया पर उसने चुचियों को मसलना जारी रखा और मामी की पप्पियाँ लेते हुए बोला "अभी तो बोल रही थी ज़ोर से और अभी चिल्ला रही हो……..ओह मामी". तभी उर्मिला देवी ने munna के सिर को पकड़ा और उसे अपनी चुचियों पर खींच लिया और अपनी बाई चुचि के निपल को उसके मुँह से सटा दिया और बोली "इतनी सारी सेक्सीकहानियाँ पढ़ कर क्या खाली चुचि दबाना ही सीखा है, चूसना नही सिखाया क्या उसमे. munna ने चुचि के निपल को अपने होंठो के बीच कस लिया. थोड़ी देर तक निपल चुसवाने के बाद मामी ने अपनी चुचि को अपने हाथो से पकड़ कर munna के मुँह में ठेला, munna का मुँह अपने आप खुलता चला गया और निपल के साथ जितनी चुचि उसके मुँह में समा सकती थी उतनी चुचि को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा. दूसरे हाथ से दूसरी चुचि को मसल्ते हुए munna अपनी मामी के मुममे चूस रहा था.
कभी कभी munna के दाँत भी उसकी मुम्मो पर गढ़ जाते, पर उर्मिला देवी को यही तो चाहिए था-----एक नौजवान जोश से भरा लौंडा जो उसको नोचे खसोटे और एक जंगली जानवर की तरह उसको चोद कर जवानी का जोश भर दे. चुचि चूसने के तरीके से उर्मिला देवी को पता चल गया था कि लौंडा अभी अनाड़ी है पर अनाड़ी को खिलाड़ी तो उसे ही बनाना था. एक बार लौंडा जब खिलाड़ी बन जाता तो फिर उसकी चूत की चाँदी थी. munna के सिर के बालो पर हाथ फेरती हुई बोली "………धीरे धीरे चुचि चूस और निपल को रब्बर की तरह से मत खीच आराम से होंठो के बीच दबा के धीरे-धीरे जीभ की मदद से चुँला और देख ये जो निपल के चारो तरफ काला गोल घेरा बना हुआ है ना, उस पर और उसके चारो तरफ अपनी जीभ घूमाते हुए चूसेगा तो मज़ा आएगा". munnaने मामी के चुचि को अपने मुँह से निकाल
"हा इसी तरह से जीभ को चोरो तरफ घूमाते हुए, धीरे धीरे". चुदाई की ये कोचैंग आगे जा कर munna के बहुत काम आने वाली थी जिसका पता दोनो में से किसी को नही था. जीभ को चुचि पर बड़े आराम से धीरे धीरे चला रहा था निपल के चारो तरफ के काले घेरे पर भी जीभ फिरा रहा था. बीच बीच में दोनो चुचि को पूरा का पूरा मुँह में भर कर भी चूस लेता था. उर्मिला देवी को बड़ा मज़ा आ रहा था और उसके मुँह से सिसकारिया फूटने लगी थी "ऊऊउउउईई....आअहह... ..सस्स्सिईईई... .राजू बेटा... ......आहह..... ऐसे ही मेरे राजा,,,,,,,,,,सीईईईईईईईईईई एक बार में ही सीख गया, हाई मज़ा आ रहा है" images
"हाई मामी, बहुत मज़ा है, ओह मामी आपकी चुचि……..सीईई कितनी खूबसूरत, हमेशा सोचता था कैसी होगी आज……
"उफफफ्फ़ सस्स्स्स्स्स्स्सिईईईईई……., आअराआअम से आराम से, उफ्फ साले खा जा तेरी मा का भेजा हुआ लंगड़ा आम है भोसड़ी के…….चूस के सारा रस पी जा ".
मामी की गद्देदार मांसल चुचियों को munna, सच में शायद लंगड़ा आम समझ रहा था. कभी बाई चुचि मुँह में भरता तो कभी ढहिनी चुचि को मुँह में दबा लेता. कभी दोनो को अपनी मुट्ही में कसते हुए बीच वाली घाटी में पुच...प्यूच करते हुए चुममे लेता, कभी उर्मिला देवी की गोरी सुरहिदार गर्दन को चूमता.
बहुत दीनो के बाद उर्मिला देवी की चुचियों को किसी ने इस तरह से माथा था. उसके मुँह से लगातार सिसकारियाँ निकल रही थी, आहे निकल रही थी, चूत पनिया कर पसिज रही थी और अपनी उत्तेजना पर काबू करने के लिए वो बार-बार अपनी जाँघो को भीच ��ीच कर पैरो को बिस्तेर पर रगड़ते हुए हाथ पैर फेंक रही थी. दोनो चुचिया ऐसे मसले जाने और चूसे जाने के कारण लाल हो गई थी. चुचि चूस्ते-चूस्ते राजू नीचे बढ़ गया था और मामी के गुदाज पेट पर अपने प्यार का इज़हार करते हुए पुच्चिया काट रहा था. उर्मिला देवी की चूत एक दम गीली हो कर चुहने लगी. भगनासा खड़ा होकर लाल हो गया था. इतनी देर से munna के साथ खिलवाड़ करने के कारण धीरे-धीरे जो उत्तेजना का तूफान उसके अंदर जमा हुआ था वो अब बाहर निकलने के लिए बेताब हो उठा था. एकद्ूम से बेचैन होकर सीस्याते हुए बोली "कितना दूध पिएगा मुए, उई…सीईई…..साले, चुचि देख के चुचि में ही खो गया, इसी में छोड़ेगा क्या भोसड़ी के". munna मामी के होंठो को चूम कर बोला "ओह मामी बहुत मज़ा आ रहा है सच में, मैने कभी सोचा भी नही था, , मामी आपकी चूची को चोद दू……" उर्मिला देवी ने एक झापड़ उसके चूतर पर मारा और उसके गाल पर दाँत गढ़ाते हुए बोली "साले अबी तक चुचि पर ही अटका हुआ है". munna बिस्तर पर उठ कर बैठ गया और एक हाथ में अपने तमतमाए हुए लंड को पकड़ उसकी चमड़ी को खींच कर पहाड़ी आलू के जैसे लाल-लाल सुपरे को मामी की चुचियों पर रगड़ने लगा. उत्तेजना के मारे munna का बुरा हाल हो चुक्का था, उसे कुच्छ भी समझ में नही लग रहा था. खेलने के लिए मिले इस नये खिलौने के साथ वो जी भर के खेल लेना चाहता था. लंड का सुपरा रगड़ते हुए उसके मुँह से मज़े की सिसकारिया फुट रही थी "ओह मामी, सस्स्स्स्स्सीईई मज़ा आ गया मामी, सस्स्स्सीईई और लो मामी.
उर्मिला देवी की चूत में तो आग लगी हुई थी उन्होने झट से munna को धकेलते हुए बिस्तर पर पटक दिया और उसके उपर चढ़ कर अपने पेटिकोट को उपर किया एक हाथ से लंड को पकड़ा और अपनी पनियाई हुई चूत के गुलाबी छेद पर लगा कर बैठ गई. गीली चूत ने सटाक से munna के पहाड़ी आलू जैसे सुपरे को निगल लिया. munna का क्यों की ये पहली बार था इसलिए जैसे ही सुपरे पर से चमड़ी खिसक कर नीचे गई munna थोड़ा सा चिहुनक गया.
"ओह मामी,"
"पहली बार है ना, सुपरे की चमड़ी नीचे जाने से………" और अपनी गांद उठा कर कचक से एक जोरदार धक्का मारा. गीली चूत ने झट से पूरे लंड को निगल लिया. पूरा लंड अपनी चूत में लेकर, पेटिकोट को कमर के पास समेट कर खोस लिया और चूतर उठा कर दो तीन और धक्के लगा दिए. munna की समझ में खुच्छ नही आ रहा था. बस इतना लग रहा था जैसे उसके लंड को किसी ने गरम भट्टी में डाल दिया है. गर्दन उठा कर उसने देखने की कोशिश की. मामी ने अपने चूतर को पूरा उपर उठाया, चूत के रस से चमचमता हुआ लंड बाहर निकला, फिर तेज़ी के साथ मामी के गांद नीचे करते ही fhuli hui chut में समा गया.
"सीईए मामी आप ने तो अपनी नीचे वाली ठीक से देखने भी नही………."
"बाद में……अभी तो नीचे आग लगी है"
"हाई मामी…………दिखा देती तूऊऊऊऊ"
"अभी मज़ा आ रहा है……"
"हाँ, हा आ रहा हाईईईईईईईई……."
"तो फिर मज़ा लूट ना भोसड़ी के, देख के अचार डालेगा…………"
"उफ्फ मामी…………..सीईई ओह आपकी नीचे वाली तो एकद्ूम गरम………."
"हा………बहुत गर्मी है इसमे, अभी इसकी सारी गर्मी निकाल दे फिर बाद में……भट्टी देखना…….अभी बहुत खुजली हो रही थी, ऐसे ही चुदाई होती है समझा, पूरा मज़ा इसी को सीईए……….जब चूत में लंड अंदर बाहर होता है तभी……….हाई पहली चुदाई है ना तेरीईईईईई"
"हा मामी………ही सीईईईई"
"क्यों क्या हुआ……….सस्स्स्सीईईई"
"ऐसा लग रहा है जैसे उफफफफफफ्फ़………जैसे ही आप नीचे आती है एकद्ूम से मेरे लंड की चमड़ी नीचे उतर जाती है…………..उफफफफफफफ्फ़ माआआमीईईईई बहुत गुदगुदी हो रही है"
"तेरा बहुत मोटा है ना………इसलिए मेरी में एकदम चिपक कर जा रहा है……"
इतना कह कर उर्मिला देवी ने कचक-कचक धक्के लगाना शुरू कर दिया. चूत में लंड ऐसे फिट हो गया था जैसे बॉटल में कॉर्क. उर्मिला देवी की चूत जो की चुद चुद के भोसड़ी हो गई थी, आज 10 इंच मोटे लंड को खा कर अन्चुदी चूत बनी हुई थी और इठला कर, इतरा कर पानी छोड़ रही थी. लंड चूत की दीवारो से एकद्ूम चिपक कर रगड़ता हुआ पूरा अंदर तक घुस जाता था और फिर उसी तरह से चूत की दीवारो को रगड़ते हुए सुपरे तक सटाक से निकल कर फिर से घुसने के लिए तैय्यार हो जाता था. चूत के पानी छोड़ने के कारण लंड अब सटा-सॅट अंदर बाहर हो रहा था. munna ने गर्दन उठा कर अपनेलंड देखने की कोशिश की मगर उर्मिला देवी के धक्को की रफ़्तार इतनी तेज और झटकेदार थी की उसकी गर्दन फिर से तकिये पर गिर गई. उर्मिला देवी के मुँह से तेज तेज सिसकारियाँ निकल रही थी और वो गांद उठा उठा के तेज-तेज झटके मार रही थी. लंड सीधा उसकी बछेदानि पर ठोकर मार रहा था और बार बार बस उसके मुँह से चीख निकल जाती थी. आज उसको बहुत दीनो के बाद ऐसा अनोखा मज़ा आ रहा था. दोनो मामी भांजा कुतिया कुत्ते की तरह से हाँफ रहे थे और कमरे में गछ-गछ, फॅक-फॅक की आवाज़ गूँज रही थी.
"ऑश……सस्स्स्सीईई……munna बहुत मस्त लंड है तेरा तो हाई…….उफफफफफफफफफ्फ़"
"हा……..मामी…….बहुत मज़ा आ रहा है……….चुचीईईईई"
"हा, हा दबा ना, चुचि दबा…………बहुत दीनो के बाद ऐसा मज़ा आ रहा है…"
"सच माआमी……आअज तो आपने स्वर्ग में पहुचा दिया………"
"हाई तेरे इस घोड़े जैसे लंड ने तो…….आआअजजजज मेरी बार्षो की प्यास भुजाआअ…"
कच-कच, करता हुआ लंड, चूत में तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था. उर्मिला देवी की मोटी-मोटी गांद राजू क��� लंड पर तेज़ी से उच्छल कूद कर रही थी. मस्तानी मामी की दोनो चुचिया राजू के हाथो में थी, और उनको अपने दोनो हाथो के बीच दबा कर मठ रहा था.
"ओह हो ऱजुउउउउउउउउ बेटॅयायेयीययाया…….मेरा निकलेगा अब सस्स्स्स्स्स्सीईई ही निकल जाएगा…………ऊऊऊऊगगगगगगगगगग………(फॅक-फॅक-फॅक) …….सीईई ही रीईईईईई कहा था त्त्त्त्त्त्त्त्तुउउउउउउ……मज़ा आआआअ गयाआआआ रीईई, गई मैं ……हाई आआआआअज तो चूत फाड़ के पानी निकल दियाआआआ तुनीई…उफफफफ्फ़"
"हाई मामी और तेज मारो….मारो और तेज……और ज़ोर सीईई, उफफफफफ्फ़ बतूत गुद्गुदीईइ हूऊऊओ……."
तभी उर्मिला देवी एक ज़ोर की चीख मारते हुए……सीईईई करते हुए munna के उपर ढेर हो गई. उसकी चूत ने फॉल्फला कर पानी छोड़ दिया. चूत की छेद पकड़ते हुए लंड को कभी अपनी गिरफ़्त में कस रही थी कभी छोड़ रही थी. munna भी सयद झरने के करीब था मगर उर्मिला देवी के रुकने के कारण चुदाई रुक गई थी और वो बस कसमसा कर रह गया. उर्मिला देवी के भारी शरीर को अपनी बाँहो में जकड़े हुए नीचे से हल्के हल्के गांद उठा उठा कर अपने आप को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहा था. मगर कहते है की थूक चाटने से प्यास नही भुजती. munna का लंड ऐसे तो झरने वाला नही था. हा अगर वो खुद उपर चढ़ कर चार पाँच धक्के भी ज़ोर से लगा देता तो सयद उसका पानी भी निकल जाता. पर ये तो उसकी पहली चुदाई थी, उसे ना तो इस बात का पता था ना ही उर्मिला देवी ने ऐसा किया. लंड चूत के अंदर ही फूल कर और मोटा हो गया था. दीवारो से और ज़यादा कस गया था. धीरे धीरे जब मामी की साँसे स्थिर हुई तब वो फिर से उठ कर बैठ गई और munna के बालो में हाथ फेरते हुए उसके होंठो से अपने होंठो को सटा कर एक गहरा चुंबन लिया.
"हाई,………..मामी रुक क्यों गई……..और धक्का लगाओ ना…….."
"मुझे पता है…….तेरा अभी निकला नही………..मेरी तो इतने दीनो से पयासी थी…….ठहर ही नही पाई…………." कहते हुए उर्मिला देवी थोड़ा सा उपर उठ गई. पक की आवाज़ करते हुए munna का मोटा लंड उर्मिला देवी की बित्ते भर की चूत से बाहर निकल गया. उर्मिला देवी जो की अभी भी पेटिकोट पहने हुई थी ने पेटिकोट को चूत के उपर दबा दिया. उसकी चूत पानी छोड़ रही थी और पेटिकोट को चूत के उपर दबाते हुए उसके उपर कपड़े को हल्के से रगड़ते हुए पानी पोछ रही थी. अपनी दाहिनी जाँघ को उठाते हुए munna की कमर के उपर से वो उतर गई और धडाम से बिस्तर पर अपनी दोनो जाँघो को फैला कर तकिये पर सर रख कर लेट गई. पेटिकोट तो पूरी तरह से उपर था ही, उसका बस तोड़ा सा भाग उसकी fhuli hui चूत को ढके हुए था. वो अब झड़ने के बाद सुस्त हो गई थी. आँखे बंद थी और साँसे अब धीरे धीरे स्थिर हो रही थी.
munna अपनी मामी के बगल में लेटा हुआ उसको देख रहा था. उसका लंड एक दम सीधा तना हुआ छत की ओर देख रहा था. लंड की नसे फूल गई थी और सुपरा एक दम लाल हो गया था. munna बस दो चार धक्को का ही मेमहमान था लेकिन ठीक उसी समय मामी ने उसके लंड को अपनी चूत से बेदखल कर दिया था. झरने की कगार पर होने के कारण लंड फुफ्कार रहा था मगर मामी तो अपना झाड़ कर उसकी बगल में लेटी थी.
गाँव का राजा पार्ट -6 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
सुबह से तरह तरह के आग भड़काने वाले करम करने के कारण उर्मिला देवी बहुत ज़यादा चुदास से भरी हुई थी munna का मोटा लंड अपनी चूत में लेकर झर गई पर munna का लंड तो एक बार चूस कर झार चुकी थी इसलिए नही झारा. उर्मिला देवी अगर चाहती तो चार पाँच धक्के और मार कर झार देती मगर उसने ऐसा नही किया. क्योंकि वो munna को तड़पाना चाहती थी वो चाहती थी की munna उसका गुलाम बन जाए. जब उसकी मर्ज़ी करे तब वो munna से चुडवाए अपनी गांद चटवाए मगर जब उसका दिल करे तो वो munna की गांद पे लात मार सके और वो उसकी चूत के चक्कर में उसके तलवे चाटे लंड हाथ में ले कर उसकी गांद के पिछे घूमे.
उर्मिला देवी की आँखे बंद थी और सांसो के साथ धीरे धीरे उसकी ��ंगी चुचिया उपर की ओर उभर जाती थी. गोरी चुचियों का रंग हल्का लाल हो गया था. निपल अभी भी खड़े और गहरे काले रंग के भूरे थे, सयद उनमे खून भर गया था, munna ने उनको खूब चूसा जो था. मामी की गोरी चिकनी मांसल पेट और उसके बीच की गहरी नाभि…….
का बस चलता तो लंड उसी में पेल देता. बीच में पेटिकोट था और उसके बाद मामी की कन्द्लि के खंभे जैसी जंघे और घुटना और मोटी पिंदलियाँ और पैर. मामी की आँखे बंद थी इसलिए munna अपनी आँखे फाड़ फाड़ कर देख सकता था. वो अपनी मामी के मसताने रूप को अपनी आँखो से ही पी जाना चाहता था, munna अपने हाथो से मामी की मोटी मोटी जाँघो को सहलाने लगा. उसके मन में आ रहा था कि इन मोटी-मोटी जाँघो पर अपना लंड रगड़ दे और हल्के हल्के काट काट कर इन जाँघो को खा जाए. ये सब तो उसने नही किया मगर अपनी जीभ निकाल कर चूमते हुए जाँघो को चाटना ज़रूर शुरू कर दिया. बारी-बारी से दोनो जाँघो को चाट ते हुए मामी के रानो की ओर बढ़ गया. उर्मिला देवी ने एक पैर घुटनो के पास मोड़ रखा था और दूसरा पैर पसार रखा था. ठीक जाँघो के जोड़ के पास पहुच कर हल्के हल्के चाटने लगा और एक हाथ से धीरे से पेटिकोट का चूत के उपर रखा कपड़ा हल्के से उठा कर चूत देखने की कोशिश करने लगा.
तभी उर्मिला देवी की आँखे खूल गई. देखा तो munnaउसकी चूत के पास झुका हुआ आँखे फाड़ कर देख रहा है. उर्मिला देवी के होंठो पर एक मुस्कान फैल गई और उन्होने अपनी दूसरी टाँग को भी सीधा फैला दिया. मामी के बदन में हरकत देख कर munna ने अपना गर्दन उपर उठाई. मामी से नज़र मिलते ही munna झेंप गया. उर्मिला देवी ने बुरा सा मुँह बना कर नींद से जागने का नाटक किया "उऊहह उः क्या कर रहा है" फिर अपने दोनो पैरो को घुटने के पास से मोड़ कर पेटिकोट के कपड़े को समेत कर जाँघो के बीच रख दिया और गर्दन के पिछे तकिया लगा कर अपने आप को उपर उठा लिया और एकद्ूम बुरा सा मुँह बनाते हुए बोली "तेरा काम हुआ नही क्या………नींद से जगा दिया……सो जा". munna अब उसके एकद्ूम सामने बैठा हुआ था. उर्मिला देवी की पूरी टांग रानो तक नंगी थी. केवल पेटिकोट समेट कर रानो के बीच में चूत को ढक रखा था.
munna की समझ में नही आया की मामी क्या बोल रही है. वो घिघ्याते हुए बोला "मामी……वो……मैं बस ज़रा सा देखना……"
"हा क्या देखना………चूत….?
"हा हा मामी वही……."
उर्मिला देवी मुँह बिचकाते हुए बोली "क्या करेगा……झांट गिनेगा…"
munna चौंक गया, हार्बराहट में मुँह से निकल गया "जी. जी मामी……."
"हरामी…….झांट गिनेगा"
"ओह नही मामी……..प्लीज़ बस देखने है………अच्छी तरह से…"
चूत पर रखे पेटिकोट के कपड़े को एक बार अपने हाथ से उठा कर फिर से नीचे रखा जैसे वो उसे अच्छी तरह से ढक रही हो और बोली "पागल हो गया है क्या……..जा सो जा". उर्मिला देवी के कपड़ा उठाने से चूत की झांतो की एक झलक मिली तो राजू का लंड सिहर उठा, खड़ा तो था ही. उर्मिला देवी ने सामने बैठे munna के लंड को अपने पैर के पंजो से हल्की सी ठोकर मारी.
"बहनचोड़………खड़ा कर के रखा है..." munna ने अपना हाथ उर्मिला देवी के जाँघो पर धीरे से रख दिया और जाँघो को हल्के हल्के दबाने लगा जैसे कोई चमचा अपना कोई काम निकलवाने के लिए किसी नेता के पैर दबाता है और बोला "ओह मामी………बस एक बार अच्छे से दिखा दो……सो जाउन्गा फिर.." उर्मिला देवी ने munna का हाथ जाँघो पर से झटक दिया और झिरकते हुए बोली "छोड़…..हाथ से कर ले…….खड़ा है इसलिए तेरा मन कर रहा……निकाल लेगा तो आराम से नींद आ जाएगी…….कल दिखा दूँगी"
"हाई नही मामी……..अभी दिखा दो ना"
"नही मेरा मन नही…….ला हाथ से कर देती हू"
"ओह मामी…..हाथ से ही कर देना पर……..दिखा तो दो….." अब उर्मिला देवी ने गुस्सा होने का नाटक किया.
"भाग भोसड़ी के……..रट लगा रखी है दिखा दो…दिखा दो….
"हाई मामी मेरे लिए तो…… प्लीज़……" अपने पैर पर से उसके हाथो को हटाते हुए बोली
"चल छोड़ बाथरूम जाने दे"
munna ने अभी भी उसके जाँघो पर अपना एक हाथ रखा हुआ था. उसकी समझ में नही आ रहा था की क्या करे. तभी उर्मिला देवी ने जो सवाल उस से किया उसने उसका दिमाग़ घुमा दिया.
"कभी किसी औरत को पेशाब करते हुए देखा है……."
"क क क्क्या मामी…."
"चूतिया एक बार में नही सुनता क्या……..पेशाब करते हुए देखा है……किसी औरत को……."
"न न्न्नाही मामी……अभी तक तो चूत ही नही…..तो पेशाब करते हुए कहा से……"
"ओह हा मैं तो भूल ही गई थी…..तूने तो अभी तक……चल ठीक है….इधर आ जाँघो के बीच में…..उधर कहा जा रहा है…" munna को दोनो जाँघो के बीच में बुला मामी ने अपने पेटिकोट को अब पूरा उपर उठा दिया, गांद उठा कर उसके नीचे से भी पेटिकोट के कपड़े को हटा दिया अब उर्मिला देवी पूरी नंगी हो चुकी थी. उसकी चौड़ी चकली saved चूत munna की आँखो के सामने थी. अपनी गोरी रानो को फैला कर अपनी बित्ते भर की चूत की दोनो फांको को अपने हाथो से फैलाती हुई बोली "चल देख …"
munna की आँखो में भूके कुत्ते के जैसी चमक आ गई थी. वो आँखे फाड़ कर उर्मिला देवी की खूबसूरत डबल रोटी के जैसी फूली हुई चूत को देख रहा था.
"देख ये चूत की फांके है और उपर वाला छ्होटा छेद पेशाब वाला और नीचे वाला बड़ा छेद चुदाई वाला………यही पर थोड़ी देर पहले तेरा लंड…….
"ओह मामी कितनी सुंदर चूत है……एकद्ूम गद्देदार फूली हुई.."
"देख ये गुलाबी वाला बड़ा छेद…..इसी में लंड…..ठहर जा हाथ मत लगा…."
"ओह बस ज़रा सा च्छू कर……."
"बहनचोड़…अभी बोल रहा था दिखा दो…..दिखा दो और अब छुना है…." कहते हुए उर्मिला देवी ने राजू के हाथो को परे धकेला. munna ने फिर से हाथ आगे बढ़ते हुए चूत पर रख दिया और बोला "ओह मामी प्लीज़ ऐसा मत करो….अब नही रहा जा रहा प्लीज़…….." उर्मिला देवी ने इस बार उसका हाथ तो नही हटाया मगर उठ कर सीधा बैठ गई और बोली "ना….रहने दे, छोड़ तू आगे बढ़ता जा रहा है…..वैसे भी मुझे पेशाब लगी"
"उफफफफफफ्फ़ मामी बस थोड़ा सा……."
"थोड़ा सा क्या……मुझे बहुत ज़ोर पेशाब लगी है……"
"वो नही मामी मैं तो बस थोड़ा छु कर……."
"ठीक है चल छु ले….पर एक बात बता चूत देख कर तेरा मन चाटने का नही करता…….."
"चाटने का…….."
"हा चूत चाटने का………देख कैसी पनिया गई है…..देख गुलाबी वाले छेद को…..ठहर जा पूरा फैला कर दिखाती हू…….देख अंदर कैसा पानी लगा है…इसको चाटने में बहुत मज़ा आता है……….चाटेगा…..चल आ जा.." और बिना कुच्छ पुच्छे उर्मिला देवी ने munna के सिर को बालो से पकड़ कर अपनी चूत पर झुका दिया. munna भी सेक्सी कहानियों को पढ़ कर जानता तो था ही कि चूत छाती और चूसी जाती है और इनकार करने का मतलब नही था क्या पता मामी फिर इरादा बदल दे इसलिए चुपचाप मामी के दोनो रानो पर अपने हाथो को जमा कर अपना जीभ निकाल कर चूत के गुलाबी होंठो को चाटने लगा. उर्मिला देवी उसको बता रही थी की कैसे चाटना है
"हा पूरी चूत पर उपर से नीचे तक जीभ फिरा के चाट…..हा ऐसे ही सस्स्स्स्स्स्स्सीईई ठीक इसी तरह से हाआअ उपर जो दाना जैसा दिख रहा है ना चूत की भग्नाशा है……..उसको अपनी जीभ से रगड़ते हुए हल्के हल्के चाट……सीईई शाबाश……बहनचोड़ टीट को मुँह में लीईए". munna ने चूत के भग्नाशे को अपने होंठो के बीच ले लिया और चूसने लगा. उर्मिला देवी की चूतकी टीट चूसा वह मस्त हो कर पानी छोड़ने लगी. पहली बार चूत चाटने को मिली थी तो पूरा जोश दिखा रहा था. जंगली कुत्ते की तरह लफ़र लफ़र करता हुआ अपनी खुरदरी जीभ से मामी की चूत को घायल करते हुए चाटे जा रहा था. चूत की गुलाबी पंखुरियों पर खुरदरी जीभ का हर प्रहार उर्मिला देवी को अच्छा लग रहा था. वो अपने बदन के हर अंग को रगड़वाना चाहती थी, चाहती थी कि munna पूरी चूत को मुँह में भर ले और स्लूर्र्ररर्प स्लूर्र्रप करते हुए चूसे. munna के सिर को अपने चूत पर और कस के दबा कर सिस्याईीई "ठीक से चूस…..munna बेटा……पूरा मुँह में ले कर………हा ऐसे ही…….सीईई मदारचोद्द्द्दद्ड….बहुत मज़ा दे रहा है………आआआआहााअ……सही चूस रहा है कुत्तीईई हाआअ ऐसे ही चूऊवस………..आआआअसस्स्स्सीई"
munna भी पूरा ठर्की था. इतनी देर में समझ गया था कि उसकी मामी एक नंबर की चुदैल रंडी मदर्चोद किस्म की औरत है. साली छिनाल चूत देगी मगर तडपा तडपा कर. वैसे उसको भी मज़ा आ रहा था ऐसे नाटक करने में. उसने चूत के दोनो फांको को अपने उंगलियों से फैला कर पूरा चौड़ा दिया और जीभ को नुकीला कर के गुलाबी छेद में डाल कर घुमाने लगा. चूत एकद्ूम पासीज कर पानी छोड़ रही थी. नुकीली जीभ को चूत के गुलाबी छेद में डाल कर घुमाते हुए चूत की दीवारो से रिस रहे पानी को चाटने लगा. उर्मिला देवी मस्त हो गांद हवा में लहरा रही थी. अपने दोनो हाथो से चुचियों को दबाते हुए munna के होंठो पर अपनी फुददी को रगड़ते हुए चिल्लाई
"ओह munna…… मेरा बेटेयाआया…….बहुत मज़ा आ रहा है रे…..ऐसे ही चाट…पूरी चूत चाट ले……..तूने तो फिर से चुदास से भर दिया…….हरामी ठीक से पूरा मुँह लगा कर चाट नही तो मुँह में मूत दुन्गीईईइ……..अच्छी तरह से चाट टत्तत्ट……"
ये अब एकद्ूम नये किस्म की धमकी थी. munna एक दम असचर्यचकित रह गया. अजीब कंजरफ, कमिनि औरत थी. munna जहा सोचता अब मामला पटरी पर आ गया है, ठीक उसी समय कुच्छ नया शगूफा छोड़ देती. चूत पर से मुँह हटा दिया और बोला "ओह मामी……..तुमको पेशाब लगी है तो जाओ कर आओ…" चूत से मुँह हटा ते ही उर्मिला देवी का मज़ा किरकिरा हुआ तो उसने munna केबालो को पकड़ लिया और गुस्से से भनभनाते हुई उसको ज़ोर से बिस्तर पर पटक दिया और छाती पर चढ़ कर बोली "चुप मादर्चोद…….अभी चाट ठीक से…….अब तो तेरे मुँह में ही मुतुँगी….पेशाब करने जा रही थी तब क्यों रोका…….."कहते हुए अपनी चूत को munna के मुँह पर रख कर ज़ोर से दबा दिया. इतनी ज़ोर से दबा रही थी की munna को लग रहा था की उसका दम घूट जाएगा. दोनो चूतर के नीचे हाथ लगा कर किसी तरह से उसने चूत के दबाब को अपने मुँह पर से कम किया मगर उर्मिला देवी तो मान ही नही रही थी. चूत फैला कर ठीक पेशाब वाले छेद को राजू के होंठो पर दबा दिया और रगड़ते हुए बोली "चाट ना…चाट ज़रा मेरी पेशाब वाले छेद को….नही तो अभी मूत दूँगी तेरे मुँह पर…….हरामी……कभी किसी औरत को मूत ते हुए नही देखा है ना….अभी दिखाती हू तुझे" और सच में एक बूँद पेशाब टपका दिया…….अब तो munna की समझ में नही आ रहा था की क्या करे कुच्छ बोला भी नही जा रहा था. munna ने सोचा साली ने अभी तो एक बूँद ही मूत पिलाया है पर कही अगर कुतिया ने सच में पेशाब कर दिया तो क्या करूँगा चुप-चाप चाटने में ही भलाई है, ऐसे भी पूरी चूत तो चटवा ही रही है. पेशाब वाले छेद को मुँह में भर कर चाटने लगा. चूत के भग्नाशे को भी अपनी जीभ से छेड़ते हुए चाट रहा था. पहले तो थोड़ा घिंन सा लगा था मगर फिर munna को भी मज़ा आने लगा. अब वो बड़े आराम से पूरी फुददी को चाट रहा था. दोनो हाथो से गुदाज चूतरों को मसलते हुए चूत का रस चख रहा था. images
उर्मिला देवी अब चुदास से भर चुकी थी "उफफफफफफफफफ्फ़…सीई बहुत…मज़ा…..हाई रीईईई तूने तो खुजली बढ़ा दी कंजरे…….अब तो फिर चुदवाना ही पड़ेगा…..भोसड़ी के लंड खड़ा है कि……." munna जल्दी से चूत पर से मुँह हटा कर बोला "ख खड़ा है मामी……एकद्ूम खड़ा हाईईईईईईईई"
"कैसे चोदना है…….चल छोड़ मैं खुद……"
"हाई नही मामी….इस बार…..मैं………"
"फिर आजा मा के लॉड……..जल्दी से…….बहुत खुजली हो……." कहते हुए उर्मिला देवी नीचे पलंग पर लेट गई. दोनो टांग घुटनो के पास से मोड़ कर जाँघ फैला दिया, चूत की फांको ने अपना मुँह खोल दिया था. munna लंड हाथ में लेकर जल्दी से दोनो जाँघो के बीच में आया और चूत पर लगा कर कमर को हल्का सा झटका दिया. लंड का सुपरा उर्मिला देवी की भोसड़ी में घुस गया. सुपरा घुसते ही उर्मिला देवी ने अपनी गांद उचका दी. मोटा पहाड़ी आलू जैसा सुपरा पूरा घुस चुका था. मामी की फुददी एकद्ूम गरम भट्टी की तरह थी. चूत की गर्मी को पाकर munna का लंड फनफना गया. उसने पानी छोड़ रही चूत में लंड को गांद तक का ज़ोर लगा कर ठेला. लंड कच से मामी की चूत में फिसलता चला गया.
कुँवारी लौडिया होती तो शायद रुकता, मगर यहा तो उर्मिला देवी की सैकड़ो बार चुदी चूत थी, जिसकी दीवारो ने आराम से रास्ता दे दिया. उर्मिला देवी को लगा जैसे किसी ने उसकी चूत में मोटा लोहे का डंडा गरम करके डाल दिया. लंड चूत के आख़िरी कोने तक पहुच कर ठोकर मार रहा था.
"उफफफफ्फ़..हरामी आराम से नही डाल सकता था…….एक बार में पुर्र्रराआआअ….."
आवाज़ गले में ही घुट गई क्योंकि ठर्की munna अब नही रुकने वाला था. गांद उच्छाल उच्छाल कर पका-पक लंड पेले जा रहा था. मामी की बातो को सुन कर भी उनसुनी कर दी. मन ही मन उर्मिला देवी को ग़ाली दे रहा था…साली, कुतिया इतना नाटक करवाया है…….बेहन की लॉडी ने…..अब इसकी बातो को सुन ने का मतलब है फिर कोई नया नाटक खड़ा कर देगी……जो होगा बाद में देखूँगा……पहले लंड का माल इसकी चूत में निकाल दू…….सोचते हुए दना-डन गांद उच्छाल-उच्छाल कर पूरे लंड को सुपरे तक खींच चूत में डाल रहा था. कुच्छ ही देर में चूत की दीवारो से पानी का सैलाब बहने लगा. लंड अब सटा-सॅट फुच फुच की आवाज़ करते हुए अंदर बाहर हो रहा था. उर्मिला देवी भी बेपनाह मज़े में डूब गई. munna के चेहरे को अपने हाथो से पकड़ उसके होंठो को चूम रही थी, munna भी कभी होंठो कभी गालो को चूमते हुए चोद रहा था. उर्मिला देवी के मुँह से सिसकारिया निकल रही थी…
"सेसिईईईईईई……आईईईईईई…और ज़ोर सीईईईई राजू…….उफफफफफ्फ़ बहुत मज़ा आआअक्कककककक…….फ़ाआआअर दीईईगाआआअ…..उफफफफफफ्फ़ मधर्च….."
"उफफफफफफ्फ़ मामी बहुत मज़ा आ रहा हाईईईईईईई……."
"हा munna बहुत मज़ा आ रहा है…….ऐसे ही धक्के मार….बहुत मज़ा दे रहाहै तेरा हथियार……हाई सीईई चोद्द्द….अपने घोड़े जैसे……लंड सेयीई"
तभी munna ने दोनो चुचियों को हाथो में भर लिया और खूब कस कर दबाते हुए एक चुचि को मुँह में भर लिया और धीरे धीरे गांद उच्छालने लगा. उर्मिला देवी को अच्छा तो लगा मगर उसकी चूत पर तगड़े धक्के नही पड़ रहे थे.
"मादरचोड, रुकता क्यो है, दूध बाद में पीना पहले गांद तक का ज़ोर लगा के चोद"
"हाई मामी थोडा दम तो लेने दो…….पहली बार………"
"चुप हरामी…….गांद में दम नही……तो चोदने के लिए क्यों मर रहा था……..मामी की चूत में मज़ा नही आ रहा क्या……."
"ओह मामी मेरा तो सपना सच हो गयाआ…….हर रोज सोचता था कैसे आपको चोदु……आज…….मामी……..ओह मामी…….बहुत मज़ा आ रहा हाईईईईईईईईई…..बहुत गरम हाईईईईईई आपकी चूत"
"हा गरम और टाइट भी है…. चोदो….आह…..चोदो अपनी इस चुदासी मामी को ओह…..बहुत तडपी हू……….मोटा लंड खाने के लिए……तेरा मामा, बेहन का लंड तो बसस्स्सस्स……..तू……अब मेरे पास ही रहेगा…..तेरी मा चाहे गांद मरा ले मगर उसके पास नही भेजने वाली……यही पर अपनी जाँघो के बीच दबोच कर रखूँगी……"
"हा मामी अब तो मैं आपको छोड़ कर जाने वाला नहियीईईईई…….ओह मामी सच में चुदाई में कितना मज़ा है……गाओं में मा के पास कहा से ऐसा मज़ा मिलेगा…. मामी देखो ना कितने मज़े से मेरा लंड आपकी चूत में जा रहा और आप उस समय बेकार में चिल्ला….."
"भोसड़ी के लंड वाला है ना, तुझे क्या पता……..इतना मोटा लंड किसी कुँवारी लौंडिया में घुसा देता तो……अब तक बेहोश…..मेरे जैसी चूत्मरानि औरत को भी एक बार………बहुत मस्त लंड है ऐसे ही पूरा जड़ तक थेल थेल कर चोद आआआआ……..सीईईई बहनचोद्द्द्द्दद्ड….तू तो पूरा खिलाड़ी हो,,,,,"
लंड फॅक फॅक करता हुआ चूत के अंदर बाहर हो रहा था. उर्मिला देवी गांद उच्छाल उच्छाल कर लंड ले रही थी. उसकी बहकी हुई चूत को मोटे 10 इंच के लंड का सहारा मिल गया था. चूत इतरा-इतरा कर लंड लील रही थी. munna का लंड पूरा बाहर तक निकल जाता था और फिर कच से चूत के गुलाबी दीवारो को रौन्द्ता हुआ सीधा जड़ तक ठोकर मारता था. दोनो अब हाँफ रहे थे. चुदाई की रफ़्तार में बहुत ज़यादा तेज़ी आ गई थी. चूत की नैया अब किनारा खोज रही थी. उर्मिला देवी ने अपने पैरो को राजू के कमर के इर्द गिर्द लपेट दिया था और गांद उच्छालते हुए सिसकते हुए बोली "ओह सीई राजा अब मेरा निकल जाएगा………ज़ोर ज़ोर से चोद……पेलता रह……तेरी मा को चोदु……मार ज़ोर सीई…….निकाल दे अपना माआआल्ल अपनी मामी की चूत के अंदर……..ओह ओह"
"ही ममिीईई मेरा भी निकलेगा सीईईई तुम्हारी बूऊऊररररर में डाल दूंगाआआअ……मेरे लंड कययाया पनीईईई……..ओह ममिीईईईईई….हीईीई……मामी चूत्मरानि……उफफफफफफफ्फ़."
"ही मैं गैिईईईईईईईईईई ओह आआअहहााआ सीईए" करते हुए उर्मिला देवी ने राजू को अपनी ��ाहों में कस लिया, उसकी चूत ने बहुत सारा पानी छ्चोड़ दिया. munna के लंड से तेज फ़ौव्वारे की तरह से पानी निकलने लगा. उसकी कमर ने एक तेज झटका खाया और लंड को पूरा चूत के अंदर पेल कर वो भी हान्फ्ते हुए ओह करते हुए झरने लगा. लंड ने चूत की दीवारो को अपने पानी से सारॉबार कर दिया. दोनो मामी भांजा एक दूसरे से पूरी तरह से लिपट गये. दोनो पसीने से तर-बतर एक दूसरे की बाहों में खोए हुए बेशुध हो गये.
करीब पाँच मिनिट तक इसी अवस्था में रहने के बाद जैसे उर्मिला देवी को होश आया उसने munna को कंधो के पास से पकड़ कर हिलाते हुए उठाया "munna उठ…मेरे उपर ही सोएगा क्या". munna जैसे ही उठा पक की आवाज़ करते हुए उसका मोटा लंड चूत में से निकल गया. वो अपनी मामी के बगल में ही लेट गया. उर्मिला देवी ने अपने पेटिकोट से अपनी चूत पर लगे पानी कोपोच्छा और उठ कर अपनी चूत को देखा तो उसकी की हालत को देख कर उसको हसी आ गई. चूत का मुँह अभी भी थोडा सा खुला हुआ था. उर्मिला देवी समझ गई की munna के हाथ भर के लंड ने उसकी चूत को पूरा फैला दिया है. अब उसकी चूत सच में भोसड़ा बन चुकी है और वो खुद भोस्डेवाली. माथे पर छलक आए पसीने को वही रखे टवल से पोच्छने के बाद उसी टवल से munna के लंड को बड़े पायर से साफ कर दिया. राजू मामी को देख रहा था. उर्मिला देवी की नज़रे जब उस से मिली तो वो उसके पास सरक गई और munna के माथे का पसीना पोछ कर पुचछा "मज़ा आया….." munna ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया "हा मामी…..बहुत". अभी ठीक 5 मिनिट पहले रंडी के जैसे गाली गलौज़ करने वाली बड़े प्यार से बाते कर रही थी.
"थक गया क्या……..सो जा, पहली बार में ही तूने आज इतनी जबरदस्त मेहनत की है जितनी तेरे मामा ने सुहाग रात को नही की होगी" राजू को उठ ता देख बोली "कहा जा रहा है"
"अभी आया मामी…..बहुत ज़ोर की पेशाब लगी है"
"ठीक है मैं तो सोने जा रही हू…….अगर मेरे पास सोना होगा तो यही सो जाना नही तो अपने कमरे में चले जाना…….केवल जाते समय लाइट ऑफ कर देना"
पेशाब करने के बाद munna ने मामी के कमरे की लाइट ऑफ की और दरवाज़ा खींच कर अपने कमरे में चला. उर्मिला देवी तुरंत सो गई, उन्होने इस ओर ध्यान भी नही दिया. अपने कमरे में पहुच munna धड़ाम से बिस्तर पर गिर पड़ा उसे ज़रा भी होश नही था.
सुबह करीब सात बजे के उर्मिला देवी की नींद खुली. जब अपने नंगेपन का अहसास हुआ तो पास में पड़ी चादर खींच ली. अभी उसका उठने का मन नही था. बंद आँखो के नीचे रात की कहानी याद कर उनके होंठो पर हल्की मुस्कुराहट फैल गई. सारा बदन गुद-गुदा गया. बीती रात जो मज़ा आया वो कभी ना भूलने वाला था. ये सब सोच कर ह��� उसके गालो में गड्ढे पड़ गये की उसने munna के मुँह पर अपना एक बूँद पेशाब भी कर दिया था. उसके रंगीन सपने साकार होते नज़र आ रहे थे. उपर से उर्मिला देवी भले ही कितनी भी सीधी साधी और हासमुख दिखती थी अंदर से वो बहुत ही कामुक कुत्सित औरत थी. उसके अंदर की इस कामुकता को उभारने वाली उसकी सहेली हेमा शर्मा थी. जो अब उर्मिला देवी की तरह ही एक शादी शुदा औरत थी और उन्ही के शहर में रहती थी. हेमा, उर्मिला देवी के कॉलेज के जमाने की सहेली थी. कॉलेज में ही जब उर्मिला देवी ने जवानी की दहलीज़ पर पहला कदम रखा था तभी उनकी इस सहेली ने जो हर रोज अपने चाचा-चाची की चुदाई देखती थी उनके अंदर काम वासना की आग भड़का दी. फिर दोनो शहेलिया एक दूसरे के साथ लिपटा चिपटि कर तरह-तरह के कुतेव करती थी, गंदी-गंदी किताबे पढ़ती थीउनकी सबसे पहली पसंद राज शर्मा की सेक्सीकहानियाँ थी और शादी के बाद अपने पतियों के साथ मस्ती करने के सपने देखा करती. हेमा का तो पता नही मगर उर्मिला देवी की किस्मत में एक सीधा साधा पति लिखा था जिसके साथ कुच्छ दीनो तक तो उन्हे बहुत मज़ा आया मगर बाद में सब एक जैसा हो गया. और जब से लड़की थोड़ी बड़ी हो गई munna का मामा हफ्ते में एक बार नियम से उर्मिला देवी की साड़ी उठाता लंड डालता डाकम पेल करता और फिर सो जाता. उर्मिला देवी का गदराया बदन कुच्छ नया माँगता था. वो बाल-बच्चे घर परिवार सब से निसचिंत हो गई थी सब कुच्छ अपनी रुटीन अवस्था में चल रहा था. ऐसे में उसके पास करने धरने के लिए कुच्छ नही था और उसकी कामुकता अपने उफान पर आ चुकी थी. अगर पति का साथ मिल जाता तो फिर…… मगर उर्मिला देवी की किस्मत ने धोखा दे दिया. मन की कामुक भावनाओ को बहुत ज़यादा दबाने के कारण, कोमल भावनाए कुत्सित भावनाओ में बदल गई थी. अब वो अपने इस नये यार के साथ तरह-तरह के कुतेव करते हुए मज़ा लूटना चाहती थी.
गाँव का राजा पार्ट -7 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
आठ बजने पर बिस्तर छोड़ा और भाग कर बाथरूम में गई कमोड पर जब बैठी और चूत से पेशाब की धारा निकलने लगी तो रात की बात फिर से याद आ गई और चेहरा शर्म और मज़े की लाली से भर गया. अपनी चुदी चूत को देखते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान खेल गई कि कैसे रात में munna के मुँह पर उन्होने अपनी चूत को रगड़ा था और कैसे लौडे को तडपा तडपा कर अपनी चूत की चटनी चटाई थी. नहा धो कर फ्रेश हो कर निकलते निकलते 9 बज गये, जल्दी से munna को उठाने उसके कमरे में गई तो देखा लौंडा बेसूध होकर सो रहा है. थोड़ा सा पानी उसके चेहरे पर डाल दिया. munna एक दम से हर्बाड़ा उठ ता हुआ बोला "पेस्सशाब….मत…..". आँखे खोली तो सामने मामी खड़ी थी. वो समझ गई कि राजू शायद रात की बातो को सपने में देख रहा था और पानी गिरने पर उसे लगा शायद मामी ने उसके मुँह मैं पिशाबफिर से कर दिया. munna आँखे फाडे उर्मिला देवी को देख रहा था.
"अब उठ भी जाओ ….9 बज गये अभी रात के ख्वाबो में डूबे हो के"…..फिर उसके शॉर्ट्स के उपर से लंड पर एक थपकी मारती हुई बोली "चल जल्दी से फ्रेश हो जा"
उर्मिला देवी किचन में नाश्ता तैयार कर रही थी.
बाथरूम से munna अभी भी नही निकला था.
"आरे जल्दी कर…..नाश्ता तैय्यार है…….इतनी देर क्यों लगा रहा है बेटा…"
ये मामी भी अजीब है. अभी बेटा और रात में क्या मस्त छिनाल बनी हुई थी. पर जो भी हो बड़ा मज़ा आया था. नाश्ते के बाद एक बार चुदाई करूँगा तब कही जाउन्गा. ऐसा सोच कर munna बाथरूम से बाहर आया तो देखा मामी डाइनिंग टेबल पर बैठ चुकी थी. munna भी जल्दी से बैठ गया नाश्ता करने लगा. कुच्छ देर बाद उसे लगा जैसे उसके शॉर्ट्स पर ठीक लंड के उपर कुच्छ हरकत हुई. उसने मामी की ओर देखा, उर्मिला देवी हल्के हल्के मुस्कुरा रही थी. नीचे देखा तो मामी अपने पैरो के तलवे से उसके लंड को छेड रही थी. munna भी हँस पड़ा और उसने मामी के कोमल पैर अपने हाथो से पकड़ कर उनके तलवे ठीक अपने लंड के उपर रख दोनो जाँघो के बीच जाकड लिया. दोनो मामी भानजे हँस पड़े. munna ने जल्दी जल्दी ब्रेड के टुकड़ो को मुँह में ठुसा और हाथो से मामी के तलवे को सहलाते हुए धीरे धीरे उनकी साड़ी को घुटनो तक उपर कर दिया. munna का लंड फनफना गया था. उर्मिला देवी लंड को तलवे से हल्के हल्के दबा रही. munna ने अपने आप को कुर्सी पर अड्जस्ट कर अपने हाथो को लंबा कर साड़ी के अंदर और आगे की तरफ घुसा कर जाँघो को छुते हुए सहलाने की कोशिश की. उर्मिला देवी ने हस्ते हुए कहा "उईइ क्या कर रहा….कहा हाथ ले जा रहा है……"
"कोशिश कर रहा हू कम से कम उसको छु लू जिसको कल रात आपने बहुत तडपाया था छुने के लिए…."
"अच्छा बहुत बोल रहा है…..रात में तो मामी..मामी कर रहा था"
" कल रात में तो आप एकदम अलग तरह से बिहेव कर रही थी"
"शैतान तेरे कहने का क्या मतलब कल रात तेरी मामी नही थी तब"
"नही मामी तो आप मेरी सदा रहोगी तब भी अब भी मगर…."
"तो रात वाली मामी अच्छी थी या अभी वाली मामी…"
"मुझे तो दोनो अच्छी लगती है…पर अभी ज़रा रात वाली मामी की याद आ रही है" कहते हुए munna कुर्सी सेनीचे खिसक गया और जब तक उर्मिला देवी "रुक क्या कर रहा है" कहते हुए रोक पाती वो डिनाइनिंग टेबल के नीचे घुस चुका था और उर्मिला देवी के तलवो और पिंदलियो कोचाटने लगा था. उर्मिला देवी के मुँह सिसकारी निकल गई वो भी सुबह से गरम हो चुकी थी.
"ओये……क्या कर रहा है….नाश्ता तो कर लेने दे….."
"पुच्च पुच्च….ओह तुम नाश्ता करो मामी……मुझे अपना नाश्ता कर लेने दो"
"उफ़फ्फ़……मुझे बाज़ार जाना है अभीईइ छोड़ दे…..बाद मीएइन्न……." उर्मिला देवी की आवाज़ उनके गले में ही रह गई. munna अब तक साड़ी को जाँघो से उपर तक उठा कर उनके बीच घुस चुक्का था. मामी ने आज लाल रंग की पॅंटी पहन रखी थी. नहाने कारण उक्नकि स्किन चमकीली और मक्खन के जैसी गोरी लग रही थी और भीनी भीनी सुगंध आ रही थी. munna गदराई गोरी जाँघो पर पप्पी लेता हुआ आगे बढ़ा और पॅंटी उपर एक जोरदार चुम्मि ली. उर्मिला देवी ने मुँह से "आउच….इसस्स क्या कर रहा है" निकला. images
"ममीईइ…मुझे भी टुशण जाना है……पर अभी तो तुम्हारा फ्रूट जूस पी कर हीईइ…." कहते हुए munna ने पूरी चूत को पॅंटी के उपर से अपने मुँह भर कर ज़ोर से चूसा.
"इसस्सस्स…….एक ही दिन में ही उस्ताद…बन गया हॅयियी….चूत का पानी फ्रूट जूस लगता हाईईईईईईईई……..उफफफ्फ़ पॅंटी मत उतर्ररर……" मगर munna कहा मान ने वाला था. उसके दिल का डर तो कल रात में ही भाग गया था. जब वो उर्मिला देवी के बैठे रहने के कारण पॅंटी उतारने में असफल रहा तो उसने दोनो जाँघो को फैला कर चूत को ढकने वाली पट्टी के किनारे को पकड़ कर खींचा और चूत नंगी कर उस पर अपना मुँह लगा दिया.
chut से आती भीनी-भीनी खुसबु को अपनी सांसोमैं भरता हुआ जीभ निकाल चूत के भग्नासे को भूखे भेड़िए की तरह काटने लगा. फिर तो उर्मिला देवी ने भी हथियार डाल दिए और सुबह-सुबह ब्रेकफास्ट में चूत चुसाइ का मज़ा लेने लगी. उनके मुँह से सिसकारियाँ फूटने लगी. कब उन्होने कुर्सी पर से अपनी गांद उठाई, कब पॅंटी निकाली और कब उनकी जंघे फैल गई इसका उन्हे पता भी ना चला. उन्हे तो बस इतना पता था उनकी फैली हुई चूत के मोटे मोटे होंठो के बीच munna की जीभ घुस कर उनके चूत की चुदाई कर रही थी और उनके दूनो हाथ उसके सिर के बालो में घूम रहे थे और उसके सिर को जितना हो सके अपनी चूत पर दबा रहे थे.
थोरी देर की चुसाइ चटाई में ही उर्मिला देवी पस्त होकर झार गई और आँख मुन्दे वही कुर्सी पर बैठी रही. munna भी चूत के पानी को पी अपने होंठो पर जीभ फेरता जब डाइनिंग टेबल के नीचे से बाहर निकला तब उर्मिला देवी उसको देख मुस्कुरा दी और खुद ही अपना हाथ बढ़ा उसके शॉर्ट्स को ��रका कर घुटनो तक कर दिया.
"सुबह सुबह तूने….ये क्या कर दिया …" कहते हुए उसके लंड पर मूठ लगाने लगी.
"ओह मामी मूठ मत लगाओ ना….चलो बेडरूम में डालूँगा."
"नही कपड़े खराब हो जाएँगे…चूस कर निकाल….." और गप से लंड के सुपरे को अपने गुलाबी होंठो के बीच दबोच लिया. होंठो को आगे पिछे करते हुए लंड को चूसने लगी. munna मामी के सिर को अपने हाथो से पकड़ हल्के हल्के कमर को आगे पिछे करने लगा.
तभी उसके दिमाग़ में आया की क्यों ना पिछे से लंड डाला जाए कपड़े भी खराब नही होंगे.
"मामी पिछे से डालु….कपड़े खराब नही होंगे.."
लंड पर से अपने होंठो को हटा उसके लंड को मुठियाते हुए बोली "नही बहुत टाइम लग जाएगा…रात में पिछे से डालना" munna ने उर्मिला देवी के कंधो को पकड़ कर उठाते हुए कहा "प्लीज़ मामी……उठो ना चलो उठो….."
"अर्रे नही बाबा…….मुझे मार्केट भी जाना है…..ऐसे ही देर हो गई है…."
"ज़यादा देर नही लगेगी बस दो मिनिट…."
"अर्रे नही तू छोड़ दे मेरा काम तो वैसे भी हो….."
"क्या मामी……..थोड़ा तो रहम करो…..हर समय क्यों तड़पाती हो…"
"तू मानेगा नही….."
"ना, बस दो मिनिट दे दो……."
"ठीक है दो मिनिट में नही निकला तो खुद अपने हाथ से करना…..मैं ना रुकने वाली"
उर्मिला देवी उठ कर डाइनिंग टेबल के सहारे अपने चूतरो को उभार कर घोड़ी बन गई. munna पिछे आया और जल्दी से उसने मामी की सारी को उठा कर कमर पर कर दिया. पॅंटी तो पहले ही खुल चुकी थी. उर्मिला देवी की मक्खन मलाई सी चमचमाती गोरी गांद munna की आँखो के सामने आ गई.
उसके होश फाख्ता हो गये. ऐसे खूबसूरत चूतर तो सायद उन अँग्रेजानो की भी नही थे जिनको उसने अँग्रेज़ी फ़िल्मो में देखा था. उर्मिला देवी अपने चूतरो को हिलाते हुए बोली "क्या कर रहा है जल्दी कर देर हो रही है….". चूतर हिलने पर थल थाला गये. एक दम गुदाज और मांसल चूतर और उनके बीच खाई. राजू का लंड फुफ्कार उठा.
"मामी…..आपने रात में अपना ये तो दिखाया ही नही……अफ कितना सुंदर है मामी….
"जो भी देखना है रात में देखना पहली रात में क्या तुझ से गांद भी………तुझे जो करना है जल्दी कार्ररर……
ओह सीईई मामी मैं हमेशा सोचता था आप का पिच्छवाड़ा कैसा होगा. जब आप चलती थी और आपके दोनो चूतर जब हिलते थे तो दिल करता था कि उनमे अपने मुँह को घुसा कर रगड़ दू……..उफफफफ्फ़"
"ओह हूऊऊऊ……..जल्दी कर ना"….कह कर चूतरो को फिर से हिलाया.
"चूतर पर एक चुम्मा ले लू….."
"ओह हो एक दम कमीना है तू…….जो भी करना है जल्दी कर नही तो मैं जा रही हू…"
munna तेज़ी के साथ नीचे झुका और पुच पुच करते हुए चूतरो को चूमने लगा.
दोनो मांसल चूतरो को अपनी मुट्ठी में ले कर मसल्ते हुए चूमते हुए चाटने लगा. उर्मिला देवी का बदन भी सिहर उठा. बिना कुच्छ बोले उन्होने अपनी टाँगे और फैला दी. munna ने दोनो चूतरो को फैला दिया और उसके बीच की खाई में भूरे रंग की मामी की गोल सिकुड़ी हुई गांद का छेद नज़र आ गया. दोनो चूतरो के बीच की खाई में जैसे ही राजू ने हल्के से अपनी जीभ चलाई. उर्मिला देवी के पैर कांप उठे. उसने कभी सोचा भी नही था की उसका ये भांजा इतनी जल्दी तरक्की करेगा. munna ने देखा की चूतरो के बीच जीभ फ़िराने से गांद का छेद अपने आप हल्के हल्के फैलने और सिकुड़ने लगा और मामी के पैर हल्के-हल्के थर-थारा रहे थे.
"ओह मामी आपकी गांद कितनी…….उफफफफफफ्फ़ कैसी खुसबु है…प्यूच"
इस बार उसने जीभ को पूरी खाई में उपर से नीचे तक चलाया और गांद के सिकुदे हुए छेद के पास ला कर जीभ को रोक दिया और कुरेदने लगा. उर्मिला देवी के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई. उसने कभी सपने में भी नही सोचा था की घर में बैठे बिठाए उसकी गांद चाटने वाला मिल जाएगा. मारे उत्तेजना के उसके मुँह से आवाज़ नही निकल रही थी. गु गु की आवाज़ करते हुए अपने एक हाथ को पिछे ले जा कर अपना चूतरो को खींच कर फैलाया. munna समझ गया था कि मामी को मज़ा आ रहा है और अब समय की कोई चिंता नही. उसने गांद के छेद के ठीक पास में दोनो तरफ अपने दोनो अंगूठे लगाए और छेद को चौड़ा कर जीभ नुकीली कर पेल दी. गांद की छेद में जीभ चलाते हुए चूतरो पर हल्के हल्के दाँत भी गढ़ा देता था. गांद की गुदगुदी ने मामी को एकद्ूम बेहाल कर दिया था. उनके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी "ओह munna क्या कर रहा है…..बेटा…..उफफफफफफफ्फ़……मुझे तो लगता था तुझे कुच्छ भी नही…..पगले सस्स्स्स्सीईए उफफफफफफ्फ़ गान्ड चाटता रह हाईईईईईईई…….मेरी तो समझ में नहियीईई………". समझ में तो munna की भी कुच्छ नही आ रहा था मगर गांद पर चुम्मिया काट ते हुए बोला
"पुच्च पुच्च…मामी सीईए….मेरा दिल तो आपके हर अंग को चूमने और चाटने को करता है…..आप इतनी खूबसूरत हो…मुझे नही पता गांद चाटी जाती है या नहीइ…हो सकता है नही चाती जाती होगी मगर…..मैं नही रुक सकता…..मैं तो इसको चुमूंगा और चाट कर खा जाउन्गा जैसे आपकी चूत….."
"सीईई…..एक दिन में ही तू कहा से कहा पहुच गया…..उफफफ्फ़ तुझे अपनी मामी की गांद इतनी पसंद है तो चाट….चूम……उफफफफफ्फ़ सीईई munna बेटा……बात मत कर…मैं सब समझती हू…….तू जो भी करना चाहता है करता रह…..कुत्तीई…गांद में ऐसे ही जीभ पेल कर चातत्तटटटटटतत्त."
munna समझ गया कि रात वाली छिनाल मामी फिर से वापस आ गई है. वो एक पल को रुक गया अपनी जीभ को आराम देने के लिए मगर उर्मिला देवी को देरी बर्दाश्त नही हुई. पीछे पलट कर munna के सिर को दबाती हुई बोली "अफ रुक मत…….जल्दी जल्दी चाट.." मगर munna भी उसको तड़पाना चाहता था. उर्मिला देवी पिछे घूमी और munna को उसके टी-शर्ट के कॉलर से पकड़ कर खींचती हुई डाइनिंग टेबल पर पटक दिया. उसके नथुने फूल रहे थे, चेहरा लाल हो गया था. munna को गर्दन के पास से पकड़ उसके होंठो को अपने होंठो से सटा खूब ज़ोर से चुम्मा लिया. इतनी ज़ोर से जैसे उसके होंठो को काट खाना चाहती हो और फिर उसकी गाल पर दाँत गढ़ा कर काट लिया. munna ने भी मामी के गालो को अपने दांतो से काट लिया. "अफ कामीने निशान पर जाएगा…..रुकता क्यों है….जल्दी कर नही तो बहुत गाली सुनेगा….और रात के जैसा चोद दूँगी" munna उठ कर बैठता हुआ बोला "जितनी गालियाँ देनी है दे दो…." और चूतर पर कस कर दाँत गढ़ा कर काट लिया. images
"उफफफफ्फ़….हरामी गाली सुन ने में मज़ा आता है तुझे…….."
munna कुच्छ नही बोला, गांद की चुम्मियाँ लेता रहा "…आ ह पुछ पुच्छ." उर्मिला देवी समझ गई की इस कम उमर में ही छोकरा रसिया बन गया है.
चूत के भज्नाशे को अपनी उंगली रगड़ कर दो उंगलियों को कच से चूत में पेल दिया चूत एक दम पासीज कर पानी छोड़ रही थी. चूत के पानी को उंगलियों में ले कर पिछे मुड़ कर munna के मुँह के पास ले गई जो की गांद चाटने में मसगूल था और अपनी गांद और उसके मुँह के बीच उंगली घुसा कर पानी को रगड़ दिया. कुच्छ पानी गांद पर लगा कुच्छ munna के मुँह पर.
"देख कितना पानी छ्चोड़ रही है चूत अब जल्दी कार्रर्र्र्ररर …."
पानी छोड़ती चूत का इलाज़ munna ने अपना मुँह चूत पर लगा कर किया. चूत में जीभ पेल कर चारो तरफ घूमाते हुए चाटने लगा.
"ये क्या कर रहा है सुअर्रर…….खाली चाट ता ही रहेगा क्या… मदर्चोद.उफ़फ्फ़ चाट गांद चूत सब चाट लीईए……..भोसड़ी के……..लंड तो तेरा सुख गया है नाआअ…..हरामी….गांद खा के पेट भर और चूत का पानी पीईए ……..ऐसे ही फिर से झार गई तो हाथ में लंड ले के घुम्नाआ……"
अब munna से भी नही रहा जा रहा था जल्दी से उठ कर लंड को चूत के पनियाए छेद पर लगा ढ़ाचक से घुसेड दिया. उर्मिला देवी का बॅलेन्स बिगड़ गया और टेबल पर ही गिर पड़ी, चिल्लाते हुए बोली "हराम्जादे बोल नही सकता था क्या……..तेरी मा की ���ूत में घोड़े का लंड……गांदमरे…..आराम सीईई"
पर munnaने संभालने का मौका नही दिया. ढ़ाचा ढ़च लंड पेलता रहा. पानी से सारॉबार चूत ने कोई रुकावट नही पैदा की. दोनो चूतरो के मोटे मोटे माँस को पकड़े हुए गाप-गप लंड डाल कर उर्मिला देवी को अपने धक्को की रफ़्तार से पूरा हिला दिया था उसने. उर्मिला देवी मज़े से सिसकारिया लेते हुए चूत में गांद उचका उचका कर लंड लील रही थी. फ़च फच की आवाज़ एक बार फिर गूँज उठी थी. जाँघ से जाँघ और चूतर टकराने से पटक-पटक की आवाज़ भी निकल रही. दोनो के पैर उत्तेजना के मारे कांप रहे थे.
"पेलता रह….और ज़ोर से माआआअरर…बेटा मार…..फाड़ दे चूत….मामी को बहुत मज़ा दे रहा हाईईईई……..ओह चोद……देख री मेरी ननद तूने कैसा लाल पैदा किया है……तेरे भाई का काम कर रहा है…आईईईईईईईई..फ़ाआआआद दियाआआआअ सल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लीई ने"
"ओह मामी आअज्जजज्ज आपकी चूत….सीईईईईईईईई…मन कर रहा इसी में लंड डाले….ओह…..सीईईई मेरे मामा की लुगाई…….सीईइ बस ऐसे ही हमेशा मेरा लंड लेती….."
"हाई चोद…..बहुत मज़ा……सेईईईईईई गांड्चतु….. तू ने तो मेरी जवानी पर जादू कर दिया..."
"हाई मामी ऐसे ही गांद हिला-हिला के लॉडा लो……..सीईईईईई, जादू तो तुमने किया हाईईईई....अहसान किया है…..इतनी हसीन चूत मेरे लंड के हवाले करके…..पक पाक….लो मामी…ऐसे ही गांद नचा-नचा के मेरा लंड अपनी चूत में दबोचो…….सीईईईईईई"
"....रंडी की औलाद ....अपनी मा को चोद रहा है कि मामी को....ज़ोर लगा के चोद ना भोसड़ी के……..देख..देख तेरा लंड गया तेरी मा की चूत में... डाल साला…पेल साले ....पेल अपनी मा की चूत में.....रंडी बना दे मुझे....चोद अपनी मामी की चूत....रंडी की औलाद..... साला .....मादर्चोद".... .फ़च.... फ़च....फ़च... और एक झटके के साथ उर्मिला देवी का बदन अकड़ गया.."ओह ओह सीईए गई मैं गई करती हुई डाइनिंग टेबल पर सिर रख दिया.
झरती हुई चूत ने जैसे ही munna के लंड को दबोचा उसके लंड ने भी पिचकारी छोड़ दी फॅक फॅक करता हुआ लंड का पानी चूत के पसीने से मिल गया. दोनो पसीने से तर बतर हो चुके थे. munna उर्मिला देवी की पीठ पर निढाल हो कर पड़ गया था. दोनो गहरी गहरी साँसे ले रहे थे. जबरदस्त चुदाई के कारण दोनो के पैर काप रहे थे. एक दूसरे का भार संभालने में असमर्थ. धीरे से munna मामी की पीठ पर से उतर गया और उर्मिला देवी ने अपनी साड़ी नीचे की और साड़ी के पल्लू से पसीना पोछती हुई सीधी खड़ी हो गई. वो अभी भी हाँफ रही थी. munna पास में परे टवल से लंड पोछ रहा था. munna के गालो को चुटकी में भर मसलते हुए बोली
"कामीने…..अब संतुष्टि मिल गई…..पूरा टाइम खराब कर दिया और कपड़े भी…"
"पर मामी मज़ा भी तो आया…सुबह सुबह कभी मामा के साथ ऐसे मज़ा लिया…" मामी को बाँहो में भर लिपट ते हुए munna बोला. उर्मिला देवी ने उसको परे धकेला "चल हट ज़यादा लाड़ मत दिखा तेरे मामा अच्छे आदमी है. मैं पहले आराम करूँगी फिर मार्केट जाउन्गी और खबरदार जो मेरे कमरे में आया तो, तुझे टुशण जाना होगा तो चले जाना.."
गाँव का राजा पार्ट -8 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
"ओके मामी…..पहले थोडा आराम करूँगा ज़रा" बोलता हुआ munna अपने कमरे में और उर्मिला देवी बाथरूम में घुस गई. थोडी देर खाट पाट की आवाज़ आने के बाद फिर शांति छा गई.munna यू ही बेड पर पड़ा सोचता रहा कि सच में मामी कितनी मस्त औरत है और कितनी मस्ती से मज़ा देती है. उनको जैसे सब कुच्छ पता है कि किस बात से मज़ा आएगा और कैसे आएगा. रात में कितना गंदा बोल रही थी….मुँह में मूत दूँगी….ये सोच कर ही लंड खड़ा हो जाता है मगर ऐसा कुच्छ नही हुआ चुदवाने के बाद भी वो पेशाब करने कहाँ गई, हो सकता है बाद में गई हो मगर चुदवाते से समय ऐसे बोल रही थी जैसे……शायद ये सब मेरे और अपने मज़े को बढ़ाने के लिए किया होगा. सोचते सोचते थोड़ी देर में munna को झपकी आ गई. एक घंटे बाद जब उठा तो मामी जा चुकी थी वो भी तैय्यार हो कर टुशन पढ़ने चला गया. दिन इसी तरह गुजर गया. शाम में घर आने पर दोनो एक दूसरे को देख इतने खुश लग रहे थे जैसे कितने दीनो बाद मिले हो. फिर तो खाना पीना हुआ और उस दिन रात में दो बार ऐसी भयंकर चुदाई हुई कि दोनो के कस बल ढीले पद गये. दोनो जब भी झरने को होते चुदाई बंद कर देते. रुक जाते और फिर दुबारा दुगुने जोश से जुट जाते. munna भी खुल गया. खूब गंदी गंदी बाते की. मामी को रंडी…..चूत्मरनि…….बेहन की लॉडी कहता और वो खूब खुस हो कर उसे गांडमरा…हरामी…….रंडी की औलाद कहती. उर्मिला देवी के शरीर का हर एक भाग थूक से भीग जाता और चूतरों चुचियों और जाँघो पर तो munna ने दाँत के निशान पड़ जाते. उसी तरह से munna के कमसिन गाल, पीठ और छाती पर भी उर्मिला देवी के दांतो और नाख़ून का निशान बनते थे.
घर में तो कोई था नही खुल्लम खुल्ला जहा मर्ज़ी वही चुदाई शुरू कर देते थे दोनो. मामी को गोद में बैठा कर टीवी देखता था. किचन में उर्मिला देवी बिना शलवार के केवल लंबा वाला समीज़ पहन कर खाना बनाती
और munna से समीज़ उठा कर दोनो जाँघो के बीच बैठा चूत चत्वाती. चूत में केला डाल कर उसको धीरे धीरे करके खिलाती. अपनी बेटी की फ्रॉक पहन कर डाइनिंग टेबल के उपर एक पैर घुटनो के पास से मोड़ कर बैठ जाती और munna को सामने बिठा कर अपनी नंगी चूत दिखाती और दोनो नाश्ता करते. images
munna कभी उंगली तो कभी चम्मच घुसा देता मगर उनको तो इस सब में मज़ा आता था. munna का लंड खड़ा कर उस पर अपना दुपट्टा कस कर बाँध देती थी. उसको लगता जैसे लंड फट जाएगा मगर गांद चटवाती रहती थी और चोदने नही देती. दोनो जब चुदाई करते करते थक जाते तो एक ही बेड पर नंग धड़ंग सो जाते.
कुच्छ दीनो में munna एक्सपर्ट चोदु बन गया था. जब मामा और ममेरी बहन घर आ गये तो दोनो दिन में मौका खोज लेते और छुट्टी वाले दिन कार लेकर सहर से थोरी दूरी पर बने फार्म हाउस पर काम करवाने के बहाने निकल जाते. जब भी जाते काजल को भी बोलते चलो मगर वो तो सहर की पार्केटी लड़की थी मना कर देती. फिर दोनो फार्म हाउस में मस्ती करते. इसी तरह से munna के दिन सुख से कट ते गये. और भी बहुत सारी घटनाए हुई बीच में मगर उन सबको बाद में बताउन्गा. तो ये थी मुन्ना बाबू के ट्रैनिंग की कहानी. मुन्ना को उसकी मामी ने पूरा बिगाड़ दिया.
खैर हमे क्या हम वापस गाओं लौट ते है. देखते है वाहा क्या गुल खिल रहे है. तो दोस्तो कैसी लगी मामी भानजे की मस्ती
अपनी मा और आया को देखने के दो तीन दिन बाद तक मुन्ना बाबू को कोई होश नही था. इधर उधर पगलाए घूमते रहते थे. हर समय दिमाग़ में वही चलता रहता. घर में भी वो शीला देवी से नज़रे चुराने लगे थे. जब शीला देवी इधर उधर देख रही होती तो उसको निहारते. हालाँकि कई बार दिमाग़ में आता कि अपनी मा को देखना बड़ी कंज़रफी की बात है मगर जिसकी ट्रैनिंग ही मामी से हुई उस लड़के के दिमाग़ में ज़यादा देर ये बात टिकने वाली नही थी. मन बार-बार शीला देवी के नशीले बदन को देखने के लिए ललचाता. उसको इस बात पर ताज्जुब होता कि इतने दीनो में उसकी नज़र शीला देवी पर कैसे नही पड़ी. तीन चार दिन बाद कुच्छ नॉर्मल होने पर मुन्ना ने सोचा कि हर औरत उसकी मामी जैसी तो हो नही सकती. फिर ये उसकी मा है और वो भी ऐसी कि ज़रा सा उन्च नीच होने पर चमड़ी उधेड़ के रख दे. इसलिए ज़यादा हाथ पैर चलाने की जगह अपने लंड के लिए गाओं में जुगाड़ खोजना ज़यादा ज़रूरी है. किस्मत में होगा तो मिल जाएगा.
मुन्ना ने गाओं की भौजी लाजवंती को तो चोद ही दिया था और उसकी ननद बसंती के मुममे दबाए थे मगर चोद नही पाया था. सीलबंद माल थी. आजतक किसी अनचुदी को नही चोदा था इसलिए मन में आरजू पैदा हो गई कि बसंती की लेते. बसंती, मुन्ना बाबू को देखते ही बिदक कर भाग जाती थी. हाथ ही नही आ रही थी. उसकी शादी हो चुकी ��ी मगर गौना नही हुआ था. मुन्ना बाबू के शैतानी दिमाग़ ने बताया कि बसंती की चूत का रास्ता लाजवंती के भोसड़े से होकर गुज़रता है. तो फिर उन्होने लाजवंती को पटाने की ठानी. एक दिन सुबह में जब लाजवंती लोटा हाथ में लिए लौट रही थी तभी उसको गन्ने के खेत के पास पकड़ा.
"क्या भौजी उस दिन के बाद से तो दिखना ही बंद हो गया तुम्हारा…" लाजवंती पहले तो थोड़ा चौंकी फिर जब देखा की आस पास कोई नही है तब मुस्कुराती हुई बोली "आप तो खुद ही गायब हो गये छ्होटे मलिक वादा कर के….."
"आरे नही रे, दो दिन से तो तुझे खोज रहा हू और हम चौधरी लोग जो वादा करते है निभाते भी है मुझे सब याद है"
"तो फिर लाओ मेरा इनाम……."
"ऐसे कैसे दे दे भौजी…इतनी हड़बड़ी भी ना दिखाओ…."
"अच्छा अभी मैं तेज़ी दिखा रही हू…..और उस दिन खेत में लेते समय तो बड़ी जल्दी में थे आप छ्होटे मलिक…आप सब मरद लोग एक जैसे ही हो"
मुन्ना ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर खींचा और कोने में ले खूब कस के गाल काट लिया. लाजवंती चीखी तो उसका मुँह दबाते हुए बोला "क्या करती हो भौजी चीखो मत सब मिलेगा….तेरी पायल मैं ले आया हू और बसंती के लिए लहनगा भी". मुन्ना ने चारा फेंका. लाजवंती चौंक गई "हाई मलिक बसंती के लिए क्यों….."
"उसको बोला था कि लहनगा दिलवा दूँगा सो ले आया." कह कर लाजवंती को एक हाथ से कमर के पास से पकड़ उसकी एक चुचि को बाए हाथ से दबाया. लाजवंती थोड़ा कसमसाती हुई मुन्ना की हाथ की पकड़ को ढीला करती हुई बोली "उस से कब बोला था आपने"
"आरे जलती क्यों है….उसी दिन खेत में बोला था जब तेरी चूत मारी थी" और अपना हाथ चुचि पर से हटा कर चूत पर रखा और हल्के से दबाया.
"अच्छा अब समझी तभी आप उस दिन वाहा खड़ा कर के खड़े थे और मुझे देख कर वो भाग गई और आपने मेरे उपर हाथ साफ कर लिया".
"एक दम ठीक समझी रानी…" और उसकी चूत को मुठ्ठी में भर कस कर दबाया. लाजवंती चिहुन्क गई. मुन्ना का हाथ हटा ती बोली "छोड़ो मलिक वो तो एकद्ूम कच्ची कली है". अचानक सुबह सुबह उसके रोकने का मतलब लाजवंती को तुरंत समझ में आ गया.
"अर्रे कहा की कच्ची कली मेरे उमर की तो है…"
"हा पर अनचुदी है…एकद्ूम सीलबॅंड….दो महीने बाद उसका गौना है"
"धात तेरे की बस दो महीने की मेहमान है तो फिर तो जल्दी कर भौजी कैसे भी जल्दी से दिलवा दे……." कह कर उसके होंठो पर चुम्मा लिया.
"उउउ हह छोड़ो कोई देख लेगा…पायल तो दिया नही और अब मेरी कोरी ननद भी माँग रहे हो….बड़े चालू हो छ्होटे मलिक"
लाजवंती को पूरा अपनी तरफ घुमा कर चिपका लिया और खड़ा लंड साड़ी के उपर से चूत पर रगड़ते हुए उसकी गांद की दरार में उंगली चला मुन्ना बोला "आरे कहा ना दोनो चीज़ ले आया हू…दोनो ननद भौजाई एक दिन आ जाना फिर…"
"लगता है छ्होटे मलिक का दिल बसंती पर पूरा आ गया है"
"हा रे तेरे बसंती की जवानी है ही ऐसी…..बड़ी मस्त लगती है…"
"हा मलिक गाओं के सारे लौडे उसके दीवाने है…."
"गाओं के छोरे मा चुड़ाएँ…..तू बस मेरे बारे में सोच…." कह कर उसके होंठो पर चुम्मि ले फिर से चुचि को दबा दिया.
"सीए मलिक क्या बताए वो मुखिया का बेटा तो ऐसा दीवाना हो गया है कि….उस दिन तालाब के पास आकर पैर छुने लगा और सोने की चैन दिखा रहा था, कह रहा था कि भौजी एक बार बसंती की…..पर मैने तो भगा दिया साले को दोनो बाप बेटे कामीने है"
मुन्ना समझ गया की साली रंडी अपनी औकात पर आ गई है. पॅंट की जेब में हाथ डाल पायल निकली और लाजवंती के सामने लहरा कर बोला "ले बहुत पायल-पायल कर रही है ना तो पकड़ इसको….और बता बसंती को कब ले कर आ रही है….."
"हाई मलिक पायल लेकर आए थे….और देखो तब से मुझे तडपा रहे थे…" और पायल को हाथ में ले उलट पुलट कर देखने लगी. मुन्ना ने सोचा जब पेशगी दे ही दी है तो थोड़ा सा काम भी ले लिया जाए और उसका एक हाथ पकड़ खेत में थोड़ा और अंदर खींच लिया. लाजवंती अभी भी पायल में ही खोई हुई थी. मुन्ना ने उसके हाथ से पायल ले ली और बोला "ला पहना दू…" लाजवंती ने चारो तरफ देखा तो पाया की वो खेत के और अंदर आ गई है. किसी के देखने की संभावना नही तो चुप चाप अपनी साड़ी को एक हाथ से पकड़ घुटनो तक उठा एक पैर आगे बढ़ा दिया. मुन्ना ने बड़े प्यार से उसको एक-एक करके पायल पहनाई फिर उसको खींच कर घास पर गिरा दिया और उसकी साड़ी को उठाने लगा. लाजवंती ने कोई विरोध नही किया. दोनो पैरों के बीच आ जब मुन्ना लंड डालने वाला था तभी लाजवंती ने अपने हाथ से लंड पकड़ लिया और बोली "लाओ मैं डालती हू…" और लंड को अपनी चूत के होंठो पर रगड़ती हुई बोली "वैसे छ्होटे मलिक एक बात बोलू….."
"हा बोल…..छेद पर लगा दे टाइम नही है……."
"सोने का चैन बहुत महनगा आता है क्या….." मुन्ना समझ गया कि साली को पायल मिल गयी है बिना गोल्ड की चैन लिए इसकी आत्मा को शांति नही मिलेगी और मुझे बसंती. लंड को उसके हाथ से झटक कर चूत के मुहाने पर लगा कच से पेलता हुआ बोला "महनगा आए चाहे सस्ता तुझे क्या…आम खाने से मतलब रख गुठली मत गिन"
इतना सुनते ही जैसे लाजवंती एकदम गनगॅना गई दोनो बहो का हार मुन्ना के गले में डालती बोली "हाई मलिक…मैं कहा….मैं तो सोच रही थी कही आपका ज़्यादा खर्चा ना हो जाए…..सम्भहाल के मलिक ज़रा धीरे-धीरे आपका बड़ा मोटा है".
"मोटा है तभी तो तेरी जैसी छिनाल की चूत में भी टाइट जाता है…" ज़ोर ज़ोर से धकके लगाता हुआ मुन्ना बोला.
"हाई मालिक चोदो अब ठीक है…..मालिक अपने लंड के जैसा मोटा चैन लेना…..जैसे आपका मोटा लंड खा कर चूत को मज़ा आ जाता है वैसे ही चैन पहन कर……"
"ठीक है भौजी तू चिंता मत कर….सोने से लाद दूँगा….". फिर थोड़ी देर तक धुआँधार चुदाई चलती रही. मुन्ना ने अपना माल झाड़ा और लंड निकल कर उसकी साड़ी से पोछ कर पॅंट पहन लिया. लाजवंती उठ ती हुई बोली "मालिक जगह का उपाय करना होगा. बसंती अनचुड़ी है. पहली बार लेगी वो भी आपका हलब्बी लंड तो बीदकेगी और चिल्लाएगी. ऐसे खेत में जल्दी का काम नही है. आराम से लेनी होगी बसंती की"
मुन्ना कुच्छ सोचता हुआ बोला "ये मेरा जो आम का बगीचा है वो कैसा रहेगा" मुन्ना के बाबूजी ने दो कमरा और बाथरूम बना रखा था वाहा पर सब जानते थे.
"हाई मलिक वाहा पर कैसे…..वाहा तो बाबूजी.." मुन्ना बात समझ गया और बोला तू चिंता मत कर मैं देख लूँगा.
लाजवंती ने हा में सिर हिलाते हुए कहा "हा मलिक ठीक रहेगा…ज़्यादा दूर भी नही फिर रात में किसी बहाने से मैं बसंती को खिसका के लेती आउन्गि"
"चल फिर ठीक है, जैसे ही बसंती मान जाए मुझे बता देना" फिर दोनो अपने अपने रास्ते चल पड़े.
व का राजा पार्ट -9 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
आम के बगीचे में जो मकान या खलिहान जो भी कहे बना था वो वास्तव में चौधरी जब जवान था तब उसकी ऐषगाह थी. वाहा वो रंडिया ले जा कर नाचवाता और मौज मस्ती करता था.
जब से दारू के नशे में डूबा तब से उसने वाहा जाना लगभग छोड़ ही दिया था. बाहर से देखने पर तो खलिहान जैसा गाओं में होता है वैसा ही दिखता था मगर अंदर चौधरी ने उसे बड़ा खूबसूरत और आलीशान बना रखा था. दो क��रे जो की काफ़ी बड़े और एक कमरे में बहुत बड़ा बेड था. सुख सुविधा के सारे समान वाहा थे. 2
वाहा पर एक मॅनेजर जो की चौकीदार का काम भी करता था रहता था. ये मॅनेजर मुन्ना के लिए बहुत बड़ी प्राब्लम था. क्यों कि लाजवंती और बसंती दरअसल उसी की बहू और बेटी थी. लाजवंती उसके बेटे की पत्नी थी जो की शहर में रहता था. मुन्ना बाबू घर पहुच कर कुच्छ देर तक सोचते रहे कैसे अपने रास्ते के इस पत्थ��� को हटाया जाए. खोपड़ी तो शैतानी थी ही. तरक़ीब सूझ गई. उठ कर सीधा आम के बगीचे की ओर चल दिए. मे महीने का पहला हफ़्ता चल रहा था. बगीचे में एक जगह खाट डाल कर मॅनेजर बैठा हुआ दो लड़कियों की टोकरियो में अधपके और कच्चे आम गिन गिन कर रख रहा था. मुन्ना बाबू एक दम से उसके सामने जा कर खड़े हो गये. मॅनेजर हड़बड़ा गया और जल्दी से उठ कर खड़ा हुआ.
"क्या हो रहा है……ये अधपके आम क्यों बेच रहे हो…" मॅनेजर की तो घिघी बँध गई समझ में नही आ रहा था क्या बोले.
"ऐसे ही हर रोज दो टोकरी बेच देते हो क्या …." थोड़ा और धमकाया.
"छ्होटे मलिक….नही छ्होटे मलिक…….वो तो ये बेचारी ऐसे ही…..बड़ी ग़रीब बच्चियाँ है आचार बनाने के लिए माँग रही……" दोनो लड़कियाँ तब तक भाग चुकी थी.
"खूब आचार बना रहे हो…….चलो अभी मा से बोलता हू फिर पता चलेगा….".
मॅनेजर झुक कर पैर पकड़ने लगा. मुन्ना ने उसका हाथ झटक दिया और तेज़ी से घर आ गया. घर आ कर चौधरैयन को सारी बात नमक मिर्च लगा कर बता दी. चुधरैयन ने तुरंत मॅनेजर को बुलवा भेजा खूब झाड़ लगाई और बगीचे से उसकी ड्यूटी हटा दी और चौधरी को बोला कि दीनू को ब्गीचे में भेज दे रखवाली के लिए. अब जितने भी बगीचे थे सब जगह थोड़ी बहुत चोरी तो सारे मॅनेजर करते थे. चौधरी की इतनी ज़मीन ज़ायदाद थी कि उसका ठीक ठीक हिसाब किसी को नही पता था. आम के बगीचे में तो कोई झाँकने भी नही जाता जब फल पक जाते तभी चौधरैयन एक बार चक्कर लगाती थी. मॅनेजर की किस्मत फूटी थी मुन्ना बाबू के चक्कर में फस गया. फिर मुन्ना ने चौधरी से बगीचे वाले मकान की चाभी ले ली. दीनू को बोल दिया मत जाना, गया तो टांग तोड़ दूँगा…तू भी चोर है. दीनू डर के मारे गया ही नही और ना ही किसी से इसकी शिकायत की. जब सब सो जाते तो रात में चाभी ले मुन्ना बाबू खिसक जाते. दो रातो तक लाजवंती की जवानी का रस चूसा आख़िर पायल की कीमत वसूलनी थी. तीसरे दिन लाजवंती ने बता दिया की रात में ले कर आउन्गी. मुन्ना बाबू पूरी तैय्यारि से बगीचे वाले मकान पर पहुच गये. करीब आधे घंटे के बाद ही दरवाजे पर खाट खाट हुई.
मुन्ना ने दरवाजा खोला सामने लाजवंती खड़ी थी. मुन्ना ने धीरे से पोच्छा "भौजी बसंती". लाजवंती ने अंदर घुसते हुए आँखो से अपने पिछे इशारा किया. दरवाजे के पास बसंती सिर झुकाए खड़ी थी. मुन्ना के दिल को करार आ गया. बसंती को इशारे से अंदर बुलाया. बसंती धीरे-धीरे सर्माती सकुचाती अंदर आ गई. मुन्ना ने दरवाजा बंद कर दिया और अंदर वाले कमरे की ओर बढ़ चला. लाजवंती, बसंती का हाथ खींचती हुई पिछे-पिछे चल पड़ी. अंदर पहुच कर मुन्ना ने अंगड़ाई ली. उसने लूँगी पहन रखी थी. लाजवंती को हाथो से पकड़ अपनी ओर खींच लिया और उसके होंठो पर चुम्मा ले बोला "के बात है भौजी आज तो कयामत लग रही हो….." images
"हाई छ्होटे मलिक आप तो ऐसे ही…..बसंती को ले आई…." बसंती बेड के पास चुप चाप खड़ी थी.
"हा वो तो देख ही रहा हू…."
"हा मलिक लाजवंती अपना किया वादा नही भूलती……लोग भूल जाते है……" मुन्ना ने पास में पड़े कुर्ते में हाथ डाल कर एक डिब्बा निकाला और लाजवंती के हाथो में थमा दिया. फिर उसकी कमर के पास से पकड़ अपने से चिपका उसके चूतरो को कस कर दबाता हुआ बोला "आते ही अपनी औकात पर आ गई……खोल के देख….." लाजवंती ने खोल के देखा तो उसकी आँखो में चमक आ गई.
"हाई मलिक मैं आपके बारे में कहा बोल रही थी…..मुझे क्या पता नही की चौधरी ख़ानदान के लोग… कितने पक्के होते है….हाई मार दिया …हड्डिया तर्तर गई…"
लाजवंती की गांद की दरार में साडी के उपर से उंगली चलाते हुए उसके गाल पर दाँत गाढ उसकी एक चुचि पकड़ी और कस कर चिपकाया. लाजवंती "आ मालिक आआआअ उईईईई" करने लगी. बसंती एक ओर खड़ी होकर उन दोनो को देख रही थी. मुन्ना ने लाजवंती को बिस्तर पर पटक दिया. बिस्तर इतना बड़ा था की चार आदमी एक साथ सो सके. दोनो एक दूसरे से गुत्थम गुथा हो कर बिस्तर पर लुढ़कने लगे. होंठो को चूस्ते हुए कभी गाल काट ता कभी गर्दन पर चुम्मि लेता. चुचि को पूरी ताक़त से मसल देता था. चूतर दबोच कर गांद में साड़ी के उपर से ऐसे उंगली कर रहा था जैसे पूरी साड़ी घुसा देगा. लाजवंती के मुँह से "आ हा आह….उईईईईईईईईई मालिक निकल रहा था.." तभी फुसफुसाते हुए बोली "मेरे पर ही सारा ज़ोर निकलोगे क्या…..बसंती तो….." मुन्ना भी फुसफुसाते हुए बोला "अरी खड़ी रहने दे तुझे एक बार चोद देता हू….फिर खुद गरम हो जाएगी…." मुन्ना की चालाकी समझ वो भी चुप हो गई. फिर मुन्ना ने जल्दी से लाजवंती को पूरा नंगा कर दिया. अपनी ननद के सामने पूरा नंगा होने पर शर्मा कर बोली "हाई मालिक कुच्छ तो छोड़ दो….." मुन्ना अपनी लूँगी खोलते हुए बोला "आज तो पूरा नंगा करके….साडी उठाने से काम नही चलेगा भौजी"
मुन्ना का दस इंच लंबा लंड देख कर बसंती एकदम सिहर गई. मगर लाजवंती ने लपक कर अपने हाथो में थाम लिया और मसल्ने लगी. मुन्ना मसनद के सहारे बैठ ता हुआ बोला "रानी ज़रा चूसो…". लाजवंती बैठ कर सुपरे की चमड़ी हटा जीभ फिराती हुई बोली "मालिक बसंती ऐसे ही खड़ी रहेगी क्या…."
"आरे मैने कब कहा खड़ी रहने को…बैठ जाए…."
"ऐसी क्या बेरूख़ी मलिक……बेचारी को अपने पास बुला लो ना…." पूरे लंड को अपने मुँह में ले चूस्ते हुए बोली.
" बहुत अच्छा भौजी……अच्छे से चूसो…..मैं कहा बेरूख़ी दिखा रहा हू वो तो खुद ही दूर खड़ी है….."
"है मलिक जब से आई है आपने कुच्छ बोला नही है……बसंती आ जा…..अपने छ्होटे मालिक बहुत अच्छे है…..शहर से पढ़ लिख कर आए है…गाओं के गँवारो से तो लाख दर्जा अच्छे है……" बसंती थोडा सा हिचकी तो लंड छोड़ कर लाजवंती उठी और हाथ पकड़ बेड पर खींच लिया. मुन्ना ने एक और मसनद लगा उसको थप थपाते हुए इशारा किया. बसंती शरमाते हुए मुन्ना की बगल में बैठ गई. लाजवंती ने मुन्ना का लंड पकड़ हिलाते हुए दिखाया "देख कितना अच्छा है अपने छ्होटे मलिक का….एकदम घोड़े के जैसा है….ऐसा पूरे गाओं में किसी का नही…". और फिर से चूसने लगी. झुके पॅल्को के नीचे से बसंती ने मुन्ना का हलब्बी लंड देखा दिल में एक अजीब सी कसक उठी. हाथ उसे पकड़ने को ललचाए मगर शर्मो हया का दामन नही छोड़ पाई. मुन्ना ने बसंती की कमर में हाथ डाल अपनी तरफ खींचा "शरमाती क्यों है आराम से बैठ…….आज तो बड़ी सुंदर लग रही है…..खेत में तो तुझे अपना लंड दिखाया था ना….तो फिर क्यों शर्मा रही है." बसंती ने शर्मा कर गर्दन झुका ली. उस दिन के मुन्ना और आज के मुन्ना में उसे ज़मीन आसमान का अंतर नज़र आया. उस दिन मुन्ना उसके सामने गिडगीडा रहा था उसको लहंगे का तोहफा दे कर ललचाने की कोशिश कर रहा था और आज का मुन्ना अपने पूरे रुआब में था वो इसलिए क्योंकि आज वो खुद उसके दरवाजे तक चल कर आई थी.
"हाई मलिक…मैने आज तक कभी….."
"आरे तेरी तो शादी हो गई है दो महीने बाद गौना हो कर जाएगी तो फिर तेरा पति तो दिखाएगा ही…"
"धात मलिक……."
"तेरा लहनगा भी लाया हू…लेती जाना…..सुहागरात के दिन पहन ना…" कह कर अपने पास खींच उसकी एक चुचि को हल्के से पकड़ा. बसंती शर्मा कर और सिमट गई. मुन्ना ने ठोडी से पकड़ उसका चेहरा उपर उठा ते हुए कहा "एक चुम्मा दे….बड़ी नशीली लग रही है" और उसके होंठो से अपने होंठ सटा कर चूसने लगा. बसंती की आँखे मूंद गई. मुन्ना ने उसके होंठो को चूस्ते हुए उसकी चुचि को पकड़ लिया और खूब ज़ोर ज़ोर से दबाते हुए उसकी चोली में हाथ घुसा दिया. बसंती एक दम से छटपटा गई.
"उईईईईई मलिक सीई…" मुन्ना ने धीरे से उसकी चोली के बटन खोलने की कोशिश की तो बसंती ने शर्मा कर मुन्ना का हाथ हल्के से हटा दिया. लाजवंती लंड को पू���ा मुँह में ले चूस रही थी. उसकी लटकती हुई चुचि को पकड़ दबाते हुए मुन्ना बोला "देखो भौजी कैसे शर्मा रही है….पहले तो चुप चाप वाहा खड़ी रही अब कुच्छ करने नही दे रही……" लाजवंती लंड पर से मुँह हटा बसंती की ओर खिसकी और उसके गालो को चुटकी में मसल बोली "हाई मलिक पहली बार है बेचारी का शर्मा रही है…लाओ मैं खोल देती हू…"
"मेरे हाथो में क्या बुराई है…"
"मलिक बुराई आपके हाथो में नही लंड में है….देख कर डर गई है" फिर धीरे से बसंती की चोली खोल अंगिया निकाल दी. बसंती और उसकी भौजी दोनो गेहूए (वीटिश) रंग की थी. मतलब बहुत गोरी तो नही थी मगर काली भी नही थी. बसंती की दोनो चुचियाँ छोटी मुट्ठी में आ जाने लायक थी. निपल गुलाबी और छ्होटे-छ्होटे. एक दम अनटच चुचि थी. कठोर और नुकीली. मुन्ना ने एक चुचि को हल्के से थाम लिया.
"हाई क्या चुचि है…मुँह में डाल कर पीने लायक…" और दूसरी चुचि पर अपना मुँह लगा जीभ निकाल कर निपल को छेड़ते हुए चारो तरफ घुमाने लगा. बसंती सिहर उठी. पहली बार जो था. सिसकते हुए मुँह से निकला " भाभी….." लाजवंती ने उसका हाथ पकड़ कर मुन्ना के लंड पर रख दिया और उसके होंठो को चूम बोली "पकड़ के तू भी मसल छ्होटे मलिक तो अपने खिलोने से खेल रहे है….ये हम लोगो का खिलोना है" मुन्ना दोनो चुचियों को बारी बारी से चूसने लगा. बड़ा मज़ा आ रहा था उसको. कुच्छ देर बाद उसने बसंती को अपनी गोद में खींच लिया और अपने लंड पर उसको बैठा लिया "आओ रानी तुझे झूला झूला दू…..शर्मा मत…शरमाएगी तो सारा मज़ा तेरी भाभी लूट लेगी" मुन्ना का खड़ा लंड उसकी गांद में चुभने लगा. ठीक गांद की दरार के बीच में लंड लगा कर दोनो चुचि मसल्ते हुए गाल और गर्दन को चूमने लगा. तभी लाजवंती ने मुन्ना का हाथ पकड़ अपनी ढीली चुचि पर रखते हुए कहा "हाई मलिक कोरा माल मिलते ही मुझे भूल गये"
"तुझे कैसे भूल जाउन्गा छ���नाल…चल आ अपनी चुचि पीला मैं तब तक इसकी दबाता हू"
"हाई मलिक पीजिए……अपनी इस छिनाल भौजी की चुचि को….ओह हो सस्ससे…" मुन्ना तो जन्नत में था दोनो हाथ में दो अछूती चुचि लंड के उपर अनचुड़ी लौंडिया अपना गांद ले कर बैठी हुई थी और मुँह में खुद से चुचि थेल थेल कर पिलाती रंडी. दो चुचियों को मसल मसल कर और दो को चूस चूस कर लाल कर दिया. चुचि चुस्वा कर लाजवंती एकद्ूम गरम हो गई अपने हाथ से अपनी चूत को रगड़ने लगी. मुन्ना ने देखा तो मुस्कुरा दिया और बसंती को दिखाते हुए बोला "देख तेरी भौजी कैसे गरमा गई है… हाथी का भी लंड लील जाएगी." देख कर बसंती शर्मा कर "धात मलिक.....आपका तो खुद घोड़े जैसा…" इतनी देर में वो भी थोड़ा बहुत खुल चुकी थी.
"अच्छा है ना ?"
"धात मलिक….. आपका बहुत मोटा.."
"मोटे और लंब लंड से ही मज़ा आता है…..क्यों भौजी"
"हा छ्होटे मलिक आपका तो बड़ा मस्त लंड है…मेरे जैसी चुदी हुई में भी…..बसंती को भी चुस्वओ मालिक" एक हाथ से बसंती की चुचि को मसल्ते हुए दूसरे से बसंती का लहनगा उठा उसकी नंगी जाँघो पर हाथ फेरते हुए मुन्ना ने पुचछा "चुसेगी….अच्छा लगेगा…..तेरी भौजी तो इसकी दीवानी है..".
"धात मलिक…..भौजी को इसकी आदत है…"
"शरमाना छोड़…..देख मैं तेरी चुचि दबाता हू तो मज़ा आता है ना.."
"हाँ मलिक……अच्छा लगता है"
"और तेरी चुचि दबाने में मुझे भी मज़ा आता है…वैसे ही लंड चुसेगी तो…."
"हाई मलिक भौजी से चुस्वओ…"
"भौजी तो चुस्ती है….तू भी इसका स्वाद ले….शरमाएगी तो फिर….भौजी छोड़ो इसको तुम ही आ जाओ ये बहुत शर्मा रही है…"कह कर मुन्ना ने अपने हाथ बसंती के बदन पर से हटा लिए और उसको अपनी गोद से हल्के से नीचे उतार दिया. बसंती जो अब तक मज़े के लहर में डूबी हुई थी जब उसका मज़ा थोड़ा हल्का हुआ तो होश आया. तब तक लाजवंती फिर से अपने छ्होटे मालिक का लंड अपने मुँह में ले चुचि मीसवाति हुई मज़ा लूट रही थी. बसंती अपनी ललचाई आँखो से उसको देखने लगी.
उसका मन कर रहा था की फिर से जा कर मुन्ना की गोद में बैठ जाए और कहे " मालिक चुचि दबाओ…..आप जो कहोगे मैं करूँगी…". पर चुप चाप वही बैठी रही. लाजवंती ने लंड को मुँह से निकाल हिलाते हुए उसको दिखाया और बोली "तेरी तो किस्मत ही फूटी है…वही बैठी रह और देख-देख कर ललचा…".
"धात भाभी मेरे से नही…."
देती हू…" बसंती का मन तो ललचा ही रहा था. धीरे से सरक कर पास गई. लाजवंती ने मोटा बलिश्त भर का लंड उसके हाथ में थमा दिया और उसके सिर को पकड़ नीचे झुकाती हुई बोली "ले आराम से जीभ निकाल कर सुपरा चाट…फिर सुपरे को मुँह भर कर चूसना….पूरा लंड तेरे मुँह में नही जाएगा अभी….". बसंती लंड का सुपरा मुँह में ले चूसने लगी. पहले धीरे-धीरे फिर ज़ोर ज़ोर से. भौजी को देख आख़िर इतना तो सीख ही लिया था. मुन्ना के पूरे बदन में आनंद की तरंगे उठ रही थी. शहर से आने के बहुत दीनो बाद ऐसा मज़ा उसे मिल रहा था. लाजवंती उसको अंडकोषो को पकड़ अपने मुँह में भर कर चुँला ते हुए चूस रही थी. xxx-sex-photo-lund-
कुच्छ देर तक लंड चुसवाने के बाद मुन्ना ने दोनो को हटा दिया और बोला
"भौजी ज़रा अपनी ननद के लल्मुनिया के दर्शन तो कर्वाओ…"
"हाई मलिक नज़राना लगेगा….एक दम कोरा माल है आज तक किसी ने नही…"
"तुझे तो दिया ही है…अपनी बसंती रानी को भी खुश कर दूँगा…मैं भी तो देखु कोरा माल कैसा…."
" मलिक देखोगे तो बिना चोदे निकाल दोगे…इधर आ बसंती अपनी ननद रानी को तो मैं गोद मैं बैठा कर…" कहते हुए बसंती को खीच कर अपनी गोद मैं बैठा लिया और उसके लहंगे को धीरे-धीरे कर उठाने लगी. शरम और मज़े के कारण बसंती की आँखे आधी बंद थी. मुन्ना उसकी दोनो टांगो के बीच बैठा हुआ उसके लहंगे को उठ ता हुआ देख रहा था. बसंती की गोरी-गोरी जंघे बड़ी कोमल और चिकनी थी.
बसंती ने लहंगे के नीचे एक पॅंटी पहन रखी थी जैसा गाओं की कुँवारी लरकियाँ आम तौर पर पहनती है. लहनगा पूरा उपर उठा पॅंटी के उपर हाथ फेरती लाजवंती बोली "कछि फाड़ कर दिखाउ.."
" जैसे मर्ज़ी वैसे दिखा…..तू कछि फाड़ मैं फिर इसकी चूत फाड़ुँगा"
लाजवंती ने कछि के बीच में हाथ रखा और म्यानी की सिलाई जो थोड़ी उधरी हुई थी में अपने दोनो हाथो की उंगलियों को फसा छर्ररर से कछि फाड़ दी. बसंती की 16 साल की कच्ची चूत मुन्ना की भूखी आँखो के सामने आ गई. हल्के हल्के झांतो वाली एक दम कचोरी के जैसी फूली चूत देख कर मुन्ना के लंड को एक जोरदार झटका लगा. लाजवंती ने बसंती की दोनो टाँगे फैला दी और बसंती की चूत के उपर हाथ फेरती हुई पॅंटी को फाड़ पूरा दो भाग में बाँट दिया और उसकी चूत के गुलाबी होंठो पर उंगली चलाते हुए बोली " छ्होटे मालिक देखो हमारी ननद रानी की लल्मुनिया…" नंगी चूत पर उंगली चलाने से बसंती के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई. सिसकार कर उसने अपनी आँखे पूरी खोल दी. मुन्ना को अपनी चूत की तरफ भूखे भेड़िए की तरह से घूरते देख उसका पूरा बदन सिहर गया और शरम के मारे अपनी जाँघो को सिकोड़ने की कोशिश की मगर लाजवंती के हाथो ने ऐसा करने नही दिया. वो तो उल्टा बसंती की चूत के गुलाबी होंठो को अपनी उंगलियों से खोल कर मुन्ना को दिखा रही थी "हाई मलिक देख लो कितना खरा माल है…ऐसा माल पूरे गाओं में नही…वो तो बड़े चौधरी के बाबूजी पर इतने अहसान है कि मैं आपको मना नही कर पाई….नही तो ऐसा माल कहा मिलता है…"
"हा रानी सच कह रही है तू….मार डाला तेरी ननद ने तो…क्या ललगुडिया चूत है.."
"खाओगे मालिक…चख कर देखो"
"ला रानी खिला....कोरी चूत का स्वाद कैसा होता है…" लाजवंती ने दोनो जाँघो को फैला दिया. मुन्ना आगे सरक कर अपने चेहरे को उसकी चूत के ��ास ले गया और जीभ निकाल कर चूत पर लगा दिया. चूत तो उसने मामी की भी चूसी थी मगर वो चूड़ी चूत थी कच्ची कोरी चूत उपर जीभ फिराते ही उसे अहसास हो गया की अनचुड़ी चूत का स्वाद अनोखा होता है. लाजवंती ने चूत के होंठो को अपनी उंगली फसा कर खोल दिया. चूत के गुलाबी होंठो पर जीभ चलते ही बसंती का पूरा बदन अकड़ कर काँपने लगा.
"उूउउ…….भौजी….सीई मालिक….."
चूत के गुलाबी होंठो के बीच जीभ घुसाते ही मुन्ना को अनचुड़ी चूत के खारे पानी का स्वाद जब मिला तो उसका लंड अकड़ के उप डाउन होने लगा. मुन्ना ने चूत के दोनो छ्होटे छ्होटे होंठो को अपने मुँह में भर खूब ज़ोर ज़ोर से चूसा और फिर जीभ पेल कर घुमाने लगा. बसंती की अनचुड़ी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया. जीभ को चूत के च्छेद में घुमते हुए उसके भज्नसे को अपने होंठो के बीच कस कर चुँलने लगा. लाजवंती उसकी चुचियों को मसल रही थी. बसंती के पूरे तन-बदन में आग लग गई. मुँह से सिसकारियाँ निकालने लगी. लाजवंती ने पुचछा
"बिटो मज़ा आ रहा है…
" मालिक…ऊऊ उउउस्स्स्स्सिईईईई भौजी बहुत…उफफफ्फ़…भौजी बचा लो मुझे कुच्छ हो जाएगा…उफफफफ्फ़ बहुत गुद-गुड़ी…सीई मालिक को बोलो जीभ हटा ले…हीईीई." लाजवंती समझ गई कि मज़े के कारण सब उल्टा पुल्टा बोल रही है. उसकी चुचियों से खेलती हुई बोली " मालिक…चाटो…अच्छे से…अनचुड़ी चूत है फिर नही मिलेगी…पूरी जीभ पेल कर घूमाओ..गरम हो जाएगी तब खुद…"
मुन्ना भी चाहता था कि बसंती को पूरा गरम कर दे फिर उसको भी आसानी होगी अपना लंड उसकी चूत में डालने में यही सोच उसने अपनी एक उंगली को मुँह में डाल थूक से भीगा कर कच से बसंती की चूत में पेल दिया और टीट के उपर अपनी जीभ लफ़र लफ़र करते हुए चलाने लगा. उंगली जाते ही बसंती सिसक उठी. पहली बार कोई चीज़ उसके चूत के अंदर गई थी. हल्का सा दर्द हुआ मगर फिर कच-कच चलती हुई उंगली ने चूत की दीवारों को ऐसा रगड़ा कि उसके अंदर आनंद की एक तेज लहर दौर गई. ऐसा लगा जैसे चूत से कुच्छ निकलेगा मगर तभी मुन्ना ने अपनी उंगली खीच ली और भज्नाशे पर एक ज़ोर दार चुम्मा दे उठ कर बैठ गया. मज़े का सिलसिला जैसे ही टूटा बसंती की आँखे खुल गई. मुन्ना की ओर असहाय भरी नज़रो देखा.
"मज़ा आया बसंती रानी……"
"हाँ मलिक…सीई" करके दोनो जाँघो को भीचती हुई बसंती सरमाई.
"अर्रे शरमाती क्यों है…मज़ा आ रहा है तो खुल के बता…और चाटू.."
"हाई मालिक….मैं नही जानती" कह कर अपने मुँह को दोनो हाथो से ढक कर लाजवंती की गोद में एक अंगड़ाई ली.
"तेरी चूत तो पानी फेंक रही है"
बसंती ने जाँघो को और कस कर भींचा और लाजवंती की छाती में मुँह छुपा लिया.
मुन्ना समझ गया की अब लंड खाने लायक तैय्यार हो गई है. दोनो जाँघो को फिर से खोल कर चूत के फांको को चुटकी में पकड़ कर मसलते हुए चूत के भज्नाशे को अंगूठे से कुरेदा और आगे झुक कर बसंती का एक चुम्मा लिया. लाजवंती दोनो चुचियों को दोनो हाथो में थाम कर दबा रही थी. मुन्ना ने फिर से अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में पेल दी और तेज़ी से चलाने लगा. बसंती सिसकने लगी. "हाई मलिक निकल जाएगा…सीई म्म्म मालिक "
"क्या निकल जाएगा….पेशाब करेगी क्या….."
"हा मलिक….सीई पेशाब निकल….." मुन्ना ने सटाक से उंगली खींच ली..."ठीक है जा पेशाब कर के आ जा…मैं तब तक भौजी को चोद देता हू…"
लाजवंती ने बसंती को झट गोद से उतार दिया और बोली "हा मलिक……बहुत पानी छोड़ रही है…" उंगली के बाहर निकलते ही बसंती आसमान से धरती पर आ गई. पेशाब तो लगा नही था
गाँव का राजा पार्ट -10 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
चूत अपना पानी निकालना चाह रही थी ये बात उसकी समझ में तुरंत आ गई. मगर तब तक तो ��ाशा पलट चुक्का था. उसने देखा कि लाजवंती अपनी दोनो टांग फैला लेट गई थी और मुन्ना, लाजवंती की दोनो जाँघो के बीच लंड को चूत के छेद पर टिका दोनो चुचि दोनो हाथ में थाम पेलने ही वाला था. बसंती एक दम जल भुन कर कोयला हो गई. उसका जी कर रहा था कि लाजवंती को धकेल कर हटा दे और खुद मुन्ना के सामने लेट जाए और कहे की मालिक मेरी में डाल दो. तभी लाजवंती ने बसंती को अपने पास बुलाया " बसंती आ इधर आ कर देख कैसे छ्होटे मालिक मेरी में डालते है….तेरी भी ट्रैनिंग…."
बसंती मन मसोस कर सरक कर मन ही मन गाली देते हुए लाजवंती के पास गई तो उसने हाथ उठा उसकी चुचि को पकड़ लिया और बोली "देख कैसे मालिक अपना लंड मेरी चूत में डालते है ऐसे ही तेरी चूत में भी…"
मुन्ना ने अपना फनफनता हुआ लंड उसकी चूत से सटा ज़ोर का धक्का मारा एक ही झटके में कच से पूरा लंड उतार दिया. लाजवंती कराह उठी "हायययययययययययी मालिक एक ही बार में पूरा……सीईए"
"साली इतना नाटक क्यों चोदती है अभी भी तेरे को दर्द होता है….."
"हायययययी मालिक आपका बहुत बड़ा है…." फिर बसंती की ओर देखते हुए बोली "…तू चिंता मत कर तेरी में धीरे-धीरे खुद हाथ से पकड़ के दल्वाउन्गि… तू ज़रा मेरी चुचि चूस". मुन्ना अब ढ़ाचा-ढ़च धक्के मार रहा था. कमरे में लाजवंती की सिसकारियाँ और धच-धच फॅक-फॅक की आवाज़ गूँज रही थी.
"हिआआआय्य्य्य्य्य्य्य्य मालिक ज़ोर…. और ज़ोर से चोदो मलिक……ही सीईई"
"हा मेरी छिनाल भौजी तेरी तो आज फाड़ दूँगा….बहुत खुजली है ना तेरी चूत में…ले रंडी…खा मेरा लंड…सीई कितना पानी छोड़ती है……कंजरी"
"हायीईईईई मालिक आज तो आप कुच्छ ज़यादा ही जोश में….हा फाड़ दो मलिक "
"आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह भौजी मज़ा आ गया….तूने ऐसी कचोरी जैसी चूत का दर्शन करवाया है कि बस…लंड लोहा हो गया है…ऐसा ही मज़ा आ रहा है ना भौजी…आज तो तेरी गांद भी मारूँगा….सीईए शियैयीयी"
बसंती देख रही थी की उसकी भाभी अपना गांद हवा में लहरा लहरा कर मुन्ना का लंड अपनी ढीली चूत में खा रही थी और मुन्ना भी गांद उठा-उठा कर उसकी चूत में दे रहा था. मन ही मन सोच रही थी की साला जोश में मेरी चूत को देख कर आया है मगर चोद भाभी को रहा है. पता नही चोदेगा कि नही.
करीब पंद्रह मिनिट की ढकां पेल चोदा चोदि के बाद लाजवंती ने पानी छोड़ दिया और बदन आकड़ा कर मुन्ना की छाती से लिपट गई. मुन्ना भी रुक गया वो अपना पानी आज बसंती की अनचुदी बुर में ही छोड़ना चाहता था. अपनी सांसो को स्थिर करने के बाद. मुन्ना ने उसकी चूत से लंड खींचा. पाक की आवाज़ के साथ लंड बाहर निकल गया. चूत के पानी में लिपटा हुआ लंड अभी भी तमतमाया हुआ था लाल सुपरे पर से चमड़ी खिसक कर नीचे आ गई थी. पास में पड़ी साड़ी से पोच्छने के बाद वही मसनद पर सिर रख कर लेट गया. उसकी साँसे अभी भी तेज चल रही थी. लाजवंती को तो होश ही नही था. आँखे मुन्दे टांग फैलाए बेहोश सी पड़ी थी. बसंती ने जब देखा की मुन्ना अपना खड़ा लंड ले कर ऐसे ही लेट गया तो उस से रहा नही गया. सरक कर उसके पास गई और उसकी जाँघो पर हल्के से हाथ रखा है. मुन्ना ने आँखे खोल कर उसकी तरफ देखा तो बसंती ने मुस्कुराते हुए कहा
"हाययययययययी मालिक मुझे बड़ा डर लग रहा हा आपका बहुत लंबा…"
मुन्ना समझ गया की साली को चुदास लगी हुई है. तभी खुद से उसके पास आ कर बाते बना रही है कि मोटा और लंबा है. मुन्ना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"अर्रे लंबे और मोटे लंड से ही तो मज़ा आता है एक बार खा लेगी फिर जिंदगी भर याद रखेगी चल ज़रा सा चूस तो….खाली सुपरा मुँह भर कर…जैसे टॉफी खाते है ना वैसे……" कहते हुए बसंती का हाथ पकड़ के खींच कर अपने लंड पर रख दिया. बसंती ने शरमाते सकुचते अपने सिर को झुका दिया मुन्ना ने कहा "अरे शरमाना छोड़ रानी..." और उसके सिर को हाथो से पकड़ झुका कर लंड का सुपरा उसके होंठो पर रख दिया. बसंती ने भी अपने होंठ धीरे खोल कर लंड के लाल सुपरे को अपने मुँह में भर लिया. लाजवंती वही पास पड़ी ये सब देख रही थी. थोड़ी देर में जब उसको होश आया तो उठ कर बैठ गई और अपनी ननद के पास आ कर उसकी चूत अपने हाथ से टटोलती हुई बोली "बहुत हुआ रानी कितना चुसेगी…अब ज़रा मूसल से कुटाई करवा ले" और बसंती के मुँह को मुन्ना के लंड पर से हटा दिया और मुन्ना का लंड पकड़ के हिलाती हुई बोली "हाई मलिक….जल्दी करिए…बुर एकदम पनिया गई है".
"हा भौजी….क्यों बसंती डाल दू ना…"
"हि मालिक मैं नही जानती.."
"…चोदे ना..."
"हाय्य्य्य्य्य…मुझे नही…जो आपकी मर्ज़ी हो…"
"अर्रे क्या मालिक आप भी….चल आ बसंती यहा मेरी गोद में सिर रख कर लेट" इतना कहते हुए लाजवंती ने बसंती को खींच कर उसका सिर अपनी गोद में ले लिया और उसको लिटा दिया. बसंती ने अपनी आँखे बंद कर अपने दोनो पैर पसारे लेट गई थी. मुन्ना उसके पैरों को फैलाते हुए उनके बीच बैठ गया. फिर उसने बसंती के दोनो पैर के टख़नो को पकड़ कर उठाते हुए उसके पैरो को घुटने के पास से मोड़ दिया. बसंती मोम की गुड़िया बनी हुई ये सब करवा रही थी. तभी लाजवंती बोली "मालिक इसकी गांद के नीचे तकिया लगा दो…आराम से घुस जाएगा". मुन्ना ने लाजवंती की सलाह मान कर मसनद उठाया और हाथो से ठप थापा कर उसको पतला कर के बसंती के चूतरो के नीचे लगा दिया. बसंती ने भी आराम से गांद उठा कर तकिया लगवाया. दोनो जाँघो के बीच उसकी अनचुदी हल्की झांतो वाली बूर चमचमा रही थी. चूत के दोनो गुलाबी फाँक आपस में सटे हुए थे. मुन्ना ने अपना फंफनता हुआ लंड एक हाथ से पकड़ कर बुर् के फुलते पिचकते छेद पर लगा दिया और रगड़ने लगा. बसंती गणगना गई. गुदगुदी के कारण अपनी जाँघो को सिकोड़ने लगी. लाजवंती उसकी दोनो चुचियों को मसल्ते हुए उनके निपल को चुटकी में पकड़ मसल रही थी.
"मालिक नारियल तेल लगा लो.." लाजवंती बोली
"चूत तो पानी फेंक रही है…इसी से काम चला लूँगा.."
"अर्रे नही मालिक आप नही जानते…आपका सुपरा बहुत मोटा है…नही घुसेगा…लगा लो"
मुन्ना उठ कर गया और टेबल से नारियल तेल का डिब्बा उठा लाया. फिर बसंती की जाँघो के बीच बैठ कर तेल हाथ में ले उसकी चूत उपर मल दिया. फांको को थोड़ा फैला कर उसके अंदर तेल टपका दिया.
"अपने सुपरे और लंड पर भी लगा लो मलिक" लाजवंती ने कहा. मुन्ना ने थोडा तेल अपने लंड पर भी लगा दिया.
"बहुत नाटक हो गया भौजी अब डाल देता हू.."
"हा मालिक डालो" कहते हुए लाजवंती ने बसंती की अनचुड़ी बुर के छेद की दोनो फांको को दोनो हाथो की उंगलियों से चौड़ा दिया. मुन्ना ने चौड़े हुए छेद पर सुपरे को रख कर हल्का सा धक्का दिया. कच से सुपरा कच्ची बुर को चीरता अंदर घुसा. बसंती तड़प कर मछली की तरह उछली पर तब तक लाजवंती ने अपना हाथ चूत पर से हटा उसके कंधो को मजबूती से पकड़ लिया था. मुन्ना ने भी उसकी जाँघो को मजबूती से पकड़ कर फैलाए रखा और अपनी कमर को एक और झटका दिया. लंड सुपरा सहित चार इंच अंदर धस गया. बसंती को लगा बुर में कोई गरम डंडा डाल रहा है मुँह से चीख निकल गई "आआआ मार..माररर्र्ररर गेयीयियीयियी". आह्ह्ह्ह्ह्ह भाभी बचाऊऊऊलाजवंती उसके उपर झुक कर उसके होंठो और गालो को चूमते हुए चूची दबाते हुए बोली "कुच्छ नही हुआ बित्तो कुच्छ नही…बस दो सेकेंड की बात है". मुन्ना रुक गया उसको नज़र उठा इशारा किया काम चालू रखो. मुन्ना समझ गया और लंड खींच कर धक्का मारा और आधे से अधिक लंड को धंसा दिया. बसंती का पूरा बदन अकड़ गया था. खुद मुन्ना को लग रहा था जैसे किसी जलती हुए लकड़ी के गोले के अंदर लंड घुसा रहा है लंड की चमड़ी पूरी उलट गई. आज के पहले उसने किसी अनचुड़ी चूत में लंड नही डाला था. जिसे भी चोदा था वो चुदा हुआ भोसड़ा ही था. बसंती के होंठो को लाजवंती ने अपने होंठो के नीचे कस कर दबा रखा था इसलिए वो घुटि घुटे आवाज़ में चीख रही थी और छटपटा रही थी. मुन्ना उसकी इन चीखो को सुन रुका मगर लाजवंती ने तुरंत मुँह हटा कर कहा "मालिक झटके से पूरा डाल दो एक बार में….ऐसे धीरे धीरे हलाल करोगे तो और दर्द होगा साली को…डालो" मुन्ना ने फिर कमर उठा कर गांद तक का ज़ोर लगा कर धक्का मारा. कच से नारियल तेल में डूबा लंड बसंती की अनचुड़ी चूत की दीवारों को कुचालता हुआ अंदर घुसता चला गया. बसंती ने पूरा ज़ोर लगा कर लाजवंती को धकेला और चिल्लाई "ओह…..मार दियाआआअ….आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हहरामी ने मार दिया….कुट्टी साली भौजी हरम्जदि……बचा लूऊऊऊ…आआ फाड़ दीयाआआआआअ…खून भीईीईईईईईईई…" अरीईईईई कोइईईईईई तूऊऊऊओ बचाऊऊऊऊलाजवंती ने जल्दी से उसका मुँह बंद करने की कोशिश की मगर उसने हाथ झटक दिया. मुन्ना अभी भी चूत में लंड डाले उसके उपर झुका था.
"लंड बाहर निकालो,आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह मुझे नही चुदाआआआआआनाआआआआअ ... भौजिइइईईईईईईई को चोदूऊऊओ... मलिक उतर जाओ... तुम्हरीईईईईए पाओ पड़ती हू... मररर्र्र्र्र्ररर जाउन्गीईईईई.." तब लाजवंती बोली "मालिक रूको मत…जल्दी जल्दी धक्का मारो मैं इसकी चुचि दबाती हू ठीक हो जाएगा.." बस मुन्ना ने बसंती की कलाईयों को पकड़ नीचे दबा दिया और कमर उठा-उठा कर आधा लंड खींच-खींच कर धक्के लगाना शुरू कर दिया. कुच्छ देर में सब ठीक हो गया. बसंती गांद उचकाने लगी. चेहरे पर मुस्कान फैल गई. लॉरा आराम से चूत के पानी में फिसलता हुआ सटा-सॅट अंदर बाहर होने लगा….. images
उस रात भर खूब रासलीला हुई. बसंती कीदो बार चुदाइ हुई. चूत सूज गई मगर दूसरी बार में उसको खूब मज़ा आया. बुर से निकले खून को देख पहले थोड़ा सहम गई पर बाद में फिर खुल कर चुदवाया. सुबह चार बजे जब अगली रात फिर आने का वादा कर दोनो विदा हुई तो बसंती थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी मगर उसके आँखो में अगली रात के इंतेज़ार का नशा झलक रहा था. मुन्ना भी अपने आप को फिर से तरो ताज़ा कर लेना चाहता था इसलिए घोड़े बेच कर सो गया.
आम के बगीचे में मुन्ना की कारस्तानिया एक हफ्ते तक चलती रही. मुन्ना के लिए जैसे मौज मज़े की बाहर आ गई थी. तरह तरह के कुतेव और करतूतो के साथ उसने लाजवंती और बसंती का खूब जम के भोग लगाया. पर एक ना एक दिन तो कुच्छ गड़बड़ होनी ही थी और वो हो गई. एक रात जब बसंती और लाजवंती अपनी चूतो की कुटाई करवा कर अपने घर में घुस रही थी कि आया की नज़र पर गई. वो उन्दोनो के घर के पास ही रहती थी. उसके शैतानी दिमाग़ को झटका लगा की कहा से आ रही है ये दोनो. लाजवंती के बारे में तो पहले से पता था की गाओं भर की रंडी है. ज़रूर कही से चुदवा कर आ रही होगी. मगर जब उसके साथ बसंती को देखा तो सोचने लगी की ये छ्छोकरी उसके साथ कहाँ गई थी.
दूसरे दिन जब नदी पर नहाने गई तो संयोग से लाजवंती भी आ गई. लाजवंती ने अपनी साड़ी ब्लाउस उतारा और पेटिकोट खींच कर छाती पर बाँध लिया. पेटिकोट उँचा होते ही आया की नज़र लाजवंती के पैरो पर पड़ी. देखा पैरो में नये चमचमाते हुए पायल. और लाजवंती भी ठुमक ठुमक चलती हुई नदी में उतर कर नहाने लगी.
"अर्रे बहुरिया मरद का क्या हाल चाल है…"
"ठीक ठाक है चाची….परसो चिट्ठी आई थी"
"बहुत प्यार करता है…और लगता है खूब पैसे भी कमा रहा है"
"का मतलब चाची ….."
"वाह बड़ी अंजान बन रही हो बहुरिया….अर्रे इतना सुंदर पायल कहा से मिला ये तो…"
"कहा से का क्या मतलब चाची….जब आए थे तब दे गये थे"
"अर्रे तो जो चीज़ दो महीने पहले दे गया उसको अब पहन रही है"
लाजवंती थोड़ा घबरा गई फिर अपने को सम्भालते हुए बोली "ऐसे ही रखा हुआ था….कल पहन ने का मन किया तो…"
आया क�� चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैल गई
"किसको उल्लू बना….सब पता है तू क्या-क्या गुल खिला रही है….हमको भी सिखा दे लोगो से माल एंठाने के गुण"
इतना सुनते ही लाजवंती के तन बदन में आग लग गई.
"चुप साली तू क्या बोलेगी …हराम्जादी कुतिया खाली इधर का बात उधर करती रहती है…."
आया का माथा भी इतना सुनते घूम गया और अपने बाए हाथ से लाजवंती के कंधे को पकड़ धकेलते हुए बोली "हरम्खोर रंडी…चूत को टकसाल बना रखा है…..मरवा के पायल मिला होगा तभी इतना आग लग रहा है".
"हा हा मरवा के पायल लिया है..और भी बहुत कुच्छ लिया है…तेरी गांद में क्यों दर्द हो रहा है चुगलखोर…" जो चुगली करे उसे चुगलखोर बोल दो तो फिर आग लगना तो स्वाभाभिक है.
"साली भोसर्चोदि मुझे चुगलखोर बोलती है सारे गाओं को बता दूँगी बेटाचोदी तू किस किस से मरवाती फिरती है" इतनी देर में आस पास की नहाने आई बहुत सारी औरते जमा हो गई. ये कोई नई बात तो थी नही रोज तालाब पर नहाते समय किसी ना किसी का पंगा होता ही था और अधनंगी औरते एक दूसरे के साथ भिड़ जाती थी, दोनो एक दूसरे को नोच ही डालती मगर तभी एक बुढ़िया बीच में आ गई. फिर और भी औरते आ गई और बात सम्भाल गई. दोनो को एक दूसरे से दूर हटा दिया गया.
नहाना ख़तम कर दोनो वापस अपने घर को लौट गई मगर आया के दिल में तो काँटा घुस गया था. इश्स गाओं में और कोई इतने बड़ा दिलवाला है नही जो उस रंडी को पायल दे. तभी ध्यान आया की चौधरैयन का बेटा मुन्ना उस दिन खेत में पटक के जब लाजवंती की ले रहा था तब उसने पायल देने की बात कही थी, कही उसी ने तो नही दिया. फिर रात में लाजवंती और बसंती जिस तरफ से आ रही थी उसी तरफ तो चौधरी का आम का बगीचा है. बस फिर क्या था अपने भारी भरकम पिच्छवाड़े को मॅटकाते हुए सीधा चौधरैयन के घर की ओर दौड़ पड़ी.
चौधरैयन ने जब आया को देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई. हस्ती हुई बोली "क्या रे कैसे रास्ता भूल गई…कहा गायब थी….थोड़ा जल्दी आती अब तो मैने नहा भी लिया"
माथे का पसीना पोछ्ति हुई आया बोली "का कहे मालकिन घर का बहुत सारा काम….फिर तालाब पर नहाने गई तो वाहा…"
"क्यों क्या हुआ तालाब पर…?"
"छोड़ो मालकिन तालाब के किससे को, ये सब तो…अंदर चलो ना बिना तेल के थोड़ी बहुत तो सेवा कर दू.."
"आररी नही रहने दे…" पर आया के ज़ोर देने पर शीला देवी ने पलंग पर लेट अपने पैर पसार दिए. आया पास बैठ कर शीला देवी के पैरों के तलवे को अपने हाथ में पकड़ हल्के हल्के मसल्ते हुए दबाने लगी. शीला देवी ने आँखे बंद कर रखी थी. आया कुच्छ देर तक तो इधर उधर की बकवास करती रही फिर पेट में लगी आग भुझाने के लिए बोली "मालकिन मुन्ना बाबू कहा है नज़र नही आते…पहले तो गाओं के लड़कों को साथ घूमते फिरते मिल जाते थे अब तो…."
"उसके दिमाग़ का कुच्छ पता चलता….घर में ही होगा अपने कमरे में सो रहा होगा.."
"ये कोई टाइम है भला सोने का….रात में ठीक से सोते नही का…"
"नही सुबह में बड़ी जल्दी उठ जाता है….इसलिए शायद दिन में सोता है बेचारा"
"सुबह में जल्दी उठ जाते या फिर रात भर सोते ही नही है…." बाए जाँघ को धीरे धीरे दबाती हुई आया बोली.
"अर्रे रात भर क्यों जागेगा भला…"
"मालकिन जवान लड़के तो रात में ही जागते है…" कह कर दाँत निकाल कर हँसने लगी.
"चुप कमिनि जब भी आती है….उल्टा सीधा ही बोलती है"
चौधरैयन की ये बात सुन आया दाँत निकाल कर हँसने लगी. शीला देवी ने आँखे खोल कर उसकी तरफ देखा तो आँखे नचा कर बोली "बड़ी भोली हो आप भी चौधरैयन….जवान लंडो के लिए इश्स गाओं में कोई कमी है क्या…फिर अपने मुन्ना बाबू तो….सारी कहानी तो आपको पता ही है…"
"चुप रह चोत्ति…तेरी बातो पर विस्वास कर के मैने क्या-क्या सोच लिया था…मगर जिस दिन तू ये सब बता के गई थी उसी दिन से मैं मुन्ना पर नज़र ��खे हू. वो बेचारा तो घर से निकलता ही नही था. चुपचाप घर में बैठा रहता था….अगर मेरे बेटे को इधर उधर मुँह मारने की आदत होती तो घर में बैठा रहता" (जैसा की आपको याद होगा मुन्ना जब अपनी मा के कमरे में आया के मालिश करते समय घुस गया था और शीला देवी के मस्ताने रसीले रूप ने उसके होश उड़ा कर रख दिए थे तो तीन चार दिन तो ऐसे ही गुम्सुम सा घर में घुसा रहा था)
"पता नही…मालकिन मैने तो जो देखा था वो सब बताया था..अब अगर मैं बोलूँगी की आज ही सुबह मैने मुन्ना बाबू को आम के बगीचे की तरफ से आते हुए देखा था तो फिर….." शीला देवी चौंक कर बैठती हुई बोली "क्या मतलब है तेरा…वो क्यों जाएगा सुबह-सुबह बगीचे में"
"अब मुझे क्या पता क्यों गये थे…मैने तो सुबह में उधर से आते देखा सो बता दिया, सुबह में लाजवंती और बसंती को भी आते हुए देखा.…लाजवंती तो नया पायल पहन ठुमक ठुमक कर चल….."
बस इतना ही काफ़ी था, shiला देवी जो कि अभी झपकी ले रही थी उठ कर बैठ गई नथुने फूला कर बोली ""एक नंबर की छिनाल है तू…हराम्जादी…कुतिया तू बाज़ नही आएगी… …रंडी…निकल अभी तू यहा से …चल भाग….दुबारा नज़र मत आना…" शीला देवी दाँत पीस पीस कर मोटी मोटी गालियाँ निकल रही थी. आया समझ गई की अब रुकी तो खैर नही. उसने जो करना है कर दिया बाकी चौधरैयन की गालियाँ तो उसने कई बार खाई है. आया ने तुरंत दरवाजा खोला और भाग निकली.
आया के जाने के बाद चौधरैयन का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ ठंडा पानी पी कर बिस्तर पर धम से गिर पड़ी. आँखो की नींद अब उड़ चुकी थी. कही आया सच तो नही बोल रही…उसकी आख़िर मुन्ना से क्या दुस्मनि जो झूठ बोलेगी. पिच्छली बार भी मैने उसकी बातो पर विस्वास नही किया था. कैसे पता चलेगा.
दीनू को बुलाया फिर उसे एक तरफ ले जाकर पुचछा. वो घबरा कर चौधरैयन के पैरो में गिर परा और गिड-गिडाने लगा "मालकिन मुझे माफ़ कर दो….मैने कुच्छ नही…मालकिन मुन्ना बाबू ने मुझे बगीचे पर जाने से मना किया…मेरे से चाभी भी ले ली…मैं क्या करता…उन्होने किसी को बताने से मना…" शीला देवी का सिर चकरा गया. एक झटके में सारी बात समझ में आ गई.
कमरे में वापस आ आँखो को बंद कर बिस्तर पर लेट गई. मुन्ना के बारे में सोचते ही उसके दिमाग़ में एक नंगे लड़के की तस्वीर उभर आती थी जो किसी लड़की के उपर चढ़ा हुआ होता. उसकी कल्पना में मुन्ना एक नंगे मर्द के रूप में नज़र आ रहा था. शीला देवी बेचैनी से करवट बदल रही थी नींद उनकी आँखो से कोषो दूर जा चुकी थी. उनको अपने बेटे पर गुस्सा भी आ रहा था कि रंडियों के चक्कर में इधर उधर मुँह मारता फिर रहा है. फिर सोचती मुन्ना ने किसी के साथ ज़बरदस्ती तो की नही अगर गाओं की लड़कियाँ खुद मरवाने के लिए तैय्यार है तो वो भी अपने आप को कब तक रोकेगा. नया लड़का है, आख़िर उसको भी गर्मी चढ़ती होगी छेद तो खोजेगा ही…घर में छेद नही मिलेगा तो बाहर मुँह मारेगा. क्या सच में मुन्ना का हथियार उतना बड़ा है जितना आया बता रही थी. बेटे के लंड के बारे में सोचते ही एक सिहरन सी दौड़ गई साथ ही साथ उसके गाल भी लाल हो गये. एक मा हो कर अपने बेटे के…औज़ार के बारे में सोचना…करीब घंटा भर वो बिस्तर पर वैसे ही लेटी हुई मुन्ना के लंड और पिच्छली बार आया की सुनाई चुदाई की कहानियों को याद करती, अपने जाँघो को भीचती करवट बदलते रही.
खाट-पाट की आवाज़ होने पर शीला देवी ने अपनी आँखे खोली तो देखा मुन्ना उसके कमरे के आगे से गुजर रहा था. शीला देवी ने लेटे लेटे आवाज़ लगाई "मुन्ना…मुन्ना ज़रा इधर आ…". शीला देवी की आवाज़ सुनते ही उसके कदम रुक गये और वो कमरे का दरवाज़ा खोल कर घुसा. शीला देवी ने उसको उपर से नीचे देखा, हाफ पॅंट पर नज़र जाते ही वो थोड़ा चौंक गई. इस समय मुन्ना की हाफ पॅंट में तंबू बना हुआ था. पर ��पने आप को सम्भहाल थोड़ा उठ ती हुई बोली " इधर आ ज़रा…". शीला देवी की नज़रे अभी भी उसके तंबू में बने खंभे पर टिकी हुई थी.
ये देख मुन्ना ने अपने हाथ को पॅंट के उपर रख अपने लंड को छुपाने की कोशिश की और बोला "जी….मा क्या बात है…" मुन्ना, शीला देवी से डरता बहुत था. पेशाब लगी थी मगर बोल नही पाया की मुझे बाथरूम जाना है.
लगता है इसे पेशाब लगी है…तभी हथियार खड़ा करके घूम रहा है, घर में अंडरवेर नही पहनता है शायद, ये सोच शीला देवी के बदन में सनसनी दौड़ गई. शायद आया ठीक कहती है.
"क्या बात है तुझे बाथरूम जाना है क्या…"
"नही नही मा..तुम बोलो ना क्या बात है…" अपने हाथो को पॅंट के उपर रख कर खरे लंड को छुपाने की कोशिश करने लगा. शीला देवी कुच्छ देर तक मुन्ना को देखती रही…फिर बोली "तू आज कल इतनी जल्दी कैसे उठ जाता है फिर सारा दिन सोया रहता है…क्या बात है". मुन्ना इस अचानक सवाल से घबरा गया अटकते हुए बोला "कोई बात नही है मा…सुबह आँख खुल जाती है तो फिर उठ जाता हू…"
"तू बगीचे पर हर रोज जाता है क्या…"
इस सवाल ने मुन्ना को चौंका दिया. उसकी नज़रे नीचे को झुक गई. शीला देवी तेज नज़रो से उसे देखती रही. फिर अपने पैर समेट ठीक से बैठते हुए बोली "क्या हुआ…मैं पुच्छ रही हू, बगीचे पर गया था क्या जवाब दे…"
"वो..वो मा..बस थोड़ा…सुबह आँख खुल गई थी टहलने च…चला गया…" मुन्ना के चेहरे का रंग उड़ चुक्का था.
शीला देवी ने फिर कड़कती आवाज़ में पुचछा "तू रात में भी वही सोता है ना…?" इस सवाल ने तो मुन्ना का गांद का बॅंड बजा दिया. उसका कलेज़ा धक से रह गया. ये बात मम्मी को कैसे पता चली. हकलाते हुए जल्दी से बोल पड़ा "नही…नही …मा…ऐसा…किसने…कहा…मैं भला रात में वहाँ क्यों…"
"तो फिर दीनू झूठ बोल रहा है…चौधरी साहिब से पुच्छू क्या…उन्होने किसको दी थी चाभी…" मुन्ना समझ गया की अगर मम्मी ने चौधरी से पुचछा तो वो तो शीला देवी के सामने झूठ बोल नही पाएँगे और उसकी चोरी पकड़ी जाएगी. साले दीनू ने फसा दिया. कल रात ही लाजवंती वादा करके गई थी कि एक नये माल को फसा कर लाउन्गि. सारा प्लान चौपट. तभी शीला देवी अपने तेवर थोड़ा ढीला करती हुई बोली "अपनी ज़मीन जयदाद की देख भाल करना अच्छी बात है, तू आम के बगीचे पर जाता है…कोई बात नही मगर मुझे बता देता….किसी नौकर को साथ ले जाता…"
"नौकरो को वाहा से हटाने के लिए ही तो मैं वाहा जाता हू…सब चोर है" मुन्ना को मौका मिल गया था और उसने तपाक से बहाना बना लिया.
"तो ये बात तूने मुझे पहले क्यों नही बताई…"
"वो मा..मा मैं डर गया था कि तुम गुस्सा करोगी…"
"ठीक है जा अपने कमरे में बैठ बाद में बात करती हू तेरे से…कही जाने की ज़रूरत नही है और खबरदार जो दीनू को कुच्छ बोला तो…". मुन्ना चुपचाप अपने कमरे में आ कर बैठ गया समझ में नही आ रहा था की क्या करे. इधर शीला देवी के मन में हलचल मच गई थी. अब उसे पूरा विस्वास हो गया था कि जो कुच्छ भी आया बोल रही थी वो सच था. मुन्ना हर रोज बगीचे पर जाकर रात भर किसी के साथ मज़ा करता है. गाओं में रंडियों की कोई कमी नही, एक खोजेगा हज़ार मिलेंगी. उसने कल्पना में मुन्ना के हथियार के बारे में सोचने की कोशिश की. फिर खुद से शरमा गई. उसने आज तक उतना बड़ा लंड नही देखा था जितने बड़े लंड के बारे में आया ने कहा था. उसने तो आज तक केवल अपने पति चौधरी का लन्ड देखा था जो लगभग 6 इंच का रहा होगा. और अब तो वो 6 इंच का लंड भी पता नही किसकी गांद में घुस गया था, कभी बाहर निकलता ही नही था. पता नही कितने दिन, महीने या साल बीत गये, उसे तो याद भी नही है, जब अंतिम बार कोई हथियार उसकी बिल में घुसा था. ये सब सोचते सोचते जाँघो के बीच सरसराहट हुई. साडी के उपर से ही हाथ लगा कर अपनी चूत को हल्का सा दबाया, चूत गीली हो चुकी थी. बेटे के लंड ने बेचैनी इतनी बढ़ा दी कि रहा नही गया और बिस्तर से उठ कर बाहर निकली. मुन्ना के कमरे का दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ था. धीरे से अंदर घुसी तो तो देखा मुन्ना बिस्तर पर आँखो के उपर हाथ रख कर लेटा हुआ एक हाथ पॅंट के अंदर घुसा कर हल्के हल्के चला रहा था. खड़ा लंड पॅंट के उपर से दिख रहा था. शीला देवी के कदम वही जमे रह गये, फिर दबे पाओ वापस लौट गई. बिस्तर पर लेट ते हुए सोचने लगी पता नही कितनी गर्मी है इस लड़के में. शायद मूठ मार रहा था. जबकि इसने रात में दो-दो लरकियों की चुदाई की होगी. जब जवान थी तब भी चौधरी ज़यादा से ज़यादा रात भर में उसकी दो बार लेता था वो भी शुरू के एक महीने तक. फिर पता नही क्या हुआ कुच्छ दिन बाद तो वो भी ख़तम हो गया हफ्ते में दो बार फिर घट कर एक बार से कभी कभार में बदल गया. और अब तो पता नही कितने दिन हो गये. आज तक जिंदगी में बस एक ही लंड से पाला पड़ा था. जबकि अगर आया की बातों पर विस्वास करे तो गाओं की हर औरत कम से कम दो लंडो से अपनी चूत की कुटाई करवा रही थी. उसी की किस्मत फूटी हुई थी. कुच्छ रंडियों ने तो अपने घर में ही इंतेज़ाम कर रखा था. यहा तो घर में भी कोई नही, ना देवर ना जेठ. एक लड़क��� जवान हो गया है…मगर वो भी बाहर की रंडियों के चक्कर में…..मेरी तरफ तो किसी का…अपने घर का माल है…मगर बेटा है कैसे उसके साथ…उसका दिमाग़ घूम फिर कर मुन्ना के औज़ार की तरफ पहुच जाता था. उत्तेजना अब उसके उपर हावी हो गई थी. छूत पासीज कर पानी छोड़ रही थी. दरवाजा बंद कर साड़ी उठा कर अपनी दो उंगलियों को चूत में डाल कर सहलाते हुए रगड़ने लगी.
उंगली को मुन्ना का लंड समझ कच-कच कर चूत में जब अंदर बाहर किया तो पूरे बदन में आग लग गई. बेटे के लंड से चुदवाने के बारे में सोचने से ही इतना मज़ा आ रहा था कि वो एकदम छॅट्पाटा गई. एक हाथ से अपनी चुचि को खुद से पूरी ताक़त से मसल दिया…मुँह से आह निकल गई. उसके बदन में कसक उठने लगी. दिल कर रहा था कोई मर्द उसे अपनी बाहों में लेकर उसकी हड्डियाँ तर-तरा दे. उसकी इन उठी हुई नुकीली चुचियों को अपनी छाती से दबा कर मसल दे…. चूत में चीटियाँ सरसराने लगी थी. गन्न्ड़ में सुरसुरी होने लगी थी. भग्नाशा खड़ा होकर लाल हो चुका था और चाह रहा था कि कोई उसे मसल कर उसकी गर्मी शांत कर दे…. मगर अफ़सोस हाथ का सहारा ही उसके पास था. छॅट्पाटा ते हुए उठी और किचन में जा एक बैगान उठा लाई और कोल्ड क्रीम लगा कर अपनी चूत में डालने की कोशिश की.
मगर अभी तोड़ा सा ही बैगान गया था कि चूत में छीलकं सा महसूस हुआ, दोनो टाँगे फैला कर चूत को देखने लगी. बैगान को थोडा और ठेला तो समझ में आ गया इतने दीनो से मशीन बंद रहने के कारण छेद सिकुड गया है. "….मोटा लंड मिल जाए फिर चाहे किसी का….इश्स….उफफफफ्फ़ मैं भी कैसी छिनाल…पर अब सहा नही जा रहा…कितने दीनो तक छेद और मुँह बंद…कर के….." चूत लंड माँग रही थी, चूत के कीड़े मचल रहे थे बुर की गुलाबी पत्तियाँ फेडक कर अपना मुँह खोल रही. उसकी मशीन आयिलिंग माँग रही थी. बेटे के लंड ने इतने दीनो से दबी कुचली हुई भावनाओ को भड़का दिया. कुच्छ देर बाद जैसे तैसे बैगान पेल कर चूत के अंदर बाहर करते हुए अपने आप को संतुष्ट कर वैसे ही अस्त वयस्त हालत में सो गई.
शाम हो चुकी थी और शीला देवी बाहर नही निकली. गाओं में तो लोग शाम सात-आठ बजे ही खाना खा लेते है. सावन का महीना था बादलो के कारण अंधेरा जल्दी हो गया था गर्मी भी बहुत लग रही थी. मुन्ना अपने कमरे से निकला देखा मा का कमरा अभी भी बंद है घर में अभी तक खाना बनाने की खाट-पाट शुरू हो जाती थी. चक्कर क्या है ये सोच उसने हल्के से शीला देवी के कमरे के दरवाज़े को धकेला दरवाज़ा खुल गया. दरअसल शीला देवी जब किचन से बैगन ले कर वापस आई थी तो फिर दरवाज़ा बंद करना भूल गई थी. अंदर झाँकते ही ऐसा लगा जैसे लंड पानी फेंक देगा... मुन्ना की आँखो के सामने पलंग ��र उसकी मा आस्त व्यस्त हालत में लेटी हुई नाक बजा रही थी. साड़ी उसके जाँघो तक उठी हुई थी और आँचल एक तरफ लुढ़का पड़ा था और ब्लाउस के बटन खुले हुए थे, एक चुचि पर से ब्लाउस का कपड़ा हटा हुआ था जिसके कारण काले रंग की ब्रा दिख रही थी. शीला देवी एकदम गहरी नींद में थी. हर साँस के साथ उसकी नुकीली चूचियाँ उपर नीचे हो रही थी. मुन्ना की साँस रुक गई. उस दिन आया जब मालिश कर रही थी तब उसने पहली बार अपनी मा को अर्धनग्न देखा था. images
उस दिन वो बस एक झलक ही देख पाया था और उसके होश उड़ गये थे. आज शीला देवी आराम से सोई हुई थी. वो बिना किसी लाज-शरम आँखे फाड़ उसको निहारने लगा. ब्रा के अंदर से झाँकती गोरी चुचि, गुदाज पेट और मोटी-मोटी जाँघो ने उसके होश उड़ा दिए. मोटी मांसल, गोरी, चिकनी जंघे…मामी की जाँघ से थोड़ा सा ज़यादा मोटी …चुचि भी एक दम ठोस नुकीली… "काश ये साड़ी थोड़ी और उपर होती..अफ… ये बैगन यहा पलंग पर क्या कर रहा है"…अभी मुन्ना सोच ही रहा था कि कमरे के अंदर घुस कर पलंग के नीचे बैठ दोनो टाँगो के बीच देखु. "छ्होटे मलिक…मालकिन को जगाओ…क्या खाना बनाना है..ज़रा पुछो तो सही…" पिछे से एक बुढ़िया नौकरानी की आवाज़ सुनाई दी
"आ ..हा..हा .. अभी जगाता हू.." कहते हुए मुन्ना ने दरवाज़े पर दस्तक दी. शीला देवी एक दम हॅड-बडाते हुए उठ कर बैठ गई झट से अपनी साड़ी को नीचे किया आँचल को उठा छाती पर रखा " आ हा..क्या बात है…"
"मा वो नौकरानी पुच्छ रही है…क्या खाना बनेगा…अंधेरा हो गया…मैने सोचा तुम इतनी देर तक तो…"
"पता नही क्यों आज..आँख लग गई थी ...अभी बताती हू उसको…" और पलंग से नीचे उतर गई. मुन्ना जल्दी से अपने कमरे में भाग गया. पॅंट खोल कर देखा तो लंड लोहा बना हुआ था और सुपरे पर पानी की दो बूंदे छलक आई थी.
खाना खाने के बाद शीला देवी मुन्ना के कमरे में गई और पुछा "आज बगीचे पर नही जाएगा क्या…". मुन्ना ने तो बगीचे पर जाने का इरादा छोड़ दिया था. वो समझ गया था कि भले ही शीला देवी ने कुच्छ बोला नही फिर भी उसके कारनामो की खबर उसको ज़रूर हो गई होगी.
"जाना तो था…मगर आप तो मना कर रही…".
"नही, मैने कब मना किया…वैसे भी बहुत आम चोरी हो रहे है…कम से कम तू देख भाल तो कर लेता है…"
मुन्ना खुशी से उच्छल पड़ा "तो फिर मैं जाउ…".
"हा हा…जा ज़रूर जा…और किसी नौकर को भी साथ लेता जा…"
गाँव का राजा पार्ट -11
"अरे मा उसकी कोई ज़रूरत नही है….मैं अभी निकलता हू…" कहते हुए मुन्ना उठ कर लूँगी पहन ने लगा. शीला देवी अपने बेटे के मजबूत बदन को घूरती हुई बोली "ना..ना अकेले तो जाना ही नही है….किसी नौकर को नही ले जाना तो मैं चलती हूँ…" इस धमाके ने मुन्ना के लूँगी की ओर बढ़ते हाथो को रोक दिया. कुच्छ देर तक तो वो शीला देवी का चेहरा असचर्या से देखता रह गया. फिर अपने आप को संभालते हुए बोला "ओह मा तुम वाहा क्या करने जाओगी…मैं अकेला ही…"
"नही मैं भी चलती हू…बहुत टाइम हो गया…बहुत पहले गर्मियों में कई बार चौधरी शहिब के साथ वाहा पर सोई हू….कई बार तो रात में ही हमने आम तोड़ के खाए है…चल मैं चलती हू...". मुन्ना विरोध नही कर पाया.
"ठहर जा ज़रा टॉर्च तो ले लू…."
फिर शीला देवी टॉर्च लेकर मुन्ना के साथ निकल पड़ी. शीला देवी ने अपनी साड़ी बदल ली थी और अपने आप को सवार लिया था. मुन्ना ने अपनी मा को नज़र भर कर देखा एक दम बनी ठनी, बहुत खूबसूरत लग रही थी.
मुन्ना की नज़रो को भापते हुए वो हस्ते हुए बोली "क्या देख रहा है…" हस्ते समय शीला देवी की गालो में गड्ढे पड़ते थे.
" कुच्छ नही मैं सोच रहा था तुम्हे कही और तो नही जाना…" शीला देवी के होंठो पर मुस्कुराहट फैल गई. हस्ते हुए बोली "ऐसा क्यों…मैं तो तेरे साथ बगीचे पर चल..."
"नही तुमने साड़ी बदली हुई है तो…"
"वो तो ऐसे ही बदल लिया…क्यों अच्छा नही लग रहा…"
"नही बहुत अच्छा लग….तुम बहुत सुंदर…" बोलते हुए मुन्ना थोड़ासा सरमाया तो शीला देवी हल्के हँस दी. शीला देवी के गालो में पड़ते गड्ढे देख मुन्ना के बदन में सिहरन हो गई. मुन्ना थोड़ा धीरे चल रहा था. मा के पीछे चलते हुए उसके मस्ताने मटकते चूतरो पर नज़र पड़ी तो उसका मन किया की धीरे से पिछे से शीला देवी को पकड़ ले और लंड को गांद की दरार में लगा कर प्यार से उसके गालो को चूसे. उसके गालो के गड्ढे में अपनी जीभ डाल कर चाट ले. पीछे से साड़ी उठा कर उसके अंदर अपना सिर घुसा दे और दोनो चूतरों को मुट्ठी में भर कर मसल्ते हुए गांद की दरार में अपना मुँह घुसा दे. बहुत दिन हो गये थे किसी की गांद चाटे, पर इसके लिए उर्मिला देवी जैसी खूबसूरत गदराई जवानी भी तो चाहिए. मामी के साथ बिताए पल याद आ गये जब वो किचन में काम करती मुन्ना पिछे से गाउन उठा उसके अंदर घुस कर चूत और गांद चाट ता था. मा की तो मामी से भी दो कदम आगे होगी. कितनी गतीली और सुंदर लग रही है. लूँगी के अंदर लंड तो फरफदा रहा था मगर कुच्छ कर नही सकता था. आज तो लाजवंती का भी कोई चान्स नही था. तभी ध्यान आया कि लाजवंती को तो बताया ही नही. डर हुआ कि कही वो मा के सामने आ गई तो क्या करूँगा. और वही हुआ बगीचे पर पहुच कर खलिहान या मकान जो भी कहिए उसका दरवाजा ही खोला था कि बगीचे की बाउंड्री का गेट खोलती हुई लाजवंती और एक और औरत घुसी. अंधेरा तो बहुत ज़यादा था मगर फिर भी किसी बिजली के खंभे की रोशनी बगीचे में आ रही थी. शीला देवी ने देख लिया और बोली "कौन घुस रहा है बगीचे में…" मुन्ना ने भी पलट कर देखा, तुरंत समझ गया की लाजवंती होगी. इस से पहले की कुच्छ बोल पाता शीला देवी की कॅड्क आवाज़ पूरे बगीचे में गूँज गई "कौन है रे….ठहर अभी बताती हू.." इसके साथ ही शीला देवी ने दौड़ लगा दी " साली आम चोर कुतिया….ठहर वही पर…." भागते भागते एक डंडा भी हाथ में उठा लिया था. शीला देवी की कदकती आवाज़ जैसे ही लाजवंती के कानो में पड़ी उसकी तो गांद का पाखाना तक सुख गया. अपने साथ लाई औरत का हाथ पकड़ घसीटती हुई बोली "ये तो चौधरैयन…है….चल भाग…" दोनो औरते बेतहाशा भागी. पीछे शीला देवी हाथ में डंडा लिया गालियो की बौच्हर कर रही थी. दोनो जब बाउंड्री के गेट के बाहर भाग गई तो शीला देवी रुक गई. गेट को ठीक से बंद किया और वापस लौटी. मुन्ना खलिहान के बाहर ही खड़ा था. शीला देवी की साँसे फूल रही थी. डंडे को एक तरफ फेंक कर अंदर जा कर धम से बिस्तर पर बैठ गई और लंबी लंबी साँसे लेते हुए बोली "साली हरमज़ड़िया…देखो तो कितनी हिम्मत है शाम होते ही आ गई चोरी करने…अगर हाथ आ जाती तो सुअरनियों की गांद में डंडा पेल देती…हरम्खोर साली तभी तो इस बगीचे से उतनी कमाई नही होती जितनी पहले होती थी….मदर्चोदिया अपनी चूत में आम भर भर के ले जाती है…��ंडियों का चेहरा नही देख पाई…" मुन्ना शीला देवी के मुँह से ऐसी मोटी मोटी भद्दी गालियों को सुन कर सन्न रह गया. हालाँकि वो जानता था की उसकी मा करक स्वाभाव की है और नौकर चाकरो को गालियाँ देती रहती है मगर ऐसी गंदी-गंदी गलियाँ उसके मुँह से पहली बार सुनी थी, हिम्मत करके बोला
"अरे मा छोड़ो ना तुम भी…भगा तो दिया…अब मैं यहा आ रहा हू ना देखना इस बार अच्छी कमाई…"
"ना ना…ऐसे इनकी आदत नही छूटने वाली…जब तक पकड़ के इनकी चूत में मिर्ची नही डालोगे ना बेटा तब तक ये सब भोशर्चोदिया ऐसे ही चोरी करने आती रहेंगी….माल किसी का खा कोई और रहा है…"
मुन्ना ने कभी मा को ऐसे गलियाँ देते नही सुना था. बोल तो कुच्छ सकता नही था मगर उसे उर्मिला देवी यानी अपनी प्यारी छिनाल, चुदक्कर मामी की याद आ गई, जो चुदवाते समय अपने सुंदर मुखरे से जब गंदी गंदी बाते करती थी तब उसका लंड लोहा हो जाता था. शीला देवी के खूबसूरत चेहरे को वो एकट�� देखने लगा भरे हुए कमनिदार होंठो को बिचकती हुई जब शीला देवी ने दो चार और मोटी गलियाँ निकाली तो उसके इस छिनल्पन को देख मुन्ना का लंड खड़ा होने लगा. मन में आया उसके उन भरे हुए होंठो को अपने होंठो में कस ले और ऐसा चुम्मा ले की होंठो का सारा रस चूस ले. खड़े होते लंड को छुपाने के लिए जल्दी से बिस्तर पर अपनी मा के सामने बैठ गया. शीला देवी की साँसे अभी काफ़ी तेज चल रही थी और उसका आँचल नीचे उसकी गोद में गिरा हुआ था. मोटी-मोटी चुचियाँ हर साँस के साथ उपर नीचे हो रही थी. गोरा चिकना मांसल पेट. मुन्ना का लंड पूरा खड़ा हो चुका था. तभी शीला देवी ने पैर पसारे और अपनी साड़ी को खींचते हुए घुटनो से थोड़ा उपर तक चढ़ा एक पैर मोड़ कर एक पैर पसार कर अपने आँचल से माथे का पसीना पोछती हुई बोली "हरम्खोरो के कारण दौड़ना पद गया…बड़ी गर्मी लग रही है खिड़की खोल दे बेटा". जल्दी से उठ कर खिड़की खोलने गया. लंड ने लूँगी के कपड़े को उपर उठा रखा था और मुन्ना के चलने के साथ हिल रहा था. शीला देवी की आँखो में अज़ीब सी चमक उभर आई थी वो एकदम खा जाने वाली निगाहों से लूँगी के अंदर के डोलते हुए हथियार को देख रही थी. मुन्ना जल्दी से खिड़की खोल कर बिस्तर पर बैठ गया, बाहर से सुहानी हवा आने लगी. उठी हुई साड़ी से शीला देवी गोरी मखमली टाँगे दीख रही थी. शीला देवी ने अपने गर्दन के पसीने को पोछ्ते हुए अपनी ब्लाउस के सबसे उपर वाले बटन को खोल दिया और साड़ी के पल्लू को ब्लाउस के भीतर घुसा पसीना पोच्छने लगी. पसीने के कारण ब्लाउस का उपरी भाग भीग चुका था. ब्लाउस के अंदर हाथ घुमाती बोली "बहुत गर्मी है..बहुत पसीना आ गया". मुन्ना मुँह फाडे ब्लाउस में घूमते हाथ को देखता हुआ भौचक्का सा बोल पड़ा "हा..आह पूरा ब्लाउस भीग..गया.."
"तू शर्ट खोल दे…बनियान तो पहन ही रखी होगी…".
साड़ी को और खींचती थोड़ा सा जाँघो के उपर उठाती शीला देवी ने अपने पैर पसारे "साड़ी भी खराब हो….यहा रात में तो कोई आएगा नही…"
"नही मा यहा…रात में कौन…"
"पता नही कही कोई आ जाए….किसी को बुलाया तो नही" मुन्ना ने मन ही मन सोचा जिसको बुलाया था उसको तो भगा दिया, पर बोला "नही..नही…किसी को नही बुलाया"
"तो मैं भी साड़ी उतार देती हू…" कहती हुई उठ गई और साड़ी खोलने लगी. मुन्ना भी गर्दन हिलाता हुआ बोला "हा मा..फिर पेटिकोट और ब्लाउस…सोने में भी हल्का…"
"हा सही है….पर तू यहा सोने के लिए आता है…सो जाएगा तो फिर रखवाली कौन करेगा…"
"मैं अपने सोने की बात कहा कर रहा हू…तुम सो जाओ…मैं रखवाली करूँगा…"
"मैं भी तेरे साथ रखवाली करूँगी…"
"तब तो हो गया काम…तुम तो सब के पिछे डंडा ले कर दौरोगी…"
"क्यों तू नही दौड़ता डंडा ले कर….मैने तो सुना है गाओं की सारी छ्होरियों को अपने डंडे से धमकाया हुआ है तूने.."
मुन्ना एकदम से झेंप गया "धात मा…क्या बात कर रही हो…"
"इसमे शरमाने की क्या बात है…ठीक तो करता है अपना आम तुझे खुद खाना है….सब चूत्मरानियो को ऐसे ही धमका दिया कर…." मुन्ना की रीढ़ की हद्ढियों में सिहरन दौड़ गई. शीला देवी के मुँह से निकले इस चूत सब्द ने उसे पागल कर दिया. उत्तेजना में अपने लंड को जाँघो के बीच ज़ोर से दबा दिया. चौधरायण ने साड़ी खोल एक ओर फेंक दिया और फिर पेटिकोट को फिर से घुटने के थोड़ा उपर तक खींच कर बैठ गई और खिड़की के तरफ मुँह घुमा कर बोली "लगता है आज बारिश होगी".
मुन्ना कुच्छ नही बोला उसकी नज़रे तो शीला देवी की गोरी गथिलि पिंदलियों का मुआएना कर रही थी. घूमती नज़रे जाँघो तक पहुच गई और वो उसी में खोया रहता अगर अचानक शीला देवी ना बोल पड़ती "बेटे आम खाएगा…" मुन्ना ने चौंक कर नज़र उठा कर देखा तो उसे ब्लाउस के अंदर कसे हुए दो आम नज़र आए, इतने पास की दिल में आया मुँह आगेआ कर चुचियाँ को मुँह में भर ले दूसरे किसी आम के बारे में तो उसका दिमाग़ सोच भी नही पा रहा था हॅडबड़ाते हुए बोला "आम…कहा है आम….अभी कहा से…" शीला देवी उसके और पास आ अपने सांसो की गर्मी उसके चेहरे पर फेंकती हुई बोली "आम के बगीचे मैं बैठ कर…आम ढूँढ रहा है…" कह कर मुस्कुरई…".
"पर रात में…आम.." बोलते हुए मुन्ना के मन में आया की गड्ढे वाले गालो को अपने मुँह भर कर चूस लू.
धीरे से बोली "रात में ही खाने में मज़ा आता है…चल बाहर चलते है…" कहती हुई मुन्ना को एक तरफ धकेलते बिस्तर से उतारने लगी. इतने पास से बिस्तर से उतार रही थी की उसकी नुकीली चुचियों ने अपने चोंच से मुन्ना की बाहों को छु लिया. मुन्ना का बदन गन्गना गया. उठ ते हुए बोला "के मा…तुम भी क्या..क्या सोचती रहती हो…इतनी रात में आम कहा दिखेंगे"
"ये टॉर्च है ना…बारिश आने वाली है…जीतने भी पके हुए आम है गिर कर खराब हो जाएगे…." और टॉर्च उठा बाहर की ओर चल दी. आज उसकी चाल में एक खास बात थी, मुन्ना का ध्यान बरबस उसकी मटकती गुदाज कमर और मांसल हिलते चूतरों की ओर चला गया.
गाओं की अनचुदी जवान लौंदीयों को छोड़ने के बाद भी उसको वो मज़ा नही आया था जो उसे उसकी मामी उर्मिला देवी ने दिया था. इतनी कम उम्र में ही मुन्ना को ये बात समझ में आ गई थी की बड़ी उम्र की मांसल गदराई हुई औरतो को चोदने में जो मज़ा है वो मज़ा दुबली पतली अछूती चूतो को चोदने में नही. खेली खाई औरते कुतेव करते हुए लंड डलवाती है और उस समय जब उनकी चूत से फॅक फॅक…गछ गछ आवाज़ निकलती है तो फिर घंटो चोद्ते रहो…उनके मांसल गदराए जिस्म को जितनी मर्ज़ी उतना रागडो. एक दम गदराए गथीले चूतर, पेटिकोट के उपर से देखने से लग रहा था कि हाथ लगा कर अगर पकड़े तो मोटी मांसल चुटटरों को रगड़ने का मज़ा आ जाएगा
. ऐसे चूतर की उसके दोनो भागो को अलग करने के लिए भी मेहनत करनी पड़ेगी. फिर उसके बीच गांद का छोटा सा भूरे रंग का छेद बस मज़ा आ जाए. लूँगी के अंदर लंड फनफना रहा था. अगर शीला देवी उसकी मा नही होती तो अब तक तो वो उसे दबोच चुका होता. इतने पास से केवल पेटिकोट-ब्लाउस में पहली बार देखने का मौका मिला था. एक दम मस्त गदराई गथिलि जवानी थी. हर अंग फेडॅफाडा रहा था. कसकती हुई जवानी थी जिसको रगड़ते हुए बदन के हर हिस्से को चूमते हुए दन्तो से काट ते हुए रस चूसने लायक था. रात में सो जाने पर साड़ी उठा के चूत देखने की कोशिश की जा सकती थी, ज़्यादा परेशानी शायद ना हो क्योंकि उसे पता था कि गाओं की औरते पॅंटी नही पहनती. इसी उधेरबुन में फसा हुआ अपनी मा की हिलती गांद और उसमे फासे हुए पेटिकोट के कपड़े को देखता हुआ पिछे चलते हुए आम के पेड़ो के बीच पहुच गया. वाहा शीला देवी फ्लश लाइट (टॉर्च) जला कर उपर की ओर देखते हुए बारी-बारी से सभी पेड़ो पर रोशनी डाल रही थी.
"इस पेड़ पर तो सारे कच्चे आम है…इस पर एक आध ही पके हुए दिख रहे…"
"इस तरफ टॉर्च दिखाओ तो मा…इस पेड़ पर …पके हुए आम दिख…."
"कहा है…इस पेड़ पर भी नही है पके हुए…तू क्या करता था यहा पर….तुझे तो ये भी नही पता किस पेड़ पर पके हुए आम है…" मुन्ना ने शीला देवी की ओर देखते हुए कहा "पता तो है मगर उस पेड़ से तुम तोड़ने नही दोगि…".
"क्यों नही तोड़ने दूँगी…तू बता तो सही मैं खुद तोड़ कर ख़िलाउंगी...." फिर एक पेड़ के पास रुक गई "हा….देख ये पेड़ तो एकदम लदा हुआ है पके आमो से….चल ले टॉर्च पकड़ के दिखा मैं ज़रा आम तोड़ती हू…." कहते हुए शीला देवी ने मुन्ना को टॉर्च पकड़ा दी. मुन्ना ने उसे रोकते हुए कहा "क्या करती हो…कही गिर गई तो …..तुम रहने दो मैं तोड़ देता हू…."
"चल बड़ा आया…आम तोड़ने वाला…बेटा मैं गाओं में ही बड़ी हुई हू…जब मैं छ्होटी थी तो अपने सहेलियों में मुझ से ज़यादा तेज कोई नही था पेर पर चढ़ने में…देख मैं कैसे चढ़ती हू…"
"अर्रे तब की बात और…" पर मुन्ना की बाते उसक�� मुँह में ही रह गई और शीला देवी ने अपने पेटिकोट को थोड़ा उपर कर अपनी कमर में खोस लिया और पेड़ पर चढ़ना शुरू कर दिया. मुन्ना ने भी टॉर्च की रोशनी उसकी तरफ कर दी. थोड़ी ही देर में काफ़ी उपर चढ़ गई और पेड़ के दो डालो के उपर पैर जमा कर खड़ी हो गई और टॉर्च की रोशनी में हाथ बढ़ा कर आम तोड़ने लगी तभी टॉर्च फिसल कर मुन्ना की हाथो से नीचे गिर गयी.
"अर्रे…क्या करता है तू…ठीक से टॉर्च भी नही दिखा सकता क्या". मुन्ना ने जल्दी से नीचे झुक कर टॉर्च उठाया और फिर उपर किया…
"ठीक से दिखा….इधर की तरफ…" टॉर्च की रोशनी शीला देवी जहा आम तोड़ रही थी वाहा ले जाने के क्रम में ही रोशनी शीला देवी के पैरो के पास पड़ी तो मुन्ना के होश ही अर गये. शीला देवी ने अपने दोनो पैरो को दो डालो पर टीका के रखा हुआ था जिसके कारण उसका पेटिकोट दो भागो में बाट गया था और टॉर्च की रोशनी सीधा उसके दोनो पैरो के बीच के अंधेरे को चीरती हुई पेटिकोट अंदर के माल को रोशनी से जगमगा दिया. पेटिकोट के अंदर के नज़ारे ने मुन्ना की तो आँखो को चौंधिया दिया. टॉर्च की रोशनी में पेटिकोट के अंदर क़ैद चमचमाती मखमली टाँगे पूरी तरह से नुमाया हो गई, रोशनी पूरा उपर तक saved चूत भी दिखा रही थी. टॉर्च की रोशनी में कन्द्लि के खंभे जैसी चिकनी मोटी जाँघो और saved चूत को देख मुन्ना को लगा कि उसका लंड पानी फेंक देगा, उसका गला सुख गया और हाथ-पैर काँपने लगे. images
तभी शीला देवी की आवाज़ सुनाई दी "अर्रे कहा दिखा रहा है यहा उपर दिखा ना…". हकलाते हुए बोला "हा..हा अभी दिखाता…वो टॉर्च गिर गया था…" फिर टॉर्च की रोशनी चौधरैयन के हाथो पर फोकस कर दिया. चौधरायण ने दो आम तोड़ लिए फिर बोली "ले कॅच कर तो ज़रा…" और नीचे की तरफ फेंका, मुन्ना ने जल्दी से टॉर्च
को कांख में दबा दोनो आम बारी बारी से कॅच कर लिए और एक तरफ रख कर फिर से टॉर्च उपर की तरफ दिखाने लगा…और इस बार सीधा दोनो टॅंगो बीच में रोशनी फेंकी..इतनी देर में शीला देवी की टाँगे कुच्छ और फैल गई थी पेटिकोट भी थोडा उपर उठ गया था और चूत और ज़यादा सॉफ दिख रही थी. मुन्ना का ये भ्रम था या सच्चाई पर शीला देवी के हिलने पर उसे ऐसा लगा जैसे चूत के लाल लपलपते होंठो ने हल्का सा अपना मुँह खोला था. लेंड तो लूँगी के अंदर ऐसे खड़ा था जैसे नीचे से ही चौधरायण की चूत में घुस जाएगा. नीचे अंधेरा होने का फ़ायदा उठाते हुए मुन्ना ने एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर हल्के से दबाया. तभी शीला देवी ने "कहा ज़रा इधर दिखा…." मुन्ना ने वैसा ही किया पर बार-बार वो मौका देख टॉर्च की रोशनी को उसके टॅंगो के बीच में फेंक देता था. कुच्छ समय बाद शीला देवी बोली "और तो कोई पका आम नही दिख रहा.…चल मैं नीचे आ जाती हू वैसे भी दो आम तो मिल ही गये….तू खाली इधर उधर लाइट दिखा रहा है ध्यान से मेरे पैरों के पास लाइट दिखना". कहते हुए नीचे उतरने लगी. मुन्ना को अब पूरा मौका मिल गया ठीक पेड़ की जड़ के पास नीचे खड़ा हो कर लाइट दिखाने लगा. नीचे उतरती चुधरायण के पेटिकोट के अंदर रोशनी फेंकते हुए उसकी मस्त मांसल चिकनी जाँघो को अब वो आराम से देख सकता था क्योंकि चौधरैयन का पूरा ध्यान तो नीचे उतरने पर था, हालाँकि चूत का दिखना अब बंद हो गया था मगर चौधरैयन का मुँह पेड़ की तरफ होने के कारण पिछे से उसके मोटे मोटे चूतरो का निचला भाग पेटिकोट के अंदर दिख रहा था. मस्त गोरी गांद के निचले भाग को देख लंड अपने आप हिलने लगा था.
एक हाथ से लंड पकड़ कस कर दबाते हुए मुन्ना मन ही मन बोला "हाई मा ऐसे ही पेड़ पर चढ़ि रह उफ़फ्फ़…क्या गांद है…किसी ने आज तक नही मारी होगी एक दम अछूती गांद होगी….हाई मा…लंड ले कर खड़ा हू जल्दी से नीचे उतर के इस पर बैठ जा ना…" ये सोचने भर से लंड ने दो चार बूँद पानी टपका दिया. तभी शीला देवी जब एकदम नीचे उतरने वाली थी कि उसका पैर फिसला और हाथ छूट गया. मुन्ना ने हर्बरा कर नीचे गिरती शीला देवी को कमर के पास से पकड़ कर लपक लिया. मुन्ना के दोनो हाथ अब उसकी कमर से लिपटे हुए थे और चौधरैयन के दोनो पैर हवा में और चूतर उसकी कमर के पास. मुन्ना का लंड सीधा चौधरैयन की मोटी गुदाज गांद को छु रहा था. गुदाज मांसल पेट के फोल्ड्स उसकी मुट्ही में आ गये थे. हर्बराहट में दोनो की समझ में कुच्छ नही आ रहा था, कुच्छ पल तक मुन्ना ने भी उसके भारी सरीर को ऐसे ही थामे रखा और शीला देवी भी उसके हाथो को पकड़े अपनी गांद उसके लंड पर टिकाए झूलती रही.
कुच्छ देर बाद धीरे से शरमाई आवाज़ में बोली "हाई…बच गई…अभी गिर जाती..अब छोड़ ऐसे ही उठाए रखेगा क्या…" मुन्ना उसको ज़मीन पर खड़ा करता हुआ बोला "मैने तो पहले ही कहा था…" शीला देवी का चेहरा लाल पर गया था. हल्के से मुस्कुराती हुई कनखियों से लूँगी में मुन्ना के खड़े लंड को देखने की कोशिश कर रही थी. अंधेरे के कारण देख नही पाई मगर अपनी गांद पर अभी भी उसके लंड की चुभन का अहसास उसको हो रहा था. अपने पेट को सहलाते हुए धीरे से बोली "कितनी ज़ोर से पकड़ता है तू…लगता है निशान पड़ गया…" मुन्ना तुरंत टॉर्च जला कर उसके पेट को देखते हुए बुदबुदाते हुए बोला "…वो अचानक हो….". मुस्कुराती हुई शीला देवी धीरे कदमो से चलती मुन्ना के एकदम पास पहुच गई…इतने पास की उसकी दोनो चुचियों का अगला नुकीला भाग लगभग मुन्ना की छाती को टच कर रहा था और उसकी बनियान में कसी छाती पर हल्के से हाथ मारती बोली "पूरा सांड़ हो गया है…तू…मैं इतनी भारी हू…मुझे ऐसे टाँग लिया….चल आम उठा ले.
मुन्ना का दिल किया कि ब्लाउस में कसे दोनो आमो को अपनी मुट्ठी में भर कर मसल दे पर मन मार कर टॉर्च अपनी मा के हाथ में पकड़ा नीचे गिरे आमो को उठा लिया और अपनी मुट्ही में भर दबाता हुआ उसकी पठार जैसी सख़्त नुकीली चुचियों को घूरता हुआ बोला "पक गये है…चूस चूस…खाने में…". शीला देवी मुस्कुराती हुई शरमाई सी बोली "हा..चूस के खाने लायक…इसस्स…ज़यादा ज़ोर से मत दबा….सारा रस निकल जाएगा….आराम से खाना".
चलते-चलते शीला देवी ने एक दूसरे पेड़ की डाल पर टॉर्च की रोशनी को फोकस किया और बोली "इधर देख मुन्ना…ये तो एक ड्म पका आम है…. इसको भी तोड़…थोड़ा उपर है…तू लंबा है…ज़रा इस बार तू चढ़ के…" मुन्ना भी उधर देखते हुए बोला "हा है तो एकदम पका हुआ और काफ़ी बड़ा भी…है…तुम चढ़ो ना…चढ़ने में एक्सपर्ट बता रही थी उस समय"
"ना रे गिरते-गिरते बची हू…फिर तू ठीक से टॉर्च भी नही दिखाता…कहती हू हाथ पर तो दिखाता है पैर पर"
"हाथ हिल जाता है…."
धीरे से बोली मगर मुन्ना ने सुन लिया "तेरा तो सब कुच्छ हिलता है…तू चढ़ ना…उपर…"
मुन्ना ने लूँगी को दोहरा करके लपेटा लिया. इस से लूँगी उसके घुटनो के उपर तक आ गई. लंड अभी भी खड़ा था मगर अंधेरा होने के कारण पता नही चल रहा था. शीला देवी उसको पैरों पर टॉर्च दिखा रही थी. थोड़ी देर में ही मुन्ना काफ़ी उँचा चढ़ गया था. अभी भी वो उस जगह से दूर था जहा आम लटका हुआ था. दो डालो के उपर पैर रख जब मुन्ना खड़ा हुआ तब शीला देवी ने नीचे से टॉर्च की रोशनी सीधा उसके लूँगी के बीच डाली. चौड़ी चकली जाँघो के बीच मुन्ना का ढाई इंच मोटा लंड आराम से दिखने लगा. लंड अभी पूरा खड़ा नही था पेर पर चढ़ने की मेहनत ने उसके लंड को ढीला कर दिया था मगर अभी भी काफ़ी लंबा और मोटा दिख रहा था. शीला देवी का हाथ अपने आप अपनी जाँघो के बीच चला गया. नीचे से लंड लाल लग रहा था शायद सुपरे पर से चमड़ी हटी हुई थी. जाँघो को भीचती होंठो पर जीभ फेरती अपनी नज़रो को जमाए भूखी आँखो से देख रही थी. images
"अर्रे...रोशनी तो दिखाओ हाथो पर…."
"आ..हा..हा.. तू चढ़ रहा था….इसलिए पैरों पर दिखा…." कहते हुए उसके हाथो पर दिखाने लगी. मुन्ना ने हाथ बढ़ा कर आम तोड़ लिया. "लो पाकड़ो…". शीला देवी ने जल्दी से टॉर्च को अपनी कनखो में दबा कर अपने दोनो हाथ जोड़ लिए मुन्ना ने आम फेंका और शीला देवी ने उसको अपनी चुचियों के उपर उनकी सहयता लेते हुए कॅच कर लिया. फिर मुन्ना नीचे उतर गया और शीला देवी ने उसके नीचे उतर ते समय भी अपने आँखो की उसके लटकते लंड और अंडकोषो को देख कर अच्छी तरह से सिकाई की.
मुन्ना के लंड ने चूत को पनिया दिया. मुन्ना के नीचे उतर ते ही बारिश की मोटी बूंदे गिरने लगी. मुन्ना हर्बराता हुआ बोला "चलो जल्दी…भीग जाएँगे...." दोनो तेज कदमो से खलिहान की तरफ चल पड़े. अंदर पहुचते पहुचते थोड़ा बहुत तो भीग ही गये. शीला देवी का ब्लाउस और मुन्ना की बनियान दोनो पतले कपड़े के थे, भीग कर बदन से ऐसे चिपक गये थे जैसे दोनो उसी में पैदा हुए हो. बाल भी गीले हो चुके थे. मुन्ना ने जल्दी से अपनी बनियान उतार दी और पलट कर मा की तरफ देखा पाया की वो अपने बालो को तौलिए से रगड़ रही थी. भींगे ब्लाउस में कसी चुचियाँ अब और जालिम लग रही थी. चुचियों की चोंच स्पस्ट दिख रही थी. उपर का एक बटन खुला था जिस के कारण चुचियो के बीच की गहरी घाटी भी अपनी चमक बिखेर रही थी. तौलिए से बाल रगड़ के सुखाने के कारण उसका बदन हिल रहा था और साथ में उसकी मोटे मोटे मुममे भी. उसकी आँखे हिलती चुचियों ओर उनकी घाटी से हटाए नही हट रही थी. तभी शीला देवी धीरे से बोली "तौलिया ले…और जा कर मुँह हाथ अच्छी तरह से धो कर आ…". मुन्ना चुप चाप बाथरूम में घुस गया और दरवाजा उसने खुला छोड़ दिया था. कमोड पर खड़ा हो मूतने के बाद हाथ पैर धो कर वापस कमरे में आया तो देखा कि शीला देवी बिस्तर पर बैठ अपने घुटनो को मोड़ कर बैठी थी और एक पैर की पायल निकाल कर देख रही थी. मुन्ना ने हाथ पैर पोछे और बिस्तर पर बैठते हुए पुचछा….
"क्या हुआ…."
"पता नही कैसे पायल का हुक खुल गया…"
"लाओ मैं देखता हू…" कहते हुए मुन्ना ने पायल अपने हाथ में ले लिया.
"इसका तो हुक सीधा हो गया है लगता है टूट…" कहते हुए मुन्ना हुक मोड़ के पायल को शीला देवी के पैर में पहनाने की कोशिश करने लगा पर वो फिट नही हो पा रहा था. शीला देवी पेटिकोट को घुटनो तक चढ़ाए एक पैर मोड़ कर, दूसरे पैर को मुन्ना की तरफ आगे बढ़ाए हुए बैठी थी. मुन्ना ने पायल पहना ने के बहाने शीला देवी के कोमल पैरों को एक दो बार हल्के से सहला दिया.
शीला देवी उसके हाथो को पैरों पर से हटा ते हुए रुआंसी होकर बोली "रहने दे…ये पायल ठीक नही होगी…शायद टूट गयी है…"
"हा…शायद टूट गयी…दूसरी मंगवा लेना…"
एकदम उदास होकर मुँह बनाती हुई शीला देवी बोली "कौन ला के देगा पायल…तेरे बाप से तो आशा है नही और ….तू तो…" कहते हुए एक ठंडी साँस भरी. शीला देवी की बात सुन एक बार मुन्ना के चेहरे का रंग उड़ गया. फिर हकलाते हुए बोला "ऐसा क्यों मा…मैं ला दूँगा…इस बार जब शहर जाउन्गा…इस शनिवार को शहर से…"
"रहने दे…तू क्यों मेरे लिए पायल लाएगा…" कहती हुई पेटिकोट के कपड़े को ठीक करती हुई बगल में रखे तकिये पर लेट गई. मुन्ना पैर के तलवे को सहलाता और हल्के हल्के दबाता हुआ बोला "ओह हो छोड़ो ना…मा…तुम भी इतनी मामूली सी बात…." images
पर शीला देवी ने कोई जवाब नही दिया. खिड़की खुली थी कमरे में बिजली का बल्ब जल रहा था, बाहर जोरो की बारिशा शुरू हो चुकी थी. मौसम एक दम सुहाना हो गया था और ठंडी हवाओं के साथ पानी की एक दो बूंदे भी अंदर आ जाती थी. मुन्ना कुच्छ पल तक उसके तलवे को सहलाता रहा फिर बोला "मा…ब्लाउस तो बदल लो….गीला ब्लाउस पहन…"
"उ…रहने दे थोरी देर में सुख जाएगा..दूसरा ब्लाउस कहा लाई..जो…"
"तौलिया लपेट लेना…" शीला देवी ने कोई जवाब नही दिया.
मुन्ना हल्के हल्के पैर दबाते हुए बोला "आम नही खाओगि…"
"ना रहने दे मन नही है…"
"क्या मा… क्यों उदास हो रही हो…"
"ना मुझे सोने दे…तू आम. खा.."
"ओह हो…तुम भी खाओ ना…. कहते हुए मुन्ना ने आम के उपरी सिरे को नोच कर शीला देवी के हाथ में एक आम थमा दिया और उसके पैर फिर से दबाने लगा. शीला देवी अनमने भाव से आम को हाथ में रखे रही. ये देख मुन्ना ने कहा "क्या हुआ…आम अच्छे नही लगते क्या…चूस ना…पेर पर चढ़ के तोड़ा और इतनी मेहनत की…चूसो ना"
मुन्ना की नज़रे तो शीला देवी की नारियल की तरह खड़ी चुचियों से हट ही नही रही थी. दोनो चुचियों को एकटक घूरते हुए वो अपनी मा को देख रहा था. शीला देवी ने बड़ी अदा के साथ अनमने भाव से अपने रस भरे होंठो को खोला और आम को एक बार चूसा फिर बोली "तू नही खाएगा…"
"खाउन्गा ना…." खाते हुए मुन्ना ने दूसरा आम उठाया और उसको चूसा तो फिर बुरा सा मुँह बनाता हुआ बोला "ये तो एक दम खट्टा है…" .
"ये ले मेरे आम चूस…बहुत मीठा है…" धीमी आवाज़ में शीला देवी अपनी एक चुचि को ब्लाउस के उपर से खुजलाती हुई बोली और अपना आम मुन्ना को पकड़ा दिया. "मुझे तो पहले ही पता था…तेरा वाला मीठा होगा…" धीरे से बोलते हुए मुन्ना ने शीला देवी के हाथ से आम ले लिया और मुँह में ले कर ऐसे चूसने लगा जैसे चुचि चूस रहा हो. शीला देवी के अब चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए बोली "हाई…बड़े मज़े से चूस रहा है... मीठा है ना….". शीला देवी और मुन्ना के दोनो के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट खेल रही थी.
मुन्ना प्यार से आम चूस्ता हुआ बोला "हा मा…बहुत मीठा है…तेरा आम…ले ना तू भी चूस…"
"ना तू चूस… मुझे नही खाना…" फिर मुस्कुराती हुई धीरे से बोली "बेटा अपने..पेड़ के आम..खाया कर…"
"मिलते…नही…" मुन्ना उसकी चुचियों को घूरते हुए बोला.
"कोशिश…कर के देख…" उसकी आँखो में झकति शीला देवी बोली. दोनो को अब दोहरे अर्थो वाली बातो में मज़ा आ रहा था. मुन्ना अपने हाथ को लूँगी के उपर से लंड पर लगा हल्के से सहलाता हुआ उसकी चुचियों को घूरता हुआ बोला "तू मेरा वाला…चूस… खट्टा है…..औरतो को तो खट्टा…."
"हा..ला मैं तेरा…चूस्ति हू…खट्टे आम भी अच्छे होते…" कहते हुए शीला देवी ने खट्टा वाला आम ले लिया और चूसने लगी. अब शीला देवी के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट आ गई थी, अपने रसीले होंठो से धीरे-धीरे आम को चूस रही थी. उसके चूसने की इस अदा और दोहरे अर्थो वाली बात चीत ने अब तक मुन्ना और शीला देवी दोनो की अंदर आग लगा दी थी. दोनो अब उत्तेजित होकर वासना की आग में धीरे धीरे सुलग रहे थे. पेड़ के उपर चढ़ने पर दोनो ने एक दूसरे के पेटिकोट और लूँगी के अंदर छुपे माल को देखा था ये दोनो को पता था. दोनो के मन में बस यही था की कैसे भी करके पेटिकोट के माल का मिलन लूँगी के हथियार के साथ हो जाए. मुन्ना अब उसके कोमल पैरो को सहलाते हुए उसके एक पैर में पड़ी पायल से खेल रहा था शीला देवी आम चूस्ते हुए उसको देख रही थी. बार-बार मुन्ना का हाथ उसकी कोमल, चिकनी पिंदलियों तक फिसलता हुआ चला जाता. पेटिकोट घुटनो तक उठा हुआ था. एक पैर पसारे एक पैर घुटने के पास से मोड हुए शीला देवी बैठी हुई थी. कमरे में
पूरा सन्नाटा पसरा हुआ था, दोनो चुपचाप नज़रो को नीचे किए बैठे थे. बाहर से तेज बारिश की आवाज़ आ रही थी. आगे कैसे बढ़े ये सोचते हुए मुन्ना बोला
"…तेरा पायल मैं कल ला दूँगा सुबह जाउन्गा और…."
"रहने दे मुझे नही चाहिए तेरी पायल…."
"…मैं अच्छी वाली पायल…ला…"
"ना रहने दे, तू….पायल देगा…फिर मेरे से…उसके बदले…" धीरे से मुँह बनाते हुए शीला देवी ने कहा जैसे नाराज़ हो
मुन्ना के चेहरे के रंग उड़ गया. धीरे से हकलाता ��ुआ बोला "बदले में…क्या…मतलब…"
आँखो को नचाती मुँह फुलाए हुए धीरे से बोली "....लाजवंती को भी….पायल...." इस से ज़्यादा मुन्ना सुन नही पाया, लाजवंती का नाम ही काफ़ी था. उसका चेहरा कानो तक लाल हो गया और दिमाग़ हवा में तैरने लगा, तभी शीला देवी के होंठो के किनारों पर लगा आम का रस छलक कर उसकी चुचियों पर गिर पड़ा. शीला देवी उसको जल्दी से छाती पर से पोच्छने लगी तो मुन्ना ने गीला तौलिया उठा अपने हाथ को आगे बढ़ाया तो उसके हाथ को रोकती हुई बोली
"…ना ना रहने दे…अभी तो मैने तेरे से पायल लिया भी नही है जो…"
ये शीला देवी की तरफ से ये दूसरा खुल्लम खुल्ला सिग्नल था कि आगे बढ़. शीला देवी के पैर की पिंदलियों पर से काँपते हाथो को सरका कर उसके घुटनो तक ले जाते हुए धीरे से बोला "प...पायल दूँगा तो….तो दे...गी…"
धीरे से शीला देवी बोली "…प..आयल देगा..तो…? "
".आम…सा…आफ…करने…देगी…" धीरे से मुन्ना बोला. आम के रस की जगह आम सॉफ करने की बात शायद मुन्ना ने जानभूझ कर कही थी.
"तू…सबको…पायल..देता है क्या…" सरसरती आवाज़ में शीला देवी ने पुचछा
"नही…"
"लाजवंत को तो दी …" मुन्ना चुपचाप बैठा रहा.
"उसके आ..म सा…फ… किए…तूने…." मुन्ना की समझ में आ गया की शीला देवी क्या चाहती है.
"अपने पेड़ का…आम…खाना है मुझे…" इतना कहते हुए मुन्ना नेआगे बढ़ अपना एक हाथ शीला देवी के पेट पर रख दिया और उसकी वासना से जलती नासीली आँखो में झाँक कर देखा.
"तो खा…ना….मैं तो हमेशा…." चाहती थी और अनुरोध से ��रे आँखो ने मुन्ना को हिम्मत दी और उसने छाती पर झुक कर अपनी लंबी गरम ज़ुबान बाहर निकाल कर चुचियों के उपर लगे आम के रस को चाट लिया. इतनी देर से गीला ब्लाउस पहन ने के कारण शीला देवी की चूचियाँ एक दम ठंडी हो चुकी थी. ठंडी चुचियों पर ब्लाउस के उपर मुन्ना की गरम जीभ जब सरसरती हुई धीरे से चली तो उसके बदन में सिहरन दौड़ गई. कसमसाती हुई अपने रसीले होंठो को अपनी दांतो से काट ती हुई बोली "चा..अट कर ….सा…आफ करेगा…". मुन्ना ने कोई जवाब नही दिया.
"आम तो चूसा…मैं तो…चूस..वाने आई थी…". शीला देवी ने सीधी बात करने का फ़ैसला कर लिया था.
"हाई…चूस..वाएगी…?" चूची चूसने के इस खुल्लम खुल्ला आमंत्रण ने लंड को फनफना दिया, उत्तेजना अब सीमा पार कर रही थी.
पेट पर रखे हाथ को धीरे से पकड़ अपनी छाती पर रखती हुई शीला देवी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली " मेरा आम चू..ओस…बहुत मीठा है…". मुन्ना ने अपने बाए हथेली में उसकी एक चुचि को कस लिया और ज़ोर से दबा दिया, शीला देवी के मुँह से सिसकारी निकल गई "चूसने के लिए..बोला…" images
"दबा के देखने तो दे…चूसने लायक पके है…या…" शैतानी से मुस्कुराता धीरे से बोला.
"तो धीरे से दबा…ज़ोर से दबा के… तो..सारा रस..निकल.." मुन्ना की चालाकी पर धीरे से हस दी.
"तू सच में चूस…वाने आई थी…" मुन्ना ने वासना से जलती आँखो में झाँकते हुए पुचछा.
"और कैसे….बोलू…" उत्तेजना से काँपति, गुस्से से मुँह बिचकाती बोली.
मुन्ना को अब भी विस्वास नही हो रहा था कि ये सब इतनी आसानी से हो रहा है. कहा तो वो प्लान बना रहा था कि रात में साड़ी उठा कर अनदर का माल देखेगा…यहा तो पूरा सिर कड़ाही में घुसने जा रहा था. गर्दन नीचे झुकाते हुए मुन्ना ने अपना मुँह खोल भीगे ब्लाउस के उपर से चुचि को निपल सहित अपने मुँह में भर लिया. हल्का सा दाँत चुभाते हुए इतनी ज़ोर से चूसा कि शीला देवी की मुँह से आह भरी सिसकारी निकल गई. मगर मुन्ना तो अब पागल हो चुका था. एक चुचि को अपने हाथ से दबाते हुए दूसरी चुचि में मुँह गाढ़ने चूसने, चूमने लगा. शीला देवी बरसो तक वासना की आग में जलती रही थी मगर आज इतने दीनो के बाद जब उसकी चूचियों को एक मर्द ने अपने हाथ और मुँह से मसलना शुरू किया तो उसके तन-बदन में आग लग गई. मुँह से सिसकारियाँ निकालने लगी, अपनी जाँघो को भीचती एडियों को रगड़ती हुई मुन्ना के सिर को अपनी चुचियों पर भींच लिया. गीले ब्लाउस के उपर से चुचियों को चूसने का बड़ा अनूठा मज़ा था. images
गरम चुचियों को गीले ब्लाउस में लपेट कर बारी-बारी से दोनो चुचियों को चूस्ते हुए वो निपल को अपने होंठो के बीच दबाते हुए चबाने लगा. निपल एक दम खड़े हो चुके थे और उनको अपने होंठो के बीच दबा कर खींचते हुए जब मुन्ना ने चूसा तो शीला देवी च्चटपटा गई. मुन्ना के सिर को और ज़ोर से अपने सिने पर भीचती सिस्ययई "इसस्सस्स…उफ़फ्फ़….धीरे…आराम से आम चू…ओस…" दोनो चुचियों के चोंच को बारी बारी से चूस्ते हुए जीभ निकाल कर छाती और उसके बीच वाली घाटी को ब्लाउस के खुले बटन से चाटने लगा. फिर अपनी जीभ आगे बढ़ाते हुए उसके गर्दन को चाट ते हुए अपने होंठो को उसके कानो तक ले गया और अपने दोनो हाथो में दोनो चुचियों को थाम फुसफुसते हुए बोला "बहुत मीठा है तेरा आम…छिल्का उतार के खाउ…". शीला देवी भी उसके गर्दन में बाँहे डाले अपने से चिपकाए फुसफुसती हुई बोली "हाई…छिल्का…उतार के…? "
"हा…शरम आ रही है…क्या ?
"शरमाती तो…आम हाथ में पकड़ाती…?"
"तो उतार दू…छिल्का…?"
"उतार दे…बहुत बक बक करता है…हरामी.." मुन्ना ने जल्दी से गीले ब्लाउस के बटन चटकते हुए खोल दिया,
ब्लाउस के दोनो भागो को दो तरफ करते हुए उसकी काली रंग की ब्रा को खोलने के लिए अपने दोनो हाथो को शीला देवी की पीठ के नीचे घुसाया तो उसने अपने आप को अपनी चुटटरो और गर्दन के सहारे बिस्तर से थोड़ा सा उपर उठा लिया. शीला देवी की दोनो चुचिया मुन्ना की छाती में दब गई.
चुचियों के कठोरे निपल मुन्ना की छाती में चुभने लगे तो मुन्ना ने पीठ पर हाथो का दबाब बढ़ा दिया कर शीला देवी को और ज़ोर से अपनी छाती से चिपका लिया और उसकी कठोरे चुचियों को अपने छाती से पिसते हुए धीरे से ब्रा के हुक को खोल दिए.
कसमसाती हुई शीला देवी ने उसे थोड़ा सा पिछे धकेला और ब्लाउस उतार दिया. फिर तकिये पर लेट मुन्ना की ओर देखने लगी. काँपते हाथो से ब्रा उतार कर दोनो गदराई, गथिलि चुचियों को अपने हाथ में भर धीरे से बोला "बड़े…मस्त आ..म है.." हल्के से दबाया तो गोरी चुचियों का रंग लाल हो गया.
गाँव का राजा पार्ट -13
उसने सपने में भी नही सोचा था कि उसकी मा की चुचियाँ इतनी सख़्त और गुदाज होंगी. रंडी और घर के माल का अंतर उसे पता चल गया. शीला देवी की आँखे नशे में डूबी लग रही थी. उसके बगल में लेट ते हुए अपनी तरफ घुमा लिया और उसके रस भरे होंठो को अपने होंठो में भर नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए अपने बाहों के घेरे में कस ज़ोर से चिपका लिया. करीब पाच मिनिट तक दोनो मा-बेटे एक दूसरे से चिपके हुए एक दूसरे के मुँह में जीभ ठेल-ठेल कर चुम्मा-चाटि करते रहे. th
जब दोनो अलग हुए तो हाँफ रहे थे और दोनो के आँखो की शरम अब धीरे-धीरे घुलने लगी थी. मुन्ना ने शीला देवी की चुचियों को फिर से दोनो हाथो में थाम लिया और उसके निपल को चुटकी में पकड़ मसल्ते हुए एक चुचि के निपल से अपनी जीभ से सहलाने लगा.
शीला देवी भी अपने एक हाथ से चुचि को पकड़ मुन्ना के मुँह में ठेलने की कोशिश करते हुए सीस्यते हुए चुस्वा रही थी. बारी-बारी से दोनो चुचियों को मसालते चुस्ते हुए उसने दोनो चुचियों को चूस-चूस कर लाल कर दिया. चुचियों पर दाँत गढ़ाते हुए चूस्ते हुए बोला "मा…तू ..ठीक कहती… है…अपने पेड़ के…आम…अफ..पहले क्यों…अभी तक तो पूरा चूस चूस कर…सारा आम-रस पी.." मुन्ना का जोश और चूसने का तरीका शीला देवी को पागल बना रहा था.
अपनी छिनाल मामी की दी हुई ट्रैनिंग का पूरा फ़ायदा उठा ते हुए वो शीला देवी की चुचि चूस्ते हुए उसे गरम कर रहा था. वो कभी उसक�� सिर के बालो को सहलाती कभी उसकी पीठ को कभी उसके चूतरों तक हाथ फेरती बोली "अभी…चूसने को मिला…अच्छे से चूस…बेटा….सारा रस तेरे लिए ही…संभाल…" तभी मुन्ना ने अपने दन्तो को उसकी चुचियों पर गढ़ाते हुए निपल को खींचा तो दर्द से करहती बोली "कु..त्ती…चूसने वाला…आम है,....खाने वाला…उन रंडियों…का होगा..जिनको…उफ़फ्फ़….धीरे से चूस…चूस कर…अफ ..बेटा…निपल को…होंठो के बीच दबा…के…बचपन…में…धीरे से…नही तो छोड़…दे…" इस बात पर मुन्ना ने हस्ते हुए शीला देवी की चूचियों पर से मुँह हटा उसके होंठो को चूम धीरे से कान में बोला "इतने जबर्दर्स्त...आम पहले नही चखाए उसी की सज़ा…" शीला देवी भी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली "कमीना…गंदा लरका..."
"गंदी औरत…कम…" बोलते बोलते मुन्ना रुक गया. शीला देवी की मुस्कान और चौड़ी हो गई. दोनो हाथो में बेटे के चेहरे को भरती हुई उसके होंठो और गालो को बेतहाशा चूमती हुई उसके गाल पर अपने दाँत गढ़ा दिए, मुन्ना सीस्या कर कराह उठा. हस्ती हुई बोली "कैसा लगा…गंदी औरत बोलता है…खुद अपनी मा के साथ गंदा काम…". मुन्ना ने भी अपना गाल छुड़ा कर उसके गाल पर दाँत सेकाट लिया और बोला "तू भी तो अपने बेटे के साथ…". दोनो अब बेशरम हो चुके थे. झिझक दूर हो चुकी थी. मुन्ना अपने हाथ को चुचियों पर से हटा नीचे जाँघो पर ले गया और टटोलते हुए अपने हाथ को जाँघो के बीच डाल दिया. चूत पर पेटिकोट के उपर से हाथ लगते ही शीला देवी ने अपनी जाँघो को भींचा तो मुन्ना ने ज़बरदस्ती अपनी पूरी हथेली जाँघो के बीच घुसा दी और चूत को मुठ्ठी में भर, पकड़ कर मसल्ते हुए बोला "अपना बिल दिखा ना…" पूरी चूत को मसले जाने पर कसमसा गई शीला देवी, फुसफुसती हुई बोली
"तू…आम…चूस…मेरी ..छेद…देखेगा तो मादर…चोद…बन…" मुन्ना समझ गया की गंदी बाते करने में मा को मज़ा आ रहा है.
"डंडा डालूँगा…. तभी….मादर..चोद बनूंगा…अभी खाली दिखा…." कहते हुए चूत को पेटिकोट के उपर से और ज़ोर से मसलते उसकी पुट्तियों को चुटकी में पकड़ ज़ोर से मसला.
"हाई…हरामी मेरी…बिल… में डंडा…घुसा…एगा." जोश में आ उसके गालो को अपने दन्तो में भर लिया और अपने हाथ को सरका कमर के पास ले जाती लूँगी के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की. हाथ नही घुसा मगर मुन्ना की दोनो अंडकोष उसकी हथेली में आ गये. ज़ोर से उसी को दबा दिया, मुन्ना दर्द से कराह उठा. कराहते हुए बोला "उखडीगी,…क्या…चाहिए…"
शीला देवी ने जल्दी से अंडकोष पर पकड़ ढीली की "हथियार…दिखा.."
"थोड़ा उपर नही पकड़ सकती थी….पेड़ पर तो सब देख लिया था…"
"पेड़ पर… तो तूने भी….देखा…"
"तुझे पता…था…जान-बूझ कर दिखा…" कहते हुए शीला देवी का हाथ पकड़ अपनी लूँगी के भीतर घुसा दिया. images
खड़े लंड पर हाथ पड़ते ही उसका बदन सिहर गया. गरम लोहे की छड़ की तरह तपते हुए लंड को मुठ्ठी में कसते ही लगा जैसे चूत ने एक बूँद पानी टपका दिया. लंड को हथेली में कस कर जाकड़ मरोर्ति हुई बोली "गधे का…उखाड़ कर लगा लिया…"
"है तो…तेरे बेटे का…मगर…गधे के…जैसा.." बोलते हुए चूत की दरार में पेटिकोट के उपर से उंगली चलाते हुए बोला "पानी…फेंक रही है…"
"मादर..चोद बने..एगा...क्या.."
"तू…रंडी…बन..ना"
"हा….अब रहा नही जा रहा…"
"नंगी कर…दू…"
"हा….और तू भी…" झट से बैठ ते हुए अपनी लूँगी खोल एक तरफ फेंका तो उसका दस इंच का तम्तमता हुआ लंड कमरे की रोशनी में शीला देवी की आँखों को चौंधिया गया. उठ कर बैठ ते हुए हाथ बढ़ा उसके लंड को फिर से पकड़ लिया और चमड़ी खींच उसके पहाड़ी आलू जैसे लाल सुपरे को देखती बोली "हाई…आया ठीक बोलती…तू बहुत बड़ा….हो गया है…तेरा…केला तो….च्छेद…फाड़"
पेटिकोट के नारे को हाथ में पकड़ झटके के साथ खोलते हुए बोला "फर..वाएगी…."
"हाई…मेरा….छेद…फार…"
कहती हुई शीला देवी ने अपनी गांद उठा पेटिकोट को गांद के नीचे से सरकाते हुए निकाल दिया. इस काम में मुन्ना ने भी उसकी मदद की और सरसरते हुए पेटिकोट को उसके पैरों से खींच दिया.
शीला देवी लेट गई और अपनी दोनो टांगो को घुटनों के पास से मोड़ कर फैला दिया. दोनो मा बेटे अब असीम उत्तेजना का शिकार हो चुके थे दोनो में से कोई भी अब रुकना नही चाहता था. शीला देवी की चमचमाती जाँघो को अपने हाथ से पकड़ थोड़ा और फैलाता हुआ उनके उपर अपना मुँह लगा चूमते हुए दाँत से काट ते उसकी saved चूत के उपर एक जोरदार चुम्मा लिया और बित्ते भर की बूर की दरार में जीभ चलाते हुए बूर की टीट को मुँह में भर कर खींचा तो शीला देवी लहरा गई.
चूत की दोनो पुट्तियों ने दूप-दुपते हुए अपने मुँह खोल दिए. सीस्यति हुई बोली "इसस्स…..क्या कर रहा है…" कभी चूत चटवाया नही था. दरार में जीभ चलाने पर मज़ा तो आया था मगर लंड, बूर में लेने की जल्दी थी. जल्दी से मुन्ना के सिर को पिछे धकेल्ति बोली "….क्या…करता…है…जल्दी से चढ़….".
पनियाई चूत की दरार पर उंगली चला उसका पानी लेकर, लंड की चमरी खींच, सुपरे की मंडी पर लगा कर चमचमते सुपरे को शीला देवी को दिखता बोला "मा...देख मेरा…डंडा…तेरी छेद…में…"
"हा…जल्दी से….मेरी छेद में…. " . लंड के सुपरे को चूत के छेद पर लगा पूरी दरार पर उपर से नीचे तक चला बूर के होंठो पर लंड रगड़ते हुए बोला "हां पेल दू…पूरा…"
"हा….मादर…चोद बन जा…"
"हाई…छेद…फाड़ दूँगा…रंडी…"
"बक्चोदि छोड़…फड़वाने के….लिए तो….खोल के…नीचे लेटी….जल्दी कर…" वासना के अतिरेक से काँपति आवाज़ में शीला देवी बोली. लंड के लाल सुपरे को चूत के गुलाबी झांतदार छेद पर लगा मुन्ना ने कच से धक्का मारा. सुपरा सहित चार इंच लंड चूत की कसमसाती छेद की दीवारों को कुचालता हुआ घुस गया. हाथ आगे बढ़ा मुन्ना के सिर को बालो में हाथ फेरती हुई उसको अपने से चिपका भर्रई आवाज़ में बोली " पूरा…डाल दे…बेटा…चढ़ जा". मुन्ना ने अपनी कमर को थोड़ा उपर खींचते हुए फिर से अपने लंड को सुपरे तक बाहर निकाल धक्का मारा. इस बार का धक्का ज़ोर दार था. शीला देवी की गांद फट गई. इतने दीनो से उसने लंड नही खाया था उसके कारण उसकी चूत का छेद सिकुर कर टाइट हो गया था. चूत के अंदर जब तीन इंच मोटा और दस इंच लंबा लंड जड़ तक घुसाने की कोशिश कर रहा था तो चूत छिलगई और दर्द की एक तेज लहर ने उसको कंपा दिया. "आआ….धीरे….फट….उई..माआआआआआ…." करते हुए अपने होंठो को भींच दर्द को पीने की कोशिश करते हुए अपने हाथो के नाख़ून मुन्ना की पीठ में गढ़ा दिए.
"बहुत….टाइट…है…तेरा…छेद…" चूत के पानी में फिसलता हुआ पूरा लंड उसकी चूत के जड़ तक उतार ता चला गया.
"बहुत बड़ा…है..तेरा…केला…उफ़फ्फ़….मेरे…आम चूस्ते हुए….डाल" मुन्ना ने एक चूची को अपनी मुट्ठी में जाकड़ मसालते हुए दूसरी चुचि पर मुँह लगा कर चूस्ते हुए धीरे धीरे एक चौथाई लंड खींच कर धक्के लगाते पुचछा
"पेलवाती… नही… थी…"
"नही….किस से पेलवाती…"
"क्यों…चौधरी…."
"उसका अब…खड़ा…नही…"
"दूसरा…कोई…"
"हरामी….कुत्ते….तुझे अच्छा…लगेगा…मैं दूसरे से….यही चाहता है…तेरी मा…" गुस्से से चूतर पर मुक्का मारती हुई बोली.
"बात तो सुन लिया कर पूरी…सीधा गाली…देने…" झल्लाते हुए मुन्ना चार पाँच तगड़े धक्के लगाता हुआ बोला. तगड़े धक्को ने शीला देवी को पूरा हिला दिया. चुचियाँ थल-थॅला गई. मोटी जाँघो में दल्कन पैदा हो गई. थोड़ा दर्द हुआ मगर मज़ा भी आया क्योंकि चूत पूरी तरह से पनिया गई थी और लंड गछ गछ फिसलता हुआ अंदर-बाहर हुआ था. अपने पैरों को मुन्ना के कमर से लपेट उसको भींचती सीस्यति हुई "उफ़फ्फ़…सी…हरामी…दुखा…दिया…आराम..से..भी बोल सकता…था…" मुन्ना कुच्छ नही बोला, लंड अब चुकी आराम से फिसलता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था इसलिए वो अपनी मा की टाइट गद्देदार रसीली चूत का रस अपने लंड के पीपे से चूस्ते हुए गाचा-गछ धक्के लगा रहा था. शीला देवी को भी अब पूरा मज़ा आ रहा था, लंड सीधा उसकी चूत के आख़िरी किनारे तक पहुच कर ठोकर मार रहा था. धीरे धीरे गांद उचकाते हुए सीस्यति हुई बोली "बोल ना…तो जो बोल…रहा…
"मैं तो…बोल रहा था…कि अच्छा हुआ…जो किसी और से…नही…करवाया…नही तो….मुझे…तेरी टाइट…छेद की जगह…ढीली…छेद…"
"हाई…हरामी…तुझे..छेद की…पड़ी है…इस बात की नही की मैं दूसरे आदमी…"
"मैं तो…बस एक..बात बोल रहा…था की…वैसे…"
"चुप कर…कामीने…दूसरे से करवा कर मैं बदनाम होती…साले…घर की बात…"
"हा…घर की बात…घर में…रहे तो, …फिर दस इंच के हथियार वाला बेटा किस दिन…काम आएगा…ठीक किया तूने…बचा कर रखा…मज़ा आ रहा….अब तुझे खूब मज़े…"
"हाई…बहुत मज़ा…आ…पेलता रह…मेरा जवान लौंडा….गाओं भर की हरमज़ड़िया मज़े लूटे और मैं…"
"हाई अब…गाओंवालियों को छ्चोड़…अब तो बस तेरा बेटा…तेरे को….ही…सीईईईईई उफ़फ्फ़…बहुत मजेदार छेद है…" गपा-गॅप लंड पेलता हुआ मुन्ना सीस्यते हुए बोला. लंड बूर की दीवारों को बुरी तरह से कुचालता हुआ अंदर घुसते समय चूत के दूप-दुपते छेद को पूरा चौड़ा कर देता था और फिर जब बाहर निकलता था तो चूत की पत्तियाँ अपने आप सिकुड कर छेद को फिर से छ्होटा बना देती थी. बड़े होंठो वाली गुदाज चूत होने का यही फ़ायडा था. हमेशा गद्देदार और टाइट रहती थी. उपर के रसीले होंठो को चूस्ते हुए नीचे के होंठो में लंड धँसाते हुए मुन्ना तेज़ी से अपनी गांद उच्छाल उच्छाल कर शीला देवी के उपर कूद रहा था.
"हाई तेरा केला भी….बहुत मजेदार…है, मैने आजतक इतना लंबा…डंडा…सस्सीईईई…ही डालता रह….ऐसे ही…अफ…पहले दर्द किया…मगर…अब….आराम से….ही….अब फाड़ दे…डाल….सीईए…पूरा डाल…कर….हाँ मादर..चोद…बहुत पानी फेंक रही…है मेरी…चू…." नीचे से गांद उच्छलती मुन्ना के चूतरों को दोनो हाथो से पकड़ अपनी चूत के उपर दबाती गॅप गॅप लंड खा रही थी शीला देवी. कमरे में बारिश की आवाज़ के साथ शीला देवी की चूत के पानी में फॅक-फॅक करते हुए लंड के अंदर-बाहर होने की आवाज़ भी गूँज रही थी. इस सुहाने मौसम में खलिहान के वीरान में दोनो मा-बेटे जवानी का मज़ा लूट रहे थे. कहा तो मुन्ना अपनी चोरी पकड़े जाने पर अफ़सोस मना रहा था वही अभी खुशी से गांद कूदते हुए अपनी मा की टाइट पवरोटी जैसी फूली चूत में लंड पेल कर वाडा-पाव खा रहा था. उधर शीला देवी जो सोच रही थी कि उसका बेटा बिगड़ गया है, नंगी अपने बेटे के नीचे लेट कर उसके तीन इंच मोटे और दस इंच लंब लंड को कच-कच खाते हुए अपने बेटे के बिगड़ने की खुशियाँ मना रही थी. आख़िर हो भी क्यों ना, जिस लंड के पिछे गाओं भर की औरतो की नज़र थी अब उसके कब्ज़े में था, घर के अंदर, जितनी मर्ज़ी उतना चुदवा सकती थी.
"हाइईईईईई बहुत….मजेदार है तेरे आम…तेरा छेद…उफफफफफफफफ्फ़…शियीयीयियीयियी अब तो…हाइईईईई मा मज़ा आ रहा अपने बेटे डंडा बिल में घुस्वा के….सीईईईईईई….हाइईईईईईईईईईईई पहले बता दिया होता तो…अब तक…कितनी बार तेरा आम-रस पी लेता….तेरी छेद पेल देता…सीईईईईई तेरी सिकुदीईईईईईईइ हुई छेद खोल देता…रंडी…खा अपने बेटे का….लंड…द्द्दद्ड….हीईईईईईइ…बहुत मज़ा हीईईई…तूने तो खेल खेल कर इतना…तडपा दिया है…अब बर्दाश्त नही हो रहा…मेरा तो निकल जाएगा……सीईई…पानी फेंक दू तेरीईईईईईईईईईइ….चूऊऊऊऊऊऊऊऊओ…त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त..में. सीस्यते हुए मुन्ना बोला. नीचे से धक्का मारती और उपर से ढाका-धक लंड खाती शीला देवी भी अब चरम सीमा पर पहुच चुकी थी. गांद उच्छलती हुई अपनी टाँगो को मुन्ना की कमर पर कास्ती चिल्लई…"मार..मार ना भोसड़ीवाले…मेरे छ्होटे चौधरी…मार…अपनी चौधरैयन….की चूत…फाड़ दे….हाइईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई….बेटा मेरिइईईईईईईईईईईईईईईईई भी अब पानी फेंक देगीईईईईईईईइ…..पुराआआआआआआ लंड…डाल के चोद दीईईईईईई…अपनी मा…की बूर….हाइईईईईईईई…सीईई अपने घोड़े जैसे….लंड का पानी…डाल दे…पेल दीईईईईईईईई….माआआआआआ के लालल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल….बेहन्चोद्द्द्द……मेरी चूऊत में…." यही सब बकते हुए उसने मुन्ना को अपनी बाहों में कस लिया. उसकी चूत ने पानी
फेंकना शुरू कर दिया था. मुन्ना के लंड से भी तेज फ़ौवार्रे के साथ पानी निकलना शुरू हो गया था. मुन्ना के होंठ चौधरैयन के होंठो से चिपक हुए थे, दोनो का पूरा बदन अकड़ गया था. दोनो आपस में ऐसे चिपक गये थे कि तिल रखने की जगह भी नही थी. पसीने से लत-पथ गहरी सांस लेते हुए. जब मुन्ना के लंड का पानी चौधरैयन की बूर में गिरा तो उसे ऐसा लगा जैसे उसकी बर्शो की प्यास भुज गई हो. तपते रेगिस्तान पर मुन्ना का लंड बारिश कर रहा था और बहुत ज़यादा कर रहा था आख़िर उसने अपनी मामी के बाद अपनी मा को चोद दिया था. उसके लंड के नीचे उसके ख्वाबो की दोनो पारियाँ आ चुकी थी.
करीब आधे घंटे तक दोनो एक दूसरे से चिपके बेशुध हो कर वैसे ही नंगे लेट रहे मुन्ना अब उसके बगल में लेटा हुआ था. शीला देवी आँखे बंद किए टांग फैलाए बेशुध लेटी हुई थी और बाहर बारिश अपने पूरे शबाब पर छ्होटे चौधरी और बड़ी चौधरैयन की चुदाई की खुशी मना रही थी.
आधे घंटे बाद जब शीला देवी को होश आया तो खुद को नंगी लेटी देख हर्बरा कर उठ गई. चुदाई का नशा उतरने के बाद होश आया तो अपने पर बड़ी शरम आई. बगल में बेटा भी नंगा लेटा हुआ था. उसका लटका हुआ लॉरा और उसका लाल सुपाड़ा उसके मन में फिर से गुद-गुड़ी पैदा कर गया. आहिस्ते से बिस्तर से उतर अपने पेटिकोट और ब्लाउस को फिर से पहन लिया और मुन्ना की लूँगी उसके उपर डाल जैसे ही फिर से लेटने को हुई कि मुन्ना की आँखे खुल गई. अपने उपर रखे लूँगी का अहसास उसे हुआ तो मुस्कुराते हुए लूँगी को ठीक से पहन लिया. शीला देवी भी शरमाते सकुचाते उस से थोरी दूर पर लेट गई.
दोनो मा-बेटे एक दूसरे से आँख मिलाने की हिम्मत जुटा रहे थे. चुदाई का नशा उतरने के बाद जब दिल और दिमाग़ दोनो सही तरह से काम करने लगा तो अपने किए का अहसास हो रहा था. थोरी देर तक तो दोनो में से कोई नही बोला पर फिर मुन्ना धीरे से सरक कर शीला देवी की ओर घूम गया और उसके पेट पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे हाथ चला कर सहलाने लगा. फिर धीरे से बोला “मा….क्या हुआ…” शीला देवी कुच्छ नही बोली तब फिर बोला “इधर देख ना….” शीला देवी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ घूम गई. th
मुन्ना उसके पेट को हल्के-हल्के सहलाते हुए धीरे से उसके पेटिकोट के लटके हुए नारे के साथ खेलने लगा. नारा जहा पर बाँधा जाता वाहा पर पेटिकोट आम तौर पर थोरा सा फटा हुआ होता है या यू समझिए कि गॅप सा बना होता है. नारे से खेलते-खेलते मुन्ना ने अपनी उंगलियाँ धीरे से उसमे सरका कर चलाई तो गुद-गुडी होने पर उसके हाथ को हटाती बोली “क्या करता है…हाथ हटा…” मुन्ना ने हाथ वाहा से हटा कमर पर रख दिया और थोरा और आगे सरक शीला देवी की आँखो में झाँकते हुए बोला “…मज़ा आया…” शरम से शीला देवी का चेहरा लाल हो गया उसकी छाती पर के मुक्का मारती हुई बोली “...चुप…गधा कही का…” मुन्ना समझ गया कि अभी पहली बार है थोरा तो सरमाएगी ही उसकी नाभि में उंगली चलाता हुआ बोला “मुझे तो बहुत मज़ा...आया…बता ना तुझे कैसा लगा…”
“हाई, नही छोरे…तू पहले हाथ हटा…”
“क्यों…अभी तो…बता ना…मा..”
“..धात…छोड़…वैसे आज कोई आम चुराने वाली नही आई..” शीला देवी ने बात बदलने के इरादे से कहा.
“तूने इतनी मोटी-मोटी गलियाँ दी…कि वो सब…”
“चल…मेरी गालियो का…असर…उनपे कहा से….होने वाला…”
“क्यों इतनी मोटी गलियाँ सुन कर कोई भी भाग जाएगा…मैने तो तुझे पहले कभी ऐसी गलियाँ देते नही सुना”
“वो तो…वो तो ऐसे ही…बस…पता नही…शायद गुस्सा…बहुत ज़यादा…”
“अच्छा गुस्से में कोई ऐसी गलियाँ देता है….वैसे बरी…मजेदार गलियाँ दे रही थी…मुझे तो पता ही नही था…”
“….चल हट बेशरम…”
“….. उन बेचारियों को तो तूने….”
“अच्छा…वो सब बेचारियाँ हो गई…सच -सच बता….लाजवंती थी ना…” आँखे नचती शीला देवी ने पुचछा. हस्ते हुए मुन्ना बोला “तुझे कैसे पता…तूने तो उसका बॅंड बजा…” कहते हुए उसके होंठो को हल्के से चूम लिया. शीला देवी उसको पिछे धकेलते हुए बोली “हट….बदमाश…तूने अब तक गाओं में कितनो के साथ…” मुन्ना एक पल खामोश रहा फिर बोला “क्या..मा…किसी के साथ नही..”
“चल झूठे….मुझे सब पता…है सच सच बता” कहते हुए फिर उसके हाथ को अपने पेट पर से हटाया. मुन्ना ने फिर से हाथ को पेट पर रख उसकी कमर पकड़ अपनी तरफ खींचते हुए कहा “साची साची बताउ…”
“हा साची…कितनो के साथ…” कहती हुई उसकी छाती पर हाथ फेरा. मुन्ना उसको और अपनी तरफ खींचता हुआ अपनी कमर को उसके कमर से सटा धीरे से फुसफुसता हुआ बोला “याद नही पर..बारह तेरह होंगी…”.
“हाई…दैयया…इतनी सारी…कैसे करता था मुए…मुझे तो केवल लाजवंती और बसंती का पता था…”कहते हुए उसके गाल पर चिकोटी काटी.
“वो तो तुझे इसलिए पता है ना क्योंकि तेरी जासूस आया ने बताया होगा…बाकियों को तो मैने इधर उधर कही खेत में कभी पास वाले जंगल में कभी नदी किनारे निपटा दिया था….”
“कमीना कही का…तुझे शरम नही आती…बेशरम…” उसकी छाती पर मुक्का मारती बोली.
“अब तो मा को…. ही निपटा…..” कहते हुए उसने शीला देवी को कमर से पकड़ कस कर भींचा. उसका खरा हो चुका लंड सीधा शीला देवी की जाँघो के बीच दस्तक देने लगा. शीला देवी उसकी बाँहो से छूटने का असफल प्रयास करती मुँह फुलाते हुए बोली “छ्चोड़…बेशरम…मुझे फसा कर…बदमास…” पर ये सब बोलते हुए उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान भी तेर रही थी. मुन्ना ने अपनी एक टांग उठा उसके जाँघो पर रखते हुए उसके पैरो को अपने दोनो पैरों के बीच करते हुए लंड को पेटिकोट के उपर से चूत पर सताते हुए उसके होंठो से अपने होंठो को सटा उसका मुँह बंद कर दिया. रसीले होंठो को अपने होंठो के बीच दबोच चूस्ते हुए अपनी जीभ को उसके मुँह में थेल उसके मुँह में चारो तरफ घूमते हुए चुम्मा लेने लगा.
कुच्छ पल तो शीला देवी के मुँह से गो गो करके गोगियाने की आवाज़ आती रही मगर फिर वो भी अपनी जीभ को थेल थेल कर पूरा सहयोग करने लगी. दोनो आपस में लिपटे हुए अपने पैरों से एक दूसरे को रगर्ते हुए चुम्मा-चाती कर रहे थे. मुन्ना ने अपने हाथ कमर से हटा उसकी चुचियों पर रख दिया था और ब्लाउस के उपर से उन्हे दबाने लगा. शीला देवी ने जल्दी से अपने होंठो को उसके चुंबन से छुड़ाया, दोनो हाँफ रहे थे और दोनो का चेहरा लाल हो गया था. मुन्ना के हाथों को अपनी चुचियों पर से हटाती हुई बोली “इश्स…क्या करता है…”. मुन्ना ने शीला देवी के हाथ को पकड़ अपनी लूँगी के भीतर घुसा अपना लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया. शीला देवी ने अपना हाथ पिछे खींचने की कोशिश की मगर उसने ज़बरदस्ती उसकी मुत्हियाँ खोल अपना गरम तप्ता हुआ खरा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया. लौरे की गर्मी पा कर उसका हाथ अपने आप लंड पर कसता चला गया.
“….तेरा मन नही भरा क्या…” लंड को पूरी ताक़त से मरोर्ति दाँत पीसती बोली.
“हाई…..नही भरा…एक बार और करने दे…ना…” कहते हुए मुन्ना ने उसके घुटनो तक उठे हुए पेटिकोट के भीतर झटके से हाथ घुसा दिया. शीला देवी ने चिहुन्क कर लंड को छ्चोड़ पेटिकोट के भीतर घुसते उसके हाथो को रोकने की कोशिश करते हुए बोली “इससस्स…..क्या करता है…कहा हाथ घुसा रहा…” मुन्ना ज़बरदस्ती हाथ को उसकी जाँघो के बीच ठेलता हुआ बोला “हाई….एक बार और…देख ना कैसे खड़ा है…”
“उफफफ्फ़…हाथ हटा….बहुत बिगड़ गया है तू…” तब तक मुन्ना का हाथ उसके जाँघो के बीच चूत तक पहुच चुका था. चूत की झांतो के बीच से रास्ता खोजते हुए चूत की छेद में बीच वाली उंगली को धकेला. शीला देवी की चूत पनिया गई थी. थोरा सा ठेलने पर ही उंगली कच से बूर में घुस गई. दो तीन बार कच कच उंगली चलाता हुआ मुन्ना बोला “हाई…पनिया गई है…तेरी चू…” शीला देवी उसकी कलाई पकड़ रोकने की कोशिश करती बोली “अफ…छ्चोड़..ना..क्या करता है…वो पानी तो पहले का है…”. एक हाथ से लूँगी को लंड पर हटाता हुआ बोला “पहले का कहा से आएगा…देख इस पर लगा पानी तो कब का सुख गया…”. नंगा खड़ा लंड देखते ही शीला देवी शरमाई आँखे चुराती कनिखियों से देखती हुई बोली “तेरी लूँगी से पुच्छ गया होगा…मेरा अंदर गिरा था कैसे सूखेगा…” कहते हुए मुन्ना के हाथ को पेटिकोट के अंदर से खींच दिया. पेटिकोट जाँघो तक उठा चुका था. लंड को अपने हाथ से पकड़ दिखाता हुआ मुन्ना बोला “….दुबारा…गिराने का दिल कर रहा है…आराम से जाएगा…इस..बार चिकनी हो गई है…तेरी चू…”
“चुप…बेशरम…बहुत देर हो चुकी है…”
“हाई…मया…एक बार में मन नही भरा…एक बार और…”
“रात भर तू यही करता रहता था क्या…”
“…तीन…चार…बार तो करता ही...”
“….मुआ…तभी दिन भर सोता था…रंडियों के चक्कर में”
“….अब उनका चक्कर छ्चोड़ दिया…अब केवल तेरे साथ…ही…एक बार और…” कहते हुए फिर से उसके पेटिकोट के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की.
“हट…नही करवाना….पायल कहा दिया…बिना पायल दिए ले चुका है…एक बार…पहले पायल…दे” कहते हुए उसके हाथ को झटके से हटाती हस दी. मुन्ना भी हस पड़ा और उसकी चुचि को पकड़ कस कर दबा दाँत पीसते बोला “कल ला दूँगा फिर…कम से कम पाँच बार लूँगा…”
“अफ…सीईई….कमिने छ्चोड़….घड़ी देख….क्या टाइम हुआ…” मुन्ना ने घड़ी देखी. सुबह के 4:30 बज रहे थे टाइम का पता ही नही चला था. पहले तो दोनो मा-बेटा पर पर चढ़ने उतरने का नाटक करते रहे फिर कौन पहल करे, इसी लूका-छिपि और एक बार की चुदाई में सुबह के साढ़े चार बज गये. शीला देवी हर्बरा कर उठ गई क्यों कि वो जानती थी कि गाओं में लोग जल्दी सोते है तो जल्दी उठ भी जाते थोरी देर में सड़को पर लोग चलने लगेंगे और थोरा बहुत उजाला भी हो जाएगा ऐसे में पकड़े जाने की संभावना ज़यादा है. मुन्ना को बोली “चल जल्दी बाकी जो करना होगा कल करेंगे….अंधेरा रहते घर….” मुन्ना का मन तो नही था मगर मजबूरी थी चुप-चाप उठ कर अपनी लूँगी ठीक कर खड़ा हो गया. शीला देवी सारी पहन रही थी उसके पास जा कर उसकी कमर पकर पेट सहलाता हुआ बोला “…है बड़ा दिल कर रहा था दुबारा लेने…का….बरी खूबसूरत….”
“छ्चोड़…पकड़े गये तो…फिर कभी मौका भी नही मिलने वाला…चल जल्दी…” और उसका हाथ हटा जल्दी से बाहर की ओर चल दी. मुन्ना भी पिछे पिछे चल पड़ा. तेज कदमो से चलते हुए दोनो घर पहुच चुप-चाप बिना आवाज़ किए अपने-अपने कमरे में चले गये. थोरी देर तक तो दोनो को नींद नही आई, रात की मीठी यादों ने सोने नही दिया मगर फिर दोनो सो गये. सुबह मुन्ना को तो कोई उठाने नही आया मगर शीला देवी को मजबूरन उठना पड़ा. करीब दस बजे दिन में मुन्ना उठा जल्दी से नहा धो कर खाना खाया और फिर बाहर निकल गया. शीला देवी वापस अपने कमरे में घुस गई और जा कर सो गई. शाम में खाना खाने के समय मुन्ना और शीला देवी मिले. चुप चाप खाना खाया फिर अपने अपने कमरो में चले गये. कमरे में घुसने से पहले शीला देवी और मुन्ना की आँखे एक दूसरे से मिली तो मुन्ना ने इशारा करने की कोशिश की मगर शीला देवी ने होंठ बिचका कर के दूसरी तरफ मुँह घुमा लिया. शाम का आठ बज चुके इसलिए लूँगी पहन बैठ गया. बगीचे पर पहुचने के लिए बेताब था मगर शीला देवी तो कमरे में घुसी पड़ी थी. मुन्ना अपने कमरे से निकल कर शीला देवी के कमरे के पास पहुच गया. दरवाज़ा धीरे से खोलते हुए अंदर झाँक कर देखा तो पाया की शीला देवी बिस्तर पर आँखो पर हाथ रख लेटी हुई थी. उसके पास जा कर हिला कर उठाया. शीला देवी ने ओह आह..करते हुए आँखे खोली और पुचछा क्या बात है. मुन्ना मुँह बनाते हुए बोला “क्या…मा…मैं वाहा इंतेज़ार कर रहा था और तुम यहा…”. थोड़ा मुस्कुराती थोड़ा मुँह बनाती बोली “क्यों…इंतेज़ार कर रहा है…”
क..क्या मतलब बगीचे पर नही जाना क्या…”
“तू जा…मैं वाहा जा कर क्या करूँगी…” आँखे नचाती बोली.
“ आमो की रखवाली कौन करेगा….” मुन्ना समझ गया कि ये फिर नाटक कर रही है.
“क्यों तू तो कर ही लेता है…जा और अपनी सहेलियों को भी बुला ले…”
“अब…चल ना…देख कैसे तड़प रहा है मेरा…लौरा..एयेए” चिरोरी करते हुए मुन्ना लंड को लूँगी के उपर से सहलाते हुए बोला.
“तड़प रहा तो….खुद ही शांत कर…मैं नही आती….” मुन्ना एक पल उसे देखता रहा फिर चिढ़ कर बोला. “ठीक है मत चल…मैं जा रहा हू…कोई ना कोई तो मिल ही जाएगी…” और फिर तेज़ी के साथ बाहर निकल गया. उसे पहले पता होता तो बसंती को बुला लेता, मगर आज तो कोई जुगाड़ नही था. फिर भी गुस्से में बाहर निकल सीधा बगीचे पर पहुँचा और दरवाज़ा बंद कर बिस्तर पर लेट गया. नींद तो आ नही रही थी. चुप-चाप वही लेटा करवटें बदलने लगा.
मुन्ना के बाहर निकल जाने के थोरी देर तक शीला देवी कुच्छ सोचती रही, फिर धीरे से उठी और बाहर निकल गई. उसके कदम अपने आप बगीचे की तरफ बढ़ते चले गये. कुच्छ समय बाद वो खलिहान के दरवाजे पर थी. दरवाजे पर खाट-खाट की आवाज़ सुन मुन्ना बिस्तर से उच्छल कर नीचे उतरा. कौन हो सकता है सोचते हुए उसने दरवाजा खोल दिया. सामने शीला देवी खड़ी थी पसीने से लत-पथ, लगता है जैसे दौरती हुई आई थी. उसकी साँसे तेज चल रही थी और सांसो के साथ उसकी छातियाँ उपर नीचे हो रही थी. नज़रे नीचे की ओर झुकी हुई थी. मुन्ना ने एक पल को उपर से नीचे शीला देवी को निहारा फिर चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोला “बाहर ही खरी रहोगी या अंदर आओगी”
एक पल रुक कर धीरे से वो अंदर आ गई और धीरे धीरे चलते हुए बिस्तर पर पैर लटका कर बैठ गई. फिर मासूम सा चेहरा बना मायूस आवाज़ में बोली “बेटा ये ठीक नही है… मैं नही चाहती की तू रंडियों के चक्कर में पड़े…ये सब बंद कर दे….” .
“मुझे कौन सा उनके साथ मज़ा आता है…पर तू तो…जब कि कल…”
“मैं तेरी मा हू…मुझे कल रात से खुद पर शरम आ रही है….इसलिए तुझे दुबारा करने से रोका…अंधी हो गई थी…ये ठीक नही है…..फिर तू उन रंडियों के साथ करता था मुझे बहुत बुरा लगता था…”
“तुझे मज़ा नही आया..था…सच बता…. तुझे मेरी कसम…”
“हा…आया था…बहुत मज़ा आया….पर…” शरम से लाल होती शीला देवी बोली. शीला देवी को थोरा सा खिसका कर उसके पास बिस्तर बैठ उसकी जाँघो पर हाथ रख कर मुन्ना उसे समझाने वाले अंदाज में बोला “तू गाओं में रह कर कुएँ की मेंढक बन गई है….दुनिया में सब कितना मज़ा करते है…फिर गाओं भर की जासूस वो बुढ़िया तो तेरे पास आती है, क्या वो तुझे नही बताती कि लोगो के घरो में क्या-क्या होता है.”
“आती है…और बताती भी है मगर…फिर भी हम औरो के जैसा क्यों…”
“तो फिर क्यों आई है भागती हुई”
“मैं तुझे रोकने आई हूँ....मैं नही चाहती तू औरो के जैसे बन जाए”
“बात उनके जैसा बन ने की नही. बात मज़े करने की है. कोई और हमारे बदले मज़ा नही कर सकता ना ही हम किसी को बताने जा रहे है कि हम कितने मज़े करते है. लोगो को अपना मज़ा करने दो हम अपना करते है. घर के अंदर कोई देखने आता है?…खुल कर मज़ा लेगी तभी सुखी रहेगी….शहर में तो….. ”
“तू मुझे ग़लत बाते सीखा रहा है…गंदी औरत बना रहा है…”
“…जिंदगी का असली मज़ा इसी में है…”
“पर तू मेरा…बेटा है…तेरे साथ…ये ग़लत है.
“मतलब मेरे साथ नही करवाएगी…बाहर के किसी से…”
“तू बात को पता नही कहाँ से कहाँ ले जाता है…देख बेटा ऐसा मत…कर…मुझे किसी से नही करवाना और उन रंडियों का चक्कर…ठीक नही…तू भी छ्चोड़ दे”
“तू अपनी सारी उठा कर रखेगी तो मैं बाहर क्यों मुँह मारूँगा…”
“बहुत बरी ….कीमत माँग रहा है….”
“तेरी छेद घिस जाएगी क्या…फिर तुझे भी तो मज़ा आएगा…बाहर करवाएगी तो बदनामी होगी…घर में…खुल कर मज़ा लूट…नही तो…जाम हो जाएगा…छेद…फिर उंगली भी डालेगी तो नही घुसेगी…” मुन्ना का ये भाषण सुन कर शीला देवी हस्ने लगी अब पर उसको ये बात भी समझ आ गई वो मुन्ना को नही रोक सकती. वो बाहर जाएगा ही. कुच्छ पल सोचती रही फिर समझ में आ गया कि अच्छा होगा वो अपनी छेद की सेवा उस से करवाती रहे. उसके दोनो हाथ में लड्डू रहेगा बेटा भी कब्ज़े में रहेगा और उसकी खुजली भी शांत रहेगी. इतना सोच मुस्कुराते हुए बोली “घिसेगी तो नही पर ढीली ज़रूर हो जाएगी…”
दोनो की हसी निकल गई. मुन्ना समझ गया कि सन्सय के बदल छट गये. कल रात से शीला देवी के मन में जो उथल-पुथल चल रहा था वो सब अब शायद ख़तम हो गया था. कल रात जो मज़ा आया था उसकी याद ने शीला देवी के बदन को एक बार फिर से सिहरा दिया. दोनो चुप थे और शीला देवी सिर नीचे किए अपनी चूत में उठ रहे झन-झनाहट और मचल रहे कीड़ो को महसूस कर रही थी. डुप्दुपति चूत को जाँघो के बीच कसती हुई धीरे से बोली “अब किसी रंडी के पास मुँह मारने तो नही जाएगा…”
“नही जौंगा बाबा…लेकिन तू पहले बोल खुल के मज़ा लेगी….”
“हा लूँगी…अब खुल के लूँगी…पर तू…”
“अरी….बोल तो दिया नही जाउन्गा…”
“चल झूठे….तेरा कोई भरोसा नही कसम ले पहले…”
“ठीक चल…तेरी कसम…”
“ना मेरी कसम क्यों खा…रहा है…” मुँह बिचकाती बोली. शीला देवी की आवाज़ से लग रहा था कि अब वो पूरे मज़े के लिए तैय्यार है. चेहरे पर और बोलने के अंदाज में चंचलता आ चुकी थी. मुन्ना कुच्छ पल सोचता रहा फिर बोला “ तब किसकी…”
“….अपने लूँ…ड्ड की कसम खा ना…” मुस्कुराती हुई बोली. ये बोलते हुए चौधरैयन का चेहरा शरम से लाल हो गया और गालो में गड्ढे पर गये. मुन्ना उपर से नीचे तक सन सना गया. शीला देवी ने लंड बोला और मुन्ना की रीढ़ की हड्डी का खून दौरता हुआ सीधा उसके लौरे में उतरता चला गया. शीला देवी की आँखो में झाँकते हुए तपाक से अपनी लूँगी को उठा खरे लंड को हाथ में पकड़ उसकी चमरी उलट कर चमचमाते सुपरे को दिखाता शीला देवी के पास खरा हो बोला “ हाई….इस लनन्ड की कसम जो तेरी चूत छ्चोड़ किसी और की….” कहते हुए आगे झुक कर उसकी गाल पर दाँत काट ते हुए दूसरे हाथ से उसकी एक चुचि को ज़ोर से दबा दिया. शीला देवी “उई मा…” खहते हुए उच्छल कर बैठ गई और मुन्ना को पिछे धकेला.
“इससस्स कितनी ज़ोर से काट लिया मुए…”
“हाई…यही पटक कर ले लूँगा…अफ….ऐसे ही खुल कर मज़ा लेगी तो….”.
कहते हुए मुन्ना ने शीला देवी के चूतर पर चिकोटी काटी. शीला देवी ने एक घूँसा उसकी छाती पर मारा और बोली “हट कुत्ते…भाग यहाँ से…”
लंड लूँगी में फरफारा रहा था. आज मुन्ना ने इरादा कर लिया था कि आराम से मज़ा लूँगा. एक-एक अंग को चाट-चाट कर, काट कर पहले खाउन्गा फिर रात भर गद्देदार चूत में लंड पेल कर चोदुन्गा. साली को आज सोने नही दूँगा.
शीला देवी की कमर में हाथ डाल उस से लिपट कर उसके कान की लौ को मुँह से पकड़ फुसफुसते हुए बोला “हाई बहुत तडपाया है…सुबह से…किसी काम में मन नही लग रहा था….” मुन्ना का हाथ लगते ही शीला देवी का पूरा बदन सिहर गया.
मुन्ना कान को चूमने के बाद धीरे से उसकी गर्दन और उसके पिछले भाग पर अपने होंठो को चलाते हुए चूम रहा था. आज शीला देवी ने पीठ पर बटन लगने वाला ब्लाउस पहन रखा था हाथ को धीरे धीरे उसकी पीठ पर सरकाते हुए आहिस्ता आहिस्ता मुन्ना एक-एक बटन खोलने लगा. ब्लाउस के बटन खुलते ही शीला देवी को जैसे होश आया मुन्ना को थोरा परे धकेल्ति हुई बोली “हाई रुक तो ज़रा… हाथ हटा….” images
“हाई तो और क्या करू....अब नही रुका जाता… “.
इस पर शीला देवी मुँह बनाती हुई बोली “अर्रे…दरवाजा तो बंद कर ले कुत्ते.....”
“ओह…अभी बंद कर के आता हू…एक चुम्मा दे…”
“नही तू बंद कर के आ…और फिर पहले मेरा पायल दे….फिर माँगना चुम्मा….” शीला देवी ने अपने सारी के पल्लू को ठीक करते हुए मुँह बनाते हुए कहा जैसे गुस्से में हो.
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“तो ये बोल ना…कि तुझे पायल चाहिए…”
“वो तो चाहिए ही….रंडियों को देगा और मा…को देने में….तुम सब बाप बेटे …एक जैसे…” कहते हुए उसने मुन्ना को धकेल कर बिस्तर से उतार दिया. मुन्ना दरवाज़ा बंद करने की जगह खोल कर बाहर निकल चारो तरफ देखने लगा. पूरे बगीचे में घनघोर अंधकार फैला हुआ था. आसमान में बदल छाए हुए थे और इसलिए चाँद भी उनके पिछे च्छूपा हुआ था. बारिश के आसार थे. दूर दूर तक एक कुत्ता भी नज़र नही आ रहा था. लूँगी के उपर से अपने लंड को पकड़ ज़ोर से हिलाते हुए अपने हाथ से ही लंड को मरोड़ कर धीरे से बोला साली….कल से तरप रहा हू…मा की चूत…हाई चौधरैयन आज तो तेरी फार दूँगा…. अचानक उसके होंठो पर एक मुस्कान फैल गई और और अपनी जेब में रखे पायल को उसने बाहर निकाल लिया और वही खुले में एक पेड़ के नीचे खड़े हो पेशाब करने के बाद तेज़ी से अंदर घुसा और दरवाजा बंद कर पिछे मुड़ा तो देखा कि शीला देवी कही नज़र नही आई अलबत्ता बाथरूम से तेज सिटी के जैसी आवाज़ आ रही थी. बाथरूम का दरवाज़ा पूरी तरह से बंद नही था. मुन्ना दबे पाव बाथरूम में घुस गया. शीला देवी कमोड के उपर बैठी मूतने में व्यस्त थी, पेटिकोट पिछे से पूरा उठा हुआ था और उसके मस्ताने गद्देदार गोरे गोरे चुट्टर सॉफ दिख रहे थे. चुटटर थोरा उठा हुआ था इसलिए पिछे से उसकी चूत भी थोरी दिख रही थी,
गांद का छेद दोनो भारी चुटटरो के बीच दबा हुआ था. मुन्ना के लंड को झंझणा देने के लिए इतना काफ़ी था. दिल में आया कि पिछे जा कर गांद में लंड सटा दे. दबे पाव शीला देवी के पिछे पहुच उसकी पेशाब करती हुई चूत को देखने की इच्छा से अपने सिर को आगे झुकाया ही था कि शीला देवी उठ कर खड़ी हो गई. मुन्ना को देखते ही चौंक गई शरम और गुस्से से मुन्ना को धकेला “उईईइ….मा..यहा क्या कर रहा है …डरा दिया…मैने सोचा पता नही कौन आ गया….कमीना..”
“देखने आया था तू कैसे मूत….ती है…” हस्ते हुए मुन्ना बोला.
“शरम नही आती…” फ्लस चलाती शीला देवी बोली.
“कल ही देखी थी तेरी…. जिस से तू मूत ती है…”
“उफफफ्फ़….मुए…बेशरम गंदी बाते करता है….सुअर कही का…”
“अब यही खरा रहेगा क्या....” मुन्ना को धकेल्ति बाथरूम से बाहर निकलती और खुद भी निकलती हुई बोली.
“खरा तो ना जाने कब से है….” अपनी लूँगी के उपर से लंड पकड़ के दिखाता हुआ बोला.
“हट मुए…बाहर निकलने के लिए बोल रही हू …चल…” बोलती हुई वो बाथरूम से बाहर निकल गई.
शीला देवी ने इस समय केवल पेटिकोट और ब्रा पहन रखा था. मुन्ना जब दरवाजा बंद करने गया था तभी उसने सारी और ब्लाउस उतार दिया था. hot-aunties-and-beautiful-teenshot-aunties-back-picshot-aunties-backhot-aunty-backhot-aunty-in-sareesaree-auntyhot-aunty-in-punjabi-
ब्रा काले रंग का नॉर्मल सा था बहुत ज़यादा स्टाइलिश नही था. इसलिए चुचे पूरे ढके हुए थे. खाली बीच वाली गोरी घाटी नज़र आ रही थी. काले रंग की एकदम फिट पेटिकोट नाभि से नीचे बँधी हुई थी और चुटटरो से चिपकी हुई उसके मस्ताने गथिले चुटटरो का आकार बता रही थी. शीला देवी भुन-भुनाते हुए बिस्तर पर पैर लटका कर बैठ गई. मुन्ना कुत्ते की तरह जीभ लपलपता उसके पिछे पिछे गया और बिस्तर पर बैठ गया और उसकी कमर में हाथ डाल कर कहा “…चल गुस्सा छ्चोड़…”
“नही तू…बहुत गंदा लड़का है…”
“अरे मा ग़लती हो गई….बरी इच्छा हो रही थी….. कि देखे कैसे करती हो..”
“क्या कैसे….करते हू…”
“पेशाब….और….क्या…”
“छि…गंदे…पता नही कहा से सीख कर आ गया है” मुँह बनाती हाथ चमकती हुई शीला देवी बोली.
अरे मा तू क्या जाने जब मे मामी के यहा था तो मैं अक्सर कामुक-कहानियाँ
हिन्दीसेक्सीकहानिया से सेक्सीकहानिया पढ़ता था वास्तव मे मा राज शर्मा की कहानिया बहुत मस्त होती है “हाई…तू जिसको…गंदा बोलती है…हाई पेशाब करते समय ना जब सिटी जैसी आवाज़…”
“धात…बेशरम वो तो औरते जब भी पेशाब करती है तब…आवाज़…”
“हा..वही…ये आवाज़ सुनते ही ना मेरा तो एकदम खड़ा हो जाता…”
“क्या…मतलब…. पेशाब करने की आवाज़ सुन के…छि…कितना कमीना हो गया है तू…”
“हाई..अब जो भी कह ले…देख ना…कैसे खड़ा है…” कहते हुए अपने लूँगी के उपर हाथ लगा लंड दिखाया और अपने हाथ को उसकी ब्रा मे कसी चुचियों पर ले गया. शीला देवी ने बुरा सा मुँह बनाते हुए उसका हाथ हटा दिया. मुन्ना फिर से अपने हाथ को उसकी ब्रा पर ले गया और उसकी बाई चुचि को मुट्ठी में पकड़ ज़ोर से दबाया. शीला देवी को ज़ोर से दर्द हुआ “उई…मा…”करते हुए चौंक गई और मुन्ना को परे धकेला. अपने हाथ से अपनी छाती सहलाती हुई बोली “नोच लेगा क्या…अफ…जुंगली कही का…”
“मा….खोल ना, अब नही खोलेगी तो फाड़ दूँगा तेरा ब्लाउस…” मुन्ना फिर से चिरोरी करते बोला. पर शीला देवी ने उसका हाथ झटक दिया और बोली “ना पहले…पायल दे…उसके बिना हाथ नही लगाने दूँगी…”
“कमाल करती है…पायल के पिछे पड़ी है…”
“रंडी तो तूने बना दिया है….अब तो बिना…पायल के…”
“तो फिर वैसे ही पटक कर लूँगा….”
“ले लेना हरामी….पर पहले पायल दे…..”
“तो ले….” कहते हुए मुन्ना उसके सामने खड़ा हो गया और अपनी लूँगी को खोल कर नीचे गिरा दिया. चौधरायण ने जब देखा तो उसके मुँह से एक तेज किलकरी निकल गई….”उईईइ….मा……मुए कितना कमीना है तू……” मुन्ना का दस इंच का लंड एक दम सीधा खड़ा था अपने लाल चमचमते सुपरे से लार टपका रहा था. पर खास बात ये थी मुन्ना ने पायल को लंड के चारो तरफ लपेट रखा था. उसकी इसी बदमासी ने शीला देवी के मुँह से किलकरी निकाल दी थी. लंड के चारो तरफ पायल लपेटे मुन्ना कमर पर हाथ रखे शान से खड़ा था.
“ले..ले अपना पायल….” कहते हुए उसने एक हाथ से शीला देवी का हाथ पकड़ा और उसको अपने लंड पर रख दिया. मुन्ना की ये अदा शीला देवी को पूरी तरह से मदहोश कर गई. लंड के सुपरे को पकड़ आहिस्ता-आहिस्ता उसने उसके चारो तरफ लपेटा हुआ पायल उतारा और मुन्ना को अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखो से घूरते अपने एक पैर को घुटने के पास से हल्का सा मोड़ कर बिस्तर पर रखा और फिर अदा के साथ धीरे से अपने अपने पेटिकोट को घुटनो तक उपर उठा कर अपनी गोरी पिंदलियों में पतली सी सोने की पायल पहन ने लगी. उसकी एक चुचि उसके घुटनो से दबी हुई ब्रा के बाहर आने को उतावली हुई थी. शीला देवी की इस अदा ने मुन्ना को ऐसा घायल किया कि उसका दिल कर रहा था इसकी तस्वीर निकाल कर हमेशा के लिए सन्जो ले. अपने काँपते हाथो से उसके तलवे को पकड़ पैर की उंगलियों पर हाथो को फेरा. शीला देवी ने पायल पहन लिया था.